BCom 1st year Business Communication An Introduction Study Material Notes in Hindi

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BCom 1st year Business Communication An Introduction Study Material Notes in Hindi

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An Introduction
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व्यावसायिक संचारएक परिचय

(Business Communication : An Introduction)

संचार (सम्प्रेषण अथवा संवहन) का आशय है सन्देश को एक स्थान से दूसरे स्थान अथवा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुँचाना। सामान्य भाषा में किन्हीं दो व्यक्तियों के बीच किसी जानकारी या सूचना के सम्बन्ध में होने वाले विचार विमर्श को संचार कहते हैं। मानव के जन्म से ही संचार की क्रिया प्रारम्भ हो जाती है, भले ही वह शब्दों के माध्यम से न हो। बच्चा जब जन्म लेता है तो जन्म लेते ही उसके रोने की आवाज होती है जो यह प्रदर्शित करती है कि उसे किसी न किसी वस्तु की आवश्यकता है अर्थात् वह अपना सन्देश माँ को प्रेषित करता है और माँ उसे पूरा करने का प्रयास प्रारम्भ कर देती है। इस धरती पर रहने वाला प्रत्येक जीव संचार का प्रयोग करता है एवं उससे लाभान्वित होता है। जब संचार की क्रिया से जीव-जन्त, पश-पक्षी तक लाभान्वित होते हैं तो मानव के लिये तो संचार संजीवनी है। मनुष्य प्रभावी ढंग से अपनी बात को सम्प्रेषित कर सकता है। ज्यों-ज्यों मनुष्य की आवश्यकताएँ बढ़ती जा रही हैं, प्रभावी संचार की आवश्यकता/महत्ता भी बढ़ती जा रही आज के इस गलाकाट प्रतियोगिता के युग में व्यवसाय में संचार की आवश्यकता बहुत अधिक बढ़ गयी है। आज व्यवसायी को अपने व्यवसाय से सम्बन्धित सूचनाओं की हर पल आवश्यकता होती है साथ ही दूसरों को जानकारी प्रदान करने की भी आवश्यकता होती है। पूर्व में जब व्यक्ति की आवश्यकताएँ सीमित थी तो संचार की उतनी आवश्यकता नहीं थी जितनी आज हो गयी है। संचार की बढ़ती हुई आवश्यकता ने देश में सूचना क्रान्ति ला दी है, ऐसे में व्यवसाय में संचार का महत्त्व बहुत अधिक बढ़ गया है। __ज्ञान, आर्थिकता एवं व्यावसायिकता के इस युग में व्यवसाय और पेशे में सफलता प्राप्त करने के लिये व्यक्ति का संचार कला में कुशल होना अत्यन्त आवश्यक है। कुशल संचार कला के अभाव में व्यक्ति केवल ज्ञान एवं बुद्धिमता के आधार पर सफलता प्राप्त नहीं कर सकता। इसलिये प्रत्येक व्यक्ति को अपने संचार के ढंग पर पर्याप्त ध्यान देना चाहिए जैसे दूसरों के समक्ष बोलना, पत्र लिखना, रिपोर्ट लिखना, ई-मेल भेजना, दूसरे को सुनना, शरीर के हाव-भाव एवं दूसरों की तरफ ध्यान देना आदि।

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संचार/सम्प्रेषण/संवहन का अर्थ एवं परिभाषाएँ

(Meaning and Definitions of Communication)

संचार (Communication) शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द COMMUNICARE से हुई है, जिसका अर्थ है समझना या जानना। अत: संचार से आशय सूचनाओं, तथ्यों, विचारों एवं भावनाओं को समझना या जानना है जो बोलकर, लिखकर अथवा सांकेतिक भाषा में हो सकता है। संचार वह साधन है जिसमें संगठित क्रिया द्वारा तथ्यों, सूचनाओं, विचारों, विकल्पों एवं निर्णयों का दो या अधिक व्यक्तियों के मध्य अथवा व्यावसायिक उपक्रमों के मध्य आदान प्रदान होता है।

संचार दो तरफा प्रक्रिया है। इसके अन्तर्गत एक सन्देश देने वाला होता है तथा दूसरा सन्देश प्राप्त करने वाला होता है। संचार तभी पूर्ण माना जाता है जब सन्देश प्राप्त करने वाला उसे उसी अर्थ एवं रूप में समझता तथा ग्रहण करता है, जिस रूप में सन्देश भेजने वाला चाहता है। यदि सन्देश देने वाले व्यक्ति का सन्देश, सन्देश प्राप्त करने वाला व्यक्ति समझ नहीं पाता है, तो सन्देशवाहन की प्रक्रिया पूरी नहीं होती। उदाहरण के लिये यदि कक्षा में बैठे हुये छात्र अपने अध्यापक के द्वारा दिये जाने वाले व्याख्यान को समझ नहीं पाते हैं तो ऐसे व्याख्यान की कोई सार्थकता नहीं रह जाती अर्थात संचार की प्रक्रिया पूरी नहीं होती। अतः संचार का आशय है कि सन्देशों का एक दूसरे के मध्य इस प्रकार आदान-प्रदान हो कि उनके मध्य विचारों में ऐक्यता तथा समभाव उत्पन्न किया जा सके। वस्तुत: संचार का आशय उस भावाभिव्यक्ति से है जिसके द्वारा एक व्यक्ति का आशय दूसरा व्यक्ति समझ सके। यह भावाभिव्यक्ति लिखित, मौखिक, अथवा सांकेतिक हो सकती है।

संचार (सम्प्रेषण) के सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों ने अपने विचार निम्नांकित प्रकार व्यक्त किये हैं

न्यूमर समर के अनुसार, “सम्प्रेषण दो या दो से अधिक व्यक्तियों के मध्य तथ्यों, विचारों या भावनाओं का आदान प्रदान है।”

लुइस ए० एलन के अनुसार, “सन्देशवाहन उन सभी क्रियाओं का योग है जिनको एक व्यक्ति, अपनी विचारधारा को दूसरे व्यक्ति के मस्तिष्क में पहुँचाने के लिए अथवा उसे समझान काला मतगत कहन, सुनने तथा समझाने की व्यवस्थित एवं निरन्तर क्रियाओं का समावेश होता है।”

