BCom 2nd Year Budgetary Procedure Control Study Material Notes in Hindi

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BCom 2nd Year Budgetary Procedure Control Study Material Notes in Hindi

BCom 2nd Year Budgetary Procedure Control Study Material Notes in Hindi: Parliamentary control on Public Expenditure Direct Control by the Parliament Control by parliamentary or Legislative Committees The Audit Department Under the Control of Comptroller and Auditor General Important Examination Question Long Answer Questions Short Answer Questions:

Budgetary Procedure Control
Budgetary Procedure Control

BCom 2nd year Indian Tax System Study Material Notes In Hindi

बजट प्रक्रिया एवं नियन्त्रण

(Budgetary Procedure and Control)

“निःसन्देह बजट प्रशासन की धुरी है तथा सुदृढ़ सिद्धान्त पर आधारित बजट के अभाव में अर्थव्यवस्था में अव्यवस्था फैल जाती है।” -फिण्डले शिराज

भारत एक लोकतान्त्रिक देश है जिसमें केन्द्रीय तथा राज्य सरकारें अलग-अलग बजट तैयार। करती हैं तथा यह एक निर्धारित प्रक्रिया है जिसमें प्रत्येक वर्ष सार्वजनिक आय एवं व्यय के लेखे जोखे को विधान सभा द्वारा पारित कराना आवश्यक होता है। केन्द्र सरकार मुख्य रूप से दो बजट बनाती हैसामान्य बजट एवं रेलवे बजट। बजट प्रक्रिया के प्रमुख चरण निम्नलिखित है

Budgetary Procedure Control

1 बजट तैयार करना (Preparing the Budget)-‘सामान्य बजट’ केन्द्रीय सरकार के वित्त मन्त्रालय द्वारा तैयार किया जाता है और इसके लिए वह सभी मन्त्रालयों से सहयोग प्राप्त करता है। बजट की तैयारी से सम्बन्धित कार्य अगले वित्तीय वर्ष के शुरू होने से 6-8 महीने पहले से ही आरम्भ हो जाता है। प्रायः जुलाई अगस्त माह में वित्त मन्त्रालय विभिन्न विभागों के अध्यक्षों को अनुमान-पत्र (Estimate form) भेजता है जिसके द्वारा सम्बन्धित विभाग से आगामी वर्ष के अनुमानित आय-व्यय की जानकारी प्राप्त की जाती है। इसके बाद सभी विभाग अपने-अपने विभाग के वर्तमान एवं आगामी आय-व्यय का अनुमान तैयार करते हैं। विभिन्न विभागाध्यक्षों से अनुमान प्राप्त करने के पश्चात् वित्त मन्त्रालय इन अनुमानों के आधार पर सामूहिक अनुमान तैयार करता है। बजट अनुमानों पर महालेखापाल (Accountant General) द्वारा भी विचार किया जाता है और जो विचार करने के पश्चात अपनी राय वित्त मन्त्रालय को भेज देता है। सामूहिक अनुमान एवं महालेखापाल की राय के सन्दर्भ में सभी अनुमानों पर वित्त मन्त्रालय द्वारा पुनर्विचार किया जाता है। आवश्यकता होने पर मन्त्रिमण्डल स्तर पर निर्णय लिए जाते हैं। वित्त मन्त्रालय कुल अनुमान तैयार करके पुनः महालेखापाल के पास भेजता है जिससे उनके अनुमानों का लेखा-वर्गीकरण (Accountant Classification) हो सके। अन्त में, वित्त मन्त्रालय द्वारा पूर्व अनुमान के अतिरिक्त परिस्थितिजन्य अन्य नये अनुमानों पर भी विचार कर पूर्ण रूप से बजट तैयार कर लिया जाता है।

2. बजट पेश करना (Presenting the Budget)-बजट को तैयार करने के पश्चात संसद का अनुमोदन प्राप्त करने के लिए उसे संसद में प्रस्तुत किया जाता है। सामान्यतः वित्त मन्त्री द्वारा फरवरी के अन्तिम दिन बजट को लोक सभा में प्रस्तुत किया जाता है। उसी दिन राज्य सभा में भी वित्त मन्त्रालय का कोई अन्य मन्त्री बजट प्रस्तुत करता है। वित्त मन्त्री बजट प्रस्तुत करने के साथ ही बजट भाषण भी देता है बजट भाषण के पश्चात् उस दिन लोक सभा की बैठक स्थगित कर संसद-सदस्यों को बजट प्रस्तावों पर विचार करने हेतु पर्याप्त समय दिया जाता है। सामान्यतः बजट के साथ ही वित्त विधेयक भी प्रस्तुत किया जाता है जिसमें कर सम्बन्धी प्रस्ताव होते है।

