BCom 2nd year Approval Licensing Registration Inspection Factories Study Material Notes In Hindi

//

BCom 2nd year Approval Licensing Registration Inspection Factories Study Material Notes In Hindi

Table of Contents

BCom 2nd year Approval Licensing Registration Inspection Factories Study Material Notes In Hindi: Approval Licensing and Registration of Factories Information by Occupier General Duties of the Company General Duties of Manufactories et as regards articles and Substances for use in Factories Appointment of Inspectors the Inspecting Staff Section Powers of Inspector Certifying Surgeons Sections Important Examinations Questions Long Answer Questions Short Answer Question :

Approval Licensing Registration Inspection
Approval Licensing Registration Inspection

BCom 2nd Year Factory Act 1948 An Introduction Study Material Notes in Hindi

कारखानों की स्वीकृति, अनुज्ञापन, पंजीकरण तथा निरीक्षण

(APPROVAL, LICENSING, REGISTRATION AND INSPECTION OF FACTORIES)

किसी भी नये कारखाने की स्थापना करने, विद्यमान कारखाने का विस्तार करने अथवा उसमें परिवर्तन करने एवं निरीक्षण करने हेतु कारखाना अधिनियम, 1948 के अन्तर्गत विभिन्न प्रावधान दिये हुये हैं जिनका प्रमुख उद्देश्य श्रमिकों के हितों की रक्षा करना तथा कार्य करने का उपयुक्त वातावरण सृजित करना है। प्रस्तुत अध्याय में इन सभी प्रावधानों का उल्लेख किया गया है।

Approval Licensing Registration Inspection

कारखानों की स्वीकृति, अनुज्ञापन एवं पंजीयन (धारा 6)

(Approval, Licensing and Registration of Factories)

कारखाना अधिनियम, 1948 के अन्तर्गत कारखानों की स्वीकृति, अनुज्ञापन तथा पंजीयन करवाने के सम्बन्ध में प्रमुख प्रावधान निम्नानुसार हैं

1 नियम बनाने का अधिकारकारखाना अधिनियम की धारा 6 के अनुसार कारखानों की स्वीकृति (approval), अनुज्ञापन (licensing) एवं पंजीयन (Registration) के सम्बन्ध में नियम बनाने का अधिकार राज्य सरकार को है। राज्य सरकार निम्नलिखित कार्यों के सम्बन्ध में नियम बनाकर कारखाने के स्वामी को राज्य सरकार या कारखानों के मुख्य निरीक्षक से लिखित पूर्वानुमति प्राप्त करने के लिये बाध्य कर सकती है(

(i) किसी भी वर्ग या विवरण (Class or description) के कारखानों की योजना प्रस्तुत करने के सम्बन्ध में।

(ii) उस स्थान में, जहाँ कारखाना स्थापित करना है।

(iii) किसी कारखाने के निर्माण या विस्तार (Construction or extension) के सम्बन्ध में।

(iv) उन कारखानों की योजनायें एवं विशिष्ट विवरण (Plans and Specifications) प्रस्तुत करने के सम्बन्ध में।

(v) उन योजनाओं एवं विशिष्ट विवरणों की प्रकृति निर्धारित करने तथा उन्हें प्रमाणित करने वाले व्यक्तियों को निर्धारित करने के सम्बन्ध में।

(vi) किसी वर्ग या विवरण के कारखानों के पंजीयन करवाने तथा लाइसेन्स प्राप्त करने का आदेश देने के सम्बन्ध में।

(vii) किसी कारखाने के उपर्युक्त प्रकार से पंजीयन करवाने तथा लाइसेन्स प्राप्त करने या उसका नवीनीकरण करवाने के लिये शुल्क निर्धारित करने के सम्बन्ध में।

(viii) धारा 7 के अनुसार सूचना प्राप्त न होने तक लाइसेन्स जारी न करने अथवा उसका नवीनीकरण नहीं करने के सम्बन्ध में।

उपर्युक्त धारा 6(1) के अधीन अनेक राज्यों में स्वीकृति, अनुज्ञापन एवं पंजीयन सम्बन्धी नियम बनाये गये हैं। उदाहरण के लिये, राजस्थान में 1951 में, उत्तर-प्रदेश में 1950 में एवं मध्य-प्रदेश में सन् 1982 में नियम बनाये गये हैं।

Approval Licensing Registration Inspection

परिस्थितियाँ जब धारा (6) के अन्तर्गत राज्य सरकार अथवा मुख्य निरीक्षक की पूर्वानुमति प्राप्त करना आवश्यक नहीं होता-उपर्युक्त धारा के अन्तर्गत निम्नलिखित दशाओं में कारखाने का विस्तार हुआ नहीं माना। जायेगा-(1) किसी प्लाण्ट (Plant) या यन्त्र का प्रतिस्थापन (Replacement) करना,(2) निर्धारित सीमाओं के अन्दर कोई अतिरिक्त प्लाण्ट या यन्त्र लगाना में यह भी स्पष्ट किया गया है कि यदि प्रतिस्थापन या वृद्धि के द्वारा कारखाने का विस्तार किया गया है, जिसका कि कारखाने के स्थान अथवा पर्यावरण की परिस्थितियों पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है तो इस विस्तार के लिये मुख्य निरीक्षक अथवा राज्य सरकार की स्वीकृति लेने की। आवश्यकता नहीं है।

