BCom 3rd Year Auditing Vouching Study Material notes in Hindi

Table of Contents

BCom 3rd Year Auditing Vouching Study Material notes in Hindi: Meaning of Vouching  Significance of Vouching Routine Checking and Couching  Objective of Vouching Of Cash book Vouching of receipt side of cash book Vouching of Payment to Creditors Vouching of Salary, Travelling Expenses Vouching of Purchases returns book Vouching of Journal Proper Sales or Debtors Ledger Mechanized Accounting and Auditor Debtors control account.

Vouching Study Material notes
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BCom 3rd Year Audit Types Classification Study Material Notes in hindi

प्रमाणन

[VOUCHING]

नकद बिक्री देनदारों से प्राप्त रकम नकद क्रय लेनदारों को भुगतान मजदूरी

का भुगतान भूमि और भवन की खरीद

अंकेक्षक के लिए हिसाब-किताब की पुस्तकों के लेखों को प्रमाणित करना सबसे अधिक महत्वपूर्ण कार्य होता है। एक व्यापारिक संस्था का लेखापाल प्रारम्भिक लेखों के स्तकों में प्रविष्टियां करता है। प्रश्न यह है कि प्रविष्टियां किस आधार पर की गयी हैं और इनके लिए लेखापाल के पास संस्था से सम्बन्धित क्या प्रमाण-पत्र है।

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हम जानते हैं कि लेखापाल ऐसी कोई भी प्रविष्टि नहीं करता जिसके लिए सही तथा पर्याप्त प्रमाण नहीं होता। यदि करता है, तो यह खातों की अशुद्धि मानी जायेगी अथवा ऐसा कार्य धोखा तथा छल-कपट का उदाहरण होगा। अतः संस्था की लेखा पुस्तकों में कोई भी ऐसी प्रविष्टि न हो जिसके लिए प्रमाणक न हो और ऐसा कोई प्रमाणक न हो जिसकी प्रविष्टि न की गयी हो (There should be no entry without a voucher and no voucher without its entry)| इस प्रकार प्रमाणन प्रमाणको की सहायता से लेखा-पस्तको में की गयी प्रविष्टियों की जांच है।

प्रमाणन से आशय

(MEANING OF VOUCHING)

प्रमाणन से तात्पर्य खातों में की गई प्रविष्टियों की जांच है जिसके द्वारा अंकेक्षक इस बात की पुष्टि करता है कि समस्त लेखे, तथ्यों एवं साक्ष्यों पर आधारित हैं एवं वे पूर्ण रूप से अधिकृत हैं व उनका उचित लेखा किया गया है।

प्रमाणन के अन्तर्गत निम्न बातों पर विशेष ध्यान दिया जाता है :

(अ) पुस्तकों में प्रत्येक प्रविष्टि उचित प्रमाण-पत्र या प्रमाणक पर आधारित है और प्रत्येक प्रमाणक की प्रविष्टि कर ली गई है अर्थात् कोई भी प्रमाणक बिना प्रविष्टि के नहीं है।

(ब) व्यवहार या लेखा उचित रूप से व्यवसाय से सम्बन्धित है।

(स) व्यवहार या लेखे से सम्बन्धित रकम को पूर्ण रूप से लिख लिया गया।

(द) व्यवहार का लेखा सही खाते में लिखा गया है।

“जब अंकेक्षक खातों की शुद्धता, सत्यता तथा पूर्णता के सम्बन्ध में अपनी रिपोर्ट देता है, तो उसे यह देखना होता है कि हिसाब-किताब की पुस्तकों में किया हुआ आरम्भिक लेखा सत्य है, उचित प्रमाणकों से अधिकृत है, और इसके पीछे कोई छल-कपट नहीं है। यही ‘प्रमाणन’ (vouching) कहलाता है।”

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कुछ परिभाषाएँ

(1) डी पौला-रोकड़ पुस्तकों से रसीदों की केवल जांच करना ही प्रमाणन नहीं है, परन्तु प्रमाणन में प्रपत्रों और अन्य उपयुक्त सबूतों से एक व्यापार के लेन-देनों की जाँच भी सम्मिलित है, ताकि अंकेक्षक को विश्वास हो जाय कि ये लेन-देन ठीक हैं. पर्णरूप से अधिकत हैं और पुस्तको में सही लिखे गये है।”

(2) जॉसेफ लंकास्टर—“पुस्तकों की प्रविष्टियों की प्रमाणकों या संलेखीय प्रपत्रों से केवल जांच करना ही प्रमाणन कहलाता है। यह विचार गलत है. क्योंकि प्रमाणन में खातों की ऐसी जांच भी शामिल है जिससे अकेक्षक को विश्वास हो जाय कि प्रपत्रों में सबूत के आधार पर केवल प्रविष्टि ही नहीं की गयी है, परन्त यह हिसाब-किताब की पुस्तकों में ठीक की गयी है।”

(3) बाटलीबॉय-प्रारम्भिक लेखों की पुस्तकों में लिखे जाने वाले लेखों की सत्यता की जांच करना प्रमाणन कहलाता है।

उपर्युक्त परिभाषाओं से यह स्पष्ट है कि प्रमाणन (अ) हिसाब-किताब की पुस्तकों की प्रविष्टियों की उससे सम्बन्धित प्रमाणकों की सहायता से की हुई जांच है, (ब) जिससे अंकेक्षक को यह विश्वास हो सके कि लेखे (क) ठीक हैं, (ख) पूर्ण रूप से अधिकृत हैं, और (ग) शुद्ध हैं।

इस प्रकार प्रमाणन की प्रक्रिया से अंकेक्षक एक ओर लेखों की शुद्धता की जांच करता है तो दूसरी

ओर साथ ही साथ प्रमाणकों की सूक्ष्म रूप से छानबीन भी हो जाती है, अर्थात् लेन-देन का संस्था से ही सम्बन्ध है इसके लिए उचित प्रमाण-पत्र मौजूद है और पुस्तकों में इसकी प्रविष्टि भी प्रमाण-पत्र के आधार पर सही-सही की गयी है। यही प्रमाणन का मूल मन्त्र है।

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प्रमाणन के उद्देश्य

(OBJECTIVES OF VOUCHING)

प्रमाणन का मुख्य उद्देश्य पुस्तक के लेखों की शुद्धता एवं सत्यता प्रमाणन करना है जिससे अंकेक्षक यह विश्वास कर सके कि:

(1) सभी लेन-देन जिनका व्यापार से सम्बन्ध है, पुस्तकों में लिख दिये गये हैं; ऐसा कोई भी प्रमाणक नहीं होना चाहिए जिसका लेखा नहीं किया गया हो;

(2) ऐसा कोई भी सौदा नहीं लिखा गया है जिसका व्यापार से सम्बन्ध नहीं है;

(3) सभी लेखे पूर्ण रूप से अधिकृत हैं और सही हैं (अर्थात् उनके लिए उचित तथा पर्याप्त प्रमाण-पत्र संस्था के पास मौजूद हैं) और वे संस्था के नियमों के अनुसार किये गये हैं;

(4) प्रविष्टियों के सम्बन्ध में उपस्थित प्रमाणक वैध हैं अर्थात् वे उचित, सम्बन्धित वर्ष से हैं तथा व्यवसाय के नाम से हैं; तथा

(5) प्रमाणकों की उचित आन्तरिक निरीक्षण विधि द्वारा जांच हो गई है।

सभी लेखे सत्य हैं अर्थात् प्रत्येक लेखे से सम्बन्धित प्रमाणक संस्था के पास मौजूद हैं। यदि कोई प्रमाणक उपलब्ध नहीं है, तो ऐसी शंका होने पर अंकेक्षक संस्था के अधिकारियों से आवश्यक प्रमाण मांग सकता है।। प्रत्येक लेखे की सत्यता के सम्बन्ध में स्वयं को आश्वस्त कर सकता है।

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प्रमाणन का महत्व

(SIGNIFICANCE OF VOUCHING)

प्रमाणन की परिभाषा तथा उद्देश्य समझ लेने से पता चलता है कि प्रमाणन अंकेक्षक का प्रारा कार्य है। चूंकि प्रविष्टियों की जांच से ही अंक जांच से ही अंकेक्षण प्रारम्भ होता है, इस कारण यह एक आधारभूत कार्य हो जाता हा परन्तुप्रमाणन बड़ा हा महत्वपूर्ण कार्य है। कागजी सबतों से प्रस्तकों की प्रविष्टिया का जाच इसलिए की जाती है जिससे एक निश्चित समय के सभी लेन-देनों की यह जांच की जा सके कि सभी लख लिखा दिये गये हैं और ऐसा कोई प्रमाणक नहीं है जिसके सम्बन्ध में लेखा नहीं किया गया है। इस कार्य क करना में अंकेक्षक को बड़ी सावधानी तथा सतर्कता से देखना होता है। प्रमाणन कार्य को भली प्रकार करन। अंकेक्षक यह विश्वासपूर्वक कह सकता है कि संस्था की पस्तकें सही हैं और संस्था का चिट्टा उसका वास्तविक स्थिति को प्रकट करता है।

प्रमाणन से लेखों की शुद्धता का ज्ञान हो सकता है। यदि अंकेक्षक प्रमाणन के कार्य को चतुराई स पूरा कर लेता है, तो आगे का कार्य सुलभ हो जाता है। आगे के सभी जांच के कार्यों के लिए प्रमाणन प्रमुखतः आधार बन जाता है। इसी कारण यह कहा जा सकता है कि प्रमाणन अंकेक्षण की रीढ़ की हड्डी है। (vouching is the backbone of auditing)। यदि किसी मनुष्य की रीढ़ की हड्डी कमजोर हो जाती है। तो उसका शरीर भी कमजोर हो जाता है। जिस प्रकार सम्पूर्ण शरीर के लिए रीढ़ की हड्डी का अधिक महत्व है उसी प्रकार अंकेक्षण कार्य के लिए प्रमाणन की प्रक्रिया अत्यन्त आवश्यक है। “प्रमाणन वास्तव में अंकेक्षण की आत्मा है” (vouching is the essence of auditing)। इस कथन में कोई अत्युक्ति नहीं है।

प्रमाणन वह आधारशिला है जिस पर अंकेक्षण का ढांचा स्थापित किया जाता है। अंकेक्षण की सफलता प्रमाणन प्रक्रिया में अपनाई गई सावधानी एवं निपुणता पर निर्भर करती है। प्रमाणन के अन्तर्गत व्यवहारों का औचित्य, वैधता एवं उनके लेखांकन की जांच की जाती है अर्थात् प्रमाणन के अन्तर्गत यह देखा जाता है कि क्या वास्तव में जो व्यवहार लिखा गया है वह व्यवसाय में हुआ है, क्या वह पूर्ण रूप से व्यवसाय से सम्बन्धित है, क्या वह व्यवहार उचित अधिकारी द्वारा अधिकृत है और उस व्यवहार पर पड़ने वाले प्रभावों को पुस्तकों में वैधानिक नियमों को ध्यान में रखते हुए लिख लिया गया है। चूंकि प्रमाणन अंकेक्षण का एक महत्वपूर्ण अंग है, परन्तु अंकेक्षक के लिए यह आवश्यक नहीं कि वह समस्त व्यवहारों का प्रमाणन करे। यदि व्यवसाय में आन्तरिक निरीक्षण की एक सुदृढ़ योजना है तो अंकेक्षक कुछ चुने हुए व्यवहारों का प्रमाणन कर निष्कर्ष निकाल सकता है। चाहे आन्तरिक निरीक्षण की प्रणाली कितनी ही ठोस क्यों न हो, चाहे व्यवसाय बड़ा या छोटा हो, प्रमाणन के सम्बन्ध में अंकेक्षक अपने दायित्व से बच नहीं सकता। यदि वह प्रमाणन के कार्य में लापरवाही बरतता है तो वह लापरवाही के लिए उत्तरदायी होगा।

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नैत्यक जांच तथा प्रमाणना

(ROUTINE CHECKING AND VOUCHING)

नैत्यक जांच का उल्लेख पहले किया जा चुका है। बहियों का जोड़ निकालना, अगले पृष्ठ पर ले जाना (carry-forward), खतौनी करना (posting), खातों का शेष निकालना तथा इन बाकियों को तलपट में ले जाना, इत्यादि कार्यों की जांच नैत्यक जांच में आती है। नैत्यक जांच के लिए अंकेक्षक विशेष चिह्नों का प्रयोग करता है। नैत्यक जांच से लेखों की शुद्धता की जानकारी हो सकती है। जैसे प्रविष्टियां ठीक है। खतौनी खाताबही के ठीक खातों में ही की गयी है और जांच के पश्चात् पुस्तकों में कोई परिवर्तन नहीं किये गये हैं।

यदि प्रमाणन का कार्य आरम्भ मात्र है, तो नैत्यक जाच इसलिए महत्वपूर्ण हो जाती है कि इसके बिना लेखों की शुद्धता प्रमाणित नहीं हो सकती है। व्यापक दृष्टि से नैत्यक जांच प्रमाणन का ही अंग है। प्रमाणन के अन्तर्गत लेखा पुस्तकों में किए गए लेखों की जांच उपलब्ध प्रमाणकों से की जाती है। यह भी सनिश्चित किया जाता है कि प्रमाणक सही एवं अधिकृत व वास्तविक है। प्रमाणन में नैत्यक जांच शामिल है। अन्तर केवल यह है कि प्रमाणन कागजी प्रमाणकों से प्रविष्टियों की जांच है और शेष कार्य अर्थात लेखे करना. खतौनी करना, शेष निकालना. तलपट में ले जाना, इत्यादि नैत्यक जांच के अंग हैं। अतएव नैत्यक जांच प्रमाण अन्तर्गत आ जाती है।

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प्रमाणक

(VOUCHER)

प्रमाणक एक प्रलेखीय साक्ष्य है जिसके द्वारा लेखा पस्तकों की प्रविष्टियों की सत्यता ज्ञात की जा सका “रसीद, बीजक, प्रसंविदा मांग-पत्र पुस्तक या पुस्तिका, बिल, आदेश की प्रतिलिपि, पत्र-प्रपत्र या अन्य कोई भी लिखित प्रमाण जो किसी लेन-देन की पष्टि करता है, प्रमाणक कहलाता हो ।

पुस्तकों में प्रविष्टियों के करने के लिए पर्याप्त एवं उचित प्रमाणक होना अति आवश्यक है। एक प्रविष्टि के लिए एक या अनेक प्रमाणक हो सकते हैं।

