BCom 1st Year Business Communication Writing Skills Study Material Notes in Hindi

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BCom 1st Year Business Communication Writing Skills Study Material Notes in Hindi

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Writing Skills Study Material
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BCom 1st Year Business mis Communication Barriers and Improvement Study material Notes in Hindi

लेखन कुशलता

(Writing Skills)

सम्प्रेषण की क्रिया मौखिक एवं लिखित दोनों प्रकार से सम्पन्न होती है। मौखिक सम्प्रेषण क्रिया में व्यक्ति अपने उच्चारण, हाव-भाव एवं वाकपटता के द्वारा सम्प्रेषण को प्रभावी बनाने का प्रयास करता। है जबकि लिखित सम्प्रेषण क्रिया को प्रभावी बनाने के लिये लेखन कुशलता का होना अति आवश्यक होता है। लेखन कुशलता लिखित सम्प्रेषण का एक महत्त्वपूर्ण तत्व है तथा यह संचार के यन्त्र के रूप में तब से उत्पन्न हुई है जब से सभ्यता का उद्गम हुआ है। आधुनिक ढाँचे में किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिये प्रभावी लेखन कला का होना नितान्त आवश्यक है। लिखने की दक्षता एक व्यक्ति के पेशे अथवा व्यापार में सफलता हेतु महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। किसी भी प्रबन्धक के लिये यह आवश्यक है कि वह अपने सन्देश लिखित रूप में प्रेषित करें और सन्देश स्पष्ट, संक्षिप्त एवं बोधगम्य हो। किसी भी व्यक्ति द्वारा लिखित सन्देश उसके व्यक्तित्व को प्रकट करता है। यद्यपि व्यावसायिक लेखन। अर्थात रिपोर्ट. ज्ञापन, पत्र, भाषण लेखन आदि देखने में अत्यन्त सरल दिखते हैं, परन्तु वास्तव में वह । इतने सरल होते नहीं है। अतः इन सभी कार्यों के लिये व्यक्ति को अपने अन्दर लेखन कुशलता विकसित करने की आवश्यकता होती है।

लेखन एक कला है जो व्यक्ति के अन्दर से आती है। लेखन कला किसी व्यक्ति की भावना को परिलक्षित करती है। लेखन कार्य जब दिल से उत्पन्न होता है तो वह निश्चित रूप से प्रशंसनीय होता है। जो व्यक्ति ऊँचे विचार रखने वाले होते हैं वे बहुत अच्छे लेखक भी साबित होते हैं। जब व्यक्ति अपने विचारों को कागज पर लिखता है तो उसमें शब्दों का प्रयोग, व्याकरण का प्रयोग एवं संक्षिप्तता एवं स्पष्टता उसके लेखन को प्रभावशाली बनाता है। लेखन चूँकि एक कला है इसे रातों-रात नहीं पाया जा सकता है यह तो केवल अभ्यास से ही विकसित होती है। कोई व्यक्ति जितना अधिक लिखता है उसके। लेखन में निपुणता भी उतनी ही अधिक आती है। अच्छे लेखन के लिये अध्ययन की भी आवश्यकता होती है। अध्ययन से ज्ञान और विचार प्राप्त होते हैं तथा लिखने के तरीकों का विकास होता है।

व्यवसाय में भी लेखन की आवश्यकता होती है। एक व्यवसायी को तरह-तरह के पत्र, जो कि व्यवसाय से सम्बन्धित होते हैं, लिखने पड़ते हैं। यह पत्र जितने सुस्पष्ट और सही होते हैं उससे ही व्यवसायी के व्यक्तित्व की पहचान बनती है। अत: एक व्यवसायी में लेखन कुशलता होनी चाहिये। व्यवसायी को पत्रों, मेमों, नोटिस, रिपोर्ट, एजेन्डा, प्रस्ताव आदि लिखने होते हैं। इनका लेखन इस प्रकार होना चाहिये कि पढ़ने वाला इन्हें उसी प्रकार उन्हीं अर्थों में समझ सके जिन अर्थों में भेजने वाले ने सन्देश लिखा है। किसी भी भाषा में अच्छा लिखने के लिये अच्छा बोलना और अच्छा व्यवहार करना अति आवश्यक होता है।

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लेखन कुशलता से आशय

(Meaning of Writing Skills)

