BCom 1st Year Business Communications Letters Study Material Notes in Hindi

///

BCom 1st Year Business Communications Letters Study Material Notes in Hindi

Table of Contents

BCom 1st Year Business Communications Letters Study Material Notes in Hindi: Meaning of Business Letter  Importance of Commercial letters Functions Objectives of Business Letters Essential Elements of An Effective Business Letters Physical Appearance of Business letters and Memos Conditions for Good Memorandum Advantages of Memorandum Qualities of a Good Business letter Winters Examinations Questions long Answer Questions Short Answer Questions :

BCom 1st Year Business Communications Letters Study Material Notes in Hindi
BCom 1st Year Business Communications Letters Study Material Notes in Hindi

BCom 1st Year Business Communication Writing Skills Study Material Notes in Hind

व्यावसायिक पत्र

(Business Letters)

व्यावसायिक पत्र से आशय

(Meaning of Business Letter)

आधुनिक युग में व्यापार का क्षेत्र स्थानीय व्यापार से बढ़कर राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विकसित हो गया है। ऐसी दशा में सामान्यत: व्यवसायियों के मध्य आमने-सामने सम्बन्ध स्थापित करना सम्भव नहीं हो पाता तथा उन्हें व्यापारिक कार्यों के लिये पत्र-व्यवहार का सहारा लेना पड़ता है। इस प्रकार के पत्र-व्यवहार को ही व्यावसायिक पत्र-व्यवहार कहते हैं। दो व्यावसायिक संस्थाओं के मध्य मूल्य व माल की पूछताछ करने, भाव बताने, क्रयादेश भेजने, माल सम्बन्धी सूचनायें भेजने, शिकायतें व उनका समाधान करने, तकादा करने, भुगतान करने, सन्दर्भ माँगने व भेजने आदि अवसरों पर पत्र-व्यवहार होता ही रहता है। ये समस्त पत्र व्यावसायिक पत्रों की श्रेणी में ही आते हैं।

ए० पी० स्टोव के अनुसार, “व्यापारिक पत्र वे पत्र होते हैं, जो दो व्यापारियों के मध्य किसी व्यापारिक उद्देश्य की पूर्ति हेतु लिखे जाते हैं।”

हर्बटे कैसन के अनुसार, “व्यापार के सम्बन्ध में लिखे जाने वाले पत्रों को व्यापारिक पत्र कहा जाता है।”

व्यवसाय चाहे छोटा हो या बड़ा हो, व्यवसायी को अपने, व्यावसायिक कार्यों के लिए पत्र लिखने की आवश्यकता पड़ती है। आज भले ही संचार क्रान्ति का युग है, प्रत्येक हाथ में सेल फोन है फिर भी व्यापारी को माल मंगाने के लिये पत्र भेजना ही पड़ता है, कोई भी जानकारी प्राप्त करनी है, अनुमानित मूल्य जानना है, माल के सन्दर्भ में कोई शिकायत करनी है, भुगतान माँगना है आदि सभी कार्यों के लिए पत्र लेखन की आवश्यकता होती है। व्यावसायिक पत्र इतने महत्त्वपूर्ण हैं कि इनके बिना व्यापारिक संचार अधूरा रह जाता है। प्रत्येक व्यवसाय को चाहे उसका ढांचा कैसा भी हो उसे ग्राहकों, आपूर्तिकर्ताओं, सरकारी एजेन्सीज आदि के साथ पत्रों के माध्यम से सम्पर्क बनाना ही पड़ता है। आज के आधुनिक युग में तकनीकी विकास के कारण, फैक्स और ई-मेल (Fax and E-mail) ने पुराने तरीकों का स्थान ले लिया है, परन्तु पत्र लिखने की मूलभूत कला अभी भी वैसी ही बनी हुई है। एक व्यक्ति व्यावसायिक क्रियाओं को फोन पर कार्यान्वित कर सकता है परन्तु लोग जो कुछ सुनते हैं उसमें से केवल 25% ही दिमाग में रह जाता है एवं मौखिक संचार में नासमझी की सम्भावना भी बनी रहती है।

Business Communications Letters

सन्देश को सुनिश्चित बनाने के लिए व्यावसायिक पत्रों पर निर्भर रहना आवश्यक है। इन पत्रों का प्रयोग पूछताछ, कोटेशन (Quotation) हेतु प्रार्थना, आदेश भेजने एवं उनको पूरा करने, देरी हेतु शिकायत, माल के खराब होने की सूचना, समायोजन करने, जल्दी भुगतान करने, अच्छे सार्वजनिक सम्बन्धों, एजेन्टों की नियुक्ति और अंशधारियों आदि के साथ व्यवहार करने के लिए किया जाता है।

