BCom 3rd Year Assets Purchased Under Hire System Study material Notes in Hindi 

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Assets Purchased Under
Assets Purchased Under

BCom 3rd Year Audit Types Classification Study Material Notes in hindi

किराया-क्रय प्रसंविदा या किस्त के आधार पर खरीदी गयी सम्पत्ति

(ASSETS PURCHASED UNDER HIRE-PURCHASE SYSTEM)

ऐसी सम्पत्तियों के लिए जो किराया-क्रय या किस्त-प्रसंविदा के आधार पर प्राप्त का जा

भयक है कि वर्ष-प्रतिवर्ष जितनी किस्त या किराये की रकम चका दी गयी है. केवल उतना हिसाब-किताब की पुस्तकों में लिखी गयी है। यदि सम्पत्ति का कुल मूल्य प्रारम्भ से ही चिट्ठे में सम्पत्ति का

लिख दिया गया है तो चिट्ठ के दायित्व पक्ष में अदत्त किस्त (unpaid instalment) के दायित्व कप में लिखना चाहिए या सम्पत्ति में से घटाकर लिखना चाहिए।

सत्यापनप्रत्येक दशा में सम्पत्ति का सत्यापन करने के लिए प्रसंविदों की जांच करनी चाहिए। किस्त चकाते समय पूंजी तथा ब्याज का ठीक-ठीक विभाजन हो रहा है अथवा नहीं और ब्याज की रकम प्रतिवर्ष लाभ-हानि खाते में डेबिट कर दी जाती है या नहीं, यह भी देखना होगा। क्रय की शर्तों की जांच प्रसंविदों से हो सकती है।

मुल्यांकन इस सम्पत्ति के मूल्यांकन के लिए ध्यान रखना चाहिए कि हास की गणना शुरू से ही कुल रोकड़-मूल्य (Full cash price) पर करनी चाहिए। इस प्रकार रोकड़-मूल्य में से ह्रास घटाने से शेष रकम के आधार पर इस सम्पत्ति का मूल्यांकन किया जाता है।

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सामग्री और अवशिष्ट कल-पुर्जे

(STORES AND SPARE PARTS)

इस सम्पत्ति में वह सामग्री तथा वस्तु भी सम्मिलित है, जो बेचने के लिए नहीं होती है बल्कि माल के उत्पादन कार्य में आवश्यकतानुसार प्रयोग की जाती है। तेल, ग्रीस (grease), रंग (dyes), ईंधन (fuel), आदि सामग्री (Stores) के उदाहरण हैं। वैसे ही निर्माण किये गये माल को सुरक्षित रखने के लिए जिस सामान का प्रयोग किया जाता है वह भी सामग्री में सम्मिलित किया जाता है; जैसे—आटा मिल के आटे को सुरक्षित रखने के लिए बोरे या टिन के शेष माल को अन्तिम स्टॉक (Closing Stock) में सम्मिलित नहीं किया जा सकता है, वैसे ही शेष कल-पुर्जे (Spare Parts) प्लाण्ट तथा मशीन को ठीक हालत में रखने के काम में आते हैं। संस्था के चिट्ठे में इस सम्पत्ति को अलग से लिखना चाहिए तथा अंकेक्षक को आवश्यक खातों की जांच करनी चाहिए।

सत्यापनअंकेक्षक को सम्पत्ति का सत्यापन करने के लिए एक प्रमाणित सूची प्राप्त करनी चाहिए। इस सूची पर उचित अधिकारी के हस्ताक्षर अवश्य होने चाहिए। यदि सम्भव हो तो उसे इनकी स्वयं गणना कर लेनी चाहिए ताकि इसकी विद्यमानता का भी पता चल सके। ध्यान रहे कि जो सामग्री खर्च हो जाती है उसे उत्पादन खाते (manufacturing account) के डेबिट में लिख दिया जाता है और जो कल-पुर्जे प्रयोग में आते हैं उन्हें प्लाण्ट तथा मशीन खाते में डेबिट कर दिया जाता है।।

मूल्यांकन-चिट्टे में इनको लागत मूल्य पर दिखाना चाहिए। जिन सम्पत्ति का ह्रास नहीं होता है, उनमें ह्रास का आयोजन करना आवश्यक नहीं है। हां, कुछ पुर्जे खराब हो गये हों या टूट गये हों उन्हें अपलिखित कर देना आवश्यक है।

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फुटकर औजार

(LOOSE TOOLS)

सत्यापन सभी छोटे-छोटे औजार इस सम्पत्ति के उदाहरण हैं। इसके सत्यापन के लिए अंकेक्षक को एक प्रमाणित सूची प्राप्त करनी चाहिए।

मूल्यांकन इस सम्पत्ति के मूल्यांकन के लिए सर्वोत्तम उपाय पुनर्मूल्यन है। वास्तविक मूल्य और लागत मूल्य में जो अन्तर हो. उसे ह्रास के रूप में दिखाना चाहिए। वास्तविक मूल्य, जो अब निकाला गया है, यदि गत मूल्य से अधिक है, तो मूल्यांकन लागत मूल्य पर करना चाहिए। यदि संस्था स्वयं इन औजार

साहित्य भवन पब्लिकेशन्स बनाता है, तो इनका सत्यापन चीफ इंजीनियर से प्रमाणित लागत-विवरण (Cost Sheet) से करना चाहिए। एसा दशा में इनका मूल्यांकन कभी भी लागत मूल्य से अधिक पर नहीं करना चाहिए।

विनियोग

(INVESTMENT)

विनियोगों में राजकीय प्रतिभूतियां (Government securities), अंश (shares), ऋणपत्र (debentures), आदि सम्मिलित होते हैं। जहां बहुत से विनियोग होते हैं, वहां अंकेक्षक को सभी विनियोगों की सूची प्राप्त करनी चाहिए जिसमें प्रत्येक प्रकार की प्रतिभूति का नाम, खरीद की तारीख, अंकित मूल्य (nominal value), लागत मूल्य, चिट्टे की तारीख के दिन तक बाजार मल्य, आदि विवरण लिखे होने चाहिए। विनियोगों के खातों की सनी से जांच करनी चाहिए और यह देखना चाहिए कि प्रतिभूतियों को चिट्ठे में अलग-अलग लिखा गया है।

विनियोगों के अंकेक्षण के लिए अंकेक्षक को निम्न प्रकार जांच करनी चाहिए :

(i) यदि वर्ष के मध्य विनियोग क्रय किये गये हैं तो क्रय-अधिकार देखना चाहिए।

(ii) आबंटन-पत्रावली अथवा दलाल के क्रय-विवरण (Broker’s Bought Note) से विनियोगों के। मूल्यों की जांच करनी चाहिए।

(iii) भुगतान किये गये मूल्य के सत्यापन के लिए स्टॉक एक्सचेन्ज (Stock Exchange) की मूल्यसूची (Quotations) तथा प्राप्तकर्ता की रसीद की जांच करनी चाहिए।

(iv) यह देख लेना चाहिए कि सभी विनियोग नियोक्ता के नाम से हैं।

(v) कम्पनी को प्राप्त क्रय करने के अधिकार के लिए पार्षद सीमानियम तथा पार्षद अन्तर्नियम का निरीक्षण करना चाहिए।

सत्यापन विनियोगों का सत्यापन करने के लिए अंकेक्षक को सभी प्रतिभूतियों का स्वयं निरीक्षण करना चाहिए। जब तक वह पूर्ण जांच न कर सके, उन्हें अपने अधिकार में रखना चाहिए। उसे विनियोगों के रजिस्टर (register of investments) से प्राप्त सूची तथा प्रतिभूतियों का मिलान करना चाहिए। यदि कुछ प्रतिभूतियां कम्पनी की ओर से किसी के पास धरोहर के रूप में रखी हों तो धरोहर-पत्र की जांच करनी चाहिए और धरोहर-पत्र न लिखा गया हो तो उस संस्था से प्रमाण-पत्र प्राप्त करना चाहिए। यदि प्रतिभूतियां किसी बैंक के पास सुरक्षित रख दी गयी हैं तो बैंक से प्रमाण-पत्र प्राप्त करना चाहिए। इन सभी प्रमाण-पत्रों में यह स्पष्ट लिखा होना चाहिए कि प्रतिभूतियों पर किसी प्रकार का प्रभार (charge) तो नहीं है। सत्यापन करने के लिए प्रायः सभी अवस्थाओं में प्रमाण-पत्र स्वीकार किये जा सकते हैं परन्तु City Equitable Fire Insurance Company Ltd. (1924) के मुकदमे में दिये गये निर्णय के अनुसार अंकेक्षक का यह कर्तव्य हो जाता है कि वह सभी प्रतिभूतियों का निरीक्षण स्वयं करे, चाहे वे किसी के पास और कहीं भी रखी गयी हों। यदि प्रतिभूतियां वर्ष के बीच में खरीदी गयी हों या बेच दी गयी हों तो दलालों तथा एजेण्टों से प्राप्त क्रय-नोट (bought note), विक्रय-नोट (sold note) की जांच करनी चाहिए। साथ ही रोकड़ पुस्तक की सहायता से आवश्यक लेखों की जांच करनी चाहिए।

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जैसा कि बताया जा चुका है, विनियोगों के विषय में यह देखना अति आवश्यक है कि वे संस्था के नाम से हैं और उन पर किसी प्रकार का प्रभार (charge) नहीं है। उचित प्रमाण-पत्रों से इस तथ्य का सत्यापन किया जा सकता है।

मल्यांकन जहां तक विनियोगों के मूल्यांकन का प्रश्न है. यह स्पष्ट है कि विनियोगों में हास नहीं होता। देखना यह है कि विनियोग किस उद्देश्य के लिए किया गया है। ट्रस्ट कम्पनी (trust company) के लिए। विनियोग स्थायी सम्पत्ति होते हैं और विनियोग का उद्देश्य लाभांश तथा ब्याज कमाना होता है। ऐसी हालत में। विनियोगों का मूल्यांकन लागत मूल्य पर किया जाता है, अतएव सामयिक उतार-चढाव की ओर ध्यान नहीं। देना चाहिए। यदि दिया भी जाय तो उसके लिए अलग संचय बना लेना चाहिए। ट्रस्ट कम्पनी के अन्तर्नियम तथा स्मारक-पत्र पर इस बात का निर्णय बहुत कुछ निर्भर होगा।

यदि विनियोग अस्थायी सम्पत्ति है (जैसा कि साधारण कम्पनियों या बैंकों में), तो इनका मूल्यांकन बाजार मूल्य व लागत मूल्य में, जो भी कम हो, उस पर किया जायेगा।

सम्पत्तियों एवं दायित्वों का सत्यापन एवं मूल्यांकन यदि प्रतिभूतियां अभिगोपन-प्रसंविदा (underwriting commission) के अन्तर्गत खरीदी गयी हो तो इनका मूल्यांकन करने के लिए जमा की रकम में से अभिगोपन-कमीशन घटा देना चाहिए।ॉ

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विनियोगों पर अर्जित आय

(INTEREST ACCRUED ON INVESTMENTS)

अंकेक्षक को एक सूची प्राप्त करनी चाहिए जिसमें विनियोग पर अर्जित ब्याज का पूर्ण विवरण मिलना चाहिए। इस सूची का अकक्षक को जांच करनी चाहिए। यदि कोई ब्याज की रकम ऐसी हो जिसके मिलने में सन्देह हो तो उसके लिए आयोजन अवश्य कर लेना चाहिए। यह आवश्यक है कि ऐसा ब्याज चिट्टे में अलग से दिखाया जाना चाहिए। अंकेक्षक को इस ब्याज की गणना के आधार पर सत्यापन करना चाहिए।

व्यापारिक रहतिया

(STOCK-IN-TRADE OR INVENTORES)

अन्तिम रहतिया का सत्यापन करने में बड़ी सावधानी की आवश्यकता है। खातों में स्टॉक का ठीक लिखना अत्यन्त आवश्यक है। प्रत्येक संस्था में वर्ष के अन्तिम दिन स्टॉक लिया जाता है। यदि स्टॉक लेने की प्रणाली (Method of stock-taking) व्यवस्थित और नियन्त्रित होती है और स्टॉक के सम्बन्ध में उचित आन्तरिक निरीक्षण प्रणाली अपनायी जाती है, तो गड़बड़ी होने की सम्भावना कम रहती है।

