BCom 3rd Year Audit Types Classification Study Material Notes in Hindi

Table of Contents

BCom 3rd Year Audit Types Classification Study Material Notes in Hindi: Meaning advantages of Statutory Audit Classification Audit According Organisation Structure Business Private Audit Internal Audit Government Audit Continuous Audit Management Audit Interim Audit Social Audit Balance Sheet Audit Difference Between Types of Audit Long Answer Short Answer ( For BCom Students )

Audit Types Classification
Audit Types Classification

BCom 3rd Year Auditing Objects Advantages Study Material Notes in hindi

अंकेक्षण के प्रकार एवं वर्गीकरण

[TYPES AND CLASSIFICATION OF AUDIT]

  • वैधानिक अंकेक्षण आन्तरिक अंकेक्षण अन्तरिम अंकेक्षण चालू अंकेक्षण

आशय (Meaning)

अंकेक्षण, जिसका वर्णन पूर्व के अध्याय में किया गया है, एक विधिवत् मूल्यांकन एवं परीक्षण प्रक्रिया है जो किसी निश्चित उद्देश्य की पूर्ति हेतु किया जाता है और अंकेक्षण कार्य के सम्बन्ध में अपनी राय प्रतिवेदन के रूप में सम्बन्धित पक्ष को प्रेषित की जाती है। अंकेक्षण के सम्बन्ध में उपर्युक्त कथन, अंकेक्षण के प्रकारों का वर्णन करता है। अंकेक्षण को निम्न प्रकार वर्गीकृत किया जाता है :

(1) व्यापारिक संस्था के संगठन के अनुसार, एवं (2) व्यावहारिक दृष्टिकोण से

अंकेक्षण

व्यापारिक संस्था के संगठन के अनुसार                           व्यावहारिक दृष्टि से

वैधानिक अंकेक्षण    निजी अंकेक्षण        सरकारी अंकेशण          आन्तरिक अंकेक्षण

Audit Types Classification Study

व्यापारिक संस्था के संगठन के अनुसार अंकेक्षण का वर्गीकरण

(CLASSIFICATION OF AUDIT ACCORDING TO ORGANISATIONAL

STRUCTURE OF BUSINESS

स्पष्ट है कि व्यापारिक संस्था का जैसा संगठन होगा वैसी ही उसकी हिसाब-किताब रखने की प्रणाली होगी और संगठन के अनुसार उसका अंकेक्षण किया जायेगा। ।

1 वैधानिक अंकेक्षण (Statutory Audit)

उन संस्थाओं में जिनमें किसी विधान के अनुसार सारा काम चलता है, अंकेक्षण भी उसी प्रकार उस विधान के अन्तर्गत अनिवार्य कर दिया गया है। भिन्न-भिन्न अधिनियमों के आधार पर चलने वाली संस्थाओं के लिए विधान के अनुसार अंकेक्षण अनिवार्य है। इसे वैधानिक अंकेक्षण कहते हैं। ऐसे अंकेक्षण के निम्न उदाहरण हो सकते हैं :

(1) कम्पनियों का अंकेक्षण (Audit of Companies) भारत में सन् 1913 के भारतीय कम्पनी अधिनियम के अन्तर्गत सीमित दायित्व वाली कम्पनियों के हिसाब-किताब का अंकेक्षण अनिवार्य कर दिया गया। कम्पनी अधिनियम, 1956 के अनुसार अंकेक्षण से सम्बन्धित कुछ परिवर्तन किये गये हैं। प्रत्येक कम्पनी के लिए यह आवश्यक है कि वह अपने हिसाब-किताब का वार्षिक अंकेक्षण कराने के लिए एक निश्चित योग्यता रखने वाला अंकेक्षक नियुक्त करे। कम्पनियों के अंकेक्षण की रिपोर्ट अंकेक्षक द्वारा अंशधारियों को दी जाती है जिसमें वे वित्तीय लेखों की शुद्धता एवं सत्यता को प्रमाणित करते हैं।

(2) प्रन्यासों का अंकेक्षण (Audit of Trust)—प्रायः प्रन्यास (trusts) नाबालिगों, विधवाओं तथा असहाय व्यक्तियों के लिए बनाये जाते हैं, जो इन प्रन्यासों के हिसाब-किताब न तो अच्छी तरह समझ सकते हैं, और न उसकी आलोचना और छानबीन ही कर सकते हैं। कुछ प्रन्यास अपना हिसाब-किताब नहीं रखते और यदि रखते भी हैं तो वे गलतियों तथा छल-कपट से पूर्ण होते हैं। इस प्रकार प्रन्यासी अपने कोषों का दुरुपयोग किया करते हैं। अतः भारत में कुछ राज्यों ने सार्वजनिक प्रन्यास अधिनियम (Public Trusts Act) बना दिया है जिसके अनुसार योग्य अंकेक्षकों द्वारा प्रन्यासों का अंकेक्षण अनिवार्य कर दिया गया है। अब ये प्रन्यास अंकेक्षण के लाभों को समझते हैं और अनिवार्य अंकेक्षण कराते हैं।

(3) अन्य संस्थाओं का अंकेक्षण (Audit of other Organisations) सरकार ने कुछ अन्य अधिनियम भी बनाये हैं जिनके अनुसार कम्पनी तथा प्रन्यास के अतिरिक्त अन्य सार्वजनिक संस्थाएं चलती हैं। बिजली तथा गैस कम्पनियां अपने-अपने अधिनियमों के आधार पर कार्य करती हैं। इन अधिनियमों के अन्तर्गत इन संस्थाओं के लिए हिसाब-किताब का अंकेक्षण अनिवार्य किया गया है।

सार्वजनिक संस्थाओं का एक दूसरा वर्ग भी है जो अपने-अपने विधान के अनुसार अंकेक्षण कार्य करवाता है।

जैसे :

(i)  बैंकों का अंकेक्षण बैकिंग रेगलेशन अधिनियम, 1949 द्वारा,

(ii) बीमा कम्पनियों का बीमा अधिनियम, 1938 द्वारा,

(iii) बिजली कम्पनियां बिजली (पूर्ति) अधिनियम, 1948 द्वारा।

वैधानिक अंकेक्षण के लाभ (Advantages of Statutory Audit)

अंकेक्षण से होने वाले सामान्य लाभों के अतिरिक्त, वैधानिक अंकेक्षण के निम्नलिखित कुछ विशिष्ट लाभ होते हैं।

1 यह अंशधारियों और अन्य व्यक्तियों को व्यवसाय की वित्तीय स्थिति का सही और उचित चित्र प्रस्तुत करता है।

2. अंशधारी, संचालक प्रवत्तको या प्रबन्धको द्वारा किये गये कपटों से अपना बचाव कर सकते है।।

3. अशधारियों को इस बात की जानकारी प्राप्त हो जाती है कि खातों को तैयार करने और उन्हें प्रस्तुत करने में प्रबन्ध ने कम्पनी अधिनियम की व्यवस्थाओं का पालन किया है या नहीं।

4. यह प्रबन्ध के कार्यों पर नैतिक अवरोध होता है।

Audit Types Classification Study

निजी अंकेक्षण (Private Audit)

जिन संस्थाओं के हिसाब-किताब के अंकेक्षण के लिए किसी प्रकार का वैधानिक बन्धन नहीं होता है। उनका अंकेक्षण निजी अंकेक्षण की श्रेणी में आता है। ये संस्थाएं अपनी इच्छानुसार अंकेक्षण करवाती हैं और अंकेक्षण का क्षेत्र भी निश्चित करती हैं। इनके तीन वर्ग हो सकते हैं : ।

(1) एकाकी व्यापार का अंकेक्षण (Audit of account of sole trader) एकाकी व्यापारी के हिसाब-किताब का अंकेक्षण स्वयं उसकी इच्छा पर निर्भर करता है। कितने खातों का कब और कितना। अंकेक्षण किया जाए, यह सभी वह स्वयं निश्चित करता है। साथ ही अंकेक्षक का कार्य, उसके अधिकार तथा दायित्व आदि सभी बातें एकाकी व्यापारी तथा अंकेक्षक के बीच होने वाले समझौते के आधार पर निश्चित की जाती हैं। अंकेक्षक के लिए यह आवश्यक है कि वह शर्त प्रारम्भ में तय कर ले और लिखित रूप में सारे आदेश प्राप्त करने के पश्चात् ही अपना कार्य आरम्भ करे अन्यथा किसी गड़बड़ी के समय जिम्मेदार ठहराया। जा सकता है।

(2) साझेदारी फर्मों का अंकेक्षण साझेदारी अधिनियम के अनुसार साझेदारी फर्म का अंकेक्षण होना अनिवार्य नहीं है, किन्तु सभी साझेदारों के साथ फर्म के लिए यह लाभदायक है कि फर्म का अंकेक्षण होना चाहिए। साझेदारी अनुबन्ध में इस बात का उल्लेख होना चाहिए कि साझेदारी के खातों का अंकेक्षण किया जाये। साझेदारों तथा अंकेक्षक के मध्य अंकेक्षण का अनुबन्ध होना चाहिए जो कार्य की शर्तों व दायित्वों को तय करेगा। यदि कोई और समझौता न हो तो साझेदारी अधिनियम का पालन करना चाहिए।