जाज टरी के अनुसार, “संचार दो या अधिक व्यक्तियों के बीच तथ्यों, विचारों तथा भावनाओं का आदान-प्रदान है।

बलास एवं गिलसन के अनुसार, “संचार शब्दों. पत्रों, चिन्हों अथवा समाचारों का आदान-प्रदान करने का समागम है  और एक प्रकार से यह संगठन के एक सदस्य द्वारा दूसरे व्यक्ति से अर्थ एवं समझदारी से भागीदारी करना है।

फ्रेड जी मायर के अनुसार, “सन्देशवाहन शब्दों, पत्रों अथवा सूचना, विचारों, सम्मतियों का आदान प्रदान करने का समागम है।”

कीथ डेविस के अनुसार, “सन्देशवाहन एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को सूचना एवं समझ भेजने की एक प्रक्रिया है।”

निष्कर्ष-सन्देशवाहन की उपर्युक्त परिभाषाओं का अध्ययन करने के पश्चात् निष्कर्ष के रूप में संचार की एक उपयुक्त परिभाषा निम्नलिखित प्रकार दी जा सकती है

सन्देशवाहन एक सतत् प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत दो या दो से अधिक व्यक्ति अपने विचारों, भावनाओं, सन्देशों, सम्मतियों आदि का पारस्परिक आदान-प्रदान करते हैं।

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व्यावसायिक संचार/सम्प्रेषण का अर्थ

( Meaning of Business Communication)

व्यवसाय के संचालन के लिये व्यवसायी को अनेक व्यक्तियों से सम्पर्क रखना पड़ता है तथा निरन्तर अपने कर्मचारियों, ग्राहकों तथा अन्य व्यक्तियों से संवाद करना पड़ता है। संवाद की इसी प्रक्रिया को ही व्यावसायिक संचार कहा जाता है। वर्तमान प्रगतिशील युग में संचार, व्यवसाय का महत्त्वपूर्ण अंग है। व्यवसाय की कोई भी क्रिया जैसे उपभोक्ता को उत्पाद के विषय में जानकारी देने की हो या अपने कर्मचारियों में कार्य का विभाजन व उसकी समीक्षा करने की हो, बिना संचार के सम्पन्न नहीं होती। व्यावसायिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिये व्यावसायिक संचार अत्यन्त आवश्यक होता है तथा इसके अभाव में व्यवसाय का सफल संचालन सम्भव नहीं हो सकता।

आर० लुडलो के अनुसार, “व्यावसायिक संचार, सूचना के प्रवाह तथा एक व्यवसाय में लोगों द्वारा एक-दूसरे को समझने की प्रक्रिया है। इसके अन्तर्गत परस्पर संचार के विभिन्न मॉडलों तथा माध्यमों को सम्मिलित किया जाता है।

सी जी० ब्राउन के अनुसार, “व्यावसायिक संचार संदेशों तथा व्यवसाय से जुड़े लोगों को जानने की प्रक्रिया है। इसमें संचार के माध्यम सम्मिलित होते हैं।”

उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि व्यावसायिक संचार सूचनाओं के आदान-प्रदान की एक सतत् प्रक्रिया है जिसमें तथ्यों, विचारों एवं भावनाओं को विभिन्न माध्यमों से दूसरे व्यक्तियों तक पहुंचाया जाता। है जिससे व्यावसायिक उद्देश्यों एवं व्यवहार में सामंजस्य स्थापित होता है।

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संचार/सम्प्रेषण की विशेषताएँ

(Characteristics of Communication)

(1) संचार/सम्प्रेषण में कम से कम दो व्यक्ति होते हैं (Communication involves at least two persons)-संचार में कम से कम दो व्यक्तियों अथवा समूहों के मध्य सन्देश का आदान प्रदान होता है। वह व्यक्ति जो बोलता, लिखता या दिशा निर्देश देता है उसे सम्प्रेषक तथा जो व्यक्ति इन संदेशों को सुनता है, प्राप्त करता है उसे सम्प्रेषणग्राही कहा जाता है।

(2) संचार/सम्प्रेषण एक सतत् प्रक्रिया है (Communication is a Continuous Process)-व्यावसायिक संचार निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है क्योकि कर्मचारियों, ग्राहकों, सरकार आदि बाह्य एवं आन्तरिक पक्षों के मध्य, सन्देशों के आदान-प्रदान की प्रक्रिया व्यवसाय में निरन्तर बनी रहती है।

(3) संचार/सम्प्रेषण द्विमार्गी प्रक्रिया है (Communication is a two way Process)-संचार एक द्विमार्गी प्रक्रिया है। सन्देश प्राप्त करने पर ही संचार प्रक्रिया पूर्ण नहीं होती, जब तक कि संदेश प्राप्तकर्ता सन्देश भेजने वाले के सही अर्थ भाव को नहीं समझता एवं अपनी प्रतिक्रिया अथवा प्रतिपुष्टि सन्देश प्रेषक को प्रदान नहीं करता। अत: सन्देशवाहन दोहरा आदान प्रदान है, न कि एक तरफा।

(4) सन्देश की अनिवार्यता (Message is Must)-बिना सन्देश के संचार नहीं हो सकता है, अत: संचार में सन्देश का होना अनिवार्य है। यदि सन्देश नहीं है तो संचार असम्भव है।

(5) संचार/सम्प्रेषण मौखिक, लिखित एवं सांकेतिक हो सकता है (Communication may be Written/Oral/Gestural)-संचार सामान्यत: मौखिक अथवा लिखित रूप में होता है परन्तु इसमें होठों, आँखों तथा हाथों का विक्षेप भी महत्त्वपूर्ण होता है। शारीरिक भाषा या इशारों या संकेतों के द्वारा भी मनुष्य अपनी बात दूसरे व्यक्तियों तक पहुँचा सकता है।

