BCom 2nd year Augmenting Meeting Local Demand Earning Study Material Notes in Hindi

//

BCom 2nd year Augmenting Meeting Local Demand Earning Study Material Notes in Hindi

Table of Contents

BCom 2nd year Augmenting Meeting Local Demand Earning Study Material Notes in Hindi: Meaning and Definition of Demand Elements of Demand Factors Affecting Demand Kinds or Types Demand Augmenting Factors meeting local Demand Meaning of Forex Earnings Account New Economic Policy Trends Indian Exports  India Foreign Trade Century Effect Forex Earnings Main Sources Forex Earnings :

Augmenting Meeting Local Demand
Augmenting Meeting Local Demand

BCom 3rd Year Corporate Accounting Underwriting Study Material Notes in hindi

स्थानीय माँग का आवर्धन एवं पूर्ति तथा विदेशी विनिमय अर्जन

(Augmenting and Meeting Local Demand and Forex Earnings)

“माँग का आशय किसी वस्तु अथवा सेवा की उस मात्रा से होता है जिस पर उपभोक्ता बाजार में दिये गये समय एवं मूल्य पर क्रय करने को तत्पर होता है।”

शीर्षक

  • माँग का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Demand)
  • माँग के तत्त्व (Elements of Demand) माँग को प्रभावित करने वाले घटक (Factors Affecting Demand)
  • माँग के प्रकार (Kinds or Types of Demand)
  • स्थानीय माँग से आशय (Meaning of Local Demand)
  • स्थानीय माँग का आवर्धन एवं पूर्ति के घटक (Augmenting Factors and Meeting Local Demand)
  • विदेशी विनिमय अर्जन का अर्थ (Meaning of Forex Earnings)
  • नई आर्थिक नीति के परिणामस्वरूप-भारतीय निर्यात की प्रवृत्ति (On Account of New Economic Policy-Trends of Indian Exports)
  • इक्कीसवीं सदी में भारत का विदेशी व्यापार (India’s Foreign Trade in 21st century)
  • विदेशी विनिमय अर्जन पर प्रभात (Effect of Forex Earnings)
  • विदेशी विनिमय अर्जन के प्रमुख स्रोत (Main sources of Forex earning)

माँग का अर्थ एवं परिभाषा

(Meaning and Definition of Demand)

अर्थशास्त्र में माँग की परिभाषा भिन्न-भिन्न रूपों में दी गई है। वास्तव में माँग से हमारा आशय किसी वस्तु अथवा सेवा की उस मात्रा से है जिसे उपभोक्ता बाजार में दिये गये समय एव दिये गये मूल्य पर क्रय करने के लिए तैयार है। विभिन्न अर्थशास्त्रियों द्वारा माँग की जो परिभाषायें दी गई हैं उनको हम तीन भागों में बाँट सकते हैं

में माँग की उन परिभाषाओं को शामिल किया जाता है जो माँग को प्रभावी इच्छा (Effective Desire) मावानी स्वीकार करती हैं। इस वर्ग के अर्थशास्त्रियों में पेन्सन (Penson) की परिभाषा प्रमुख रूप से सामने आती है।। इनके अनुसार, “माँग से आशय प्रभावी इच्छा से होता है जिसमें (i) किसी वस्तु को प्राप्त करने की इच्छा; (ii) उसे क्रय करने के साधन; एवं (iii) इन साधनों को वस्तु को खरीदने के लिये उपयोग करने की तत्परता को शामिल करते हैं।” ।

द्वितीय वर्ग में माँग की उन परिभाषाओं को शामिल करते हैं, जो वस्तु के मूल्य के सन्दर्भ में दी गई हैं। इस वर्ग में आने वाले अर्थशास्त्रियों की मान्यता है कि वस्तु का मूल्य और इसकी माँग में परस्पर गहरा सम्बन्ध है। क्योंकि यदि वस्तु का। मूल्य घटता है तो उसकी माँग बढ़ती है एवं इसके विपरीत वस्तु के मूल्य में वृद्धि होने पर उसकी माँग में कमी हो जाती है।” इस वर्ग की परिभाषाओं में जे. एस. मिल (J. S. Mill) की परिभाषा आती है। इसके अनुसार, “माँग का अभिप्राय केसी वस्तु की उस मात्रा से होता है जो कि एक निश्चित मूल्य पर खरीदी जाती है।” अर्थात् माँग सदैव मूल्य से सम्बन्धित होती है।

