BCom 3rd Year Amalgamation Reconstruction Study Material Notes in Hindi

Table of Contents

BCom 3rd Year Amalgamation Reconstruction Study Material Notes in Hindi: Accounting for Amalgamations  Types of Amalgamations Purchase Consideration  Methods of Determining Purchase Consideration Balance Sheet Journal entries  Assets Liabilities  the Pooling of interest method  Clarification  Opening Entries in the Books Purchasing Company

 Amalgamation Reconstruction Study Material
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BCom 2nd Year Cost Accounting Study Material Notes in Hindi

एकीकरण और पुनर्निर्माण

(Amalgamation and Reconstruction)

वर्तमान युग बड़े आकार की व्यावसायिक इकाइयों एवं औद्योगिक प्रतिस्पर्धा का युग है। कम्पनियाँ अपनी प्रतिस्पर्धात्मक शक्ति में वृद्धि करने के लिये, वित्तीय, तकनीकी और व्यावसायिक संसाधनों के समूहीकरण (Pooling) के लिये, योग्य और कुशल कर्मचारियों की नियुक्ति के लिये, बड़े आकार के उत्पादन की आर्थिक बचतों का लाभ प्राप्त करने के लिये तथा एकाधिकारी स्थिति बनाकर मूल्य और बाजारों पर नियंत्रण रखने के लिये आपस में संयोजित होकर व्यवसाय एवं उत्पादन कार्य करती हैं। संयोजन के लाभ प्राप्त करने के लिये इस समूहीकरण की व्यवस्था के अतिरिक्त कम्पनियों में सूत्रधारी कम्पनी निर्माण करने व विलय की प्रवृत्ति भी पायी जाती है। सूत्रधारी कम्पनियों की व्यवस्था को अन्यत्र अध्याय में समझाया गया है। इस अध्याय में विलय (Merger) और पुनर्निर्माण का ही विवेचन किया गया है। कम्पनी अधिनियम 2013 की 233 से 240 तक की धाराओं के अन्तर्गत कम्पनियों के एकीकरण और संविलयन के प्रावधान दिये गये हैं।

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विलय (Merger) : विलय दो प्रकार का होता है – (1) एकीकरण और (2) संविलयन।

एकीकरण (Amalgamation) : जब दो या दो से अधिक विघमान कम्पनियाँ अपने व्यवसायों का समापन करके एक नई कम्पनी बनाती हैं जो कि उनकी कम्पनियों को क्रय करती है तो इस प्रकार के संयोजन को एकीकरण कहते हैं। एकीकरण की दो विशेषतायें हैं – (1) विद्यमान कम्पनियों का समापन और (2) विद्यमान कम्पनियों के व्यवसाय को क्रय करने के लिये एक नई कम्पनी की स्थापना। इस प्रकार के संयोजन में विद्यमान कम्पनियाँ विक्रेता होती हैं तथा नई कम्पनी एक क्रेता होती है।

संविलयन (Absorption) : जब एक विद्यमान कम्पनी दूसरी विद्यमान कम्पनी या कम्पनियों का व्यवसाय क्रय करके अपने में मिला लेती है तो इस प्रकार के संयोजन को संविलयन (अथवा अन्तर्लयन अथवा अवशोषण) कहते हैं। इसमें (1) कोई नई कम्पनी नहीं स्थापित होती है, (2) अवशोषित (Absorbed) कम्पनियों का अस्तित्व समाप्त हो जाता है तथा (3) अवशोषक कम्पनी (Absorbing Company) का अस्तित्व बना रहता है। इस प्रकार के संयोजन में अवशोषक कम्पनी एक क्रेता होती है तथा अवशोषित कम्पनी या कम्पनियाँ विक्रेता होती हैं।

एकीकरणों के लिये लेखाकरण

(Accounting for Amalgamations)  

दी इन्स्टीट्यूट आफ चार्टर्ड एकाउन्टैन्ट्स आफ इन्डिया ने अक्टूबर 1994 में एकीकरणों के लेखाकरण के लिये लेखा-प्रमाप। 14 (Accounting Standard 14 or AS-14) जारी किया है तथा इसे 1-4-1995 या उसके बाद प्रारम्भ होने वाली लेखावधियों के लिये प्रभावी बनाया गया है। यह प्रमाप आदेशात्मक प्रकृति (mandatory nature) का है। यह प्रमाप एकीकरणों के लिये लेखाकरण की प्रक्रिया तथा उसके परिणामस्वरूप प्राप्त किसी ख्याति अथवा संचितियाँ (Reserves) के व्यवहार को निर्देशित करता है।

ए० एस० 14 ने एकीकरण की प्रचलित अवधारणा को संशोधित (modified) किया है। इस प्रमाप के अनसार एकीकरण किसी एक कम्पनी के किसी दसरी कम्पनी में विलय द्वारा किया जा सकता ह अथवा दो या अधिक कम्पनियों के विलय द्वारा एक नई कम्पनी का गठन करके किया जा सकता है। परम्परागत तौर पर प्रथम स्थिात अवशोषण (Absorption) कहलाती थी तथा द्वितीय स्थिति एकीकरण (Amalgamation) । किन्तु इस प्रमाप के जारा किये जाने के पश्चात् लेखाकरण के उद्देश्य से अब अवशोषण को एकीकरण में समामेलित कर लिया गया है। इस प्रमाण के अन्तर्गत कर लिया गया है। इस प्रमाप के अन्तर्गत अवशोषित (Absorbed) या समामेली (Amalgamating) अर्थात विक्रेता कम्पनी के लिये हस्तान्तरक कम्पना (transferor company) तथा अवशोषक (absorbing) या समामेलिना (Amalgamated) अर्थात् केता कम्पनी के लिये हस्तान्तरी कम्पनी (transferee company) शब्दों का प्रयोग किया गया है। अतः । हस्तान्तरक कम्पनी का आशय एक ऐसी कम्पनी से है जिसे किसी दूसरी कम्पनी में समामेलित किया जाता है तथा हस्तान्तरी कम्पनी का आशय किसी ऐसी कम्पनी से होता है जिसमें कोई हस्तान्तरक कम्पनी या कम्पनियाँ समामेलित की जाती है।

यहां यह ध्यान रहे कि ए० एस०14 अभिग्रहण (acquisitions) के मामलों में नहीं लागू होता है। इन मामलों में एक कम्पनी द्वारा दूसरी कम्पनी के समस्त या कुछ अंश या अन्य सम्पत्तियाँ क्रय की जाती हैं तथा उसके भुगतान में नकदी या अन्य सम्पत्तियों या । क्रता कम्पनी के अंश दिये जाते हैं अथवा आंशिक भुगतान एक रूप में तथा आंशिक दूसरे रूप में। यहाँ नोट करने वाली बात यह है। कि अभिग्रहण में अभिग्रहीत कम्पनी भंग नहीं की जाती है, वरन वह एक पथक इकाई के रूप में चालू रहती है जबकि एकीकरण की दशा में समामेली कम्पनी (amalgamating company) बिना समापन के ही भंग कर दी जाती है और उसका समामेलित कम्पनी (amalgamated company) में विलय हो जाता है

