BCom 1st Year Business Communication Models Process Study Material Notes in Hindi

//

BCom 1st Year Business Communication Models Process Study Material Notes in Hindi

BCom 1st Year Business Communication Models  Process Study Material Notes in Hindi: Meaning of Communication Model Berle USMC Model of Communication Meaning of Communication Process Main Elements of Communication Process  of Feedback Meaning of Feedback Methods of Feedback Important of Feedback Guideline to Make Effective Feedback Important Examinations Questions Long Answer Questions Short Answer Questions :

Models Process Study Material
Models Process Study Material

BCom 1st Year Business Basic Form Communication Study Material Notes in Hindi

संचार के विभिन्न मॉडल एवं प्रक्रिया

(Communication Models and Process)

संचार/सम्प्रेषण मॉडल का अर्थ

(Meaning of Communication Model)

संचार प्रणाली अत्यन्त जटिल प्रणाली है क्योंकि इसके अन्तर्गत संचार के प्रत्येक स्तर पर परिवर्तन होते रहते हैं। संचार प्रणाली के अन्तर्गत प्रेषक सूचना को संचार के विभिन्न माध्यमों को अपना कर किसी दूसरे व्यक्ति को भेजता है। इसके लिए वह संचार के विभिन्न मार्गों का चयन करता है तथा चयन करते समय इस बात का ध्यान रखता है कि संचार के अपनाये जाने वाले मार्ग कहीं सूचना के प्रभाव एवं प्रामाणिकता को नष्ट तो नहीं कर रहे हैं।

जब संचार की एक प्रक्रिया सफल हो जाती है तो सम्प्रेषक उसी मार्ग का चयन अन्य सन्देशों को प्रेषित करने हेतु करता है। यही स्थिति किसी मॉडल या प्रतिरूप को जन्म देती है। अत: संचार मॉडल से आशय उस मार्ग से है जो सम्प्रेषण के लिए पूर्व में अपनाया गया था और वर्तमान में उसी मार्ग को अपनाकर सम्प्रेषण किया जा रहा है। विश्व के अनेक सम्प्रेषण विशेषज्ञों ने अपने-अपने मॉडल दिये हैं जिनमें से प्रमुख मॉडल निम्नलिखित हैं

(1) अरस्तू मॉडल (Aristotle Model)-यह संचार का प्रारम्भिक, सरल तथा साधारण मॉडल है। इसका प्रतिपादन अरस्तू द्वारा किया गया था, इसीलिये इसे अरस्तू मॉडल कहा जाता है। इस मॉडल के अनुसार सम्प्रेषण प्रक्रिया में मुख्य रूप से तीन तत्त्व महत्त्वपूर्ण होते हैं

(i) सम्प्रेषक-वह व्यक्ति जो सम्प्रेषण करता है।

(ii) सन्देश-सन्देश जो व्यक्ति के द्वारा उत्पादित किया जाता है।

(iii) श्रोता-व्यक्तियों का समूह या व्यक्ति जो सुनते हैं।

Business Communication Models Process

(2) लॉसवैल प्रतिमान (Losswell Model, 1948)- इसे लासवैल का मौखिक मॉडल भी कहा जाता है। इसे वर्ष 1948 में अमेरिकी वैज्ञानिक हेराल्ड लासवैल ने प्रस्तुत किया। इस मॉडल के प्रमुख तत्त्व निम्नलिखित हैं

यह बहुत स्पष्ट तथा सरल प्रतिमान है। इस मॉडल में कहने वाला संचारक है, सन्देश है, लक्ष्य है तथा प्रभाव है। इसमें प्रत्येक तत्त्व बहुत ही स्पष्ट होता है इसलिये आसानी से समझ में आ जाता है। लक्षित समूह को प्रभावित करना इस मॉडल में सम्प्रेषक का मुख्य उद्देश्य है।

(3) शैनन वीवर प्रतिमान/मॉडल (Shannan and Weaver Model)-इस प्रातमान का प्रतिपादन सन् 1949 में शैनन व डब्ल्यू० वीवर के द्वारा किया गया था। इस संचार मॉडल का प्रयोग इलक्ट्रानिक संचार के लिए हआ। इस प्रतिमान में सन्देश से पहले स्त्रोत महत्त्वपर्ण होता है। यदि सन्दश का स्त्रोत प्रमाणिक व ज्ञात है तभी इसे आगे बढ़ाया जा सकता है। इसके अन्तर्गत सन्देश को ट्रासमाटर म पहुचाया जाता है तथा ट्रांसमीटर से सिग्नल के माध्यम से चिन्हों में परिवर्तित कर सन्देश के रूप में प्राप्तकर्ता तक पहुंचाया जाता है। इस प्रतिमान में गोपनीयता बनी रहती है और यह एक वैज्ञानिक प्रतिमान है जो एक निश्चित प्रणाली के अधीन क्रियाशील रहता है परन्त इसमें आन्तरिक व बाह्य दोनों प्रकार से सिग्नल प्रभावित होते हैं, जैसे……मौसम, बिजली. मशीन आदि से यह स्वतन्त्र नहीं ह। इस माडल क प्रमुख तत्त्व निम्न प्रकार हैं

शोर

स्त्रोत सन्देश टांसमीटर सिग्नलसन्देश प्राप्तकर्ता लक्ष्य

शैनन ने यह जाना कि संचार सदैव शोर के सामने होता है जो सन्देश के भेजने में रुकावट उत्पन्न करता है। इस शोर को ‘संकेत’ शोर के नाम से भी पुकारा जाता है। यह एक भौतिक विध्न अथवा रूकावट है जो भौतिक संकेत के साथ होती है। __ शेनन सिद्धान्त में एक मख्य समस्या यह थी कि आप ‘शोर’ को अत्यधिक प्रभावी ढंग से कैसे दा कर सकते हैं? कितनी व्यवस्था की आवश्यकता होगी कि प्राप्तकर्ता सफलतापूर्वक संकेतों में से सन्देश कर सकते हैं कर सके? असार इस मॉडल मार के चिन्हों को स्वाछित अर्थ

