BCom 3rd Year Auditing Divisible Profits and Dividends Study material notes in Hindi

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Divisible Profits and Dividends
Divisible Profits and Dividends

BCom 3rd Year Auditing Depreciation and Reserves Study Material notes in hindi

विभाज्य लाभ एवं लाभांश

[DIVISIBLE PROFITS AND DIVIDENDS]

लाभ क्या है?

(WHAT IS PROFIT?)

यदि किसी व्यापारिक संस्था में कुल सम्पत्ति की तुलना दो भिन्न-भिन्न तारीखों में की जाय, तो पहली तारीख से दूसरी तारीख पर (इन दोनों के बीच पूंजी के व्यापार में आने एवं व्यापार से बाहर जाने का ध्यान रखते हुए) जो वृद्धि हुई हो उसी को संस्था का लाभ कहते हैं। लाभ का तात्पर्य वसूल हो चुके (realised) लाभ से होता है।

वास्तविकता यह है कि कई वर्षों तक ‘लाभ’ शब्द का प्रयोग बिना किसी निश्चित अर्थ के किया गया था। इसी कारण लेखापालों और उनके कार्यों की आलोचना की गयी है। उपर्युक्त परिभाषा अर्थशास्त्री के दृष्टिकोण से बतायी गयी है जो लाभों के बढ़े हुए शुद्ध मूल्य के सिद्धान्त (Increased Net Worth Theory of Products) पर आधारित है। लेखापालों के अनुसार, लाभ एक निर्धारित समय की अवधि के लिए होने वाली आय और सम्बन्धित व्यय के मध्य का अन्तर है (Profit is the margin between Operation income and associated outgoings as related to a given period of time)| यह अर्थ इस बात पर आधारित है कि एक व्यापार लगातार चलने वाली प्रक्रिया है और वार्षिक खातों को तैयार करने के साथ-साथ इसकी गति रुकती नहीं है।

एकाकी व्यापार एवं साझेदारी संस्थाओं में लाभों को निर्धारित करना कठिन कार्य नहीं होता है जितना सीमित दायित्व वाली कम्पनियों में। एकाकी व्यापार तथा साझेदारी संस्थाओं में लाभों का निर्धारण करना एकाकी व्यापारी एवं साझेदारों पर निर्भर होता है। वे जैसे चाहें वैसे लाभों को निश्चित कर सकते हैं, क्योंकि वे उनमें दिलचस्पी रखते हैं। कम्पनी के लाभों में उनके अंशधारियों के अतिरिक्त अन्य व्यक्ति भी जैसे ऋणपत्रधारी, लनदार, कर्मचारी, आदि सभी दिलचस्पी रखते हैं। अतः कम्पनी के लाभों का निर्धारण उचित रूप से किया जाना चाहिए।

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लाभों का निर्धारण

(DETERMINATION OF PROFIT)

लॉर्ड हर्शल (Lord Harschell) के अनुसार, “कमायी गयी आय में से इसके कमाने के लिए किये गये व्यय को निकालकर लाभ का पता लगाया जाता है।” इसी प्रकार लांडे । सार, “लाभ का निर्धारण व्यवसाय के सामान्य सिद्धान्त के आधार पर किया जाना चाहिए। लेकिन जे लकांस्टर (0. Lancaster) का कहना है कि “किसी व्यवसाय द्वारा अर्जित लाभ का बि निर्धारण व्यवसाय की समाप्ति के समय पर ही किया जा सकता है। इसके पहले तो केवल लाभ-हानि खातों के व्यम से व्यवसाय में चलते रहने की सार्थकता का अनुमान मात्र लगाया जा सकता है।” इस प्रकार शुद्ध म का अनुमान तो व्यवसाय की समाप्ति पर ही किया जा सकता है। वार्षिक लाभ या हानि निकालना केवल अनुमान मात्र है।

लाभों के गलत निर्धारण का प्रभाव

(EFFECTS OF WRONG DETERMINATION OF PROFIT)

(क) लाभ के असली लाभ से अधिक निर्धारण का प्रभाव

(1) यदि असली लाभ से अधिक लाभ की रकम निर्धारित की जाय और सम्पूर्ण राशि अंशधारियों की लाभांश के रूप में बांट दी जाय तो इसका प्रभाव यह होगा कि लाभांश पूंजी में से बांट दिया जायेगा। पंजी के लाभांश के रूप में बंट जाने से पूंजी प्रहासन (reduction of share capital) हो जायेगा जो कम्पनी अधिनियम की धारा 100 के विपरीत एक अवैधानिक कार्य होगा। ऐसी परिस्थिति में कम्पनी का प्रत्येक संचाल दण्ड का भागी होगा।

(2) यदि इस प्रकार पूंजी बांट दी जायेगी, तो इससे कम्पनी की सम्पत्ति का मूल्य धीरे-धीरे घट जायेगा और इससे ऋणपत्रधारियों एवं लेनदारों के हितों को धक्का लगेगा। ऋणपत्रधारी तथा लेनदार अपने भगतान के लिए सदैव सम्पत्तियों की ओर देखते हैं। अतः जब बाहरी पक्षों; जैसे लेनदार, ऋणपत्रधारियों, आदि के हित सन्निहित हों, तो यह आवश्यक हो जाता है कि व्यापार के परिणाम यथासम्भव सही निकाले जाने चाहिए।

सम्पत्तियों के मूल्य में कमी आने का प्रभाव यह भी होगा कि धीरे-धीरे कम्पनी की सारी पूंजी समाप्त हो जायेगी और कम्पनी दिवालिया हो जायेगी।

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(3) यदि लाभ की रकम वास्तविक रकम से अधिक निर्धारित की गयी, तो लाभ के एक निश्चित प्रतिशत के रूप में पारिश्रमिक पाने वाले संचालक, प्रबन्ध संचालक एवं प्रबन्धकों को अधिक भुगतान मिल जायेगा।

(4) वास्तविक रकम से अधिक लाभ की रकम निकालना सम्पत्तियों के मूल्यांकन करने की पद्धति पर। अधिक निर्भर होता है। अधिक लाभ निर्धारण करने का तात्पर्य यह है कि सम्पत्तियों को अधिक मूल्य पर मूल्यांकित किया गया है। इस प्रकार कम्पनी का चिट्ठा उसकी वास्तविक स्थिति को प्रकट नहीं कर सकता है।

(ख) लाभ के असली लाभ से कम निर्धारण का प्रभाव

(1) यदि लाभ वास्तविक रकम से कम निर्धारित किया गया, तो इससे अंशधारियों को कम लाभांश प्राप्त होगा और उनके हितों को धक्का लगेगा।

(2) कम लाभांश घोषित होने से बाजार में कम्पनी के अंश का मूल्य गिर जायेगा जिससे कम्पनी की साख (Goodwill) को धक्का लगेगा।

(3) साथ ही लाभ के प्रतिशत के रूप में पारिश्रमिक पाने वाले संचालकों एवं प्रबन्ध संचालकों को भी कम पारिश्रमिक मिलेगा।

(4) कम लाभ के निर्धारण से गुप्त संचय (Secret Reserve) बनता जाता है, जो कम्पनी के लिए हितकारी सिद्ध नहीं होता है, क्योंकि संचालक एवं प्रबन्ध संचालक इसकी राशि का गबन करके इसका। दुरुपयोग कर सकते हैं।

(5) वास्तविक रकम से कम लाभ निर्धारण करना कम्पनियों की सम्पत्तियों के कम मूल्य पर मूल्याकना करने पर निर्भर होता है। सम्पत्तियों के कम मूल्य पर मूल्यांकन करने से कम्पनी का चिट्ठा उसकी सही स्थिति। का चित्र प्रस्तुत नहीं कर सकता है।

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विभाज्य लाभ

(DIVISIBLE PROFITS)

विभाज्य लाभ की स्पष्ट परिभाषा करना कुछ कठिन है। यदि किसी संस्था के विभाज्य लाभ की ठीक-ठाक गणना कर ली जाय तब ही यह कहा जा सकता है कि ये सभी लाभ विभाजन योग्य हैं। इस सम्बन्ध में केवल इतना कहा जा सकता है कि किसी कम्पनी का शुद्ध लाभ एक निश्चित समय की आय पर आधिक्य हात है जो सम्पत्तियों के लिए ह्रास की व्यवस्था करने के पश्चात शेष रहता है।

‘विभाज्य लाभ” वे सभी लाभ हैं जो वैधानिक रूप से अंशधारियों में बांटे जा सकते हैं। कम्पनी अधिनियम, 1060 से पूर्व इस सम्बन्ध में न तो कोई विधि निर्धारित करता था जिनके द्वारा कम्पनी के लाभ का निर्धारण किया जा सके, और न यही बताता था कि कौन-सा लाभ लाभांश के लिए उपलब्ध हो सकता है, मगर सन् 1000 के संशोधित कम्पनी अधिनियम ने विभाज्य लाभ के सम्बन्ध में स्थिति प्रायः स्पष्ट कर दी है।