प्रमाणक दो प्रकार के होते हैं :

(1) मूल (Primary) असली लिखित सबूत मूल प्रमाणक होता है जैसे क्रय के भुगतान के लिए। बीजक प्रमाणक होता है।

(2) गौण या द्वितीयक (Collateral)-जब किसी प्रविष्टि के लिए मौलिक सबूत प्राप्त नहीं होता तो। मूल प्रमाणकों की प्रतिलिपियां दी जाती हैं अथवा कोई अन्य सहायक पत्र पेश किया जाता है जिससे अंकेक्षक की शंका का समाधान हो सके। ऐसा प्रमाणक गौण प्रमाणक कहलाता है। मूल प्रमाणक के उपलब्ध होने के साथ-साथ गौण प्रमाणक की जांच भी कभी सहायक होती है।

उदाहरणनकद भुगतान के लिए प्राप्त रसीद मूल प्रमाणक होगा और अन्य प्रपत्र जैसे बीजक, बिल, सांग-पत्र, आदि गौण प्रमाणक होंगे।

सभी प्रकार के प्रमाणकों को सावधानीपूर्वक रखना चाहिए और व्यवस्था के साथ फाइल करना चाहिए, ताकि आवश्यकता के समय उनका उपयोग किया जा सके। प्रमाणकों के कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं : (1) रोकड़ प्राप्ति के लिए—कैशमीमो की प्रतिलिपियां, प्रसंविदे, कार्यवाही पुस्तिका (Minutes), पत्र-व्यवहार, आदि।

(2) भुगतान के लिए बीजक, बिल, मांग-पत्र, मजदूरी-तालिका, वेतन-रजिस्टर (Salary Register), प्रसंविदे, पत्र-व्यवहार, इत्यादि।

(3) क्रय के लिए बीजक, माल-भीतरी-पुस्तक, आदेशों की प्रतिलिपियां, पत्र-व्यवहार, आदि।

(4) विक्रय के लिए बीजक की प्रतिलिपियाँ, प्राप्त आदेश, माल-बाहरी पुस्तक, पत्र-व्यवहार आदि।

इस प्रकार पत्र, प्रपत्र, प्रसंविदा, रसीद, बीजक, बिल, संचालकों या सदस्यों द्वारा पास किये गये प्रस्ताव, पुस्तक या अन्य कोई भी कागजी सबूत प्रमाणक कहलाता है।

प्रमाणकों की जांच करते समय निम्न बातें ध्यान में रखनी चाहिए :

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ध्यान देने योग्य बातें

(1) सभी प्रमाणक क्रमांकित होने चाहिए और उनकी फाइल करने की उचित व्यवस्था होनी चाहिए।

(2) जिन प्रमाणकों की अंकेक्षक जांच कर ले, उनको रबड़ की महर से चिन्हित कर देना चाहिए ताकि एक प्रमाणक दो बार न दिखाया जा सके।

(3) जो प्रमाणक साझेदार, संचालक, मैनेजर या मन्त्री आदि में से किसी के नाम से लिखा गया है, उसके विषय में यह देख लेना चाहिए कि प्रमाणक का सम्बन्ध संस्था से है।

(4) यदि किसी प्रमाणक के सम्बन्ध में विशेष छानबीन की आवश्यकता हो तो ऐसी परिस्थिति में विशेष चिह्नों का प्रयोग करना चाहिए तथा सावधानी के साथ जांच करनी चाहिए।

(5) यथासम्भव किसी विशेष पूस्तक से या किसी विशेष समय से सम्बन्धित प्रमाणकों को एक ही बठक  में जांचने का प्रयत्न करना चाहिए।

(6) अंकेक्षक को यह विशेषकर देखना चाहिए कि प्रत्येक प्रमाणक किसी उत्तरदायी कर्मचारी के द्वारा। सही प्रमाणित किया जाता है। उस पर कर्मचारी के हस्ताक्षर भी होने चाहिए।

(7) खोये हुए प्रमाणकों तथा रसीदों के लिए एक सूची तैयार करनी चाहिए और एक उत्तरदायी कर्मचारी से उनके खो जाने के कारणों का पता लगाना चाहिए। ऐसी स्थिति में अंकेक्षक को बड़ी सावधानी से जांच करनी चाहिए।

(8) प्रमाणकों की जांच करते समय अंकेक्षक को संस्था के किसी भी कर्मचारी की सहायता नहीं लेनी चाहिए। उसको यह कार्य स्वतन्त्र रूप से करना चाहिए।

(9) प्रमाणकों की जांच करते समय यह देख लेना चाहिए कि तत्सम्बन्धी लेखा ठीक खाते में किया गया है। पूंजीगत और आयगत (Capital and Revenue) व्ययों के अन्तर को ध्यान में रखा गया है। विशेष बातें

(1) प्रमाणक किसके नाम में है सर्वप्रथम यह देखना चाहिए कि अमुक प्रमाणक नियोक्ता के नाम है किसी अन्य व्यक्ति के नहीं।

(2) यह भी स्पष्ट करना चाहिए कि प्रमाणक व्यापार से ही सम्बन्धित है।

(3) प्रमाणक उसी वर्ष के खातों से सम्बन्धित है जिसका अंकेक्षण हो रहा है।

(4) प्रमाणक सदैव छपे हुए फॉर्म पर होना चाहिए।

(5) प्रमाणन की रकम शब्दों तथा अंकों में साफ-साफ लिखी होनी चाहिए।

(6) यदि रकम 5,000 ₹ से अधिक हो तो प्रमाणन के ऊपर रसीदी टिकट लगी होनी चाहिए।

(7) प्रत्येक प्रमाणक पर किसी उत्तरदायी कर्मचारी के हस्ताक्षर होने चाहिए जिससे उसकी शुद्धता प्रमाणित हो सके।

(8) प्रत्येक प्रमाणक के विवरण का मिलान तत्सम्बन्धी लेखों से करना चाहिए ताकि यह विश्वास हो सके कि प्रमाणक का लेखा ठीक किया गया है और सम्बन्धित तारीख, रकम आदि बातें सही हैं।

(9) यदि किसी प्रमाणक में कोई लेखा काटा हुआ है तो उस स्थान पर उचित अधिकारी के हस्ताक्षर अवश्य होने चाहिए।

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प्रमाणन के सम्बन्ध में अंकेक्षक के कर्तव्य

(DUTIES OF AUDITOR REGARDING VOUCHING)

अंकेक्षक के लिए प्रमाणन का कार्य अत्यन्त ही महत्वपूर्ण है। अंकेक्षक के कर्तव्य को निम्न प्रकार समझा जा सकता है:

(1) प्रत्येक प्रविष्टि के सम्बन्ध में यह देखना चाहिए कि लेन-देन शुद्ध है, व्यापार से सम्बन्धित है तथा हिसाब-किताब की पस्तकों में ठीक प्रकार लिखा गया है।

(2) पस्तकों की प्रविष्टियों की पृष्ठभूमि की जांच की जानी चाहिए तथा यह सत्यापित किया जाना चाहिए कि ये तथ्यों पर आधारित हैं। यह भी देखना चाहिए कि प्रत्येक लेन-देन के सम्बन्ध में उनके नियोक्ता को लाभ प्राप्त हुआ है।

(3) प्रत्येक प्रविष्टि के लिए अधिकार की खोज की जानी चाहिए तथा यह विश्वास किया जाना चाहिए कि पुस्तकें व्यापार के कार्यकलाप (state of affairs) का सही प्रतिनिधित्व करती हैं या नहीं।

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रोकड़-बही का प्रमाणन

(VOUCHING OF CASH-BOOK)

रोकड-बही एक व्यापारिक संस्था की बड़ी महत्वपूर्ण पुस्तक है। अधिकतर धोखा तथा छल-कपट के उदाहरण कर प्राप्ति से ही सम्बन्धित होते हैं। इसी कारण रोकड़-बही का प्रमाणन अंकेक्षक के लिए अत्यधिक महल बन जाता है। अंकेक्षक को यह देखना होता है कि रोकड़ की प्राप्ति तथा भुगतान सही हैं। न तो कोई प्राप्ति ही ऐसी है जिसका पुस्तकों में लेखा नहीं किया गया है, और न कोई अनचित गया है।

रोकड़ बही के अंकेक्षण के मुख्य उद्देश्य निम्न हैं :

(i) यह देखना कि सम्पूर्ण प्राप्तियां हिसाब-किताब में लिख दी गयी हैं। ।

(ii) यह निश्चित करना कि कोई भी अनुचित या झठा भुगतान नहीं किया गया है।

(iii) यह देखना कि सभी प्राप्तियां तथा भुगतान ठीक प्रकार से लिख दिये गये हैं।

(iv) बैंक में रोकड़ तथा रोकड़ हस्ते की राशि की सत्यता प्रमाणित है।

रोकड़-बही की जांच में भुगतान की अपेक्षा रोकड प्राप्तियों का अंकेक्षण कठिन है। प्राप्तियों के लिए प्रमाण-पत्र स्वयं संस्था तैयार करती है और इन्हीं की दी रसीदों की प्रतिलिपियों के आधार पर रोकड़ बही में लेखा किया जाता है।

एक ओर अंकेक्षक को लेखों को प्रमाणित करने के लिए उचित प्रमाणपत्रों की खोज करनी होती है। दूसरी ओर यह देखना होता है कि रोकड़-प्राप्ति का गबन या दुरुपयोग यदि किया गया है, तो यह किस प्रकार किया गया है। इस प्रकार अंकेक्षक के लिए रोकड़-प्राप्ति का प्रमाणन बड़ा कठिन कार्य होता है जिसके लिए उसे बड़ी सतर्कता से कार्य करना होता है।

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रोकड़ प्राप्ति को नियन्त्रित करने की विधि

(1) रोकड़ प्राप्ति के सम्बन्ध में प्राप्त डाक खोलने का कार्य एक उत्तरदायी अधिकारी के सुपुर्द किया जाना चाहिए। उसको एक सूची तैयार करनी चाहिए तथा रोकड़ लेखों को इस सूची से मिलाना चाहिए।

(2) रोकड़ की दैनिक प्राप्ति को रोजाना बैंक में जमा किया जाना चाहिए।

(3) रोकड़ प्राप्त करने वाले कर्मचारी को कभी भी रोकड़ के लेखे तैयार करने का कार्य सुपुर्द नहीं करना चाहिए।

(4) रोकड़ का भुगतान तथा सम्बन्धी कार्य पृथक्-पृथक् कर्मचारियों को सौंपा जाना चाहिए।

(5) ऐसे कर्मचारी से बैंक समाधान-विवरण (Bank Reconciliation Statement) तैयार कराया जाना चाहिए, जिसका सम्बन्ध प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रोकड़ लेखों से नहीं है।

रोकड़-प्राप्ति के सम्बन्ध में ध्यान देने योग्य बातें

(1) आन्तरिक निरीक्षण रोकड़-प्राप्ति के सम्बन्ध में आन्तरिक निरीक्षण की कैसी व्यवस्था है, इसका विशेष रूप से पता लगाना चाहिए। रोकड़-प्राप्ति सम्बन्धी रसीद देने, लेखा करने, बैंक से व्यवहार करने आदि के नियमों की पूर्ण जानकारी करनी चाहिए। ध्यान रहे कि अंकेक्षक एक व्यवस्थित प्रणाली के होने पर ही परीक्षण जाँच (test checking) का आश्रय ले सकता है।

(2) कच्ची तथा पक्की रोकड़-बही का मिलान—किसी-किसी संस्था में पक्की रोकड बही में लिखे जाने से पहले रोकड़-प्राप्ति का लेखा कच्ची रोकड़-बही में किया जाता है अथवा कहीं-कहीं रोकड़-डायरी (Cash Diary) या रोकड़ जमा डायरी (Diary of cash receipts) का प्रयोग होता है। इस पुस्तक की जांच करनी चाहिए और कच्ची रोकड़-बही या रोकड़-डायरी का मिलान पक्की रोकड़-बही से करना चाहिए।

(3) रसीद बहियों के प्रयोग पर पर्याप्त नियन्त्रण संस्था में रसीदों का प्रयोग पूर्ण नियन्त्रित है अथवा नहीं, इसका पता लगाना चाहिए। ध्यान रहे कि :

(i) सभी रसीदें छपे हुए फॉर्म पर दी जानी चाहिए।

(ii) प्राप्त रोकड़ के लिए प्रतिपर्ण रसीद बहियों (Counterfoil Receipt Book) का प्रयोग होना चाहिए। यह देखना चाहिए कि प्रतिपर्ण रसीद बहियों अथवा कार्बन से नकल वाली रसीदों का प्रयोग किया जा रहा है।।

(iii) सभी रसीदों पर क्रम के अनुसार नम्बर पड़े होने चाहिए। इसी के साथ-साथ रसीदों की बहियों पर। भी क्रम संख्या पड़ी रहनी चाहिए।

(iv) रसीद पर लिखे हुए विवरण (तारीख, रकम, नाम आदि) का मिलान रोकड़-बही के लेखे से करना चाहिए।

(v) कभी भी गन्दी या गलत रसीदों को बही में से न फाडना चाहिए बल्कि उनकी दोनों प्रतिलिपियों को। यथास्थान सुरक्षित रखना चाहिए।

(vi) रोकड़-प्राप्तियों के साथ-साथ रोकड़ बट्टे की भी जांच होनी चाहिए। इस सम्बन्ध में व्यापार में प्रचलित नियमों की जानकारी करनी चाहिए। प्रायः इस सम्बन्ध में सभी ग्राहकों के लिए एकसी शर्ते होती हैं।

(vii) रसीद पर एक उत्तरदायी कर्मचारी के हस्ताक्षर अवश्य होने चाहिए।

(viii) काम में आने वाली नयी बहियों को ताले में बन्द रखना चाहिए और इसके निर्गमन (issue) करने का अधिकार एक उत्तरदायी व्यक्ति को ही देना चाहिए।

(4) प्राप्तियों के बैंक में जमा करने की व्यवस्था की जाँच करनी चाहिए। रोकड़-प्राप्तियों के बैंक में जमा करने की व्यवस्था सम्बन्धी नियमों की जानकारी करनी चाहिए। इसके लिए प्राप्तियों का मिलान जमा-पुस्तक (Pay-in-Slip Book) से करना चाहिए।

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रोकड़ बही के प्राप्ति पक्ष का प्रमाणन

