BCom 1st Year Business Communication Oral Presentation Study Material Notes in Hindi

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BCom 1st Year Business Communication Oral Presentation Study Material Notes in Hindi

Table of Contents

BCom 1st Year Business Communication Oral Presentation Study Material Notes in Hindi: Purposes of Oral Presentation Principles of Oral Presentation Process of Oral Presentation Sales Presentation Steps of Training Presentation Survey Object of Survey Process of Planing for Survey Steps of survey Methods of Survey Meaning of Speech Guidelines For Preparing a Speech Speech For Motivation  Examination Important Questions Long Answer Questions Short Answer Questions :

Oral Presentation Study Material
Oral Presentation Study Material

BCom 1st Year Business Report Writing Study Material Notes in Hindi

मौखिक प्रस्तुतीकरण

(Oral Presentation)

समस्त सम्प्रेषण या तो शाब्दिक होते हैं या मौखिक। प्रत्येक व्यक्ति अपनी दिनचर्या का अधिकांश। भाग मौखिक सम्प्रेषण में ही व्यतीत करता है। मौखिक सम्प्रेषण एक कौशल है जो चिन्तन, मनन, अनुभव एवं लगन के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। मौखिक सम्प्रेषण अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम है। कोई भी व्यक्ति मौखिक सम्प्रेषण के द्वारा अपना एवं अपनी संस्था दोनों का विकास कर सकता है।

प्रत्येक व्यक्ति तथा संस्था के लिये मौखिक प्रस्तुतीकरण अपरिहार्य है। किसी भी संस्था में बिना मौखिक संचार के कार्य नहीं चल सकता है। मौखिक संचार की क्रिया को ही मौखिक प्रस्तुतीकरण कहा। जाता है। व्यावसायिक अधिशासियों (Business Executives) को बहुत सी मौखिक प्रस्तुतियाँ अलग-अलग अवसरों पर देनी होती हैं। प्रभावशाली प्रस्तुतीकरण के लिये कार्य नीति तैयार करनी होती है तथा अच्छी विषय वस्तु के साथ सामग्री का संग्रह कर संगठित करना होता है। एक व्यवसायी का मौखिक सम्प्रेषण कुशलता में दक्ष होना अत्यन्त आवश्यक होता है। किसी व्यवसाय की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि उसका स्वामी तथा प्रबन्धक अपने ज्ञान, विचार एवं अनुभव को अन्य लोगो में सम्प्रेषित करने में कितना सफल रहता है।

Business Communication Oral Presentation

श्रोताओं के लिये पहले से ही तैयार किये गए भाषण को प्रस्तुत करना भी मौखिक प्रस्तुतीकरण कहलाता है। इसमें एक व्यक्ति अन्य व्यक्तियों के सम्मुख पूर्व निश्चित विषय को अपने शब्दों में व्यक्त करता है। व्यावसायिक उपक्रमों में दिन-प्रतिदिन जो संचार होता है उसमें एक बड़ा भाग मौखिक प्रस्तुतीकरण का ही होता है। एक श्रेष्ठ मौखिक प्रस्तुतीकरण एक भाषण से कहीं अधिक होता है। श्रेष्ठ प्रस्तुतीकरण के द्वारा श्रोता तथा प्रस्तुतीकरण का उद्देश्य दोनों ही पूर्णत: सन्तुष्ट होने चाहिये। एक श्रेष्ठ प्रस्तुतीकरण में उपयुक्त विषय सामग्री होनी चाहिए तथा यह प्रभावी तरीके से संगठित होनी चाहिए।

प्राय: लोग यह देख कर दूसरों का मूल्यांकन करते हैं कि वे कैसे बोलते हैं। व्यक्ति की आवाज तथा उसका बोलने का ढंग दूसरों को प्रभावित करता है। एक व्यक्ति क्या अनुभव कर रहा है, यह उसके बोलने के ढंग से स्पष्ट हो जाता है। बोलने के ढंग से व्यक्ति की पारिवारिक, सामाजिक, निवासीय, धार्मिक, सांस्कृतिक एवं शैक्षिक पृष्ठभूमि का भी परिचय मिलता है।

नई तकनीकों की खोजों के बावजद, निजी मेल मिलाप, जो आमने सामने की सभा में होता है, सम्पूर्ण मानवीय क्रिया का आवश्यक अंग है। सभाएँ भी महान समय शिक्षक हैं जिनमें लोग ये अनुभव करके सीखते हैं कि उन्होंने अभी कुछ भी प्राप्त नहीं किया।

Business Communication Oral Presentation

ईलीन शोल्ज मौखिक प्रस्तुतीकरण के उद्देश्य

(Purposes of Oral Presentation)

मौखिक प्रस्तुतीकरण के उद्देश्य निम्नलिखित हैं

1 जानकारी देना (To Inform)-प्रस्तुतीकरण का मूल उद्देश्य श्रोताओं को नई योजनाओं, सुझावों, नए उत्पादों आदि के बारे में जानकारी देना व शिक्षित करना होता है। प्रशिक्षण प्रस्तुतियों का मूल उद्देश्य नए कर्मचारियों को संगठन की नीतियों तथा विधियों के बारे में जानकारी देना होता है। विक्रय प्रस्तुतीकरण का उद्देश्य श्रोतागण को उत्पाद के गुणों जो उनके लिये लाभप्रद हैं के बारे में जानकारी देने से होता है।

2. प्रेरित करना (To Persuade)-प्रस्तुतीकरण का एक विशेष उद्देश्य श्रोताओं से किसी खास ढंग से कार्य कराना व विश्वास दिलाना है, जैसे विक्रय प्रस्तुतियाँ क्रेता को उत्पाद खरीदने के लिए। सहमत करती हैं।

प्रस्तुतीकरण का एक अन्य उद्देश्य श्रोताओं का मनोरंजन करना भी होता है, इसलिए प्रस्तुति के अन्त या मध्य में, चुटकले सुना कर अथवा अन्य प्रकार। से श्रोताओं का मनोरंजन किया जाता है।

मौखिक प्रस्तुतीकरण के सिद्धान्त

(Principles Of Oral Presentation)

मौखिक प्रस्तुतीकरण के प्रमुख सिद्धान्त निम्नलिखित हैं

(1) निश्चित उद्देश्य का सिद्धान्त प्रस्तुतीकरण का एक निश्चित उद्देश्य होना चाहिए। एक निश्चित उद्देश्य के अभाव में प्रस्तुतीकरण अप्रभावी रहता है। अत: सबसे पहले यह निश्चित करना होता है कि प्रस्तुतीकरण का उद्देश्य श्रोताओं को सूचना देना है, प्रोत्साहित करना है या मनोरंजन करना है। प्रस्तुतकर्ता के मन में प्रस्तुतीकरण का उद्देश्य अत्यन्त स्पष्ट एवं निश्चित होना चाहिए।

(2) विश्वास का सिद्धान्त-एक प्रस्तुतीकरण प्रक्रिया में प्रस्तुतकर्ता व श्रोताओं में विश्वास का होना नितान्त आवश्यक है। यदि प्रस्तुतकर्ता को स्वयं पर विश्वास होगा, तभी श्रोता उस पर विश्वास करेंगे। जैसे-जैसे प्रस्तुतीकरण का समय गुजरता है, वैसे-वैसे प्रस्तुतकर्ता अपने श्रोताओं का विश्वास अर्जित करता जाता है। विश्वास को जाग्रत करने के लिए प्रस्तुतीकरण का पूर्वाभ्यास कर लेना चाहिए। यदि श्रोताओं का विश्लेषण कर लिया जाये तो प्रस्तुतकर्ता में विश्वास जाग्रत होता है। ।

(3) स्पष्टता का सिद्धान्त-मौखिक प्रस्तुतीकरण में वक्तव्य का अर्थ तथा भाषा स्पष्ट होनी चाहिए तभी श्रोतागण उसका वही अर्थ लगायेगे जो प्रस्तुतकर्ता ने सोचा है। तकनीकी, कठिन व दो अर्थी शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

(4) यथार्थता का सिद्धान्त-एक प्रस्तुतकर्ता को यथार्थपरक होना चाहिए क्योंकि श्रोता इस बात का आकलन पहले करता है। यथार्थता दृढ़ विश्वास के लिए महत्त्वपूर्ण होती है। यदि प्रस्तुतकर्ता अपने वक्तव्य को यथार्थता से नहीं लेगा तो श्रोता भी यथार्थपरक नही होंगे।

(5) सूचनाओं में स्त्रोत का सिद्धान्त-प्रस्तुतीकरण में प्रयोग की जाने वाली सूचनाओं का स्त्रोत विश्वसनीय होना चाहिए तथा स्त्रोत के विषय में श्रोताओं को बताया जाना चाहिए ताकि उनका विश्वास बढ़ सके।