(6) संचार/सम्प्रेषण में उचित माध्यम की आवश्यकता (Need of Proper Medium)-संचार के लिये उचित माध्यम का चयन अत्यन्त आवश्यक है। सन्देश देने के लिये उस संचार माध्यम का प्रयोग आवश्यक है जो सन्देश की विषय-वस्तु से मेल खाता है।

(7) संचार/सम्प्रेषण एक प्रबन्धकीय कार्य है (Communication is a Managerial Function)-संचार एक प्रबन्धकीय कार्य एवं संस्था के कार्यों के निष्पादन के लिये एक महत्त्वपूर्ण उपकरण है। नियन्त्रण प्रक्रिया का मूलाधार संचार ही है जिसके द्वारा कर्मचारियों एवं कार्य पर नियन्त्रण प्राप्त किया जाता है। कर्मचारियों के मध्य सौहार्दपूर्ण वातावरण भी प्रभावी संचार के द्वारा ही बनाया जा सकता है।

(8) सम्बन्ध विकसित करने का यन्त्र (Tool of Relation Development)-व्यवसाय के लिये संचार, सम्बन्ध स्थापित करने तथा उन्हें विकसित व प्रबल बनाने का एक यन्त्र है।

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व्यावसायिक संचार/सम्प्रेषण की आवश्यकता क्यों है?

(Why Business Communication?)

व्यावसायिक संस्थानों के लिये संचार/सम्प्रेषण की आवश्यकता को निम्नांकित बिन्दुओं के आधार पर स्पष्ट किया जा सकता है

(1) व्यावसायिक संस्थान की जटिलताएँ (Complexities of Business Organisation)-आधुनिक व्यावसायिक संस्थानों के कार्यों में अत्यधिक वृद्धि होने के कारण अब ये संस्थान साधारण फर्मों से बढ़कर जटिल ढाँचे में बदल चुके हैं। इनमें हजारों कर्मचारी फैक्टरी तथा कार्यालयों में कार्य पर रखने पड़ते हैं तथा इनका कारोबार देश के विभिन्न भागों तथा विदेशों में भी फैला होता है। अपनी विभिन्न शाखाओं को समन्वित करने के लिए एवं प्रभावी संगठन के लिए उन्हें अविरल संचार सुनिश्चित करना पड़ता है।

(2) सचना तकनीकी क्रान्ति (Information Technology Revolution)-बीसवीं सदी के अन्तिम दशक में हुई सूचना तकनीकी क्रान्ति ने व्यवसाय की सभी क्रियाओं को परिवर्तित कर दिया है। कम्प्यूटर और इन्टरनेट के विस्तार के साथ, सूचना की उपलब्धता में आश्चर्यजनक वृद्धि हुई है तथा अधिशासियों एवं कर्मचारियों में विचारों का आदान प्रदान आसान हो गया है और इसने भोगौलिक सीमाओं को भी पार कर लिया है। ई-मेल के यग में संस्थाओं को नए संचार उपकरण लगाने ही पड़ेगे जो शीघ्र से शीघ्र, कम से कम समय में सूचना प्रदान कर सकें। । (3) बढ़ती हुई विशिष्टताएँ (Growing Specializations)-व्यवसाय का

(3) बढंती हुई विशिष्टताएँ (Graminashecializations) व्यवसाय की जटिलताओं के साथ, सस्था के भिन्न-भिन्न कार्य विशिष्ट कर्मचारियों की देख-रेख में होते हैं। संस्था के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए, शक्ति एवं प्रयास ठीक दिशा में अग्रसर हो रहे हैं. इसे सुनिश्चित करने के लिए विशिष्ट कर्मचारियों में समन्वय आवश्यक है। विश्वास. समन्वय और आपसी समझ का वातावरण बनाने के लिए अच्छा संचार आवश्यक है।

(4) बढ़ती हुई प्रतिस्पर्धा (Growing Competetion)-उदारीकरण एवं वैश्वीकरण के साथ व्यवसायों में प्रतिस्पर्धा बढ़ गई है और ग्राहक को अच्छे से अच्छे उत्पाद, बढ़िया और शीघ्र सेवा के साथ उपलब्ध हैं। नए ग्राहक बनाने के लिए और पुराने ग्राहकों को बनाए रखने के लिए व्यवसायी को प्रभावी संचार प्रतिभा की आवश्यकता है। उसे विज्ञापन, विक्रय संवर्द्धन, व्यक्तिगत विक्रय आदि के द्वारा उत्पाद के विक्रय को प्रोत्साहित करना पड़ता है।

(5) विश्व एक गाँव (Global Village) उदारीकरण एवं वैश्वीकरण की तीव्र लहरों के साथ विश्व एक गाँव बन कर रह गया है, जहाँ व्यवसाय के लिए भिन्न-भिन्न देशों में कार्य करना होता है। इसके लिए इसे भिन्न-भिन्न देशों के लोग कार्य पर रखने होते हैं और उनसे बातचीत करनी पड़ती है। अत: ऐसे संचार की आवश्यकता होती है जो सांस्कृतिक सीमाओं को पार कर सके।

(6) व्यापार संघ (Trade Unions)-आज के युग में उत्तरदायी एवं जिम्मेदार व्यापार संगठन. प्रबन्धकों पर अनेक प्रकार के दबाव डालते हैं। प्रबन्ध को संगठन के नेताओं के साथ स्वस्थ एवं लयबद्ध सम्बन्ध, बनाकर रखने पड़ते हैं और नेताओं को प्रभावित भी करना पड़ता है। इसके लिए प्रभावी संचार की आवश्यकता होती है।

(7) संचार कला की भूमिका (Role of Communication Skill)-संचार कला व्यवसाय की सफलता में निर्णायक एवं प्रभावशाली भूमिका निभाती है। किसी के पास कितना भी व्यवसायिक और विशिष्ट ज्ञान क्यों न हो, बेशक उसके पास रचनात्मकता और तीव्र बुद्धिमत्ता क्यों न हो, ये सब सफलता दिलाने की गारण्टी नहीं हो सकते। व्यक्ति को प्रभावी ढंग से संचार करना आना चाहिए। बरेन दैसी ने सत्य कहा है, “आपकी सफलता प्राप्त करने की योग्यता और अपना कर्त्तव्य अच्छी तरह निभाने की योग्यता, आपकी प्रभावी संचार करने की योग्यता के साथ जुड़ी हुई है। प्रबन्धक के रूप में आपके जीवन की गुणवत्ता आपकी संचार करने की योग्यता से ही जानी जाएगी।” (Your ability to communicate effectively is closely tied to your ability to perform effectively to get the results for which you were hired. The quality of your communication with others will determine the quality of your as a manager.)

