BCom 1st Year Business Basic Form Communication Study Material Notes in Hindi

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BCom 1st Year Business Basic Form Communication Study Material Notes in Hindi

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BCom 1st Year Business Basic Form Communication Study Material Notes in Hindi: Forms of Business Communication Classification on the Basis of Medium Verbal Communication Oral Communication  Advantages of oral communication Disadvantages of Oral Communications Written Communication Nonverbal Communication Classification on the Basis Communications Classifications of Basis Relations Examination Questions Long Answer Question Short Answer Questions :

 Basic Form Communication
Basic Form Communication

BCom 1st year Business Communication An Introduction Study Material Notes in Hindi

संचार के आधारभूत प्रकार

(Basic Forms of Communication)

संचार/सम्प्रेषण/सन्देशवाहन से आशय सचनाओं के आदान-प्रदान से होता है। संचार प्रक्रिया के अन्तर्गत यह देखा जाता है कि संचारक (सन्देश प्रेषक) अपना सन्देश दूसरे व्यक्तियों तक कितने प्रकार से पहुंचा सकता है। प्रत्येक व्यक्ति या व्यावसायिक संस्था किसी न किसी रूप में सूचनाएँ भेजता या प्राप्त करता है।

इस सन्देशों को भेजने या प्राप्त करने के लिये उपयुक्त माध्यम क्या हो यह इस बात पर निर्भर करता है कि व्यवसाय का स्वरूप क्या है अथवा सन्देशों को किसे और कहाँ तथा किस रूप में पहुँचाना है। छोटे व्यवसाय में जहाँ मालिक एवं कर्मचारी आमने-सामने होते हैं, वहाँ केवल मौखिक एवं प्रत्यक्ष रूप से सन्देशों का आदान-प्रदान हो जाता है। किन्तु जैसे-जैसे व्यवसाय का क्षेत्र बढ़ता जाता है सम्प्रेषण का विस्तार भी उसी रूप में होता जाता है।

आज किसी भी व्यवसाय को सफलतापूर्वक संचालित करने के लिये सम्प्रेषण क्रिया की उपयुक्तता, प्रभावशीलता एवं शीघ्रता पर ध्यान दिया जाना अति आवश्यक हो गया है। प्रभावी सम्प्रेषण के द्वारा ही व्यवसाय में उपयुक्त नीतियों का निर्धारण किया जा सकता है तथा उन्हें सफलतापूर्वक क्रियान्वित किया जा सकता है। व्यवसाय की व्यवहारिक कठिनाइयों की जानकारी एवं उनका निराकरण भी सन्देशवाहन के माध्यम से ही सम्भव हो पाता है। अत: व्यवसाय में सम्प्रेषण के स्वरूप के बारे में जानना आवश्यक है अर्थात सम्प्रेषण का कौन-सा स्वरूप तथा माध्यम व्यवसाय के लिये उपयोगी सिद्ध हो सकता है और कैसे।

वर्तमान समय में व्यावसायिक संगठन का प्रबन्ध तभी सफलतापूर्वक संचालित हो सकता है जब सम्प्रेषण प्रक्रिया का प्रभावी रूप संगठन में विद्यमान हो। संचार प्रक्रिया के प्रमुख प्रकारों को निम्नलिखित प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है

Business Basic Form Communication

व्यावसायिक संचार/सम्प्रेषण के प्रकार

(Forms of Business Communication)

माध्यम के आधार पर वर्गीकरण

(Classification on the Basis of Medium)

सम्प्रेषण माध्यम से आशय संदेश की अभिव्यक्ति के ढंग या तरीके से है। व्यवसाय में सन्देश की उपयोगिता एवं उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए सन्देश को अलग-अलग ढंग से अभिव्यक्त किया जाता है। माध्यम के आधार पर सम्प्रेषण को निम्नलिखित प्रकार से वर्गीकत किया जा सकता है।

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शाब्दिक सम्प्रेषण

(Verbal Communication)

जब संचारक संदेश देने के लिये लिखित अथवा मौखिक शब्द भाषा का प्रयोग करता है तो उसे शाब्दिक सम्प्रेषण कहा जाता है। शब्द भाषा से अभिव्यक्ति सरल, सुगम एवं बोधगम्य हो जाती है। शाब्दिक सम्प्रेषण को अग्रलिखित दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है

