BCom 1st Year Business Communication Effective Listening Study Material Notes in Hindi

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BCom 1st Year Business Communication Effective Listening Study Material Notes in Hindi 

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Effective Listening Study Material
Effective Listening Study Material

BCom 1st year Insolvency Accounts Study Material notes In Hindi

प्रभावपूर्ण श्रवण

(Effective Listening)

एक सामान्य व्यक्ति के लिये श्रवण (Listening) का अर्थ है सुनना (Hearing), परन्तु श्रवण एवं सनने में पर्याप्त अन्तर होता है। श्रवण केवल सुनना ही नहीं है बल्कि उससे कहीं अधिक है। सुनने से आशय उस भौतिक क्रिया से है जिसके द्वारा ध्वनि तरंगें कानों से टकराती हैं। यह श्रवण प्रक्रिया का केवल एक भाग है क्योंकि श्रवण एक अन्तः सम्बन्धित प्रक्रिया है जिसमें भौतिक एवं मानसिक दोनों क्रियाएँ सम्मिलित होती हैं। श्रवण में ध्यान, समझना, व्याख्या करना, मूल्यांकन करना तथा प्रतिक्रिया करना आदि अन्त: सम्बन्धी क्रियाएँ सम्मिलित होती हैं।

‘श्रवण’ (Listening) संचार प्रक्रिया का एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण अंग है। यदि संचार प्रक्रिया में से श्रवण को निकाल दिया जाए तो संचार प्रक्रिया व्यर्थ हो जाती है। प्राप्त सन्देश को भली प्रकार समझ लेना ही वास्तव में श्रवण है। मान लीजिए कि किसी व्यक्ति ने दूसरे व्यक्ति से अंग्रेजी भाषा में कछ कहा और वह दूसरा व्यक्ति अंग्रेजी नहीं जानता तो उस व्यक्ति द्वारा प्राप्त सन्देश केवल सुना गया, समझा नहीं गया। अत: इसे श्रवण नहीं कहा जा सकता। इस प्रकार श्रवण शब्द का अर्थ सन्देश को ध्यानपूर्वक सुनकर उसके वास्तविक अर्थ को ग्रहण करना है। श्रवण प्रक्रिया सन्देश को प्राप्त करने से प्रारम्भ होती है तथा उसे समझ लेने तथा उस पर प्रतिक्रिया देने के बाद पूर्ण होती है। यह प्रक्रिया निम्नांकित चित्र के द्वारा स्पष्ट की जा सकती है

Business Communication Effective Listening

उपर्युक्त चित्र से स्पष्ट है कि सन्देश वाचन ही श्रवण प्रक्रिया का अंग है।

इस प्रकार जो सन्देश संचारित किया गया है उसे आत्मसात् कर लेने की प्रक्रिया ही श्रवण कहलाती है। अतः श्रवण का अर्थ है ध्वनियों के निहित भाव को सही रुप से समझना एवं उनकी व्याख्या करना।

कोई भी सन्देश तभी प्रभावपूर्ण होता है जब सन्देश देने वाला एवं सन्देश सुनने वाला आपसी समझ और तालमेल का परिचय देते हैं, लेकिन अधिकांश व्यक्ति इस बारे में अक्षम होते हैं तथा वे सुनने व सोचने के बारे में सावधानी नहीं रखते। अत: वे जितना सुनते हैं, उससे कुछ कम ही याद रख पाते हैं। इस प्रकार अप्रभावी श्रवणता संचार को भी अप्रभावी बना देती है तथा संचार का उद्देश्य सफल नहीं हो पाता। प्रभावपूर्ण श्रवण के लिये सन्देश प्राप्त करने वाले की इच्छा, तत्परता, स ते, सहयोग आदि अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होते हैं। प्रभावपूर्ण श्रवण को निम्नांकित प्रकार परिभाषित किया जा सकता है

“प्रभावपूर्ण श्रवण से अभिप्राय सुनने की उस कुशलता से है जिसमें श्रोता यह सक्रिय रूप से प्रकट करता है कि उसने वक्ता को ध्यान से सुना है और समझा है और वक्ता की बात की प्रतिपुष्टि की है जिसमें उसका शाब्दिक अथवा भावनात्मक अर्थ अथवा दोनों हैं।”

Business Communication Effective Listening

प्रभावी श्रवण के सिद्धान्त

(Principles of Effective Listening)

प्रबन्धकों के लिए श्रवण करने की क्षमता एक अनिवार्य कशलता है क्योंकि इस क्षमता की उपस्थिति उन्हें अपने कर्त्तव्य तथा दायित्व को प्रभावी तरीके से सम्पन्न करने में सहायक होती है। प्रभावपूर्ण श्रवणता के लिए निम्नलिखित सिद्धान्तों का पालन आवश्यक है

