BCom 3rd year Dividend Policy Study Material Notes in hindi

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BCom 3rd Year Dividend Policy Study Material Notes in Hindi

BCom 3rd Year Dividend Policy Study Material Notes in Hindi: Meaning of Dividend Different Type of Dividend Meaning and Definition of Dividend Policy Type of Dividend Policy  Relationship Between Dividend Policy and Value of the Firm Assumption Walter Policy

Dividend Policy
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BCom 3rd Year Leverage Examination Questions Study Material Notes in Hindi

लाभांश नीति

(Dividend Policy)

यावसायिक संगठन के विभिन्न प्रारूपों में कम्पनी एक ऐसा प्रारूप है जिसके अन्तर्गत अपने सदस्यों प्राप्त करके संस्था का वित्त-पोषण किया जाता है । सदस्य कम्पनी में पूँजी इसलिए लगाते हैं कि उन्हें आय प्राप्त होती रहे, यह आय उन्हें लाभांश के रूप में प्राप्त होती है। यदि सदस्यों को लाभांश किया जाये या प्रचलित दर से कम दर पर लाभांश दिया जाये तो उनमें निराशा होगी तथा वे बचत योग के प्रति हतोत्साहित होंगे। यदि कम्पनियां अंशधारियों को इतना लाभांश नहीं दे सकतीं जितना सामान्यतः विनियोजित राशि पर ब्याज प्राप्त कर सकते हैं तो फिर ऐसी कम्पनियों के लिए अतिरिक्त की व्यवस्था करना तो प्रायः कठिन होगा ही, साथ ही साथ मुद्रा बाजार पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। ई कम्पनियों के लिए पूँजी जुटाना कठिन हो जाता है, क्योंकि निवेशकर्ताओं का कम्पनी क्षेत्र (Corporate Sector) में से विश्वास उठने लग जाता है। दूसरी ओर ऐसी कम्पनियाँ जो समुचित तथा निरन्तर लाभांश अपने अंशधारियों में बाँटती हैं, उन कम्पनियों में निवेशकर्ताओं का विश्वास बना रहता है तथा भविष्य में इन

कम्पनियों या इसी समूह की कम्पनियों के लिए पूँजी जुटाना आसान हो जाता है, बल्कि कई बार ये कम्पनियाँ अपनी पंजी, बाजार से प्रीमियम पर प्राप्त करती हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि लाभांश केवल कम्पनियों के अंशधारियों के लिए ही महत्त्वपूर्ण नहीं है बल्कि राष्ट्रीय बचत को गति प्रदान करने तथा पूँजी विनियोग को प्रोत्साहित करने की दृष्टि से भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । अतः लाभांश की अवधारणा वित्तीय प्रबन्ध के लिए एक महत्त्वपूर्ण पहलू है एवं लाभांश सम्बन्धी नीति के विभिन्न पहलुओं की विस्तृत विवेचना परमावश्यक है।

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लाभांश का अर्थ

(Meaning of Dividend)

लाभांश (Dividend) शब्द लेटिन भाषा के ‘Dividendum’ शब्द से बना है जिसका अर्थ है: That which is to be divided अर्थात् “वह जिसका वितरण करना है।” यह वितरण कम्पनी की कुल आय में से समस्त व्यय घटाने, करों का प्रावधान करने तथा संचय-कोषों में हस्तान्तरित कर देने के पश्चात् शेष लाभों का किया जाता है। लाभों का ऐसा वितरण प्रदत्त पूँजी के एक निश्चित प्रतिशत अथवा प्रति अंश निश्चित राशि के आधार पर किया जाता है। इस प्रकार लाभांश किसी कम्पनी के लाभों एवं आधिक्य कोषों का वह भाग है जो वास्तव में एक निश्चित तिथि को कम्पनी की वैध क्रिया के अनुसार इसके अंशधारियों में एक निश्चित समय या मांग पर देय उनकी अंशधारिता के अनुपात में वितरण के लिए अलग रख दिया जाता है। इस प्रकार यह कम्पनी के लाभों का वह भाग है जो अंशधारियों में वितरित किया जाता है। परन्तु कम्पनी द्वारा यह लाभांश तब तक घोषित नहीं किया जा सकता है जब तक (i) कम्पनी में पर्याप्त लाभ न हो, (ii) संचालक मण्डल की सिफारिश न हो. तथा (ii) वार्षिक सामान्य सभा में अंशधारियों की स्वीकृति न हो । घोषणा की तिथि से लाभांश कम्पनी का अंशधारियों के प्रति एक ऋण हो जाता है जिसकी वसूली हेतु घोषणा की तिथि क बाद कम्पनी के विरुद्ध वाद प्रस्तुत किया जा सकता है, परन्तु कम्पनी को इस पर कोई ब्याज नहीं देना पड़ता। लाभाश की घोषणा करते समय कम्पनी के संचालक निम्नलिखित दो बातों का अवश्य ध्यान रखते हैं

1 अंशधारियों को उचित प्रतिफल (Reasonable Return to Shareholders) : अंशधारी अंशों मावानयोग के बदले लाभांश के रूप में उचित आय (प्रतिफल) प्राप्त करने की आशा करते हैं । अतः संचालकों ” इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि अंशधारियों को उनके द्वारा वहन की गयी जोखिम के बदले उचित तिफल प्राप्त हो । लाभांश की उचित दर से कम्पनी की ख्याति, उसके अंशों का बाजार मूल्य एवं कम्पनी में विनियोग की सम्भावनाएँ बढती हैं। लाभांश दर में कमी होने से कम्पनी के अंशों के बाजार मूल्य एवं मात पर विपरीत प्रभाव पड़ता है और इससे अंशधारियों में असंतोष बढ़ता है।

2 विकास हेतु कम्पनी की आवश्यकताएं (Needs of the Company for Development) : माश की घोषणा करने से पूर्व कम्पनी की वित्तीय आवश्यकताओं पर भी विचार कर लेना चाहिए। यदि म्पनी की निकट भविष्य में विस्तार व विकास की योजना हो तो उसके लिए कम्पनी को वित्त की आवश्यकता गा, ऐसी दशा में कम दर से लाभांश घोषित किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त वित्तीय स्थिति को सुदृढ

बनाने के लिये भी आन्तरिक साधन के रूप में लाभ की राशि को व्यवसाय में रोकते हुए अंशधारिया म कम दर से लाभांश वितरित करना चाहिए।

लाभांश के विभिन्न प्रकार

(Different Types of Dividend)

लाभाश के विभिन्न स्वरूपों को निम्नलिखित आधारों पर वर्गीकत किया जा सकता है

(1) प्रतिभूति के अनुसार (According to Type of Security)

(i) अधिमान लाभांश (Preference Dividend)

(ii) समता लाभांश (Equity Dividend)

(2) लाभांश के स्रोतानुसार (According to Source of Dividend)

(i) लाभ लाभांश (Profit Dividend)

(i) समापन लाभांश (Liquidation Dividend)

(3) लाभांश के समयानुसार (According to Timing of Dividend)

(i) अन्तरिम लाभांश (Interim Dividend)

(ii) नियमित लाभांश (Regular Dividend)

(4) लाभांश भुगतान के माध्यमानुसार (According to Medium used to pay Dividend)

(i) नकद लाभाांश (Cash Dividend)

(i) स्क्रिप या बन्ध लाभांश (Scrip or Bond Dividend)

(iii) सम्पत्ति लाभांश (Property Dividend)

(iv) स्कन्ध लाभाांश (Stock Dividend)

उपर्युक्त सभी प्रकार के लाभांशों का संक्षिप्त विवेचन नीचे किया गया है

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1 अधिमान या पूर्वाधिकार लाभांश (Preference Dividend) वह लाभांश जो पूर्वाधिकार अंशधारियों को दिया जाता है, उसे पूर्वाधिकार लाभांश अथवा अधिमान लाभांश कहते हैं। इसे पूर्वाधिकार लाभांश इसलिए कहा जाता है कि इन अंशधारियों को समता अंशधारियों से पहले लाभांश दिया जाता है। पूर्वाधिकार लाभांश संचयी अथवा असंचयी दोनों प्रकार के होते हैं। ये लाभांश पूर्व-निर्धारित दर से दिये जाते हैं। अतः संचालक मण्डल इस दर से कम लाभांश नहीं दे सकते।

2. समता लाभांश (Equity Dividend)-समता लाभांश,समता अंशों (Equity Shares) पर दिया जाता है। संचालक मंडल को लाभांश देने या न देने, लाभांश की दर तथा लाभांश का माध्यम अर्थात् नकद पा गैर-नकद आदि के बारे में निर्णय लेने की पूर्ण स्वतन्त्रता होती है। समता लाभांश पर अधिकतम प्रबन्धकीय स्वतन्त्रता होने से लाभांश नीति सम्बन्धी सम्पूर्ण विवेचन समता लाभांश के सम्बन्ध में ही होता है ।

3. लाभ लाभांश (Profit Dividend)-यह लाभांश चालू वर्ष के लाभों, गत वर्ष के संचित लाभों तथा सहायक कम्पनियों के लाभों में से दिया जाता है। लाभांश नीति के अन्तर्गत यह लाभांश ही चर्चा का मुख्य विषय होता है।

4. समापन लाभांश (Liquidation Dividend)—वह लाभांश जो कम्पनी के समापन की स्थिति में | दिया जाता है.समापन लाभांश कहलाता है। वस्तुतः यह लाभांश वास्तविक लाभ में से नहीं दिया जाता है। बल्कि कम्पनी के समापन की स्थिति में समापक के द्वारा सम्पत्ति की बिक्री से वसूल की गयी राशि का हिस्सा होता है। अतः इसे सम्पत्ति लाभांश भी कहा जाता है।

5. अन्तरिम लाभांश (Interim Dividend)—वह लाभांश जो वर्ष के मध्य में दो साधारण सभाओं के बीच अन्तर्नियमों द्वारा अधिकृत होने पर संचालको द्वारा घोषित किया जाता है, अन्तरिम लाभांश कहलाता है। यह लाभांश खातों को बिना बन्द किये हुए अनुमानित लाभ पर दिया जाता है। अतः संचालको को इस लाभांश की घोषणा में काफी सावधानी बरतनी पड़ती है।

6. नियमित लाभांश (Regular Dividend) नियमित लाभांश वार्षिक साधारण सभा में वर्ष के लिए प्रस्तावित किया जाता है तथा चुकाया जाता है । इसे कम्पनी के विभाजन योग्य लाभ में से अंशधारियों को किये गये सामयिक भुगतान के रूप में माना जाता है । जब नियमित लाभांश घोषित किया जाता है तो अन्तरिम लाभांश की राशि का इसम समायोजन नहीं किया जाता है, जब तक कि नियमित लाभांश की घोषणा के लिए पारित किये गये प्रस्ताव में इसका स्पष्ट उल्लेख न हो।

7. नकद लाभाश (Cash Dividend) लाभांश वितरण का यह सबसे अधिक पुराना एवं लोकप्रिय रूप में लाभांश लेना सबसे अधिक पसन्द करते हैं क्योंकि लाभांश प्राप्ति यह एक सावधाजनक तरीका है। जिन कम्पनियों की तरल स्थिति ठीक होती है वे कम्पनिया भा नकद। नाभांश वितरित करना ही पसन्द करती हैं। भारतीय कम्पनी अधिनियम की धारा 205 के अनुसार भारतीय कम्पनियाँ नकद लाभांश के अतिरिक्त (स्कन्ध लाभांश को छोडकर) अन्य किसी प्रकार से लाभांश वितरित नहीं कर सकती।