लेखन कुशलता से आशय पत्रों, प्रतिवेदनों एवं भाषण को सरल, स्पष्ट, संक्षिप्त, शिष्ट एवं आकर्षक ढंग से लिखने से है जिससे पाठक का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया जा सके। लेखन कुशलता लिखित संचार का एक महत्त्वपूर्ण भाग है। यह आधुनिक व्यावसायिक क्रियाओं में अत्यन्त । महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। एक संगठन में प्रबन्धक अपने व्यावसायिक कार्यशील समय का लगभग । 45 प्रतिशत भाग व्यावसायिक अभिलेखों एवं पत्राचार के लेखन में व अध्ययन में व्यतीत करते हैं।। आधनिक युग में प्रत्येक संगठन में प्रत्येक स्तर के कर्मचारी अपने निर्णयों, क्रिया-प्रतिक्रिया, विचारों व । प्रलेखों को लेखन के माध्यम से ही प्रस्तुत करते हैं। अत: संस्था के अधिकारियों एवं कर्मचारियों को लेखन शैली का पर्याप्त ज्ञान होना अत्यन्त आवश्यक है। वर्तमान प्रतियोगिता के युग में व्यावसायिक । सफलता का आधार लेखन कुशलता ही है क्योंकि इसी से प्रभावित होकर अन्य पक्षकार संस्था की तरफ । आकर्षित होते हैं। लेखन कुशलता के द्वारा एक स्थायी रिकार्ड उपलब्ध होता है जिसे न्यायालय में साक्ष्य के रूप में भी प्रस्तुत किया जा सकता है।

व्यावसायिक लेखन, जैसे पत्र, रिपोर्ट व भाषण लेखन इत्यादि कार्य देखने में अत्यन्त सरल व सहज लगते हैं परन्तु वास्तव में यह निरन्तर कड़े परिश्रम, अभ्यास, सावधानी व गहन एकाग्रता का कार्य है। लेखन कुशलता वास्तव में उचित नियोजन, दक्षता व कठिन परिश्रम पर निर्भर करती है।

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एक प्रभावशाली लेखन के लिये आवश्यक बातें

(Guidelines For Effective Writing)

प्रत्येक व्यापारिक लेखन का उद्देश्य पत्रों, मीमों, रिपोर्ट, नोटिस, प्रस्तावों और एजेन्डा (Agendas) आदि को इस प्रकार लिखना है कि पढ़ने वाला इन्हें उसी प्रकार उन्हीं अर्थों में समझ सके जिन अर्थों में भेजने वाला सन्देश भेजना चाहता है। लिखित संचार संगठन में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है इसलिए भेजने वाले को लिखित सन्देश की ओर उचित ध्यान देना चाहिए। इसके लिए अरस्तू सलाह देता है, “किसी भी भाषा में अच्छा लिखने के लिए एक व्यक्ति को उसी प्रकार बोलना चाहिए जैसे साधारण लोग बोलते हैं और वैसे ही सोचना चाहिए जैसे एक बुद्धिमान व्यक्ति सोचता है।” (For this Aristotle’s advice, “For writing well in any language one should speak as the common people do and think as wise men do.”)

– इसलिए भेजे जाने वाला सन्देश अच्छी तरह से सोचा समझा और परिपक्व दिमाग की उपज होना चाहिए, और साथ ही साथ यह प्राकृतिक एवं साधारण सन्देश के रूप में दिखाई देना चाहिए।

व्यापारिक लेखनी में संचार के दूसरे तरीकों की तरह 7Cs की मौजूदगी होना अनिवार्य है अर्थात् विचारणीयता, स्पष्टता, पूर्णता, संक्षिप्तता, विशिष्टता, शुद्धता और शिष्टता। लिखित सन्देश को प्रभावी बनाने के लिए सन्देश भेजने वाले को निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए

(1) आवश्यक प्रश्नों का समाधान (Solution to Essential Questions)-एक प्रभावशाली पत्र लेखन के लिये कुछ प्रश्नों का समाधान आवश्यक है, जैसे (i) क्यों लिखें? (ii) किसके लिये लिखें? (iii) क्या लिखें? (iv) कब लिखें? (v) कैसे लिखें आदि।

इन समस्त प्रश्नों का हल प्रभावशाली लेखन के लिये अत्यन्त आवश्यक होता है।

(2) लघु शब्दों का प्रयोग (Use of Short Words)-लेखन में सदैव लघु शब्दों का ही प्रयोग करना चाहिए क्योंकि इससे विचारों का आदान-प्रदान सहजता/सरलता से किया जा सकता है। जैसे ‘खेती के लिये मिट्टी की खुदाई’ के स्थान पर ‘जुताई’ शब्द का प्रयोग अधिक उचित है।