(1) स्पष्टता का सिद्धान्त (Principle of Clarity)-प्रभावी श्रवण के लिये विचारों में स्पष्टता का होना अत्यन्त आवश्यक होता है। यदि सन्देश देने वाला व्यक्ति अपने विचारों में स्पष्ट नहीं है तो सन्दश प्राप्त करने वाला उसे सही अर्थ में ग्रहण नहीं कर पाएगा।

जो व्यक्ति सन्देश दे रहा है उसे निश्चित करना होता है कि सन्देश क्यों, कैसे, क्या तथा किस दिया जा रहा है। सन्देश में सरल, स्पष्ट तथा सही शब्दों का प्रयोग किया जाना चाहिए। प्रभावा श्रवण क लिये सन्देश में छोटे-छोटे वाक्यों का ही प्रयोग करना चाहिए।

सन्देश देते समय भ्रम/गलतफहमी उत्पन्न करने वाले तथा द्विअर्थी शब्दों का प्रयाग नहा करना चाहिए। सन्देश में यदि कुछ कोड शब्दों का प्रयोग किया जाता है तो वे ऐसे होने चाहिये जो आसानी से समझ में आ सकें।

(2) संक्षिप्तता का सिद्धान्त (Principle of Conciseness)-प्रभावपूर्ण श्रवण के लिये सन्देश एसा होना चाहिए जो कम शब्दों में अधिक अर्थपूर्ण बात कहे क्योंकि लम्बे सन्देश को प्रभावी तरीके से याद रख पाना अत्यन्त कठिन होता है। इसके लिये ऐसे शब्दों का चयन करना चाहिए जिससे सन्देश प्राप्तकर्ता सन्देश को उसका वास्तविक अर्थ खोए बिना उसके वास्तविक अर्थ में प्राप्त कर सके।

Business Communication Effective Listening

उदाहरण के लिये

I have followed it – Followed

After studying it is clear – Cleared

सन्देश प्राप्तकर्ता को सन्देश की व्याख्या करते समय सन्देश में प्रयुक्त संकेतों, चित्रों तथा शब्दों के अर्थ पूर्णतया ज्ञात होने चाहियें अन्यथा सन्देश प्राप्तकर्ता को प्राप्त किये गये सन्देश का अनुवाद करते समय भ्रम उत्पन्न हो सकता है। संचार करते समय प्रेषक को अनावश्यक तथ्यों को छोड़ देना चाहिये। संचार का उद्देश्य कर्मचारियों को सन्देश देना ही नहीं बल्कि व्यवसाय के अन्तर्गत सन्देश के अनुरुप कार्य कराना होता है और यह केवल तभी सम्भव है जब सन्देश, सन्देश प्राप्तकर्ता द्वारा सही अर्थों में समझा जाए।

(3) विचारणीयता का सिद्धान्त (Principle of Consideration)-प्रभावी श्रवण के लिये यह आवश्यक है कि सन्देश, प्राप्तकर्ता को ध्यान में रखकर ही प्रेषित किया जाए। सन्देश में ‘मैं’ के स्थान पर ‘हम’ व ‘आप’ शब्दों का प्रयोग करना चाहिए तथा भाषा शिष्टाचारपूर्ण व विनयपूर्ण होनी चाहिए। विचारणीयता व्यक्त करने के लिए सकारात्मक रूख अपनाना चाहिए, तभी संचार प्रभावी होगा।

उदाहरण के लिए एक उत्पादक को अपने उत्पाद का विज्ञापन करने के लिए ‘हम’ शब्द का प्रयोग करना चाहिए। वे कह सकते है कि “हम ग्राहकों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए अपने व्यावसायिक कार्य दिवस सात दिन करते हैं।” इसी प्रकार हम ग्राहकों को विश्वास दिलाने के लिए निश्चित कीमत (Fixed Price) पर व्यवहार करते हैं। अतः आपसे प्रार्थना है कि व्यर्थ की सौदेबाजी न करके आप हमें सहयोग दे। आपके सहयोग की हम तत्परता से प्रतीक्षा कर रहे हैं।

(4) शुद्धता का सिद्धान्त (Principle of Correctness)-प्रभावी संचार के लिए शुद्धता का गण अत्यन्त आवश्यक होता है। संचार में शुद्धता लाने के लिए सही भाषा का प्रयोग करना चाहिए। भाषा औपचारिक और अनौपचारिक दोनों प्रकार की हो सकती है। समयानुसार इसका प्रयोग होना चाहिए। भाषा आसानी से समझ में आने वाली तथा व्यावहारिक होनी चाहिए। भाषा में शुद्धता का गुण भी होना चाहिए। संचार सही तथ्यों पर आधारित होना चाहिए। इसमें प्रयोग किये जाने वाले आँकड़े शुद्ध होने चाहिये। आँकडों को लिखने से पूर्व उनकी पर्याप्त जाँच होनी चाहिये। शुद्धता के लिए संचार में सही तथ्य, सही समय आदि का ध्यान रखा जाना चाहिए।