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विभाज्य लाभ का निर्धारण

(DETERMINATION OF DIVISIBLE PROFIT)

विभाज्य लाभ के निर्धारण में नीचे लिखी चार बातें अपना महत्वपूर्ण स्थान रखती है :

(1) लेखाकर्म के सिद्धान्त;

(2) अन्तर्नियम में लिखे गये नियम एवं आदेश

(3) न्यायालयों के महत्वपूर्ण नियम ; तथा

(4) वैधानिक दृष्टिकोण (कम्पनी अधिनियम की धाराओं के अनुसार)।

(1) लेखाकर्म के सिद्धान्त प्रारम्भ में एक निश्चित समय के आय एवं व्यय का अन्तर निकालकर विभाज्य लाभ की गणना की जाती थी। इस सिद्धान्त के आधार पर पूंजी एवं आय (capital and revenue) के शीर्षकों के अन्तर्गत सम्पूर्ण लेन-देनों के वर्गीकरण करने पर बल दिया जाता था। यह स्वीकार करना होगा कि इस प्रकार का वर्गीकरण लेखाकर्म की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण है, किन्तु आजकल विभाज्य लाभ की गणना करने के लिए एक संशोधित दृष्टिकोण अपनाया जाता है और इस पुरानी पद्धति को अपर्याप्त कहकर छोड़ दिया गया है।

लाभ निकालने के लिए वर्ष के प्रारम्भ में सम्पत्तियों, दायित्वों एवं पूंजी का अन्तर मालूम करना चाहिए। यदि सम्पत्तियां अधिक हैं तो आधिक्य, (surplus) आयेगा, अन्यथा कमी (deficiency) होगी। उसी प्रकार वर्ष के अन्त में सम्पत्तियों एवं दायित्वों और पूंजी का अन्तर निकालना चाहिए। वर्षान्त के इस अन्तर में पूंजी की वृद्धि या वापसी मात्र लाभ के वितरण आदि के सम्बन्ध में आवश्यक व्यवस्था करने के पश्चात् उसका मिलान वर्ष के प्रारम्भ में अन्तर से करना चाहिए। यदि आधिक्य है, तो लाभ होगा और कमी है, तो हानि होगी। इस नवीन सिद्धान्त का आजकल लाभ के निर्धारण के लिए प्रयोग किया जाता है।

जहां तक सम्पत्तियों के मूल्यांकन का प्रश्न है, स्थायी सम्पत्तियां लागत मूल्य में से ह्रास का आयोजन करने के पश्चात शेष कीमत पर मूल्यांकित की जाती हैं और वैसे ही चल या अस्थायी सम्पत्तियों का मल्यांकन बाजार-मल्य या लागत-मूल्य में से जो कम हो उस आधार पर किया जाता है। इसके साथ-साथ वर्ष की हानियों एवं आगामी वर्षों में होने वाले आकस्मिक कार्यों के लिए आवश्यक पूर्वोपाय अवश्य कर लेना चाहिए।

लेखाकर्म के सिद्धान्तों के अनुसार पूंजी लागत के रूप में बांटना उचित नहीं माना जा सकता है और न यही ठीक माना जाता है कि इस वर्ष के लाभ में से पिछले वर्षों की हानि की व्यवस्था किये बिना लाभांश बांट दिये जायें। सिद्धान्त यह भी कहते हैं कि लाभाश के रूप में लाभ बांटने से पूर्व भविष्य की आकस्मिक घटनाओं के लिए संचय बनाना अत्यन्त ही आवश्यक है।

(2) अन्तर्नियमों में लिखे गये नियम एवं आदेश यद्यपि प्रत्येक कम्पनी के अन्तर्नियमों में विभाज्य लाभ’ के लिए विशेष नियम लिखना आवश्यक नहीं है, फिर भी इनमें संचालकों के लिए कुछ आदेश होते हैं जिनके आधार पर वेलाभ में संचयों का व्यवस्था अथवा कोई अन्य आयोजन करने के पश्चात लाभांश की सिफारिश कर सकते हैं।

यायालयों के निर्णयों में बार-बार इसी बात पर जोर दिया जाता है कि अन्तर्नियमों की धाराओं का महत्वपूर्ण है। प्रत्येक न्यायालय ने अन्तर्नियमों के महत्व को समझा है और उनके विरुद्ध किये कोपर्ण अवैध ठहराया है। इसमें यह स्पष्ट हो जाता है कि बहुत हद तक विभाज्य लाभ की गणना के अन्तर्नियमों के आदेशों एवं नियमों के आधार पर होनी चाहिए।

प्रत्येक कम्पनी के अन्तर्नियम प्रायः भिन्न होते हैं और उनमें दिये गये आदेश एवं नियम कभी एक-से नहीं हो सकते अतएव इससे अधिक इस सम्बन्ध में यहां कुछ भी नहीं कहा जा सकता है।

(3) न्यायालयों के महत्वपूर्ण निर्णय एवं  (4) वैधानिक दृष्टिकोण–’विभाज्य लाभ’ के निर्धारण के सम्बका में न्यायालयों की राय जानने के साथ-साथ यह आवश्यक हो जाता है कि ‘विभाज्य लाभ’ का वैधानिक दृष्टिको क्या है। कम्पनी अधिनियम, 1960 शुरू होने के पश्चात् विभाज्य लाभ के निर्धारण करने की व्यवस्था में अब परिवर्तन कर दिये गये हैं और इस सम्बन्ध में स्थिति काफी स्पष्ट कर दी गयी है।

यहां न्यायालयों के निर्णयों के साथ-साथ वैधानिक दृष्टिकोण स्पष्ट करने का प्रयत्न किया गया है, ताकि पुराने एवं नये दोनों प्रकार के दृष्टिकोणों को भली प्रकार समझकर हृदयंगम किया जा सके। अध्ययन की दृष्टि से सभी बातों को निम्नलिखित भागों में विभाजित किया गया है :

(1) ह्रास, (2) अवशिष्ट ह्रास, (3) पिछले वर्षों की हानियां, (4) पूंजीगत लाभ, (5) पूंजीगत हानियां. (6) अनिवार्य संचय, तथा (7) अन्य बाते।

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(1) हास (Depreciation) _

जैसा कि पहले कहा जा चुका है, सैद्धान्तिक दृष्टि से सम्पत्तियों पर ह्रास की व्यवस्था अवश्य होनी चाहिए। यदि यह आयोजन न किया गया, तो सम्पत्ति के मूल्य में ह्रास होता रहेगा और सम्पत्ति धीरे-धीरे नष्ट हो जायेगी। इसका परिणाम यह होगा कि सम्पत्ति की आयु समाप्त होने के पश्चात् उसके पुनर्स्थापन के लिए। कम्पनी के पास आवश्यक राशि उपलब्ध न हो सकेगी। न्यायालयों के निर्णय

(क) स्थायी सम्पत्तियों पर हासकोई भी कम्पनी स्थायी सम्पत्तियों (Fixed assets) के ह्रास की पूर्ति किये बिना ही वर्तमान लाभ से लाभांश घोषित कर सकती है।

Wilmer vs. Mcnamara & Co. Ltd. (1895)

मुकदमे का आधारमैकनमारा कम्पनी डाक, पार्सल एवं अन्य माल ढोने के लिए स्थापित की गयी थी। इस कम्पनी ने अपनी स्थायी सम्पत्तियों; जैसे—ख्याति, भवन, पट्टे, आदि में ह्रास की काफी रकम अपलिखित कर दी थी, मगर बाद में यह बन्द कर दिया।

30 जून, 1894 को समाप्त होने वाले वर्ष में इस कम्पनी ने 5,816 पौण्ड 12 शि. 6 पें. का लाभ दिखाया और लाभ निकालने के पूर्व प्रतिस्थापन पर मरम्मत आदि का आयोजन कर लिया लेकिन स्थायी सम्पत्तियों पर हास का आयोजन नहीं किया।

इस लाभ को पूर्वाधिकार अंशधारियों में बांटने का प्रस्ताव पास किया गया। इस प्रकार साधारण अंशधारियों ने आपत्ति की कि स्थायी सम्पत्तियों पर हास की व्यवस्था किये बिना लाभ को लाभांश के रूप में नहीं बांटना चाहिए।

निर्णय न्यायाधीश श्री स्टर्लिंग (Sterling) ने लाभांश के वितरण को वैध बताया और निर्णय दिया कि कम्पनी अपनी स्थायी सम्पत्तियों के ह्रास की पूर्ति किये बिना ही वर्तमान लाभ में से लाभांश बांट सकती है।

जिस व्यापारिक संस्था का व्यापार मशीन पर आश्रित हो, उसे व्यापार के शुद्ध लाभ की गणना करने के लिए मरम्मत इत्यादि पर खर्च की गयी रकम के अतिरिक्त मशीन के ह्रास के लिए उचित रकम का प्रबन्ध करना आवश्यक है।

