BCom 3rd Year Auditing Liabilities Study Material notes in Hindi

Table of Contents

BCom 3rd Year Auditing Liabilities Study Material notes in Hindi: Auditors liability in private organization civil liabilities liability for negligence Criminal Liability Court cases relates to misfeasance Other liabilities Liability of an Honour Auditors Examination Questions ( Most Important Notes  For BCom 3rd year Examination) :

Liabilities Study Material notes
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BCom 3rd Year Auditing Depreciation and Reserves Study Material notes in Hindi

अंकेक्षक का दायित्व

[LIABILITIES OF AUDITOR]

व्यावहारिक दृष्टि से अंकेक्षक के दायित्व का दो प्रकार से अध्ययन किया जा सकता है :

(क) जब वह किसी निजी संस्था (एकाकी व्यापार या साझेदारी संस्था) के द्वारा नियुक्त किया जाता है.

और

(ख) जब वह कम्पनी अधिनियम, 2013 के अधीन सीमित दायित्व वाली कम्पनी के द्वारा नियुक्त किया जाता है।

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अंकेक्षक का दायित्व निजी संस्था में

(AUDITOR’S LIABILITY—IN PRIVATE ORGANISATION)

अंकेक्षक की नियुक्ति, अधिकार, कर्तव्य एवं दायित्व के सम्बन्ध में कोई विशिष्ट नियम नहीं होता, अतएव उसके कर्तव्य एवं दायित्व उसे प्रसंविदे की शर्तों के आधार पर निश्चित किये जाते हैं जो उसके और नियोक्ता के बीच में किया जाता है। अंकेक्षक को अपने कार्य की सीमा के सम्बन्ध में अपने नियोक्ता से लिखित आदेश प्राप्त कर लेना चाहिए जिससे वह उस कार्य के लिए उत्तरदायी न ठहराया जा सके जिसे करने के लिए उससे नहीं कहा गया था।

यदि प्राप्त आदेश के अनुसार अंकेक्षक कार्य करता है और संस्था के बहीखातों की जाँच करने के पश्चात् अपना प्रमाण-पत्र दे देता है, तो स्वभावतः उन खातों से सम्बन्ध रखने वाले उनके आधार पर संस्था को ऋण देने वाले व्यक्ति उन खातों को सही एवं शुद्ध मानते हैं। अंकेक्षक की जांच के पश्चात् यदि किसी प्रकार खातों में त्रुटियां या कपट रहता है तो वे अंकेक्षक को जिम्मेदार ठहराते हैं।

अंकेक्षक का दायित्व उन व्यक्तियों के प्रति तब तक नहीं है जब तक वह न्यायालय में सिद्ध नहीं हो जाता है कि अंकेक्षक ने स्वयं छल-कपट का कार्य करने में सहयोग दिया है। पर इसका अर्थ यह नहीं है कि अंकेक्षक अपने कार्य को चतुराई एवं कुशलता से पूरा न करे। उसे हर परिस्थिति में बड़ी सावधानीपूर्वक अपना । कार्य परा करने का प्रयत्न करना चाहिए। बाहरी व्यक्तियों के लिए एक प्रकार से उसका नैतिक दायित्व है और इस दायित्व को निभाने के लिए उसे ईमानदार होना चाहिए। उसे उन खातों या चिट्ठों पर हस्ताक्षर नहीं। करने चाहिए जिन्हें वह ठीक नहीं समझता है।

इस प्रकार यदि अंकेक्षक अपने नियोक्ता के आदेशों का अक्षरशः पालन करता है, तो उसे दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। अंकेक्षक का नियोक्ता केवल उसी परिस्थिति में उसे उत्तरदायी ठहरा सकता है जब यह सिद्ध हो जाय कि अंकेक्षक ने अपना कार्य लापरवाही से किया है, उसने अपने नियोक्ता के आदेशों का पालन नहीं किया है और उसके कार्य से नियोक्ता को हानि हुई है।

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अंकेक्षक का दायित्व कम्पनी में

(AUDITOR’S LIABILITY-IN COMPANY)

एक सीमित दायित्व वाली कम्पनी के अंकेक्षक की स्थिति निजी संस्था के अंकेक्षक की अपेक्षा बिल्कुल भिन्न है। अंकेक्षक की नियुक्ति कम्पनी विधान की शर्तों के अनसार होती है और वैसे ही उसके कार्य तथा दायित्व स्पष्ट किये जाते हैं। कम्पनी में अंकेक्षक के दायित्व निम्न भागों में विभाजित किये जाते हैं ।

अंकेक्षक के दायित्व

दीवानी दायित्व (Civil Liabilities)                             सअपराध कार्यों के लिए दायित्व (Criminal Liability)                                                  अन्य दायित्व (Other Liabilities)

लापरवाही के लिए दायित्व(Liabilities for Negligence    कर्तव्य-भंग के लिए दायित्व  (Liabilities for Misfeasance)

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दीवानी दायित्व

(CIVIL LIABILITIES)

