BCom 2nd Basic Concepts Income Tax Study Material Notes in Hindi

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BCom 2nd Basic Concepts Income Tax Study Material Notes in Hindi

BCom 2nd Basic Concepts Income Tax Study Material Notes in Hindi : Definitions of Important Terms Related to Income Tax Determination of Assessment Year Income Tax is Payable on Incomes and Note on Receipts Main features of Income Provisions related to income Under Income Tax Act

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आयकर की आधारभूत अवधारणाएँ

(BA.SIC CONCEPTS OF INCOME-TAX)

आय-कर अधिनियम, 1961 के विभिन्न प्रावधानों एवं नियमों को स्पष्ट रूप से समझने के लिए इस अधिनियम में प्रयुक्त किये गये महत्त्वपूर्ण शब्दों का स्पष्ट अर्थ समझना परमावश्यक है, ताकि कोई भ्रम उत्पन्न न हो। यद्यपि आय-कर अधिनियम की धारा 2 एवं 3 में कुछ महत्त्वपूर्ण शब्दों को परिभाषित किया गया है, परन्त कछ शब्दों के अर्थ अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों में। निहित उद्देश्यों के आधार पर तय किये गये हैं।

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आयकर से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण शब्दों की परिभाषाएँ

(Definitions of Important Terms Related to Income-tax)

1 करदाता (Assessee)-आय-कर अधिनियम की धारा 2(7) के अनुसार, ‘करदाता’ के अन्तर्गत निम्नांकित को सम्मिलित किया जाता है

() वह व्यक्ति जो कर चुकाने के लिए उत्तरदायी है।

(ii) वह व्यक्ति जो कर के अतिरिक्त अन्य राशि (अर्थदण्ड, ब्याज) देने के लिए उत्तरदायी है।

(iii) ऐसा व्यक्ति जिसकी आय पर आय-कर लगाने की कार्यवाही आरंभ कर दी गई है।

(iv) ‘माना हुआ करदाता’ (Deemed Assessee) भी करदाता की श्रेणी में शामिल किया जाता है। यदि एक व्यक्ति को किसी अन्य व्यक्ति की आय के लिए करदाता माना जाए तो उसे ‘माना गया करदाता’ कहा जाता है। उदाहरण के लिए

(a) किसी करदाता की मृत्यु के पश्चात् उसके वैधानिक उत्तराधिकारी को मृतक करदाता की आय पर कर देने के लिए करदाता माना जाता है।

(b) अवयस्क, पागल तथा विदेशी व्यक्ति के प्रतिनिधियों को ऐसे व्यक्तियों की आय के सम्बन्ध में करदाता समझा जाता है।

(v) ऐसा व्यक्ति जिसे चूक में करदाता (Assessee in Default) मान लिया गया हो। जिन्हें किसी गलती या चक के कारण करदाता माना जाता है, उन्हें ‘दोषी करदाता’ या ‘चूक के कारण करदाता’ कहते हैं।

उदाहरणार्थ-लाभांश, बीमा कमीशन, वेतन आदि का भुगतान करते समय भुगतान करने वाले व्यक्ति या संस्था का यह दायित्व है कि वह आय-कर की निर्धारित दर से कटौती करके शेष राशि का ही भुगतान करें, परन्तु यदि भुगतान करने वाला व्यक्ति या संस्था बिना कर की कटौती किये हुए भुगतान कर देती है तो ऐसी स्थिति में भगतान करने वाले व्यक्ति या संस्था को ‘दोषी करदाता’ या ‘चूक के कारण करदाता’ माना जायेगा अर्थात् यह उसकी जिम्मेदारी बन गई। कि इस प्रकार न काटी गई कर की रकम को स्वयं अपने पास से सरकारी कोष में जमा कराये।

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(vi) उस व्यक्ति द्वारा स्वयं या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा चुकाये गये कर की वापसी या हानि निर्धारण के लिए कार्यवाही आरंभ कर दी गई हो। संक्षेप में, करदाता में उन व्यक्तियों को शामिल किया जाता है जिनकी आय गतवर्ष में आय-कर अधिनियम के अनुसार कर देने योग्य होती है।

2. व्यक्ति (Person) सामान्य भाषा में व्यक्ति से आशय मनुष्य से होता है, परन्तु आय-कर अधिनियम की धारा 2(81) के अनुसार व्यक्ति में निम्नांकित शामिल किये जाते हैं-(i) एक व्यक्ति (an individual), (ii) हिन्दू अविभाजित परिवार, (iii) कम्पनी या निगम, (iv) फर्म, (v) व्यक्तियों का समूह या समुदाय (AOP/BOI) (vi) स्थानीय सत्ता और (vii) प्रत्येक कृत्रिम व्यक्ति (Artificial Person) जो उपर्युक्त वर्गों में नहीं आता।

व्यक्ति (An Individual) से अभिप्राय एक प्राकृतिक व्यक्ति से है जो पुरुष, स्त्री, अवयस्क अथवा पागल व्यक्ति भी हो सकता है।

हिन्दू अविभाजित परिवार (HUF) की परिभाषा आय-कर अधिनियम में नहीं दी गई है। हिन्दू अविभाजित परिवार से अभिप्राय उन सभी व्यक्तियों से है जो एक ही परिवार के वंशज होते हैं। कम्पनी से आशय कम्पनी अधिनियम द्वारा निर्मित एक ऐसी संस्था से है जिसकी एक अलग सार्वमुद्रा, अविच्छिन्न उत्तराधिकार और सीमित दायित्व होता है।