Crabtree Thomas vs. Crabtree (1912) __

मुकदमे का आधार क्रैट्री ने वसीयतनामा लिखकर एक ट्रस्ट बनाया था। शर्त यह थी कि ट्रस्टी व्यापार तब तक चलाते रहेंगे जब तक कि लाभ की आशा बनी रहेगी और सारा लाभ उसकी पत्नी को दिया जायेगा।

ट्रस्टियों ने लाभ निकालने से पूर्व मरम्मत के अतिरिक्त मशीन के ह्रास के लिए 7 प्रतिशत की दर स हास की रकम काटी। इस पर क्रैन्ट्री की स्त्री को आपत्ति हुई। ट्रस्टियों की अनियमितता को न्यायालय के सामने लाया गया।

निर्णय न्यायाधीश श्री काजेन्स हार्डी तथा लॉर्ड बक्ले (Buckley, LJ.) ने यह निर्णय दिया था कि निस व्यापारिक संस्था का व्यापार मशीन पर आश्रित हो. उसके लिए शद्ध लाभ निकालने से पूर्व मरम्मत का रजन के अतिरिक्त मशीन के ह्रास के लिए व्यवस्था अवश्य करनी चाहिए।

(ख) अस्थायी सम्पत्तियों पर हास—अस्थायी सम्पत्तियों (floating assets) के लिए हास की व्यवस्था किये बिना कम्पनी लाभांश नहीं बांट सकती है।

Verner vs. General and Commercial Investment Trust Ltd. (1894)

मकदमे का आधार—जिस दिन के खातों के सम्बन्ध में यह मकदमा चलाया गया था, उस दिन कम्पनी के विनियोगों के मूल्य में 2,45,224 पौण्ड की पूंजीगत हानि हो चुकी थी, तथा कुछ प्रतिभूतियां ऐसी था। जिनका मूल्य 75,000 पौण्ड था और जिनके मिलने की कोई सम्भावना नहीं थी।

इस हानि के होते हुए भी कम्पनी को 23.000 पौण्ड का लाभ था जिसे वह लाभांश के रूप में बांटना चाहती थी। मुकदमा इसलिए चलाया गया था कि जब तक हानि पूरी न कर ली जाय तथा 75,000 पौण्ड की क्षति की पूर्ति न कर ली जाय, लाभांश वितरित न किया जाय।

निर्णय इस मुकदमे में यह निर्णय दिया गया था कि अपने अन्तर्नियमों के अधीन रहते हुए ट्रस्ट विनियोगों (स्थायी पूंजी) की हानि की पूर्ति किये बिना आय को लाभांश में वितरित कर सकता है पर चल सम्पत्ति में से ह्रास अवश्य काटना चाहिए।

(ग) क्षयी सम्पत्तियों पर हास यदि कम्पनी के अन्तर्नियम अनमति देते हों तो कम्पनी के संचालक क्षयी सम्पत्तियों (wasting assets) के हास की व्यवस्था किये बिना ही लाभांश बांट सकते हैं।

उपर्युक्त निर्णयों के अनुसार-लाभांश के वितरण के पूर्व स्थायी एवं क्षयी सम्पत्तियों के ह्रास की व्यवस्था करना आवश्यक नहीं है परन्तु अस्थायी सम्पत्तियों के हास का आयोजन करना आवश्यक है।

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(2) पिछले वर्षों की हानियां (Past Years Losses)

सैद्धान्तिक दृष्टि से यह आवश्यक प्रतीत होता है कि चालू वर्ष के लाभों में से पिछले वर्षों की हानि की व्यवस्था किये बिना लाभांश घोषित नहीं करना चाहिए। व्यापारिक दृष्टि से यह व्यवस्था लाभप्रद प्रतीत होती है।

न्यायालयों के निर्णय

(1) “वर्तमान लाभ में से गत वर्षों की हानियों का अपलेखन किये बिना लाभांश वितरित करना अवैध नहीं है।”

Ammonia Soda Co. vs. Arthur Chamberlain and Others (1918)

मुकदमे का आधार स्थापना के वर्ष 1908 से लेकर 1911 तक कम्पनी को हानि होती रही और लाभ-हानि खाते का डेबिट शेष 19,028 पौण्ड तक पहुंच गया। संचालकों ने भूमि के बढे हए मल्य में से इस देबिट शेष के 12.990 पीण्ड अपलिखित कर दिये और शेष हानि को अगले वर्ष के लाभ में से अपलिखित कर दिया।

1912 से 1915 तक बराबर लाभ होता रहा और शेष लाभ की रकम लाभांश के रूप में बांट दी गयी। कम्पनी के संचालकों के विरुद्ध मुकदमा चलाया। आरोप यह लगाया गया कि पिछली हानि भमि के बढे हा मल्य में से अपलिखित नहीं करनी चाहिए, बल्कि लाभ में से अपलिखित करनी चाहिए थी।

निर्णय  निर्णय दिया गया कि वर्तमान लाभ में से पिछले वर्षों की हानियों का अपलेखन करना ना पंजी की कमी प्राप्त किये बिना लाभांश बांटना अवैध नहीं है।

(2) यदि कोई कम्पनी पूर्व वर्षों की हानि को ऐसे पूनलिखित (restored) ख्याति खाते से प्राप्त रकम में से अपलिखित किया जा चुका हो तो उसके रकम द्वारा अपलिखित कर देती है जिसे पहले लाभ की रकम लिए वर्तमान लाभ की रकम लाभांश के रूप में वितरित करना अवैध नहीं है ।

Stapley vs. Read Bros. Ltd. (1924)

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मुकदमें का आधार – यह कम्पनी 1897 में बनी तथा 1906 में इसके चिट्ठ में ‘ख्याति. ट्रेडमार्क पैटेण्ट इत्यादि का मूल्य 1,40,000 पौण्ड लिखा गया था। इनका आलेखन करने का निश्चय किया गया ताकि 1917 तक इसका मूल्य 1,000 पौंण्ड रह जाय। उस वर्ष इसका अपलेखन पुरानी संचिति (reserve) की रकम में से कर दिया गया।

कम्पनी को 1921 तथा1922 में हानि हई और लाभांश नहीं बांटा गया पर 1923 में लाभ हुआ। यह लाभ पूर्वाधिकार अंशों के लाभांश के लिए पर्याप्त था। अतः संचालकों ने ख्याति खाते को खोलने का निश्चय किया।।

ख्याति खाता खोलकर 40,000 पौण्ड की रकम रिजर्व खाते में क्रेडिट कर दी गयी और 1921 व 1922 की हानि अपलिखित कर दी गयी तथा शेष लाभांश के रूप में बांटने का निश्चय किया गया।

निर्णय न्यायाधीश रसेल (Russel. J.) ने यह निर्णय दिया कि जो कम्पनी पिछले वर्षों की हानि को। ऐसे पुनलिखित खाते से प्राप्त रकम द्वारा अपलिखित कर देती है जिसे पहले लाभ की रकम में से अपलिखित किया जा चुका है, लाभांश के रूप में से वर्तमान लाभ की रकम बांटना अवैध नहीं है।

उपर्युक्त निर्णयों के अनुसार लाभ में से लाभांश घोषित करने के पूर्व पिछले वर्षों की हानियों के लिए आयोजन करना आवश्यक नहीं है। इस नियम का आधार यह है कि लाभ-हानि खाता कोई चालू खाता (Current Account) नहीं है, जिसमें हमेशा वर्षों के लेखे किये जाएं। यदि पिछली हानियों को इस वर्ष के लाभ में से घटाया जायेगा, तो इस वर्ष की ख्याति पर इसका विपरीत प्रभाव पड़ेगा।

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(3) पूंजीगत लाभ (Capital Profits)

पूंजीगत लाभ सामान्य लाभ नहीं होते हैं। ये किसी स्थायी सम्पत्ति की बिक्री से या अंश निर्गमन पर अधिमूल्य आदि से प्राप्त होते हैं। साधारणतया पूंजीगत लाभों का लाभांश के रूप में वितरण करना व्यापार के लिए उचित नहीं माना जाता है, फिर भी कुछ शर्तों का पालन करने में ये लाभ लाभांश के रूप में वितरित किये जा सकते हैं।

न्यायालयों के निर्णय

(1) “यदि कम्पनी के अन्तर्नियम अनुमति देते हों तो कम्पनी के व्यापार के किसी भाग के विक्रय से प्राप्त लाभ की रकम अंशधारियों में वितरित की जा सकती है।”

Lubbock vs. The British Bank of South America (1892)

मुकदमे का आधार—इस बैंक की स्थापना 1863 में हुई। इस बैंक ने अपना ब्राजील का व्यापार तथा ख्याति बेच दी और बैंक को 2,06,280 पौण्ड का शुद्ध पूंजी लाभ हुआ। संचालकों ने इस लाभ को लाभांश के रूप में बांटने का निश्चय किया। इसी निश्चय के विरुद्ध अंशधारियों की ओर से मुकदमा चलाया गया।

निर्णय यह निर्णय दिया गया कि यदि कम्पनी के अन्तर्नियम अनुमति दें, तो कम्पनी के व्यापार के किसी भाग की बिक्री से प्राप्त लाभ की रकम अंशधारियों में बांटी जा सकती है।

