BCom 1st Year Business Report Writing Study Material Notes in Hindi

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BCom 1st Year Business Report Writing Study Material Notes in Hindi

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 Business Report Writing
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प्रतिवेदन (रिपोर्ट) लेखन

(Report Writing)

व्यापार में विभिन्न उद्देश्यों हेतु भिन्न-भिन्न रिपोर्ट लिखने की आवश्यकता होती है। प्रत्येक व्यावसायिक संस्थान अपनी व्यापारिक गतिविधियों को बढ़ाने के लिये आवश्यकतानुसार रिपोर्ट तैयार करने की आवश्यकता महसूस करते हैं। यह रिपोर्ट प्रस्ताव के रुप में भी हो सकती है। एक व्यवसाय की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि उसने अपनी व्यावसायिक गतिविधियों को गति प्रदान करने के लिये अपने प्रस्ताव में किस प्रकार के लेखन का प्रयोग किया है। कम्पनी की क्रियाओं के प्रभावीकरण

और कार्यकुशलता का अनुमान लगाने के लिये मध्यमस्तर और क्रियात्मक स्तर के प्रबन्धकों को मासिक अथवा तिमाही बिक्री अथवा उत्पादन रिपोर्ट की आवश्यकता होती है। अंशधारियों को कम्पनी की वित्तीय स्थिति जानने के लिये वार्षिक रिपोर्ट की आवश्यकता होती है। सरकार भी कुछ रिपोर्ट वैधानिक आवश्यकताओं को पूरा करने अथवा नीति बनाने के उद्देश्यों से माँगती है।।

प्रत्येक व्यावसायिक अधिकारी को प्राय: निम्नांकित तीन प्रकार के लेखन कौशल में दक्ष होना पड़ता है

(1) प्रस्ताव (Proposals)

(2) लघु अथवा अनौपचारिक रिपोर्ट (Short or Informal Reports)

(3) दीर्घ अथवा औपचारिक रिपोर्ट (Long or Formal Reports)

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प्रस्ताव (Proposal)—प्रस्ताव से आशय विचार हेतु प्रस्तुत किये गये प्रस्तुतीकरण से है। प्रत्येक व्यावसायिक संस्थान को अपनी व्यापारिक गतिविधियों को बढ़ाने के लिए प्रस्ताव की आवश्यकता होती है, अत: एक व्यवसाय की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि उसने अपनी व्यावसायिक गतिविधियों को गति प्रदान करने के लिए अपने प्रस्ताव में किस प्रकार के लेखन का प्रयोग किया है। प्रस्ताव के माध्यम से कोई भी संस्था/व्यक्ति अपने कार्य से सम्बन्धित प्रत्येक सूचना को स्पष्ट व सूक्ष्म लेखन के माध्यम से संगठन/संस्था के अन्दर अथवा अन्य संस्थानों या ग्राहकों के सम्मुख प्रस्तुत करते हैं। प्रस्ताव किसी कार्य को प्रारम्भ करने अथवा पूर्ण करने की ओर उन्मुख होता है। इसका स्वरुप लिखित व मौखिक हो सकता है। प्रस्ताव के अन्तर्गत कोई भी संगठन/संस्था/व्यक्ति किसी कार्य को सम्पन्न करने की विभिन्न आकर्षक पद्धतियों एवं अपने पक्ष की बातों का जिक्र करते हैं। इसलिए आवश्यक है कि प्रस्ताव के प्रस्तुतीकरण के पूर्व गहन विचार विमर्श किया जाये।

अन्य शब्दों में “किसी संगठन/संस्था/व्यक्ति द्वारा विशिष्ट विषय के सम्बन्ध में स्पष्ट व संक्षिप्त विचारों को विचार विमर्श हेतु प्रस्तुतीकरण ही प्रस्ताव (Proposal) कहलाता है।” उदाहरण के लिये एक कम्पनी का किसी दूसरी कम्पनी में विलय का प्रस्ताव, एक विज्ञापन एजेन्सी का किसी उत्पाद को बढ़ावा देने का प्रस्ताव आदि।

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प्रस्ताव की आवश्यकता उद्देश्य

(Need And Purpose Of A Proposal)

सामान्य रुप से प्रस्ताव किसी विशिष्ट कार्य अथवा योजना की स्वीकृति प्राप्त करने के लिए सतत किए जाते हैं अतः यह आवश्यक होता है कि बैठक में सभा के समस्त सदस्यों को प्रस्ताव में प्रस्तुत विशिष्ट विषय अथवा समस्या निराकरण के समाधान व प्रस्ताव की लाभ व हानियों से स्पष्ट रूप से पूर्व परिचित करा दिया जाये ताकि प्रस्ताव हेतु आम सहमति का वातावरण बन सके। डोना किन्जलर के अनसार एक प्रस्ताव के दो उद्देश्य होते हैं-योजना को स्वीकृति दिलवाना तथा अन्य व्यक्तियों को योजना सम्बन्धी कार्य करने के लिये तैयार करना।

सामान्यतः प्रस्ताव की प्रस्तुति के निम्नलिखित उद्देश्य होते हैं

1.किसी कम्पनी की क्रय अथवा विक्रय नीति में परिवर्तन का प्रस्ताव।

2. किसी कम्पनी के अंशों पर दिये जाने वाले लाभांश के लिए प्रस्ताव

3. किसी कम्पनी की सम्पत्ति के क्रय अथवा विक्रय या भवन निर्माण का प्रस्ताव।

4. किसी कम्पनी की कार्य नीति अथवा कार्य कोशल क्षमता में सुधार का प्रस्ताव

5. किसी कम्पनी की सम्प्रेषण प्रक्रिया या क्षमता में सुधार का प्रस्ताव आदि।

एक प्रस्ताव निम्नांकित प्रश्नों का निर्णयात्मक उत्तर देने में समर्थ होना चाहिए

(i) कौन सी समस्या का समाधान करना है ?

