BCom 3rd Year Financial Management An Introduction Study Material Notes In Hindi

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वित्तीय प्रबन्ध : एक परिचय

(Financial Management : An introduction)

वित्त औद्योगिक तथा व्यावसायिक जगत का जीवन रक्त एवं मूलाधार है। वित्त के अभाव में किसी भी व्यावसायिक उपक्रम की स्थापना एवं सफलतापूर्वक संचालन असम्भव है। संक्षेप में, व्यवसाय की प्रत्येक गतिविधि के साथ ही वित्त का प्रश्न जुड़ा हुआ होता है। वास्तव में पर्याप्त वित्त की उपलब्धि और इसका प्रभावपूर्ण उपयोग ही व्यावसायिक सफलता के मूल मन्त्र हैं । व्यक्तिगत व्यावसायिक संगठनों (एकाकी स्वामित्व एवं साझेदारी संगठनों) की वित्तीय व्यवस्था करना सरल होता है क्योंकि पहली बात तो यह है कि इनका स्वरूप व्यक्तिगत होता है तथा दूसरे इनकी वित्तीय आवश्यकताएँ सीमित होती हैं। व्यावसायिक संगठनों का स्वरूप अव्यक्तिगत होने पर उनकी वित्तीय व्यवस्था करना कठिन हो जाता है । वस्तुतः निगमों (कम्पनियों) की वित्तीय व्यवस्था करना, उनके अव्यक्तिगत स्वरूप तथा वित्त की अधिक मात्रा में आवश्यकता के कारण अत्यधिक जटिल एवं कठिन होता है। इस प्रकार वर्तमान युग में वित्तीय प्रबन्ध सम्बन्धी विचारधारा व्यावसायिक क्षेत्रों में क्रान्तिकारी पद्धति (Epoch-making System) मानी जाती है तथा आधुनिक ढंग के बड़े पैमाने के उपक्रमों में इसका उपयोग निरन्तर बढ़ता जा रहा है। आधुनिक समय में वित्त सम्बन्धी कार्य को भली प्रकार सम्पन्न करने के लिए यह कार्य एक स्वतन्त्र विभाग ‘वित्तीय विभाग’ (Finance Department) को सौंपा जाता है।

व्यावसायिक वित्त का प्रादुर्भाव

(Evolution of Business Finance)

बीसवीं शताब्दी से पूर्व तक वित्त का अध्ययन अर्थशास्त्र के अन्तर्गत ही किया जाता था, परन्तु बीसवीं शताब्दी के शुरू होने के बाद बड़े पैमाने के उद्योगों के विकसित होने के साथ ही वित्तीय व्यवस्था सम्बन्धी समस्याएँ पहले की तुलना में अधिक जटिल रूप में प्रकट होने लगी जिनके समाधान हेतु “वित्त’ का एक पृथक् विषय के रूप में अध्ययन किया जाने लगा। इसका प्रारम्भिक स्वरूप वर्णनात्मक प्रकृति का था जिसमें मुख्यतः निगमों के प्रवर्तन, पूँजीकरण, पूँजी-संरचना का चुनाव, प्रतिभूतियों का विपणन, वित्तीय अनुबन्धों, आदि का ही अध्ययन किया जाता था। लगभग सन् 1950 तक व्यावसायिक वित्त की यही धारणा अधिक लोकप्रिय रही, परन्तु बीसवीं शताब्दी के मध्य के पश्चात् (विशेषतः द्धितीय विश्व युद्ध के बाद से) व्यावसायिक फर्मों के आकार में पर्याप्त वृद्धि हुई है। विशाल निगमों की स्थापना तथा उनसे होने वाली कड़ी प्रतिस्पर्धी ने साधनों के अनुकूलतम उपयोग की ओर प्रबन्धकों का ध्यान आकर्षित किया। अतः वित्तीय नियोजन, नियन्त्रण तथा कार्य निष्पादन की नवीन विधियों एवं तकनीकों का विकास हुआ जिन्होंने व्यावसायिक वित्त को नये आयाम प्रदान किये जिनका सम्बन्ध कोषों के प्रभावपूर्ण एवं कुशलतापूर्ण उपयोग से है। इस प्रकार पिछले पाँच दशकों में वित्त-कार्य के विचार एवं स्वरूप तथा इसके कार्य-क्षेत्र में जो क्रमिक परिवर्तन हुआ है, उसके फलस्वरूप व्यावसायिक वित्त की परम्परागत विचारधारा का महत्त्व समाप्त हो गया तथा व्यावसायिक वित्त की नवीन विचारधारा का विकास हुआ। आधुनिक विचारधारा के अन्तर्गत वित्तीय प्रबन्ध, व्यावसायिक प्रबन्ध का एक

अभिन्न अंग बन गया है जिसका सम्बन्ध व्यवसाय के आन्तरिक संचालन से अधिक है। विषय के वर्णनात्मक पक्ष पर अधिक ध्यान देने के स्थान पर अब इसके विश्लेषणात्मक पक्ष पर अधिक ध्यान दिया जाने लगा है। वस्तुत: वर्तमान समय में संस्थागत तथा बाह्य वित्त की अपेक्षा फर्म के दिन-प्रतिदिन के कार्यों की वित्तीय व्यवस्था को अधिक महत्त्व दिया जाने लगा है। आधुनिक विचारधारा के अनुसार दीर्घकालीन वित्तीय नियोजन, कोषों के वैकल्पिक उपयोगों का मूल्यांकन, पूँजी बजटिंग, व्यवसाय की वित्तीय सफलता के मापदण्डों का निर्धारण, पूँजी की लागत तथा कार्यशील पूँजी के प्रबन्ध, आदि इस विषय के मुख्य अंग बन चुके हैं।

स्पष्ट है कि वर्तमान में व्यावसायिक वित्त का अध्ययन वर्णनात्मक के स्थान पर विश्लेषणात्मक प्रकृति का हो गया है और इसी परिवर्तन की वजह से अब इस विषय के लिए व्यावसायिक वित्तया निगम वित्तके स्थान पर ‘वित्तीय प्रबन्ध’ या ‘प्रबन्धकीय वित्त’ शब्द अधिक प्रचलित हैं।

वित्त कार्य : अर्थ एवं परिभाषा

(Finance Function : Meaning and Definition)

सरल शब्दों में किसी भी व्यावसायिक संस्था की वित्तीय व्यवस्था करना ही वित्त कार्य है। वित्त कार्य की मुख्य परिभाषाएं निम्नलिखित हैं :

आर. सी. ओसबोर्न के अनुसार, “वित्त कार्य, व्यवसाय द्वारा कोषों की प्राप्ति तथा उनके उपयोग की प्रक्रिया है।”

इलटर के अनुसार, “वित्त कार्य एक व्यापक शब्द है जिसके अन्तर्गत उन सभी कार्यों का समावेश किया जाता है जिनका सम्बन्ध वित्त से है।”

हैनरी के अनुसार, “वित्त कार्य के अन्तर्गत धन कोषों का पता लगाना, उनको जुटाना, उनका उपयोग करना, वित्त कोषों पर नियन्त्रण रखना, वित्त सम्बन्धी पूर्वानुमान लगाना, पूँजी बजटिंग, पूँजी की लागत प्राप्त करना, आदि शामिल हैं।”

chetansati

Admin

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