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एकीकरण के प्रकार (Types of Amalgamation)

ए० एस०14 के अन्तर्गत लेखाकरण के उद्देश्य से एकीकरण के दो वर्ग किये गये हैं :

(1) विलय की प्रकृति में एकीकरण, और (2) क्रय की प्रकृति में एकीकरण।

(1) विलय की प्रकृति में एकीकरण (Amalgamation in the Nature of Merger) : ए० एस०14 के पैराग्राफ 3 (e) में। उल्लिखित निम्नलिखित सभी पाँचों शर्तों के सन्तुष्ट किये जाने पर एकीकरण विलय की प्रकृति का माना जायेगा :

(i) एकीकरण के पश्चात् हस्तान्तरक कम्पनी की सभी सम्पत्तियाँ और दायित्व हस्तान्तरी कम्पनी की सम्पत्तियाँ व दायित्व बन जाते हैं।

(ii) हस्तान्तरी कम्पनी अथवा इसकी सहायक कम्पनियों अथवा उनके मनोनीतों द्वारा एकीकरण से पूर्व धारित हस्तान्तरक कम्पनी के समता अंशों के अतिरिक्त अन्य समता अंशों के अंकित मूल्य के कम से कम 90% अंशधारी एकीकरण के फलस्वरूप हस्तान्तरी कम्पनी के समता अंशधारी बन जाते हैं।

(iii) हस्तान्तरक कम्पनी के वे समता अंशधारी जो हस्तान्तरी कम्पनी के समता अंशधारी बनने के लिये सहमत होते हैं, को प्राप्य एकीकरण के लिये प्रतिफल का भुगतान हस्तान्तरी कम्पनी (सिवाय आंशिक (fractional) अंशों के लिये दी जाने वाली नकदी के) पूर्णतया अपने समता अंशों के निर्गमन द्वारा करती है।

(iv) एकीकरण के पश्चात हस्तान्तरी कम्पनी का हस्तान्तरक कम्पनी के व्यवसाय को चाल रखने का इरादा होता है।

(v) हस्तान्तरी कम्पनी के वित्तीय विवरणों में हस्तान्तरक कम्पनी की सम्पत्तियों और दायित्वों को समामेलित (incorporate) किये जाने पर उन्हें उनके पुस्तक मूल्य पर ही दिखलाया जाये। हाँ, कम्पनी की लेखाविधि-नीतियों में एकरूपता लाने के लिये आवश्यक समायोजन किये जा सकते हैं।

इस प्रकार के एकीकरण के अन्तर्गत मिलने वाली कम्पनियों की सम्पत्तियों और दायित्वों का यथार्थ समूहीकरण होता है तथा इन कम्पनियों के समता अंशधारियों का एकीकृत कम्पनी में आनुपातिक भाग बना रहता है। इस प्रकार के एकीकरण में एकीकृत कम्पनी के चिट्ठ में मिलने वाली कम्पनियों की सम्पत्तियों, दायित्वों, पूँजी और संचितियों का मोटे तौर पर योग ही दर्शाया जाता है।

(2) क्रय की प्रकृति का एकीकरण (Amalgamation in the Nature of Purchase) : यदि विलय की प्रकृति में एकीकरण की उल्लिखित पाँचों में से कोई एक या अधिक शर्ते सन्तुष्ट नहीं हो पाती हैं तो एकीकरण क्रय की प्रकृति में माना जायेगा।

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विलय की प्रकृति के एकीकरण और क्रय की प्रकृति के एकीकरण में अन्तर

(Difference between Amalgamation in the Nature of Merger and Amalgamation in the Nature of Purchase)

1 अंशधारियों का हित (Shareholders’ Interest) : विलय की दशा में समामेली कम्पनियों की न केवल सम्पत्तियों और दायित्वों का यथार्थ समूहीकरण होता है, वरन् अंशधारियों के हितों का भी। हस्तान्तरक कम्पनी के कम से कम 90% समता अंशधारी हस्तान्तरी कम्पनी के अंशधारी बन जाते हैं। अतः हस्तान्तरक कम्पनी (या कम्पनियों) के अंशधारियों का हस्तान्तरी कम्पनी की समता और प्रबन्ध में महत्वपूर्ण या आनुपातिक हिस्सा चालू रहता है। क्रय की प्रकृति में एकीकरण की दशा में हस्तान्तरक कम्पनी (या कम्पनियों) की सभी सम्पत्तियों और दायित्वों का हस्तान्तरी को हस्तान्तरण आवश्यक नहीं होता है। इसके अतिरिक्त हस्तान्तरक कम्पनी के 90% समता अशंधारियों का हस्तान्तरी कम्पनी में अंशधारी बने रहना भी आवश्यक नहीं है। अतः हस्तान्तरक कम्पनी के अंशधारियों का हस्तान्तरी कम्पनी में सामान्यतया नियंत्रणकारी हित नहीं होता है।

2. लेखाकंन पद्धति (Accounting Method) : विलय की दशा में हस्तान्तरी कम्पनी की पुस्तकों में लेखाकन की हितों के समूहीकरण की पद्धति लागू होती है जबकि क्रय की प्रकृति में एकीकरण की दशा में लेखांकन की क्रय पद्धति लागू होती है।

3. सम्पत्तियों और दायित्वों का मूल्य (Value of Assets and Liabilities) : विलय की दशा में हस्तान्तरक कम्पनी की। सम्पत्तियों, दायित्वों और संचयों को हस्तान्तरी कम्पनी द्वारा उनके विद्यमान वहन मूल्यों (existing carrying values) पर। रिकार्ड किया जाता है जबकि क्रय की प्रकृति की दशा में हस्तान्तरक कम्पनी की सम्पत्तियों और दायित्वों को हस्तान्तरी कम्पनी द्वारा उनके संशोधित उचित मूल्यों पर रिकार्ड किया जाता है।

4. संचयों की पहिचान (Identity of Reserves) : विलय की दशा में, हस्तान्तरक कम्पनी के संचयों की पहिचान बनी रहती है। और उन्हें हस्तान्तरी कम्पनी के संचयों में उसी रूप में विलय किया जाता है जिसमें वे हस्तान्तरक कम्पनी के चिट्टे दिखलाये गये होते हैं। इसके विपरीत, क्रय की प्रकति की दशा में हस्तान्तरक कम्पनी के वैधानिक संचयों के अतिरिक्त अन्य संचयों को हस्तान्तरी कम्पनी के वित्तीय विवरणों में सम्मिलित नहीं किया जाता है।

5. हस्तान्तरक के व्यवसाय को चालू रखना (Continuation of Business of the Transferor) : विलय की दशा में हस्तान्तरक कम्पनी के व्यवसाय को चालू रखने का इरादा होता है किन्तु क्रय की दशा में हस्तान्तरक कम्पनी के व्यवसाय को चालू रखना आवश्यक नहीं है।