(6) ध्यानाकर्षण का सिद्धान्तप्रभावी प्रस्तुतीकरण के लिये श्रोताओं का ध्यान आकर्षित करके रखना अत्यन्त आवश्यक होता है। प्रत्येक व्यक्ति उन्हीं बातों में रुचि लेता है जो उसे व्यक्तिगत रूप से प्रभावित करती हैं। अत: श्रोताओं का ध्यान आकर्षित करने के लिये यह आवश्यक है कि विषय को श्रोताओं की आवश्यकताओं के अनुसार ढाला जाए। साथ ही स्पष्ट रूचिकर भाषा व सटीक उदाहरणों के द्वारा भी श्रोताओं का ध्यान आकर्षित किया जा सकता है।

(7) पूर्वाभ्यास का सिद्धान्त-प्रस्तुतीकरण के मुख्य विचार का चयन पहले से ही कर लेना चाहिए और उसे श्रोताओं को बताने से पहले उसका पूर्ण अभ्यास कर लेना चाहिए। इससे श्रोताओं का विश्वास भी बढ़ेगा और प्रस्तुतीकरण में सुविधा भी रहेगी।

(8) साख बनाने का सिद्धान्त-प्रस्तुतकर्ता को श्रोताओं के समक्ष अपनी साख बनाने का प्रयास करना चाहिए क्योंकि तभी श्रोताओं का संदेश पर विश्वास उत्पन्न होगा। इसके लिये आवश्यक है कि प्रस्ततकर्ता श्रोताओं को अपनी पृष्ठभूमि, योग्यताओं व योगदान से अवगत कराए।

(9) शोध का सिद्धान्त-शोध के सिद्धान्त के अनुसार अपने केन्द्रीय विचार के समर्थन के लिये आपके पास पर्ण तथ्य, सूचना तथा अन्य सामग्री होनी आवश्यक है। प्रस्तुतीकरण के विषय से सम्बन्धित सचनाओं आँकड़ों एवं अन्य तथ्यों को एकत्रित करना चाहिए जिससे कुछ नये विचारों को भी मुल विचारों से जोड़ा जा सके।

(10) मित्रता का सिद्धान्तप्रस्तुतीकरण प्रक्रिया के दौरान प्रस्तुतकर्ता को श्रोताओं के साथ। मित्रवत व्यवहार करना चाहिए। यह व्यक्ति का मनोविज्ञान है कि वह मित्रों की बातें अधिक गम्भीरता एवं रुचि के साथ सनता है। इसके अलावा कुछ और बातें जैसे-रूचि, मौलिकता, उत्साह आदि ऐसे तत्त्व हैं. जो प्रस्तुतीकरण को प्रभावशाली बनाते हैं। प्रस्तुतकर्ता को इन बातों पर भी विचार कर लेना चाहि

(11) पर्याप्तता का सिद्धान्तप्रस्तुतीकरण में विषय सामग्री एवं विषय वस्तु का निर्धारण बहत।

सोच विचार करके करना चाहिए। श्रोताओं की मानसिक क्षमता के अनुकूल प्रस्तुतीकरण अधिक प्रभावशाली होता है।

Business Communication Oral Presentation

(12) प्रस्तुतीकरण की पूर्व प्रस्तुति-प्रस्तुतीकरण को प्रभावी बनाने के लिए प्रस्तुतकर्ता को सम्बद्ध विषय के समस्त चरणों को श्रोताओं के सामने प्रकट कर देना चाहिए। वक्तव्य की रूपरेखा की जानकारी होने से श्रोता विषय को शीघ्र एवं आसानी से समझ लेते हैं। ऐसा करने से श्रोता एवं वक्ता शीघ्र ही विचार की मुख्यधारा में आ जाते हैं।

(13) मुख्य विचारों का विकास–प्रस्तुतीकरण के मुख्य तथ्यों को एक ही वाक्य में प्रस्तुत करना चाहिए। मुख्य बिन्दु या तथ्य ही श्रोता को यह संदेश देते हैं कि वक्ता का संदेश उनके अनुकूल है अथवा नहीं। अगर प्रथम वाक्य सशक्त होता है, तो श्रोता स्वतः जानने के लिए उत्सुकता प्रदर्शित करने लगता है, जिससे आगे की राह आसानी हो जाती है।

(14) समापन का सिद्धान्त-प्रस्तुतीकरण में समापन का प्रारम्भ के समान ही महत्त्व होता है। समापन के समय वक्तव्य में “अन्त में,” “संक्षेप में” शब्दों का प्रयोग किया जाता है। इस अवस्था में प्रस्तुतकर्ता को अपने मुख्य विचारों को श्रोताओं के सम्मुख दोहराना गाहिए तत्पश्चात् मुख्य अभिप्रेरक बिन्दुओं को बताइए। प्रस्तुतकर्ता के अन्तिम वाक्य अत्यन्त ही उत्साहवर्द्धक तथा जोश भरे होने चाहिएँ। समापन सदैव सकारात्मक तथ्यों द्वारा ही करना चाहिए।

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मौखिक प्रस्तुतीकरण की प्रक्रिया

(Process of Oral Presentation)

मौखिक प्रस्तुतीकरण की प्रक्रिया में अनेक बिन्दु होते है। इन बिन्दुओं से गुजरने के बाद ही मौखिक प्रस्तुतीकरण पूर्ण हो सकता है। अत: इन बिन्दुओं का अध्ययन करना आवश्यक है। मर्फी, हिल्डर ब्रांड तथा थॉमस ने निम्नलिखित 7 बिन्दुओं का वर्णन किया है

(1) उद्देश्य निर्धारण (Setting the Objectives) सर्वप्रथम यह जानना आवश्यक है कि प्रस्तुतीकरण का उद्देश्य सूचना देना है, प्रोत्साहित करना है या मनोरंजन करना है अर्थात् सर्वप्रथम प्रस्तुतीकरण का उद्देश्य निर्धारित किया जाना चाहिए।

(2) श्रोता विश्लेषण (Audience Analysis)-उद्देश्य निर्धारण के पश्चात् श्रोताओं की पहचान तथा उनके परिवेश को जानना आवश्यक है। श्रोताओं की औसत आयु, व्यवसाय, उनके हित, पूर्वाग्रह, दुराग्रह तथा प्रस्तुतीकरण में उनके उपस्थित होने के कारण आदि को जानना अत्यन्त आवश्यक है।

(3) प्रस्तुतीकरण के मुख्य विचार का चुनाव (Selection of main Idea of the Presentation)-प्रस्तुतीकरण प्रक्रिया का तीसरा कदम प्रस्तुतीकरण के मुख्य विचार या प्रमुख अवधारणा का चयन करना है। जो विशेष बात आप श्रोताओं के साथ करना चाहते है उसे पहले से ही निर्धारित कर लेना चाहिए।

(4) विषय अन्वेषण (Research the Topic)-प्रस्तुतीकरण के मुख्य विचार के चुनाव के बाद यह आवश्यक है कि मुख्य विचार से सम्बन्धित तथ्यों, आँकड़ों, तथा अन्य सूचनाओं का संग्रह किया जाये। इस प्रकार विषय अन्वेषण से प्रस्तुतकर्ता के मस्तिष्क में कुछ नये विचार भी जुड़ सकते हैं जो प्रस्तुतीकरण के समय उसकी सहायता करते हैं। विषय अन्वेषण का यह कार्य प्रस्तुतीकरण के समय से ठीक पहले तक चलते रहना चाहिए।

(5) आँकडों का समावेश एवं प्रारुप लिखना (Inclusion of Data and writing the draft) आँकड़ों एवं सूचनाओं का संग्रह पूर्ण हो जाने के पश्चात् प्रस्तुतीकरण की प्रारम्भिक रुपरेखा तैयार की जानी चाहिए जिसमें संग्रहित आँकड़ों एवं सूचनाओं का समावेश हो। प्रस्ततीकरण के प्रारुप को निम्नलिखित तीन भागों में विभाजित कर लेना चाहिए

Business Communication Oral Presentation

(i) प्रस्तावना (Introduction)—प्रस्तुतीकरण की प्रस्तावना बनाने का मख्य उद्देश्य श्रोताओं का ध्यान आकर्षित करना, प्रस्तुतीकरण की दिशा एवं उद्देश्य का निर्धारण तथा कार्यसूची (Agenda or | Layout) का निर्धारण करना होता है। मर्फी एवं थॉमस ने इन पहलओं को PAL का नाम दिया है। जिसका विवरण इस प्रकार है

P = Porch = ड्योढ़ी : जिस प्रकार किसी मकान की योनी या दहलीज होती है जिसस गुजरकर मकान में प्रवेश किया जाता है, उसी प्रकार प्रस्ततीकरण के पाभिक कथन का भा ड्याका (Porch) कहा गया है। गला साफ करने के लिए कथन, अभिनन्दन, भूमिका आदि या क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति का किसी वस्तु के प्रति दृष्टिकोण अलग-अलग होता है जैसे, व्यक्तिगत सुरक्षा, आर्थिक लाभ, प्रशंसा, अच्छा भविष्य, बोनस, उपहार इत्यादि।