(3) प्राइवेट व्यक्तियों के हिसाबकिताब का अंकेक्षण (Audit of accounts of private individuals) यह उन व्यक्तियों के हिसाब-किताब का अंकेक्षण होता है जिनकी आमदनी अधिक होती है तथा साथ ही व्यय भी पर्याप्त होते हैं। इन व्यक्तियों के खातों का अंकेक्षण होने से हिसाब-किताब रखने वाले कर्मचारियों पर नैतिक दबाव रहता है और साथ ही आयकर आदि के लिए भी अंकेक्षित खातों से अधिक सहायता मिलती है। जो व्यक्ति अपने एजेण्टों के सहारे काम करता है उसके लिए भी अंकेक्षण लाभदायक होता है।

III. सरकारी अंकेक्षण (Government Audit)

सरकारी विभागों व संस्थाओं के हिसाब-किताब की जांच को सरकारी अंकेक्षण कहते हैं। राजकीय प्रशासन की सफलता बहुत हद तक कुशल अंकेक्षण पर निर्भर करती है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 148 के अन्तर्गत राष्ट्रपति कम्पट्रोलर एण्ड ऑडीटर जनरल की नियुक्ति करते हैं। अनुच्छेद 149 के अनुसार ऑडीटर जनरल को केन्द्रीय सरकार, राज्य सरकार तथा अन्य किसी सरकारी संस्था के हिसाब-किताब के सम्बन्ध में उन अधिकारों एवं कर्तव्यों का पालन करना होता है जो भारतीय संसद द्वारा अथवा उसके द्वारा बनाए गए किसी अधिनियम के अन्तर्गत निर्धारित किए गए हैं।

इन अंकेक्षकों के कर्तव्य तथा दायित्व किसी अधिनियम द्वारा निर्धारित नहीं होते। ये सार्वजनिक अंकेक्षकों की भांति योग्य भी नहीं होते। अतः यह किसी अन्य सार्वजनिक संस्था के अंकेक्षक नहीं हो सकते हैं। ये कर्मचारी पूर्णतः सरकारी विभागों के लिए होते हैं और विभागीय नियमों के अनुसार काम करते हैं।

सरकारी व्यावसायिक अंकेक्षण में अन्तर

सरकारी अंकेक्षण व्यावसायिक अंकेक्षण

 

1 सामान्यतया सरकार का लेखा व परीक्षण विभाग लेखा तैयार करने व उनके अंकेक्षण का कार्य करता है। व्यावसायिक अंकेक्षण बाह्य अंकेक्षण के द्वारा करवाया। तैयार करने व उनके अंकेक्षण का कार्य करता है।
2 सरकारी विभाग सरकारी कार्यालयों के व्यय का दायित्व वहन करता है और इस प्रकार अंकेक्षण कार्य अंकेक्षण के एक भाग के लिए उत्तरदायी होता है।

 

व्यावसायिक संस्थाओं में व्यय करने वाला विभाग आकेशंक से कोई सम्बन्ध नहीं रखता है
3 सरकारी खाते में भुगतान उपयुक्त अधिकारी से पास किये जाने के पश्चात् किये जाते हैं। व्यावसायिक संस्थाओं में रोकड़िया केवल भुगतान से ही सम्बन्ध रखता है ।
4 सरकारी अंकेक्षण एक प्रकार क चालू अंकेक्षण की ही प्रकिया है । व्यावसायिक अंकेश्रण सामायिक होता है जो एक निश्चित अवधि के पश्चात् किया जाता है ।

 

Audit Types Classification Study 

आन्तरिक अंकेक्षण (Internal Audit)

कुछ संस्थाओं का संगठन इस प्रकार होता है कि वे अन्य कर्मचारियों की भांति अपने यहां अंकेक्षको को भी नियुक्त करती हैं। इसका कारण प्रायः यह होता है कि ऐसी संस्थाएं हिसाब-किताब की गड़बड़ी तथा छल-कपट को रोकने के लिए अंकेक्षक कर्मचारियों की आवश्यकता समझती हैं। ये अंकेक्षक स्थायी होते हैं और अन्य कर्मचारियों की भांति इनको वेतन मिलता है।

आन्तरिक अंकेक्षण संस्था के सार्वजनिक अंकेक्षक नहीं कहते हैं। मामूली योग्यता वाले वेतन भोगी आन्तरिक अंकेक्षकों व्यक्ति जो उस संस्था के हिसाब-किताब से परिचित होते हैं, के द्वारा किया जाता है। इस कार्य को कर सकते हैं। ये अपनी संस्था का ही अंकेक्षण के रुप में कार्य नहीं कर सकते हैं । ये अपनी रिप्रोर्ट भी नहीं देतं है ।

संक्षेप में, एक संस्था के हिसाब-किताब की समय-समय पर उसके वेतन प्राप्त कर्मचारियों (Internal Auditors) द्वारा की गयी जांच आन्तरिक अंकेक्षण का क्षेत्र कछ भिन्न होता है। इसका प्रबन्धकीय कार्यों से अधिक सम्बन्ध है, इतना अधिक हिसाब-किताब के कार्यों से नहीं। जहां एक सामान्य अंकेक्षक का सम्बन्ध किसी व्यापार के लेने-देनों के सही, शुद्ध एवं वैधानिक होने से होगा, वहां आन्तरिक अंकेक्षक इन बातों के अतिरिक्त यह भी देखेगा कि संस्था में कुशलता एवं मितव्यता से कार्य हो रहा है या नहीं। आन्तरिक अंकेक्षण में कितनी जांच करनी होगी। यह सब व्यापारिक संस्था के आकार एवं स्वभाव पर निर्भर होगा।

इस प्रकार आन्तरिक अंकेक्षक एक प्रहरी का कार्य करता है। संस्था में उसकी उपस्थिति उसके कर्मचारियों पर नैतिक प्रभाव डालती है। स्वाभाविक है कि संस्था के कर्मचारी सावधानी तथा सतर्कता से कार्य करते हैं। संस्था का प्रहरी होने के नाते वह यह देख सकता है कि किस सीमा तक संस्था के नियमों का पालन या उल्लंघन किया जा रहा है। यही नहीं, वह संस्था के अधिकारियों को नियमों के सुधार करने के सम्बन्ध में सुझाव आदि देकर संस्था के कार्य में प्रगतिशीलता ला सकता है।

आन्तरिक अंकेक्षक की कुशलता के सम्बन्ध में सुझाव

इस व्यवस्था को कुशल बनाने के लिए निम्नांकित सुझाव उपयुक्त प्रतीत होते हैं :

1 आन्तरिक अंकेक्षण की योग्यता आन्तरिक अंकेक्षक एक योग्य तथा कुशल व्यक्ति होना चाहिए। उसका संस्था के सम्बन्ध में विशिष्ट दायित्व है जिसे उसे निभाना है। अतः उसमें हिसाब-किताब सम्बन्धी कुशलता होने के साथ-साथ उसे व्यवहार कुशल एवं अनुभवी व्यक्ति होना चाहिए।

2. पर्याप्त स्टाफ की सहायता आन्तरिक अंकेक्षक को योग्य कर्मचारी मिलने चाहिए। जहां यह आवश्यक है कि उसे पर्याप्त कर्मचारी कार्य के लिए मिलें, वहां पर यह भी महत्वपूर्ण है कि ये सभी कर्मचारी अंकेक्षण कार्य में योग्य तथा निपुण हों। बड़े-बड़े व्यवसाय आन्तरिक अंकेक्षण के महत्व को भली-भांति जानते हैं और इसी कारण आन्तरिक अंकेक्षक तथा उसके स्टाफ को अच्छा वेतन एवं सुविधाएं देते हैं।

3. अंकश में कमी तथा स्वतन्त्रताअन्य कर्मचारियों की भांति आन्तरिक अंकेक्षक को अधिक अंकश में रखना उसकी स्वतन्त्रता को छीनना है। कोई भी अंकेक्षण स्वतन्त्रता के बिना नहीं हो सकता है। उसे अपना कार्य करने योजना बनाने, रिपोर्ट देने तथा नियम-उपनियम आदि के सम्बन्ध में सुझाव देने में पर्याप्त स्वतन्त्रता मिलनी चाहिए।

आन्तरिक अंकेक्षण तथा स्वतन्त्र (independent) अंकेक्षण में अन्तर निम्न हैं:

Audit Types Classification Study

आन्तरिक अंकेक्षण की विशेषताएं

1 आन्तरिक अंकेक्षण की पद्धति एक स्वतन्त्र व्यवस्था होती है और व्यापारिक संगठन में एक विशेष स्थान रखती है।

2. आन्तरिक अंकेक्षण की व्यवस्था प्रबन्धकीय फर्मों से पूर्णतया स्वतन्त्र अस्तित्व रखती है। इससे कार्यकारी (executive) निर्णय लेने में पर्याप्त सहायता मिलती है।