8.स्क्रिपया बंध-पत्र लाभांश (Scrip or Bond Dividend)-जब कम्पनी अंशधारियों को तत्काल नकद लाभांश का भुगतान न करके भविष्य में एक निश्चित तिथि पर ब्याज सहित लाभांश देने का वायदा करती है और जिसके लिए उन्हें एक प्रमाण-पत्र जारी करती है तो इसे स्क्रिप या बंध-पत्र लाभांश कहते है। रिकप या बंध-पत्र दोनों में मुख्य अन्तर यह है कि स्क्रिप लाभांश में भगतान अवधि अल्पकालीन होती है, जबकि बंध-पत्र लाभांश में भुगतान की अवधि दीर्घकालीन होती है। वर्तमान में ऐसे लाभांश के वितरण पर प्रतिबन्ध है। ऐसा लाभांश कम्पनी (संशोधन) अधिनियम 1960 से पूर्व बांटा जाता था। इसके पश्चात् ऐसे लाभांश के वितरण पर प्रतिबंध लगा दिया गया, क्योंकि संचालक ऐसी कम्पनियों के अंश एवं ऋणपत्र बांटते थे जिनकी स्थिति अच्छी नहीं होती थी। इससे अंशधारियों को हानि उठानी पड़ती थी।

9.सम्पत्ति लाभांश (Property Dividend)-सम्पत्ति लाभांश के अन्तर्गत कम्पनी द्वारा नकद लाभांश के स्थान पर लाभांश का वितरण सम्पत्ति के रूप में किया जाता है। अन्य कम्पनियों तथा सरकार की प्रतिभूतियों को लाभांश के रूप में वितरित किया जा सकता है। इसी प्रकार विभाजन योग्य किसी अन्य सम्पत्ति को भी लाभांश के रूप में वितरित किया जा सकता है। कभी-कभी कम्पनी अपनी उत्पदित वस्तुओं को भी निर्धारित मूल्य पर अंशधारियों को लाभांश के रूप में बाँटती है। व्यवहार में लाभांश वितरण का यह तरीका बहुत ही कम अपनाया जाता है।

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10. स्कन्ध लाभांश (Stock Dividend)-जिन कम्पनियों की तरल स्थिति ठीक नहीं होती. वे प्रायः अपने लाभों का पूँजीकरण करके स्कन्ध लाभांश वितरित करती हैं। इसके अन्तर्गत कम्पनी नकद लाभांश नहीं देती अपितु लाभांश की घोषित रकम के बराबर अंशधारियों को नये अंश आबंटित कर देती है। ऐसे अंशों को बोनस अंश (Bonus Shares) के नाम से जाना जाता है। ऐसा करने से लाभ का समुचित उपयोग व्यवसाय में ही हो जाता है तथा लाभांश का वितरण भी सम्भव हो जाता है।

लाभांश घोषणा एवं वितरण के सम्बन्ध में भारतीय कम्पनी अधिनियम के प्रावधान (Provisions of the Indian Companies Act, 1956 in respect of Dividend)-भारत में लाभांश की घोषणा एवं वितरण के सम्बन्ध में कम्पनी को अपने अन्तर्नियमों,कम्पनी अधिनियम 1956 की धारा 205 तथा 206 एवं सारणी ‘अ’ के नियमों का पालन करना अनिवार्य है। इस सम्बन्ध में निम्नलिखित व्यवस्थाएँ उल्लेखनीय हैं

1 लाभांश का वितरण केवल लाभों में से किया जाना (Distribution of Dividend only out of Profit)-भारतीय कम्पनी अधिनियम के अनुसार लाभांश का वितरण केवल लाभों में से किया जा सकता है, पूँजी में से नहीं। लाभांश का वितरण चालू वर्ष के लाभों अथवा अन्य अवितरित लाभों में से ही किया जा सकता है । कम्पनी अधिनियम की धारा 205 के अनुसार कम्पनी द्वारा लाभांश की घोषणा अथवा भुगतान () ह्रास की व्यवस्था करने तथा पिछली हानियों का अपलेखन करने के बाद चालू वर्ष का शेष लाभ अथवा (ii) गत वर्ष के लाभों अथवा (iii) जहाँ केन्द्रीय अथवा प्रान्तीय सरकार ने लाभांश की प्रतिभूति दी हो तो इसक अधान प्राप्त होने वाली राशि से ही किया जा सकता ह ।

2. लाभांश का भुगतान केवल नगदी में (Payment of Dividend only in Cash)-भारतीय कम्पनी अधिनियम की धारा 205(3) के अनुसार लाभांश का भुगतान नगदी में ही किया जा सकता है परन्तु लाभा को पूंजीकृत करके भविष्य में अंशधारियों को पूर्ण प्रदत्त बोनस अंशों में या अंशधारियों के आंशिक प्राप्त अंशों को पूर्ण प्रत्त अंशों के रूप में परिवर्तित करके भी लाभांश का भुगतान किया जा सकता है।

3. लाभांश का भुगतान पंजीकृत अंशधारियों को होना (Payment of Dividend to Registered Share-holders) अधिनियम की धारा 206 के अनुसार लाभांश का भुगतान केवल रजिस्टर्ड अंशधारियों कहा किया जा सकता है। हाँ. उनके निर्देश से किसी अन्य व्यक्ति या बैंकर्स को भी लाभांश का भुगतान किया जा सकता है।

4. लाभांश का भगतान घोषणा के 42 दिन के अन्दर होना (Payment of Dividend within 42 ways of its Declaration)-अधिनियम की धारा 207 के अनुसार लाभांश की घोषणा के 42 दिन के अन्दर कम्पनी के द्वारा लाभांश का भगतान करना अनिवार्य है। इसकी अवहेलना करने पर सम्बन्धित अधिकारी (सचालक) को 7 दिन के साधारण कारावास का दण्ड व कुछ आर्थिक दण्ड दिया जा सकता है।

5. पार्षद् सीमानियम तथा अन्तर्नियम का पालन (To Follow Memorandum of Association and Article of Association) लाभांश की घोषणा एवं वितरण के सम्बन्ध में कम्पनी के पार्षद् सीमानिया एवं अन्तर्नियम में दिये गये नियमों का पालन करना आवश्यक होता है । यदि इस सम्बन्ध में कम्पनी ने व्यवस्था नहीं की है तो सारणी ‘अ’ के नियम 85 से 94 लागू होंगे जो इस प्रकार हैं

(i) लाभांश की घोषणा कम्पनी की वार्षिक सभा में की जाती है परन्तु लाभांश की राशि संचालकों द्वारा सिफारिश की गयी राशि से अधिक नहीं हो सकती।।

(ii) लाभांश की स्वीकृति के पूर्व संचालक मण्डल कम्पनी के लाभों में से किसी धन को सुरक्षित कोष अथवा अन्य कोषों में अन्तरित कर सकता है।

(iii) लाभांश का भुगतान अंशधारियों को उनके अंशों पर प्रदत्त (Paid-up) राशि के आधार पर किया जायेगा। इसके लिए अग्रिम माँगों (Calls in Advance) की राशि शामिल नहीं की जायेगी।

(iv) संचालक मण्डल किसी सदस्य को देय लाभांश में से उतनी राशि रोक सकता है जो कम्पनी को देय हो।

(v) संचालक मण्डल समय-समय पर अंशधारियों को ऐसे लाभांश (अन्तरिम) का भुगतान कर सकता। है जो कम्पनी के लाभों को देखते हुए उसे उचित प्रतीत हो।

(vi) लाभांश का भुगतान रजिस्टर्ड पते पर करना होगा, साथ ही साथ चैक अथवा अधिपत्र रेखांकित (Crossed/Account Payee)

(vii) संयुक्त अंशधारियों की दशा में उनमें से कोई भी अंशधारी लाभांश प्राप्त कर

(vii) लाभांश घोषणा की सूचना अंशधारियों को देना आवश्यक है।

(ix) लाभांश पर कम्पनी द्वारा कोई ब्याज देय नहीं होगा।

6. उद्गम स्थान पर कर कटौती (Deduction of Tax at Source)-लाभांश पर आय-कर काटकर कम्पनी को सरकार के पास जमा करना होता है जिसे उद्गम स्थान पर कर की कटौती कहते हैं। यह कर कम्पनी द्वारा अपने लाभों पर देय कर के अतिरिक्त होता है । इस कटौती के लिए कम्पनी अंशधारियों को एक प्रमाण-पत्र देती है, ताकि वे इसका समायोजन आयकर अधिकारी से करवा सकें।

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लाभांश नीति का अर्थ एवं परिभाषा

(Meaning and Definition of Dividend Policy)

लाभांशों नीति के निर्धारण के लिए ऐसा कोई काफी लोचपूर्ण एवं व्यापक शब्द है। सामान्य अर्थ में लाभांश वितरण के सम्बन्ध में कार्यकरण योजना को लाभांश नीति कहा जाता है। व्यापक अर्थ में लाभांश नीति का अभिप्राय लाभांश वितरण करने के सिद्धान्तों, नियमों एवं कार्यप्रणाली निश्चित करने तथा लाभांश की दर निश्चित करके उसे वितरित करने की योजना बनाने से है। इस प्रकार लाभांश नीति तय करना वित्तीय प्रबन्ध के तीन महत्त्वपूर्ण निर्णयों (विनियोग, वित्त-पोषण तथा लाभांश) में एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण निर्णय है।

वेस्टन एवं ब्राइघम के अनुसार, “लाभांश नीति अर्जनों का अंशधारियों को भुगतान एवं प्रतिधारित अर्जनों में विभाजन निश्चित करती है।”

प्रतिधारित अर्जनें,जो सामान्यत: व्यवसाय में ही रहती हैं, संस्था की सम्पत्तियों के प्रतिस्थापन एवं विस्तार कार्यक्रमों के वित्त-पोषण हेतु बहुत उपयोगी होती है। एक ओर, लाभांश से रोकड़ बहिर्गमन एवं अन्त में चालू सम्पत्तियों में कमी होतो है। ऊंची दर से लाभांश वितरित करने से लाभों का पुनर्विनियोजन कम होता है तथा। विकास की गति में धीमापन आता है । दूसरी ओर, कम लाभांश बांटने से अंशधारियों में असन्तोष व्याप्त होता है। अत: संचालकों के लिए एक सुस्पष्ट एवं संतुलित लाभांश नीति अपनाना आवश्यक है।

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लाभांश नीति के प्रकार

(Types of Dividend Policy)

लाभांश नीति के निर्धारण के लिए ऐसा कोई सामान्य सिद्धान्त नहीं है जिसे सर्वमान्यता प्राप्त हो तथा जो सभी दशाओं में उचित ठहराया जा सके। सामान्यतः सचालका द्वारा अग्रलिखित तीन प्रकार की लाभांश नीतियाँ अपनाई जाती हैं ।

1 कठोर या अनुदार लाभाशं नीति (Conservative or Strict Dividend Policy) – तर्गत संचालकगण लाभांश वितरण के मामले में अत्यधिक कठोर होते हैं. इसीलिए इसे कठोर या अनुदार लाभांश नीति कहतें हैं ।

कठोर या अनुदार लाभांश नीति अपनाने पर संचालक कम्पनी की वित्तीय सुदृढ़ता एवं व्यवसाय की रणति को सर्वोपरि मानते हैं जबकि अंशधारियों की वर्तमान आय की अपेक्षाओं को गौण स्थान पर रखते हैं। बस्ततः इस नीति के अन्तर्गत अत्यधिक लाभ होने पर ही कुछ लाभांश वितरित किया जाता है। इस नीति के संचालकगण लाभ का अधिकांश भाग व्यवसाय में पुनर्विनियोजित करना चाहते हैं तथा सदस्यों को ससे कम लाभांश देते हैं। इस नीति में भुगतान अनुपात (Pavout Ratio) बहत कम या कभी-कभी शून्य भी होता है। इसका परिणाम यह होता है कि समता अंशों (Equity Shares) के पुस्तक मूल्य (Book … ) में वृद्धि होती है तथा उनके बाजार मूल्य (Market Price) में भी वृद्धि होती है। प्रतिधारित आय बढने के कारण संचित कोषों (Reserve Funds) में वृद्धि होती है, जिससे बोनस अंशों के निर्गमन की सम्भावना भी बढ़ती है।

एक ऐसी विकासशील कम्पनी जिसे अपने विकास एवं विस्तार के लिए अतिरिक्त पूँजी की आवश्यकता है इस प्रकार की नीति अपनाना श्रेष्ठ है क्योंकि दीर्घकाल में अंशधारियों को ही लाभ होता है। अत्यधिक इतिधारित आय के कारण कई बार वर्तमान में सदस्यों का धैर्य टटने लगता है. इसकी जानकारी भी प्रबन्धकों को रखनी चाहिये। कुछ व्यक्ति इस नीति को विकासोन्मुखी लाभांश नीति भी कहते हैं।