सत्यापन-स्टॉक का सत्यापन करने के लिए निम्नलिखित बातें ध्यान में रखनी चाहिए :

(1) स्टॉक का लेखा रखने के लिए विधि तथा व्यवस्था की जांच करनी चाहिए जिससे यह पता चल सके कि माल का गबन तो नहीं हुआ है। स्टॉक की प्राप्ति तथा निर्गमन पर उचित नियन्त्रण रखा जाता है या नहीं, यह भी देखना चाहिए।

(2) स्टॉक लेने की विधि के सम्बन्ध में दिये गये आदेशों की प्रतिलिपि प्राप्त करनी चाहिए और यह देखना चाहिए कि पूरा स्टॉक लिया गया है या केवल एक भाग का स्टॉक लिया गया है।

(3) प्रारम्भिक स्टॉक सूची (Rough Stock Sheets) प्राप्त करके उसमें से कुछ मदों की जांच करनी चाहिए।

(4) स्टॉक सूची के जोड़-बाकी की भी जांच करनी चाहिए।

(5) मूल्य-सूची, बीजकों आदि की सहायता से स्टॉक के विभिन्न मदों के मूल्य की जांच करनी चाहिए।

(6) स्टॉक के मूल्यांकन के आधार की जांच करनी चाहिए और यह देखना चाहिए कि पिछले वर्षों में भी यही आधार अपनाया गया है या नहीं। चालू कार्य तथा अन्तिम स्टॉक के सत्यापन के लिए लागत लेखा की जांच करनी चाहिए।

(7) यह देखना चाहिए कि स्टॉक का मूल्यांकन लागत या बाजार मूल्य में से, जो भी कम है, के आधार पर किया गया है, और ह्रास की उचित व्यवस्था कर ली गयी है, व्यापारिक बट्टा घटा लिया गया है और मूल्य भी उचित लगाया गया है।

(8) माल-भीतरी पुस्तक (Goods Inward Register) की जांच करनी चाहिए और यह देखना चाहिए कि अन्तिम वर्ष के अन्तिम दिन या उससे पूर्व माल स्टॉक में सम्मिलित कर लिया गया है।

(9) उसी प्रकार अन्तिम दिन में या उससे पूर्व बिका हुआ माल स्टॉक में सम्मिलित नहीं किया है, यह भी देखना चाहिए।

(10) यह भी देखना चाहिए कि संस्था से जिस माल का सम्बन्ध नहीं है, उसे स्टॉक सूची में सम्मिलित नहीं किया गया है।

(11) इस वर्ष के सकल लाभ के विक्रय पर प्रतिशत की तुलना पिछले वर्षों से लेकर करनी चाहिए। अन्तर होने पर पूछताछ करनी चाहिए।

स्टॉक लेने की पद्धति एवं कुछ अन्य सावधानियों का उल्लेख निम्न दिया गया है :

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स्टॉक लेने की पद्धति (Method of Stock-taking)—एक क्लर्क गोदाम में जाता है और माल के विवरण को बोलने का काम करता है और दूसरा क्लर्क स्टॉक सूची में विवरण को दर्ज करने का काम करता का स्टॉक-सूची में सामान का विवरण और दूसरे खाते में उसकी मात्रा लिख दी जाती है। जब गोदाम का सारा सामान लिख लिया जाता है तो अन्य दो क्लर्कों द्वारा इन लेखों की स्वतन्त्र जांच की जाती है कि उनमें  काई गलती तो नहीं है। स्टॉक-सची में प्रत्येक सामान का मल्य लिखने का काम एक जिम्मेदार अधिकारी द्वारा किया जाता है।

इसके पश्चात् इसका एक क्लर्क प्रत्येक प्रकार के सामान की कीमत की गणना करता है और इस गणना आर जोड़ो की जांच एक अन्य क्लर्क द्वारा की जाती है। प्रत्येक क्लर्क और अधिकारी को, जिन्होंने स्टॉक-सूची के तैयार करने में भाग लिया. अपने हस्ताक्षर कर देने चाहिए जिससे कोई गलती होने पर उन्हें जिम्मेदार ठहराया जा सके।

इसके पश्चात् स्टॉक-सूची पर जनरल मैनेजर या साझेदार के हस्ताक्षर हो जाते हैं।

कुछ सावधानियां-(1) कुछ सामान ऐसा हो सकता है जो नियोक्ता के वास्तविक अधिकार में न हो लकिन कानूनी तौर से वह मालिक हो। उदाहरण के लिए, सामान खरीद लिया गया हो, बीजकों से पुस्तकों। में लेखे कर दिये गये हों लेकिन सामान की सपर्दगी अभी नहीं हुई हो। नियमानुसार ऐसा सामान स्टॉक में। अवश्य शामिल कर लेना चाहिए। यदि स्टॉक-सूची में इसका लेखा नहीं किया जायेगा तो चिट्ठे की तिथि को स्टॉक कम होगा और क्रय अधिक होगा, फलस्वरूप लाभ-हानि खाते में लाभ वास्तविकता से कम दिखाये जायेंगे।

(2) उसी प्रकार जो स्टॉक संस्थाओं की शाखाओं के पास है, या ऐजेण्टों के पास है या जिसे ‘स्वीकृति या वापसी’ (approve or return) आधार पर भेजा गया है और जिसके लिए स्वीकृति प्राप्त नहीं हुई है, स्टॉक सूची में अवश्य सम्मिलित करना चाहिए।

(3) जो माल प्राप्त हो गया है, लेकिन पुस्तकों में सम्बन्धित बीजकों का लेखा नहीं किया गया है तो ऐसे सामान को स्टॉक सूची में नहीं लिखना चाहिए। _

(4) जो सामान बेच दिया गया है, लेकिन चिट्ठे के दिन वह खरीदने वाले को सुपूर्द नहीं किया गया है तो उसे स्टॉक-सूची में नहीं लिखना चाहिए और वैसे ही यदि संस्था के पास एजेण्ट के नाते स्टॉक बचा हुआ है तो उसे भी स्टॉक-सूची में नहीं लिखना चाहिए।

यह भी देखा जाना चाहिए कि फर्नीचर या छोटे-छोटे औजारों का स्टॉक माल के अन्तिम स्टॉक में सम्मिलित तो नहीं कर दिया गया है।

(5) यदि ऊपर लिखी हुई सावधानियां न रखी जायें तो बहुत-सी अशुद्धियां रह सकती हैं और इसलिए स्टॉक लेने से सम्बन्धित सम्पूर्ण कार्य किसी उच्च अधिकारी की देख-रेख में करना चाहिए।

अंकेक्षक का यह आवश्यक कर्तव्य है कि उसे स्टॉक के सत्यापन के लिए संस्था में मैनेजर या मैनेजिंग डायरेक्टर से स्टॉक के विषय में नीचे लिखा हुआ प्रमाण-पत्र प्राप्त कर लेना चाहिए:

मैं प्रमाणित करता हूं कि

(1) जहां तक हमारी जानकारी है, कम्पनी की स्टॉक-सूची में लिखा हुआ विवरण, मूल्य और स्टॉक की मात्रा, जो 31 मार्च, 2014 को था, सही है।

(2) स्टॉक में सम्मिलित सभी माल संस्था की ही सम्पत्ति है।

(3) स्टॉक में न तो ऐसा खरीदा हुआ माल शामिल किया गया है जिसके बीजकों का लेखा स्टॉक लन से पहले पुस्तको में नहीं किया गया है और न ऐसा माल सम्मिलित किया गया है जो बेचा गया हो लेकिन उसकी अभी सुपुर्दगी न की गयी हो।

(4) स्टॉक का वह माल जो न बेचने योग्य है और न प्रयोग के योग्य है. या तो अपलिखित कर दिया गया है या उसकी हानि के लिए आयोजन कर दिया गया है।

(5) स्टॉक के मूल्यांकन के आधार इस वर्ष भी वही हैं जो पिछले वर्ष थे।

सम्पत्तियों एवं दायित्वों का सत्यापन एवं मूल्यांकन स्टॉक लेने की आदर्श पद्धति की विशेषताएं ।

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स्टॉक लेने के लिए प्रचलित एक उत्तम पद्धति की विशेषताएं निम्न हैं:

1 स्टॉक लेखा-वर्ष के अन्तिम दिन व्यापार की समाप्ति पर लिया जाना चाहिए।

2. सीनियर क्लर्कों के द्वारा मात्रा के बोलने माल के विवरण देने तथा प्रविष्टियां करने का कार्य किया जाना चाहिए।

3. ऐसी प्रविष्टियों की पूर्ण जांच की जानी चाहिए।

4. स्टॉक-सूची (stock sheet) में मूल्य का लेखा किसी उत्तरदायी अधिकारी के द्वारा किया जाना चाहिए।

5. गणना का कार्य तथा उसकी जांच पृथक-पृथक क्लर्कों द्वारा किया जाना चाहिए।

6. एक दूसरे क्लर्क के द्वारा जोड़ आदि लगाए जाने चाहिए और इसकी जांच स्वतन्त्र होनी चाहिए।

7. उपर्युक्त कार्य उन व्यक्तियों से प्रेरित किया जाना चाहिए जो इसे करते हैं ताकि उसके सम्बन्ध में। दायित्व का निर्धारण सुविधापूर्वक किया जा सके।

स्टॉक का मूल्यांकन : कुछ मौलिक सिद्धान्त

स्टॉक का मूल्यांकन सही होना चाहिए अन्यथा इसका प्रभाव लाभ-हानि खाते पर ठीक नहीं पड़ता। यदि वास्तविक मूल्य से अधिक मूल्य पर मूल्यांकन किया गया तो लाभों में बनावटी वृद्धि हो जायेगी जिसका दरुपयोग संस्था के जनरल मैनेजर के द्वारा अधिक कमीशन पाने के लिए किया जा सकता है। यदि वास्तविक मुल्य से कम मूल्य दिखाया गया तो इससे कम्पनी के अंश की कीमत बाजार में गिर सकती है। साथ ही अंकेक्षक को यह भी देखना चाहिए कि वर्ष-प्रतिवर्ष मुल्यांकन का एक ही सिद्धान्त अपनाया जाता है या नहीं। ऐसा न करने से व्यापार की प्रगति की तुलना भली प्रकार नहीं हो सकती।

स्टॉक एक अस्थायी सम्पत्ति है, जो पुनः बिक्री के काम आती है। अस्थायी सम्पत्तियों का मूल्यांकन बाजार-मूल्य में से, जो कम हो, उस पर किया जाता है। इस कारण चाहे मूल्य वृद्धि स्थायी हो, पर किसी भी अवस्था में लागत मूल्य से अधिक मूल्य पर स्टॉक का मूल्यांकन नहीं करना चाहिए। यदि सामान के मूल्य गिर जाते हैं तो उनके अनुसार मूल्यांकन नहीं करना चाहिए। यह इसलिए कहा जाता है चिट्ठे के दिन भविष्य में हानि की सम्भावनाओं के लिए पूर्वायोजन हो सके। स्टॉक का सही मूल्यांकन करने के लिए अंकेक्षक को लागत तथा बाजार-मूल्य के अर्थ को भली प्रकार समझ लेना चाहिए।

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लागत मूल्य (Cost Price)

यह भी आवश्यक है कि लागत मूल्य और बाजार मूल्य की उचित परिभाषा स्टॉक के मूल्यांकन से पहले कर ली जाय। इस सम्बन्ध में विद्वानों के विभिन्न मत है। लागत-मूल्य के सम्बन्ध में नीचे लिखी हुई बातें ध्यान रखनी चाहिए :

(1) वास्तविक लागत (Unit Cost) यदि कई प्रकार का सामान क्रय किया गया है और उसे अलग-अलग रखा गया है तो बीजक या कैशमीमो से शेष माल का वास्तविक मूल्य पता चल सकता है। चिट्टे की तारीख को ऐसे सामान की लागत, जो बेचा नहीं गया है और स्टॉक में है, वही होती है जिस पर वह खरीदा गया था। कठिनाई केवल यह है कि लागत का पता चल सकता है जबकि सामान अलग-अलग रखा जाय और आसानी से पहचाना जा सके।

