BCom 1st Year Agreements Expressly Declared Void Study Material Notes in Hindi

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BCom 1st Year Agreements Expressly Declared Void Study Material Notes in Hindi

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Agreements Expressly Declared Void
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BCom 1st Year Business Lawful Consideration Object Study Material Notes in Hindi

स्पष्ट रूप से व्यर्थ घोषित ठहराव

(Agreements Expressly Declared as Void)

एक वैध अनुबन्ध के लिये पाँचवाँ महत्त्वपूर्ण लक्षण यह है कि ठहराव ऐसा होना चाहिए जिसे किसा अधिनियम द्वारा स्पष्ट रूप से व्यर्थ घोषित न किया गया हो। _भारतीय अनबन्ध अधिनियम की धारा 2(g) के अनुसार, “वह ठहराव जो राजनियम (कानुन)। द्वारा प्रवर्तनीय नहीं है. व्यर्थ ठहराव है।” व्यर्थ ठहराव प्रारम्भ से ही व्यर्थ होते हैं, अतएव राजनियम द्वारा उनके प्रवर्तनीय होने का प्रश्न ही नहीं उठता। व्यर्थ ठहराव पक्षकारों के मध्य किसी भी प्रकार के। वैधानिक सम्बन्ध उत्पन्न नहीं करते हैं। भारतीय अनुबन्ध अधिनियम द्वारा निम्नलिखित ठहरावों को स्पष्ट रुप से व्यर्थ घोषित किया गया है

1 अयोग्य पक्षकारों द्वारा किये गये ठहराव (Agreement made by Incompetent Parties) [धारा 11]-भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा || के अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि जिन पक्षकारों य व्यक्तियों में अनुबन्ध करने की क्षमता नहीं होती है, उन्हें अधिनियम के अन्तर्गत अनुबन्ध करने के अयोग्य माना गया है, वे हैं

(1) अवयस्क (Minor),

(2) अस्वस्थ मस्तिष्क वाला व्यक्ति (A Man of Unsound Mind), तथा

(3) राजनियम द्वारा अयोग्य घोषित व्यक्ति।

अत: यदि उपर्युक्त अनुबन्ध के लिये अयोग्य घोषित व्यक्तियों के साथ कोई भी अनुबन्ध किया जाता है, तो ऐसा ठहराव व्यर्थ होता है।

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2. तथ्य सम्बन्धी गलती पर आधारित ठहराव (Agreements based on Mistake as to Fact) [धारा 20] भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 20 के अनुसार, “जब ठहराव के दोनों पक्षकार ठहराव के लिये आवश्यक तथ्य सम्बन्धी गलती पर हों, तो ऐसा ठहराव व्यर्थ होता है।”

अत: यह स्पष्ट है कि यदि कोई भी पक्षकार तथ्य सम्बन्धी गलती के आधार पर कोई ठहराव करता है तो वह ठहराव व्यर्थ होता है। तथ्य सम्बन्धी गलती अनुबन्ध की विषयवस्तु सम्बन्धी अथवा पक्षकार की पहचान के सम्बन्ध में हो सकती है।

3. विदेशी राजनियम सम्बन्धी गलती वाले ठहराव (Agreement of Mistake regarding Foreign Law) [धारा 21]–जब ठहराव करने वाले पक्षकार ठहराव करते समय किसी दसरे देश के राजनियम सम्बन्धी गलती कर बैठते हैं तो ऐसी गलती को विदेशी राजनियम सम्बन्धी गलती माना जाता है। विदेशी राजनियम की गलती के आधार पर किये गये ठहरावों को पूर्णतः व्यर्थ माना जाता है। धारा 21 में यह स्पष्ट किया गया है कि, “किसी ऐसे कानून के सम्बन्ध में, जो भारत में लागू नहीं है, की गई। गलती का वही प्रभाव होता है, जो तथ्य सम्बन्धी गलती का होता है।” अर्थात् विदेशी राजनियम सम्बन्धी गलती के आधार पर किये गए ठहराव पूर्णत: व्यर्थ होते हैं।

4. अवैधानिक प्रतिफल एवं उद्देश्य वाले ठहराव (Agreement with Unlawful Consideration and Object) [धारा 23] भारतीय अनुबन्ध अधिनियम के अनुसार ऐसे ठहराव जिनका प्रतिफल तथा उद्देश्य अवैधानिक होता है, उन्हें अनुबन्ध अधिनियम द्वारा स्पष्ट रुप से व्यर्थ घोषित किया गया है। भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 23 के अन्तर्गत निम्नलिखित ठहरावों को अवैधानिक रदेण्य एवं प्रतिफल के कारण स्पष्ट रुप से व्यर्थ घोषित ठहराव माना गया है :

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(1) यदि वह राजनियम द्वारा वर्जित ठहराव है, अथवा

(2) वह इस प्रकार का ठहराव है, यदि उसे अनुमति दे दी जाए तो किसी भी राजनियम की व्यवस्थाओं को निष्फल कर देगा, अथवा

(3) यदि वह कपटमय है, अथवा

(4) यदि उससे किसी दूसरे व्यक्ति क शरार अथवा सम्पत्ति को हानि पहँचती हो. अथवा 15)