(ii) समस्या का समाधान कैसे करना है?

(iii) समस्या का समाधान करने हेतु क्या सझाव हैं ?

(iv) इससे क्या लाभ होंगे?

(v) इसमें कितना व्यय होगा?

(1) प्रार्थना द्वारा माँगे गए प्रस्ताव (Solicited Proposal)—ऐसा प्रस्ताव जो एक व्यावसायिक संस्था द्वारा दूसरी व्यावसायिक संस्था को केवल माँगने पर ही दिया जाता है उसे प्रार्थना द्वारा माँगे गए प्रस्ताव कहते हैं। जब भी व्यावसायिक फर्म कोई ठेका (contract) निकालती है तो विभिन्न फर्मों से प्रस्ताव माँगे जाते हैं तथा फिर उन प्रस्तावों में से सर्वोत्तम प्रस्ताव का चुनाव का लिया जाता है। कोई फर्म अपने सभी व्यवसायिक कार्य स्वयं नहीं कर सकती, अतः फर्म अपने व्यावसायिक कार्यों को पूरा करने के लिए विभिन्न फर्मों से निविदाएँ (प्रस्ताव) आमंत्रित करती हैं। इन प्रस्तावों में से सर्वोत्तम प्रस्ताव का चुनाव करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वह प्रस्ताव कार्य से सम्बन्धित सभी आवश्यकताएँ पूर्ण करता है।

(2) बिना प्रार्थना माँगे गये प्रस्ताव (Unsolicited Proposal)—प्रत्येक व्यावसायिक फर्म का मुख्य उद्देश्य अपने उत्पाद को बाजार में अधिक से अधिक बेचना होता है। अत: जब भी ग्राहक कोई वस्तु बाजार में खरीदने के लिए जाता है तो दुकानदार उस ग्राहक के पूछने पर उस वस्तु की कईं किस्में (Varieties) ग्राहक को दिखाता है। इन किस्मों को दिखाने का उद्देश्य वस्तु की अधिक से अधिक बिक्री करना होता है। अत: इस प्रकार ग्राहक के बिना माँगे ही उसे विभिन्न किस्में दिखाना तथा उसे खरीदने के लिये ग्राहक को उस वस्तु के गुण बताने को बिना माँगे गये प्रस्ताव कहते हैं।

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प्रस्ताव योजना अथवा संरचना

(Planning Or Structure Of Proposal)

प्रस्ताव में निवेदन व प्रेरक भाव निहित होता है इसलिए इसे लिखते या तैयार करते समय योजनाबद्ध रणनीति अनिवार्य है। प्रस्ताव, प्रार्थित व अप्रार्थित होते है तथा इसमें प्रार्थना, इच्छा व विचार प्रभाव तत्व होते हैं एवं बिक्री बढ़ाना ही इनका एक मात्र उद्देश्य होता है। अत: बिक्री पत्र की भाँति प्रस्ताव की संरचना AIDA सूत्रानुसार विश्लेषित की जा सकती है। प्रस्ताव का नियोजन निम्नलिखित तीन चरणों में विभाजित किया जा सकता है

1 प्रथम चरण (First Step)-इसमें प्रस्ताव की आवश्यकता तथा उससे होने वाले लाभों का संक्षेप में वर्णन करना चाहिए। प्रस्ताव सदैव पाठक/श्रोता के उद्देश्य के अनुरुप होना चाहिए। प्रस्ताव का उद्देश्य पाठक/श्रोता की आवश्यकता के अनुरुप होने से लेखक पाठक/श्रोता का ध्यान आकर्षित कर सकता है अर्थात् प्रस्ताव के प्रारुप के अनुसार उसमें संक्षिप्त उद्देश्य, दृष्टिकोण व पाठक/श्रोता के लाभ की सम्भावनाओं का समावेश होना चाहिए।

2. द्वितीय चरण (Second Step)-प्रस्ताव के द्वितीय चरण में प्रमुख बातों को सम्मिलित किया जाता है। सामान्यत: संगठनों/संस्था के पास एक मुद्रित खाका होता है तथा इसी खाके के अनुरुप ही प्रस्ताव का मुख्य भाग तैयार किया जाता है। इस मुख्य भाग में अग्रलिखित बातें सम्मिलित होती हैं

  • विशिष्ट विषय अथवा विचार की पृष्ठभूमि
  • प्रकट समस्या का विवरण
  • समस्या को हल करने का तरीका
  • अनुसन्धान का तरीका
  • प्रस्तावित (विषय/विचार) कार्य करने के लिए सम्भावित व्यय व समय।