एक अंकेक्षक को अपने कार्य का निष्पादन बुद्धिमता एवं सतर्कता तथा अपनी योग्यता व अनुभव का पूर्णरूपेण इस्तेमाल करते हुए किया जाना चाहिए। यदि वह अपने कार्य के निष्पादन में लापरवाही बरतता है जिससे उसके नियोक्ता को किसी प्रकार की हानि होती है या कर्तव्य भंग करता है तो ऐसी दशा में अंकेक्षक पर मुकदमा चलाया जा सकता है, अंकेक्षक पर दीवानी दायित्वों के लिए निम्न प्रकार के दायित्वों के सम्बन्ध में मुकदमा चलाया जा सकता है :

लापरवाही के लिए दायित्व (Liability for Negligence)

एक अंकेक्षक कम्पनी द्वारा नियुक्त किया जाता है और कम्पनी के हितों की रक्षा करने वाला उसका जेण्ट होता है। अपने प्रधान (Principal) अथवा अंशधारियों के प्रति अपना दायित्व निभाने में उसे बडी सावधानी, सतर्कता एवं ईमानदारी से कार्य करना चाहिए। यदि वह अपना कार्य करने में लापरवाही दिखाता है और उसके लापरवाह होने से कम्पनी के हितों को धक्का लगता है एवं इसके फलस्वरूप कम्पनी को आर्थिक हानि हो जाती है, तो उसके लिए अंकेक्षक उत्तरदायी होता है। कम्पनी अंकेक्षक पर लापरवाही का दोष लगाकर उसे क्षतिपूर्ति के लिए बाध्य कर सकती है।

परन्तु ध्यान देने योग्य बात यह है कि अंकेक्षक की लापरवाही सिद्ध होने पर उस समय तक वह उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है जब तक कम्पनी को उसकी लापरवाही के कारण हानि न हुई हो। ऐसे ही आर्थिक हानि होते हुए भी यदि उसकी लापरवाही सिद्ध न हो जाय, तब भी अंकेक्षक उस हानि के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है।

संक्षेप में, यह कहा जा सकता है कि हानि के बिना लापरवाही के सिद्ध होने पर अंकेक्षक उत्तरदायी नहीं होता है और ऐसे ही लापरवाही सिद्ध हुए बिना हानि होने पर अंकेक्षक का कोई दायित्व नहीं है।

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लापरवाही के सम्बन्ध में दायित्व एवं मुकदमे

(COURT CASES IN RESPECT OF LIABILITY FOR NEGLIGENCE)

(i) Lead Estate Building & Investment Co. vs. Shepherd (1897)

इस मुकदमे में अंकेक्षक को कम्पनी को क्षतिपूर्ति करने के सम्बन्ध में उत्तरदायी ठहराया गया था क्योंकि कम्पनी ने पिछले 6 वर्षों से पूंजी में से लाभांश का वितरण किया जा रहा था। न्यायालय ने निर्णय दिया कि अकक्षक का कर्तव्य केवल आर्थिक चिटठे की गणितीय शद्धता की जांच तक अपने को सीमित करना नहीं है बल्कि उसके औचित्य की भी जांच करनी है। इसमें कोई बहाना नहीं है कि अंकेक्षक ने अन्तर्नियमों को नहीं देखा जबकि वे मौजूद थे।

(ii) London and General Bank (1895)

इस मुकदमे के अन्तर्गत कम्पनी की पूंजी का एक बड़ा भाग अग्रिम के रूप में ऋण में दिए गए थे जो। अपर्याप्त प्रतिभूति के बदले व उनका वसूल होना भी कठिन था। अंकेक्षक ने इस बात की सूचना गुप्त रूप से संचालकों को दी थी परन्तु उसने इस तथ्य को अंशधारियों के प्रतिवेदन में नहीं दिया। प्रबन्धकों द्वारा बनाए गए आर्थिक चिट्ठे में विश्वास करते हुए लाभांश का भुगतान कर दिया गया जो वास्तव में पूंजी में से दिया गया था। सही वित्तीय स्थिति का निर्धारण करने के लिए दोषी पाए जाने व अंशधारियों से तथ्य को छिपाने के लिए अंकेक्षक को उत्तरदायी ठहराया गया।

(iii) Irish Woollen Co. Ltd. vs. Tyson & Others (1900)

इस मुकदमे में अंकेक्षक को उत्तरदायी ठहराया गया था क्योंकि कम्पनी के चिट्टे में दायित्वों को कम दिखागया गया था और लाभांश को पूंजी में से बांट दिया गया था जिसे अंकेक्षक आसानी से अपनी योग्यता.