() मौखिक संचार/सम्प्रेषण

(Oral Communication)

संचार प्रक्रिया के अन्तर्गत जब सन्देश को मुख से बोलकर भेजा जाता है तो इसे मौखिक सम्प्रेषण कहा जाता है। सरल शब्दों में, मौखिक सम्प्रेषण का अर्थ है आमने-सामने मौखिक बातचीत करके सचनाओं का आदान प्रदान करना। इसमें सन्देश देने वाला अधिकारी, न केवल अपने विचारों की और सही जानकारी दे सकता है बल्कि साथ-साथ सन्देश प्राप्त करने वाले अधिकारी की समझ तथा प्रतिक्रिया को भी जान सकता है। साथ ही सन्देश पाने वाला भी, न केवल सन्देश को समझ सकता है, बल्कि अपने शक और संशयों का निपटारा भी करा सकता है। वास्तव में प्रत्येक संस्था में मौखिक सन्देशवाहन का महत्त्वपूर्ण स्थान है। एक प्रबन्धक को समूह का नेतृत्व करने के लिए अधीनस्थों से विचार विमर्श करने के लिए, अधिकार प्रत्यायोजन के लिए, कर्मचारियों से आवश्यक सहयोग प्राप्त करने के लिए तथा संस्था में अच्छे वातावरण के निर्माण के लिए मौखिक रूप से ही सन्देश का आदान-प्रदान करना होता है।

मौखिक सम्प्रेषण के लिए विभिन्न माध्यमों जैसे आमने-सामने वार्तालाप, टेलीफोन पर वार्तालाप, साक्षात्कार, सम्मेलन, सभाएँ, भाषण, विचारगोष्ठियाँ, रेडियो प्रसारण आदि का प्रयोग किया जाता है।

मनुष्य ही एकमात्र ऐसा प्राणी है जो अपने मुखावयवों से विभिन्न ध्वनियों, ध्वनि-प्रतीकों का निर्माण या सृजन कर अनेक रूपों में मौखिक सम्प्रेषण कर सकता है। अन्य प्राणी सीमित ध्वनियों का सृजन कर सकते हैं। मौखिक सम्प्रेषण को सफल व प्रभावी बनाने के लिए वक्ता में कथ्य, विचारों की स्पष्टता, उनके अनुरूप शब्द, आंगिक चेष्टाएँ, उच्चारण शैली, श्रोता में दोष रहित श्रवण क्षमता और अशाब्दिक प्रतीकों की अवलोकन शक्ति व प्राप्त प्रतीकों को संघटित कर विचारों में रूपान्तरण की क्षमता अत्यन्त आवश्यक है। मौखिक सम्प्रेषण को प्रभावी बनाने के लिए निम्नलिखित गुणों का होना अनिवार्य

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1. उचित व स्पष्ट उच्चारण (Proper and Clear Pronunciation),

2. शब्द समृद्धि (Word Power),

3. संक्षिप्तता (Conciseness),

4. उचित लहजा (Proper Way),

5. ध्वनि का समुचित उतार-चढ़ाव (Proper Fluctuations of Sound),

6. उचित भाषा-शैली (Proper Language Style)।

एक सफल व प्रभावी मौखिक सम्प्रेषण में सात ‘सी’ (7C) का भी स्मरण किया जाता है

1.सरल (Easy), 2. स्पष्ट (Clear), 3. सम्पूर्ण (Complete),  4. संक्षिप्तता (Concise), 5. निश्चित (Concrete),6. सही (Correct),7. विशिष्टतापूर्ण (Courteous)

उपर्युक्त गुणों की उपस्थिति से ही कोई मौखिक सम्प्रेषण हमें रोचक, कर्णप्रिय व मन्त्रमुग्ध करता

मौखिक संचार/सम्प्रेषण के लाभ

(Advantages of Oral Communication)

(1) समय एवं धन की बचत (Saving of Time and Money)-इसमें मौखिक उच्चारण द्वारा सन्देश प्रेषित किया जाता है जिससे समय की बचत होती है। इसमें श्रम एवं धन की भी बचत होती है क्योंकि कागज, स्याही इत्यादि का प्रयोग नहीं करना पड़ता।