(2) “किसी सम्पत्ति विशेष पर प्राप्त (realised) लाभ उस समय तक लाभांश के रूप में वितरित नहीं किया जा सकता जब तक कि लाभ की रकम कम्पनी की सम्पूर्ण सम्पत्तियों के पुनर्मूल्यन (revaluation) के पश्चात् वितरण के लिए उपलब्ध न हो।”

Foster vs. New Trinidad Asphalte Co. Ltd. (1901)

मुकदमे का आधारइस कम्पनी ने एक ऋण को (जो सम्पत्ति था) मूल्यहीन समझकर अपलिखित कर दिया। बाद में इस ऋण की कुछ आंशिक रकम (1,00,000 पौण्ड में से 26,258 पौण्ड) प्राप्त हो गई। संचालकों ने इसे लाभ मानकर अंशधारियों में इसका विभाजन करना चाहा। इस पर ऋणधारियों ने आपत्ति की और मुकदमा चलाया गया।

निर्णयनिर्णय यह था कि सम्पत्ति विशेष पर प्राप्त लाभ तब तक नहीं बांटा जा सकता जब तक कि वह सम्पत्तियों के पुनर्मूल्यन के पश्चात् उपलब्ध न हो।

(3) पंजीगत लाभ जो सम्पत्तियों के पुनर्मूल्यन से होते हैं, पिछले वर्षों के लाभ-हानि खातों की डेबिट की बाकी को अपलिखित करने के लिए प्रयोग किये जा सकते हैं। इस प्रकार चाल लाभ में से लाभांश वितरित। किया जा सकता है

Ammonia Soda Co. vs. Arthur Chamberlain and Others (1918)

इस मकदमे के आधार पर यह कहा जा सकता है कि पूंजीगत लाभांश लाभों के रूप में बांटे जा सकते हैं, यदि

(1) कम्पनी के अन्तर्नियम अनुमति दें;

(2) ये लाभ रोकड़ के रूप में प्राप्त कर लिये गये हों ।

(3) ये लाभ कम्पनी की सम्पत्तियों के पुनर्मूल्यन के पश्चात् बचे हों; और

(4) ये पूंजीगत हानियों के पूरा करने के पश्चात् शेष बचे हों।

जहां तक कम्पनियों के पुनर्मूल्यन से उत्पन्न पूंजी-वृद्धि (capital appreciation) का प्रश्न है, यह वृद्धि लाभांश के रूप में वितरित की जा सकती है। ऐसी वृद्धि को पंजी संचय खाते’ (Capital Reserve Account) में हस्तान्तरित कर देना चाहिए। उसी प्रकार अंशों पर प्रीमियम खाता एवं पूंजी विमोचन संचय का कोई शेष है. तो इन्हें बोनस अंश जारी करने के काम में लिया जा सकता है। इन्हें नकद लाभांश के रूप में वितरित नहीं किया जा सकता है।

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(4) पूंजीगत हानियां (Capital Losses)

कभी-कभी कम्पनी को स्थायी सम्पत्तियों पर पूंजीगत हानि हो जाती है, यदि ऐसी हानि कम्पनी के समामेलन से पूर्व हानि हो जाने पर हो जाती है तो इसको पूंजीगत हानि मानते हुए ख्याति की रकम में जोड़ देते हैं। कभी-कभी स्थायी सम्पत्तियों के मूल्य बाजार में अधिक गिर जाने से भी इन सम्पत्तियों के पुस्तक मूल्य अधिक दिखायी देने लगते हैं। ऐसी हानि भी पूंजीगत हानि होती है। __अब प्रश्न यह है कि लाभांश वितरण के पहले ऐसी हानि का आयोजन करना आवश्यक है अथवा नहीं।

न्यायालयों के निर्णय

(1) “कम्पनी पूंजीगत हानि की पूर्ति किये बिना भी वर्तमान लाभ की रकम में से लाभांश घोषित कर सकती है

Bolton vs. Natal Land Colonisation Co. Ltd. (1892)

मुकदमे का आधार—यह कम्पनी भूमि का व्यापार करती थी। इसने 1882 में लगभग 70,000 पौण्ड के केसी ऋण को अप्राप्य मानकर लाभ-हानि खाते से अपलिखित कर दिया और साथ ही साथ भूमि में लगभग तनी वृद्धि दिखाकर उस रकम से लाभ-हानि को क्रेडिट कर दिया।

सन् 1885 में लाभ होने पर लाभांश घोषित कर दिया गया। मुकदमे का आधार यह था कि भूमि के मूल्य में गिरावट होने के कारण हुई हानि को जब तक अपलिखित न कर दिया जाये, तब तक लाभांश घोषित न किया जाये। न्यायाधीश ने यह निर्णय दिया कि कम्पनी पूंजीगत हानि की पूर्ति किये बिना भी वर्तमान लाभ में से लाभांश घोषित कर सकती है।

(2) “अपने अन्तर्नियमों के अधीन रहते हुए ट्रस्ट कम्पनी विनियोगों (स्थायी पूंजी) की हानि की पूर्ति किये बिना ही वर्तमान व्यय पर वर्तमान आय के आधिक्य को लाभांश के रूप में वितरित कर सकती है।”

Verner vs. General and Commercial Investment Trust Ltd. (1894)

मुकदमे का आधार तथा निर्णय पृष्ठ 180 पर दिया गया है।

उपर्युक्त निर्णय के अनुसार कम्पनी को लाभों में से लाभांश घोषित करने के पूर्व पूंजीगत हानियों के लिए आयोजन करना आवश्यक नहीं है। परन्तु यह नीति व्यापार की दृष्टि से उचित नहीं है।

इस प्रकार आयगत लाभ बांटने से पूर्व पूंजीगत हानि का आयोजन आवश्यक नहीं है, मगर पूंजीगत लाभ बांटने से पूर्व पूंजीगत हानि का आयोजन आवश्यक है।

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वैधानिक स्थिति

कम्पनी अधिनियम के अन्तर्गत पूंजीगत हानि को लाभांश बांटने से पूर्व अपलिखित करने की आवश्यकता नहीं है। उपर्युक्त न्यायालयों के निर्णय इस बात की पुष्टि करते हैं। ।

व्यापार की दृष्टि से पूंजीगत हानि को थोड़ा-थोड़ा करके अपलिखित करना उचित होता है। स्थायी सम्पत्तियों का बाजार मूल्य गिर जाने से किसी कम्पनी को ऐसी पंजीगत हानि को अपलिखित करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है।

(5) अनिवार्य संचय (Compulsory Reserve)

अन्तर्नियम साधारणतया कम्पनी के संचालकों को यह अधिकार देते हैं कि वे लाभ संचयों के लिए का हस्तान्तरण करने के पश्चात् ही लाभांश की सिफारिश करें। इस प्रकार सामान्यतया संचयों की राशि चाल वित्तीय वर्ष के लिए लाभांश के रूप में वितरित करने के लिए उपलब्ध नहीं होती है।

अनिवार्य संचय (Compulsory Reserve)

तालिका F के वाक्य 82 के अनुसार कम्पनी निर्धारित हास घटाने के पश्चात उपलब्ध लाभ में सेना तक लाभांश न तो घोषित कर सकेगी और न भुगतान कर सकेगी जब तक कि लाभ में से निर्धारित संचय राशि के लिए जो निर्धारित प्रतिशत से अधिक न हो हस्तान्तरित नहीं कर देती। इस प्रकार लाभ में से संचय के लिए व्यवस्था करने के पश्चात् ही लाभांश घोषित किया जा सकता है। __यदि कम्पनी संचय के लिए इससे अधिक प्रतिशत राशि का ऐच्छिक हस्तान्तरण करना चाहती है. तो वह कार्यवाही केन्द्रीय सरकार के द्वारा बनाये गये नियमों के अन्तर्गत ही सम्भव हो सकती है।

कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 123 के अनुसार यदि कोई कम्पनी किसी वर्ष में लाभ की अपर्याप्तता के कारण गत वर्षों में संचय में से लाभांश भुगतान करना चाहती है तो उसको केन्द्रीय सरकार के द्वारा निर्मित नियमों का पालन करना होगा। केन्द्रीय सरकार की पूर्व स्वीकृति से ही केवल इन नियमों के विरुद्ध कार्य हो सकता है।

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(6) अन्य बातें

(1) ऋणपत्रों से प्राप्त लाभ–कोई भी कम्पनी अपने ऋणपत्रों से मिलने वाले लाभों को लाभांश के रूप में नहीं बांट सकती है।

(2) “यदि कम्पनी ने ख्याति (goodwill) को लाभों में से अपलिखित किया है तो वह सम्पत्तियों को अपलिखित कर सकती है और पूंजी-वृद्धि (appreciation) की राशि लाभ-हानि खाते में जमा कर सकती है किन्तु ऐसी जमा की गयी राशि उस राशि से, जो पहले अपलिखित की गयी थी, अधिक न हो और सम्पत्ति को अपने वास्तविक मूल्य से नीचे अपलिखित न किया गया हो।”