सामान्यत: प्रस्ताव के लेखन के लिए तैयार मुद्रित खाका होता है। साथ ही साथ इसमें उपयुक्त शीर्षक होते है जिससे श्रोता/पाठक इसे सरलता व सहजता से समझ सकते हैं। प्रस्ताव के मुद्रित खाके को श्रोता/पाठक की आवश्यकता के अनुसार परिवर्तित किया जा सकता है। खाका तैयार करते समय लेखक को प्रस्ताव में सरल भाषा का प्रयोग करते हुए विचारों की तर्कपूर्ण प्रस्तुति करनी चाहिए। साथ ही साथ तकनीकी तथ्यों का न्यूनतम प्रयोग कर प्रस्ताव की लम्बाई भी न्यूनतम करनी चाहिए।

3. तृतीय चरण (Third Step)-प्रस्ताव नियोजन का तृतीय व अन्तिम चरण सर्वेक्षण से सम्बन्धित होता है जिसमें लेखक श्रोता/पाठक को अपने विषय/विचार के सम्बन्ध में बता चुका होता है

और इस बात की आशा करता है कि उसका विषय/विचार स्वीकार कर लिया जायेगा। इस अन्तिम चरण में लेखक या प्रस्तावक श्रोता/पाठक की सभी स्थितियों का पुनरीक्षण करते हुए इस बात को प्रमाणित करता है कि प्रस्ताव आशावादी है। इस हेत लेखक के लिए आवश्यक है कि वह अपने द्वारा प्रस्तुत विचार का निरीक्षण कर उसमें व्याकरण व अक्षरों की अशुद्धियों का निराकरण करे। इससे लेखक की विश्वसनीयता बढ़ती है तथा पाठक/श्रोता को प्रस्ताव की विषय सामग्री ग्रहण करने में भी आसानी होती

निष्कर्षतः प्रस्ताव के नियोजन में विशेषज्ञ की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है। विशेषज्ञों की सहायता से प्रस्ताव को प्रामाणिक विश्वसनीय स्वरुप प्रदान किया जा सकता है। आज के प्रतियोगी युग में प्रस्ताव का प्रभावपूर्ण होना नितान्त आवश्यक है।

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रिपोर्ट या प्रतिवेदन (Report)

प्रतिवेदन या रिपोर्ट प्रबन्धकीय प्रक्रिया का एक अंग है जिसके माध्यम से विस्तृत सूचना या ज्ञान को उन व्यक्तियों तक पहुँचाया जाता है जिन्हें इनकी आवश्यकता होती है। वास्तव में प्रतिवेदन एक लेखा है जो किसी एक या उससे अधिक मामलों की पूछताछ या खोजबीन के पश्चात् लेखक अन्य सम्बन्धित व्यक्तियों को अपनी भाषा में लिखता है। आज के प्रबन्धकीय विकसित समाज में रिपोर्ट लेखन प्रत्येक स्थान पर आवश्यक हो गया है। एक कनिष्ठ अधिकारी अथवा सचिव अपने उच्चाधिकारियों के निर्देशानुसार कार्य करते हैं। एक निश्चित समय में उन्होंने जो भी कार्य किया है उसे अपने उच्च अधिकारियों को बताने के लिये वे उसे एक लिखित विवरण के रूप में प्रस्तुत करते हैं जिसे प्रतिवेदन या रिपोर्ट कहा जाता है।

उदाहरणत: एक कम्पनी का अध्यक्ष विभिन्न सेल्समैनों द्वारा किये गये विक्रय के सम्बन्ध में रिपोर्ट माँग सकता है। यदि विभिन्न विभागों की स्थिति जाननी हो तो प्रबन्धक उन विभागों से यह रिपोर्ट मांग सकते हैं कि आजकल वे क्या कार्य कर रहे हैं तथा उनकी भावी योजनाएँ क्या हैं। अतः स्पष्ट है कि रिपोर्ट लेखन एक कला है, जिसके द्वारा किसी भी प्रकार के सर्वेक्षण के उपरान्त व्यक्तिगत अथवा सामहिक विचारों को व्यक्त किया जाता है अर्थात् किसी मामले की छानबीन अथवा पछताछ के उपरान्त जो भी निष्कर्ष निकलते हैं उन्हें रिपोर्ट की शक्ल में अपनी भाषा में लिखा जाता है। इसके लिए किसी एक व्यक्ति अथवा एक से अधिक व्यक्तियों की कमेटी बनाकर मामला सौंप दिया जाता है और वे सपर्द किये गये मामले की पूरी छानबीन करते हैं तथा उसके उपरान्त वे जो भी निष्कर्ष निकालते हैं उन सभी= को एक रिपोर्ट की शक्ल में लिख दिया जाता है। प्रायः सभी जटिल मामलों को निपटाने के लिए वरिष्ठ अधिकारियों अथवा विशेषज्ञों की नियुक्ति की जाती है, जिन्हें सौंपे गये मामले की छानबीन करके अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करनी पड़ती है।।

लेसीकर के अनुसार, “व्यावसायिक प्रतिवेदन तथ्यों पर आधारित क्रमबद्ध, वस्तुगत संचार है जो व्यावसायिक उद्देश्य की पूर्ति करता है।

मरफी चार्ल्स के अनुसार, “व्यावसायिक प्रतिवेदन एक निश्चित महत्त्वपूर्ण व्यावसायिक उद्देश्य से एक या अधिक व्यक्तियों द्वारा किया गया तथ्यों का निष्पक्ष, वस्तुपरक, योजनाबद्ध प्रस्तुतीकरण है।

