BCom 3rd Year Auditing Practices India Study Material Notes In Hindi

BCom 3rd Year Auditing Practices India Study Material Notes In Hindi: Statement on Standard Auditing Practices Introduction Confidentiality Work performed By Others Documentation Planning Audit Evidence Accounting System and Internal Control Audit Conclusions and Reporting  Effective Date  objectives and Scope of Audit  Responsibility for the Financial Statements  Documentation Form and Content Ownership and Custody of Working Examination Questions

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BCom 3rd Year Corporate Accounting Underwriting Study Material Notes in hindi

भारत में अंकेक्षण-व्यवहार

[AUDITING PRACTICES IN INDIA]

विश्व के विभिन्न देशों में अंकेक्षण-व्यवहार (Auditing Practices) की एकरूपता बनाये रखने की दृष्टि से अन्तर्राष्ट्रीय अंकेक्षण-व्यवहार समिति (International Auditing Practices Committee-IAPC) अन्तर्राष्ट्रीय अंकेक्षण निर्देश (International Auditing Guidelines) निर्गमित करती रहती है। अन्तर्राष्ट्रीय अंकेक्षण-व्यवहार समिति (IAPC) लेखापालों के अन्तर्राष्ट्रीय महासंघ (International Federation of Accountants-IFC) की स्थायी समिति (Standing Committee) है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए IAPC इसके सदस्य देशों से इन निर्देशों की ऐच्छिक स्वीकृति की अपेक्षा करती है और यथासम्भव सीमा तक उनके क्रियान्वयन की ओर कार्य करने की आशा करती है।

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मानक अंकेक्षण-व्यवहार पर परिपत्र

(STATEMENT ON STANDARD AUDITING PRACTICES)

भारत की चार्टर्ड एकाउण्टैण्ट्स की इन्स्टीट्यूट ने 17 सितम्बर, 1982 को अंकेक्षण-व्यवहार समिति (Auditing Practices Committee-APC) की स्थापना की। APC का प्रमुख कार्य भारत में प्रचलित अंकेक्षण-व्यवहार की समीक्षा करना है और मानक अंकेक्षण-व्यवहार पर परिपत्र (Statement on Standard Auditing Practices_SAPs) तैयार करना है, जो इन्स्टीट्यूट की काउन्सिल के द्वारा निर्गमित किये जा सकते हैं। भारत के लिए SAPs तैयार करते समय APC अन्तर्राष्ट्रीय अंकेक्षण निर्देशों को ध्यान में रखेगी जो IAPC के द्वारा समय-समय पर निर्गमित किये जाते हैं और भारत में प्रचलित व्यवहार व परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्य में यथासम्भव उन्हें सम्मिलित करने का प्रयास करेगी। साथ ही SAPs तैयार करते समय APC प्रचलित कानून, रीति-रिवाज व व्यावसायिक वातावरण को भी ध्यान में रखेगी।

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जहां स्वतन्त्र अंकेक्षण किया जाता है, SAPs का प्रयोग किया जायेगा अर्थात् किसी भी संस्था के चाहे वह लाभ कमाने वाली हो अथवा नहीं, किसी भी आकार की हो अथवा उसका कोई वैधानिक स्वरूप हो वित्तीय विवरणों की स्वतन्त्र जांच के लिए प्रयोग किये जायेंगे। अपना कर्तव्य पूरा करते समय इन्स्टीट्यूट के सदस्यों का यह देखना दायित्व होगा कि SAPs का उपयोग वित्तीय सूचना के अंकेक्षण में किया जाता है, जो सूचना अंकेक्षण रिपोर्ट के अन्तर्गत आती है। यदि किसी कारणवश एक सदस्य SAPs के अनुसार अंकेक्षण करने में समर्थ नहीं होता है, तो उसकी रिपोर्ट में इस अवहेलना के सम्बन्ध में टिप्पणी दी जायेगी। अंकेक्षक विवरण में निर्धारित तिथि पर या इसके पश्चात् होने वाले अंकेक्षणों में SAPs के प्रावधानों के परिपालन को आश्वस्त करेगा।

अब तक ICAI की काउन्सिल ने निम्न SAPs निर्गमित किये हैं :

(i) अंकेक्षण को प्रभावित करने वाले मूलभूत सिद्धान्त (Basic Principles Governing an Audit, SAP-1)

