BCom 3rd Year Auditors Report Study Material notes in Hindi

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BCom 3rd Year Auditors Report Study Material notes in Hindi: Introduction importance of Auditors Report Basic Elements of Audit or Report Contents of The Report Auditor Report and Companies Act Kinds of Auditor Report Clear Report Salient Features of An Ideal Report Qualified Report  Examination Questions  ( Very Important Notes For BCom Students )

Report Study Material notes
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BCom 3rd Year Auditing Alteration Share Capital Study material notes in hindi

अंकेक्षक की रिपोर्ट

[AUDITOR’S REPORT]

प्रस्तावना (Introduction)

एक अंकेक्षक कम्पनी के अंशधारियों द्वारा कम्पनी के हिसाब-किताब की जांच करने के लिए नियुक्त किया जाता है और कम्पनी के कार्यों के सम्बन्ध में उसके अंशधारियों को अपनी रिपोर्ट देता है। कभी-कभी अंकेक्षक की नियुक्ति संचालकों के द्वारा की जाती है, जैसे कम्पनी के प्रथम अंकेक्षक की नियुक्ति एवं आकस्मिक रिक्त स्थान (casual vacancy) की पूर्ति, पर फिर भी अंकेक्षक अपनी रिपोर्ट संचालकों को न देकर अंशधारियों को ही देता है।

भारतीय कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 143(2) के अनुसार अंकेक्षक को स्वयं के द्वारा जांचे गये हिसाब-किताब और प्रत्येक चिट्ठा, लाभ-हानि खाता एवं उनके साथ नत्थी किये गये प्रलेखों (documents) के सम्बन्ध में जो कम्पनी की साधारण सभा में प्रस्तुत किये जाते हैं, अपनी रिपोर्ट देनी होती है। यह रिपोर्ट अंकेक्षक की रिपोर्ट कहलाती है।

यद्यपि कम्पनी की पुस्तकों को अंकेक्षकों के समक्ष प्रस्तुत करने के लिए बनाने का दायित्व संचालकों का होता है। इन पुस्तकों को संचालकों के द्वारा स्वीकृति की विधि कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 134 में उल्लिखित है।

BCom 3rd Year Auditors

सामान्यतः एक कम्पनी के अंशधारी स्वयं कम्पनी के वित्तीय विवरणों की जांच करने की सामर्थ्य में नहीं होते हैं। अधिकांश अंशधारी कम्पनी की पुस्तकों में अनियमितताओं को अवलोकित नहीं कर पाते हैं क्योंकि ऐसा करने के लिए विशिष्ट विश्लेषणात्मक ज्ञान की आवश्यकता होती है। इस समस्या के समाधान के लिए कम्पनी के अंशधारी एक अंकेक्षक नियुक्त करते हैं जो वित्तीय विवरणों की सत्यता को प्रमाणित करने के लिए पेशेवर रूप से योग्य एवं कानून द्वारा बाध्य होता है। अर्थात् यह एक अंकेक्षक का कर्तव्य है। कि वह अंशधारियों को कम्पनी के प्रबन्धकों द्वारा सम्पत्तियों के प्रबन्ध में किसी भी प्रकार की अनियमितताओं (यदि हो) से अवगत कराये। इस प्रकार अंकेक्षक अंशधारियों के हितों की रक्षा करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।

इस प्रकार उपर्युक्त कथनों से अंकेक्षण रिपोर्ट की प्रमुख विशेषताएं सामने आती हैं :

(1) रिपोर्ट से ठोस एवं संक्षिप्त सूचनाएं प्राप्त होती हैं।

(2) अंकेक्षक के द्वारा किये गये कार्यों का पता चलता है।

(3) कम्पनी या फर्मों के द्वारा व्यापार के सभी लेखों का पता चलता है।

(4) रिपोर्ट से अंकेक्षक सभी तत्वों को दर्शाता है तथा अपने विचार प्रस्तुत करता है।

(5) रिपोर्ट में सभी बातों पर ठोस एवं संक्षिप्त सूचनाएं मिलती हैं।

(6) यह रिपोर्ट में केवल एक ही वर्ष के लेखों से सम्बन्धित होती है।

रिपोर्ट एवं प्रमाणपत्र में अन्तर

प्रमाणपत्र (Certificate)

 

रिपोर्ट (Report)

 

1 प्रमाणपत्र एक लिखित प्रपत्र है जो किसी अधिकृत व्यक्ति द्वारा बनाया जाता है।

 

रिपोर्ट प्रमाणपत्र नहीं होती है। यह सिर्फ व्यक्ति विशेष व्यक्ति की मताभिव्यक्ति का माध्यम है।
2 प्रमाणपत्र का प्रयोग साक्ष्य के रूप में किया जा सकता है । रिपोर्ट का प्रयोग साक्ष्य के रूप में नहीं किया जाता हैं ।

 

3 प्रमाणपत्र में उल्लिखित तथ्यों को सत्यापित माना जाता है । रिपोर्ट सिर्फ सूचनाओं के संवहन का एक माध्यम है। न कि सत्यापन का।
4 प्रमाणित एवं पूर्ण सत्यापित तथ्यों के सन्दर्भ में ही प्रमाणपत्र बनाया जा सकता है।

 

. रिपोर्ट के सन्दर्भ में ऐसा नहीं होता।

 

 

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अंकेक्षक की रिपोर्ट का महत्व

(IMPORTANCE OF AUDITOR’S REPORT)

किसी व्यवसाय या कम्पनी के अंशधारियों के लिए ही नहीं, वरन् अन्य व्यक्तियों, जो व्यवसाय के कार्यों से सम्बन्ध रखते हैं, जैसे विनियोजक, लेनदार, कर्मचारी, सरकार तथा अन्य वित्त देने वाली संस्थाएं, आदि के लिए भी अंकेक्षक की रिपोर्ट का अत्यधिक महत्व है क्योंकि इन सभी के लिए कम्पनी या व्यवसाय को ऋण देने के लिए उसके अंकेक्षित चिट्ठे तथा लाभ-हानि खाते की आवश्यकता होती है। अंकेक्षक की रिपोर्ट का सर्वाधिक महत्व कम्पनी के खातों की पुस्तकों में अंकित राशियां तथा तथ्य की सत्यता प्रमाणित करने से होती है। परन्तु यह स्पष्ट है कि अंकेक्षक की रिपोर्ट में इससे अधिक कुछ नहीं होता है जितना कि पुस्तकों की जांच के आधार पर उसमें दिया रहता है। यह वास्तविकता है कि अंकेक्षक उसको उपलब्ध करायी गयी सूचना पर ही अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करता है। अतः उसका परीक्षण तथा निरीक्षण सीमित रहता है। इसके विपरीत यदि कुछ मदें शंकापूर्ण दिखलायी देती हैं तो वह अपनी रिपोर्ट देने के अतिरिक्त और कुछ नहीं करता है। इसके विपरीत औद्योगीकरण की प्रगति काफी हद तक सही लेखांकन सम्बन्धी सूचना तथा अंकेक्षण-व्यवसाय की शुद्धता पर निर्भर करती है। इसके अतिरिक्त अंकेक्षक की रिपोर्ट का मूल्य इस बात से इंगित होता है कि यह उन व्यक्तियों के द्वारा कितनी स्वागत योग्य रही है जिनके लिए यह तैयार की गयी थी।

अंकेक्षक अधिकारियों का एजेण्ट है। कम्पनी के अंशधारी कम्पनी के कार्यों के सम्बन्ध में किसी प्रकार की जानकारी नहीं रखते हैं। इसी कारण कम्पनी के अंकेक्षक हिसाब-किताब की सूक्ष्म जांच करने के पश्चात् अपनी रिपोर्ट देकर अंशधारियों को कम्पनी के कार्यों एवं आवश्यक तथ्यों से परिचित कराता है। इस रिपोर्ट से अंशधारी यह जान सकते हैं कि कम्पनी का कार्य सुचारु रूप से चल रहा है, अथवा नहीं।

अंकेक्षक की रिपोर्ट का विशेष मूल्य हिसाब-किताब की पुस्तकों के अंकों की शद्धता की जांच करना है। यह सत्य है कि अंकेक्षक के द्वारा खातों की जांच करने से कोई विशेष सूचना इन खातों में जोडी नहीं जाती है। सामान्यतया अंकेक्षक पुस्तकों की यथोचित सूक्ष्म जांच के द्वारा अपने आपको सन्तष्ट करने का प्रयत्न करता है और तदोपरान्त कम्पनी के अंशधारियों को अपनी रिपोर्ट देता है।