अनुभव व चतुराई से पकड़ सकता था।

(iv) Armitage vs. Brewer & Knott (1932)

_इस मुकदमे में अंकेक्षक को अपने नियोक्ता को हुई हानि के लिए उत्तरदायी ठहराया गया था जो उसके द्वारा समय के लेखों एवं खुदरा रोकड़ बही के प्रमाणकों में धोखा देने के उद्देश्य से गलत तरीकों से परिवर्तन किए गए थे जिसे अंकेक्षक की लापरवाही से पकड़ा नहीं जा सका था। (v) Arthur Green & Co. vs. The Central Advance and Discount Co. Ltd. (1902)

इस मुकदमे में अंकेक्षक को अपने नियोक्ता के प्रति ऋणों के सम्बन्ध में प्रतिवेदन में की गयी लापरवाही के लिए दोषी पाया गया था।

(vi) London Oil Storage Co. vs. Seear Hasluk & Co. (1904)

इस मुकदमे में खुदरा रोकड़िए द्वारा लेखा पुस्तकों में खुदरा रोकड़ व्यय को बढ़ाकर दिखाए जाने को अंकेक्षक की लापरवाही के कारण नहीं पकड़ा जा सका था। अतः सम्पत्तियों के सही सत्यापन न किए जाने के कारण अंकेक्षक दोषी पाया गया था।

(vii) Kingston Cotton Mills Ltd. (1896)

इस मुकदमे में अंकेक्षक ने प्रबन्धकों द्वारा प्रमाणित किए गए रहतिया के मूल्यांकन पर विश्वास करते हुए वित्तीय विवरणों को सही घोषित कर दिया था। इस मुकदमे में रहतिया का मूल्यांकन अधिक कर दिया गया था और लाभांश का भुगतान कम कर दिया गया था।

इस प्रकार उपर्युक्त मुकदमों को ध्यान में रखते हुए अंकेक्षक को लापरवाही के लिए उत्तरदायी ठहराया जा सकता है जब यह सिद्ध हो जाए कि :

(i) अंकेक्षक के रूप में अपने कार्य को पूर्ण करने में वास्तव में लापरवाही बरती गयी थी. तथा

(ii) उसकी लापरवाही के कारण उसके नियोक्ता को वास्तव में हानि हुई है।

कर्तव्य-भंग के लिए दायित्व (Liabilities for Misfeasance)

जिस प्रकार अंकेक्षक को अपने कार्य में लापरवाही दिखाने पर लापरवाही के कारण उत्पन्न हानि के लिए दायी ठहराया जा सकता है, उसी प्रकार वह कर्तव्य-भंग, विश्वास-भंग या अतिक्रमण का अपराध सिद्ध होने पर भी क्षतिपूर्ति के लिए विवश किया जा सकता है। कर्तव्य-भंग के कारण यदि कम्पनी को आर्थिक हानि हई तो केवल परीक्षक ही नहीं कम्पनी के संचालक, प्रवर्तक तथा अन्य पदाधिकारी भी उत्तरदायी ठहराये जा सकते हैं।

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वैधानिक दृष्टि से कर्तव्य-भंग _

धारा 340 यदि कोई कम्पनी समापन में हो और इस समापन क्रिया में अंकेक्षक को कम्पनी के प्रति कर्तव्य-भंग या विश्वास-भंग के लिए दोषी ठहराया जाय तो कम्पनी का अफसर होने के नाते वह इससे कम्पनी को होने वाली सभी हानियों के लिए दायी होगा।

धारा 35—जब कम्पनी अधिनियम के प्रारम्भ होने के पश्चात् निर्गमित किये गये प्रविवरण में कोई छठा विवरण होता है, तो प्रत्येक व्यक्ति जो इसके लिए जिम्मेदार होता है।

यदि अंकेक्षक प्रविवरण के निर्गमन को अधिकत करता है. तो इस धारा के अन्तर्गत वह प्रत्येक व्यक्ति की हानि की पूर्ति के साथ धारा 477 के अधीन कार्यवाही के लिए भी दायी होगा।

धारा 147–यदि अंकेक्षक धारा 139 और 141 के नियमों के प्रतिकूल कोई रिपोर्ट लिखता है, या कम्पनी के किसी प्रलेख (document) पर हस्ताक्षर करता है, तो जानबूझकर किये गये इस नियम-भंग के लिए उसे दस हजार र से एक लाख र तक जुर्माने की सजा दी जा सकती है।

कर्तव्य भंग से सम्बन्धित मुकदमे

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(COURT CASES RELATED TO MISFEASANCE)

(i) The London & General Bank Case (1895)

इस मुकदमे में अंकेक्षक को कर्तव्य भंग के लिए उत्तरदायी ठहराया था क्योंकि उसने अंशधारियों को अपने प्रतिवेदन में ऋणों के बदले में रखी गयी अपर्याप्त प्रतिभूति को विशिष्ट सूचना नहीं दी थी।

(ii) Kingston Cotton Mills (1896)

इस मुकदमे में अंकेक्षक द्वारा अपने को उत्तरदायी ठहराये जाने के लिए न्यायालय में अपील की थी। न्यायालय ने यह माना कि वह कम्पनी के विश्वासपात्र प्रबन्धकों के द्वारा प्रमाणित किए गए स्टॉक के मूल्यांकन पर विश्वास कर सकता है।