(5) यदि न्यायालय की दृष्टि में वह ठहराव अनैतिक प्रकृति का हो अशा

(6) यदि न्यायालय उस ठहराव को लोकनीति के विरुद्ध समझता हो।

अत: यदि कोई ठहराव उपरोक्त में से है तो ऐसा ठहराव भारतीय अनुबन्ध अधिनियम द्वारा स्पष्ट रुप से व्यर्थ घोषित ठहराव है अर्थात् अवैधानिक उद्देश्य एवं प्रतिफल होने के कारण ठहराव पूर्णत: व्यर्थ होते है।

5. आंशिक अवैधानिक प्रतिफल एवं उद्देश्य वाले ठहराव (Agreement with Unlawful Consideration and Object in Part) [धारा 24] भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 24 के अनुसार यदि किसी भी ठहराव का प्रतिफल अथवा उद्देश्य आंशिक रुप से अवैधानिक है, तो ऐसा ठहराव पूर्णतः व्यर्थ होता है। लेकिन यदि ठहराव के अवैधानिक तथा वैध प्रतिफल को अलग-अलग किया जा सकता हो तो वैध प्रतिफल एवं उद्देश्य का अंश वैध ठहराव होगा तथा अवैधानिक प्रतिफल एवं उद्देश्य का अंश अवैध एवं व्यर्थ माना जायेगा।

उदाहरणबीरबल के पास अफीम बेचने का लाइसेंस है और वह अफीम का वैध व्यापार करता है। बीरबल ने हीरालाल को अफीम बेचने का कार्य करने के लिये 5.000 ₹ प्रतिमाह वेतन पर नौकरी पर रखा। इसके बाद बीरबल अवैध देशी शराब भी बेचने लगा और अवैध देशी शराब की बिक्री के लिये हीरालाल को बिक्री पर 25 प्रतिशत कमीशन देना स्वीकार किया। एक साल बाद बीरबल ने हीरालाल को वेतन व अवैध देशी शराब की बिक्री पर कमीशन देना बन्द कर दिया। हीरालाल द्वारा वाद प्रस्तुत करने पर न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि ठहराव का प्रतिफल अलग किया जा सकता है। अत: हीरालाल केवल वेतन की राशि ही प्राप्त कर सकता है। अवैध देशी शराब की बिक्री का कमीशन प्राप्त नहीं कर सकता है क्योकि ऐसे ठहराव पूर्णतः व्यर्थ होते हैं।

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6. बिना प्रतिफल वाले ठहराव (Agreement without Consideration) [धारा 25]-सामान्यतः बिना प्रतिफल के ठहराव व्यर्थ ही होते है। अत: यदि किसी ठहराव में प्रतिफल का अभाव है तो वह व्यर्थ ठहराव होता है। लेकिन भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 25 के अन्तर्गत कुछ ऐसे ठहरावों का वर्णन किया गया है, जो प्रतिफल के अभाव में भी वैधानिक होते हैं अर्थात ऐसे ठहरावों को राजनियम द्वारा प्रवर्तनीय करवाया जा सकता है। अत: कुछ अपवादों को छोड़कर बिना प्रतिफल के ठहराव पूर्णत: व्यर्थ होते हैं। अपवाद स्वरुप ऐसे ठहराव निम्नलिखित हैं :

(1) स्वभाविक प्रेम एवं स्नेह के कारण किया गया ठहराव,

(2) स्वेच्छा से किये गये कार्य की क्षतिपूर्ति के लिये किये गये ठहराव,

(3) अवधि वर्जित ऋण के भुगतान के लिये किये गये ठहराव,

(4) नि:शुल्क निक्षेप के अनुबन्ध,

(5) एजेन्सी के अनुबन्ध,

(6) दान एवं भेट के अनुबन्ध।

अत: ऐसे ठहराव बिना प्रतिफल के भी वैध होते हैं, बशर्ते ये ठहराव लिखित व यदि आवश्यक हो तो प्रमाणित व पंजीकृत हों।

7. विवाह में रुकावट डालने वाले ठहराव (Agreements in Restraint of Marriage)विवाह करना व विवाहित जीवन बिताना प्रत्येक वयस्क का मौलिक अधिकार है। भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 26 के अनुसार, “प्रत्येक ऐसा ठहराव जो अवयस्क को छोड़कर किसी अन्य व्यक्ति के विवाह में रुकावट डालने के लिये हो, व्यर्थ होता है।” उदाहरण के लिये, ‘अ’, ‘ब’ से कहता है कि अगर तम ‘स’ से विवाह नहीं करोगे, तो मैं तुम्हें 5,000 ₹ दूंगा। यह ठहराव व्यर्थ है। हिन्दू कानून के अनुसार एक पुरुष को केवल एक पत्नी रखने का अधिकार है, परन्तु मुस्लिम कानून के अनुसार एक पुरुष एक साथ चार पत्नियाँ रख सकता है। अत: किसी हिन्दू पुरुष द्वारा यह ठहराव करना कि वह अपने जीवनकाल में विवाह नहीं करेगा व्यर्थ ठहराव हे परन्तु अपनी पहली पत्नी के जीवित रहते हए दूसरी शादी नहीं करने का ठहराव वैध होगा। इसी प्रकार यदि एक मुस्लिम पुरुष विवाह के समय अपनी पत्नी के साथ यह ठहराव करता है कि वह अपनी पत्नी के जीवन काल में दूसरा विवाह नहीं करेगा, तो ऐसा ठहराव व्यर्थ होगा।