अंकेक्षक से यह आशा नहीं की जाती है कि वह कम्पनी की पुस्तकों की प्रत्येक बात की सच्चाई का पता लगाने में समर्थ होगा और छल-कपट एवं अशुद्धियों को मालूम करके अपराधियों को दण्डित करने की सिफारिश करेगा। उसे केवल यह कहने के लिए नियुक्त किया जाता है कि उसकी दृष्टि में कम्पनी की आर्थिक स्थिति अंशधारियों के सम्मुख सही प्रकट होती है, अथवा नहीं।

कम्पनी विधान ने कम्पनी के अंकेक्षक का कर्तव्य स्पष्ट कर दिया है और उसके कार्य में कम्पनी के सदस्य या अन्तर्नियम किसी प्रकार हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं।

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अंकेक्षक रिपोर्ट के प्राथमिक तत्व

(BASIC ELEMENTS OF AUDIT OR’S REPORT)

एक अंकेक्षक रिपोर्ट में सामान्यतः निम्नांकित तथ्यों को सम्मिलित किया जाता है :

(1) शीर्षक : ‘अंकेक्षित रिपोर्ट

(2) सम्बोधन : जिन्होंने नियुक्त किया है

(3) प्रारम्भिक पैराग्राफ :

(a) अंकेक्षित किए गए वित्तीय विवरण की पहचान वित्तीय वर्ष की अवधि

(b) प्रबन्ध एवं अंकेक्षक के दायित्वों का विवरण वित्तीय विवरण बनाने का दायित्व प्रबन्धको का है व उस वित्तीय विवरण पर राय देने का दायित्व अंकेक्षक का है।

(4) क्षेत्र पैराग्राफ (अंकेक्षण के स्वभाव का वर्णन) :

(a) भारत में सामान्यतः स्वीकृत अंकेक्षण मानकों का उल्लेख:

(b) अंकेक्षक द्वारा निष्पादित कार्य का विवरण:

(5) मत पैराग्राफ :

(a) वित्तीय विवरणों को बनाने में प्रयक्त वित्तीय ……….. मानक ढांचा,

(b) वित्तीय विवरणों के सन्दर्भ में अंकेक्षक का मत;

(6) रिपोर्ट की तिथि : वह तिथि जिस पर अंकेक्षक रिपोर्ट पर हस्ताक्षर करता है।

(7) हस्ताक्षर का स्थान : वह शहर जहां पर वह हस्ताक्षर करता है।

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अंकेक्षक के हस्ताक्षर :

धारा 145 के अंकेक्षक के व्यक्तिगत हस्ताक्षर साथ ही ICAI द्वारा प्रदत्त सदस्यता संख्या। अंकेक्षक रिपोर्ट में समरूपता वांछनीय होती है, इससे पाठकों को अंकेक्षक रिपोर्ट को समझने में आसानी होती है और किसी भी प्रकार की असामान्य अनियमितताओं का आसानी से अवलोकन कर सकते हैं। इस सन्दर्भ में एक निश्चित प्रारूप निर्धारित किया जा सकता है जो रिपोर्ट की एकरूपता बनाए रखने में सहायक होता है।

रिपोर्ट पर हस्ताक्षर धारा 145 के अनुसार वह व्यक्ति जो कम्पनी का अंकेक्षक नियुक्त किया गया है, अथवा यदि एक साझेदारी फर्म नियुक्त की गयी है, तो भारत में व्यवसाय करने वाला ऐसा साझेदार ही केवल अंकेक्षक की रिपोर्ट एवं किसी अन्य प्रलेख (document) पर हस्ताक्षर कर सकता है या उसे प्रमाणित कर सकता है. जिस पर उसे हस्ताक्षर करने चाहिए या जिसे विधान के अनुसार उसे प्रमाणित करना चाहिए।

रिपोर्ट की तैयारी से सम्बन्धित बातें

कम्पनी अंकेक्षक को अपनी रिपोर्ट तैयार करते समय निम्न बातों को ध्यान में रखना चाहिए :

(1) अंकेक्षक की रिपोर्ट स्पष्टतया उन्हीं बातों को सम्मिलित करेगी जो कम्पनी अधिनियम में इस सम्बन्ध में दी हुई हैं।

(2) रिपोर्ट कम्पनी के सदस्यों को जो वास्तव में कम्पनी के मालिक होते हैं, सम्बोधित की जायेगी। कभी भी यह रिपोर्ट संचालकों या प्रबन्धकों को सम्बोधित नहीं की जायेगी। अपित ‘नि में यह रिपोर्ट केन्द्रीय सरकार को सम्बोधित की जायेगी।

(3) रिपोर्ट पर तारीख अवश्य दी जानी चाहिए।

(4) वास्तव वो रिपोर्ट अंशधारियों के हित में लिखी जाती है। अतः यह आवश्यक है कि रिपोर्ट में वे सभी बातें आ जानी चाहिए, जो उनके हित में आवश्यक हैं।

(5) मर्यादित रिपोर्ट में मर्यादाओं का वर्णन किया जाता है। मर्यादा मर्यादाओं का उल्लेख पूर्णतया स्पष्ट होना चाहिए। किसी भी प्रकार का दोष अंकेक्षक के लिए अहितकर हो सकता है।

(6) रिपोर्ट पूर्णतया सरल होना चाहिए। भ्रामक रिपाट का दना स्वयं अंकेक्षक के सम्मान की दष्टि से ठीक नहीं होता।

(7) रिपोर्ट लिखते समय उन सभी कागजों, विवरण-पत्रों एवं टिप्पणियों का सहारा लेना चाहिए, जिनका प्रयोग उसने अंकेक्षण-कार्य करते समय किया था।

(8) अंकेक्षण के समाप्त होते ही रिपोर्ट तैयार करके कम्पनी को दे देना अधिक श्रेष्ठतर होता है। इससे अंकेक्षक को पर्याप्त सुविधा मिलती है।

(9) रिपोर्ट के अन्त में अंकेक्षक को अपने हस्ताक्षर करने चाहिए। साथ ही हस्ताक्षर के नीचे चार्टर्ड एकाउण्टैण्ट भी लिख देना चाहिए।

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अंकेक्षक रिपोर्ट एवं कम्पनी अधिनियम

(AUDITOR’S REPORT AND COMPANIES ACT)

भारतीय कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 143(2) के अन्तर्गत, एक अंकेक्षक कम्पनी के सदस्यों को निम्नांकित पर रिपोर्ट देने के लिए उत्तरदायी होता है :

(a) उसके द्वारा निरीक्षित खातों के लिए:

(b) प्रत्येक आर्थिक चिट्ठा एवं लाभ-हानि खाता जो कम्पनी के समक्ष साधारण समय में उसके कार्यकाल के दौरान प्रस्तुत किए जाते हैं;

(c) प्रत्येक प्रपत्र जो आर्थिक चिट्ठा एवं लाभ-हानि खाते का संलगनक हो।

अंकेक्षक रिपोर्ट में अंकेक्षक को कम्पनी के वित्तीय विवरणों के सन्दर्भ में अपना मत देना होता है कि वे उसको दी गयी सूचना एवं स्पष्टीकरण के आधार पर विधान द्वारा वांछित सूचना प्रदान करते हैं एवं वे खाते “सच्चे एवं उचित” (true and fair) हैं अथवा नहीं। इस सन्दर्भ में आर्थिक चिट्ठा कम्पनी के वित्तीय वर्ष के अन्त में वास्तविक स्थिति तथा लाभ-हानि खाता वित्तीय वर्ष में अर्जित लाभ/हानि का विवरण प्रदान करता है।

रिपोर्ट की मुख्य बातें

(CONTENTS OF THE REPORTS)

धारा 143(3) के अनुसार अंकेक्षक की रिपोर्ट में नीचे लिखी हुई पांच बातें होनी चाहिए :

(1) “उसकी सम्मति में उसको प्राप्त सूचना व स्पष्टीकरण के अनुसार कम्पनी के खाते कम्पनी अधिनियम, 2013 के द्वारा वांछित सूचना देते हैं, तथा