(3) प्रबल शब्दों का प्रयोग (Use of Strong Words)-लेखन को प्रभावशाली बनाने के लिये प्रबल शब्दों का प्रयोग किया जाना चाहिए। सन्देश लेखन में संज्ञा व क्रिया का प्रयोग तो अधिक से अधिक करना चाहिए परन्तु विशेषण व क्रिया-विशेषण का प्रयोग कम से कम करना चाहिए। सन्देश में क्रिया जितनी सबल व गत्यात्मक होगी, लेखन उतना ही प्रभावशाली बनेगा।

(4) प्रचलित शब्दों का प्रयोग (Use of Common Words)-लेखन को प्रभावशाली बनाने के लिये प्रचलित शब्दों का ही प्रयोग करना चाहिए। लेकिन इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि जो शब्द आपके लिए प्रचलित है वह अन्य व्यक्तियों के लिये अप्रचलित न हो।

(5) जटिल वाक्यों का कम प्रयोग (Less Use of Complex Sentences)-लेखन में सरल वाक्यों का प्रयोग अधिक तथा जटिल वाक्यों का प्रयोग कम से कम किया जाना चाहिए। यदि लेखन में जटिल वाक्यों का प्रयोग किया जाता है तो सरल, संयुक्त व जटिल वाक्यों के मध्य उचित समन्वय अत्यन्त आवश्यक है।

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(6) पैराग्राफ छोटा होना चाहिए (Paragraph Should be Short)-सम्पूर्ण लेखन में पैराग्राफ को छोटा रखें। यद्यपि एक पैराग्राफ एक समान विचारों का समूह होता है अर्थात् यह विचार की एक इकाई है एवं विचार श्रृंखला का मूल सेतु है। अत: लेखन को आकर्षक बनाने के लिए अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से प्रत्येक पैराग्राफ एक ही विचार पर केन्द्रित व आकार में छोटा होना चाहिए।

(7) लेखन व्यावहारिक होना चाहिए (Writing Should Be Practical)-लेखन हमेशा व्यावहारिक होना चाहिए क्योंकि कोई भी मनुष्य अव्यावहारिक बातों व उपदेशों को पसन्द नहीं करता। अत: लेखन में मानवीयता का समावेश होना चाहिए। लेखन यथार्थ व विश्वसनीय भी होना चाहिए।

(8) विषय के अनुकूल (According to Subject)-पत्र लेखन को प्रभावशाली बनाने के लिये यह अत्यन्त आवश्यक है कि वह विषय के अनुकूल हो। लेखन में प्रयुक्त वाक्यों में ‘एक विचार’ होना चाहिए तथा साथ ही तार्किक रूप से पूर्व लिखित वाक्यों का अनुसरण करना चाहिए।

लिखित सन्देश की विषय-वस्तु न केवल स्पष्ट और पूर्ण होनी चाहिए बल्कि इसको यथार्थ तथ्यों के साथ और ठीक भाषा में प्रकट करना चाहिए। असत्य तथ्यों और आँकड़ों के आधार पर पढ़ने वाला गलत निणय ले सकता है। गलत शब्द, त्रुटिपूर्ण व्याकरण, खराब वाक्यों की बनावट इत्यादि पढ़ने वाले का ध्यान कभी-कभी हटाकर उसमें व्याकलता उत्पन्न करते हैं।

(9) पूर्णता (Completeness) अपूर्ण सन्देश से गलतफहमी (misunderstanding) और गलत अर्थ निकल सकते हैं। इससे दोबारा पछताछ के कारण समय और स्रोतों की नष्टता होती है और पढ़ने वाला नाराज होता है। इसलिए लिखित सन्देश सभी पहलओं के रूप में पूर्ण होना चाहिए। इसमें विस्तृत रूप में सम्बन्धित विषय-वस्तु का विवरण होना चाहिए।

(10) स्पष्टता (Clarity) लिखित सन्देश की सर्वप्रथम आवश्यकता स्पष्टता है। इसका अर्थ सन्देश को बिना किसी पेचीदापन और व्याकलता के भेजना है। इसके लिए सन्देश लेखक को स्पष्ट और तर्कपूर्ण ढंग से सोचना चाहिए। लेखक को चाहिए कि वैचारिक तर्कवितर्क से लड़ीवार तर्कपूर्ण विचार बनाकर, अपने विचारों को साधारण शब्दों में व्यक्त करे।