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व्यावसायिक संचार/सम्प्रेषण के उद्देश्य या कार्य

(Objects or Functions of Business Communication)

व्यावसायिक संचार/सम्प्रेषण के प्रमुख उद्देश्य या कार्य निम्नलिखित हैं

(1) सही सूचनाएँ एवं सन्देश देना (Give Accurate Information)संचार का मुख्य उद्देश्य सही व्यक्ति को सही सूचना एवं सन्देश पहुँचाना होता है। सन्देश पूर्ण रूप से समझने योग्य तथा प्राप्तकर्ता द्वारा उसी रूप में समझना चाहिए जिस रूप में प्रेषणकर्त्ता उसे समझाने का प्रयास कर रहा है। इस हेत सुचना प्रेषणकर्ता को उचित संचार माध्यम का प्रयोग करना अत्यन्त आवश्यक होता है ताकि सुचनाग्राही तक सूचना उचित तथा अपरिवर्तित अर्थ सहित पहँचे।।

(2) मधुर औद्योगिक सम्बन्धों का सृजन (Development of Positive Industrial Rajation) सम्प्रेषण प्रक्रिया की सहायता से औद्योगिक सम्बन्धों में मधुरता उत्पन्न की जा सकती है। सम्प्रेषण प्रक्रिया के द्वारा सभी पक्ष एक-दूसरे की भावनाओं, दृष्टिकोणों एवं विचारों का आदान-प्रदान करते हैं। इससे अच्छे औद्योगिक सम्बन्धों का निर्माण होता है। बेहतर सम्प्रेषण के द्वारा नियोक्ता और। कर्मचारी एक दूसरे की भावनाओं और विचारों से अवगत हो जाते हैं, जिससे गलतफहमी की कोई। गुजाइश नहीं रहती।

(3) प्रबन्धकीय कौशल में वृद्धि करना (Improvement of Management Skill)-कुशल संचार व्यवस्था, प्रबन्धकीय कुशलता में वृद्धि करती है। प्रबन्धक, संस्था में घटित होने वाली विभिन्न घटनाओं के सम्बन्ध में तथ्यों, विचारों, दृष्टिकोणों, सूचनाओं एवं भावनाओं को आसानी से प्राप्त कर निर्णय लेने में सक्षम होते हैं जो न केवल उनके कौशल को बढ़ाते हैं बल्कि संस्था का विकास भी उनमें निहित होता है।

(4) व्यावसायिक क्रियाओं में समन्वय (Co-ordination in Business Activities)-व्यवसाय द्वारा निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये यह आवश्यक है कि समस्त व्यावसायिक क्रियाओं, विभागों तथा उपविभागों में समन्वय हो। संचार इस कार्य को सुचारु रूप से करता है। वस्तुतः समन्वय के लिये सम्प्रेषण एक पूर्व आवश्यक शर्त है।

(5) नीतियों को प्रभावशाली बनाना (Make Policies Effective)-औद्योगिक संस्था . कर्मचारियों के मार्गदर्शन हेतु एवं उत्पादन में वृद्धि के लिए नीतियों एवं कार्यक्रमों का सृजन करती है तथा उन नीतियों एवं कार्यक्रम को उनसे सम्बन्धित व्यक्तियों तक पहुँचाती है। यह कार्य केवल प्रभावी सम्प्रेषण के द्वारा ही मूलरूप से सम्बन्धित पक्षों तक प्रेषित किया जा सकता है।

(6) सन्देहों/भ्रमों को दूर करना (To Avoid Confusion)-व्यवसाय में प्रत्येक सूचना विभिन्न स्तरों से होकर गुजरती है तथा प्रत्येक व्यक्ति अपनी बद्धि के अनुसार उसका अर्थ निकालते हैं, जिससे कभी-कभी भ्रम पैदा हो जाते हैं। सम्प्रेषण में भ्रम उत्पन्न होना सम्प्रेषण का सबसे बड़ा शत्रु है। सम्प्रेषण को मूलरूप में बनाये रखने के लिए भ्रमों को दूर करना अत्यन्त आवश्यक है।

(7) परिवर्तनों को लागू करना (Implement Changes) कण्ट्ज एवं ओ’ डोनेल ने कहा है-“अपने व्यापक अर्थों में उपक्रम में सम्प्रेषण का उद्देश्य परिवर्तन को लागू करना है।” आज की अर्थव्यवस्था बाजारोन्मुखी है, जिसमें व्यावसायिक परिवर्तन अत्यन्त तीव्र गति से हो रहे हैं। प्रभावी सम्प्रेषण व्यवस्था होने पर परिवर्तनों को शीघ्र ही लागू किया जा सकता है, अन्यथा विलम्ब करने पर हानि होने की संभावना उत्पन्न हो जाती है।

(8) शीघ्र निर्णयन एवं उनका क्रियान्वयन (Rapid Decision and Implementation)-व्यवसाय में महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने से पूर्व सम्बन्धित सूचनाओं का संकलन आवश्यक होता है। इसके लिये प्राथमिक स्तर पर सम्प्रेषण प्रक्रिया को ही अपनाया जाता है। निर्णय को, प्रभावशाली ढंग से क्रियान्वित करने के लिये पुन: सम्प्रेषण प्रक्रिया की सहायता ली जाती है। इस प्रकार निर्णय लेने एवं उन्हें क्रियान्वित करने के लिये सम्प्रेषण प्रक्रिया की आवश्यकता पड़ती है।