(2) औसत लागत प्रणाली (Average Cost Method) इस प्रणाली के अनुसार सब माल को इकट्ठा करके उसका औसत मूल्य निकाला जाता है और इस औसत मूल्य पर स्टॉक का मूल्यांकन होता है।

(3) पहले आने और पहले जाने वाली विधि (First-in and First-out Method or FIFO) इस व्यवस्था के अनसार भण्डार में पहले आया हुआ माल पहले निर्गमित किया जाता है और जब तक पहला माल स्टॉक में रहता है तब तक नया माल निर्गमित नहीं होता। इस प्रकार बाद में आया हुआ माल स्टॉक में बचता है और इस बचे हुए माल के मूल्य के आधार पर मूल्यांकन किया जाता है।

(4) बाद में आने और पहले जाने वाली विधि (Last-in and First-out Method or LIFO) इस व्यवस्था के अनसार जो माल बाद में आता है वह पहल निगमित किया जाता है इसलिए अन्तिम स्टॉक में। पहले आया हुआ माल अन्त में बचता है जिसका मूल्य ही बाकी माल का लागत-मूल्य होता है।

FIFO तथा LIFO का अन्तर निम्न हैं :

FIFO LIFO
(1) इस व्यवस्था  के अन्तर्गत जो माल पहले आया है वह पहले निर्गमित होता है । (1) इस पद्दति में जो माल बाद में आता है वह पहले निगर्मित किया जाता है ।
(2) इसकें बाद में आने वाला माल अन्तिम रहतिया बनता है ।

(3 अन्तिम रहतिया का मूल्यांकन बाद में आने वाले माल का लागत के आधार पर किया जाता है

(2) इस व्यवस्था में जो माल पहले आया है वह अन्तिम रहतिया बनता है

(3) इस व्यवस्था में पहले आवे वाले माल का लागत ही अन्तिम रहतिये का मूल्य होती है

 

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(5) समायोजित विक्रय-मल्य विधि (Adjusted Selling-Price Method) इस प्रणाली के अनुसार अन्तिम स्टॉक का मूल्यांकन बाजार-मल्य में से सामान्य लाभ घटा देने के पश्चात् जो बचता है उस मूल्य पर किया जाता है।

(6) प्रमाणित लागत विधि (Standard Cost Method)—इस विधि के अनुसार एक पूर्व निर्धारित लागत। के आधार पर जिसे प्रमाणित लागत कहा जाता है स्टॉक का मूल्यांकन होता है। बाजार-मूल्य (Market Value)

प्रायः बाजार-मूल्य के दो अर्थ होते हैं : ।

(1) प्रतिस्थापन-मूल्य (Replacement Cost)—वह मूल्य जिस पर माल को चिट्ठे के दिन प्रतिस्थापित किया जा सकता है। इसके अनुसार बाजार मूल्य में सभी खर्चे जोड़ दिये जाते हैं।

(2) शुद्ध प्राप्य मूल्य (Net Realisable Value)—बाजार-मूल्य में से बिक्री के खर्च घटाने के बाद जो मूल्य बचता है, वह शुद्ध प्राप्य मूल्य होता है।

साधारणतया बिक्री मूल्य बाजार-मूल्य कहा जाता है. लेकिन मूल्यांकन से पूर्व स्टॉक रखने का उद्देश्य अवश्य मालूम करना चाहिए। कच्चे माल के सम्बन्ध में बाजार मूल्य का अर्थ प्रतिस्थापन-मूल्य होता है।

मूल्यांकन की प्रणाली स्टॉक का मूल्यांकन लागत मूल्य या बाजार-मूल्य में से जो कम हो, के आधार पर किया जाता है। मूल्यांकन के लिए इकाई विधि या सामूहिक विधि प्रयोग में आती है।

(1) इकाई विधि (Individual Method or Pick and Choose Method)—इस पद्धति के अनुसार स्टॉक की प्रत्येक वस्तु का अलग-अलग लागत-मूल्य और बाजार-मूल्य निकाला जाता है और दोनों में जो कम होता है उस पर मूल्यांकन किया जाता है। प्रत्येक वस्तु के सामने बाजार-मूल्य व लागत-मूल्य में जो कम हो वह लिख लिया जाता है और सभी माल के लिए उनके बाजार मूल्य या लागत-मूल्य का जोड़ स्टॉक का अन्तिम मूल्य मान लिया जाता है।

(2) सामूहिक विधि (Global Method) इस प्रणाली के अनुसार स्टॉक की प्रत्येक वस्तु का लागत मूल्य जोड़ दिया जाता है। ऐसे ही बाजार-मूल्य अलग से जोड़ लिया जाता है और इन दोनों जोड़े हुए मूल्यों में जो कम होता है, वह स्टॉक का अन्तिम मूल्य मान लिया जाता है। उदाहरण

इकाई विधि के अनुसार स्टॉक का मूल्यांकन 2,100 ₹ पर होगा और सामूहिक विधि के अनुसार स्टॉक का मूल्यांकन 2,250 ₹ पर होगा।

उदाहरण

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अन्तिम स्टॉक में तीन प्रकार का शेष माल हो सकता है : ।

(1) कच्चा माल (Raw Materials) कच्चा माल पनः बिक्री के लिए नहीं खरीदा जाता है लेकिन उसका प्रयोग संस्था के काम के लिए होता है। कच्चे माल का मल्यांकन लागत-मल्य पर होता है और बाजार-मूल्य का कोई ध्यान नहीं रखा जाता। लेकिन यदि चिट्टे के दिन इसका बाजार-मल्य इतना गिर गया हो कि उसका प्रभाव निर्मित माल पर पड़े, तो इनका मूल्यांकन बाजार-मूल्य या लागत-मूल्य से कुछ कम मूल्य (at undar cost) पर करना चाहिए।

(2) अर्द्ध-निर्मित माल (Semi-manufactured Goods) अर्द्ध-निर्मित माल मूल्यांकन लागत मूल्य पर करना चाहिए। यहां लागत-मूल्य का अर्थ निर्माण-मूल्य से है।

(3) निर्मित माल (Manufactured Goods)—(अ) जो माल स्टॉक में है—ऐसे माल का मूल्यांकन बाजार-मूल्य या लागत-मूल्य में से जो कम हो, उस पर करना चाहिए, परन्तु व्यवहार में ऐसा नहीं होता है। प्रायः ऐसे माल का मूल्यांकन लागत-मूल्य पर (at cost), लागत से कम मूल्य पर (at under cost), बाजार-मूल्य पर (at market price), अथवा बाजार मूल्य से कम (at below market price) के आधार पर किया जाता है। जो माल भविष्य के सौदों (forward contracts) के लिए बेच दिया गया हो, लेकिन माल सुपुर्दगी न की गयी हो तो उसका मूल्यांकन प्रसंविदा-मूल्य (at contract rate) पर करना चाहिए।

(आ) एजेण्ट के पास माल (Goods with Agents)—ऐसे माल का मूल्यांकन लागत-मूल्य में आनुपातिक खर्चे जोड़ने के पश्चात् जो मूल्य प्राप्त होता है उसमें और बाजार मूल्य में से, जो भी कम हो, उस पर किया जाता है। यदि आसानी से बाजार-मूल्य का पता न चल सके तो मूल्यांकन लागत मूल्य पर ही कर लिया जाता

(इ) खरीदो या वापस करो‘ (Approve or Return Basis) के आधार पर भेजा गया माल—ऐसे माल का मूल्यांकन किसी भी दशा में लागत-मूल्य से अधिक पर नहीं करना चाहिए।

(ई) कुछ विशेष वस्तुओं का मूल्यांकन (Valuation of Some Special Commodities)—शराब व चावल और इमारती लकड़ी कुछ ऐसी वस्तुएं हैं जिनका मूल्य उनके पुराने मूल्य के साथ-साथ बढ़ाता जाता है। इनका मूल्यांकन लागत से कुछ अधिक मूल्य (at above cost) पर करना चाहिए। इनकी लागत में इन्हें सुरक्षित रखने के खर्चे तथा लागत पर उचित दर से ब्याज की रकम भी शामिल कर ली जाती है। देखना यह है कि इनका मूल्य किसी हालत में उस मूल्य से अधिक नहीं होना चाहिए जिस मूल्य पर वह बाजार में प्राप्त हो सकती है।

(उ) बगीचों से प्राप्त वस्तुओं का मूल्यांकन (Valuation of Products of Plantations)-इन वस्तुओं (जैसे रबड चाय, गन्ना, आदि) के अन्तिम स्टाक का मूल्यांकन नये वर्ष में अनुमानित विक्रय मल्य पर किया जाता है। उस मूल्य में से माल की बिक्री के खर्चे घटा दिये जाते हैं।

चालू कार्य (Work-in-Progress)–चालू कार्य चिट्ठे में सम्पत्ति की ओर अलग से लिखा जाता है। अंकेक्षक को चालू कार्य से सम्बन्धित सभी खातों की जांच करनी चाहिए। । चाल कार्य का सत्यापन करने के लिए निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए :

(1) यदि लागत खाते (Cost Accounts) बनाये जाते हैं, तो कच्चे माल तथा मजटरी केटी निता की जान करनी चाहिए। यदि ऊपरी खर्चे (overhead expenses) भी मूल्यांकन में शामिल किये गये हैं. तो यह देखना चाहिए कि ये कहीं अधिक तो नहीं हैं।

(2) इस वर्ष के चाल कार्य की लागत तथा मूल्याकन के आधार पर पिछले वर्ष से तलना करनी चाहिए और असमानताओं की अच्छी तरह छानबीन करनी चाहिए।

(3) यदि लागत खाते नहीं रखे जाते हैं, तो चालू कार्य की प्रगति जानने के लिए विस्तत विवरण प्राप्त करना चाहिए। साथ ही कच्चे माल तथा मजदूरी के खर्चा की जांच करनी चाहिए।

(4) समय तथा कार्य की सामान्य प्रगति के अनुसार चालू कार्य की प्रगति की जांच करनी चाहिए।

(5) यह देखना चाहिए कि लेनदारों की बाकियों के लिए पर्याप्त आयोजन कर लिया गया है।

इस प्रकार जांच करने से अंकेक्षक का चाल कार्य के सम्बन्ध में विश्वास हो सकता है। यह तो ठीक । ९ क प्रमाणित स्टॉक-सूची (Certified Stock Sheets) की सहायता से उसे अपना कार्य करना होता। है। कितने वर्षों से कार्य चल रहा है, कितना कार्य प्रमाणित हो चुका है और कितना काय अप्रमाणित हा ये। सभी प्रश्न ऐसे हैं जिनकी जांच अंकेक्षक को ध्यानपूर्वक करनी चाहिए।

चालू कार्य का मूल्यांकन लागत-मूल्य पर किया जाता है। लागत-मूल्य निकालते समय मूल्यांकन के दिन जो लाभ कमा लिया गया है तथा प्राप्त कर लिया गया है. उसका एक उचित भाग भी सम्मिलित कर लिया जाता है। पर बात उन ठका (contracts) के लिए लाग होती है, जो कई वर्षों तक चलते हैं। डी पोला लागत-मला क स्थान पर प्रामाणिक-मूल्य (Standard Cost) की बात कहते हैं। कुछ अन्य विद्वानों का मत है कि इसका मूल्याकन लागत-मूल्य या प्रतिस्थापन मल्य. दोनों में से जो कम हो, पर करना चाहिए।

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स्टॉक का मूल्यांकन और अंकेक्षक का कर्तव्य अंकेक्षक को इस बात की जांच करनी चाहिए कि मूल्यांकन ठीक प्रकार से किया गया है। यह भी देख लेना चाहिए कि यह आधार आवश्यकतानुसार चिट्टे में लिख दिया। गया है। किंग्सटन कॉटन मिल्स कम्पनी (1896) के मुकदमे में यह कहा गया था कि स्टॉक का मूल्यांकन। करना अंकेक्षक का कर्तव्य नहीं है।

प्रमुखतः इस निर्णय में तीन बातें हैं :

(1) अंकेक्षक मूल्यांकन नहीं है;

