BCom 3rd Year Auditor Appointment Remuneration Qualification Power Duties Study material notes in Hindi

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BCom 3rd Year Auditor Appointment Remuneration Qualification Power Duties Study material notes in Hindi: Qualification of  an auditor Disqualifications of an auditor Sole Trade Compulsory tax audit Partnership Firm Appointment of Auditors Company Compulsory Reappointment Removal of an auditor and causal vacancy Status of the auditor’s Rights  of an auditors Duties of an auditors Limitations of an Auditors Examinations Questions :

Appointment Remuneration Qualification Power
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BCom 3rd Year Auditing Depreciation and Reserves Study Material notes in hindi

अंकेक्षक की नियुक्ति, पारिश्रमिक, योग्यताएं, अधिकार और कर्तव्य

JAPPOINTMENT, REMUNERATION, QUALIFICATIONS, POWERS AND DUTIES OF AN AUDITOR]

कम्पनी अंकेक्षक के विषय में विचार प्रकट करने से पूर्व यह आवश्यक प्रतीत होता है कि एकाकी व्यापार तथा साझेदारी संस्थाओं के अंकेक्षक के सम्बन्ध में भी दो शब्द लिख दिए जाएं। वैसे तो एकाकी व्यापार तथा साझेदारी फर्मों के खातों का अंकेक्षण अनिवार्य नहीं है, फिर भी संस्था कोई भी हो, अंकेक्षक का प्रमुख कार्य है पुस्तकों के लेखों की जांच करना। प्रत्येक व्यापारिक संस्था के लेखों का अंकेक्षण महत्वपूर्ण होता है। यह सर्वमान्य सिद्धान्त है।

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अंकेक्षक की योग्यताएं

(QUALIFICATIONS OF AN AUDITOR)

कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 141 के अनुसार – (1) कोई व्यक्ति किसी कम्पनी का अंकेक्षक होने के पात्र तभी होगा जब वह चार्टर्ड एकाउन्टैट है:

यदि किसी फर्म के अधिकांश साझेदार जो भारत में सेवारत हैं अंकेक्षक होने की उपयोक्त योग्यता रखते हैं, उसे फर्म के रूप में कम्पनी का अंकेक्षक नियुक्त किया जा सकता है।

(2) यदि किसी फर्म (LLP सहित) को अंकेक्षक नियुक्त किया जाता, केवल वे ही साझेदार जो चार्टर्ड काउन्टैट्स है, वे ही फर्म की ओर से कार्य करने एवं हस्ताक्षर करने के लिए अधिकृत होंगे।

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 अंकेक्षक की अयोग्यताएं

(DISQUALIFICATIONS OF AN AUDITOR)

धारा 141(3) के अनुसार निम्नांकित व्यक्ति किसी कम्पनी के अंकेक्षक नियुक्त होने के पात्र नहीं हैं, नामत:

(1) निगमित निकाय, सीमित दायित्व वाली साझेदारी को छोड़कर:

(2) कम्पनी का कोई अधिकारी अथवा कर्मचारी;

(3) कोई व्यक्ति जो कम्पनी के किसी कर्मचारी अथवा अधिकारी का साझेदार है अथवा उसके नियोजन

(4) कोई व्यक्ति, उसका साझेदार अथवा उसका रिश्तेदार : (i) कम्पनी अथवा उसकी सहायक अथवा उसकी सूत्रधारी अथवा उसकी एसोशियेट कम्पनी

प्रतिभूति का धारक है अथवा उसमें उसका हित है। यद्यपि, रिश्तेदार के पास कम्पनी की एक हजार रुपए तक की प्रतिभूतियां अथवा ऐसी राशि जो निर्धारित की जाए, हो सकती है;

(ii) कम्पनी अथवा उसकी सहायक अथवा उसकी सूत्रधारी अथवा ऐसोशियेट कम्पनी का निर्धारित राशि से अधिक का ऋणी है; अथवा

(iii) किसी तृतीय पक्षकार को ऋण ग्रस्तता के सम्बन्ध में, कम्पनी को, अथवा उसकी सहायक अथवा उसकी सूत्रधारी अथवा एसोशियेट कम्पनी को निर्धारित राशि से सम्बन्धित कोई गारंटी दी हुई है अथवा प्रतिभूति दी हुई है,

(5) कोई ऐसी फर्म जिसका प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से, कम्पनी से, अथवा उसकी सहायक, अथवा। उसकी सूत्रधारी अथवा एसोशियेट अथवा ऐसी सत्रधारी की सहायक कम्पनी से, निर्धारित प्रकृति का व्यावसायिक सम्बन्ध है;

(6) ऐसो कोई व्यक्ति जिसका कोई रिश्तेदार कम्पनी का संचालक है, अथवा संचालक अथवा प्रमख । प्रबन्धन अधिकारी के रूप में कम्पनी के नियोजन में है;

(7) कोई व्यक्ति जो अयंत्र पूर्णकालीन रोजगार में है, अथवा ऐसा व्यक्ति अथवा किसी फर्म का साझेदार उसका अंकेक्षक नियुक्त है यदि ऐसा व्यक्ति अथवा साझेदार ऐसी नियुक्ति की तिथि को, बीस कम्पनियों से अधिक का अंकेक्षक नियुक्त है।

(8) ऐसा व्यक्ति जिसे कपट के लिए न्यायालय द्वारा अपराधी ठहराया जा चुका है और ऐसे अपराधी के होने पश्चात् अभी दस वर्ष व्यतीत नहीं हुए है।