तृतीय वर्ग में वे परिभाषायें आती हैं जिसमें माँग को मूल्य तथा समय से सम्बन्धित (Related to Price and Time) किया गया है। इस वर्ग की परिभाषाओं में प्रो. बेन्हम (Prof. Benham) की परिभाषा आती है। उनके अनुसार, “किसी दिए हुए मूल्य पर वस्तु की माँग उस परिणाम (मात्रा) को कहते हैं जो उस मूल्य पर एक निश्चित समय में क्रय की जाती है।” उपर्युक्त तीनों वर्गों में तीसरे वर्ग की परिभाषा को अधिक स्पष्ट व तार्किक माना गया है। ।

निष्कर्ष रूप में, माँग का आशय किसी वस्तु अथवा सेवा की उस मात्रा से है जिसे बाजार में दिए गये समय व मूल्य पर लेने के लिए उपभोक्ता तत्पर हो।”

माँग की उपर्युक्त परिभाषाओं व विचारों का अध्ययन करने के उपरान्त माँग में निम्न तत्व विद्यमान रहते हैं

माँग के तत्त्व

(Elements of Demand),

(1) किसी वस्तु को प्राप्त करने की इच्छा,

(2) उसको क्रय करने के साधन,

(3) साधनों को व्यय करने की तत्परता,

(4) वस्तु को प्राप्त करने की इच्छा का उसके मूल्य से सम्बन्धित होना, एवं

(5) वस्तु की माँग का सम्बन्ध किसी विशेष समय से होना।

माँग को प्रभावित करने वाले घटक (Factors Affecting Demand)

किसी वस्तु अथवा सेवा की माँग को प्रभावित करने वाले घटक निम्न हैं

(1) किसी वस्तु का मूल्य (Price of the Commodity)

(2) सम्बन्धित वस्तु का मूल्य (Price of Related Commodities)

(3) प्राप्तकर्ता की आय के संसाधन (Resources of the Consumer)

(4) वस्तु के मूल्य परिवर्तन की सम्भावनायें (Expectations of Price Change of the Commodities)

(5) उपभोक्ता की रुचि एवं प्राथमिकतायें (Taste and Preferences of the Consumer)

(6) आय का वितरण (Distribution of Income)

(7) जनसंख्या का आकार व रचना (Size and Composition of Population)

माँग के प्रकार (Types or Kinds of Demand)

माँग मुख्यत: तीन प्रकार की होती है

(1) स्थानीय माँग (Local Demand)

(2) राष्ट्रीय माँग (National Demand)

(3) अन्तर्राष्ट्रीय माँग (International Demand)

स्थानीय माँग से आशय (Meaning of Local Demand)

स्थानीय माँग से हमारा अभिप्राय स्थानीय ग्राहकों की माँग से है, जो कि उसके क्षेत्र (गाँव कस्बा, अथवा नगर) अधिकांश स्थानीय की पूर्ति स्थानीय संसाधनों (जैसे स्थानीय कच्चा माल, स्थानीय श्रम, स्थानीय पूँजी, स्थानीय तकनीक, स्थानीय कटीर द्वारा निर्मित औजार आदि) के द्वारा निर्मित वस्तुओं के द्वारा पूरी होती है। स्थानीय माँग अग्रलिखित घटनाओं से प्रभावित होती।

(1) स्थानीय ग्राहकों की संख्या।

(2) स्थानीय ग्राहकों की आय का स्तर।

(3) स्थानीय ग्राहकों की दृष्टि में वस्तु की उपयोगिता (Utility of the Commodity from Local Customer View)