अंकेक्षक को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता, यदि उसे कोई रोक न हो चाहे स्टॉक का अधिक मूल्यांकन कर दिया गया है व लाभांश का भुगतान पूंजी में से कर दिया गया है।

(iii) Republic of Bolvia Exploration Syndicate Ltd. (1914)

इस मुकदमे में अंकेक्षक को अपने नियोक्ता के प्रति उत्तरदायी ठहराया गया था क्योंकि उसके द्वारा अंकेक्षित चिठे में विश्वास रखते हुए सीमा से परे भुगतान (ultravires payments) किए गए थे।

(iv) The West Minster Road Constructions & Engineering Co. Ltd. (1932)

इस मुकदमे में अंकेक्षक को लाभांश के रूप में वितरित की गयी राशि को वापस करने के लिए उत्तरदायी ठहराया गया था जो अंकेक्षक आर्थिक चिट्ठे को विश्वसनीय मानते हुए घोषित किया गया था जबकि चिट्ठे में कई वर्तमान दायित्वों को नहीं दर्शाया गया था।

दायित्व से बचाव

धारा 463–यदि न्यायालय को यह विश्वास हो जाय कि अंकेक्षक ने अपने कर्तव्य-पालन में ईमानदारी, सतर्कता एवं बुद्धिमानी से कार्य किया है, तो उसके ऊपर चलाये हए लापरवाही या कर्तव्य-भंग या विश्वास-भंग के मामलों में उसे क्षमा किया जा सकता है। साधारणतया अंकेक्षक अपने बचाव के लिए इसी धारा की शरण लेते हैं।

II सापराध कार्यों के लिए दायित्व

(CRIMINAL LIABILITY)

अंकेक्षक का केवल सामान्य मामलों में क्षतिपर्ति के लिए दायी नहीं ठहराया जा सकता, किन्तु उस पर सापराध कार्य के लिए मुकदमा चलाया जा सकता है। उसे हथकड़ी भी लग सकती है और कारावास की सजा भी मिल सकती है।

प्रत्येक अंकेक्षक के अपने कार्यों के लिए सामान्य दायित्वों के अलावा सापराधिक अकक्षण क समय में अंकेक्षक कोई कार्य करता है जिन्हें न्याय की दृष्टि से अपराध माना जाता है या अंकेक्षक न सवाधिक व्यवस्था की घोर उपेक्षा की है या कोई दण्डनीय कार्य किया ह, ताे वे कार्य सापराध कार्य कहे जाते हैं । ऐसे कार्यो के लिए वह सम्बन्धित अधिनियम की व्यवस्था के अनुसार सजा या दण्ड का भागी है अर्थात् ऐसे कार्यों के लिए उस पर आर्थिक दण्ड लगाया जा सकता है तथा उसे जेल भी भेजा जा सकता है ।

सापराध दायित्व कौन-कौन से हैं? इन्हें निम्न उदाहरणों द्वारा समझाया जा सकता है:

(i) जानबूझकर कपट करके रिपोर्ट देना,

(ii) लेखों में किये गये कपटों को जानते हुए छिपाना,

(iii) लेखों से सम्बन्धित प्रमाणकों एवं पुस्तकों को नष्ट करना,

(iv) अपने नियोक्ता की सम्पत्ति को क्षति पहंचाना.

(v) हिसाब-किताब को नकली बनाने में सहायता देना

(vi) झूठे लेखों को जानबूझकर सत्य प्रमाणित करना,

(vii) कर्तव्यों का पालन करते समय रिश्वत लेना,

(viii) प्रमाण-पत्र पर जानबूझकर झूठा कथन देना।

वैधानिक दृष्टि से दायित्व ।

(1) प्रविवरण में गलत विवरण—जब कम्पनी द्वारा जारी किए गए प्रविवरण में कोई गलत कथन वर्णित है तो प्रत्येक व्यक्ति (अंकेक्षक को शामिल करते हए) जिसने उस प्रविवरण को जारी करने का आदेश दिया था तो उन पर धारा 477 के अधीन कार्यवाही की जा सकती है।

 (2) धारा 143 व 145 का अंकेक्षक द्वारा पालन न किए जाने पर यदि कोई अंकेक्षक अधिनियम की धारा 143 व 145 के अनुपालन में त्रुटि करता है और वह इन धाराओं के अन्तर्गत अपना प्रतिवेदन (Report) नहीं देता है या किसी प्रलेख पर हस्ताक्षर या प्रमाणित नहीं करता है तो उस पर 1 लाख ₹ से 25 लाख र तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।

 (3) अनुसंधान कार्य में मदद न करना—जब कम्पनी का अंकेक्षक केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त निरीक्षक (Inspector) को जांच कार्यों में उसकी सहायता नहीं करता है, तो अंकेक्षक को न्यायालय के अपमान (contempt of court) के लिए दोषी ठहराया जा सकता है।