(9) माल अथवा सेवाओं की बिक्री (Sale of Goods or Services)-माल अथवा सेवाओं की बिक्री के द्वारा व्यापार में लाभ कमाया जाता है। इनकी बिक्री व्यावसायिक संचार द्वारा ही सम्भव है। सम्भावित ग्राहकों को अपने माल की गुणवत्ता के बारे में जानकारी केवल व्यावसायिक संचार द्वारा ही दी जा सकती है। चाहे विज्ञापन हो, पत्र व्यवहार अथवा व्यक्तिगत तौर पर माल खरीदने के लिए प्रेरित करना व्यावसायिक संचार का ही कार्य है।

(10) पूर्तिकर्ताओं के साथ सम्बन्ध (Relations with Suppliers)-यदि व्यवसाय में माल का निर्माण किया जाता है अथवा बने हुए माल की बिक्री की जाती है, प्रत्येक स्थिति में कच्चा या बने माल की आवश्यकता होती है। कच्चा माल किस किस्म का, कब, मात्रा इत्यादि सूचनाओं को पूर्तिकर्ता तक पहुँचाने का कार्य व्यावसायिक संचार का ही है। क्रय किए जाने वाले माल के सम्बन्ध में जानकारी, पूर्ति की शर्ते, भुगतान सभी के लिए व्यावसायिक संचार की आवश्यकता पड़ती है।

(11) अन्य पक्षों को सूचना (Information to other Parties) व्यावसायिक संचार का एक महत्त्वपूर्ण कार्य अन्य पक्षों को सूचनाएँ देने का भी है। व्यवसाय के दौरान बैंक, सरकारी अधिकारियों, दूसरे व्यावसायिक सहयोगियों, अन्वेषक इत्यादि व्यक्तियों से सूचनाओं का आदान-प्रदान आवश्यक होता है। यह सब केवल व्यावसायिक संचार द्वारा ही सम्भव है। सरकारी नियमों की जानकारी, उनका स्पष्टीकरण तथा पालन हर व्यवसाय के लिए आवश्यक है। व्यवसाय शुरू करने से पहले सरकारी आज्ञा से लेकर बिक्री कर, उत्पादन कर, आयकर इत्यादि सभी विभागों से तालमेल केवल व्यावसायिक संचार का ही कार्य है। यदि व्यवसाय कम्पनी के रूप में संचालित किया जा रहा है, तो अंशधारियों से सम्बन्धित सभी कार्य भी व्यावसायिक संचार के अन्तर्गत आते हैं।

(12) व्यवसाय की ख्याति उत्पन्न करना (To create Goodwill for the Business)-प्रत्येक व्यवसाय की प्रगति तथा उन्नति में ख्याति का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। व्यावसायिक संचार, व्यवसाय की ख्याति उत्पन्न करने में और उसे बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भमिका निभाता है।

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संचार/सम्प्रेषण के तत्त्व

(Elements of Communication)

संचार का विभिन्न विद्वानों द्वारा दी गई परिभाषाओं के आधार पर संचार के मुख्यतया निम्नलिखित तत्त्व स्पष्ट होते हैं

(1) संदेश भेजने वाला या प्रेषक (Sender) संचार प्रक्रिया का एक महत्त्वपूर्ण अंग वह व्यक्ति हाता है जो सूचना या संवाद देता है। इस प्रकार प्रेषक से तात्पर्य संवाद देने वाले से है। पूर्ण एवं सही सचार के लिये यह आवश्यक है कि संवाद. प्रेषक के मस्तिष्क में स्पष्ट होना चाहिये। प्रेषक को संवाद प्राप्तकत्ता की स्थिति, योग्यता एवं प्रकृति आदि को ध्यान में रखकर ही संवाद का स्वरूप एवं साधन निश्चित करना चाहिये।

(2) संदेश या संवाद (Message)-संवाद से तात्पर्य उस विचार या सूचना से है जो संवाददाता द्वारा संवाद प्राप्तकर्ता को प्रेषित की जाती है। संवाद से वही अर्थ स्पष्ट होना चाहिये जो संवाददाता या सन्देश प्रेषक (संचारक) के मस्तिष्क में है। यदि संवाद प्राप्तकर्ता संवाद को उसी अर्थ में नहीं समझ पाता जो सन्देश प्रेषक का है, तो इसे संचार नहीं कहा जा सकता।

(3) संकेत चिन्ह (Encoding) किसी संदेश को समझाने की विधि को संकेत चिन्ह (Encoding) कहते हैं। संदेश मन में एक विचार के रूप में उत्पन्न होता है। उस विचार को शब्दों. चिन्हों, तस्वीरों तथा दैहिक भाषा (Body Language) के रूप में प्रेषित किया जा सकता है अन्यथा प्राप्तकर्ता के लिये संवाद को समझना सम्भव नहीं होगा। अतएव संदेश को शब्दों या किसी अन्य रूप में प्रेषित करने की विधि को संकेत चिन्ह (Encoding) कहा जाता है। संकेत चिन्ह का अर्थ है-विचारों को संकेतों अथवा भाषा में बदलना। संकेत चिन्ह वह मानसिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा प्रेषक विचारों को संकेतों में बदलता है। संचार के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुये संकेत चिन्ह (Encoding) के लिये शब्दों, या चिन्हों का चुनाव इस प्रकार करना चाहिये कि प्राप्तकर्ता संवाद को उचित प्रकार से सही तौर पर समझ सके।

(4) संदेश का माध्यम (Medium of Message)-संदेश माध्यम से आशय उस साधन से लगाया जाता है, जिसके द्वारा संदेश का सम्प्रेषण किया जाता है। संवाददाता को विभिन्न संचार माध्यमों में से किसी एक माध्यम का चुनाव करना पड़ता है। मौखिक सम्प्रेषण के अन्तर्गत विभिन्न माध्यम जैसे टेलीफोन, आमने-सामने, सेमिनार, विचार गोष्ठियों आदि को सम्मिलित किया जाता है, जबकि लिखित सम्प्रेषण में पत्र व्यवहार, इन्टरनेट एवं ई-मेल आदि का प्रयोग किया जा सकता है।