(9) कोई व्यक्ति जिसकी सहायक अथवा एसोशियेट कम्पनी अथवा अन्य किसी निकाय के रूप में, नियुक्ति की तिथि को, धारा 144 में उल्लिखित सेवाओं के सम्बन्ध में परामर्शदाता अथवा सेवा प्रदाता के रूप में रत नहीं है।

यदि कोई व्यक्ति कम्पनी के अंकेक्षक के रूप में नियुक्ति के पश्चात् उपर्युक्त वर्णित अयोग्यताओं के कारण अंकेक्षक बनने के योग्य नहीं रहता है, अंकेक्षक के रूप में उसका पद खाली हो जाएगा, जिसे अंकेक्षक की आकस्मिक रिक्तता माना जाएगा।

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एकाकी व्यापार

(SOLE TRADER)

अंकेक्षक की नियुक्ति (Appointment of Auditor)—एकाकी व्यापार के लिए कोई विशेष विधान नहीं होता है। अत: ऐसे व्यापार के लिए हिसाब-किताब का अंकेक्षण कराना अनिवार्य नहीं है। वैधानिक सीमाओं के न होने से अंकेक्षक की नियुक्ति, पारिश्रमिक, अधिकार तथा कर्तव्य सम्बन्धी सभी बातें एकाकी व्यापारी की इच्छा पर निर्भर हैं। वह स्वयं यह तय करता है कि उसे अपनी संस्था के हिसाब-किताब की जांच अंकेक्षक से करवानी है या नहीं।

यदि एकाकी व्यापारी अपने खातों का अंकेक्षण करने का निर्णय करता है, तो अंकेक्षक की नियुक्ति व्यापारी तथा अंकेक्षक के बीच किये गये पारस्परिक समझौते के आधार पर की जाएगी। यह समझौता लिखित या मौखिक दोनों ही प्रकार का हो सकता है, परन्तु लिखित समझौता सदैव दोनों के हित में होता है। अंकेक्षक को लिखित समझौते के आधार पर अपना कार्य करना चाहिए और कार्य की सीमा का निर्धारण नियोक्ता से। प्राप्त लिखित आदेश के अनुसार करना चाहिए। इस प्रकार समझौता तथा लिखित आदेश दोनों ही महत्वपूर्ण हो जाते हैं।

पारिश्रमिक (Remuneration)—जैसा कि बताया जा चुका है, अंकेक्षक की नियुक्ति के सम्बन्ध में कोई। वैधानिक नियम नहीं है। उसी प्रकार पारिश्रमिक भी एकाकी व्यापारी तथा अंकेक्षक के आपसी समझौते के आधार पर तय किया जाता है। पारिश्रमिक के लिए कोई वैधानिक सीमा नहीं होती है।

अधिकार (Rights) अंकेक्षक के अधिकार किसी विधान के द्वारा निर्धारित नहीं होते हैं। साधारण तौर पर उसे नीचे लिखे हुए अधिकार प्राप्त होते हैं :

(1) उसे व्यापार की पुस्तकों की जांच का अधिकार है। वह अपनी कार्यसीमा के अनुसार आवश्यक पुस्तकों का निरीक्षण स्वतन्त्रतापूर्वक कर सकता है।

(2) साथ ही नियोक्ता से अपने कार्य के लिए आवश्यक स्पष्टीकरण मांग सकता है और शंकाओं का समाधान कर सकता है।

(3) यदि उसे आवश्यक सूचना या स्पष्टीकरण प्राप्त न हो सके तो उसका उल्लेख वह अपनी रिपोर्ट में कर सकता है।

(4) उसको अपने नियोक्ता से पारिश्रमिक प्राप्त करने का अधिकार है।

कर्तव्य—अंकेक्षक के कर्तव्य के सम्बन्ध में कोई भी विधान नहीं है। साधारणतया यह उसका नैतिक कर्तव्य (moral duty) हो जाता है कि :

(1) वह व्यापारी के हिसाब-किताब की जांच करे और अपने कार्य में पूर्ण निष्पक्षता, ईमानदारी तथा सच्चाई का परिचय दे।

(2) वह कार्य की समाप्ति पर अपनी रिपोर्ट दे।

(3) यदि नियोक्ता उससे सुझाव मांगता है, तो वह व्यापार के कुशल कार्य के लिए अपने सुझाव दे, और । (4) वह अपने अधिकारों को भली प्रकार समझने के पश्चात अपने कार्य के क्षेत्र की जानकारी प्राप्त कर ले।

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अनिवार्य कर अंकेक्षण

(COMPULSORY TAX AUDIT)

आयकर अधिनियम, 1961 (Income Tax Act, 1961) की धारा 44AB के अन्तर्गत कुछ व्यक्तियों के हिसाब-किताब का अंकेक्षण कर-निर्धारण वर्ष (assessment year) 1985-86 से अनिवार्य कर दिया गया । है। इस धारा के अन्तर्गत प्रत्येक व्यक्ति के लिए

(अ) जो व्यापार करता है, यदि उसके गत वर्ष (Previous year) या वर्षों में जो 1 अप्रैल, 1985 अथवा इसके बाद के कर-निर्धारण वर्ष से सम्बन्धित हैं, व्यापार की कुल बिक्री, आवर्त (turnover) अथवा सकल प्राप्तियां 40 लाख से अधिक हों, अथवा