(III) दृश्यश्रव्य सामग्री का प्रभावी नियोजन प्रयोग (Effective Planning and Uses of Audio-Video Devices) क्रेताओं/श्रोताओं में रुचि जाग्रत करने के लिए दृश्य-श्रव्य सामग्री का प्रभावी नियोजन व नियन्त्रण करना लाभकारी होता है क्योंकि ये सामग्री प्रस्तुति को व्यावसायिक स्वरुप प्रदान करते हैं, साथ ही साथ एक प्रस्तुतकर्ता अपने विचारों/युक्तियों के प्रति श्रोताओं/क्रेताओं को आसानी से सहमत करा सकता है। इसके द्वारा व्यक्तियों द्वारा अतिरिक्त प्रश्नों की संख्या को कम किया जा सकता है।

विक्रय प्रस्तुतीकरण

(Sales Presentation)

 (IV) समापन (Ending)-एक विक्रय प्रस्तुतीकरण का समापन प्रस्तुतीकरण के आरम्भ के समान ही प्रभावशाली होना चाहिए। इस हेतु मुख्य बिन्दुओं को पुनः बताना चाहिए व प्रारम्भिक वक्तव्य को संदर्भित कर एक सकारात्मक टिप्पणी के साथ समापन व क्रेता को उत्पाद को क्यों व कैसे खरीदना चाहिए इत्यादि बातों का वर्णन करना चाहिए।

(2) प्रशिक्षण प्रस्तुतीकरण (Training Presentation)-प्रशिक्षण प्रस्तुतीकरण सूचनात्मक प्रस्तति होती है जिसका उद्देश्य श्रोताओं को प्रशिक्षण देना होता है। इसमें श्रोताओं को सिखाया जाता है। कि उन्हें कौन सा कार्य किस प्रकार करना है। उदाहरण के लिये कार्यालय प्रबन्धक, कर्मचारियों को । निसार में बताता है कि इन्टरकॉम को अथवा ध्वनि मेल (Voice-mail) प्रणाली को कैसे प्रयोग करना ।

जारी प्रबन्धक नए भर्ती होने वाले कर्मचारियों को कम्पनी के नियमों आदि के विषय में बताता है।। रिल अधिशासी पदोन्नत हुए प्रबन्धकों को, नए पद पर उनकी जिम्मेदारियों और भमिका के विषय में। बतलाता है। प्रशिक्षण प्रस्तुतीकरण का स्वरुप पूर्णतः औपचारिक होता है।

.बी. फिल्पिपो के अनुसार, “प्रशिक्षण किसी विशेष कार्य को करने के लिये कर्मचारी के ज्ञान वा कौशल को बढ़ाने की एक क्रिया है।”

टेल एस. बीच के अनुसार, प्राशक्षण एक ऐसी संगठित कार्यविधि है जिसके द्वारा व्यक्ति किसा विशिष्ट उद्देश्य के लिये ज्ञान और चातुर्य सीखते हैं।”

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प्रशिक्षण प्रस्तुतीकरण के चरण

(Steps Of Training Presentation)

(i) उद्देश्यों को स्पष्ट करना (Define Training Objectives) प्रस्तुति के प्रथम चरण में प्रशिक्षण के उद्देश्य क्या है ? क्यों है ? व प्रशिक्षण के लिए किस विधि का प्रयोग किया जायेगा इत्यादि बातें स्पष्ट करनी होती हैं।

(ii) कसौटियों का विकास (Develop Criteria)-प्रशिक्षण प्रस्तुति के इस चरण में निम्नांकित बातें आती है कार्यक्रम के मूल्यांकन की विधि, वर्तमान ज्ञान शिक्षा को भविष्य की कार्यक्षमता से जोड़ने का तरीका, कार्यक्षमता को मापने के गुणात्मक तकनीकों के विकास का तरीका, सुधरी हुई कार्यक्षमता पर दिया जाने वाला पुरस्कार आदि।

(iii) विषयसूची का निर्माण (Derive Contents)-प्रशिक्षण प्रस्तुति के इस चरण में निम्नांकित बातें सम्मलित होती हैं। __मुख्य श्रोता कौन है ? प्रशिक्षार्थियों का स्तर व उनके सीखने का अनुभव एवं सीखने का दृष्टिकोण, प्रशिक्षण प्रस्तुति के मुख्य विषय/तत्व, प्रशिक्षण कार्यक्रम की समय-सीमा आदि।

(iv) प्रशिक्षण विधि सामग्री (Method and Meterials of Training)-इसमें निम्नांकित बातें आती हैं उद्देश्य प्राप्ति का तरीका, प्रशिक्षण हेतु प्रयुक्त विधि का प्रकार, प्रशिक्षार्थियों की पसंदीदा विधि, प्रशिक्षण हेतु प्रयुक्त सामग्री का प्रभार, प्रशिक्षकों की प्रभावशीलता का स्तर आदि।

(v) प्रशिक्षण कार्यक्रम (Training Programme)-इसमें प्रशिक्षण कार्यक्रम के प्रारुप का निर्माण व प्रशिक्षण अवधि क्या होगी, इसका निर्धारण किया जाता है।

(vi) प्रशिक्षार्थी (Trainee)-इसके अन्तर्गत ऐसे व्यक्तियों की पहचान की जाती है जिन्हें प्रशिक्षण की आवश्यकता है, साथ ही साथ यह भी पता लगाया जाता है कि उन्हें अभी प्रशिक्षण की आवश्यकता क्यों है।

(vii) पुनः प्रवेश (Re-entry)-इसके अन्तर्गत प्रशिक्षण उपरान्त प्रशिक्षुओं के कार्य पर्यावरण में प्रवेश के अवलोकन के तरीके तथा साथ ही प्रयोग किये जाने वाले सहयोगी उपकरणों के तरीके से है। इस हेतु प्रशिक्षुओं को स्वविवेक पर छोड़ना उचित होगा या उन्हें अपनी प्रशिक्षण योग्यता का व्यावसायिक संगठन में प्रयोग करने का अवसर दिया जायेगा, इस बात का चिन्तन किया जाता है।

(viii) प्रतिपुष्टि (Feedback)—यह प्रशिक्षण प्रस्तुति का अन्तिम चरण है। व्यक्तियों को प्रशिक्षण के उपरान्त कार्य के आधार पर प्रतिक्रिया देनी चाहिए तथा यह बताना चाहिये कि प्रशिक्षण प्रस्तुतीकरण कितना प्रभावपूर्ण रहा है।

प्रशिक्षण प्रस्तुतीकरण के सम्बन्ध में यह ध्यान रखना आवश्यक होता है कि कौशल का विकास रातों-रात नहीं हो सकता, इसके लिये अभ्यास एवं समय की आवश्यकता होती है।

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सर्वेक्षण

(Survey)

सर्वेक्षण का अर्थ होता है निरीक्षण करना या जाँच करना। व्यवसाय में भी प्रायः इस प्रकार के निरीक्षण की आवश्यकता पड़ती है कि हमारे उत्पाद को कितने लोग प्रयोग में ला रहे हैं तथा जो लोग उत्पाद का प्रयोग नहीं कर रहे हैं उसका क्या कारण है, वे किस प्रकार का उत्पाद चाहते हैं आदि। इन सभी बातों की जाँच के लिये कुछ व्यक्ति नियुक्त कर दिये जाते हैं जो लोगों से उत्पाद से सम्बन्धित सूचनाएँ एकत्रित करते हैं। इस सूचना की जाँच और एकत्रीकरण को ही सर्वेक्षण कहा जाता है अर्थात् व्यावसायिक सूचना एकत्रित करना ही सर्वेक्षण कहलाता है।

सरल शब्दों में, सर्वेक्षण से आशय निरीक्षण करने या जाँचने से होता है अर्थात यथार्थ व सहा सूचना प्राप्त करने के लिये किया गया निरीक्षण ही सर्वेक्षण कहलाता है।

वर्तमान समय में आर्थिक, सामाजिक, प्राकृतिक तथा राजनीतिक सभी क्षेत्रों में विभिन्न तथ्य जानकारी और समस्याओं को हल करने के लिए सर्वेक्षण अनुसन्धानों का आयोजन एव सग जाता है। वास्तविकता यह है कि संख्यात्मक तथ्यों से सम्बन्धित अनुसंधान का काइ सांख्यिकीय रीतियों के प्रयोग के बिना पूरा नहीं हो सकता।

व्यवसाय में प्रबन्धकीय व्यवस्थाओं को पूरा करने के लिये बाजार की कुछ सूचनाओं की आवश्यकता होती है। यह सूचना प्रतिस्पर्धा, जनसंख्या इत्यादि से सम्बन्धित होती है। प्रबन्ध को इसके लिए बाजार का सर्वे करना पड़ता है और ऐसी अनेक सूचनाओं को एकत्रित करना होता है जिनका व्यवसाय से प्रत्यक्ष सम्बन्ध तो नहीं होता है लेकिन वे प्रबन्धकीय कार्यक्षमता पर प्रभाव अवश्य डालती। है। सर्वे करने के लिए आँकड़ों को एकत्रित किया जाता है और सांख्यिकी की सहायता से उन आँकडों। को सरल बनाया जाता है।