Budgetary Procedure Control

3. बजट पर विचार-विमर्श या बहस (Discussing the Budget)-बजट प्रस्तुत करने के पश्चात उस पर सामान्य विचार-विमर्श के लिए एक तिथि निश्चित कर दी जाती है। यह विचार-विमर्श लगभग दो से चार दिन तक चलता है। बहस की समाप्ति पर वित्त मन्त्री बहस में की गई आलोचनाओं और उठाई गई शंकाओं का उत्तर देता है। बहस के दौरान प्रस्ताव रखने या मतदान का कोई अधिकार नहीं होता है। इस प्रकार सामान्य बहस का चरण पूरा हो जाता है।

4. मतदान (Voting)-बजट पर सामान्य बहस हान के पश्चात् बजट पर मतदान होता है। मतदान की दष्टि से बजट की मदें दो प्रकार की होती हैं-(i) गैर-मतदान योग्य मदें तथा योग्य मदें।

(i) गैर-मतदान योग्य (Non-votable Items)-ये ऐसी मदें होती हैं जिनकी व्यय की स्वीक लिए लोकसभा में मतदान की कोई आवश्यकता नहीं होती। ये व्यय ‘भारत के संपनि (Consolidated Fund in India) में से चुकाये जाते हैं। इन मदों में राष्ट्रपति का वेतन, भत्ता और उनके कार्यालय से सम्बन्धितीणों के वेतन और भत्ते इत्यात के लिए संसद में मतदान का कार्यालय से सम्बन्धित व्यय, संसद के दोनों सदनों के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का वेतन और भत्ते तक सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन और भत्ते इत्यादि शामिल होते हैं।

(ii) मतदान योग्य मदें (Votable Items)-जिन व्ययों की स्वीकृति के लिए संसद में मतदार आवश्यकता होती है. उन्हें मतदान योग्य मदें कहते हैं। ऐसी मदों की स्वीकृति के लिए सम्बन्धित सब के मन्त्री संसद में अनुदान की माँग करते हैं, जिन पर अलग-अलग बहस होती है। प्रत्येक माँग का समय निश्चित होता है। बहस के दौरान सदस्य उस अनुदान की मॉग को कम करने या अधिक करने का प्रस्ताव रखते हैं। बहस के बाद मतदान किया जाता है तथा मतदान के आधार पर बजट को स्वीकार या अस्वीकार कर दिया जाता है।

5. विनियोग एवं वित्त विधेयक (Investment and Finance Bill)-अनुदान माँगों की स्वीकति के बाद वित्त मन्त्री एक विनियोग विधेयक प्रस्तुत करता है जिसमें गैर-मतदान योग्य मदें तथा स्वीकत मतदान योग्य मदें शामिल होती हैं। इसके बाद वित्त विधेयक को पारित किया जाता है जिससे सरकार को कराधान द्वारा धन संग्रह करने का अधिकार प्राप्त हो जाता है।

Budgetary Procedure Control

दोनों विधेयकों को लोकसभा में पारित कराने के बाद इन पर विचार करने के लिए राज्य सभा में। भेज दिया जाता है। इन विधेयकों पर विचार करके राज्य सभा को 14 दिन के अन्दर लोकसभा को वापिस करना होता है। यदि राज्य सभा इस अवधि में यह बिल पास नहीं करती तो लोक सभा यह मान लेती है कि राज्य सभा इनसे सहमत है और दोनों विधेयकों को स्वीकृति के लिए राष्ट्रपति के पास भेज देती है। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के पश्चात् बजट अन्तिम रूप से स्वीकृत हो जाता है।