(VOUCHING OF RECEIPT SIDE OF CASH BOOK)

नकद बिक्री का प्रमाणन (Vouching of Cash Sales)

नकद बिक्री से प्राप्त रकम का गबन करना बड़ा आसान होता है, अतः नकद बिक्री का प्रमाणन करते समय अंकेक्षक को निम्न बातों की ओर ध्यान देना आवश्यक होगा :

1 नकद बिक्री के सम्बन्ध में आन्तरिक नियन्त्रण की जांच करनी चाहिए।

2. नकद बिक्री को कैश मीमो की प्रतिलिपियों से जांचना चाहिए। इन प्रतिलिपियों को प्रतिदिन की नकद बिक्री के सारांश (Summary) से मिलाना चाहिए। इन नकद बिक्री के सारांशों के योगों को रोकड़-बही से मिलाना चाहिए।

3. कच्ची रोकड़ बही के दैनिक योग की जांच पक्की रोकड़ बही की प्रविष्टियों की करनी चाहिए।

4. अंकेक्षक को प्रत्येक कार्बन प्रतिलिपि पर क्रम संख्या पड़ी हुई देखनी चाहिए।

5. जांच करनी चाहिए कि विक्रय-कर को बिक्री खाते में न लिख दिया गया हो और इसकी पृथक प्रविष्टि हो।

लंकास्टार के शब्दों में, “बिक्री का प्रमाणन क्रय के प्रमाणन की तुलना में अधिक कठिन है।” नकद बिक्री के सम्बन्ध में केश मीमो की प्रतिलिपियों, विक्रेता का सारांश, कैश-बुक एवं रोकड़ियों के विवरण-पत्र प्रमुख प्रमाणक है।

(प्रमाणक कैश मीमो की प्रतिलिपि, विकेता का सारांश, रोकड़िये का विवरण-पत्र।)

देनदारों से प्राप्त रकम का प्रमाणन (Vouching of Receipt From Debtors)

जब देनदारों से रकम प्राप्त होती है, तो उन्हें रसीद दी जाती है। ऐसी रकमों की जांच रसीद के प्रतिलिपियों (counterfoils) से की जाती है। इन प्रतिलिपियों की जाँच में बट्टा, छूट (allowances) और अप्राप्य ऋण (bad debts) की रकमों को अवश्य देखना चाहिए। बट्टे के सम्बन्ध में उनकी अधिकतम दर अथवा किसी विशेष बट्टे, छूट या कटौती के सम्बन्ध में उचित प्रमाण-पत्र अवश्य देखना चाहिए।

कभी-कभी आवश्यकता के अनुसार देनदारों एवं संस्था के बीच किये गये समझौतों या पत्र व्यवहारों को भी देखना आवश्यक हो जाता है।

यदि किसी व्यक्ति को दोबारा रसीद दी गई है तो ऐसा करने की स्वीकृति किसी उत्तरदायी व्यक्ति को होनी चाहिए।

(प्रमाणक रसीद का प्रतिपर्ण, समझौता अथवा पत्र-व्यवहार।)

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प्राप्त बिल का प्रमाणन (Vouching of Receivable Book)

प्राप्य-बिल पूस्तक (Bills Receivable Book) में प्राप्य बिलों के सम्बन्ध में पूरा विवरण दिया जाता है। प्राप्य बिलों से प्राप्ति तीन प्रकार से हो सकती है :

(1) बिल भुनाने पर प्राप्ति जो बिल भगतान तिथि से पहले भना लिये गये हों उनके बट्टा (Discount) और बाकी रकम का प्रमाणन करना चाहि बिल बटा बही (RHIT Discount Book) से भी इसका प्रमाण मिल सकता है। बट्टे की रकम के सम्बन्ध में यह देखना चाहिए कि वह दर उचित है और बट्टे खाते में डेबिट की गयी है।

(2) भुगतान तिथि पर अदायगी जिन बिलों का भुगतान उनकी भुगतान तिथि पर प्राप्त हुआ है उनका रोकड़-बही और पास-बुक का मिलान करके प्रमाणन करना चाहिए।

(3) कभी-कभी बिल स्वीकार करने वाला व्यक्ति उसकी अन्तिम तिथि के पहले ही भुगतान कर देता। है। ऐसी दशा में उसे छूट (Rebate) दी जाती है। इस प्रकार भुगतान करने को अवधि से पहले भुगतान (Retiring a Bill under Rebate) कहते हैं। यह छूट (Rebate) बिल को लिखने वाले के लिए हानि व भुगतान करने वाले के लिए लाभ है। अंकेक्षक को रोकड-बही में प्राप्ति की रकम का प्रमाणन करना चाहिए तथा यह भी देखना चाहिए कि छूट (Rebate) की दर उचित है तथा छूट खातों में डेबिट कर दी गयी है।

साथ ही यह भी देखना चाहिए कि किन-किन बिलों का भुगतान उनकी भुगतान तिथि पर नहीं मिला है। या तो ऐसे बिल अनादत (dishonour) हो गये होंगे तथा इनके स्थान पर नये बिल प्राप्त हुए होंगे। उसे इस सम्बन्ध में जानकारी करनी चाहिए।

(प्रमाणक बिल-बट्टा-बही, बिल-प्राप्य-बही, रोकड़-पुस्तक, पास-बुक।)

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ब्याज और लाभांश का प्रमाणन (Vouching of Interest and Dividend)

साधारणतया ब्याज प्राप्त करने के चार स्रोत हो सकते हैं:

(1) बैंक में जमा से, (2) ऋणों से. (3) प्रतिभूतियों से तथा (4) लाभांश से प्राप्त राशि।

(1) बैंक में जमा से व्याज (Interest from Bank Deposit) यदि बैंक के मुद्दती खाते (Fixed Deposit Account) से ब्याज मिलता है तो बैंक की पास बुक से ब्याज की रकम का प्रमाणन करना चाहिए। इस सम्बन्ध में बैंक से प्राप्त बैंक विवरण (Bank Statement) की जांच करनी चाहिए।

(2) ऋणों से ब्याज (Interest from Advances) यदि ब्याज किसी व्यक्ति को दिये हुए ऋण पर प्राप्त होता है तो ब्याज की दर और ब्याज के भुगतान की तारीख, आदि बातों के सम्बन्ध में आवश्यक प्रसंविदे को रखना चाहिए।

(3) प्रतिभूतियों से व्याज (Interest from Securities) यदि किन्हीं प्रतिभूतियों से व्याज प्राप्त होता है तो किसी उत्तरदायी अधिकारी से प्राप्त तालिका के आधार पर ब्याज की रकम का प्रमाणन करना चाहिए। सभी प्रकार के व्याज की प्राप्ति के लिए निर्गमित रसीदों की प्रतिलिपियों से ब्याज की जांच करनी चाहिए।

(4) लाभांश से प्राप्त राशि (Dividend Receipt) लाभांश से प्राप्त रकम के लिए तीन प्रमाणक देखने चाहिए—(1) प्रतिपर्ण (counterfoils), (2) लाभांश पत्र (dividend warrant), (3) चैक के साथ प्राप्त होने । वाले पत्र। यदि बैंक से लाभांश वसूली का कार्य कराया जाता है तो पास-बुक से उचित प्रमाण-पत्र मिल सकता है। अंकेक्षक को यहां यह अवश्य देख लेना चाहिए कि वर्ष का सम्पूर्ण लाभांश प्राप्त हो चुका है। यदि नहीं मिला है तो यह देख लेना चाहिए कि चिट्ठे में आवश्यक लेखा कर दिया गया है अथवा नहीं।

(प्रमाणक ब्याज के लिए पास-बुक, बैंक विवरण, प्रसंविदे, तालिका (Schedule), रसीदों का। प्रतिलिपि।)

(लाभांश के लिए प्रतिपर्ण, लाभांश के पत्र, पास-बुक।)

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विनियोगों की बिक्री का प्रमाणन (Vouching of Sale of Investments)

विनियोग दलाल (Broker) के द्वारा बेचे जाते हैं जिनके लिए दलाल एक बिक्री-नोट (sold note) देता है। इस बिक्री-नोट से पता चलता ह कि बिक्री की वास्तविक रकम कितनी है और उस पर कितना। कमीशन देना पड़ा है। विनियोगों की जांच के लिए बिक्री-नोट एक उचित प्रमाणक है। यदि बिक्री लाभांश

नई है तो अंकेक्षक को देखना चाहिए कि लाभाश की प्राप्ति कब हुई है तथा पूंजी और आय (capital

and revenue) का उचित व्यावहारिक अन्तर कर दिया गया है या नहीं।

(प्रमाणक—दलालों की बिक्री–नोट, रसीदों के प्रतिपर्ण, आदि।)।

किराया-क्रय प्रसंविदों का प्रमाणन (Vouching of Hire-Purchase Agreement)

‘किरायान्क्रय प्रसावदा का अध्ययन करके यह मालम करना चाहिए कि किस्तों की प्राप्ति कन ताराखा में और व्याज की दर क्या होगी। किस्तों की प्राप्ति के लिए दी गयी रसीदों की प्रतिलिपियों से मिलान करना चाहिए।

प्राप्त रकम में मूल रकम वह होती है जो सम्पत्ति के मूल्य के लिए प्राप्त होती है तथा कुछ रकम ब्याज के लिए होती है। यह भी देखना चाहिए कि किस्त की रकम का ब्याज और मूलधन में विभाजन ठीक-ठीक कर दिया गया है।

यह बात ध्यान देने योग्य है कि ब्याज की रकम को वर्ष के अन्त में लाभ-हानि खाते में हस्तान्तरित किया जाता है। अंकेक्षक को यह प्रमाणित करना होता है कि सभी लेखे पूर्ण तथा सही हैं।

(प्रमाणककिराया-क्रय के प्रसंविदे, रसीदों की प्रतिलिपि।)

प्राप्त किराया का प्रमाणन (Vouching of Rent Received)

किराये से प्राप्त होने वाली आय का सत्यापन करने के लिए किरायेदारों को दिये गये बिलों की परीक्षण-जांच (Test Checking) करनी चाहिए और साथ ही उन व्ययों जैसे, मकान-कर, जल-कर, बिजली-व्यय, आदि की जानकारी करनी चाहिए जिन्हें भगतान किया गया है। ये बिल किराया रजिस्टर (Rent Register) से मिल सकते हैं। किराया-रजिस्टर में दिये गये किराये की राशि का मिलान खाताबही के लेखों से करना चाहिए।

अंकेक्षक को किराये की रकम, किराया प्राप्ति की तारीख और मकान की मरम्मत, आदि की जानकारी के लिए प्रसंविदों की जांच करनी चाहिए। अगर किराया तालिका (Rent rolls) का प्रयोग किया जाता है, तो प्राप्त किराये का मिलान इस तालिका से करना चाहिए और बहीखातों के लेखों से किरायों की रकम की जांच करनी चाहिए। प्राप्त किराये के लिए रसीदों के प्रतिपर्ण भी उचित प्रमाणपत्र हो सकते हैं। यदि किराया एजेण्टों द्वारा वसूल किया जाता है तो अंकेक्षक को एजेण्टों के हिसाब-किताब की जांच करनी चाहिए।

अंकेक्षक को अदत्त किराये (outstanding rent) की रकम के विषय में विशेष सावधानी से काम करना चाहिए। यह हो सकता है कि किराया प्राप्त हो गया हो और उसे अदत्त दिखाकर रकम का गबन कर लिया गया हो। यदि आवश्यक हो तो इसके लिए किरायेदार से पत्र-व्यवहार भी कर लेना चाहिए।

(प्रमाणककिराया रजिस्टर, प्रसंविदे, किराया तालिका, एजेण्टों का हिसाब, रसीद की प्रतिलिपि।)

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प्राप्त कमीशन का प्रमाणन (Vouching of Commission Received)

साधारणतया कमीशन प्राप्ति के लिए संस्था और कमीशन देने वालों के बीच प्रसंविदे किये जाते हैं। प्रसंविदे से कमीशन की दर का पता लगाना चाहिए और प्राप्त कमीशन की रकम की जांच कमीशन के सम्बन्ध में प्राप्त विवरण-पत्र (Statement of Commission) से करनी चाहिए। रोकड़-बही में दिये गये लेखों की जांच रसीदों के प्रतिपर्णों से करनी चाहिए। यदि चालान (consignment) पर माल बेचने से कमीशन प्राप्त होता है तो कमीशन की रकम का प्रमाणन बिक्री विवरण (Account Sale) की प्रतिलिपि से करना चाहिए।

(प्रमाणक-प्रसंविदे, विवरण-पत्र, बिक्री-विवरण।)

एजेण्टों से प्राप्ति का प्रमाणन (Vouching of Remittances from Agents)

एजेण्टों से प्राप्त रकमों का प्रमाणन उनके द्वारा भेजे गये हिसाब किताब से करना चाहिए। प्रायः प्रत्येक संस्था में एजेण्टों के हिसाब-किताब की जांच के लिए एक अलग उत्तरदायी कर्मचारी होता है और उसकी जाच के पश्चात ही इस सम्बन्ध में रोकड-बही में लेखा किया जाता है।

(प्रमाणकएजेण्टों का हिसाब-किताब।)

स्थायी सम्पत्तियों की बिक्री का प्रमाणन (Vouching of Sales of fined Assets)

जब स्थायी सम्पत्तियों जैसे भूमि, मकान, मशीन अथवा फर्नीचर की बिक्री की जाती है तो निजी पूर्व इस सम्बन्ध में पत्र-व्यवहार किया जाता है। बिक्री दलाल अथवा नीलाम के द्वारा की जाती है। दलाला एजेण्ट का विवरण-पत्र देखकर या नीलामकर्ता (auctioneer) का विवरण-पत्र देखकर प्राप्त रकम की जान करनी चाहिए। इसके साथ-साथ बिक्री प्रसंविदा (Sale Deed) देखकर भी रकम का प्रमाणन हो सकता

अंकेक्षक को यह देखना चाहिए कि सम्पत्तियों की बिक्री से प्राप्त रकम उचित खाते में लिख दी गयी। है और लाभ की राशि पूंजी संचय (Capital Reserve) में ले जायी गयी है। यह लाभ लाभांशों के बांटने के लिए प्रयोग नहीं किया जा सकता है। यदि बेची गयी सम्पत्तियों के सम्बन्ध में कोई दातव्य राशि हो, तो उसके लिए आयोजन किया जाना चाहिए। यदि कोई व्यय पर्वदत्त हो तो उस खाते को बिक्री की राशि के भाग से क्रेडिट करना चाहिए।