व्यक्तिगत पत्रों की भांति व्यावसायिक पत्र भी डाक द्वारा आपसी बातचीत का माध्यम है, परन्तु ये कुछ पहलुओं में एक दूसरे से भिन्नता रखते हैं। व्यक्तिगत पत्र का उद्देश्य, व्यक्तिगत सम्बन्ध स्थापित करना अथवा पुराने सम्बन्धों को बनाये रखना अथवा पढ़ने वाले को वास्तविक मीटिंग हेतु प्रेरित करना होता है। दूसरी ओर व्यावसायिक पत्रों का उद्देश्य है एक सुनिश्चित उद्देश्य की प्राप्ति जैसे उत्पाद बेचना, सूचना प्राप्त करना, साख उत्पन्न करना इत्यादि। व्यक्तिगत पत्र में कम से कम औपचारिकता के साथ और स्वतन्त्रता से सन्देश भेजा जाता है, जबकि व्यावसायिक पत्र अधिक औपचारिक और केवल उद्देश्य हेत् लिखे जाते हैं। व्यक्तिगत पत्रों के लिखने में दिल के उद्गारों को प्रकट किया जाता है, जबकि व्यावसायिक पत्रों के लेखन में ठंडे दिमाग एवं सोच-समझ का परिचय दिया जाता है।

Business Communications Letters

व्यावसायिक पत्रों का महत्त्व

(Importance of Commercial Letters)

व्यावसायिक पत्र व्यवहार को वर्तमान युग में व्यवसाय की आत्मा (Soul of Business) कहा जाता है। व्यावसायिक पत्रों के महत्त्व के अग्रलिखित कारण विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं

(1) व्यक्तिगत सम्पर्क की तलना में अधिक प्रभावशाली होना (More effective than Personal Contact) सामान्यत: व्यक्तिगत सम्पर्क की तुलना में पत्र व्यवहार अधिक महत्त्वपूर्ण एव प्रभावशाली होता है। इसका मुख्य कारण यह है कि व्यक्तिगत सम्पर्क के दौरान सम्भव है कि कुछ एसा बात हो जाये जो विवाद को उत्पन्न करे। इन परिस्थितियों से बचाव एवं सुरक्षा की दृष्टि से पत्र व्यवहार ज्यादा महत्त्वपूर्ण होता है। इसके अतिरिक्त कछ ऐसी बातें भी हो सकती हैं जिन्हें व्यक्तिगत रूप स कहने का साहस नहीं होता किन्तु इन्हें पत्र के माध्यम से बिना किसी संकोच के व्यक्त किया जा सकता

इसलिए कहा जाता है कि “जिह्वा की तलना में कलम या पत्र-व्यवहार अधिक महत्त्वपूर्ण एवं प्रभावशाली होता है।

(2) साक्ष्य (प्रमाण) के रूप में उपयोगी होना (Useful as an Evidence)-पत्र-व्यवहार। विवाद अथवा अन्य परिस्थितियों में न्यायालय में साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है। इससे सामान्यत: उस संस्था को लाभ प्राप्त होता है जिसके पास लिखित प्रमाण होता है।

(3) कम खर्चीला (Less Expensive)—जिस व्यापारी अथवा व्यक्ति का सम्पर्क अनेक व्यक्तियों, संस्थाओं से होता है, उसके लिए यह सम्भव नहीं होता कि वह प्रत्येक से सामान्य से लेकर विशिष्ट जानकारी टेलीफोन, फैक्स, ई-मेल से प्राप्त करे। अत: पत्र-व्यवहार ऐसा साधन है जो कम खचे। पर ज्यादा व्यक्तियों से सम्पर्क का माध्यम बन जाता है।

(4) गलत निर्णयों को सरलता से अस्वीकार करना (To Turndown the Wrong Decision Easily) सामान्यत: व्यवसाय के अन्तर्गत आपसी लेन-देन के दौरान कुछ अप्रिय एवं विषम स्थितियों उत्पन्न हो सकती हैं। प्रत्यक्षतः व्यवसायी इन स्थितियों के सम्बन्ध में सीधे अथवा प्रत्यक्ष रूप से कुछ कहना नहीं चाहता है क्योंकि उक्त प्रत्यक्ष बातों से व्यवसाय पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। प्रत्येक समझदार व्यवसायी इन स्थितियों से बचना चाहता है तथा ऐसी परिस्थितियों में व्यापारिक पत्र उसकी सहायता करते हैं।