3. वित्तीय व लेखीय मामलों पर यह नियमित तथा सतत निगरानी रखने में सहायक होती है। इस प्रकार संगठन के किसी भी कार्यकलाप में अपना दखल रख सकती है।

4. आन्तरिक अंकेक्षक संगठन का वेतनभोगी कर्मचारी होता है, परन्तु वह किसी प्रबन्धकीय दबाव या प्रभाव के अन्तर्गत अपना कार्य नहीं करता है। उसको अपने कर्तव्य का स्पष्ट दृष्टिकोण रखना चाहिए।

व्यावहारिक दृष्टि से अंकेक्षण का वर्गीकरण

(CLASSIFICATION OF AUDIT FROM PRACTICAL POINT OF VIEW)

चालू अंकेक्षण (Continuous Audit)

आर. जी. विलियम के शब्दों में, “चालू अंकेक्षक का आशय ऐसे अंकेक्षण से है जिसमें अंकेक्षक अथवा उसका स्टाफ वर्ष भर हिसाब-किताब की जांच करता रहता है, अथवा निश्चित या अनिश्चित समयान्तरों पर व्यापार काल के मध्य में आ कर उस दिन तक के हिसाब-किताब की जांच करता है।

स्पाइसर एवं पैगलरं के अनुसार, “चालू अंकेक्षण में अंकेक्षक का स्टॉफ वर्ष भर लेखों की जांच में व्यस्त रहता है।”

व्यवसाय, जहां चालू अंकेक्षण अधिक उपयोगी हो सकता है।

चालू अंकेक्षण निम्न प्रकार के व्यवसायों के लिए विशेष रूप से उपयुक्त है :

1 जहां वित्तीय वर्ष समाप्त होते ही अंकेक्षित खातों का शीघ्र-अति-शीघ्र प्रकाशन करना आवश्यक है, जैसे बैंकों में।

2. जहां बड़ी-बड़ी कम्पनियों में नकद लेन-देन बहुत अधिक होते हैं।

3. जहां उत्पादन, क्रय एवं विक्रय सम्बन्धी व्यवहार बड़े पैमाने पर किये जाते हैं।

4. जहां वर्ष के बीच में मासिक, त्रैमासिक या अर्द्ध-वार्षिक अन्तरिम खाते बनाये जाते हैं।

5. जहां आन्तरिक निरीक्षण की व्यवस्था या तो है ही नहीं या असन्तोषजनक है।

चालू अंकेक्षण के लाभ (Advantage of Continuous Audit)

1 विस्तृत और गहरी जांच इस प्रकार के अंकेक्षण में अंकेक्षक का स्टाफ वर्ष भर लेनदेनों की जांच करता है जिससे खातों की विस्तृत एवं गहरी जांच की जाती है।

2. त्रुटियों एवं गबन का शीघ्र प्रकट हो जाना खातों की चालू अंकेक्षण के लाभ गहन जांच होने से खातों की त्रुटियों एवं छल-कपट का शीघ्र पता चल जाता है व उनका निराकरण भी तुरन्त कर दिया जाता है। क्योंकि अंकेक्षण बहुत थोड़े-थोड़े समय बाद किया जाता है इसलिए कर्मचारियों को कपट करने का समय बहुत ही कम मिल पाता है।

3. अन्तिम खातों की शीघ्र तैयारी चालू अंकेक्षण में अंकेक्षण साथ-ही-साथ होता रहता है जिससे कार्य इकट्ठा नहीं हो पाता और वित्तीय वर्ष की समाप्ति पर ही अन्तिम खाते तैयार हो सकते है ।

4. कर्मचारियों पर अधिक नैतिक प्रभाव अंकेक्षक के लगातार आने से कर्मचारी बड़े सतर्क हो जाते हैं और अपने काम को पूर्ण तथा शुद्ध रखने का प्रयत्न करते हैं। अंकेक्षक के आने का नैतिक प्रभाव उन्हें सचेष्ट बनाने में सहायक होता है।

5. अंकेक्षक व्यापार की कार्यप्रणाली तथा विशेषताओं से भली प्रकार परिचित हो जाता है जिससे वह अपने कार्य में सफलता अन्तिम खाते तैयार होने में प्राप्त कर सकता है और अपने नियोक्ता को उपयोगी सलाह तथा सुविधा होना। सुझाव देकर संस्था की सफलता में योग दे सकता है।

6. बड़ी संस्थाओं में, जहां मासिक चिट्ठा तैयार होते हैं, अथवा जहां प्रबन्ध कुछ शिथिल होता है, चालू अंकेक्षण बड़ा लाभदायक होता है। चालू अंकेक्षण के बिना न तो प्रबन्ध की कुशलता बढ़ सकती है और न मासिक चिट्ठा व अन्य विवरण पत्र ही सही रूप से तैयार हो सकते हैं।

7. चालू अंकेक्षण में अंकेक्षक को अपने कार्य में पर्याप्त सुविधा मिलती है। वह अपना कार्य भली प्रकार आयोजित कर सकता है और हर कार्य को सुविधा के साथ कर सकता है। इस प्रकार वित्तीय वर्ष के अन्तर में अपने ऊपर आने वाले कार्य के अनुचित भार को वह दूर कर सकता है।

8. चूंकि अंकेक्षक वर्ष भर अंकेक्षण कार्य करता रहता है अतः उसे व्यवसाय की तकनीकी बातों की जानकारी हो जाती है जिसके फलस्वरूप वह अपने नियोक्ता को महत्वपूर्ण सुझाव दे सकता है।

चालू अंकेक्षण की हानियां (Disadvantage of Continuous Audit)

1 हिसाब की पुस्तकों में अंकेक्षण में पश्चात् अंकों को परिवर्तित किया जा सकता है। पुस्तकें खुली रहती हैं, इसलिए जिन पुस्तकों को अंकेक्षक ने जांच दिया है, उनमें बेईमान क्लर्क आसानी से अंक परिवर्तित करके गड़बड़ी कर सकते हैं।

2. अंकेक्षक के बराबर आने से व्यापार के कार्य में बाधा आती है। कभी-कभी उसका लगातार आना भी संस्था के अधिकारियों के लिए असुविधाजनक और हानिकारक सिद्ध होता है।

3. कार्य का तांता टूटने का डर रहता है। एक ही बार सारा कार्य करने के स्थान पर चालू अंकेक्षण के लिए बार-बार कर्मचारियों की प्रवृत्ति मदद लेने आना पड़ता है। इसका नतीजा यह होता है कि क्रम टूट जाता है और पिछली बहुत-सी बातों की खोज अच्छी प्रकार से नहीं हो सकती है।।

4. कर्मचारियों के नैतिक प्रभाव में भी कमी आने की आशंका रहती है क्योंकि अंकेक्षक के बार-बार आने से कर्मचारी अपनी मित्रता का दुरुपयोग कर सकते है।

5. चालू अंकेक्षण बड़ा खर्चीला होता है और छोटी-छोटी संस्थाओं के लिए उपयोगी नहीं होता है।

6. चालू अंकेक्षण में अंकेक्षण का कार्य यन्त्रवत् हो जाता है। और उसके बार-बार आने से उसकी रुचि कार्य में कम हो जाती है।

7. नियोक्ता के कर्मचारियों की प्रवृत्ति अंकेक्षण कर्मचारियों से मदद लेने की हो जाती है। जैसे तलपट न मिलने पर अंकेक्षक की सहायता से अशुद्धियों को मालूम करने का प्रयास।

8. अंकेक्षण कर्मचारियों को विस्तृत टिप्पणियां (Notes) तैयार करनी पड़ती हैं ताकि अंकेक्षण के बाद परिवर्तन नहीं किये जा सकें तथा कोई स्पष्टीकरण प्राप्त होने से रह जाए।

चालू अंकेक्षण की हानियों से बचने के उपाय

(1) व्यापार के कर्मचारियों को यह कडी चेतावनी देनी चाहिए कि जांच के पश्चात् अंकों में परिवर्तन न किए जायें। स्वयं अंकेक्षक के स्टाफ को जांच करते समय विशेष तथा गप्त चिन्हों का प्रयोग करना चाहिए। यदि कोई परिवर्तन आवश्यक हो, तो जर्नल में इस सुधार के लिए प्रविष्टियां की जानी चाहिए।

(2) अंकेक्षक को खाते की जांच यथासम्भव एक ही बैठक में करनी चाहिए और खास-खास जोड़ों (total) तथा बाकियों को अपनी डायरी में लिख लेना चाहिए। यह कार्य केवल उन्हीं जोड़-बाकियों के सम्बन्ध में करना चाहिए जिनको अंकेक्षक महत्वपूर्ण समझता है तथा जिनके प्रति उसे कुछ शंका हो सकती  है ।

 (3) अंकेक्षण कार्य के लिए अंकेक्षक को व्यवस्थित कार्यक्रम अच्छी तरह सोच-विचार कर बनाना चाहिए। यह निश्चित बात कि व्यवस्थित कार्यक्रम के बन जाने से किसी भी कार्य के जांच से छूटने की गुंजाइश नहीं रह सकती है और इस प्रकार व्यक्तिगत खातों की जांच वर्ष जांच से छूटने का डर दूर हो सकता है