डॉ० मित्तल के अनुसार, “सरकारी या गैर सरकारी स्तर पर विभिन्न मामलों की छानबीन के लिए जो जाँच समितियाँ, आयोग, अध्ययन दल गठित किये जाते हैं, उनके द्वारा जाँच के पश्चात् प्रस्तुत किये गये विवरण, सुझाव और सिफारिशों आदि को सामहिक रूप से प्रतिवेदन कहा जाता है।”

उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि किसी विषय का पूर्ण अध्ययन करके, सारे तथ्यों व सूचनाओं को एकत्रित करके, तथा उनकी जाँच व छानबीन करके उपयुक्त निष्कर्ष निकालना तथा उस जाँच के सम्बन्धों में सुझावों को वैज्ञानिक ढंग से प्रस्तुत करना रिपोर्ट का उद्देश्य होता है। रिपोर्ट के माध्यम से पाठकों को एक विषय से सम्बन्धित सभी पहलुओं पर एक ही स्थान पर पूर्ण जानकारी प्रदान की जाती  हैं ।

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रिपोर्ट या प्रतिवेदन की विशेषताएँ

(Characteristics Of A Report)

सामान्यतः प्रतिवेदन में निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं

(1) रिपोर्ट में सभी सूचनाएँ निश्चित क्रम के अनुसार दी जाती हैं।

(2) रिपोर्ट में दी गयी सूचनाओं का उचित आधार होता है तथा वे घटनाओं, अभिलेखों व आँकड़ों आदि पर आधारित होती हैं।

(3) रिपोर्ट में संचार प्रक्रिया मिश्रित होती है जैसे-बोलकर, लिखकर, रेखांकित करके आदि।

(4) रिपोर्ट का उद्देश्य सत्य को प्रकाश में लाना होता है।

(5) रिपोर्ट में किये गए कार्यों का निष्कर्ष प्रस्तुत किया जाता है।

(6) रिपोर्ट किसी उद्देश्य को पूरा करने के उद्देश्य से दी जाती है।

(7) इसमें घटना की पुनरावृत्ति की सम्भावना को रोकने के लिए सुझावों की प्रस्तुति व उसके अनुपालन के निर्देश दिये जाते हैं।

व्यावसायिक प्रतिवेदनों के प्रकार

(Types of Business Reports)

व्यावसायिक प्रतिवेदनों के प्रकारों को अग्रलिखित प्रकार वर्गीकृत करके समझा जा सकता है

कार्य के आधार पर वर्गीकरण

(1) सूचनात्मक रिपोर्ट (Informational Reports)-ऐसी रिपोर्ट जिनमें किसी गतिविधि के सम्बन्ध में तथ्य सम्बन्धी सूचनाएँ प्रस्तुत की जाती हैं लेकिन उनके सम्बन्ध में कोई टिप्पणी अथवा सुझाव प्रस्तुत नहीं किया जाता, सूचनात्मक रिपोर्ट कहलाती है। उदाहरण के लिये किसी यूनिवर्सिटी द्वारा अपने से सम्बद्ध विभिन्न कॉलेजों से छात्रों की संख्या की रिपोर्ट प्राप्त करना, सेल्समैन द्वारा अपने विक्रय के सम्बन्ध में रिपोर्ट प्रस्तुत करना आदि। इस प्रकार की रिपोर्ट हर बार नए रूप में नहीं लिखी जाती, प्रायः छपे छपाए फार्मों में आँकड़े भर दिए जाते हैं और रिपोर्ट तैयार हो जाती है। ।

(2) विश्लेषणात्मक रिपोर्ट (Analytical Reports)-इस प्रकार की रिपोर्टों में अध्ययन किये गये विषय के सम्बन्ध में तथ्य तथा विश्लेषणात्मक सूचनाएँ प्रस्तुत की जाती हैं। इनमें अध्ययन किए जा रहे विषय से सम्बन्धित आँकड़ें एकत्रित करके उनका विश्लेषण व व्याख्या की जाती है तथा निष्कर्ष निकाले जाते हैं। उदाहरण के लिये किसी व्यापारिक संस्था की बिक्री में बहुत अधिक गिरावट आ जाने पर गिरावट की जानकारी व कारण जानने के लिए विश्लेषणात्मक रिपोर्ट तैयार की जा सकती है।।

(3) शोधात्मक रिपोर्ट (Research Report)-इस प्रकार की रिपोर्ट में किसी एक व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के समूह द्वारा किए गए शोध कार्यों के परिणामों को प्रस्तुत किया जाता है। उदाहरण के। लिये व्यक्तियों के एक समूह को संस्था के नए उत्पाद के लिये बाजार की खोज का कार्य सौंपा जाता है तो जब यह समूह अपनी जाँच के परिणाम प्रस्तुत करेगा तो उसे शोधात्मक रिपोर्ट कहा जाएगा।

_ औपचारिकता के आधार पर वर्गीकरण

(1) वैधानिक रिपोर्ट (Statutory Report)-ऐसे प्रतिवेदन जो विधान द्वारा बनाये गये प्रारूप व प्रक्रिया के अनुसार लिखे जाते हैं, वैधानिक प्रतिवेदन कहलाते हैं। ये प्रतिवेदन कम्पनी की सभाओं, अंकेक्षक रिपोर्ट या बैंक की क्रियाशीलता की रिपोर्ट के रूप में हो सकते हैं। यह रिपोर्ट एक निर्धारित फॉर्म के ऊपर देनी होती है तथा इसे उच्चाधिकारी के निर्देशों के अनुसार बनाया जाता है। रिपोर्ट में औपचारिकताओं का पालन किया जाता है। अधिकतर सांविधिक रिपोर्ट तथ्य सम्बन्धी सूचनाएँ प्रदान करती हैं।