(2) स्टॉक लेना उसका कार्य नहीं है: और

(3) स्टॉक के मूल्यांकन के सम्बन्ध में यदि कुछ सन्देह हो तो उसे संस्था के उत्तरदायी अधिकारी के प्रमाण-पत्र पर विश्वास कर लेना चाहिए।

इसी मुकदमे के निर्णय में यह भी कह दिया गया था कि अंकेक्षक को अपना कार्य करते समय यथोचित चतुराई, कुशलता तथा सावधानी का प्रयोग करना चाहिए। यथोचित (reasonable) सावधानी तथा दक्षता क्या होगी, यह परिस्थितियों के अनुसार अंकेक्षक स्वयं तय करता है।

यह ध्यान देने योग्य बात है कि इस मुकदमे में निर्णय प्रायः आधी शताब्दी से भी पूर्व दिया गया था। तब से अब तक काफी परिवर्तन हो गये हैं। अतः पूर्णतया इस निर्णय के अनुसार चलना अच्छा प्रतीत नहीं होता है।

एक अन्य निर्णय इसी प्रकार से कुछ वर्षों पूर्व Westminister Road Construction and Engineering Co. Ltd. (1932) के मामले में दिया गया था। यह निर्णय अधिक महत्वपूर्ण है जिसमें यह स्पष्ट कर दिया गया है कि अंकेक्षक को सभी उपलब्ध साधनों का प्रयोग कर लेना चाहिए और यद्यपि यह मूल्यांकन नहीं है, फिर भी उसे लापरवाही करने का अपराधी बनाया जा सकता है यदि मूल्यांकन के सम्बन्ध में पूर्ण सावधानी के साथ अपना कार्य करने में वह असफल रहता है। उसे सभी साधनों तथा सूचनाओं का उचित रूप से उपयोग करने के पश्चात् अपने आपको सन्तुष्ट करना चाहिए।

इस प्रकार इन निर्णयों से तीन सामान्य सिद्धान्त अंकेक्षक की जानकारी के लिए बन जाते हैं :

(1) स्टॉक का मूल्यांकन करना अंकेक्षक का कार्य नहीं है।

(2) यदि सन्देह उत्पन्न करने वाली परिस्थितियां न हों, तो स्टॉक के मूल्यांकन के सम्बन्ध में वह संस्था से प्राप्त रिपोर्ट तथा विवरणों पर विश्वास कर सकता है।

(3) अंकेक्षक को अपने कार्य में आवश्यक सावधानी तथा दक्षता का प्रयोग करना चाहिए।

उपर्युक्त विचार प्रायः सभी ने स्वीकार कर लिये हैं। यह भी सामान्यतया मान लिया गया है कि स्टॉक का स्वयं सत्यापन अंकेक्षक के कार्य का एक भाग नहीं है। फिर भी अमरीका में Mckesson and Robin  के मकदमे में निर्णय हो जाने के पश्चात् कुछ अंकेक्षक वर्ष के अन्त में स्टॉक का स्वयं सत्यापन करते हैं। काठ भी सही, व्यापारिक कार्य-पद्धति तथा अंकेक्षक की कार्य-व्यवस्था में गत कुछ वर्षों में नये परिवर्तन हुए। भजनको ध्यान में रखना एक अंकेक्षक के लिए अत्यन्त आवश्यक हो जाता है।

कम्पनी अधिनियम में किये गये परिवर्तन के कारण इस सम्बन्ध में अंकेक्षक के कर्तव्य तथा दायित्व और है। स्टॉक के सम्बन्ध में आवश्यक लेखा-पुस्तकें प्रत्येक कम्पनी को रखनी चाहिए। साथ ही कम्पनी

अधिनियम, 2013 के अनुसार अंकेक्षक को कम्पनी के चिट्टे के सम्बन्ध में यह रिपोर्ट देनी होती है कि वह उसकी सच्ची तथा उचित (True and fair) स्थिति को प्रकट करता है जिससे अंकेक्षक को सम्पत्तियों के मल्यों की जांच करनी होती है।

अतः अंकेक्षक को स्टॉक के प्रमाणित होने से ही सन्तष्ट नहीं होना चाहिए बल्कि उसे स्टॉक सूची की जांच करने में कुछ परीक्षणों (tests) का प्रयोग करना चाहिए। ये परीक्षण व्यापार के आकार, परिस्थितिया तथा लेखा करने के ढंग के अनुसार निर्धारित किये जायेंगे। यदि संस्था में एक सुव्यवस्थित लागत विधि (costing system) का प्रयोग हो रहा है तथा सामग्री व स्टॉक के खाते बनाये जाते हैं और यदि अंकेक्षक इनको व्यवस्थित पाता है, तो वह चिट्ठे की तारीख के दिन दिखायी गयी स्टॉक की मात्रा में शेषों (quantity balances) पर विश्वास कर सकता है।

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संक्षेप में, स्टॉक के सम्बन्ध में अंकेक्षक के निम्न कर्तव्य हैं :

(i) नियोक्ता के स्टॉक लेने की व्यवस्था तथा उसके दिये गये आदेशों के अनुरूप की गयी कार्यवाही की जांच करना।

(ii) किन्हीं कमजोरियों के सम्बन्ध में जानकारी करना।

(iii) सम्भव हो तो स्टॉक लेने की व्यवस्था का स्वयं निरीक्षण करना।

(iv) वास्तविक स्टॉक लेने से सम्बन्धित पत्रों व विवरणों (notes) की जांच करना।

(v) यह देखना कि cut-off सही किया गया। (स्टॉक लेने के पूर्व भीतर या बाहर की वापसी को cut-off कहते हैं।

(vi) अन्तिम स्टॉक सूची की जांच करना।

(vii) स्टॉक सूची की जांच गत वर्ष की स्टॉक सूचियों, सकल लाभ प्रतिशत, पूंजीगत स्वभाव की मदों को अलग रखने तथा नियोक्ता के यहां रखे सभी स्टॉक के सन्दर्भ में करना।

(viii) स्टॉक व चालू-कार्य के लेखे की पद्धति की जांच करना।

(ix) प्रबन्ध संचालक या प्रबन्धक से स्टॉक लेने की विधि तथा मूल्यांकन-पद्धति के विषय में प्रमाण-पत्र

लेना।

(x) यदि मूल्यांकक (valuer) के द्वारा स्टॉक लिया गया है, तो अपने आप को सन्तुष्ट करने के लिए मूल्यांकक से पत्र-व्यवहार करना।

देनदार

(DEBTORS)

कम्पनी अधिनियम के अनुसार प्रत्येक कम्पनी के लिए अपने चिट्ठे में देनदारों को स्पष्टतया अलग-अलग शीर्षकों में लिखना आवश्यक होता है।

(क) वे ऋण जो प्राप्य (good) समझे जाते हैं, जिनके लिए कम्पनी के पास पूरी जमानत है।

(ख) वे ऋण जो प्राप्य (good) समझे जाते हैं, पर जिनके लिए कम्पनी के पास देनदारों की निजी जमानत के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है।

(ग) वे ऋण जो संदिग्ध या अप्राप्य (doubtful or bad) समझे जाते हैं।

यह राय बनाने के लिए ऋण प्राप्य, संदिग्ध या अप्राप्य है, निम्न बातें ध्यान में रखनी चाहिए ।

1 ऋण की अवधि कम्पनी की ऋण की शर्तों के सन्दर्भ में ऋण की अवधि को देखना चाहिए। उधार की शर्तों के अनरूप नियमित रूप से ऋणों का भुगतान यह स्पष्ट करता है कि ऋण प्राप्य है।

2. नियमित भुगतान यदि भुगतान नियमित है तो खाते प्राप्य हैं। यदि नहीं, तो ये संदिग्ध समझे जाने चाहिए।

3. भाकित बिल बड़ी मात्रा में तिरस्कृत बिल सदैव कमजोरी की निशानी बनते हैं। उसी प्रकार वापस चैक तथा नवीनीकृत बिल यह स्पष्ट करते हैं कि ऋण संदिग्ध हैं।

4.खातों पर टिप्पणियां (Noting on the Accounts) खातों पर विभिन्न प्रकार की दी हुई टिप्पणियां यह स्पष्ट करती हैं कि खाते संदिग्ध हैं।

5. बजट किये गये व वास्तविक डबत ऋणों की तलना बहत से व्यवसायों में वास्तविक डूबत ऋणों की। बजटकिय गयडूबत ऋणा से की गयी तलना यह प्रकट करती है कि ऋण प्राप्य है. संदिग्ध है अथवा अपाहै। यह तुलना कुछ वर्षों के लिए करने के उपरान्त यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि ऋणों का कैसा स्वभाव है।

सत्यापन-अंकेक्षक को यह देखना चाहिए कि देनदार चिट्ठे में ठीक प्रकार से लिखे गये हैं। खाताबही के खातों की जांच करनी चाहिए तथा कल देनदारों की प्रमाणित सूची (Schedule of Debtors) प्राप्त करनी चाहिए। सूची तथा खातों का मिलान करना चाहिए।

देनदारों की सूची की जांच किसी उच्च अधिकारी के साथ बैठकर करनी चाहिए और यह देखना चाहिए कि संदिग्ध ऋण तथा बट्टे (discount) के लिए पूर्वोपाय कर दिया गया है। जो ऋण अप्राप्य समझकर अपलिखित कर दिये गये है, उनके लिए सही प्रमाणक प्राप्त करने चाहिए। कम्पनी के सम्बन्ध में संचालकों से अप्राप्य ऋण (bad debts) के अपलिखित करने की स्वीकृति प्राप्त करना आवश्यक है। इसके लिए संचालकों की बैठक । का कार्य विवरण देखना चाहिए। आवश्यकतानुसार कुछ देनदारों से पत्र-व्यवहार करके उनसे प्राप्त धन की। सत्यता की जांच करनी चाहिए। अंकेक्षक को डूबत ऋण से प्राप्त कोई राशि की भी जांच करनी चाहिए।

यदि कुछ नकद ऋण जमानतों के आधार पर दिये गये हैं तो उन जमानतों का निरीक्षण करना होगा। ब्याज की प्राप्ति-सम्बन्धी लेखों और खाताबही के खातों की जांच करनी चाहिए। यदि ऋण संस्था के अधिकारियों को दिये गये हैं तो यह देखना चाहिए कि वह किन नियमों के अनुसार दिये गये हैं।

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प्राप्य बिल

(BILLS RECEIVABLE)

बिलों के सत्यापन के लिए चिट्ठे के दिन मौजूद बिलों की एक प्रमाणित सूची प्राप्त करनी चाहिए। इस सूची की रकमों के जोड़ का मिलान सामान्य खाताबही (General Ledger) के खातों से करना चाहिए। फिर प्रत्येक बिल की जांच करनी चाहिए कि बिल ठीक ढंग से लिखा गया है तथा उस पर स्वीकार करने वाले के हस्ताक्षर हो गये हैं और उचित टिकट लगा हुआ है। उनकी भुगतान-तिथि अभी नहीं बीती है।

यदि चिट्ठे के दिन के बाद अंकेक्षण किया जाता है तो चिट्ठे की तारीख तथा अंकेक्षण की तारीख के बीच के समय में दिये गये बिल सम्बन्धी लेन-देनों की जांच करनी चाहिए।

(1) इस बीच में जिन बिलों का भुगतान प्राप्त हो गया हो, उनके सम्बन्ध में प्राप्त रकम की जांच रोकड़-बही से करनी चाहिए।

(2) जो बिल भुनाये गये हों, उनकी प्राप्ति की जांच रोकड़-बही और पासबुक के लेखों से की जा सकती है। भुनाये हुए बिलों के लिए सम्भाव्य दायित्व (Contingent Liability) का पूर्वोपाय अवश्य कर लेना । चाहिए।

(3) यदि कुछ बिल बैंक या अन्य किसी संस्था के पास भगतान प्राप्त करने के लिए दे दिये गये हो, तो। उनसे प्रमाण-पत्र प्राप्त करना चाहिए। इस प्रमाण-पत्र में प्रभार आदि के सम्बन्ध में पूर्ण विवरण होना चाहिए।