(4) स्थानीय जनसंख्या का आकार (Size of Local Population)

(5) माँग की प्रकृति (आवश्यकता, आरामदेय अथवा विलासिता)

(6) वस्तु की स्थानीय ग्राहकों की आवश्यकताओं को पूरा करने की क्षमता (Capacity of the Commodity to Satisfy Local Customers Need)

(7) वस्तु के उत्पादन में स्थानीय संसाधनों का योगदान (Local Resources of the Production of the             Commodity)

(8) स्थानीय ग्राहकों रुचि एवं प्राथमिकताएँ (Taste and Preferences of Local Customers)

(9) प्रतियोगिता का स्तर (Level of Competition)

(10) वस्तु की किस्म (Quality of the Commodity)

(11) माँग की तीव्रता (Intensity of Demand)

(12) वस्तु का मूल्य (Price of the Commodity)

स्थानीय माँग का आवर्धन एवं पूर्ति के घटक

(Augmenting Factors and Meeting of Local Demand)

स्थानीय माँग का आवर्धन एवं पूर्ति करने वाले प्रमुख घटक इस प्रकार हैं

(1) स्थानीय ग्राहकों से व्यक्तिगत सम्पर्क।

(2) स्थानीय ग्राहकों की माँग का अध्ययन।

(3) स्थानीय ग्राहकों में वस्तु के प्रति विश्वास जाग्रत किया जाना।

(4) वस्तु की गुणवत्ता।

(5) वस्तु पसन्द न आने पर उसे वापस करने की सुविधा।

(6) वस्तु की साख (Credit) पर बेचने की सुविधा।

(7) वस्तु का प्रतियोगी मूल्य।

(8) दुकान पर आये ग्राहक का भव्य स्वागत।

(9) पर्याप्त मात्रा में वस्तु की उपलब्धता।

(10) स्थानीय ग्राहकों के उपयोग में आने वाली लगभग सभी प्रकार की वस्तुओं की एक ही दुकान पर उपलब्धता।

विदेशी विनिमय अर्जन का अर्थ

(Meaning of Forex Earnings)

किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के विकास में विदेशी विनिमय अर्जन (Forex Earnings) का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। विदेशी विनिमय अर्जन अर्थव्यवस्था का मूल आधार होता है। विदेशी विनिमय अर्जन से हमारा तात्पर्य देश में विदेशी मुद्रा के आगमन से होता है। एक समय था जब हमारे विदेशी मुद्रा के भण्डार लगभग समाप्त हो चुके थे। सरकार को विदेशों से आवश्यक वस्तुओं (Essential Commodities) का आयात करने के लिए देश के स्वर्ण भण्डारों को गिरवी रखना पड़ा था। धीरे-धीरे इस स्थिति में सुधार हुआ। आज हम कृषि व सम्बद्ध उत्पाद, अयस्क और खनिज (कच्चा लोहा) विनिर्मित वस्तुएँ; जैसे-सिले सिलाये कपड़े, जूट उत्पाद,चमड़ा व उससे विनिर्मित सामान, हस्तशिल्प, आभूषण, रसायन और उससे सम्बद्ध उत्पाद, इंजीनियरिंग वस्तुएँ तथा अन्य अवर्गीकृत वस्तुओं का निर्यात कर विदेशी मुद्रा का अर्जन करते हैं। सरकार ने आर्थिक नीतियो। में क्रान्तिकारी परिवर्तन किये हैं। सन् 1991 की आर्थिक नीति ने तो देश का स्वरूप ही बदल कर रख दिया है। उदारीकरण (Liberalisation), निजीकरण (Privatisation), विश्वव्यापीकरण (Globalisation) ने तो इस स्थिति को ही बदल कर रख दिया है।