(4) महत्वपूर्ण प्रश्नों के स्पष्टीकरण को जो सन्तोषजनक नहीं हैं अपनी डायरी में नोट कर लेना चाहिए।

(5) प्रत्येक बार काम आरम्भ करने से पूर्व पिछले जोड़ों को देख लेना चाहिए और यदि कोई परिवर्तन किये गये हों तो उनको भी देख लेना चाहिए। शंका होने पर फिर से जांच करनी चाहिए तथा स्पष्टीकरण लेने चाहिए।

(6) व्यक्तिगत खातों (Personal Accounts) की गड़बड़ अव्यक्तिगत खातों (Impersonal Accounts) में झूठी प्रविष्टियां करके आसानी से छिपायी जा सकती हैं इसलिए व्यक्तिगत खातों की जांच वर्ष के अन्त तक स्थगित करना अधिक अच्छा होगा। इस बीच रोकड़ के लेन-देनों, सहायक पुस्तकों तथा व्यक्तिगत खातों का अंकेक्षण करना कठिन रहेगा।

(7) यथासम्भव अंकेक्षक को अपने क्लर्कों के कार्य में परिवर्तन नहीं करना चाहिए। इससे काम में असुविधाओं और अवगुणों की सम्भावना कम हो जाती है। जिन अंकों में अंकेक्षण के पूर्व ही परिवर्तन किया जा चुका है उन पर अंकेक्षक को विशेष चिन्ह लगा देने चाहिए ताकि भविष्य में अनावश्यक सन्देह उत्पन्न न हो।

II . वार्षिक या सामयिक, अन्तिम या पूर्णकृत अंकेक्षण

(Annual or Periodical or Final or Completed Audit)

वार्षिक या सामयिक अंकेक्षण साधारणतया वित्तीय वर्ष (Financial Year) के समाप्त होने पर जब अन्तिम खाते पूर्ण रूप से तैयार हो जाते हैं किया जाता है और अंकेक्षक का कार्य तब तक प्रारम्भ नहीं होता जब तक की यह पूरा नहीं हो जाता है। इस प्रकार यह अंकेक्षण वर्ष में केवल एक बार ही होता है।

ऐसा अंकेक्षण छोटी संस्थाओं में अत्यन्त सुविधाजनक, सन्तोषजनक और व्यावहारिक होता है। बड़ी शाओं में चाल अंकेक्षण अधिक उपयोगी होता है, क्योंकि वहां बड़ा व्यापार होने से काम बढ़ जाता है और वर्ष के अन्त में अन्तिम खाते नहीं बन सकते हैं।

सामयिक अंकेक्षण में वे सभी लाभ प्राप्त नहीं हैं जो चाल अंकेक्षण में होते हैं। विशेष लाभ यह होता। है कि एक बार में ही जांच होने के कारण अंक परिवर्तन की गंजाइश नहीं होती है। चाल अंकेक्षण में जा। हानियां होती हैं, प्रायः वे सभी सामयिक अंकेक्षण के लाभ हैं। यह स्पष्ट है कि ऐसे अंकेक्षण में गहन जांच नहीं हो पाती है।

सामयिक  अंकेक्षण के लाभ (Advantage of Periodical Audit)

(1) अंकेक्षक के कार्य में कम समय लगता है। साथ ही स्वयं संस्था के लिए किसी प्रकार की असुविधा

एवं बाधा उपस्थित नहीं होती है।

(2) यह अंकेक्षण छोटी-बड़ी सभी प्रकार की संस्थाओं के आर्थिक साधनों के अन्तर्गत सुलभ होता है। क्योंकि इसमें कम व्यय होता है। चालू अंकेक्षण में अधिक व्यय होता है।

(3) इस अंकेक्षण में अंकेक्षक का कार्य शीघ्र एवं एक साथ समाप्त हो जाता है। अंकेक्षक एक ही बार

में अपने कार्य को सुविधा के साथ पूर्ण कर सकता है।

(4) जैसा कि चालू अंकेक्षण में प्रायः होता है, इसके वर्ष भर चलते रहने के कारण अंक बदलने का। डर रहता है तथा कार्य का तांता टूट जाता है। सामयिक अंकेक्षण का विशेष लाभ यह है कि कार्य के तारतम्य टूटने का डर नहीं रहता है।

(5) यह भी कहा जा सकता है कि सामयिक अंकेक्षण में अंकेक्षक से संस्था के कर्मचारी की मित्रता नहीं होने पाती है। परिणामस्वरूप इस जान-पहचान के कारण होने वाले सम्बन्ध का दुरुपयोग संस्था के कर्मचारी नहीं कर सकते हैं।

(6) पूरे स्टाफ के लिए सरल समय-सारणी (Time Table) तैयार करके अंकेक्षण कार्य सरलता से सम्पन्न किया जा सकता है।

सामयिक अंकेक्षण की हानियां (Disadvantage of Periodical Audit)

(1) यह स्पष्ट है कि चालू अंकेक्षण की भांति सामयिक अंकेक्षण में हिसाबकिताब की विस्तृत जांच नहीं हो पाती है क्योंकि अंकेक्षण कार्य के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल पाता है।

(2) सामयिक अंकेक्षण में कम समय मिलने के कारण अशुद्धियों के छूटने का भय रहता है।

(3) यह भी सुनिश्चित तर्क है कि चालू अंकेक्षण में अंकेक्षण-रिपोर्ट प्राप्त होने में देर नहीं होती है, वरन् सामयिक अंकेक्षण में अंकेक्षण की रिपोर्ट देर से मिल सकती है। शायद इसी कारण कभी-कभी सदस्यों की बैठक बुलाने में देर हो जाती है और संस्था की व्यवस्था में बाधाएं उपस्थित हो सकती

(4) इन सभी दोषों के होने के कारण सामयिक अंकेक्षण के स्थान पर चालू अंकेक्षण अधिक प्रचलित है। विशेषकर बड़ी संस्थाओं में इसकी सर्वाधिक उपयोगिता है। इन संस्थाओं के लिए सामयिक अंकेक्षण अधिक लोकप्रिय नहीं हो सकता एवं इसकी व्यावहारिक उपयोगिता कम हो जाती है।

III. अन्तरिम अंकेक्षण (Interim Audit)

वर्ष के अन्त तक किया गया अंकेक्षण वार्षिक अंकेक्षण कहलाता है और वर्ष के बीच में किसी उद्देश्य के लिए किया गया अंकेक्षण ‘अन्तरिम अंकेक्षण’ कहलाता है। उदाहरणार्थ, यदि वर्ष के बीच में कोई कम्पनी अन्तरिम लाभांश (interim dividend) घोषित करती है तो उसे अन्तिम खाते तैयार अन्तिम खाते बनाने के पश्चात् लाभ की सही स्थिति मालूम करने के लिए अन्तरिम अंकेक्षण कराना पड़ता है। वास्तव में, अन्तरिम अंकेक्षण का एक अन्तरिक या अस्थायी उद्देश्य होता है।

अन्तरिम अंकेक्षण से अन्तिम अंकेक्षण का कार्य सुलभ माह हो जाता है और कर्मचारी कुशलता से कार्य करते हैं। गतलियां तथा धोखाधड़ी का शीघ्र पता चल सकता है और वर्ष वर्ष के अन्तिम खातों के बनाने में भी सहायता मिलती है।

चालू अंकेक्षण तथा सामयिक अंकेक्षण में अन्तर

(1) चालू अंकेक्षण वर्ष भर चलता रहता है जबकि सामयिक अंकेक्षण निश्चित समय या अवधि (सामान्यतः पूरे व वित्तीय वर्ष) के पश्चात किया जाता है।

(2) चालू अंकेक्षण में अंकेक्षण से पूर्व अन्तिम खाते नहीं बनते परन्तु सामयिक अंकेक्षण वित्तीय वर्ष समाप्त होने पर तथा अन्तिम खाते बनने के पश्चात् ही कराया जाता है।

(3) चालू अंकेक्षण बड़ी-बड़ी व्यापारिक संस्थाओं के लिए जहां लेन-देन अधिक होते हैं, जैसे बैंक आदि अधिक उपयोगी होता है। सामयिक अंकेक्षण छोटी संस्थाओं के लिए ही उपयोगी होता है।

(4) चालू अंकेक्षण में अंकेक्षक विस्तृत जांच करने का अवसर प्राप्त कर सकता है। परन्तु सामयिक अंकेक्षण में केवल परीक्षण जांच के माध्यम से ही अंकेक्षण सम्भव हो सकता है।

(5) चालू अंकेक्षण में संस्था के कर्मचारियों के अधिक सतर्क हो जाने की सम्भावना रहती है जो सामयिक अंकेक्षण में नहीं हो सकती।