(2) गैरवैधानिक प्रतिवेदन (Non-Statutory Reports)-इन्हें संगठनात्मक प्रतिवेदनों के नाम से भी जाना जाता है। ऐसे औपचारिक प्रतिवेदन जो कानून के दृष्टिकोण से आवश्यक नहीं होते परन्तु । जिन्हें प्रबन्ध की सहायता के लिये बनाना आवश्यक होता है, गैर-वैधानिक प्रतिवेदन कहलाते हैं। यह रिपोर्ट परिस्थितियों को ध्यान में रखकर बनायी जाती है। वैयक्तिक विभाग अपने स्टाफ की रिपोर्ट तैयार करता है, अंकेक्षक अपनी आन्तरिक रिपोर्ट तैयार करता है तथा शाखा प्रबन्धक विभिन्न विषयों पर रिपोर्ट तैयार करता है। यह सभी रिपोर्ट व्यावसायिक निर्णय लेने में सहायक होती हैं।

गैरवैधानिक अथवा ऐच्छिक रिपोर्ट भी दो प्रकार की हो सकती हैं

(i) नैत्यिक रिपोर्ट (Routine Report)-इस प्रकार की रिपोर्टे व्यवसाय के दैनिक मामलों के सम्बन्ध में नियमित रूप से तैयार की जाती हैं। इस प्रकार की रिपोर्ट प्रायः संक्षिप्त होती है तथा इसमें तथ्यों का ही वर्णन किया जाता है। इनमें किसी प्रकार की सलाह तथा सिफारिशों को सम्मिलित नहीं किया जाता। उदाहरणत: यदि किसी वस्तु के उत्पादन अथवा लागत के सम्बन्ध में प्रतिमाह कोई रिपोर्ट प्रस्तुत की जाये, तो उसे नैत्यिक रिपोर्ट कहेंगे। नैत्यिक रिपोर्टों का उद्देश्य प्रबन्धकों को संस्था के विभिन्न विभागों की गतिविधियों से अवगत कराना होता है, ताकि वे उन पर प्रभावपूर्ण नियन्त्रण रख सकें।

इस प्रकार की रिपोर्ट छपे-छपाए फार्मों में आँकड़ों व विवरण को भरकर तैयार की जाती हैं।

(ii) विशेष रिपोर्ट (Special Reports)-इस प्रकार की रिपोर्ट किसी विशेष अवसर पर अथवा कोई असामान्य घटना घटित होने पर कोई सूचना प्राप्त करने अथवा तथ्यों का विश्लेषण करने के लिए तैयार की जाती हैं। उदाहरण के लिये यदि किसी कारखाने में बार-बार हड़ताल होती रहे तो हड़ताल के कारण जानने के लिए विशेष रिपोर्ट तैयार करवायी जा सकती है। इसी प्रकार यदि कोई व्यापारिक संस्था कोई नई वस्तु बाजार में प्रस्तुत करना चाहती है, तो बाजार की स्थिति जानने के लिए विशेष रिपोर्ट तैयार करवायी जा सकती है।

व्यावसायिक प्रतिवेदन का महत्त्व

(Importance of Reports)

प्रतिवेदन किसी प्रबन्धन में निर्णय लेने की क्षमता के विकास का आधारभूत उपकरण है। यह देखा गया है कि एक व्यवसायी कुल कार्यकारी समय का काफी समय केवल प्रतिवेदन व पत्रों के लिखने में हैं। उद्योग व व्यवसाय सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण निर्णय प्रतिवेदनों में उल्लिखित सचनाओं अथवा सिफारिशों के माध्यम से लिये जाते हैं अर्थात् एक उद्योग या व्यवसाय के निरन्तर विकास के लिए प्रतिवेदन एक आवश्यक उपकरण है।

लेसीकर तथा पैटिट के अनुसार, “रिपोर्ट सभी बड़ी संस्थाओं की संचार आवश्यकताओं के लिये परत्वपर्ण है। जितनी बड़ी संस्था होगी उतनी अधिक आवश्यकता रिपोर्ट की भी होगी। संस्थान में जितना अधिक तकनीकी और पेचीदा कार्य होगा उतनी अधिक रिपोर्ट की जरुरत होगी।

(1) वास्तविक विस्तृत सूचनाएँ उपलब्ध कराना (Provide Detailed Information)प्रतिवेदन के द्वारा प्रबन्धकों को विभिन्न समस्याओं व पहलुओं के बारे में वास्तविक व विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है। इन सूचनाओं की सहायता से विभिन्न योजनाओं के क्रियान्वयन व नियन्त्रण में सहायता मिलती है।

(2) संस्था की कार्यपद्धति में सुधार (Improvement in working methods of firm) -व्यावसायिक प्रतिवेदनों की सहायता से संस्था की कार्य-पद्धति को सुधारने व उसे अधिक चुस्त बनाने में सहायता मिलती है। कमजोर इकाइयाँ अपनी रुग्ण स्थिति के लिए जिम्मेदार कारणों को खोजकर उनका निराकरण कर सकती हैं। इस सम्बन्ध में नवीन दृष्टिकोण प्रतिवेदनों के द्वारा ही प्रस्तुत किए जाते हैं।