2. उदार लाभांश नीति (Liberal Dividend Policy)- यह नीति कठोर या विकासोन्मुखी नीति के बिल्कुल विपरीत होती है । इस नीति में कम्पनी, अंशधारियों के दीर्घकालीन हितों की अपेक्षा अल्पकालीन हितों को अधिक महत्व देती है । वस्तुतः इस नीति के अन्तर्गत संचालकगण लाभांश वितरण के सम्बन्ध में अत्यधिक उदार होते हैं । कम्पनी लाभों का अधिकांश भाग अंशधारियों में वितरित कर देती है एवं अपने पास प्रतिधारित आय के रूप में लाभों का केवल वह न्यूनतम भाग ही रखती है, जिसे रखना वह अत्यावश्यक समझती है। इस प्रकार इस नीति में भुगतान अनुपात (Payout Ratio) काफी ऊँचा होता है। इस नीति के परिणामस्वरूप कम्पनी के विकास व प्रतिस्थापन के लिए कोषों की कमी आने का डर बना रहता है जिसके कारण ऐसी कम्पनी के अंशों के परिकाल्पनिक मूल्य (Speculative Value) भी बढ़ जाते हैं। कभी-कभी यह भी देखा गया है कि प्रबन्धक अपनी दक्षता प्रदर्शित करने के लिए लाभांश वितरण में अत्यधिक उदार हो जाते हैं, जिससे कम्पनी की वित्तीय सुदृढता पर बुरा प्रभाव पड़ता है। निष्कर्ष रूप में उदार लाभांश नीति अपनाते समय प्रबन्धकों को कम्पनी हितों तथा सदस्यों की आकांक्षाओं में उचित तालमेल स्थापित करना चाहिए।

3. सुदृढ़ अथवा स्थिर लाभांश नीति (Sound or Stable Dividend Policy) लाभांश भुगतान की यह नीति दीर्घकालीन होती है तथा इस नीति के अन्तर्गत संचालकों द्वारा यह प्रयत्न किया जाता है कि समता अंशधारियों को दिये जाने वाले लाभांश की दर में यथा सम्भव बहुत अधिक परिवर्तन न हों। इस नीति में कम्पनी की भावी आवश्यकताओं एवं सदस्यों की वर्तमान अपेक्षाओं को समान महत्त्व प्रदान किया जाता है। सामान्यतया जितना लाभ, लाभांश के रूप में वितरित किया जाता है लगभग उतना ही लाभ व्यवसाय में पुनविनियोजित भी किया जाता है। सम्पन्न वर्षों में भी सामान्यतया उतना ही लाभांश दिया जाता है जितना कि सामान्य अथवा प्रतिकूल वर्षों में । सम्पन्नता या अधिक लाभ वाले वर्षों में पर्याप्त कोषों का निर्माण कर लिया जाता है जिनका प्रयोग कम लाभ वाले वर्षों में लाभांश दर को स्थिर बनाये रखने में किया जाता है। अतः यह एक मध्यमार्गी नीति है। निश्चित एवं अनिश्चित सभी सम्भावनाओं के लिए पर्याप्त आयोजन कर लिये जाते हैं । अतः यह नीति कम्पनी की साख एवं प्रतिष्ठा बनाये रखने में सहायक होती है। स्थिर लाभांश नीति का यह अर्थ कदापि नहीं होता कि लाभांश दर सदैव स्थिर रहती है। कम्पनी की आय में निरन्तर वृद्धि होने तथा भविष्य में भी लगातार बढ़ने का विश्वास होने पर संचालकगण वर्तमान लाभांश दर में वृद्धि कर सकते हैं जिस बनाये रखने की हर सम्भव कोशिश की जाती है। वस्ततः स्थिर लाभांश नीति निम्नलिखित तीन प्रकार की हो सकती है

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(i) प्रति अंश स्थिर लाभांश (Constant Dividend Per Share)-इस लाभांश नीति के अन्तर्गत नाक सचालकों द्वारा यह निश्चित किया जाता है कि अंशों पर प्रतिवर्ष एक निश्चित दर से लाभांश दिया उदाहरणार्थ, यह निश्चित किया जा सकता है कि प्रति अंश 5 रुपये वार्षिक लाभांश वितरित किया जायेगा।

(ii) स्थिर लाभांश भुगतान अनुपात (Constant Pay-out Ratio)-लाभाश का अजेनों से अना भुगतान अनुपात कहलाता है। कछ संस्थाएं स्थिर भुगतान अनुपात अर्थात् अर्जनों की एक निश्चित प्रति प्रतिवर्ष देने की नीति अपनाती हैं। जैसे यदि भगतान 80% निश्चित कर लिया जाये तो इसका आशय होगा कि कम्पनी अपनी आय का 80% लाभांश के रूप में वितरित करेगी तथा शेष 20% व्यवसाय रोका जायेगा। उदाहरणार्थ यदि कम्पनी 5 रु.प्रति अंश कमाती है तो प्रति अंश लाभांश 4 रु. होगा तथा अंश 4 रु. कमाने पर प्रति अंश लाभांश 3.20 रु. होगा। चूंकि कम्पनी की आय प्रतिवर्ष बदलती रहेगी। अंशधारियों को मिलने वाली प्रति अंश लाभांश की राशि भी परिवर्तित होती रहेगी।

(iii) नियमित तथा अतिरिक्त लाभांश (Regular plus extra Dividend) कभी-कभी संस्था की आय में इतनी अधिक वृद्धि हो जाती है कि संचालक मण्डल निम्न दर से नियमित लाभांश वितरित करने पश्चात अतिरिक्त लाभांश देने का निर्णय लेते हैं। अतिरिक्त लाभांश की राशि संस्था की अतिरिक्त आयप निर्भर करेगी। आय अधिक नहीं होने पर अतिरिक्त लाभांश नहीं दिया जायेगा।

यहाँ पर यह उल्लेखनीय है कि किसी कम्पनी के लिए स्थिर लाभांश भुगतान अनुपात (Stable Pavant Ratio) की अपेक्षा प्रति अंश स्थिर लाभांश की नीति अपनाना श्रेयष्कर होगा। इसका मुख्य कारण यह है कि अंशधारी नियमित एवं स्थाई रूप से मिलने वाले लाभांश को अच्छा समझते हैं। इसके अतिरिक्त ऐसे अंशधारियों के लिए भी सविधाजनक है जो कम्पनी के अंशों में पूँजी विनियोग से होने वाली लाभांश आय पर ही निर्भर करते हैं।

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सस्थिर लाभांश नीति के लाभ (Advantages of Stable Dividend Policy)-सुस्थिर लाभांश नीति को अपनाने से मुख्यत: निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं।

(1) अंशधारियों के मन में विश्वास उत्पन्न होना (Confidence among Shareholders) नियमित एवं स्थायी दर से लाभांश मिलते रहने पर उक्त अंशों के प्रति अंशधारियों के मन में विश्वास बढ़ जाता है। किसी वर्ष लाभ कम होने पर भी जब कम्पनी लाभांशों में कटौती नहीं करती और कोषों में से नियोजन करके लाभांश वितरित कर देती है तो पूँजी बाजार में इन अंशों की साख बनी रहती है।

(2) अंशधारियों में सन्तोष (Satisfacition among Shareholders)-कुछ अंशधारी आय के प्रति बहुत ही सतर्क एवं जागरुक होते हैं और वे नियमित दर से प्रतिवर्ष मिलने वाले लाभों को अधिक महत्त्व देते हैं। अत: एक नियमित लाभांश नीति अपना कर अंशधारियों को सन्तुष्ट रखा जा सकता है।

(3) अंशों के बाजार मूल्यों में अपेक्षाकृत स्थिरता (Comparative Stability in Market Price of Shares)-जिन अंशों पर नियमित दर से लाभांश मिलता है उनके बाजार मूल्यों में अपेक्षाकृत कम उतार-चढ़ाव होते हैं तथा ऐसे अंशो में सट्टेबाजी की सम्भावनाएं कम रहती हैं।

(4) संस्थागत विनियोक्ताओं को प्रोत्साहन (Encouragement to Institutional Investors)जो कम्पनियाँ नियमित एवं स्थायी दर से लाभांश वितरित करती है, उनके अंशों के प्रति संस्थागत विनियोक्ता भी आकर्षित होते हैं और वे अपनी प्रतिभूति सूची में उन अंशों को सम्मिलित करते हैं।

(5) साख में वृद्धि (Strengthens Goodwill)-नियमित व स्थिर लाभांश देने वाली कम्पनी की साख बढ़ जाती है जिसके परिणामस्वरूप उक्त कम्पनी सरलतापूर्वक ऋण प्राप्त कर सकती है।

एक सुदृढ़ लाभांश-नीति के आवश्यक तत्व

(Essentials of a Sound Dividend Policy)

संस्था की भावी प्रगति तथा बाजार में उसकी साख एवं प्रतिष्ठा के लिए सुस्थिर (सुदृढ) लाभांश नीति का अपनाया जाना परमावश्यक है। किसी कम्पनी की लाभांश नीति में निम्नलिखित तत्वों के विद्यमान होने पर ही उसे सुदृढ़ लाभांश नीति कहा जा सकता है

1) स्थायित्व (Stability) स्थिरता से अभिप्राय लाभांश के वितरण में नियमितता बनाये रखने से यदि कोई कम्पनी किसी वर्ष तो काफी आकर्षक लाभांश घोषित कर देती है, लेकिन अगले ही वर्ष लाभांश नहीं बाँट पाती तो इसे अच्छा नहीं कहा जा सकता। इसके विपरीत यदि कोई कम्पनी प्रतिवर्ष लाभांश वितरित । करती है भले ही वह मध्यम दर पर हो तो कम्पनी के अंशधारी सन्तुष्ट रहेंगे और उस कम्पनी के अंशों में अधिक परिकल्पना भी नहीं होगी।

(2) लाभांश दरों में क्रमश: वृद्धि (Gradually Rising Dividends) कम्पनी को सदैव इस बात के लिये प्रयत्नशील रहना चाहिये कि उसकी लाभांश दरों में कुछ न कुछ वृद्धि अवश्य हो मूल्य स्तर बढने व कम्पनी की आय अधिक होने पर अंशधारी भी यही चाहते हैं कि उनकी आय में भी वृद्धि हो । अतः संस्था को अपनी लाभांश दरों को भी थोड़ा-थोड़ा बढ़ाते रहना चाहिए। इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह वृद्धि कम्पनी की आय में वृद्धि होने पर ही निर्भर करेगी। यदि किसी वर्ष अधिक लाभ हो तो उस वर्ष अतिरिक्त लाभांश अथवा अन्तरिम लाभांश भी वितरित किया जाना चाहिये।

(3) नकद लाभांश का वितरण (Distribution of Cash Dividend) लाभांश अधिकतर नकदा के रूप में ही वितरित करने चाहियें। परन्तु जब कम्पनी में संचित कोषों की रकम बहत अधिक हो जाये तो स्कन्ध लाभांश भी घोषित किया जा सकता है। यहाँ पर यह उल्लेखनीय है कि स्कन्ध-लाभांश का वितरण उचित सीमा के अन्दर ही करना चाहिये अन्यथा कम्पनी अति-पूँजीकरण का शिकार हो सकती है।

(4) प्रारम्भ में कम लाभांश (Moderate Start) कम्पनी को स्थापना के प्रारम्भिक वर्षों में कुछ । समय तक कम दर पर ही लाभांश घोषित करना चाहिए जिससे संस्था की वित्तीय स्थिति सुदृढ़ हो जाए। बाद में संस्था की प्रगति के साथ-साथ लाभांश में भी धीरे-धीरे वृद्धि कर देनी चाहिए।

(5) अन्य बातें (Other Factors) लाभांश का भुगतान केवल अर्जित लाभों में से ही किया जाना चाहिए। यदि लाभ-हानि खाते में कोई हानि पिछले वर्षों से चली आ रही है तो पहले उसे अपलिखित करना चाहिए उसके बाद लाभांश की घोषणा करनी चाहिए। यद्यपि लाभांश सामान्यतया वर्ष में एक बार ही दिया जाता है लेकिन अंशधारियों के उत्साह में वृद्धि के लिए अन्तरिम लाभांश भी वितरित किये जा सकते हैं।

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Illustration 1. 31 दिसम्बर को समाप्त होने वाले वर्ष के लिए एक्स कम्पनी के अंशधारियों के कोष निम्न प्रकार हैं

X Company’s shareholder’s funds for the year ending 31st December are as follows:

12% पूर्वाधिकारी अंश पूँजी (12% Pref. Share Capital)               Rs. 5,00,000

समता अंश पूँजी 100 रुपये प्रति अंश की दर से                             Rs. 20,00,000

(Equity Share Capital @ Rs. 100 per share)

प्रतिभूति प्रीमियम (Securities Premium)                               Rs. 2,00,000

प्रतिधारित अर्जन (Retained Earnings)                                   Rs.15,00,000

                                                                                       Rs 42,00,000

उक्त अवधि के परिचालन से समता अंशधारियों हेतु उपलब्ध आय 7,50,000 रुपये है जो 15,00,000 रुपये की प्रतिधारित अर्जनों के एक भाग के रूप में सम्मिलित है।

The earnings available for equity shareholders from this period’s operations are Rs. 7,50,000, which have been included as part of the Rs. 15,00,000 retained earnings.