(11) सारांशता (Conciseness) लिखित सन्देश सारांश में होना चाहिए। सन्देश थोड़े से शब्दों में पूर्ण और स्पष्ट होना चाहिए। यह पहली आवश्यकता है कि पढ़ने वाले का ध्यान आकर्षित हो और उसका समय कम लगे। बिना किसी उद्देश्य के अनावश्यक विवरण पढ़ने वाले का ध्यान पढ़ने से हटा देता है और अन्तत: संचार का प्रभाव कम हो जाता है। इसलिए लिखित सन्देश में सम्बन्धित तथ्यों को थोड़े से शब्दों में व्यक्त करना चाहिए और एक ही प्रकार के विचारों को बार-बार नहीं दोहराना चाहिए।

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प्रभावी लेखन कौशल की आवश्यकता क्यों है?

(Why need Effective Writing Skills?)

प्रभावी व्यावसायिक संचार लेखन की आवश्यकता निम्नांकित पहलूओं के द्वारा व्यक्त की जा सकती है

1 प्रभावी लेखन कुशलता होने पर व्यक्ति जिस संगठन के लिए कार्य करता है उसमें उसकी उपयोगिता बहुत बढ़ जाती है अर्थात् वह पदोन्नति की सीढ़ी पार करके शीघ्र प्रगति कर पाता है।

2. निपुण लेखक प्रचुर संख्या में नहीं पाए जाते, अत: जो अच्छा लिखते हैं वो औरों (अन्य) से श्रेष्ठ होते हैं।

3. जो लोग प्रभावी व्यावसायिक पत्रों की सफलतापूर्वक रचना करते हैं वो नए मित्र बनाते हैं तथा पुराने मित्रों को संगठन से सम्बन्धित रखते हैं। परिणामस्वरूप उनकी बिक्री तथा लाभ में वृद्धि होती है और इसी की सभी व्यवसायों को जीवित रहने के लिए आवश्यकता होती है।

4. अच्छे लेखन के द्वारा संगठन में समय, प्रयत्न तथा मुद्रा की बचत होती है।

5. एक कर्मचारी के रूप में आपके प्रबन्धकों तथा समकक्ष व्यक्तियों द्वारा आपकी श्रेणी का निर्धारण (Rating), जो बड़ी सीमा तक आपकी सामंजस्यपूर्ण काम करने की कुशलता पर निर्भर करता है, बड़े नाटकीय ढंग से ऊपर को उठता है जब आप तर्कसंगत, व्यावहारिक तथा कार्यकुशल मैमोरण्डम लिखने की कला में निपुणता ग्रहण कर लेते हैं।

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व्यावसायिक लेखन में आपदृष्टिकोण विकसित करना

(Developing You-Attitude in Business Writing)

व्यावसायिक संचार में प्रेषक को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वह आप-दृष्टिकोण में संचार कर रहा है। आप-दृष्टिकोण का अर्थ है सन्देश पाठक के दृष्टिकोण से देना अर्थात् उन विषयों पर जोर देना जो पाठक जानना चाहता है, साथ-साथ उसके लिए आदर भी दर्शाना। किड़ी ओ. लॉकर और स्टीफन क्यो कैजमारक के अनुसार,

आप दृष्टिकोण लिखने की वह शैली है जिसमें लेखक1. पाठक के दृष्टिकोण से विभिन्न पहलुओं को देखता है। 2.पाठक द्वारा बुद्धिमत्ता से निर्णय लेने के कारण उसकी प्रशंसा करता है। 3. पाठक के अहं की रक्षा करता है। 4. उन बातों पर जोर देता है जो पाठक जानना चाहता है।

आप-दष्टिकोण पाठक के लिए आदर दर्शन का एक ठोस ढंग है तथा इसके लिए संचारकर्ता को विशेष शैली विकसित करनी होती है। बार-बार अभ्यास करके शब्दों के प्रति सचेत रहकर यह शैली विकसित की जा सकती है।