(ब) एक पेशा करने वाले व्यक्ति के लिए 1 अप्रैल, 1985 अथवा उसके बाद के कर-निर्धारण वर्ष से सम्बन्धित गत वर्ष या वर्षों में पेशे से सकल प्राप्तियां (gross receipts) 10 लाख से अधिक हों,

(स) यदि कोई व्यक्ति ऐसा व्यवसाय कर रहा हो जिसकी आय या लाभ धारा 44AD, 44AE अथवा 44AF के अन्तर्गत मानी गई हो परन्तु अपनी आय मानी गई राशि से कम होने का दावा करता हो। (इसका आशय है कि सिविल ठेकेदार, ट्रान्सपोर्ट ऑपरेटर्स तथा फुटकर व्यापारी धारा 44AB के अन्तर्गत निर्दिष्ट राशि से कम घोषित करने वाले खातों का कर-अंकेक्षण करवाने के लिए बाध्य होंगे चाहे उनका आवर्त (turnover) 40 लाख ₹ से कम हो।)

इसके बावजूद ठेकेदार, परिवहन ऑपरेटर्स तथा फुटकर व्यापारियों को धारा 44AB, 44AE तथा 44AF के अन्तर्गत Presumptive Income Scheme के अनुरूप आय घोषित करते हुए कर-अंकेक्षण से छूट दी जाती है बशर्ते इन धाराओं के अन्तर्गत निर्दिष्ट आय की वे घोषणा करते हों।

निर्दिष्ट तिथि से पूर्व (before the specified date) गत वर्ष या वर्षों के अपने हिसाब-किताब का अंकेक्षण चार्टर्ड एकाउण्टैण्ट से कराना अनिवार्य होगा। ऐसे व्यक्ति को निर्दिष्ट तिथि के पूर्व निर्धारित फॉर्म (prescribed form) में अंकेक्षण रिपोर्ट प्राप्त करनी होगी। यह रिपोर्ट अंकेक्षक के द्वारा सत्यापित टोपी तथा हस्ताक्षर की हुई होगी।

कर निर्धारण वर्ष 1994-95 से इस धारा के लिए निर्दिष्ट तिथि से निम्न आशय है :

(अ) एक कम्पनी की दशा में कर-निर्धारण वर्ष की 31 नवम्बर,

(ब) अन्य किसी दशा में कर-निर्धारण वर्ष की 31 अक्टूबर

इस प्रकार यह स्पष्ट है कि करदाताओं पर अपने हिसाब-किताब के अंकेक्षण कराने तथा अंकेक्षण-रिपोई सौँप दिया गया है। धारा 44AD, 44AE तथा 44AF के अन्तर्गत माने गए लाभों कम होने का दावा यदि कोई करदाता करता है तो उसे अपने बहीखातों का अंकेक्षा तक अंकेक्षण रिपोर्ट दाखिल करनी होगी।

अंकेक्षण करवाकर निर्दिष्ट तिथि तक अंकेक्षण रिप्रोट दाखिल करनी होगी ।

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दण्ड (Penalty)

धारा 271B के अन्तर्गत यदि कोई व्यक्ति धारा 44AB के अनुरूप खातों का अंकेक्षण नहीं कराता है तथा निर्दिष्ट रिपोर्ट नहीं प्राप्त कर पाता है, तो ऐसे व्यक्ति को व्यापार की कुल बिक्री, आवर्त (turnover) अथवा सकल प्राप्तियों अथवा पेशे की सकल प्राप्ति बराबर राशि अथवा 1 लाख र, जो भी कम

हो, दण्ड के रूप में देना होगा।

यदि करदाता यह सिद्ध कर देता है कि ऐसा न करने के लिए पर्याप्त कारण था जिससे वह हिसाब-कितान का अंकेक्षण न करवा सका, तो धारा 273B के अन्तर्गत वह दण्ड का भागी नहीं होगा।

अंकेक्षण रिपोर्ट (Auditor’s Report)

अपनी अंकेक्षण रिपोर्ट में अंकेक्षक को यह राय प्रकट करनी होती है कि

(अ) वित्तीय विवरण-पत्र संस्था के कार्यकलाप तथा लाभ या हानि का सच्चा व उचित चित्र प्रस्तत करते हैं (अंकेक्षक को यह रिपोर्ट में तब देना होता है जब करदाता के हिसाब-किताब की जांच किसी अन्य विधान के अन्तर्गत नहीं हुई है) तथा

(ब) अंकेक्षण-रिपोर्ट में संलग्न विवरण-पत्र में दिया हुआ विवरण सच्चा व सही है। रिपोर्ट के लिए निर्धारित व्यवहार निम्न प्रकार हैं

(अ) ऐसे व्यक्ति के लिए जो व्यापार करता है और किसी अन्य विधान के अन्तर्गत जिसके खातों का अंकेक्षण किया जाता है अंकेक्षक को Form 3CA में अपनी रिपोर्ट देनी होगी और इस रिपोर्ट के साथ Form 3CD में निर्धारित विवरण-पत्र संलग्न करना होगा।

(ब) ऐसे व्यक्ति के लिए जो व्यापार करता है, पर जिसके खातों का किसी अन्य विधान के अन्तर्गत अंकेक्षण नहीं किया गया है, अंकेक्षक को Form 3CB में रिपोर्ट देनी होगी और उसके साथ Form 3CD में निर्धारित विवरण संलग्न करना होगा।