2. आवेदनपत्र की स्वीकृति अथवा स्वतः अनुमति प्राप्त हुई माननायदि कोई व्यक्ति राज्य सरकार द्वारा निर्धारित नियमों के अनुसार अपने कारखाने के स्थान,किसी श्रेणी या विशेष प्रकार के कारखाने के निर्माण अथवा विस्तार की अनुमति के लिये राज्य सरकार या मुख्य कारखाना निरीक्षक को रजिस्टर्ड डाक से कोई आवेदन-पत्र भेजता है तथा आवेदन-पत्र भेजने की तिथि से तीन महीनों के अन्दर कोई उत्तर या आदेश प्राप्त नहीं होता है तो यह माना जायेगा कि उक्त आवेदन-पत्र पर स्वीकृति प्रदान कर दी गई है। [धारा 6(2)]

3. अनुमति मिलने पर अपीलऐसी दशा में जहाँ राज्य सरकार अथवा मुख्य निरीक्षक किसी कारखाने के स्थान, निर्माण या विस्तार के लिये अथवा उसका पंजीकरण करने तथा उसके लिये लाइसेन्स देना अस्वीकार कर देता है तो आवेदनकर्ता ऐसी अस्वीकृति की तिथि से 30 दिन के भीतर अपील कर सकता है ।

इस सम्बन्ध में ध्यान रखने योग्य महत्त्वपूर्ण बात यह है कि यदि अस्वीकृति मुख्य निरीक्षक के द्वारा की गई है तो उसकी अपील राज्य सरकार को करनी चाहिये। परन्तु यदि अस्वीकृति राज्य सरकार के द्वारा की गई हो तो केन्द्रीय सरकार को अपील करनी चाहिये।

परिभोगी या दखलदार अथवा अधिष्ठाता द्वारा सूचना (धारा 7]

(Information by Occupier)

कारखाना (संशोधन) अधिनियम, 1987 के अनुसार, परिभोगी से आशय उस व्यक्ति से है जिसका कारखाने के सभी कार्यों पर अन्तिम नियन्त्रण है।

पिछले अध्याय में आधारभूत परिभाषाओं के अन्तर्गत परिभोगी’ की विस्तृत व्याख्या की हुई है।

कारखाना अधिनियम की धारा 7 के अन्तर्गत निर्दिष्ट बातों के सम्बन्ध में सूचना भेजने का उत्तरदायित्व परिभोगी या अधिष्ठाता का है। परिभोगी द्वारा सूचना भेजने से सम्बन्धित मुख्य प्रावधान निम्नलिखित प्रकार

1 भवन या परिसर अधिग्रहण की सूचना-कारखाना अधिनियम की धारा 7(1) के अनुसार किसी परिसर को कारखाने के रूप में प्रयोग अथवा अधिकार में लेने के कम-से-कम 15 दिन पूर्व अधिष्ठाता निम्नलिखित बातों की लिखित सूचना मुख्य निरीक्षक को अनिवार्य रूप से देगा

(i) कारखाने का नाम तथा उसकी स्थिति;

(ii) परिभोगी का नाम एवं पता;

(iii) संस्थान या भवन (उनकी सीमा सहित) के स्वामी का नाम एवं पता:

(iv) पता जिस पर कारखाने से सम्बन्धित सन्देश भेजे जा सकें.

(v) कारखाने में की जाने वाली निर्माण प्रक्रिया की प्रकृतिः

() यदि कारखाना इस अधिनियम के लागू होने से पूर्व विद्यमान है तो पिछले 12 महीने में की जाने वाली निर्माण प्रक्रिया; तथा

() अन्य कारखानों में आगामी 12 माह में की जाने वाली निर्माण प्रक्रियाः

(vi) कारखाने में उपयोग की जाने वाली शक्ति (power) की प्रकृति व मात्रा;

(vii) इस अधिनियम के उद्देश्य के लिये कारखाने के प्रबन्धक (Manager) का नाम:

(viii) कारखाने में नियुक्त किये जाने वाले सम्भावित श्रमिकों की अनुमानित संख्या:

(i) इस अधिनियम के लागू होने के पूर्व से ही यदि कारखाना विद्यमान है तो उसके गत 12 माह में

नियुक्त श्रमिकों की दैनिक औसत संख्या; तथा (x) अन्य कोई विवरण जो मुख्य निरीक्षक निर्धारित करे।

Approval Licensing Registration Inspection

2. विद्यमान कारखानों के सम्बन्ध में सूचनाऐसे सभी कारखानों के सम्बन्ध में जो कि इस अधिनियम के क्षेत्र में पहली बार आये हैं, उनके अधिष्ठाताओं को उपरोक्त सूचना जिसका वर्णन धारा 7(1) के अन्तर्गत किया गया है, इस अधिनियम के लागू होने की तिथि से 30 दिन के भीतर लिखित रूप में मुख्य निरीक्षक के पास भेजनी होगी।

