BCom 3rd Year Auditing Capital & Revenue Study Material Notes In Hindi

BCom 3rd Year Auditing Capital & Revenue Study Material Notes In Hindi: Allocation of Expenditure Between Capital And Revenue Few Important Rules  Deferred Revenue Expenditure ( This Post Is Most Important For BCom 3rd Year Examination For BCom Students )

Auditing Capital & Revenue
Auditing Capital & Revenue

BCom 3rd Year Corporate Accounting Underwriting Study Material Notes in hindi

पूंजी और आय

[CAPITAL AND REVENUE]

व्यापारिक लेन-देनों को दो भागों में विभाजित किया जाता है, एक पूंजीगत तथा दूसरा आयगत। लेन-देन के होने के साथ-साथ यह जानना आवश्यक हो जाता है कि उसका स्वभाव कैसा है, ताकि उसी प्रकार उसका लेखा किया जा सके। अतः यह स्पष्ट हो जाता है कि इस अन्तर को ध्यान में रखे बिना लाभ-हानि खाता तथा चिट्ठा- किसी संस्था की स्थिति को सही रूप से प्रकट नहीं कर सकता है। इस अन्तर के करने और थोड़ी-सी लापरवाही करने से संस्था के खातों में भांति-भांति की अशुद्धियां हो सकती हैं।

पर पूंजीगत तथा आयगत मदें हैं क्या? यह समस्या बड़ी जटिल है, क्योंकि ये शब्द बड़े ही व्यापक हैं और लेन-देनों का इस प्रकार बांटना तथा अन्तर करना कठिन हो जाता है। हो सकता है कि सैद्धान्तिक दृष्टि से यह विभाजन सुलभ हो जाए मगर व्यावहारिक दृष्टि से यह कार्य पर्याप्त कठिन हो जाता है।

पूंजीगत तथा आयगत मदों को निम्नांकित भागों में विभाजित किया जा सकता है:

(1) पूंजीगत व्यय और आयगत व्यय (Capital Expenditure and Revenue Expenditure);

(2) पूंजीगत आय और आयगत आय (Capital Income and Revenue Income);

(3) पूंजीगत प्राप्ति और आयगत प्राप्ति (Capital Receipt and Revenue Receipt);

(4) पूंजीगत भुगतान और आयगत भुगतान (Capital Payment and Revenue Payment);

(5) पंजीगत लाभ और आयगत लाभ (Capital Profit and Revenue Profit);

(6) पूंजीगत हानि और आयगत हानि (Capital Loss and Revenue Loss)।

पूंजीगत हानि और आयगत हानि शब्दों के लिए उपर्युक्त शब्द लिख दिये गये हैं और लिखना काफी सुलभ है, परन्तु स्वयं इन शब्दों के अर्थ में महान् अन्तर है। जैसा कि ऊपर कहा गया है, इस अन्तर को समझना आवश्यक है। यदि पूंजीगत हानि को आयगत हानि मान लिया जाए तो संस्था के लाभ में कमी हो जायेगी जिससे गुप्त संचय बनता रहेगा। परिणामस्वरूप, संस्था के अंशधारियों को कम लाभांश मिलेगा अथवा बिल्कुल ही नहीं मिल सकेगा और बाजार में अंशों का मूल्य गिर जायेगा। इसके विपरीत, यदि पूंजीगत लाभ को आयगत लाभ मान लिया जाए तो लाभों में वृद्धि हो जायेगी और इस आधार पर लाभांश बांटने पर धीरे-धीरे पूंजी में से लाभांश बंटता जायेगा और फलस्वरूप कम्पनी दिवालिया हो जायेगी।

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(1) पूंजीगत व्यय और आयगत व्यय

(Capital Expenditure and Revenue Expenditure )

पूंजीगत व्यय (Capital Expenditure) –

पूंजीगत व्ययों में नीचे लिखे व्यय सम्मिलित किये जाते हैं :

(i) स्थायी सम्पत्ति को प्राप्त करने का व्यय;

(ii) वर्तमान सम्पत्ति को स्थायी रूप से बढ़ाने (additions), विकास (improvement) या उत्पादन-शक्ति बढ़ाने (development) का व्यय;