(क) कम्पनी का चिट्ठा उसके वित्तीय वर्ष (Financial year) के अन्त की आर्थिक स्थिति का, एवं

(ख) लाभ-हानि खाता, वित्तीय वर्ष के लाभ और हानि का ‘सच्चा और उचित’ (true and fair) चित्र

प्रस्तुत करता है, अथवा नहीं।”

इस सम्बन्ध में अंकेक्षक के दो कार्य उल्लेखनीय हैं। एक ओर उसे यह कहना होता है कि कम्पनी अधिनियम द्वारा वांछित विधि के अनुसार खाते तैयार किये गये हैं, अथवा नहीं और दूसरी ओर उसे यह स्पष्ट करना होता है कि खाते ‘सच्चे एवं उचित’ (true and fair) हैं, अथवा नहीं।

यह दोनों कार्य अत्यन्त महत्वपूर्ण है। अनुसूची तीन (Schedule III) के अनुसार वार्षिक खातों में जो सचनाएं आवश्यक हैं वे सभी सूचनाएं इन खातों में दी गयी हैं, यह देखना उसका प्रमुख कार्य है। जहां तक दसरे कार्य का सम्बन्ध है, उसे यह प्रमाणित करना होता है ये खाते कम्पनी की वस्तुस्थिति का सही चित्र त करते हैं। वास्तव में, अंकेक्षक ही केवल ऐसा जिम्मेदार व्यक्ति है जो इस प्रकार की रिपोर्ट दे सकता है।

2. उसने वे सभी सचनाएं और स्पष्टीकरण प्राप्त कर लिये हैं या नहीं जो उसकी जानकारी एवं विश्वास के लिए अंकेक्षण-कार्य के लिए आवश्यक हैं।”

विधान के अनुसार प्रत्येक अंकेक्षक को कम्पनी की सभा में पस्तकें. लेखे तथा नों किसी भी समय देखने का अधिकार है, चाहे वे सभी प्रपत्र या पुस्तके प्रधान कार्यालय में रखीं जाएं या अन्य कीसी स्थानपर। अंकेक्षक को यह भी अधिकार है कि वह कम्पनी के अधिकारियों एवं संचालकों से वे सभी सचनाएं एवं स्पष्टीकरण माग सकता है जो उसके कार्य के लिए आवश्यक हैं।

कौन सी सूचनाए एवं स्पष्टीकरण आवश्यक हैं, यह भिन्न-भिन्न परिस्थितियों व अंकेक्षक के विवेक पर

नर्भर करता है यदि ये उसे अधिकारियों से प्राप्त हुई हैं तो वह इन पर विश्वास कर सकता है। निर्भर करता है। यदि ये उसे उत्तरदायी अधिकारियों से प्राप्त हुई हैं तो वह रन सच्चा तथा उचित’ (true and fair) का स्पष्टीकरण पिछले अध्याय में पृष्ठ 251 पर दिया गया है।

(3) “उसकी राय में कम्पनी ने कम्पनी अधिनियम, 2013 के अनसार उचित पुस्तकें रखी हैं या नहीं और कम्पनी की जिन शाखाओं का उसने निरीक्षण नहीं किया है, उनसे उचित विवरण प्राप्त हो गये हैं, या नहीं।”

कम्पनी अधिनियम के अनुसार प्रत्येक कम्पनी को लेखा पुस्तकें रखनी होती हैं। इस सम्बन्ध में अंकेक्षक को अपनी राय प्रकट करनी चाहिए और यह स्पष्ट रूप से कहना चाहिए कि उसकी राय में कम्पनी ने हिसाब-किताब की उचित पुस्तकें रखी हैं, अथवा नहीं। यदि कछ शिकायत हो, तो उसे अपनी रिपोर्ट में उसका उल्लेख अवश्य कर देना चाहिए।

साथ ही यह बात स्पष्ट हो जाती है कि कम्पनी की शाखा के हिसाब-किताब का अंकेक्षण किसी योग्य अंकेक्षक के द्वारा होना चाहिए। यदि ऐसा नहीं किया गया है तो कम्पनी के अंकेक्षक को शाखा की पुस्तके तथा हिसाब-किताब देखने का पूर्ण अधिकार है। यदि वह चाहे तो आवश्यक लेखे अपने पास मंगा सकता है।

(4) “किसी शाखा के हिसाब-किताब सम्बन्धी रिपोर्ट जिसे धारा 143(8) के अनुसार कम्पनी अंकेक्षक के अतिरिक्त किसी अन्य अंकेक्षक के द्वारा अंकेक्षित किया गया है उनको प्राप्त हुई है, अथवा नहीं और अंकेक्षक ने अपनी रिपोर्ट तैयार करते समय किस प्रकार उनका प्रयोग किया है।”

धारा 143(8) के अनुसार किसी योग्य अंकेक्षक के द्वारा कम्पनी की शाखाओं के खातों का अंकेक्षण अनिवार्य कर दिया गया है। यदि शाखा के खाते कम्पनी के अंकेक्षक के अतिरिक्त किसी अन्य अंकेक्षक के द्वारा अंकेक्षित किये जाते हैं, तो शाखा के अंकेक्षक को कम्पनी के अंकेक्षक के पास अंकेक्षण रिपोर्ट भेजनी होती है। कम्पनी अंकेक्षक अपनी रिपोर्ट तैयार करते समय जिस प्रकार ठीक समझे, इस रिपोर्ट का प्रयोग कर सकता है।

सामान्यतया कम्पनी के अंकेक्षक को शाखा के अंकेक्षक की रिपोर्ट पर विश्वास करना चाहिए जब तक कि कोई विशेष अनियमितताएं या दोष शाखा के खातों में न हों।

यदि शाखा के खातों की जांच नहीं की गयी है, तो कम्पनी के अंकेक्षक को अपनी रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख कर देना चाहिए। ___

(5) “कम्पनी का चिट्ठा तथा लाभ-हानि खाता उसकी पुस्तकों, खातों एवं विवरणों के अनुरूप है, या नहीं।”

(6) उसको धारा 143(8) के अन्तर्गत शाखा कार्यालय के खातों के सम्बन्ध में कम्पनी अंकेक्षक के अतिरिक्त किसी अन्य अंकेक्षक द्वारा अंकेक्षित खातों की रिपोर्ट प्राप्त हो गयी है और रिपोर्ट तैयार करने में उसका उपयोग कर लिया गया है।

(7) उसकी राय में लाभ-हानि खाता व चिट्ठा लेखाकर्म मानकों (Accounting standards) के अनुरूप

(8) उसकी राय में अंकेक्षकों की मोटे टाइप या छोटे में दी गयी आख्याएं तथा प्रतिक्रिया कम्पनी के कार्यकलाप पर प्रतिकूल प्रभाव तो नहीं डाल रही हैं।

(9) उसकी राय में कोई भी संचालक, संचालक होने के लिए अयोग्य तो नहीं है। या को अपनी रिपोर्ट में यह स्पष्ट लिखना होता है कि कम्पनी का चिट्ठा तथा लाभ-हानि खाता एवं विवरणों के अनुसार है, अथवा नहीं। यह बात तब तक स्पष्ट नहीं लिखी जा सकती कि जब तक की अंकेशक उपर्युक्त सभी बातों का उत्तर सकारात्मक (affirmative) रूप में प्राप्त न कर ले। यदि उसे किसी बात का सन्देह है, तो उसे अपनी रिपोर्ट में इसका उल्लेख अवश्य कर देना चाहिए।

(10) अपनी रिपोर्ट में अंकेक्षक को एक विवरण उन बातों में अंकेक्षक को एक विवरण उन बातों के सम्बन्ध में भी देना होगा जो केन्द्रीय सरकार के द्वारा कम्पनी संशोधित अधिनियम, 2013 की धारा 14 शित अधिनियम, 2013 की धारा 143(4) के अन्तर्गत निर्धारित किया गया है।

किसी भी कम्पनी को साधारण अथवा विशेष आदेश के द्वारा निश्चित बातों इसके अनसार केन्द्रीय सरकार किसी भी कम्पनी को साधारण अशा का विवरण अंकेक्षण रिपोर्ट में सम्मिलित करने को कह सकती है।

BCom 3rd Year Auditors

साहित्य भवन पब्लिकेशन्स अंकेक्षक की रिपोर्ट के भेद

(KINDS OF AUDITOR’S REPORT)