(3) जटिल समस्याओं का निराकरण (Solution to critical Problems)-समिति के विशेषज्ञों के माध्यम से प्रस्तुत प्रतिवेदन के द्वारा जटिल से जटिल समस्याओं का निराकरण किया जा सकता है।

(4) सम्प्रेषण का माध्यम (Means of Communication)-एक बड़े व्यावसायिक संगठन में जहाँ लाखों कर्मचारी कार्यरत होते हैं, वहाँ प्रतिवेदन ही सम्प्रेषण का एकमात्र साधन होता है।

(5) निष्कर्ष सुझावों की प्रस्तुति (Presentation of Conclusion and Suggestions)प्रतिवेदन सन्तुलित आँकड़ों के व्यवस्थित व वैज्ञानिक विश्लेषण के द्वारा निष्कर्ष व सुझाव प्रस्तुत करता है। यद्यपि ये सुझाव तथा सिफारिशें विशेषज्ञों की समितियों के द्वारा दिए जाते हैं, अत: एक प्रबन्धन इन सिफारिशों को अपनाये जाने हेतु बाध्य हो जाता है।

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श्रेष्ठ व्यावसायिक प्रतिवेदन के लक्षण

(Features of an Effective Business Report)

एक श्रेष्ठ व्यावसायिक प्रतिवेदन में निम्नलिखित गुण होने आवश्यक हैं

(1) स्पष्टता (Clarity)-व्यावसायिक रिपोर्ट स्पष्ट और अपने आप में पूर्ण समझने योग्य होनी चाहिए। यह तभी सम्भव है यदि लिखने वाले के दिमाग में स्पष्ट उद्देश्य और विचार हैं। विचारों की स्पष्टता के साथ-साथ विभिन्न पैराग्राफ एवं शीर्षक देकर और उद्देश्य सहित विस्तारपूर्वक लिखना आवश्यक होता है।

(2) उद्देश्यपरक (Objectivity)-प्रतिवेदन में प्रस्तुत किए गए सुझाव उद्देश्यपरक तथा पक्षपात रहित होने चाहिए। सुझावों में व्यक्तिगत स्वार्थ भावना नहीं होनी चाहिए।

(3) सरल स्पष्ट भाषा (Easy and Clear Language)-रिपोर्ट की भाषा सरल एवं स्पष्ट होनी चाहिए। अधिक तकनीकी शब्दों का प्रयोग किया जाये या नहीं यह इस पर निर्भर करेगा कि रिपोर्ट के प्राप्तकर्ताओं को तकनीकी जानकारी है या नहीं। सरल शब्द अधिक स्पष्ट होते हैं तथा उनके भाव भी जल्दी व्यक्त होते हैं।

(4) यथार्थता (Relevancy)-निरीक्षण में, तथ्यों को इकट्ठा करने में तथा रिपोर्ट को लिखने में यथार्थता होनी चाहिए। यथार्थता रिपोर्ट की विश्वसनीयता बढ़ा देती है। यदि पढ़ने वाला यह अनुभव करे कि रिपोर्ट झूठी, द्वेषभावना से पूर्ण और मनगढंत कहानियो के आधार पर लिखी गई है तो सभी उद्देश्य समाप्त हो जाएंगे।

(5) क्रमबद्धता (Orderly)रिपोर्ट को प्रभावशाली बनाने के लिये यह आवश्यक है कि उसे क्रमबद्ध तरीके से लिखा जाए जिससे उसे आसानी से समझा जा सके।

(6) सत्यता (Truthness)-अच्छे प्रतिवेदन द्वारा निकाले गए परिणाम शुद्ध तथा सत्य होने चाहिए। चूँकि प्रतिवेदन की सहायता से निर्णय लिए जाते हैं, अत: अशुद्ध तथ्यों के आधार पर लिए गए निर्णय अत्यधिक हानिकारक हो सकते हैं।

(7) संक्षिप्तता (Briefness)-पढ़ने वाले का समय बचाने तथा उसका ध्यान आकर्षित करने के लिये रिपोर्ट को सारांश में लिखना चाहिए। अनावश्यक विवरण, असम्बन्धित तथ्यों व एक ही विचार को बार-बार नहीं दोहराना चाहिए।

(8) प्रमाण सहित (With Proof)-प्रभावशाली प्रतिवेदन के लिये यह आवश्यक है कि निकाले गए निष्कर्षों को प्रमाण सहित प्रस्तुत किया जाए। इससे रिपोर्ट की विश्वसनीयता बढ़ती है।

(9) संगति (Consistency)-समंकों के एकत्रीकरण के लिए निश्चित अवधारणाओं व सिद्धान्तों को अपनाया जाना चाहिए। वर्गीकरण व सारणीयन के लिए व्यवस्थित विधि को अपनाया जाये।।

कमेटी की स्थापना जनवरी 2016 में प्रधान कार्यालय द्वारा श्री एस. कुमार की अध्यक्षता में की गई जिसमें 4 अन्य सदस्य भी मनोनीत किये गये। समिति का कार्य बैंकों की जमाओं में होने वाली। गिरावट के कारणों का पता लगाकर 2 महीने के भीतर सिफारिश प्रस्तुत करना था।

एस. कुमार की अध्यक्षता वाली कमेटी ने निम्नलिखित कारणों को जमा में गिरावट के लिए उत्तरदायी बताया है

पिछले दो वर्षों में जनता ने अपनी बचतों को विभिन्न वित्तीय संस्थाओं, म्युचअल फण्ड, जीवन बीमा निगम, डाकघर आदि में विनियोजित करना प्रारम्भ कर दिया है।।