वेवर (Weaver) के अनुसार इस मॉडल में संचार में तीन स्तरों पर समस्याएँ आती हैं। A स्तर की तकनीकी समस्या है अर्थात् किस प्रकार से संचार के चिन्हों को स्थानांतरित किया जा सकता है? B स्तर की समस्या है समझने की अर्थात् किस प्रकार सारांश में चिन्हों से वांछित अर्थ प्राप्त होते हैं? स्तर की समस्या प्रभावीकरण की है अर्थात् किस प्रकार प्रभावी ढंग से प्राप्त अर्थ वांछित तरीके में प्रभावी रूप में कार्य करता है? वेवर के अनुसार शैनन का सिद्धान्त A स्तर पर आधारित है। फिर भी B और C स्तर की बाधायें भी इसमें पाई जाती हैं।

शोर की विचारधारा इस तथ्य को प्रकट करती है कि जो जल्दी में कहा गया है, उसका क्या अर्थ है और जो जल्दी में सुना गया है उसका अर्थ उसी रूप में समझा नहीं गया। “मैं जानता हूँ, जो कुछ मैंने कहा है आपने विश्वास किया और समझा किन्तु मुझे यह सुनिश्चित नहीं कि जो कुछ आपने सुना उसे आप उस वास्तविकता में समझ गए हैं जिस वास्तविकता में मैंने कहा’ . । समझने के शोर के विभिन्न प्रकार हैं। यह इस तथ्य से उत्पन्न होती है कि हम जो कुछ पहले से सोचे हुए हैं उसे धारण किए रहते हैं। हम आमतौर पर सन्देशों को असावधानी से भेजते हैं। इस बात को ‘ध्यान में रखना चाहिए कि समझने का शोर उस समय भी उत्पन्न हो सकता है जब भौतिक माध्यम में सन्देश भेजने की क्रिया पूर्ण रूप में ठीक हो।

Business Communication Models Process

(4) डैविड बैरलो का एस.एम.सी.आर. (SMCR) मॉडल (David Berlo’s SMCR Model) संचार के मॉडलों में से अत्यधिक प्रयोग में लाया जाने वाला मॉडल एस.एम.सी.आर (SMCR) है जिसका प्रतिपादन डेविड बैरलो ने किया। यद्यपि यह साधारण और समझने में आसान है किन्तु यह ‘आचारसंहिता विज्ञान’ की भूमिका से प्रेरित है। यह मॉडल चार मूलभूत धारणाएं रखता है-(1) स्रोत (Sources), (2) सन्देश (Message), (3) माध्यम (Medium), (4) प्राप्त करने वाले (Receiver)। ये सभी विचारधारायें आपस में सम्बन्ध रखती हैं तथा अलग-अलग रूप में कार्य नहीं करती हैं। जैसे ‘स्रोत’ और ‘प्राप्तकर्ता’ शब्द यह प्रकट करते हैं कि यदि एक व्यक्ति स्रोत का कार्य करता है तो दूसरा प्राप्त करने का। वास्तव में उनमें से प्रत्येक दोनों रूपों में अर्थात् एक के साथ दूसरा कार्य करता है। उनका विचार है कि घटनाओं का एक निश्चित क्रम नहीं होता है। यह लगातार चलती रहती हैं और उनके क्रम में परिवर्तन होता रहता है। उनका विचार है कि संचार प्रक्रिया के सभी घटक आपस में अन्तर व्यवहार करते हैं। इन तत्त्वों का अपना-अपना महत्त्व इस प्रकार है

(i) स्रोत (Source)-‘स्रोत का प्रभावीकरण निर्धारण करने के लिए हमें संचारक की निम्नलिखित बातों के बारे में जानकारी प्राप्त करनी चाहिए। 1. उसके संचार की योग्यताएँ 2. उसका दधिकोण 3. उसका ज्ञान 4. उसका सामाजिक और सांस्कृतिक प्रसंग। क्या ‘स्रोत’ पढा-लिखा है? क्या। वह भाषा पर आधिपत्य रखता है? उसका प्राप्तकर्ता के प्रति क्या दृष्टिकोण है? तीसरे उसके ज्ञान का स्तर कितना है। अन्ततः वे कोन से तत्त्व हे जो उसके आचार अथवा व्यवहार को बनाते हैं? क्या वह। एक व्यापारिक ग्रप के धार्मिक, राजनीति अथवा सदस्य के रूप में बोलता है? क्या वह उच्च कोटि को संस्कृति अथवा वह किसी पिछड़ी जाति से सम्बन्ध रखता है?

(ii) सन्देश (Message)-सन्देश में विषय होता है। यह भाषा के रूप में दिखाई देता है जैसे । अंग्रेजी फ्रेन्च अथवा फिल्म के रूप में। स्रोत सन्देश के विषय अथवा कोड चनता है और फिर अपने । तरीके अथवा आवाज के माध्यम से आगे भेजता है। यह विषय सामग्री विभिन्न स्तरों पर विश्लेषित का । जाती है। प्रत्येक स्तर पर तत्त्वों को छोड़ दिया जाता है। तब इन तत्त्वों को ढांचे के रूप में संगठित किया। जाता है। वे अगले उच्च-स्तर पर विश्लेषण के तत्त्व बन जाते हैं अर्थात् अंग्रेजी कोड हेत तत्त्वों के लिए। अक्षर हैं। ये शब्दों में परिवर्तित हो जाते हैं। अगले उच्चतम स्तर पर शब्दों वाले तत्त्व वाक्य का रूप। धारण कर लेते हैं।

 (iii) माध्यम (Channels) माध्यम द्वारा सन्देश प्राप्तकर्ता तक पहुँचता है। यह प्राकृतिक, ज्ञानेन्द्रियां, (देखना, सुनना, छूना, सूंघना और स्वाद लेना) हो सकती हैं। माध्यम अप्राकृतिक भी हो सकता है जैसे टैलीविजन, रेडियो अथवा अखबार। इस मॉडल की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि एक ही समय में एक से अधिक माध्यमों का प्रयोग किया जा सकता है। ये माध्यम इकटे तौर पर संचार विधि को प्रभावित करते हैं।