(1) स्वच्छ या अमर्यादित रिपोर्ट, और

(2) मर्यादित रिपोर्ट।

(1) स्वच्छ या अमर्यादित रिपोर्ट (Clean or Unqualified Report) यदि अंकेक्षक को अपने कार्य के लिए कम्पनी से सभी आवश्यक सूचनाएं एवं स्पष्टीकरण प्राप्त होते हैं और पुस्तकों की जांच करने के पश्चात् उसे कोई भी त्रुटि या कपट नहीं मिलता है तथा वह यह देखता है कि चिट्ठा एवं लाभ-हानि खाते कम्पनी की सच्ची तथा उचित स्थिति प्रस्तुत करते हैं, तो वह एक स्वच्छ रिपोर्ट देता है।

इस प्रकार स्वच्छ रिपोर्ट वह रिपोर्ट है जिसमें अंकेक्षक द्वारा किसी अनियमितता, टि, सन्देह या शिकायत का उल्लेख नहीं किया जाता है। यह तभी सम्भव होता है, जबकि अंकेक्षक को कम्पनी के खाते शुद्ध एवं सही मिलते हैं।

स्वच्छ रिपोर्ट का नमूना

सदस्यगण,

XYZ कम्पनी लिमिटेड।

हमने XYZ कम्पनी लिमिटेड के 31 मार्च, 2014 को समाप्त होने वाले वर्ष के चिट्ठे तथा उसी तिथि पर समाप्त होने वाले लाभ-हानि खाते का अंकेक्षण किया है और हम रिपोर्ट करते हैं कि :

1 हमें वे सूचनाएं और स्पष्टीकरण प्राप्त हुए हैं, जिनकी हमको अंकेक्षण के लिए हमारी पूर्ण जानकारी और विश्वास के अनुसार आवश्यकता थी।

2. हमारी राय में, जैसा कि पुस्तकों की जांच से प्रकट होता है, कम्पनी ने विधान के अनुसार आवश्यक पुस्तकें रखी हैं।

3. कम्पनी का चिट्ठा और लाभ-हानि खाता जिनका उल्लेख हमने अपनी रिपोर्ट में किया है, लेखा-पुस्तकों के अनुरूप हैं।

4. हमारी राय में और हमें प्राप्त सूचनाओं और स्पष्टीकरणों के आधार पर उक्त खाते कम्पनी अधिनियम के अनुसार सूचना देते हैं :

(अ) कम्पनी का चिट्ठा कम्पनी के कार्यों का जैसा कि वे 31 मार्च, 2014 को थे, सच्चा व उचित चित्र प्रस्तुत करता है, तथा

(ब) लाभ-हानि खाता उस तिथि को समाप्त हुए वर्ष के लिए लाभ का सच्चा और उचित चित्र प्रस्तुत करता है।

वास्ते, AB & Co.

चार्टर्ड एकाउण्टैण्टस् 5 मई, 2014

ए. आर. घोष

(2) मर्यादित रिपोर्ट (Qualified Report) मर्यादित रिपोर्ट वह रिपोर्ट है जिसमें अंकेक्षक व्यापार पार्टनर पीकाओं एवं त्रुटियों का उल्लेख करता है। अंकेक्षक के असन्तोष के कारण वे मर्यादाएं (Qualification or Reservations) होती हैं जिनका उल्लेख मर्यादित रिपोर्ट में उसके द्वारा किया जाता है।

मर्यादित रिपोर्ट के कारण (Reasons for Qualified Report) एक अंकेक्षक के द्वारा रिपोर्ट के मर्यादित करने के निम्न कारण हो सकते हैं :

(1) अंकेक्षण करने में सामान्य तौर पर मान्य अंकेक्षण-सिद्धान्तों या मानकों (Standards) का अब

तक अनुकरण नहीं किया गया है।

(2) कम्पनी अधिनियमों की संस्तुतियों एवं लेखाकर्म के सिद्धान्तों के अनुसार वित्तीय विवरण तैयार नहीं किए गए हैं।

(iii) लेखाकर्म सूचना तथा मूल्यांकन के सिद्धान्तों (Principles of valuation) के प्रस्तुतीकरण म समरूपता (Consistency) का अभाव रहा है।

(iv) चिट्ठे तथा लाभ-हानि खाते में भौतिक (material) तथ्यों तथा अंकों के उचित प्रकटीकरण का अभाव होने पर अंकेक्षक स्वच्छ रिपोर्ट नहीं दे सकता है।

अंकेक्षक को अपनी रिपोर्ट मर्यादित करते समय निम्न बातों की ओर ध्यान देना आवश्यक है कि:

(1) किस मद के सम्बन्ध में मर्यादा की आवश्यकता है। यह बात अंकेक्षक खातों की जांच के पश्चात् ही तय करता है कि किस मद के सम्बन्ध में उसको कछ शंका है जिसका उल्लेख उसको अपना रिपोर्ट में करना है।

(2) क्या अंकेक्षक किसी ऐसी बात से असहमत है जिसको कम्पनी के द्वारा किया गया ह अथवा सूचना की अपर्याप्तता के कारण वह किसी मद के सम्बन्ध में अपनी उचित राय बनाने में असमर्थ

(3) क्या कछ मामले इतने महत्वपूर्ण हैं जिनका प्रभाव कम्पनी के कार्यों के सही एवं उचित प्रस्तुतीकरण पर पड़ता है अथवा ऐसे स्वभाव के हैं जिनका प्रभाव खातों में दिखाये गये किसी खास विषयपर पड़ता है?

(4) क्या मर्यादा-सम्बन्धी विषय कम्पनी अधिनियम, 1956 की किसी प्रमुख धारा या अन्य व्यवस्था के उल्लंघन से सम्बन्ध रखता है ?

इस प्रकार अंकेक्षक को अधिकांश मामलों के सम्बन्ध में अपनी मर्यादा प्रकट करने से पूर्व सोचना पड़ता है कि कहाँ तक अमुक मर्यादा का सम्बन्ध खातों के सही तथा उचित प्रस्तुतीकरण से है। यह बहुत कुछ उसके स्वयं के विवेक पर आधारित होगा कि यह किन मामलों को मर्यादाओं के लिए महत्वपूर्ण समझता है और किनको नहीं। यह उसको सदैव ध्यान रखना चाहिए कि सिद्धान्ततः उसको अपनी मर्यादा के सम्बन्ध में पूर्ण सूचना देनी चाहिए, ताकि अंशधारियों के लिए शंका या भ्रम की गुंजाइश न हो सके। रिपोर्टों के मर्यादित करने के सम्बन्ध में कुछ विशेष बातें ।

BCom 3rd Year Auditors

(1) अंकेक्षक की रिपोर्टों में यथासम्भव एकरूपता बनाये रखने के लिए यह आवश्यक है कि इन रिपोर्टो में मर्यादाओं का वर्णन इस प्रकार किया जाए कि उनमें कोई भ्रम या शंका के लिए स्थान न हो।

(2) यथासम्भव मर्यादाओं को किसी टिप्पणी के सन्दर्भ में नहीं दिया जाना चाहिए।

(3) मर्यादाओं को इस प्रकार रखना चाहिए जिससे कि यह स्पष्ट हो जाए कि इनका अंकेक्षक की रिपोर्ट के किस भाग से सम्बन्ध है।

(4) मर्यादाएं देते समय ‘उसके सिवाय’ अथवा ‘इसके आधार पर’ आदि शब्दों का प्रयोग साधारणतया किया जाता है। ‘उन पर टिप्पणियों के साथ पढ़िए’ (read with notes thereon) जैसी पक्तियों का समावेश नहीं करना चाहिए। वास्तव में ये स्वयं मर्यादाएं नहीं हैं।

(5) अंकेक्षक की मर्यादित रिपोर्ट स्पष्ट, सक्ष्म तथा गहन होनी चाहिए। उसकी रिपोर्ट में मर्यादाओं या शकाओं को बिल्कुल स्पष्ट रूप से रखा जाना चाहिए। साथ ही संक्षिप्त होने का यह भी आशय नहीं है कि ऐसा भी न हो कि पूरी बात समझ में नहीं आ पाये।