(1) प्रो० बारकर एवं गाउट के अनुसार, “सर्वेक्षण विस्तृत रुप से प्रश्नावली, अवलोकन, साक्षात्कार आदि के द्वारा सूचनाएँ एकत्रित करने की विधि है।”

(2) प्रो० माल्रा ट्रेसी के अनुसार, “सर्वेक्षण व्यावसायिक सूचना एकत्रित करने के साधन हैं। इनके द्वारा सूचना व्यक्तिगत साक्षात्कार, टेलीफोन या प्रश्नावली के द्वारा एकत्रित की जाती हैं।”

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सर्वेक्षण के उद्देश्य

(OBJECTS OF SURVEY)

एक सर्वेक्षण के निम्नलिखित उद्देश्य हो सकते हैं

(i) किसी विशिष्ट पहलू से सम्बन्धित तथ्यों व आँकड़ों को एकत्रित करना।

(ii) किसी परिकल्पना की सत्यता की जाँच करना।

(iii) किसी सिद्धान्त की सत्यता/यथार्थता का परीक्षण करना।

(iv) किसी घटना के कारण व परिणामों के बीच सम्बन्ध का पता लगाना व जाँच करना।

(v) किसी समस्या विशेष के समाधान सम्बन्धी जानकारी का एकत्रीकरण।

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सर्वेक्षण के लिए नियोजन प्रक्रिया

(Process of Planning for Surveys)

सर्वेक्षण की नियोजन प्रक्रिया में निम्नांकित बातों पर स्पष्ट रूप से विचार करना आवश्यक होता है

(1) समस्या की परिभ षा (Defining the Problem)—जिस समस्या के सम्बन्ध में अनुसन्धान करना है उसकी स्पष्ट परिभाषा पहले ही निश्चित कर लेनी चाहिए अन्यथा अनुसन्धान की योजना निरर्थक रहेगी और अनुसन्धान कार्य में अनेक कठिनाइयाँ उपस्थित होंगी। यह भी हो सकता है कि एकत्र किये हुए समंक व्यर्थ हो जायें जिससे केवल समय, श्रम एवं धन की बर्बादी ही होगी। अत: सफल आयोजन हेतु समस्या को सुनिश्चित शब्दों में परिभाषित कर लेना आवश्यक है। उदाहरण के लिए यदि किसी औद्योगिक इकाई के श्रमिकों की मजदूरी के सम्बन्ध में अनुसन्धान करना है तो यह पहले ही निश्चित कर लेना चाहिए कि उनकी नकद मजदूरी से सम्बन्धित समंक एकत्र करने हैं या वास्तविक मजदूरी से सम्बन्धित। यदि हम बेरोजगारी की समस्या का विश्लेषण करना चाहते हैं तो बेरोजगारी की परिभाषा को स्पष्ट करना होगा।

(2) अनुसन्धान का उद्देश्य (Purpose of Investigation)—जिस समस्या का अनुसन्धान करना है उसकी परिभाषा निश्चित करने के उपरान्त यह भी सोच लेना आवश्यक है कि अनुसन्धान का उद्देश्य क्या है ? यदि अनुसन्धान का लक्ष्य निश्चित कर लिया जाता है तो आगे चलकर समंकों के वर्गीकरण, सारणीयन, विश्लेषण अथवा निर्वचन में कठिनाई नहीं उठानी पड़ेगी।

(3) अनुसन्धान का क्षेत्र (Scope of Investigation)-अनुसन्धान का उद्देश्य निश्चित करने के बाद यह देखना भी आवश्यक है कि अनुसन्धान का क्षेत्र क्या है ? क्षेत्र से तात्पर्य केवल भौगोलिक या राजनीतिक क्षेत्र से नहीं है, आर्थिक क्षेत्र या अन्य दृष्टिकोणों से भी समस्या को सीमाओं में परिबद्ध करना इसमें निहित होता है। उदाहरण के लिए यदि हम रोजगार उपलब्ध कराने में जवाहर रोजगार योजना का अध्ययन करना चाहते हैं तो हमें यह निश्चित करना होगा कि हमारे अध्ययन का क्षेत्र ग्राम, जिला, राज्य या पूरा देश होगा।

(5) समंको के स्त्रोतसांख्यिकीय अनुसन्धान का आयोजन करते समय समंकों के स्त्रोतों पर। विचार करना भी आवश्यक हा प्रमुख रूप से समंकों को प्राप्त करने के दो स्त्रोत होते हैं प्राथमिक स्रोत तथा (ii) द्वितीयक स्त्रोता स्त्रोत का निर्णय बहुत कुछ अनुसन्धान के उद्देश्य एवं अनुसन्धानकर्ता के साधनों पर निर्भर करता है।

(6) शद्धता का स्तर (Degree of Accuracy)-अनुसन्धान की योजना में शद्धता का स्तर भी निर्धारित करना होता है। व्यवहार में शत-प्रतिशत शुद्धता प्राप्त करना बहुत कठिन होता है। अत: शद्धता।

एक निश्चित स्तर तय किया जाता है। यह स्तर अनुसन्धान के उद्देश्य एवं क्षेत्र, समग्र के आकार तथा सूचनाओं के स्त्रोत इत्यादि से निर्धारित होता है।

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सर्वेक्षण के चरण

(Steps of Surveys)

एक सर्वेक्षण प्रक्रिया में निम्नलिखित चरण होते हैं

(1) प्रथम चरण (First Step)-इस चरण में किसी सर्वेक्षण कार्य के आरम्भ से अन्त तक के कार्यक्रम को एक व्यवस्थित रुप दिया जाता है। इस चरण में निम्नलिखित बातों पर विचार किया जाता

(i) समस्या की व्याख्या, (ii) सर्वेक्षण का उद्देश्य, (iii) सर्वेक्षण का क्षेत्र, (iv) परिकल्पना का निर्माण, (v) शुद्धता का स्तर, (vi) प्रारम्भिक तैयारियाँ (vii) न्यादर्श का चुनाव (viii) सर्वेक्षण का समय तथा बजट (ix) समंक संकलन विधि, (x) प्रपत्रों का निर्माण, (xi) प्रगणकों का चुनाव व प्रशिक्षण, (xii) पूर्वगामी सर्वेक्षण, (xiii) सर्वेक्षण का संगठन।

(II) द्वितीय चरण (Second Step)-इस चरण में निम्नलिखित कार्य किये जाते हैं

(i) आँकड़ों का संकलन (Collection of Data)-सर्वेक्षण की योजना बना लेने के पश्चात् उसे कार्य रुप देने के लिये अगला कदम होता है आँकड़ों का एकत्रीकरण। आँकड़ों का एकत्रीकरण संगणना रीति से होगा या न्यादर्श विधि से यह पहले ही तय हो चुका होता है अत: यहाँ तय की गई विधि से आँकड़ों को एकत्र किया जायेगा। आँकड़ों के संकलन की रीति क्या होगी, इसके लिये प्रश्नावली का प्रयोग किया जा सकता है अथवा स्वयं सूचनाएँ नोट की जा सकती हैं। सूचनाएँ सम्बन्धित व्यक्ति से मिल कर ली जा सकती है या यदि वे सूचनाएँ कही प्रकाशित हैं तो वहाँ से प्राप्त की जा सकती हैं।

(ii) आँकड़ों का सम्पादन (Editing of Data)-समकों का संकलन किसी भी प्रकार से क्यों न किया जाए उनमें कुछ न कुछ कमी रह जाती है। इसी कमी को दूर करने के लिये जो क्रिया अपनाई जाती है, उसे सम्पादन कहते हैं। समंकों के सम्पादन से आशय संकलित समंकों की शुद्धता की जाँच करना, त्रुटियों को दूर करना, अधूरी सूचनाओं को पुनः संकलित करना आदि से है।

(iii) आँकड़ों का वर्गीकरण एवं सारणीयन (Tabulation of Data)-सूचनाओं के सम्पादन के पश्चात् उन्हें व्यवस्थित करने की आवश्यकता होती है अर्थात् एक तरह की सूचना को एक साथ करना। आँकड़ों को व्यवस्थित किये जाने की क्रिया को ही वर्गीकरण कहते हैं। इसमें सूचनाओं को आवश्यकतानुसार किसी गुण के आधार पर छाँट कर व्यवस्थित कर लिया जाता है। दूसरे शब्दों में, संकलित आँकड़ों को किसी गुण के आधार पर समान व असमान कर अलग-अलग वर्गों में बाँटने की प्रक्रिया को ही वर्गीकरण कहते हैं।