(iii) व्यापार के लाभ कमाने की शक्ति को बढ़ाने का व्यय;

(iv) व्यापार के लिए पूंजी प्राप्त करने में किया गया व्यय; और

(v) पूंजीगत दायित्व मुक्त होने के सम्बन्ध में दी गयी राशि पूंजीगत व्यय है।

आयगत व्यय (Revenue Expenditure)

निम्नलिखित व्यय आयगत कहे जाते हैं:

(i)  अस्थायी सम्पत्ति के खरीदने में किये गये व्ययः

(ii) स्थायी सम्पत्ति को ठीक स्थिति में रखने का व्यय; जैसे—मरम्मत, नवीनीकरण और छोटे-छोटे हिस्सों को बदलने का व्यय;

(iii) वे खर्च जो व्यापार के दैनिक कार्यों के लिए करने पड़ते हैं:

(iv) उत्पाद को बेचने के लिए किये गये व्यय;

जैसेविज्ञापन व्यय, एजेण्टों का कमीशन, आदि;

और (v) आयगत दायित्वों से मुक्त होने के सम्बन्ध में दी गयी राशि आयगत व्यय है।

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(2) पूंजीगत आय और आयगत आय (Capital Income and Revenue Income)-पूजीगत आय वह आय होती है जो कम्पनी या फर्म की स्थायी सम्पत्तियों (Fixed Assets) को बेचने से प्राप्त होती है, जबकि आयगत आय वह होती है जो कम्पनी की अस्थायी या चाल सम्पत्तियों के बेचने से प्राप्त होती है। अतः इस कार्य में विशेष ध्यान दिया जाता है कि कौन-सी आय स्थायी सम्पत्तियों के बेचने से हुई है और कौन-सी आय चालू सम्पत्तियों से हुई है।

(3) पूंजीगत प्राप्ति और आयगत प्राप्ति (Capital Receipts and Revenue Receipts)—पूंजीगत प्राप्ति वह आय होती है, जो कि संस्था की अंशों के ऋणपत्रों आदि के निर्गमन से प्राप्त होती है, जबकि आयगत प्राप्तियां वह है जो माल या व्यापारिक प्राप्तियों से प्राप्त होती हैं।

(4) पूंजीगत भुगतान और आयगत भुगतान (Capital Payment and Revenue Payment) पूंजीगत भुगतान वह भुगतान होती है, जो कि संस्था के अंदर किसी सम्पत्ति के क्रय या ऋणपत्रों आदि के भुगतान में किये जाते हैं, ‘पूंजीगत भुगतान’ कहलाते हैं।

आयगत भुगतान वह होते हैं, जो संस्था द्वारा व्यापारिक लेन-देनों, माल के क्रय, वेतन, आदि के लिए किये जाते हैं।

(5) पूंजीगत लाभ और आयगत लाभ (Capital Profit and Revenue Profit) वह लाभ जो किसी स्थायी सम्पत्ति के बेचने, पूंजी के शोधन आदि से प्राप्त होते हैं। उन्हें पूंजीगत लाभ कहते हैं। इसी प्रकार, व्यापारिक वस्तुओं के बेचने या चालू सम्पत्तियों के बेचने से होने वाले लाभों को ‘आयगत लाभ’ कहा जाता है ।

(6) पूंजीगत हानि और आयगत हानि (Capital Loss and Revenue Loss)—वह हानि जो किसी सम्पत्ति की क्षति या बेचने में हानि, पूंजी के निर्गमन आदि से होती है पूंजीगत हानि कहलाती है, जबकि ऐसी हानि जो चालू सम्पत्तियों के बेचने, व्यापारिक सौदों, आदि से होती है, तो उन्हें ‘आयगत हानि’ कहतें है ।

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व्ययों का पंजीगत एवं आयगत में बंटवारा।

(ALLOCATION OF EXPENDITURE BETWEEN CAPITAL AND REVENUE)