(ii) वित्तीय विवरणों के अंकेक्षण के उद्देश्य तथा क्षेत्र (Objectives and Scope of Audit of Financial Statements, SAP-2)

(iii) प्रलेखीकरण (Documentation, SAP-3)।

SAP-1 तथा SAP-2 को सभी प्रकार के अंकेक्षणों के सम्बन्ध में उन वित्तीय वर्षों के लिए जो 1 अप्रैल, 1985 से या इसके पश्चात प्रारम्भ हुए हैं तथा SAP-31 जुलाई, 1985 से या इसके पश्चात् लागू किया गया है।

SAP-1, SAP-2 तथा SAP-3 का संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार दिया जा सकता है : SAP-1 अंकेक्षण को प्रभावित करने वाले मूलभूत सिद्धान्त (Basic Principles Governing an Audit)\

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1 प्रस्तावना (Introduction)-SAP-1 उन मूलभूत सिद्धान्तों का वर्णन करता है जो अंकेक्षक के व्यावसायिक दायित्व को नियन्त्रित करते हैं और प्रत्येक अंकेक्षण में, जब भी किया जाए, इनका परिपालन किया जाना चाहिए।

2. अंकेक्षण प्रत्येक संस्था की वित्तीय सूचना (financial information) की निष्पक्ष जांच है चाहे वह लाभ कमाती हो अथवा नहीं, उसका कोई भी आकार (size) हो या वैधानिक अस्तित्व हो जब यह जांच उस पर राय प्रकट करने के लिए की जाती है। वित्तीय सूचना में वित्तीय विवरण सम्मिलित होते हैं।

3. भविष्य में इन्स्टीट्यूट के द्वारा निर्गमित परिपत्र उन सिद्धान्तों को प्रतिपादित करेंगे जो अंकेक्षण गतिविधि तथा अंकेक्षण व्यवहार के सम्बन्ध में निर्देशन करेंगे।

4. इन मूलभूत सिद्धान्तों के परिपालन के लिए अंकेक्षण गतिविधियों तथा रिपोर्ट करने के व्यवहार की जो परिस्थितियों के अनुरूप उचित होगी, आवश्यकता होगी।

5. सत्यनिष्ठा, वस्तुनिष्ठता व स्वतन्त्रता (Integrity, Objectivity and Independence)अंकेक्षक अपने व्यावसायिक कार्य के करने में स्पष्ट वक्ता, ईमानदार तथा लगनशील होगा। उसको अपने कार्य में निष्पक्ष रहना चाहिए।

6. गोपनीयता (Confidentiality)-अपने कार्य के लिए प्राप्त सूचना की गोपनीयता उसको बनाए रखनी चाहिए और ऐसी सूचना को किसी अन्य व्यक्ति को नहीं बतलाना चाहिए।

7. चातुर्य व सक्षमता (Skills and Competence)—ऐसे व्यक्तियों के द्वारा जिन्हें पर्याप्त प्रशिक्षण, अनुभव तथा अंकेक्षण कार्य में सक्षमता है, अंकेक्षण किया जाना चाहिए तथा रिपोर्ट तैयार की जानी चाहिए।

8. अंकेक्षक के लिए विशिष्ट ज्ञान तथा निपणता की आवश्यकता है जिसे वह सामान्य शिक्षा तथा तकनीकी ज्ञान से प्राप्त करता है। उसके लिए यह भी आवश्यक है कि वह ICAI द्वारा नियमित लेखाकर्म तथा अंकेक्षण सम्बन्धी घोषणाओं की जानकारी प्राप्त करता रहे।

9. अन्य व्यक्तियों द्वारा सम्पन्न कार्य (Work performed by others)—जब अंकेक्षक कार्य-भार सहायकों के सुपुर्द करता है अथवा अन्य अंकेक्षकों के द्वारा किये गये कार्य का उपयोग करता है, तो उसे उनके कार्य व राय पर विश्वास करना चाहिए। उसको यथोचित सावधानी तथा कुशलता का परिचय देना चाहिए। कम्पनी अधिनियम, 2013 के अन्तर्गत नियुक्त शाखा-अंकेक्षक के कार्य के मामले में उसकी राय पर उसे विश्वास करना चाहिए और यह बात उसकी रिपोर्ट से प्रकट होनी चाहिए कि उसने शाखा-अंकेक्षक की राय पर विश्वास किया है।