वर्गीकृत आँकड़ों को सरल एवं समझने योग्य बनाने के लिये खानों या पक्तियों में क्रमबद्ध करना सारणीयन कहलाता है अर्थात् एकत्र आँकड़ों के क्रमबद्ध एवं सुव्यवस्थित प्रस्तुतीकरण को ही सारणीयन कहते हैं।

(III) तृतीय चरण (Third Step)-सर्वेक्षण के इस चरण में सार्थकता के स्तर का विश्लेषण व निर्वचन किया जाता है। इसमें संकलित आँकड़ों के विश्लेषण के लिये पर्व निर्धारित परिकल्पना का परीक्षण किया जाता है अर्थात् निष्कर्ष की वैधता व पृष्टता की स्थापना की जाती है।

आकड़ों के विश्लेषण के लिये सांख्यिकीय विधियों का प्रयोग किया जा सकता है। उन्हीं के द्वारा। विश्लेषित आँकड़ों का निर्वचन करके समस्या का हल खोजा जाता है।

इस सम्बन्ध में नीस्वेगर का कहना है, “सांख्यिक का कर्तव्य समंकों का संकलन करने तथा इनस सम्बन्धित गणनाएँ करने से कहीं अधिक आगे है। समंक स्वयं कछ नहीं बोलते और सांख्यिक हा वह व्याक्त है जिसे उनके अर्थों की खोज करने के लिए सांख्यिकीय परिणामों का निर्वचन करना होता है ।

(IV) अन्तिम चरण (Last Step) यह सर्वेक्षण का अन्तिम चरण है। समस्त एकत्रित ऑकही। के विश्लेषण के बाद एक प्रतिवेदन तैयार किया जाता है जिसमें सर्वप्रथम उस समस्या का उल्लेख होता। है जिसके लिये सर्वेक्षण किया गया है। उसके पश्चात आँकड़ों के विश्लेषण से प्राप्त निष्कर्षों को लिखा जाता है तथा यदि आवश्यक हुआ तो सुझाव भी दिये जा सकते हैं। प्रतिवेदन तैयार करने में भाषा की स्पष्टता एवं उसकी शुद्धता का भी ध्यान रखा जाना चाहिये।।

सर्वेक्षण की विधियाँ

(Methods of Survey)

प्रश्नावली (Questionnaire)                                    साक्षात्कार (Interview)

(1) प्रश्नावली (Ouestionnaire) सर्वेक्षण के इस ढंग में लिखित प्रश्नों की एक सूची जिसे प्रश्नावली कहते हैं, तैयार की जाती है जिसे लोगों को भरना होता है। प्रश्नावली में मूलतः तीन प्रकार के प्रश्न पूछे जाते हैं

(i) बन्द प्रश्न (Closed Question)-इस प्रकार के प्रश्नों का उत्तर “हाँ” अथवा नहीं अर्थात् मात्र एक शब्द में दिया जाता है। उदाहरण के लिये “क्या आप विवाहित हैं ?” “हाँ” अथवा “नहीं।”

(ii) खुले प्रश्न (Open Question)-खुले प्रश्न उत्तरदाता को खुलकर व्याख्या करने का अवसर देते हैं। ये प्रश्न प्रश्नकर्ता को अवसर प्रदान करते हैं कि वह समस्या की गहन छानबीन कर सके। जैसे “आपके विचार में ‘मनाली’ पर्यटन स्थल के रुप में कैसा स्थान है ?”

(iii) श्रेणीगत प्रश्नये प्रश्न उत्तरदाता को यह अवसर देते हैं कि वह अपने उत्तर को श्रेणीबद्ध कर सके। उदाहरण के लिए कृपया, पढ़ाई के उद्देश्यों के बारे में अपनी राय क्रमवार दो।

1 ज्ञानार्जन करना

2. आजीविका कमाना

3. विशिष्ट कलाओं को विकसित करना

4. व्यक्ति के चारों आयामों का लयबद्ध विकास, भौतिक, मानसिक, भावनात्मक, आध्यात्मिक

5. उत्तम श्रेणी में परीक्षा पास करना

एक अन्य उदाहरण के द्वारा इसे स्पष्ट किया जा सकता है। कृपया टिक (/) लगाकर अपनी राय दो सहमत कुछ कह नहीं असहमत सकता  है

1 शिमला में वाहन खड़े करने की सविधा पर्याप्त है।

2. शिमला में

3. शिमला में एवं शिमला के आस-पास पर्यटन स्थानों का सुविधा पर्याप्त है। पर सफाई का पर्याप्त प्रबन्ध है।

4. शिमला में पर्यटन स्थलों पर पुलिस पूर्ण सहयोग करती है।

5. शिमला में पर्याप्त खरीदारी की सुविधाएँ हैं। बन्द प्रश्नों का उत्तर तो आसानी से दिया जा सकता है परन्तु इनसे समस्या को हल करने में नहीं मिलती। खले प्रश्न अधिक प्रकाश डालने वाले होते हैं लेकिन उन्हें समझना कठिन होता है। श्रेणीगत प्रश्न, प्रश्नकता को कुछ उपयोगी सूचना देते हैं जिसे आसानी से श्रेणीबद्ध किया जा सकता है।

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अच्छी प्रश्नावली के गुण अथवा प्रश्नावली के निर्माण में ध्यान रखने योग्य बाते

(Essentials of a Good Questionnaire or Precautions to be taken in drafting a Questionnaire)

प्रश्नावली तैयार करना एक विशिष्ट कला है एवं करना एक विशिष्ट कला है एवं सांख्यिकीय अनुसन्धान की सफलता बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करती है कि प्रश्नावली कितनी प्रभावशाली कितना प्रभावशाली है अथवा कितनी सावधानी से बनायी गयी है।

(i) कम प्रश्न-प्रश्नों की संख्या कम से कम होनी चाहिए, परन्तु प्रश्न इतने कम भी न हों कि पर्याप्त सूचना ही प्राप्त न हो सके।

(ii) सरलता व स्पष्टता-प्रश्नों में सरलता और स्पष्ट होनी चाहिए। वे लम्बे, जटिल एवं दो अर्थो । वाले नहीं होने चाहिये। यदि उत्तरदाता प्रश्नों को समझ ही नहीं पाएंगे तो वे उनके सही उत्तर नहीं दे पाएँगे। अत: प्रश्नावली में यथासम्भव अप्रचलित व जटिल शब्द, असम्मानसूचक शब्द जैसे नौकर, अनिश्चित शब्द जैसे शायद, अक्सर, कभी-कभी आदि का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

(iii) संक्षिप्तता-प्रश्न ऐसे होने चाहिए जिनके उत्तर हाँ या ना या किसी संक्षिप्त शब्द या अंक के रुप में दिये जा सकें।

(iv) प्रश्नों का तर्कपूर्ण क्रम-प्रश्नावली में प्रश्नों को उनके तर्कपूर्ण क्रम में रखना चाहिए। परस्पर सम्बन्धित प्रश्नों को अलग-अलग न रखकर एक ही स्थान पर क्रमबद्ध किया जाना चाहिए।

(v) वर्जित प्रश्न-प्रश्नावली में ऐसे प्रश्न शामिल नहीं किये जाने चाहियें जिनसे उत्तर देने वाले के आत्म-सम्मान, व्यक्तिगत, धार्मिक या सामाजिक भावनाओं को ठेस पहुंचे। जैसे क्या आप कर की चोरी करते हैं। क्या आप चरित्रवान हैं। क्या आप अपने कार्य कराने के लिए सरकारी कर्मचारी को रिश्वत देते हैं। क्या आपको अपने लड़के की शादी में दहेज लेना चाहिए इत्यादि।

(vi) सत्यता की जाँच-सामान्यतया ऐसे प्रश्नों को भी प्रश्नावली में सम्मिलित नहीं करना चाहिए जिनके उत्तरों की यथार्थता की परस्पर जाँच न की जा सके।

(vii) प्रत्यक्ष सम्बन्ध-प्रश्न, अनुसन्धान से प्रत्यक्ष रुप से सम्बन्धित होने चाहिये ताकि आवश्यक सूचना एकत्र करने में समय व धन का अपव्यय न हो।

(viii) निर्देश एवं टिप्पणी-प्रश्नावली में सूचनादाता के लिए आवश्यक निर्देश दिये जाने चाहिये जैसे उसे प्रश्नावली किस प्रकार भरनी है और कब तक तथा किस पते पर लौटानी है।

(2) साक्षात्कार (Interviews)-साक्षात्कार सर्वेक्षण एक वार्तालाप है जिसमें सर्वेक्षणकर्ता उत्तरदाता से आवश्यक सूचनाएँ प्राप्त करता है। साक्षात्कार दो प्रकार का हो सकता है (i) व्यक्तिगत साक्षात्कार, (ii) टेलीफोन पर साक्षात्कार। व्यक्तिगत साक्षात्कार में आमने-सामने बातचीत के द्वारा सूचनाएँ प्राप्त की जाती हैं। इसका लाभ यह है कि इसके द्वारा तुरन्त फीडबैक मिल जाती है तथा यदि कोई भ्रांति होती है या कोई बात समझ में नहीं आती तो उसे तुरन्त ही स्पष्ट किया जा सकता है। टेलीफोन पर भी बातचीत करके साक्षात्कार किये जा सकते हैं। इसका मुख्य गुण यह है कि ये शीघ्र हो सकते हैं तथा कम खर्चीले भी होते हैं। इस पद्धति का प्रयोग तभी प्रभावी होता है जब