Berlo’s SMCR Model of Communication

 (iv) प्राप्तकर्ता (Receiver)-प्राप्तकर्ता भी स्रोत की भांति दक्षता, दृष्टिकोण, ज्ञान और सांस्कृतिक आधार रखता है। इनमें से प्रत्येक उसकी दक्षता में भागेदारी निभाता है। यदि प्राप्तकर्ता एवं स्रोत का विषय के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण है तो संचार आसान हो जाता है। यदि स्रोत अथवा उसका प्राप्तकर्ता एक दूसरे के प्रति झूठी धारणाएँ रखते हैं तो संचार व्यवस्था रूक जाती है।

बैरलो ने अपनी नवीन संचार व्यवस्था में नई विचारधारा ‘प्रतिक्रिया’ (Feedback) जोड़ी है। स्रोत, सन्देश प्राप्तकर्ता की कुछ विशिष्ट बातों को दर्शाता है। इनमें से कुछ सन्देशों के रूप में उपलब्ध हो जाती हैं। इन्हें वापिस स्रोत के पास भेजा जा सकता है और इस सूचना की प्राप्ति के उपरान्त सन्देशों में सुधार लाया जाता है। कभी-कभी पेचीदा अवस्था में स्रोत और प्राप्तकर्ता अपनी भूमिकाओं में तुरन्त परिवर्तन कर देते हैं।

सरल रूप में, इस मॉडल को निम्नलिखित प्रकार व्यक्त किया जा सकता है

Business Communication Models Process

 (5) थिल बोवी मॉडल (Thill and Bovee Model)—थिल व बोवी मॉडल के अनुसार संचार प्रक्रिया विचार से प्रारम्भ होकर प्रतिक्रिया तक चलती रहती है। जब किसी के मस्तिष्क में कोई

 (6) ” डेन्स माडल (Danse Model) इस मॉडल का प्रतिपादन डेन्स ने सन् 1967 में किया था। इस मॉडल के अनुसार संचार प्रक्रिया एक चक्र के रूप में घूमती रहती है जिसका न कोई प्रारम्भिक बिन्दु होता है और न ही कोई अन्तिम बिन्दु होता है

Business Communication Models Process

(7) मर्फी मॉडल (Murphy Model) इस मॉडल का प्रतिपादन मर्फी द्वारा अपने अन्य कुछ साथियों के सहयोग से किया गया था। इसमें संचार प्रक्रिया के विभिन्न अंग एक-दूसरे के आगे-आगे चलते हैं। इसमें प्रेषक उचित संचार माध्यम अपनाकर सन्देश भेजता है तथा सन्देश प्राप्तकर्ता सन्देश प्राप्त करने के पश्चात् सन्देश के बारे में अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करता है।

इस मॉडल के अनुसार, संचार प्रक्रिया के छ: मुख्य अंग होते हैं जो निम्नलिखित हैं

 (i) संदर्भ (Context) प्रत्येक सन्देश चाहे वह मौखिक है अथवा लिखित है, किसी न किसी संदर्भ से प्रारम्भ होता है। संदर्भ एक विस्तृत क्षेत्र है जिसमें एक देश, एक सभ्यता, एक संगठन तथा आन्तरिक एवं बाह्य कारण निहित होते हैं। इन्हीं कारणों के आधार पर विचारों का संकेतभाव (Encoding) किया जाता है।

(ii) प्रेषकसंकेतक (Sender-Encoder)—एक प्रेषक शब्दों का प्रयोग कर सन्देश भेजता है एवं इच्छित प्रतिक्रिया का निर्माण होता है।

(iii) सन्देश (Message)-सन्देश मुख्य विचार है जो प्रेषक प्रकट करना चाहता है। इसमें मौखिक एवं अमौखिक दोनों प्रकार के संकेत विद्यमान होते हैं।

(iv) माध्यम (Medium)-सन्देश किसी भी माध्यम के द्वारा भेजा जा सकता है। यह माध्यम शब्द, आवाज, इशारे इत्यादि कुछ भी हो सकते हैं।

(v) प्राप्तकर्ता (Receiver-Decoder)-एक प्राप्तकर्ता, सुनने वाला या पाठक वह व्यक्ति होता है जो सन्देश प्राप्त करता है तथा उसको समझता है।

संक्षेप में, उपरोक्त मॉडल से ज्ञात होता है कि संचार में क्या होता है। प्रेषक एक संदर्भ के अनुसार सन्देश चुनता है तथा इसे प्रसारित करता है। प्रेषक सन्देश को प्रसारित करने के लिये माध्यम का भी चुनाव करता है। प्राप्तकर्ता सन्देश प्राप्त करता है तथा अपनी प्रतिक्रिया (Feedback) व्यक्त करता है।

(8) लीगन्स का वृत्ताकार प्रतिमान (Leagans’ Circular Model)-इस प्रतिमान में संचार प्रक्रिया में श्रोताओं की प्रतिक्रिया का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसे प्रतिपुष्टि कहा जाता है। अत: संचारक के लिए श्रोताओं की प्रतिक्रिया को जानना लाभदायक है क्योंकि प्रतिक्रिया के द्वारा ही वह प्रेषित सन्देश का मूल्यांकन करने में सक्षम होता है और उसके अनुकूल चेष्टाएँ कर पाने में समर्थ हो सकता है।

(9) वेस्टले और मेक्लीन प्रतिमान (Westle and Macleen Model)—वेस्टले व मैक्लीन ने 1957 में इस मॉडल को प्रतिपादित किया था। इसमें प्रत्येक तत्त्व किसी न किसी वातावरण में रहता है। जब किसी सन्देश को सम्प्रेषित करना होता है तो सम्प्रेषक इसकी वकालत करता है और तत्पश्चात् सन्देश माध्यम में जाता है। यह माध्यम सन्देश व सम्प्रेषक के लिए अत्यन्त उपयोगी होता है।