Business Communication Effective Listening

(5) शिष्टता का सिद्धान्त (Principle of Courtesy)-प्रभावी श्रवण का यह आधारभूत सिद्धान्त है। शिष्टता अन्य पक्षकारों पर अच्छा प्रभाव डालती है तथा शिष्टता और नम्रता के साथ दिए गए सन्देश को प्राप्तकर्ता प्रभावी तरीके से श्रवण करने में सक्षम हो पाता है।

शिष्टता में नम्रता का समावेश होता है। इसके माध्यम से दूसरों को सम्मान दिया जाता है। आज इसका व्यावहारिक रुप दूसरे प्रकार का है। केवल Please या Thanking you कहने मात्र से ही शिष्टता नहीं झलकती है। शिष्टता सम्बन्धी सचार के लिए निम्नलिखित सुझाव दिये जा सकते हैं

(i) आप सम्मान के योग्य हैं।

(ii) मैं आपका सम्मान करता हूँ।

(iii) आपकी कीर्ति देखने योग्य है।

(6) विशिष्टता का सिद्धान्त (Principle of Specificness)-सचार करत सा स्पार तथा निश्चित सूचनाओं का प्रयोग करना चाहिए। संचार में अनिश्चित सचनाओं का प्रयोग नहीं करना चाहए क्याक अनिश्चितता के आधार पर लिये गये निर्णय गलत सिद्ध हो सकते हैं। संचार में विशिष्टता लाने के लिये पहले से उपलब्ध सचनाओं की आपस में तलना करके अपनी बात कहनी चाहिए।

संचार में विशिष्टता लाने के लिये निम्नांकित बातों का ध्यान रखना आवश्यक है

(i) संचार में विशेष तथ्यों का समावेश करना चाहिए जिससे संचार अधिक प्रभावी बन सके।

(ii) संचार में सन्देश से सम्बन्धित उपलब्ध आँकड़ों का समावेश करना चाहिए जिससे सन्देश अधिक विश्वसनीय बन सके।

(iii) संचार में उपलब्ध सूचनाओं की तुलना करके अपनी बात कहनी चाहिये जिससे विचार अधिक स्पष्ट हो सके।

Business Communication Effective Listening

श्रवणता के प्रकार

(Types of Listening)

विभिन्न स्थितियाँ ही भिन्न-भिन्न श्रवण क्षमता को जन्म देती हैं। थिल एवं बोवी के अनुसार श्रवणता चार प्रकार की होती है

1 विषयगत श्रवणता (Content Listening)-विषयगत श्रवणता का मुख्य उद्देश्य प्रेषक द्वारा दी गई जानकारी को समझना एवं सूचनाओं का संग्रहण करना है। श्रोता का मुख्य कार्य प्रेषक के सन्देश के मुख्य बिन्दुओं की पहचान करना है। इसलिए श्रोता को कुछ मुख्य बातों पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए, जैसे पूर्वावलोकन, परिवर्तन तथा सार। सनने वाले के मस्तिष्क में प्रेषक द्वारा कही गई मुख्य बातों का प्रारुप बन जाना चाहिए। जिससे बाद में आप जाँच सकते है कि आपने क्या सीखा है। आप मुख्य बातों को लिख भी सकते है लेकिन आपका ध्यान मुख्य बातों पर ही होना चाहिए। इसमें यह बात महत्त्वपूर्ण नहीं है कि आप प्रेषक के तर्कों से सहमत हैं अथवा नहीं; महत्त्वपूर्ण बात यह है कि आप प्रेषक के दृष्टिकोण को अच्छी तरह समझ लें।

2. समीक्षात्मक श्रवणता (Critical Listening)-समीक्षात्मक श्रवणता का मुख्य उद्देश्य प्रेषक के कथन का अनेक स्तरों पर मूल्यांकन करना है जैसे प्रेषक का कथन तर्कसंगत है अथवा नहीं, उसके तर्कों की वैधता एवं उसके निष्कर्षों की प्रमाणिकता है अथवा नहीं, आपके लिए अथवा आपकी संस्था के लिए उस सन्देश का कोई महत्त्व है अथवा नहीं। प्रेषक का मुख्य अभिप्राय क्या है ? उसके कथन में महत्त्वपूर्ण एवं प्रासंगिक बातें सम्मिलित हैं अथवा नहीं, किन्तु जानकारी एकत्र करना एवं साथ-साथ उसका मूल्यांकन करना काफी कठिन है। अत: प्रेषक की बात समाप्त होने तक श्रोता को मूल्यांकन अपने तक ही सीमित रखना चाहिये। सामान्यत: समीक्षात्मक श्रवण में विचारों का आदान-प्रदान किया जाता है जिससे श्रोता प्रेषक के दृष्टिकोण को भली-भाँति समझ सके।