Stapley vs. Read Bros. Ltd. (1924)

मुकदमे का आधार तथा निर्णय पृष्ठ 177-178 पर देखिये।

अंकेक्षक के कर्तव्य-विभाज्य लाभ बहुत हद तक किसी व्यापारिक संस्था के स्वभाव एवं उनकी परिस्थितियों पर आधारित होते हैं। अंकेक्षक को यह देखना चाहिए कि न्यायालयों के निर्णय एवं वैधानिक दृष्टिकोण का अनुकरण किस हद तक किया गया है। यह पहले बताया जा चुका है कि अंकेक्षक को विभाज्य लाभ के सम्बन्ध में अपना दायित्व एवं कर्तव्य समझने के लिए कम्पनी के सीमानियम एवं अन्तर्नियम, लेखाकर्म। के सिद्धान्त, न्यायालयों के निर्णय एवं वैधानिक दृष्टिकोण की ओर विशेष ध्यान देना होगा।

फिर भी अंकेक्षक के दृष्टिकोण से यह उचित प्रतीत होता है कि उसके लिए कुछ सामान्य नियम इस सम्बन्ध में बन जाने चाहिए। कम्पनी विधान की धारा 123 में वर्णित मर्यादाओं एवं कम्पनी के सीमानियम में निर्दिष्ट शर्तों के अन्तर्गत विभाज्य लाभ मालूम करने के लिए नीचे लिखी बातें सहायक सिद्ध होंगी :

(1) कम्पनी का विभाज्य लाभ आय का व्यय पर आधिक्य है। इस आधिक्य या लाभ तथा केन्द्रीय सरकार। दारा निर्मित नियमों के अन्तर्गत गत वर्षों के संचय के अतिरिक्त अन्य कहीं से लाभांश नहीं बांटा जायेगा।

(2) कम्पनी अधिनियम की धारा 123 तथा 350 के सन्दर्भ में 27 दिसम्बर, 1960 के पश्चात होने वाल। वर्षों के लिए ह्रास एवं अवशिष्ट हास की व्यवस्था अवश्य की जानी चाहिए।

(3) 28 दिसम्बर 1960 के पूर्व समाप्त होने वाले वर्षों के लिए स्थायी सम्पत्तियों पर अवशिष्ट हास की। व्यवस्था करने की आवश्यकता नहीं।

(4) पूंजी लाभ बांटे जा सकते हैं, यदि :

(क) अन्तर्नियम अनुमति दें;

(ख) ये लाभ नकद प्राप्त किये गये हों;

(ग) ये सब सम्पत्तियों के पुनर्मूल्यांकन के बाद शेष बचे हों;

(घ) पूंजीगत हानि के लिए व्यवस्था कर दी गयी हो।

(5) आयगत लाभ बांटने से पूर्व आयगत हानि के लिए आयोजन किया जाना चाहिए अर्थात् यदि लाभ-हानि खाते में डेबिट शेष हो तो लाभांश न तो घोषित किया जाना चाहिए और न ही इसका भुगतान होना चाहिए।

(6) पूंजीगत लाभ बांटने से पूर्व पूंजीगत हानि के लिए आयोजन किया जाना चाहिए।

(7) आयगत लाभ बांटने से पूर्व पूंजीगत हानि के लिए आयोजन करना आवश्यक नहीं है।

(8) कम्पनी अधिनियम की धारा 123 के अनुसार निर्धारित सीमा के अतिरिक्त पिछले वर्षों की हानियों के लिए आयोजन करने की आवश्यकता नहीं है।

(9) यदि कोई सम्पत्ति (ख्याति या अन्य) पिछले वर्षों में अधिक मात्रा में अपलिखित कर दी गयी है। तो यह अधिक रकम फिर से लाभ-हानि खाते में वापस लिखी जा सकती है और इस प्रकार लाभांश बांटने के लिए उपलब्ध की जा सकती है।

(10) कम्पनी अधिनियम, 2013 के संलग्न Table F के Regulation 82 के अन्तर्गत कम्पनी का संचालक मण्डल कोई भी रकम संचय या संचयों में हस्तान्तरित कर सकता है। कम्पनी अधिनियम, 2013 के अनुसार धारा 123 की उपधारा (2)A के अन्तर्गत अब प्रत्येक कम्पनी को लाभ के 10 प्रतिशत की सीमा के भीतर संचय बनाना अनिवार्य है।

यदि अंकेक्षक इन नियमों के विरुद्ध कोई बात देखता है तो वह अपनी रिपोर्ट में इसका उल्लेख कर सकता है। इससे अधिक उसका कोई दायित्व नहीं है।

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लाभांश (Dividend)

लाभांश नीति (Dividend Policy) लाभांश नीति बनाते समय निम्न तथ्यों को ध्यान में रखना चाहिए:

(i) व्यापार के पूंजी-ढांचे की पवित्रता (integrity) को ऊंचा रखना।

(ii) व्यापार के स्थायित्व एवं निरन्तरता को सक्रिय रखना।

(iii) विनियोजकों का मनोबल तथा अंशधारियों की भावना जाग्रत करना।

(iv) जनसाधारण की दृष्टि में व्यापार का स्वरूप बनाना।

वैधानिक व्यवस्था विभाज्य लाभ का स्पष्टीकरण करने के पश्चात् लाभांश के घोषित एवं भुगतान से सम्बन्धित कम्पनी अधिनियम के नियम आगे दिये जाते हैं :

धारा 123 के अनुसार लाभांश का भुगतान निम्न स्रोतों में से किया जा सकता है :

(अ) चालू वर्ष के लाभों में से।

(ब) गत वित्तीय वर्षों के न बांटे गए लाभ में से या गत कोषों में से।

(स) केन्द्रीय या राज्य सरकार द्वारा दी गयी गारण्टी के बदले लाभांश के रूप में बांटने के लिए प्रदत्त राशि।

(अ) चाल वर्ष के लाभों में से चालू वर्ष के लाभों से आशय ‘कर के पश्चात् लाभ’ से है। धारा 205 के अनसार. चाल वर्ष के लाभों में से लाभ तभी बांटा जा सकता है जबकि उसमें से :

(i) ह्रास के लिए प्रावधान कर लिया गया है,

(ii) गत वर्षों की हानियों को अपलिखित कर लिया गया है.

(iii) बकाया ह्रास का प्रावधान कर लिया गया है..

वैद्यानिक संचयों का निर्माण कर लिया गया है। भारतीय कम्पनी अधिनियम के अन्तर्गत यह पावधान किया गया है कि लाभांश की घोषणा करने से पूर्व लाभों का एक निश्चित प्रतिशत संचय में हस्तान्तरित कर दिया गया है। संचयों में हस्तान्तरित लाभ की राशि का प्रतिशत निम्न प्रकार है

प्रस्तावित लाभांश संचय में हस्तान्तरित राशि

 

1 जब प्रस्तावित लाभांश चुकता पूंजी के 10% से अधिक परन्तु 12.5% से कम है। चालू वर्ष के लाभ का 2.5% से कम नहीं।
2 जब प्रस्तावित लाभांश चुकता पूंजी का 12.5% से अधिक परन्तु 15% से ज्यादा है। चालू वर्ष के लाभ का 5% से कम नहीं।
3 जब प्रस्तावित लाभांश चुकता पूंजी का 15% से ज्यादा पर 20% से कम है। चालू वर्ष के लाभ का 7.5% से कम नहीं।
4 जब प्रस्तावित लाभांश चुकता पूंजी के 20% से ज्यादा है । चालू वर्ष के लाभ का 10% से कम नहीं।

 

 

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 (ब) गत संचय (Past Reserves) लाभांश को गत वर्षों के अवितरित लाभ में से बनाए गए संचयों में से भी बांटा जा सकता है। इन संचयों में से लाभ बांटने के नियम निम्न हैं :

(i) चालू वित्तीय वर्ष में घोषित लाभांश की दर गत पांच वर्षों में घोषित लाभांश की औसत दर से अधिक या चुकता पूंजी की 10% जो दोनों में से कम है, होनी चाहिए।

(ii) गत वर्षों के संकलित लाभों में से संचय में हस्तान्तरित राशि चुकता पूंजी व फ्री रिजर्व के योग से 10% से ज्यादा नहीं होनी चाहिए एवं इस प्रकार निकाली गयी राशि को सर्वप्रथम चालू वर्ष की कोई हानि को अपलिखित करने में प्रयोग किया जाएगा। इससे पहले कि उसमें से कोई पूर्वाधिकार या सामान्य अंशों पर लाभांश दिया जाए।

(iii) उपर्युक्त प्रकार से निकाली गयी राशि के पश्चात् संचयों में शेष राशि चुकता पूंजी के 15% से कम नहीं होनी चाहिए।

(स) सरकार द्वारा प्रदत्त राशि में से लाभांश केन्द्रीय या राज्य सरकार द्वारा लाभांश की गारण्टी के बदले दी गयी राशि में से कम्पनी लाभांश निम्न दशाओं में बांट सकती है :