(2) प्रभावपूर्ण (Effective)-मौखिक संचार, सन्देश प्राप्त करने वाले पर शीघ्र प्रभाव डालता है। विशिष्ट अवसरों पर प्रसन्नता, क्रोध, आदर और घृणा भावों इत्यादि से इसे और भी अधिक प्रभावपूर्ण बनाया जा सकता है। आमने-सामने वार्ता होने के कारण इससे व्यक्तिगत सम्बन्धों में भी मधुरता आती है।

(3) संचार की स्पष्टता (Clarity of Message)-मौखिक सन्देश में यदि कोई भ्रम होता है तो उसका तुरन्त निवारण किया जा सकता है तथा स्पष्टीकरण में भी समय व्यर्थ नहीं होता। इससे संचार में स्पष्टता आती है तथा सन्देश प्राप्त करने वाला भी उसी भाव में सन्देश ग्रहण करता है जिस भाव में सन्देश भेजा गया है।

(4) आवश्यकतानुसार परिवर्तन (Changes Necessirily)-मौखिक संचार लोचदार होता है क्योंकि इसमें समय व परिस्थितियों के अनुसार आसानी से परिवर्तन किया जा सकता है।

(5) प्रतिक्रिया का ज्ञान (Knowledge of Feedback)-मोखिक संचार यह भी है कि इससे सन्देश प्राप्त करने वाले व्यक्ति पर होने वाली प्रतिक्रिया का अनुमान आसाना स लगाया जा सकता है। यदि सन्देश प्राप्त करने वाले पर इच्छित प्रभाव नहीं हुआ है तो उस सन्दश का पुनः प्रेषित करके प्रभावशाली बनाया जा सकता है।

(6) शाघ्र सम्प्रषण (Easy Communication)-इसमें आदेशों व निर्देशों को शीघ्रता के साथ सम्प्रेषित किया जा सकता है क्योंकि सचनाओं को प्रेषित करने से पूर्व लिखने की आवश्यकता नहीं होती।

(7) सहयोगपूर्ण वातावरण के निर्माण में सहायक (Helpful in Making Cordial Relations)-मौखिक संचार में प्रबन्धक एवं कर्मचारी आपस में व्यक्तिगत सम्पर्क में आते रहते हैं। जिससे संगठन में सहयोगपूर्ण वातावरण का निर्माण होता है। मौखिक सन्देशवाहन कर्मचारियों के मनोबल को ऊंचा उठाने, उन्हें प्रेरणा देने तथा कार्यकशलता में वृद्धि करने में भी सहायक होता है।

(8) नीतिनिर्धारण में सहायक (Helpful in Policy Making)-मोखिक संचार परामर्श एवं नीति निर्धारण में सहायक होता है। मेकमारा के अनुसार, “प्रत्येक प्रकार के संगठन एवं प्रबन्ध में अपने अधीनस्थों से परामर्श किया जाना आवश्यक है और इस कार्य के लिये मौखिक सन्देशवाहन महत्त्वपूर्ण पूर्ण वातावरण क एवं कर्मचारी अखिक सन्देशवा हैं ।

Business Basic Form Communication

मौखिक संचार/सम्प्रेषण के दोष

(Disadvantages of Oral Communication)

मौखिक संचार के प्रमुख दोष निम्नांकित प्रकार हैं

(1) लिखित प्रमाण का अभाव (Lack of Written Proof)-मौखिक सन्देशवाहन में प्रेषित किये गए संवादों का कोई लिखित प्रमाण नहीं रहता। भविष्य में वाद-विवाद के समय कोई लिखित प्रमाण न होने से किसी भी प्रकार की कार्यवाही करने में कठिनाई उत्पन्न हो जाती है।

(2) दोनों पक्षों की उपस्थिति आवश्यक (Presence of Both the Parties Necessary)-मौखिक संचार के लिये दोनों पक्षों अर्थात् संवाददाता तथा संवाद प्राप्तकर्ता की उपस्थिति आवश्यक होती है। अत: यदि किसी समय संवाद प्राप्तकर्ता उपलब्ध न हो तो मौखिक संचार सम्भव नहीं हो पाता।