(i) साक्षात्कार देने वाले के पास कोई आवश्यक सूचना हो।

(ii) प्रश्नों का प्रारुप कुछ इस प्रकार का है कि वह सूचना की आवश्यकता ग्रहण कर ले।

(iii) साक्षात्कार देने वाला पूर्ण सहयोग करता है।

भाषण का आशय

(Meaning of Speech)

भाषण वह कला है, जिसके द्वारा व्यक्ति अपने ज्ञान, विचार, भावना तथा कल्पनाओं को लोगों तक पहँचाता है। जब वक्ता अपनी वाणी एवं व्यवस्थित भाषा के साथ-साथ दैहिक एवं पार्श्व भाषा का प्रयोग करके अपने विचारों को प्रेषित करता है तो वह श्रोताओं को अपनी तरफ आकर्षित करने में सफल हो जाता है। भाषण संचार का एक शक्तिशाली माध्यम है। भाषण के द्वारा ही विचारकों, लेखकों, नेताओं, सन्तों, अर्थशास्त्रियों तथा राजनीतिज्ञों ने नवीन एवं शक्तिशाली क्रान्तियों को जन्म दिया है। इसके द्वारा वक्ता किसी नीति या विचार के प्रति श्रोताओं को समर्थन के लिए तैयार करता है या वर्तमान विचारों का खण्डन करके नया मार्ग सुझाता है।

भाषण एक बहुत ही सरल और सूक्ष्म शब्द है जिससे प्रत्येक व्यक्ति परिचित है किन्तु भाषण देना। उतना ही कठिन और दुरुह कार्य है। सम्प्रेषण की क्रिया में भाषण सबसे महत्त्वपूर्ण माध्यम है जिसका द्वारा सन्देश को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति या एक स्थान से दसरे स्थान पर पहुंचाया जाता है। भाषण एक सामाजिक आवश्यकता है तथा प्रत्येक व्यक्ति को कहीं न कहीं किसी न किसी रुप में भाषण दना पड़ता है। जो व्यक्ति इस कला में जितना प्रवीण होता है वह अपने श्रोताओं को उतना ही अधिक प्रभावित करता है।

आज के आधुनिक व्यावसायिक परिवेश में एक विक्रिय प्रतिनिधि अपनी वस्तु को बेचने के लिए। समस्त प्रभावी स्त्रोतों का प्रयोग करता है। उनमें से सबसे महत्त्वपूर्ण वस्तु की विशेषताओं से सम्बन्धित व्याख्यान होता है। एक प्रबन्धक, उद्योगपति, अध्यक्ष प्रबन्ध निदेशक किसी समारोह, सम्मेलनों व कम्पनी की बैठकों में व्याख्यान का प्रयोग करते हैं। स्पष्ट है कि प्रत्येक व्याख्यान पूर्व निर्धारित होता है व विभिन्न अवसरों पर विभिन्न व्यक्तियों के लिए भिन्न-भिन्न होता है।

व्याख्यान/भाषण की तैयारी के लिये निर्देश

(Guidelines For Preparing a Speech)

किसी भी व्यक्ति को यदि भाषण देना है तो उसे उसकी तैयारी अवश्य करनी चाहिये। यदि तात्कालिक भाषण देना है तो भी मस्तिष्क में कुछ बातों को संकलित करने का प्रयास करना चाहिये। भाषण में वक्ता के प्रत्येक शब्द और भाषा पर श्रोता का ध्यान होता है तथा छोटी सी भी गलती उसके भाषण को खराब कर सकती है। एक वक्ता जो सम्पूर्ण सम्बन्धित तथ्यों से अवगत होता है, वह सदैव श्रोताओं को मन्त्रमुग्ध व प्रभावित करता है। हमें सदैव इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि बोले गये शब्द एक बन्दूक से निकली हुई गोली की तरह होते हैं जो कभी वापस नहीं आती। अत: हमें व्याख्यान देते समय अत्यन्त सावधान रहना चाहिए। हमें श्रोताओं की (लोगों की) भावनाओं/संवेदनाओ को ध्यान में रखना चाहिए। साथ ही साथ वक्ता को अपने संगठन के प्रभाव में वृद्धि करने के लिए अपने व्याख्यान में सम्भावित प्रयास करना चाहिए। एक व्याख्यान से किसी भी प्रकार का भ्रम उत्पन्न नहीं होना चाहिए। साथ ही साथ एक व्याख्यान/भाषण अधिक लम्बा नहीं होना चाहिए क्योंकि लम्बा व्याख्यान/भाषण ऊबाऊ होता है। अत: एक भाषण/व्याख्यान की तैयारी में हमें निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए

1.रुडयार्ड किपलिंग (Rudyard Kipling) के अनुसार हमें व्याख्यान/भाषण को तैयार करते समय निम्नलिखित प्रश्नों को ध्यान में रखना चाहिए।

(i) क्या ? (What ?)-हम क्या सम्प्रेषित करना चाहते हैं ?

(ii) क्यों ? (Why?)-हमें व्याख्यान/भाषण का उद्देश्य मालूम होना चाहिए अर्थात् हमें श्रोता क्यों सुने और हमने उनका चयन क्यों किया है ?

(iii) कहाँ ? (Where?) हमें अपना व्याख्यान कहाँ देना है ? क्या चयनित स्थान श्रोताओं की दृष्टि से उचित है?

(iv) कब? (When ?) क्या हमने अपने व्याख्यान में समय का ध्यान रखा है? आपका किस समय व कितने समय तक बोलना उचित है ?

(v) कैसे ? (How ?) हम अपने सन्देश को कैसे अच्छी तरह से सम्प्रेषित करें? अतः अपने व्याख्यान/भाषण को प्रभावशील कैसे बनायें? ।

(vi) कौन ? (Who ?) हम किसके लिए भाषण दे रहे हैं ? उनकी संख्या कितनी है? एक व्यक्ति के लिए या बहुत-से व्यक्तियों के लिए। साथ ही साथ हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि श्रोताओं की रुचि व आशाएँ क्या है?

2. स्पष्टता एवं सरलता (Simple and Clear)-यदि हमने उपर्युक्त् प्रश्नों के प्रति सावधानी रखी है तो हमारा व्याख्यान/भाषण स्वयं ही स्पष्ट व प्रभावशाली हो जाएगा। स्पष्टता का गुण प्रत्येक भाषण के प्राण होता है। हमें सदैव इस बात को ध्यान में रखना चाहिए कि सम्पूर्ण श्रोता शिक्षित हैं। मख्यतः व्यावसायिक विश्व में प्रत्येक प्रभावशाली वक्ता ‘Be Clear’ सिद्धान्त का अनुपालन करते हैं।

स्पष्टता के पश्चात् एक भाषण/व्याख्यान में सरलता का गुण अनिवार्य रुप से होना चाहिए। एक प्रभावशाली वक्ता जटिल से जटिल बातों को बड़े ही सरल शब्दों में स्पष्ट कर देता है। यदि भाषण/व्याख्यान में सरल भाषा का प्रयोग नहीं किया जाता तो श्रोता ऊबने लगता है और उसका ध्यान बँट जाता है।

3. दैहिक एवं पार्श्व भाषा (Body and Paralanguage)-हमें अपने भाषण/व्याख्यान में अशाल्टिक सम्प्रेषण विधि का प्रयोग प्रभावपूर्ण ढंग से करना चाहिए क्योकि शारीरिक भाषा, भाषा प्रतिरुप का प्रभावशाली प्रयोग व्याख्यान को रुचिकर तथा प्रभावशाली बनाता है। स्वर का उतार-चढाव । भाव-भंगिमा. आदि भाषण को प्रभावी बनाते हैं। सही एवं स्पष्ट उच्चारण तथा ओजस्वी वाणी का प्रयोग करना चाहिए।

भाषा देते समय हमें श्रोताआ का तरफ ध्यान देना चाहिए। भौतिक अवरोधों पर ध्यान नहीं चाहिए। व्याख्यान देते समय चेहरे पर मुस्कान व शरीर सीधा होना चाहिए।

4. भाषण की संरचना (Structure of Speech)-भाषण की संरचना ऐसी होनी चाहिए जो श्रोता को प्रभावित करे। भाषण तैयार करते समय उसकी क्रमबद्धता का विशेष ध्यान रखना चाहिये। विचारों को यदि तितर-बितर कर प्रस्तुत किया जायेगा तो सब कुछ व्यर्थ हो जायेगा, इसलिये विचारों में तारतम्यता होनी चाहिये। भाषण की संरचना करते समय सर्वप्रथम आगन्तुकों का स्वागत करना चाहिए, उसके बाद अवसर का सन्दर्भ देना चाहिए तथा इसके पश्चात् मुख्य बात पर आना चाहिए और अन्त में भविष्य की रुपरेखा प्रस्तुत करते हुए सम्बन्धित पक्षों को धन्यवाद ज्ञापित करना चाहिए।