10. सहायकों को सुपुर्द किये गये कार्य का अंकेक्षक को निर्देशन, पर्यवेक्षण तथा आकलन करना चाहिए। उसको यथोचित भरोसा करना चाहिए कि अन्य अंकेक्षकों अथवा विशेषज्ञों के द्वारा किया गया कार्य इस उद्देश्य के लिए पर्याप्त है।

11. प्रलेखीकरण (Documentation) अंकेक्षक को महत्वपूर्ण मामलों के लिए प्रलेखीय साक्ष्य (Documentary evidences) रखने चाहिए कि आधारभूत सिद्धान्तों के अनुरूप अंकेक्षण किया गया था।

12. नियोजन (Planning) अंकेक्षक को कशलता से कार्य सम्पन्न करने की योजना बनानी चाहिए। योजना नियोक्ता के कार्य के ज्ञान पर आधारित होनी चाहिए।

13. अन्य बातों के अतिरिक्त योजना में निम्न बातें होनी चाहिए

(i) नियोक्ता की लेखाकर्म-पद्धति, नीतियां तथा आन्तरिक नियन्त्रण की पद्धति की जानकारी करना।

(ii) आन्तरिक नियन्त्रण की व्यवस्था पर विश्वसनीयता की मात्रा तय करना।

(iii) अंकेक्षण गतिविधि का समय, सीमा व स्वभाव का निर्धारण करना तथा इस सम्बन्ध में कार्यक्रम तैयार करना।

(iv) किये जाने वाले कार्य का समन्वय (Coordination) करना।

14. अंकेक्षण के मध्य आवश्यकतानुसार योजनाओं में सुधार व विकास करना।

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15. अंकेक्षण साक्ष्य (Audit Evidence)-अंकेक्षक को पर्याप्त व उचित अंकेक्षण साक्ष्य प्राप्त करने चाहिए ताकि वह वित्तीय विवरणों के सम्बन्ध में अपनी राय का आधार तैयार कर सके।

16. परीक्षणों के माध्यम से उसे यथोचित विश्वास प्राप्त कर लेना चाहिए कि आन्तरिक नियन्त्रण जिनकी विश्वसनीयता पर अंकेक्षण आधारित है, प्रभावशाली तथा पर्याप्त है।

17. लेखा-पद्धति से प्रकट समंकों की पूर्णता, शुद्धता तथा शुद्धता के लिए साक्ष्य प्राप्त करने के लिए आवश्यक कार्यवाही की गयी है। ये कार्यवाही निम्न दो हैं :

(i) लेन-देनों व शेषों के विवरणों के परीक्षण।

(ii) महत्वपूर्ण अनुपातों तथा प्रवृत्तियों का विश्लेषण जिसमें असाधारण उतार-चढ़ाव तथा मदों की जांच सम्मिलित है।

18. लेखा-पद्धति तथा आन्तरिक नियन्त्रण (Accounting System and Internal Control)—व्यवसाय के आकार व स्वभाव के अनुरूप प्रबन्ध का यह दायित्व है कि वह आन्तरिक नियन्त्रणों के साथ उचित लेखा-पद्धति को अपनाये। अंकेक्षक को स्वयं इस बात से सन्तुष्ट होना चाहिए कि लेखा-पद्धति ठीक है तथा सभी लेखा सम्बन्धी सूचना जो आवश्यक रूप से लिखी जानी चाहिए थी, वास्तव में लिख दी गयी है. आन्तरिक नियन्त्रण सामान्यतया ऐसी सन्तुष्टि के लिए सहायक होते हैं।

19. अंकेक्षक को यह देखना चाहिए कि लेखा-पद्धति उचित रूप से अपनायी गयी है तथा सम्बन्धित आन्तरिक नियन्त्रण उसके अनुरूप हैं। उसको आन्तरिक नियन्त्रणों के परिपालन का मूल्यांकन करना चाहिए। जिन पर उसे अंकेक्षण-कार्य के लिए विश्वास करना है।

20. जब अंकेक्षक इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि वह कुछ आन्तरिक नियन्त्रणों पर विश्वास कर सकता है तो उसकी कार्य-पद्धति कम विस्तृत तथा समय व स्वभाव के अनुसार भिन्न हो सकती है।