अंकेक्षक को यह देखना चाहिए कि बिक्री पूर्णरूप से अधिकृत है।

(प्रमाणक–एजेण्ट का विवरण-पत्र, नीलामकर्ता का विवरण-पत्र, विक्रय प्रसंविदा, पत्र-व्यवहार, आदि।)

बीमा से प्राप्त रकम का प्रमाणन (Vouching of Recept from Insurance)

बीमा से प्राप्त रकम का प्रमाणन बीमा कम्पनियों से भेजे हुए विवरण-पत्रों, बीमा पॉलिसी एवं अन्य पत्र-व्यवहार से करना चाहिए।

(प्रमाणक—बीमा पॉलिसी, विवरण-पत्र और पत्र व्यवहार।) चन्दे से प्राप्त रकम का प्रमाणन (Vouching of Receipt from Subscription)

चन्दे से प्राप्ति की जांच चन्दा के रजिस्टर के आधार पर करनी चाहिए और इसके सम्बन्ध में निर्गमित रसीदों के प्रतिपर्णों को देखना चाहिए। अदत्त चन्दों की जांच चन्दे के रजिस्टर से करनी चाहिए। (प्रमाणक चन्दे का रजिस्टर व रसीदों के प्रतिपर्ण।)

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रोकड बही के भुगतान पक्ष का प्रमाणन

(VOUCHING OF PAYMENT SIDE OF CASH BOOK)

नकद भुगतान (Cash Payment)—रोकड़ के भुगतान का प्रमाणन करने के लिए अंकेक्षक को अधिकृत प्रमाण-पत्र देखने चाहिए। संस्था के भुगतान के सम्बन्ध में प्रचलित नियमों का अध्ययन अच्छी प्रकार से करना चाहिए। प्रत्येक प्रमाण-पत्र के विवरण को रोकड़-बही के लेखों से मिलाना चाहिए।

भुगतान की शुद्धता की जांच करने के लिए अंकेक्षक को यह देखना चाहिए कि भुगतान का सीधा एवं प्रत्यक्ष सम्बन्ध संस्था से ही है। कभी-कभी यह प्रश्न किया जाता है कि क्या अंकेक्षक का कर्तव्य केवल इतना देखना ही है कि भुगतान कर दिया गया है अथवा उसे कुछ अन्य बातें भी देखनी चाहिए। उत्तर स्पष्ट है कि भुगतान कर दिया गया है, यह देखना ही उसका एकमात्र कार्य नहीं है वरन् उसे यह भी देखना चाहिए कि भुगतान व्यापार से सम्बन्धित कार्य के लिए उचित व्यक्ति को ही किया गया है। भुगतान के सम्बन्ध में कुछ ध्यान देने योग्य बातें निम्नलिखित हैं :

(1) भुगतान व्यापार से सम्बन्धित लेन-देन के लिए किया गया है (for the business itself);

(2) भुगतान का सम्बन्ध उस अवधि से है जिसके खातों का अंकेक्षण किया जा रहा है (relates to the period under audit);

(3) भुगतान ठीक व्यक्ति को किया गया है (to the right person);

(4) भुगतान किसी उत्तरदायी अधिकारी से अधिकृत होने के पश्चात् ही किया गया है (properly sanctioned);

(5) भगतान के सम्बन्ध में पुस्तकों में उचित लेखा कर दिया गया है (properly recorded);

(6) भुगतान के लिए उचित प्रमाणक संस्था के पास मौजूद हैं (Supported by a proper voucher); तथा

(7) भुगतान सम्बन्धी प्रमाणक में लिखा हुआ विवरण (जैसे नाम, तारीख, रकम, आदि) पुस्तकों के लेखों से मिलता है (particulars given in voucher tally with those of the cash book)

नकद क्रय का प्रमाणन (Vouching of Cash Purchases)

नकट कय के लिए अंकेक्षक को यह देखना चाहिए कि क्रय पूर्ण अधिकृत है अथवा नहीं। कैशमीमो और माल-भीतरी-पुस्तक (Goods Inward Book) की सहायता से रोकड़-पुस्तक के लेखों का मिलान करना  चाहिए। नकद खरीद के लिए खरीद का औचित्य, माल की प्राप्ति तथा प्रमाणकों की शुद्धता का सत्यापन विशेष रूप से करना चाहिए।

(प्रमाणककैशमीमो, माल-भीतरी-पुस्तक।)

लेनदारों को भुगतान का प्रमाणन (Vouching of Payments To Creditors)

लेनदारों को किये हुए भुगतान के लिए लेनदारों से प्राप्त रसीदों की सहायता से प्रमाणन करना चाहिए। लेनदारों का कितनों रकम का भुगतान करना है. इसके लिए उसे समय-समय पर प्राप्त लेखा विवरणा (Statements of Accounts) की जाँच करनी चाहिए और माल के सम्बन्ध में प्राप्त बीजकों की सहायता लेनी चाहिए। साथ ही यह भी पता लगाना चाहिए कि लेनदारों के लेखा-विवरणों की उनके वास्तविक खातो से मिलान करने की व्यवस्था कैसी है। कभी-कभी प्रविष्टि की जांच से पूर्व अंकेक्षक को बैठक की कार्यवाही-पुस्तिका (Minute Book), प्रसंविदे अथवा अन्य कागजी सबूतों को भी देखना होता है।

(प्रमाणक रसीदें, लेखा-विवरण, बीजक कार्यवाही-पुस्तिका, प्रसंविदे आदि।)

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मजदूरी भुगतान का प्रमाणन (Vouching of Payments of Wages)

मजदूरी की रकम प्रमाणन करने के लिए अंकेक्षक को मजदूरी के आन्तरिक निरीक्षण की व्यवस्था की भली प्रकार छानबीन करनी चाहिए। यदि आन्तरिक निरीक्षण की प्रणाली सन्तोषजनक है तो मजदूरी के भुगतान में धोखा या छल-कपट की गुंजाइश नहीं होती है। दोषपूर्ण व्यवस्था होने पर क्लर्को की गलतियां हो सकती हैं और अधिक मजदूरी का भुगतान हो सकता है। मजदूरी का हिसाब रखने, मजदूरी तालिका (Wage Sheet) के तैयार करने तथा मजदूरी भुगतान की प्रक्रिया पर पूर्ण नियन्त्रण होना चाहिए। इस सम्बन्ध में अंकेक्षक के कर्तव्य निम्नवत् हैं :

(1) मजदूरी के सम्बन्ध में आन्तरिक निरीक्षण की प्रणाली का अध्ययन करना चाहिए तथा उनके दोषों का पता लगाना चाहिए।

(2) मजदूरी तालिका या मजदूरी-पुस्तक (Wages Book) के गुणनफल तथा जोड़ की जांच करनी चाहिए।

(3) साथ ही जहां-तहां से कुछ मदों को भी जांचना चाहिए और किराया, जुर्माना, बीमा, फण्ड आदि की प्रविष्टियों की जांच करनी चाहिए।

(4) मजदूरी तालिका में भुगतान करने की शुद्ध रकम की जांच उसके लिए लिखे गये चैक की रकम से करनी चाहिए।

(5) मजदूरी-तालिका में दिये हुए मजदूरों के नाम की जांच कार्य-कार्ड (Job-cards) तथा फोरमैन के रजिस्टर की सहायता से करनी चाहिए। इस जांच में मजदूरों के उन नामों का पता चल सकता है जो मजदूरी-तालिका में झूठे दिखाये गये हैं।

(6) अंकेक्षक को देखना चाहिए कि मजदूरी-तालिका तैयार करने वाले सभी क्लर्को ने उस पर अपने हस्ताक्षर कर दिये हैं।

(7) आकस्मिक मजदूरों को दी जाने वाली रकम के भुगतान की जाँच सावधानी से करनी चाहिए।

संक्षेप में, मजदूरी के भुगतान के सम्बन्ध में अंकेक्षक के तीन प्रमुख कार्य हैं—(1) रोकड़-बही में लिखी हुई मजदूरी की रकम का भुगतान वास्तव में कर दिया गया है, (2) मजदूरी की रकम वास्तव में संस्था पर उधार (due) थी जिसका भुगतान होना चाहिए था, तथा (3) मजदूरी का यह भुगतान पूर्ण रूप से अधिकतथा।

(प्रमाणक-मजदूरी-तालिका, मजदूरी का लेखा करने का रजिस्टर तथा कार्य-कार्ड आदि।

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भूमि और भवन की खरीद का प्रमाणन (Vouching of Purchase of Land and Buildings)

सम्पत्ति की खरीद निम्न तीन प्रकार से हो सकती है:

(1) पूरी कीमत देकर बैनामा (Sale Deed) लिखवाकर, जिसके द्वारा क्रेता को पूर्ण अधिकार हमेशा

के लिए हो जाता है।

(2) पट्टे (lease) के आधार पर, जिसमें क्रेता का अधिकार कुछ निश्चित वर्षों के लिए रहता है. तथा

(3) नीलाम के  (Auction )के द्वारा सम्पत्ति की नीलामी की कीमत देकर क्रेता का अधिकार हमेशा के लिए हो जाता है।

भुगतान की रकम के लिए बैनामा, पट्टा या नीलाम करने वाले के नोट (Auctioneer’s Note) की जांच करनी चाहिए और वास्तविक प्रसंविदे को भी देखना चाहिए जिसमें दी हई क्रय के सम्बन्ध में सारी शतों की जांच अच्छी तरह से करनी चाहिए। कानूनी खर्चे, दलाली आदि के लिए वकील द्वारा दिये हुए बिल को देखना चाहिए। यदि सम्पत्ति किसी दलाल के द्वारा खरीदी गयी है तो दलाल के हिसाब से दलाली की रकम का प्रमाणन करना चाहिए। यह ध्यान रखना चाहिए कि ये सभी खर्चे पूंजीगत व्यय (capital expenditure) होते हैं।

यदि भवन का निर्माण कराया गया हो तो भुगतान की रकम का प्रमाणन करने के लिए ठेकेदार के साथ किये गये प्रसंविदे, ठेकेदार की रसीद, बनाने वाले का प्रमाण-पत्र (architect’s certificate) और उसकी रसीद की जांच करनी चाहिए।

(प्रमाणक-बैनामा, पट्टा, नीलामकर्ता का नोट, दलाल का हिसाब, प्रसंविदे, ठेकेदार की रसीद, आदि)

वेतन का प्रमाणन (Vouching of Salary)

वेतन-पुस्तक (Salary Book) की जांच करने के पश्चात इसका रोकड़-बही के लेखों से मिलान करना चाहिए। यदि सभी कर्मचारियों के लिए एक ही चैक लिखा गया हो तो रोकड़-बही के लेखे का मिलान वेतन-पुस्तक के जोड़ से करना चाहिए किन्तु यदि प्रत्येक कर्मचारी को अलग-अलग चैक दिये जाने की व्यवस्था हो, तो रोकड़-बही का मिलान वेतन-पुस्तक के प्रत्येक लेखे से करना होगा।

वेतन का भुगतान अधिकृत है, इसके लिए वेतन-पुस्तक पर किसी उत्तरदायी अधिकारी के हस्ताक्षर अवश्य होने चाहिए। वार्षिक वेतन वृद्धि (annual increments), असाधारण तरक्की अथवा अन्य विशेष पुरस्कार के लिए उसके सम्बन्ध में प्रयुक्त अधिकार तथा स्वीकृति की जांच करनी चाहिए। साथ ही वेतन में जुर्माने, फण्ड, किराया आदि के लिए की गयी कटौती के लिए उचित प्रमाण-पत्र अवश्य देखने चाहिए। अदत्त वेतन, अग्रिम वेतन एवं अयाचित वेतन (unclaimed salaries) की भी जांच की जानी चाहिए। इसके अतिरिक्त ऋण व अग्रिम के रूप में दी गयी राशि की पुनः वसूली की जांच आवश्यक है। वेतन के सम्बन्ध में कर्मचारियों के विभिन्न वर्गों के सम्बन्ध में बनाए गए विशेष नियमों की जांच की जानी चाहिए।

वेतन के लिए वेतन-पुस्तक की जांच के अतिरिक्त नियुक्ति-पत्र (appointment letter), प्रसंविदे (agreements) और संचालकों की बैठकों के प्रस्ताव अवश्य देखने चाहिए। यह संस्था के नियमों पर निर्भर होगा कि कौन-कौनसे कार्य संचालकों की बैठक में स्वीकृत किये जाते है।

(प्रमाणक वेतन-पुस्तक, नियुक्ति-पत्र, प्रसंविदे, संचालकों की बैठक में पास किये हुए प्रस्ताव एवं अन्य स्वीकृति-पत्र।)

अंकेक्षक को पारिश्रमिक का प्रमाणन (Vouching of Remuneration to Auditor)

अंकेक्षक को दिये जाने वाले पारिश्रमिक के सम्बन्ध में यह महत्वपूर्ण है कि यह पारिश्रमिक कम्पनी अथवा फर्म के लाभ-हानि खाते में किस वर्ष में लिखा जाय। जिस वर्ष के खातों का अंकेक्षण किया जाता। है, उस वर्ष के लाभ-हानि खाते में यह पारिश्रमिक लिखा जाना चाहिए अथवा उस वर्ष के लाभ-हानि खाते में। लिखना चाहिए जिसमें अंकेक्षण कार्य किया जा रहा है। पूर्व की स्थिति में यह कहा जाता है कि यह पारिश्रमिक अन्तिम खाते के बन्द हो जाने के पश्चात् देय होता है। अतः उस वर्ष के खातों में अदत्त दायित्व के रूप में दिखाना चाहिए क्योंकि वास्तव में इसका सम्बन्ध उस वर्ष से ही है जिसके खातों का अंकेक्षण किया जा रहा है।

परन्तु क्योंकि आगामी वर्ष में इस पारिश्रमिक का भगतान किया जाता है अतः उस वर्ष के लाभ-हानि। खाते में दिखाया जाना चाहिए। स्पष्ट बात यह है कि अंकेक्षण-कार्य अगले वर्ष में करवाया जाता है जबकि गत वर्ष के खाते बन्द हो जाते हैं अतः अंकेक्षक का पारिश्रमिक आगामी वर्ष के लाभ-हानि खाते में ही दिखलाया। जाना चाहिए। यह ध्यान रखना चाहिए कि किसी भी स्थिति में पारिश्रमिक को दो बार डेबिट नहीं किया जाना चाहिए।