इसमें प्रतिपुष्टि (Feedback) सम्प्रेषण का अभिन्न अंग है।

 (10) किलबर मॉडल (Cilber Model)-इस मॉडल के अनुसार जब तक सन्देश का सही-सही अर्थ नहीं निकाला जाता है तब तक सन्देश प्रभावी नहीं हो सकता है। सन्देश तभी प्रभावी होता है जब सन्देश को भेजने वाले और प्राप्त करने वाले उसका एक ही अर्थ निकालते हैं। बाद में इस मॉडल को वेस्टले और मैक्लीन ने भी अपने विचारों में सम्मिलित किया है।

(11) गार्बनर मॉडल (Garbner Model)-इस मॉडल का प्रतिपादन अमेरिकी विद्वान जार्ज गार्बनर द्वारा किया गया है। उनके अनुसार मानव के सम्प्रेषण की कुछ विशेषताएँ होती हैं। अतः सम्प्रेषण करते समय मानव संचार पर बल देना चाहिए। इन्होंने सन्देश की आत्मा पर अधिक जोर दिया है। इनके अनुसार, “किसी को कुछ सूझता है, किसी घटना के सम्बन्ध में, किसी परिस्थिति में, कब प्रतिक्रिया करता है, किस साधन से करता है, पदार्थ उपलब्ध कराने के लिए किसी रूप में, किसी सन्दर्भ में, विषय को बताते हुए और कुछ परिणामों को भाँपते हुए।”

यह अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण मॉडल है। इसमें प्रमुख तत्त्व-सन्देश की कल्पना, ग्राह्यता तथा उसका किसी घटना से प्रत्यक्ष सम्बन्धता का होना। इसमें मशीन व व्यक्ति दोनों बराबरी से क्रियाशील रहते हैं।

(12) लेसिकर मॉडल (Lesicar Model)—इस मॉडल के अनुसार संचार प्रक्रिया सन्देश भेजने से प्रारम्भ होती है लेकिन यह प्रतिपुष्टि के साथ समाप्त नहीं होती, बल्कि इसके बाद भी पुनः आवृत्ति के रूप में चलती रहती है। जब एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को सन्देश देता है तो सन्देश प्राप्त करने वाला व्यक्ति पहले वाले व्यक्ति को सन्देश की प्रतिपुष्टि करता है। इसके बाद यदि दूसरे वाला व्यक्ति पहले वाले व्यक्ति को कोई सन्देश देता है तो अब इसकी प्रतिपुष्टि पहले वाले व्यक्ति के द्वारा की जाती है।

संचार प्रणाली का भारतीय मॉडल (Indian Models in Communication)-भारत में। संचार प्रणाली अति प्राचीन काल से चली आ रही है क्योंकि उस काल में राजाओं द्वारा अपनी बात (सन्देश) को जनता तक पहुँचाना तथा जनता की शिकायतें एवं सुझावों को सुनना होता था जो कि संचार। प्रक्रिया का ही एक महत्त्वपूर्ण अंग है। भारतीय संचार प्रणाली का मुख्य अंग ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ रहा है। अर्थात् उस समय राजाओं द्वारा सारे संसार को एक घर की भाँति माना जाता था। उस समय संचार के

विभिन्न साधनों का चयन राजा के मंत्रिगण करते थे कि कौन-सा सन्देश किस प्रकार आम जनता तक पहुंचाया जाए। उस काल में भी संचार प्रक्रिया में इस बात का पर्याप्त ध्यान रखा जाता था कि दिये जाने वाले सन्देश का कहीं अर्थ न बदल जाए जिससे कि सन्देश की सार्थकता (महत्त्व) ही समाप्त हो जाए।

स्वतन्त्रता पूर्व के भारतीय संचार मॉडल (Indian Models before Freedom)-स्वतन्त्रता पूर्व के वर्षों में भारतीयों द्वारा विभिन्न संचार मॉडलों का प्रतिपादन किया गया क्योंकि उस समय भारत को स्वतन्त्र करवाने के लिए समय-समय पर सन्देश को दूसरे व्यक्तियों तक भेजना पड़ता था, जिससे वे व्यक्ति उस सन्देश के अनुसार कार्य कर सकें। उस समय संचार प्रणाली मुख्यत: क्रांतिकारियों द्वारा प्रयोग की जाती थी। उस समय ये क्रांतिकारी विभिन्न दलों में बँटे हुए थे। ये दल थे नरम दल तथा गरम दल। इन दोनों दलों का मुख्य उद्देश्य स्वतन्त्रता प्राप्त करना था परन्तु इन दोनों दलों द्वारा स्वतन्त्रता प्राप्त करने के लिए अलग-अलग रास्ते अपनाए जाते थे। नरम दल द्वारा कार्य प्रायः विचार-विमर्श द्वारा किया जाता था, जबकि गरम दल द्वारा कार्य करने के लिए विचार-विमर्श करके निर्णय नहीं लिया जाता था, बल्कि सीधे ही वह कार्य किया जाता था। गरम दल द्वारा किये गये कार्यों का मुख्य उद्देश्य कार्यों से सम्बन्धित उद्देश्य प्राप्त करना होता था। गरम दल द्वारा अपनायी जाने वाली प्रक्रिया निम्नलिखित थी

स्वतन्त्रता प्राप्ति पश्चात् के भारतीय संचार मॉडल (Indian Communication Model of Post-Independence Period) स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् भारतीय सम्प्रेषण चिन्तकों ने सम्प्रेषण के नए मॉडल के अध्ययन की तरफ अपना ध्यान केन्द्रित किया। भारत सरकार का सूचना मन्त्रालय, विदेशी व भारतीय मॉडलों का अध्ययन कर श्रेष्ठ मॉडल के निर्माण में लगा है, किन्तु अभी उसे सफलता नहीं मिली है। आज भी हम सम्प्रेषण मॉडल के रूप में पुराने तरीकों पर ही निर्भर हैं।