3. सहानुभूतिपूर्णश्रवण (Sympathetically Listening)-सहानुभूतिपूर्ण-श्रवणता का प्रमुख उद्देश्य प्रेषक की भावनाओं और आवश्यकताओं को समझना है, जिससे उसकी समस्याओं को सुलझाया जा सके। इसका मुख्य उद्देश्य प्रेषक की मनोः स्थिति (Psyche) को समझना है। सहानुभूतिपूर्ण-श्रवण के द्वारा प्रेषक उन भावनाओं को प्रकट कर पाता है जिनकी वजह से वह उन समस्याओं को सुलझा नहीं पा रहा है। प्रेषक की भावनाएँ उचित हैं अथवा अनुचित, इसका निर्णय करना श्रोता का अधिकार नहीं होता है, उसे तो केवल उसकी बातें सुननी होती हैं तथा सुझाव नहीं देना होता है।

4. सक्रियश्रवण (Active Listening)—सक्रिय श्रवणता सबसे महत्त्वपूर्ण होती है। श्रोता को प्रेषक द्वारा सन्देश में कही गई बातों को दोहराना पड़ता है जिससे सन्देश प्रेषक को यह ज्ञात हो जाए कि उसकी बातों को कोई समझ रहा है।

सक्रिय ढंग से सुनने वाला, सन्देश प्रेषक को अपनी बातें व्यक्त करने के लिए प्रोत्साहित करता है। श्रोता इस तरह का वातावरण बनाता है कि प्रेषक अपने विचार को पर्णतः व्यक्त कर पाए। श्रोता अपनी तटस्थ टिप्पणियों से प्रेषक को प्रोत्साहित करता है। सक्रिय श्रवण में श्रोता को पूरी तरह ध्यान केन्द्रित करना पड़ता है जिससे वह प्रेषक के विचारों को अच्छी तरह समझ सके। अत: सक्रिय श्रवण अत्यन्त कठिन कार्य है। इसमें श्रोता को भी उतनी ही शक्ति लगानी पड़ती है जितनी प्रेषक को।

इसके अतिरिक्त श्रवणता के अग्रलिखित अन्य प्रकार भी हैं

1 मिथ्या श्रवणता (Pretending Listening)-इसका अर्थ है, चेहरे के भावों से ध्यानपूर्वक सुनने का बहाना करना ताकि वक्ता समझे कि सन्देश का संचार ठीक प्रकार से हो रहा है। इसमें ध्यानपूर्वक कुछ नहीं सुना जाता केवल श्रवण (ध्वनि तरंगों का कानों से टकराना) ही होता है।।

2. चयनित श्रवणता (Selective Listening) चयनित श्रवणता का अर्थ है कि सन्देश को इसके शुद्ध स्वरुप में स्वीकार न करते हुए अपनी इच्छाओं या मन की तरंगों के अधीन, इसमें कुछ और जोड़ देना अथवा कुछ घटा देना. ‘ऐच्छिक’ भाग को चुन लेना और ‘अनैच्छिक भाग की अवहेलना कर देना। इस प्रकार का श्रवण, व्यक्ति के अपने विश्वास को और बल देता है लेकिन उसके ज्ञान की वृद्धि में रुकावट डालता है। चयनित श्रवण में प्रायः श्रोता अपने आप को स्थिति के साथ एकरूप करने का प्रयास तो करता है लेकिन कुछ अंश में न कि पूरी तरह से और दूसरों के जीवन में अपनी आत्मकथा को खोजने का प्रयास करता है।

3. एकाग्र श्रवणता (Attentive Listening)-एकाग्र श्रवणता का अर्थ है कि केवल उच्चारित शब्दों के अर्थ की तरफ ध्यान देना न कि इस बात को समझने का प्रयास करना कि वक्ता के मन और हृदय में क्या है।

4. जोरदार श्रवण (Emphatic Listening)-जोरदार श्रवण का अर्थ है केवल कानों से ही नहीं बल्कि आँखों और हृदय के माध्यम से भी सुनना। इसका अर्थ है किसी व्यक्ति को पूरी तरह से गहराई से, भावनात्मक रुप से और मानसिक रुप से समझने के लिए ध्यानपूर्वक सुनना।

कुछ लोग ऐसा अनुभव करते हैं कि जोरदार श्रवण जोखिम से भरा होता है क्योंकि इसका अर्थ है अपने आप को दूसरे के प्रभाव के लिए खुले छोड़ देना लेकिन “यह एक विरोधाभास है” स्टीफन कोवे लिखते हैं-“क्योंकि दूसरे पर प्रभाव डालने के लिए यह आवश्यक है कि आप भी उसके प्रभाव में आएँ। इसका अर्थ है तुम्हें स्वयं को समझने के स्थान पर दूसरों को समझना है।”