21. अंकेक्षण निष्कर्ष व प्रतिवेदन (Audit Conclusions and Reporting)-अंकेक्षक को व्यवसाय के ज्ञान तथा प्राप्त अंकेक्षण साक्ष्य से निकाले गये निष्कर्षों की समीक्षा करनी चाहिए और यह देखना चाहिए। कि ये वित्तीय मामलों पर उसकी राय बनाने व प्रकट करने के लिए कहां तक आधार बन सकते हैं। इस निष्कर्ष की समीक्षा निम्न प्रकार से हो सकती है कि :

(अ) क्या वित्तीय सूचना मान्य लेखाकर्म नीतियों के प्रयोग के द्वारा तैयार की गयी है ?

(ब) क्या वित्तीय सूचना सम्बन्धित नियमों तथा वैधानिक आवश्यकताओं के अनुरूप है ?

(स) क्या वित्तीय सूचना के उचित प्रस्तुतीकरण के लिए आवश्यक मामलों का पर्याप्त प्रकटीकरण किया। गया है?

22. वित्तीय सूचना के लिए अंकेक्षण रिपोर्ट में स्पष्ट राय प्रकट की जानी चाहिए और यदि रिपोर्ट किसा नियम, विधान या प्रसंविदा के अन्तर्गत निर्धारित की गयी है, तो अंकेक्षक रिपोर्ट में इनका परिपालन किया जाना चाहिए।

23. यदि रिपोर्ट में विपरीत, मर्यादित या भिन्न राय दी गयी है तो उसके लिए पर्याप्त कारण दिये जाने चाहिए।

24. प्रभावकारी तिथि (Effective Date)-1 अप्रैल, 1985 को या इसके पश्चात् प्रारम्भ होने वाली । लेखा-अवधियों से सम्बन्धित सभी प्रकार के अंकेक्षणों के लिए यह परिपत्र प्रभावी होगा।

SAP-2 वित्तीय विवरणों के अंकेक्षण के उद्देश्य तथा क्षेत्र (Objectives and Scope of Audit of Financial Statements)

1 प्रस्तावना (Introduction) इस परिपत्र में स्वतन्त्र अंकेक्षक के द्वारा किसी उपक्रम के सामान्य उद्देश्य वित्तीय विवरण-पत्रों के अंकेक्षण के क्षेत्र तथा उद्देश्यों का वर्णन किया गया है। सामान्य उद्देश्य वित्तीय विवरणी (General Purpose Financial Statements) में चिट्ठा, लाभ-हानि का विवरण-पत्र, अन्य विवरण-पत्र तथा समीक्षात्मक टिप्पणियां सम्मिलित की जाती हैं जो अंशधारी/सदस्य, लेनदार, कर्मचारी तथा सामान्य जनता के उपयोग के लिए निर्गमित की जाती हैं।

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2. अंकेक्षण का उद्देश्य (Objective of an Audit)-अंकेक्षण का उद्देश्य अंकेक्षक को ऐसे वित्तीय विवरणों पर राय प्रकट करने के लिए सक्षम बनाना होता है जो मान्यता प्राप्त (recognized) लेखाकर्म नीतियों व व्यवहार तथा वैधानिक प्रावधानों के अनुरूप बनाये जाते हैं।

3. अंकेक्षक की राय किसी उपक्रम के वित्तीय विवरणों तथा क्रियात्मक परिणामों के सही व उचित होने के निर्धारण में सहायता करती है। इसका उपयोग करने वालों को यह नहीं समझना चाहिए कि अंकेक्षक की राय उपक्रम की परिपक्वता की गारण्टी देती है।

4.वित्तीय विवरण-पत्रों के लिए दायित्व (Responsibility for the Financial Statements) अंकेक्षक वित्तीय विवरण-पत्रों के लिए अपनी राय बनाने तथा प्रकट करने के लिए उत्तरदायी है, पर उनके तैयार करने का दायित्व प्रबन्ध का होता है। प्रबन्ध का दायित्व पर्याप्त लेखों का रखना, आन्तरिक नियन्त्रण लागू करना. लेखाकर्म नीतियों का चयन तथा परिपालन करना तथा उपक्रम की सम्पत्तियों को सुरक्षित रखना होता है।