(6) यदि किन्हीं परिस्थितियों में अंकेक्षक की आपत्ति इस प्रकार की है कि जिसको अंशधारियों के सामने ना आवश्यक है, तो केवल यह कहना पर्याप्त नहीं होगा कि वैधानिक व्यवस्था का उल्लंघन किया गया है। (अकक्षक का यह कर्तव्य है कि वह यह बताए कि किस प्रकार तथा क्या उल्लंघन वास्तव में हुआ है।

(7) अपने द्वारा प्रस्तावित मर्यादाओं के सम्बन्ध में अंकेक्षक को अपनी रिपोर्ट में सामान्यतया संचालकों के स्पष्टीकरणों को सम्मिलित नहीं करना चाहिए।

(8) अंकेक्षक को अपनी रिपोर्ट में मर्यादाओं को देते समय यह कर्तव्य समझना चाहिए कि उनको स्वतन्त्र तथा स्पष्ट राय ही प्रकट करनी है। यह अंकेक्षक का स्वयं का निर्णय है कि वह मयादाए दना। चाहता है, या नहीं।

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मर्यादित रिपोर्ट का नमूना

सदस्यगण,

XYZ कम्पनी लिमिटेड।

हमने XYZ कम्पनी लिमिटेड के 31 मार्च 2014 को समाप्त होने वाले चिट्टे तथा उसी तिथि पर समाप्त होने वाले लाभ-हानि खाते का अंकेक्षण कर लिया है और हम रिपोर्ट करते हैं कि:

1 हमें वे सूचनाएं और स्पष्टीकरण प्राप्त हुए हैं जिनकी हमको अंकेक्षण के लिए हमारी पूर्ण जानकारी। और विश्वास के अनुसार आवश्यकता थी।

2. हमारी राय में जैसा कि पुस्तकों की जांच से प्रकट होता है, कम्पनी ने विधान के अनुसार आवश्यक पुस्तकें रखी हैं।

3. कम्पनी का चिट्ठा और लाभ-हानि खाता जिनका उल्लेख हमने अपनी रिपोर्ट में किया है। लेखा-पुस्तकों के अनुरूप है।

4. निम्नलिखित मर्यादाओं के साथ हमारी राय में और हमें प्राप्त सूचनाओं और स्पष्टीकरणों के आधार पर उक्त खाते अधिनियम के अनुसार सूचना देते हैं और सच्चा व उचित चित्र प्रस्तुत करते हैं :

(i) स्थायी सम्पत्तियों पर हास का आयोजन विशेष रूप से मशीनरी पर अपर्याप्त है। (

(ii) कम्पनी के स्टॉक चालू पुनर्स्थापन मूल्य पर मूल्यांकित किये गये हैं जो लागत मूल्य से 20,000 रुपये अधिक है।

(iii) कुछ ऋण अत्यधिक पुराने हैं जिनके सन्दर्भ में डूबत ऋण संचय के लिए आयोजन को ध्यान में रखा जाना चाहिए था जो नहीं किया गया है।

वास्ते AB & Co.

चार्टर्ड एकाउण्टैण्ट्स

ए. आर. घोष 5 मई, 2014

BCom 3rd Year Auditors

पार्टनर एक आदर्श रिपोर्ट के लक्षण

(SALIENT FEATURES OF AN IDEAL REPORT)

एक अच्छी रिपोर्ट तैयार करने के लिए सम्बन्धित विषय-वस्तु के सन्दर्भ में सम्पूर्ण ज्ञान होना अत्यन्त आवश्यक होता है। इसी प्रकार एक अंकेक्षण रिपोर्ट के लिए लेखांकन एवं अंकेक्षण के सिद्धान्तों एवं पद्धतियों का ज्ञान होना अत्यन्त आवश्यक है। इसके अतिरिक्त एक आदर्श रिपोर्ट में निम्नांकित तत्वों का होना भी वांछनीय रहता है :

(a) संक्षिप्तता कम्पनी के अंकेक्षक को अंकेक्षण रिपोर्ट तैयार करते समय उसमें सभी वांछनीय सूचनाओं को समामेलित करना चाहिए। लेकिन रिपोर्ट में अनावश्यक सूचनाओं को सम्मिलित नहीं करना चाहिए। एक संक्षिप्त रिपोर्ट कम्पनी के सदस्यों को कम्पनी के वित्तीय विवरणों की सत्यता प्रमाणित करने में समर्थ होती है। यद्यपि संक्षिप्तता से आशय महत्वपूर्ण तथ्यों को सम्मिलित न करने से नहीं है।

(b) निष्पक्षता—एक अंकेक्षक का यह कर्तव्य है कि वह अपनी रिपोर्ट निष्पक्ष प्रकार से प्रस्तुत करे। भक अंशधारियों के एजेन्ट की तरह कार्य करता है। उसको अपनी रिपोर्ट पर्णत: निष्पक्ष रूप में ही बनाना चाहिए अंके शक को अपनी रिपोर्ट में निडरता से तथ्यों का उल्लेख करना चाहिए। इससे कम्पनी के अंशधारिया। का विश्वास बना रहता है। कम्पनी के वित्तीय विवरणों में यदि कोई भी अनियमितता हो तो अंकेक्षक द्वारा उन्हें कम्पनी के सदस्यों के संज्ञान में लाया जाना वांछित है।

(c) सरलाता अंकेक्षण रिपोर्ट में कई जटिल तथ्यों का उल्लेख होता है जो सामान्यतः कम्पनी के सदस्यो के लिए काफी कठिन होते है, अतः एक अकक्षकका यह दायत्व है कि वह उन जटिल तथ्यों को इस प्रकार प्रस्तुत करें की एक सामान्य व्यक्ति भी उन्हें भली-भांति समझ सके। इसके लिए अंकेक्षक को अपने निष्कर्षा करना चाहिए एवं लम्बे वाक्यों तथा कठिन शब्दों के प्रयोग से बचना चाहिए क्योंकि ।

(c) सरलताअंकेक्षण रिपोर्ट में कई जटिल तथा प्रस्तुत करे कि एक सामान्य व्यक्ति भी उन्हें भी को सरल शब्दों में व्यक्त करना चाहिए एवं लम्बे वालों ऐसा करने से अक्सर पाठक की रुचि कम हो जाती है।

 (d) स्पष्टता—एक अंकेक्षक को अपनी रिपोर्ट में स्पष्टता का तत्व भी बनाए रखना चाहिए। क्योंकि अंकेक्षण रिपोर्ट में उल्लिखित सूचनाएं सभी सदस्यों को समझ में आना अनिवार्य है। इसलिए अंकेक्षक को कम्पनी के सदस्यों के मार्गदर्शक, मित्र एवं दार्शनिक की तरह व्यवहार करना चाहिए ताकि कम जानकारी वाले सदस्य भी रिपोर्ट में उल्लिखित सूचनाओं को समझ सकें। अंकेक्षक को कम्पनी के सदस्यों को यह विश्वास दिलाना होता है कि कम्पनी के सभी वित्तीय विवरणों का उसके द्वारा निरीक्षण किया जा चुका है। तथा उनमें कोई भी अनियमितता नहीं पाई गई है। साथ ही उसे सदस्यों का ध्यान उन महत्वपूर्ण तथ्यों की तरफ भी आकर्षित करना चाहिए जिनका उल्लेख कम्पनी ने अपने वित्तीय विवरणों में नहीं किया है। अंकेक्षक को इसके लिए स्पष्ट भाषा का प्रयोग करना चाहिए।

(e) उद्देश्य की गम्भीरता-एक अंकेक्षक का प्राथमिक दायित्व कम्पनी के वित्तीय विवरणों के सन्दर्भ में अपना मत देना होता है कि कम्पनी ने जो समस्त सूचनाएं वित्तीय विवरणों में दी हैं, वे सत्यापित तथा अधिनियम द्वारा वांछित हैं। ये सूचनाएं लेखांकन मानकों के अनुरूप भी होनी चाहिए। इस सन्दर्भ में अंकेक्षक को अपना मत उसको उपलब्ध कराई गई सूचनाओं एवं स्पष्टीकरण के आधार पर, पूरी गम्भीरता के साथ देना चाहिए।