राजरानी बनाम गुलाब रानी (1942) के विवाद में एक ही व्यक्ति की दो विधवाओं ने आपस में मतभेद उत्पन्न होने पर सुलह करते समय यह ठहराव किया कि यदि उनमें से कोई पुन: विवाह कर लेगी तो उसका मृतक पति की सम्पत्ति में से अधिकार समाप्त हो जायेगा। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इस ठहराव को विवाह में रुकावट नहीं माना।

8. व्यापार में रुकावट डालने वाले ठहराव (Agreement in Restraint of Trade)मारताय सावधान के अनुसार प्रत्यके व्यक्ति को कोई भी वैध व्यापार या धन्धा करने की पूर्ण स्वतन्त्रता है। अत: प्रत्येक ऐसा ठहराव जो इस अधिकार में रुकावट डालता है, ‘व्यापार में रुकावट डालने वाला ठहराव’ कहलाता है। कानून की दृष्टि से ऐसे सभी ठहराव लोक नीति के विरुद्ध होने के कारण व्यर्थ होते हैं।

भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 27 के अनुसार, “प्रत्येक ऐसा ठहराव जिसके द्वारा किसी व्यक्ति को कोई वैध पेशा, व्यापार या व्यवसाय करने से रोका जाये तो वह उस सीमा तक व्यर्थ होता है।” इस परिभाषा में ‘उस सीमा तक व्यर्थ’ शब्द महत्त्वपूर्ण है। ‘उस सीमा तक व्यर्थ’ से आशय यह है। कि यदि ठहराव दो भागों में विभक्त किया जा सकता है तो उसका केवल वह भाग अवैध होगा जो व्यापार में रुकावट डालता है, सम्पूर्ण ठहराव व्यर्थ नहीं होगा। किन्तु यदि ठहराव को वैध तथा अवैध दो भागों में विभक्त नहीं किया जा सकता तो पूरा ठहराव व्यर्थ होगा। भारतीय कानून के अनुसार कुछ परिस्थितियों को छोड़कर, व्यापार में रुकावट डालने वाला प्रत्येक समझौता व्यर्थ होता है चाहे वह रुकावट सामान्य हो या आशिक, शर्तपूर्ण हो या शर्त रहित।

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माधव चन्द्र बनाम राजकुमार दासके केस में वादी एवं प्रतिवादी कलकत्ता में एक ही जगह पर व्यापार करते थे। प्रतिवादी ने वादी से कहा कि यदि वह (वादी) अपना व्यापार उस बाजार में न करे तो प्रतिवादी उसे 500 ₹ दे देगा। वादी ने उस बाजार में व्यापार करना बन्द कर दिया, परन्तु बाद में प्रतिवादी ने रकम देने से इन्कार कर दिया। वादी द्वारा मुकदमा किये जाने पर कलकत्ता हाई कोर्ट ने निर्णय दिया कि यह समझौता व्यापार में रुकावट डालने वाला है, अत: व्यर्थ है। इस प्रकार वादी (माधव चन्द्र) उससे 500 ₹ प्राप्त नहीं कर सकता।

नियम के अपवाद- सामान्यत: व्यापार में रुकावट डालने वाले सभी ठहराब व्यर्थ होते हैं, परन्तु इस नियम के निम्नलिखित अपवाद है अर्थात निम्नलिखित दशाओं में व्यापार में रुकावट डालने वाले ठहराव वैध होते हैं

(i) ख्याति का विक्रय- यदि कोई व्यापारी अपने व्यापार के साथ अपनी ख्याति भी बेच देता है। तो क्रेता विक्रेता के साथ इस बात का ठहराव कर सकता है कि विक्रेता उसी प्रकार का व्यापार निश्चित सीमाओं के अन्दर (यदि न्यायालय द्वारा मान्य होती है) उस अवधि तक नहीं करेगा जब तक कि क्रेता अथवा उसका कोई अधिकृत व्यक्ति उन नियत सीमाओं में वह व्यापार करता रहेगा। (धारा 27)

(ii) साझेदारों के बीच हुए ठहराव-भारतीय साझेदारी अधिनियम, 1932 के अनुसार निम्नलिखित दशाओं में व्यापार में रुकावट डालने वाले अनुबन्ध व्यर्थ नहीं माने जाते

() भारतीय साझेदारी अधिनियम की धारा 11(2) के अनुसार साझेदारों में इस प्रकार का पारस्परिक समझौता कि उनमें से कोई भी जब तक वह साझेदार है फर्म के व्यापार के अतिरिक्त अन्य किसी प्रकार का व्यापार नहीं करेगा, व्यापारिक स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्ध के रुप में व्यर्थ नहीं होगा क्योंकि ऐसी रुकावट के अभाव में साझेदार फर्म के व्यापार की बजाय निजी व्यापार में अधिक रुचि लेंगे जिससे फर्म का अहित होगा।

() भारतीय साझेदारी अधिनियम की धारा 36(2) के अनुसार फर्म से अवकाश ग्रहण करने वाला साझेदार अन्य साझेदारों के साथ यह अनुबन्ध कर सकता है कि वह निश्चित क्षेत्र में निश्चित समय तक फर्म से प्रतियोगिता करने वाला व्यवसाय नहीं करेगा, बशर्ते कि यह प्रतिबन्ध उचित हो।।

() जब फर्म समाप्त हो रही हो या समाप्त होने की आशंका हो तो भारतीय साझेदारी अधिनियम की धारा 54 के अन्तर्गत, साझेदार आपस में यह समझौता कर सकते हैं कि उनमें से कुछ या सभी साझेदार निश्चित क्षेत्र में या निश्चित समय तक फर्म जैसा व्यापार नहीं करेंगे, बशर्ते यह प्रतिबन्ध उचित हो।