पूंजी तथा आय में ठीक-ठीक बंटवारा अत्यन्त आवश्यक है। इसके लिए सर्वप्रथम व्यय करने के उद्देश्य की ओर ध्यान देना चाहिए। कुछ व्ययों के सम्बन्ध में यह नहीं कहा जा सकता है कि उनका स्वभाव पूंजीगत है या आयगत किन्तु कुछ व्यय परिस्थितियों के अनुसार पूंजीगत तथा आयगत बन जाते हैं। उदाहरण के लिए, काननी खर्चे (legal expenses), प्रारम्भिक व्यय (preliminary expenses), गाड़ी भाड़ा (carriage), स्टाम्प कर (stamp duty), मजदूरी (productive wages), आदि आयगत व्यय हैं। लेकिन यदि इनका सम्बन्ध किसी स्थायी सम्पत्ति के निर्माण या खरीदने से हो, तो ये पूंजीगत माने जायेंगे। सीधा-सा सिद्धान्त यह बन सकता है कि व्यय का कितना भाग सम्पत्ति की उन्नति या विकास या उत्पादन-शक्ति बढ़ाने से सम्बन्धित है और कितना भाग मरम्मत से। पहला भाग पूंजीगत होगा तथा दूसरा भाग आयगत होगा। उदाहरण के लिए, यदि किसी सिनेमाघर के फर्नीचर को इस प्रकार बदल दिया जाए कि वह अधिक सुविधाजनक और अच्छा बन जाए जिससे अधिक व्यक्ति सिनेमा देखने जाने लगें, तो यह व्यय पंजीगत माना जायेगा। इससे सिनेमाघर की आय में वृद्धि हो जायेगी।

कभी-कभी कुछ ऐसे व्यय होते हैं जिनको न तो पूर्णतः पूंजीगत कहा जाता है और न आयगत की। यदि किसी भवन को नष्ट करने के पश्चात फिर से बनाया जाए तो उसक पुस्तकाकित मूल्य तथा नष्ट कर में होने वाले व्यय में से उसकी अवशिष्ट कीमत (residual value) को घटा देते हैं। जो बचता है वह आयात हानि मानी जाती है। नये निर्माण का सम्पूर्ण व्यय पूंजीगत माना जाता है।

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जहां तक पूंजीगत या आयगत प्राप्ति, भुगतान, लाभ एवं हानि का प्रश्न है इनके सम्बन्ध में यहां विशेष कहना अप्रासंगिक ही होगा, क्योंकि इनके सम्बन्ध में बहुत-कुछ सभी जानते हैं और इनका अय स्थानों पर आवयकतानसार कर दिया गया है। उदाहरण के लिए, मालिक से प्राप्त पूंजी पंजीगत पामि होगी और माल बेचने से प्राप्त रकम आयगत प्राप्ति कहलायेगी। उसी प्रकार माल बेचने से प्राप्त लाभ होगा और स्थायी सम्पत्ति के बेचने से प्राप्त लाभ पूंजीगत माना जायेगा। ऐसे ही माल बेचने माल या व्यापार के सम्बन्ध में किसी प्राप्त रकम के वसूल होने वाली हानि आयगत होगी और सारी बेचने में हानि पूंजीगत मानी जायेगी।

कोई व्यय आयगत हो अथवा पूंजीगत, यह मुख्यतः निम्न बातों पर निर्भर होता है

(1) व्यापार तथा उसके सम्बन्ध में किये गये लेन देन के स्वभाव पर ।

(2) क्या इस व्यय के करने से लाभोपार्जन की शक्ति या कुशलता वास्तव में बडीं है ।

(3) (शंका होने पर ) वित्तीय नीति तथा अत्यधिक आवश्यकताओं (Exigencies ) पर ।

पूंजीगत या आयगत भुगतान व्यय के साथ चलता है। कहना यह चाहिए कि भुगतान व्यय का ही एक भाग है जैसे प्राप्ति आय का। यदि 5,000 ₹ में फर्नीचर लिया और भुगतान केवल 2,000 ₹ किया तो पूंजीगत व्यय 5,000 ₹ हुआ तथा भुगतान 2,000 ₹ हुआ। उसी प्रकार आयगत व्यय तथा भुगतान के सम्बन्ध में भी उदाहरण दिये जा सकते हैं।

कुछ नियम

(FEW IMPORTANT RULES)

