Bcom 2nd Year Cost Accounting Integrated System study Material Notes In Hindi

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Bcom 2nd Year Cost Accounting Integrated System study Material Notes In Hindi

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Bcom 2nd Year Cost Accounting Non Integrated Accounting System Study Material Notes in Hindi

एकीकृत लेखांकन पद्धति

(Integrated Accounting System)

पिछले अध्याय में हम पढ़ चुके हैं कि लेखांकन की गैर-एकीकृत (Non-Integrated) पद्धति को अपनाने वाली निर्माणी संस्थाओं में में वित्तीय लेखे तथा लागत लेखे अलग-अलग रखे जाते हैं। वास्तविकता यह है कि गैर-एकीकत पद्धति के अन्तर्गत लेखांकन कार्य तुलनात्मक रूप से जटिल एवं असुविधाजनक होता है क्योंकि मूल व्यवहारों का वित्तीय एवं लागत पुस्तकों में अलग-अलग लेखा किया जाता है तथा समय-समय पर दोनों लेखों के परिणामों का मिलान करने के लिये समाधान विवरण-पत्र भी बनाना पड़ता है। स्पष्ट है कि गैर-एकीकृत पद्धति को अपनाने पर अत्यधिक समय एवं साधनों की आवश्यकता होती है अर्थात् यह पद्धति अधिक खर्चीली है। अत: समय एवं साधनों के अपव्ययों पर नियन्त्रण स्थापित करने हेतु वित्तीय एवं लागत दोनों लेखों को एक-साथ मिलाकर एकीकृत रूप में रखा जा सकता है। वित्तीय एवं लागत लेखों को एकसाथ मिलाकर रखने की पद्धति ही ‘एकीकृत लेखे’ (Integrated Accounts) या ‘एकीकृत लेखांकन पद्धति’ (Integral Accounting System) कहलाती है। प्रस्तुत अध्याय में ‘एकीकृत लेखे’ की विस्तृत विवेचना की गई है।

एकीकृत लेखांकन का अर्थ एवं परिभाषा

(Meaning and Definition of Integrated Accounting)

लेखांकन की ऐसी पद्धति जिसमें लेखे इस प्रकार रखे जाते हैं कि लागत लेखांकन व वित्तीय लेखांकन दोनों की समस्त सूचनाएँ एक ही खाताबही से प्राप्त हो जायें, एकीकृत लेखे कहलाते हैं। इस पद्धति में खातों को इस प्रकार लिखा जाता है कि समस्त व्यवहारों का लेखांकन हो जाये, चाहे व्यवहार केवल वित्तीय प्रकृति के हों या उत्पादन कार्य से सम्बन्धित हों। इस पद्धति से जहाँ प्रत्येक उत्पाद (Product), उपकार्य (Job), प्रक्रिया (Process) की लागत सम्बन्धी समस्त सूचनाएँ सरलता से प्राप्त हो जाती हैं, वहीं इस पद्धति की सूचनाओं से सम्पत्तियों व दायित्वों के नियन्त्रण में भी सुविधा रहती है।

सी० आई० एम० ए० (लन्दन) के अनुसार, “एकीकृत लेखांकन पद्धति एक ऐसी पद्धति है जिसमें वित्तीय व लागत लेखे इस प्रकार अन्तर संयोजित (inter-locked) किये जाते हैं जिससे कि सभी आवश्यक व्यय लागत लेखों में अवशोषित हो जायें।”

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एकीकृत लेखांकन पद्धति की आधारभूत आवश्यकताएँ या सिद्धान्त

(Basic Requirements or Principles of Integrated Accounting System)

किसी संस्था में एकीकृत लेखांकन पद्धति को प्रयोग में लाने से पूर्व निम्नलिखित सिद्धान्तों को ध्यान में रखना चाहिये

(1) सर्वप्रथम दोनों प्रकार के लेखों को एकीकृत करने की सीमा निर्धारित कर लेनी चाहिये, अर्थात यह निश्चित कर लेना चाहिये कि खातों को किस सीमा तक एकीकृत रूप में रखा जायेगा। व्यवहार में कुछ संस्थाएँ तो सम्पूर्ण खातों का एकीकरण कर देती हैं जबकि कुछ अन्य संस्थाएँ केवल मूल लागत (Prime Cost) या कारखाना लागत (Works Cost) तक ही एकीकृत खाते रखती हैं।

(2) खातों के एकीकरण की निर्धारित की गई सीमा के आधार पर व्ययों का कार्यानुसार वर्गीकरण किया जाना चाहिये (जैसे-कार्यालय व्यय, विक्रय व्यय एवं वितरण व्यय आदि)।

(3) लागत के प्रत्येक तत्त्व, जैसे-सामग्री, श्रम एवं व्यय के लिये नियन्त्रण खाते रखे जाने चाहिये।