एक फर्म से आशय एक ऐसी साझेदारी फर्म से है जिसमें सभी साझेदार लाभ कमाने के उद्देश्य से गठित होते हैं। यह व्यवसाय उन सबके द्वारा या उनमें से किसी एक के द्वारा सभी के लिए चलाया जाता है।

व्यक्तियों के संघ (A.O.P) से अभिप्राय दो या दो से अधिक व्यक्तियों का एक ऐसा संघ है जिसमें व्यक्ति अपने सामान्य उद्देश्य पूरा करने के लिए शामिल होते हैं।

स्थानीय सत्ता में नगरपालिका, नगर महापालिका एवं जिला परिषद आदि को शामिल किया जायेगा। कृत्रिम व्यक्ति में वैधानिक निगम, विश्वविद्यालय एवं भगवान देवता जैसे तिरूपति बाला जी आदि को शामिल किया जायेगा।

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स्पष्टीकरण हेतु निम्नलिखित उदाहरण देखें

Illustration 1

निम्नलिखित व्यक्तियों की स्थिति निर्धारित कीजिए

Determine the status of the following persons :

(i) मेरठ विश्वविद्यालय (Meerut University)

(ii) इलाहाबाद बैंक (Allahabad Bank)

(iii) लखनऊ नगर निगम (Municipal Corporation of Lucknow)

(iv) श्री कृष्ण एण्टरप्राइजेज जिसमें ‘एस’ व ‘के’ साझेदार हैं (Shri Krishna Enterprises consisting ‘S’ and  ‘K’ partners)

(v) एक संयुक्त हिन्दू परिवार जिसमें मि० ‘एम’, उनकी पत्नी तथा उनके पत्र ‘पी’ शामिल हैं (A Joint Hindu Family consisting of Mr. M, Mrs. M and their son P).

Solution :

(i) मेरठ विश्वविद्यालय एक वैधानिक कृत्रिम व्यक्ति है। (Meerut University is an Artificial Juridical Person)

(ii) इलाहाबाद बैंक एक कम्पनी है। (Allahabad Bank is a company) .

(iii) लखनऊ नगर निगम एक स्थानीय सत्ता है। (Municipal Corporation of Lucknow is a ‘Local Authority’.)

(iv) श्री कृष्ण एण्टरप्राइजेज एक फर्म है। (Shri Krishna Enterprises is a Firm).

(v) एक हिन्दू अविभाजित परिवार की स्थिति है। (A Hindu Undivided Family)

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3. करनिर्धारण वर्ष (Assessment Year)-आय-कर अधिनियम की धारा 2 (9) के अनुसार कर-निर्धारण वर्ष का अभिप्राय 12 माह की उस अवधि से है जो कि 1 अप्रैल से प्रारम्भ होकर आगामी वर्ष की 31 मार्च को समाप्त होती है। प्रत्येक करदाता को कर-निर्धारण वर्ष में अपनी गत वर्ष (Previous year) की कमाई हुई आय पर आय-कर का भुगतान करना होता है। वर्तमान कर-निर्धारण वर्ष 2018-19 है जो 1 अप्रैल 2018 को प्रारम्भ हुआ है एवं 31 मार्च, 2019 को समाप्त होगा

Illustration 3

एक करदाता की विभिन्न स्रोतों से आय है। ज्ञात कीजिये कि उनकी कौन-कौन सी आयें कर-निर्धारण वर्ष 2018-19 में कर-योग्य होंगी

An assessee is having income from various sources. Find out the previous years of such incomes which shall be taxable in the assessment year 2018-19.

(i) 1-9-2017 को ज्वाइन की गई नौकरी का वेतन।

(Salary income for job joined on 1-9-2017)

(ii) दिवाली 2017 में स्थापित नया व्यापार।

(Newly set up business on Diwali 2017)

(iii) 1-12-2017 को नये मकान का निर्माण समाप्त हुआ एवं इसी तिथि से किराये पर उठा दिया गया।

(New house completed on and let out from 1-12-2017) अपनी पुत्री का विवाह 1-11-2017 को सम्पन्न हुआ जिसमें 9,00,000₹ खर्च हुए किन्तु वह केवल 5,00,000₹ के खर्च के सम्बन्ध में ही संतोषजनक उत्तर दे सका।

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(Expenditure incurred on marriage of daughter held on 1-11-2017 ? 9,00,000 but he

could give satisfactory explanation only for ₹ 5,00,000)

(v) अप्रैल 2017 में विश्वविद्यालय से परीक्षक के रूप में पारिश्रमिक प्राप्त हुआ।

(Income from examinership fee from university in April 2017)

Solution :

Assessee is liable for all sources of income for the previous year relevant to assessment year 2018-19 and income for following previous years shall be aggregated

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4. गत वर्ष (Previous Year)-सरल शब्दों में, जिस वर्ष में आय कमाई या प्राप्त की जाती है उसे गत वर्ष कहते हैं। गत वर्ष को वित्तीय वर्ष (Financial Year) या लेखांकन या हिसाबी वर्ष (Accounting Year) के नाम से भी जाना जाता है।