(iii) नौकरी या सेवा सम्बन्धी ठहराव (Service Agreements)- एक नियोक्ता अपने कर्मचारी के साथ इस बात का ठहराव कर सकता है कि जब तक वह (कर्मचारी) उसके (नियोक्ता) के । यहाँ नौकरी करेगा तब तक किसी अन्य व्यक्ति के यहाँ नौकरी नहीं करेगा। सरकारी अस्पताल के डाक्टरों की तो निजी प्रेक्टिक्स पर भी रोक लगा दी जाती है। ये प्रतिबन्ध वैध माने जाते हैं क्योकि इनका। उद्देश्य नियोक्ता के हितों की रक्षा करना है।

(iv) आपसी प्रतियोगिता को रोकने के लिये व्यापारिक संयोजन- किसी वस्तु के निर्माता, उत्पादक अथवा व्यापारी आपसी प्रतिस्पर्धा को रोकने अथवा व्यापार के नियमन के लिये व्यापारिक संघ बनाकर आपस में ठहराव कर सकते हैं। यदि ऐसे संघ अपने सदस्यों पर कुछ उचित प्रतिबन्ध लगाते हैं। तो वे वैध माने जाते हैं जैसे बर्फ निर्माताओं ने बर्फ को एक निश्चित मूल्य से कम पर न बेचने का समझौता किया। यह वैध ठहराव है।

(v) व्यापारिक व्यवहारों की स्वतन्त्रता पर रोक- व्यापारिक व्यवहारों की स्वतन्त्रता को प्रतिबन्धित करने वाले ठहराव वैध होते हैं, बशर्ते ऐसे ठहरावों का उद्देश्य एकाधिकार की स्थापना करना न हो। उदाहरण के लिये, यदि एक माल का निर्माता अपने एजेन्ट के साथ उसके माल के अतिरिक्त किसी अन्य निर्माता का माल न बेचने का ठहराव करे तो यह ठहराव वैध होगा। इसे व्यापार में रुकावट नहीं माना जायेगा।

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9. वैधानिक कार्यवाही में रुकावट डालने वाले ठहराव (Agreements in Restraint of Legal Proceeding)- न्याय प्राप्त करना प्रत्येक नागरिक का मौलिक अधिकार है। इस अधिकार को किसी ठहराव द्वारा समाप्त या सीमित नहीं किया जा सकता और न इसमें बाधा डाली जा सकती है। जब किसी समझौते (ठहराव) द्वारा सम्बद्ध पक्ष या पक्षों को अपने अधिकार प्रवर्तित कराने के लिये कानूनी कार्यवाही करने से पूर्णतया या आंशिक रुप से रोका जाता है तो उसे वैधानिक (कानूनी) कार्यवाही में रुकावट डालने वाला समझौता कहा जाता है। यह समझौता लोक नीति के विरुद्ध माना जाता है, अत: व्यर्थ होता है। धारा 28 के अनुसार ऐसे समझौते दो प्रकार के हो सकते हैं—(क) वह समझौता जिसके द्वारा पक्षकार को कानूनी कार्यवाही करने से पूर्णतया रोका जाता है, तथा (ख) वह समझौता जिसमें कानूनी कार्यवाही करने के लिये समय सम्बन्धी कोई सीमा निर्धारित कर दी जाती है। ये दोनों ही तरह के समझौते व्यर्थ घोषित किये गये हैं, लेकिन किसी विशेष न्यायालय में ही दावा करने का समझौता अथवा निश्चित अवधि के भीतर अपना दावा (Claim) प्रस्तुत न करने पर दावे का अधिकार समाप्त होने की शर्त वाला समझौता व्यर्थ नहीं होता।

उदाहरण-(i) यदि अजय, विजय के साथ ठहराव करता है कि वह (विजय) उसके (अजय) के विरुद्ध न्यायालय में वैधानिक कार्यवाही नहीं करेगा तो यह ठहराव व्यर्थ होगा क्योंकि इस ठहराव में विजय को अपने अधिकारों को न्यायालय में प्रवर्तित कराने से रोका गया है।

(ii) आशीष, बुलन्दशहर का व्यापारी है और विपुल आगरा का व्यापारी है। आशीष ने विपुल को कुछ माल बेचा और साथ ही यह प्रतिबन्ध लगा दिया कि समस्त विवाद बुलन्दशहर न्यायालय में ही तय किये जा सकेंगे। यह वैध ठहराव है।

भारतीय अनुबन्ध (संशोधन) अधिनियम, 1996 (जो 8 जनवरी, 1997 से लागू हआ है) के द्वारा धारा 28 को और अधिक व्यापक बना दिया गया है। इस संशोधन के द्वारा धारा 28 में निम्नलिखित भाग और जोड़ दिया गया है

ऐसा ठहराव जो किसी निर्धारित समय के समाप्त होने पर, किसी अनुबन्ध के अन्तर्गत, किसी पक्षकार के अधिकारों को समाप्त कर देता है या किसी पक्षकार को दायित्व से मुक्त कर देता है, ताकि किसी पक्षकार को अपने अधिकारों को प्रवर्तित कराने से रोका जा सके, तो वह उस सीमा तक व्यर्थ होता है।”