(4) यदि किसी बिल की भुगतान तिथि से पहले भुगतान मिल गया हो, उस रकम का सत्यापन रोकड़-बही के लेखों से करना चाहिए।

अंकेक्षक को अप्रतिष्ठित (dishonoured) बिलों के सम्बन्ध में भी जानकारी प्राप्त करनी चाहिए। याद। बिल की अप्रतिष्ठा से कोई हानि उठानी पड़ती है तो यह देखना चाहिए कि इस हानि के लिए आयोजन कर। लिया गया है, या नहीं।

पेशगी-भुगतान (Payments in Advance) कर, किराया अथवा बीमा के लिए पेशगी भगतान कर। दिया जाता है। ऐसी रकमों के सत्यापन के लिए सूची प्राप्त करनी चाहिए, जिसमें सभी विवरण लिखे होना चाहिए ।यह देखना है कि रकम वास्तव में नये वर्ष के लिए दी गयी है। सूची का मिलान खाताबही सी सम्बन्धित खातों से करना चाहिए।

कम्पनी विधान के अनुसार पेशगी भुगतान चिट्टे में अलग से दिखाये जाते हैं।

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नकद

(CASH IN HAND)

सत्यापननकद रोकड़ का सत्यापन करने के लिए अंकेक्षक तीन प्रकार के कार्य कर सकता है :

(1) अंकेक्षक को चिट्ठे के दिन स्वयं उपस्थित होकर स्वयं निरीक्षण करके रोकड़ का सत्यापन करना चाहिए। उसे स्वयं रोकड़ को गिनकर रोकड़-बही की बाकी से मिलान करना चाहिए। यह हो सकता है कि गिनने का कार्य चिट्टे की तारीख के कुछ पूर्व या बाद में हो। इसके लिए अंकेक्षक को कुछ गणितीय समाधान Karithmetic reconciliation) करना होगा। ध्यान रहे कि रोकड की सभी बाकियों को एक साथ अपने अधिकार में कर लेना चाहिए और साथ ही रोकड़ सम्बन्धी सभी पुस्तकों पर भी अधिकार कर लेना चाहिए। रोकड़ गिनते समय कुछ I. O. U. (I Owe You) भी मिल सकते हैं। उनकी शुद्धता का पता लगाना चाहिए।

रोकड़ गिनने के समय निम्न सावधानियों का प्रयोग किया जाना आवश्यक है :

(i) रोकड़ का गिनना रोकड़िये की उपस्थिति में किया जाना चाहिए ताकि रोकड़ की कमी होने पर

अंकेक्षक पर कोई दोष न लगाया जा सके।

(ii) गिनने के पश्चात् रोकड़िये से रोकड़-प्राप्ति के लिए रसीद ले लेनी चाहिए।

(iii) यदि रोकड़ के सम्बन्ध में आन्तरिक निरीक्षण की व्यवस्था कमजोर है, तो रोकड़ को दुबारा गिनने की आवश्यकता हो सकती है।

(iv) असाधारण मदें जैसे I. O. U’s आदि की विशेष जांच की जानी चाहिए।

(2) अंकेक्षक का स्वयं जाना सम्भव न हो सके तो चिट्ठे की तारीख के पश्चात् किसी दूसरे दिन उसे उपस्थित हो जाना चाहिए। अपनी उपस्थिति के दिन उसे रोकड़ गिननी चाहिए और चिट्ठे के दिन से लेकर अब तक जो रोकड़ के लेन-देन हुए हों उनकी जांच करनी चाहिए।

(3) एक दूसरा रास्ता यह होता है कि अंकेक्षक अपने नियोक्ता को सारी रोकड़ बैंक में जमा करने का आदेश दे। ऐसा करने से वर्ष के अन्तिम दिन सारी रोकड़ की गिनती भी हो जायेगी और अंकेक्षक को भी सुविधा होगी। कठिनाई यह है कि I. O. U. बैंक में जमा नहीं हो सकते हैं। इसके लिए अंकेक्षक को वर्ष के अन्तिम दिनों में बिना सूचना के उपस्थित होकर रोकड़ का सत्यापन कर लेना चाहिए।

बैंक में रोकड़ (Cash at Bank) सबसे पहले अंकेक्षक को रोकड़-बही के बैंक सम्बन्धी लेखों का पास-बुक के लेखों से मिलान करना चाहिए। यदि दोनों ही बाकियों में अन्तर हो तो बैंक समाधान-विवरण (Bank Reconciliation Statement) तैयार करना चाहिए।

यह सम्भव है कि अंकेक्षक के सामने झूठी पास-बुक प्रस्तुत की जाय और इसका अंकेक्षक को कोई पता न चल सके। ऐसी दशा में अंकेक्षक को बैंक से एक अलग प्रमाण-पत्र प्राप्त करना चाहिए। प्रमाण-पत्र सीधा अंकेक्षक के पास आना चाहिए। यदि कठिनाई न हो तो स्वयं बैंक में जाकर खातों की जांच की जा सकती है।

मुद्दती जमा खाता (Fixed Deposit Account), चालू खाता (Current Account) और बचत खाता (Savings Bank Account) आदि सभी खातों के लिए बैंक से अलग-अलग प्रमाण-पत्र प्राप्त करने चाहिए।

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कम्पनी अधिनियम व मूल्यांकन

(COMPANIES ACT AND VALUATION)

जैसा कि पहले दिया जा चका है, विभिन्न प्रकार की सम्पत्तियों का मूल्यांकन सही व उचित होना। चाहिए। अंकेक्षक न तो सम्पत्तियों के अधिक मूल्य पर किये गये मूल्यांकन को न्यायसंगत मान सकता है। आर न सही मूल्य से कम मूल्य पर किये गये मूल्यांकन को स्वीकार कर सकता है। कम्पनी के वित्तीय विवरण (Financial statement) सम्पत्तियों के सही मूल्यांकन करने पर ही कम्पनी की सही व उचित स्थिति को। प्रकट कर सकते हैं।

इन वित्तीय विवरणों के विश्वस्त व सही बनाने में कम्पनी अधिनियम, 2013 के द्वारा निर्धारित पटल प्रक्रिया का प्रयोग किया जाना चाहिए। खातों तथा अंकेक्षण के सम्बन्ध में किये गये कम्पनी अधिनियम

के प्रावधान यह स्पष्ट करते हैं कि सम्पत्तियों तथा दायित्वों का उचित रूप से वर्गीकरण व समूहीकरण। (grouping) किया जाये और उनकी राशियां चिट्टे में शद्ध रूप से प्रदर्शित की जायें।

वर्तमान प्रावधानों के अन्तर्गत कम्पनी अधिनियम ने निम्न व्यवस्था की है :

(1) स्थायी सम्पत्तियां लागत में से हास घटा कर (cost – depreciation) लिखी जानी चाहिए।

(2) सम्पत्तियों के पुनर्मूल्यन की स्थिति में बढी या घटी राशि को पाँच वर्ष की अवधि तक दिखलाया जाना चाहिए।

(3) स्थायी सम्पत्ति के रूप में प्रदर्शित व्यापारिक विनियोग (trade investments) लागत मूल्य पर लिख जाने चाहिए और उनके मल्यों के उतार-चढ़ाव पर ध्यान नहीं दिया जाना चाहिए। परन्तु मूल्यों की अत्यधिक कमी (diminution) को स्पष्ट लिखा जाना चाहिए। यह आवश्यक है अन्यथा चिट्ठा सही व उचित स्थिति को प्रकट नहीं करेगा।

 (4) (current) सम्पत्तियां प्राप्य मूल्य से अधिक पर नहीं दिखलायी जानी चाहिए तथा बनावटी। (fictitious) सम्पत्तियों को अलग-से लिखा जाना चाहिए।

(5) सामग्री (stores) व अवशिष्ट कल-पुर्जी (spare parts), स्टॉक तथा चालू कार्य (work-in-progress) के अन्तिम रहतिये (closing stock) अलग से वर्गीकृत किये जाने चाहिए तथा इनकी मूल्यांकन-विधि का। विवरण भी दिया जाना चाहिए।

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दायित्वों का सत्यापन

(VERIFICATION OF LIABILITIES)

दायित्वों का सत्यापन उतना ही महत्वपूर्ण है जितना सम्पत्तियों का। यदि दायित्व चिट्ठे में ठीक प्रकार नहीं दिखाये गये हैं और कम या अधिक लिखे गये हैं तो संस्था का चिट्ठा उसकी सही स्थिति को प्रकट नहीं। कर सकता है। यह देखना चाहिए कि दायित्व सत्य तथा अधिकृत हैं। इस प्रकार दायित्वों के सम्बन्ध में यह जांच कर लेना आवश्यक है कि ..

(1) सभी दायित्व स्पष्ट रूप से चिट्ठे के दायित्व पक्ष में दिखाये गये हैं।

(2) ये सभी दायित्व संस्था से सम्बन्धित है;

(3) ये सभी सत्य तथा अधिकृत हैं; और

(4) सही रूप से दिखाये गये हैं अर्थात् जितने चिट्ठे की तारीख को वास्तव में दायित्व हैं उतने ही दिखाये गये हैं, कम या अधिक नहीं। उनकी अंकीय शुद्धता का सत्यापन करना चाहिए। यहाँ यह ध्यान रखना है कि दायित्वों का मूल्यांकन सम्पत्तियों की भांति नहीं होता। उनकी वास्तविकता का विशेष महत्व है।

उदाहरणस्वरूप, यदि किन्हीं व्ययों के लिए दायित्व या तो पूर्णतया लिखे ही नहीं गये हैं या कम लिखे गये हैं, तो इसका आशय यह है कि व्ययों की ठीक राशि लाभों में से नहीं घटायी गयी है। फलस्वरूप वर्ष के लाभ इन दायित्वों की रकम के न दिखाने से बढ़ाकर दिखाये गये हैं। उसी प्रकार इन दायित्वों के चिट्ठ में न दिखाने के कारण चिट्ठा भी गलत होगा। इसके विपरीत. यदि व्ययों के लिए झूठे दायित्व दिखाये गया हैं तो लाभ-हानि खाते में लाभ कम दिखाये जायेंगे। इस प्रकार लाभ कम हो जायेगा और चिट्ठा भी सहा। स्थिति प्रकट नहीं करेगा। गलत दायित्व को चिट्ठे में लिखने के परिणामस्वरूप गुप्त संचय (Secret reserve) बन जायेगा।

अंकेक्षक को दायित्वों का सही सत्यापन करना चाहिए कि वे ठीक हैं। उसे संस्था के उत्तरदायी अधिकारिया। से प्रमाण-पत्र प्राप्त करना चाहिए कि सम्पूर्ण दायित्व चाहे वे क्रय के लिए हों. अथवा व्ययों के लिए, पुस्तका। में लिख दिये गये हैं और सभी संदिग्ध दायित्वों के लिए या तो आयोजन कर लिया गया है, या वे चिट्ठ म। नोट (footnote) के रूप में दिखा दिये गये हैं।

The Westminister Road Construction and Engineering Co. Ltd. (1932) के मुकदमा में यह निर्णय दिया गया था कि अंकेक्षक को दायित्वों के सत्यापन करने में यथोचित सावधानी बरतनी चाहिए।

कि  सभी व्यय तथा दायित्व जो किसी कम्पनी के द्वारा वर्ष के बीच में किये गये हैं हिसाब में लिख दिये गया

साधारणतया अंकेक्षक को दायित्वों के सत्यापन करने के लिए निम्न कार्य करने चाहिए ।

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लेनदारों के लिए दायित्व

(LIABILITIES FOR TRADE CREDITORS)

(1) क्रय तथा क्रय वापसी-पुस्तकों का प्रमाणन इन पस्तकों का प्रमाणन करने के लिए क्रय-बीजक, र नोट, आदि से सहायता लेनी चाहिए तथा इन पस्तकों से खाताबाही में की गयी खतौनी की जांच करनी चाहिए।

(2) सूचियों का खातों से मिलान अधिकारियों से प्राप्त लेनदारों की सचियों का उनके खातों के शेषों से एवं उनसे प्राप्त विवरण-पत्रों से मिलान करना चाहिए।