(प्रमाणक अंकेक्षक से किया गया प्रसंविदा तथा भुगतान प्राप्ति की रसीद।)।

देय बिल का प्रमाणन (Vouching of Bills Pavable)

देय बिल की रकम भुगतान के लिए रुपया पाने वाले की रसीद तथा उसके द्वारा वापस किय गय दय बिल की जांच करनी चाहिए। देय बिल के सम्बन्ध में सभी लेखा देय-बिल-बही (Bills Payable Book) से। प्राप्त हो सकता है। यदि भुगतान बैंक के द्वारा किया गया हो तो बैंक की पास-बक से जांच करनी चाहिए।

(प्रमाणक रसीद, देय बिल, देय-बिल-बही. पास-बक।)

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प्लाण्ट और मशीन का प्रमाणन (Vouching of Plant and Machinery)

प्लाण्ट और मशीन के क्रय के सम्बन्ध में भुगतान की हुई रकम का प्रमाणन विक्रेता से प्राप्त बीजक और रसीद से करना चाहिए। यदि इसकी खरीद नीलाम में की गई हो तो नीलाम करने वाले का नोट (Auctioneer’s Note) देखना चाहिए। खरीद के व्यय अथवा प्लाण्ट को चाल हालत में लाने के लिए किये गये व्यय प्लाण्ट के लागत के अंग माने जाते हैं। इनकी जांच करनी चाहिए। यदि प्लाण्ट की खरीद किराया-क्रय प्रसंविदे के आधार पर की गयी है तो प्रसंविदे की शर्तों को देखना चाहिए।

(प्रमाणक—बीजक, रसीद, नीलामकर्ता का नोट, किराया-क्रय-प्रसंविदा, आदि।)

विनियोगों की खरीद का प्रमाणन (Vouching of Purchase of Investments)

दलाल के क्रय नोट (Broker’s Bought Note) और उसकी खरीद से भुगतान की रकम का प्रमाणन करना चाहिए। यदि बैंक के द्वारा खरीद की गयी हो तो बैंक की पास-बूक से जांच करनी चाहिए। लाभांश सहित (cum-dividend) खरीद में पूंजीगत और लाभगत मदों का समुचित विभाजन करना आवश्यक है। इसकी जांच करनी चाहिए कि पूंजी और आय (Capital and Revenue) का ठीक प्रकार से अन्तर किया गया है।

यदि कम्पनी के अंश खरीदे गये हों तो बैंक की रसीद, आबंटन-पत्र (allotment letters) और अंश प्रमाण-पत्र (share certificates) देखना चाहिए।

(प्रमाणक-दलाल का क्रय-नोट, बैंक की रसीद, आबंटन पत्र, अंश-प्रमाण-पत्र, आदि।)

पैटेण्ट और कॉपीराइट का प्रमाणन (Vouching of Patent and Copyright)

यदि इनका क्रय किया गया हो तो रकम की जांच के लिए कॉपीराइट के प्रसंविदे को देखना चाहिए और एजेण्ट के लिए दी गयी रकम से सम्बन्धित रसीद की जांच करनी चाहिए। प्राप्ति के सम्बन्ध में किये गये खर्चे स्थायी व्यय (capital expenditure) होते हैं। यदि पेटेण्ट एजेण्ट के द्वारा प्राप्त किया गया है तो एजेण्ट का कमीशन भी पूंजीगत व्यय माना जायेगा। यह ध्यान रखना चाहिए कि नवीनीकरण (renewal) की फीस आयगत व्यय मानी जाती है।

(प्रमाणक कॉपीराइट का प्रसंविदा, रसीद, एजेण्ट का हिसाब।)

किराया-क्रय के लिए भुगतान का प्रमाणन (Vouching of Payment under Hire-Purchase Agreement)

अंकेक्षक को किराया-क्रय प्रसंविदे की जांच करनी चाहिए और यह देखना चाहिए कि सम्पत्ति का लेखा नकद मल्य पर किया गया है और ब्याज का पृथक् लेखा है। नकद मूल्य पूंजीगत व्यय है व ब्याज आयगत व्यय है। प्रत्येक किस्त के भुगतान का प्रमाणन करने के लिए उसकी रसीद की जांच करनी चाहिए। जो किस्तें दे दी गयी हैं उनमें ब्याज भी शामिल होती है। अंकेक्षक को यह देखना चाहिए कि ब्याज अलग से आय खाते में लिखी गयी है अथवा नहीं। यदि विलम्ब से भुगतान के लिए कोई हर्जाना दिया गया है तो उसका लेखा अलग व्यय मानकर किया जाना चाहिए।

ऐसे भगतानों का प्रमाणन किराया-क्रय व्यापारी से समय-समय पर प्राप्त विवरण-पत्रों एवं अन्य सम्बन्धित प्रमाणकों से करना चाहिए।

(प्रमाणककिराया-क्रय प्रसंविदा, रसीद आदि।)

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रेल किराया व चुंगी का प्रमाणन (Vouching of Railway Freight and Octroi Duties)

रेल किराया तथा चुंगी के कर के भुगतान करने पर प्राप्त रसीदों की जांच करनी चाहिए। यह ध्यान रखना चाहिए कि ये सभी रसीदें अधिकत हैं तथा सम्बन्धित अधिकारियों द्वारा निर्गमित की गयी है। इन रसीदों में दिये गये विवरण से भुगतान की रकम का मिलान करना चाहिए कि वह सही है या नहीं। यदि इस सम्बन्ध में कोई छूट मिली हो तो उसका भी प्रमाणन करना चाहिए।

(प्रमाणकरसीदें।)

मार्ग-व्यय का प्रमाणन (Vouching of Travelling Expenses)

मार्ग-व्यय के भुगतान के सम्बन्ध में संचालकों या साझेदारों द्वारा बनाए गए आवश्यक नियमों का अध्ययन करना चाहिए। यदि मार्ग-व्यय एक निश्चित राशि के रूप में दिये जाते हैं तो विशेष गणना की आवश्यकता नहीं होती। अंकेक्षक को यह देखना चाहिए कि मार्ग-व्यय से सम्बन्धित बिल एक उत्तरदायी। अधिकारी द्वारा पास किये जाते हैं। प्राप्तकर्ता की रसीद से रकम का प्रमाणन करना चाहिए। यह ध्यान रखने की बात है कि मार्ग-व्यय केवल उन्हीं कार्यों के लिए दिया जाता है जिनका व्यापार से सम्बन्ध होता है। कम्पनी के संचालकों द्वारा वसूल किये गये यात्रा व्यय के सम्बन्ध में अंकेक्षक को यह जांच कर लेनी चाहिए कि । अमुक यात्रा संस्था के हित में की गयी थी।

(प्रमाणक किराये की टिकट, खाने के बिल, रहने के बिल, रसीद, आदि।)

 

विज्ञापन व्यय का प्रमाणन (Vouching of Advertising Expenses).

अंकेक्षक को यह देखना चाहिए कि विज्ञापन पर किये गये व्यय पर आवश्यक नियन्त्रण रखने की पर्याप्त व्यवस्था है अथवा नहीं। विज्ञापन के लिए बजट में कितना आयोजन किया गया है तथा वास्तव में कितना व्यय किया गया है, इसका मिलान करना चाहिए। सामान्य विज्ञापन व्ययों की जांच करने में विशेष सावधानी से कार्य करना चाहिए।

असाधारण विज्ञापन व्ययों के सम्बन्ध में अंकेक्षक को इस सम्बन्ध में संस्था की नीति का अध्ययन करना चाहिए। अतः ऐसे व्यय को स्थगित आयगत व्यय’ (Deferred Revenue Expenditure) कहते हैं। अतः ऐसे व्यय को कुछ निर्धारित वर्षों के लाभ-हानि खातों में अपलिखित किया जाना चाहिए। साथ ही ऐसे व्यय की बजट की गयी राशि तथा वास्तविक व्यय की राशि का मिलान भी करना चाहिए। विज्ञापन का सम्बन्ध व्यवसाय से होना चाहिए। विज्ञापन एजेन्सी के साथ हुए सम्बन्ध की जांच की जानी चाहिए एवं अदत्त विज्ञापन व्ययों का प्रकटीकरण चिट्ठे में किया गया है इसकी भी जांच की जानी चाहिए।

(प्रमाणकरसीदें, व्यय सम्बन्धी प्रसंविदे, आदि।)

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ऋण पर ब्याज का प्रमाणन (Vouching of Interest on Loan)

ऋण चाहे बैंक से प्राप्त हो या अन्य संस्था से, प्रत्येक दशा में ब्याज का भुगतान किया जाता है। ऋण की शर्तों का अध्ययन करना चाहिए और ब्याज के बदले में प्राप्त रसीद से रकम का प्रमाणन करना चाहिए। यदि ऋणपत्रों (debentures) पर ब्याज दिया जाता है तो ऋणपत्र की ब्याज-बही (Debenture Interest | Book) से ब्याज की दर मालूम करनी चाहिए। यदि ब्याज का भुगतान बैंक के द्वारा किया जाता हो ता। पास-बुक और ब्याज बहियों का मिलान करना चाहिए।

(प्रमाणकऋण की शर्ते, रसीद, ऋणपत्र-ब्याज-बही, पास-बक आदि।)

लाभांश का प्रमाणन (Vouching of Dividend)

लाभांश के सम्बन्ध में पार्षद सीमानियम व अन्तर्नियमों की जांच की जानी चाहिए। लाभांश की घोषणा। के सम्बन्ध में कम्पनी प्रावधान अधिनियम, 1975 (लाभ का संचय में हस्तान्तरण) की जांच आवश्यक है। लाभांश के भुगतान के लिए वापस किये हुए लाभांश पत्रों (Dividend Warrants) की जांच करनी चाहिए।

और यदि लाभांश का भुगतान बैंक के द्वारा किया जाता है तो लाभांश-पत्र और पास-बक का मिलान करना। जानिशाजितनी लाभांश की रकम देना बाकी है वह रकम पास-बक में बची हई रकम के बराबर होनी चाहिए। लाभांश के सम्बन्ध में संचालकों की सभा के मिनट्स की जांच की जानी चाहिए। लाभांश की गणना की विधि, अयाचित लाभांश की भी जांच अंकेक्षक के द्वारा की जानी चाहिए।

संचालकों की फीस का प्रमाणन (Vouching of Directors’ Fees)

सचालका का फास के भुगतान का प्रमाणन करने के लिए संचालकों की बैठक की कार्यवाही-पुस्तिका (Directors’ Minute Book), बैठकों में उनकी उपस्थिति का रजिस्टर और संचालकों से प्राप्त रसीदा का। जांच करनी चाहिए। अन्तर्नियमों में दिये हए आवश्यक नियमों का अध्ययन करना चाहिए। यदि अन्तनियमा। में इस सम्बन्ध में कोई नियम नहीं है तो अंशधारियों के उस प्रस्ताव को देखना चाहिए जिसमें संचालका का। फीस निश्चित की गयी है। यदि फीस आय-कर से मुक्त है तो इस सम्बन्ध में आवश्यक अनुमति की जाचा करनी चाहिए।

(प्रमाणक कार्यवाही पुस्तिका, उपस्थिति रजिस्टर अन्तर्नियम. अंशधारियों का प्रस्ताव, आदि।) ।

करों का भुगतान का प्रमाणन (Vouching of Payment of Taxes)

करों के भुगतान के लिए अंकेक्षक को कर निर्धारण आदेश (assessment order), फॉर्म, मांग-सूचना (Notice of Demand) तथा चालान की प्रतिलिपियों की जांच करनी चाहिए। चालान व मांग-सूचना की सहायता से धारा 207 के अन्तर्गत आय-कर के पेशगी भुगतान का सत्यापन करना चाहिए।

आय-कर के पेशगी भुगतान पर प्राप्त ब्याज को धारा 214 के अन्तर्गत आय में सम्मिलित किया जाना चाहिए तथा भुगतान न करने की स्थिति में लगायी गयी ब्याज को धारा 215. 216 तथा 217 के अन्तर्गत ब्याज खाते में डेबिट किया जाना चाहिए। _

बिक्री-कर (Sales Tax) के भुगतान का प्रमाणन व्यापारी के द्वारा प्रस्तुत विवरण-पत्र व बैंक या ट्रेजरी की रसीद से मिलान करके किया जाना चाहिए। ये विवरण-पत्र प्रति माह या त्रैमासिक जमा किये जाते हैं। अन्तिम कर-निर्धारण के समय यदि कर की राशि वास्तविक राशि से कम होती है तो व्यापारी को जमा करने को कहा जाता है और यदि अधिक होती है, तो वापस कर दी जाती है।

(प्रमाणक-1. आय-कर-निर्धारण आदेश, फॉर्म, मांग-सूचना, चालान 2. बिक्री-कर-विवरण-पत्र, आदि।)

कमीशन का प्रमाणन (Vouching of Commission)

कमीशन की शर्तों की जांच प्रतिनिधियों के साथ किये गये प्रसंविदे से करनी चाहिए। प्रायः कमीशन वास्तविक बिक्री (net sales) की रकम पर दिया जाता है जो कुल बिक्री (gross sale) में छूट, अप्राप्य ऋण, आदि घटाने के बाद बचती है। इस सम्बन्ध में प्रसंविदे की जांच करनी चाहिए।

(प्रमाणक-प्रसंविदा, प्रतिनिधियों का हिसाब-किताब, आदि।)

बैंक व्यय का प्रमाणन (Vouching of Bank Charges)

बैंक का कमीशन, अधिविकर्ष (overdraft) का ब्याज, बट्टा, इत्यादि के लिए बैंक पासबुक की जांच करनी चाहिए। बीमा का प्रमाणन (Vouching of Insurance)

बीमा की रकम के भुगतान के सम्बन्ध में बीमा कम्पनी की पॉलिसी व रसीद की जांच करनी चाहिए। यदि पॉलिसी का नवीनीकरण (Renewal) किया गया हो तो नवीनीकरण की रसीद भी देखनी चाहिए।

(प्रमाणकबीमा पॉलिसी तथा बीमा की रसीद।)

फुटकर-व्यय का प्रमाणन (Vouching of Petty Cash)