सम्प्रेषण/संचार प्रक्रिया का अर्थ

(Meaning of Communication Process)

सम्प्रेषण प्रक्रिया से आशय उस प्रक्रिया से है जिसमें सम्प्रेषणकर्ता द्वारा दिये गए सन्देश को उपयुक्त माध्यम द्वारा सन्देशग्राही तक पहुँचाया जाता है। सरल शब्दों में सूचनाओं, भावनाओं, तथ्यों व दृष्टिकोण को एक पक्ष दूसरे पक्ष को जिस तरीके से आदान-प्रदान करता है. उसे सम्प्रेषण प्रक्रिया कहते हैं। संचार प्रक्रिया में, अनेक तत्त्व हिस्सा लेते हैं, तब जाकर यह प्रक्रिया पूर्ण होती है। कीथ डेविस के अनुसार, सम्प्रेषण प्रक्रिया में अग्रलिखित छ: तत्त्व सम्मिलित होते हैं

सम्प्रेषण प्रक्रिया संस्था के प्रत्येक अधिकारी तथा अधीनस्थ कर्मचारी को प्रभावित करती है। सफल सम्प्रेषण के लिये यह आवश्यक होता है कि सन्देशवाहन करने वाले प्रबन्धक को सम्प्रेषण की इस प्रक्रिया का पूरा ज्ञान हो जिससे वह उसकी पहले से ही योजना बना सके। सम्प्रेषण प्रक्रिया एक नैत्यक एवं निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है एवं कभी न समाप्त होने वाला सम्प्रेषण चक्र संस्था या इकाई में लगातार विद्यमान रहता है। अत: कहा जा सकता है कि संस्था का सफल संचालन सम्प्रेषण प्रक्रिया पर निर्भर करता है। सम्प्रेषण प्रक्रिया तभी पूर्ण होती है जब सन्देश प्राप्तकर्ता सन्देश के वास्तविक अर्थ को प्रेषक के भावानुसार ग्रहण कर लेता है तथा वांछित प्रतिक्रिया एवं पुष्टि प्रेषित करता है।

सम्प्रेषण/संचार प्रक्रिया के मूल तत्त्व

(Main Elements of Communication Process)

सम्प्रेषण/संचार प्रक्रिया के मूल तत्त्व निम्नलिखित हैं

(1) सन्देश प्रेषक (Sender)-संचार प्रक्रिया में यह वह व्यक्ति होता है जो अपने विचार या सन्देश भेजने के लिये दूसरे व्यक्ति से सम्पर्क बनाता है। विचारों की अभिव्यक्ति लिखकर, बोलकर, कार्यवाही करके अथवा चित्र बनाकर की जाती है।

(2) विचार की सृष्टि (Creation of Thought)-सम्प्रेषण का प्रारम्भ किसी ऐसे विचार के पैदा होने से होता है जो सम्प्रेषित किया जाना है। सन्देश प्रेषक को अपने विचार की पूरी जानकारी एवं स्पष्टता होनी चाहिए अर्थात् उसे साफ-साफ समझ लेना चाहिए कि वह क्या कहना चाहता है ? |

(3) सन्देशबद्धता (Encoding)-विचार की सृष्टि हो जाने पर सन्देश प्रेषक इसे कुछ स्पष्ट वाक्य, शब्दों अथवा संकेतों में बाँधता है। मानसिक अवधारणाओं को व्यक्त करने के लिये भाषा बहुत ही महत्त्वपूर्ण होती है, सन्देश के शब्द सन्देश ले जाने वाले माध्यम पर भी निर्भर करते हैं। अत: सन्देश प्रेषक को यह स्पष्ट कर लेना चाहिए कि सन्देश लिखकर, बोलकर या संकेतों से कैसे दिया जाएगा? सन्देशबद्धता में शरीर की भाषा भी प्रयुक्त की जाती है। वाणी, हावभाव, मुख मुद्रा, हाथ आदि के माध्यम से संदेश को कूटबद्ध किया जाता है। व्यवसाय में आजकल कई संदेशों को कम्प्यूटर भाषा के द्वारा भी लिपिबद्ध किया जाता है।

(4) सन्देश प्रेषण (Sending of Message)-संचार प्रक्रिया के द्वारा सन्देश को दूसरे पक्ष तक पहुँचाया जाता है। इसके लिये सन्देश प्रेषक ऐसे तरीके या साधन या माध्यम का प्रयोग करता है जिसके द्वारा सन्देश, प्राप्तकर्ता को प्रेषित किया जा सके। सन्देश देने के लिए विभिन्न माध्यम हो सकते हैं जैसे व्यक्तिगत वार्तालाप, पत्र, सूचना पत्र, परिपत्र, टेलीफोन आदि। सन्देश भेजने के लिए माध्यम का चुनाव बहुत ही सावधानीपूर्वक करना पड़ता है क्योंकि इन माध्यमों का सन्देशों के प्रेषण में अलग-अलग प्रभाव पड़ता है। सन्देश भेजते समय सन्देश देने वाले व्यक्ति को सम्प्रेषण के वातावरण का भी ध्यान रखना पड़ता है। सन्देश देने वाले व्यक्ति को यह भी तय करना पड़ता है कि वह अपना सन्देश सीधे रूप से देना चाहेगा या अप्रत्यक्ष रूप से। उसे यह भी चयन करना पड़ता है कि सन्देश लिखित रूप में दिया जाए अथवा मौखिक रूप में दिया जाए। मौखिक सम्प्रेषण के अन्तर्गत आमने-सामने बातचीत, टेलीफोन, सेमिनार, विचार-गोष्ठी आदि शामिल करते हैं जबकि लिखित सम्प्रेषण के लिए पत्र-व्यवहार, इन्टरनेट, ई-मेल का प्रयोग करते हैं। इसी प्रकार संकेत भाषा श्रव्य अथवा दृश्य के लिए टेलीविजन, रेडियो, विज्ञापन पटल बोर्ड, चार्ट आदि का प्रयोग करते हैं।