(i) फर्म अधिकतम प्रति अंश कितना लाभांश दे सकती है ?

What is the maximum dividend per share (DPS) the firm can pay ?

(ii) यदि फर्म के पास 3,00,000 रुपये नकद हों तो बिना उधार लिये हुए फर्म अधिकतम प्रतिअंश कितना लाभांश दे सकती है?

If the firm has Rs. 3,00,000 in cash, what is the highest DPS it can pay without borrowing ?

(iii) यदि उपर्यक्त (ii) में प्रदर्शित लाभांश का फर्म भुगतान कर देती है तो कौन से खाते प्रभावित होंगे?

Indicate what accounts, if any, will be affected if the firm pays the dividends indicated in (ii) above ?

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(ii) Maximum DPS (Without Borrowing ) :

= Cash Available                                       Rs 3,00,000   =   Rs  15

No of Equity Shares Outstanding   =           20,000

(iii) Accounts relating to retained earnings and cash will be affected. Retained carnings balance will decline by Rs. 3.00.000, the amount of dividend paid. Cash will be reduced to zero.

Note: It is assumed that preference share dividends have been paid in full

Illustration 2. अनमोल लि. के पिछले दस वर्षों के प्रति अंश आय के अभिलेख नीचे दिये गये।

Following is the earnings per share (EPS) record of Anmol Ltd. over the past 10 years :

Year                     EPS (Rs.)                    Year                EPS (Rs.)

10                         10.00                          5                       6.00

9                             9.50                        4                           3.00

8                             8.00                        3                           4.50

7                             7.50                        2                           Nill

6                             8.00                        1                           2.00

निम्नलिखित स्थितियों में प्रत्येक वर्ष भुगतान किये जाने वाले लाभांश की रकम निर्धारित कीजिये

Determine the dividend paid each year in the following cases :

(a) यदि सभी वर्षों हेतु फर्म की लाभांश नीति 50% के स्थिर लाभांश भुगतान अनुपात पर आधारित

If the firm’s dividend policy is based on a constant dividend payout ratio of 50% for all years.

(b) यदि फर्म 4 रुपये प्रति अंश लाभांश देती हो एवं इसे 5 रुपये प्रति अंश तक बढ़ाती है जबकि निरन्तर दो वर्षों हेतु आय 7 रुपये प्रति अंश से अधिक रही हो।

If the firm pays dividend at Rs. 4 per share, and increases it to Rs. 5 per share when earnings exceed Rs. 7 per share for two consecutive years.

(c) यदि फर्म प्रत्येक वर्ष 3.50 रुपये प्रति अंश लाभांश देती है सिवाय जब निरन्तर दो वर्षों हेतु प्रति अंश आय 7 रुपये से अधिक रही हो तब 7 रुपये से अधिक आय का 80% अतिरिक्त लाभांश केरूप में दिया जायेगा।

If the firm pays dividend at Rs. 3.50 per share each year except when EPS exceeds Rs. 7 per share for two consecutive years, then an extra dividend equal to 80% of earnings beyond Rs. 7.00 would be paid.

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लाभांश नीति को प्रभावित (निर्धारित) करने वाले तत्व

[Factors Affecting (Determining) the Dividend Policy]

यह तो विदित ही है कि किसी कम्पनी के संचालकों को ही कम्पनी की अर्जनों में से लाभांश घोषित

करने एवं लाभांश की राशि निर्धारित करने का अधिकार होता है । परन्तु लाभांश नीति का निर्धारण करते समय उन्हें वैधानिक प्रतिबन्धों के अतिरिक्त अनेक तत्वों पर विचार करना होता है । वस्तुतः प्रत्येक प्रस्तावित लाभांश के समय संस्था की आर्थिक,सामाजिक एवं राजनैतिक परिस्थितियों को उचित महत्व दिया जाना चाहिए। संक्षेप में, लाभांश नीति को प्रभावित करने वाले प्रमुख तत्व निम्नलिखित है

(1) कम्पनी में लाभों की स्थिति (Position of Profits in the Company)-चूंकि लाभांश का वितरण लाभों में से ही किया जाता है अतः लाभांश की उच्चतम सीमा का निर्धारण कम्पनी में होने वाले लाभों पर ही निर्भर करता है। वस्तुतः संचालकों को यह देखना चाहिए कि कम्पनी में होने वाला उस वर्ष का लाभ पर्याप्त है या नहीं। लाभ की मात्रा पिछले वर्षों के लाभों की तुलना में कम है या ज्यादा तथा वह लाभ उसी तरह की व्यावसायिक संस्थाओं की तुलना में कैसा है। साथ ही साथ संचालकों को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि अगले वर्षों में लाभ की इस राशि के कम व अधिक होने की क्या सम्भावनाएँ हैं। स्पष्ट है कि कम्पनी में होने वाला लाभ, लाभांश नीति को प्रभावित करने वाला महत्त्वपूर्ण तत्व है।

(2) भावी वित्तीय आवश्यकताएँ (Future Financial Needs)-लाभांश निर्णय लेने से पूर्व संस्था को अपने विस्तार कार्यक्रमों के लिए कितने वित्त की आवश्यकता है, इस पर भी भली-भाँति विचार कर लेना चाहिए। यदि कम्पनी अपनी सम्पूर्ण आय को अंशधारियों में वितरित कर देती है तो इसे नयी विनियोग परियोजनाओं को लेने या विद्यमान सम्पत्तियों को बनाये रखने या सुधारने के लिए अत्यन्त कठिनाई का सामना करना पडेगा। अत: यदि संस्था के समक्ष अनेक लाभकारी विनियोग प्रस्ताव है तो उसे अधिक से अधिक आय संचित कोष में जमा करनी चाहिए जिससे विनियोगों के लिए बिना किसी कठिनाई के पर्याप्त साधन उपलब्ध हो सकें। इसके पश्चात शेष आय अंशधारियों में लाभांश के रूप में बाँट देनी चाहिए।

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(3) कोषों की तरलता (Liquidity of Funds)-लाभांश नीति संस्था के कोषों की तरलता स्थिति से भी प्रभावित होती है। संस्था के पास लाभांश घोषित करने के लिए पर्याप्त लाभ होते हुए भी उसके लिए। लाभांश घोषित करना उचित नहीं होगा, यदि उसकी तरलता स्थिति अच्छी नहीं है। उधार शर्तों पर विक्रय करने वाली संस्थाओं में सामान्यतः ऐसी स्थिति पाई जाती है। सामान्यत: एक परिपक्व संस्था की तरलता स्थिति अच्छी होती है और वह बड़ी मात्रा में लाभांश भुगतान कर सकती है। ऐसी संस्था के पास अधिक विनियोग अवसर नहीं होते तथा न ही कोष स्थायी कार्यशील पूंजी में फंसते हैं। अत: इनकी रोकड स्थिति सदढ होती है। दसरी ओर विकासशील संस्थाओं को तरलता का सामना करना होता है क्योंकि इन्हें विस्तार क्रियाओं तथा स्थायी कार्यशील पूँजी के लिए कोषों की आवश्यकता होती है। इसलिए अपर्याप्त रोकड़ के कारण। विकासशील संस्थाएं नकद लाभांश घोषित करने में समर्थ नहीं होतीं। हाँ, ऐसी संस्थाएं बोनस अंशों के रूप से भी प्रभावित करना उचित नहीं । स्थिति पाई जाती ह सकती है। ऐसी संस्था रोकड़ स्थिति सुदृढ़ हाता वाली संस्थाआ बड़ी मात्रा मार्यशील पूंजा मना होता है क्याक रोकड़ के कारण असर नहीं होते तमागील संस्थाआ की आवश्यकता हाँ, ऐसी संस्थृ विकासशील संस्था कर सकती है

(4) व्यवसाय की प्रकृति (Nature of Business)-जिस व्यवसाय में लाभ प्राप्ति के स्रोत स्थायी होते हैं वहाँ लाभांश की दर स्थायी रखी जा सकती है। जबकि ऐसे व्यवसाय जिनकी आय में निश्चितता नहीं होती वे लाभांश के सम्बन्ध में कोई निश्चित नीति अपनाने में असमर्थ रहते हैं। बेलोचदार तथा जीवनोपयोगी वस्तओं के निर्माताओं की आय में अधिक स्थिरता रहती है क्योंकि इन वस्तुओं की मांग में अधिक उच्चावचन नहीं होता है।

 (5) संस्था की आय (Ace of the Institution) कम्पनी को प्रारम्भ हुए कितने वर्ष हो चके । अथात् कम्पनी नई है अथवा परानी इसका भी लाभांश नीति पर प्रभाव पड़ता है। नयी संस्थाएं जिनकी स्थापन अभी जल्दी में ही हई हो विकास के लिए उन्हें अधिक धन की आवश्यकता होती है जिससे वे आय का कम ही भाग लाभांश के रूप में वितरित कर पाती हैं। संस्था को स्थायित्व प्रदान करने के लिए आय का अधिकांश ‘भाग विकास कार्यक्रमों में लगाया जाता है । इसके विपरीत, पुरानी संस्थाएं अधिक नियमित व स्थायी लाभांश घोषित कर सकती हैं।

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(6) व्यापार चक्रों की स्थिति (Position of Trade Cycles) व्यापार चक्रों की स्थिति भी काफी सीमा तक लाभांश नीति को प्रभावित करती है। मन्दी काल में लाभ की मात्रा में कमी हो जाती है.परिणामस्वरूप कम्पनियाँ लाभांश की दरों में कमी करने के लिए बाध्य हो जाती हैं। कुछ कम्पनियाँ जिनके पास लाभांश समानीकरण कोष पर्याप्त मात्रा में होते हैं. ऐसे कठिन समय को भी सरलता से पार कर लेती हैं तथा लाभांश । की उचित दर को बनाये रखकर अपनी साख को गिरने नहीं देतीं। इसके विपरीत तेजी के समय लाभांश की दरों को बढ़ाने की एक होड-सी लग जाती है। अत: सभी कम्पनियों को इस बात को ध्यान में रखना होता है। कि प्रचलित दरों से कम लाभांश न दिया जाये।।

(7) स्वामित्व का ढाँचा (Structure of Ownership) यदि कम्पनी का नियन्त्रण एवं स्वामित्व कुछ ही व्यक्तियों के हाथ में केन्द्रित हो तो वे इस बात के लिए सहमत हो सकते हैं कि कम्पनी के विकास के लिए पर्याप्त आन्तरिक साधन बनाये रखने हेतु कुछ वर्षों तक कठोर लाभांश नीति का पालन किया जाए. परन्त यदि कम्पनी में अंशधारियों की संख्या काफी अधिक है तथा वे विभिन्न विचार वाले हैं, तो ऐसी दशा में संस्था को उदार लाभांश नीति अपनाने के लिए बाध्य करते हैं।