6. क्रय प्रतिफल (Purchase Consideration) : विलय की दशा में हस्तान्तरी कम्पनी द्वारा क्रय प्रतिफल का भुगतान लगभग पूर्णतया अपने समता अंशों के निर्गमन द्वारा किया जाता है जबकि क्रय की दशा में, क्रय प्रतिफल का भुगतान नकद, अंशों अथवा ऋणपत्रों अथवा इनके किसी संयोजन द्वारा किसी भी तरह किया जा सकता है

क्रय प्रतिफल (Purchase Consideration)

हस्तान्तरी कम्पनी द्वारा हस्तान्तरक कम्पनी के व्यवसाय के क्रय के लिये देय कीमत क्रय प्रतिफल कहलाता है। वस्तुतः यह। हस्तान्तरी कम्पनी द्वारा हस्तान्तरक कम्पनी की ली गई शुद्ध सम्पत्तियों के लिये देय राशि होती है। ए० एस०-14 के अनुसार एकीकरण के लिये प्रतिफल का आशय हस्तान्तरी कम्पनी द्वारा हस्तान्तरक कम्पनी के अंशधारियों (समता और पूर्वाधिकारी दोनों) को निर्गमित अंशों व अन्य प्रतिभूतियों तथा रोकड़ या अन्य सम्पत्तियों के रूप में किये गये भुगतान के योग से होता है। हस्तान्तरी कम्पनी द्वारा लिये गये दायित्वों (लेनदार, ऋणपत्र आदि) की राशि, जिन्हें भुगतान सीधे हस्तान्तरी कम्पनी द्वारा ही किया जायेगा, को कभी भी क्रय प्रतिफल में नहीं सम्मिलित करना चाहिये। अतः हस्तान्तरी कम्पनी द्वारा हस्तान्तरक कम्पनी के लेनदारों, ऋणपत्रधरियों। अथवा किसी अन्य बाह्य दायित्वों के लिये अथवा हस्तान्तरक कम्पनी द्वारा समापन की लागत के लिये किये गये भुगतानों को क्रय प्रतिफल में नहीं जोड़ा जायेगा। यह माना जायेगा कि पहले हस्तान्तरी कम्पनी द्वारा ऐसा दायित्व लिया जाता है और इसके पश्चात इसके द्वारा ही भुगतान किया जाता है। किन्तु यदि प्रश्न में स्पष्टतया दिया गया है कि ऐसा कोई दायित्व हस्तान्तरी कम्पनी द्वारा नहीं लिया जा रहा है तो इसका भुगतान हस्तान्तरक कम्पनी द्वारा किया जायेगा। __

इसके अतिरिक्त क्रय प्रतिफल के निर्धारण में इसके प्रत्येक गैर-रोकड़ी तत्व को उसके उचित मूल्य पर दिखलाना चाहिये। उदाहरण के लिये प्रतिभतियों की दशा में वैधानिक प्राधिकारियों द्वारा निधारित मूल्य को उचित मूल्य लिया जा सकता है। अन्य। सम्पत्तियों की दशा में. दी गयी सम्पत्ति का बाजार मूल्य उचित मूल्य माना जा सकता है किन्तु यदि सम्पत्ति के बाजार मल्य का विश्वसनीय मल्यांकन सम्भव नहीं है तो ऐसी सम्पत्ति को उसक शुद्ध पुस्तक मूल्य पर मूल्यांकित किया जा सकता है ।

क्रय प्रतिफल का भुगतान हस्तान्तरी कम्पनी के पूर्वाधिकारी और/अथवा समता अंशों या ऋणपत्रों के निर्गमन दाग – रोकड और अन्य सम्पत्तियों द्वारा किया जा सकता है। अशी व ऋणपत्रों का निगमन सममूल्य, प्रीमियम अथवा कटौतो पर हो सकता है ।

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क्रय प्रतिफल के निर्धारण की पद्धतियाँ

(Methods of Determining Purchase Consideration )

इसके निर्धारण की विभिन्न पद्धतियाँ निम्नलिखित हैं:\

(1) एक मुश्त भुगतान पद्धति (Lump Sum Payment Method) : यदि प्रश्न में हस्तान्तरी कम्पनी द्वारा हस्तान्तरक कम्पनी को दी जाने वाली कुल धनराशि स्पष्ट रूप से दी गयी हो तो यही धन राशि क्रय प्रतिफल होती है। इस स्थिति में इसके लिये किसी अन्य गणना की आवश्यकता नहीं होती है।

(2) शुद्ध सम्पत्ति पद्धति (Net Assets Method) : यदि प्रश्न में न तो क्रय प्रतिफल की एक मुश्त राशि दी हो और न हस्तान्तरक कम्पनी के अंशधारियों को हस्तान्तरी कम्पनी से मिलने वाले विभिन्न भुगतान के विवरण दिये हों तो उस स्थिति में क्रय प्रतिफल की गणना शुद्ध सम्पत्ति पद्धति के आधार पर की जाती है। इस पद्धति के अन्तर्गत क्रय प्रतिफल की गणना हस्तान्तरी (क्रेता) कम्पनी द्वारा हस्तान्तरक (विक्रेता) कम्पनी की ली जा रही सम्पत्तियों के उचित या तय मूल्य (fair or agreed value) के जोड़ से। वहन किये जा रहे दायित्वों के उचित मूल्य को घटाकर की जाती है। यदि हस्तान्तरक कम्पनी की सम्पत्तियों और दायित्वों को पुनर्मूल्यांकित किया जाता है तो पुनर्मूल्यांकित मूल्य ही उचित मूल्य होंगे अन्यथा पुस्तक मूल्यों (book values) को ही उचित मूल्य माना जायेगा। इस विधि से क्रय मूल्य निर्धारित करते समय निम्न बातों पर अवश्य ध्यान देना चाहिये ।।

(अ) क्रय मूल्य की गणना केवल उन्हीं सम्पत्तियों व दायित्वों के उचित मूल्यों के आधार पर की जाती है जिन्हें हस्तान्तरी कम्पनी ले रही है। अतः यदि किसी सम्पत्ति या दायित्व को हस्तान्तरी कम्पनी नहीं ले रही है तो उसे क्रय प्रतिफल की गणना में नहीं सम्मिलित किया जाना चाहिये।

(ब) “सभी सम्पत्तियों” (All assets) शब्द के अन्तर्गत रोकड़ शेष और बैंक शेष भी सम्मिलित होते हैं जब तक कि इसके विपरीत न कहा गया हो किन्तु इसमें अपलिखित न हो सकी कृत्रिम सम्पत्तियों व व्ययों (जैसे प्रारम्भिक व्यय, अभिगोपन कमीशन, अंशों अथवा ऋणपत्रों के निर्गमन पर कटौती, विज्ञापन उचन्त खाते, लाभ-हानि खाते का डेबिट शेष आदि) को सम्मिलित नहीं किया जाता है। ख्याति हमेशा हस्तान्तरी कम्पनी द्वारा ली गई ही मानी जायेगी। यदि पेटेन्ट, ट्रेडमार्क या पूर्वदत्त व्यय की मदें दी हैं तो इन्हें सम्पत्तियों में सम्मिलित किया जाता है जब तक कि इसके विपरीत न कहा गया हो।