(स) ऐसे व्यक्ति के लिए जो पेशा करता है, अंकेक्षक को Form 3CC में अंकेक्षण-रिपोर्ट देनी होगी (जो Form 3CB की तरह है) और Form 3CE में निर्धारित विवरण-पत्र संलग्न करना होगा।

अतः कर-अंकेक्षण के सम्बन्ध में रिपोर्ट वैसी ही है जैसी कि सामान्य रूप से दी जाती है। अतः कर-अंकेक्षक को अंकेक्षण करने तथा अंकेक्षण-रिपोर्ट प्रस्तुत करने में सामान्यतः स्वीकृत सिद्धान्तों का प्रयोग करना चाहिए।

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साझेदारी फर्म

(PARTNERSHIP FIRM)

नियुक्ति (Appointment) एकाकी व्यापार की भांति साझेदारी संस्था में भी अंकेक्षक की नियुक्ति के सम्बन्ध में कोई वैधानिक व्यवस्था नहीं है। अंकेक्षक की नियुक्ति साझेदारी संस्था तथा अंकेक्षक के बीच किये गये समझौते के आधार पर की जाती है। यदि नियुक्ति के सम्बन्ध में साझेदारी संलेख (Partnership Deed) में कोई शर्ते होती हैं तो उनका प्रभाव भी इस समझौते पर पड़ सकता है।

पारिश्रमिक (Remuneration)—पारिश्रमिक की रकम भी साझेदारी तथा अंकेक्षक के आपसी समझौते के अनसार निर्धारित की जाती है। हां, पारिश्रमिक के विषय में यदि साझेदारी संलेखों में कोई नियम नहीं । होता है, तो उसका प्रभाव पारिश्रमिक की दर पर पड़ सकता है।

अधिकार (Rights) अधिकार के लिए भी कोई वैधानिक नियम नहीं है। फिर भी उनके कछ अधिकार । हो सकते हैं। वे निम्नलिखित हैं:

(1) अंकेक्षक को साझेदारी संलेख देखने का पूर्ण अधिकार है।।

(2) उसे व्यापार में प्रयोग की गयी सभी लेखा पुस्तकों को देखने का अधिकार है।

(3) उसे अपना पारिश्रमिक प्राप्त करने का पूर्ण अधिकार है।

(4) अपने कार्य के मध्य उत्पन्न शंकाओ का समाधान करने और आवश्यक सचनाएं तथा स्पष्टीकरण प्राप्त करने का अधिकार है।

कर्तव्य inct-1) अपना कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व अंकेक्षक को (क) अपने कार्यक्षेत्र के सम्बन्ध में लिखित आदेश प्राप्त करना चाहिए; (ख) साझेदारी संलेख (Partnership Deed) तथा भारतीय साझेदारी अधिनियम, 1932 का अध्ययन करना चाहिए: (ग) संस्था में प्रयोग की जाने वाली पस्तकों की सची प्राप्त नी चाहिए तथा कर्मचारियों के नाम मालूम करने चाहिए: (घ) व्यापार में प्रयुक्त आन्तरिक निरीक्षण प्रणाला

करना चाहिए: और (ङ) व्यापार के विशेष पहलओं का अध्ययन करना चाहिए।

(2) अपना कार्य पूर्ण ईमानदारी तथा सच्चाई से करना चाहिए।

(3) उसको अपनी रिपोर्ट देनी चाहिए और यदि वह देखता है कि संस्था में साझेदारी संलेख अथवा भारतीय साझेदारी अधिनियम, 1932 के किन्हीं नियमों का पालन नहीं किया गया है, तो उसे ऐसी आपत्तियों का उल्लेख अपनी रिपोर्ट में अवश्य कर देना चाहिए।

(4) साथ ही यदि उससे संस्था के कुशल कार्य के सम्बन्ध में कछ सुझाव मांगे जाते हैं, तो यह उसका सनिक कर्तव्य हो जाता है कि इस सम्बन्ध में वह नियोक्ता को अपने ठोस सुझाव अवश्य दे।

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कम्पनी

(COMPANY)

वित्तीय अंकेक्षक (कम्पनी अधिनियम, 1956) (Financial Auditor under Companies Act, 1956)

कम्पनी अधिनियम, 1956 के अन्तर्गत यह प्रावधान है कि चार्टर्ड एकाउण्टेण्ट एक्ट, 1949 की परिभाषा के अन्तर्गत चार्टर्ड एकाउण्टैण्ट एक अंकेक्षक होगा।

चार्टर्ड एकाउण्टैण्ट एक्ट ने यह प्रावधान किया है कि इन्स्टीटयट ऑफ चार्टर्ड एकाउण्टैण्ट ऑफ इण्डिया का कोई भी सदस्य अंकेक्षक के रूप में कार्य करने का अधिकारी नहीं होगा, चाहे भारत में अथवा बाहर, जब तक कि उसने इन्स्टीटयूट की काउन्सिल (Council) से कार्य करने का प्रमाण-पत्र प्राप्त न कर लिया हो। इस प्रकार वित्तीय अंकेक्षक (Financial Auditor) कार्यरत (in practice) चार्टर्ड एकाउण्टेण्ट होता है। उसे वैधानिक अंकेक्षक (Statutory Auditor) भी कहा जाता है।

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अंकेक्षक की नियुक्ति

(APPOINTMENT OF AUDITORS)

कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 139 में अंकेक्षक की नियुक्ति से सम्बन्धित बातें दी गयी हैं। वे इस प्रकार हैं