5. भावनात्मक सम्बोधन (Emotional Appeal)-भाषण में भाषणकर्ता का यह प्रयास होता है। कि श्रोता उसकी बात को सुने एवं उस पर अमल करे। इसके लिये भाषणकर्ता को श्रोताओं को इस प्रकार से सम्बोधित करना चाहिये कि उसकी वाणी श्रोता की वाणी बन जाये, उसके विचार श्रोता के विचार बन जायें और यह भावनात्मक सम्बोधन द्वारा ही सम्भव हो सकता है।

6. सामान्य ज्ञान (General knowledge)—एक वक्ता को सामान्य विषयों की जानकारी होनी |चाहिए, चाहे वह साहित्य, दर्शन, आर्थिक, सामाजिक व राजनैतिक, तकनीकी व विज्ञान से सम्बन्धित क्यों न हो। इस स्थिति में एक वक्ता का भाषण अत्यधिक रुचिकर व प्रभावशाली हो जाता है।

सम्पूर्ण क्षेत्रों के विषयों की सामान्य जानकारी होने का तात्पर्य यह नहीं कि हम अपने व्याख्यान में अनावश्यक बातों का समावेश कर लें बल्कि इसका अर्थ यह है कि हमारे व्याख्यान/भाषण में सूचनाओं की मात्रा के साथ साथ उसमें गुणवत्ता भी आये। बेंजामिन फ्रेंकलिन ने कहा है कि, “Time is money”. इसका तात्पर्य यह है कि प्रत्येक शब्द महत्त्वपूर्ण है अर्थात् व्याख्यान में कम से कम शब्दों का प्रयोग अधिकाधिक अर्थ को स्पष्ट करे।

7. अनौपचारिक सम्बन्ध (Informal Relation) यद्यपि प्रत्येक समारोह औपचारिक होता है. परन्तु वक्ता को व्याख्यान देते समय अनौपचारिक होना चाहिए। अनौपचारिकता, श्रोताओं को निकट लाती है ।

अभिप्रेरण के लिये भाषण

(Speech For Motivation)

ऐसा भाषण जो श्रोताओं को प्रभावित करके उन्हें वहीं कार्य करने के लिये प्रेरित करे जो भाषण में कहे गए हैं, उसे अभिप्रेरण के लिये भाषण कहा जाता है। इसमें शरीर की सारी ऊर्जा को एकत्रित करके समायोचित दैहिक एवं पार्श्व भाषा के साथ वक्तव्य को प्रेषित किया जाता है जो श्रोताओं को अपने विचारों के साथ बहा ले जाता है तथा वक्ता को अपने लक्ष्य की प्राप्ति में सफलता प्राप्त होती है।

स्टेनलेबेन्स ने अभिप्रेरण की परिभाषा निम्न प्रकार दी है-“कोई भी भावना या आवश्यकता जो व्यक्ति की इच्छा को इस प्रकार प्रभावित करती है कि वह कार्य करने के लिए प्रेरित हो जाए, अभिप्रेरण कहलाती है।” अत: अभिप्रेरण के लिए भाषण से अर्थ प्रोत्साहक अथवा प्रेरणात्मक भाषण से है। इससे संस्था को अपने लक्ष्यों की प्राप्ति में पर्याप्त सहायता मिलती है।

व्यावसायिक अधिशासियों को अपने विभिन्न सहायकों को अधिक कार्य व उत्पादकता हेतु प्रोत्साहित करने के लिए प्रेरणात्मक व्याख्यान देने होते हैं। दूसरे व्याख्यानों की तरह ही प्रेरणात्मक व्याख्यानों के लिये योजना बनाई जाती है, लेकिन प्रेरणात्मक व्याख्यान तथा अन्य प्रकार के व्याख्यानों के उद्देश्य में अन्तर होता है। दूसरे व्याख्यान श्रोतागण को सूचना देने व सद्भावना बनाए रखने के लिए दिये जाते हैं जबकि प्रेरणात्मक व्याख्यान का उद्देश्य व्यक्तियों को प्रोत्साहित करना होता है।

कर्मचारियों का प्रेरणा स्त्रोत क्या है ?

(What is source of motivation of employees ?)

प्रेरणात्मक व्याख्यान देने से पहले, अधिशासियों को कर्मचारियों का प्रेरणा स्त्रोत समझना चाहिए। प्रेरक शक्ति व्यक्ति की आन्तरिक उत्तेजनाएँ होती हैं जो उसे कार्य करने के लिए अग्रसर करती हैं तथा । प्रबन्धकों को इन उत्तेजनाओं को संगठन के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए अग्रसर करना चाहिए। प्रसिद्ध मनविज्ञानिक मैसलो (Maslow) का मत है कि व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं से प्रेरित होता है एवं यह मूल। आवश्यकतायें जैसे-रोटी, मकान, भूख और प्यास से लेकर आत्म-सत्य की खोज भी हो सकती हैं।

() शारीरिक एवं जीवित रहने की आवश्यकताएँ (Physiological and survival needs)-इसमें मूल आवश्यकताएँ जैसे रोटी, पानी, सोना (sleep), सम्भोग, और दूसरी शारीरिक आवश्यकताएँ आती हैं।

() सुरक्षा एवं भयमक्ति की आवश्यकताएँ (Safety and security needs) – इन आवश्यकताआ में सम्पत्ति की भौतिक सरक्षा रोजगार की सरक्षा आदि आवश्यकताएं सम्मिलित हाता हा।

() सामाजिक आवश्यकताएँ (Social needs)—इसमें प्रेम और स्नह, कसा स सम्बन्ध रख की भावना, प्रेम और दोस्तों की भावनात्मक जरुरतें, आदि शामिल हैं।

(घ) अह एव सम्मान की आवश्यकताएँ (Ego and Esteem needs)-इसम आत्म-सम्मान। आदि की आवश्यकताओं को शामिल किया जाता है।

() आत्मसत्य की खोज की आवश्यकताएँ (Self-actualization needs)-इसमें आत्म। सन्तुष्टि तथा सत्य की खोज सम्मिलित हैं जैसे कि अपने आप में क्षमतानुसार सम्पूर्णता की इच्छा।

मैसलो के अनुसार मानवीय अवश्यकताएँ नीचे से ऊपर की ओर अग्रसर होती हैं। जब आवश्यकताओं का एक स्तर सन्तुष्ट हो जाता है तो यह मनुष्य को प्रेरित करना बन्द कर देता है। ये आवश्यकताएँ परस्पर निर्भर होती हैं, अगला ऊँची आवश्यकताओं का स्तर तभी आता है जब निचली आवश्यकताओं का स्तर पूरी तरह या उचित स्तर तक पूरा (सन्तुष्ट) हो जाता है। अधिकतर लोगों की निचले स्तर की आवश्यकताएँ उच्च स्तर की आवश्यकताओं के मुकाबले ज्यादा सन्तुष्ट होती हैं।

अत: अधिशासियों को यह जानना आवश्यक होता है कि उनके अधिकतर कर्मचारी आवश्यकताओं के किस स्तर पर जीवनयापन स्तर रहे हैं। मैसलो के अधिक प्रभावी माने जाने वाले सिद्धान्त के अतिरिक्त और भी सिद्धान्त हैं जो लोगों को प्रेरित करने वाले तत्वों पर महत्त्वपूर्ण प्रकाश डालते हैं। लेकिन यह निश्चित है कि आर्थिक व मानसिक रुप से दिये गए अभिप्रेरण व्यक्ति को प्रेरित करते हैं। अल्बर्ट आइंसटाइन (Albert Einstien) अनुसार, “पैसा व प्रंशसा महत्त्वपूर्ण हैं। परन्तु पैसा पहले आता है। आप किसी व्यक्ति की भौतिक जरुरतें जैसे रोटी और कपड़ा देने के बाद ही उसकी आत्मा को प्रशंसा से प्रफुल्लित कर सकते हैं।” (“Both cash and congratulations are important But cash comes first. You have to feed a person’s material needs-food and clothing-before you can feed his or her spirit with congratulations.”‘)

जैसे ही श्रमिकों की धन सम्बन्धी आवश्यकताएँ सन्तुष्ट हो जाती हैं, “प्रशंसा व बधाई” को प्रेरणात्मक व्याख्यानों में सम्मिलित करना चाहिए।

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अभिप्रेरणा के लिये भाषण की तैयारी

(Preparation of Speech For Motivation)

अभिप्रेरणा के लिये भाषण से पहले, अधिशासियों को चाहिए कि वे आवश्यकताओं के स्तर जहाँ