आप-दृष्टिकोण को विकसित करने के लिये-

1.सन्देश प्राप्तकर्ता के विषय में बात करनी चाहिये न कि अपने बारे में।

2. भावनाओं की बातें नहीं करनी चाहिये।

3. सकारात्मक स्थिति में ‘मैं’ की बजाए ‘आप’ और ‘हम’ शब्दों का प्रयोग करना चाहिये।

4. नकारात्मक स्थिति में ‘आप’ से परहेज करना चाहिये।

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1 प्राप्तकर्ता के विषय में बात करनी चाहिए अपने बारे में नहीं (Talk about the receiver not about you)—प्राय: सन्देश प्राप्तकर्ता सन्देश से अपने आपको होने वाले लाभों के बारे में अधिक रुचि दर्शाता है। इसलिए जब आप सूचना प्रदान करते हैं तो प्राप्तकर्ता को होने वाले लाभों के बारे में बताना चाहिये उदाहरण के लिए,

आप-दृष्टिकोण से विहीन वाक्य मैंने विशाल इन्डस्ट्रीज से समझौता कर लिया है इसके अनुसार उनके उत्पादों पर 20% कटौती तुम्हें मिलेगी। आप-दृष्टिकोण वाले वाक्य कम्पनी के विशेषाधिकार युक्त कर्मचारी के रूप में आप विशाल इन्डस्ट्रीज के उत्पादों पर 20% की कटौती ले सकते हैं। वाक्य निर्माण करते समय अपने कार्य, दयालुता या कार्य-कुशलता पर ध्यान केन्द्रित न करें क्योंकि इससे श्रोता के मन में हीन भावना और ईर्ष्या पैदा हो सकती है। यद्यपि नीचे दिए गए वाक्य में ‘आप’ शब्द का प्रयोग किया गया है लेकिन यह आप-दृष्टिकोण से दूर है। इसलिए अपने कार्य करने पर ध्यान केन्द्रित न करके यह बात करनी चाहिए कि पाठक को क्या प्राप्त होगा या उसे क्या करना है। उदाहरण के लिएआप-दृष्टिकोण से विहीन वाक्य तुम्हारे द्वारा आदेशित वस्तुओं को हमने 20 अक्तूबर को भेज दिया है, वह आपको 25 अक्तूबर को मिलेगी। आप-दृष्टिकोण वाले वाक्य 2000 क्रिकेट बल्ले जिनका आपने आदेश दिया, आपको भेजे जा चुके हैं और आपके पास 25 अक्तूबर तक पहुंच जाने चाहिये।

2. भावनाओं की बातें नहीं करनी चाहियें (Do Not Talk About Feelings) बहुत सी व्यावसायिक स्थितियों में भावनाएँ असंगत होती हैं, अतः इनसे बचना चाहिए। पाठक की रुचि अपने आर्थिक अथवा दूसरे लाभों में होती है, इसलिए वह भावनाओं की तरफ ध्यान नहीं देता। उदाहरण के लियेआप दृष्टिकोण विहीन वाक्य हम यह बताने में प्रसन्नता अनुभव करते हैं कि आपको एक लाख रुपए तक उधार दिया जाएगा। आप-दृष्टिकोण वाले वाक्य बधाई हो। आपको उधार/साख की अनुमति मिल जाने पर आप एक लाख रुपए तक निकलवा सकते हैं। लेकिन बधाई अथवा शोक व्यक्त करने की स्थिति में, सन्देश में भावनाओं को स्थान दिया जा सकता है। आप दृष्टिकोण विहीन वाक्य मुझे यह जानकर दुःख हुआ कि आपका भागीदार स्वर्ग सिधार गया है। आप-दृष्टिकोण वाले वाक्य आपका भागीदार स्वर्ग सिधार गया है। कितने दःख की बात है।

3. मैंसे अधिक आपका प्रयोग करना चाहिए (Use You Than I) ‘हम’ का प्रयोग तभी करना चाहिये जब सकारात्मक स्थिति में पाठक को सम्मिलित करना हो।

‘मैं’ के स्थान पर ‘आप’ और ‘हम’ का प्रयोग करना चाहिये। मैं का प्रयोग यह दर्शाता है कि आप संस्था की बजाए अपनी निजी बातों में अधिक उलझे हुए हैं। उदाहरण के लिये आप दृष्टिकोण विहीन वाक्य आपके प्रलेख प्राप्त हो जाने पर मैं आपकी अर्जी (आवेदन) निकाल दूंगा। आए-दृष्टिकोण वाले वाक्य आपकी अर्जी, प्रलेख प्राप्त हो जाने पर निकाल दी जाएगी।