इस परिस्थिति में उसे 6 माह की सजा अथवा 25 हजार र से 1 लाख र तक का अर्थ दण्ड या दोनों सजाएं दी जा सकती हैं, यदि लगातार त्रुटि करने पर 2,000 ₹ प्रतिदिन के आधार पर अर्थ दण्ड लगाया जा सकता है।

(4) दोषी ठहराये गये अधिकारी के कानूनी कार्यवाही में मदद न करने पर उसी प्रकार यदि निरीक्षक की रिपोर्ट के आधार पर केन्द्रीय सरकार कम्पनी से सम्बन्धित किसी अधिकारी के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही करती है तो अंकेक्षक को कार्यवाही में सहायता करनी चाहिए। यदि वह ऐसा नहीं करता है तो उसे न्यायालय के अपमान के लिए दोषी ठहराया जा सकता है।

(5) सम्पत्ति, पुस्तकें एवं प्रलेख की वापसी करने पर कम्पनी के समापन के समय अंकेक्षक को सभी पुस्तकें एवं प्रलेख जो उसके अधिकार में हों कम्पनी को वापस करने चाहिए। यदि वह न्यायालय के सामने उपस्थित नहीं होता है, तो उसे गिरफ्तार करके न्यायालय में लाया जा सकता है।

(6) न्यायालय के द्वारा जांच सरकारी निस्तारक (Official Liquidator) के प्रार्थना-पत्र के आधार पर कम्पनी के अंकेक्षक की हाईकोर्ट में सार्वजनिक रूप से जांच-पड़ताल की जा सकती है। उसकी जांच के नोट लिए जा सकते हैं, जिन पर अंकेक्षक को स्वयं हस्ताक्षर करने होंगे। इन नोटों का प्रयोग उसके विरुद्ध दीवानी या फौजदारी कार्यवाही में किया जा सकता है।

 (7) खातों में गडबड़ी करने पर यदि अंकेक्षक पर कम्पनी के खातों को झूठा करने या जालसाजी करने का आरोप हो तो उसको अधिक-से-अधिक 7 वर्ष की सजा तथा जाना हो सकता है।

(8) सापराध कार्य में दोषी यदि अंकेक्षक किसी सापराध कार्य के लिए दोषी हो. तो उस पर अभियोग चलाया जा सकता है।

(9) जान-बझकर गलत कार्य करना यदि अंकेक्षक किसी विवरण, रिपोर्ट प्रमाण-पत्र. चिट्टा. प्रविवरण या अन्य प्रलेख में जान-बूझकर झूठा बयान देता है या जानते हुए भी किसी बात को छोड़ देता है, धारा 477 के अधीन कार्यवाही की जाएगी।

(10) गलत बयान देने पर यदि अंकेक्षक का यह बयान जो उसने शपथ (affidavit) पर दिया है, झूठा मिट होता है तो उसको 3 से 7 वर्ष की सजा तथा 10 लाख र तक जुर्माना किया जा सकता है। धारा 449]

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III. अन्य दायित्व

(OTHER LIABILITIES)

भारतीय दण्ड विधान के अर्न्तगत (Under Indian Penal Code)

(i) गलत प्रमाण-पत्र जारी करना व हस्ताक्षर करना—यदि कोई व्यक्ति कोई प्रमाण-पत्र जारी व उसको हस्ताक्षरित करता है जो किसी विधान के अन्तर्गत काननी रूप से प्रमाण के रूप में अनिवार्य है तथा जिसे वह जानता है कि वह प्रमाण-पत्र गलत है तो वह इस कार्य के लिए दण्ड के लिए भागीदार होगा।

(ii) पुस्तके व प्रमाणों को असत्य ठहराना यदि अंकेक्षक किसी पुस्तक, प्रपत्र, लेख या मूल्यांकन प्रतिभूति को जान-बूझकर असत्य ठहराता है जो उसके नियोक्ता के पास हैं या उससे सम्बन्धित हैं तो उसे कत्य के लिए दोषी ठहराया जा सकता है।

(A) पेशावर अशोभनीय आचरण के लिए

यदि अंकेक्षक अपने पेशे से सम्बन्धित नैतिक मल्यों के अनपालन में यदि कोई अशोभनीय आचरण करता है तो उसका नाम इंस्टीट्यूट के सदस्यों के रजिस्टर से पांच या पांच से अधिक वर्षों के लिए हटाया जा सकता है।

अन्य व्यक्तियों के प्रति अंकेक्षक के दायित्व

कम्पनी को ऋण देने वाले, कम्पनी के ऋणपत्र खरीदने वाले. उसके साथ क्रय-विक्रय करने वाले अथवा अन्य प्रकार का आर्थिक सम्बन्ध रखने वाले व्यक्तियों या संस्थाओं के प्रति अंकेक्षक का दायित्व कहां तक सीमित है, यह एक बड़ा ही महत्वपूर्ण प्रश्न है। ये सभी व्यक्ति या संस्थाएं अंकेक्षक द्वारा अंकेक्षित हिसाब-किताब एवं चिद्वे के आधार पर कम्पनी से अपना व्यवहार करते हैं। यदि वे खाते गलत हों और उन पर विश्वास करके कम्पनी से आर्थिक सम्बन्ध स्थापित करने से इन्हें हानि उठानी पड़े तो क्या वे उस हानि के लिए अंकेक्षक को उत्तरदायी ठहरा सकते हैं।