3. मौसमी कारखानों के सम्बन्ध में सूचनाऐसा कारखाना, जो वर्ष में सामान्यतः 180 दिन से कम समय के लिये निर्माण प्रक्रिया में लगा रहता है, उसके अधिष्ठाता को उपरोक्त समस्त के अन्तर्गत किया गया है. लिखित रूप से निर्माण प्रक्रिया के आरम्भ होने से कम-से-कम 30 दिन पूर्व मुख्य निरीक्षक के पास भेजनी होगी।

4. नये प्रबन्धक की सुचनाजब कभी कारखाने में नये प्रबन्धक की नियक्ति की जाती है तो कार्यभार सम्भालने के 7 दिन के अन्दर अधिष्ठाता को उसकी लिखित सूचना निरीक्षक के पास भेजनी होगी तथा उसका एक प्रति मुख्य निरीक्षक के पास भेजनी होगी।

5. प्रबन्धक की अनुपस्थिति में स्वयं अधिष्ठाता का दायित्व यदि किसी अवधि के लिये किसी भी व्यक्ति को कारखाने का प्रबन्धक मनोनीत नहीं किया गया है अथवा जिस व्यक्ति को मनोनीत किया गया है। वह कारखान के प्रबन्धक का कार्य नहीं करता है, तो ऐसी दशा में जो भी व्यक्ति प्रबन्ध का कार्य कर रहा होगा, उसे ही प्रबन्धक माना जाएगा। इसके विपरीत यदि कोई भी व्यक्ति प्रबन्ध का कार्य नहीं कर रहा है, तो। अधिष्ठाता (परिभोगी) को ही उक्त कारखाने का प्रबन्धक माना जायेगा।

परिभोगी के सामान्य कर्त्तव्य [धारा 7A]

(General Duties of the Occupier)

कारखाना (संशोधन) अधिनियम, 1987 द्वारा एक नवीन धारा 7.A शामिल की गई जिसमें परिभोगी के निम्नलिखित सामान्य कर्त्तव्यों का उल्लेख किया गया है

स्वास्थ्य, सुरक्षा एवं कल्याण करनाप्रत्येक परिभोगी कारखाने में कार्य के दौरान जहाँ तक व्यावहारिक हो, श्रमिकों के स्वास्थ्य, सुरक्षा एवं कल्याण की व्यवस्था करेगा।

उसके ऐसे कर्तव्यों में निम्नलिखित का समावेश होगा

(1) संयन्त्र तथा कारखाने में कार्य की प्रणालियों की व्यवस्था तथा अनुरक्षण जो सुरक्षित हो तथा स्वास्थ्य के लिये तनिक भी खतरा न हो;

(ii) वस्तुओं तथा पदार्थों के उपयोग,भंडारण,हस्थन तथा परिवहन के संदर्भ में स्वास्थ्य के प्रति जोखिमों की अनुपस्थिति तथा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये कारखाने में व्यवस्थायें;

(iii) ऐसी सूचनाओं, आदेशों,प्रशिक्षण तथा अधीक्षण की व्यवस्था जो काम पर सभी श्रमिकों के स्वास्थ्य तथा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक हों;

(iv) ऐसी स्थिति में कारखाने में कार्य के सभी स्थानों का रखरखाव जो सुरक्षित हो तथा स्वास्थ्य के लिये कोई खतरा न हो तथा ऐसे स्थानों को आने तथा जाने के साधनों का सुरक्षित रखरखाव जो सुरक्षित हों तथा बिना किसी जोखिम के हों;

(v) श्रमिकों के लिये कारखाने में ऐसे कार्य वातावरण का प्रावधान,अनुरक्षण तथा अवलोकन जो सुरक्षित हो स्वास्थ्य के प्रति बिना जोखिम के हो, तथा काम पर उनके कल्याण के लिये व्यवस्था तथा सुविधाओं के सम्बन्ध में पर्याप्त हो।

(vi) सिवाय ऐसे मामलों के,जिनको निर्धारित किया जाये,प्रत्येक अधिष्ठाता कार्य पर श्रमिकों के स्वास्थ्य तथा सुरक्षा तथा नीति के संचालन हेतु संगठन तथा व्यवस्थाओं के सम्बन्ध में उसकी सामान्य नीति के लिखित विवरण की रचना, संशोधन तथा पुनरावृत्ति करेगा तथा ऐसे किसी विवरण तथा किसी पनरावत्ति को निर्धारित तरीके से सभी श्रमिकों के संज्ञान में लायेगा ।

Approval Licensing Registration Inspection

कारखाने में प्रगोग हेतु वस्तुओं तथा पदार्थों के सम्बन्ध में उत्पादकों आदि के सामान्य कत्तेव्य [धारा 7-B]