स्थानीय माँग का आवर्धन एवं पूर्ति तथा विदेशी विनिमय अर्जन

तत्कालीन वाणिज्य एवं उद्योगमन्त्री, भारत सरकार, मुरासोली मारन ने 31 मार्च, 2002 को आगामी पाँच वर्षों के लिए आयात-निर्यात नीति की सदन में घोषणा की। देश में निर्यात को बढ़ावा तथा विश्व बाजार में 1% निर्यात का लक्ष्य प्राप्त करन के लिये इस नीति में कुछ संवेदनशील वस्तुओं को छोड़कर अन्य सभी वस्तुओं के निर्यात पर लगे मात्रात्मक प्रतिबन्धों को हटा। दिया गया। साथ ही विशेष आर्थिक क्षेत्रों जैसे कृषि निर्यात क्षेत्रों, लघु एवं कटीर उद्योगों, रत्न व आभूषण उद्योग को प्रोत्साहन देकर अमेरिका सहित कुछ नये बाजारों में निर्यात बढ़ाने पर जोर दिया गया है। विशेष आर्थिक क्षेत्र की इकाइयों को प्रतिस्पर्धात्मक। बनाने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय ब्याज दर पर ऋण देने की घोषणा की गई है। निर्यातकों की कारोबारी लागत घटाने के लिए कार्यविति, को सरल बनाने के लिए नया वर्गीकरण लागू किया गया है। इससे वर्गीकरण सम्बन्धी विवादों में कमी होगी और निर्यातको की। कारोबारी लागत कम हो जाएगी और विलम्ब की मात्रा में भी कमी होगी। विशेष आर्थिक क्षेत्रों को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा में बनाये रखने के लिए पहली बार इन क्षेत्रों में भारतीय बैंकों को विदेशी शाखाएँ खोलने की अनुमति दी गई है। भारतीय रिजर्व बैंक की अनुमति से इन बैंक शाखाओं को नकदी आरक्षण अनुपात (Cash Reserve Ratio) और सांविधिक तरलता अनुपात (S.LR.) के नियमों से छूट दी गई है। इन शाखाओं से विशेष आर्थिक क्षेत्र की इकाइयों को अन्तर्राष्ट्रीय दरों पर वित्तीय सुविधा उपलब्ध हो सकेगी।

आयात-निर्यात नीति (2002-07) में दसवीं योजना के सकल देशी उत्पाद के 8 प्रतिशत के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए वर्ष 2007 तक विश्व व्यापार में 1 प्रतिशत भागीदारी प्राप्त करने का लक्ष्य रखा है। विश्व व्यापार में वर्तमान में भारत की भागीदारी 67 प्रतिशत है। दसर्वी योजना के अन्त तक निर्यात को बढ़ाकर लगभग दो गुना किया जाएगा अर्थात् निर्यात 80 अरब यू. एस. डॉलर तक बढ़ाया जाना प्रस्तावित है। सन 2001-02 में निर्यात 46 अरब डॉलर था, इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए निर्यात की 11.9 प्रतिशत की औसत वार्षिक वृद्धि-दर प्राप्त करनी होगी।

नई आर्थिक नीति का मूलभूत उद्देश्य भारतीय उद्योगपतियों तथा विदेशी उद्योगपतियों में पुनः विश्वास जाग्रत करना, देश की अर्थव्यवस्था में प्रतियोगी पर्यावरण तैयार करना, उत्पादकता उत्पादन एवं कुशलता में वृद्धि करना है।

नई आर्थिक नीति के परिणामस्वरूपभारतीय निर्यात की प्रवृत्ति

(On Account of New Economic Policy-Trends of Indian Export)

योजनाओं के अन्तर्गत भारत ने जब तीव्र गति से आर्थिक विकास की प्रक्रिया शुरू की तब उसका निर्यात मुख्य रूप से कच्ची सामग्री तथा असंसाधित (unprocessed) वस्तुओं एवं खनिजों का था। ज्यों-ज्यों आर्थिक विकास की गति तेज होती गई तथा देश में एक मजबूत औद्योगिक आधार कायम होने लगा, हमारे निर्यात की संरचना में भी परिवर्तन होने लगा तथा निर्मित वस्तुओं का निर्यात बढ़ने लगा, किन्तु ऐसा योजना प्रारम्भ होने के 15 वर्षों के बाद से ही सम्भव हो सका। इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं

  • भारत का निर्यात मुख्य रूप से चाय, कपास, रुई से निर्मित वस्तुओं का था जिनकी माँग विश्व बाजार में बेलोचदार थी।
  • भारत में कीमतों में वृद्धि तथा निर्यात वस्तुओं की ऊँची उत्पादन लागत के कारण ये विश्व बाजार में स्पर्धा नहीं कर सकती थी।
  • 1966 में रुपए का अवमूल्यन (devaluation) किया गया। इसके बाद ही हमारे निर्यात की कीमत के मामले में लाभ मिलना शुरू हुआ।

इस अवधि में भारत सरकार ने समाजवादी देशों के साथ कई द्विपक्षीय समझौते किए जिससे हमारे निर्यात को प्रोत्साहन मिला। साथ ही सरकार ने निर्यात प्रोत्साहन के लिए कई प्रकार की राजकोषीय एवं नकद प्रेरणाएं प्रदान की। सरकार ने निर्यात को बढावा देने के लिए कई निर्यात प्रोत्साहन परिषदों की स्थापना भी की। इन उपायों का परिणाम यह हआ कि 1970 के दशक में हमारे निर्यात में तेजी से वृद्धि हुई। फिर भी निर्यात आयात से पीछे ही रहे।

1990 के दशक के आर्थिक सुधारों का अच्छा परिणाम निकला है निर्यात के सम्बन्ध में। 1990-91 में हमारा निर्यात G.D.P का 5.8 प्रतिशत था। 1995-96 में यह बढ़कर 9.1 प्रतिशत तथा 2001-02 में 9.4 प्रतिशत हो गया। 1948 में विश्व व्यापार में भारतीय निर्यात का हिस्सा 2.2 प्रतिशत था। इसमें लगातार हास हुआ-1953 में 1.3 प्रतिशत, 1963 में 1.0 प्रतिशत. 1973 तथा 1983 में 0.5 प्रतिशत, 1993 में इसम मामूला वृद्धि होकर 0.6 प्रतिशत तथा 2001 में 07 प्रतिशत हो गया। अन्य देशों से तुलना करने पर भारत की स्थिति सही जानकारी मिल सकती है। 2001 में विश्व व्यापार । में चीन का हिस्सा 4.3 प्रतिशत, कोरिया का 2.4 प्रतिशत, मलेशिया का 1.4 प्रतिशत, थाईलैण्ड का 1.1 प्रतिशत तथा दण्डोनेशि का 0.9 प्रतिशत रहा था। इस प्रकार छोटे-छोटे देशों की तुलना में निर्यात के मामले में भी हम काफी पीछे हैं ।

भारत के निर्यात को चार वर्गों में बाँटा गया है, यथा (1) कृषि एवं सम्बद्ध वस्तुएँ जैसे–चाय, कॉफी, तम्बाकू, काजू मसाले, चीनी, कच्चा कपास, मछली मांस, वनस्पति तेल, फल, सब्जी तथा दालें, (ii) कच्ची धातु तथा खनिज, (iii) निर्मित वस्तुए, जैसे-सूती कपड़े, बने-बनाए पोशाक, पटसन से निर्मित वस्तुएँ, चमड़ा तथा जूते, हस्तकला की वस्तुएं, बहुमूल्य पत्थर रसायन, इंजीनियरिंग वस्तएँ तथा इस्पात, एवं (iv) खनिज ईंधन तथा चिकनाई (lubricants)||