6. बजट का क्रियान्वयन (Execution of the Budget)-बजट के क्रियान्वयन के अन्तर्गत आय को एकत्रित करना, प्राप्त आय को व्यय करना तथा वित्तीय लेखों का अंकेक्षण करना सम्मिलित होते हैं। वित्त-मन्त्रालय की दो परिषदें हैं-(अ) केन्द्रीय प्रत्यक्ष-कर परिषद्, (ब) केन्द्रीय उत्पादन-शुल्क एवं सीमा-शुल्क परिषद् । प्रत्येक परिषद् में पाँच-पाँच सदस्य होते हैं, जिन्हें केन्द्रीय सरकार नियुक्त करती है। ये परिषद् अपने-अपने क्षेत्र में कर-निर्धारण और कर-एकत्रीकरण के लिए आवश्यक व्यवस्था करती

कोषों का वितरण (Distribution of the Funds)-विनियोग विधेयक पास हो जाने के बाद विभिन्न मन्त्रालयों और विभागों को उनके लिए स्वीकृत राशि सम्बन्धी सूचना भेज दी जाती है। प्रत्येक मन्त्रालय तथा प्रत्येक विभाग स्वीकृत मदों पर स्वीकृत राशि से अधिक राशि व्यय नहीं कर सकता। प्रत्येक विभाग द्वारा व्यय सम्बन्धी लेखे रखे जाते हैं और लेखों के तैयार होने पर महालेखा अंकेक्षक उनकी जाँच करता है और अपनी रिपोर्ट देता है, जिसे संसद में प्रस्तुत किया जाता है। रिपोर्ट में आय प्राप्ति, व्यय और ऋण आदि से सम्बन्धित सभी अनियमितताओं की ओर ध्यान आकर्षित किया जाता है।

बजट का महत्त्व (Importance of the Budget)-बजट का किसी भी अर्थव्यवस्था में महत्वपर्ण स्थान है। इसके सहारे प्रस्तावित व्यय को सम्भावित आय के साथ सन्तुलित किया जाता है। सरकारी नीतियों तथा योजनाओं को जनता के समक्ष लाया जाता है तथा इन सभी गतिविधियों के लिए वित्त की व्यवस्था की जाती है। फिण्डले शिराज के अनुसार, “निः सन्देह बजट प्रशासन की धुरी है तथा सुदृढ़ सिद्धान्तों पर आधारित बजट के अभाव में वित्तीय अव्यवस्था फैल जाती है।” बजट के महत्व को निम्न बिन्दुओं से स्पष्ट किया जा सकता है ।

Budgetary Procedure Control

1 आर्थिक नियन्त्रण (Economic Control)-बजट बनाने से पूर्व सभी विभागों तथा मन्त्रालयों से आय तथा व्यय का ब्यौरा माँगा जाता है तथा इसी के अनुसार बजट का निर्माण होता है। बजट की सहायता से विभागों के व्यय को नियन्त्रित किया जा सकता है जिससे बजट के घाटे को नियन्त्रित किया जा सकता है।

2. आर्थिक स्थिरता (Economic Stability)-प्रो० कीन्स का विचार है कि सरकारी बजट का महत्व यह है कि यह अर्थव्यवस्था को आर्थिक क्रिया से ऊँचे स्तर पर स्थिर रखता है। यदि मद्रा-स्फीति की स्थिति है तो करों को बढ़ाकर जनता से अतिरिक्त क्रय-शक्ति को वापस लिया जा सकता है और यदि मन्दी की स्थिति है तो सार्वजनिक व्यय में वृद्धि करके सरकार उत्पादन और रोजगार में वृद्धि कर सकती है। इस प्रकार देश में स्थिरता की स्थिति को बनाया जा सकता है।

3. आर्थिक एवं सामाजिक प्रगति (Economic and Social Progress)-बजट के द्वारा किसी भी अर्थव्यवस्था में आर्थिक एवं सामाजिक उन्नति को प्राप्त किया जा सकता है। बजट में कृषि तथा उद्योग 203 बजट प्रक्रिया एवं नियन्त्रण आदि को आर्थिक सहायता का प्रावधान करके देश में आर्थिक विकास किया जा सकता है। इसी प्रकार गदि सरकार धनी व्यक्तियों पर कर लगाकर सार्वजनिक व्यय के माध्यम से उसे निर्धन जनता पर व्यय करती है तो इससे आर्थिक असमानता को दूर करके सामाजिक प्रगति को प्राप्त किया जा सकता है।