स्पष्ट उत्तर है, नहीं। अंकेक्षक कम्पनी द्वारा नियुक्त किया जाता है, अन्य व्यक्तियों के द्वारा नहीं और न अंकेक्षक एवं इन व्यक्तियों के बीच कोई प्रसंविदा ही होता है। अतएव खातों की अशुद्धियों के लिए वह अन्य व्यक्तियों के लिए उत्तरदायी नहीं होता।

ली लिवरी और एनर बनाम गोल्ड (1893) [Le Lievre and Anor vs. Gould] के मुकदमे में जो निर्णय दिया गया था. उससे यह स्पष्ट होता है कि न्यायालय किसी भी विशेषज्ञ (expert) सेवक को लापरवाही का कार्य करने पर उस समय तक अन्य व्यक्तियों के प्रति उत्तरदायी ठहराने के लिए तैयार नहीं जब तक उस विशेषज्ञ के विरुद्ध छल का अपराध सिद्ध न हो जाय। इस प्रकार यदि अंकेक्षक को अन्य व्यक्तियों के लिए उत्तरदायी बनाना है तो यह सिद्ध करना होगा कि:

(1) उसने जिस चिट्ठे या वक्तव्य पर हस्ताक्षर किये हैं, वह गलत है.

(2) वह जानता था कि यह चिट्ठा या वक्तव्य गलत है, या वह उसके झूठे होने के बारे में जानबूझकर अनजान बन बैठा था;

(3) उस चिटे या वक्तव्य पर उसने इसलिए हस्ताक्षर किये थे कि अन्य व्यक्ति उसकी सत्यता पर कम्पनी से आर्थिक लेन-देन करें; और

(4) उस अन्य व्यक्ति ने उसकी सत्यता पर विश्वास करके कम्पनी के साथ व्यवहार किया और उससे हानि हुई।

संक्षेप में यह कहा जा सकता है  कि छल-कपट की स्थिति में ही अंकेक्षक को दोषी ठहराया जा सकता है अंकेक्षक का नैतिक कर्तव्य हो जाता है कि पूर्ण चतुराई, सावधानी एवं कशलता से कार्य का पालन करे।

अतएव कहा जा सकता है कि अंकेक्षक का बाहरी व्यक्तियों के प्रति कोई दायित्व नहीं है बल्कि वह नियोक्ता के लिए ही दायी होता है। बाहरी व्यक्तियों के लिए वह दायी है, जबकि
(1) उसने कपट किया हो, और (2) उसके फलस्वरूप बाहरी व्यक्तियों को कुछ वास्तविक हानि हई हो। अंकेक्षक के दायित्व के सम्बन्ध में न्यायालयों के निर्णयों का उल्लेख पहले किया जा चका है। सय यह अच्छा प्रतीत नहीं होता है कि उन सम्पूर्ण निर्णयों की पुनरावृत्ति की जाय। इतनाअवश्य कहना होगा कि यहां ऐसे कोई व्यापक अथवा सर्वमान्य नियमों का प्रतिपादन नहीं हो सकता है।

जिनके आधार पर अंकेक्षक का दायित्व निर्धारित किया जा सके। परिस्थितियां भिन्न होती हैं, अन्तर्नियमों धाराएं भिन्न होती हैं और वैसे ही अंकेक्षक एवं नियोक्ता के बीच किये गये समझौते की शर्ते भी मिल होती हैं। अतः हर दशा में नियमों का बनाना कुछ न्यायसंगत प्रतीत नहीं होता है।

हां, इतना कहना अप्रासंगिक न होगा कि अंकेक्षक को अपना कार्य ईमानदारी के साथ करना ना उसे सदैव न्यायोचित दक्षता. सावधानी एवं परिश्रम का परिचय देना चाहिए। जब तक उसे पूर्णतः नि न हो जाय तब तक उसे कोई विवरण, लाभ-हानि खाते या आर्थिक चिट्ठ को सही प्रमाणित नहीं चाहिए। यह न्यायोचित सावधानी और दक्षता क्या होगी, इसके सम्बन्ध में कोई व्यापक नियम नहीं बन जा सकता है। यह तो प्रत्येक मामले की विशेष परिस्थितियों पर निर्भर होता है। यह सुनिश्चित है कि यह अंकेक्षक अपेक्षित कशलता एवं चतराई का परिचय नहीं देता है और उसके फलस्वरूप संस्था को हानि पड़ती है, तो अंकेक्षक अपराधी घोषित हो सकता है और हानि की पूर्ति के लिए बाध्य किया जा सकता है।