5. परस्पर रचनात्मकता के लिए श्रवणता (Listening for Mutual Creativity)-परस्पर रचनात्मकता और टिप्पणी के लिए विकसित हुई सद्भावना के साथ जब दो व्यक्ति एक दूसरे को ध्यानपूर्वक सुनने लगते हैं, तो इस तरह से दोनों में रचनात्मकता की चिंगारी इस सीमा तक फूटती है जिस सीमा तक वे अपने आप कभी नहीं पहुँच सकते। यह गहन श्रवण परस्पर एक दूसरे की रचनात्मकता को प्रेरित करता है तथा संसार में बहुत से नए आविष्कारों को जन्म देता है। ध्यानपूर्वक परस्पर रचनात्मकता के लिए श्रवण की जड़ें दो मुख्य प्रश्नों में होती हैं (1) आप क्या चाहते हैं ? और (2) जो आप चाहते हैं उसे प्राप्त करने में मैं आपकी सहायता कैसे कर सकता हूँ? दूसरों के सहयोग के लिए ध्यानपूर्वक श्रवण-उनके आदर्शों और इच्छाओं के लिए अपने मन, शरीर और आत्मा को लगा देना-शायद यह सबसे उत्तम उपहार है जो आप अपने साथियों को भेंट कर सकते हैं। उत्तम श्रवण, Synergistic श्रवण है। Synergy का अर्थ है पूर्ण, जो अंशों के समन्वय से हमेशा बड़ा होता है। रचनात्मकता के लिए श्रवण, हृदय एवं मन को जोड़ने वाला होता है और परस्पर समझ-बूझ की क्रिया को सुचारु रुप से चलाता है और इसकी गति तीव्र करता है। यह श्रवण मनुष्यों के मन के बोझ को कम करता है उनके हृदय को शान्त करता है और उनके अवचेतन मन में छुपे हुए विचारों को चेतन मन के धरातल पर ले आता है। इससे परस्पर रचनात्मकता में वृद्धि होती है।

6. अन्तःकरण श्रवणता (Intuitive Listening)-रचनात्मकता के लिए श्रवण की तरह अन्त:करण श्रवण भी, श्रवण की एक उत्कृष्ट किस्म है। इसका अर्थ है मन की बातचीत जो सदैव साथ-साथ चलती रहती है-को शान्त करके अन्तर्ज्ञानात्मक मन के द्वारा ध्यानपूर्वक श्रवण। इस प्रकार का श्रवण श्रोता के मन को मानसिक बातचीत से अलग और वंचित रखता है। एक दार्शनिक के अनुसार “मानसिक बातचीत से अलग करने का उद्देश्य ज्ञान बोध के सक्ष्म गणों की उन खिडकियों को खोलना है जो प्रायः शोरगल और रंग-बिरंगे विचारों, कल्पना आदि के पर्दे के पीछे छिपी रहती हैं।”

थोडे से अभ्यास और आध्यात्मिक क्रियाओं से इस प्रकार का अन्तर्ज्ञानात्मक श्रवण हम विकसित कर सकते है और इसे दूसरे मानवीय प्रयत्नों में भी विकसित कर सकते हैं।

Business Communication Effective Listening

प्रभावी श्रवण के आवश्यक तत्व

(Essential Points For Effective Listening)

श्रवण को प्रभावपूर्ण बनाने वाल आवश्यक तत्त्वों की विवेचना निम्नलिखित प्रकार की जा सकती

 (1) सन्देश अवधारणा-श्रवण को प्रभावी बनाने के लिये यह आवश्यक है कि श्रोता के पास सन्देश को आत्मसात करने की क्षमता हो। यदि वह सन्देश को सुनकर भूल जाता है तो संचार प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न हो जाती है।

 (2) ध्यान केन्द्रित करना-प्रभावी श्रवण के लिये आवश्यक है कि श्रोता सन्देश पर पूरा ध्यान केन्द्रित करे। मन को विचलित करने वाले बाह्य साधनों जैसे टी०वी०, रेडियो, नजदीक से आता शोर अथवा दूसरों की बातों को साथ-साथ सनना आदि बातों को त्यागकर सन्देश सुनना चाहिए।

 (3) बिना तर्क-वितर्क के श्रवण-श्रोता को सन्देश प्राप्त करते समय बोलना नहीं चाहिए तथा अनावश्यक तर्क वितर्क से बचना चाहिए।

(4) समयपूर्व मूल्यांकन न करना-श्रोता को पूरा सन्देश सुनकर ही सन्देश का मूल्यांकन करना चाहिए। यदि वह बीच में ही मूल्यांकन करने की भूल करता है तो यह सन्देश के साथ न्यायपूर्ण नहीं होगा।

(5) निष्पक्षता-प्रभावी श्रवण के लिये आवश्यक है कि श्रोता को सन्देश सुनते समय अपने मन में किसी प्रकार का पूर्वाग्रह नहीं रखना चाहिए अन्यथा वह सन्देश को उसके सही रूप में नहीं समझ सकेगा।

(6) विश्वसनीयता एवं सत्यता-सन्देश पर विश्वास दृढ़ करने के लिये श्रोता को विभिन्न प्रकार से सन्देश की विश्वसनीयता और सत्यता की जाँच कर लेनी चाहिए।

(7) खुले दिमाग से काम लेना-प्रभावी श्रवण के लिये श्रोता को खुले दिमाग से काम लेना चाहिए तथा नए विचारों को स्वीकार करने के लिये तैयार रहना चाहिए