(3) माल भीतरी पुस्तकों की जांचजो माल वर्ष भर क्रय किया गया है वह क्रय पुस्तक में लिखा गया है या नहीं, इसके लिए माल भीतरी पुस्तक (Goods Inward Book) की जांच करनी चाहिए।

(4) चिट्ठे की तारीख को अदत्त देय बिलों (Outstanding Bills Payable) की सूची को देय विपत्र पस्तक (Bills Payable Book) के लेखों से जांचना चाहिए।

(5) वर्ष के अन्त में कुछ सप्ताहों के क्रय बीजकों की जांच भली प्रकार करनी चाहिए।

(6) बाहर को माल की वापसी (Goods Outward) की भी जांच करनी चाहिए तथा यह देखना चाहिए कि वे अत्यधिक नहीं हैं एवं सभी के लिए जमा-पत्र (credit notes) संस्था के पास मौजूद हैं। इसके लिए

लेनदारों से प्राप्त खाता-विवरणों (Creditor’s Statements) भी देखने चाहिए।

(7) दायित्वों की सत्यता क्रय की सत्यता पर निर्धारित होती है। क्रय की सत्यता के लिए इस वर्ष के सकल लाभ (Gross profit) के प्रतिशत को पिछले वर्ष के सकल लाभ के प्रतिशत से मिलाना चाहिए।

मूल्यांकन लेनदारों के मूल्यांकन के लिए अंकेक्षक को यह देखना चाहिए कि वे सही रूप में वित्तीय विवरणों में प्रकट किए गए हैं व वैधानिक नियमों का पालन किया गया है।

ऋणों के सम्बन्ध में दायित्व

(LIABILITIES IN RESPECT OF LOANS)

(1) यह देखना चाहिए कि कोई रकम उधार ली गयी है या नहीं। यदि ली गयी है, तो पत्र-व्यवहार करके इसका प्रमाणन करना चाहिए तथा सीमित दायित्व वाली कम्पनी के सम्बन्ध में संचालकों को कार्यवाही-पुस्तिका (Minute Book) की जांच करनी चाहिए।

आवश्यकतानुसार पार्षद अन्तर्नियम तथा पार्षद सीमानियम में ऋण लेने के अधिकार को देखना चाहिए।

(2) ऋण-प्रसंविदों की प्रतिलिपियों (Copies of loan agreements) की जांच करनी चाहिए। साधारणतया संस्थाओं के पास प्रसंविदे मिल जाते हैं।

(3) यह भी देखना चाहिए कि चिट्टे के तैयार करने की तारीख के दिन सम्पूर्ण ऋण का ब्याज या तो चुका दिया गया है या लिख दिया गया है।

(4) सीमित दायित्व वाली कम्पनी के सम्बन्ध में बन्धक रजिस्टर (Register of Mortgage deeds) की जांच करनी चाहिए। अंकेक्षक को बन्धक प्रलेखों की प्रतिलिपियों (copies of mortgage deed) की जाँच करनी चाहिए जिनमें बन्धक पर रखी गयी सम्पत्तियां, ऋण की राशि, ब्याज दर व भुगतान की व्यवस्था, आदि। का विशेष अध्ययन करना चाहिए।

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व्ययों के लिए दायित्व

(LIABILITIES FOR EXPENSES)

(1) चिट्टे की राशि को सभी अदत्त व्ययों के लिए आयोजन करना होता है। अंकेक्षक को यह देखना चाहिए कि यह व्यवस्था कर ली गयी है और उन रसीदों, प्रपत्रों, आदि से इन पत्रों की जांच करनी चाहिए।

(2) आगामी समय के कुछ सप्ताहों की रोकड़ बही (Cash Book) के लेखे, विक्रय और मांग नोट की जाच करनी चाहिए और यह मालूम करना चाहिए कि उनमें कोई उस समय से सम्बन्धित तो नहीं है।

(3) इस वर्ष के अदत्त व्ययों की तुलना गत वर्षों के अदत्त व्ययों से करनी चाहिए। इन दोनों में विशेष अन्तर होने पर उसकी छानबीन करनी चाहिए।

(4) प्रत्येक प्रकार के दायित्वों के लिए एक उत्तरदायी अधिकारी से प्रमाण-पत्र प्राप्त करना चाहिए।

पूंजी

(CAPITAL)

यद्यपि पूंजी कम्पनी का दायित्व नहीं है फिर भी अंकेक्षक को इसका सत्यापन इसलिए करना चाहिए कि वह चिट्ठ की शुद्धता के सम्बन्ध में अपना प्रमाण-पत्र दे सके। अंश-पूंजी के सत्यापन के सम्बन्ध में उसके निम्नलिखित कर्तव्य हैं :

(अ) यदि कम्पनी का यह प्रथम वर्ष है :

(1) अंकेक्षक को पार्षद सीमानियम (Memorandum of Association) एवं पार्षद अन्तर्नियम (Articles of Association) को देखना चाहिए।

(2) अंशों की संख्या, उनके वर्ग. याचनाओं के लिए अंशधारियों से प्राप्त राशि तथा नयी मांगों, आदि क लिए उसे रोकड़-पुस्तक. पास-बक और संचालकों की कार्यवाही-पुस्तक की जांच करनी चाहिए।

(3) यदि कुछ अंश विक्रेताओं (vendors) को दिये गये हैं, तो विक्रेताओं के साथ किये गये अनबन्धों (contracts) की जांच करनी चाहिए।

(ब) यदि कम्पनी का प्रथम वर्ष नहीं है, तो

(4) अंश-पूंजी की राशि वही होगी जो पिछले वर्ष थी जब तक कि इस वर्ष में पूंजी में परिवर्तन या वृद्धि नहीं की गयी हो। वृद्धि के लिए कम्पनी अधिनियम, 2013 की उपयुक्त धाराओं को देखना होगा (धारा 62-63)

(5) उसी प्रकार पूंजी की कमी के लिए भी कम्पनी अधिनियम, 2013 की व्यवस्था की जांच करनी होगी (धारा 68)

(विशेष वर्णन के लिए ‘हास और संचय’ वाला अध्याय देखिए।)

(स) साझेदारी संस्था में पूंजी का सत्यापन करने के लिए :

(6) साझेदारी-संलेख को देखना चाहिए, तथा

(7) फर्म की रोकड़-पुस्तक और पास-बुक की जांच करनी चाहिए।

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संचय तथा कोष

(RESERVE AND FUNDS)

संचय तथा कोष क्या है, इनके कितने प्रकार होते हैं तथा इसके सम्बन्ध में अंकेक्षक का क्या कर्तव्य है? इत्यादि बातों की विशेष जानकारी करने के लिए ‘हास और संचय’ वाले अध्याय का अध्ययन कीजिए।

हास और संचय के सत्यापन करने के लिए Profit and Loss Appropriation Account की जांच। करनी चाहिए। इन संचयों को बनाने की सीमा क्या होगी एवं ये किस प्रकार बनाये जायेंगे यह सब संचयों की परिस्थितियों, उसके संविधान एवं संचालकों पर निर्भर होगा। इतना अवश्य ध्यान रखना होगा कि संचय की रकम शुद्ध लाभ और बचत में से अलग की गयी होनी चाहिए। किसी भी अवस्था में यह राशि संचालकों के निर्णयों के विपरीत निर्धारित की हुई नहीं होनी चाहिए।

सामान्य संचयों (General Reserves) का सत्यापन करने के लिए अंकेक्षक को अंशधारियों और संचालकों की कार्यवाही-विवरण-पुस्तक (Minute Book) का अध्ययन करना चाहिए कि कितनी राशि । सामान्य संचय से अन्य कार्यों के लिए या अन्य स्थानों से सामान्य संचय में हस्तान्तरित की गयी है। कम्पना। के अन्तर्नियमों को देखकर यह पता लगाना चाहिए कि सामान्य संचय का उपयोग अधिकृत कार्य के लिए। ही किया गया है। यदि अन्तर्नियमों में लाभ का कुछ प्रतिशत सामान्य संचय में प्रतिवर्ष हस्तान्तरण करने का व्यवस्था है, तो यह किया जाना चाहिए। जो राशि संचयों से हस्तान्तरित की गयी है, उसे लाभ-हानि खात मा पृथक् से दिखाया जाना चाहिए।

लेनदार

(CREDITORS)

अंकेक्षक को लेनदारों की एक सूची (Schedule) प्राप्त करनी चाहिए और इस सूची की सहायता से क्रय खातावही (Purchases Ledger) की जांच करनी चाहिए। आवश्यक हो तो क्रय-खाताबही की जांत प्रारम्भिक लेखो का पुस्तकों से करनी चाहिए और बीजक, क्रेडिट, माल-भीतरी-पस्तक (Goods Outward Books)माल बाहरी-पुस्तक (Goods Outward Book), देय-बिल-बही तथा रोकड-बही की जांच करना चाहिए।

अंकेक्षक को यह देखना होगा कि वर्ष में खरीदा हआ माल पुस्तकों में लिख दिया गया है। आवश्यक समझा जाय तो लेनदारों से खाता-विवरण (Statement of Accounts) भी प्राप्त कर लेने चाहिए। प्रत्येक लेनदार का खाता-विवरण देखना चाहिए और प्राप्त सूची से उसका मिलान करना चाहिए।

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ऋणपत्र

(DEBENTURES)

ऋणपत्रों के सत्यापन के लिए अंकेक्षक को निम्नलिखित बातें देखनी चाहिए :

(1) पार्षद सीमानियम तथा अन्तर्नियम का अध्ययन करके कम्पनी के ऋण लेने की सीमा की जानकारी करनी चाहिए। ऋणपत्रों का निर्गमन इस सीमा के अन्दर होना चाहिए।

(2) ऋणपत्र प्रलेख (Debenture Trust Deed) की प्रतिलिपि की जांच करनी चाहिए। इससे ऋणपत्र खाते का मिलान करना चाहिए।

(3) यदि आवश्यक हो, तो अंकेक्षक ऋणपत्रधारियों से प्रमाण-पत्र प्राप्त करके इसका सत्यापन कर सकता

(4) साथ ही ऋणपत्रों के भुगतान की व्यवस्था की भी जानकारी करनी चाहिए। यदि भुगतान के लिए कोई कोष बनाया गया हो, तो अन्तर्नियमों की उपयुक्त धाराओं का अध्ययन करना चाहिए।

(5) कभी-कभी ऋणपत्रों का निर्गमन प्रीमियम या कटौती (discount) पर प्राप्त किया जाता है। देखना यह है कि इस प्रीमियम एवं कटौती को पुस्तकों में किस प्रकार दिखाया गया है।

(6) प्रभार-रजिस्टर देखकर ऋण की जमानत का अध्ययन करना चाहिए।

(7) कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 71 के प्रावधानों को ध्यान में रखना चाहिए। (विशेष अध्ययन के लिए ‘कम्पनी अंकेक्षण’ शीर्षक अध्याय देखिए।)

देय-बिल

(BILLS-PAYABLE)

अंकेक्षक को सभी स्वीकृत देय-बिलों (जिनका भुगतान चिट्ठे की तारीख तक नहीं हुआ है) की एक सूची प्राप्त करनी चाहिए और सूची की रकमों के योगों का मिलान देय-बिल-बही (Bills Payable Book) तथा देय-बिल-खाते (Bills Payable Account) से करना चाहिए। बिलों के लिखने वालों (Drawers of Bills) से इस सम्बन्ध में पत्र-व्यवहार (Letters of Confirmation) करना चाहिए और उनकी सहायता से अदत्त बिलों की राशि की जांच करनी चाहिए। यदि बिलों के भुगतान के लिए संस्था की सम्पत्तियों पर कोई प्रभार (Charge) रखा गया है तो इसकी भी जांच करनी चाहिए कि यह चिट्ठे में स्पष्ट लिख दिया गया है। जिन देय-बिलों का भुगतान कर दिया गया हो उनकी रकम की जांच रोकड़-बही के लेखों से करनी चाहिए। चिट्टे के दिन देय-बिलों की जांच के लिए अगले वर्ष की रोकड़-बही देखनी चाहिए कि कहीं चिट्ठे की तारीख तथा अंकेक्षण के बीच के समय में कछ बिलों का भुगतान तो नहीं कर दिया गया है।