(ii) पिछले दो वर्षों से जमाकर्ताओं द्वारा अपने धन को अंशों (Shares) के क्रय-विक्रय में भी लगाया गया है।

(iii) बैंक जमाओं में कमी होने का एक प्रमुख कारण यह भी है कि बैंक कर्मचारी बैंक के नये ग्राहक बनाने के प्रति उदासीन हैं।

(iv)पिछले कुछ वर्षों से व्यापार में आई मन्दी के कारण भी जनता की बचत शक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।

(v) कम्प्यूटरीकरण के सम्बन्ध में सामान्य एवं तकनीकी ज्ञान की कमी।

(vi) परिवर्तित प्रबन्धकीय एवं लेखांकन सिद्धान्तों का ज्ञान न होना।

(vii) प्रतिस्पर्धी संस्थाओं की कार्य प्रणाली का ज्ञान न होना।

जमा राशियों में वृद्धि करने के लिए समिति की ओर से निम्नलिखित सुझाव हैं

(i) जनता के मन में उनके जमा धन की सुरक्षा के प्रति विश्वास उत्पन्न किया जाये।

(ii) जमाकर्ताओं को यह विश्वास दिलाना कि उनके जमा धन के ऊपर उन्हें निश्चित आय प्राप्त होगी।

(iii) बैंकों द्वारा ऐसी आकर्षक योजनायें तैयार की जानी चाहिये जिससे कि जमाकर्ता बैंकों में अपनी बचत जमा करने के लिए प्रेरित हो सकें।

(iv) बैंक को दूसरी प्रतिस्पर्धा वाली संस्थाओं से जानकारी प्राप्त करनी चाहिए कि वे किस प्रकार जमाएँ प्राप्त कर रही हैं।

(v) इस सम्बन्ध में यह एक स्पष्ट तथ्य है कि गत वर्षों में बैंकिंग उद्योग में आये क्रान्तिकारी परिवर्तनों के कारण कार्य-प्रणाली में जो आधार भूत परिवर्तन आये हैं उन्हें अपनाया जाना चाहिए।

उदाहरण 2-यह रिपोर्ट एक कम्पनी के क्षेत्रीय प्रबन्धक द्वारा उस स्थान का निरीक्षण करने के बाद लिखी गई है जहाँ पर दुर्घटना घटित हुई थी। यह रिपोर्ट क्षेत्रीय प्रबन्धक ने अपने महा प्रबन्धक को लिखी है।

सेवा में : श्री अरुण कुमार गर्ग (महा प्रबन्धक)

प्रेषक : एम. के. गुप्ता (क्षेत्रीय प्रबन्धक)

तिथि : 20 जुलाई, 2016

विषय : हापुड़ कार्यालय के गोदाम में आग लगना।

15 जुलाई, 2016 को लगभग 2.15 बजे दोपहर बाद हापुड़ कार्यालय के गोदाम में आग लगी जिससे कम्पनी की 1.28 करोड़ ₹ की सम्पत्ति की हानि हई।।

हमें दिल्ली कार्यालय में उसी दिन टैलेक्स द्वारा यह सूचना दोपहर बाद 3.10 बजे प्राप्त हुई। उसी दिन दोपहर बाद में कार द्वारा हापुड़ के लिये निकल पड़ा और वहाँ पहुँच गया। ।

आग लगने के कारणों का पता लगाना कठिन है परन्तु प्रारम्भिक जाँच से पता चलता है कि कम्पनी द्वारा दिए गए बहुत सारे निर्देशों का पूर्णतया पालन नहीं किया गया। जैसे

(I) माल गोदाम में धूम्रपान पूर्णतयाः वर्जित है किन्तु इस नियम का पूर्णतया पालन नहीं किया जाता।

(II) दोपहर के खाने के समय इलैक्ट्रिक ओवन खाना गर्म करने के लिए प्रयोग किया जाता है।

(III) ग्राहकों को प्राय: माल गोदाम में आने की तथा यदि वे चाहे तो धूम्रपान करने की भी अनुमति है।

(iv) माल गोदाम में चार अग्निशमन यन्त्र थे और इसके अतिरिक्त आठ यन्त्र कार्यालय में थे परन्त उनमें से एक भी यन्त्र पूर्ण रुप से कार्य करने योग्य नहीं था। अग्नि शमन यन्त्रों को वर्ष में एक बार अवश्य चार्ज करवाया जाना चाहिए, परन्तु हापुड़ कार्यालय में तो इन्हें पिछले चार वर्षों से एक बा

हानि की सीमा (Extent of Damage)-किसी कर्मचारी को चोट नहीं आई परन्तु कम्पनी की कल हानि 128 करोड ₹ की है। मैंने शाखा प्रबन्धक तथा गोदाम लिपिक से लिखित प सरण मांगा है और मुझे आशा है कि उनका स्पष्टीकरण मुझे कल तक प्राप्त हो जाएगा। उनका स्पष्टीकरण प्राप्त हो जाने के पश्चात् ही कोई कार्यवाही की जा सकती है।

जारी किये गए निर्देश (Instructions Given)—इस सम्बन्ध में मैंने निम्नलिखित निर्देश जारी कर दिए हैं