5. अंकेक्षण का क्षेत्र (Scope of an Audit) वित्तीय विवरणों के अंकेक्षण का क्षेत्र अंकेक्षक के द्वारा तय किया जायेगा जो उसकी नियुक्ति की शर्तों, सम्बन्धित विधान के प्रावधानों तथा इन्स्टीट्यूट की घोषणाओं पर निर्भर होगा। नियुक्ति की शर्ते उन मामलों को प्रतिबन्धित नहीं कर सकतीं जो विधान या इन्स्टीट्यूट की घोषणाओं द्वारा निर्धारित की गयी हैं।

6 अंकेक्षण उपक्रम के सभी पहलुओं को पर्याप्त रूप से विचारणीय बनाकर किया जाना चाहिए। अंकेक्षक को वित्तीय विवरण-पत्रों पर अपनी राय बनाने में स्वयं पूर्ण सन्तुष्ट होना चाहिए।

7. अंकेक्षक सूचना की पर्याप्तता तथा विश्वसनीयता का मूल्यांकन करता है जो लेखों में निहित होती

(अ) लेखा-पद्धति व आन्तरिक नियन्त्रण के अध्ययन व मूल्यांकन के द्वारा, तथा

(ब) ऐसे अन्य परीक्षणों, पूछताछ और अन्य सत्यापन-गतिविधियों के द्वारा जिन्हें वह विशेष परिस्थितियों में उचित समझता है।

8. अंकेक्षक यह तय करता है कि वित्तीय विवरणों में आवश्यक सूचना उचित रूप से प्रकट की गयी। है जिसके लिए वहः

(अ) वित्तीय विवरणों का सम्बन्धित लेखों से मिलान करता है, तथा

(ब) वित्तीय विवरणों को तैयार करने में प्रबन्ध जो निर्णय करता है, उन पर विचार करता है।

9. अंकेक्षक का कार्य अंकेक्षण गतिविधियों की सीमा तय करने में विवेक का प्रयोग करना होता है। वह वित्तीय विवरणों के तैयार करने में प्रबन्ध के द्वारा लगाये गये अनुमानों तथा निर्णयों के औचित्य की जांच। करता है।

10. वित्तीय विवरणों के सम्बन्ध में अपनी राय बनाने में अंकेक्षक स्वयं को सन्तुष्ट करता है कि वित्तीय विवरण वित्तीय स्थिति तथा उपक्रम के क्रियात्मक परिणामों का उचित व सही चित्र प्रस्तुत करते हैं।

11. अंकेक्षक उन मदों से प्रमुखतः सम्बन्धित है जो व्यक्तिगत रूप से या समूह की दृष्टि से उपक्रम के कार्यकलाप के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण हैं, पर इसके बावजूद कोई स्पष्ट मानक नहीं निर्धारित किया जा सकता जिससे इसका महत्व या भौतिकत्व (materality) नापा जा सके।

12. अंकेक्षक से उसकी सक्षमता के क्षेत्र से बाहर कर्तव्य-निर्वाह करने की अपेक्षा नहीं की जाती है।

13. वित्तीय विवरणों के अंकेक्षण के क्षेत्र पर पाबन्दियों का वर्णन उसको अपनी रिपोर्ट में कर देना चाहिए जो ऐसे वित्तीय विवरणों पर अमर्यादित राय प्रकट करने की उसकी योग्यता को प्रभावित करते हैं।

14. प्रभावकारी तिथि (Effective Date)-1 अप्रैल, 1985 को या इसके पश्चात प्रारम्भ होने वाले लेखा अवधियों से सम्बन्धित सभी अंकेक्षणों के लिए यह परिपत्र प्रभावी होगा।

SAP-3 प्रलेखीकरण (Documentation)

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1 . प्रस्तावना (Introduction) अंकेक्षक उन मामलों का प्रलेखीकरण करेगा जो यह साक्ष्य देने के लिए महत्वपूर्ण हैं कि अंकेक्षण आधारभूत सिद्धान्तों के अनुरूप किया गया है।

2.  अपना अंकेक्षण करने के सम्बन्ध में अंकेक्षक द्वारा प्राप्त किये गये, तैयार किये गये तथा उसके द्वारा रखे गये कागज-पत्रों को प्रलेखीकरण कहते हैं।