(स) “दायित्वों” (Liabilities) शब्द के अन्तर्गत तृतीय पक्षों के प्रति समस्त दायित्व (जैसे Trade Creditors, Bills Payable, Bank Overdraft, Outstanding Expenses, Debentures, Loans, Provision for Taxation, Employees’ Security Deposit, Unclaimed Dividends आदि) सम्मिलित होते हैं किन्तु इसमें भूतकालीन एकत्रित लाभ अथवा संचितियों (जैसे General Reserve, Reserve Fund, Sinking Fund, Dividend Equalisation Fund, Capital Reserve, Securities Premium Account, Capital Redemption Reserve Account, Credit balance of Profit & Loss Account, Forfeited Shares Account, Development Rebate Reserve, Contingency Reserve, Workmen’s Compensation, Accident or Insurance Fund की वास्तविक दावे से अधिक की राशि) नहीं सम्मिलित होते हैं जबकि दायित्व प्रकृति के कोष (जैसे Leasehold Redemption Fund, Rehabilitation Fund, Staff Provident Fund, Pension Fund, Superannuation Fund, Workmen’s Savings Bank Account, Workmen’s Profit Sharing Fund. Employees’ Welfare Fund, Sundry Shareholders Dividend Account, वास्तविक दावे की राशि तक के Workmen’s Compensation, Accident or Insurance Fund) दायित्वों में सम्मिलित होंगे।

(द) “व्यापारिक दायित्वों” (Trade Liabilities) शब्द के अन्तर्गत केवल व्यापारिक लेनदार और देय बिल को ही सम्मिलित किया जाता है किन्तु इसमें अदत्त व्यय, कर आयोजन, बैंक अधिविकर्ष, ऋणपत्र आदि सम्मिलित नहीं होंगे।

(इ) “व्यवसाय” (Business) शब्द के अन्तर्गत समस्त सम्पत्तियाँ तथा बाह्य पक्षों के प्रति समस्त दायित्व सम्मिलित होते हैं।

उदाहरण 1. 31 मार्च 2015 को ए लिमिटेड और बी लिमिटेड के चिढ़े निम्नलिखित हैं :

The following are the balance sheets ofALtd. and BLtd. as on 31-3-2015:

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(3) शुद्ध भुगतान पद्धति (Net Payment Method) : इस विधि के अन्तर्गत हस्तान्तरी कम्पनी द्वारा हस्तान्तरक कम्पनी के अंशधारियों (समता और पूर्वाधिकारी दोनों) को उनके दावों के भुगतान में दिये जाने वाले अंशों, ऋणपत्रों व रोकड़ का योग क्रय प्रतिफल कहलाता है। किन्तु यह ध्यान रहे कि हस्तान्तरक कम्पनी के ऋणपत्रधारियों और अन्य बाह्य दायित्वों को हस्तान्तरी कम्पनी द्वारा किये गये भुगतान क्रय प्रतिफल में नहीं सम्मिलित किये जाते हैं। इसी तरह यदि हस्तान्तरी कम्पनी हस्तान्तरक कम्पनी के समापन व्ययों का भी भुगतान कर रही है तो इसे भी क्रय प्रतिफल में नहीं सम्मिलित किया जायेगा।

नोट : (i) हस्तान्तरक कम्पनी को अंश व ऋणपत्र पूर्णदत्त निर्गमित किये जा सकते हैं अथवा अंशतः दत्त। पुनः, ये अंश व ऋणपत्र ___समझौते के अनुसार सम-मूल्य पर निर्गमित किये जा सकते हैं अथवा प्रीमियम अथवा कटौती पर।

(ii) इस पद्धति के अन्तर्गत क्रय प्रतिफल की गणना में हस्तान्तरक कम्पनी की सम्पत्ति व दायित्वों पर विचार नहीं किया जाता है। यदि हस्तान्तरी कम्पनी को हस्तान्तरित शुद्ध सम्पत्तियों के मूल्य और क्रय प्रतिफल की राशि में अन्तर आता है तो अन्तर के समायोजन के लिये क्रेता कम्पनी की पुस्तकों में आवश्यक लेखे किये जाते हैं।

(iii) जब तक इसके विपरीत तय न कर लिया गया हो तब तक हस्तान्तरी कम्पनी द्वारा हस्तान्तरक कम्पनी को क्रय प्रतिफल में निर्गमित किये गये अंशों को उनके चुकता मूल्य पर मूल्यांकित किया जायेगा। दूसरे शब्दों में, लेखाकरण के समय निर्गमित किये गये अंशों के बाजार मूल्य की उपेक्षा करनी चाहिये जब तक कि अंशों के बाजार मूल्य पर निर्गमन के लिये तय न कर लिया गया हो।

(iv) परिवर्तन अनुपात (exchange ratio) के कारण कभी-कभी दिये जाने वाले अंशों की संख्या पूर्णाक में नहीं आती। ऐसी स्थिति में। अंशों के भाग (fraction of shares) का भुगतान सदैव नकदी में किया जाता है। अंश के भाग की गणना उसके बाजार मूल्य के आधार पर की जायेगी जब तक कि इसे अंश के चुकता मूल्य के आधार पर मूल्यांकन के लिये स्पष्ट समझौता न कर लिया गया हो।

उदाहरण 2.X कम्पनी लिमिटेड Y कम्पनी लिमिटेड के व्यवसाय के अधिग्रहण के लिये सहमत होती है, प्रतिफल है : 50,000 व्यापारिक दायित्वों का ग्रहण, 5,000 ₹ समापन की लागतों का भुगतान, 2,00,000 ₹ के ‘ब’ ऋणपत्रों का 10% अधिमूल्य पर शोधन 4.00.000₹ के ‘अ’ ऋणपत्रों का 8% अधिमूल्य पर X कम्पनी लिमिटेड में 10% ऋणपत्रों के निर्गमन द्वारा चुकता करना और Y कम्पनी लिमिटेड में प्रत्येक अंश के लिये 10 र प्रति अंश नकद भुगतान तथा X कम्पनी लिमिटेड में 10₹ वाले दो पूर्णदत्त 15 प्रति अंश के बाजार मल्य पर विनिमय। विक्रेता कम्पनी की अंश पूजी 25२ प्रति के पूर्णदत्त 20,000 अंश है। लेखांकन मानदण्ड 14 अनुसार क्रय प्रतिफल की गणना करो।

X Co. Ltd. agrees to take over the business of Y Co. Ltd., the consideration se over the business of Y Co. Ltd., the consideration being : the assumption of trade liabilities Rs. 50,000; the payment of the costs of the liquidation R  the payment of the costs of the liquidation Rs. 5,000; the redemption of ‘B’ Debentures of Rs. 2,00,000 at a premium of 10%; the discharge of AND premium of 10%; the discharge of ‘A’ Debentures Rs. 4,00,000 at a premium of 8% by the issue of 10% Debentures in the X Co. Ltd, and th cash and the exchange of 2 fully paid Rs. 10 shares in the X Co. Ltd, at the for every share in the Y Co. Ltd. The share capital of the vendor com 25 each fully paid. Calculate purchase consideration as per AS – 14