4. राजकोषीय नीतियों का उपकरण (Instrument of Fiscal Policies)-बजट राजकोषीय नाति का महत्वपूर्ण अस्त्र है। अर्थव्यवस्था में स्थिरता रखने के लिए सरकार तेजी काल में बचत का बजट तथा सदी काल में घाटे का बजट बनाती है। पूर्ण रोजगार को प्राप्त करने के लिए सार्वजनिक ऋण लेकर निर्माण कार्य किये जाते हैं। सरकार कृषि व उद्योगों को कर में छूट देकर तथा आर्थिक सहायता (सब्सिडी) देकर उत्पादन में वृद्धि करती है।

इस प्रकार बजट प्रजातन्त्रीय सरकार का आधार है तथा इसके महत्व को देखते हुए प्रो० टेलर बजट कोसरकार की वित्त की वृहद् योजनाकहते हैं। आज के आर्थिक जीवन में राज्य की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है तथा इस भूमिका का निर्वाह करने तथा इसकी पूर्ति की दिशा में बजट का महत्व निर्विवाद है।

Budgetary Procedure Control

सार्वजनिक व्यय पर संसदीय नियन्त्रण

(Parliamentary Control on Public Expenditure)

लगभग सभी प्रजातान्त्रिक देशों में संसद (Parliament) द्वारा सार्वजनिक व्यय पर नियन्त्रण किया जाता है। भारत में संसद निम्न संस्थाओं के माध्यम से सार्वजनिक व्यय पर नियन्त्रण लगाती है

1 संसद अथवा व्यवस्थापिका द्वारा प्रत्यक्ष नियन्त्रण।

2. संसदीय समितियों द्वारा नियन्त्रण।

(i) अनुमान समिति (Estimates Committee)

(i) लोक लेखा समिति (Public Accounts Committee)

(ii) सार्वजनिक उपक्रमों पर समिति (Committee on Public Undertakings)

3. लेखा परीक्षण और जाँच विभाग।

इनका विस्तृत विवरण निम्न प्रकार है ।

Budgetary Procedure Control

1 संसदीय अथवा व्यवस्थापिका द्वारा प्रत्यक्ष नियन्त्रण

(Direct Control by the Parliament)

प्रजातान्त्रिक राज्यों में राजस्व पर संसद (Parliament) अथवा व्यवस्थापिका का अधिकार होता है। संसद सार्वजनिक व्यय पर निम्न प्रकार नियन्त्रण करती है

(1) संसद अथवा व्यवस्थापिका से स्वीकृत कराये बिना सरकार द्वारा कोई व्यय नहीं किया जा सकता।

(2) कार्यपालिका (The Executive) के बिना माँगे (माँगों को सम्बन्धित मन्त्री द्वारा सदन पटल पर रखा जाता है) संसद कोई व्यय स्वीकृत नहीं कर सकती।

(3) उन व्ययों के अतिरिक्त जो अधिनियम के पारित होने पर ही किये जा सकते हैं, सभी प्रकार के व्यय वार्षिक आधार पर ही स्वीकत किये जाते हैं।

कार्यपालिका अनुदानों की माँगों और करारोपण के प्रस्तावों को संसद के समक्ष प्रस्तुत करती है।

और संसद इन पर अपनी स्वीकृति प्रदान करती है। संसद को इनमें वृद्धि करने का अधिकार नहीं होता, वह केवल कटौती कर सकती है।

2. संसद अथवा व्यवस्थापिका समितियों द्वारा नियन्त्रण

(Control by Parliamentary or Legislative Committees)

1 अनुमान समिति (The Estimates Committee)-संसदीय लोकतान्त्रिक व्यवस्था में यह अपेक्षित है कि संसद में अनुमानों (Estimates) को प्रस्तुत करने से पूर्व संसद की स्वतन्त्र वित्तीय समिति द्वारा उनकी जाँच कर ली जाये। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अनुमान समिति का गठन किया जाता है। भारत में प्रथम अनुमान समिति का गठन सन् 1950 में किया गया था। अब यह लोकसभा के सदस्यों में से आनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर गठित की जाती है। ।

अनुमान समिति के कार्य (Functions of the Estimates Committee)-अनुमान सामात निम्नलिखित कार्यों को सम्पन्न करती है