Business Communications Letters

(5) शिकायतों का समाधान होना (Helpful in removing Complaint)-व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा के इस युग में व्यापारियों के मध्य सामान्यतः आपसी विवाद की स्थितियाँ उत्पन्न होती रहती हैं, जो लेन-देन अथवा किसी अन्य कारण से सम्बन्धित हो सकती हैं। प्राय: प्रत्येक समस्या का निराकरण टेलीफोन से सम्भव नहीं होता। ऐसी दशा में पत्र-व्यवहार ज्यादा महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है। पत्र के माध्यम से शिकायत अथवा जानकारी को विस्तृत रूप से व्यक्त किया जा सकता है तथा विनम्र भाषा का प्रयोग करने से सम्बन्धित पक्ष पर नकारात्मक प्रभाव भी नहीं पड़ता है।

(6) लिखित विवरण अधिक महत्त्वपूर्ण (Written Matter is more Important) सामान्यत: व्यक्ति कितना भी बुद्धिमान हो तथा उसकी स्मरण शक्ति कितनी भी तेज क्यों न हो परन्तु प्रत्येक बात को लम्बे समय तक याद रखना सम्भव नहीं होता है। अत: उस दशा में मात्र पत्र व्यवहार ही उसकी सुरक्षा का एक उपाय है। जो व्यापारी प्रतिदिन सैकड़ों व्यक्तियों से सम्पर्क एवं लेन-देन करता हो, उसके लिए लिखित विवरण रखना ज्यादा उपयोगी होता है।

(7) व्यवसाय के विस्तार में सहायक (Helpful in Business Expansion)-वर्तमान व्यावसायिक परिस्थितियों में प्रत्येक व्यापारी को प्रतिस्पर्धात्मक स्थितियों का सामना करना पड़ता है। चूंकि प्रत्येक व्यापारी या उत्पादक अपने माल को अधिक मात्रा में बेचने का प्रयास करता है, अत: इसके लिए वह पत्र-व्यवहार के माध्यम से ‘विज्ञापन’ का सहारा लेता है। इससे उसके अनेक व्यक्तियों से न केवल सम्बन्ध बनते हैं बल्कि उसके द्वारा उत्पादित वस्तुओं की मांग में भी वृद्धि होती है।

(8) रचनात्मक लेखन शक्ति का विकास (Development of Constructive Writing Power)—पत्र लेखन की क्रिया निरन्तर सम्पादित करने से व्यक्ति में रचनात्मक लेखन कला का विकास होता है जो कि एक व्यवसायी के लिये अत्यन्त आवश्यक है। जिस प्रकार एक विक्रयकर्ता प्रत्यक्ष सम्पर्क की स्थिति में अपनी वाक् कुशलता के द्वारा ग्राहक को प्रभावित करता है उसी प्रकार रचनात्मक लेखन भी उपभोक्ता को आकर्षित करने में अहम् भूमिका का निर्वाह करता है।

(9) ऋणों की वसूली में सहायक (Helpful in Clearing the Debts)-उधार लेन-देन व्यावसायिक क्रिया का एक महत्त्वपूर्ण अंग है तथा इसके बिना व्यावसायिक क्रिया का संचालन सम्भव ही नहीं है, किन्तु इस उधार की वसूली व्यवसाय का सबसे कठिन कार्य है। ऐसे ऋणों की वसूली में पत्रों। का योगदान महत्त्वपूर्ण होता है। बार-बार तकादे के पत्र लिखकर उधार की वसूली काफी सीमा तक । आसान बनायी जा सकती है।

 (10) पुराने सम्बन्धों में दृढ़ता (Rigidness in old Relations) व्यक्ति की व्यस्तता वह चाह। व्यवसायी हो या सामान्य व्यक्ति उसे अपनों से दर ले जाती है। ऐसे में पत्र-व्यवहार के माध्यम से व्यक्ति अपने पुराने सम्बन्धों को जीवित रखने के साथ-साथ उसे और प्रगाढ़ बना सकता है। सामान्यतः। व्यापारियों के आपस में सम्बन्ध बनते व बिगड़ते रहते हैं ऐसे में पत्र-व्यवहार बिगड़ते रिश्तों को मधुर बनाने में सहायक होता है।