नोट : ए० एस० -14 के अनुसार एकीकरण के लिये प्रतिफल का आशय हस्तान्तरी कम्पनी द्वारा हस्तान्तरक कम्पनी के अंशधारियों को निर्गमित अंशों व अन्य प्रतिभूतियों तथा रोकड़ या अन्य सम्पत्तियों के रूप में किये गये भुगतान के योग से होता है। अतः हस्तान्तरी कम्पनी द्वारा सीधे ऋणपत्रधारियों को किया गया भुगतान और समापन की लागतों का भुगतान क्रय प्रतिफल का भाग। नहीं मानना चाहिये।

(4) अंश विनिमय पद्धति (Share Exchange Method or Swap Ratio Method): इस पद्धति के अन्तर्गत क्रय प्रतिफल उस अनुपात के आधार पर निर्धारित किया जाता है जिसमें हस्तान्तरी कम्पनी के अंशों के लिये विनिमय किया जाना है। यहाँ पर भी। क्रय प्रतिफल का आशय केवल अंशधारियों को किये गये भुगतान से ही होगा। सामान्यतया विनिमय अनुपात प्रत्येक कम्पनी के अंशों के आन्तरिक मूल्य (intrinsic value) या शुद्ध सम्पत्ति मूल्य (net assets value) के आधार पर निर्धारित किया जाता है।। उदाहरण के लिये माना कि A Ltd. B Ltd. को क्रय कर रही है तथा दोनों कम्पनियों के अंशों का आन्तरिक मूल्य क्रमशः 20₹ और 8र है तो ऐसी स्थिति में BLtd. को दिये जाने वाले अंशों की संख्या इस प्रकार ज्ञात की जायेगी :

Total number of shares of B Ltd. x%o

यहाँ यह ध्यान रहे कि जब तक कि अंशों के बाजार मूल्य पर निर्गमन के लिये सहमति न हो गयी हो, क्रय प्रतिफल की गणना में इस प्रकार निर्गमित अंशों को उनके चुकता मूल्य पर ही दिखलाया जायेगा।

उदाहरण 3. 31 मार्च 2015 को X लिमिटेड का चिट्ठा निम्नलिखित है :

The following is the Balance Sheet ofX Ltd. as on 31st March 2015:

Liabilities                                      Rs.            Assets            Rs.

Equity Shares of Rs. 10 each    5,00,000    Fixed Assets    4,00,000

13% Preference Shares of Rs.10 each 1,00,00 Investments  15,000

General Reserve                       25,000         Stock           2,55,000

14% Debentures                     60,000         Debtors           70,000

Sundry Creditors                     50,000          Bank              20,000

Bills Payable                         20,000

Provision for Tax                      5,000

                                          7.60,000                               7,60,000

अतिरिक्त सूचना :  (अ) 15 अप्रैल 2015 को Y लिमिटेड र लिमिटेड का अधिग्रहण करती है।

(ब)X लि० के 13% पूर्वाधिकारी अंशधारियों का 10% अधिमूल्य पर 10₹ वाले 14% पूर्वाधिकारी अंश द्वारा चुकता किया जाता

(स) X लिमिटेड के प्रति समता अंश का शुद्ध सम्पत्ति मूल्य 250 ₹ तथा Y लिमिटेड का 400 ₹ है। X लिमिटेड के समता। अंशधारियों को संतुष्ट करने के लिये लिमिटेड आन्तरिक मूल्य के आधार पर समता अंश निर्गमित करेगी। तथापि, क्रय प्रतिफल केवल सम-मूल्य के आधार पर ही आधारित होना है। Y लिमिटेड के समता अंशों का अंकित मूल्य 107 है।

(द) X लिमिटेड के ऋणपत्रधारियों का चुकता 15% अधिमूल्य पर Y लिमिटेड में 14% ऋणपत्र निर्गमन द्वारा होगा।

क्रय प्रतिफल की गणना करो।

Additional Information : (a)Y Ltd. takes over X Ltd. on 15 April 2015.

(b) 13% preference shareholders of X Ltd. are discharged at a premium of 10% by issuing 14% Preference shares of Rs. 10 each.

(c) The net assets value per equity share of X Ltd. is Rs. 250 and that of Y Ltd. is Rs. 400. Y Ltd. will

issue equity shares to satisfy the equity shareholders of X Ltd. on the basis of intrinsic value. However, the purchase consideration is to be based on the basis of par value only. The face value of equity shares of Y Ltd. is Rs. 10.

(d) Debentureholder of X Ltd. are to be discharged at a premium of 15% by issuing 14% Debentures in Y Ltd. Compute the purchase consideration.

Solution :

Calculation of Purchase Consideration

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(i) For Preference Shareholders: 11,000, 14% Pref. Shares of Rs. 10 each       1,10,000

(ii) For Equity Shareholders (250 X 50,000 : 31,250 Equity Shares of Rs. 10 each 4,22,500 Debentures of X Ltd. will be taken over by Y Ltd. and then paid.                        3,12,500

खण्डित या अपूर्ण अंश (Fraction Shares) : यदि हस्तान्तरक कम्पनी को देय कुछ खण्डित अंश हैं तो हस्तान्तरी कम्पनी द्वारा ऐसे अंश का मूल्य अपने अंश के बाजार मूल्य के आधार पर रोकड़ में भुगतान किया जायेगा। उदाहरण 4. कृष्णा लिमिटेड हस्तान्तरक कम्पनी में प्रत्येक 3 अंशों के लिये अपने 10₹ प्रति के 87 प्रदत्त एक अंश निर्गमन के लिये सहमत हुई। हस्तान्तरक कम्पनी में 50,000 अंश हैं। कृष्णा लिमिटेड के अंश बाजार में 187 पर उद्धृत हुए । बाजार मूल्य का प्रयोग केवल खण्डित अंश के मूल्य ज्ञात करने के लिये किया जाता है। क्रय प्रतिफल ज्ञात करो।

Krishna Ltd. has agreed to issue one share of Rs. 10 each. Rs. 8 paid up for every three shares in transferor company. There are 50,000 shares in the transferor company. The shares of Krishna Ltd. are quoted at Rs. 18 in the market. Market price is used to find out the value of fraction share only. Find out purchase consideration.

Solution :

For three shares of transferor company, the transferee company will allot one share. Therefore, for 50,000 shares of transferor company, the transferee company will allot 50,000xt 6 shares. Hence, the purchase consideration is : 16,666 shares of Rs. 10 each, Rs. 8 paid up

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हस्तान्तरक (विक्रेता) कम्पनी की पुस्तकों में समापन लेखे

(Closing entries in the books of transferor (vendor) company)

हस्तान्तरक कम्पनी को अपनी लेखा-पुस्तकों को बंद करना पड़ता है। सम्पत्तियों और दायित्वों के हस्तान्तरण,वसूली व भुगतान पर लाभ-हानि के निर्धारण के लिये एक ‘वसूली खाता’ (Realisation Account) खोला जाता है। समापन की लेखा-प्राक्रेया इस प्रकार होगी: I.