(1) कम्पनी के प्रथम अंकेक्षक की नियुक्ति कम्पनी के पंजीयन के 30 दिन के अन्दर संचालक मण्डल के द्वारा की जाएगी, यदि कोई ऐसा करने में असफल रहता है, कम्पनी के सदस्यों को सूचित करेगा. जो 90 दिन के अन्दर EGM में ऐसा अंकेक्षक नियुक्त कर सकते हैं, जिसका कि कार्यकाल प्रथम साधारण सभा के समापन तक रहेगा।

(2) प्रत्येक कम्पनी अपनी वार्षिक साधारण सभा में किसी व्यक्ति अथवा फर्म को कम्पनी का अंकेक्षक नियक्त करेगी जो ऐसी सभा के समापन से छठवीं वार्षिक साधारण के समापन तक पद धारण करेगा। ऐसी सभा में अंकेक्षक की नियुक्ति की कम्पनी प्रत्येक वार्षिक साधारण सभा में सदस्यों द्वारा पष्टि कराएगी। इस प्रकार नियक्त अंकेक्षक से उसकी नियुक्ति के प्रति सहमति के साथ, एक प्रमाण-पत्र भी लिया जाएगा कि उसकी नियक्ति इस सम्बन्ध में निर्धारित शर्तों के अधीन हुई है और वह धारा 141 में निर्धारित पात्रता के मानदण्डों को पूरा करता है।

(3) प्रत्येक सुचीकृत कम्पनी अथवा निर्धारित वर्ग अथवा वर्गों की कम्पनी नियुक्ति अथवा पुनर्नियक्ति इन शर्तों के अधीन करेगी : का व्यक्ति को अंकेक्षक के रूप में पांच लगातार वर्षों की एक अवधि से अधिक नहींऔर को अंकेक्षक के रूप में पांच लगातार वर्षों वाली अवधि की दो समयावधियों से अधिक के लिए नहीं।

यह भी उल्लिखित है कि:

व्यक्ति, अंकेक्षक जिसने अपनी पांच वर्ष की समयावधि अंकेक्षक के रूप में पूरी कर ली है वह उसी कम्पनी में अगली पांच वर्ष की अवधि के लिए पुनर्नियुक्ति के लिए योग्य नहीं है. अंकेक्षक की फर्म जिसने उपर्युक्त (b) की अंकेक्षक की अवधि पूर्ण कर ली है. ऐसीपी पांच वर्षों के लिए उसी कम्पनी के अंकेक्षक के रूप में कार्य करने के लिए पात्र नहीं होगी ।

(4) सरकारी कम्पनी अथवा अन्य कोई कम्पनी जिसका स्वामित्व अथवा नियन्त्रण प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से केन्द्रीय सरकार अथवा किसी राज्य सरकार के अधीन है, अथवा आंशिक रूप से केन्द्र सरकार एवं

आंशिक रूप से एक अथवा अधिक राज्य सरकारों के अधीन है, भारतीय महालेखा परीक्षक एवं नियन्त्रक (CAG) द्वारा अधिनयिम में योग्य अंकेक्षक की नियक्ति, वित्त वर्ष के प्रारम्भ से 180 दिनों के अन्दर ऐसी वित्त वर्ष के लिए करेंगे, जिसका कार्य काल वार्षिक साधारण सभा की समाप्ति तक होगा।

(5) उपर्युक्त में वर्णित कम्पनी में प्रथम अंकेक्षक की नियुक्ति CAG द्वारा कम्पनी के पंजीकरण के 60 दिन के अन्दर की जाएगी। यदि CAG ऐसी नियुक्ति में असफल रहते हैं, संचालक मण्डल अगले तीस दिनों में अंकेक्षक की नियक्ति करेगा. यदि संचालक मण्डल ऐसी नियुक्ति में असफल रहता है, तो सदस्यों को सूचित किया जाएगा, जो EGM में अगले 60 दिनों में अंकेक्षक की नियुक्ति करेगी, जिसका कार्यकाल प्रथम वार्षिक साधारण सभा के समापन तक होगा।

(6) [धारा 139(7)] इस अधिनियम के प्रावधानों के अधीन किसी कम्पनी के सदस्य प्रस्ताव के अधीन निश्चित कर सकते हैं कि: (a) अंकेक्षक फर्म की नियुक्ति की स्थिति में, अंकेक्षक साझेदार और उसके दल के सदस्य ऐसे निर्धारित

अन्तराल पर बदलते रहेंगे, जैसा कि कम्पनी के सदस्य निर्धारित करें, अथवा (b) अंकेक्षण एक से अधिक अंकेक्षकों द्वारा किया जाएगा, केन्द्रीय सरकार रोटेशन सम्बन्धी नियमों एवं विधियों को निर्धारित कर सकती है।

(7)] [धारा 139 नियुक्ति के सम्बन्ध में अंकेक्षक का व्यावसायिक दायित्व—अपनी नियुक्ति के सम्बन्ध में स्वीकृति भेजने से पूर्व अंकेक्षक को चार्टर्ड एकाउण्टैण्ट्स एक्ट की धारा 22 की व्यवस्थाओं का ध्यान रखना चाहिए जो निम्नवत्

(1) इस प्रकार नियुक्त अंकेक्षक अपनी नियुक्ति की सूचना उस अंकेक्षक को दे देगा जिस स्थान पर वह नियुक्त किया जा रहा है और जो चार्टर्ड एकाउण्टेण्ट था।

(2) यह देखना चाहिए कि उसकी नियुक्ति के सम्बन्ध में कम्पनी अधिनियम की धाराओं का पूर्णरूपेण पालन किया गया है।