फुटकर व्यय के लिए फुटकर-व्यय बही (Petty Cash Book) की जांच करनी चाहिए। फुटकर व्ययों क लिए फुटकर-व्यय बही एक उचित प्रमाण-पत्र है। अंकेक्षक को रकमों का मिलान सावधानी से करना

डाक-व्यय का प्रमाणन (Vouching of Postage)

डाक व्यय के लिए डाक-व्यय बही (Postage Book) को देखना चाहिए और यह विशेषकर देखना चाहिए कि इस डाक-व्यय में केवल संस्था के ही डाक-व्यय सम्मिलित है व्यक्तिगत डाक-व्यय नहीं।

पट्टे पर क्रय की सम्पत्ति का प्रमाणन (Vouching of Assets acquired on Lease)

AS-19 के अन्तर्गत पट्टे को दो भागों में वर्गीकत किया गया है : (a) वित्तीय पट्टा व (a) संचालन पट्टा। संचालन पट्टे के सम्बन्ध में किए गए भुगतान को व्यय मानते हए लाभ-हानि खाते में दशाया जाना चाहिए। वित्तीय पट्टे के सम्बन्ध में पट्टे को एक सम्पत्ति एवं दायित्व माना जाना चाहिए।

(प्रमाणकपट्टा अनुबन्ध।)

सम्पत्ति की मरम्मत का प्रमाणन (Vouching of Repairs to Assets)

सम्पत्ति की मरम्मत के सम्बन्ध में मरम्मत व्यय जो सम्पत्ति की क्षमता या जीवनकाल को बढ़ाने के सम्बन्ध में किए गए हैं, पूंजीगत व्यय मानने चाहिए। अन्य प्रकार के व्ययों को आयगत मरम्मत व्यय माना। जाना चाहिए। व्ययों को पंजीगत या आयगत व्यय मानना, व्ययों की प्रकृति पर निर्भर करता है।

 (प्रमाणकव्ययों के भुगतान की रसीद, व्ययों के सम्बन्ध में इंजीनियर के प्रमाण-पत्र।)

प्रारम्भिक व्यय का प्रमाणन (Vouching of Preliminary Expenses)

कम्पनी के निर्माण के सम्बन्ध में किए गए व्यय प्रारम्भिक व्यय कहलाते हैं। इन व्ययों में स्टाम्प ड्यूटी पंजीकरण फीस, कानूनी व्यय, मुद्रण व्यय, आदि शामिल होते हैं। प्रारम्भिक व्ययों के सम्बन्ध में हुए अनुबन्धों की जांच की जानी चाहिए। प्रवर्तकों को भुगतान में किए गए व्ययों को देखना चाहिए।

अंकेक्षक को प्रारम्भिक व्ययों की जांच के लिए संचालकों के प्रस्ताव, प्रविवरण, वैधानिक रिपोर्ट व आर्थिक चिट्ठे की जांच करनी चाहिए। प्रारम्भिक व्ययों को चिट्ठे में विविध व्ययों में दर्शाया जाना चाहिए। अंशों एवं ऋणपत्रों के निर्गमन पर दिए गए कमीशन व दलाली को इसमें शामिल नहीं करना चाहिए।

(प्रमाणक—प्रविवरण, वैधानिक रिपोर्ट, भुगतान की रसीद, अनुबन्ध की प्रति।)

कर्मचारियों को ग्रेच्यूइटी का प्रमाणन (Vouching of Gratuity to Employees)

ग्रेच्यूइटी के सम्बन्ध में भुगतान के आधार की जांच की जानी चाहिए। ग्रेच्यूइटी की गणना की वैधता की जांच की जानी चाहिए। अवकाश प्राप्त कर्मचारियों को दी जाने वाली ग्रेच्यूइटी की गणना उनके कार्यकाल की अवधि को ध्यान में रखकर जांच की जानी चाहिए, आदि।।

(प्रमाणक भुगतान की गई ग्रेच्यूइटी की रसीद, ग्रेच्यूइटी से सम्बन्धित नियम।)

फुटकर-व्यय बही का प्रमाणन (Vouching of Petty Cash Book)

सर्वप्रथम अंकेक्षक को फुटकर व्ययों के सम्बन्ध में अपनायी गयी आन्तरिक निरीक्षण की पद्धति का अध्ययन करना चाहिए। यदि यह पद्धति सुव्यवस्थित है, तो उसको निम्नलिखित कार्यवाही करनी चाहिए :

(1) अंकेक्षक को रोकड़ पुस्तक से उस भुगतान की जांच करनी चाहिए जो फुटकर व्यय के लिए उत्तरदायी रोकड़िये को फुटकर व्यय के लिए किया गया है।

(2) उसको फुटकर-व्यय बही के जोड़ों, शेषों (balances), आदि की जांच करनी चाहिए।

(3) उसे प्रमाणकों की जांच करनी चाहिए और यह स्पष्ट कर देना चाहिए कि 2 ₹ से अधिक के व्यय के लिए प्रमाणक उपलब्ध किये जाने चाहिए।

(4) अंकेक्षक को यह भी देखना चाहिए कि फुटकर-व्यय-बही की जांच समय-समय पर होती रहती। है और एक उत्तरदायी अधिकारी से यह प्रमाणित होता रहता है कि सभी भुगतान सही तथा शुद्ध है।

(5) अंकेक्षक को यह भी देखना चाहिए कि फुटकर व्यय बही की जांच समय-समय पर होती रहता। है और एक उत्तरदायी अधिकारी से यह प्रमाणित होता रहता है कि भुगतान शुद्ध तथा सही है।

(6) चिट्टे के दिन के फुटकर-व्यय राशि के शेष में सम्मिलित नहीं किये जाने चाहिए। सत्यापन के लिए या तो उसे स्वयं उपस्थित होकर शेष राशि को गिन लेना चाहिए अथवा इस राशि को चिट्टे के दिन बैंकमा जमा करने के निर्देश देने चाहिए।

लदंन आइल स्टोरेज एण्ड कम्पनी बनाम सीयर हैस्लॉक एण्ड कं., 1904 (London Oil Storage Co. Seear Hasluck & Co., 1904) के मामले में यह निर्णय दिया गया था कि अंकेक्षक ने फटकर-व्यय के शेष (balance) का सत्यापन न करके कर्तव्य-भंग किया है।

(7)  कोई भी IOUS फुटकर-व्यय की राशि के शेष में सम्मिलित नहीं किये जाने चाहिए।

क्रय-बही का प्रमाणन

(VOUCHING OF PURCHASES BOOK)

सबसे पहले अंकेक्षक को क्रय के लिए प्रचलित आन्तरिक निरीक्षण प्रणाली की जांच करनी चाहिए। विशेषकर माल मंगाने, ऑर्डर देने, बीजक की जाँच करने और माल प्राप्त करने से सम्बन्धित कार्यों की कशलता से जांच करनी चाहिए। यदि आन्तरिक निरीक्षण की प्रणाली सन्तोषजनक हो तो क्रय-बही का प्रमाणन आसानी के साथ किया जा सकता है।

(1) बीजक की जांच करते समय निम्नांकित बातों का ध्यान रखना चाहिए :

(क) बीजक संस्था के नाम में है;

(ख) बीजक की तारीख वही है जो क्रय-पुस्तक में लिखी हुई है;

(ग) बीजक ऐसे सामान के लिए बनाया गया है जिसमें संस्था व्यापार करती है;

(घ) बीजक पर जांचने वाले अधिकारी के हस्ताक्षर हैं;

(ङ) देनदार का नाम क्रय-बही में दिये गये नाम से मिलता है;

(च) बीजक की रकम में से व्यापारिक बट्टा काट दिया गया है और बीजक की रकम ठीक है।

(2) प्रायः संस्थाओं में माल प्राप्त करने पर माल भीतरी पुस्तक (Goods Inward Book) में माल का लेखा किया जाता है। इन लेखों की जांच बीजक की सहायता से करनी चाहिए। यह देखना चाहिए कि एक बीजक दो बार तो नहीं लिखा गया है और कहीं झठा क्रय तो नहीं दिखाया गया है।

(3) कभी-कभी हिसाब-किताब में गड़बड़ी करने के लिए बीजक दबा लिये जाते हैं। इसकी जांच करने के लिए वर्ष के अन्तिम दो या तीन सप्ताहों में प्राप्त माल का मिलान माल-भीतरी पुस्तक में लिखे हुए माल के लेखों से करना चाहिए और साथ ही अगले वर्ष के पहले कुछ सप्ताहों से सम्बन्धित बीजकों की भी जांच करनी चाहिए कि कहीं उनमें से कुछ बीजक इस वर्ष में तो नहीं चढ़ा दिये गये हैं।

(4) बीजक की जांच करते समय यह देख लेना चाहिए कि कोई लेन-देन दो बार तो नहीं लिख दिया गया है।

(5) यह भी देखना चाहिए कि कहीं पूंजीगत खरीद मूल खरीद में तो सम्मिलित नहीं की गयी है।

(6) क्रय-बही में जोड़, शेष आदि की जांच करनी चाहिए और खाताबही में की गयी इन लेखों की खतौनी की भी जांच करनी चाहिए।

(7) जिस खरीद के सम्बन्ध में उचित प्रमाण-पत्र प्राप्त न हो सकें उनके लिए दूसरी प्रतिलिपि मांगने का आदेश देना चाहिए और यदि किसी लेखे के लिए सन्तोषजनक प्रमाण न मिले तो इस बात का उल्लेख अपनी रिपोर्ट में कर देना चाहिए।

क्रय-वापसी बही का प्रमाणन

(VOUCHING OF PURCHASES RETURNS BOOK)

क्रय-वापसी के सम्बन्ध में आन्तरिक निरीक्षण की प्रणाली की जांच करनी चाहिए और निम्नांकित बातों का ध्यान रखते हए क्रय-वापसी बही का प्रमाणन करना चाहिए :

(1) विक्रेताओं से प्राप्त जमा-पत्रों (Credit Notes) की सहायता से क्रय-वापसी बही की जांच करनी चाहिए और माल-बाहरी पुस्तक (Goods Outward Book) एवं अन्य पत्र-व्यवहार से भी सहायता लेनी चाहिए। विशेष ध्यान इस बात की ओर देना चाहिए कि कहीं जमा-पत्र दबा तो नहीं लिये गये हैं। सामान्यतया किसी संस्था के कर्मचारी वर्ष के समाप्त होते समय अधिक गड़बड़ी करते हैं इसलिए अंकेक्षक को वर्ष की समाप्ति पर या वर्ष समाप्त होने के बाद कुछ सप्ताह की वापसी को ध्यानपूर्वक देखना चाहिए।

(2) क्रय-वापसी बही के योगों की जांच करनी चाहिए और खाताबही में की गयी खतौनी की जांच करनी चाहिए।

विक्रय-बही का प्रमाणन

(VOUCHING OF SALES BOOK)

उधार बिक्री की जांच करते समय अंकेक्षक संस्था में प्रचलित आन्तरिक निरीक्षण की प्रणाली पर अधिक निर्भर रहता है। यदि आदेश प्राप्त करने, माल भेजने, बीजक तैयार करने और उसकी जांच करने, बिक्री के लेखे करने की व्यवस्थित प्रणाली होती है तो बिक्री का प्रमाणन सुलभ हो जाता है :

(1) बिक्री-बही में लेखों की जांच बीजकों की प्रतिलिपियों की सहायता से करनी चाहिए और यह देखना चाहिए कि नाम, तारीख, रकम, आदि के सम्बन्ध में सभी विवरण सही है।

(2) व्यापारिक बट्टे की रकम की जांच करनी चाहिए। यदि किसी ग्राहक को विशेष बट्टा स्वीकृत किया गया है तो इस स्वीकृति के लिए प्रदत्त अधिकार की जांच की जानी चाहिए।

(3) आदेश प्राप्त पूस्तक और माल-बाहरी पुस्तक की सहायता से विक्रय-बही का प्रमाणन करना चाहिए और यह देखना चाहिए कि कहीं बिक्री लिखने से छूट तो नहीं गयी है।

(4) ‘खरीदो या वापस करो’ (Sales on Approval or Return basis) समझौते के आधार पर भेजे हुए माल का प्रमाणन करना चाहिए और यह देखना चाहिए कि कहीं यह माल बिक्री में तो सम्मिलित नहीं कर दिया गया है।

(5) अंकेक्षक को बड़ी सावधानी से बिक्री-बही में बीजक की नकल और माल-बाहरी पुस्तक की सहायता से हिसाब के वर्ष के अन्तिम कुछ सप्ताहों की बिक्री की विशेष जांच करनी चाहिए ताकि यह ज्ञात हो सके कि कहीं अगले वर्ष के प्रारम्भ के कुछ हफ्तों की बिक्री का लेखा इस वर्ष में तो नहीं कर दिया गया है। यदि आवश्यक हो तो अगले वर्ष के शुरू के कुछ सप्ताहों का हिसाब बिक्री-बही और माल-बाहरी पुस्तक की सहायता से जांच लेना चाहिए।

(6) देनदारों को समय-समय पर भेजे गये विवरण-पत्रों (Debtors Statement of Accounts) की भी जांच करनी चाहिए। संस्था के द्वारा प्रायः सभी देनदारों को उनके हिसाब का विवरण भेज देना चाहिए। यदि ऐसा नहीं किया जा रहा है, तो उसे आपत्ति करनी चाहिए।

(7) यह देखना चाहिए कि कहीं पूंजीगत बिक्री (Capital sales) का लेखा बिक्री-बही में तो नहीं कर दिया गया है।

(8) बिक्री-बही के योग आदि की जांच करनी चाहिए और खाताबही में की गयी खतौनी की भी जांच करनी चाहिए।

विक्रय-वापसी बही का प्रमाणन

(VOUCHING OF SALES RETURNS BOOK)

सबसे पहले आन्तरिक निरीक्षण प्रणाली का अध्ययन करना चाहिए। यदि यह व्यवस्था सन्तोषजनक हो तो बिक्री वापसी बही का प्रमाणन करने के लिए निम्नांकित बातों का ध्यान रखना चाहिए :

(1) जमा-पत्रों (Credit Notes) की प्रतिलिपियों, माल-भीतरी पुस्तक (Goods Inward Book) तथा अन्य पत्र-व्यवहार की सहायता से बिक्री-वापसी पुस्तक के लेखों की जांच करनी चाहिए। जमा-पत्र पर उचित अधिकारी के हस्ताक्षर अवश्य होने चाहिए।