धारा 28 के अपवाद (Exceptions)- निम्नलिखित परिस्थितियों में किये गये ठहराव वैधानिक कार्यवाही में रुकावट डालने के ठहराव नहीं माने जाते

(i) जब पक्षकार इस बात के लिये सहमत हो जाये कि उनके बीच किसी प्रकार का विवाद अथवा मतभेद होने पर वे उसे पंचनिर्णय के लिये सुपुर्द करेंगे और ऐसी दशा में सिर्फ पंचायत द्वारा दिलाया धन ही प्राप्ति के योग्य होगा।

(ii) इसी प्रकार ऐसा कोई अनुबन्ध भी व्यर्थ नहीं होता जिसके अनुसार दो या दो से अधिक व्यक्ति उनके बीच उठे हुए किसी विवाद को लिखित रुप में पंच निर्णय को सुपुर्द करने का ठहराव करते हैं।

10. अनिश्चित अर्थ वाले ठहराव (Agreements Involving Uncertaintv) भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 29 के अनुसार, “ऐसे ठहराव जिनका अर्थ निश्चित नहीं है अथवा निश्चित नहीं किया जा सकता, व्यर्थ होते हैं।” उदाहरणार्थ, अतुल, विपुल को 100 टन तेल बेचने का ठहराव करता है। इस ठहराव में यह स्पष्ट नहीं है कि किस प्रकार का तेल बेचा जायेगा. अतः यह व्यर्थ है। यदि इसी उदाहरण में यह बताया गया हो कि अतुल नारियल के तेल का व्यापारी है तो यह ठहराव वैध माना जायेगा क्योकि अतल के व्यापार की प्रकृति से यह स्पष्ट है कि उसने नारियल का ही तेल बेचने का ठहराव किया है।

11. बाजी के ठहराव (Wagering Agreements) भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 30 के अनुसार बाजी लगाने के ठहराव व्यर्थ होते हैं। परन्तु बाजी लगाने से क्या अभिप्राय है, धारा 30 इसके सम्बन्ध में कोई व्याख्या नहीं करती है। सर एन्सन के अनुसार, “बाजी लगाना दो पक्षकारों के बीच किया गया एक ऐसा ठहराव है जिसके अन्तर्गत एक अनिश्चित घटना के घटित होने या न होने पर। कुछ धन या माल देने का वचन होता है।”

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न्यायाधीश हॉकिंस के अनुसारबाजी लगाने का ठहराव एक ऐसा ठहराव है जिसमें दो व्यक्ति किसी अनिश्चित घटना के सम्बन्ध में विपरीत विचार रखते हुए परस्पर यह ठहराव करते हैं कि उस घटना के निश्चित होने पर एक की दूसरे पर जीत होगी और दूसरा उसको कुछ धन अथवा कोई अन्य वस्तु देगा, दोनों पक्षकारों में से किसी भी पक्षकार का उस धन या वस्तु के अतिरिक्त अनुबन्ध में कोई हित नहीं होगा और इस प्रकार से उनके बीच अनुबन्ध के लिए कोई वास्तविक प्रतिफल नहीं होगा।” उदाहरणार्थ-रोहित अपने मित्र सोहित से कहता है कि आज रात को बारिश होगी, लेकिन सोहित कहता है कि बारिश नहीं होगी। इस पर दोनों यह तय करते हैं कि यदि बारिश होगी तो सोहित, रोहित को 500 ₹ देगा और अगर बारिश न हुई तो रोहित, सोहित को 500 ₹ देगा। यह बाजी का समझौता है क्योंकि यहाँ एक अनिश्चित घटना के बारे में दोनों पक्षों के विरोधी विचार (मत) हैं तथा जीतने वाले पक्षकार को हारने वाले पक्ष से 500 ₹ मिलने हैं। यहाँ पर यह उल्लेखनीय है कि देखने में बीमा अनुबन्ध और बाजी के समझौते में समानता लगती है क्योंकि दोनों स्थितियों में समझौते का निष्पादन एक अनिश्चित घटना के घटित होने पर आधारित होता है। परन्तु वास्तव में, बीमा एक क्षतिपूर्ति का अनुबन्ध है और वह कभी भी बाजी का अनुबन्ध नहीं कहा जा सकता।

बाजी के ठहराव के लक्षण

(Essentials of Wagering Agreement)-

बाजी के ठहराव के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं

(i) निश्चित धन या धन के बदले वस्तु देने का वचन होना चाहिए।

(ii) वचन किसी अनिश्चित घटना के घटित होने अथवा घटित न होने पर आधारित होना चाहिए। घटना भूत अथवा भावी हो सकती है और दोनों पक्षकारों में से किसी को भी उस घटना का परिणाम ज्ञात नहीं होना चाहिए।

(iii) दोनों पक्षकारों में से किसी एक को हानि तथा दूसरे को लाभ होना आवश्यक है।

(iv) दोनों पक्षकारों में से किसी एक पक्षकार की हार तथा दूसरे की जीत होना आवश्यक है।

(v) बाजी के हारने व जीतने के अतिरिक्त कोई प्रतिफल न हो।

(vi) अनिश्चित घटना के परिणाम का निर्णय न होने तक बाजी का ठहराव पूरा नहीं होता है।

(vii) घटना का घटित होना अथवा न होना किसी एक पक्षकार की इच्छा पर निर्भर नहीं होना चाहिए।

(viii) घटना घटित होने से पूर्व दोनों ही पक्षकारों को उस घटना की सम्भावना पर निर्भर रहना आवश्यक है जिसके लिए वे जोखिम उठाते हैं।