(3) अस्पष्टता (Lack of Clarity)-जब मौखिक सन्देश अधिक विस्तृत तथा लम्बा होता है तो सन्देश प्राप्तकर्ता को उसे समझने में कठिनाई होती है। ऐसी स्थिति में लिखित सन्देश ही उपयुक्त रहता

(4) खर्चीली पद्धति (Expensive)-जब सूचना देने वाले तथा सूचना प्राप्त करने वाले के मध्य दूरी इतनी अधिक होती है कि प्रत्यक्ष सम्पर्क सम्भव नहीं हो सकता और टेलीफोन से वार्ता हो सकती है, तब यह पद्धति बहुत खर्चीली रहती है।

(5) प्रतिकल प्रभाव (Adverse Effect)-मौखिक संचार में सूचनाकर्त्ता तथा सूचनाग्राही को सोचने समझने का मौका नहीं मिल पाता जिससे कई बार सन्देश का विपरीत या गलत प्रभाव हो सकता है तथा सम्बन्धों में कटुता उत्पन्न हो जाती है।

() लिखित संचार/सम्प्रेषण

(Written Communication)

लिखित सन्देशवाहन के अन्तर्गत विचारों का आदान-प्रदान मुँह से बोलने की बजाय लिख कर किया जाता है। लिखित सन्देशवाहन के लिये पत्र-पत्रिकाएँ, समाचार-पत्र, बुलेटिन, रिपोर्ट, सूचनाएँ, हैण्डबक आदि का प्रयोग किया जाता है। लिखित सन्देश तैयार करते समय बहत सावधानी की आवश्यकता होती है। सन्देश स्पष्ट होना चाहिए तथा उसकी भाषा ऐसी नहीं होनी चाहिए जिसके अनेक अर्थ निकलते हों। आधुनिक युग में प्रगति के साथ-साथ लिखित संचार का महत्त्व बढ़ता जा रहा है।। लिखित संचार के आधुनिक माध्यम मुख्यत: E-mail तथा Fax हैं। लिखित संचार किसी भी व्यवसाय के संदेशों का प्रमाण रखने में मदद करता है।

लिखित संचार/सम्प्रेषण के लाभ

(Advantages of Written Communication)

लिखित संचार के प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं

(1) लिखित प्रमाण उपलब्ध होना (Written Proof)-लिखित सन्देशवाहन में सूचना लिखित रूप में भेजी जाती है तथा उसे भविष्य में सन्दर्भ के लिये सुरक्षित रखा जाता है। यदि भविष्य में कोई वाद-विवाद होता है तो उसे प्रमाण के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है।

(2) प्रत्यक्ष सम्पर्क की आवश्यकता नहीं (Direct Contact Not Necessary)-लिखित सन्देशवाहन में सूचनाकर्ता तथा सूचनाग्राही के मध्य सीधे एवं प्रत्यक्ष सम्पर्क की आवश्यकता नहीं होती। इसमें सचनाकर्ता सन्देश लिखकर सम्बन्धित व्यक्ति के पास भेज देता है तथा वह व्यक्ति अपनी सुविधानुसार उस सन्देश को कभी भी पढ़ सकता है।

(3) विस्तृत सन्देश के लिये उपयुक्त (Suitable for Lengthy Messages)-यदि सन्देश विस्तृत एवं जटिल है तथा उसे याद रखना कठिन है तो ऐसी स्थिति में लिखित सन्देश उपयुक्त रहता है।

(4) पूर्णता एवं स्पष्टता (Perfect and Clear)-लिखित सन्देश में सूचना पूर्ण एवं स्पष्ट होती है। जिससे प्रत्येक व्यक्ति उसे आसानी से समझ सकता है। लिखित सन्देश काफी सोच-समझ कर लिखा जाता है तथा उसमें सभी आवश्यक बातें सम्मिलित कर ली जाती हैं, जिससे सन्देश में पूर्णता रहती है। ।