3. कार्य सम्बन्धी कागज-पत्र :

(i) अंकेक्षण के नियोजन तथा पूर्ण करने में सहायता करते हैं:

(ii) अंकेक्षण-कार्य के पर्यवेक्षण तथा समीक्षा में सहायक होते हैं;

(iii) अंकेक्षक की राय के अनुमोदन के लिए जो अंकेक्षण कार्य किया जाता है, उसके लिए साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं।

4. स्वरूप व सूची (Form and Content)—कार्य सम्बन्धी कागज-पत्रों में अंकेक्षण-योजना. अंकेक्षण गतिविधियों के स्वभाव, समय व सीमा तथा प्राप्त साक्ष्य से निकाले गये निष्कर्षों के लेखे होने चाहिए।

5. कार्य सम्बन्धी कागज-पत्रों का स्वरूप तथा सूची निम्न बातों से प्रभावित होते हैं :

(i) नियुक्ति का स्वभाव,

(ii) अंकेक्षक की रिपोर्ट का स्वरूप,

(iii) नियोक्ता के व्यवसाय का स्वभाव तथा जटिलता,

(iv) नियोक्ता के लेखों का स्वभाव तथा शर्ते और आन्तरिक नियन्त्रण पर विश्वसनीयता की मात्रा,

(v) सहायकों द्वारा किये गये निर्देशन, पर्यवेक्षण तथा समीक्षा के लिए विशेष परिस्थितियों में आवश्यकताएं।

6. प्रत्येक अंकेक्षण तथा अंकेक्षक की आवश्यकताओं की परिस्थितियों के अनुरूप कार्य सम्बन्धी कागज-पत्र उचित रूप से तैयार किये जाने चाहिए। कार्य सम्बन्धी कागज-पत्रों का प्रमाणीकरण कार्यकुशलता में सुधार। लाता है।

7. एक अंकेक्षक के लिए अंकेक्षण का सर्वांगीण स्वरूप समझने में कार्य सम्बन्धी कागज-पत्र पयाप्त । रूप से पूर्ण होने चाहिए। प्रलेखीकरण की सीमा व्यावसायिक निर्णय का विषय है, क्योंकि यह न तो आवश्यका है और न व्यावहारिक है कि प्रत्येक निष्कर्ष व विचार अंकेक्षक के द्वारा अपने कार्य-सम्बन्धी कागज-पत्रों में प्रलेखित कर दिया जाए।

8.कार्य-सम्बन्धी कागज-पत्रों में सभी मामले जिनके लिए निर्णय की आवश्यकता होती है, सम्मिलित। किये जाने चाहिए।

9.अंकेक्षण कार्य में कुशलता के सुधार के लिए तालिकाएं, विश्लेषण तथा नियोक्ता द्वारा तैयार किये कागज-पत्रों को अंकेक्षक सामान्यतया प्राप्त करता है तथा उपयोग करता है। ऐसी परिस्थितियों में अंकेक्षक को स्वयं सन्तुष्ट होना चाहिए कि कार्य सम्बन्धी कागज-पत्र उचित रूप से तैयार किये गये हैं।

10. आवर्तनशील अंकेक्षणों (Recurring audits) के लिए कुछ अंकेक्षण फाइलें स्थायी अंकेक्षण फाइलें होती है जिनमें बार-बार के अंकेक्षणों के लिए उपयोगी सूचनाएं होती हैं। ये फाइलें चालू अंकेक्षण फाइलों से भिन्न होती हैं, जिनमें किसी एक अवधि के अंकेक्षण से सम्बन्धित सूचनाएं रखी जाती हैं।

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11. स्थायी अंकेक्षण फाइलों में निम्न बातें सामान्यतः लिखी जाती हैं :

(i) उपक्रम के वैधानिक तथा संगठनीय ढांचे के सम्बन्ध में सूचना,

(ii) अंकेक्षण के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण वैधानिक प्रलेख, प्रसंविदे एवं कार्यवाही पुस्तिका की प्रतिलिपियां अथवा सारांश,