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बाजी के ठहराव का प्रभाव

(Effects of Wagering Agreements)

बाजी लगाने के ठहराव व्यर्थ होते हैं। ठहराव के अन्तर्गत जीती गई राशि अथवा वस्तु को प्राप्त करने अथवा बाजी के परिणाम को पूरा करने के लिए किसी तृतीय पक्षकार को सौंपा गया धन अथवा वस्तु को प्राप्त करने के लिए वाद प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है।

बाजी के ठहराव के अपवाद या बाजी के ठहराव तथा अन्य व्यापारिक व्यवहार

(Exceptions of Wagering Agreements)

1 घडदौड (Horse Race)_ घडदौड के ठहराव बाजी के ठहराव होते हैं किन्त कल परिस्थितियों में इन्हें वैध घोषित कर दिया गया है। घुड़दौड़ के विजेता को 500 ₹ अथवा 500 ₹ से अधिक पुरस्कार देने के लिए चन्दा या दान देना अवैधानिक नहीं होता। किन्तु घुड़दौड़ के सम्बन्ध में ऐसे व्यवहार जिनका उल्लेख भारतीय दण्ड विधान की धारा 294 (अ) में किया गया है, वैध नहीं होते।

2. व्यापारिक व्यवहार तथा बाजी लगाने के व्यवहार (Commercial and Wagering Teactions) व्यापारिक व्यवहारों में पक्षकारों का उद्देश्य माल की सपर्दगी लेना तथा देना होता है। पाक पक्षकार दसरे पक्षकार को माल की सुपुर्दगी लेने तथा देने के लिए बाध्य कर सकता है किन्त यदि कारों ने यह पूर्व में ही निश्चित कर लिया है कि वस्तु की सुपुर्दगी न ली जाएगी और न दी जायेगी. किसी पर्व निश्चित आगामी तिथि को केवल वस्तु के मूल्य के अन्तर का लेन-देन कर लिया जायेगा तो यह व्यापारिक व्यवहार न होकर ‘बाजी का ठहराव’ होगा। किन्तु यदि किसी शर्त के अधीन एक पक्षकार को अतिरिक्त राशि देकर माल की सुपुर्दगी लेने का अधिकार होता है तो ऐसा ठहराव, बाजी का ठहराव नहीं होता। बाजी के ठहरावों में दोनों पक्षकारों में से किसी भी पक्षकार की इच्छा ठहराव को पूरा करने की न होकर केवल मूल्यों के अन्तर के लेन-देन की होनी चाहिए।

III. सट्टे के व्यवहार (Speculation Transactions)-सट्टे के व्यवहारों को बाजी के व्यवहार नहीं माना जाता, क्योकि कोई भी पक्षकार आगामी निश्चित तिथि पर दूसरे पक्षकार को माल की सुपुर्दगी लेने अथवा देने के लिए बाध्य कर सकता है। यद्यपि ऐसे समस्त व्यवहारों को सामान्यत: मूल्यान्तर ले-देकर निपटाया जाता है। स्टॉक एक्सचेन्ज के लेन-देन भी इसी सिद्धान्त पर आधारित होते हैं। किसी भी स्टॉक एकसचेन्ज में प्रतिभूति अनुबन्ध (नियमन) अधिनियम 1956 के अन्तर्गत अंश व प्रतिभूतियों में वैकल्पिक सौदे करने पर प्रतिबन्ध है।

3. तेजीमन्दी के लेनदेन (Teji Mandi Dealings or contracts for option)तेजी-मन्दी या नजराना का लेनदेन वह लेनदेन है जिसमें अनुबन्ध के पक्षकारों में से किसी एक पक्षकार को प्रतिफल के बदले किसी आगामी तिथि में दूसरे पक्षकार से एक निश्चित मूल्य पर, जो ठहराव के समय तय हो जाता है, कुछ निश्चित माल खरीदने या न खरीदने. बेचने या न बेचने तथा खरीदने या बेचने का विकल्प प्राप्त हो जाता है। ऐसे व्यवहार भी सट्टे के व्यवहार का ही रुप हैं अत: तब तक व्यर्थ नहीं होते जब तक कि सम्बन्धित पक्षकारों का अभिप्राय वास्तव में माल की सुपुर्दगी से न होकर केवल भावों के अन्तर से लाभ कमाना न हो।

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4. लॉटरी (Lottery)- लॉटरी के ठहराव व्यर्थ होने के साथ-साथ अवैधानिक भी होते हैं क्योकि लॉटरी पूर्णत: सम्भावना का खेल है। इनाम मिलना या न मिलना पूर्णत: भाग्य पर निर्भर करता है। भारतीय दण्ड विधान की धारा 215 (अ) के अनुसार बिना सरकारी आज्ञा के लाटरी का कार्यालय रखने वाले को 6 माह के कारावास या अर्थदण्ड या दोनों से दण्डित किया जा सकता है। सरकारी अनुमति के उपरान्त भी लॉटरी सम्बन्धी समस्त कार्य अवैधानिक ही रहते है। अनुमति लेने से अन्तर यह रहता है कि लॉटरी प्रबन्धक को दण्ड का भागी नहीं होना पड़ता है।

5. चिट फन्ड (Chit Fund)-चिट फण्ड को लॉटरी नहीं माना जाता अत: इसके ठहराव बाजी लगाने के ठहराव नहीं होते।