(General Duties of Manufacturers ete, as Regards Articles and Substances for use in Factories)

कारखाना (संशोधन) अधिनियम, 1987 के अन्तर्गत एक नई धारा 7-B शामिल की गई है। इस धारा के अनसार यदि कोई व्यक्ति कारखाने में उपयोग के लिये किसी वस्तु का अभिकल्प (Design) तैयार करता है. निर्माण करता है, आयात करता है अथवा उसकी आपूर्ति करता है तो उसके निम्नलिखित कर्त्तव्य होंगे

1 सुरक्षित एवं जोखिमरहित अभिकल्प एवं निर्माण होना-जितना भी उचित रूप से व्यावहारिक हो. वह वस्तु का अभिकल्प एवं निर्माण इस प्रकार से करेगा कि ठीक ढंग से उपयोग करने पर एवं कर्मचारियों के स्वास्थ्य हेतु जोखिम-रहित रहेगी।

2. जाँच या परीक्षणउपर्युक्त कर्त्तव्य को पूरा करने के लिये (अर्थात् वस्तु का डिजाइन एवं संरचना । सुरक्षित एवं स्वास्थ्य के लिये हानिरहित बनाये रखने के लिये) वह सभी आवश्यक जाँच एवं परीक्षण करेगा। या करने की व्यवस्था करेगा।

3. सूचनायें प्राप्त करनावह निम्नलिखित के सम्बन्ध में पर्याप्त सूचनायें प्राप्त करने के लिये सभी आवश्यक कदम उठायेगा

(i) किसी कारखाने में वस्तु के प्रयोग के सम्बन्ध में।

(ii) उस प्रयोग के सम्बन्ध में जिसके लिये वस्तु को डिजाइन किया गया है और उसका परीक्षण किया गया है।

(iii) उन दशाओं के सम्बन्ध में जो यह सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक हो कि जब उस वस्तु का प्रयोग किया जाये तब वह सुरक्षित एवं श्रमिकों के स्वास्थ्य के लिये जोखिम एवं हानि रहित होगी। परन्तु जहाँ यह वस्तु भारत के बाहर डिजाइन या निर्मित की गई है, वहाँ आयातकर्ता के लिये यह देखना अति आवश्यक होगा कि

(a) यदि ऐसी वस्तु भारत में निर्मित की जाती है तो वस्तु उन्हीं मानकों के अनुरूप है।

(b) यदि ऐसी वस्तु के निर्माण के लिये विदेशों में अधिक ऊंचा स्तर अपनाया जाता है तो ऐसी दशा में वस्तु ऐसे मानकों के अनुरूप या अनुकूल है।

4. शोध करना कोई भी व्यक्ति जो किसी कारखाने में उपयोग के लिये किसी वस्तु का अभिकल्प बनाना या निर्माण करना चाहता है, वह कर्मचारियों के स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिये अथवा स्वास्थ्य की जखिम को कम करने के लिये उचित एवं व्यावहारिक शोध कर सकता है।

5. शोध या परीक्षण से मुक्तियदि इस प्रकार की जाँच,परीक्षण या शोध किसी दूसरे व्यक्ति या संस्था द्वारा किया जा चुका है और उसके परिणाम विश्वसनीय रहे हों तो ऐसी दशा में परीक्षण, जाँच या शोध की पुनरावृत्ति आवश्यक नहीं होगी।

6. व्यवसाय की दशा में कर्त्तव्यइस धारा के अन्तर्गत निर्धारित कर्त्तव्य किसी भी व्यक्ति को तभी पूरे करने होंगे जबकि वह कोई कार्य अपने व्यवसाय के दौरान तथा अपने नियन्त्रण के अन्तर्गत करता है।

7. उपयोगकर्ता की गारण्टी की दशा में यदि कोई व्यक्ति किसी वस्तु का डिजाइन, उसका निर्माण, आयात या उसकी आपूर्ति उसके उपयोगकर्ता (User) की इस गारण्टी पर करता है कि उस वस्तु का उपयोग श्रमिकों की सुरक्षा एवं स्वास्थ्य के प्रति हानिरहित ढंग से किया जायेगा तो उस वस्तु के डिजाइन, निर्माण या आयात या आपूर्ति करने वाले का इस धारा के अन्तर्गत गारण्टी की सीमा तक कर्त्तव्य समाप्त हो जाता है।

8. सूचना, सलाह या निर्देशों का पालन नहीं करने पर कर्त्तव्य-यदि किसी वस्तु का प्रयोग करते समय उसके उपयोग से सम्बन्धित सूचना, सलाह या निर्देश का पालन नहीं किया गया है तो यह माना जायेगा कि उस वस्तु का विधिवत या उचित ढंग से उपयोग नहीं किया गया है।

स्पष्टीकरण-इस धारा के उद्देश्य के लिये “वस्तु में यंत्र तथा मशीनरी भी सम्मिलित है।”

निरीक्षण अधिकारी [धारा 8-9]

(The Inspecting Staff : Section 8-9)

