BCom 2nd Year Cost Accounting Labour Remunerating Study Material Notes in Hindi

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BCom 2nd Year Cost Accounting Labour Remunerating Study Material Notes in Hindi

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BCom 2nd Year Cost Accounting Labour Remunerating  Study Material Notes in Hindi Methods of wage Payment , Individual Bonus Schemes 🙁 Most important Notes For BCom 2nd Year Students )

Bcom 2nd Year Cost Accounting Labour Remunerating Incentive Schemes Study Material Notes in Hindi
Bcom 2nd Year Cost Accounting Labour Remunerating  Study Material Notes in Hindi

BCom 2nd Year Cost Accounting Numerical Illustration Related Labour Turnover Study Material Notes

श्रम पारिश्रमिक-मजदूरी भुगतान की पद्धतियाँ

(प्रेरणात्मक योजनाओं सहित)

(Labour Remuneration : Methods of Wages

Payment including Incentive Schemes)

किसी व्यक्ति को उसके कार्य के बदले जो राशि दी जाती है उसे पारिश्रमिक (Remuneration) कहते हैं। किसी भी उद्योग में श्रमिकों की कार्य-कुशलता उन्हें मिलने वाले पारिश्रमिक पर ही निर्भर करती है। उचित पारिश्रमिक द्वारा अच्छे व अनभवी श्रमिकों को उद्योग की ओर आकर्षित किया जा सकता है तथा उन्हें उस उद्योग को छोड़कर जाने से भी रोका जा सकता है। उचित पारिश्रमिक मिलने पर श्रमिक सन्तुष्ट रहते हैं, मन लगाकर कार्य करते हैं, हड़तालें कम होती हैं, सामग्री व मशीनों का सर्वोत्तम उपयोग होता है तथा उत्पादकता बढ़ती है। अत: किसी भी उपक्रम की समृद्धि में मजदूरी भुगतान की पद्धतियाँ एक निर्णायक भूमिका का निर्वाह करती हैं।

सन्तोषजनक पारिश्रमिक दर विधि के साथ प्रेरणात्मक योजनाएँ (Incentive plans) श्रमिकों की कार्यकुशलता में अत्यधिक वृद्धि करने में सहायक होती हैं। इनसे उत्पादक, श्रमिक तथा उपभोक्ता सभी लाभान्वित होते हैं।

श्रम के पारिश्रमिक (Remuneration) व प्रेरणात्मक मजदूरी (Incentive) में अन्तर है-पारिश्रमिक सेवा व मेहनत का पुरस्कार है जबकि प्रेरणात्मक मजदूरी से आशय अतिरिक्त मौद्रिक भुगतान या अतिरिक्त सुविधाएँ देकर श्रमिक के कार्यकलापों व कार्यकुशलता में वृद्धि करना है।

पारिश्रमिक भुगतान की विधियाँ

अथवा

मजदूरी की प्रमुख पद्धतियाँ

(Methods of wage Payments)

सामान्यत: पारिश्रमिक का भुगतान दो प्रकार से ही किया जाता है—(अ) समयानुसार, (ब) कार्यानुसार। इन दो मुख्य आधारों पर ही दोनों पद्धतियों के लाभों को प्राप्त करने के लिए अनेक प्रेरणात्मक पद्धतियाँ विकसित की गई हैं। वस्तुतः प्रेरणात्मक पद्धतियों को इन दोनों पद्धतियों का मिश्रित रूप कहा जा सकता है। संक्षेप में, मजदूरी भुगतान की प्रमुख पद्धतियों को तीन भागों में बाँटा जा सकता है

(1) समयानुसार मजदूरी पद्धति (Time Wage Rate System)

(2) कार्यानुसार मजदूरी पद्धति (Piece Wage Rate System)

(3) प्रेरणात्मक मजदूरी पद्धतियाँ (Incentive Wage Systems)।

(1) समयानुसार मजदूरी पद्धति (Time Wage Rate System) .

मजदूरी भुगतान की यह सबसे पुरानी पद्धति है। इस विधि के अन्तर्गत श्रमिकों द्वारा कारखाने में व्यतीत किये गये समय के आधार पर मजदूरी का भुगतान किया जाता है। श्रमिक द्वारा किये गये कार्य की मात्रा पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता है। मजदूरी का भुगतान प्रति घण्टा, प्रति दिन, प्रति सप्ताह या प्रति माह के आधार पर किया जाता है। इस पद्धति के अन्तर्गत कुल मजदरी का निर्धारण समय कार्ड अथवा दैनिक उपस्थिति रजिस्टर के द्वारा प्रकट कार्य समय एवं मजदूरी दर की गुणा द्वारा किया जाता है। साथ ही अधिसमय की मजदूरी तथा महँगाई भत्ता व अधिसमय का प्रीमियम जोड़ दिया जाता है। संक्षेप में, इस पद्धति के अन्तर्गत पारिश्रमिक गणना हेतु निम्नलिखित सूत्र प्रयोग किया जा सकता है

Gross Wages = [(Normal time + Overtime)x Wage rate

+(Overtimex Overtime premium rate)+ Dearness allowance etc.]