(3) अंकेक्षक अपनी नियुक्ति किसी प्रतिस्पर्धा के आधार पर स्वीकृत नहीं करेगा। अत्यधिक कम फीस पर नियुक्ति स्वीकार करना एक उदाहरण हो सकता है। इस नियुक्ति में पिछले अंकेक्षक को हटाने का इरादा प्रकट नहीं होना चाहिए।

(4) अपनी नियुक्ति के लिए प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से प्रयास या सिफारिश या दबाव का प्रयोग करना उनके लिए व्यावसायिक दुराचरण का दोष माना जायेगा जिस दोष का उसे भागी बनाया जा सकता ।

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अनिवार्य पुनर्नियुक्ति

(COMPULSORY REAPPOINTMENT)

वार्षिक साधारण सभा में अवकाश ग्रहण करने वाला अंकेक्षक ही, चाहे वह संचालक, साधारण सभा, केन्द्रीय सरकार किसी के भी द्वारा नियुक्त किया गया हो, पुनर्नियुक्त किया जायेगा। केवल नीचे लिखी परिस्थितियों में वह फिर से नियुक्त नहीं हो सकता है:

(1) यह पुनर्नियुक्ति के योग्य न हो;

(2) उसने कम्पनी को अपनी पुनर्नियुक्ति होने की अनिच्छा लिखित रूप में दे दी हो;

(3) बैठक में इस प्रकार का एक प्रस्ताव पास कर दिया हो कि उसे फिर से नियुक्त नहीं किया जायेगा अथवा उसके स्थान पर कोई दूसरा अंकेक्षक नियुक्त किया जायेगा।

(4) नये अंकेक्षक की नियुक्ति की सूचना दी जा चुकी हो, किन्तु प्रस्तावित अंकेक्षक की मृत्यु, अयोग्यता इत्यादि के कारण प्रस्ताव पर विचार न किया गया हो।

अंकेक्षक की नियुक्ति, पारिश्रमिक, योग्यताएं, अधिकार और कर्तव्य

अंकेक्षकत्व की संख्या पर प्रतिबन्ध

(RESTRICTION ON THE NUMBER OF AUDITORSHIP)

एक अंकेक्षक निम्न से अधिक कम्पनियों का अंकेक्षक नहीं हो सकता :

(i) ऐसी कम्पनियों की दशा में जिनमें प्रत्येक की चकता अंश-पूंजी 25 लाख र से कम है, निर्धारित संख्या 20 कम्पनी है;

(ii) अन्य कम्पनियों की दशा में निर्धारित संख्या 20 कम्पनियाँ हैं परन्त इनमें कम-से-कम 10 ऐसी होनी चाहिए जिनकी चकता अंश-पंजी 25 लाख ₹ से कम हो ।

(iii) यदि अंकेक्षकों की फर्म है तो प्रत्येक साझेदार के लिए बीस कम्पनियां निर्धारित की गई है।

निर्धारित संख्या की गणना करते समय उन कम्पनियों की संख्या गणना में आ जायेगी जिनके सम्बन्ध में या जिनके किसी भाग के सम्बन्ध में किसी व्यक्ति या फर्म की अंकेक्षक के रूप में नियुक्ति हुई है। चाहे ऐसी। नियक्ति अकेले हो या किसी के साथ हुई हो।

परन्तु उपर्युक्त संख्या में निम्न अंकेक्षण शामिल नहीं होंगे :

  • प्राइवेट कम्पनियों का अंकेक्षण;
  • भारतीय एवं विदेशी कम्पनियों की शाखाओं (branches) का अंकेक्षण:
  • गारन्टी कम्पनियों का अंकेक्षण बशर्ते इनकी अंश पूंजी न हो; वैधानिक निगमों का अंकेक्षण;
  • अन्वेषण (Investigation);
  • विदेशी कम्पनियों का अंकेक्षण;
  • विशेष अंकेक्षण (Special audit)
  • प्रत्येक कम्पनी को अंकेक्षक की नियुक्ति या पुनर्नियुक्ति करते समय उससे एक प्रमाण-पत्र लेना आवश्यक है कि उसकी नियुक्ति धारा 224(1B) में निर्धारित सीमाओं के अन्तर्गत हुई है।
  • कम्पनी किसी भी ऐसे व्यक्ति को अंकेक्षक नियुक्त नहीं कर सकती है जो कहीं अन्यत्र पूर्णकालीन रोजगार (fulltime employment) में कार्यरत हो।

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अंकेक्षक को हटाया जाना एवं आकस्मिक रिक्ती

(REMOVAL OF AN AUDITOR AND CASUAL VACANCY)

(1) धारा 139 के अधीन नियुक्त अंकेक्षक को, उसकी समयावधि से पूर्व कम्पनी द्वारा विशेष प्रस्ताव के अधीन केन्द्रीय सरकार के पूर्व अनुमोदन से हटाया जा सकता है। इस धारा के अधीन कोई भी निर्णय से पूर्व सम्बन्धित अंकेक्षक को सुनवाई का उचित अवसर दिया जाएगा।

[2) धारा 140(1)] ) यदि कोई अंकेक्षक अपने पद से त्याग-पत्र देता है, उसके तीस दिन के अन्दर कम्पनी रजिस्टार को निर्धारित प्रारूप में एक विवरण दाखिल करेगा, जिसमें उसके त्याग-पत्र सम्बन्धी कारण एवं अन्य सम्बन्धित तथ्यों का विवरण शामिल होगा। यदि ऐसा अंकेक्षण इस अनुपालन में कोई त्रुटि करता है, उस पर 50 हजार र से 5 लाख तक का अर्थदण्ड अधिरोपित किया जाएगा।