(2) ग्राहक के खाते में अगले वर्ष में की हुई जमा प्रविष्टियों की जांच करनी चाहिए क्योंकि कभी-भी। ना के अन्त में विक्रय-वापसी के लिए लेखा नहीं किया जाता है और बिक्री की मात्रा बढाकर दिखायी जाती ।

(3) बिक्री-वापसी पुस्तक के योग की जांच करनी चाहिए और इस पुस्तक की प्रविष्टियों की खतौनी । की जांच खाताबही से करनी चाहिए।

प्राप्य-बिल बही का प्रमाणन

(VOUCHING OF BILLS RECEIVABLE BOOK)

प्राप्य-बिल बही में प्राप्य-बिलों का लेखा किया जाता है। सभी बिल चार वर्गों में रखे जा सकते हैं :

(1) जिन बिलों का भुगतान उनकी भुगतान तिथि पर मिल चुका हो ऐसे बिलों के लिए रोकड़-बही से र प्राप्ति की जांच करनी चाहिए। यदि रकम की प्राप्ति बैंकों के द्वारा की गयी हो तो पास-बुक में इसका लेखा ढूंढ़ना चाहिए।

(2) कुछ बिल ऐसे हो सकते हैं जिनको भुगतान तिथि से पहले बैंक से भूना लिया गया हो। इसके प्रमाणन के लिए रोकड़-बही या पास-बुक को देखना चाहिए।

(3) तीसरे प्रकार के बिल ऐसे हो सकते हैं जिनकी भुगतान की तारीख अभी दूर है और जो संस्था के पास हैं। यदि ऐसे सभी बिल संस्था के पास हैं तो अंकेक्षक को उनका निरीक्षण करना चाहिए और यदि उनमें से कुछ बैंक में ऋण आदि के सम्बन्ध में जमा कर दिये गये हों तो बैंक से प्रमाण-पत्र प्राप्त करके पूरी जानकारी प्राप्त करनी चाहिए।

(4) कुछ ऐसे बिल हो सकते हैं जिनको देनदारों ने अस्वीकृत कर दिया हो, इनके विषय में यह जानना जरूरी है कि अनादृत (dishonoured) बिल की रकम खर्चों सहित देनदारों के खातों में डेबिट की गयी है

प्राप्य-बिल बही के योग और खाताबही में की गयी खतौनी की जांच करनी चाहिए और यह देखना चाहिए कि भुनाये गये बिल के लिए आवश्यक आयोजन कर लिया गया है।

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देय-बिल बही का प्रमाणन

(VOUCHING OF BILLS PAYABLE BOOK)

देय-बिल बही में लिखे हुए बिल दो प्रकार के हो सकते हैं :

(1) वे बिल जिनका वर्ष में भुगतान कर दिया गया है। ऐसे बिलों की जांच रोकड़-बही और वापस किये  गये बिलों से करनी चाहिए। यदि भुगतान बैंक के द्वारा किया गया हो तो पास-बुक देखनी चाहिए।

(2) जिन बिलों की भुगतान तिथि अभी दूर है उनके हिसाब की जांच देय-बिल बही से करनी चाहिए और लेनदारों के हिसाब देखकर इनका प्रमाणन करना चाहिए। देय-बिल बही के योग और खाताबही में की गयी खतौनी की जांच करनी चाहिए।

जर्नल का प्रमाणन

(VOUCHING OF JOURNAL PROPER)

जिन लेखों के लिए कोई सहायक पुस्तक नहीं होती उनका लेखा जर्नल में किया जाता है। इस पुस्तक में लिखे गये भिन्न-भिन्न लेखों की जांच अंकेक्षक को बड़ी सावधानी से करनी चाहिए और यह देखना चाहिए कि जर्नल में की गयी प्रत्येक प्रविष्टि अच्छी तरह से समझायी गयी है और इसके लिए प्रमाणक मौजूद है।

(1) प्रारम्भिक लेखे (Opening Entries) इन लेखों का प्रमाणन पिछले वर्ष के चिढे से किया जायगा। याद किसी नयी संस्था ने पराने व्यवसाय को खरीदा हो तो विक्रेता के साथ किये गये प्रसंविदे, कम्पनी के अन्तर्नियम और संचालकों की बैठक के कार्य विवरण से प्रारम्भिक लेखों का प्रमाणन करना चाहिए।

(2) अन्तिम लेखे (Closing Entries) इन लेखों में वे सभी प्रविष्टियां आती हैं जो खातों को बन्द करने के लिए की जाती हैं। प्रायः ये खाते माल खाता, लाभ-हानि खाते में हस्तान्तरित किये जाते हैं। यह दखना चाहिए कि अन्तिम बाकियां ठीक निकाली गयी हैं और खातों को सही खाते में हस्तान्तरित किया गया है।

(3) समायोजन के लेखे (Adjusting Entries) समायोजन के लेखों के लिए यह देखना आवश्यक क अदत्त व्यय अथवा पूर्वदत्त व्यय के लिए ठीक आयोजन किया गया है और वैसे ही आमदनी जो प्राप्त नहा हुई है अथवा जो प्राप्त हो गयी है और अर्जित नहीं हुई है, उसका उचित समायोजन कर लिया गया है। इन सबके लिए अंकेक्षक को गहन जांच करनी चाहिए।

4) सुधार के लेखे (Rectification Entries)-ऐसे लेखों की जांच के लिए अपनी गलतियों को देखना। चाहिए और सुधार के लेखों की सूक्ष्म जांच करनी चाहिए। समस्त सुधार के लेखे संस्था के उच्च अधिकारियों से अधिकत होने चाहिए। लेखे करने में लेखाकर्म के सिद्धान्तों का कहां तक अनुकरण किया गया है यह भी देखना चाहिए। सम्बन्धित खातों की सूक्ष्म जांच करनी चाहिए।

(5) अप्राप्य ऋण (Bad Debts) अप्राप्य ऋण का देनदारों को दिये गये नोटिस, पत्र- व्यवहार एवं अन्य प्रपत्रों से प्रमाणन करना चाहिए। यह भी देखना चाहिए कि जिस ऋण को अप्राप्य घोषित कर दिया गया है, वह उच्च अधिकारी द्वारा स्वीकत किया गया है। यदि कुछ सन्देह हो तो पूरी छानबीन करनी चाहिए।

(6) संदिग्ध ऋण के लिए संचय (Provision for Doubtful Debts) इसकी जांच के लिए किसी उत्तरदायी अधिकारी की स्वीकति देखनी चाहिए। यह भी देखना चाहिए कि संचय की रकम पर्याप्य है।

(7) हास (Depreciation) हास की रकम के लिए संस्था की परम्परा को देखना चाहिए कि इस वर्ष हास की दरों में पिछले वर्षों की अपेक्षा विशेष अन्तर तो नहीं है। मालिक, साझेदार, संचालक या अन्य। अधिकारी की स्वीकृति देखकर ह्रास की दरों के औचित्य का प्रमाणन करना चाहिए। _

(8) चालान के लेन-देन (Consignment Transactions)—एजेण्टों से प्राप्त बिक्री विवरण (Account Sale) से इन लेन-देनों की जांच करनी चाहिए। यदि माल के भेजने पर उसकी कीमत लागत से कुछ अधिक उठायी गयी तो यह देखना चाहिए कि इसके लिए आवश्यक लेखा कर दिया गया है। बिना बिके हुए माल के मूल्यांकन के औचित्य का पता लगाना चाहिए। इस शेष माल की कीमत निकालते समय बीजक की कीमत के साथ-साथ उचित खर्चों को भी शामिल कर लेना चाहिए।

यदि दूसरों से चालान पर माल प्राप्त होता है तो विक्रय-विवरण की प्रतिलिपि से ऐसे माल की जांच करनी चाहिए। ऐसे माल की बिक्री को साधारण बिक्री में शामिल तो नहीं किया गया है, इसकी जांच करनी चाहिए और साथ ही यह भी देखना चाहिए कि बिना बिका हुआ माल संस्था के शेष माल में तो सम्मिलित नहीं किया गया है।

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खाताबही का प्रमाणन

(VOUCHING OF LEDGER)

क्रय या लेनदार खाताबही (Purchases or Creditors’ Ledger)

क्रय खाताबही के विभिन्न खातों में प्रारम्भिक शेषों के अतिरिक्त क्रय-पुस्तक, क्रय-वापसी पुस्तक, नाम-पत्र (Debit Note), रोकड़ बही, देय-बिल बही तथा जर्नल में से खतायी गयी प्रविष्टियां होंगी। साधारणतया, प्रत्येक खाते के क्रेडिट में क्रय, अनादृत किये गये बिल व चैकों, हस्तान्तरण तथा माल वापसी के लिए प्राप्त भुगतानों के सम्बन्ध में प्रविष्टियां होंगी, वैस ही डेबिट में भुगतान स्वीकार किये गये बिल, वापसी बट्टा व छूट के लिए डेबिट की गयी राशियां, माल के सहारे दिये गये अग्रिमों (advances) और हस्ताक्षरों के सम्बन्ध में प्रविष्टियां होंगी।

साधारणतया क्रय खाताबही में खाते क्रेडिट में होंगे। प्रत्येक खातों के शेष की जांच की जानी चाहिए। यदि यह स्पष्ट न हो, तो गत वर्ष के खाते देखने चाहिए। यदि प्रारम्भिक शेष की राशि या पहले किये गये। माल के लिए भुगतान न किया गया हो लेकिन बाद में क्रय किये गये माल का भुगतान कर दिया गया हो। तो इस बात की पूरी जानकारी करनी चाहिए। अदत्त शेषों के इतने दिन बने रहने की भी पूरी जांच करना। चाहिए।

कभी-कभी कोई खाता डेबिट हो सकता है। यह या तो वह राशि होगी जो वापसी या छूट (allowances) | के लिए प्राप्त होने वाली होगी या आदेशों (orders) के सहारे भुगतान किये गये अग्रिम के कारण होगी। इन। अग्रिमों के कारण की पिछली पद्धति का पता करना चाहिए कि डेबिट शेष अच्छा है तथा प्राप्त हो सकता है।। यदि नहीं तो इसके लिए पर्याप्त आयोजन कर लिया गया है। यदि यह डेबिट शेष उस ऋण के कारण जा। किसी संचालक या अन्य अधिकारियों को दिया गया है तो यह बात चिट्ठे में स्पष्ट लिखी जानी चाहिए।

क्रय खाताबही में सभी लेनदारों के खाते होते हैं। इस बही की जांच करने के लिए निम्नलिखित विशेष बातों का ध्यान रखना चाहिए :

(1) गत वर्ष के अंकेक्षित चिट्ठे से भिन्न-भिन्न खातों के प्रारम्भिक शेषों की जांच करनी चाहिए।

(2) सम्पूर्ण सहायक (supporting) पुस्तकों जैसे क्रय बही, माल बाहरी बही, रोकड़ बही, छूट बही, बटा बही, देय-बिल बही, आदि की पूर्ण जांच करनी चाहिए।

(3) यदि स्वकीय सन्तुलन प्रणाली का प्रयोग किया जा रहा है. तो अंकेक्षक को नियोक्ता से लेनदारों की एक सूची प्राप्त करनी चाहिए और इस सूची का योग लेनदारों की खाताबही के समायोजन खाते (Creditors’ Ledger Adjustment Account) से मिलाना चाहिए।

(4) अंकेक्षक को लेनदारों के विवरण की जांच करनी चाहिए और इनकी सहायता से क्रय खाताबही के शेषों की जांच करनी चाहिए।

(5) यह देखना चाहिए कि क्रय खाताबही के शेष चिट्ठे में उचित स्थान पर दिखाये गये हैं।

विक्रय या देनदार खाताबही

(SALES OR DEBTORS’ LEDGER)

विक्रय खाताबही में प्रारम्भिक शेषों के अतिरिक्त विक्रय-वापसी पुस्तक, जमा-पत्र (Credit Note), प्राप्य-बिल बही, जर्नल तथा रोकड़ बही में खतायी गयी प्रविष्टियां होंगी। प्रारम्भिक शेष, खतौनी तथा जोड़ों की जांच करनी चाहिए। प्रत्येक खाते में डेबिट की बिक्री, अनादृत बिल व चैक, माल वापसी के लिए किये गये भुगतान तथा हस्तान्तरण से सम्बन्धित प्रविष्टियां होंगी। क्रेडिट में बिक्री से प्राप्त राशि, आदेशों (orders) के सहारे प्राप्त अग्रिमों, प्राप्य बिल, बट्टा, विक्रय-वापसी छूट, हस्तान्तरण और अपलिखित किये डेबिट ऋण के लिए प्रविष्टियां होंगी। यह ध्यान रखना चाहिए कि यदि ग्राहकों से उनकी ओर से शेष शीघ्र वसूल नहीं किये जायेंगे, तो संस्था की पूंजी व्यर्थ ही रुकी रहेगी तथा डेबिट ऋणों की सम्भावनाएं बढ़ जायेंगी। अंकेक्षक इन बातों को प्रबन्धकों के नोटिस में ला सकता है।

कभी-कभी प्रारम्भिक शेष या प्रारम्भ की बिक्री की राशि वसूल कर ली जाती है पर बाद की बिक्री की रकम वसूल नहीं की जाती है। यह आपत्तिजनक है। अतः इसकी जांच करनी चाहिए।

प्राप्त होने वाले भुगतानों के सम्बन्ध में विभिन्न प्रकार की असावधानियां एवं छल-कपट हो सकते हैं। इनका उल्लेख यथास्थान कर दिया गया है। अंकेक्षक को इन खातों की गहन जांच करनी चाहिए।

विक्रय खाताबही में देनदारों के व्यक्तिगत खाते खुले होते हैं। इस बही की जांच करते समय निम्नलिखित विशेष बातों को ध्यान में रखना चाहिए :

(1) गत वर्ष के चिढे में दिये गये शेषों (Balances) से प्रारम्भिक शेषों की जांच करनी चाहिए।

(2) प्राप्य बिल बही, रोकड़ बही, विक्रय-वापसी बही, जर्नल या अन्य सहायक पुस्तकों की सहायता से विक्रय खाताबही के खातों की जांच करनी चाहिए।

(3) अंकेक्षक को देनदारों के खातों की सूची प्राप्त करनी चाहिए और उसकी जांच सावधानीपूर्वक करनी चाहिए।

(4) यदि स्वकीय सन्तुलन प्रणाली का प्रयोग किया जा रहा है तो देनदारों की सूची का योग देनदारों क खाताबही के समायोजन खाते (Debtors’ Ledger Adjustment Account) से मिलाना चाहिए।