(11) अधिक प्रभावशाली (More Effective)-पत्र लिखना मौखिक सन्देश की तुलना में अधिक प्रभावी होता है क्योंकि मौखिक सन्देश में कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्यों के भूलने का भय बना रहता है। या कोई गलत शब्द निकल सकता है किन्तु लिखित क्रिया में उसे सुधारने का मौका रहता है। पत्र को लिखकर एवं उसे पढ़कर उसकी अशुद्धियों को दूर करने के पश्चात् ही सम्बन्धित पक्ष को भेजा जाता है। इसलिये पत्रों की प्रभावशीलता अधिक होती है।

Business Communications Letters

व्यावसायिक पत्रों के कार्य/उद्देश्य

(Functions/Objectives of Business Letters)

व्यावसायिक पत्र, व्यापारिक सम्बन्धों और व्यापारिक लेन-देन हेतु बहुत ही लाभदायक होते हैं। पत्र, बिना परस्पर सम्बन्ध स्थापित किए संचार का सस्ता एवं आसान माध्यम है। इनसे लेन-देन के रिकॉर्ड और सबूत बनते हैं और अच्छा प्रभाव तथा साख बनाने में सहायता मिलती है। सामान्यतया व्यावसायिक पत्र निम्नलिखित उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु लिखे जाते हैं

1 रिकॉर्ड एवं सन्दर्भ (Record and Reference) व्यावसायिक पत्र ग्राहकों, पूर्तिकर्ताओं और सरकारी एजेन्सियों इत्यादि के साथ हुए व्यवहार का पक्का रिकॉर्ड उपलब्ध कराने का कार्य करते हैं। यदि उनके सम्बन्ध में किसी प्रकार की पूछताछ उत्पन्न होती है तो वे तुरन्त सन्दर्भ के रुप में प्रयुक्त किये जा सकते हैं। लेकिन ऐसा तब सम्भव नहीं हो पाता जब संचार मौखिक अथवा टेलीफोन पर किया जाता है।

2. अनुबन्धों का प्रमाण (Evidence of Contracts) व्यवसायिक पत्र दो पक्षकारों के बीच अनुबन्धों के वैध प्रपत्रों एवं प्रमाण का कार्य करते हैं। एक पत्र जो मालिक, मैनेजिंग डायरेक्टर अथवा किसी जिम्मेदार व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षरित है वह कोर्ट में एक पक्के सबूत के रूप में माना जाता है। इसलिए टेलीफोन, टेलेक्स (Telex) अथवा टेलीग्राम के संचार को लिखित रूप में पत्रों द्वारा सुनिश्चित किया जाता है।

3. सार्वजनिक सम्बन्ध (Public Relations)-व्यवसायिक पत्रों द्वारा बिना किसी व्यक्तिगत सम्पर्क के औपचारिक एवं अनौपचारिक व्यापारिक सम्बन्ध बनाये जा सकते हैं। यह देनदारों एवं ग्राहकों के साथ साख उत्पन्न करते हैं तथा पढ़ने वालों के साथ संगठन का सकारात्मक रूप पेश करते हैं और अन्य पक्षकारों के साथ मित्रता उत्पन्न करते हैं। यह पत्र वास्तव में कम्पनी के मूक राजदूत (ambassadors) होते हैं।

4.पिछड़े क्षेत्रों में व्यवसाय (Business in Remote Areas)-वे क्षेत्र जो बहुत दूर एवं पिछड़े हुए हैं, जहां यातायात तथा संचार व्यवस्था पूर्ण रूप से उपलब्ध नहीं है, वहाँ के व्यापारियों के साथ कम खर्च में व्यावसायिक पत्रों द्वारा सम्बन्ध स्थापित किया जा सकता है। व्यावसायिक पत्र हजारों मील दूर विश्व के किसी भी कोने में भेजे जा सकते हैं।

अत: व्यावसायिक पत्र महत्त्वपूर्ण सेवा प्रदान करते हैं तथा यह सम्बन्ध एवं लेन-देन बनाये रखने का एक अच्छा माध्यम हैं। इसलिए इनका खाका और ढांचा बहुत सोच समझ कर तैयार करना चाहिए।