1 सम्पूर्ण पूंजीगत व्यय सम्पत्ति या उसके सुधार से समझे जाते हैं जिससे उसकी लाभोपार्जन शक्ति में वृद्धि हो जाती है। आयगत व्यय सामान्यतः उसको सुरक्षित तथा क्रियाशील रखने से सम्बन्धित होता है।

2. सम्पत्ति से सम्बन्धित व्यय स्थायी रूप से पूंजीगत नहीं माना जाना चाहिए

3. केवल विस्तार या वृद्धि (extension or addition) के वास्तविक व्यय का पूंजीकरण किया जाता है।

4.नवीन सम्पत्ति विकास (obsolescence) से उत्पन्न असामान्य हानि किसी वर्ष में पूर्णरूपेण आयगत नहीं मानी जानी चाहिए वरन् इसे आगे के वर्षों में अपलिखित करने के लिए ले जाना चाहिए।

5. भारी आयगत व्यय अस्थायी तौर पर पूंजीगत मान लेना चाहिए और चिट्ठे में आगे ले जाया जाना चाहिए।

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अंकेक्षक के कर्तव्य (Duties of Auditor)—(1) व्यापार के स्वभाव एवं कार्य-प्रणाली से पूर्ण परिचय प्राप्त करना चाहिए ताकि पूंजीगत एवं आयगत व्यय में अन्तर करने में सहायता मिल सके।

(2) साथ ही साथ उन विशेष परिस्थितियों की जानकारी भी करनी चाहिए जिनमें एक मद पूंजीगत अथवा आयगत हो सकती है।

(3) अंकेक्षक को पूंजीगत तथा आयगत के अन्तर की जांच करने में लेखाकर्म के सिद्धान्तों का पूर्ण ज्ञान होना आवश्यक है।

(4) विवादास्पद मदों के सम्बन्ध में यदि आवश्यक हो, संस्था के अधिकारियों से पूछताछ करनी चाहिए। और अपना निर्णय बड़ी सावधानी के साथ करना चाहिए।

संक्षेप में, यह कहा जा सकता है कि यह कार्य अंकेक्षक के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी । के आधार पर उसे यह कहना होगा कि संस्था का लाभ-हानि खाता तथा चिट्ठा उसकी सही एवं ठीक स्थिति। को प्रकट करता है। अतः केवल उन मदों को जो निर्विवाद पूंजीगत में रखे जा सकते हैं, पूंजीगत में सम्मिलित । करना चाहिए और बाकी सभी व्ययों को आयगत समझना चाहिए। विवादपूर्ण व्ययों को पूंजीगत मदों में। सम्मिलित करके सम्पत्ति को बढ़ा देना ठीक प्रतीत नहीं होता है।

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विलम्बित आयगत व्यय

(DEFERRED REVENUE EXPENDITURE)

कुछ व्यय ऐसे होते हैं जिनके करने से प्राप्त होने वाला लाभ एक ही वर्ष में समाप्त न होकर कई वर्षों । तक चलता रहता है। इस कारण ऐसे सम्पूर्ण व्ययों को उस वर्ष लाभ-हानि खाते में लिखना न्यायसंगत प्रतीत नहीं होता है, अतएव ऐसे व्ययों को उन आगामी वर्षों के लिए भी ले जाना चाहिए जिनमें यह लाभ प्राप्त होता रहेगा। उदाहरण के लिए, विज्ञापन व्यय (advertising expenses) इस प्रकार के व्यय है जिनम पयात राशि व्यय कर दी जाती है और जिनका लाभ आगामी कई वर्षों तक प्राप्त होता रहता है। यदि विज्ञापन पर 10,000 ₹ व्यय किया गया और आगामी 10 वर्ष तक विज्ञापन की आवश्यकता नहीं हुई, तो 1,000 ₹ प्रति वर्ष लाभ-हानि खाते में लिखना श्रेयस्कर होगा।

अन्य उदाहरण (Other Examples)

(i) प्रारम्भिक खर्चे (preliminary expenses);

(ii) अंशों एवं ऋणपत्रों के निर्गमन का व्यय (cost of issue of shares and debentures);