उपर्युक्त निर्यात को दो वर्गों में बाँटा जा सकता है (क) पारम्परिक वस्तुएँ (Traditional exports) जैसे पटसन तथा पटसन से निर्मित वस्तुएँ, कपास तथा कपास से बनी वस्तुएँ, चाय, तिलहन, चमड़े आदि, तथा (ख) गैर-पारम्परिक वस्तुएँ (Non-traditional items) जैसे—इंजीनियरिंग वस्तुएँ, हस्तकला की वस्तुएँ, मोती, बहुमूल्य पत्थर, जेवर एवं जवाहरात, लोहा एवं इस्पात, रसायन, बने-बनाए पोशाक, चीनी, मछली, काजू, कॉफी, आदि। 2001-02 में इन चारों वर्गों का हिस्सा कुल निर्यात में इस प्रकार था

वस्तु समूह

कुल निर्यात में हिस्सा (%)

1.    कृषि तथा सम्बद्ध वस्तुएँ

13-4

2.     कच्ची धातु एवं खनिज

2.9

3.    निर्मित वस्तुएँ जिनमें

76-1
हीरे एवं जवाहरात

16-7

दवाए

4-7

 

बने-बनाए वस्त्र

11- 4

4 पेट्रोलियम तथा पेट्रोलियम वस्तुएँ

4.8
5. अन्य एवं अवर्गीकृत वस्तुएँ

2.8

कुल

1000

 

हमारे निर्यात OECD देशों, OPEC देशों तथा एशिया, अफ्रीका एवं लैटिन अमेरिकी विकासशील देशों को होते हैं। 2001-02 में कल निर्यात का 49.3 प्रतिशत OECD देशों को हुआ जिसमें अमेरिका का हिस्सा 19.4 प्रतिशत, ब्रिटेन का 4.9 प्रतिशत, जापान का 3.4 प्रतिशत था। OPEC देशों का हिस्सा 12.0 प्रतिशत, पूर्वी यूरोप का 2.3 प्रतिशत (रूस का 1.8 प्रतिशत), विकासशील देशों को 28.0 प्रतिशत (जिनमें एशिया के विकासशील देशों को 22.4 प्रतिशत) तथा अन्य स्रोतों को 7.3 प्रतिशत गया।

नीचे तालिका निर्यात में वृद्धि को प्रस्तुत कर रही हैं।

निर्यात

वर्ष

करोडं रुपए मिलियन रुपए

1950-51

606 1,269
1960-61 642

1,346

1970-71

1,535

2,031

1980-81 6,711

8,486

1990-91

32,553 18,143
2000-01 20,3571

44,560

2001-02

2,0,9018 43,827
2002-03 अप्रैल – दिस्मबर 1,85,211

38,1151

 

विदेशी मुद्रा अर्जन की ओर एक प्रयास

इक्कीसवीं सदी में भारत का विदेशी व्यापार

(India’s Foreign Trade in 21st Century)

के दशक में विश्व व्यापार के परिमाण (volume) में औसत वार्षिक वृद्धि की दर 6.5 प्रतिशत थी। 2000 में यह वृद्धि दर 11-0 प्रतिशत हो गई, किन्त 2001 में यह घटकर मात्र 1.5 प्रतिशत रह गई। इस हास का प्रमुख प प्रमुख औद्योगिक एवं पूर्व एशियाई देशों में आर्थिक विकास का धीमा पड़ना। विश्व व्यापार की कीमतों में भा गिरावट जा 11 सितम्बर, 2001 की अमेरिकी घटना का भी प्रभाव पड़ा। इन सबका प्रभाव विश्व निर्यात पर भी पड़ा। लाकन भारत निर्यात की हालत उतनी बुरी नहीं रही।

डॉलर के रूप में 2001-02 में भारतीय निर्यात में 1.6 प्रतिशत का ास हुआ जबकि 2000-01 में इसमें 21-0 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। 1990 के दशक में भारतीय निर्यात की औसत वार्षिक वृद्धि दर 8.6 प्रतिशत रही थी। अप्रैल-दिसम्बर 2002 में भारतीय निर्यात की वृद्धि दर 20.4 प्रतिशत हो गई। विश्व अर्थव्यवस्था में आशा के अनकल विकास नहीं होने पर भा भारताय। निर्यात में इस वृद्धि के लिए निम्न कारण जिम्मेदार रहे