कारखाना अधिनियम, 1948 के अन्तर्गत कारखानों के मालिकों के लिये विशिष्ट दायित्व निर्धारित किये गये हैं जिनका मुख्य उद्देश्य कारखानों में श्रमिकों की कार्य की दशा में प्रभावी सुधार एवं उनके स्वास्थ्य, सुरक्षा । एवं कल्याण की सुदृढ़ एवं प्रभावी व्यवस्था करना है। इस सम्बन्ध में कारखाना अधिनियम के अन्तर्गत जो प्रावधान किये गये हैं, उनका अनुपालन हो रहा है या नहीं, यदि नहीं तो क्यों नहीं. इसकी जाँच करने तथा कारखाने से सम्बन्धित अन्य बातो का प्रभावी निरीक्षण करने के लिये कारखाना अधिनियम की धारा 8 एवं। धारा 9 के अन्तर्गत निरीक्षण अधिकारी के सम्बन्ध में विभिन्न प्रावधान दिये गये हैं, जिनकी विस्तत विवेचना निम्नानुसार है

Approval Licensing Registration Inspection

निरीक्षकों की नियुक्ति (धारा 8)

(Appointment of Inspectors)

कारखाना अधिनियम में कारखानों के निरीक्षण के लिये निरीक्षकों की नियुक्ति का प्रावधान है। उनका नियुक्ति के सम्बन्ध में प्रमुख प्रावधान निम्नानुसार हैं

1 कारखाना निरीक्षकों की नियक्ति (Appointment of Factory Inspector) राज्य सरकार गजट म घोषणा करके ऐसे व्यक्तियों को कारखाना निरीक्षक नियुक्त कर सकती है जो निर्धारित योग्यता रखत हा। इन निरीक्षकों का कार्य-क्षेत्र भी राज्य सरकार निश्चित करती है।

उपर्युक्त धारा का अध्ययन करने से कारखाना निरीक्षकों की नियुक्ति के सम्बन्ध में निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण बिन्दु प्रकट होते हैं

(i) निरीक्षक नियुक्त करने का अधिकार केवल राज्य सरकार को ही है। 6) केवल निर्धारित योग्यता वाले व्यक्तियों की ही निरीक्षक के रूप में नियक्ति की जा सकती है। GD निरीक्षक की नियुक्ति की घोषणा सरकारी गजट द्वारा होती है। (iv) निरीक्षक के कार्यक्षेत्र की सीमा निर्धारित करने का अधिकार राज्य सरकार को ही है।

2. मुख्य निरीक्षक की नियुक्तिराज्य सरकार गजट में सूचना प्रसारित करके किसी भी व्यक्ति को निरीक्षक के रूप में नियुक्त कर सकती है। मुख्य निरीक्षक अपने अधिकारी के अतिरिक्त कारखाना निरीक्षकों के अधिकारों एवं शक्तियों का भी समस्त राज्य में उपयोग कर सकता है।

3. अपर, संयुक्त एवं उपमुख्य निरीक्षकों एवं अन्य अधिकारियों की नियुक्ति-राज्य सरकार मुख्य निरीक्षक की सहायता करने के लिये सरकारी गजट में अधिसूचना जारी करके जितने वह आवश्यक एवं उचित समझे, उतने अपर मुख्य निरीक्षक, संयुक्त मुख्य निरीक्षक, उप-मुख्य निरीक्षकों एवं अन्य अधिकारियों को नियुक्ति कर सकती है तथा अधिसूचना में निर्दिष्ट करके निरीक्षण के अधिकार सौंप सकती है।

नोटनिरीक्षक की नियुक्ति सामान्यतया या तो यन्त्रकला (Engineering) या चिकित्सा (Medical) स्नातक (Graduate) में से की जाती है।

4. नियुक्ति की अयोग्यताऐसे व्यक्ति निरीक्षक अथवा मुख्य निरीक्षक नियुक्त नहीं किये जा सकेंगे जिनका

(i) किसी कारखाने में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कोई हित हो; अथवा

(ii) कारखाने की किसी प्रक्रिया या उसके किसी व्यापार में उसका हित हो; अथवा

(iii) कारखाने से सम्बन्धित किसी पेटेन्ट या यन्त्र में कोई हित हो।

यदि नियुक्ति के बाद किसी निरीक्षक का किसी कारखाने में हित उत्पन्न हो जाये तो भी उसे पद पर बने रहने का अधिकार नहीं होगा।

5. जिला मजिस्ट्रेट का निरीक्षक होनाप्रत्येक जिला मजिस्ट्रेट अपने जिले के लिये कारखाना निरीक्षक  होगा। परन्तु इस प्रकार किया गया कार्य एक प्रशासनिक स्थिति में किया गया कार्य माना जायेगा, न्यायिक स्थिति में नहीं।

6. अतिरिक्त निरीक्षक की नियुक्तिराज्य सरकार अतिरिक्त निरीक्षक (Additional Inspectors) नियुक्त कर सकती है। इनकी नियुक्ति भी राजपत्र में घोषणा करके की जायेगी। इन अतिरिक्त निरीक्षकों की स्थानीय सीमायें, जिनमें वह कार्य करेंगे, राज्य सरकार ही निश्चित करती है।