(i) मितव्ययिताओं, संगठन में सुधार, कुशलता अथवा प्रशासनिक सुधार, जो नीति से सम्बन्धित होते हैं, के सम्बन्ध में सुझाव देना।

(ii) प्रशासन में कुशलता एवं मितव्ययिता लाने के लिए वैकल्पिक नीतियाँ सुझाना।

(iii) यह जाँच करना कि अनुमानों में निहित नीति की सीमाओं के अन्तर्गत ही व्यय का प्रावधान किया गया है।

(iv) उस खाके (Form) को सुझाना जिसके अनुरुप अनुमानों को संसद के समक्ष प्रस्तुत करना

समिति का चेयरमैन, यदि वह उचित समझता है, किसी भी बिन्दु को स्पीकर के आदेश के लिए भेज सकता है। अनुमान समिति निम्न में से किसी भी बिन्दु पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करती है

(i) क्या वे व्यक्ति जो अनुमानों का खाका बना रहे हैं, इस कार्य के लिए सक्षम हैं ?

(ii) क्या मद व्यय-योग्य हैं ?

(iii) क्या अनुमान लगाने की विधियाँ कशल हैं?

यहाँ यह उल्लेखनीय है कि अनुमान समिति संसद के समक्ष प्रस्तुत किये जाने वाले बजट अनुमानों की न तो जाँच करती है और न ही बजट को तैयार करने में सहायता करती है; यह तो मात्र सार्वजनिक कोषों की फिजूल खर्ची और कार्य व्यय को नियन्त्रित करने के लिए संसद द्वारा गठित ‘मितव्ययिता समिति’ (Economy Committee) है।

2. लोक लेखा समिति (Public Accounts Committee)-एक लोकतान्त्रिक व्यवस्था में संसद कार्यपालिका द्वारा किये जाने वाले व्यय की स्वीकृति देती है। केवल कार्यपालिका को व्यय करने का अधिकार देना ही काफी नहीं है अपितु यह देखना भी आवश्यक है कि व्यय केवल उन्हीं मदों एवं परियोजनाओं पर किया जा रहा है जिनके लिए स्वीकृति ली गई है। इसके अंकेक्षण के लिए एक स्वतन्त्र अंकेक्षण अधिकारी की नियुक्ति का संविधान द्वारा प्रावधान किया गया है। भारत में यह अधिकारी ‘Comptroller and Auditor General of India (CAG)’ के नाम से जाना जाता है। वह इस बात का अंकेक्षण करता है कि कार्यपालिका द्वारा सभी व्यय, संसद द्वारा स्वीकृत मदों पर ही स्वीकृत मात्रा में, स्वीकृत उद्देश्यों के लिए ही किया गया है।

लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक द्वारा तैयार एवं राष्ट्रपति को प्रस्तुत की गई रिपोर्ट अत्यधिक विस्तृत और तकनीकी होती है। यदि इसे इसी रूप में संसद में प्रस्तुत किया जाए तो अंकेक्षकों का सभी परिश्रम व्यर्थ जायेगा, क्योंकि प्रत्येक सांसद उसकी जाँच नहीं कर सकेगा। इसे संक्षिप्त रूप देने एवं बोधगम्य बनाने के लिए, भारतीय संविधान के प्रावधान के अन्तर्गत ‘लोक लेखा समिति’ का दोनों सदनों द्वारा गठन किया जाता है जिसमें 22 सदस्य होते हैं (15 सदस्य लोकसभा से और 7 सदस्य राज्य सभा से)। समिति के अध्यक्ष की नियुक्ति समिति के सदस्यों में से ही स्पीकर द्वारा की जाती है।

लोक लेखा समिति के कार्य (Functions of Public Accounts Committee)-समिति के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं

यह देखना कि–(i) धनराशि जो लेखों में वितरित दर्शाई गई है, वैधानिक रूप से उपलब्ध थी और उन्हीं मदों के लिए थी, जिनके लिए वितरित की गई है।

(i) व्यय उचित प्राधिकारी द्वारा किया गया है।

(iii) उपयुक्त अधिकारी द्वारा निर्मित नियमों के अन्तर्गत ही धनराशि निकाली गई है।

2. अंकेक्षण रिपोर्ट का अध्ययन करना तथा विभिन्न लेखों, मदों एवं परियोजनाओं, तुलन पत्र