(i) अन्तर्राष्ट्रीय वस्तुओं की कीमतों में 2002 में वृद्धि,

(ii) घरेलू विनिर्माण क्षेत्र का विकास,

(iii) मौद्रिक एवं वास्तविक प्रभावी ढंग से रुपए का अवमूल्यन, एवं

(iv) सरकार द्वारा किए गए अनेक निर्यात प्रोत्साहन उपायों के कारण जवाहरात एवं हीरा-मोती, कपड़े, इन्जीनियरिंग

वस्तुओं, रसायन तथा सम्बद्ध उत्पाद तथा खनिज के निर्यात में वृद्धि।

2000-01 तथा 2001-02 में डॉलर के रूप में आयात की वृद्धि 1.7 प्रतिशत पर स्थिर रही, यद्यपि परिमाण (Volume) में 5.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई। आयात मूल्य में कम वद्धि का प्रमुख कारण था पेट्रोलियम की कीमतों में गिरावट, गैर पेट्रोलियम आयात के मूल्य में 2001-02 में 7.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई। अप्रैल-दिसम्बर, 2002 में आयात में 14.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई। इस समय हमारे प्रमुख आयात निम्नलिखित हैं—पेट्रोलियम (POL), कीमती पत्थर, पूँजी वस्तुएँ, इलेक्ट्रॉनिक वस्तुएँ, सोना एवं चाँदी, रसायन, खाने के तेल, कोयला तथा कोक, अन्य।

विदेशी विनिमय अर्जन पर प्रभाव (Effect on Forex Earnings)

नई आर्थिक नीति का भारत के विदेशी विनिमय अर्जन (Forex Earnings) पर बड़ा ही अनुकूल प्रभाव पड़ा देश का विदेशी मुद्रा भण्डार बढ़कर 30 जून, 2004 को 120 बिलियन डॉलर तक पहुँच गया जो कि अपने आप में एक रिकार्ड है।

विदेशी विनिमय अर्जुन के प्रमुख स्रोत (Main Sources of Forex Earning)

विदेशी विनिमय अर्जन के प्रमुख स्रोत निम्नलिखित हैं

(i) भारत से विदेशों को होने वाले निर्यात में वृद्धि;

(ii) विदेशी उद्योगपतियों द्वारा विदेशी पूँजी के साथ भारत में आगमन;

(ii) भारतीय अनिवासियों के द्वारा विदेशी धन का भारत में विनियोजन;

(iv) विदेशों में भारतीयों द्वारा स्थापित उद्योगों से कमाये धन का भारत में भेजा जाना।

(v) विदेशों में सरकारी व गैर सरकारी कर्मचारियों द्वारा प्रदत्त सेवाओं से कमाये धन का भारत में भेजा जाना, एवं

(vi) विदेशी पूँजी का भारत में आगमन।

उपयोगी प्रश्न (Useful Questions)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

1 माँग का अर्थ बताइये। माँग के तत्त्व क्या हैं ?

Explain the meaning of Demand. What are the elements of Demand?

2. माँग को परिभाषित कीजिए एवं माँग को प्रभावित करने वाले घटकों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।

Define Demand and explain in brief the factors affecting Demand.

3. स्थानीय माँग से आपका क्या आशय है ? स्थानीय माँग का आवर्धन एवं पूर्ति करने वाले प्रमुख घटकों के नाम बताइए।

What is meant by Local Demand ? Name the main foctors augmenting and meeting local Demand.

4. विदेशी विनिमय अर्जन का अर्थ बताइए विदेशी विनिमय अर्जन के प्रमुख स्रोत क्या हैं ?

Explain the meaning of forex earnings. What are the main sources of forex earnings?

5. नई आर्थिक नीति के परिणामस्वरूप भारतीय निर्यात की प्रवृत्ति पर एक

Write a note on trend of Indian Export on  account of new economic policy

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)]

1 माँग को प्रभावित करने वाले प्रमुख घटकों को बताइए।

State the main factors affecting demand.