आयकर अधिनियम की धारा 3 के अनुसार कर-निर्धारण वर्ष के ठीक पूर्व वाले वित्तीय वर्ष को गत वर्ष कहा जाता है। चूंकि कर-निर्धारण वर्ष प्रत्येक वर्ष 1 अप्रैल से प्रारम्भ होता है, अत: इसके ठीक पूर्व की तिथि अर्थात 31 मार्च तक की 12 माह की अवधि को गत वर्ष कहते हैं। उदाहरणार्थ, कर-निर्धारण वर्ष 2018-19 से सम्बन्धित गत वर्ष का अभिप्राय 1 अप्रैल, 2017 से 31 मार्च, 2018 तक की 12 माह की अवधि से है। यहाँ पर यह भी उल्लेखनीय है कि आय के सभी स्रोतों के लिए एक ही गत वर्ष माना जाता है।

यद्यपि करदाता अपनी सुविधानुसार वित्तीय वर्ष, दीवाली वर्ष, दशहरा वर्ष, कैलेंडर वर्ष आदि के अनुसार अपना हिसाब-किताब रख सकते हैं, परन्तु सभी करदाताओं को आय-कर हेतु अपना हिसाब-किताब 1 अप्रैल से 31 मार्च तक की अवधि का ही तैयार करना पड़ेगा। नये व्यापार की स्थिति में, या आय का नया साधन अस्तित्व में आने की स्थिति में, जिस तिथि को नया व्यापार प्रारम्भ किया जाता है या जिस तिथि को आय का नया साधन अस्तित्व में आता है, उस तिथि से वित्तीय वर्ष के समाप्त होने तक की तिथि की अवधि को ही गत वर्ष माना जायेगा। उदाहरणार्थ, करदाता अपना व्यवसाय 1 अक्टूबर, 2017 को प्रारम्भ करता है तो उसका गत वर्ष 1 अक्टूबर, 2017 से 31 मार्च, 2018 तक की अवधि ही होगी।

सामान्य नियमगत वर्ष की आय पर सम्बन्धित कर-निर्धारण वर्ष में ही कर लगता है।”

सामान्य नियम के अपवाद-सामान्यतया कर गत वर्ष की आय पर कर-निर्धारण वर्ष में ही लगता है, परन्तु इस नियम के कुछ अपवाद भी हैं। निम्नलिखित स्थितियों में करदाता पर आय कमाने वाले वर्ष में ही कर लग जाता है अर्थात् गतवर्ष एवं। कर-निर्धारण वर्ष एक ही होते हैं

1 अनिवासियों की समुद्री जहाज द्वारा व्यापार से आय (धारा 172) अनिवासी करदाताओं को भारतीय बन्दरगाह से सामान, पशु, डाक, यात्री आदि को ले जाने से ऐसे माल के लिए प्राप्त या प्राप्य राशि का 7.5% जहाज के मालिक की कर योग्य आय। मानी जाती है, और उसी पर कर लगता है, जिस वर्ष वह उपार्जित की गई हो, बशर्ते कि जहाज मालिक का कोई एजेन्ट भारत में न हो। जहाज रवाना होने से पूर्व ही जहाज का मालिक ऐसा प्रबन्ध करे जिससे कर का भुगतान एवं आय विवरणी 30 दिन के अन्दर-अन्दर सरकार को जमा हो जाए। वित्त अधिनियम, 2008 से ऐसी व्यवस्था की गयी है कि ऐसे व्यक्ति का कर निर्धारण गत वर्ष की समाप्ति के 9 माह के भीतर सम्पन्न हो जाना चाहिए।

2. भारत को छोड़कर जाने वाले व्यक्तियों की आय (धारा 174)–यदि कर निर्धारण अधिकारी को ऐसा प्रतीत होता है। कि कोई व्यक्ति चालू कर निर्धारण वर्ष (जिसे गत वर्ष कहा जाता है) में या इसके समाप्त होने पर या उससे पहले भारत छोड़कर जा सकता है तथा उसका दोबारा भारत लौटने का इरादा नहीं है तो इस तरह के व्यक्ति की कुल आय पर उसी गत वर्ष में जब वह भारत छोड़कर जा रहा है, आय-कर वसूल कर लिया जाता है।

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3. किसी विशिष्ट उद्देश्य या घटना के लिए व्यक्तियों का संघ (A.O.P.) या व्यक्तियों का समूह (Body of Individual : B.O.I.) या कृत्रिम व्यक्ति का बनाया जाना (धारा 174A)-यह नियम कर-निर्धारण वर्ष 2004-05 से लागू किया गया है। यदि कर-निर्धारण अधिकारी को ऐसा प्रतीत होता है कि कोई व्यक्तियों का संघ, व्यक्तियों का समूह अथवा कृत्रिम व्यक्ति किसी विशिष्ट उद्देश्य के लिए बनाया गया है एवं चाल गत वर्ष में ही उसको समाप्त कर दिया जायेगा तो कर निर्धारण अधिकारी विघटन की तिथि तक की कुल आय पर चालू गत वर्ष में ही कर निर्धारण कर देता है।

4. कर बचाने के उद्देश्य से सम्पत्ति का हस्तान्तरण (धारा 175)-यदि कोई व्यक्ति कर बचाने के उद्देश्य से अपनी सम्पत्ति का हस्तान्तरण किसी दूसरे व्यक्ति को करता है तो ऐसी स्थिति में चालू गत वर्ष में ही कर निर्धारण कर दिया जाता है।