(3) [धारा 140(2)] धारा 140(4) के अनुसार सेवानिवृत हो रहे अंकेक्षक के स्थान पर किसी अन्य व्यक्ति के अंकेक्षक नियक्त किए जाने के सम्बन्ध में अथवा स्पष्ट रूप से यह व्यक्त करना कि सेवानिवृत अंकेक्षक को पुनर्नियक्ति 14 दिन के विशेष नोटिस द्वारा ऐसा प्रस्ताव AGM में रखा जा सकता है।

यदि ऐसे अंकेक्षक ने अपनी नियुक्ति के लगातार पांच वर्ष (व्यक्ति अंकेक्षक) अथवा 10 वर्ष (फर्म अंकेक्षक) की समयावधि पूर्ण कर ली है, तब ऐसा विशेष नोटिस अपेक्षित नहीं है।

ऐसे प्रस्ताव का नोटिस प्राप्त होने पर कम्पनी उसकी एक प्रति तुरन्त सेवानिवृत होने वाले अंकेक्षक को भेजेगी । यदि ऐसा अंकेक्षक चाहे तो अपना लिखित उत्तर भेज कर सदस्यों को सूचित करने का अनरोध कर सकता है यदि समयाभाव के कारण इस उत्तर की प्रतियां नहीं भेजी जा सके तब, अंकेक्षक का उत्तर सभा में पढ़कर सुनाया जा सकता है।

यदि उत्तर की प्रति सदस्यों को नहीं होती गयी है। अंकेक्षक एक प्रति रजिस्ट्रार को फाइल की जा सकती है ।

(4) ट्रिब्यूनल स्वयं प्रेरित होकर अथवा किसी सम्बन्धित व्यक्ति अथवा केन्द्र सरकार के आवेदन पर संतुष्ट है कि कम्पनी के अंकेक्षक ने प्रत्यक्षतः अथवा अप्रत्यक्षतः कपटभय कार्य किया है अथवा किसी संचालक अथवा अधिकारी के साथ मिलीभगत है, अथवा ऐसा कपट करने को उकसाया है, ट्रिब्यूनल अपने आदेश के अधीन कम्पनी को ऐसे अंकेक्षक को बदलने का निर्देश दे सकता है।

ऐसा अंकेक्षक अथवा फर्म जिसके विरुद्ध टिव्यनल ने उपर्युक्त आदेश पारित किया है, अगले पांच वर्षों तक किसी अन्य कम्पनी का अंकेक्षक नियुक्त नहीं किया जाएगा और धारा 477 के अधीन कार्यवाही के लिए दायी रहेगा।

 (5)] धारा 140 चार्टर्ड एकाउण्टैण्ट्स एक्ट (Chartered Accountants Act) के अन्तर्गत एक अंकेक्षक को उसकी समयावधि (term) के पूर्व हटाया जा सकता है यदि वह व्यावसायिक दुराचरण (professional misconduct) का दोषी पाया जाता है। वैधानिक अंकेक्षण के सम्बन्ध में उसके हटाये जाने के लिए निम्न प्रावधान महत्वपूर्ण हैं:

(1) यदि कोई अंकेक्षक कम्पनी का अंकेक्षक बनने के लिये पुराने अंकेक्षक से पत्र-व्यवहार किये बिना अपनी स्वीकृति दे देता है।

(2) यदि कोई अंकेक्षक (Chartered Accountant in practice) इन्स्टीट्यूट की अनुमति लिये बिना लेखाकर्म के व्यवसाय के अतिरिक्त किसी अन्य कार्य में संलग्न हो जाता है।

(3) यदि कोई चार्टर्ड एकाउण्टैण्ट अपने व्यावसायिक कार्यों के पूर्ण करने में अत्यधिक लापरवाही दिखलाता है।

(4) यदि वित्तीय विवरणों में होने वाली गलत बयानी को कोई चार्टर्ड एकाउण्टैण्ट जानते हुए भी अपनी रिपोर्ट में लिखने में असफल होता है।

(5) यदि कोई चार्टर्ड एकाउण्टैण्ट किसी व्यवसाय अथवा उपक्रम के वित्तीय विवरणों पर अपनी राय प्रकट करता है जिससे वह, उसकी फर्म अथवा उसकी फर्म का साझेदार पर्याप्त हित (substantial interest) रखते हैं जब तक कि अपनी रिपोर्ट में वह उस हित को प्रकट नहीं करता है।

(6) यदि कोई चार्टर्ड एकाउण्टैण्ट इस अधिनियम के किसी प्रावधान अथवा उनके अन्तर्गत बने निर्देशों (regulations) का उल्लंघन करता है।

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अंकेक्षक का पारिश्रमिक

(REMUNERATION OF AN AUDITOR)

सामान्य नियम है कि जो अधिकारी अंकेक्षक की नियुक्ति करता है वही उसका पारिश्रमिक तय करता है।

कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 142 के अनुसार अंकेक्षक के पारिश्रमिक के सम्बन्ध में व्यवस्था निम्नवत् है:

(1) यदि अंकेक्षक की नियुक्ति संचालकों के बोर्ड या केन्द्रीय सरकार के द्वारा की जाती है, तो पारिश्रमिक भी बोर्ड या केन्द्रीय सरकार के द्वारा तय किया जाता है।