(1) संशोधित क्रम—एक अच्छी रिपोर्ट वही होती है जिसमें समस्त सूचनाएं एक उचित क्रम में पिरोई जाती हैं। प्रत्येक शब्द, वाक्य एवं पैराग्राफ एक-दूसरे से परस्पर एक उचित क्रम में जुड़े होने चाहिए। ऐसा करने के लिए रिपोर्ट की विषय-वस्तु का बार-बार पुनरावलोकन किया जाना चाहिए जिससे वाक्यों एवं कथनों का उचित पारस्परिक संयोजन प्राप्त किया जा सके।

(g) सत्यता—अंकेक्षण रिपोर्ट में उल्लिखित सभी तथ्य पूर्णतः सत्य होने चाहिए। अंकेक्षक को रिपोर्ट में किसी भी प्रकार के असत्यापित एवं भ्रामक तथ्यों का समावेश नहीं करना चाहिए। समंकों के एकत्रीकरण, प्रदर्शन एवं निर्वचन में अंकेक्षक को पूर्ण ध्यान रखना चाहिए कि कहीं भी किसी प्रकार त्रुटि न हो।

BCom 3rd Year Auditors

अंकेक्षक रिपोर्ट के प्रारूप (कुछ उदाहरण)

(A) स्वच्छ रिपोर्ट

(CLEAR REPORT)

(i) उस कम्पनी के सम्बन्ध में जिसकी कोई शाखा नहीं है : सदस्यगण ‘XYZ सूती वस्त्र उद्योग कम्पनी लिमिटेड।

हमने ‘XYZ’ सूती वस्त्र उद्योग

कम्पनी लिमिटेड के 31 मार्च, 2014 के संलग्न चिट्ठे और उसी तिथि पर समाप्त होने वाले लाभ-हानि खाते का अंकेक्षण किया है और हम केन्द्रीय सरकार द्वारा कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 143(2) के अन्तर्गत वांछित रिपोर्ट करते हैं कि :

1 हमें वे सभी सूचनाएं और स्पष्टीकरण प्राप्त हुए हैं, जिनकी हमको अंकेक्षण के लिए जानकारी और विश्वास के अनुसार आवश्यकता थी।

2. हमारी राय में, जैसा कि पुस्तकों की जांच से प्रकट होता है, कम्पनी ने विधान के अनसार आवश्यक पुस्तकें रखी हैं।

3. हमारी राय में कम्पनी का चिट्ठा और लाभ-हानि खाता जिनका उल्लेख हमने अपनी रिपोर्ट में किया है, लेखा पुस्तकों के तथा धारा 143(10) में वर्णित लेखाविधि मानकों के अनुरूप हैं।

4. कम्पनी ने स्थायी सम्पत्तियों का पूर्ण विवरण रखा है, प्रबन्ध ने इनका सत्यापन स्वयं किया है और यह सत्यापन सन्तोषजनक है।

5. इस लेखा वर्ष में स्थायी सम्पत्ति का पुनर्मूल्यांकन नहीं हुआ है।

6. पक्के माल, स्टोर्स, स्पेयर पार्ट्स तथा कच्चे माल का सत्यापन प्रबन्ध ने स्वयं किया है। हम स्टॉक के मूल्यांकन से सन्तुष्ट हैं। यह मूल्यांकन पिछले वर्षों में अपनायी गयी विधियों के अनुसार ही किया गया है।

7. कम्पनी अधिनियम की धारा 189 तथा 185 के अन्तर्गत रखे गए रजिस्टर में वर्णित कम्पनियों, फर्मों तथा अन्य पक्षों से रक्षित या अरक्षित ऋण नहीं लिया है।

8. कम्पनी के जिन पक्षों (parties) को ऋण या अग्रिम दिए हैं वे मूल राशि तथा ब्याज का नियमित रूप से भुगतान कर रहे हैं।

9. कम्पनी ने धारा 189 के अन्तर्गत रखे गए रजिस्टर में अंकित कम्पनियों तथा/अथवा कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 185 के अन्तर्गत एक ही प्रबन्ध की कम्पनियों को कोई ऋण नहीं दिए। है।

10. स्टोर्स, कच्चे माल तथा प्लाण्ट व मशीनरी, साज-सज्जा तथा अन्य सम्पत्तियों के क्रय के लिए पर्याप्त आन्तरिक नियन्त्रण की पद्धति है।

11. कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 185 के अन्तर्गत रखे गए रजिस्टर में लिखे गए प्रसंविदा अथवा व्यवस्था के अधीन किसी को 50,000 ₹ या अधिक राशि के वर्ष में किसी व्यक्ति को माल के क्रय तथा सामग्री व माल, सामग्री व सेवाओं की बिक्री के लेन-देन नहीं हुए हैं।

12. 10,000 रुपए से अधिक के मूल्यांकन के स्टोर्स, कच्चा माल या कम्पोनेण्ट्स ऐसी सहायक फर्म या कम्पनियों से क्रय नहीं किए गए हैं जिनमें कम्पनी-संचालक हित रखते हैं।

13. क्षतिग्रस्त या कार्य के लिए अयोग्य स्टोर्स तथा कच्चा माल निकाले गए हैं और हानि के लिए खातों में आयोजन किया गया है। कम्पनी ने जनता से निक्षेप प्राप्त नहीं किए हैं।

14. देय होने की तिथि से 6 माह से अधिक की अवधि के लिए आयकर, बिक्रीकर, आयात व निर्यात कर तथा उत्पाद कर के लिए 31.3.2014 की अदत्त कोई विवादरहित राशि नहीं है।

15. कम्पनी सह-उत्पादन (bye-products) और अवशिष्ट सामान (scraps) की बिक्री के लिए उचित लेखे रखती है।

16. इस कम्पनी की प्रदत्त पूंजी आरम्भ में 25 लाख से अधिक थी और इस कम्पनी में आन्तरिक सअंकेक्षण होता है।

17. कम्पनी अधिनियम की धारा 128 के अन्तर्गत केन्द्रीय सरकार द्वारा निर्धारित लागत लेखे कम्पनी रखती है।

18. कम्पनी ने उचित अधिकारी के पास भविष्य निधि (Provident Fund) की राशि नियमित रूप से जमा की है।

19. हमारी राय में और हमें प्राप्त सूचनाओं एवं स्पष्टीकरणों के आधार पर उक्त खाते कम्पनी अधिनियम के अनुसार सूचना देते हैं और चिट्ठा कम्पनी के कार्यों का, जैसे वे 31 मार्च, 2014 को थे. सच्चा और उचित चित्र प्रस्तुत करता है तथा लाभ-हानि खाता उस तिथि को समाप्त हुए वर्ष के लिए लाभ का सच्चा और उचित चित्र प्रस्तुत करता है। मुम्बई 31 मई, 2014 (ii) उस कम्पनी के सम्बन्ध में जिसकी शाखा हो :

चार्टर्ड एकाउण्टेण्ट सदस्यगण, ‘XYZ’ सूती वस्त्र उद्योग कं. लिमिटेड।

1 हमने .XYZ सूती वस्त्र उद्योग कं. लिमिटेड के 31 मार्च, 2014 के संलग्न चिढ़े और उसी तिथि पर समाप्त होने वाले लाभ-हानि खाते का अकेक्षण किया और हम केन्द्रीय सरकार द्वारा कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 143(2) के अन्तर्गत, वांछित रिपोर्ट करते हैं कि :

(1) कम्पनी को स्थायी सम्पत्तियों के सम्बन्ध में पूर्ण विवरण के साथ उचित लेखे रखे हैं। इन- स्थायी को वर्ष में प्रबन्ध ने स्वयं सत्यापित किया है और सत्यापन का नियमित कार्यक्रम है।

जो हमारी राय में कम्पनी के आकार व सम्पत्तियों के स्वभाव के अनसार उचित है तथा इस सत्यापन में कोई त्रुटि नहीं दिखलाई दी है।

(2) वर्ष में स्थायी सम्पत्तियों का पुनर्मूल्यांकन नहीं किया गया है।

(iii) पक्के माल, स्टार्स, स्पेयर पार्टस और कच्चे माल का उचित अवधियों पर प्रबन्धको ने स्वय सत्यापन किया आर इसका उचित लेखा लेखा-पस्तकों में किया गया है। हम स्टॉक के मूल्यांकन स सन्तुष्ट हैं तथा यह मूल्यांकन सामान्यतः स्वीकत लेखाकर्म के सिद्धान्तों तथा पिछले वर्षों में अपनायी गई विधियों के अनुसार किया गया है।