7. एक से अधिक निरीक्षक होने पर अधिकारों का विभाजन-यदि किसी क्षेत्र में एक से अधिक निरीक्षकों की नियुक्ति की गई है तो ऐसी दशा में राज्य सरकार, सरकारी गजट में सूचना प्रकाशित करके ऐसे प्रत्येक निरीक्षक के अधिकारों की घोषणा कर सकती है कि वे अपने अधिकारों का किस प्रकार प्रयोग करेंगे। इसके अतिरिक्त यह भी स्पष्ट किया जाता है कि किस निरीक्षक को निर्धारित सूचनायें भेजी जायेंगी।

8. जनसेवक (Public Servant) प्रत्येक निरीक्षक, मुख्य निरीक्षक एवं अतिरिक्त निरीक्षक भारतीय दण्ड विधान के अन्तर्गत जन-सेवक माना गया है।

निरीक्षक के अधिकार

(Powers of Inspector)

कारखाना संशोधन अधिनियम, 1987 की धारा 9 के अनुसार,प्रत्येक निरीक्षक को अपनी स्थानीय सीमा के अन्दर निम्नलिखित अधिकार प्राप्त हैं- ।

1 कारखाने में प्रवेश करने का अधिकार प्रत्येक निरीक्षक को यह अधिकार है कि जिस क्षेत्र में उसे नियुक्त किया गया है, उस क्षेत्र में वह अपने सहयोगियों के साथ या स्थानीय अधिकारी या विशेषज्ञ सहित ऐसे स्थान में कहीं प्रवेश कर सकता है, जिसे कारखाने के रूप में प्रयोग किये जाने का उसे विश्वास हो । सहायकों में राजकीय सेवक या स्थानीय सत्ता में नियुक्त व्यक्ति शामिल हो सकते हैं।

2. परीक्षण करने का अधिकार कारखाने के भवन, यन्त्र, संयन्त्र (Plant and Machinery), वस्तुयें या पदार्थ का परीक्षण कर सकता है।

3. निरीक्षण करने का अधिकार कारखाने से सम्बन्धित कोई भी रजिस्टर या अन्य कोई प्रपत्र व दस्तावेज निरीक्षण के लिये मांग सकता है। लेकिन इन्हें वह कारखाने के बाहर अथवा अपने कार्यालय में नहीं मंगा सकता।

4. बयान लेने का अधिकारघटनास्थल पर या अन्यत्र किसी व्यक्ति का बयान ले सकता है लेकिन कारखाना निरीक्षक किसी व्यक्ति को ऐसे प्रश्न का उत्तर देने या गवाही देने के लिये बाध्य नहीं कर सकता जिससे उस व्यक्ति पर स्वयं दोषारोपण (Incriminate) हो।।

5. सन्देह निवारण का अधिकारजब कारखाना निरीक्षक को यह संदेह हो कि कोई विशेष स्थान कारखाना अधिनियम के अन्तर्गत एक कारखाना है अथवा नहीं तो ऐसी स्थिति में वह अपने संदेह को दूर करने के लिये उस स्थान पर जाने का अधिकार रखता है।

6. दुर्घटना की जाँचपड़ताल करने का अधिकार-निरीक्षक किसी भी दुर्घटना या खतरनाक घटना जिससे शारीरिक चोट पहुँची हो अथवा अयोग्यता उत्पन्न हुई हो या न हुई हो, जाँच-पड़ताल कर सकता है।

7. प्रतिलिपियाँ लेने का अधिकारनिरीक्षक यदि आवश्यक समझे तो किसी रजिस्टर, अभिलेख, या अन्य दस्तावेज या उसके किसी भाग को या रिकार्ड को जब्त कर सकेगा या उसकी प्रतिलिपि ले सकता है परन्तु ऐसा करते समय निरीक्षक को यह विश्वास होना चाहिये कि इस अधिनियम के अन्तर्गत कोई अपराध किया गया है।

8. परिसर, भाग या वस्तु को यथावत रखनानिरीक्षक यदि आवश्यक समझे तो वह कारखाने के अधिष्ठाता को यह निर्देश दे सकता है कि किसी परिसर या उसके किसी भाग या उसमें पडी हई किसी वस्तु को तब तक यथावत रखा जायेगा, जब तक परीक्षण के अधीन किसी परीक्षा या जाँच-पड़ताल के उद्देश्य के लिये आवश्यक है।

9. नाप या फोटो लेनानिरीक्षक यदि आवश्यक समझे तो अपने साथ कोई आवश्यक उपकरण ले जाकर कारखाने के किसी भाग का नाप या फोटोचित्र ले सकता है।