1 For transferring all the assets :

Realisation Account                      Dr.                               (with the total)

To Sundry Assets Account (Individually)=                     (with their respective book values)

नोट: (i) जिन सम्पत्तियों के हस्तान्तरी कम्पनी नहीं ले रही है, उन्हें भी वसूली खाते में हस्तान्तरित किया जायेगा। किन्तु रोकड व बोरको बसली खाते में तभी हस्तान्तरित किया जायेगा जबकि हस्तान्तरी कम्पनी इन्हें भी ले रही है जैसा कि विलय की प्रकृति में एकीकरण में होता है।

(ii) कृत्रिम सम्पत्तियों (जैसे प्रारम्भिक व्यय, अंशों व ऋणपत्रों के निर्गमन पर कटौती, अभिगोपन कमीशन, लाभ-हानि खाते का डेबिट शेष आदि) को वसूली खाते में नहीं हस्तान्तरित किया जाता है।

(iii) जिन सम्पत्तियों पर आयोजन किये गये हैं (जैसे सन्देहास्पद ऋणों के लिये आयोजन, हास के लिये आयोजन, मरम्मत आयोजन, विनियोग उच्चावचन को । आदि) उन्हें वसूली खाते में उनके सकल मूल्य पर अर्थात आयोजन की राशि घटाये बिना हस्तान्तरित किया जायेगा तथा आयोजनों को दायित्वों के साथ हस्तान्तरित किया जायेगा। किन्तु ध्यान रहे कि किसी सम्पत्ति विशे। के लिये किया गया कोई आयोजन वसूली खाते में तभी हस्तान्तरित किया जाये।

जबकि उससे सम्बन्धित सम्पत्ति को भी वसूली खाते में हस्तान्तरित किया गया हो।

(iv) ख्याति, पेटेन्ट, ट्रेडमार्क आदि अमूर्त सम्पत्तियों को भी वसूली खाते में हस्तान्तरित किया जाता है बशर्ते कि उनका कोई वसूली मूल्य है अथवा ये हस्तान्तरी कम्पनी द्वारा लिये जाते हैं।

2. For transferring liabilities taken over by the transferee company :

Sundry Liabilities Account (Individually)        Dr. (with their respective book values)

To Realisation Account                                   (with the total)

नोट : (i) ऋणपत्र सहित सभी दायित्व हस्तान्तरी कम्पनी द्वारा लिये और फिर भुगतान किये गये माने जायेंगे। अतः सभी दायित्वों को वसूली खाते में हस्तान्तरित किया जायेगा।

(ii) संकलित या अवितरित लाभ तथा लाभ की प्रकृति की संचितियाँ कभी भी दायित्वों में सम्मिलित नहीं होती। किन्तु यदि कोई कोष अंशतः दायित्व है तथा अंशतः अवितरित लाभ (जैसे Workmen’s Compensation Fund, Insurance Fund, Medical Benefit Fund आदि) तो को का केवल दायित्व वाला भाग ही वसूली खाते में हस्तान्तरित किया जायेगा तथा शेष राशि समता अंशधारियों के खाते में हस्तान्तरित की जायेगी।

3. For purchase consideration becoming due :

Transferee Company’s Account                   Dr. with the amount of purchase

To Realisation Account                                     consideration

4. For sale of assets not taken over by the transferee company :

Bank Account                                           Dr.   with the net amount

To Realisation Account                                      realised

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5. For discharge of some liability or liabilities not taken over by the transferee company :

यदि किसी कारणवश किसी दायित्व को हस्तान्तरी कम्पनी ने नहीं लिया है तो उसे वसूली खाते में हस्तान्तरित नहीं करना चाहिये तथा इसके भुगतान किये जाने पर निम्न प्रविष्टि की जायेगी।

Respective Liability Account                       Dr. with the actual

To Bank Account                                             payment

नोट : हस्तान्तरक कम्पनी द्वारा किसी दायित्व के भुगतान किये जाने पर हुआ लाभ अथवा हानि वसूली खाते में हस्तान्तरित करना चाहिये। इसके लिये निम्न प्रविष्टि की जायेगी :

(a) In case of profit :

Respecitve Liability Account                           Dr. with the amount

To Realisation Account                                           of Profit

(b) In case of loss:

Realisation Account                                       Dr    with the amount

To Respective Liability Account                             of profit

  1. For receiving purchase consideration :

Shares in Transferee Co. Account                    Dr

Debentures in Transferee Co. Account              Dr As the case may be

Cash/Bank Account                                               Dr

As the case may be

To Transferee Co.’s Account

7. For liquidation (or realisation) expenses of the transferor company : (with the total)

(अ) जब इन व्ययों को हस्तान्तरक कम्पनी वहन करे

Realisation Account                                Dr.

To Cash/Bank Account                        with actual

(ब) जब इन व्ययों को हस्तान्तरी कम्पनी वहन करे-इस स्थिति में लेखाकरण के निम्न दो विकल्प होंगे

नोट : (1) समता अंशधारियों के भुगतान के पश्चात् हस्तान्तरक कम्पनी की पुस्तकों में सभी खाते बंद हो जायेंगे। अतः किसी भी खाते में कोई शेष नहीं रह जाना चाहिये।

(2) सभी प्रकार के लाभ और हानियों के सभी प्रकार के समायोजन करने के पश्चात समता अंशधारी खाता का शेष क्रेता कम्पनी में अंशों और ऋणपत्रों की राशि तथा रोकड़ शेष के बराबर होगा।

उदाहरण 5. एटा कम्पनी लि० ने 31मार्च 2015 को अलीगढ़ कम्पनी लि० के व्यवसाय को लिया। क्रय प्रतिफल निम्न प्रकार था।

(अ) एटा कम्पनी लि० अलीगढ़ कम्पनी लि० की समस्त देनदारियों को लेगी।

(ब) एटा कम्पनी लि० अलीगढ़ कम्पनी लि० के प्रत्येक 100 रुपये वाले 15% ऋणपत्र की संतुष्टि के लिये, 14% वाले 105 रुपये के ऋणपत्र निर्गमित करेगी।

(स) एटा कम्पनी लि० अलीगढ़ लि० के 5 अंशों के बदले में 9 अंश निर्गमित करेगी। एटा लि0 10 रुपये वाले अंश को 12.50 रुपये की दर से देगी। अलीगढ़ लि० के 400 अंशों के लिये एटा लि० ने निर्धारित मूल्य पर नकद देना स्वीकार किया।

(द) अलीगढ़ लिके समापक को रोकड़ में 7,500₹ रोकने का अधिकार दिया गया जो कि उसके व्ययों के लिये पर्याप्त था।

Etah Co. Ltd. acquired the undertaking of Aligarh Co. Ltd. on 31st March 2015 the consideration for acquisition being :

(a) Etah Co. Ltd. to assume all the liabilities of Aligarh Co. Ltd.