4. नकारात्मक स्थितियों में आपका प्रयोग नहीं करना चाहिए (Avoid You In Negative Situation)—पाठक पर दोष नहीं लगाना चाहिए। अव्यक्तिगत ध्वनि का और निष्क्रिय क्रिया (Passive Voice) का प्रयोग करना चाहिए ताकि पाठक पर बरा प्रभाव न पड़े। उदाहरण के लियआप दृष्टिकोण विहीन वाक्य आप प्रलेखों पर हस्ताक्षर करने में असफल रहे। आप-दृष्टिकोण वाले वाक्य अव्यक्तिगत (Impersonal) आपके प्रलेख, आपके हस्ताक्षर के बिना कार्यालय में प्राप्त हुए। निष्क्रिय (Passive) आपके प्रलेख हस्ताक्षरित नहीं थे। लेखन कुशलता के चरण (Steps of Writing Skills) लेखन कुशलता के चार प्रमुख चरण होते हैं जो निम्नांकित प्रकार हैं(1) सन्देश की योजना बनाना (Planning the Message) (2) प्रथम प्रारुष का लेखन (Writing the First Draft) (3) सन्देश में संशोधन करना । पुनः निरीक्षण (Revision) (4) सम्पादन (Editing)

(1) सन्देश की योजना बनाना (Planning the Message)-इस विषय में यह कथन महत्त्वपूर्ण है कि “Plan the work, then work the plan” अर्थात् पत्र लेखन से पूर्व यह विचार कर लेना चाहिए कि पत्र में क्या-क्या लिखना है? पत्र लेखन से पूर्व उसकी विषय सामग्री, भाषा, पत्र लिखने का उचित समय आदि की सम्पूर्ण जानकारी के बाद पत्र लिखा जाए तो अच्छा रहता है। इसलिए यह कहा जाता है कि ऋण वसूली के लिए सोच-विचार कर लिखे गए पाँच पत्र, शीघ्रता से लिखे गए पचास पत्रों से भी ज्यादा अच्छे होते हैं।

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व्यावसायिक पत्र नियोजन के प्रमुख चरण निम्नांकित प्रकार हैं

(i) उद्देश्य की पहचान (Identify Purpose)

(ii) सन्देश प्राप्तकर्ता की पहचान (Identify the Receiver)

(iii) मुख्य विचार को परिभाषित करना (Defining the Main Idea)

(iv) विचारों के समर्थन में आँकड़े एकत्रित करना (Collect Data to Support Your Ideas)

(v) सन्देश को सुव्यवस्थित करना (Organise the Message)

(1) उद्देश्य की पहचान (Identify Purpose)-पत्र लेखन का पहला चरण यह है कि हमें यह सोचना है कि क्या लिखा जाना है अर्थात् हमें क्या सन्देश प्रेषित करना है। यह विचार कर लेना चाहिए कि किस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए पत्र लेखन करना है। पत्र अपनी ओर से लिखना है अथवा आये हुए। पत्र के जवाब में लिखना है। यदि स्वयं सन्देश देना है तो किसी व्यक्ति को अपने व्यवसाय के सम्बन्ध में जरूरी सूचनाएँ देना हो सकता है अथवा किसी माल के लिए आदेश देना हो सकता है। यह उद्देश्य साहकों के साथ सद्भावना को बनाए रखना अथवा अपने संगठन के बारे में अनुकल छवि बनाना भी हो। सकता है।

(II) सन्देश प्राप्तकर्ता की पहचान (Identify the Receiver)-उद्देश्य की पहचान के पश्चात्। देखना चाहिये कि सन्देश प्राप्त करने वाला कौन है। उसे किस प्रकार की जानकारी की आवश्यकता है। उसका दष्टिकोण (Attitude) आपके अथवा आपके व्यापार के प्रति कैसा है। इन बातों से आपको पता मोगा कि आपके पत्र में किस प्रकार की विषय-सामग्री की आवश्यकता है और इसका प्रयोग कैसे करना बार किसी विदेशी व्यक्ति/फर्म के साथ पहली बार किया जा रहा है तो विशेष सावधाना। से अभिवादन, प्रथम तथा अन्तिम नाम का सही लिखना, सही उपाधि आदि की जानकारी कर चाहिये। जिस देश के साथ पत्र व्यवहार कर रहे हैं, उस देश के मूल संचार सिद्धान्तों से परिचित व्यक्ति के साथ पत्र-व्यवहार करने से पहले स्त्री या पुरूष, युवक अधेड, नया था। होना आवश्यक है। व्यक्ति के साथ पत्र-व्यवहार करने, यदि जानकारी हो सकती हो तो कर लेनी चाहिए जिससे सम्बोधन का सही प्रयोग किया जा सकता है।