पेशगी की प्राप्ति

(AMOUNT RECEIVED IN ADVANCE)

कभी-कभी व्यापारी किसी कार्य के लिए पेशगी रकम प्राप्त कर लेता है और यह कार्य वर्ष के अन्त तक पूर्ण नहीं हो पाता है। इसी कारण यह पेशगी प्राप्त किया हुआ धन चिट्ठे के दायित्व पक्ष की ओर दिखा दिया जाता है।

ऐसी रकम के सत्यापन के लिए अधिकारियों से अधिकृत प्रमाण-पत्र या सूची प्राप्त करनी चाहिए। देखना यह है कि कहीं पेशगी-प्राप्ति की रकम चिट्ठे में लिखने से छूट तो नहीं गयी है।

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आहरित अंश

(FORFEITED SHARES)

इसका उल्लेख ‘कम्पनी अंकेक्षण’ शीर्षक अध्याय में किया गया है। यहां इतना कहना पर्याप्त होगा कि अंकेक्षक को आहरित अंशों की राशि का सत्यापन करने के लिए कम्पनी के अन्तर्नियमों, संचालकों की बैठकों। का कार्यवाही-पस्तिका तथा इस सम्बन्ध में किय गये लेखों की जांच करनी चाहिए।

कर्मचारियों की जमा राशि

(EMPLOYEES’ DEPOSITS)

प्राय: देखा जाता जाता है कि व्यावहारिक एवं औद्योगिक संस्थाओं में कर्मचारियों का जमानत क रूप में पाश जमा कर ली जाती है ताकि हानि या गबन होने की स्थिति में उनको इसके लिए जिम्मेदार ठहरा जा सका कमा-कभी यह राशि रोकड में प्राप्त होती है तथा कभी-कभी रोकड के स्थान पर प्रन्यासा प्रतिभाला (trustee securities) के रूप में नियोक्ता (emplover) के पक्ष में बेचान कर दा जाता है। इस सम्बन्ध यह ध्यान देना आवश्यक है कि:

(1) जमानत की रकम चाहे नकद प्राप्त हुई हो या प्रतिभूतियों के रूप में, कभी भी व्यापार की साधारण रकमों की भांति नहीं समझना चाहिए। इस राशि को अलग से बैंक में जमा करना चाहिए।

(2) कर्मचारियों की जमा-राशि को चिट्टे में दायित्व पक्ष की ओर विशेष शीर्षक के अन्तर्गत दिखाना चाहिए।

(3) अधिकारियों से प्राप्त अधिकृत प्रमाण-पत्र के आधार पर इस राशि का सत्यापन करना चाहिए।

अशोध्य एवं सन्देहात्मक ऋणों के लिए संचय

(RESERVE FOR BAD AND DOUBTFUL DEBTS)

इसका सत्यापन करने के लिए निम्नलिखित कार्यवाही करनी चाहिए :

(1) संचय की राशि के सम्बन्ध में उत्तरदायी अधिकारी का प्रमाण-पत्र प्राप्त करके इसकी जांच करनी। चाहिए।

(2) देनदारों की सूची से ग्राहकों के खातों की बाकियों का मिलान करना चाहिए ताकि यह जानकारी की जा सके कि कितने ऋण सन्देहात्मक तथा अशोध्य हैं।

(3) विशेष बात संचय की अपर्याप्तता की जांच करना है। संस्था की परिस्थितियां क्या हैं तथा इस संचय को बनाने के सम्बन्ध में किन-किन नियमों एवं उपनियमों का उल्लेख अन्तर्नियमों में किया गया है, यह सब देखना होगा। जानना यह है कि संचय पर्याप्त हैं या नहीं।

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कर के लिए दायित्व

(TAXATION LIABILITY)

आजकल करों का प्रश्न बड़ा जटिल है और इसी कारण संस्था का इनके लिए विशेष दायित्व है। कोई भी संस्था इसका महत्व कम नहीं समझ सकती। अतः यह अत्यन्त आवश्यक हो गया है कि इनके लिए खातों में पूर्ण व्यवस्था कर दी जाय। अंकेक्षक को यह देखना चाहिए कि चिट्ठे की तारीख तक करों के निर्धारण (assessment) की स्थिति कैसी है। इसकी जांच करनी चाहिए तथा उसे इस सम्बन्ध में सन्तुष्ट होना चाहिए । कि करों के सम्बन्ध में सम्भावित दायित्व के लिए पर्याप्त व्यवस्था कर ली गयी है। साधारणतया लेखापालों (accountants) को. जो खातों का अंकेक्षण करते हैं, करों के सम्बन्ध में सलाहकार (tax consultant) नियुक्त कर लिया जाता है। यदि ऐसा है तो करों के लिए दायित्व के निर्धारण (assessment) में अधिक कठिनाई नहीं होती है।

कम्पनी के वार्षिक लाभों पर आय-कर या अन्य करों के सम्बन्ध में अनुमानित दायित्व लाभ-हानि खाते। में समायोजित किया जाना चाहिए। यह करते हुए अंकेक्षक का यह सत्यापन करना कर्तव्य हो जाता है कि करों की निकली हुई राशि, यदि यह आवश्यक राशि से कम या अधिक है. पिछले वर्ष में समायोजित राशि। में जोड़ दी गयी है या घटा दी गयी है। पिछले वर्ष में समायोजन नगण्य है, तो इन्हें अलग से दिखाना चाहिए। अन्य करों को आय कर के आयोजन से अलग दिखाना चाहिए।

ऋण तथा अग्रिम

(LOANS AND ADVANCES)

प्रत्येक व्यापारिक संस्था को ऋणों की आवश्यकता होती है। ऐसे ऋण थोड़ी या बड़ी अवधि के लिए हो। सकते हैं। इन ऋणों के निम्न प्रकार हैं :

(अ) बिना जमानत वाले ऋण (Unsecured Loans and Advances) इस सम्बन्ध में अकक्षक निम्नलिखित कर्तव्य हो जाता है :

(1) बिना जमानत बिना जमानत वाले ऋणों का सत्यापन करने के लिए सम्बन्धित पत्र व्यवहार तथा प्रलेखों (documents), की जांच करनी चाहिए।

(2) इन ऋणों पर ब्याज देने. इनके वापस करने. किस्तों की व्यवस्था, आदि के सम्बन्ध में जो शर्ते हों। उनकी जांच करनी चाहिए।

(3) यह जानकारी करनी चाहिए कि ये ऋण व्यापार के कार्य के लिए काम में लाये गये हैं।

(4) यदि आवश्यक समझा जाय तो ऋणदाताओं से ऋण की शेष राशि एवं अदत्त ब्याज के लिए प्रमाण-पत्र प्राप्त कर लेना चाहिए।

(ब) जमानत वाले ऋण (Secured Loans and Advances) जमानत वाले ऋणों के सत्यापन के सम्बन्ध में साधारणतः दो बातें उल्लेखनीय हैं—

(1) वास्तविक राशि जो ऋण के रूप में दी गयी है, तथा

(2) ऋण के लिए जमानत।

जहां तक ऋण के लिए दी गयी राशि का प्रश्न है. यदि यह राशि अंकेक्षण के वर्ष में दी गयी है, तो यह देखना चाहिए कि यह राशि कम्पनी के सम्बन्ध में संचालकों या अन्य उपयुक्त अधिकारियों के द्वारा साझेदारी फर्मों में साझेदारों से स्वीकृत तथा अधिकृत है। ऋण के लिए प्राप्त प्रार्थना-पत्र तथा प्राप्ति की रसीद की जांच की जानी चाहिए। ऋण की आंशिक वापसी तथा ब्याज के सम्बन्ध में यह जानकारी करनी चाहिए कि यह भुगतान ऋण लेने वाले ने ही किया है। ऋण के लिए जमानतें निम्न हो सकती हैं

(1) विनियोग (Investments) साधारणतया वाहक जमानतें (bearer securities) ऋण लेने के लिए सर्वोतम साधन मानी जाती हैं। अंकेक्षकों को इन जमानतों (Securities) की जांच करनी चाहिए तथा इनके मूल्यांकन की ओर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। रजिस्टर्ड जमानतें (Registered Securities) ऋणदाता के पास ऋण लेने के लिए जमा की जा सकती हैं। ऋणदाता के हित में जमानतों (securities) का उसके नाम में हस्तान्तरण माना जाता है।

(2) सम्पत्ति पर बन्धक (Mortgage on Property)—यह बन्धक सम्पत्ति के अधिकारनामे (Deeds) के जमा करने से भी प्रयोग हो सकता है। ऐसी स्थिति में अंकेक्षक को अधिकारनामे का निरीक्षण करना चाहिए। यदि बन्धक का प्रयोग ऋणदाता के नाम में सम्पत्ति के करने से (conveyance) किया जाता है, तो बन्धक के प्रपत्र (Mortgage Deed) का निरीक्षण करना चाहिए। द्वितीय प्रभार या बन्धक के मामले में इस प्रकार का स्पष्ट उल्लेख बन्धक प्रपत्र में करना आवश्यक होता है। अंकेक्षक को योग्य मूल्यांकक के द्वारा किये गये मूल्यांकन के प्रमाण-पत्र को भी देखना चाहिए।

(3) जीवन-बीमा पॉलिसियां (Insurance Policies) अंकेक्षक को बीमा पॉलिसियां देखनी चाहिए।’ ऋणदाता के हित को बीमा कम्पनी के द्वारा मान्यता दी जानी चाहिए। ऋण बीमा पॉलिसी की समर्पित राशि (Surrender Value) की सीमा के अन्दर ही दिया जाता है और बीमा कम्पनी की ओर से निर्गमित प्रमाण-पत्र की जांच अंकेक्षक को करनी चाहिए।

(4) गारण्टी (Guarantees)-जमानत का मूल्य गारण्टी देने वाले की हैसियत पर निर्भर होता है। अंकेक्षक को यह देखना चाहिए कि ऋण चलते रहने की अवधि में गारण्टी देने वाले की स्थिति अच्छी बनी रहती है। ऐसी गारण्टी लिखित होनी चाहिए और उसमें कोई भी ऐसी कमी नहीं होनी चाहिए जिसके कारण ऋणदाता का कोई अहित हो।।

इस सम्बन्ध में निम्नलिखित बातें ध्यान में रखनी चाहिए :

(1) प्रभार या रहन के लिए बन्धक-पत्र (mortgage deed) तथा प्रभार के स्वभाव (fixed or floating) की जानकारी करनी चाहिए।

(2) यह भी देखना चाहिए कि बन्धक के समय से बन्धककर्ता को सम्पत्ति के बेचने का अधिकार तो नहीं मिला हुआ है।

(3) यदि कोई सम्पत्ति या उसका कोई भाग बेच दिया गया हो. तो ऋण लेने वाले की स्वीकति से ही किया गया है।

(4) यदि कोई ऋण लेने वाली एक कम्पनी है, तो बन्धक तथा प्रभार रजिस्टर की जांच करनी चाहिए।

(5) माल की जमानत (Security of Goods)-माल की जमानत के सहारे ऋण दिये जा सकते हैं। यह माल गोदाम-प्रबन्धक की देखरेख में रखे जा सकते हैं। अंकेक्षक को प्रबन्धक की रसीद देखनी चाहिए।

यदि बन्दररगाह पर माल है, तो डाक वारण्ट (Dock Warrant) देखना चाहिए। यदि यह उपलब्ध न होना सुपुर्दगी-नोट (delivery note) का निरीक्षण करना चाहिए जिसे मालिक के नाम निर्ममित किया गया है ।

अकेंक्षक की रेल की बिल्टी (R/R) की जांच करनी चाहिए और बन्धक-पत्र (Letters Hypothecation) को भी देखना चाहिए।

जमानत का मूल्य बाजार की परिस्थितियों के अनुसार परिवर्तित हो सकता है। अंकेक्षक को बाजार की मूल्य सूची का निराक्षण करना चाहिए। माल की मात्रा के लिए निरीक्षक का रिपाटदखना चाहिए यह का देख लेना चाहिए कि माल क्षयी स्वभाव का तो नहीं है।