VII. बीमा के अनुबन्ध(Insurance contracts)– बीमा के अनुबन्धों में बीमायोग्य हित होता है, अत: बीमा के अनुबन्ध बाजी के ठहराव न होकर वैध अनुबन्ध होते हैं। जब कोई किसी ऐसे व्यक्ति के जीवन का बीमा कराता है जिसमें उसका बीमायोग्य हित नहीं है तो यह बाजी का ठहराव होगा तथा व्यर्थ होगा। किन्तु जब कोई किसी ऐसे व्यक्ति के जीवन का बीमा कराता है जिसमें उसका बीमायोग्य हित है तो यह वैध ठहराव होगा।

6. असम्भव कार्य करने के ठहराव (Agreements to do Impossible Act)-भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 56 के अनुसार कोई भी ठहराव जो किसी ऐसे कार्य को करने के लिये है जो प्रारम्भ से ही असम्भव है, व्यर्थ होता है। उदाहरणार्थ, दो सीधी एवं समानान्तर रेखाओं को मिलाने का ठहराव व्यर्थ है। अतुल, विपुल के साथ जादू के द्वारा किसी खजाने को पता लगाने का ठहराव करता है। यह व्यर्थ ठहराव है।

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परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(Expected Important Questions for Examination)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

(Long Answer Questions)

1 व्यर्थ ठहराव से क्या आशय है ? भारतीय अनुबन्ध अधिनियम द्वारा व्यर्थ घोषित किये गए ठहरावों की संक्षेप में व्याख्या कीजिए।

What is meant by Void Agreement ? Briefly explain the various agreements that are expressly declared void by the Indian Contract Act.

2. व्यापार करने की स्वतन्त्रता एक ऐसी सम्पत्ति नहीं है, जिसे कानून किसी व्यक्ति को अदल-बदल करने की अनुमति (कुछ विशेष दशाओं को छोड़कर) प्रदान करेगा।” भारतीय अनुबन्ध अधिनियम के सन्दर्भ में व्याख्या कीजिए।

“Liberty to trade is not an asset which the law will permit a person to barter away (except in special circumstances.)” Explain with reference to Indian Contract Act.

3. व्यापार में रुकावट डालने वाले ठहराव व्यर्थ होते हैं।” इस कथन की व्याख्या कीजिये। क्या इस नियम के कोई अपवाद हैं? यदि हाँ तो उनकी व्याख्या कीजिए।

“Agreements in restraint of trade are void.” Explain this statement. Are there exceptions to this rule ? If so, explain them.

4. उन विभिन्न ठहरावों का उल्लेख कीजिए जो भारतीय अनुबन्ध अधिनियम के अन्तर्गत स्पष्ट रुप से व्यर्थ घोषित किये गए हैं।

Discuss the various agreements which are expressly declared void by the Indian Contract Act.

5. बाजी क्या होती है? क्या बाजी का करार शून्य होता है या अवैध? मान्य व्यापारिक व्यवहार और बाजी के व्यवहार में आप कैसे तुलना करेंगे?

What is a wager? Is a wagering agreement void or illegal? How would you distinguish between a genuine commercial transaction and a wagering transaction?

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लघु उत्तरीय प्रश्न

(Short Answer Questions)

1 व्यर्थ ठहराव से क्या आशय हे?

What is void agreement ?

2. व्यापार में रुकावट डालने वाले ठहराव के अपवाद बताइए।

Explain exceptions of the agreements in restraint of trade.

3. बाजी के ठहराव से क्या आशय है ?

What is meant by a wagering agreement?

4. विवाह में रुकावट डालने वाले ठहरावों को समझाइए।

Explain the agreements in restraint of marriage.

5. असम्भव कार्य करने के ठहराव को स्पष्ट कीजिए।

Explain the agreement of doing impossible act.

6. बीमा तथा बाजी के ठहराव में अन्तर स्पष्ट कीजिए।

Explain the difference between insurance and a wagering agreement.

7. बाजी के ठहराव तथा सट्टे के ठहराव में अन्तर स्पष्ट कीजिए।

Explain the difference between a wagering and a speculative agreement.

BCom 1st Year Agreements

सही उत्तर चुनिए

(Select the Correct Answer)

1 विवाह में रुकावट डालने वाला ठहराव होता है-

(Agreement in restraint of marriage is):

(अ) वैध (Legal)

(ब) व्यर्थ (Void) (1)

(स) व्यर्थनीय (Voidable)

(द) अवैध (Illegal)

2. अवयस्क के विवाह में रुकावट डालने वाला ठहराव होता है-

(Agreement in restraint of marriage of a minor is):

(अ) व्यर्थनीय (Voidable)

(ब) व्यर्थ (Void)

(स) वैध (Legal) (1)

(द) अवैध (Illegal)

3. बीमा का ठहराव होता है-(Insurance agreement is) :

(अ) वैध (Legal) (1)

(ब) अवैध (Illegal)

(स) व्यर्थ (Void)

(द) व्यर्थनीय (Voidable)

4. सट्टे का ठहराव होता है-

(Speculation agreement is):

(अ) व्यर्थ (Void)

(ब) व्यर्थनीय (Voidable)

(स) अवैध (Illegal)

(द) वैध (Legal) (1)

5. बाजी का ठहराव होता है-

(Wagering agreement is) :

(अ) व्यर्थ (Void) (1)

(ब) वैध (Legal)

(स) व्यर्थनीय (Voidable)

(द) अवैध (Illegal)

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व्यावहारिक समस्याएँ

(Practical Problems)

PP1. चण्डीगढ़ का एक डॉक्टर X,Y को अपने सहायक के रुप में इस शर्त पर तीन वर्षों के लिए नियुक्त करता है कि तीन वर्ष बीतने के पश्चात् अगले पाँच वर्षों तक वह (Y) स्वतन्त्र रुप से अपना कार्य आरम्भ नहीं करेगा। तीन वर्ष बीतने के बाद, Y ठहराव का खण्डन करके चण्डीगढ़ में अपना कारोबार शुरु कर देता है। क्या X,Y को कारोबार करने से रोक सकता है?