(b) Etah Co. Ltd. to issue ₹ 105, 14% debentures in satisfaction of each ₹ 100, 15% debentures of Aligarh Ltd.

(c) Etah Co. Ltd. to allot fully paid ₹ 10 equity shares to Aligarh Ltd. at an agreed value of₹12.50 per share, in the ratio of nine shares of Etah Ltd. for five of Aligarh Ltd. Fractions amounted to 400 shares of Aligarh Ltd. and were settled in cash provided by Etah Ltd. at the agreed figure,

(d) The liquidator of Aligarh Ltd. was permitted to retain * 7.500 from the assets to meet the cost of liquidation which amounted to that sum exactly.

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हस्तान्तरी (क्रेता) कम्पनी की पुस्तकों में प्रारम्भिक लेखे )

(Opening entries in the Books of Transfer ( Purchasing Company)

 

ए0 एस0 14 मुख्यतया हस्तान्तरी कम्पनी की पुस्तकों में एकीकरण के लेखा-व्यवहार (accounting treatment) को ही विनियमित करता है। एकीकरण के प्रकार (अर्थात् विलय द्वारा अथवा क्रय द्वारा एकीकरण) के आधार पर ही हस्तान्तरी कम्पनी की पुस्तकों में लेखा-प्रक्रिया अपनायी जायेगी। इसकी निम्न दो रीतियाँ हैं :

1. हितों का समूहीकरण पद्धति और

2. क्रय पद्धति।

हितों का समूहीकरण पद्धति (The Pooling of Interest Method)

जब समामेली (amalgamating) या हस्तान्तरक कम्पनियों के पृथक-पृथक व्यवसायों को एकीकृत करके समामेलित (amalgamated) या हस्तान्तरी कम्पनी द्वारा चलाये जाने का इरादा होता है तो यह विलय की प्रकृति में एकीकरण कहलाता है तथा इस स्थिति में हस्तान्तरी कम्पनी की पुस्तकों में लेखाकरण के लिये हितों के समूहीकरण की पद्धति का प्रयोग किया जायेगा। इस पद्धति की प्रमुख बातें इस प्रकार हैं :

(i) हस्तान्तरक कम्पनी/कम्पनियों की सम्पत्तियों, दायित्वों और संचितियों (चाहे ये पूँजीगत प्रकृति की हों अथवा आयगत अथवा पुनर्मूल्यांकन पर उदय हुई हों) को हस्तान्तरी कम्पनी की पुस्तकों में उनकी विद्यमान धारण राशियों (existing carrying amounts) पर तथा उसी रूप में जिसमें ये एकीकरण की तिथि पर हैं, ही रिकार्ड किया जायेगा।

यदि किसी मद या मदों के प्रदर्शन के सम्बन्ध में हस्तान्तरक और हस्तान्तरी कम्पनियाँ भिन्न लेखा-नीतियाँ अपनाये हुए हैं तो एकरूपता लाने के लिये इन मदों को इनके पुस्तक मूल्यों में अपेक्षित समायोजन करके दिखलाया जा सकता है। किन्तु इस स्थिति में यदि परिवर्तन का प्रभाव महत्वपूर्ण हो तो परिवर्तन वाले लेखा-वर्ष के वित्तीय विवरणों में इसका प्रभाव ए० एस०5 के अनुरूप स्पष्ट रूप से दर्शाना होगा।

(ii) हस्तान्तरक कम्पनी के लाभ-हानि विवरण-पत्र के शेष को हस्तान्तरी कम्पनी के तदनुरूपी (corresponding) शेष के साथ। योग करके दिखलाना चाहिये अथवा सामान्य संचिति (General Reserve) में हस्तान्तरित कर देना चाहिये। किन्तु इसे ख्याति खाते में न हस्तान्तरित किया जाय।

(iii) विभिन्न संचितियों की पहिचान बनाये रखी जाती है और उन्हें हस्तान्तरी कम्पनी के चिट्टे में उसी रूप में दिखलाते हैं जिसमें। ये हस्तान्तरक कम्पनी के वित्तीय विवरणों में दर्शायी गयी हैं। उदाहरण के लिये हस्तान्तरक कम्पनी की सामान्य संचिति को हस्तान्तरी । कम्पनी में भी सामान्य संचिति ही दिखलाया जाय, पूँजीगत संचिति को पूँजीगत संचिति दिखलाया जाय तथा पुनर्मूल्यांकन संचिति को पुनर्मूल्यांकन संचिति दिखलाया जाये। इस व्यवहार के फलस्वरूप जो संचितियाँ एकीकरण से पूर्व लाभांश वितरण के लिये उपलब्ध हैं, वे एकीकरण के पश्चात् भी लाभांश वितरण के लिये उपलब्ध रहेंगी।

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(iv) हस्तान्तरी कम्पनी द्वारा क्रय प्रतिफल में निर्गमित अंश-पूँजी व रोकड़ या अन्य सम्पत्तियों के रूप में दिये गये किसी अतिरिक्त प्रतिफल के योग की राशि (अर्थात् क्रय प्रतिफल) और हस्तान्तरक कम्पनी की अंश पूँजी की राशि का शुद्ध अन्तर संचितियों से समायोजित किया जाय। इसकी गणना विधि इस प्रकार होगी

Purchase Consideration ———————————————————————–

Paid-up Share Capitals of the transferor Company (or Companies) ———–

Difference (being loss)  ————————————————————————

Adjustment against capital reserves, revenue reserves and ——————–

accumulated profits of transferor and transferee companies ——————

Net Difference  ———————————————————————————

स्पष्टीकरण (Clarification) : ICAI की एक विशेषज्ञ समिति की एक राय के अनुसार हस्तान्तरी कम्पनी द्वारा हस्तान्तरक कम्पनी को निर्गमित की गयी अंश पूँजी (अर्थात् क्रय प्रतिफल), हस्तान्तरक कम्पनी (या कम्पनियों) की अंश पूँजी से कम है तो अन्तर को पूँजीगत संचय माना जाना चाहिये किन्तु यह अंशधारियों में लाभांश या अधिलाभांश अंश के रूप में वितरण के लिये उपलब्ध नहीं होगा। इसका स्पष्ट आशय यह हुआ कि यदि क्रय प्रतिफल हस्तान्तरक कम्पनी की अंश पूँजी से अधिक है तो यह एक पँजीगत हानि होगी। इस हानि को सबसे पहले हस्तान्तरक और हस्तान्तरी कम्पनियों के पूँजीगत संचयों से समायोजित किया जाये और यदि पँजीगत संचय अपर्याप्त हैं तो बकाया को हस्तान्तरक और हस्तान्तरी कम्पनियों के आगम संचयों से समायोजित किया जाये। यदि ये दोनों भी अपर्याप्त रहते हैं तो असमायोजित अन्तर को लाभ-हानि खाते से समायोजित किया जायेगा किन्तु किसी भी स्थिति में इसके लिये वैधानिक संचयों को प्रयोग में न लाया जाये। यदि फिर भी कुछ असमायोजित अन्तर रह जाता है तो शुद्ध अन्तर की राशि को हस्तान्तरी कम्पनी के सामान्य संचय खाते को डेबिट करके समायोजित किया जायेगा। किन्तु यदि हस्तान्तरी कम्पनी एक नई समामेलित कम्पनी है अथवा (एक पुरानी कम्पनी की दशा में) इसके पास कोई सामान्य संचय नहीं है तो अन्तर की राशि को लाभ-हानि खाते। से डेबिट करके आधिक्य से समायोजित किया जायेगा।