(8) अंशधारियों की प्रतिक्रिया (Reactions of Shareholders)-लाभांश-नीति का निर्धारण करते समय अंशधारियों की प्रतिक्रियाओं को भी ध्यान में रखना आवश्यक होता है । कम लाभांश मिलने से अंशधारी असंतुष्ट होते हैं और संस्था के प्रति उनकी आस्था घटने लगती है। हालांकि, संचालकगण इन प्रतिक्रियाओं से बचने का हर सम्भव प्रयास करते हैं। हाँ, संस्था की स्थापना के कुछ वर्षों तक कम लाभांश का भुगतान कर काम चलाया जा सकता है किन्तु अधिक समय तक लाभांश की ऐसी नीति को अंशधारीगण स्वीकार नहीं कर सकते । लम्बी अवधि तक कम दर से लाभांश का भुगतान किया जाना न्याय-संगत भी प्रतीत नहीं होता है।

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(9) अंशधारियों के प्रकार एवं उनकी प्रत्याशां (Types of Shareholders and their expectation)-विनियोक्ता जब किसी कम्पनी के अंश क्रय करते हैं तो वे लाभांश आदि के बारे में कुछ प्रत्याशायें बना लेते हैं। कम्पनी इनकी उपेक्षा करके लाभांश वितरित नहीं कर सकती अन्यथा उसे भविष्य में पूँजी एकत्रित करने में कठिनाई होगी। लाभांश के लिए अंशधारियों की इच्छा उनकी आर्थिक स्थिति पर निर्भर करती है। एक कम्पनी के अंशधारियों को चार वर्गों-छोटे, सेवानिवृत्त, धनाढ्य तथा संस्थागत अंशधारियों में बाँटा जा सकता है। छोटे,सेवानिवृत्त तथा आर्थिक दृष्टि से कमजोर अंशधारी लाभांश को अपने दैनिक व्ययों की पूर्ति के लिए कोषों का प्रमुख स्रोत मानते हैं। अतः ऐसे अंशधारियों के लाभार्थ कम्पनी को नियमित लाभांश भुगतान करना चाहिए। दूसरी ओर,धनाढ्य एवं संस्थागत अंशधारी चाल लाभांश आय से लाभान्वित नहीं होते। ऐसे अंशधारी न्यून लाभांश एवं उच्च पूँजी लाभ में रुचि रखते हैं। इन विभिन्न प्रकार के अंशधारियों के परस्पर विरोधी हितों को पूरा करना कम्पनी के लिए कठिन है, किन्तु फिर भी उसे विभिन्न वर्गों के अंशधारियो। के हितों को ध्यान में रखते हुए ही लाभांश नीति का निर्धारण करना चाहिए।

(10) पुरानी लाभांश दरें (Past Dividend Rates)-लाभांश की घोषणा करते समय कम्पनी के प को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि पिछले वर्षों में वे कितना लाभांश घोषित करते रहे हैं। याद की दरें एकदम बढ़ा दी जाती है तो कम्पनी के अंशों में सट्टा शरू हो जाता है। अत: प्रबन्धको का। नावांणा टा को यथा सम्भव स्थिर रखने का ही प्रयत्न करना चाहिए। यदि अधिक लाभांश वितरित करना हो अतिरिक्त लाभांश अथवा विशिष्ट लाभांश के नाम से वितरित करना चाहिए।

(11) सरकार की आर्थिक नीति (Economic Policy of Government)-सरकार की आय संस्था की लाभांश नीति को महत्त्वपूर्ण ढंग से प्रभावित करती हैं। उदाहरणार्थ सरकार द्वारा बिक्रि प्रतिभातियों की आड़ में दी जाने वाली वित्त की उपान्त राशि (Margin limit) बढ़ामिलने वाली वित्तीय सुविधा महंगी हो जाती है, जिससे उन्हें आन्तरिक स्रोतों पर आधक देने से कम्पनिया का मिलन निर्भर रहना पड़ता है। इससे लाभांश दर में कमी आ जाती है। पोषण नीति (Taxation Policy)-सरकार की कर नीति से भी संस्था के लाभांश निर्णय

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(12) करारोपण नीति (Taxation Policy)-सरकार की का की आयकर उच्च या निम्न दरों से संस्था की कर के पश्चात की आय प्रभावित । सावित होते हैं क्योकि निगम काम क्योंकि निगम की आयकर उच्च या निम्न दरों से कभी-कभी अंशधारियों की आयकर स्थिति भी लाभांश नीति को प्रभावित करती है। यदि व्यक्तिगत आयकर की दर ऊची होती है तो उच्च आय प्रकोष्ठ वाले अंशधारी नकद लाभांश के स्थान पर बोनस अंश पूंजी लाभ लेना अधिक पसंद करेंगे। इसी तरह सरकार ऊँची दर से लाभांश वितरित करने वाली संस्थाओं अतिरिक्त कर लगाकर आय के प्रतिधारण को प्रोत्साहित करती है, ताकि देश में पूँजी निर्माण आसान हो । है। ऐसी स्थिति में आय का अधिकाधिक भाग संचित करने की नीति अपनाई जाती है।

(13) वैधानिक और अनुबन्धात्मक प्रतिबन्ध (Legal and Contractual Restrictions)-वैधानिक वस्थायें भी लाभांश नीति को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित करती हैं। उदाहरणार्थ भारतीय कम्पनी अधिनियम, 105 के अनुसार एक कम्पनी को लाभांश देने से पूर्व अपनी सभी स्थायी सम्पत्तियों पर ह्रास की व्यवस्था करना अनिवार्य है। किसी भी स्थिति में लाभांश का भुगतान पूँजी में से नहीं किया जा सकता। यदि कम्पनी ने अपने कुछ अंशधारियों से कोई विशेष समझौता किया हुआ है तो उसका भी पालन किया जाना चाहिये। पर्वाधिकारी अंशों पर एक निश्चित दर से लाभांश देने का आश्वासन इसी प्रकार का एक आनुबंधिक समझौता है।

(14) लोक मत (Public Opinion) संस्थाओं की लाभांश नीति पर जनमत तथा सार्वजनिक प्रतिक्रियाओं का भी प्रभाव पड़ता है । प्रायः बहुत अधिक लाभांश वितरित करने वाली संस्थाओं की आलोचना सभी क्षेत्रों में होने लगती है जिससे कर्मचारी अपने वेतनों में वृद्धि की माँग करने लगते हैं और उपभोक्ता माल की कीमतों में कमी चाहते हैं तथा संस्था के अधिकारी भी उस लाभ में से अधिक बोनस दिये जाने की माँग करते हैं।

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लाभांश नीति एवं फर्म/अंशों के मूल्य में सम्बन्ध

(Relationship Between Dividend Policy and Value of the Firm/Shares)

वित्तीय प्रबन्ध का मुख्य उद्देश्य अंशधारियों की सम्पदा का मूल्य अधिकतम करना है। अतः लाभांश निर्णय लेते समय प्रबन्धकों को इस बात को अवश्य ध्यान में रखना होगा कि लाभांश निर्णय का अंशधारियों की सम्पदा पर क्या प्रभाव पड़ेगा। यदि लाभांश भुगतान प्रबन्ध को इस उद्देश्य की प्राप्ति में सहायक होता है, तब लाभांश दिया जाएगा अन्यथा लाभों को प्रतिधारित करके विनियोजन कार्यक्रमों के वित्त-पोषण हेतु उपयोग किया जाएगा। इस प्रकार लाभांश निर्णय इस बात पर आधारित है कि यह अंशधारियों की संस्था में विनियोजित सम्पदा के मूल्य अर्थात् अंशों का मूल्य बढ़ाने में कहाँ तक प्रभावशाली है। इस सम्बन्ध में वित्तीय प्रबन्ध के विभित्र विद्वानों के अलग-अलग विचार हैं। एक विचारधारा के अनुसार लाभांश निर्णय अंशधारियों की सम्पदा तथा फर्म के मूल्य को अधिकतम करने में बहुत महत्त्वपूर्ण हैं, जबकि दूसरी विचारधारा के अनुसार लाभांश सम्बन्धी निर्णयों की अंशधारियों की सम्पदा तथा फर्म के मूल्य को अधिकतम करने में कोई भूमिका नहीं होती। है। इन विचारधाराओं को सविधा की दष्टि से निम्नलिखित दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है__ (1) लाभांश की प्रासंगिक विचारधारा (Relevance Concept of Dividend) तथा (2) लाभांश की अप्रासंगिक विचारधारा (Irrelevance Concept of Dividend)।

1 लाभांश की प्रासंगिक विचारधारा (Relevance Concept of Dividend)- इस विचारधारा के समर्थकों में गोर्डन,लिंटर वाल्टर तथा रिचर्डसन आदि वित्तीय शास्त्रियों को शामिल किया जाता है । इन विद्वानों क अनुसार लाभांश नीति का फर्म के मल्य को अधिकतम करने में महत्त्वपूर्ण स्थान है अर्थात् फर्म के लाभांश क रूप में वितरित की जाने वाली राशि एवं प्रतिधारित अर्जनों की मात्रा के अनुपात में परिवर्तन से अंशों के बाजार मूल्य में परिवर्तन हो जाता है। दूसरे शब्दों में, फर्म की उदार अथवा कठोर लाभांश नीति का फर्म के मूल्य (अंशों के बाजार मूल्य) के साथ बड़ा ही घनिष्ठ सम्बन्ध है। जेम्स ई. वाल्टर तथा एम.जे. गोर्डन ने इस अवधारणा की पष्टि हेत अलग-अलग गणितीय सूत्र भी प्रतिपादित किये हैं, जिनका विश्लेषण निम्नानुसार किया गया है:

(A) लाभांश नीति का वाल्टर प्रतिमान (Walter’s Model of Dividend Policy)-प्रो. वाल्टर लाभाश नीति के निर्धारण हेत सन 1963 में एक प्रतिमान (Model) प्रस्तुत किया जिसके अनसार कम्पनी लाभांश नीति हमेशा उनके अंशों के बाजार मूल्य अर्थात् अंशधारियों की सम्पदा के मूल्य को प्रभावित करता है। उनके अनसार किसी संस्था की लाभांश नीति उसके द्वारा अर्जित आन्तरिक प्रत्याय दर Intent Rate of Return or r’) तथा पूँजी की लागत (Cost of Capital or ‘C’) के सम्बन्ध पर आधारित होती है।

दूसरे शब्दों में वाल्टर मॉडल के अनसार एक फर्म की अनुकूलतम लाभांश नीति फर्म की प्रतिधारित । अजेनों की आन्तरिक प्रत्याय दर एवं बाजार में प्रचलित पूँजीकरण की दर के पारस्परिक सम्बन्ध पर आधारित । है। कोई फर्म प्रतिधारित अर्जनों को तभी अपने यहाँ विनियोग करना पसन्द करेगी जबकि बाजार में प्रचलित । पूजीकरण दर की तुलना में आन्तरिक प्रत्याय दर अधिक हो। संक्षेप में, प्रो. वाल्टर द्वारा लाभांश नीति । सम्बन्ध में प्रदत्त दिशा-निर्देशों के आधार पर संस्थाओं/कम्पनियों को निम्नलिखित तीन वर्गों में विभाजित किजा सकता है

(1) विकासशील फर्मे (Growth Firms, i.e. where > c)-जिन फर्मों की आन्तरिक प्रत्याय दर बाजार में प्रचलित पूँजीकरण की दर से अधिक होती है, उन्हें विकासशील फर्म कहते हैं। ऐसी फर्मों के पास अधिकतम लाभ अर्जित करने के पर्याप्त अवसर उपलब्ध होते हैं। इसलिए वे अपनी प्रतिधारित आयों को फर्म के अन्दर ही रोक करके अर्यात विनियोग करके अधिक आय अर्जित कर सकती हैं : अत: ऐसी को। अपने अंशों का मूल्य अधिकतम करने के लिये अधिक से अधिक लाभ को प्रतिधारित करना (रोकना) चाहती। हैं और कम लाभांश वितरित करती हैं। इस प्रकार वे प्रतिधारित लाभों का विनियोग करके और अधिक लाभ। अर्जित करती हैं। स्पष्ट है कि विकासशील फर्मों का लाभांश भुगतान अनुपात शून्य होगा अर्थात् अंशधारी शून्य लाभांश भी स्वीकार करेंगे।

