BCom 1st Year Hire Purchase System Study Material Notes In Hindi

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BCom 1st Year Hire Purchase System Study Material Notes In Hindi

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किराया-क्रय पद्धति

(Hire-Purchase System)

किराया-क्रय पद्धति माल के क्रय-विक्रय की एक विशेष पद्धति है। इस पद्धति के अनुसार किराया-क्रेता द्वारा माल के मूल्य की मनिश्चित धनराशि विभिन्न किश्तों में चुकायी जाती है। ये किस्तें, मासिक, तिमाही, छमाही, वार्षिक या अन्य प्रकार की हो सकती हैं। किराया-क्रय समझौते (Hire-Purchase Agreement) की तिथि पर ही किराया-क्रेता को माल पर अधिकार (Possession) तो। पाप्त हो जाता है लेकिन किराया-क्रेता उस माल का स्वामी (Owner) सम्पूर्ण किश्तों के भुगतान करने के बाद ही होता है। अतः अन्तिम किश्त का भुगतान होने से पहले माल पर स्वामित्व (Ownership) किराया-विक्रेता का ही रहता है। किराया-क्रता जब भा चाहे किराया-विक्रेता को 14 दिन का लिखित नोटिस देकर माल किराया-विक्रेता को वापस कर सकता है, लेकिन वह भुगतान की गयी किश्तों की धनराशि किराया-विक्रेता से नहीं माँग सकता। किराया-क्रेता द्वारा किसी किश्त का भुगतान न करने पर समझौते की शर्तों के अनुसार किराया-विक्रेता, किराया-क्रेता से माल वापस प्राप्त कर सकता है। जो किराये की किश्तें किराया-क्रेता द्वारा किराया-विक्रेता को दी जाती हैं वे माल के किराये के रूप में मानी जाती हैं। इसलिये इस पद्धति (Hire-Purchase System) के नाम से जाना जाता है। इस पद्धति के अन्तर्गत माल के नकद मूल्य (Cash Price) से किश्तों की धनराशि अधिक होती है क्योंकि किराया-क्रय मूल्य (Hire-Purchase Price) में ब्याज भी सम्मिलित होता है। ___

भारत सरकार ने 31 मई, 1972 को किराया-क्रय अधिनियम, 1972 पास किया जो 8 जून, 1972 से लागू हुआ है। इस अधिनियम की धारा 2 (C) के अनुसार किराया-क्रय अनुबन्ध से अभिप्राय ऐसे समझौते से है जिसके अन्तर्गत माल किराये पर दिया जाता है और किराया-क्रेता को यह अधिकार प्राप्त होता है कि वह समझौते की शतों के अनुसार उसे क्रय करे। इस समझौते के अन्तर्गत यह तथ्य भी स्पष्ट होता है कि माल का स्वामी (किराया-विक्रेता), किरायेदार (किराया-क्रेता) को माल का अधिकार इस शर्त पर देता है कि वह विभिन्न किश्तों की धनराशि का भुगतान यथा समय करे और किराया-क्रेता को उस माल के स्वामित्व का हस्तान्तरण अन्तिम किश्त का भुगतान करने पर ही होता है और किराया-क्रेता को स्वामित्व हस्तान्तरण से पूर्व किसी भी समय समझौते को समाप्त करने का अधिकार होता है, परन्तु वह किश्तों की धनराशि वापस प्राप्त करने का अधिकारी नहीं होता है।

किराया-क्रय पद्धति की विशेषतायें

(Characteristics of Hire-Purchase System)

किराया-क्रय पद्धति की प्रमुख विशेषतायें निम्नलिखित हैं :

(1) माल की उधार बिक्री (Credit Sale of Goods) : इस पद्धति के अन्तर्गत माल के सम्पूर्ण मूल्य का भुगतान क्रय करते समय नहीं किया जाता है वरन् किश्तों में किया जाता है। अतः माल की बिक्री उधार होती है।

(2) मूल्य का भुगतान किश्तों में (Payment of Price in Instalments) : किराया-क्रेता द्वारा माल के मूल्य का भुगतान पूर्व-निश्चित सामयिक किश्तों में किया जाता है। इन किश्तों में ब्याज की धनराशि भी सम्मिलित होती है। __