(5) सन्देश प्राप्त करने वाला (Receiver)-सम्प्रेषण प्रक्रिया में संदेश प्राप्त करने वाला दूसरा सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण पक्ष होता है। प्रापक (संदेश प्राप्त करने वाले) के अभाव में सम्प्रेषण प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकती है। प्रापक न केवल संदेश का प्राप्तकर्ता ही होता है वरन संदेश की व्याख्या भी करता है तथा संदेश में निहित अर्थ को भी समझता है।

(6) विसंकेतन (Decoding)–विसंकेतन (Decoding) वह मानसिक प्रक्रिया है जिसमें प्राप्तकर्ता संवाद के शब्दों, या दृश्यों में निहित भाव अर्थात् अर्थ को समझता है। यदि प्राप्तकर्ता शब्दों या संकेतों के अर्थ ठीक ढंग से समझता है तो वह संदेश में निहित भाव को सही रूप में समझ सकता है।

(7) प्रतिपुष्टि (Feedback)–प्राप्तकर्ता की संदेश के उत्तर में प्रतिक्रिया को ही प्रतिपुष्टि कहते हैं। संदेश प्राप्त करने के बाद प्राप्तकर्ता उसके लिये प्रतिक्रिया प्रकट करता है, जिससे प्रेषक को यह ज्ञात हो जाता है कि प्राप्तकर्ता को उसका संदेश प्राप्त हो गया है और उसकी क्या प्रतिक्रिया है। सम्प्रेषण का उद्देश्य न केवल सूचना देना होता है बल्कि व्यवसाय में इसके अनुसार कार्यवाही करने के लिए प्रेरित करना होता है। सन्देश प्राप्तकर्ता द्वारा कोई कार्यवाही करना, सन्देश के प्रति उसकी प्रतिक्रिया पर निर्भर करता है। अतः सम्प्रेषण को प्रभावी बनाने के लिए प्रतिक्रिया का अनुमान करना आवश्यक होता है।

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संचार/सम्प्रेषण की प्रकति

(Nature of Communication)

सम्प्रेषण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये प्रयास किये जाते हैं। सम्प्रेषण की प्रकृति का निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत अध्ययन किया जा सकता है

(1) सम्प्रेषण एक व्यापक प्रकिया है (Communication is a Wide Activity)-सम्प्रेषण में। केवल सचना ही प्रेषित नहीं की जाती बल्कि इसमें एक व्यक्ति अपने विचारों से अन्य पक्ष को अवगत । कराता है, उनके विचार प्राप्त करता है तथा परामर्श करके अपने विचारों में संशोधन एवं परिवर्तन भी । करता है। इसमें अधिकारियों द्वारा अपने अधीन कार्य करने वालों को आदेश व निर्देश प्रदान किये जाते हैं। व्यावसायिक संचार तथा कर्मचारी भी अपनी कठिनाईयाँ व सझाव अधिकारियों के सामने प्रस्तुत कर सकते हैं। अत: सम्प्रेषण एक व्यापक क्रिया है।

(2) सम्प्रेषण विज्ञान कला दोनों है (Communication is both Science And Art)-सम्प्रेषण प्रक्रिया में विज्ञान एवं कला दोनों के तत्त्व पाए जाते हैं। सम्प्रेषण प्रक्रिया को सम्पूर्ण एवं प्रभावी बनाने के लिए केवल क्रमबद्ध एवं व्यवस्थित ज्ञान ही पर्याप्त नहीं है बल्कि प्रस्तुत करने की अभिव्यक्ति भी आवश्यक है। कला एवं विज्ञान दोनों के उचित मिश्रण से ही सम्प्रेषण को प्रभावी बनाया जा सकता है। अतः सम्प्रेषण कला एवं विज्ञान दोनों है।

(3) सम्प्रेषण एक सार्वभौमिक प्रक्रिया है (Communication is an Universal Process)-सम्प्रेषण एक सर्वव्यापक क्रिया है। यह न केवल व्यवसाय बल्कि समाज, राजनीति, धर्म एवं अर्थव्यवस्था में भी समान रूप से उपयोगी एवं आवश्यक है। सम्प्रेषण सभी जगह विद्यमान है तथा इसके सिद्धान्त सार्वभौमिक प्रकृति के होते हैं।

(4) सम्प्रेषण एक सामाजिक प्रक्रिया है (Communication is a Social Activity)-सम्प्रेषण की आवश्यकता केवल व्यावसायिक संस्थाओं में ही नहीं होती बल्कि समाज के प्रत्येक व्यक्ति द्वारा यह प्रक्रिया अपनाई जाती है। समाज के प्रत्येक व्यक्ति की अनिवार्य आवश्यकताओं एवं इच्छाओं की पूर्ति के लिए सम्प्रेषण एक यन्त्र के रूप में कार्य करता है। सम्प्रेषण सम्पूर्ण समाज को प्रभावित तथा लाभान्वित करता है, इसलिए इसे एक सामाजिक प्रक्रिया भी कहा जाता है।

(5) सम्प्रेषण एक मानवीय प्रक्रिया है (Communication is a Human Activity)-सम्प्रेषण की सम्पूर्ण प्रक्रिया, व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह के मध्य ही सम्पन्न होती है, इसलिये इसे एक मानवीय प्रक्रिया भी कहा जाता है।

(6) सम्प्रेषण, कार्यों के निष्पादन की आधारशिला है (Communication is basis of Performance of Work)-सम्प्रेषण द्वारा ही व्यक्तियों को कार्य करने के लिए प्रेरित किया जाता है, इसके द्वारा ही कर्मचारियों को यह ज्ञात होता है कि उन्हें क्या, कब, कहाँ और कौन-सा कार्य करना है? अपने कार्यों का मूल्यांकन कराकर उनमें सुधार लाने की प्रक्रिया के रूप में सम्प्रेषण की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। अत: सम्प्रेषण, कार्यों के निष्पादन की आधारशिला है।

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व्यावसायिक संस्थान में व्यावसायिक सम्प्रेषण/संचार का महत्त्व

(Importance of Business Communication in Business Enterprises)

अथवा

(Or) प्रबन्धकों के लिये सम्प्रेषण/संचार का महत्त्व

(Importance of Communication for Managers)