(स) कर्मचारियों को ऋण (Loans to Employees)—नियोक्ता के पास कर्मचारियों से ऋण के लिए आवेदन-पत्र प्राप्त होते हैं। इन ऋणों को देने की कुछ शर्ते होती हैं और पृथक ऋण-प्रसंविदे के न होने पर ये शर्ते ही प्रसंविदा का कार्य करती हैं। इन शर्तों में अलग से ऋण के पुनर्भुगतान तथा ब्याज की अदायगी । के लिए व्यवस्था होती है। सामान्यतः कर्मचारियों को ये ऋण भविष्य निधि-खाते के सहारे दिये जाते हैं। अंकेक्षक को इसकी जांच करनी चाहिए कि क्या ऋण की वापसी तथा ब्याज का भुगतान शर्तों के अनरूप कर दिया गया है।

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बैंक अधिविकर्ष

(BANK OVERDRAFT)

इसका सत्यापन ऋणों के सत्यापन के अनुसार होगा। अन्तर यह है कि अधिविकर्ष बैंक से लिया जाता है। इसके लिए पास-बुक देखनी चाहिए। उसे रहन की हुई सम्पत्तियों की प्रमाणित सूची प्राप्त करनी चाहिए। ध्यान रहे कि अधिविकर्ष के सम्बन्ध में बैंक के साथ प्रभार स्वरूप सम्पत्ति का उल्लेख संस्था के चिट्ठे में अवश्य होना चाहिए।

असमाप्त बट्टा

(UNEXPIRED DISCOUNT)

बैंक जब बिल भुनाते हैं, तो उन्हें बट्टे की आय होती है। यदि यह भूनाये गये बिलों की भुगतान की तारीख इस वर्ष में न पड़कर अगले वर्ष में पड़ती हो तो इन बिलों से प्राप्त बट्टे की सारी रकम वर्ष की आमदनी नहीं मानी जाती है। इसी कारण बट्टे की आमदनी के उस भाग को जिसका सम्बन्ध अगले वर्ष से है, एक अलग खाते में जिसका नाम बिलों पर असमाप्त कटौती खाता (rebate on bills discounted | account) है, हस्तान्तरित कर दिया जाता है। अंकेक्षक को इस खाते की पूरी जांच करनी चाहिए। साथ ही भुनाये हुए बिलों की जांच करनी चाहिए।

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ARRIP अदत्त व्यय

(OUTSTANDING EXPENSES)

अंकेक्षक को किसी उत्तरदायी अधिकारी से प्रमाण-पत्र प्राप्त करना चाहिए कि वर्ष से सम्बन्धित सभी । अदत्त व्यय सम्मिलित कर लिये गये हैं। जितनी रकम दे दी गयी है, उसके लिए रोकड-बही की जांच करनी । चाहिए। यह भी देख लेना चाहिए कि सभी अदत्त व्ययों के लिए आवश्यक समायोजन प्रविष्टियां कर ली गयी। हैं। ध्यान रहे कि अदत्त व्ययों में केवल अदत्त व्यय ही सम्मिलित होने चाहिए। इस प्रकार अंकेक्षक को । निम्नांकित बातों की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए :

(1) उसे सावधानीपूर्वक यह जांच करनी चाहिए कि सभी उचित व्यय: जैसे किराया. कर कमीशन, ब्याज, मजदूरी, वेतन, अकेक्षण फीस, कानूनी व्यय, आदि चिट्ठे की तारीख तक हिसाब में लगा दिये गये हैं।

(2) वित्तीय वर्ष की समाप्ति के पश्चात् के कुछ सप्ताहों के प्रमाणक, मांग-पत्र (demand notes) एव बीजकों के सम्बन्ध में की गयी पुस्तकों की प्रविष्टियों की भी जांच करनी चाहिए। यह देखना चाहिए कि इनम। से किसी का सम्बन्ध अंकेक्षण-वर्ष से तो किसी प्रकार नहीं है।

(3) वर्ष के सभी दत्त एवं अदत्त व्ययों के योग की पिछले वर्ष के वैसे ही व्ययों के योग से जांच तथा करनी चाहिए। यह देखना चाहिए कि इनमें कोई विशेष असमानता तो नहीं है।

(4) यह भी देखना चाहिए कि सम्पूर्ण अदत्त वेतन तथा मजदूरी आदि की व्यवस्था कर ली गयी है तथा इसका भुगतान बाद में कर दिया गया है।

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सम्भाव्य दायित्व

(CONTINGENT LIABILITIES)

सम्भाव्य दायित्व व दायित्व होते हैं, जिनके विषय में यह नहीं कहा जा सकता कि उन देय रकमा का भगतान भविष्य में करना होगा अथवा नहीं। किसी अचानक घटना के घटित होने पर ही ये दायित्व बन

सकते हैं:

(1)भुनाये गये प्राप्य बिलो के लिए दायित्व (Liabilities on Bills Receivable discounted and not matured) यदि किसी प्राप्त बिल को बैंक से उसकी भगतान तिथि के पूर्व ही भूना लिया गया हो और उसकी रकम काम में ले ली हो तो बिल के स्वीकारकर्ता के भगतान न करने पर बैंक की सारी रकम वापस करनी होगी। इसी कारण इस दायित्व का लेखा अलग से आर्थिक चिट्ठे में कर देना चाहिए।

(2) दूसरी कम्पनी में अंशों पर याचित रकम के लिए दायित्व (Liabilities for Calls on partly paid Shares) याचित (called) तथा भुगतान की गयी रकम का सत्यापन रोकड-बही से करना चाहिए तथा अयाचित (uncalled) रकम के लिए दायित्व की रकम का पता लगाना चाहिए।

(3) जमानत के लिए दायित्व (Liabilities under Guarantee) जब किसी अन्य व्यक्ति या संस्था के लिए जमानत दी जाती है और वह व्यक्ति या संस्था अपना वायदा पूरा नहीं करती है तो उस हालत में जमानत के लिए सम्भाव्य दायित्व हो सकता है, ऐसे दायित्वों का पता लगाना चाहिए।

(4) कम्पनी के ऋणों के सम्बन्ध में चल रहे झगड़ों के लिए दायित्व (Liability for Cases against the Company not Acknowledged as Debts) यदि किसी ऋण के लिए मुकदमा चल रहा हो और उनमें हानि की सम्भावना हो, तो ऐसे सम्भाव्य दायित्वों को चिट्ठे के दायित्व-पक्ष में नोट के रूप में लिख देना चाहिए।

(5) वायदों के सौदों पर हानि के लिए दायित्व (Liabilities of Penalties under Forward Contracts) यदि वायदे की खरीद या बिक्री पर हानि होने की सम्भावना होती है तो उसका पूर्वोपाय अवश्य कर लेना चाहिए।

(6) संचयी पूर्वाधिकार अंशों के लाभांश के शेष के लिए दायित्व (Liability in respect of Arrears of Dividend on Cumulative Preference Shares) कम्पनी के अन्तर्नियमों के अनुसार संचयी पूर्वाधिकार अंशों के लाभांश के दायित्व के लिए भी पूर्वोपाय करना आवश्यक हो जाता है। इसे भी सम्भाव्य दायित्व कहा जाता है।

अंकेक्षक का कर्तव्य

अंकेक्षक को सम्भाव्य दायित्वों के लिए आवश्यक पूछताछ करनी चाहिए। यदि ऐसे दायित्व हो तो उसे चिट्टे में अलग से दिखाये जाने चाहिए। उसे संस्था के अधिकारियों से एक प्रमाण-पत्र प्राप्त करना चाहिए। इतना अवश्य है कि अंकेक्षक के लिए सम्भाव्य दायित्वों के विषय में सही अनुमान तब तक आसान नहीं होता है, जब तक कि वह संस्था के कार्य की रूपरेखा के सम्बन्ध में पूर्ण जानकारी प्राप्त नहीं कर लेता है। यह जानकारी वह संचालकों की बैठकों की कार्यवाही पस्तिका के अध्ययन, कानूनी सलाहकारों के साथ किये गये पत्र-व्यवहार तथा संस्थाके अधिकारियों से प्राप्त सूचना के आधार पर कर सकता है। संस्था के साथ चल रहे मुकदमों तथा दावों (claims) के पता चलने की यह एक सलभ विधि है। सम्भाव्य दायित्वों के सम्बन्ध में हानि होने की आशंका हो सकती है जिसके लिए पर्याप्त संचय होना चाहिए। यदि संचय की राशि पर्याप्त न हो तो वह इस बात की सूचना अपने नियोक्ता को दे सकता है।

यह ध्यान देने योग्य है कि कम्पनी अधिनियम के प्रावधानों का परिपालन सम्भाव्य दायित्वों के सम्बन्ध में पूर्णरूपेण किया जाना चाहिए और उन्हें उचित रूप से चिट्ठे के दायित्व पक्ष में दिखलाया जाना चाहिए।

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प्रश्न

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1 सम्पत्तियों के ‘सत्यापन’ तथा ‘मूल्यांकन’ में क्या अन्तर है ? विविध वर्ग की सम्पत्तियों के मूल्यांकन में किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? विस्तारपूर्वक लिखिए।

What is the difference between ‘Verification and difference between ‘Verification and Valuation of Assets? What points should be kept in mind while valuing different kinds of assets?

2. सम्पात्तया के सत्यापन का क्या उद्देश्य है ? उनके मल्यांकन के सम्बन्ध में अंकेक्षक कहां तक उत्तरदाया है?

What is the object of Verification of Assets? How far is the auditor responsible as regard their valuation?

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लघु उत्तरीय प्रश्न

1 सम्पत्तियों के सत्यापन का क्या आशय है ?

2. ख्याति के मूल्यांकन की विधि समझाइए।

3. “अंकेक्षक मूल्यांकक नहीं है।” इस कथन की विवेचना कीजिए।

4. क्या मूल्यांकन सम्पत्तियों के सत्यापन की प्रक्रिया का अंग है ? समीक्षा कीजिए।

5. स्टॉक के मूल्यांकन के सम्बन्ध में अंकेक्षक का कर्तव्य बताइए।

6. “अस्थायी सम्पत्तियों का मूल्यांकन लागत मूल्य अथवा बाजार मूल्य में जो कम, हो उस पर किया जाता है।” समझाइए।

7. स्टॉक के मूल्यांकन की सामूहिक विधि क्या है ? समझाइए।

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अति लघु उत्तरीय प्रश्न

1 सम्पत्ति का सत्यापन क्या है ?

2. मूल्यांकन को परिभाषित कीजिए।

3. पुस्तक-मूल्य क्या है ?

4. चालू-व्यवसाय मूल्य क्या है ?

5. क्षयी सम्पत्तियां क्या हैं ?

6. क्षयी सम्पत्तियों का मूल्यांकन कैसे होगा ?

7. ख्याति का मूल्यांकन कैसे होगा ?

8. विनियोग का सत्यापन कैसे होगा ?

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वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1 निम्न में से किस सम्पत्ति का मूल्यांकन लागत मूल्य पर किया जाता है :

(अ) फर्नीचर

(ब) स्टॉक

(स) रोकड

(द) ख्याति

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2. निम्न में से कौन-सी सम्पत्ति चल सम्पत्ति होगी :

(अ) मशीन

(ब) स्टॉक

(स) भवन

(द) पैटेन्ट्स

3. ट्रस्ट कम्पनी (Trust Company) के लिए विनियोग होते हैं :

(अ) अस्थायी सम्पत्ति

(ब) स्थायी सम्पत्ति

(स) अदृश्य सम्पत्ति

(द) इनमें से कोई नहीं

4. विशेष वस्तुओं जैसे शराब, चावल आदि का मूल्यांकन किया जाता है :

(अ) लागत मूल्य पर

(ब) लागत से कम मूल्य पर

(स) लागत से अधिक मूल्य पर

(द) इनमें से किसी पर भी नहीं

5. निम्न में से किस मामले में यह निर्णय दिया गया था कि अंकेक्षक मूल्यांकक नहीं है :

(अ) मैक्सन एण्ड रोबिन्स

(ब) किंग्स्टन कॉटन मिल्स

(स) यूनियन बैंक ऑफ इलाहाबाद लि.

(द) लन्दन एण्ड जनरल बैंक

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chetansati

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