Business Communications Letters

प्रभावशाली व्यावसायिक पत्र के आवश्यक तत्व

(Essential Elements of An Effective Business Letter)

किसी भी व्यापारिक पत्र की सफलता एवं प्रभावशीलता उसके बाहरी स्वरूप पर ही निर्भर नहीं करती है वरन उससे भी अधिक महत्वपूर्ण तत्व पत्र की विषय-सामग्री होती है। यदि पत्र के बाह्य स्वरूप ने व्यापारी को आकर्षित कर भी लिया तब भी यह आवश्यक नहीं कि वह उससे प्रभावित हो ही जाये। अतः आज एक व्यापारी को पत्र लेखन की क्रिया में पूर्ण निपुण होना चाहिए तथा उन सभी विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए पत्र लिखना चाहिए जो एक प्रभावी पत्र की विषय-सामग्री से सम्बन्धित हों. तभी वह एक प्रभावपूर्ण पत्र की रचना कर सकता है।

एक श्रेष्ठ व्यापारिक पत्र में अग्रलिखित तत्वों को सम्मिलित करना आवश्यक होता है

(1) सत्यता एवं शुद्धता (Truthness and Correctness) व्यापार की सफलता, ईमानदारी सर्वोत्तम नीति है, पर पूर्णरूप से आश्रित होती है। अत: व्यापारी को पत्र लेखन में पर्याप्त सत्यता रखनी। चाहिए। पत्रों में झूठी व आधारहीन बातों को स्थान नहीं देना चाहिए अन्यथा इससे परस्पर कटुता एवं वैमनस्यता बढ़ती है। वस्तुओं के भाव बताते समय तथा शिकायतों का निवारण करते समय इस बात का ध्यान रखना और भी आवश्यक होता है। पत्र में स्पष्टता एवं शुद्धता भी होनी चाहिए अन्यथा समय, श्रम एवं धन तीनों की ही हानि होगी।

(2) स्पष्टता (Clarity)-व्यापारिक पत्र की भाषा स्पष्ट होनी चाहिए। पत्र की भाषा दाँव-पेंच वाली नहीं होनी चाहिए और न ही उसके दोहरे अर्थ निकलते हों जिससे पढ़ने वाले को यह स्पष्ट न हो पाये कि आपने क्या लिखा है और आप क्या लिखना चाहते हैं? अत: पत्र की भाषा स्वयं में स्पष्ट होनी चाहिए जिससे पाठक को तुरन्त ही उसके अर्थ स्पष्ट हो जायें और उसे यह समझने में कठिनाई न हो कि आप क्या लिखना चाहते हैं? इस सम्बन्ध में लॉर्ड चेस्टर फील्ड का विचार उल्लेखनीय है “पत्र का प्रत्येक भाग इतना स्पष्ट एवं असंदिग्ध होना चाहिए कि विश्व का सामान्य बुद्धि वाला व्यक्ति भी उसे पढ़ने और समझने में त्रुटि न करे एवं पत्र को समझने के लिए उसे दुबारा न पढ़ना पड़े।”

(3) पूर्णता (Completeness)-प्रत्येक पत्र में पूर्णता का गुण विद्यमान रहना चाहिए। जिस सम्बन्ध में पत्र लिखा जा रहा है, उस सम्बन्ध में प्रत्येक बात का पूर्ण विवरण देना चाहिए। महत्वपूर्ण बातों के छूट जाने से पत्र अपूर्ण हो जाते हैं। अत: प्रत्येक महत्त्वपूर्ण बात के लिए पूर्ण स्थान देना चाहिए।

(4) संक्षिप्तता (Consiceness)-व्यवसाय में समय ही धन है (Time is money)| अनावश्यक लम्बे पत्र से पत्र-लेखक का समय ही व्यर्थ नहीं होता वरन् पाठक का समय भी व्यर्थ होता है। इसका आशय यह बिल्कुल भी नहीं है कि पूर्णता व शुद्धता का ध्यान ही न रखा जाये। इसका तात्पर्य यह है कि वह प्रत्येक बात लिखी जानी चाहिए जो आवश्यक है।