(6) चालू अंकेक्षण में अधिक व्यय होता है जितना सामयिक अंकेक्षण में नहीं होता।

चालू अंकेक्षण तथा अन्तरिम अंकेक्षण में अन्तर

(1) चालू अंकेक्षण में अंकेक्षण का कार्य पूरे वर्ष भर अंकेक्षक की सुविधा के अनुसार चलता रहता है। जबकि अन्तरिम अंकेक्षण में अंकेक्षण का कार्य एक निश्चित तारीख तक ही चलकर पूरा हो जाता है।

(2) चालू अंकेक्षण में सम्पत्तियों तथा दायित्वों का सत्यापन अन्त में चिट्ठा तैयार हो जाने के पश्चात् किया जाता है, परन्तु अन्तरिम अंकेक्षण में सम्पत्तियों तथा दायित्वों का सत्यापन तभी होता है जबकि अन्तरिम अंकेक्षण किया जाता है।

(3) चालू अंकेक्षण में तलपट बनाने की आवश्यकता नहीं होती। हां, वर्ष के अन्त में तलपट अवश्य बनता है परन्तु अन्तरिम अंकेक्षण वर्ष में जब और जितनी बार होगा उतनी ही बार तलपट बनाया जायेगा।

(4) चालू अंकेक्षण में वर्ष के अन्त में ही अंकेक्षक अपनी रिपोर्ट देता है बीच-बीच में नहीं, परन्तु अन्तरिम अंकेक्षण में जब भी अंकेक्षण होगा तब ही रिपोर्ट देना आवश्यक होता है।

अन्तरिम अंकेक्षण तथा आन्तरिक अंकेक्षण में अन्तर

(1) अन्तरिम अंकेक्षण वर्ष के बीच में किसी विशेष उद्देश्य के लिए कराया जाता है, जबकि आन्तरिक अंकेक्षण संस्था की कार्य-व्यवस्था का ही अंग मात्र है।

(2) अन्तरिम अंकेक्षण के लिए अंकेक्षक बाहर से आता है, लेकिन आन्तरिम अंकेक्षक (Internal Auditor) संस्था का ही कर्मचारी होता है।

(3) अन्तरिम अंकेक्षण में प्रायः सम्पूर्ण खातों को पूर्णतया बन्द कर देने के पश्चात् जांच की जाती है क्योंकि इसका विशेष उद्देश्य होता है। आन्तरिक अंकेक्षण हिसाब-किताब लिखने के साथ ही चलता रहता है।

(4) अन्तरिम अंकेक्षण में अंकेक्षक का कार्य एक निश्चित तारीख तक चलने के पश्चात् पूरा हो जाता है। लेकिन आन्तरिक अंकेक्षण संस्था के जीवन काल में निरन्तर चालू रहता है।

(5) अन्तरिम अंकेक्षण में अंकेक्षक अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करता है। आन्तरिक अंकेक्षण में रिपोर्ट देने का प्रश्न ही नहीं उठता।

(6) अन्तरिम अंकेक्षण संस्था की आवश्यकता पर आधारित होता है अर्थात् जब आवश्यकता होगी तभी अंकेक्षण कराया जायेगा, आन्तरिक अंकेक्षण एक संस्था के संगठन एवं व्यवस्था पर आधारित होता है।

IV. लागत अंकेक्षण (Cost Audit)

लागत या परिव्यय अंकेक्षण लागत लेखों की शुद्धता का सत्यापन एवं लागत लेखांकन की योजना के अनसार क्रियान्वयन की जांच करना है। वर्तमान समय में कम्पनी अधिनियम, 1956 की धारा 233B के अन्तर्गत केन्द्रीय सरकार को यह अधिकार है कि जहां आवश्यक समझे कम्पनियों को लागत लेखे रखने और उनका अंकेक्षण कराने का आदेश दे सकती है।

लागत अंकेक्षण के अन्तर्गत अंकेक्षक इस बात की जांच करता है कि लागत विवरण सही रूप में बनाये गये हैं और वह उत्पादन की लागत का सही एवं सच्चा चित्रण प्रस्तुत करते हैं।

लागत अंकेक्षण के लाभ (Advantages of Cost Audit)

(i) उत्पादन क्षमता का ज्ञान,

(ii) उत्पादन की गुणवत्ता में वृद्धि,

(iii) लागत नियन्त्रण में सहायक,

(iv) कर्मचारियों की कार्यकुशलता में वृद्धि,

(v) अनुत्पादक व्ययों एवं क्षयों में कमी,

(vi) लागत नियोजन में सहायक,

(vii) उत्तरदायित्व का निर्धारण।

लागत अंकेक्षण की हानि (Disadvantages of Cost Audit)-(i) प्रबन्ध कार्य में हस्तक्षेप,

(ii) वित्तीय भार

Audit Types Classification Study

V. प्रबन्धकीय अंकेक्षण (Management Audit)

प्रबन्धकीय अंकेक्षण एक जटिल काम है। इसका सम्बन्ध प्रबन्ध की अनेक प्रक्रियाओं जैसे क्रय प्रवन्ध, उत्पादन, विक्रय प्रबन्ध, आदि से जुड़ा है। यह प्रबन्ध की विभिन्न प्रणालियों एवं कार्यों के अनुपालन का मूल्यांकन करता है। यह कुछ तटस्थ मानकों के आधार पर प्रबन्ध के अनेक कार्यों एवं नीतियों का परीक्षण, सर्वेक्षण एवं मूल्यांकन करता है।

प्रबन्धकीय अंकेक्षण के लाभ (Advantage of Management Audit)-

(i) संस्था की योजनाओं की सफलता का परीक्षण,

(ii) प्रबन्धकों द्वारा नियन्त्रण व्यवस्था लागू करने में सहायक,

(iii) कार्यकुशलता की जांच।

प्रबन्धकीय अंकेक्षण के दोष (Disadvantage of Management Audit)—(i) खर्चीली व्यवस्था,

(ii) छोटे उद्योगों के लिए अनुपयुक्त।

V I. कर अंकेक्षण (Tax Audit).

आयकर अधिनियम, 1961 के प्रावधानों के अन्तर्गत ऐसी संस्थाएं जिनका आवर्त (turnover) या प्राप्तियां (receipts) एक निर्धारित सीमा से ज्यादा हैं या पेशेवर व्यक्तियों की आय निर्धारित सीमा से ज्यादा हो उन्हें आयकर अधिनियम की धारा 244 के अन्तर्गत अनिवार्य कर अंकेक्षण कराना होता है। इस प्रकार के अंकेक्षण का उद्देश्य आयकर अधिकारियों को सही आयकर का निर्धारण करने में सहायता प्रदान करना

VII. सामाजिक अंकेक्षण (Social Audit)

किसी संस्था के सामाजिक निष्पादन का मूल्यांकन किया जाना ही सामाजिक अंकेक्षण के अर्थ में जाना जाता है। बड़ी व्यावसायिक संस्थाओं में व्यावसायिक उद्देश्यों के अतिरिक्त सामाजिक उत्तरदायित्व निभाने की अपेक्षा की जाती है। वस्तुतः ऐसी संस्थाओं का उद्देश्य मात्र लाभ कमाना ही नहीं होता बल्कि उनके सामाजिक उद्देश्य भी होते हैं। इनकी सामाजिक गतिविधियों के मूल्यांकन को ही सामाजिक अंकेक्षण कहा जाता है। ये सामाजिक उत्तरदायित्व का निर्वाह दो रूप में करते हैं :

(i) आन्तरिक सामाजिक उत्तरदायित्व (Internal Social Responsibilities)—इसके अन्तर्गत संस्था के कर्मचारियों के प्रति अप्रत्यक्ष मौद्रिक सेवाएं सम्मिलित की जाती हैं, जैसे—(a) Providend Fund, Gratuity, Bonus, Insurance, Leave Incashment, Medical Facilities, Housing Facilities, Canteen Facilities. Promotion of Staff, Recreation and Entertainment for Staff etc.. (b) कार्यस्थल एवं इर्द-गिर्द के वातावरण में सुधार, (c) वैधानिक देनदारियों का समय पर भुगतान, (d) सस्ती दर पर अच्छी किस्म की वस्तुएं प्रदान करना, आदि।।

(ii) बाह्य सामाजिक उत्तरदायित्व (External Social Responsibilities)—इसके अन्तर्गत संस्था के द्वारा प्रदान की जाने वाली सुविधाएं समाज (Society) से सम्बन्धित होती हैं, जैसे—(a) सड़क, पार्क, खेल का मैदान तथा पीने के पानी की व्यवस्था करना, (b) वातावरण में सुधार के लिए वृक्षारोपण करना, (c) नये व्यवसाय की स्थापना कर रोजगार के अवसर प्रदान करना, आदि।

संस्थाओं द्वारा प्रदान की गई इन सुविधाओं का मूल्यांकन किया जाना ही सामाजिक अंकेक्षण कहलाता है।