(5) सन्देश प्राप्ति (Receiving of Message)-सम्प्रेषण प्रक्रिया तभी पूर्ण होती है जब सन्देश प्राप्तकर्ता द्वारा सन्देश प्राप्त कर लिया जाता है। प्रत्येक सन्देश का केन्द्र बिन्दु सन्देश प्रापक ही होता है, अत: यह आवश्यक है कि सम्प्रेषण सन्देश प्राप्तकर्ता को ध्यान में रखकर ही किया जाए।

(6) सन्देश वाचन (Decoding)-सन्देश प्राप्तकर्ता, संदेश प्राप्त होने के पश्चात् उसकी व्याख्या करता है। वह शब्दों, संकेतों, चित्रों आदि के द्वारा उसका अर्थ स्पष्ट करता है। अत: प्राप्त सन्देश का अपनी समझ के अनुसार अर्थ देना, इसके विचार को ग्रहण करना, सन्देश को समझना तथा यदि कोई । शक हो तो उसे दूर करना ही सन्देश वाचन (decoding) कहलाता है। सन्देश प्राप्तकर्ता, भेजे गए सन्दश । का अनुवाद अथवा अर्थ लगाकर प्रेषक द्वारा भेजे गए अन्तर्भाव को निश्चित अर्थ में समझता है।

(7) क्रियान्वयन (Follow up)-सन्देश प्रापक, सन्देश के अर्थ को समझने के पश्चात् अपनी समझ के अनुसार इस सन्देश पर कार्यवाही करता है। सन्देश प्रेषक के लिये यह जानना जरूरी होता है कि सन्देश प्राप्तकर्ता पर इस सन्देश की क्या प्रतिक्रिया हुई है अर्थात् प्राप्तकर्ता ने सन्देश को उसी अर्थ मे समझा है या नहीं जिस अर्थ में वह अपना सन्देश प्राप्तकर्ता को देना चाहता था।

(8) प्रतिपुष्टि (Feedback)-जब सन्देश प्राप्त करने वाला, सन्देश के उत्तर में अपनी प्रतिक्रिया या भावना व्यक्त कर देता है, तब उसे प्रतिपुष्टि कहा जाता है। सम्प्रेषण का उद्देश्य केवल सन्देश पहुँचाना ही नहीं होता बल्कि सन्देश के अनुसार कोई कार्यवाही करना अथवा हो रही कार्यवाही को रोकना होता है। सम्प्रेषण तभी प्रभावी माना जाता है जब प्रतिपुष्टि, प्रेषक की आशा के अनुरूप हो। प्रतिपुष्टि से सन्देश प्रेषक को यह संकेत भी मिलता है कि सम्प्रेषण में कहीं कोई त्रुटि तो नहीं रह गई है। व्यावसायिक सम्प्रेषण में प्रतिपुष्टि अत्यन्त आवश्यक होती है।

प्रतिपुष्टि का आशय

(Meaning of Feedback)

प्रतिपुष्टि, सन्देशवाहन का अन्तिम एवं सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। सम्प्रेषण में जब प्रेषक अपने सन्देश को किसी माध्यम के द्वारा सन्देश प्रापक तक पहुँचाता है तो उसको यह जानने की उत्सुकता रहती है कि सन्देश प्रापक पर उस सन्देश की क्या प्रतिक्रिया हुई है। जब सन्देश प्रापक उस सन्देश पर अपनी प्रतिक्रिया या विचार व्यक्त कर देता है तो इसे ‘प्रतिपुष्टि’ कहा जाता है। प्रतिपुष्टि के बिना कोई भी सम्प्रेषण प्रक्रिया पूर्ण नहीं मानी जाती। अत: सरल शब्दों में, यह कहा जा सकता है कि जब सन्देश प्राप्तकर्ता द्वारा सन्देश के क्रियान्वयन तथा प्रतिक्रिया की वांछित जानकारी, प्रेषक को प्रदान की जाती है, तो इसके सम्बन्ध में की गई अभिव्यक्ति को ही प्रतिपुष्टि कहा जाता है। सन्देश प्राप्तकर्ता द्वारा अभिव्यक्ति लिखित, मौखिक, शाब्दिक अथवा सांकेतिक हो सकती है। प्रतिपुष्टि के आधार पर ही प्रेषक पूर्व सन्देश में संशोधन, सुधार या परिवर्तन करके उसे प्रभावशाली बना सकता है।

अतः स्पष्ट है कि प्रतिपुष्टि सूचना के आदान-प्रदान व सम्प्रेषक व प्राप्तकर्ता के बीच समझ की पुष्टि करती है।

प्रतिपुष्टि की प्रक्रिया

(Process of Feedback)

सम्प्रेषण प्रक्रिया में सन्देश को उसी स्थिति में प्रभावी माना जाता है जब उसमें प्रतिपुष्टि का प्रावधान होता है। प्रतिपुष्टि की प्रक्रिया से आशय उस प्रक्रिया से है जिसके द्वारा सन्देश प्राप्तकर्ता अपनी प्रतिक्रिया की जानकारी सन्देश भेजने वाले को देता है। सम्प्रेषण में प्रतिपुष्टि की प्रक्रिया को निम्नलिखित प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है प्रतिपुष्टि के द्वारा ही सम्प्रेषण की प्रभावशीलता को मापा जा सकता है तथा सन्देश में सुधार, संशोधन या परिवर्तन करके उसे प्रभावशाली बनाया जा सकता है। प्रतिपुष्टि के सम्बन्ध में लीलेण्ड ब्राउन का मत है कि, “सम्प्रेषण व प्राप्तकर्ता दोनों की प्रभावशीलता के लिये प्रतिपुष्टि की एक वांछित मात्रा अत्यन्त आवश्यक होती है।”

प्रतिपुष्टि की विधियाँ

(Methods of Feedback)