प्रत्येक कार्य में सन्देहात्मक परिस्थितियां हो सकती हैं जिनका पता अंकेक्षक ही क्या, स्वयं कम्पनी में संचालक भी नहीं लगा सकते हैं। हो सकता है कि इन परिस्थितियों को उत्पन्न करने के लिए कई वर्षों से तैयारियां की गयी हों जिनमें कम्पनी के उच्च अधिकारियों का हाथ हो। ऐसे मामलों में अंकेक्षक को कोई उत्तरदायी नहीं ठहरा सकता। अंकेक्षक को अपना कार्य किसी भ्रम या सन्देह के साथ प्रारम्भ नहीं करना चाहिए। यही उसका कर्तव्य है।

इसके साथ-साथ यह भी अंकेक्षक का कर्तव्य हो जाता है कि वह संस्था के नियमों, अन्तर्नियमों आदि का पूर्ण अध्ययन करे और संस्था के चिट्ठे में प्रदर्शित सम्पत्तियों एवं दायित्वों का अनिवार्य रूप से सत्यापन करे और यथासम्भव निजी निरीक्षण के द्वारा उनकी विद्यमानता का पता लगाने का प्रयत्न करे। यह सभी जानते हैं कि अंकेक्षक कोई मूल्यांकक (valuer) नहीं है। यह सम्पत्तियों के मूल्य का निर्धारण एक विशेषज्ञ की हैसियत से नहीं कर सकता है, पर फिर भी कम्पनी में प्रचलित परम्परा का आधार उसके पास है। कम्पनी के अन्तर्नियमों की जानकारी से वह मूल्यांकन सम्बन्धी जांच कर सकता है और यह भी देख सकता है कि सम्पत्ति के मूल्यांकन में किस हद तक लेखाकर्म के सिद्धान्तों का अनुसरण किया गया है।

अन्त में, अंकेक्षक को अपनी रिपोर्ट देनी होती है। यदि बहीखाते ठीक हैं एवं पुस्तकों के अनुरूप सभी खाते तैयार किये गये हैं और वैसे ही सम्पत्तियों का मूल्यांकन ठीक किया गया है, तो अंकेक्षक अपनी रिपोर्ट में निस्संकोच यह कह सकता है कि संस्था का लाभ-हानि खाता तथा चिट्ठा उसके सही आर्थिक चित्र को प्रस्तुत करता है। यदि नहीं, तो किस सीमा तक। उसे अपनी सभी शंकाओं एवं मर्यादाओं का उल्लेख अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से करना चाहिए। हर परिस्थिति में अंकेक्षक को निर्भीक होकर अपनी रिपोर्ट देनी चाहिए।

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अवैतनिक अंकेक्षक का दायित्व

(LIABILITY OF AN HONORARY AUDITOR)

जहां तक अवैतनिक अंकेक्षक की लापरवाही या अधिकार के दरुपयोग के लिए दायित्व का प्रश्न है, वह वैतनिक अंकेक्षक की भांति ही समान रूप से उत्तरदायी है। वह अपने दायित्व से इस आधार पर मुक्त नहीं हो सकता है कि वह किसी प्रतिफल के लिए कार्य नहीं कर रहा है। उसका नियोक्ता के साथ प्रसविदा किसी प्रतिफल के लिए नहीं था। यदि वह दायित्व से मुक्त होना चाहता है तो उसे कार्य प्रारम्भ से हा नह करना चाहिए, पर कार्य पूरा होने पर जब वह अपनी रिपोर्ट प्रस्तत कर देता है तो वह अपने किए हुए काय के लिए उतना ही उत्तरदायी बन जाता है जितना कि वैतनिक अंकेक्षक।

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प्रश्न

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1 सीमित प्रमण्डल में अंकेक्षक के दायित्वों की संक्षेप में विवेचना कीजिए। इस सम्बन्ध में कछ वैधानिक निण की, जिन्हें आप जानते हों, चर्चा कीजिए।

Discuss the liabilities of an auditor in brief in a Joint Stock Company. In this respect discuss some legal cases which you know

2. कर्तव्य-भंग के आधार पर कम्पनी अंकेक्षक के दायित्वों की विवेचना कीजिए।

Discuss the liabilities of an auditor on the basis of misfeasance

3. अंकेक्षक के वैधानिक दायित्वों के सम्बन्ध में न्यायालयों के निर्णयों का सार दीजिए।

Give the essence of court decisions in respect to legal liabilities of an auditor.

4. कम्पनी के खातों के झूठे होने के कारण होने वाली हानि के लिए एक अंकेक्षक दायी होता है जिसे वह योचित सावधानी तथा चतराई का प्रयोग करके दंढ सकता था।” इस कथन की विवेचना कीजिए।

An auditor is responsible for loss occuring to improprer accounts which he can however trace them with due care and diligence.” Discuss the statement.

5. एक अंकेक्षक किन दशाओं में सापराध कार्यों के लिए उत्तरदायी ठहराया जा सकता है? |

In which circumstances can an auditor be made responsible for criminal liabilities.