10. वस्तु या पदार्थ की जाँच करनानिरीक्षक यदि उचित समझे और उसे यह प्रतीत होता है कि कारखाने के परिसर या भाग में कोई ऐसी वस्तु या पदार्थ इस दशा में है कि उससे श्रमिकों के स्वास्थ्य या सुरक्षा को खतरा उत्पन्न या पैदा हो सकता है या खतरा पैदा हुआ है तो उस वस्तु या पदार्थ को या उसके भाग को खण्डित करने, जाँच करने या जाँच करने का निर्देश दे सकता है या उस वस्तु को अपने कब्जे में ले सकता है एवं उसे तब तक अपने पास रख सकता है जब तक कि ऐसी परीक्षा/जाँच के लिये आवश्यक हो ।

11. अन्य अधिकारनिरीक्षक उन सभी अधिकारों का उपयोग कर सकता है जो उसे समय-समय पर स्पष्ट रूप से दिये जायें।

Approval Licensing Registration Inspection

प्रमाणित करने वाला शल्य चिकित्सक या सर्जन (धारा 10)

[Certifying Surgeons (Section 10)]

कारखाना अधिनियम की धारा 10 के अन्तर्गत प्रमाणित करने वाले शल्य चिकित्सक की नियुक्ति, योग्यताओं तथा कर्तव्यों के सम्बन्ध में प्रावधान दिये गये हैं,जो निम्नलिखित हैं

प्रमाणिक शल्य चिकित्सक का अर्थ (Meaning of Certifying Surgeons) कारखानों में काम करने । वाले श्रमिकों की बीमारी, स्वास्थ्य और निर्माण प्रक्रिया में प्रयुक्त किये जाने वाले पदार्थ आदि का परीक्षण करने तथा प्रमाण-पत्र देने के लिये जिन चिकित्सकों की नियक्ति की जाती है उन्हें ‘प्रमाणित करने वाला शल्य चिकित्सक’ कहते हैं।

प्रामाणिक शल्य चिकित्सक की नियुक्ति (Appointment of Certifying Surgeons) राज्य सरकार इस अधिनियम के उद्देश्यों के लिये किसी भी योग्यता प्राप्त चिकित्सक को प्रमाणित करने वाला शल्य चिकित्सक (Surgeon) नियुक्त कर सकती है जो किसी विशेष स्थान पर क्षेत्र में स्थित कारखानों के लिये अथवा किसी कारखाने या वर्ग या श्रेणी के कारखानों के लिये हो सकती है।

योग्यता प्राप्त चिकित्सक कौन है?-उपर्युक्त धारा में योग्यता प्राप्त चिकित्सक (Qualified Medical Practitioner) से आशय उस व्यक्ति से है जो भारतीय चिकित्सा प्रमाण-पत्र अधिनियम, 1916 (Indian Medical Degree Act, 1916) अथवा भारतीय चिकित्सा कॉउन्सिल अधिनियम, 1933 की अनुसूचियों में उल्लिखित अधिकार द्वारा स्वीकृत की गई योग्यतायें रखता हो। ।

अन्य चिकित्सक को अधिकार देनाकोई प्रमाणित करने वाला शल्य चिकित्सक राज्य सरकार की स्वीकृति से अधिनियम के अन्तर्गत अपने किन्हीं अधिकारों का प्रयोग करने के लिये ऐसी अवधि के लिये जो कि वह निर्दिष्ट करे तथा ऐसी शर्तों के अन्तर्गत जो राज्य सरकार लाग करना आवश्यक समझे किसी योग्य चिकित्सक को अधिकृत कर सकता है।

नियुक्ति सम्बन्धी अयोग्यतायें [धारा 10(3) ऐसा कोई व्यक्ति प्रमाणित करने वाला शल्य चिकित्सक नियुक्त नहीं किया जा सकता तथा न ही ऐसा कोई व्यक्ति प्रमाणित करने वाले शल्य चिकित्सक के अधिकारों का प्रयोग करने के लिये अधिकृत किया जा सकता है जो कि

(i) किसी कारखाने का अधिकारी या अधिष्ठाता है, अथवा

(ii) कारखाने के व्यवसाय में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कोई हित रखता है।

यहाँ पर यह भी उल्लेखनीय है कि यदि कोई व्यक्ति प्रमाणित करने वाले शल्य चिकित्सक के रूप में नियुक्त होने के समय अयोग्य नहीं था, परन्तु नियुक्ति के पश्चात् उपर्युक्त वर्णित अयोग्यता की स्थिति में हो जाता है तो ऐसी दशा में वह अयोग्य होने की तिथि से उक्त पद पर बना नहीं रह सकता।

अपवादराज्य सरकार चाहे तो लिखित आदेश के द्वारा कुछ शर्तों के अन्तर्गत किसी भी व्यक्ति या व्यक्तियों के वर्ग को धारा 10(3) के प्रावधानों के अनुपालन से किसी भी कारखाने या कारखानों के वर्ग को मुक्त कर सकती है अर्थात् राज्य सरकार की इच्छा पर किसी कारखाने के अधिकारी या अधिष्ठाता अथवा कारखाने में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हित रखने वाले व्यक्ति को भी प्रमाणित करने वाला शल्य चिकित्सक नियुक्त किया जा सकता है।