(5) कम खर्चीला (Less Expensive)-यदि संदेश प्राप्त करने वाले व्यक्ति दूरी पर रहते हैं तो मौखिक संचार की अपेक्षा यह साधन मितव्ययी है, क्योंकि डाक व्यय नाममात्र का ही होता है।

(6) अनेक व्यक्तियों को एक साथ सूचना (Communication with Different Persons)-एक साथ अनेक व्यक्तियों को सूचना देने के लिये भी लिखित संचार सर्वोत्तम साधन है। अलग-अलग स्थानों पर रहने वाले विभिन्न व्यक्तियों को एक ही सूचना एक समय पर देने के लिये लिखित संचार उपयुक्त रहता है।

लिखित संचार/सम्प्रेषण के दोष

(Disadvantages of Written Communication)

लिखित संचार के प्रमुख दोष निम्नलिखित हैं

(1) खर्चीली पद्धति (Expensive Method)-लिखित संचार पद्धति में कागज, स्याही, टाइप के व्यय एवं सन्देश तैयार करने वाले कर्मचारी के वेतन इत्यादि के रूप में काफी व्यय होता है। अत: मौखिक संचार की तुलना में यह पद्धति अधिक खर्चीली होती है।

(2) गोपनीयता का अभाव (Lack of Secrecy)-लिखित सन्देश अनेक कर्मचारियों के हाथों से होकर गुजरता है। अत: उसे गोपनीय नहीं रखा जा सकता।

(3) सन्देश पहुँचने में विलम्ब (Delay in Reaching Message)-लिखित सन्देश पद्धति में अनेक बार सन्देश पहुंचने में विलम्ब हो जाता है जिससे संस्था को हानि उठानी पड़ सकती है।

(4) प्रभावी होना (Not Effective)-लिखित सन्देश में, प्रेषक की सम्पूर्ण भावनाओं को व्यक्त करना सम्भव नहीं होता जिससे यह अधिक प्रभावशाली नहीं हो पाता।

(5) समय का अपव्यय (Wastage of Time)-मौखिक संचार की अपेक्षा इस पद्धति में समय का अधिक अपव्यय होता है। संदेश को लिखने और अधिकारियों के हस्ताक्षर कराने में काफी समय नष्ट हो जाता है, जिससे संस्था को नुकसान होता है।

(6) अशिक्षित व्यक्तियों के लिये अनुपयुक्त (Unsuitable for Illiterate Persons)-लिखित संचार में सन्देश को लिखना तथा पढ़ना पड़ता है। अत: यह अशिक्षित व्यक्तियों के लिये अनुपयुक्त रहता है।

उपर्युक्त दोनों संचार पद्धतियों के गुण-दोषों का विवेचन करने के पश्चात् यह कहना कठिन है कि एक व्यावसायिक उपक्रम के लिये कौन-सी पद्धति उपयुक्त है। दोनों संचार विधियों के अपने-अपने गुण तथा दोष हैं। हैमेन ने इस सम्बन्ध में सही कहा है कि, “प्रबन्ध केवल एक ही विधि को चनता है तो गम्भीर असफलता मिलेगी। अतः परिस्थितियों के अनुसार इन दोनों में समन्वय स्थापित करने का प्रयास करना चाहिए। सन्देशवाहन की इन दोनों विधियों का अपना-अपना महत्त्व है। ये एक-दूसरे की प्रतिद्वन्द्वी नहीं बल्कि पूरक हैं। अत: दोनों में से किसी भी विधि का परित्याग नहीं किया जा सकता और न ही किसी एक माध्यम के प्रयोग से काम चल सकता है।” ।

अशाब्दिक (सांकेतिक) संचार/सम्प्रेषण

(Non-Verbal Communication)

यह संचार की ऐसी प्रक्रिया है जिसमें दूसरे व्यक्ति तक अपनी बात पहुँचाने के लिये संकेतों. इशारों तथा हावभावों का प्रयोग किया जाता है। सांकेतिक संचार प्रणाली के द्वारा व्यक्ति अपनी भावनाओं को दूसरे व्यक्तियों तक शीघ्रता तथा मितव्ययितापूर्वक भेज सकता है। इसमें व्यक्ति के हाव-भावों को देखकर यह पता चल जाता है कि वह क्या कहना चाहता है जैसे खशी व्यक्त करने के लिय ताला। बजाना, पाठ थपथपाना या मस्कराना आते हैं. जबकि नाराजगी व्यक्त करने के लिये माथे पर सलवट पड़ना तथा मुंह बनाना आदि आते हैं। सांकेतिक /अशाब्दिक संचार का वर्गीकरण निम्नलिखित प्रकार से किया जा सकता है