(8) समान रूचि के बिन्दुओं की खोज-प्रभावी श्रवण के लिये श्रोता को ऐसे बिन्दुओं का पता लगाना चाहिए जो समान रूचि के हों इससे वह प्रेषक के दृष्टिकोण को सही प्रकार से समझ सकेगा।

(9) वक्ता के हाव-भाव को समझना–सन्देश सुनते समय श्रोता को वक्ता से नजरें मिलाकर सन्देश ग्रहण करना चाहिए। इससे वक्ता के हावभाव के द्वारा उसे कुछ अनकहे सन्देश का ज्ञान भी हो जायेगा जो कि प्रभावी श्रवण के लिए अत्यन्त आवश्यक है।

(10) आवश्यकतानुसार स्पष्टीकरण-प्रभावी श्रवण के लिये श्रोता को वक्ता से आवश्यकतानुसार स्पष्टीकरण लेते रहना चाहिए जिससे वह सन्देश को स्पष्ट रूप से समझ सके।

प्रभावी श्रवण के लिये श्रोता के गण

(Qualities Of Listener For Effective Listening)

कोई सन्देश प्रभावपूर्ण तभी होता है जब सन्देश देने वाला एवं सन्देश सुनने वाला आपसी समझ और तालमेल का परिचय देते हैं। प्रभावपूर्ण श्रवण प्रभावी संवाद का प्रमुख कौशल है। प्रभावी श्रवण के लिए सुनने वाले में निम्नलिखित गुणों का होना आवश्यक है

1 एक सुनने वाले व्यक्ति में भावनात्मक समझ होनी आवश्यक है। उसे चाहिए कि वह सन्देश देने वाले की भावनाओं को समझे।

2.सन्देश सुनने वाले व्यक्ति में दूसरे की बातों को स्वीकार करने की तत्परता होनी चाहिए। वह व्यक्ति पूर्वाग्रह से प्रेरित न हो, उसे सन्देश को स्वीकार करने के लिए तैयार रहना चाहिए।

3. सन्देश सुनने वाले व्यक्ति को सन्देश देने वाले व्यक्ति के प्रति सहानभति रखनी चाहिए। उसे यह सोचना चाहिए कि अगर वह सन्देश देने.वाले व्यक्ति के स्थान पर खडा होता तो उसकी सोच किस प्रकार की होती।

4. सन्देश सुनने वाले व्यक्ति में सन्देश के पूर्ण होने की जिम्मेदारी लेने की इच्छा होनी चाहिए। उसे चाहिए कि सन्देश पूर्ण कराने में सहयोग दे अर्थात् उसका रुख सकारात्मक होना चाहिए।

इस प्रकार प्रभावपूर्ण श्रवण के लिए सन्देश प्राप्त करने वाले की इच्छा, तत्परता, सहा सहयोग काफी महत्त्व रखते हैं। प्रभावपूर्ण श्रवण तभी हो सकता है जब सन्देश देने आर वाले व्यक्ति में आपसी विचारों का तालमेल हो।

व्यावसायिक संस्थानों में श्रवण का महत्व

(Importance of Listening in Business Organisations)

व्यावसायिक संस्थानों में ध्यानपूर्वक श्रवण अत्यधिकमहत्त्वपूर्ण होता है। जो प्रबन्धक अपने अधीनस्थ व्यक्तियों को ध्यानपूर्वक एवं प्रभावपर्ण ढंग से सुनता ध्यानपूर्वक एवं प्रभावपर्ण ढंग से सुनता है और उनको आवश्यकताओं तथा समस्याओं को समझ लेता है तो वह उन्हें अपने कार्य को अधिक प्रभावी ढंग से कार्य करने के लिये प्रेरित कर पाता है। इसी प्रकार कर्मचारी भी प्रभावी श्रवण के द्वारा अपने कार्य को कम समय में बिना किसी गलती और भ्रम के पूरा कर सकते हैं।

हैन्डरीदास तथा लुडेमन के अनुसार, “बोलने से भी अधिक शक्ति सुनने में निहित है। वास्तव में ध्यानपूर्वक श्रवण किसी सफल व्यक्ति की दक्षता की चाबी है। जैसे ही लोगों को यह लगने लगता है कि लोग उनको ध्यानपूर्वक सुनते हैं, उनका आत्मिक उत्थान शुरु हो जाता है।”

ली लेकोको के अनुसार, “जिस प्रकार अच्छे प्रबन्धक को बोलने की आवश्यकता है, उसका सुनना भी आवश्यक है। बहुत से लोग इस बात को अनुभव करने में असफल रहते हैं कि वास्तविक संचार दोनों दिशाओं में होता है।”

किसी भी व्यावसायिक संस्थान में कर्मचारियों के क्रियाकलापों में श्रवण का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। संक्षेप में, श्रवण के महत्त्व को निम्नलिखित प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है