प्रमाणित करने वाले शल्यचिकित्सक के कर्त्तव्य [धारा 10(4)]

[Duties of Certifying Surgeons : Section 10(4)]

कारखाना अधिनियम, 1948 की धारा 10(4) के अनुसार प्रमाणित करने वाले शल्य चिकित्सक के निम्नलिखित कर्त्तव्य हैं

(1) नवयुवकों के स्वास्थ्य का परीक्षण करना व प्रमाणित करना।

(2) कारखानों में खतरनाक (Dangerous) काम या प्रक्रिया करने वाले व्यक्तियों के स्वास्थ्य का परीक्षण करना।

(3) किसी निर्माण प्रक्रिया के कारण या काम की दशाओं के कारण यदि कुछ श्रमिक बीमार हो गये हों तो उनकी जाँच करना।

(4) निर्माण प्रक्रिया के परिवर्तन के या किसी पदार्थ के अथवा नवीन निर्माण प्रक्रिया के कारण श्रमिकों का स्वास्थ्य यदि खराब हो जाने की सम्भावना हो तो उसकी जाँच करना । (5) अन्य प्रकार की आवश्यक जाँच करना।

Approval Licensing Registration Inspection

परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(EXPECTED IMPORTANT QUESTIONS FOR EXAMINATION)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

(LONG ANSWER QUESTIONS)

1 एक इंजीनियर जो एक कारखाना स्थापित करने का इच्छुक है, कारखाने की स्वीकृति, अनुज्ञापन तथा पंजीयन के सम्बन्ध में आपकी सलाह माँगता है। भारतीय कारखाना अधिनियम के अनुसार आप उसे क्या मार्ग सुझायेंगे?

An engineer intends to establish a factory and seeks your advice relating to approval, licensing, and registration of his factory. Give him guidance in accordance to the Indian Factories Act.

2. कारखाना अधिनिमय, 1948 के कारखानों की स्वीकृति, अनुज्ञापन एवं पंजीकरण सम्बन्धी विभिन्न प्रावधानों को स्पष्ट कीजिए। इन प्रावधानों के क्या उद्देश्य हैं ?

Explain clearly the various provisions of the Factory Act, 1948 regarding approval, licensing, and registration of factories. What are the objects of these provisions?

3. कारखाना अधिनियम में निरीक्षकों की नियुक्ति एवं अधिकारों के सम्बन्ध में प्रावधानों का वर्णन कीजिए। Describe the provisions of the Factory Act relating to appointment and right of inspectors.

4. कारखाना अधिनियम, 1948 के अन्तर्गत परिभोगी के सामान्य कर्त्तव्यों से सम्बन्धित प्रावधानों को समझाइए।

Point out the general provisions relating to the duties of occupier under the Factories Act, 1948.

5. परिभोगी शब्द को परिभाषित कीजिए। मुख्य निरीक्षक को भेजी जाने वाली सूचना में परिभोगी को किन-किन बातों को सम्मिलित करना चाहिए।

Define the term ‘Occupier’. What points should Occupier include in the notice to be sent to the Chief Inspector?

6. प्रमाणित करने वाले चिकित्सक कौन होते हैं ? कारखाना अधिनियम के अन्तर्गत उनकी नियुक्ति, कर्त्तव्यों एवं अधिकारों सम्बन्धी प्रावधानों को स्पष्ट कीजिए।

What are certifying surgeons ? Explain the provisions relating to their appointment, duties and rights under the Factories Act.

Approval Licensing Registration Inspection

लघु उत्तरीय प्रश्न (SHORT ANSWER QUESTIONS)

1. एक अधिष्ठाता द्वारा मुख्य निरीक्षक को सूचना देने का उद्देश्य एवं सूचना देने की विधि समझाइए।

What is the object of notice to be issued by the occupier to the Chief Inspector? Explain the procedure of giving notice to the Chief Inspector.

2. कारखाना अधिनियम के अन्तर्गत निरीक्षकों की नियुक्ति से सम्बन्धित प्रावधानों को स्पष्ट कीजिए।

Explain the provisions of Factory Act relating to appointment of Inspectors.

3. कारखाना अधिनियम, 1948 के अन्तर्गत निरीक्षकों के कर्त्तव्य बताइये।

Briefly explain the duties of Inspectors under Factories Act, 1948.

4. प्रमाणित करने वाले चिकित्सक की योग्यताएँ क्या हैं ?

What are the qualifications of certified a medical practitioner?

5. प्रमाणित करने वाले चिकित्सक कौन होते हैं?

Who are certifying surgeons?

Approval Licensing Registration Inspection

chetansati

Admin

https://gurujionlinestudy.com

Leave a Reply

Your email address will not be published.

Previous Story

BCom 2nd Year Factory Act 1948 An Introduction Study Material Notes in Hindi

Next Story

BCom 2nd year Corporate Laws Health Study Material Notes in Hindi

Latest from BCom 2nd Year Corporate Laws