(1) शारारिक भाषा (Body Language) यह सांकेतिक संचार का महत्त्वपूर्ण माध्यम है। इसमें व्यक्ति अपने शरीर की क्रियाओं द्वारा अपना संदेश अन्य व्यक्तियों को या समूह को पहुंचाता है। इसमें आखों को घुमाना, सिर हिलाना, मुस्कुराना, ताली बजाना, हाथों को ऊपर नीचे करना, उंगली दिखाना इत्यादि को शामिल किया जाता है। क्रिकेट मैच में छ: रन के इशारे के लिये अम्पायर द्वारा दोनों हाथों को सिर के ऊपर उठाना शारीरिक भाषा का ही उदाहरण है।

(ii) संकेत भाषा (Sign Language)-जब संचार प्रक्रिया में संदेश देने के लिये सम्प्रेषक व प्राप्तकर्ता कुछ चिन्हों, संकेतों तथा प्रतीकों का प्रयोग करते हैं, तो इसे संकेत भाषा कहते हैं। इसमें दूसरे व्यक्तियों तक संदेश पहुँचाने के लिये पोस्टर, चित्र, पेन्टिंगस, रंगों आदि का प्रयोग किया जाता है। संकेत भाषा में ऐसे तरीकों का प्रयोग किया जाता है जिनसे किसी न किसी प्रकार की सूचना प्राप्त होती है, जैसे खतरे का चिन्ह क्रास लगाकर, आगे जाने व मुड़ने का चिन्ह तीर बनाकर, गाड़ी रूकने का सन्देश लाल बत्ती द्वारा दिया जाता है। संकेत भाषा में रंगों का भी प्रयोग किया जाता है जैसे हरा रंग स्फूर्ति तथा पीला रंग प्रसन्नता का प्रतीक है।

(iii) भाषा प्रतिरूप (Para Language)-भाषा प्रतिरूप के अन्तर्गत यह संकेत प्राप्त होता है कि एक व्यक्ति अपने शब्दों को किस स्वर ध्वनि के साथ व्यक्त करता है। इसमें हम आवाज के उतार-चढ़ाव, वक्तव्य की गति, अन्तराल या विराम आदि का अध्ययन करते हैं जैसे क्रोध में बोला गया वाक्य, कम आवाज में कहा गया वाक्य आदि। भाषा प्रतिरूप से सन्देश देने वाले की मानसिक स्थिति का पता आसानी से लगाया जा सकता है।

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दिशा के आधार पर वर्गीकरण

(Classification on the Basis Of Direction)

संस्था के निर्धारित लक्ष्यों एवं उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये संगठन में शामिल व्यक्तियों के समूह की क्रियाओं, निर्णयों एवं सम्बन्धों के विश्लेषण के आधार पर संगठन संरचना निर्धारित की जाती है। संगठन में इस संरचना के द्वारा विभिन्न स्तरों एवं विभागों के मध्य संदेशों का प्रवाह होता है। संदेश के इस प्रवाह को ही सम्प्रेषण की दिशा कहते हैं। दिशा के आधार पर सम्प्रेषण को निम्नलिखित प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है

(1) ऊर्ध्वाकार या लम्बवत् सम्प्रेषण (Vertical Communication)-जब संगठन संरचना के विभिन्न स्तरों के मध्य संदेश का प्रवाह उच्च अधिकारियों से अधीनस्थ कर्मचारियों की ओर अथवा अधीनस्थों से उच्च अधिकारियों की ओर होता है, तो इसे लम्बवत् सम्प्रेषण कहते हैं। इसमें आदेशों तथा निर्देशों का प्रवाह सीधे क्रम के रूप में ही होता है जैसे संस्था का सर्वोच्च अधिकारी जनरल मैनेजर होता है जो अपना आदेश विभागीय मैनेजर को देता है, विभागीय मैनेजर संदेश का प्रवाह कार्यालय अधीक्षक की ओर करता है तथा कार्यालय अधीक्षक संदेश का प्रवाह कार्यालय सहायक को तथा कार्यालय सहायक, अधीनस्थ कर्मचारियों को संदेश प्रवाहित कर देता है। लम्बवत सम्प्रेषण के दो रूप हो सकते