उदाहरण-एक श्रमिक के टाइम कार्ड से प्रकट होता है कि 42 घण्टों के सामान्य सप्ताह में उसने 46 घण्टे कार्य किया है। मजदूरी दर 1.00 ₹ प्रति घण्टा है। अधिसमय प्रीमियम मजदूरी दर का 100% तथा 50% महंगाई भत्ता मिलता है। उसकी कुल मजदूरी की गणना कीजिए।

Wages for 46 hrs. @₹ 1.00 per hour             =46.00rs

D.A. (50% of₹46.00)                                      =23.00rs

Overtime Premium for 4 Hours                      =   4.00

46-42 =4 Hours @₹ 1.00 per hour

Gross Wages = ₹ 73.00

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उपयुक्तता (Suitability of the method)-यह पद्धति ऐसे उद्योगों के लिए उपयुक्त है जहाँ पर कार्यकुशलता के अछा किस्म के उत्पादन की आवश्यकता होती है अर्थात् उत्पादन का किस्म पर आपना सम्भव न हो, जैसे, चौकीदार, गेट-कीपर, आदि का कार्य।

लाभ-(1) मजदूरी गणना के लिए यह पद्धति अत्यन्त सरल है।

(2) जल्दबाजी न होने के कारण वस्तु उच्च कोटि की निर्मित होती है ।

(3) सामग्री की बर्बादी कम होती है तथा यन्त्रो का सदुपयोग किया जाता है

(4) सभी श्रमिकों को समान दर से पाऱिश्रमिक मिलता है , अत: पारस्परिक सद्दभावना बनी रहती है ।

(5) श्रमिकों को एक निश्चित पारिश्रमिक मिलने का विश्वास रहता है ।

दोष-(1) सभी श्रमिकों को एक दर से भुगतान किये जान क कारण पुर धीरे-धीरे उनकी क्षमता भी कम हो जाती है। (2) समय का दुरूपयागरा पड़ता ह। (3) उत्पादन बढाने के लिए श्रमिकों में कोई प्रेरणा (Incentive) ना करना कठिन होता है क्योंकि उत्पादन के घटने या बढ़ने से यह का प्रवृत्ति विकसित हो जाती है ताकि अधिक-से-अधिक अधिसमय भुगतान मिल स मजदूरी वाली नौकरी मिलती है. छोड़कर चले जाते हैं।

साराशतः, इस पद्धति के अन्तर्गत प्रयल तथा पारितोषिक में कोई आनुपातिक सहसम्बन्ध स्थापतन परिणामस्वरूप उत्पादन बढ़ाने तथा श्रम लागत प्रति इकाई कम करन उत्पादन बढ़ान तथा श्रम लागत प्रति इकाई कम करने की दिशा में यह पद्धति सहायक सिद्ध नहीं हो पाती। समयानुसार पद्धति के वर्तमान में तीन रूप देखने को मिलते हैं

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(1) सीधी या सामान्य समय दर विधि (Ordinary Time Rate Method)-इस पक्षा य समय म मजदूरी को सामान्य दर का सीधा गणा कर पारिश्रमिक की रकम ज्ञात कर ली जाती है।

(ii) उच्च स्तरीय समाय दर विधि (High Level Time Rate Method)-इस पद्धति के अन्तर्गत श्रमिकों को समवर्ती क्षत्र अथवा सम्बन्धित उद्योग में प्रचलित श्रम दरों से ऊँची दर पर मजदूरी का भुगतान किया जाता ह ताक कुशल श्रामक सत्या का आर आकर्षित हो सकें। श्रमिक भो सदैव उच्च कार्यक्षमता बनाये रखने का प्रयास करते हैं अन्यथा उन्हें संस्था से निकाल दिये जाने का भय होता है। मजदूरी का भुगतान कुल व्यतीत किये गये समय के आधार पर ही किया जाता है।