(a) श्री जय प्रकाश, गोदाम लिपिक को बदल कर लेखा विभाग में भेज दिया गया है और उनके स्थान पर श्री राम सिंह को वहाँ नियुक्त कर दिया गया है जो अभी तक ग्राहकों के हिसाब किताब को देखा करता था।

(b) गोदाम के मुख्य प्रवेश मार्ग पर ‘प्रवेश वर्जित’ की पट्टी लगा दी गई है।

(c) माल गोदाम से सम्बन्धित कागजी कार्यवाही माल गोदाम के बाहर या कार्यालय में की जाएगी।

(d) सभी अग्नि शमनयन्त्रों को शीघ्र-अति शीघ्र चार्ज करवाया जाए।

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उदाहरण 3-यदि किसी व्यावसायिक संस्था के विक्रय में कमी आ जाती है तो व्यवसाय के संचालक इस कमी के कारणों का पता लगाने के लिए एक समिति का गठन करते हैं। उस समिति की रिपोर्ट निम्नलिखित प्रकार हो सकती है

सेवा में,

श्री प्रवीण मलिक

मुख्य प्रबन्धक

रेमण्ड सूटिंग मिल्स

ग्वालियर विषय :

विक्रय में कमी के कारण समिति ने कम्पनी के विक्रय में कमी के निम्नांकित कारण पाए हैं

(1) समिति ने पाया कि कम्पनी के विक्रय में पिछले चार वर्षों से निरन्तर कमी हो रही है। प्रारम्भ में तो विक्रय में कमी धीरे-धीरे हुई परन्तु अब विक्रय में कमी की दर बहुत अधिक हो गई है। परीक्षण करने पर पता चलता है कि कुल विक्रय में कमी मुख्य रुप से कुछ उत्पादों की माँग में कमी के कारण

 (2) प्रश्नावलियों के विश्लेषण से पता चलता है कि ग्राहक हमारे द्वारा उत्पादित उत्पादों से सन्तुष्ट नहीं है। कुछ ग्राहकों ने तो स्पष्ट लिख दिया है कि हमारे बनाये उत्पादों का स्तर बहुत निम्न है।

(3) हमारी विज्ञापन व्यवस्था भी उचित नहीं है। अभी भी हम प्रचार के पुराने साधन ही अपना रहे हैं। हमारा प्रचार विभाग इस तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहा है कि विक्रय में कमी प्रभावी प्रचार की कमी के कारण भी हो सकती है।

(4) हमारा उत्पाद मौसमी जलवायु के दृष्टिकोण से भी अच्छा नहीं है।

सुझाव-विक्रय में वृद्धि के लिये निम्नलिखित सुझाव प्रयोग में लाये जा सकते हैं

(1) सर्वप्रथम हमें उत्पाद की किस्म में सुधार करना होगा। इसके लिए किस्म नियन्त्रण तकनीक का सहारा लेना आवश्यक है।

(2) हमें अपनी विक्रय की शर्तों को परिवर्तित करना होगा तथा छूट की दरों एवं साख अवधि को बढ़ाना होगा।

(3) हमें विक्रय वृद्धि योजनाएँ चलानी होगी तथा आने वाले वर्षों में इस ओर पूरा-पूरा ध्यान केन्द्रित करना होगा।

(4) हमें भी ग्राहकों के साथ व्यक्तिगत सम्पर्क स्थापित करना होगा तथा साथ में उपहार, बोनस देना होगा।

(5) हमें मध्यस्थों के लाभ का प्रतिशत बढ़ाना होगा।

हमें विश्वास है कि उपरोक्त सुझावों को यदि लागू किया जाए तो हम आने वाले वर्ष में बाजार में अपनी स्थिति में सुधार करने में सफल हो जाएंगे।

दीर्घ रिपोर्ट/प्रतिवेदन (Long Report)

दीर्च रिपोर्ट एक औपचारिक रिपोर्ट होती है जिसमें अधिकाधिक सूचना तथा दृष्टिगत साम्रगी होती र इन सूचनाओं के समर्थन में आवश्यक तथ्य भी दिये जाते हैं। इस रिपोर्ट में व्यवसाय की जटिल होती है

BCom 1st Year Business

परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(Expected Important Questions for Examination)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

(Long Answer Questions)

 

1 प्रतिवेदन तैयार करते समय उठाये जाने वाले कदमों का वर्णन कीजिए।

Explain various steps to be taken for a report presentation.

2. रिपोर्ट की विशेषताएँ बताइए।

Explain the characteristics of report.

3. सूचनात्मक तथा विश्लेषणात्मक रिपोर्ट में अन्तर कीजिए।

Distinguish between informational report and analytical report.

4. व्यावसायिक प्रतिवेदन का महत्त्व बताइए।

Describe the importance of Business Report.

5. एक प्रभावशाली व्यावसायिक प्रतिवेदन के मुख्य लक्षण बताइए।

State the main features of a effective business report.

6. प्रस्ताव की आवश्यकता व उद्देश्य बताइए।

Describe the need and importance of proposal.

7. प्रार्थित तथा अप्रार्थित प्रस्ताव में अन्तर कीजिए।

Distinguish between solicited and unsolicited proposal.

8. लघु रिपोर्ट से क्या आशय है ?

What is meant by a short report?

9. लघु रिपोर्ट की विशेषताएँ बताइए।

Explain the characteristics of a short report.

10. लघु रिपोर्ट का एक नमूना दीजिए।

Give a specimen of a short report.

BCom 1st Year Business

chetansati

Admin

https://gurujionlinestudy.com

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