(i) जब सरकार किसी विशिष्ट क्षेत्र में विनियोगों को प्रोत्साहित करना चाहती है।

(ii) जब पूर्वाधिकार अंशों को लाभांश की गारण्टी दी गयी है कि चाहे लाभ हो या न हो उन्हें लाभांश दिया जाएगा।

धारा 123(3)—नकदी के अतिरिक्त और किसी भी प्रकार के लाभांश का भुगतान नहीं किया जायगा, फिर भी लाभ या संचय के पूंजीकरण के सम्बन्ध में वह बात लागू न होगी :

(1) पूर्णदत्त बोनस अंशों के निर्गमन के लिए, या

(2) कम्पनी के सदस्यों के अंशों पर अदत्त राशि के भुगतान के लिए।

धारा 123(5)(5) देय लाभांश अंशधारियों को, व्यक्तिशः या संयुक्त रूप से, रजिस्टर्ड डाक के माध्यम से चैक या अधिपत्र (by cheque or warrant) के द्वारा भुगतान किया जा सकता है।

धारा 126 कम्पनी द्वारा लाभांश केवल रजिस्टर्ड अंशधारियों को या उनके द्वारा निर्देशित व्यक्तियों या बैंकरों को ही दिया जायगा।

धारा 127 यदि किसी कम्पनी द्वारा लाभांश घोषित कर दिया गया है और घोषित करने की तारीख के 30 दिन के अन्दर अंशधारियों को भुगतान नहीं किया गया है या उनके पास इस सम्बन्ध में अधिपत्र MAHARS) नहीं भेजे गये हैं, तो कम्पनी का प्रत्येक संचालक जो इस गलती के लिए दोषी है, 7 दिन तक की सजा एवं आर्थिक दण्ड का भागी होगा।

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लाभांश की घोषणा

(DECLARATION OF DIVIDEND)

123 एवं 127 धारा के अन्तर्गत लाभांश की घोषणा व उसके भुगतान के सम्बन्ध में निम्न प्रावधान किए गए है:

(1) लाभांस की रकम को अलग से बैंक खाते में जमा कराना अन्तिम लाभांश की घोषणा पूर्ण तब संचालकों द्वारा घोषित लाभांश की दर को साधारण सभा में अंशधारियों द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है। इसी प्रकार अन्तरिम लाभांश की घोषणा संचालक करते हैं। धारा 123(1) के अनुसार अन्तिम लाभांश व अन्तरिम लाभांश (यदि कोई है) के रूप में दी जाने वाली राशि को अलग से एक बैंक खाते में लाभांश की घोषणा के पश्चात् पांच दिन के अन्दर जमा कर दी जानी चाहिए।

(2) लाभांश का भुगतान रोकड़ के रूप में धारा 123(3) के अनुसार लाभांश सदैव रोकड़ के रूप में ही वितरित किया जाएगा।

(3) अदत्त लाभांश का विशेष लाभांश खाते में हस्तान्तरण-धारा 123 के अनुसार लाभांश का भुगतान या उसका दावा लाभांश की घोषणा की तिथि से 30 दिन के अन्दर किया जाना चाहिए। यदि 30 दिनों के अन्दर लाभांश का भुगतान नहीं किया गया है या उसका दावा प्रस्तुत नहीं किया गया है तो अवितरित लाभांश की राशि को लाभांश के भुगतान की अवधि समाप्त होने के पश्चात (अर्थात 30 दिन के पश्चात) 7 दिन के अन्दर अलग विशेष लाभांश खाते (Special Dividend Account) में हस्तान्तरित कर दिया जाना चाहिए।

(4) न मांगे गए लाभांश का विनियोजक शिक्षण एवं सुरक्षा कोष में हस्तान्तरण—न मांगे गए लाभांश खाते में यदि कोई राशि 7 वर्षों तक दावे रहित रहती है तो 7 वर्षों की समाप्ति के पश्चात इसे विनियोजक शिक्षण एवं सुरक्षा कोष (Investor’s Education and Protection Fund) में हस्तान्तरित कर दिया जाता है।

(5) लाभांश किसको भुगतान किया जाएलाभांश का भुगतान रजिस्टर्ड अंशधारी को या उसके आदेशित बैंक को किया जाता है। शेयर वारण्ट (अंश अधिपत्र) की दशा में वारण्ट के धारक को भुगतान या उसके बैंक को भुगतान किया जाता है।

(6) अर्थ-दण्ड–(a) लाभांश का भुगतान 30 दिन के अन्दर न करने पर प्रत्येक उत्तरदायी संचालक को आर्थिक दण्ड व तीन वर्ष की सजा एवं 1,000 ₹ प्रतिदिन के आधार पर जब तक यह त्रुटि जारी रहती है, हो सकती है। इसके अतिरिक्त कम्पनी 18% वार्षिक की दर से लाभांश की राशि पर ब्याज देने के लिए उत्तरदायी है।

(b) अवितरित लाभांश को विशेष खाते में जमा करने में त्रुटि होने पर कम्पनी, त्रुटि होने की तिथि से 12% वार्षिक की दर से जमा की जाने वाली राशि पर ब्याज देगी व प्रत्येक अधिकारी जो इस त्रुटि के लिए उत्तरदायी होगा पर 5,000 ₹ प्रतिदिन के हिसाब से अर्थ-दण्ड लगाया जा सकता है।

(c) विनियोजक शिक्षण एवं सुरक्षा कोष में राशि जमा करने पर त्रुटि—इस दशा में कम्पनी के प्रत्येक अधिकारी जो दोषी पाया जाएगा, पर 5,000 ₹ प्रतिदिन के हिसाब से अर्थ-दण्ड लगाया जा सकता है।

अदत्त लाभांश खाता कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 124 के अन्तर्गत 30 दिन के अन्दर घोषित लाभांश का भुगतान किया जाना चाहिए। यदि न तो लाभांश का भुगतान होता है, न उसके लिए कोई दावा (Claim) प्रस्तुत होता है और न लाभांश अधिपत्र (Dividend warrants) भेजे जाते हैं, तो कम्पनी को किसी अनुसूचित बैंक के साथ ‘अदत्त लाभांश खाता’ (Unpaid Dividend Account) खोलना होगा और धारा 123(1) के अनुसार अदत्त लाभांश इस खाते में हस्तान्तरित किया जायेगा। जो राशि इस खाते में हस्तान्तरित नहीं की जायेगी, उस पर कम्पनी को 12% की दर से अंशधारियों के लाभ के लिए ब्याज देना होगा।

यदि कोई राशि जमा की तारीख से 3 महीने की अवधि में नहीं ली जायेगी, तो कम्पनी को इसे केन्द्रीय सरकार के सामान्य आय खाता (General Revenue Account) से हस्तान्तरित करना होगा। धारा 124(5) तथा 124 के अन्तर्गत सम्बन्धित व्यक्ति इस राशि को सरकार से प्राप्त कर सकता है जो कम्पनी को केन्द्रीय सरकार के सामान्य रेवेन्य खाते’ (General Revenue Account) में पिछले 3 वर्ष से इस खाते में अदत्त या अयाचित राशि हस्तान्तरित करनी होगी। कम्पनी केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त अधिकारी को इस सम्बन्ध में सम्पूर्ण विवरण देगी।

लाभांशदायित्व के रूप में साधारण बैठक में सदस्यों द्वारा इस सम्बन्ध में प्रस्ताव पास करते ही लाभांश कम्पनी का वैधानिक ऋण (statutory debt) बन जाता है, किन्तु इस पर किसी प्रकार का ब्याज नहीं जोडा जा सकता।

लाभांश के भुगतान के लिए लाभांश-सूची (dividend list) तैयार की जाती है जिसमें अंशधारियों के नाम, पते, उनके द्वारा लिखे हुए अंश, प्रदत्त राशि, लाभांश की रकम, कर के लिए कटौती, आदि सभी बातों का उल्लेख होता है। लाभांश-सूचियों से लाभांश अधिपत्र (dividend warrants) तैयार किये जाते हैं और प्रत्येक अंशधारी के पास भेज दिये जाते हैं। इस लाभांश-अधिपत्र के अधिकार से प्रत्येक अंशधारी अपना लाभांश बैंक से प्राप्त कर लेता है।

जब बैंक लाभांश अधिपत्र देय होते हैं. तो प्रत्येक लाभांश के लिए बैंक में अलग से खाता खोला जाना चाहिए। लाभांश अधिपत्र के सहारे बैंक द्वारा भुगतान हो जाता है और जो रकम शेष रहती है वह कम्पनी के चिट्ठे में दायित्व पक्ष में अलग से Unclaimed Dividend के शीर्षक में दिखा दी जाती है।

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यह ध्यान रहे कि लाभांश कम्पनी पर ऋण के रूप में होता है जो Limitation Act, 1962 के अन्तर्गत 3 वर्ष के पश्चात् भुगतान के योग्य नहीं (time-barred) रहता है।