(iv) कम्पनी ने कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 189 तथा 185 के अन्तर्गत रखे गए रजिस्टर में अंकित कम्पनियों, फर्मों अथवा अन्य पक्षों से रक्षित व अरक्षित ऋण लिए हैं तथा इन ऋणों पर ब्याज की दर तथा शर्ते कम्पनी के हितों के विरुद्ध नहीं है।

(v) जिन पक्षों को कम्पनी ने ऋण या अग्रिम दिए हैं वे मूलराशि और ब्याज का नियमित रूप से

भुगतान कर रहे हैं।

(vi) स्टोसे, कच्चा माल, प्लाण्ट व मशीनरी साज-सज्जा और अन्य सम्पत्तियों के लिए कम्पनी के आकार व व्यवसाय के स्वभाव के अनुरूप आन्तरिक नियन्त्रण की विधि पर्याप्त है।

(Vil) कम्पनी ने वर्ष में 10.000 ₹ मल्य से अधिक के प्रत्येक प्रकार के सहायक कम्पनियो, फमों या कम्पनियो अथवा अन्य पक्षों से क्रय किए हैं जिनमें संचालक हित रखते हैं तथा ऐसी मदों के लिए भुगतान की गई कीमत उचित है।

(viii) क्षतिग्रस्त अथवा सेवा के अयोग्य स्टोर्स और कच्चा माल निर्धारित करने की नियमित प्रक्रिया है और खातों में हानि के लिए प्रावधान कर दिया गया है।

(ix) कम्पनी बिक्री योग्य उत्पोत्पाद (bye products) तथा स्क्रैप (scraps) की बिक्री तथा सुपुर्दगी (disposal) के लिए उचित लेखे रखती है।

(x) वित्तीय वर्ष के प्रारम्भ में कम्पनी की प्रदत्त पंजी 25 लाख से अधिक थी और कम्पनी के द्वारा उसके आकार व व्यवसाय के स्वभाव के अनुरूप आन्तरिक निरीक्षण की पद्धति अपनायी गई

(xi) कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 128 के अन्तर्गत केन्द्रीय सरकार के द्वारा निर्धारित लागत लेखे व विवरण रखती है।

(xii) कम्पनी नियमित रूप से सक्षम अधिकारी के पास भविष्य निधि की राशि जमा करती है तथा 31 मार्च, 2014 को भविष्य निधि की कोई अवशिष्ट राशि नहीं थी।

BCom 3rd Year Auditors

उपर्युक्त पैराग्राफ 1 में वर्णित आख्या के साथ :

2. हमें वे सभी सूचनाएं तथा स्पष्टीकरण प्राप्त हो गए हैं जो हमको अंकेक्षण के लिए हमारी जानकारी व विश्वास के अनुरूप आवश्यक थे।

3. हमारी राय में, जैसा कि पुस्तकों की जांच से प्रतीत होता है, कम्पनी ने विधान के अनुसार, आवश्यक पस्तकें रखी हैं और शाखाओं से जिनका निरीक्षण हमने नहीं किया है, हमारे अंकेक्षण कार्य के लिए पर्याप्त विवरण प्राप्त हो गए हैं।

4. धारा 143 के अनुसार, शाखाओं के खाते अंकेक्षक के द्वारा अंकेक्षित हो गए हैं और उनसे प्राप्त रिपोर्ट को हमने आवश्यकतानुसार ध्यान में रखकर अपनी रिपोर्ट तैयार की है।

5. हमारी राय में कम्पनी का चिट्ठा और लाभ-हानि खाता जिनका उल्लेख हमने अपनी रिपोर्ट में किया लेखा पस्तकों के तथा धारा 143 का उपधारा (10) में वर्णित लेखाविधि मानकों के अनरूप हैं।

6. हमारी राय में तथा हमें प्राप्त सूचनाओं एवं स्पष्टीकरणों के आधार पर उक्त खाते कम्पनी अधिनियम, अनरूप सूचना देते है और (अ) चिट्ठा कम्पनी के कार्यों का जैसे कि वे 31 मार्च 2014 को थे. सच्चा व उचित व उचित चित्र प्रस्तुत करता ह तथा

(ब) लाभ-हानि खाता उस तिथि को समाप्त हए वर्ष के लिए लाभ का सच्चा व उचित चित्र प्रस्तुत करता है।

(B) मर्यादित रिपोर्ट

(QUALIFIED REPORT)

सदस्यगण, ‘XYZ’ मिल कम्पनी लिमिटेड

1 हमने ‘XYZ’ मिल कम्पनी लिमिटेड के 31 मार्च, 2014 के संलग्न चिट्ठे और उसी तिथि पर समाहोने वाले लाभ-हानि खाते का अंकेक्षण किया है और हम केन्द्रीय सरकार द्वारा कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 143(2) के अन्तर्गत वांछित रिपोर्ट करते हैं कि :

(i) कम्पनी ने स्थायी सम्पत्तियों के सम्बन्ध में पूर्ण विवरण के साथ उचित लेखे रखे हैं। इन स्थायी सम्पत्तियों को वर्ष में प्रबन्ध ने स्वयं सत्यापित किया है।

(ii) वर्ष में स्थायी सम्पत्तियों का पुनर्मूल्यांकन नहीं किया गया है।

(iii) पक्के माल, स्टोर्स, स्पेयर पार्ट्स और कच्चे माल का उचित अवधियों पर प्रबन्धकों ने स्वयं सत्यापन किया है और इसका उचित लेखा लेखा-पुस्तकों में किया गया है। हम स्टॉक के मूल्यांकन से सन्तुष्ट हैं तथा यह मूल्यांकन सामान्यतः स्वीकृत लेखाकर्म के सिद्धान्तों तथा पिछले वर्षों में अपनायी गई विधियों के अनुसार किया गया है।

(iv) कम्पनी ने कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 189 तथा 185 के अन्तर्गत रखे गए रजिस्टर में अंकित कम्पनियों, फर्मों अथवा अन्य पक्षों से रक्षित व अरक्षित ऋण लिए हैं तथा इन ऋणों पर ब्याज की दर तथा शर्ते कम्पनी के हितों के विरुद्ध नहीं हैं।

(v) जिन पक्षों को कम्पनी ने ऋण या अग्रिम दिए हैं वे मूलराशि और ब्याज का नियमित रूप से भुगतान कर रहे हैं।

(vi) स्टोर्स, कच्चा माल, प्लाण्ट व मशीनरी, साज-सज्जा और अन्य सम्पत्तियों के लिए कम्पनी के आकार व व्यवसाय के स्वभाव के अनुरूप आन्तरिक नियन्त्रण की विधि पर्याप्त है।

(vii) कम्पनी ने वर्ष में 10,000 ₹ मूल्य से अधिक के प्रत्येक प्रकार के सहायक कम्पनियों, फर्मों या कम्पनियों अथवा अन्य पक्षों से क्रय किए हैं जिनमें संचालक हित रखते हैं तथा ऐसी मदों के लिए भुगतान की गई कीमत उचित है।

(viii) क्षतिग्रस्त अथवा सेवा के अयोग्य स्टोर्स और कच्चा माल निर्धारित करने की नियमित प्रक्रिया है और खातों में हानि के लिए प्रावधान कर दिया गया है।

(ix) हमारी राय में रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया से निर्गमित निर्देशों तथा धारा 58A के प्रावधानों के अनुरूप जनता से निक्षेप (Deposits) स्वीकार किए हैं।

(x) कम्पनी बिक्री योग्य उत्पोत्पाद (by-products) तथा स्क्रैप (scraps) की बिक्री तथा सुपुर्दगी -(disposal) के लिए उचित लेखे रखती है।

(xi) वित्तीय वर्ष के प्रारम्भ में कम्पनी की प्रदत्त पूंजी 25 लाख से अधिक थी और कम्पनी के द्वारा उसके आकार व व्यवसाय के स्वभाव के अनुरूप आन्तरिक निरीक्षण की पद्धति अपनायी गई है।

(xii) कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 128 के अन्तर्गत केन्द्रीय सरकार के द्वारा निर्धारित लागत लेखे व विवरण रखती है। (ii) कम्पनी नियमित रूप से सक्षम अधिकारी के पास भविष्य निधि की राशि जमा करती है तथा 31 मार्च, 2013 को भविष्य निधि की कोई अवशिष्ट राशि नहीं थी।