(2) विकास-अवमुखी फर्मे (Declining Firms i.e. wherer <c)-ऐसी फर्मों में आन्तरिक प्रत्याय दर बाजार में प्रचलित पूँजीकरण की दर से कम होती है। ऐसी दशा में ये फर्मे अपने अंशधारियों की सम्पदा का मूल्य तभी अधिकतम कर सकती हैं जबकि वे सम्पूर्ण अर्जित लाभों को लाभांश के रूप में वितरित कर दें। ऐसे प्राप्त लाभों को और कहीं लाभदायक विनियोगों में विनियोजित करके अंशधारी अधिक आय अर्जित कर सकते हैं। फर्म द्वारा लाभ प्रतिधारित करने पर अंशधारियों की आय कम होने से अंशों का बाजार मूल्य भी कम हो जायेगा। स्पष्ट है कि ऐसी संस्थाओं के लिए अपने अंशधारियों की सम्पदा को अधिकतम करने हेतु शत-प्रतिशत लाभांश भुगतान अनुपात सर्वोत्तम होगा।

(3) सामान्य फर्मे (Normal Firms i.e. where r = c)-जिन फर्मों की आन्तरिक प्रत्याय दर बाजार में प्रचलित पूँजीकरण की दर के बराबर होती है, वे सामान्य फर्मे कहलाती हैं। सामान्य फर्मे कोई भी लाभांश नीति अपना सकती हैं। इनकी लाभांश नीति का अंशों के बाजार मूल्य पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता

संक्षेप में, एक फर्म निम्नानुसार लाभांश नीति को अपनाकर अपने अंशों के बाजार मूल्य एवं फर्म के मूल्य को अधिकतम कर सकती है(

(i) यदि 7 > c हो तो लाभांश भुगतान अनुपात शून्य होना चाहिए अर्थात् शत-प्रतिशत अर्जनों का प्रतिधारण करना गहिए।

(ii) यदि r < c हो तो लाभांश भुगतान अनुपात 100% होना चाहिए अर्थात् फर्म को अर्जनों का कोई भी भाग फर्म में नहीं रोकना चाहिए।

(iii) यदि 1 = c तो फर्म किसी भी लाभांश नीति को अपना सकती है।

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वाल्टर मॉडल की मान्यताएँ (Assumptions Walter’s Model)

वाल्टर मॉडल निम्नलिखित मान्यताओं पर आधारित है

(1) व्यवसाय की प्रतिधारित आय (Retained Earnings) भविष्य में प्राप्त होने वाले लाभांश को प्रभावित करती है और इससे अंशों का बाजार मूल्य भी प्रभावित होता है।

(2) कम्पनी अपनी सम्पूर्ण आय या तो प्रतिधारित (Retained) करके व्यवसाय में पुनः विनियोजित करती है या लाभांश के रूप में नकद (Cash) वितरित करती है।

(3) कम्पनी अपने सभी विनियोगों का प्रबन्धन प्रतिधारित आय (all investment through retained earnings management) के माध्यम से ही करती है, इसके लिए कम्पनी/संस्था किसी प्रकार के अंशपत्र अथवा ऋणपत्र या बॉड्स आदि निर्गमित नहीं करती है।

(4) यहाँ यह मान लिया जाता है कि कम्पनी की प्रत्याय की आन्तरिक दर एवं बाजार में प्रचलित पूँजी की लागत के अनुपात अथवा दर में कोई परिवर्तन नहीं होता है अर्थात् आन्तरिक प्रत्याय दर एवं पँजी की लागत स्थिर रहती है।

(5) फर्म का अस्तित्व दीर्घकालीन एवं सतत् है।

वाल्टर का सूत्र (Walter’s Formula)-प्रो. वाल्टर ने एक अंश का बाजार मूल्य निर्धारित करने के लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रतिपादन किया है

वाल्टर मॉडल की सीमाएँ अथवा आलोचनाएँ (Limitations or Criticism of Walter’s Model) : वाल्टर मॉडल की आलोचना मुख्यतः वाल्टर मॉडल की मान्यताओं के कारण ही की गई है। प्रमुख आलोचनाएँ इस प्रकार हैं

(i) बाह्य वित्त पोषण का अभाव (Lack of External Financing)-वाल्टर मॉडल की प्रमुख मान्यता यह है कि विनियोगों का वित्तपोषण केवल प्रतिधारित अर्जनों से ही किया जाये, वास्तविक जगत में कभी भी सम्भव नहीं है। अधिकांश संस्थाएँ ऋणों अथवा नये समता अंशों द्वारा अपनी वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति करती हैं।

(ii) स्थिर आन्तरिक प्रत्याय दर का अभाव (Lack of Constant Internal Rate of Return) संस्था द्वारा अर्जित प्रत्याय दर स्थिर नहीं रहती । वास्तव में विनियोग में वृद्धि के साथ-साथ प्रत्याय दर में भी परिवर्तन होता है।

(iii) स्थिर पूँजी लागत का अभाव (Lack of Constant Capital Cost)-पूंजी लागत की स्थिरता की मान्यता भी सही नहीं है, क्योंकि संस्था की जोखिम का स्वरूप सदैव एक जैसा नहीं रहता। इसलिए पूँजी की लागत में भी परिवर्तन होता है।

Illustration 3. अनमोल लि. की प्रति अंश आय 10 रुपये है एवं पूँजीकरण की दर 10% है। प्रबन्धकों के समक्ष लाभांश के सम्बन्ध में निम्नलिखित विकल्प हैं

The earning per share of Anmol Ltd. is Rs. 10 and capitalisation rate is 10%. The following are the alternatives before the management regarding dividend :

(i) शून्य प्रतिशत भुगतान अनुपात (Zero per cent payout ratio)

(ii) 25% भुगतान अनुपात (25% payout ratio)

(iii) 50% भुगतान अनुपात (50% payout ratio)

(iv) 75% भुगतान अनुपात (75% payout ratio)

(v) 100% भुगतान अनुपात (100% payout ratio)

वाल्टर के अनुसार उपर्युक्त दशाओं में आप कौन-से विकल्प को सर्वोत्तम समझते हैं। यदि प्रतिधारित आय के विनियोग से (a) 15%. (F) 8% एवं (c) 10% प्रत्याय अर्जित की जा सकती है।

In the above circumstances according the Walter’s formula which alternative do you consider the best if retained earnings can be employed to yield a return of (a) 15%, (b) 8% and (c) 10%.

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समीक्षा : (A) जब कम्पनी की प्रचलित पूँजीकरण की दर,प्रतिधारित आय की आन्तरिक प्रत्याय दर ( c) से कम है तो अंशों के मूल्यों तथा लाभांश भुगतान अनुपात में विपरीत सम्बन्ध होता है क्योंकि जैसे-जैसे भगतान अनुपात अधिक होता जाता है अंशों का बाजार-मूल्य भी कम होता जाता है। उपर्युक्त प्रदर्शित परिकलन में बाजार मूल्य सर्वाधिक 150 रुपये तब होता है जबकि भुगतान अनुपात शून्य हो तथा न्यूनतम तब होता है जबकि भुगतान अनुपात 100% हो (Rs. 100)। अतः इस स्थिति में आदर्श लाभांश नीति यह है कि भुगतान अनुपात शून्य रखा जाये

समीक्षा : (B) जब कम्पनी की स्थिति : <c है, इसका अर्थ हुआ कि कम्पनी के पास पर्याप्त लाभकारी विनियोग अवसर नहीं है क्योंकि प्रचलित पूँजीकरण की दर की तुलना में प्रतिधारित आय की आन्तरिक प्रत्याय दर कम है। ऐसी दशा में लाभांश अनुपात तथा अंशों के बाजार मूल्यों में सीधा सकारात्मक सम्बन्ध स्थापित हो जाता है। उक्त कम्पनी यदि लाभांश अनुपात (D/P ratio) 100% रखती है तो कम्पनी के अंशों का मूल्य सर्वाधिक रु. 100 होता है जबकि यदि लाभांश शून्य (zero) रखा जाता है तो मूल्य न्यूनतम रुपये 80 होता है। अत: ऐसी दशा (r <c) में कम्पनी के लिए श्रेष्ठ यह है कि वह सम्पूर्ण लाभ को अंशधारियों में वितरित कर दें।

(C) जब कम्पनी की स्थिति r = c है तो लाभांश अनुपात कुछ भी रखा जाये सभी ठीक है क्योंकि ऐसी दशा में कम्पनी के अंशों का बाजार मूल्य लाभांश अनुपात से प्रभावित नहीं होता। दूसरे शब्दों में कम्पनीप्रबन्धक लाभों को रोकने तथा लाभांश में वितरित करने में उदासीन हो जाते हैं।

परन्तु यह स्थिति वास्तव में काल्पनिक है क्योंकि व्यवहार में । एवं c बराबर नहीं होते, व्यवहार में कम्पनीr > c या <c की स्थिति में होती है।

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Illustration 4. एक्स लि. एक ऐसी लाभांश नीति का अनुसरण कर रही है जो वाल्टर मॉडल के अनुसार फर्म का बाजार मूल्य अधिकतम कर सकती है। तदनुसार लाभांश के समय प्रत्येक वर्ष अवधि हेत आय एवं अंशधारियों हेतु वैकल्पिक विनियोग अवसरों को ध्यान में रखते हुए पूँजी बजट की समीक्षा की जाती है। चालू वर्ष में फर्म को 6,00,000 रुपये की शुद्ध आय की सूचना है। यह अनुमानित किया जाता है कि फर्म 1,20,000 रुपये अर्जित कर सकती है यदि उक्त शुद्ध आय की धनराशि प्रतिधारित कर (रोक) ली जाती है। विनियोजकों के समक्ष एक वैकल्पिक विनियोग अवसर है जो 10% की आय अर्जित करेगा। कम्पनी में 60.000 अंश हैं। यदि कम्पनी अंशधारियों के धन को अधिकतम करना चाहती है तो लाभांश भुगतान अनुपात क्या होना चाहिए ?

X Ltd. has been following a dividend policy which can maximise the market value of the firm as per Walter’s model. Accordingly, each year at dividend time, the capital budget is reviewed in conjunction with the earnings for the period and alternative investment opportunities for the shareholders. In the current year, the firm reports net earnings of Rs. 6,00,000. It is estimated that the firm can earn Rs. 1,20,000 if the amounts are retained. The investors have alternative investment opportunities that will yield them 10%. The firm has 60,000 shares outstanding. What should be the dividend payout ratio of the company if it wishes to maximize the wealth of the shareholders?

Illustration 5. (i) आपको प्रदत्त निम्नलिखित सूचनाओं स ज्ञात कीजिए क्या वालटर के अनुसार फर्म का लाभांश भुगतान अनुपात अनुकूलतम है। फर्म 10 लाख रुपये की समता पूंजी के साथ एक वर्ष पूर्व शुरू हुई थी।

From the following information supplied to you, ascertain whether the firm’s dividend payout ratio is optimal according to walter. The firm was started a year ago with an equity capital of Rs. 10 lakh.

फर्म की आय (Earnings of the firm)                                            Rs. 1,00,000

दिया गया लाभांश (Dividend Paid)                                               Rs. 75,000

मूल्य अर्जुन अनुपात (Price-earnings ratio)                                       12.5

समता अशं पूँजी (Equity Share Capital) : 10,000 shares @ Rs.         100.

फर्म को उम्मीद है कि विनियोगों पर आय की वर्तमान दर बनी रहेगी।

The firm is expected to maintain its current rate of earnings on investment.

(ii) कितने मूल्य अर्जन अनुपात पर लाभांश भुगतान अनुपात का अंशों के मूल्य पर कोई प्रभाव नहीं होगा ।

What should be the price-earnings ratio at which the dividend payout ratio will have no effect on the value of the share ?