5. बन्द किये गये व्यापार की आय-धारा 176 के अनुसार, जब कोई व्यापार अथवा पेशा किसी कर-निर्धारण वर्ष में बन्द कर दिया जाता है तो उसे बन्द करने वाले व्यक्ति का यह कर्तव्य है कि वह 15 दिन के भीतर आय-कर अधिकारी को इस सम्बन्ध में सूचित कर दे। आय-कर अधिकारी पिछले गतवर्ष से व्यापार बन्द किये जाने की तिथि तक के लाभ पर उसी कर-निर्धारण वर्ष में कर निर्धारित कर देता है।

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स्पष्टीकरण हेतु निम्नलिखित उदाहरण देखें

Illustration 4

एक करदाता अपना व्यापार निम्नलिखित तिथियों को प्रारम्भ करता है(i) 1 सितम्बर, 2016, (ii) 24 दिसम्बर, 2015, (iii) 1 फरवरी, 2017 उपर्युक्त प्रत्येक दशा में उसका कर-निर्धारण वर्ष क्या होगा और सम्बन्धित कर-निर्धारण वर्ष के लिए उसके गत वर्ष की अवधि क्या होगी?

An assessee starts his business on the following dates. In each case, what will be his assessment year and what period will be treated as his previous year for the concerned assessment year ?

(i) 1st September, 2016; (ii) 24th December, 2015; (iii) 1st February, 2017.

Illustration 5

निम्नलिखित दशाओं में कर-निर्धारण वर्ष 2018-19 हेतु गत वर्ष ज्ञात कीजिये

Find out the previous year in following cases for the assessment year 2018-19

(i) एक व्यापार जो 1-1-2018 को प्रारम्भ हआ हो और लेखा पुस्तकें कैलेंडर वर्ष के अनुसार रखी जाती ह।।

(For a business commencing on 1-1-2018 and books of account are maintained on calendar year basis).

(ii) एक कर्मचारी अपनी नौकरी 15 सितम्बर 2017 को प्रारम्भ करता है।

(An employee joins his job on 15th September 2017).

(iii) एक नया व्यापार 21 मई 2017 को स्थापित होता है।

(A new business is set up on 21st May 2017).

(iv) एक व्यापार में लेखा पुस्तकें दिवाली से दिवाली के हिसाब से रखी जाती हैं।

(A business man maintains his accounts on Diwali to Diwali Basis).

(v) एक व्यक्ति को 2017-18 में लाटरी का इनाम मिला।

(A person wins a lottery prize during 2017-18)

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Solution :

Determination of Previous Year

for the Assessment Year 2018-19 Income

Previous Year

(i) For a business commencing on 1.1.2018 books of account are maintained on calendar year basis 1-1-2018 to 31-3-2018

(ii) An employee joins his job on 15th September 2017 15-9-2017 to 31-3-2018

(iii) A new business is set up on 21st May 2017

21-5-2017 to 31-3-2018

(iv) A business maintains his accounts on Diwali to Diwali basis 1-4-2017 to 31-3-2018 (v) A person wins a lottery prize during 2017-18 1-4-2017 to 31-3-2018

5. आय (Income) [धारा 2 (24)]-‘आय’ शब्द आय-कर अधिनियम के अन्तर्गत रीढ़ की हड्डी (Back bone) के समान है, क्योकि आय-कर आय पर ही लगता है परन्तु आय-कर अधिनियम में इस शब्द को कहीं पर भी परिभाषित नहीं किया गया है। आय-कर अधिनियम की धारा 2 (24) में इतना अवश्य बताया गया है कि आय में क्या-क्या शामिल हैं, अर्थात् कौन-कौन सी प्राप्तियाँ या आमदनियाँ आय (Income) के अन्तर्गत शामिल की जायेंगी। संक्षेप में, आय-कर अधिनियम की धारा 2 (24) के अनुसार निम्नलिखित को आय के अन्तर्गत शामिल किया गया है

(i) लाभ तथा प्राप्ति (Profits and gains);

(ii) लाभांश (Dividend);

(iii) पुण्यार्थ अथवा धार्मिक उद्देश्यों के लिए स्थापित ट्रस्ट अथवा संस्था, वैज्ञानिक शोध संघ, खेलकूद संघ, पुण्यार्थ फण्ड एव सार्वजनिक ट्रस्ट द्वारा स्वेच्छा से प्राप्त किये गये चन्दों से आय। संक्षेप में, टस्टों, फंडों, एसोसिएशनों, निकायों आदि के द्वारा प्राप्त किये गये निम्नलिखित चन्दे उनकी आय में शामिल किये जाते हैं

() किसी ट्रस्ट के द्वारा जिसका उद्देश्य पूर्णत: या अशंत: पुण्यार्थ अथवा धार्मिक उद्देश्यों के लिए हो, के द्वारा प्राप्त किए गए चन्दे,

() किसी वैज्ञानिक अनुसंधान एसोसिएशन के द्वारा प्राप्त किये गये चन्दे,

() पुण्यार्थ उद्देश्यों के हेतु स्थापित किसी संस्था अथवा फण्ड जिसके सम्बन्ध में धारा 10(23C) (iv) (v) के अन्तर्गत अधिसूचना जारी की गई हो, के द्वारा प्राप्त किये गये चन्दे,