3. स्वायत्त एवं अर्द्ध-स्वायत्त संस्थाओं के आय-व्यय लेखों की जाँच करना।

समिति के अन्य उत्तरदायित्व (Other Responsibilities of the Committee)-समिति के अन्य उत्तरदायित्व निम्न प्रकार हैं

1.राज्य निगमों, व्यापारिक एवं निर्माण परियोजनाओं एवं अन्य सम्बन्धित तथ्यों की जाँच करना आदि की जाँच करना।

लेखों की जाँच करनार जाँच करना शत तथ्यों का बजट प्रक्रिया एवं नियन्त्रण

2. विभिन्न स्वायत्त संस्थाओं के आय-व्यय लेखों की जाँच करना।

3. महामहिम राष्ट्रपति द्वारा अपेक्षित अंकेक्षण रिपोर्ट के बिन्दुओं पर जाँच करना।

4. यदि धनराशि किसी मद पर स्वीकत राशि से अधिक व्यय की गयी है तो सम अध्ययन करना और इस विषय पर उपयुक्त सुझाव देना।

सार्वजनिक उपक्रमों पर समिति (Committee on Public Undertakings)-स्वत से ही भारत में सार्वजनिक कम्पनियों का विस्तार तेजी से हआ है। ये कम्पनियाँ या तो वैधानिक रूप में हैं अथवा इनका निर्माण कम्पनी अधिनियम 1956 के अधीन हुआ है। इनके परिव्यय का आधकाश भाग केन्द्र सरकार द्वारा वहन किया जाता है। अतः संसद का यह दायित्व है कि वह यह सुनिश्चित कर कि इन कोषों का उचित उपयोग हो। इस प्रकार उन कम्पनियों पर भी संसद का नियन्त्रण होता है। इस हेतु संसद में 1 मई 1996 में ‘सार्वजनिक उपक्रमों पर समिति का गठन किया। इस समिति में 15 सदस्य होते हैं जिनमें 10 सदस्यों का चुनाव लोकसभा द्वारा और 5 सदस्यों का चुनाव राज्य सभा द्वारा किया जाता है। इसमें 1/5 सदस्य प्रतिवर्ष सेवानिवृत्त होते हैं। इस समिति के चेयरमैन को स्पीकर द्वारा नामित किया जाता है।

समिति के कार्य (Functions of the Committee)-‘सार्वजनिक उपक्रमों पर समिति’ के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं

(i) सार्वजनिक उपक्रमों के उन लेखों और प्रतिवेदनों की जाँच करना, जिन्हें इस उद्देश्य हेतु समिति

(ii) सार्वजनिक उपक्रमों पर कैग की रिपोर्ट, यदि कोई है, की जाँच करना।

(iii) सार्वजनिक उपक्रमों की कार्यकुशलता एवं स्वायत्ता के सन्दर्भ में यह जाँच करना कि क्या उपक्रमों के कार्यों का प्रबन्ध व्यवसाय के सशक्त सिद्धान्तों के अनुरूप किया जा रहा है अथवा नहीं।

(iv) समिति को सौंपे गये अन्य कार्यों को करना। समिति को निम्न विषयों पर जाँच करने का अधिकार नहीं है(i) सार्वजनिक उपक्रमों के व्यावसायिक कार्यों से भिन्न प्रमुख सरकारी नीति के विषय। (ii) दैनिक प्रशासन से सम्बन्धित विषय। (iii) विशिष्ट अधिनियम के अन्तर्गत स्थापित मशीनरी से सम्बन्धित विषय।

संक्षेप में सार्वजनिक उपक्रमों पर समिति की जाँच का दायरा निष्पादन के मूल्याँकन से सम्बद्ध हैं जैसे—नीति का क्रियान्वयन, कार्यक्रम प्रबन्ध, वित्तीय निष्पादन आदि।

III. भारत के लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक के अधीनस्थ अंकेक्षण विभाग

(The Audit Department Under the Control of Comptroller and Auditor General)