Business Communications Letters

(5) प्रभावोत्पादक एवं आकर्षक (Effective and Attractive)-प्रभावोत्पादक से यहाँ आशय प्रभावपूर्ण भाषा का प्रयोग करने से है अर्थात् पत्र लिखते समय ऐसे शब्दों का प्रयोग किया जाए तथा ऐसे वाक्य बनाये जायें जिनके पढ़ते ही व्यक्ति आपकी भाषा एवं कथन से प्रभावित हो जाए तथा जो कुछ आपने लिखा है वह उसी रूप में उसे पढ़ने एवं सोचने को बाध्य हो जाए और उस पर उसी रूप में अमल भी करे जो आप चाहते हैं।

(6) नम्रता (Courtesy)-किसी भी पत्र के प्रभावशाली होने के लिए यह आवश्यक है कि उसकी भाषा बहुत ही नम्र होनी चाहिए। नम्रता में जो आकर्षण-शक्ति है वह कटुता में नहीं। नम्रता युक्त एवं शिष्टाचारपूर्ण पत्र जितना प्रभावशील एवं व्यवसाय के लिए लाभकर होता है उतना ही कठोर या कटु भाषा से युक्त पत्र हानिकर होता है।

(7) सरलता (Easy)-पत्र की भाषा भी अत्यन्त सरल होनी चाहिए। अनावश्यक रूप से कठिन व बड़े शब्दों तथा मुहावरेदार भाषा का प्रयोग सर्वथा उपयुक्त नहीं होता है। सामान्य रूप से बोलचाल की भाषा का ही प्रयोग करना चाहिए जिससे पढ़ने वाले को किसी प्रकार की कठिनाई न हो या उसे पत्र पढ़ने के लिए शब्दकोष का प्रयोग न करना पड़े।

(8) क्रमबद्धता (Seriality)-कभी-कभी एक ही पत्र में विभिन्न विषयों पर लिखा जाता है. ऐसी स्थिति में विभिन्न विषयों के विचारों का सम्मिश्रण नहीं होना चाहिए। इनमें पर्याप्त क्रमबद्धता होनी चाहिए। एक-एक विषय पर क्रमश: विचार लिखने चाहिये।

(9) सन्तष्टता (Satisfying)-पत्र की भाषा इस प्रकार की होनी चाहिए कि पत्र को पढ़ते ही पाठक उसके तर्कों से सन्तुष्ट हो जाए और वह यह समझने लगे कि पत्र में जो कुछ भी लिखा है वह उसके ही हित की बात है।

(10) सुदृढ़ता (Concretness)-प्रत्येक व्यवसाय की अपनी कुछ स्थिर नीतियाँ होती हैं, अतः । पत्र लेखन में इन नीतियों का दृढ़ता से पालन अवश्य करना चाहिए। इस दृढ़ता के अभाव में पाठक यह समझ सकता है कि पत्र में लिए गए निर्णयों को आसानी से परिवर्तित कराया जा सकता है। अत: पत्र के विचारों से दृढ़ता का आभास होना चाहिए।

Business Communications Letters

व्यावसायिक पत्र तथा मीमो का बाह्यरुप

(Physical Appearance of Business Letters and Memos)

व्यावसायिक पत्र सामान्य तौर पर उन्हें कहा जाता है जो व्यावसायिक संस्थान से बाहर के लोगा। जस ग्राहक, आपूत्तिकताओं, बैंक आदि को भेजे जाते हैं. जबकि मीमो ऐसे सन्देशों अथवा प्रलेखों को। कहत ह जा उसी संगठन के अन्य लोगों जैसे कर्मचारियों को भेजे जाते हैं। पत्र तथा मीमों में कागज का लम्बाइ, आपचारिकता, लेखन शैली तथा व्यवस्थित करने के ढंग में कोई अन्तर हो यह आवश्यक नहीं हा दाना के खाके या फोरमेट में अन्तर किया जा सकता है। कागज पर लिखे जाने वाले पत्र के विभिन्न भागों का क्या स्थान होना चाहिए, इसे पत्र का प्रारूप (Form), खाका (Layout) या फोरमेट (Format) कहते हैं।