(v) हस्तान्तरी कम्पनी द्वारा हस्तान्तरक कम्पनी के वहन किये गये समापन अथवा वसूली के व्ययों को हस्तान्तरी कम्पनी के सामान्य संचय खाता अथवा लाभ-हानि खाते में डेबिट किया जाये।

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जर्नल की प्रविष्टियाँ (Journal Entries)

(1) For purchase consideration becoming due :

Business Purchase Account                             Dr.  with the amount of

To Liquidator of Transferor Co.’s Account                 purchase consideration

(2) For incorporating assets and liabilities taken over :

Sundry Assets Account (Individually)

Dr. (with their respective book values)

To Sundry Liabilities Account (Individually)         (with their respective book values)

To Profit & Loss Account                        (with the book balance)

To Reserves Account (Individually)                (with their respective book balances)

To Business Purchase Account                   (with purchase consideration)

नोट : (i) प्रविष्टि (2) में डेबिट लेखों के योग और क्रेडिट लेखों के योग का अन्तर हस्तान्तरी लेखों के योग और क्रेडिट लेखों के योग का अन्तर हस्तान्तरी कम्पनी की संचितियों में समायोजित किया जायेगा।

(ii) उपर्युक्त (1) और (2) प्रविष्टियों के लिये निम्न एक प्रविष्टि भी की जा सकते

Sundry Assets Account (Individually)                  Dr.

To Sundry Liabilities Account (Individually)

To Profit & Loss Account

To Reserves Account (Individually )

To Reserves Account  (Individually)

(3) . For discharging the purchase consideration :

Liquidator of Transferor Co.’s Account        Dr. (with the purchase consideration)

Discount on Shares Account                        Dr. (with the amount of discount, if any)

To Share Capital Account                             (with the paid-up value of shares issued)

To Securities Premium Account                   (with premium on shares, if any)

To Bank Account                                          (with cash paid for fractional shares

or for dissenting shareholders)

To Non-cash Consideration                          (with the fair value

(other than shares)                                           for dissenting shareholders)

(4) If liquidation expenses of transferor company are borne by the transferee company :

General Reserve Account /Profit & Loss Account            Dr. with the amount of

To Bank Account                                                                    expenses reimbursed

(5) For formation expenses of the transferee company, if any : Preliminary Expenses Account

Dr. with the amount of expenses To Bank Account

(6) If any liability taken over is discharged by the transferee company : Respective Liability Account

Dr. (with the amount payable) To Share Capital Account To Debentures Account

As the case may be To Bank Account

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क्रय पद्धति (The Purchase Method)

यह पद्धति क्रय की प्रकृति में एकीकरण के लिये लागू होती है। इस पद्धति के अनुसार लेखा-प्रविष्टियाँ करते समय निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिये:

(i) हस्तान्तरक कम्पनी की सम्पत्तियों और दायित्वों को हस्तान्तरी कम्पनी की पुस्तकों में या तो (a) उनकी विद्यमान धारण राशि (अर्थात् उनके पुस्तक मूल्यों) पर सम्मिलित करना चाहिये अथवा (b) क्रय प्रतिफल को प्रत्येक व्यक्तिगत पहचानने योग्य सम्पत्तियों और दायित्वों पर एकीकरण की तिथि पर उनके उचित मूल्यों (fair values) (अर्थात् उनके पुनर्मूल्यांकित अंकों) के आधार पर विभाजित कर देना चाहिये।

(ii) हस्तान्तरक कम्पनी की वैधानिक संचितियों के अतिरिक्त अन्य किसी संचिति (जैसे सामान्य संचिति, पूँजीगत संचिति या सम्पत्तियों के पुनर्मूल्यांकन पर उदित हुई पुनर्मूल्यांकन संचिति) को हस्तान्तरी कम्पनी के वित्तीय विवरणों में नहीं सम्मिलित करना चाहिये।

(iii) हस्तान्तरक कम्पनी की क्रय की गई शुद्ध सम्पत्तियों के मूल्य पर क्रय प्रतिफल के आधिक्य को एकीकरण पर उदित ख्याति मानते हुए ख्याति खाता में डेबिट कर देना चाहिये। दूसरी ओर यदि क्रय प्रतिफल क्रय की गई शुद्ध सम्पत्तियों के मूल्य से कम है तो अन्तर को पूँजी संचिति खाता में क्रेडिट करना चाहिये। ए० एस० 14 के अनुसार ख्याति की राशि को अधिकतम 5 वर्षों में अपलिखित कर देना चाहिये जब तक कि इससे अधिक अवधि के लिये कोई स्पष्ट औचित्य न हो।

(iv) यदि हस्तान्तरक कम्पनी के समापन या वसूली व्यय हस्तान्तरी कम्पनी द्वारा वहन किये जाते हैं तो उसे पँजीगत हानि माना जाता है और अतः उसे ख्याति या पूँजीगत संचिति खाते में डेबिट किया जाता है।

(v) यदि हस्तान्तरक कम्पनी को किसी वैधानिक संचिति (जैसे विकास भत्ता संचिति खाता, विनियोग भत्ता संचिति खाता. निर्यात भत्ता संचिति खाता आदि) को वैधानिक अनुपालन के लिये आगे ले जाना (carry forward) आवश्यक हो तो हस्तान्तरी  किसी भी कानन के अन्तर्गत सृजित संचिति वैधानिक संचिति कहलाती है। वैधानिक संचितियों के अदाहरण हैं – निर्यात लाभ संचिति । विकास छुट संचिति, विनियोग भत्ता संचिति, परियोजना निर्यात संचिति, कर विकास संचिति, विदेशी परियोजना संचिति आदि

(vi) वैधानिक संचितियाँ हस्तान्तरी कम्पनी के चिट्टे में ‘संचितियाँ और आधिक्य’ का हिस्सा बनेंगी और इनके ब्योरे ‘खातों पर टिप्पणियां’ में दिखलाये जायेंगे तथा एकीकरण समायोजन खाता को कम्पनी के चिठे में ‘अन्य चालू सम्पत्तियाँ’ (Other Current Assets) शीर्षक के अन्तर्गत दिखलाया जायेगा और इस खाते का नाम ‘खातों पर टिप्पणियाँ’ में प्रकट किया जायेगा। जब ऐसी किसी वैधानिक संचिति की पहचान बनाये रखने की आवश्यकता न रहे तो वैधानिक संचिति खाता और एकीकरण समयोजन खाता दोनों को एक विपरीत प्रविष्टि करके समाप्त कर देना चाहिये।

 

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