Audit Types Classification Study

VIII. पर्यावरण अंकेक्षण (Environmental Audit)

वर्तमान समय में निर्माणी संस्थाओं द्वारा वन एवं पर्यावरण मन्त्रालय के आदेश की पूर्ति हेतु पर्यावरण अंकेक्षण भी कर रहे हैं। इस प्रकार के अंकेक्षण में उत्पादन कार्य में प्रयक्त मशीनों, तकनीक व प्रक्रिया आदि की उपयुक्तता की जांच, प्रदूषण के रोकथाम के उपायों की जांच आदि सम्मिलित हैं।

IX . रोकड़ अंकेक्षण (Cash Audit)

यदि कोई संस्था अपने एक विशेष अवधि के केवल रोकड के लेन-देनों की जांच करने के लिए अंकेक्षक की नियुक्ति करती है, तो वह रोकड का अंकेक्षण’ कहलाता है। इसके अन्तर्गत वह आवश्यक प्रमाणों की सहायता से केवल रोकड बही की जांच तक सीमित होता है। अतः इस सीमा का उल्लेख अपनी रिपोर्ट में अवश्य करना चाहिए।

रोकड़ अंकेक्षण के लाभ (Advantages of Cash Audit)-

(i) रोकड़ के गबन पर नियन्त्रण,

(ii) अनावश्यक व्ययों की सूचना प्राप्त होना।

रोकड़ अंकेक्षण के दोष (Disadvantages of Cash Audit) (i) अन्य लेखा पुस्तकों की जांच नहीं,

(ii) प्रतिवेदन अपूर्ण होना।

X निपुणता अंकेक्षण (Efficiency Audit)

_व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा के इस युग में प्रत्येक व्यापारी अपने व्यवसाय की उन्नति करना चाहता है। प्रगति के लिए कार्य-कुशलता तथा साधनों का अधिकतम उपयोग जरूरी होता है। अतः इस प्रकार के अंकेक्षण में अंकेक्षण का प्रमुख कार्य खातों की जांच करना नहीं होता है वरन् व्यावसायिक नीतियों एवं योजनाओं के शीघ्र निष्पादन के लिए आवश्यक परामर्श देना होता है। हमारे देश में निपुणता अंकेक्षण को कोई व्यापारिक महत्व नहीं दिया जाता। वैधानिक दृष्टि से भी इस प्रकार के अंकेक्षण को अभी तक मान्यता नहीं दी गई है।

XI चिठे का अंकेक्षण (Balance Sheet Audit)

जैसा कि स्पष्ट है, चिट्टे के अंकेक्षण में अंकेक्षक केवल धन-सम्पत्ति, पूंजी, देनदारियां, आदि की ही जांच करता है। केवल वे ही प्रपत्र या खाते देखे जाते हैं जिनका चिट्टे से सम्बन्ध होता है। अन्य लेन-देन या लाभ-हानि खाते के सम्बन्ध में यह अंकेक्षण नहीं होता। अंकेक्षण का कार्य केवल चिट्टे तक सीमित रहता है। भारत में अन्तिम अंकेक्षण और चिट्टे के अंकेक्षण में कोई विशेष अन्तर नहीं माना जाता है।

चिठे का अंकेक्षण इंगलैण्ड में प्रयोग में नहीं आता है और न उन उपनिवेशों में ही प्रयोग में आता है जहां कम्पनी अधिनियम इंगलैण्ड के कम्पनी अधिनियम पर आधारित है। इस प्रकार का अंकेक्षण खास तौर से संयुक्त राज्य अमरीका (U.S.A.) में प्रयोग में आता है।

चिट्ठे का अंकेक्षण वास्तव में आंशिक अंकेक्षण (Partial audit) का ही स्वरूप है। इसके अन्तर्गत केवल चिट्ठे की मदों (items) की जांच होती है। इस प्रकार के अंकेक्षण में अंकेक्षक केवल सत्यापन से ही अपने कार्य को सीमित नहीं रखता है और लाभ के सम्बन्ध में उसको खाताबही से आय व व्यय की मदों की जांच करनी होती है। उसको लाभ-हानि खाते की जांच सम्पत्तियों से सम्बन्धित आय (जैसे, विनियोग पर प्राप्त लाभांश) और दायित्वों से सम्बन्धित व्यय (जैसे, ऋणपत्रों पर ब्याज) के लिए करनी होगी।

चिट्टे के अंकेक्षण के लाभ (Advantages of Balance Sheet Audit)-(i) केवल चिठे की मदा के अंकेक्षण से समय की बचत,

(ii) आन्तारक नियन्त्रण प्रणाली को सुदृढ़ करने में सहायक क्योंकि यह अंकेक्षण उन्हीं संस्थाओं में होता है जहां आन्तरिक नियन्त्रण की प्रणाली प्रचलित है,

(iii) बड़ी संस्थाओं के लिए उपयुक्त।

चिट्टे के अंकेक्षण के दोष (Disadvantages of Balance sheet Audit)-(i) छोटी संस्थाआ क लिए अनुपयुक्त,

(i) लाभ-हानि का प्रमाणित न होना।

Audit Types Classification Study

XII. विस्तृत अंकेक्षण (Detailed Audit)

यह पूर्ण अंकेक्षण से कुछ भिन्न है। पूर्ण अंकेक्षण में जहां सभी खातों तथा लेन-देन की पूरी जांच होती है, वहां विस्तृत अंकेक्षण में गहन जांच की जाती है, वहां ‘पूर्ण’ अंकेक्षण सब प्रकार से पूर्ण किया जाता है, परन्तु विस्तृत अंकेक्षण का क्षेत्र सीमित होता है। विस्तृत जांच के लिए चुने हुए व्यवहारों की परीक्षण जांच (test checking) की जाती है।

XIII. संगामी अंकेक्षण (Concurrent Audit)

व्यवसाय के बढ़ते हुए क्षेत्र व विकास के कारण विभिन्न व्यवसायों ने संगामी अंकेक्षण की व्यवस्था की है। वर्तमान में यह अंकेक्षण बैंकों में अधिक लोकप्रिय है। इस प्रकार के अंकेक्षण में किसी लेनदेन के सम्बन्ध में उसके प्रपत्रों की वैधता पूर्णता की जांच के साथ उसके सम्बन्ध में अपनायी गई प्रक्रिया की जांच भी की जाती है। यह जांच संस्था के कर्मचारी द्वारा ही समयसमय पर की जाती है।

XIV. पूर्ण अंकेक्षण (Complete Audit)

जब अंकेक्षक किसी एक संस्था के प्रत्येक लेन-देन, जोड, बाकी, पुस्तक, प्रविष्टि तथा खाते की जांच, प्रत्येक आवश्यक प्रमाण-पत्र, प्रसंविदे, लेख या पत्र-व्यवहार की सहायता से करता है तो ऐसा अंकेक्षण पूर्ण अंकेक्षण कहलाता है। संक्षेप में, इसमें जांच से कोई बात नहीं छूटती है। किन्तु पूर्ण अंकेक्षण एक बड़ी संस्था में सम्भव नहीं है और न व्यावहारिक ही है।

पूर्ण अंकेक्षण के लाभ (Advantages of Complete Audit)

(i) समस्त अशुद्धियों एवं छल-कपटों का ज्ञान होना,

(ii) कर्मचारियों पर नैतिक प्रभाव,

(iii) संस्था के स्वामियों का विश्वास,

(iv) ख्याति में वृद्धि।

पूर्ण अंकेक्षण के दोष (Disadvantages of Complete Audit)–

(i) अधिक समय का लगना,

(ii) अमितव्ययिता का होना,

(iii) गहन जांच सम्भव नहीं,

(iv) प्रतिवेदन का विलम्ब से तैयार होना।

XV. आंशिक अंकेशण (Partial Audit)

हिसाब किताब के किसी विशेष भाग की जांच अथवा किसी विशेष अवधि के खातों की जांच ‘आंशिक अंकेक्षण’ कहलाती है। आंशिक अंकेक्षण व्यावहारिक नहीं है। न तो कोई नियोक्ता ऐसा अंकेक्षण करवाना चाहेगा और न ही अंकेक्षक ऐसे कार्य के लिए तैयार होगा।

आंशिक अंकेक्षण के लाभ (Advantages of Partial Audit)

(i) अशुद्धियों एवं छल-कपट का ज्ञान,

(ii) अंकेक्षण कार्य की तुरन्त समाप्ति,

(iii) गहन जांच सम्भव।

आंशिक अंकेक्षण के दोष (Disadvantages Partial Audit)

(i) अंकेक्षण का क्षेत्र सीमित होना,

(ii) अव्यावहारिक होना,

(iii) बड़ी संस्थाओं के लिए अनुपयुक्त,

(iv) वित्तीय लेखों की विश्वसनीयता में कमी।

Audit Types Classification Study

अंकेक्षण के प्रकारों में अन्तर

(DIFFERENCE BETWEEN TYPES OF AUDIT)

  1. चाल अंकेक्षण तथा सामयिक अंकेक्षण में अन्तर

(DIFFERENCE BETWEEN CONTINUOUS AUDIT AND PERIODICAL AUDIT)