एक कम्पनी. यदि उसके अन्तर्नियम अनुमति दें Unclaimed Dividend को जब्त कर सकती है। लेकिन मान्यता प्राप्त स्कन्ध बाजारों (recognized stock exchanges) के लिए साधारणतया यह अधिकार नहीं लिया जाता है, क्योंकि उस दशा में ये ऐसे अंशों के बाजार में क्रय-विक्रय का अधिकार नहीं देते हैं।

प्रावधान यह है कि इस धारा के प्रावधान किसी ऐसे व्यक्ति पर लागू नहीं होंगे जो धारा 205C में वर्णित कोष में हस्तान्तरित किसी राशि के लिए दावा कम्पनी (संशोधित) अधिनियम, 1999 के लागू होने पर या इसके पश्चात् प्रस्तुत करता है।

अंकेक्षक के कर्तव्य (1) कम्पनी के प्रलेखों (documents) का अध्ययन करके भिन्न-भिन्न वर्गों के अंशधारियों के अधिकारों एवं दायित्वों की जानकारी करनी चाहिए।

(2) संचालकों की सिफारिश तथा साधारण बैठक में पास किये गये सदस्यों के प्रस्ताव की भी जांच करनी चाहिए।

(3) अंशधारियों से रसीदों के रूप में वापस आये हुए लाभांश-अधिपत्रों की सहायता से लाभांश के भुगतान का प्रमाणन करना चाहिए।

(4) सदस्यों के रजिस्टर से लाभांश-सूची की भी जांच करनी चाहिए।

(5) यदि लाभ की कमी के कारण संचय खाते या Dividend Equalisation Fund से कुछ रकम हस्तान्तरित की गयी है, तो इस हस्तान्तरण की जांच करनी चाहिए।

(6) उसे यह देखना चाहिए कि Unclaimed Dividend अलग से चिट्ठे में दायित्व पक्ष में दिखाया गया है। यदि संचालकों ने इस रकम को जब्त कर लिया है, तो अन्तर्नियम तथा संचालकों की सभाओं की कार्यवाही-विवरण-पुस्तक की जांच करनी चाहिए।

(7) यह भी देखना चाहिए कि अदत्त लाभांश की राशि को ‘अदत्त लाभांश खाते में जमा किया गया है अथवा नहीं।

(8) उसको यह भी देखना चाहिए कि धारा 205 का पूर्णतया पालन किया गया है या नहीं।

(9) यदि लाभांश को देने के लिए बोनस-अंशों का निर्गमन किया गया है, तो यह देखना चाहिए कि वह सब अन्तर्नियम से अधिकृत है या नहीं।

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अन्तरिम लाभांश

(INTERIM DIVIDEND)

वह लाभांश जो वर्ष के बीच में संचालकों के द्वारा घोषित किया जाता है, अन्तरिम लाभांश कहलाता है। यदि कम्पनी के अन्तर्नियम अनुमति देते हो, तब ही संचालक अन्तरिम लाभांश घोषित करने के अधिकारी होते हैं। अधिक लाभ की स्थिति म हा प्रायः अन्तारम लाभाश घोषित किया जाता है। यह लाभांश दो साधारण सभाओं के बीच के समय में घोषित किया जाता है।

अब अन्तरिम लाभांश की अदायगी कम्पनियों को गम्भीरता से लेनी होगी। यदि वे वैधानिक बाधाओं से बचना चाहती हैं। अब लाभांश की घोषणा के 42 दिन के स्थान पर 30 दिन में लाभांश के भुगतान के लिा अवधि निर्धारित कर दी गयी है।

अन्तरिम लाभांश घोषित करने से पूर्व निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए :

(1) अन्तरिम लाभांश मालूम करने के लिए सम्पत्तियों का मूल्यांकन करना चाहिए।

(2) ऐसे लाभांश की घोषणा के लिए भविष्य की सम्भाव्य हानियों पर भली प्रकार विचार कर लेना चाहिए।

(3) यह भी देखना चाहिए कि अन्तरिम लाभांश के भुगतान का कम्पनी के दायित्व एवं कार्यशील पूंजी पर क्या प्रभाव होगा।

(4) पिछले वर्षों की लाभांश की दरों की जांच करनी चाहिए।

(5) वर्ष के इस प्रथम भाग में सम्पूर्ण भाग का विवरण ठीक प्रतीत नहीं होता है क्योंकि दूसरे भाग में हानि हो सकती है। भुगतान से पूर्व भावी लाभदेयता की स्थिति का मूल्यांकन करना चाहिए।

(6) तरल साधनों (Cash Resources) की स्थिति का अध्ययन करना चाहिए।

(7) लाभांश की दर सम्भाव्य अन्तरिम लाभांश से आनुपातिक होनी चाहिए।

यह अनुमान करने के पश्चात् ही कम्पनी के संचालक अन्तरिम लाभांश घोषित कर सकते हैं। उन्हें इस आशय का प्रस्ताव पास करना होगा। यह ध्यान रहे कि अंशधारियों की स्वीकृति के बिना ही संचालक अन्तरिम लाभांश घोषित कर सकते हैं। ये लाभांश वर्ष के लाभ की रकम में से घोषित किये जा सकते हैं। इसी कारण वर्ष के बीच में लाभांश घोषित करने के लिए अन्तिम खाते तैयार करके लाभ का सही अनुमान लगाना होता है। इस सम्बन्ध में यदि संचालकगण कोई लापरवाही करते हैं, तो अन्तरिम लाभांश के रूप में जो रकम वितरित की गयी है उसके लिए वे स्वयं उत्तरदायी बन जायेंगे। उन्हें यह रकम व्यक्तिगत रूप से वापस करनी होगी।

अब कम्पनी (संशोधित) अधिनियम, 2000 के द्वारा धारा 205 के अन्तर्गत अन्तरिम लाभांश की घोषणा व भुगतान के लिए वही विशिष्ट प्रावधान किये गये हैं जो अन्तरिम लाभांश के लिए लागू होते हैं।

अन्तरिम लाभांश के लेखे प्रायः उसी प्रकार किये जायेंगे जिस प्रकार वार्षिक लाभांश के लिए किये जाते हैं।

अंकेक्षक के कर्तव्य (1) अंकेक्षक को सर्वप्रथम कम्पनी के अन्तर्नियम का अध्ययन करना चाहिए कि संचालकों को अन्तरिम लाभांश घोषित करने का अधिकार दिया गया है, या नहीं।

(2) उसे कम्पनी के आधे वर्ष के हिसाब-किताब की जांच करनी चाहिए और यह भी देखना चाहिए कि लाभों का अनुमान ठीक लगाया गया है या नहीं।

(3) अन्तरिम लाभांश घोषित करने के सम्बन्ध में संचालकों ने जो प्रस्ताव पास किया है, उसकी जांच करनी चाहिए।

(4) अन्तरिम लाभांश की दर का निरीक्षण करना चाहिए। यह दर कुछ कम ही हो, तो अधिक अच्छा है। लाभांश की दर की जांच एक महत्वपूर्ण कार्य है।

5 अंकेक्षक को यह विशेष रूप से देखना चाहिए कि अन्तरिम लाभांश घोषित करने से इनका प्रभाव कार्यशील पूंजी तथा दायित्वों पर क्या होगा।

6. अन्त में, अंकेक्षक को लाभांश के वितरण के सम्बन्ध में किये गये लेखों की जांच भी करनी चाहिए। लाभांश के भुगतान का प्रमाणन अंशधारियों से प्राप्त रसीदों से करना चाहिए।

पूंजी में से लाभांश बांटना (Dividend to be Paid out of Capitals

यह स्पष्ट हो चका है कि लाभांश किसी भी परिस्थिति में पंजी में से नहीं बांटना चाहिए। यदि कम्पनी के अन्तर्नियम या सीमानियम ऐसी व्यवस्था करते हैं तो यह अवैध है।

यदि कम्पनी के संचालक इस प्रकार पूजी में से लाभांश बांट देते हैं तो उनका इसकी पूर्ति करना एक दायित्व हो जाता है। यह भी न्यायालयों ने निश्चित कर दिया है ।

यदि सदस्य यह जानते हैं कि उन्हें पूंजी में से लाभांश मिला है तो कम्पनी के संचालकों को यह अधिकार ते सदस्यों से यह वापस ले सके। उसी प्रकार यदि अन्तरिम लाभांश पूंजी में से बांट सकते हैं, तो संचालक भविष्य में लाभाँश  बांटने से पूर्व इसे लाभ में से काट सकते हैं। इस पर किसी भी सदस्य को आपत्ति नहीं होगी।

पूंजी में से लाभांश का भुगतान (Dividend Paid out of Capital)

जैसा स्पष्ट किया जा चका है. पंजी में से लाभांश का भुगतान नहीं किया जाना चाहिए। यदि कोई सीमानियम व अन्तर्नियम यह अधिकार देते हैं, तो ऐसा अधिकार अवैध है।

-Verner vs. General and Commercial Investment Trust Ltd. (1894)

संचालक जो जानबूझकर पूंजी में से लाभांश का भुगतान करते हैं, ऐसे लाभांश की राशि को पूरा करने के लिए उत्तरदायी हैं।

-Oxford Benefit Building Society (1886); re London and

General Bank (1895); re; Kingston Cotton Mill Company (1896)

यदि सदस्यों ने लाभांश प्राप्त कर लिया है, तो संचालकों को उसे वापस करवाने का अधिकार है। क्योंकि सदस्यों ने यह जानकर स्वीकार किया है कि यह पूंजी में से है। यदि पूंजी में से अन्तरिम लाभांश दिया गया है जो भूलवश हुआ है और संचालक ऐसे लाभांश को वापस चाहते हैं तो कोई सदस्य संचालकों के विरुद्ध कार्यवाही नहीं कर सकता है।

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प्रश्न

दीर्ध उत्तरीय प्रश्न

1 विभाज्य लाभ’ से आप क्या समझते हैं ? लाभों के वितरण के सम्बन्ध में मुख्य वैधानिक निर्णय क्या हैं?