(4) विभिन्न वर्गों में विभाजित अलग-अलग व्ययों के आँकड़ों को अलग-अलग सहायक खाता बहियों में एकत्रित करना चाहिये।

(5) विभिन्न सहायक खाता-बहियों में आँकड़ों का उचित वर्गीकरण करने के लिये चिन्हीकरण (Coding) पद्धति का प्रयोग किया जाना चाहिये।

(6) एक निश्चित समय के पश्चात् नियन्त्रण खातों में खतौनी (Post) की गई मदों के पूर्ण विवरण लागत कार्यालय को ले जाने चाहियें। लागत कार्यालय द्वारा संस्था में लागू लागतांकन प्रणाली के अनुरूप इस सूचना का विश्लेषण और सारणीयन किया जाता है। इससे सहायक खाता-बाहया म विस्तृत विवरण की आवश्यकता नहीं रह जाती है।

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एकीकृत लेखांकन की प्रक्रिया

(Procedure of Integrated Accounting)

(A) सहायता खाता-बहियाँ (Subsidiary Ledgers)-व्ययों का विश्लेषण कर लेने के पश्चात् उनका लेखा पृथक-पृथक खाता-बहियों में किया जाता है। इस पद्धति में मुख्यत: निम्नलिखित सहायक खाता-बहियाँ रखी जाती हैं

(1) विक्रय खाता-बही (Sales Ledger)-इस बही में विभिन्न ग्राहकों के व्यक्तिगत खाते रखे जाते हैं।

(2) क्रय खाता-बही (Bought Ledger)-इस बही में सभी विक्रेताओं (लेनदारों) के व्यक्तिगत खाते रखे जाते हैं।

(3) स्टोर्स खाता-बही (Stores Ledger)-इस बही में स्टोर में रखी गई प्रत्येक सामग्री का अलग-अलग खाता रखा जाता है।

(4) चालू-कार्य खाता-बही (Work-in-Progress Ledger)-इसे “जॉब खाता-बही’ या ‘क्रियमाण-कार्य खाता-बही’ भी कहते हैं। इस बही में निर्मित की जाने वाली सभी वस्तुओं, जॉब या उपकार्यों के लिये अलग-अलग खाते खोले जाते हैं।

(5) स्टॉक खाता-बही (Stock Ledger)-इस खाता-बही में प्रत्येक निर्मित वस्तु का पृथक् खाता खोलते हैं।

(6) उपरिव्यय खाता-बही (Overhead Ledger)-इस खाता-बही में कारखाना, कार्यालय एवं प्रशासन, विक्रय तथा वितरण उपरिव्यय प्रत्येक के लिये अलग-अलग खाते खोले जाते हैं।

(B) नियन्त्रण खाते (Control Accounts)-इस पद्धति के अन्तर्गत डेबिट तथा क्रेडिट दोनों प्रकार की प्रविष्टियाँ एक ही खाता-बही में की जाती हैं, अलग से लागत खाता-बही नियन्त्रण खाते की आवश्यकता नहीं होती अर्थात् लागत लेखों, व्यक्तिगत खातों या खातों से सम्बन्धित नियन्त्रण खाते सामान्य खाता-बही में ही खोले जाते हैं, लागत या सामान्य खाता-बही नियन्त्रण खाता (Cost or General Ledger Control A/c) नहीं खोला जाता। एकीकृत सामान्य खाता पुस्तक में प्रायः निम्नांकित नियन्त्रण खाते खोले जाते हैं

(i) स्टोर्स खाता-बही नियन्त्रण खाता (Stores Ledger ControlA/c);

(ii) चालू-कार्य खाता-बही नियन्त्रण खाता (Work-in-progress Ledger Control A/c);

(iii) स्टॉक खाता-बही नियन्त्रण खाता (Stock Ledger Control A/c);

(iv) मजदूरी नियन्त्रण खाता (Wages Control A/c);

(v) प्रत्येक उपरिव्यय के लिये पृथक नियन्त्रण खाता (Separate ControlAccounts foreach Overheads);

(vi) देनदारों का नियन्त्रण खाता (Debtors Control A/c);

(vii) लेनदारों का नियन्त्रण खाता (Creditors Control A/c);

(viii) अंश पूँजी खाता (Share Capital A/c), रोकड़ खाता (Cash A/c), बैंक खाता (Bank A/c), प्रत्येक स्थायी सम्पत्ति का खाता (A/c for each fixed asset), ह्रास प्रावधान खाता (Depreciation Provision A/c), छूट खाता (Discount A/c), अदत्त व्यय खाता (Outstanding Expenses A/c), पूर्वदत्त व्यय खाता (Prepaid Expenses A/c), लाभ-हानि खाता (Profit and Loss A/c), आदि।

chetansati

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