2. स्थानीय माँग का आवर्धन एवं पूर्ति करने वाले प्रमुख घटकों के नाम बताइए।

Name the main factors augmenting and meeting local demand.

3. भारतीय उद्यमियों के विदेशी मुद्रा अर्जन के क्षेत्र में योगदान का संक्षेप में वर्णन कीजिए।

Explain in brief the role of Indian entreprenueurs in field of forex earnings.

4. विदेशी विनिमय अर्जन के प्रमुख स्रोत क्या हैं ?

What are the main sources of forex earnings?

III. अति लघु उत्तरीय प्रश्न

(Very Short Answer Type Questions).

1 माँग का अर्थ बताइए।

Explain the meaning of demand.

2. माँग के तत्व क्या हैं ?

What are the elements of demand?

3. स्थानीय माँग से क्या आशय है।

What is meant by local demand.

4. विदेशी मुद्रा अर्जन का अर्थ बताइए।

Explain the meaning of forex earnings.

5. विदेशी विनिमय अर्जन का क्या अर्थ है ?

What do you mean by forex earnings?

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

सही उत्तर चुनिए (Select the Correct Answer)

(i) विदेशी मुद्रा अर्जन का स्रोत है—

(अ) निर्यात

(ब) विदेशी पूँजी

(स) भारतीय अनिवासियों को भेजा गया धन

(द) ये सभी।

The source of forex earnings is

(a) Exports

(b) Forex Cost

(c) Remittance by Indian Non-residents

(d) All of these.

(ii) माँग की परिभाषाओं का वर्गीकरण किया जा सकता है

(अ) प्रभावी इच्छा के सन्दर्भ में

(ब) मूल्य के सन्दर्भ में

(स) मूल्य तथा समय दोनों के सन्दर्भ में

(द) सभी के सन्दर्भ में।

Definitions of demand may by classified on the basis of –

(a) Reference to Effective Desire

(b) Reference to Price

(c) Reference to Price and Time

(d) Reference to all.

(iii) स्थानीय माँग के आवर्धन एवं पूर्ति के घटक हैं

(अ) स्थानीय ग्राहकों की माँग का अध्ययन

(ब) वस्तु की उपलब्धता

(स) स्थानीय ग्राहकों की आय का स्तर

(द) ये सभी।

Augmenting and meeting local demand factors are

(a) Study of Demand of Local Customers

(b) Availability of the Commodity

(c) Income Level of Local Customers

(d) All of these.

(iv) माँग के तत्व हैं

(अ) वस्तु प्राप्त करने की इच्छा

(ब) वस्तु को क्रय करने के संसाधन

(स) संसाधनों को व्यय करने की तत्परता

(द) ये सभी।

Elements of demand are

(a) Desire to get Commodity

(b) Resources to Purchase the Commodity

(c) Promptness to spend Resources

(d) All of these.

(v) उद्यमियों की विदेशी मुद्रा अर्जन के क्षेत्र में भूमिका है

(अ) निर्यात में वृद्धि

(ब) नवीन दिशाओं की ओर मोड़

(स) विदेशी निवेशकों से प्राप्त राशि

(द) ये सभी।

The role of entrepreneurs in forex earnings is

(a) Increase in Exports

(b) Diversion to New Directions

(c) Receipt of Money from Foreign Investors

(d) All of these.

[उत्तर-(i) (द), (ii) (द), (iii) (द), (iv) (द), (v) (द)।]

 

chetansati

Admin

https://gurujionlinestudy.com

Leave a Reply

Your email address will not be published.

Previous Story

BCom 2nd year Entrepreneur Export Promotion Import Substitution Study Material Notes in Hindi

Next Story

BCom 2nd Year Entrepreneur Small Industry Role performance Study Material Notes in Hindi

Latest from BCom 2nd year Fundamental Entrepreneurship