What do you mean by Divisible Profit? What are the legal decisions in respect to distribution of profit.

2. “पूंजीगत लाभों को लाभांश के भुगतान के लिए प्रयोग किया जा सकता है परन्तु लाभांश का भुगतान पूंजी में से नहीं किया जा सकता है।” इस कथन का आलोचनात्मक विवरण दीजिए।

*Capital Reserve can be utilised for payments of dividend but dividind cannot be paid out of capital.” Critically examine the statement.

3. एक कम्पनी द्वारा निम्न में से लाभांश के भुगतान की दशा में एक अंकेक्षक की वैधानिक स्थिति का वर्णन कीजिए:

(अ) लाभों में से

(ब) पूंजीगत लाभों में से

(स) पूर्व हानियों को अपलिखित करने से पूर्व वर्तमान लाभों में से, और

(द) एक हानि के वर्ष में संग्रहीत लाभों में से

Discuss the position of the auditor in case of distribution of dividend by a company out of:

(a) Profit

(b) Capital profit

(c) Current year profit before writing of prior losses

(d) From accumulated profit in the year of loss.

4. “एक कम्पनी चल सम्पत्तियों के ह्रास की व्यवस्था किये बिना लाभांश बांट सकती है।” आर्थिक व वैधानिक तथ्यों को ध्यान में रखते हुए इसकी आलोचना कीजिए तथा अपना उत्तर वैधानिक निर्णयों के आधार पर दीजिए। ”

A company can distribute dividend without making provision for depreciation on current assets.” Critically examine the above keeping into monetary and legal facts and also make your answer on the basis of legal divisions.

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5. ‘विभाजन योग्य लाभ’ से आप क्या समझते हैं ? चर्चा कीजिए कि आप निम्न को अंशधारियों में लाभांश के रूप में वितरण करने की सिफारिश करना चाहेंगे :

(अ) अंश निर्गमन पर प्रव्याजि,

(ब) विनियोग विक्रय पर प्राप्त अतिरेक, और

(स) सरकार द्वारा संयुक्त स्कन्ध प्रमण्डल की भूमि को लिये जाने पर उपलब्ध लाभ।

What do you understand by Divisible Profit? Discuss whether will you recommend the following for distributing dividend to the shareholders :

(a) Premium on issue of share,

(b) Surplus received on sale of Investments,

(c) Profit on acquisition of land by Govt. of the Joint Stock Company.

6. कम्पनी संचालकों द्वारा जब अन्तरिम लाभांश बाटने के सम्बन्ध में राय मांगी जाती है तो आप उनको राय बताने से पूर्व किन-किन बातों की ओर उनका ध्यान आकर्षित करेंगे।

The Board of Directors when the desire suggestion in respect to distribution of interim dividend. Before giving your opinion to what points will you direct their attention.

7. पूंजीगत लाभ क्या है? पूंजीगत लाभों के बांटे जाने के बारे में वैधानिक और वाणिज्य सम्बन्धी विचारों की विवेचना कीजिए।

What is Capital Profit? Discuss the legal and commercial aspects as regards to distribution of Capital Profit.

8. क्या विभाज्य लाभ की राशि निकालने से पहले स्थायी सम्पत्तियों के ह्रास की व्यवस्था करना एक कम्पनी के लिए वैधानिक दृष्टि से अनिवार्य है ? पूर्णतया समझाइए।

Is it legally compulsory to provide for depreciation on assets before determining amount of divisible profit? Explain in detail.

9. एक कम्पनी किन स्रोतों से लाभांश दे सकती है ? एक अंकेक्षक होने के नाते आप इस बात का सत्यापन किस प्रकार करेंगे कि लाभांश का भुगतान कानूनानुसार किया गया है?

Out of which sources the company can declare dividends. As an auditor how will you examine that the dividends have been paid as per law.

10. लाभांश क्या है? इसके सम्बन्ध में अंकेक्षक के कर्तव्यों को बताइए। क्या पूंजी में से लाभांश का वितरण हो सकता है?

What is Dividend? Explain the duties of an auditor in this regard? Can dividend be declared out of capital.

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11. एक अंशों द्वारा सीमित सार्वजनिक कम्पनी द्वारा किस प्रकार लाभांश घोषित किए जाते हैं और चुकाए जाते हैं? इस सम्बन्ध में अंकेक्षक के कर्तव्यों की विवेचना कीजिए।

How does a public company limited by shares declare and pay dividend? Discuss the duties of an auditor in this regard.

12. लाभांश एवं विभाज्य योग्य लाभ क्या है? इस सम्बन्ध में अंकेक्षक के कर्तव्यों को बताइए।

What is Dividend and Divisible Profit? Explain the auditor’s duties in this respect.

13. विभाज्य योग्य लाभ क्या है? इसके सम्बन्ध में महत्वपूर्ण कानूनी निर्णयों का वर्णन कीजिए।

What is Divisible Profit? Explain the various important legal decisions in this respect.

14. अन्तरिम लाभांश क्या है? इस सम्बन्ध में अंकेक्षक के कर्तव्यों का वर्णन कीजिए।

What is Interim Dividend? What are the duties of an auditor in this regard.

15. विभाज्य योग्य लाभ क्या है ? लाभांश वितरण के सम्बन्ध में कम्पनी अधिनियम में कौन-कौन से प्रावधान किए गए हैं? इस सम्बन्ध में अंकेक्षक के कर्तव्य बताइए।

What is Divisible Profit? What are the provisions made by the Companies Act in respect to distribution of dividend? Explain auditor’s duties in this regard.

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लघु उत्तरीय प्रश्न

1 अन्तिम लाभांश के सम्बन्ध में अंकेक्षक का कर्तव्य बताइए।

2. क्या पूंजीगत लाभ लाभांश के रूप में बांटे जा सकते हैं ?

3. विभाज्य लाभ व लाभांश पर एक टिप्पणी दीजिए।

4. लाभांश बांटने से पूर्व आप किन तथ्यों को ध्यान में रखेंगे ?

5. क्या चालू लाभ में से स्थायी सम्पत्तियों पर हास की व्यवस्था किये बिना लाभांश घोषित किया जा सकता है ?

6. क्या एक कम्पनी कटौती (discount) पर ऋणपत्रों के शोधन से होने वाले लाभ में से लाभांश घोषित कर सकती है ।

7. एक कम्पनी पूंजी में से लाभांश का भुगतान नहीं कर सकती है। ऐसा क्यों है ?

Divisible Profits and Dividends

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

1 विभाज्य लाभ क्या हैं ?

2. अन्तिम लाभांश क्या हैं ?

3. पूंजीगत लाभ किसे कहते हैं ?

4. क्या कम्पनी पूंजीगत लाभ में से लाभांश बांट सकता है ? यदि नहीं, तो क्यों ?

5. अन्तरिम लाभांश क्या हैं ?

6. विभाज्य लाभ के सिद्धान्त क्या हैं ?

Divisible Profits and Dividends

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1 लाभांश दिया जाता है :

(अ) वर्ष के लाभ में से

(ब) 6 माह के लाभ में से

(स) 2 वर्ष के लाभ में से

(द) किसी में से नहीं

2. भारत में अंशधारियों को लाभांश बांटने से पूर्व स्थायी सम्पत्तियों पर ह्रास का आयोजन अनिवार्य हो गया है :

(अ) धारा 205 के अन्तर्गत

(ब) धारा 350 के अन्तर्गत

(स) धारा 208 के अन्तर्गत

(द) धारा 210 के अन्तर्गत s madrivil

3. पिछले वर्षों की हानि लाभांश बांटने के पूर्व आयोजित की जानी चाहिए :

(अ) मुकदमों के निर्णयों के अनुसार

(ब) कम्पनी अधिनियम के अन्तर्गत

(स) लेखाकर्म के सिद्धान्तों के अन्तर्गत

(द) किसी से भी नहीं

Divisible Profits and Dividends

4. लाभांश दिया जाता है :

(अ) सभी अंशधारियों को

(ब) रजिस्टर्ड अंशधारियों को

(स) केवल पुराने अंशधारियों का

(द) इनमें से किसी को नहीं

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chetansati

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