कर्मचारी कर रहे हैं, का विश्लेषण करें। सामान्यत: निचले स्तर के कर्मचारी मजदरी में सोलोजगार की सरक्षा, अपने बच्चों को शिक्षा तथा मकान की सुविधाएँ चाहते हैं। ऊँचे स्तर के अधिशासी जिनकी निचले स्तर को आवश्यकताएं पूरी हो चुकी हैं, ज्यादा सीखना व उत्कष्ट होना चाहते

लेते समय प्रत्येक प्रकार के श्रोतागणों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखना चाहिए।

चित साहित्य व सूचना-जैसे लाभों में कितनी वृद्धि हुई है और मजदूरी, वेतन आदि किस प्रकार दिये गए हैं, कम्पनी ने मकान का सुविधाएं, सीखने के अवसरों में क्या योग आदि-का संग्रह करना चाहिए। अगर हो सके तो व्याख्यान को पहले से तो व्याख्यान को पहले से लिख लेना चाहिए तथा मुख्य तिथ्य जिन पर जोर देना है, उन तथ्यों के सम्बन्ध में सोच लेना चाहिये।

इसीलिए अभिप्रेरण के लिए भाषण तैयार करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना। चाहिए

(1) श्रोताओं की आवश्यकताओं का पता लगाना-अभिप्रेरण के लिये भाषण तैयार करते समय सर्वप्रथम श्रोताओं की आवश्यकताओं के बारे में जानकारी प्राप्त करनी चाहिए अर्थात् उन्हें किस वस्तु अथवा सेवा की आवश्यकता है? या उन्हें किस वस्तु या सेवा का अभाव है आदि। उदाहरण के लिये चुनाव के समय नेता वोट मांगने के लिये रोजगार देने का आश्वासन देते हैं जिसकी की देश के । युवा वर्ग को बहुत आवश्यकता है।

(2) प्रेरक निर्धारित करनाश्रोताओं की आवश्यकताओं का पता लगाने के पश्चात् उन प्रेरकों का निर्धारण किया जाना चाहिए जिनसे श्रोताओं की इच्छाएं पूरी हो सकती हैं। राभी व्यक्तियों को मौद्रिक अभिप्रेरक ही प्रेरित नहीं करते बल्कि पद, सम्मान, यश आदि गैर मौद्रिक अभिप्रेरक भी व्यक्ति को सन्तुष्ट कर सकते हैं। अत: व्यक्तियों की आवश्यकता एवं अभाव के अनुरूप ही प्रेरक निर्धारित किये जाने चाहिए।

(3) भाषण में अभिप्रेरकों को शामिल करना-भाषण में ऐसे विषय शामिल करने चाहिए जिनके कारण व्यक्ति तनावग्रस्त रहता है तथा साथ ही उस तनाव तथा आवश्यकताओं को पूरा करने के उपाय भी बताने चाहिए। इससे श्रोताओं की सहानुभूति एवं विश्वास दोनों ही प्राप्त होते हैं तथा भाषण का उद्देश्य सफल हो जाता है।

(4) प्रभावी प्रस्तुतीकरण कौशल का प्रयोग-वक्ता को भाषण सकारात्मक, शक्तिशाली, उत्साही एवं अभिप्रेरक ढंग से प्रस्तुत करना चाहिए। भाषण में व्यक्तिगत बाह्य रूप, दैहिक भाषा, पार्श्व भाषा आदि का विशेष महत्त्व होता है। प्रभावी भाषण की अभिव्यक्ति तभी हो सकती है जबकि वक्ता द्वारा उच्चारण, गम्भीर, ओजस्वी एवं सौम्य वाणी, आवश्यकतानुसार स्वर के उतार-चढ़ाव आदि पर पर्याप्त ध्यान रखा जाए। भाषण में समायोचित अवसरों पर मुखाभिव्यक्ति, भाव-भंगिमा, हाव-भाव आदि का प्रभावपूर्ण संचार किया जाना चाहिए तभी भाषण प्रभावी बन सकता है। भाषण से पूर्व वक्ता को पूर्व अभ्यास कर लेना चाहिए।

(5) भावनात्मक अपीलवक्ता अपने लक्ष्य की पूर्ति के लिए श्रोताओं को सहयोग के लिए प्रेरित करता है। यह सहयोग उसे तभी प्राप्त हो सकता है जब उसकी वाणी श्रोताओं की वाणी बन जाए, उसका विचार श्रोताओं का विचार बन जाए तथा उसका हित श्रोताओं का हित बन जाए जो केवल मजबूत, तर्कयुक्त, योग्य एवं प्रभावी भावनात्मक संचार द्वारा ही सम्भव हो सकता है। वक्ता को स्वयं की भावनाओं पर नियन्त्रण रखना चाहिए तथा भावनात्मक अपील करनी चाहिए। वक्ता को अपने भाषण द्वारा श्रोताओं को अपनी भावनाओं के साथ रचनात्मक एवं सकारात्मक दिशाओं की ओर ले जाना चाहिए। इसके लिए वक्ता को दिशाहीनता, घबराहट, विचारों के भ्रमों से उबरना चाहिए जिसको वक्ता निरन्तर अभ्यास एवं ज्ञान द्वारा ही पैदा कर सकता है।

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परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(Expected Important Questions for Examination)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

(Long Answer Questions)

1 मौखिक प्रस्तुतीकरण से क्या आशय है ? मौखिक प्रस्तुतीकरण को प्रभावित करने वाले कारकों /घटकों की विवेचना कीजिए।

What is meant by Oral Presentation ? Discuss the factors affecting the oral presentation.

2. मौखिक प्रस्तुतीकरण का क्या आशय है ? मौखिक प्रस्तुतीकरण के प्रमख सिद्धान्तों की विवेचना कीजिए।

What is meant by oral presentation ? Discuss the main principles of oral presentation.

3. मौखिक प्रस्तुतीकरण से क्या आशय है ? सफल मौखिक प्रस्ततीकरण की विभिन्न अवस्थाओं का। वर्णन कीजिए।

What is meant by Oral Presentation ? Explain the various stages o presentation.

4. विक्रय प्रस्तुतीकरण की प्रकृति तथा विषय वस्तु को समझाइए।

Explain the nature and contents of sales presentation.

5. विक्रय प्रस्तुतीकरण के विभिन्न चरणों की व्याख्या कीजिए।

Explain different steps of sales presentation.

6. प्रशिक्षण प्रस्तुतीकरण के उद्देश्य तथा कार्यविधि को समझाइए।

Explain the objectives and process of Training Presentation.

7. प्रस्तुतीकरण से आप क्या समझते हैं ? प्रभावी प्रस्तुतीकरण कला की व्याख्या कीजिए।

What do you mean by Presentation ? Explain effective presentation skill.

8. व्याख्यान अथवा भाषण से क्या अभिप्राय है ? इसे कैसे प्रभावी बनाया जा सकता है ?

What do you understand by speech ? How can speech be made effective.

9. अभिप्रेरण के लिये भाषण का क्या आशय है? आप अभिप्रेरण के लिए भाषण कैसे तैयार करेंगे?

What is meant by speech for motivation ? How can you prepared speech for motivation?

10. सर्वेक्षण क्या है ? सर्वेक्षण की विभिन्न विधियों का वर्णन कीजिए।

What is Survey? What are the different methods of conducting survey ?

11. सर्वेक्षण संचालन पर एक निबन्ध लिखें।

Write an essay on conducting surveys.

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लघु उत्तरीय प्रश्न

(Short Answer Questions)

1 मौखिक प्रस्तुतीकरण क्या है ?

What is oral presentation ?

2. प्रभावी प्रस्तुतीकरण कौशल क्या है ?

What is effective presentation skill?

3. प्रस्तुतीकरण के विभिन्न प्रकार कौन से हैं ?

What are main types of presentation ?

4. मौखिक प्रस्तुतीकरण के सिद्धान्तों को बताइए।

Write down the principles of oral presentation.

5. एकल प्रस्तुतीकरण क्या है?

What is a monologue presentation?

6. विक्रय प्रस्तुतीकरण से आप क्या समझते हैं ?

What do you mean by sales presentation?

7. सर्वेक्षण पर संक्षिप्त टिपणी लिखिए।

Write a short note on ‘Survey’.

8. सर्वेक्षण के लिये नियोजन प्रक्रिया को स्पष्ट कीजिए।

Explain the process of planning for Surveys.

9. अनसंधान का आयोजन करते समय किन-किन बातों पर ध्यान देना आवश्यक है ?

What points should be remembered while making planning for Survey?

10. सर्वेक्षण को संचालित करने के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।

Explain the principles of conducting a survey.

11. प्रशिक्षण प्रस्तुतीकरण से क्या आशय है?

What is meant by training presentation?

12. अभिप्रेरणा के लिये भाषण के अनिवार्य लक्षण क्या हैं?

What are the essential features of speeches to motivate?

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chetansati

Admin

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