(iii) परिवर्तित समय दर विधि (Graduated Time Rate Method)—इस पद्धति के अन्तर्गत श्रमिकों को मजदूरी का भुगतान जीवन-निर्वाह मूल्य सूचकांक (Cost of Living Index No.) के आधार पर किया जाता है। दूसरे शब्दों में, इस विधि में जीवन-निर्वाह मूल्य सूचकांक में परिवर्तन होने के साथ-ही-साथ मजदूरी दर में भी परिवर्तन कर दिया जाता है ताकि श्रमिक वर्तमान जीवन-स्तर को बनाये रख सकें।

(2) कार्यानुसार मजदूरी पद्धति (Piece Rate Wage System)

इस पद्धति में मजदूरी भुगतान का आधार समय न होकर उत्पादन की मात्रा होती है। श्रमिक जितना उत्पादन करता है उसी के अनुसार वह मजदूरी प्राप्त करता है चाहे कार्य को पूरा करने में उसने कितना भी समय क्यों न लगाया हो। पारिश्रमिक दर प्रति इकाई अथवा कार्य निश्चित कर दी जाती है। संक्षेप में, इस विधि के अन्तर्गत पारिश्रमिक की गणना निम्नलिखित सूत्र के आधार पर की जाती है

Gross Wages = Units Produced x Wage Rate per Unit

उदाहरणार्थ-एक श्रमिक ने किसी दिन 10 इकाइयों का उत्पादन किया तथा मजदूरी की दर प्रति इकाई 2.40rs है तो उस श्रमिक की मजदूरी 10 x 2.40 = 24.00 र होगी।

कार्यानुसार मजदूरी पद्धति के तीन रूप हो सकते हैं —

(i) सरल कार्य दर या सीधी कार्य दर पद्धति (Straight piece rate method)-इस पद्धति के अन्तर्गत निर्मित इकाइयों के आधार पर पारिश्रमिक का भुगतान किया जाता है। कुल उत्पादित इकाइयों में मजदूरी की प्रति इकाई दर से गुणा करके पारिश्रमिक की गणना की जाती है।

(ii) निश्चित दैनिक दर-युक्त कार्य दर विधि (Piece rate with guaranteed day rate method)—इस पद्धति के अन्तर्गत एक श्रमिक की मजदूरी दैनिक दर पर तथा कार्य दर पर दोनों प्रकार से ज्ञात की जाती है तथा दोनों में से जो मजदरी तुलनात्मक रूप से अधिक होती है, उसका भुगतान श्रमिक को कर दिया जाता है। दूसरे शब्दों में, यदि उत्पादित इकाइयों की मजदरी न्यूनतम दैनिक मजदूरी से कम होती है तो श्रमिक को दैनिक मजदूरी का भुगतान किया जाता है अन्यथा गणना की गई कार्यानुसार मजदूरी दी जाती है।

(iii) अन्तर्युक्त कार्य दर विधि (Differential piece rate method) इस विधि के अन्तर्गत श्रमिकों को पारिश्रमिक का भगतान विभिन्न दरों पर किया जाता है, जो प्रत्येक श्रमिक के उत्पादन परिमाण पर निर्भर करती है। उत्पादन की एक निश्चित मात्रा तक तो पारिश्रमिक एक समान दर पर किया जाता है। इसके बाद उत्पादन परिमाण को विभिन्न स्तराम। कर दिया जाता है और अतिरिक्त उत्पादन के लिए विभिन्न दरों का प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार विाभन्न र कशालता वाल श्रामका के लिए विभिन्न श्रम दरें निर्धारित की जाती हैं। इस विधि का एकमात्र उद्देश्य श्रामका का – वद्धि की प्रेरणा देना है। वस्तुतः इस विधि को प्रेरणात्मक पारिश्रमिक भगतान करने की विधियों में शामिल किया जा सकता हो ।

उपयुक्तता (Suitability) इस पद्धति का प्रयोग ऐसे उद्योगों में किया जा सकता है जिनका (अ) उत्पादन इकाइयो म मापा जा सकता है, (ब) उत्पादन इकाइयाँ समान रहती हैं तथा (स) जहाँ श्रमिक के कार्य के समय पर नियन्त्रण रखना सम्भव नहीं होता है।

लाभ-(1) यह विधि सरल है। (2) कशल श्रमिकों को अपनी कशलता दिखाने तथा बढ़ाने का अवसर प्राप्त हाता हा (3) निरीक्षण व्यय में कमी हो जाती है। (4) श्रमिकों की सापेक्षिक कुशलता का ज्ञान हो जाता है। (5) उत्पादन में वृद्धि हाता है। (6) प्रति इकाई श्रम लागत निश्चित होने के कारण टेण्डर का सही-सही मूल्य ज्ञात किया जा सकता है।