(iii) आन्तरिक नियन्त्रणों के अध्ययन व मूल्यांकन का लेखा,

(iv) गत वर्षों के अंकेक्षित वित्तीय विवरण-पत्रों की प्रतिलिपियां,

(v) महत्वपूर्ण अनुपातों तथा प्रवृत्तियों का विश्लेषण,

(vi) अंकेक्षक द्वारा भेजे गये प्रबन्ध के पत्रों की प्रतिलिपियां,

(vii) अंकेक्षक की नियुक्ति के पत्र की स्वीकृति से पूर्व अवकाश लेने वाले अंकेक्षक से पत्र-व्यवहार का लेखा,

(viii) महत्वपूर्ण लेखा नीतियों के सम्बन्ध में टिप्पणियां,

(ix) गत वर्षों की महत्वपूर्ण अंकेक्षण टिप्पणियां।

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12. चालू फाइलों में निम्न बातें सम्मिलित की जा सकती हैं :

(i) वार्षिक पुनर्नियुक्ति की स्वीकृति के लिए किया गया पत्र-व्यवहार,

(ii) अंकेक्षण के सम्बन्ध में संचालक मण्डल की कार्यवाही पुस्तिका तथा सामान्य कार्यवाही पुस्तिका में महत्वपूर्ण मामलों के सारांश,

(iii) अंकेक्षण की नियोजन-प्रक्रिया का साक्ष्य तथा अंकेक्षण-कार्यक्रम,

(iv) लेन-देनों और शेषों का विश्लेषण,

(v) अंकेक्षण गतिविधियों के स्वभाव, समय व सीमा का लेखा और इन गतिविधियों के परिणाम,

(vi) यह साक्ष्य कि सहायकों के कार्य का पर्यवेक्षण किया गया है,

(vii) अन्य अंकेक्षकों, विशेषज्ञों तथा अन्य पक्षों से किये गये पत्र-व्यवहार की प्रतिलिपियां,

(viii) नियोक्ता से परिचर्चित अथवा अंकेक्षण मामलों में किये गये पत्राचारों के सम्बन्ध में पत्रों या

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टिप्पणियों की प्रतिलिपियां,

(ix) नियोक्ता से प्राप्त पुष्टिकरण के पत्र,

(x) अंकेक्षण के महत्वपूर्ण पहलुओं के सम्बन्ध में अंकेक्षक के द्वारा निकाले गये निष्कर्ष,

(xi) वित्तीय सूचना की प्रतिलिपियां जिन पर रिपोर्ट की जानी है तथा सम्बन्धित अंकेक्षण रिपोर्ट।

13. कार्य सम्बन्धी कागज-पत्रों का स्वामित्व व संरक्षण (Ownership and custody of Working Papers) कार्य-सम्बन्धी कागज-पत्र अंकेक्षक की सम्पत्ति होते हैं। अंकेक्षक अपने विवेक के अनुरूप इन कार्य-सम्बन्धी कागज-पत्रों से सारांश या किसी भाग को नियोक्ता को उपलब्ध करा सकता है।

14. अपने कार्य-सम्बन्धी कागज-पत्रों की सुरक्षा व शुद्धता के लिए अंकेक्षक को उचित कार्यवाही करनी चाहिए और अपनी आवश्यकता के अनुसार अपने पास रखना चाहिए।

15. प्रभावकारी तिथि (Effective Date)-1 जुलाई, 1985 को या इसके पश्चात् प्रारम्भ होने वाली अवधि से सम्बन्धित सभी अंकेक्षणों के लिए यह परिपत्र लागू किया जायेगा।

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प्रश्न

1. वित्तीय विवरण-पत्रों के अंकेक्षण के उद्देश्य व क्षेत्र पर एक टिप्पणी दीजिए।

Give a note on the scope and objectives of audit.

2. अंकेक्षण को प्रभावित करने वाले आधारभूत सिद्धान्तों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।

Describe in brief the basic principles governing an audit.

4. वित्तीय विवरणों के अंकेक्षण के उद्देश्य तथा क्षेत्र पर टिप्पणी दीजिए।

Give a note on objects and scope of audit of financial statements.

4. निम्नलिखित मानक अंकेक्षण-व्यवहारों सम्बन्धी कथनों का विस्तृत विवरण कीजिए :

(अ) अंकेक्षण को प्रभावित करने वाले मूलभूत सिद्धान्त

(ब) प्रलेखीकरण।

Elaborate the following statements on standard auditing practices:

(a) Basic principles governing an audit,

(b) Documentation.

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