(1) समय (Time) चालू अंकेक्षण वर्ष भर चलता रहता है, परन्तु सामयिक अंकेक्षण निश्चित समय या अवधि (सामान्यतः पूरे वित्तीय वर्ष) के पश्चात् किया जाता है अर्थात लेखा अवधि की समाप्ति के पश्चात किया जाता है।

(2) अन्तिम खातों का निर्माण (Preparation of Final Accounts) चालू अंकेक्षण में अंकेक्षण से पूर्व अन्तिम खाते नहीं बनते परन्तु सामयिक अंकेक्षण वित्तीय वर्ष समाप्त होने पर अन्तिम खाते बनाने के । पश्चात् ही कराया जाता है।

(3) उपयुक्तता (Suitability) चालू अंकेक्षण बडी-बडी व्यापारिक संस्थाओं जहां लेन-देन अधिक होते हैं: जैसे, बैंक, आदि के लिए अधिक उपयोगी होता है। सामयिक अंकेक्षण छोटी संस्थाओं के लिए उपयोगी होता है।

(4) जांच का स्वभाव (Nature of Checking)—चालू अंकेक्षण में इसके पूरे वर्ष चलते रहने के कारण अंकेक्षक विस्तृत जांच करने का अवसर प्राप्त कर सकता है, परन्तु सामयिक अंकेक्षण में केवल परीक्षण जांच के माध्यम से ही अंकेक्षण सम्भव हो सकता है।

(5) नैतिक प्रभाव (Moral Effect) चाल अंकेक्षण में संस्था के कर्मचारियों के अधिक सतर्क हो जाने की सम्भावना रहती है जो सामयिक अंकेक्षण में नहीं हो सकती है। अर्थात् चालू अंकेक्षण में कर्मचारियों पर अंकेक्षक का नैतिक प्रभाव होता है क्योंकि उसके कार्य की जांच का भय सदा बना रहता है।

(6) मितव्ययता (Economy) चालू अंकेक्षण में अधिक व्यय होता है। सामयिक अंकेक्षण में व्यय की मात्रा कम होती है। अंकेक्षक वर्ष भर अंकेक्षण करने के लिए अधिक पारिश्रमिक लेता है।

(7) अशुद्धि एवं छलकपट की जांच एवं रोक (Check of Errors and Frauds) चालू अंकेक्षण में खातों की गहन जांच एवं सतत जांच होने से छल-कपट की सूचना शीघ्र प्राप्त होती है और उसे रोकने के लिए आवश्यक कदम भी शीघ्र उठाये जा सकते हैं। सामयिक अंकेक्षण में लेखों की संख्या अधिक होने पर विस्तृत जांच नहीं हो पाती तथा अशुद्धियां व छल-कपट पकड़ में न आने की सम्भावना रहती है।

(8) निर्भरता (Dependence)—चालू अंकेक्षण के लिए सामयिक अंकेक्षण पर निर्भरता नहीं रहती वरन् सामयिक अंकेक्षण चालू अंकेक्षण पर निर्भर रहता है।

(9) कार्य में रुकावट (Obstruction in Work) चालू अंकेक्षण में अंकेक्षण का कार्य निरन्तर होने पर कर्मचारियों को अपने कार्य को करने में बाधा आती है। लेखा-पुस्तकें अंकेक्षक द्वारा बार-बार मांगने पर कार्य में अवरोध होता है। सामयिक अंकेक्षण में कर्मचारियों को अपने कार्य करने में बाधा कम होती है।

(10) अंकेक्षक को सुविधा (Helpful for Auditor)—चालू अंकेक्षण की अपेक्षा सामयिक अंकेक्षण अंकेक्षक के लिए अधिक सुविधाजनक है, क्योंकि उसे बार-बार या नित्य अंकेक्षण के लिए नहीं आना पड़ता

चालू अंकेक्षण एवं मध्य (अन्तरिम) अंकेक्षण में अन्तर

(DIFFERENCE BETWEEN CONTINUOUS AUDIT AND INTERIM AUDIT)

(1) समय (Time) चालू अंकेक्षण में अंकेक्षण का कार्य पूरे वर्ष भर अंकेक्षक की सुविधा के अनुसार चलता रहता है, जबकि मध्य अंकेक्षण में अंकेक्षण का कार्य एक निश्चित तारीख तक ही चलकर पूरा हो जाता है।

(2) सत्यापन (Verification)–चालू अंकेक्षण में सम्पत्तियों तथा दायित्वों का सत्यापन अन्त में चिट्ठा तैयार हो जाने के पश्चात् किया जाता है परन्तु मध्य अंकेक्षण में सम्पत्तियों तथा दायित्वों का सत्यापन तभी होता है जबकि मध्य अंकेक्षण किया जाता है।

(3) तलपट (Trial Balance) चालू अंकेक्षण में तलपट बनाने की आवश्यकता नहीं होती है। हां, वर्ष के अन्त में तलपट अवश्य बनता है, परन्तु मध्य अंकेक्षण वर्ष में जब और जितनी बार होगा उतनी ही बार तलपट बनाया जायेगा।

(4) प्रतिवेदन (Report) चालू अंकेक्षण में वर्ष के अन्त में ही अंकेक्षक अपनी रिपोर्ट देता है बीच-बीच में नहीं. परन्तु मध्य अंकेक्षण में जब भी अंकेक्षण होगा. तभी रिपोर्ट देना आवश्यक होता है।

(5) क्षेत्र (Scope)-चालू अंकेक्षण का कार्य-क्षेत्र विस्तृत होता है, क्योंकि इसके अन्तर्गत सम्पूर्ण । लेखों की निरन्तर जांच होती है। मध्य अंकेक्षण में अंकेक्षण का कार्य-क्षेत्र किसी अवधि के लेखों की जांच तक सीमित होता है।

(6) कर्मचारियों को सुविधा (Convenience to Employee) चाल अंकेक्षण में कर्मचारियों के कार्य में बाधा होती है, क्योंकि अंकेक्षक समय-समय पर विभिन्न सचनाएं मांगता है। मध्य अंकेक्षण में कर्मचारियों को अपने कार्य करने में कम बाधा आती है।

(7) उद्देश्य (Object)—चालू अंकेक्षण व्यवसाय के समस्त लेखों की जांच कर उसके सही होने को प्रमाणित करता है, परन्तु मध्य अंकेक्षण अनुमानित लाभ-हानि किसी विशेष उद्देश्य के ज्ञात करने के लिए किया जाता है (अन्तरिम बोनस की घोषणा करने हेत)।

Audit Types Classification Study

मध्य अंकेक्षण तथा आन्तरिक अंकेक्षण में अन्तर

(DIFFERENCE BETWEEN INTERIM AUDIT AND INTERNAL AUDIT)

(1) उद्देश्य (Object) मध्य अंकेक्षण वर्ष के बीच में किसी विशेष उद्देश्य के लिए कराया जाता है, जबकि आन्तरिक अंकेक्षण संस्थान की कार्य-व्यवस्था का ही अंग मात्र है।

(2) अंकेक्षक की नियुक्ति (Appointment of Auditor)—मध्य अंकेक्षण के लिए अंकेक्षक बाहर से आता है, लेकिन आन्तरिक अंकेक्षक (Internal Auditor) संस्था का ही कर्मचारी होता है।

(3) खातों का बन्द करना (Closing of Accounts) मध्य अंकेक्षण में प्रायः सम्पूर्ण बातों को पूर्णतया बन्द कर देने के पश्चात् जांच की जाती है, क्योंकि इसका विशेष उद्देश्य होता है। आन्तरिक अंकेक्षण हिसाब-किताब लिखने के साथ ही साथ चलता रहता है।

(4) अवधि (Period) मध्य अंकेक्षण में अंकेक्षण का कार्य एक निश्चित तारीख तक चलने के पश्चात् पूरा हो जाता है, लेकिन आन्तरिक अंकेक्षण संस्था के जीवन काल में निरन्तर चालू रहता है।

(5) प्रतिवेदन (Report) मध्य अंकेक्षण में अंकेक्षक अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करता है। आन्तरिक अंकेक्षण में रिपोर्ट देने का प्रश्न ही नहीं उठता।

(6) आवश्यकता (Need) मध्य अंकेक्षण संस्था की आवश्यकता पर आधारित है अर्थात् जब आवश्यकता होगी तभी अंकेक्षण कराया जायेगा। आन्तरिक अंकेक्षण एक संस्था के संगठन एवं व्यवस्था पर आधारित होता

है।

(7) क्षेत्र (Scope)—मध्य अंकेक्षण का क्षेत्र सीमित होता है, क्योंकि यह वित्तीय खातों को शीघ्र तैयार करवाने के उद्देश्य से वर्ष के मध्य में कराया जाता है। आन्तरिक अंकेक्षण का क्षेत्र व्यापक होता है क्योंकि इसके अन्तर्गत वित्तीय लेखों के अतिरिक्त व्यवसाय के अन्य पहलुओं की भी जांच की जाती है।

आन्तरिक अंकेक्षण एवं चालू अंकेक्षण में अन्तर

(DIFFERENCE BETWEEN INTERNAL AUDIT AND CONTINUOUS AUDIT)