आधुनिक यग में प्रबन्ध और व्यवसाय में प्रभावी सम्प्रेषण का महत्त्वपूर्ण स्थान है। अब व्यवसाय का क्षेत्र स्थानीय, प्रान्तीय तथा राष्ट्रीय सीमाओं को पार करके अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में पहुंच चुका है। अत: व्यवसाय के सफल संचालन हेतु सुव्यवस्थित सम्प्रेषण पद्धति आज की आवश्यकता बन गई है। नीतियों एवं नियोजन का क्रियान्वयन कार्य प्रगति एवं नियन्त्रण, अधीनस्थों की कठिनाइयाँ एवं उनका निराकरण, सामूहिक निर्णयन एवं प्रबन्ध में हिस्सेदारी, अभिप्रेरित एवं ऊँचे मनोबल वाले मानव संसाधन आदि के लिए प्रभावी आन्तरिक सम्प्रेषण आवश्यक होता है। इसीलिए थियो हैमन ने कहा है “प्रबन्धकीय कार्यों की सफलता प्रभावी सम्प्रेषण पर निर्भर है।”

व्यवसाय के सफल संचालन के लिये सम्प्रेषण के महत्त्व को स्पष्ट करते हुए कीथ डेविस ने लिखा है कि “सम्प्रेषण व्यवसाय के लिये उसी प्रकार आवश्यक है जिस प्रकार मनुष्य के लिये रक्त प्रवाह आवश्यक है।” प्रबन्धकों के लिये व्यावसायिक सम्प्रेषण के महत्त्व को निम्नलिखित प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है

(1) व्यवसाय का सफल संचालन (Successful Operation of the Business)-व्यावसायिक क्रियाओं के सफल संचालन के लिये आन्तरिक एवं बाह्य पक्षों से निरन्तर सम्पर्क बनाए रखने के लिये संचार की आवश्यकता होती है। हेरोल्ड मॉस्किन के अनुसार, “संचार व्यवस्था हमारे व्यवसाय के संचालन में अधिकाधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। हमें अनेक व्यक्तियों को सचना देनी होती है. अनेक व्यक्तियों को सुनना होता है तथा उनसे समस्याओं के सुलझाने में सहायता लेनी पड़ती है और अन्य अनेक विषयों के सम्बन्ध में बातचीत करनी होती है।” इस प्रकार सम्प्रेषण व्यवसाय के सफल संचालन में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है। इसीलिये थियो हैमन ने कहा है कि “सम्प्रेषण एक दूसरे के मध्य सूचना एवं समझदारी बनाए रखने की प्रक्रिया है।”

 (2) संगठन के समन्वय में सहायक (Helpful in Co-ordination of Organisation)व्यावसायिक संगठन के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये, इसके विभिन्न समूहों के बीच समन्वय एव काय एकरूपता का होना नितान्त आवश्यक है। यह समन्वय तभी सम्भव हो सकता है जबकि उनके मध्य सन्देशो एवं विचारों का आदान-प्रदान सरलता एवं सगमता से हो सके। सम्प्रेषण ही ऐसा माध्यम है जो अबन्धका का विचारी एवं सन्देशों के आदान-प्रदान का सुअवसर प्रदान करके संगठन म सदभाव एवं समन्वय बनाए रखने में सहायता करता है।

(3) प्रबन्धकीय कार्यों का आधार (Basis of Managerial Functions)-प्रभावशाली सम्प्रेषण प्रबन्ध की आधारशिला है क्योंकि इसकी आवश्यकता निर्देश में ही नहीं बल्कि प्रबन्ध के प्रत्येक कार्य में पड़ती है। प्रबन्ध अपने सहयोगियों एवं अधीनस्थों से विचार-विमर्श करके ही योजनायें बनाता है और सम्प्रेषण द्वारा ही वह निर्धारित उद्देश्यों नीतियों एवं कार्यक्रमों से दूसरों को अवगत कराता है। सम्प्रेषण के अभाव में नियोजन एक कागजी कार्यवाही है। चेस्टर वारनार्ड के अनुसार, “सम्प्रेषण की व्यवस्था का विकास करना एवं उसे बनाये रखना प्रबन्ध का प्रथम कार्य है।”

(4) बाह्य संस्थाओं से श्रेष्ठ सम्पर्क (Good Relations with External Institutions)आधुनिक युग गलाकाट प्रतिस्पर्धा का युग है। व्यापारिक सफलता के लिए संस्था का बाह्य संसार से बेहतर और मधुर सम्पर्क बनाये रखना अत्यन्त आवश्यक होता है। एक संस्था संचालक या प्रबन्धक को प्रशासनिक तन्त्र, उपभोक्ता संगठनों, श्रम संघों, सरकार एवं अन्य सम्बन्ध व्यक्तियों से सम्प्रेषण बनाये रखना होता है। इससे संस्था बाहरी पक्षकारों की भावनाओं को समझ सकती है तथा उन्हें अपनी समस्याओं एवं प्रगति से अवगत कराकर अच्छे सम्बन्ध स्थापित कर सकती है।

(5) व्यवसाय सन्तुष्टि द्वारा उच्च उत्पादकता की प्राप्ति (Achieving High Productivity through Job Satisfaction)-संचार के माध्यम से व्यवसाय सन्तुष्टि की भावना विकसित होती है जिसका परिणाम संगठन के कर्मचारियों द्वारा उच्च उत्पादकता के परिणाम के रूप में परिलक्षित होता है क्योंकि संचार के द्वारा ही व्यक्ति अपने व्यवसाय, भूमिका और सम्भावनाओं के बारे में बता सकते हैं। यदि संचार, असफल होता है तो संस्था के कर्मचारियों की सन्तुष्टि का स्तर गिरता है, फलस्वरूप उत्पादन पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