() धारा 10(23C) में दर्शाई गई किसी विश्वविद्यालय अथवा अन्य शिक्षण संस्था, अस्पताल के द्वारा प्राप्त किये गए। चन्दे।

(iv) धारा (17(2) और (3) के अन्तर्गत किसी कर्मचारी करदाता को प्राप्त अनुलाभ अथवा वेतन के स्थान पर प्राप्त लाभ का मूल्य जो वेतन शीर्षक में कर-योग्य है।

(v) किसी कर्मचारी करदाता को पूर्णतः अपने नौकरी सम्बन्धी आवश्यक कार्यों को पूरा करने हेतु दिया गया अन्य कोई विशेष भत्ता अथवा लाभ जो उपधारा (iii) में शामिल किए गए अनुलाभों के अतिरिक्त हो;

(vi) सेवा स्थल या निवास स्थल पर कर्त्तव्य पालन हेत किये गये निजी व्ययों की पूर्ति हेतु करदाता को प्राप्त कोई भत्ता या जीवन-निर्वाह की बढ़ी हुई लागत की पूर्ति के लिए प्राप्त क्षतिपूरक भत्ताः

(vii) प्रतिनिधि करदाता या लाभ प्राप्तकर्ता द्वारा प्राप्त किसी लाभ या अनुलाभ का मूल्य;

(viii) वह धन जो व्यापार अथवा पेशे के शीर्षक में कर योग्य है।

(ix) धारा 45 के अन्तर्गत कर योग्य पूँजी लाभ।

(x) बीमा व्यवसाय के लाभ जो कि पारस्परिक बीमा कम्पनी या सहकारी समिति के द्वारा चलाया जा रहा हो।

(xi) लॉटरी, वर्ग पहेली, दौड़ (पुड़दौड़ सहित), ताश के खेल या जुए या शर्त की प्रकृति के खेल से जीती गई राशि। (xii) करदाता द्वारा अपने कर्मचारियों से किसी प्रॉविडेण्ट फण्ड या सुपरएनुएशन फण्ड या कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम,1948 या कर्मचारियों के कल्याण हेत स्थापित अन्य किसी कोष में प्राप्त अंशदान की राशि

(xiii) प्रमुख व्यक्ति बीमा पॉलिसी (Keyman Insurance Policy) के अन्तर्गत पॉलिसी धारक को परिपक्वता पर बोनस  सहित प्राप्त राशि। कीमैन (Keyman) बीमा पॉलिसी का अर्थ एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति के जीवन पर ली गई जीवन बीमा पॉलिसी से है। दूसरा व्यक्ति प्रथम व्यक्ति का कर्मचारी हो सकता है अथवा ऐसा व्यक्ति हो सकता है जो प्रथम व्यक्ति के व्यवसाय से किसी प्रकार सम्बन्धित हो।

नोट

1 यदि ऐसी पॉलिसी नियोक्ता ने अपने कर्मचारी के लिए ली है तो कर्मचारी को प्राप्त राशि धारा 17(3) के न्तर्गत वेतन शीर्षक से आय के अन्तर्गत कर-योग्य होगी।

2. यदि ऐसी पॉलिसी ऐसे व्यक्ति के लिए ली गयी है जो व्यापार या पेशा चलाता है तो ऐसी पॉलिसी पर प्राप्त राशि व्यापार तथा पेशे से आय शीर्षक के अन्तर्गत कर-योग्य होगी।

3. यदि पॉलिसी उक्त दो के अतिरिक्त अन्य किसी बीमा योग्य हित (Insurble Interest) के कारण ली गयी है तो पॉलिसी की प्राप्त राशि अन्य साधन से आय शीर्षक में करयोग्य होगी।

(xiv) किसी व्यक्ति या हिन्दू अविभाजित परिवार करदाता को रिश्तेदारों के अलावा अन्य किसी व्यक्ति या व्यक्तियों से वित्तीय वर्ष में बिना प्रतिफल 50,000₹ से अधिक राशि उपहार (नकद या सम्पत्ति के रूप में) में प्राप्त होने पर सम्पूर्ण राशि आय की श्रेणी में आएगी। कम प्रतिफल की दशा में अन्तर की राशि करयोग्य होगी। (विस्तृत अध्ययन हेतु ‘अन्य साधनों से आय’ वाला अध्याय देखें)

(xiva) किसी फर्म या ऐसी कम्पनी जिसमें जनता का सारवान हित नहीं है को 31-5-2010 के पश्चात किसी गत वर्ष में किसी व्यक्ति (person) या व्यक्तियों से बिना प्रतिफल या अपूर्ण प्रतिफल के बदले में प्राप्त कम्पनी के अंश। (विस्तृत अध्ययन हेतु ‘अन्य साधनों से आय’ वाला अध्याय देखें) (xv) सहकारी समिति के द्वारा अपने सदस्यों के साथ किए गए बैंकिंग व्यापार (जिसमें ऋण देने की सुविधायें भी शामिल हैं) का लाभ और आय;

(xvi) धारा 56 (2) (vii b) में संदर्भित अंशों के निर्गमन पर उनके उचित बाजार मूल्य से अधिक राशि का प्राप्त प्रतिफल अर्थात् ऐसे अंशों को निर्गमित करने पर प्राप्त प्रतिफल एवं अंशों के उचित बाजार मूल्य का अन्तर (कर निर्धारण वर्ष 2013-14 से प्रभावी)।