(i) अवरोही सम्प्रेषण या ऊपर से नीचे की ओर सम्प्रेषण (Downward Communication)-जब संदेश उच्च अधिकारियों से अधीनस्थ अधिकारियों एवं कर्मचारियों को दिया जाता है तो इसे ऊपर से नीचे की तरफ संचार कहते हैं। यह संदेश लिखित या मौखिक रूप में हो सकता है। इसके द्वारा प्रबन्धक व्यवसाय की योजनाओं, नीतियों तथा कार्यक्रमों की जानकारी अपने अधीनस्थों को उपलब्ध कराते हैं।

(ii) आरोही सम्प्रेषण या नीचे से ऊपर की ओर सम्प्रेषण (Upward Communication)जब संदेशवाहन अधीनस्थ अधिकारियों एवं कर्मचारियों की ओर से उच्चस्तरीय अधिकारियों की ओर होता है तो इसे नीचे से ऊपर की ओर सन्देशवाहन कहा जाता है। सामान्यत: इस प्रकार का सन्देशवाहन निम्नस्तरीय अधिकारियों एवं कर्मचारियों द्वारा अपनी प्रार्थना, सुझाव, कठिनाइयों आदि को उच्च व्यावसायिक संचार अधिकारियों तक पहुंचाने के लिए किया जाता है। उदाहरण के लिए, यदि कोई कर्मचारी अपने अधिकारी। से छद्री के लिये प्रार्थना करता है तो इसे नीचे से ऊपर की ओर सन्देशवाहन कहा जायेगा। ।

(2) क्षैतिज या समतल सम्प्रेषण (Lateral or Horizontal Communication)-जब समान स्तर के कर्मचारियों, अधिकारियों अथवा विभागाध्यक्षों के बीच सन्देशों का आदान-प्रदान होता है तो इसे क्षतिज या समतल सम्प्रेषण कहा जाता है। यह सन्देशवाहन भिन्न-भिन्न विभाग अधिकारियों के मध्य किया जाता है। इसका उद्देश्य विभिन्न कार्यों. विभागों अथवा योजनाओं में सामंजस्य उत्पन्न करना होता है। इससे कार्यों एवं निर्णयों को शीघ्रता से पूरा किया जा सकता है। इसके मुख्य माध्यम प्रत्यक्ष व्यक्तिगत वार्तालाप, बैठकें व गोष्ठियाँ, विभागीय सूचना पत्रक, पत्राचार तथा अनौपचारिक सम्पर्क आदि हैं।

 (3) कर्णीय या आरेखी सम्प्रेषण (Diagonal Communication)-इस प्रकार के सम्प्रेषण में संगठन संरचना के औपचारिक प्रवाह को विचार में नहीं रखा जाता है। सूचनाओं एवं सन्देशों के तीव्र प्रवाह के लिये विभिन्न विभागों एवं क्रियाओं के अधीनस्थों, जो प्रत्यक्ष औपचारिक स्तरों में नहीं आते, के मध्य किया जाने वाला सम्प्रेषण, कर्णीय सम्प्रेषण कहलाता है। इसमें सन्देशों के प्रवाह का क्रम निश्चित नहीं होता है। इस प्रकार के सन्देशवाहन से विभिन्न विभागों में निर्णयन, दक्षता एवं कार्यक्षमता में वृद्धि होती है, क्योंकि अनौपचारिक सभा या भोजनावकाश मुलाकात में कर्णीय सम्प्रेषण द्वारा वांछित सूचनाओं एवं प्रगति सन्देशों का आदान-प्रदान होता है।

सम्बन्धों के आधार पर वर्गीकरण

(Classification On the Basis of Relations)

संस्था में कार्य करने वाले विभिन्न व्यक्तियों के अन्तर्सम्बन्धों के आधार पर सम्प्रेषण को दो प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है