(3) माल की सुपुर्दगी (Delivery of Goods) : किराया-क्रय अनुबन्ध होने पर माल किराया-क्रेता के सुपूर्द कर दिया जाता है ।

(4) माल को प्रयोग करने का अधिकार (Right to Use the Goods) : किराया-क्रेता को माल की सुपुर्दगी के बाद उसे प्रयोग करने का अधिकार होता है। अतः यह किराया-क्रेता की इच्छा पर निर्भर करता है कि वह माल का प्रयोग करे या न करे।

(5) माल का स्वामित्व (Ownership of Goods) : अन्तिम किश्त के भुगतान के पूर्व माल पर किराया-विक्रेता का स्वामित्व । रहता है और अन्तिम किश्त के भुगतान के बाद माल पर किराया-क्रेता का स्वामित्व हो जाता है।

(6) क्रेता द्वारा अन्तिम किश्त का भुगतान करने से पहले माल बेचना अवैध (Sale of Goods is Invalid before Payment of Last Instalment by the Hire-Purchaser) : किराया-क्रेता इस पद्धति के अनुसार जान भुगतान करने से पहले और किराया-विक्रेता की स्वीकृति के बिना माल को किसी अन्य व्यक्ति को नहीं बेच सकता ।

(7) किराया-विक्रेता का माल पर कब्जा करने का अधिकार (Right to Repossession of Goods by the Hire-Vendor) : यदि माल का किराया-क्रेता किश्तों का भुगतान नहीं करता है तो किराया-विक्रेता का माल को वापस लेने और किराया-क्रेता द्वारा भुगतान की गई किश्तों का जब्त करने का अधिकारी होता है।

(8) किराया-क्रेता का दायित्व (Liability of Hire-Purchaser) : माल की अन्तिम किश्त का भुगतान होने तक माल को सावधानीपूर्वक रखने का दायित्व किराया-क्रेता का ही होता है। वस्तु को सावधानी पूर्वक रखने पर टूट-फूट होने की दशा में उसकी मरम्मत का दायित्व किराया-विक्रेता पर होता है।

(9) किराया-क्रेता द्वारा माल वापस किया जाना (Return of Goods by Hire-Purchaser) : माल की अन्तिम किश्त का भुगतान करने से पहले यदि किराया-क्रेता चाहे तो वह किराया-विक्रेता को 14 दिन का लिखित नोटिस देकर माल वापिस कर सकता है लेकिन वह भुगतान की गयी किश्तों की धनराशि वापिस नहीं माँग सकता। यह धनराशि किराया- विक्रेता द्वारा किराये के स्वरूप मान ली जाती है।

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किराया-क्रय पद्धति के सम्बन्ध में लेखे

(Accounting Records Under Hire-Purchase System)

किराया-क्रय पद्धति के व्यवहारों के लेखों को भली प्रकार समझने के लिये माल के मूल्य को आधार लेकर व्यवहारों को दो भागों में बाँटा जा सकता है ।

(A) अधिक मूल्य के माल के सम्बन्ध में (In Case of Goods of Considerable Value)।

(B) कम मूल्य के माल की दशा में (In Case of Goods of Small Value)।

लेखापालकों ने इस सम्बन्ध में एक जैसी लेखा पद्धति नहीं अपनाई है, फिर भी जो पद्धति अधिक प्रचलित हैं उनका ही हम । वर्णन करते हैं।

(A) अधिक मूल्य के माल

(Goods of Considerable Value)

अधिक मूल्य के माल की दशा में, सर्वप्रथम हम एक गणना तालिका (Calculation Table) तैयार करते हैं जिसमें प्रत्येक किश्त पर दी जाने वाली धनराशि में मूलधन (Principal Value) एवं व्याज (Interest) की धनराशि अलग-अलग निकाली जाती है और फिर किराया-क्रेता एवं किराया-विक्रता की पुस्तकों में लेखे किये जाते हैं।

chetansati

Admin

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