(xvii) धारा 56 (2) (ix) में संदर्भित यदि किसी पूँजी सम्पत्ति के हस्तान्तरण हेतु करदाता ने कोई पेशगी रकम प्राप्त की हो जिसे हस्तान्तरण की शर्ते पूरी न होने पर सम्बन्धित पूँजी सम्पत्ति का हस्तान्तरण नहीं हुआ हो एवं प्राप्त पेशगी रकम को जब्त कर लिया गया हो तो जब्त की गई रकम अन्य साधनों से आय मानी जाएगी। (कर निर्धारण वर्ष 2015-16 से प्रभावी)।

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आय के मुख्य लक्षण अथवा आयकर अधिनियम में आय से सम्बन्धित प्रावधान

(Main Features of Income/provisions Related to Income Under Income-tax Act)

1 वैध व अवैध दोनों आयों पर आय-कर लगता है।

2. यह आवश्यक नहीं कि आय मुद्रा के रूप में ही प्राप्त की गई हो। मुद्रा तुल्य वस्तु या सेवा के रूप में प्राप्ति भी आय मानी जाती है।

3. आय के कर योग्य होने के लिये आय के साधन का होना आवश्यक है।

4. आय एक साथ या किस्तों (Instalment) में प्राप्त हो सकती है अर्थात् यह आवश्यक नहीं है कि आय नियमित रूप से ही प्राप्त हो।

5. खर्चों की क्षतिपूर्ति आय नहीं मानी जाती है। उदाहरणार्थ-वास्तविक यात्रा व्यय की क्षतिपूर्ति आय नहीं मानी जायेगी आय-कर की आधारभूत अवधारणाएँ

6. कोई प्राप्त धन आय है अथवा नहीं, इसका निश्चय प्राप्ति के समय से होता है। यदि प्रथम प्राप्ति के समय वह आय नहीं है परन्तु बाद में आय हुई है तो वह कर योग्य नहीं हो सकती।

7. आय की प्राप्ति बाहरी साधन से होनी चाहिये। यदि किसी संघ को अपने सदस्यों से प्राप्त चन्दा उसके खर्च से आधिक है तो वह आधिक्य कर योग्य आय नहीं माना जायेगा।

8. यदि किसी व्यक्ति की आय पर कानूनी रूप से किसी दायित्व का भार (Charge) लगा दिया जाये तो इतनी राशि उसकी आय नहीं मानी जायेगी।

9. व्यक्तिगत उपहारों को आय नहीं माना जाता।

10. कमायी गयी तथा प्राप्त की गयी दोनों ही आयें कर-योग्य होती हैं।

11. धर्मादा, गऊशाला, आदि के सम्बन्ध में प्राप्तियाँ आय नहीं होती हैं।

12. बचत आय नहीं होती है। पति द्वारा पत्नी को घर खर्च के लिए दी गयी धनराशि अथवा उसके निजी व्ययों के लिए दी गई धनराशि में से यदि पत्नी कुछ बचत कर लेती है तो वह पत्नी की आय नहीं मानी जायेगी।

13. यदि किसी आय के सम्बन्ध में यह विवादास्पद है कि यह आय किसकी है तो यह आय उस व्यक्ति की मानी जायेगी जिसने उसे प्राप्त किया है।

14. आय ऋणात्मक हो सकती है।

आयकर आय पर लगने वाला कर है कि प्राप्तियों पर लगने वाला कर

(Income-tax is Payable on Incomes and not on Receipts)

आय-कर आय पर लगने वाला कर है, प्राप्तियों पर लगने वाला नहीं।” यह कथन बिल्कुल सत्य है। उदाहरणतया, यदि एक पत्नी को अपने पति से कोई धनराशि घर-खर्च के लिए प्राप्त होती है तो यह पत्नी के हाथ में कर-योग्य नहीं है क्योंकि यह पत्नी की आय नहीं है। इस कथन की निम्नलिखित तरीके से भी व्याख्या की जा सकती है

1 व्यवसाय से प्राप्तियाँ (Business Receipts)-आय-कर अधिनियम के अन्तर्गत यह प्रावधान है कि व्यवसाय की कुल बिक्री पर आय-कर नहीं लगेगा बल्कि इस बिक्री की राशि में से माल की लागत एवं अन्य अप्रत्यक्ष खर्चे घटाने के बाद अगर कोई राशि शेष बचती है, तो उस शेष राशि पर ही आय-कर लगाया जा सकता है। अगर लागत एवं खर्चे घटाने के बाद कोई भी राशि शेष नहीं बचती है, तो आय-कर देने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। उदाहरणतया, यदि एक व्यवसाय की बिक्री 3,00,000 ₹ है तथा माल की लागत एवं अप्रत्यक्ष खर्चे इत्यादि 80,000₹ है तो यहाँ 2,20,000₹ पर ही आय-कर लगाया जा सकता है न कि 3,00,000 ₹पर इसी प्रकार पेशे से होने वाली प्राप्तियों में से भी सर्वप्रथम पेशे से सम्बन्धित खर्चों को घटाया जाएगा और तदुपरान्त यदि कोई राशि शेष बचेगी तो उस पर ही आय-कर लगेगा।