(5) यह देखना चाहिए कि विक्रय खाताबही के शेष चिट्ठे में उचित स्थान पर दिये गये हैं।

(6) अंकेक्षक को डूबत तथा संदिग्ध ऋणों की सूची प्राप्त करनी चाहिए और उनका सत्यापन भली प्रकार से करना चाहिए।

(7) यह देखना चाहिए कि क्या प्रत्येक खाताबही क्लर्क का कार्य स्वतन्त्र रूप से जांचा जाता है अथवा नहीं।

(8) खाताबही क्लर्क (Ledger Clerk) के अलावा अन्य व्यक्ति के द्वारा खाताबही में प्रविष्टियां की जाती हैं अथवा नहीं।

(9) यह देखना चाहिए कि खाताबही का समय-समय पर शेष निकाला जाता है अथवा नहीं।

(10) यह विशेष रूप से निश्चित करना चाहिए कि डूबत ऋणों का अपलिखित करना तथा खातों की वसूली किसी उत्तरदायी अधिकारी की देखरेख में की जाती है अथवा नहीं।

कुल खाता

(TOTAL ACCOUNT)

कुल या नियन्त्रण खाता (Total or Control Account) वह खाता है जो खाताबही के विभिन्न खातो के डेबिट की सभी रकमों से डैबिट किया जाता है तथा उसी प्रकार क्रेडिट की रकमों से क्रेडिट किया जाता है। उस खाते का शेष उस खाताबही के डेबिट व क्रेडिट की रकमों के अन्तर के बराबर होना चाहिए।

इस प्रकार, कल खाते के बनाने में प्रारम्भिक लेखे की सभी पस्तकों. रोकड वही आदि से सहायता ली। जाता हा यह खाता इस तरह से विक्रय तथा क्रय खाताबहियों पर नियन्त्रण रखने का कार्य करता है। उदाहरणस्वरूप, दोनों नियन्त्रण खाते निम्न प्रकार बनाये जायेंगे :

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यान्त्रिक बहीखाता

(MECHANISED ACCOUNTING)

विभिन्न लेन-देनों को लिखने की सुविधा के लिए मशीनों का प्रयोग किया जाता है। ऐसा करने से नियन्त्रण तथा रोकथाम की सुविधा रहती है और कार्य एवं गतिविधियों की जांच करने में आसानी रहती है। यान्त्रिक बहीखाता के प्रयोग करने के पूर्व अंकेक्षक से सलाह कर लेना हितकारी होता है।।

हिसाब-किताब लिखने की पुरानी पद्धति के अन्तर्गत सारा कार्य हाथों से किया जाता है और जर्नल से। बाबही तक एक लेन-देन के जाने में काफी समय लगता है तथा कई पुस्तकों का रखना आवश्यक होता। वतथा व्यय काफी होता है। अतएव आज उद्योग-धन्धों के विस्तार के साथ-साथ आवश्यक हो। हिसाब लिखने की एक अच्छी पद्धति का प्रयोग किया जाय ताकि लागत कम-से-कम हो आर। में कार्य पूरा हो जाय। आधुनिकीकरण (Modernisation) के इस युग में कार्य को यथासम्भव ने की आवश्यकता है और इसी कारण खातों के बनाने में मशीनों के प्रयोग को अधिक। जा रहा है। इसी संदर्भ में यान्त्रिक बहीखाता का महत्व अधिकाधिक बढ़ता चला जा रहा है।

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लाभ यान्त्रिक बहीखाते के निम्न  लाभ हैं :

(1) यान्त्रिक बहीखाता में मशीनों का प्रयोग लेन-देन के लिखने के लिए किया जाता है। अतः कार्य की गति में वृद्धि हो जाती है।

(2) मनुष्य की अपेक्षा मशीनों का प्रयोग अधिक विश्वस्त माना जाता है इसलिए टियों के लिए अवसर कम होता है।

(3) हाथ के द्वारा कार्य की अपेक्षा मशीनों के द्वारा किया गया कार्य अधिक स्वच्छ तथा सही हो सकता है ।

(4) मशीनों के प्रयोग से व्यय में कमी हो सकती है। अतः मितव्ययिता होने के अच्छे अवसर मिल जाते है ।

(5) हिसाब-किताब की यान्त्रिक पद्धति से लेखों की अधिक प्रतियां उपलब्ध हो सकती हैं जो बिना अधिक व्यय किये आसानी से प्राप्त हो सकती हैं।

(6) अधिसमय कार्य (Overtime Work) के लिए अधिक गुंजाइश नहीं रहती है क्योंकि मशीनों की कुशलता सदैव अच्छी होती है।

(7) मशीनों के प्रयोग से अन्तिम खाते कभी भी सुविधापूर्वक बनाये जा सकते हैं। देनदारों से वसूली की भी सविधा रहती है क्योंकि उनके हिसाब एवं खाते शीघ्रता से उनको उपलब्ध किये जा सकते हैं।

(8) अंकेक्षण, आन्तरिक अंकेक्षण तथा आन्तरिक निरीक्षण के प्रयोग में सुविधा रहती है तथा व्यय में कमी हो सकती है।

(9) यान्त्रिक बहीखाते के प्रयोग में पुराने आंकड़े शीघ्र एकत्रित किये जा सकते हैं जिसमें प्रबन्धक को उसके विश्लेषण के द्वारा शीघ्र निर्णय में सुविधा रहती है।

हानि यान्त्रिक बहीखाते की निम्न हानियां हैं :

(1) यान्त्रिक बहीखाते के प्रयोग में खुले कार्ड तथा कागज (loose cards or sheets) आते हैं। अतः इनके आसानी से खो जाने की सम्भावनाएं बढ़ जाती हैं।

(2) पुराने लेखों को खोजने की स्थिति में त्रुटियों के पता चलाने में बड़ी असुविधा रहती है।

(3) इस पद्धति में प्रविष्टियों के लिए कोई विवरण (narration) नहीं दिया जाता है। अतः लेन-देन को समझने में कठिनाई रहती है।

(4) ऐसे लेखे अंकेक्षक की समझ में आसानी से नहीं आते हैं।

(5) इसी कारण अंकेक्षक को लेखों के प्रमाणित करने तथा रिपोर्ट देने में हिचकिचाहट रहती है।

(6) खुले कार्ड तथा कागज (loose cards and sheets) जो इस पद्धति के अन्तर्गत प्रयोग किये जाते है, साधारणतः न्यायालयों को स्वीकार नहीं होते हैं।

यान्त्रिक बहीखाता और अंकेक्षक

(MECHANISED ACCOUNTING AND AUDITOR)

यान्त्रिक बहीखाते के प्रयोग से अंकेक्षक के कार्य एवं दायित्व में कोई अन्तर नहीं होता है। उसको यह दखना चाहिए कि लेनदारों के लेखे करने के प्रारम्भिक कार्य में कोई गलती तो नहीं हो गयी है और केवल अवकृत लेन-देनों की पुस्तकों में प्रविष्टियां की गयी है। उसे यह बात सावधानीपूर्वक देखनी चाहिए कि कहीं-कहीं दो या अधिक क्लर्को ने मिलकर कोई गड़बड़ तो नहीं की है। वास्तव में, आन्तरिक निरीक्षण की । उपयुक्त जांच ही उसके लिए अधिक सहायक सिद्ध हो सकती है। अन्तिम दायित्व उसका ही है।

सर्वप्रथम, उसको किसी उत्तरदायी अधिकारी से प्रमाण-पत्र प्राप्त करना चाहिए कि मशीनें, जिनका प्रयोग जापार के लेखों के लिए किया गया है. सही स्थिति में कार्य कर रही है। इस पद्धति में गलत कोटिंग (mis-coding) होने की गलती प्रायः हो जाती है जिसकी उसे पूरी जांच करनी चाहिए। विवरण (narration) न दिये जाने के कारण उसको प्रत्येक प्रविष्टि के समझने का पूर्ण प्रयास करना चाहिए। किसी कार्य या कागज के खो जाने पर अच्छी आन्तरिक निरीक्षण की प्रणाली ही उसके लिए सहायक तथा उपयोगी हो सकती हैं ।

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प्रश्न

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1 प्रमाणन से आप क्या समझते हैं? प्रमाणन तथा नैत्यक जांच में अन्तर स्पष्ट कीजिए।

What do you mean by Vouching? What is the difference between Vouching and Routine Check

2.प्रमाणन क्या है? प्रमाणन के महत्व को बताइए।

What is Vouching? Explain the significance of vouching.

3. प्रमाणक तथा प्रमाणन से क्या समझते हैं? प्रमाणकों की जांच करते समय किन-किन बातों को ध्यान में रखा जाना चाहिए?

What do you mean by Voucher and Vouching? What points should be kept in mind while examining the vouchers.

4. प्रमाणन क्या है? इसके उद्देश्यों को बताइए। इसके सम्बन्ध में अंकेक्षक के क्या कर्तव्य होने चाहिए?

What is Vouching? Explain its objects. What are the duties of an auditor in this regard.

5. प्रमाणन क्या है? इसके महत्व एवं उद्देश्यों को बताइए।।

What is Vouching? Explain its advantages and objects.

6. रोकड़ पुस्तक के प्रमाणन से आप क्या समझते हैं? रोकड़ पुस्तक का प्रमाणन करते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

What do you mean by Vouching of Cash book? What points should be kept in mind while examining cash book.

7. प्रमाणन क्या है? रोकड़ पुस्तक के प्राप्ति-पक्ष की विभिन्न मदों के प्रमाणन करने की विधि का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।

What is Vouching? Discuss the procedure of examining the receipt side of cash book.

8. खुदरा रोकड़ पुस्तक का प्रमाणन करते समय अंकेक्षक को किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए? विस्तार से उल्लेख कीजिए।

What points should be kept in mind by the auditor while examining the Petty Cash Book? Discuss in detail.

9. प्रमाणन क्या है? यह नैत्यक जांच से किस प्रकार भिन्न है? प्रमाणन के उद्देश्य बताइए।

What is Vouching? How does it differ from Routine Check? Explain the objects of Vouching.

10. निम्नलिखित को प्रमाणित करने के लिए आप क्या ढंग काम में लायेंगे :

(क) खरीदे हुए माल के मूल्य का लेनदारों को भुगतान

(ख) मजदूरी का भुगतान

(ग) नकद बिक्री

What procedure will you adopt for vouching the following:

(a) Payment to creditor for purchase of goods

(b) Payment of wages

(c) Cash sale

11. देनदारों से प्राप्त राशि का प्रमाणन आप किस प्रकार करेंगे ?

How will you vouching of receipts from debtors ?

12. एक औद्योगिक संस्था में मजदूरी के प्रमाणन के मुख्य लक्षणों का वर्णन कीजिए।

Explain the main characteristics of vouching of wages in a Industrial organisation.

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लघु उत्तरीय प्रश्न

1 निम्नलिखित प्राप्त राशि का प्रमाणन आप किस प्रकार करेंगे :

(अ) ग्राहक से प्राप्त राशि

(ब) ब्याज और लाभांश

(स) विविध सम्पत्तियों की बिक्री से प्राप्ति. और

(द) प्राप्य विपत्र

2. निम्नलिखित का आप किस प्रकार प्रमाणन करेंगे:

(अ) विनिमय का क्रय

(ब) खुदरा-रोकड़ बही

(स) नकद बिक्री, और

(द) उधार खरीद

3. आप निम्न का प्रमाणन कैसे करेंगे :

(अ) नकद विक्रय

(ब) विनियोगों पर लाभांश

(स) गृह सम्पत्ति से किराया

(द) विनियोग का विक्रय, और

(य) पुस्तक ऋण की प्राप्ति

4. एक औद्योगिक संस्था में मजदूरी के प्रमाणन के मुख्य लक्षणों का वर्णन कीजिए।

5. कय-बही और विक्रय-बही का प्रमाणन करने के लिए आप क्या उपाय करेंगे ?

6. जर्नल का प्रयोग किस उद्देश्य के लिए किया जाता है ? इसका प्रमाणन किस प्रकार होगा ?

7. निम्नांकित के विषय में प्रमाणक देखने का काम आप किस तरह करेंगे :

निवेशों पर प्राप्त लाभांश , (ii) नकद बिक्री, और (iii) किराया-खरीद सौदों से आय।

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अति लघु उत्तरीय प्रश्न

1 प्रमाणन क्या है ?

2. एक शुद्ध प्रमाणक के आवश्यक लक्षण बतलाइए।

3. निम्न शब्दों को परिभाषित कीजिए :

प्रमाणन, प्रमाणक, सत्यापन, नैत्यक जांच।।

4. “प्रमाणन अंकेक्षण का सार है।” विवेचना कीजिए।

5. नैत्यक जांच किसे कहते हैं ?

6. प्रमाणन का महत्व बताइए।

7. यान्त्रिक बहीखाता क्या है ?

8. ‘प्रमाणन अंकेक्षण की रीढ़ की हड्डी है।’ समझाइए।

9. रोकड़ बही का प्रमाणन आप किस प्रकार करेंगे ?

10. रोकड़-बही में प्रमाणन का क्या उद्देश्य होता है

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? वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1 प्रमाणन है:

(अ) सम्पत्तियों की जांच

(ब) सम्पत्तियों का मूल्यांकन

(स) प्रविष्टियों की जांच

(द) इनमें से कोई नहीं

2. प्रमाणन का मुख्य उद्देश्य कौन-सा है :

(अ) तलपट बनाना

(ब) नैत्यक जांच करना

(स) लेखों की शुद्धता, सत्यता व अधिकारपूर्णता प्रमाणित करना

(द) प्रमाणकों की जांच करना

3. प्रमाणक हो सकता है :

(अ) मौखिक

(ब) लिखित

(स) संकेतमूलक

(द) इनमें से कोई नहीं

4. किसी फर्म के द्वारा बड़े भगतान करने का सर्वोत्तम उपाय निम्न में से कौन-सा है :

(अ) नकदी के द्वारा

(ब) साधारण चेक के द्वारा

(स) रेखांकित चेक के द्वारा

(द) विनिमय-पत्र के द्वारा

5. निम्न में से किस पस्तक में भल-सुधार के लेखे किये जाते हैं :

(ब) प्राप्य बिल पुस्तक

(स) विक्रय पुस्तक

(अ) क्रय पुस्तक

(द) जर्नल

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