पर्युक्त पैराग्राफ 1 में वर्णित आख्या के साथ :

1. हमें वे सभी सूचनाएं तथा स्पष्टीकरण प्राप्त हो गए हैं जो हमको अंकेक्षण के लिए हमारी जानकारी व विश्वास के अनुरूप आवश्यक थे।

2. हमारी राय में, जैसा कि पुस्तकों की जांच से प्रतीत होता है, कम्पनी ने विधान के अनसार आवश्यक पुस्तकें रखी हैं।

3. हमारी राय में कम्पनी का चिट्ठा और लाभ-हानि खाता जिनका उल्लेख हमने अपनी रिपोर्ट में किया है. लेखा पुस्तकों के तथा धारा 143 की उपधारा (10) में वर्णित लेखाविधि मानकों के अनुरुप हैं ।

4. निम्नलिखित मर्यादाओं के साथ हमारी राय में तथा हमें प्राप्त सूचनाओं एवं स्पष्टीकरणों के आधार माने कम्पनी अधिनियम, 1956 के अनुरूप सूचना देते हैं और (अ) चिट्ठा कम्पनी के कार्यों को। कि वे 31 मार्च, 2014 को थे, सच्चा व उचित चित्र प्रस्तुत करता है तथा (ब) लाभ-हानि रिधि को समाप्त हुए वर्ष के लिए लाभ का सच्चा व उचित चित्र प्रस्तुत करता है :

(1)  स्थायी सम्पत्ति के लिए उचित हास की व्यवस्था नहीं की गई है। ।

(ii) कम्पनी के स्टॉक का मूल्यांकन बाजार मूल्य पर किया गया है जबकि वह लागत-मूल्यस

(iii) 2 लाख र की राशि कम्पनी के संचालकों को दे दी गई है. जो कम्पनी अधिनियम, 2013 के प्रावधानों के विरुद्ध है

BCom 3rd Year Auditors

प्रश्न

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1 अंकेक्षक की रिपोर्ट के प्रारूप का विवरण दीजिए।

Give a detail of format of Auditor’s Report.

2. एक अच्छी अंकेक्षक रिपोर्ट की क्या आवश्यकता है?

What is the need of good Auditor’s Report? .

3. अंकेक्षण-रिपोर्ट के विभिन्न प्रकार कौन-कौन से हैं ?

What are the various types of Auditor’s Report?

4. एक मर्यादित रिपोर्ट की चार मदों का वर्णन कीजिए।

Explain any four items of a qualified report.

5. अंकेक्षक-रिपोर्ट क्या है?

What is Auditor’s Report?

6. अंकेक्षण रिपोर्ट और अंकेक्षक प्रमाण-पत्र क्या है? इनके महत्व की विवेचना कीजिए। एक स्पष्ट (स्वच्छ) अंकेक्षण रिपोर्ट का नमूना दीजिए जिसे आप एक बैंकिंग कम्पनी को देना चाहेंगे जिसके खातों का आपने हाल ही में निरीक्षण किया है।

What is Auditor’s report and Auditor’s Certificate? Discuss its significance. Give a proforma of a clean audit report which you would like to give to a banking company the accounts of which you have recently audited.

7. किन परिस्थितियों में आप एक अंकेक्षक के रूप में मर्यादित रिपोर्ट देना आवश्यक समझेंगे? एक मर्यादित रिपोर्ट का नमूना दीजिए जिसमें कम-से-कम तीन ऐसी बातों का उल्लेख हो जिनके कारण आप ऐसी रिपोर्ट देने के लिए बाध्य हुए हों ?

In what circumstances would you consider necessary to issue a qualified report? Give a specimen of qualified report stating at least three reasons due to which you were bound to issue such a report.

8. अंकेक्षण के सम्बन्ध में एक ‘स्वच्छ’ और ‘मर्यादित’ रिपोर्ट में भेद कीजिए। एक काल्पनिक ‘स्वच्छ’ रिपोर्ट का नमूना दीजिए।

Differentiate between ‘clean’ and qualified report’ in reference to audit. Give an imaginary clean report.

9. मर्यादित प्रतिवेदन क्या है? यह किन परिस्थितियों में आवश्यक होता है?

What is qualified report? In what circumstances is it necessary?

10. या है? यह कितने प्रकार का होता है ? इसमें क्या-क्या बातें लिखी जाती हैं ?

What is Auditor’s Report? What are its various types? What are its conte

11. अंकेक्षक प्रतिवेदन क्या है? इसका क्या महत्व है?

What is a Auditor’s report? Explain its importance.

12. यह अंकेक्षक प्रतिवेदन से किस प्रकार भिन्न है? यह किन परिस्थितियों में आवश्यक अंकेक्षक प्रमाण-पत्र क्या है? यह अंकेक्षक प्रतिवेदन से किस प्रकार होता है?

What is a Auditor’s certificate? How does it differ from auditor Report in What circumstances it is Necessary  .

BCom 3rd Year Auditors

लघु उत्तरीय

1 अंकेक्षक की रिपोर्ट के प्रारूप का विवरण दीजिए।

2. एक अच्छी अंकेक्षक रिपोर्ट की क्या आवश्यकता है?

3. अंकेक्षण-रिपोर्ट के विभिन्न प्रकार कौन-कौन से हैं?

4. एक मर्यादित रिपोर्ट की चार मदों का वर्णन दीजिए।

5. अंकेक्षक-रिपोर्ट क्या है?

6. अंकेक्षण रिपोर्ट और अंकेक्षक प्रमाण-पत्र क्या है? इनके महत्व की विवेचना कीजिए। एक स्पष्ट (स्वच्छ अंकेक्षण रिपोर्ट का नमूना दीजिए जिसे आप एक बैंकिंग कम्पनी को देना चाहेंगे जिसके खातों का आपने हाल ही में निरीक्षण किया है।

7. आपने एक लिमिटेड कम्पनी के खातों का अभी अंकेक्षण किया है। अपनी रिपोर्ट लिखिए।

8. किन परिस्थितियों में आप एक अंकेक्षक के रूप में मर्यादित रिपोर्ट देना आवश्यक समझेंगे? एक मर्यादित रिपोर्ट का नमूना दीजिए जिसमें कम-से-कम तीन ऐसी बातों का उल्लेख हो जिनके कारण आप ऐसी रिपोर्ट देने के लिए बाध्य हुए हों?

9. आपने एक लिमिटेड कम्पनी का 1987 का अंकेक्षण समाप्त किया है और आपने उसे अमर्यादित रिपोर्ट देना तय किया है। अपनी रिपोर्ट लिखिए।

10. अंकेक्षण के सम्बन्ध में एक ‘स्वच्छ’ और ‘मर्यादित’ रिपोर्ट में भेद कीजिए। एक काल्पनिक ‘स्वच्छ’ रिपोर्ट का नमूना दीजिए।

BCom 3rd Year Auditors

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

1 अच्छी रिपोर्ट की क्या परिभाषा है ?

2. मर्यादित रिपोर्ट क्या है?

3. अंकेक्षक प्रमाणपत्र क्या होता है?

4. स्वच्छ रिपोर्ट क्या होती है?

5. रिपोर्ट पर हस्ताक्षर कौन करता है ?

BCom 3rd Year Auditors

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1 निम्न में से किस धारा के अन्तर्गत कम्पनी अंकेक्षक को रिपोर्ट देनी होती है?

(अ) धारा 143

(ब) धारा 144

(स)धारा 145

(द) धारा 146

2. निम्न धारा के अन्तर्गत रिपोर्ट पर अंकेक्षक को हस्ताक्षर करना अनिवार्य है : (अ) धारा 145

(ब) धारा 146

(स)धारा 143

(द) इनमें से कोई नहीं

3. जिस रिपोर्ट में शंकाएं (qualifications) प्रगट की जाती हैं, वह कहलाती है :

(अ) मर्यादित

(ब) अमर्यादित

(स) स्वच्छ

(द) इनमें से कोई नहीं

4. कम्पनी की शाखाओं के खातों का अंकेक्षण निम्न धारा के अन्तर्गत अनिवार्य है :

(अ) धारा 143

(ब) धारा 139

(स) धारा 145

(द) इनमें से कोई नहीं

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chetansati

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