(III) मुख्य विचार को परिभाषित करना (Defining the main Idea)-उद्देश्य को पहचान, तथा श्रोताओं के विश्लेषण के पश्चात् मुख्य विचार की पहचान की जाती है अर्थात् कौन सा सन्देश लिखा जाये जो पत्र प्राप्तकत्ता को प्रभावित कर सकेगा । सन्देश का मुख्य उद्देश्य अपने विचार को सर्वोत्तम ढंग से पहुँचाना होता है। व्यावसायिक सन्देश का मात्र एक ही मुख्य विचार होता है तथा अन्य बातें या तो सन्देश के मुख्य विचार का समर्थन करती हैं या मुख्य विचार के लिए सहायक होती हैं। इस सम्बन्ध में मर्फी तथा अन्य के विचार इस प्रकार हैं, यदि आप पत्र का उत्तर दे रहें हैं तो मुख्य बातों को रेखांकित करें तथा अपने विचारों को एक ओर हाशिया में संक्षेप में लिखें। यदि आप जटिल या बिना किसी याचना के सन्देश लिख रहे हैं तो जो विचार आपके मन में आये उनकी सूची बना लें और प्राप्तकर्ता के लिए सर्वोत्तम विचार चुनें। (If you are answering a letter, underline the main points to discuss and jot your ideas in the margin. If you are writing an unsolicited or a complex message, begin by listing ideas as they came to you brain storming and then choosing the best ideas for your receiver).

(iv) विचारों के समर्थन में आंकड़े एकत्र करना (Collect Data to Support your Ideas)-मुख्य विचारों का निर्णय लेने के पश्चात् यह निश्चित करना पड़ता है कि इन विचारों के समर्थन में क्या विशिष्ट तथ्यों, आँकड़ों, उद्धरणों (Quotations) या किसी अन्य प्रकार के प्रमाण की आवश्यकता पड़ेगी। व्यक्तियों के नामों, तिथियों, पते, सांख्यिकी आदि सम्बन्धी आँकड़ों का निरन्तर परीक्षण करते रहना चाहिए। कभी-कभी विचारों के समर्थन में कम्पनी सम्बन्धी पुस्तिका (Brochure) तालिका, चित्र या वस्तु के नमूने भी साथ भेजने पड़ सकते हैं।

(v) सन्देश को सुव्यवस्थित करना (Organise the Message)-नियोजन का पाँचवाँ चरण, सन्देश को व्यवस्थित करना है। इसका अर्थ यह है कि अपने प्रथम ड्राफ्ट को लिखने से पूर्व कागज पर सन्देश की रूपरेखा बना लें। सन्देश की रूपरेखा बनाते समय उसे व्यवस्थित कर लेना चाहिये। ।

() सन्देश सुव्यवस्थित तब माना जाता है जब विचारों का क्रम सिलसिलेवार तथा सुसंगत (Coherent) हो। एक अच्छे व्यवस्थित सन्देश में निम्नांकित गुण पाए जाते हैं-(a) विषय एवं उद्देश्य स्पष्ट होना चाहिए। (b) समस्त सूचना, विषय एवं उद्देश्य से सम्बन्धित होनी चाहिए। (c) विचार युक्तिपूर्ण ढंग से प्रस्तुत किए जाने चाहिए। (d) सभी आवश्यक जानकारी इसमें सम्मिलित होनी चाहिए।

एक अच्छे सुव्यवस्थित सन्देश को श्रोतागण आसानी से समझ सकते हैं, उसे स्वीकार कर सकते हैं, श्रोताओं के समय की बचत होती है तथा संचार करने वाले का काम सरल हो जाता है।

() एक बार विचारों को परिभाषित (Defined) तथा वर्गीकृत (Grouped) करने के बाद उनके अनुक्रम (Sequence) का फैसला करना होता है।

अनुक्रम (Sequences) मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं

प्रत्यक्ष दृष्टिकोण (निगमन) (Direct Approach)-इसमें मुख्य विचार पहले और प्रमाण बाद में आता है–यह दृष्टिकोण तब अपनाया जाता है जब प्रत्यक्ष निवेदन (Direct Requests) करना हो, नित्यकर्म सूचना (Routine message) देनी हो, अच्छा समाचार या सद्भावना सन्देश (Goodwill Message) देना हो। , अप्रत्यक्ष दृष्टिकोण (आगमन) (Indirect Approach)-इसमें प्रमाण पहले तथा मुख्य विचार बाद में आता है। यह दृष्टिकोण तब अपनाना चाहिये जब बुरी सूचना देने वाला सन्देश (bad news letter) या प्रेरित करने वाला सन्देश (Persuasive message) देना हो।