2.पूँजी सम्पत्तियों की बिक्री (Sale of Capital Assets)-यदि गत वर्ष में कोई पूँजी सम्पत्ति बेची जाती है तो इससे प्राप्त होने वाले सम्पूर्ण प्रतिफल पर आय-कर नहीं लगेगा बल्कि इस प्रतिफल की राशि में पूंजी सम्पत्ति की प्राप्ति लागत एवं हस्तांतरण से सम्बन्धित खर्चों को घटाने के बाद अगर कोई राशि शेष बचती है तो इस प्रकार बची हुई शेष राशि पर ही आय-कर लगेगा। उदाहरणतया, एक भवन 4.00.000₹ में बेचा गया। इसकी प्राप्ति लागत 2,00,000₹ थी एवं मकान बेचने से सम्बन्धित दलाली पर 20,000₹ व्यय हुए हैं, तो यहाँ (4,00,000-2,20,000)= 1,80,000₹ ही आय मानी जायेगी एवं आय-कर की गणना भी 1,80,000 ₹ पर ही की जायेगी न कि 4,00,000 ₹ पर।

3. ब्याज की प्राप्ति (Receipts of Interest)-यदि करदाता को गत वर्ष में कुछ राशि ब्याज के रूप में प्राप्त हई है तो इस राशि में से ब्याज को संग्रह करने के खर्चे घटाए जाएंगे। यदि जिन प्रतिभूतियों पर ब्याज प्राप्त हुआ है उन्हें खरीदने के लिए ऋण लिया गया था एवं इस ऋण पर ब्याज का भुगतान किया जाता है, तो इस ब्याज की राशि को भी प्राप्त ब्याज की राशि में से घटाया जायेगा एवं इसके बाद अगर कोई राशि शेष बचती है तो उस राशि पर ही आय-कर की गणना की जायेगी। ।

संक्षेप में, यह कहा जा सकता है कि आय-कर प्राप्तियों पर लगने वाला कर नहीं बल्कि इसकी गणना आय के आधार पर की जाती है। आय-कर अधिनियम में एक करदाता की आय ज्ञात करने के लिए विभिन्न प्रावधान बनाए गए हैं। इन प्रावधानों का पालन करने पर ही कर-योग्य आय का निर्धारण सम्भव है।

4. आकस्मिक आय (Casual Income) आकस्मिक आय से आशय ऐसी प्राप्तियों से है, जो संयोगवश एवं बिना आशा के प्राप्त हुई हों तथा बार-बार न मिलने वाली प्रकृति की हों। लॉटरी की जीत से आय, घुड़दौड़ से आय, वर्ग-पहेली, ताश के खेल, शर्त लगाने से आय, रास्ते में रुपयों से भरा बैग या पर्स मिल जाना, टी०वी० गेम्स एवं प्रतियोगिताओं से जीती गई राशि आकस्मिक आय के प्रमुख उदाहरण हैं।

कर-निर्धारण वर्ष 2002-03 तक आकस्मिक आयें धारा 10(3) के अन्तर्गत एक निश्चित सीमा तक कर-मक्त थीं, परन्त कर-निर्धारण वर्ष 2008-04 से यह कर-मुक्ति समाप्त कर दी गई है। अब आकस्मिक आय पूर्णत: कर योग्य आय है।

आकस्मिक आयों पर 30% की विशिष्ट दर से कर लगता है तथा ऐसी आयों के सम्बन्ध में न तो कोई हानि समायोजित की जा सकती है एवं न ही आकस्मिक आय को प्राप्त करने के सम्बन्ध में किये गये किसी व्यय की कोई कटौती स्वीकृत होती है। यहाँ पर यह उल्लेखनीय है कि निम्नलिखित आयों को आकस्मिक आय में शामिल नहीं किया जाता है

() कर-योग्य पूँजी लाभ, अथवा (ब) व्यापार अथवा पेशे से उदय हुई प्राप्तियाँ, अथवा (स) एक कर्मचारी के । पारिश्रमिक में जुड़ने वाली अन्य प्राप्तियाँ; जैसे बोनस, ग्रेच्युटी, अनुलाभ, आदि।

(ii) उपहार आकस्मिक आय नहीं-पारिवारिक स्नेह एवं प्रेम के कारण प्राप्त हुई भेंट या उपहार को आकस्मिक आय नहीं। माना जाता। किसी रिश्तेदार से व्यक्तिगत भेंट (जैसे, जन्म-दिवस या विवाह की वर्षगांठ पर प्राप्त भेंट) बार-बार (प्रति वर्ष) प्राप्त । होने पर भी कर-योग्य नहीं होती है। यह भेंट पारिवारिक प्रेम के कारण दी जाती है। उदाहरणार्थ, एक पिता द्वारा पुत्र को, एक पति । द्वारा पत्नी को तथा एक रिश्तेदार द्वारा दूसरे रिश्तेदार को प्रति वर्ष कोई राशि भेंट के रूप में दिया जाना केवल भेंट माना जाता है।। इसे किसी भी रूप में आय नहीं कहा जा सकता।

(iii) सेवा के लिए प्राप्त उपहार-बख्शीस, टीप आदि आकस्मिक आयें नहीं मानी जाती हैं। बैरा, टैक्सी डाइवर आदि को प्राप्त बख्शीसें आकस्मिक आय नहीं मानी जाती हैं। बैरा, टैक्सी ड्राइवर आदि को प्राप्त बख्शीस व्यापार अथवा पेशे की आय मानी जाती है।