दोष-(1) अधिक मजदूरी प्राप्त करने के लालच में शीघ्रता से कार्य किये जाने के कारण उत्पादन की किस्म में गिरावट आ जाती है। (2) तीव्र गति से काम करने के कारण सामग्री क्षय के साथ-साथ मशीनों में टूट-फूट भी अधिक होती है। (3) अधिक पारिश्रमिक के लालच में लगातार कार्य करने से श्रमिकों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। (4) मजदूरी प्राप्ति का निश्चितता नहीं होती। (5) श्रमिकों की पारस्परिक मजदरी में असमानता होने के कारण पारस्परिक भेदभाव बढ़ जाता है। (6) श्रम-संघ इस पद्धति का सदेव विरोध करते हैं क्योंकि श्रमिकों में आपसी वैमनस्य हो जाने के कारण श्रम-संघों की एकता का खतरा हा जाता है। (7) कलात्मक कार्यों के लिए यह पद्धति उपयुक्त नहीं है, क्योंकि इन कार्यों के लिए अधिक समय एवं अधिक कौशल की आवश्यकता होती है

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Illustration 1.

एक वस्तु का प्रमाप उत्पादन 16 इकाइयाँ प्रतिदिन तय किया गया। 8 घण्टे के एक दिन का 16 ₹ प्रतिदिन से भुगतान किया जाता है। ‘ए’, ‘बी’ व ‘सी’ श्रमिकों ने क्रमश: 12. 16 व 24 इकाइयों का उत्पादन किया। तीनों श्रमिका का प्रात घण्टा व प्रति इकाई मजदूरी ज्ञात कीजिये यदि-i) समय दर से भुगतान किया जाये, (i) कार्य दर से भुगतान किया जाये।

Standard output of a Product was fixed at 16 units per day . Wages of 16rs is paid  for a day of 8 hours output  of A ,B and C worker was 12 ,16 and 24 units respectively. Calculate wages per unit and per hour for all  the three categories of workers if (i wages is paid at  Time Rate ,(ii) Wages is Rate

 Solution:

Calculation of Wages per Unit and per Hour

 Illustration 2.

श्रमिक ‘एक्स’ ने एक सप्ताह में 200 इकाइयाँ बनायीं। उसने गारण्टी युक्त 45 घण्टे सप्ताह के लिए 15 ₹ प्रति घण्टा की दर से मजदूरी प्राप्त की। एक इकाई को बनाने के लिए 15 मिनट का समय दिया जाता है जिसे कार्य अनुसार वेतन देने की दशा में 20% से बढ़ा दिया जाता है। श्रमिक को पारिश्रमिक देने की निम्नलिखित विधियों में से प्रत्येक के अन्तर्गत उसकी सकल मजदूरी ज्ञात कीजिए-(i) समयानुसार दर, (ii) कार्यानुसार दर।

During one week  the worker X manufactured 200 units . He received wages for  a guaranteed45 hours week at  the rate of 15rs per hours . The time allowed to produce one unit is 15 minutes which is increased by 20% in case of piece rate system Calculate his gross wages under each of  the following  methods of remunerating labour : (i) Time Rate (ii) Piece Rate.

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 Illustration 3.

दो आकस्मिक श्रमिक राखल और उपेन्द्र हैं जिन्हें 5₹ प्रति इकाई चुकाए  जाते है  प्रत्येेक इकाई का सामग्री लागत  15 rs  है । 8 घण्टो के एक दिन में  राखल 4 डकाइयाँ और उपेन्द्र केवल 3 इकाइयाँ बना सकता है। यदि उपरिव्यय 150 प्रात घण्टा हा ता बताइए कि संस्था में कौन-सा श्रमिक अधिक लाभदायक है तथा कम कशल श्रमिक को किन दशाओ में नियुक्त करना उचित होगा?

There are Two casual workers Rakhal and Upendrta those are paid at   the rate of 5 per unit produced material cost per unit is 15rs in a working day of 8 hours , Rakhal can Complete 4 units eWhile upendra can Comploetw Only 3 units . IF the overhead Charges are 1.5rs per hour show which of  the two piece worker is more useful  to  the factory and also menting on what circumstances would be justifiable  to employ even the less efficient worker ?

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प्रेरणात्मक मजदूरी पद्दतियों को प्रमुख रुप से दो भागों में बाटाँ जा सकता है ।

(अ) व्यक्तिगत बोनस योजनाएँ (Individual Bonus Schemes )

(ब) सामूहिक बोनस योजनाएँ (Group Bonus Schemes )

chetansati

Admin

https://gurujionlinestudy.com

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