सन्देश प्राप्तकर्ता, सन्देश ग्रहण करने के पश्चात् सन्देश के सम्बन्ध में अपनी प्रतिक्रिया की __ अभिव्यक्ति करता है। यह अभिव्यक्ति मौखिक, लिखित अथवा सांकेतिक माध्यम के द्वारा की जा सकती

है, इन्हें ही प्रतिपुष्टि की विधियाँ कहा जाता है। प्रतिपुष्टि की विभिन्न विधियों को निम्नलिखित प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है

(1) मौखिक प्रतिपुष्टि (Oral Feedback)-जब सन्देश प्रापक सन्देश के बारे में अपनी प्रतिक्रिया मौखिक रूप से प्रकट करता है तो इसे मौखिक प्रतिपुष्टि कहा जाता है। इसमें सन्देश प्रापक अपने भावों तथा विचारों को मुँह से बोलकर प्रकट करता है। मौखिक प्रतिपुष्टि मुख्यत: प्रत्यक्ष बातचीत, टेलीफोन पर बातचीत आदि के द्वारा की जाती है। मौखिक सम्प्रेषण में सकारात्मक प्रतिपुष्टि तालियाँ अथवा डेस्क बजाकर व्यक्त की जा सकती है जबकि नकारात्मक प्रतिपुष्टि की अभिव्यक्ति उबासी दिखाकर या जम्हाई लेकर व्यक्त की जा सकती है।

(2) लिखित प्रतिपुष्टि (Written Feedback)-जब सन्देश प्रापक, सन्देश के बारे में अपनी प्रतिक्रिया की अभिव्यक्ति लिखित रूप में करता है तो इसे लिखित प्रतिपुष्टि कहते हैं। इसमें सन्देश प्रापक अपने विचारों को मुँह से बोलने की बजाय लिख कर अभिव्यक्त करता है।

(3) सांकेतिक प्रतिपुष्टि (Sign Feedback)-जब सन्देश प्रापक प्रतिपुष्टि के लिये अपनी शारीरिक भाषा, इशारों या संकेतों का प्रयोग करता है तो इसे सांकेतिक प्रतिपुष्टि कहते हैं। सांकेतिक संचार के माध्यम से व्यवसाय के अन्तर्गत प्रबन्धक विभिन्न कर्मचारियों, ग्राहकों को अपनी बात सही अर्थों में समझा सकता है तथा इस पर अन्य व्यक्तियों की प्रतिक्रिया भी उसी समय दूसरे व्यक्तियों की शारीरिक मुद्रा से ज्ञात कर सकता है।

प्रतिपुष्टि का महत्त्व

(Importance of Feedback)

प्रतिपुष्टि सम्प्रेषण की सफलता का मापदण्ड होता है, अत: किसी भी तथ्य के सन्दर्भ में प्रतिपुष्टि के प्रभाव व महत्त्व को अनदेखा नहीं किया जा सकता। प्रतिपुष्टि के महत्त्व को निम्नलिखित प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है

(1) प्रभावपूर्ण सम्प्रेषण में सहायक (Helpful in effective Communication)-एक कुशल प्रबन्धक केवल विश्वसनीय प्रतिपुष्टि के द्वारा ही किसी व्यवसाय में प्रभावपूर्ण सम्प्रेषण कर पाने में सफल होता है। अत: एक प्रभावी निर्णय-प्रक्रिया में एक प्रबन्धन को प्रतिपुष्टि का अवसर अवश्य उपलब्ध कराना चाहिए।

(2) मधुर सम्बन्धों की स्थापना (Establish Cordial Relations)-प्रतिपुष्टि, व्यवसाय के द्विमार्गी सम्प्रेषण प्रक्रिया में वरिष्ठों व अधीनस्थों के मध्य सदैव अच्छे सम्बन्धों को जन्म देती है व सदैव अनकल कार्य करने के लिए प्रेरित करती है। अत: व्यवसाय के प्रबन्ध द्वारा इसे अनदेखा नहीं किया जा सकता।

(3) सन्देश में अनुकूल परिवर्तन (Favourable changes in Message)-प्रतिपुष्टि, किसी सन्देश की प्राप्ति व उसके सही निर्वचन को जानने का तरीका है। साथ ही साथ प्राप्तकर्ता की प्रतिक्रिया के द्वारा ही प्रेषक पूर्व सन्देश में संशोधन, परिवर्तन या सुधार करके उसे प्रभावशाली बना सकता है।

(4) सम्प्रेषण प्रक्रिया में सुधार (Improvement in Communication Process)-प्रतिपुष्टि सम्प्रेषण में सधार कर उसे अधिक प्रभावशील बनाने की एक विशिष्ट तकनीक है, साथ ही साथ यह एक मन में किसी तथ्य के सन्दर्भ में तुरन्त प्रतिक्रिया के स्वरूप में प्रभावपूर्ण सम्प्रेषण का एक महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त भी है।

प्रतिपुष्टि को प्रभावी बनाने वाले घटक

(Guidelines to Make Effective Feedback)

प्रतिपष्टि को प्रभावी बनाने की कौशलता का विकास करने वाले प्रमुख घटक निम्नलिखित हैं

(1) निश्चित आचरणों पर केन्द्रित (Focus on Specific Behaviour)-प्रतिपुष्टि सदैव किसी निश्चित प्रक्रिया या आचरण के लिये होनी चाहिए, सामान्य के लिये नहीं। प्रेषक से प्रतिपुष्टि के सन्दर्भ में यदि यह कहा जाए कि आपका सम्प्रेषण प्रभावी नहीं रहा तो यह अनिश्चित प्रतिपुष्टि होगी तथा प्रेषक को सधार करने में अत्यन्त कठिनाई होगी लेकिन यदि किसी निश्चित बिन्दु के सन्दर्भ में अप्रभावशीलता को बताया जाए तो निश्चय ही प्रेषक उसमें आसानी से सुधार कर सकेगा। अत: प्रतिपुष्टि किसी आचरण विशेष से सम्बन्धित होनी चाहिए न कि सामान्य।