(1) श्रोता की सम्पूर्ण क्षमता में वृद्धि–यदि सन्देश प्राप्तकर्ता प्राप्त सन्देश को अच्छी तरह से श्रवण करता है तो गलतियाँ या भ्रम कम होते हैं, कार्य करने का समय व्यर्थ नहीं होता, उत्पादकता बढ़ जाती है अर्थात् श्रोता की सम्पूर्ण क्षमता में वृद्धि हो जाती है।

(2) सन्देश के वास्तविक अर्थ को प्राप्त करने में सहायक-प्रभावी श्रवण के द्वारा सन्देश प्राप्तकर्ता सन्देश के वास्तविक अर्थ को समझ पाने में सक्षम हो पाता है। प्रभावी श्रवण के आधार पर लिये गए निर्णय सफल व सही होते हैं।

(3) मानवीय समस्याओं का निराकरण-संगठन में कार्यरत कर्मचारियों की भावनाओं, सुझावों, समस्याओं एवं विचारों को श्रवण के द्वारा ही समझा जा सकता है। इससे कर्मचारियों के मनोवैज्ञानिक विरोध को दूर करके संवेदनशील मामलों को सुलझाने में सहायता मिलती है।

(4) श्रेष्ठ नीति निर्धारण में सहायक-श्रवणता, संगठन व व्यवसाय की श्रेष्ठ नीति-निर्धारण में सहायक होती है। यदि हम अपने अधीनस्थों, सहकर्मियों के विचारों, उपायों को ध्यानपूर्वक सुनें तो हमें इस बात का संकेत प्राप्त होगा कि हमारे संगठन के लिए किस प्रकार की नीति उपयुक्त होगी।

(5) आवश्यक सूचनाएँ प्राप्त करना-आवश्यक सूचनाएँ केवल श्रवण के द्वारा ही ग्रहण की जा सकती हैं। यदि मनुष्य श्रवण नहीं करेगा तो वह अनभिज्ञ ही बना रहेगा तथा उसकी कार्यकुशलता पर भी विपरीत प्रभाव पड़ेगा।

(6) शान्तिपूर्ण वातावरण बनाने में सहायक-एकाग्र श्रवणता संगठन के कर्मचारियों में शान्तिपूर्ण वातावरण निर्मित करने में सहायक होती है। धीरज व सहानुभूतिपूर्ण श्रवणता क्रोध व उग्रता को कम करने में सहायक होती है। यदि संगठन के कर्मचारी यह अनुभव करते हैं कि उनकी माँगों व शिकायतों, विचारों को उनके अधिकारी एकाग्रता व सहानुभूतिपूर्वक सुन रहे हैं तो वे अधिक सहयोगी व जिम्मेदार हो जाते है।

(7) श्रवण से विश्वास उत्पन्न होता है-उचित श्रवणता वक्ता को इस बात का संकेत देती है कि श्रोता निश्छल है व उस पर विश्वास कर रहा है। इस स्थिति में स्वतन्त्र सम्प्रेषण का मार्ग प्रशस्त हो जाता है और अन्त:व्यक्तिगत प्रभाव तीव्र होता है।

(8) श्रवण सीखने में लाभदायक है-सीखने की जिज्ञासा का श्रवणता से प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है। हमारा मस्तिष्क सदैव कुछ नये विचारों, उपायों को सीखने व ग्रहण करने के लिए उत्सुक रहता है तथा यह तभी सम्भव है जब हम अपनी श्रवणता की आदत पर थोड़ा ध्यान देते रहें।

प्रभावी श्रवणता के अवरोधक तत्त्व

(Barriers To Effective Listening)

प्रभावी श्रवण के मार्ग में आने वाली प्रमख बाधाएँ निम्नलिखित प्रकार हैं

(1) संचार का अधिक भार-यदि सन्देश प्राप्तकर्ता पर संचार का अधिक भार है तो वह सन्देश को सरलतापूर्वक ग्रहण करने तथा समझने में अशक्त होता है। सन्देश के लम्बा व अक्रमबद्ध होने की स्थिति में भी श्रवण अप्रभावी हो जाता है।

(2) सुनने में समस्यायदि सन्देश प्राप्तकर्ता कम सुनने की समस्या से पीड़ित है तो इससे भी श्रवण में बाधा उत्पन्न होती है, परन्तु इस प्रकार की समस्या शारीरिक होती है जिसका डॉक्टरी इलाज करवाया जाना चाहिए।

 (3) संचार की तीव्र रफ्तार-यदि सन्देश अत्यधिक तेज रफ्तार से दिया जाता है तो समझने वाले का इसमें कठिनाई आ सकती है। इस प्रकार संचार की तीव्र रफ्तार भी प्रभावी श्रवण में बाधा उत्पन्न करती है।

(4) अहंकार भावना-मनुष्य का यह सोचना कि मेरे विचार दूसरों के विचार से अधिक महत्त्वपूर्ण है और “मैं सदैव ठीक हूँ” और दूसरे गलत, ध्यानपूर्वक श्रवण में एक बड़ी बाधा है। श्रवण के लिये खुले मन और हृदय की आवश्यकता होती है। यदि मन के द्वार दूसरों के सन्देश के लिये पहले से ही बन्द हैं तो ध्यानपूर्वक श्रवण हो ही नहीं सकता।