(6) प्रतियोगी सुचनाएँ प्राप्त करने में सहायक (Helpful in Providing Competitive Information)-वर्तमान प्रतिस्पर्धा के युग में केवल वही व्यवसाय जीवित रह सकता है जो प्रतिस्पर्धा की चुनौतियों का सामना करने के लिये निरन्तर अधिक से अधिक सूचनाएँ प्राप्त करता रहता है। प्रबन्धक प्रभावी सम्प्रेषण व्यवस्था के द्वारा उपयोगी सूचनाएँ प्राप्त करके चुनौतियों से निपटने के लिये सही कदम उठा सकते हैं।

(7) प्रजातान्त्रिक प्रबन्ध व्यवस्था (Democratic Management System)-प्रत्येक व्यवसाय में कार्यरत प्रत्येक व्यक्ति प्रबन्ध में भागीदारी चाहता है व एक कुशल प्रबन्धक ही अपने अधीनस्थों के लिए इस प्रकार का वातावरण निर्मित करता है जिससे वे अधिकाधिक रूप से प्रबन्धकीय निर्णयों में भागीदार हों। इसमें श्रेष्ठ एवं प्रभावी संचार की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है जिससे समस्त कर्मचारियों एवं अधिकारियों के मध्य निरन्तर सम्पर्क बना रहता है।

(8) मानवीय सम्बन्धों की स्थापना (Establish Human Relations)-कुशल सम्प्रेषण व्यवस्था के अभाव में अच्छे मानवीय सम्बन्धों की स्थापना नहीं हो सकती। राबर्ट डी० बर्थ के अनुसार, “बिना सम्प्रेषण के मानवीय सम्बन्धों की स्थापना तथा बिना मानवीय सम्बन्धों की स्थापना के सम्प्रेषण असम्भव है।” इस प्रकार स्पष्ट है कि ये दोनों ही एक दूसरे की स्थापना में सहायक हैं।

(9) सामूहिक नेतृत्व में सहायक (Helpful in Leadership)-सम्प्रेषण व्यवस्था द्वारा प्रबन्ध एवं कर्मचारी निरन्तर सम्पर्क में बने रहते हैं और विचारों, समस्याओं एवं सुझावों का आदान-प्रदान करते रहते हैं इससे कार्यों के सम्पादन में सामूहिक नेतृत्व की भावना उत्पन्न होती है। श्रमिक व कर्मचारी यह अनुभव करते हैं कि निर्णयन में उसकी सहभागिता है तथा व्यवसाय को उसकी आवश्यकता है जिससे संस्था में स्वस्थ कार्य वातावरण निर्मित होता है।

(10) भारार्पण एवं विकेन्द्रीकरण (Delegation and Decentralisation)-बड़े व्यावसायिक संगठनों में उच्च प्रबन्धक समस्त कार्यों की देखरेख स्वयं नहीं कर सकते इसलिए उन्हें भारार्पण व विकेन्द्रीकरण की प्रक्रिया को अपनाना पड़ता है तथा प्रभावी सम्प्रेषण की सहायता से ही भारर्पण व विकेन्द्रीकरण सफल हो सकता है।

उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि प्रबन्धकीय एवं व्यावसायिक प्रगति प्रभावी सम्प्रेषण प्रक्रिया पर। निर्भर करती है।अत: व्यवसाय में प्रबन्धकों को अपना अधिकांश समय सम्प्रेषण कार्यों में लगाना पड़ता। है। कोई भी प्रबन्धक अपने कार्य में सफल नहीं हो सकता यदि उसमें सम्प्रेषण क्षमता का अभाव है।।

Business Communication An Introduction

परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(Expected Important Questions for Examination)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

(Long Answer Questions)

1 व्यावसायिक सम्प्रेषण (संचार) से आप क्या समझते हैं? सम्प्रेषण की विशेषताएँ एवं उद्देश्यों की विस्तृत व्याख्या कीजिए।

What do you understand by business communication? Explain its features and objectives in detail.

2. व्यावसायिक सम्प्रेषण क्या है? इसकी आवश्यक विशेषताएँ बताइये तथा प्रबन्धकों के लिए इसके महत्त्व को समझाइये।

What is business communication? Explain its characteristics and importance for management.

3. सम्प्रेषण क्या है? व्यावसायिक संस्था में सम्प्रेषण का महत्त्व बताइये।

What is business communication? Explain its importance in a business firm.

4. सम्प्रेषण के आवश्यक तत्त्व एवं व्यवसाय प्रबन्ध में सन्देशवाहन के महत्त्व की विवेचना कीजिए।

Discuss the essential elements of communication and its importance for management.

5. व्यावसायिक सम्प्रेषण की आवश्यकता व महत्त्व पर प्रकाश डालिये।

Discuss the importance of business communication.

6. सम्प्रेषण क्या है? सम्प्रेषण की प्रकृति की विवेचना कीजिए।

What is communication? Explain the nature of communication?

7. सम्प्रेषण एक-दूसरे के मध्य सूचना एवं समझदारी बनाए रखने की प्रक्रिया है।”-थियो हैमन। कथन की विवेचना कीजिए।

“Communication means the process of passing information and understanding from one person to another.” -Thea Maiman. Explain this statement.

8. व्यावसायिक संवहन क्या है? आधुनिक समय में व्यावसायिक संवहन के बढ़ते महत्त्व के कारणों की विवेचना कीजिए।

What is business communication? Discuss the factors responsible for the growing importance of business communication in modern times.

Business Communication An Introduction

लघु उत्तरीय प्रश्न

(Short Answer Questions)

1 सम्प्रेषण से आप क्या समझते हैं?

What do you understand by Communication?

2. सन्देशवाहन के आवश्यक तत्त्वों को स्पष्ट कीजिए।

Explain the essential elements of Communication.

3. व्यावसायिक संचार के प्रुमख उद्देश्य बताइए।

Describe the main objects of Business Communication.

4. सम्प्रेषण की प्रकृति को स्पष्ट कीजिए।

Define the nature of Communication.

5. “सम्प्रेषण एक सफल प्रबन्धक की कुन्जी है।” स्पष्ट कीजिए।

“Communication is the key of successful manager.”‘ Explain.

6. व्यावसायिक सम्प्रेषण की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

What are the main features of business communication?

Business Communication An Introduction

 

 

chetansati

Admin

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