आन्तरिक तथा चालू अंकेक्षण दोनों में बहीखातों, प्रमाण-पत्रों इत्यादि की जांच वर्ष-पर्यन्त यानि वर्ष भर होती रहती है किन्तु दोनों में काफी अन्तर हैं जो अग्रांकित हैं :

(1) अंकेक्षक की नियुक्ति (Appointment of Auditor)-आन्तरिक अंकेक्षण में अंकेक्षकों की नियुक्ति कर्मचारियों में से ही की जाती है। चालू अंकेक्षण के अन्तर्गत अंकेक्षण कार्य हेतु बाहरी व्यक्ति को अंकेक्षक (चार्टर्ड एकाउण्टेण्ट) के रूप में नियुक्त किया जाता है।

(2) अंकेक्षक की योग्यता (Qualification of the Auditor)-आन्तरिक अंकेक्षण के अन्तर्गत अंकेक्षक में किसी विशेष योग्यता की आवश्यकता नहीं पड़ती है, परन्तु उन्हें योग्य व अनुभवी होना आवश्यक है। चालू अंकेक्षण के अंकेक्षक को योग्यता प्राप्त अंकेक्षक होना आवश्यक है, जैसे–चार्टर्ड एकाउण्टेण्ट।

(3) अवधि (Period) आन्तरिक अंकेक्षण में अंकेक्षण कार्य पूरे वर्ष होता रहता है तथा जांच का कार्य दैनिक लेखा-पुस्तकों व साप्ताहिक लेखा-पुस्तकों के आधार पर होता है। सामान्य तौर पर आन्तरिक अंकेक्षण का कार्य नित्य दिन होता है। चालू अंकेक्षण के अन्तर्गत जांच की क्रिया तो वर्ष भर चलती है किन्तु . जांच की क्रिया प्रतिदिन न होकर एक निश्चित या अनिश्चित अन्तराल पर होती है।

(4) अंकेक्षक का दायित्व (Liabilities of the Auditor) आन्तरिक अंकेक्षण में अंकेक्षक का उत्तरदायित्व प्रबन्ध (नियोक्ता) के प्रति होता है। चालू अंकेक्षण में अंकेक्षक का दायित्व कम्पनी के स्वामी अर्थात् अंशधारियों के प्रति होता है।

(5) नैतिक प्रभाव (Moral Effect) आन्तरिक अंकेक्षण में अंकेक्षक कर्मचारियों के ही मध्य में नियुक्त किया जाता है, जिससे कर्मचारियों के बीच उसका प्रभाव नहीं बन पाता है। चालू अंकेक्षण में अंकेक्षक एक बाहरी व्यक्ति होता है जिसका नैतिक प्रभाव संस्था के कर्मचारियों पर पड़ता है।

(6) प्रतिवेदन (Report) आन्तरिक अंकेक्षण में अंकेक्षण की क्रिया के बाद प्रतिवेदन तैयार नहीं किया। जाता है। चालू अंकेक्षण में अंकेक्षण समाप्त होते ही प्रतिवेदन तैयार किया जाता है।

(7) निर्भरता (Auditor) आन्तरिक अंकेक्षण प्रबन्ध पर निर्भर रहता है किन्तु चालू अंकेक्षण प्रबन्ध से स्वतन्त्र होता है।

Audit Types Classification Study

प्रश्न

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1 चालू अंकेक्षण से आप क्या समझते हैं? इस प्रकार के अंकेक्षण के लाभ तथा दोष बताइए। उनकी हानियों से बचने के उपाय भी समझाइए।

What do you mean by Continuous Audit ? Explain the merits and demerits of this type of audit. Also explain the remedies for safe guarding from its ill affacts.

2. निम्न पर टिप्पणियां लिखिए :

(i) अन्तरिम अंकेक्षण

(ii) वार्षिक अंकेक्षण

(iii) वैधानिक अंकेक्षण

(iv) चालू अंकेक्षण

Write short notes on :

(i) Interim audit

(ii) Annual audit

(iii) Statutory audit

(iv) Continuous audit

3. आन्तरिक अंकेक्षण से आप क्या समझते हैं? आन्तरिक अंकेक्षण तथा स्वतंत्र अंकेक्षण में अन्तर स्पष्ट कीजिए।

What do you mean by Internal Audit ? Explain the difference between Internal audit and Independent audit.

4. सामयिक अंकेक्षण से आप क्या समझते हैं? चालू अंकेक्षण एवं सामयिक अंकेक्षण में अन्तर स्पष्ट कीजिए।

What do you mean by Periodical Audit. Explain the difference between continuous audit and periodical audit.

लघु उत्तरीय प्रश्न

1 आन्तरिक अंकेक्षण से आप क्या समझते हैं?

2. आन्तरिक अंकेक्षण तथा आन्तरिक नियन्त्रण में क्या अन्तर है?

3. रोकड़ का आन्तरिक नियन्त्रण किस प्रकार किया जाएगा?

4. अंकेक्षक आन्तरिक निरीक्षण व्यवस्था पर कहां तक विश्वास कर सकता है ?

5. स्थायी सम्पत्तियों के सम्बन्ध में आन्तरिक नियन्त्रण कैसे होगा?

6. आन्तरिक नियन्त्रण के प्रमुख उद्देश्य क्या हैं ?

7. आन्तरिक निरीक्षण के पांच लाभ बताइए।

8. दुकान पर होने वाली बिक्री पर नियन्त्रण किस प्रकार होगा?

9. डाक द्वारा बिक्री पर नियन्त्रण की कैसी व्यवस्था करनी चाहिए?.

10. भगतानों के सम्बन्ध में आन्तरिक निरीक्षण की विधि संक्षेप में लिखिए।

11. क्रय वापसी के सम्बन्ध में आन्तरिक नियन्त्रण प्रथा में किस प्रकार अपनायी जा सकती है?

12. निम्नलिखित को समझाइए :

(अ) आन्तरिक अंकेक्षण आन्तरिक निरीक्षण को स्थानापन्न नहीं कर सकता।

(a) आन्तरिक अंकेक्षण वधानिक अकेक्षण का स्थान ग्रहण नहीं कर सकता।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

1 आन्तरिक निरीक्षण क्या है?

2. अधिसमय किसे कहते हैं ?

3. आन्तरिक नियन्त्रण प्रणाली के दो लाभ लिखिए।

4. नकद प्राप्तियों के लिए अलग से कर्मचारी की नियुक्ति क्यों करनी चाहिए?

5. रोकड़ पुस्तक में रसीद का नम्बर क्यों डाला जाना चाहिए?

6. क्रय पर आन्तरिक निरीक्षण का क्या उद्देश्य है?

7. विक्रय पर आन्तरिक निरीक्षण का उद्देश्य बताइए।

8. बिक्री के सम्बन्ध में कौन-कौन सी चार गड़बड़ी हो सकती हैं?

9. मजदूरी के भुगतान के सम्बन्ध में होने वाली चार गड़बड़ियों को बताओ।

10. क्या आन्तरिक निरीक्षण की सन्तोषजनक प्रथा होने पर अंकेक्षक अपने उत्तरदायित्व से मुक्त हो सकता है?

11. सामग्री के लिए आन्तरिक नियन्त्रण प्रथा में होने वाले दो लाभ लिखिए।

12. आन्तरिक नियन्त्रण प्रणाली के दो उद्देश्य बताइए।

13. आन्तरिक निरीक्षण की एक परिभाषा लिखिए।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1 व्यवसाय के कार्यों को कर्मचारियों में योग्यतानुसार बांटने की प्रक्रिया कहलाती है : (अ) आन्तरिक अंकेक्षण

(ब) आन्तरिक नियन्त्रण

(स) आन्तरिक निरीक्षण

(द) इनमें से कोई नहीं

2. आन्तरिक निरीक्षण का प्रमुख उद्देश्य होता है :

(अ) त्रुटियों व छल-कपट का पता चलाना

(ब) खातों की जांच करना

(स) संस्था के कार्यों का कर्मचारियों में विभाजन करना

(द) सम्पत्तियों का सत्यापन करना

3. भुगतान का सर्वोत्तम माध्यम है :

(अ) नकद

(ब) चेक

(स) बिल

(द) इनमें से कोई नहीं

4. निम्न में से कौन-सी पद्धति मजदूरी के लेखे के लिए उपयुक्त है?

(अ) मजदूरी रजिस्टर

(ब) मजदूरी तालिका

(स) मजदूरी कार्ड

(द) इनमें से कोई नहीं

5. क्रय का सर्वमान्य सिद्धान्त क्या है ?

(अ) सबसे अच्छा माल

(ब) सबसे सस्ता माल

(स) सबसे अच्छा व सस्ता

(द) इनमें से कोई नहीं

Audit Types Classification Study

chetansati

Admin

https://gurujionlinestudy.com

Leave a Reply

Your email address will not be published.

Previous Story

BCom 3rd Year Auditing Objects Advantages Study Material Notes in hindi

Next Story

BCom 3rd Year Auditing Principles Techniques Preparation Procedure Notes in hindi

Latest from Auditing notes in hindi