(2) अन्य दशाओं में अंकेक्षक का पारिश्रमिक साधारण सभा से या सभा में जैसा कम्पनी निश्चित करे, उसके अनुसार निर्धारित किया जाता है।

यदि कम्पनी ने अंकेक्षक के खर्चों (auditor’s expenses) के लिए कुछ भुगतान किया हो, तो यह रकम भी पारिश्रमिक में शामिल कर ली जाएगी, परन्तु कम्पनी के अनुरोध पर अन्य किसी प्रदत्त सेवा के बदले चुकता राशि पारिश्रमिक में शामिल नहीं होगी।

अंकेक्षक की स्थिति

(STATUS OF THE AUDITOR)

(1) अंशधारियों का एजेण्ट (Agent of the Shareholders) अंकेक्षक की नियक्ति संचालकों और अंशधारियों के द्वारा की जाती है। प्रश्न यह उठता है कि अंकेक्षक संचालकों का एजेण्ट है अथवा अंशधारियों का।

इस प्रश्न का सीधा-सा उत्तर यह है कि अंकेक्षक अंशधारियों का एजेण्ट है। इस प्रकार का निर्णय Spackman vs. Evans के मुकदमे में लॉर्ड ऊनवर्थ (Lord Cranworth) ने दिया था : “The auditors may be agents of the shareholders so far as relates to the audit of the accounts. For the purposes of the audit the auditors will bind the members.”

इस प्रकार जहां तक हिसाब-किताब की जाँच का सम्बन्ध है. एक अंकेक्षक कम्पनी के अंशधारिया का। नीट है। वास्तव में, कम्पनी का अंकेक्षक अंशधारियों का विश्वस्त प्रतिनिधि होता है, जो उनके हितों का

करने के लिए उत्तरदायी होता है। वह इस कार्य को हिसाब-किताब के विवरण पत्रों (Statement of Account) की जाँच करने के पश्चात् अपनी रिपोर्ट देकर पूर्ण करता है, जो प्रबन्ध करने वालों के द्वारा उनके कार्यकाल में अंशधारियों के सम्मुख प्रस्तुत करने के लिए तैयार किये जाते हैं।

(2) कम्पनी का अधिकारी (An Officer of Company) क्या अंकेक्षक कम्पनी के मैनेजर,  एराउटैण्ट मन्त्री आदि की तरह कम्पनी का अधिकारी है ? वास्तव में, अंकेक्षक कम्पनी का अधिकारी नहीं है. परन्तु कम्पनी अधिनियम, 2013 की कुछ धाराओं के अन्तर्गत उसे कम्पनी का अधिकारी माना गया है। ये धाराएं 299, 300, 340, 342, 439, और 463 हैं :

धारा 299 कम्पनी की सम्पत्ति को अनुचित रूप से अपने अधिकार में रखने वाले व्यक्तियों को समापन की स्थिति में बुलाने के सम्बन्ध में ट्रिब्यूनल का अधिकार।

धारा 300 छल-कपट के दोषी अधिकारियों की सार्वजनिक जांच का आदेश देने के सम्बन्ध में ट्रिब्यूनल के अधिकार।

धारा 340–अपराधी अफसरों के विरुद्ध हानि का अनुमान लगाने के सम्बन्ध में ट्रिब्यूनल के अधिकार। धारा 342–अपराधी अधिकारियों और सदस्यों के विरुद्ध कार्यवाही। धारा 439-अपराध संज्ञेय नहीं होंगे।

धारा 463—कुछ मामलों में राहत प्रदान करने सम्बन्धी न्यायालय के अधिकार अर्थात् लापरवाही, उल्लघंन, कर्त्तव्यभंग, विलोपन (चूक) आदि मामलों में।

__कम्पनी के अंकेक्षक अंशधारियों के हितों की रक्षा के लिए कम्पनी के संचालकों पर अपना नियन्त्रण रखते हैं। Kingston Cotton Mills Co. Ltd. (1896) तथा London and General Bank (1895) के मुकदमों में इस प्रकार का निर्णय दिया गया था कि अंकेक्षक कम्पनी के अधिकारी हैं।

उसी प्रकार Connel vs. Himalayas Bank (1895) के मुकदमे में यह कहा गया था कि कम्पनी की साधारण सभा में नियुक्त किये गये अंकेक्षक कम्पनी के अधिकारी होते हैं।

(3) कम्पनी का सेवक (A Servant of the Company)—यह भी प्रायः स्पष्ट हो जाता है कि अंकेक्षक कम्पनी से पारिश्रमिक प्राप्त करता है। अतः वह इस सीमा तक कम्पनी का सेवक हो सकता है कि वह पारिश्रमिक के उपलक्ष में अपनी सेवाएं कम्पनी को देता है। डॉक्टर व वकील को उनकी सेवाओं के लिए फीस दी जाती है. पर उन्हें नौकर नहीं कहा जा सकता। इस प्रकार वह अन्य कर्मचारियों की भांति नौकर नहीं बनता। इसका अर्थ यह है कि वह कम्पनी के संचालकों का नौकर नहीं है, बल्कि उसकी नियक्ति संचालकों के कार्यों की जांच करने के लिए होती है। हा आन्तरिक अंकेक्षक की स्थिति भिन्न हो सकती है। वह कम्पनी का नौकर कहा जा सकता है।

Auditor Appointment Remuneration Qualification

chetansati

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