X, a doctor in Chandigarh engages y as his assistant for a period of three years on the condition that after the expiry of three years, Y is not to practice in Chandigarh on his own for a period of 5 years. After the first three years had expired, Y in breach of his agreement starts practicing in Chandigarh. Can X restrain Y from practicing?

उत्तरनहीं,X, Y को चण्डीगढ़ में कारोबार करने से नहीं रोक सकता क्योकि यह वैधानिक कारोबार में बाधक है, अत: व्यर्थ है। सेवा-ठहराव में यद्यपि यह वाक्यांश तो हो सकता है कि सेवा-काल के दौरान कर्मचारी किसी अन्य के पास रोजगार नहीं कर सकता या सेवा-काल के दौरान वह कारोबार नहीं कर सकता। ऐसे ठहरावों को व्यापार या कारोबार में रुकावट नहीं माना जाता। किन्तु सेवाकाल की समाप्ति के पश्चात् कर्मचारी पर यह ठहराव थोपना कि वह कारोबार नहीं कर सकता, व्यर्थ माना जाता है।

PPP.A अपने व्यापार की ख्याति का विक्रय B को करता है तथा इस हेतु भी सहमति देता है कि वह (A) निश्चित स्थानीय सीमाओं के भीतर उसी प्रकार का व्यापार नहीं करेगा। क्या यह ठहराव वैध है?

A sells goodwill of his business to B, and agrees with him to refrain from carrying on a similar business within specified local limits. Is the agreement valid ?

उत्तरहाँ, ठहराव वैध है। भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 27 में निम्नलिखित अपवादों को शामिल किया गया है

व्यापार की ख्याति का विक्रेता इस हेतु सहमति दे सकता है कि जब तक क्रेता उस व्यापार को करेगा, तब तक वह (विक्रेता) निर्धारित स्थानीय सीमा के भीतर उस व्यापार को नहीं करेगा बशर्ते न्यायालय की राय में ऐसा प्रतिबन्ध उचित हो। ।

PP3. A, 1,000 ₹ के प्रतिफल के बदले में B को यह वचन देता है कि वह आजीवन विवाह नहीं करेगा। क्या यह ठहराव वैध है?

A promises B, in consideration of 1,000 never to marry throughout his life. Is the agreement valid?

उत्तर-भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 26 के अनुसार-“प्रत्येक ऐसा ठहराव, जो, अवयस्क को छोड़कर किसी अन्य व्यक्ति के विवाह में रुकावट डालता है, व्यर्थ होता है।” ऐसे ठहराव को जन-नीति के विरुद्ध माना जाता है तथा अवैधानिक होता है। अत: A और B के मध्य हुए ठहराव को। स्पष्ट रुप से व्यर्थ ठहराव घोषित किया गया है।

PP4. A 1,000 ₹ प्रतिफल के बदले में B से कहती है कि वह एक व्यक्ति विशेष से कभी विवाह नहीं करेगी। क्या ठहराव वैध है ?

A Promises B in consideration of ₹ 1,000 never to marry a particular individual. Is the agreement valid?

उत्तरजैसा कि ऊपर कहा गया है कि एक व्यक्ति को किसी भी व्यक्ति से विवाह करने से रोकना या व्यक्ति विशेष को छोड़कर किसी भी व्यक्ति से विवाह करने का ठहराव व्यर्थ है।

PP5. A अपना सफेद घोड़ा B को 5,000 ₹या 10,000 ₹ में बेचने हेतु सहमत हो जाता है। क्या ठहराव वैध?

A agrees to sell B, his white horse for ₹ 5,000 or 10,000.” Is the agreement valid ?

उत्तर-भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 9 के अनुसार, “ऐसे ठहराव जिनके अर्थ निश्चित न हों, या निश्चित न किये जा सकते हों, व्यर्थ होते हैं।” इसका उद्देश्य यह है कि ठहराव के पक्षकार ठहराव से उत्पन्न अपने अधिकारों व दायित्वों को जान सकें। कानून ऐसे ठहराव को प्रवर्तित नहीं करा सकता जहाँ उसमें प्रयुक्त शब्दों के अर्थ भ्रामक या अनिश्चित हों।

PP6. A 1,000 ढेरी चावल B को उस मूल्य पर बेचने का प्रस्ताव करता है, जो मूल्य C द्वारा निर्धारित किया जाये। अनुबन्ध की वैधानिकता का वर्णन कीजिए।

A agrees to sell B, 1,000 maunds of rice at a price to be fixed by C. Discuss the validity of the agreement.

उत्तरयहाँ पर मूल्य का निश्चित किया जाना सम्भव व समर्थ है। अत: यहाँ पर शर्तों में कोई अनिश्चितता या भ्रम नहीं है।

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chetansati

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