(iii) कितने मूल्य अर्जुन अनुपात पर लाभांश भुगतान अनुपात का अँशों के मूल्य पर कोई प्रभाव नहीं होगा ।

Will your decision be changed if the P/E ratio is 8, instead of 125?

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(B) गॉर्डन मॉडल (Gordon’s Model)-गॉर्डन मॉडल भी काफी सीमा तक वाल्टर मॉडल जैसा ही है। गॉर्डन के अनुसार कम्पनी की लाभांश नीति का कम्पनी के अंशों के बाजार मूल्यों पर सीधा प्रभाव पडता है। उनकी मान्यता है कि भविष्य में मिलने वाले सम्भावित लाभांश (Expected Dividend) भी कम्पनी के अंशों के बाजार मूल्य के निर्धारण में महत्वपूर्ण योगदान करते हैं। गॉर्डन के मॉडल में जो प्रमुख अन्तर देखने को मिलता है वह यह है कि अंश का बाजार मूल्य अंश पर अनन्त समय तक प्राप्त होने वाले लाभांश के वर्तमान मूल्य के बराबर होता है। __

संक्षेप में गॉर्डन मॉडल के आधार पर अनुकूलतम लाभांश नीति का निम्नानुसार चयन किया जाता

(i) यदि कम्पनी की आन्तरिक प्रत्याय दर, बाजार में उपलब्ध पूँजीकरण की दर से अधिक हो तो ऐसी कम्पनियाँ कम लाभांश या शन्य लाभांश वितरित करके भी अपने अंशों के बाजार मूल्य को अधिकतम करने में सफल हो जाती हैं। ऐसी स्थिति सामान्यतः विकासशील कम्पनियों में ही पायी जाती है।

(ii) यदि कम्पनी की आन्तरिक प्रत्याय दर, बाजार में उपलब्ध पूँजीकरण की दर से कम हो तो ऐसी कम्पनियों को अपने सम्पूर्ण लाभों को अंशधारियों में नकद वितरित कर देना चाहिए जिससे कि अंशधारी उक्त लाभांश को कहीं और विनियोजित करके अधिक लाभों को अर्जित कर सकें। कम्पनी का भुगतान अनुपात जितना अधिक होगा. कम्पनी के अंशों का बाजार मूल्य भी उतना ही अधिक होगा।

(iii) जब आन्तरिक प्रत्याय दर एवं प्रचलित पूँजीकरण की दर बराबर हो तो ऐसी कम्पनियाँ कोई भी लाभाश नीति अपना सकती हैं। वस्तुतः लाभों को प्रतिधारित करने का अथवा वितरित करने का अंशों के गार मूल्य पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है तथा अंशों का बाजार मूल्य यथावत् रहता है।

गार्डन मॉडल की मान्यताएँ (Assumptions of Gordon’s Model)-गॉर्डन मॉडल निम्नलिखित मान्यताओं पर आधारित है

(1) कम्पनी केवल समता पूँजी प्रयोग करती है।

(2) कम्पनी का जीवन काल असीमित है।

(3) आन्तरिक प्रत्याय दर (1) और पूँजी की लागत (k) निश्चित व स्थिर होते हैं।

(4) पूंजी की लागत (k), विकास दर (br) से अधिक होती है।

(5) नवीन वित्त पूर्ति के लिए बाह्य साधन उपलब्ध नहीं है। अत: कम्पनी प्रतिधारित लाभों के द्वारा है। अपने साधनों को जुटाती है।

(6) निगम कर को ध्यान में नहीं रखा जाता है।

(7) विकास दर में कोई परिवर्तन सम्भव नहीं होता है।

(‘8 प्रतिधारण अनुपात (Retention Ratio) एक बार निर्धारित करने के बाद स्थिर रहता है।। गाडेन का सूत्र (Gordon’s Formula)-गॉर्डन का सूत्र निम्नलिखित प्रकार है

PE(1-b)

(k – br)

where, P stands for value of equity shares at the beginning of year.

(वर्ष के प्रारम्भ में समता अंशों का मूल्य)

Estands for = प्रति अंश आय (Earning per share)

b stands for Retention Ratio or Percentage of Earnings Retained.

(प्रतिधारण अनुपात अथवा प्रतिधारित आय का प्रतिशत)

(1 – b) = D/P ratio i.e., percentage of earnings distributed as dividends.

r = Rate of return earned on investments made by the firm.

= Growth rate of earnings and dividends.

k = पूँजी की लागत (Cost of capital) या पूंजीकरण दर (Capitalisation Rate) T Rate of Return required by shareholders.

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Illustration 6. मोनिका लि. 80% स्थिर लाभांश भुगतान अनुपात नीति का अनुसरण करती है। वर्ष 2005-06 हेतु प्रति अंश आय (EPS) 5.00 रुपये है एवं 2006-07 के दौरान इसमें 20% वृद्धि होने। की सम्भावना है। फर्म अपने विनियोगों पर 18% की प्रत्याय अर्जित करती है। कम्पनी की समता की लागत 15% है । गॉर्डन मॉडल के आधार पर 1.4.2006 को अंश के मूल्य की गणना कीजिए।

Monika Ltd. follows a policy of fixed dividend payout of 80%. The EPS for 2005-06 is Rs. 5.00 per share and the same is expected to grow by 20% during 2006-07. The firm earns return of 18% on its investment. The cost of equity of the company is 15%. Compare the value of the share as on 01.04.2006 using the Gordon Model .

यह मानते हुए कि गॉर्डन मूल्यांकन मॉडल लागू होता है, विनियोगों पर क्या प्रत्याय दर अर्जित की जानी चाहिये जिसके परिणामस्वरूप अंश का बाजार मूल्य 50 रुपये एवं लाभांश भुगतान अनुपात 20% हो।

Assuming that Golden Valuation Model holds, what rate of return should be earned on investments to ensure that the market price is Rs. 50 when the dividend payout ratio is 20%.

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Hence, the firm should earn a return of 16% on its investments.

Illustration 8. एक कम्पनी के सम्बन्ध में निम्नलिखित समंक दिये हुए हैं

The following data are given in respect of a company :

  1. प्रति अशं आय (Earning per share) Rs. 5
  2. विनियोग पर प्रत्याय दर (Rate of Return on Investments) r=8%
  3. पूँजीकरण दर/पूँजी की लागत 6%

(Capitalization Rate/Cost of Capital)

उपर्युक्त सूचनाओं के आधार पर गॉर्डन मॉडल को प्रयोग करते हुए निम्नलिखित प्रतिधारण अनुपातों में से प्रत्येक के अन्तर्गत कम्पनी के अंशों के मूल्य की गणना कीजिए।

(i) 20%, (ii) 40%, (iii) 50% (iv) 60%

On the basis of the above information, compute the value of company’s shares using Gorden’s Model under each of the following retention ratios :

It is clear from the above calculations that increase in retention ratio (b) a favourable impact on the market value of shares.

2.लाभांश की अप्रासंगिक विचारधारा अथवा लाभांश नीति की असम्बद्धता का विचार (T Irrelevence Concept of Dividend or Dividend Policy)-इस विचारधारा के समर्थकों में मर सालोमन, मोदीग्लियानी एवं मिलर आदि वित्तीय शास्त्रियों को शामिल किया जाता है। चूंकि इस विचार के प्रमुख समर्थक मोदीग्लियानी एवं मिलर ही हैं, इसलिए इसे एम० एम० विचारधारा (M. M. Approachi के नाम से भी जाना जाता है। इन विद्वानों का मानना है कि लाभांश नीति एवं फर्म/कम्पनी के अंशों के बाला मूल्य दोनों तत्वों में कोई सम्बन्ध नहीं है अर्थात् दोनों तत्व स्वतन्त्र हैं। दूसरे शब्दों में, लाभांश सम्बन्धी निर्णय की फर्म के मूल्य को अधिकतम करने में कोई भूमिका नहीं है और यह फर्म के मूल्य को प्रभावित करने की दृष्टि से अप्रासंगिक या महत्त्वहीन है। वस्तुतः फर्म के मूल्य को लाभांश नीति के स्थान पर उसकी विनियोग नीति प्रभावित करती है एवं लाभांश नीति संस्था के विनियोग निर्णयों द्वारा प्रभावित होती है। मोदीग्लियानी एवं मिलर मॉडल की विस्तृत विवेचना नीचे की गई है ।

मोदीग्लियानी एवं मिलर मॉडल (Modigliani and Miller’s Model)-मोदीग्लियानी एवं मिलर का मानना है कि लाभांश नीति फर्म/कम्पनी के अंशों के मूल्य को प्रभावित करने की दृष्टि से अप्रासंगिक या महत्त्वहीन है। इनके अनुसार कम्पनी के अंशों का मूल्य उनकी आय पर निर्भर करता है न कि लाभांश के। वितरण या उनके प्रतिधारित करने पर। वस्तुतः फर्म का मूल्य उसकी आय अर्जन क्षमता तथा विनियोग नीति द्वारा निर्धारित होता है।

मोदीग्लियानी एवं मिलर के अनुसार, “पूर्ण पूँजी बाजारों, विवेकशील विनियोजकों, लाभांश आय एवं पूँजी सम्वर्द्धन में कर विभेद की अनुपस्थिति तथा दी गई विनियोग नीति की दशा में संस्था की लाभांश नीति अंशों के बाजार मूल्य को प्रभावित नहीं कर सकती।”l | मोदीग्लियानी एवं मिलर मॉडल की मान्यताएँ (Assumptions of the M.M. Model)

एम० एम० मॉडल निम्नलिखित मान्यताओं पर आधरित है

 (1) पूर्ण पूँजी बाजार (Perfect Capital Markets)-संस्था पूर्ण पूँजी बाजार में कार्य करती है, जहाँ विनियोजक विवेकपूर्ण व्यवहार करते हैं, कम्पनी सम्बन्धी सभी सूचनाएँ उपलब्ध हैं तथा कोई निर्गमन लागत नहीं लगती। पूर्ण पूँजी बाजार में कोई भी विनियोजक इतना बड़ा नहीं है जो प्रतिभूतियों के बाजार मूल्य को प्रभावित कर सके।

(2) कर नहीं (No Taxes exists) किसी प्रकार के कर नहीं लगाये जाते अथवा लाभांशों एवं पूँजी लाभों पर लागू कर दरों में कोई अन्तर नहीं है। इस प्रकार विनियोजक लाभांश के एक रुपये का मल्य पूँजी लाभ के एक रुपये जितना ही आंकते हैं।

(3) स्थायी विनियोग नीति (Fixed Investment Policy)-संस्था की सुनिश्चित एवं स्थायी विनियोग नीति है।

(4) अनिश्चितता की जोखिम नहीं (No risk of uncertainty)-संस्था के भविष्य के सम्बन्ध में कोई अनिश्चितता तथा जोखिम नहीं है अर्थात् विनियोजक भावी मूल्यों एवं लाभांशों का पूर्वानुमान लगाने में। समर्थ है तथा सभी समयों में सभी प्रकार की प्रतिभूतियों के लिए एक बट्टा दर उचित है। बाद में इस मान्यता को हटा दिया गया है।

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एम० एम० मॉडल की व्याख्या अथवा विश्लेषण

(Explanation or Analysis of M.M. Model)

मोदीग्लियानी एवं मिलर की उपर्युक्त वर्णित विचारधारा इस तर्क पर आधारित है कि लाभांश वितरित करने वाली कम्पनियाँ लाभों को प्रतिधारित करने के स्थान पर पूँजी की प्राप्ति बाह्य साधनों से करती हैं। जैसा कि विदित है कि लाभांश का भुगतान नकद किये जाने पर अंशों का मूल्य कम हो जाता है, लेकिन मोदीग्लियानी व मिलर का यह तर्क है कि अंशधारियों को इससे कुल धन (Total wealth) में कोई हानि नहीं होती है।