(2) अवैयक्तिक प्रतिपुष्टि रखना (Impersonal Feedback)-प्रतिपुष्टि विशेष रूप से नकारात्मक प्रतिपुष्टि किसी व्यक्ति विशेष से सम्बन्धित न होकर सम्पूर्ण संस्थान या समूह के प्रति होनी चाहिए। यदि नकारात्मक प्रतिपुष्टि को व्यक्तिगत रूप से व्यक्त किया जाता है तो यह प्रेषक को हतोत्साहित तथा हीन भावना के अधीन करती है।

(3) सही समय पर प्रतिपुष्टि (Well Timed Feedback)-सन्देश सम्प्रेषण तथा प्रतिपष्टि के मध्य जितना कम समय होगा, प्रतिपुष्टि उतनी ही प्रभावशाली तथा लाभदायक होगी। अत: प्रतिपुष्टि सदैव सही समय पर की जानी चाहिए।

(4) लक्ष्य से सम्बन्धित (Goal Oriented)-प्रतिपुष्टि सदैव सन्देश के लक्ष्य से सम्बन्धित होनी चाहिए न कि सन्देश की संरचना से। नकारात्मक प्रतिपुष्टि, सन्देश प्रेषक के प्रति न होकर सन्देश के लक्ष्यों से सम्बन्धित होनी चाहिए।

(5) प्राप्तकर्ता द्वारा सन्देश को समझना (Clear Understanding of Message by Receiver)-प्रतिपुष्टि को प्रभावी बनाने के लिये यह आवश्यक है कि सन्देश प्राप्तकर्ता, सन्देश को मूलरूप से उसी दृष्टिकोण के अनुसार समझे जिस रूप में सन्देश दिया गया था। प्रेषक को प्रतिपुष्टि से पूर्व यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि प्राप्तकर्ता ने सन्देश को भली भाँति समझ लिया है। यदि प्राप्तकर्ता सन्देश के अर्थ को मूल तथा स्पष्ट रूप से नहीं समझ पाता तो प्रतिपुष्टि व्यर्थ रहेगी।

(6) प्रत्यक्ष नकारात्मक प्रतिपुष्टि पर नियन्त्रण (Control on Direct Negative Feedback)-सन्देश प्राप्तकर्ता को प्रेषक के आचरण से सम्बन्धित प्रत्यक्ष नकारात्मक प्रतिपुष्टि पर नियन्त्रण रखना चाहिए क्योंकि ऐसी प्रतिपुष्टि से प्रेषक हतोत्साहित होता है। प्राप्तकर्ता द्वारा यदि कोई प्रत्यक्ष नकारात्मक प्रतिपुष्टि की जाती है तो साथ में यह भी आवश्यक होता है कि सम्प्रेषण के दोषों को दूर करने के लिए भी सुझाव दिए जाएँ।

Business Communication Models Process

परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(Expected Important Questions for Examination)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

(Long Answer Questions)

1 सम्प्रेषण मॉडल से आप क्या समझते हैं ? किन्हीं चार मॉडलों की व्याख्या कीजिए।

What do you mean by communication model ? Explain any four models.

2. संचार मॉडल से आप क्या समझते हैं ? संचार प्रक्रिया के विभिन्न मॉडलों की व्याख्या कीजिए।

What do you mean by communication model ? Explain different models of communication process.

3. सम्प्रेषण के विभिन्न प्रतिमानों (मॉडलों) की विवेचना कीजिए।

Explain the different models of communication.

4. सम्प्रेषण प्रक्रिया से आप क्या समझते हैं? सम्प्रेषण प्रक्रिया के विभिन्न तत्त्वों की विवेचना कीजिए।

Explain the communication process. Discuss the various components of communication process.

5. प्रतिपुष्टि से क्या आशय है? इसकी प्रक्रिया, विधियों तथा घटकों की व्याख्या कीजिए।

What is Feedback? Explain its process, methods and guidelines to make effective feedback.

6. सम्प्रेषण प्रक्रिया में प्रतिपुष्टि एक अनिवार्य तत्त्व है।” समझाइए।

Feedback is important factor of communication process.” Explain it.

Business Communication Models Process

लघु उत्तरीय प्रश्न

(Short Answer Questions)

1 सम्प्रेषण के अरस्तू मॉडल को समझाइये।

Explain the Aristotle’s model of communication.

2. सम्प्रेषण के लॉसवैल मॉडल को समझाइये।

Explain the Losswell model of communication.

3. सम्प्रेषण के गार्बनर मॉडल को समझाइये।

Explain the Garbner model of communication.

4. सम्प्रषण के भारतीय प्रतिमान को समझाइये।

Explain the Indian model of communication.

5. सम्प्रेषण के डेन्स के प्रतिमान को समझाइये।

Explain the Danse’s model of communication.

6. सम्प्रेषण के बेर्तों के प्रतिमान को समझाइये।

Explain the Berlo’s model of communication.

7. सम्प्रेषण के मर्फी प्रतिमान को समझाइये।

Explain the Murphy model of communication.

8. सम्प्रेषण के थिल एवं बोवी प्रतिमान को समझाइये।

Explain the Thill and Bovee model of communication.

9. सम्प्रेषण प्रक्रिया को समझाइये।

Explain the communication Process.

10. सम्प्रेषण प्रक्रिया के तत्त्व बतलाइये।

Explain the elements of communication.

11. प्रतिपुष्टि के महत्त्व को समझाइए।

Explain the importance of feedback.

12. प्रतिपुष्टि को किस प्रकार प्रभावी बनाया जा सकता है?

How feedback can be made effective?

13. प्रतिपुष्टि की प्रक्रिया को समझाइए।

Explain the process of feedback.

Business Communication Models Process

chetansati

Admin

https://gurujionlinestudy.com

Leave a Reply

Your email address will not be published.

Previous Story

BCom 1st Year Business Basic Form Communication Study Material Notes in Hindi

Next Story

BCom 1st Year Business Effective Communication Study Material Notes In Hindi

Latest from BCom 1st Year Business Communication Notes