(i) औपचारिक सम्प्रेषण (Formal Communication)-जब विचारों का आदान-प्रदान अधिकार और दायित्व के औपचारिक ढाँचे पर आधारित होता है, तो उसे औपचारिक सम्प्रेषण कहते हैं। इस संचार का मार्ग संगठन के ढाँचे में निर्धारित प्रक्रियाओं के अनुसार तय होता है। इस प्रकार के सन्देशवाहन में उच्च स्तर के अधिकारी कोई भी सन्देश या सूचना निचले अधिकारियों को लम्बवत् सीढ़ी को ध्यान में रखते हुए, ऊपर से नीचे की तरफ भेजते हैं। इसमें उच्च प्रबन्धक सन्देश को अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को देते हैं तथा अधीनस्थ अधिकारी अपने से अधीनस्थ कर्मचारियों को संदेश देते हैं। सन्देश के प्रवाह का यह क्रम तब तक चलता रहता है, जब तक कि सूचना सम्बन्धित व्यक्तियों तक न पहुँच जाये। औपचारिक संचार प्रायः लिखित में ही होते हैं तथा ये स्थायी आदेश, वार्षिक प्रतिवेदन एवं पत्रिकाओं के माध्यम से भेजे जाते हैं।

(ii) अनौपचारिक सम्प्रेषण (Informal Communication)-जब संवाददाता (सन्देश प्रेषक) तथा संवाद प्राप्तकर्ता के मध्य अनौपचारिक सम्बन्ध होते हैं, तब उनके मध्य संवादों, सुचनाओं, भावनाओं, स्पष्टीकरण तथा भविष्यवाणियों का जो आदान-प्रदान होता है, तो उसे अनौपचारिक संचार कहते हैं। यह प्रायः प्रत्यक्ष एवं मौखिक ही होता है। अनौपचारिक संचार में शरीर के अनेक अंगों तथा हाव-भाव को भी काम में लिया जाता है जैसे सिर हिलाना, नेत्रों से किये जाने वाले इशारे, मुस्कुराना इत्यादि। इस संचार का मार्ग अंगूर की बेल की तरह टेढ़ा-मेढ़ा होता है तथा संस्था की तरफ से इसकी कोई व्यवस्था नहीं की जाती।

Business Basic Form Communication

परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(Expected Important Questions for Examination)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

(Long Answer Questions)

1 व्यावसायिक संचार किसे कहते हैं? संचार/सम्प्रेषण प्रक्रिया के आधारभूत प्रकार बताइए।

What is meant by business communication? Explain basic forms of the communication process.

2. आपके विचार से मौखिक एवं लिखित संचार (सम्प्रेषण) दोनों में से कौन-सा सम्प्रेषण श्रेष्ठ है? तुलनात्मक विश्लेषण कीजिए।

In your view of verbal and written communication which one is better? Give comparative analysis.

3. मोखिक संचार (सम्प्रेषण) से आपका क्या अभिप्राय है? मौखिक सम्प्रेषण के लाभ एवं दोषों का वर्णन कीजिए।

What do you understand by oral communication? Describe advantages and disadvantages of oral communication.

4. मौखिक एवं लिखित संचार के लाभों एवं सीमाओं की व्याख्या कीजिए। व्यावसायिक संचार में कौन-सी विधि अधिक उपयुक्त हैं?

Explain the merits and limitations of oral and written communication. Which one is more useful in business communication?

लघु उत्तरीय प्रश्न

(Short Answer Questions)

1 शाब्दिक सम्प्रेषण से आप क्या समझते हैं?

What do you understand by verbal communication?

2. अशाब्दिक (सांकेतिक) संचार प्रक्रिया को स्पष्ट कीजिए।

What do you understand by Non-verbal communication?

3. दिशा के आधार पर व्यावसायिक संचार को किस प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है?

How business communication can be classified on the basis of direction?

4. मौखिक तथा लिखित संचार में अन्तर स्पष्ट कीजिए।

Distinguish between oral and written communication.

5. सम्बन्धों के आधार पर व्यावसायिक संचार को किस प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है?

How business communication can be classified on the basis of relations?

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