6. कम्पनी के एक कर्मचारी ने कम्पनी के फण्ड का गबन किया है। निम्नांकित से दायित्व किस प्रकार प्रभावित

होगा: (अ) संचालकों की लापरवाही।

(ब) संचालकों के बोर्ड की ओर से अंकेक्षक के लिए केवल आंशिक अंकेक्षण करने के लिए एक लिखित आदेश।

(स) कम्पनी के अन्तर्नियम में ऐसा नियम कि प्रत्येक परिस्थिति में, उसकी स्वयं की वैध लापरवाही को छोड़कर अंकेक्षक कम्पनी की ओर से सुरक्षित है।

An employee of a company has embezzled the fund. How will liability be effected in following cases:

(a) Due to negligence of directors.

(b) An written order by the board of directors to the auditor for partial audit.

(c) A provision in the articles of the company in every circumstance, except in case of his valid negligence the auditor is safe from the company.

7. यदि अंकेक्षक के द्वारा प्रमाणित खातों में झूठी और छल-कपट से पूर्ण प्रविष्टियां पायी गयीं तो इस सम्बन्ध में अंकेक्षक का दायित्व स्पष्ट कीजिए।

Clarify the liablitity of the auditor if false and fraud transactions are found in account s audited ___by the auditor.

8. “अन्य व्यक्तियों के प्रति अंकेक्षक के दायित्व” पर एक टिप्पणी दीजिए।

Write a note on “liability of an auditor to other persons”.

9. सम्बन्धित मुकदमों का दृष्टांत प्रस्तुत करते हुए अंकेक्षक के सामान्य एवं सापराध दायित्वों का अन्तर समझाइए।

Differentiate between general and criminal liabilities giving reference to court cases.

10. लापरवाही के लिए अंकेक्षक का दायित्व तथा व्यावसायिक दुराचरण के लिए आपराधिक दायित्व की व्याख्या कीजिए।

Describe the auditor’s liability for negligence and criminal liability for professional misconduct.

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लघु उत्तरीय प्रश्न

1 कर्तव्य भंग के आधार पर कम्पनी अंकेक्षक के दायित्वों को लिखिए।

2. एक अंकेक्षक किन दशाओं में सापराध कार्यों के लिए उत्तरदायी ठहराया जा सकता है ?

3. एक सीमित दायित्व वाली कम्पनी के लेखों का अंकेक्षण होने के बाद यदि मालूम हो कि वे लेखे खोटे अथवा बनावटी हैं तो अंकेक्षक कहां तक उत्तरदायी होगा ?

4. निम्नलिखित दशाओं में अंकेक्षक का दायित्व बताओ :

(अ) अंकेक्षक की लापरवाही में,

(ब) कर्तव्य भंग के लिए।

5. एक कम्पनी के अशधारा एक अकक्षक को क्षतिपूर्ति के लिए किन परिस्थितियों में डाल

6. साझेदारी फर्म में अंकेक्षक का क्या दायित्व है ? ॉ

7. एकाकी व्यापार के सम्बन्ध में अंकेक्षक के दायित्व बताइए।

8. अपने नियोक्ता के क्लर्क द्वारा किये गये गबन के लिए अंकेक्षक का क्या दायित्व है ?

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अति लघु उत्तरीय प्रश्न

1 यदि चिटठे सम्बन्धी सही सूचना अंशधारियों को नहीं देता है तो वह कर्तव्य भंग का दोषी है अथवा नहीं?

2.अंकेक्षक की लापरवाही के लिए दायित्व किन दो बातों पर होता है?

3. प्रमाणन के सम्बन्ध में अंकेक्षक का दायित्व बताइए।

4. कपट के सम्बन्ध में अंकेक्षक का दायित्व बताइए।

5. नियुक्ति के सम्बन्ध में अंकेक्षक के क्या दायित्व होते हैं ?

6. कर्तव्य भंग के आधार पर कम्पनी अंकेक्षक के दायित्व बताइए।

7. एक अंकेक्षक किन दशाओं में सापराध कार्यों के लिए उत्तरदायी ठहराया जा सकता है ?

8. अन्य व्यक्तियों के प्रति कम्पनी के अंकेक्षक का क्या दायित्व है ?

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वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. दायित्वों के परिप्रेक्ष्य में अंकेक्षक अपने नियोक्ता के लिए होता है :

(अ) सचिव

(ब) सहायक

(स) एजेण्ट

(द) नौकर

2. कम्पनी अंकेक्षक का दायित्व निम्न में से किसके द्वारा निर्धारित किया जाता है : (अ)अधिनियम

(ब) न्यायालयों के निर्णय

(स) चार्टर्ड एकाउण्टैण्ट्स ऐक्ट

(द) इनमें से सभी

3. “अंकेक्षक रखवाली करने वाला कुत्ता है, शिकारी नहीं।” यह निर्णय निम्न में से किस मामले में दिया गया था :

(अ) लन्दन एण्ड जनरल बैंक

(ब) किंगस्टन कॉटन मिल कं.

(स) यूनियन बैंक लि.

(द) इनमें से कोई नहीं ignor

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chetansati

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