व्यावसायिक पत्रों तथा मीमो का बाहरी स्वरूप कागज पर केवल शब्दों का संग्रह नहीं है वरन् यह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होता है। किसी भी पत्र के प्राप्त होते ही प्राप्तकर्ता पर उसके बाह्य स्वरूप का प्रत्यक्ष एवं सीधा प्रभाव पड़ता है जो पत्र प्राप्तकर्ता को व्यापक रूप से प्रभावित करता है। अत: यदि पत्र का बाहरी स्वरूप आकर्षक एवं प्रभावपूर्ण है तो यह व्यवसाय के हित में होता है। इसीलिए कहा जाता है कि “पहला प्रभाव, अन्तिम प्रभाव होता है। (First impression is the last impression)”| डैसीकार (Desikar) के अनुसार, “किसी सन्देश के संचार में पत्र, मीमो या रिपोर्ट के बाहरी स्वरूप की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। इसलिए पत्रलेखन में यदि कोई लापरवाही बरती जाती है तो वह संस्था व सन्देश प्रेषक के लिए निन्दनीय होती है। अत: पत्र. मीमो आदि को आकर्षक ढंग से प्रस्तुत करना चाहिए।

Business Communications Letters

व्यावसायिक पत्र का बाहरी स्वरूप (Physical Appearance of Business Letter)-एक व्यावसायिक पत्र के बाहरी स्वरूप से आशय पत्र या मेमो को लिखने के लिये प्रयोग किये जाने वाले कागज की गुणवत्ता, लैटर हैड; टाइपिंग आदि से है। पत्र के बाह्य रूप का पढ़ने वाले पर सबसे पहले प्रभाव पड़ता है। अत: पत्र के बाहरी स्वरूप के सम्बन्ध में निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए

(1) श्रेष्ठ किस्म के कागज का प्रयोग (Use of High Quality Paper) सामान्यत: पत्रों के लिए सर्वप्रथम कागज की आवश्यकता होती है। इसके लिए व्यापारिक व्यक्ति एवं संस्थान श्रेष्ठ एवं उच्च किस्म के कागज का चुनाव करते हैं। स्वच्छ, अनुकूल आकार एवं प्रकार के कागज का तत्काल प्रभाव पड़ता है तथा ये तत्काल प्राप्तकर्ता का ध्यान आकर्षित करते हैं जो व्यापारिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होता है। इसके विपरीत यदि कागज खराब, मैला एवं अनुकूल न हो तो यह व्यवसाय को प्रतिकूल परिणाम देता है। वर्तमान व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा के आधुनिक युग में जब प्रत्येक व्यवसायी वैज्ञानिक एवं व्यावसायिक कलाओं को ध्यान में रखता है तो इस बात पर वह विशेष ध्यान देता है। यही कारण है कि प्रत्येक व्यवसायी अपने व्यावसायिक कार्यों हेतु नाम, पते सहित अन्य महत्त्वपूर्ण आवश्यक जानकारी से सम्बन्धित लेटरपैड का प्रयोग करते हैं।

(2) कागज का आकार (Size of Paper)–कागज का आकार क्या हो इसके लिये कोई निश्चित नियम नहीं है किन्तु पत्र की विषय सामग्री के अनुरूप ही कागज का आकार रखा जाना चाहिये। छोटे सन्देश वाले पत्र के लिये छोटे आकार का कागज एवं लम्बे सन्देश वाले पत्र के लिये लम्बे आकार का कागज प्रयोग करना चाहिये।

(3) आकर्षक लिखावट (Attractive Writing)-पत्र लिखते समय उसकी सुन्दरता के लिए आकर्षक लिखावट का होना आवश्यक है। यदि पत्र टाइप किया जा रहा है तो आकर्षक अक्षर (Font) का प्रयोग किया जाना चाहिये।

(4) हाशिया (Margin)-पत्र लिखते या टाइप करते समय बांये, दायें, ऊपर एवं नीचे हाशिया अवश्य छोड़ा जाना चाहिये।

(5) पैराग्राफ (Paragraph)-पत्र लिखते समय इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिये कि पैराग्राफ बहुत लम्बा न हो साथ ही एक पैरा से दूसरे पैरा के बीच में डबल स्पेस दिया जाना चाहिये तथा दूसरा पैरा मध्य से प्रारम्भ करना चाहिये।

(6) शुद्धता (Correctness)-पत्र लिखते या टाइप करते समय वर्तनी (Spelling) की शद्धता पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिये। प्रयास यह होना चाहिये कि ओवर राइटिंग न हो तथा रबर का प्रयोग कम से कम किया जाये।

chetansati

Admin

https://gurujionlinestudy.com

Leave a Reply

Your email address will not be published.

Previous Story

BCom 1st Year Business Communication Writing Skills Study Material Notes in Hindi

Next Story

BCom 1st Year Business Communication Request Letter Study Material Notes in Hindi

Latest from BCom 1st Year Business Communication Notes