(iv) पेशे के उपहार-डॉक्टर को रोगी से उपहार या वकील को अपने मुवक्किल से प्राप्त उपहार भी आकस्मिक आय नहीं मानी जाती है, क्योंकि ये प्राप्तियाँ पेशे के कारण प्राप्त हुई हैं। ।

(v) सट्टे के व्यापार से आय-सट्टे के व्यापार से आय आकस्मिक आय नहीं मानी जाती, लेकिन जुए से प्राप्त आय आकस्मिक आय की श्रेणी में आएगी।

उद्गम स्थान पर कर की कटौती (Deduction of Tax at Source)-(i) यदि घुड़दौड़ से जीत की राशि 2,500₹ से अधिक है तो उद्गम स्थान पर निर्धारित दर से कर की कटौती करने के उपरान्त शेष राशि ही विजेता को भुगतान की जायेगी। (ii) यदि लाटरी, वर्ग पहेली, ताश के खेल एवं अन्य खेलों में जीत अथवा जुए या शर्त (दाँव) से जीत की राशि 5,000₹ से अधिक है तो उद्गम स्थान पर कर की कटौती करने के उपरान्त शेष राशि ही विजेता को भुगतान की जायेगी।

स्पष्टीकरण हेतु निम्नलिखित उदाहरण देखें

Illustration 6

बताइए कि क्या निम्नलिखित प्राप्तियाँ आकस्मिक आयें हैं

(i) मिस्टर ‘विभव’ को पंच का कार्य करने के लिए 12,000₹ प्राप्त हुए जबकि पारिश्रमिक के लिए कोई प्रावधान नहीं था।

(ii) मिस्टर ‘आयुष’ को पंच का कार्य करने के लिए 10,000 ₹ प्राप्त हुए जिस पर पारिश्रमिक के लिए स्पष्ट तथा निश्चित प्रावधान था।

(iii) न्यायालय के आदेशानुसार ऋणी मिस्टर ‘आयुष’ पर डिक्री को कार्यान्वित करने से रोकने के लिए डिक्रीधारी मिस्टर ‘विभव’ को 1,600₹ ब्याज के प्राप्त हुए।

(iv) मिस्टर ‘एक्स’ मिस्टर ‘वाई’ के यहां सेवा कर रहा है। मिस्टर ‘वाई’ का पुत्र खो गया और मिस्टर ‘एक्स’ ने बिना पारिश्रमिक के प्रावधान के उसे खोज निकाला, परन्तु मिस्टर ‘वाई’ ने उसे 1,000 ₹ इनाम के दिये।

State whether the following receipts are casual incomes :

(i) Mr. Vibhav received ₹ 12,000 for acting as an arbitrator without any stipulation as to remuneration.

(ii) Mr. Ayush received 10,000 for acting as an arbitrator with a clear and definite stipulation for the said remuneration.

(iii) Mr. Vibhav a decreeholder received interest of ₹1,600 under an order of court granting stay of execution of the decree on judgment debtor Mr. Ayush. Giy) Mr. x is in the service of Mr. Y. Mr. Y’s son was lost and Mr. X traced him out without any stipulation of reward but Mr. Y gave him a reward of ₹ 1,000.

Solution :

(i) विभव को हुई 12,000₹ प्राप्ति आकस्मिक तथा बार-बार न होने वाली प्रकृति की है क्योंकि पारिश्रमिक देने का कोई  प्रावधान नहीं था, अत: यह आकस्मिक आय है।

(ii) मिस्टर आयुष को पंच के कार्य करने के लिए निश्चित पारिश्रमिक देने का स्पष्ट प्रावधान था और उसने इस पारिश्रमिक __पर कार्य करना स्वीकार कर लिया था, अत: यह प्राप्ति आकस्मिक आय नहीं है। (iii) डिक्रीदार मिस्टर विभव द्वारा 1,600 ₹ ब्याज की प्राप्ति आकस्मिक आय नहीं है। (iv) मिस्टर वाई को ईनाम के रूप में 1,000₹ की प्राप्ति आकस्मिक तथा बारम्बार न होने वाली प्रकृति की है क्योकि  पारिश्रमिक देने का कोई प्रावधान नहीं था, अत: यह आकस्मिक आय है।

सकल कुल आय (Gross Total Income)-कल कुल आय से अभिप्राय विभिन्न शीर्षकों की कर योग्य आयों के योग । से है एवं जिसमें से धारा 80 C से लेकर 80 U तक की कटौतियाँ नहीं घटाई गई हैं। यदि किसी व्यक्ति को सभी शीर्षकों से। आय प्राप्त नही होती है तो उसे जिन शीर्षकों से भी आय प्राप्त होगी उन सभी शीर्षकों की आय का योग ही सकल कुल आय होगी। उदाहरण के लिए-यदि किसी व्यक्ति को केवल वेतन शीर्षक से ही आय प्राप्त होती है तो उसके लिए वेतन शीर्षक की आय ही सकल कुल आय होगी।

कुल आय (Total Income)-सकल कुल आय में से धारा 80C से 80 U तक की कटौतियाँ घटाने के बाद जो राशि शेष बचती है, उसे कुल आय या शुद्ध कर-योग्य आय कहते हैं। आय-कर की रकम की गणना इसी आय पर की जाती है। आय-कर के लिए कुल आय को 10₹ के निकटतम गुणक (in multiple of 10) तक पूर्ण (round-off) किया जायेगा।

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chetansati

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