(5) पूर्व निर्धारित धारणाएँ तथा दुराग्रह-मनुष्य की यह प्रवृत्ति होती है कि वह यह नहीं सुनता कि दूसरा क्या कह रहा है बल्कि वह सुनता है जो वह सुनना चाहता है। हम अपने मन की तरंग और इच्छाओं के अधीन सन्देश में कुछ जोड़ देते हैं और कुछ कम कर देते हैं और कुछ सीमा तक अपनी विचारधारा से इसे रंग भी देते हैं। कभी-कभी हमारे अन्दर निहित घृणा, ईर्ष्या, भ्रम, क्रोध आदि भी नकारात्मक और विपरीत अर्थ हम तक पहुँचाते हैं। इस प्रकार हमारी पूर्व निरित धारणाएँ, दुराग्रह तथा गलत इन्द्रियग्राह्यता श्रवण की क्रिया में अवरोधक बन जाते हैं।

(6) सांस्कृतिक मतभेदऐसे व्यावसायिक संस्थान जिनका कार्य क्षेत्र, प्रदेश एवं देश की सीमाओं के पार चला जाता है, वें भिन्न-भिन्न देशों, धर्मों तथा सम्प्रदायों के व्यक्तियों को अपने यहाँ काम पर नियुक्त करते हैं। यदि वें एक सामान्य भाषा भी बोलें तो भी उनका उच्चारण का ढंग भिन्न-भिन्न होता है। इससे दूसरी संस्कृति के लोगों को सुनने तथा समझने में कठिनाई आती है।

(7) विचार प्रवाहएक वक्ता प्राय: एक मिनट में 125 शब्द बोलता है जबकि एक श्रोता एक मिनट में 500 शब्द सुनने और समझने की क्षमता रखता है। इससे श्रोता के मन को बेकार घूमने के लिये काफी समय मिल जाता है और वह वक्ता के सन्देश पर ध्यान केन्द्रित नहीं कर पाता। हम प्रायः वक्ता को धीरे-धीरे बोलते हुए सुनकर ऊबने लगते हैं।

(8) प्रशिक्षण की कमीध्यानपूर्वक श्रवण एक सर्वोत्कृष्ट मानसिक क्रिया है जिसको सीखने और जिसमें दक्ष होने के लिये सजग रह कर कठोर परिश्रम एवं अभ्यास की आवश्यकता होती है। हमारी शिक्षण संस्थाओं में अध्यापक उत्तम पढ़ना, उत्तम लिखना और उत्तम बोलना आदि तो सिखाते हैं लेकिन ध्यानपूर्वक श्रवण नहीं सिखाते। इस सम्बन्ध में ली जेकोका ने कहा है “काश कि मैं ऐसा संस्थान ढूँढ़ सकता जो लोगों को ध्यानपूर्वक सुनना सिखाता हो।

Business Communication Effective Listening

परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(Expected Important Questions for Examination)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

(Long Answer Questions)

1. प्रभावपूर्ण श्रवणता से क्या अभिप्राय है? इसके मुख्य सिद्धान्त क्या हैं ?

What do you mean by effective listening? What are its main principles?

2. प्रभावपूर्ण श्रवण क्या है ? इसके मुख्य सिद्धान्त क्या हैं? प्रभावपूर्ण श्रवण में आने वाली बाधाओं को बताइए।

What is meant by effective listening ? What are its principles ? Explain the barriers of effective listening.

3. श्रवणता से आप क्या समझते हैं ? श्रवण प्रक्रिया को समझाइए।

What do you mean by Listening ? Describe the process of listening.

4. व्यावसायिक संस्थानों में श्रवणता का महत्त्व बताइए।

Explain the importance of listening in business organisations.

5. प्रभावपूर्ण श्रवणता की आवश्यकता व मुख्य तत्व बताइए।

Explain the necessity and main elements of effective listening.

लघु उत्तरीय प्रश्न

(Short Answer Questions)

1 सम्प्रेषण में सुनना क्यों महत्त्वपूर्ण है ?

Why listening is important in communication?

2. प्रभावपूर्ण श्रवण के मुख्य सिद्धान्त क्या हैं ? .

What are the main principles of effective listening?

3. प्रभावपूर्ण श्रवण में आने वाली बाधाओं को बताइए।

Explain the barriers of effective listening.

4. श्रवण को प्रभावपूर्ण कैसे बनाया जा सकता है ?

How listening can be made effective?

5. प्रभावी श्रवण के आवश्यक तत्व बताइए।

Explain the basic points of effective listening.

6. एक अच्छे श्रोता के मुख्य गुण क्या हैं ?

What are the essential qualities of a good listener?

Business Communication Effective Listening

chetansati

Admin

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