उन्हें एक ओर तो नकद लाभांश मिलता है तथा अंगों का गिरजाने पर भी कल धन (TotaL Wealth पूर्ववरत् ही बना रहता है। लेकिन यदि लाभांश वितरित नहीं किया जाये तो अंशों के मूल्य में वृद्धि हो जायेगी । यहाँ पर भी अंशधारियों के कुल धन (Overall wealth) में कोई वृद्धि नहीं होगी। लाभांश से वंचित रहने जो हानि हाता ह, वह अशा क मूल्य में वृद्धि से समायोजित हो जाता है इस प्रकार अशधारियों को अतिरिक्त लाभ नहा हाता है। वस्तुतः लाभांश भगतान से अंशधारियों की सम्पदा में जितनी वृद्धि होता ह,बाह्य वित्त पोषण क पारणामस्वरूप उतना हा धनराशि से अंश के बाजार मल्य में कमी आने से उनकी सम्पदा घट पानी है। इस प्रकार अशधारियों की सम्पदा में कोई परिवर्तन नहीं होता। उदाहरणार्थ एक कम्पनी जिसके पास जानकारी विनियोग अवसर है, यदि अपनी संपूर्ण आय को लाभांश के रूप में वितरित कर देती है तो इस अतिरिक्त पंजी का व्यवस्था बाह्य स्रोतों से करनी होगी। ऐसा करने से इसके अंशों की संख्या या ब्याज का में वद्धि होगी जिससे भविष्य में प्रति अंश अर्जन कम हो जायेगी। इस प्रकार एक अंशधारी लाभाशं के रूप में जितनी राशि प्राप्त करता है वह सम्भावित प्रति अंश भावी अर्जनों में कमी के फलस्वरूप अंगों के बाजार मूल्य में कमी आ जाने से पूर्णरूपेण बराबर हो जाती है। साररूप में एक अवधि विशेष के पाभ में अंश का बाजार मूल्य अवधि के अन्त में चुकाये गये लाभांश के वर्तमान मल्य तथा अवधि के अन्त में अंश के बाजार मूल्य के योग के बराबर होता है।

एम० एम० मॉडल के अनुसार अंशों के मूल्यांकन का सूत्र (Formula of Valuation of Shares According to M.M. Model)-एम० एम० मॉडल के अनुसार अंशों के मूल्यांकन हेतु प्रयुक्त होने वाले सत्र को निम्नलिखित प्रकार व्यक्त किया जा सकता है

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निर्गमित किये जाने वाले नये अंशों की संख्या का परिगणन (Computation of the Number of New Shares to be Issued) : प्रदत्त समयावधि में किसी फर्म के विनियोग कार्यक्रम का वित्त पोषण प्रतिधारित अर्जनों के द्वारा अथवा नये अंशों के निर्गमन द्वारा अथवा दोनों प्रकार से किया जा सकता है। वांछित विनियोग कार्यक्रम हेत वित्त पोषण के लिए निर्गमित किये जाने वाले नये अंशों की संख्या का परिकलन करने हेतु निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है

m =I-(X – nD1)

               P1

where                                               , m    = Number of new shares to be issued

                   I = Amount of Required Investment

                                    X = Total net profit of the firm during period.

                                   nD1 = Total dividends paid during the period.

एम० एम० मॉडल के अनुसार फर्म के मूल्य का परिकलन (Calculation of Value of Firm According to M.M. Model) -एम० एम० मॉडल के अनुसार फर्म का मूल्य निम्नलिखित सूत्र की सहायता से ज्ञात किया जा सकता है

nPo. =(n + m) P1- (I-X)

1+ Ke

where, n = Number of shares outstanding at the begining of the period

(अवधि के प्रारम्भ में बकाया अंशों की संख्या)

एमएम. मॉडल के अनुसार लाभांश नीति का फर्म के मूल्य पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता अर्थात एम. एम० धारणा के अनुसार लाभांश के भुगतान करने अथवा न करने से फर्म का मूल्य प्रभावित नहीं होता है।

एम० एम० मॉडल की आलोचनाएँ (Criticism of M.M. Model)- मोदीग्लियानी एवं मिलर द्वारा दी गई लाभांश की अप्रासंगिक विचारधारा की आलोचना मुख्यत: इसकी मान्यताओं के कारण की गई। है जो कि व्यवहार में सही नहीं उतरती । संक्षेप में, इस विचारधारा के विरूद्ध निम्नलिखित आक्षेप लगाए गये

(i) निर्गमन लागतों की उपस्थिति (Existence of Flotation Costs) यदि संस्था अर्जनों के प्रतिधारण के बजाय नए अंशों के निर्गमन से वित्तपोषण करती है तो इसे अभिगोपन कमीशन या दलाली के रूप में व्यय करना पड़ेगा। इससे बाह्य वित्तपोषण आन्तरिक वित्तपोषण से महंगा पड़ेगा, परिणामस्वरूप लाभांश भुगतान की तुलना में अर्जनों का प्रतिधारण अधिक पसन्द किया जायेगा।

(ii) कर विभेदक (Tax Differential)-MM की मान्यता में करों की अनुपस्थिति वास्तविकता से परे है। विनियोजकों को प्राप्त लाभांश या पूँजी लाभ पर आयकर देना पड़ता है तथा लाभांश एवं पूँजी लाभ पर आयकर की भिन्न दरें लागू होती हैं। सामान्यतः पूँजी लाभ पर कर की दर सामान्य दर से कम होती है। परिणामस्वरूप पूँजी लाभ से कर बचत होती हैं। इससे बाह्य वित्तपोषण की तुलना में आन्तरिक वित्तपोषण की दशा में अंश का मूल्य अधिक होगा। अतः लाभांश भुगतान के बजाय अर्जनों के प्रतिधारण की नीति अधिक पसन्द की जायेगी।

(iii) चालू आय की इच्छा (Desire of Current Income)-इस विचारधारा के अनुसार अंशधारी की सम्पदा वही रहती है, चाहे लाभांश भुगतान किया जाये अथवा नहीं। किन्तु जब लाभांश भुगतान नहीं किया जाता है तब चालू आय की इच्छा पूर्ति के लिए अंशधारी अपने अंशों का विक्रय करता है जिस पर दलाली आदि के रूप में व्यय करना पड़ता है। इसलिए वह भावी लाभों (पूँजीगत लाभ) की तुलना में चालू आय को अधिक पसन्द करता है।

(iv) लाभांश सम्बन्धी सूचना (Informational Content of Dividend)-लाभांश की घोषणा तथा भुगतान सम्बन्धी सूचना संस्था की वित्तीय सुदृढ़ता तथा लाभदायकता के बारे में अवगत कराती है। जब कम्पनी अपनी विद्यमान लाभांश नीति में परिवर्तन करती है तब विनियोजक संस्था की सम्भावित लाभदायकता में परिवर्तन की अपेक्षा करते हैं जो कि दीर्घकाल तक रहेगी। लाभांश भुगतान अनुपात में वृद्धि संस्था की सम्भावित अर्जनों में स्थायी वृद्धि का संकेत देती है। इस प्रकार लाभांश नीति में परिवर्तन अंश के मूल्य को प्रभावित करता है।

(v) विविधीकरण (Diversification) विनियोजक अपने धन का विभिन्न प्रकार की प्रतिभूतियों में विनियोजन करने के इच्छुक होते है। इसलिए वे संस्था द्वारा उसकी अर्जनों के वितरण को पसंद करेंगे ताकि प्राप्त लाभांश का विनियोजन दूसरी संस्थाओं में करके अधिक आय का अर्जन कर सकें।

(vi ) अनिश्चितता (Uncertainty)-अनिश्चितता की स्थिति विद्यमान रहती है क्योंकि भविष्य के बारे में सही पूर्वानुमान नहीं किया जा सकता।

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IIlustration 9. निकिता लि. के पास 10 रु. वाले 50,000 अंश थे। इन्हें वर्तमान में सम मूल्य पर गया है। 31 मार्च,2005 को समाप्त होने वाले वर्ष के लिए कम्पनी 3.50 रु.प्रति अंश लाभांश देने का विचार कर रही है। इसकी पूजीकरण की दर 20% है।

एम. एम. मॉडल का प्रयोग करते हुए वर्ष के अन्त में कम्पनी के अंशों का मूल्य ज्ञात कीजिए जब (1) लाभांश घोषित किया जाता हो (ii) जब लाभांश घोषित नहीं किया जाता हो। 50000 रु.के विनियागका आवश्यकता को पूरा करने के लिए कम्पनी द्वारा निर्गमित अंशों की संख्या भी ज्ञात कीजिए यह मान लीजिए। कि शुद्ध आय 2,00,000 रु. है।

Nikita Ltd. has 50,000 shares of Rs. 10 each. These are currently listed at par. The company is thinking to declare a dividend of Rs. 3.50 per share for the year ending 31st March, 2005. Its capitalisation rate is 20%.

Using M.M. Model compute the price of company’s shares at the end of the Tear when (i) dividend is declared and (ii) dividend is not declared.

Also find out the number of shares which must be issued by the company to meet its investment need of Rs. 50,000 assuming net income of Rs. 2,00,000Illustration 10. एक कम्पनी ऐसे जोखिम वर्ष से सम्बन्धित है जिसकी पूँजीकरण दर 25% है। इसके विद्यमान कुल अंश 40 रु.विक्रय मूल्य वाले 1,00,000 है। कम्पनी वर्तमान वर्ष के अन्त में 2.50 रु. प्रति अंश लाभांश घोषित करने का विचार कर रही है। मोदीग्लियानी एवं मिलर मॉडल का प्रयोग करते हुए।

और कर नहीं की मान्यता के आधार पर वर्तमान वर्ष के अन्त में समता अंश का मूल्य बताइए जब (i) लाभांश घोषित किया जाता है और (i) लाभांश घोषित नहीं किया जाता है। यह भी बताइए कि चाहे लाभांश का भुगतान किया जाता है या नहीं, समता अंशधारियों का धन समान रहता है।

A company belongs to a risk class for which the capitalisation rate is 25%. Its total number of existing shares are 1,00,000 at selling price of Rs. 40 each. The company is thinking to declare dividend of Rs. 2.50 per share at the end of the current year. Using the Modigliani and Miller Model and assuming no taxes, answer the market price of equity share at the end of the year, when (i) dividend is declared and (ii) dividend is not declared. Explain that whether dividend is paid or not, the wealth of equity shareholder is equal.

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स्पष्ट है कि फर्म का मूल्य 5,00,000 रु. रहता है, चाहे लाभांश चुकाया जाये अथवा नहीं।

Illustration 12. एक टैक्सटाइल कम्पनी एक ऐसे जोखिम वर्ग से सम्बन्धित है जिसके लिये उपयुक्त मूल्य अर्जन अनुपात 10 है। वर्तमान में इसके पास 100 रु. प्रति अंश बाजार मूल्य वाले 50,000 अंश अदत्त हैं। फर्म वर्तमान वर्ष के अन्त में 8 रु. प्रति अंश लाभांश घोषित करने का विचार कर रही है। मोदीग्लिआनी और मिलर के दिये हुए मान्यताओं के आधार पर निम्न प्रश्नों का उत्तर दीजिए

(i) वर्ष के अन्त में अंश का बाजार मूल्य क्या होगा यदि (अ) लाभांश घोषित नहीं किया जाता है, (ब) यह घोषित किया जाता है।

(ii) यह मानकर कि फर्म लाभांश का भुगतान करती है, फर्म की शुद्ध आय 5,00,000 रु. है और इस अवधि में फर्म 10,00,000 रु. का नया विनियोग करना चाहती है, कितने नये अंशों का निर्गमन अनिवार्य होगा।

(iii) फर्म का मूल्य क्या होगा यदि (अ) लाभांश घोषित किया जाता है, (ब) लाभांश घोषित नहीं किया जाता है।

A textile company belongs to a risk-class for which the appropriate P/E Ratio is 10. It currently has 50,000 outstanding shares selling at Rs. 100 each. The firm is contemplating the declaration of Rs. 8 per share dividend at the end of current year. Given the assumption of Modigliani and Miller, answer the following questions :

(i) What will be the price of the share at the end of the year if (a) a dividend is not declared, (b) it is declared ?

(ii) Assuming that the firm pays the dividend, has net income of Rs. 5,00,000 and makes new investment of Rs. 10,00,000 during the period, how many new shares must be issued ?

(iii) What will be the value of the firm if (a) a dividend is declared, (b) a dividend is not declared ?

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