(iii) मरम्मत पर किया गया अत्यधिक व्ययः

(iv) व्यापार के स्वभाव या व्यापार के स्थान परिवर्तन में किया गया व्यय; और

(v) कारखाने (works) के स्थान-परिवर्तन तथा आकस्मिक व्यय जो प्लाण्ट व मशीन के हटाने पर

पूनर्निर्माण में होते हैं, विलम्बित आयगत व्यय माने जाते हैं। अंकेक्षक के कर्तव्य (Duties of Auditor) यह सिद्धान्त है कि विलम्बित व्यय कभी भी उसी वर्ष के हिसाब में नहीं लगाना चाहिए जिसमें उसे किया गया है, क्योंकि ऐसा करने से इस वर्ष के लाभ में आवश्यक कमी आ जायेगी और अगले वर्षों में जिनमें लाभ होगा, इस वर्ष का आवश्यक हिस्सा नहीं लिखा जायेगा। कौन-सा व्यय विलम्बित आयगत व्यय होगा, यह सब संस्था की परिस्थितियों एवं व्यय के स्वभाव पर निर्भर होगा। इसी आधार पर अंकेक्षक को इन व्ययों की जांच करनी चाहिए।

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प्रश्न

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1 ‘आय’ और ‘पूंजी’ के लेन-देन का अन्तर बताइए और ‘विलम्बित आयगत व्यय’ की व्याख्या कीजिए।

Explain difference between ‘Capital’ and ‘Revenue’ transactions. Also describe ‘deferred revenue expenditure’.

2. खर्चों का आय तथा पूंजी में किस तरह बंटवारा होता है ? ऐसा करने के लिए किन प्रमुख बातों पर ध्यान देना पड़ता है ?

How expenditures are divided as capital and revenue? What points should be considered?

3. पुंजीगत एवं आयगत व्यय का अन्तर बताइए। उन परिस्थितियों को उदाहरण सहित समझाइए जिनमें आयगत व्यय पूंजीगत हो जाता है।

Distinguish between capital and revenue expenditures.  Explain there conditions when revenue expenditure becomes capital expenditure.

4. पंजी तथा आगम के मध्य व्यय को विभाजित करने के क्या सिद्धान्त हैं? आप निम्नलिखित मदों में से प्रत्येक पर इन सिद्धान्तों को किस प्रकार लागू करेंगे?

(अ) फैक्टरी के भवन का विस्तार।

(ब) कल तथा यन्त्रों की मरम्मत।

(स) विज्ञापन पर भारी व्यय।

(द) अनुमति पत्रों का नवीकरण ।

What are the principles for allocation of expenditure as capital and revenue? How will you apply these principles to the following items?

(a) Expansion of Factory Building.

(b) Repairs of loose tools.

(c) Heavy expenditure on the advertisement.

(d) Renewal of licenses.

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5. ‘स्थगित आयगत व्यय’ का क्या अर्थ है? इसके चार उदाहरण दीजिए और इसके सम्बन्ध में अंकेक्षक के कर्तव्य भी बताइए।

What is the meaning of Deferred Revenue Expenditure’? Give four examples of it and explain the auditor’s duty in this regard.

लघु उत्तरीय प्रश्न

1 पूंजीगत व्यय का आयगत व्यय में क्या अन्तर है?

2. आयगत व्यय से स्थगित आयगत व्यय का अन्तर बताइए।

3. पूंजीगत व आयगत व्यय के सम्बन्ध में अंकेक्षक का कर्तव्य बताइए।

4. पूंजीगत आय से क्या समझते हैं ?

5. आयगत हानि क्या होती है ?

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अति लघु उत्तरीय प्रश्न

1. पूंजीगत व्यय क्या है?

2. आयगत व्यय के दो उदाहरण दीजिए।

3. स्थगित आयगत व्यय क्या है ?

4. पूंजीगत भुगतान के दो उदाहरण दीजिए।

5. पूंजीगत हानि का क्या है?

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1 मरम्मत व्यय होता है :

(अ) पूंजीगत

(ब) आयगत

(स) दोनों

(द) कोई नहीं

2. स्थायी सम्पत्ति की बिक्री से आय होती है :

(अ) पूंजीगत

(ब) आयगत

(स) पूंजीगत लाभ

(द) कोई नहीं

chetansati

Admin

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