सरकारी व्यवहारों का अंकेक्षण देश के वित्तीय व्यवहारों पर संसदीय नियन्त्रण का एक अत्यधिक महत्वपूर्ण यन्त्र है। स्वतन्त्र अंकेक्षण सार्वजनिक कोषों का अत्यधिक महत्वपूर्ण कवच है। करदाताओं के हितों के संरक्षण के लिए भी यह आवश्यक है। सरकारी लेन-देन का अंकेक्षण यह सुनिश्चित करने की प्रक्रिया है कि जो व्यय किया गया है अथवा किया जा रहा है, वह उन प्रावधानों के अनुकूल है जिनके लिए धन लिया गया है। प्रजातान्त्रिक देशों में, सरकारी धन का अंकेक्षण एक स्वतन्त्र अधिकारी द्वारा किया जाता है जो विधायिका के आदेशानुसार अपना कर्तव्य निभाता है। यह देखना उसका कर्तव्य है कि व्यय मितव्ययिता के साथ ईमानदारी से किया गया है।

भारतीय संविधान में स्वतन्त्र लेखा नियन्त्रण एवं महालेखा परीक्षक की नियुक्ति का प्रावधान है. जो न केवल सरकार के लेखों को रखेगा, अपितु भारत की संचित निधि से वितरित धन राशि का अंकेक्षण भी करेगा। लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। उसके कर्त्तव्य और शक्तियाँ संविधान की धारा 148 में वर्णित हैं; जैसे

1 राष्ट्रपति द्वारा लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक की नियुक्ति उसी के लेख एवं सील द्वारा की जाएगी तथा उसे उसी विधि से हटाया जा सकेगा, जो शर्ते सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश पर लीग  होती है।

2. प्रत्येक व्यक्ति जिसकी CAG के रूप में नियुक्ति होती है, अपने कार्य को सम्भालने से पर्व राष्ट्रपति के समक्ष जाकर, कार्य सम्भालने की विधि को अपनायेगा।

3. उसका वेतन एवं अन्य संसद द्वारा वैधानिक रूप से निर्धारित की जाएगी।

4. अपने कार्यभार से मुक्त होने के बाद वह केन्द्र अथवा राज्य सरकार के किसी अन्य कार्यभार को ग्रहण नहीं कर सकेगा।

5. संविधान के प्रावधानों तथा संसद द्वारा पारित किसी अन्य नियम के अतिरिक्त CAG वे कार्य करेगा जो राष्ट्रपति द्वारा निर्देशित किए जाएँगे।

6. CAG के कार्यालय के सभी प्रशासनिक व्यय जिनमें वेतन, भत्तें, पेंशन आदि हैं भारत की संचित निधि (Consolidated Fund of India) से आहरित किये जाएंगे।

परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(Expected Important Questions for Examination)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Questions)

प्रश्न 1. बजट के अर्थ व महत्त्व का विवेचन कीजिये। भारत में इसको किस प्रकार तैयार, पारित एवं क्रियान्वित किया जाता है ? व्याख्या कीजिये।

Discuss the meaning and importance of Budget ? How it is prepared, passed and executed in India ? Explain.

प्रश्न 2. बजट के महत्त्व का विवेचन कीजिये और समझाइये कि भारत में बजट के कार्यान्वयन पर किस प्रकार नियन्त्रण रखा जा सकता है ?

Discuss the importance of the Budget and explain how control is exercised on the execution of the Budget in India.

प्रश्न 3. भारत में सार्वजनिक व्यय पर संसदीय नियन्त्रण की व्याख्या को विस्तार से समझाइये।

Explain in detail the system of Parliamentary Control on Public Expenditure.

॥ लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Questions)

प्रश्न 1. बजट पर मतदान प्रक्रिया को स्पष्ट कीजिये।

Discuss the voting procedure on a budget.

प्रश्न 2. बजट का महत्त्व बताइये।

Describe the importance of the budget.

प्रश्न 3. सार्वजनिक व्यय पर संसदीय नियन्त्रण किन संस्थाओं के माध्यम से होता है ?

With the help of which institutions parliamentary control is exercised on public expenditure?

प्रश्न 4. अनुमान समिति के कार्य बताइये।

Describe the functions of the Estimate Committee.

प्रश्न 5. लोक लेखा समिति के कार्य बताइये।

Describe the functions of the Public Accounts Committee.

Budgetary Procedure Control

chetansati

Admin

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