संक्षेप में, यदि श्रोताओं की प्रतिक्रिया सकारात्मक होने की आशा हो तो प्रत्यक्ष दृष्टिकोण अपनाना चाहिए किन्तु यदि इसके ऋणात्मक होने का डर हो तो अप्रत्यक्ष दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।

(2) सन्देश का प्रथम प्रारूप लेखन (First Drafting)-लेखन शैली के द्वितीय चरण में सन्देश का प्रथम प्रारूप तैयार किया जाता है। इसमें विचारों को शब्दों का रूप प्रदान करके वाक्यों व पैराग्राफों का निर्माण किया जाता है। इस लेखन में यह सुनिश्चित किया जाता है कि विचारों को कागज पर कैसे लाया जाए, किस प्रकार के शब्दों/वाक्यों का प्रयोग किया जाए तथा कहाँ बात को संक्षिप्त रूप में रखा जाए और कहाँ से विस्तृत रूप प्रदान किया जाए। मुख्य विचार के समर्थन में सम्बन्धित तथ्यों व ऑकड़ों को एकत्र किया जाता है। इस प्रकार सभी तथ्यों को कागज पर उतार लेना ही प्रथम प्रारूप कहलाता है।

एक अच्छे प्रारूपण के लिए आवश्यक बातें

(Essentials of First Draft)

एक अच्छे प्रारूपण के लिये निम्नलिखित बातें ध्यान में रखनी चाहिये

(i) विषय के अनुसार (According to Subject)-प्रारूपण को विषय के अनुसार ही तैयार करना चाहिए। याद प्रस्तुत विषय का सम्बन्ध इसी प्रकार के पर्व पत्र से है तो इसमें उचित निर्देशों का आवश्यक होता है। प्रारूप तभी अर्थपूर्ण होगा जब उसमें पूर्व निर्देश ठाक स ागत किया गया होगा।

(ii) सन्तुलित प्रस्तुतीकरण (Balanced Presentation)-एक अच्छे प्रारूप के लिये यह आवश्यक होता है कि विषय को सन्तुलित ढंग से प्रस्तुत किया जाए। सन्तुलित प्रस्तुतीकरण के लिये यह आवश्यक है कि सम्पूर्ण प्रारूप को उचित तरीके से विभाजित किया जाए जैसे विषय का ब्योरेवार वर्णन, विषय सम्बन्धी पूर्व निर्देश, विषय से सम्बन्धित तथ्यों की क्रमवार जानकारी आदि।

(iii) सरल, सुबोध एवं व्यावहारिक भाषा (Easy and Understandable Language)-प्रारूप की भाषा अत्यन्त सरल, सुबोध एवं व्यावहारिक होनी चाहिए। छोटे-छोटे सार्थक वाक्यों का प्रयोग किया जाना चाहिए तथा विषय के अनुकूल उससे सम्बन्धित तकनीकी शब्दों का भी प्रयोग किया जाना चाहिए।

(iv) पैराग्राफ (Paragraph)-एक विषय से सम्बन्धित अनेक उपविषय हो सकते हैं। ऐसी स्थिति में प्रत्येक उपविषय को अलग पैराग्राफ में देना चाहिए तथा पैराग्राफों के लिये संख्या, क्रम अंकित किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त पैराग्राफ बहुत अधिक बड़ा भी नहीं होना चाहिए। ।

(v) तथ्यों की संगति (Consistency of Data)-प्रारूप तैयार करते समय विषय से सम्बन्धित सभी तथ्यों को सम्मिलित किया जाना आवश्यक होता है। विभिन्न तथ्यों व तर्कों को व्यवस्थित क्रम में प्रस्तुत किया जाना चाहिए। साथ ही साथ तथ्यों का तार्किक विश्लेषण इस प्रकार क्रम से करना चाहिए जिससे वह अपनी सम्पूर्ण संरचना को स्पष्ट कर सके।

(vi) उद्धरण (Quotation)-विषय को अधिक स्पष्ट करने के लिये प्रारूपण में विचारों, निर्णयों, आदेशों व उक्तियों का उद्धरण आवश्यक हो जाता है। विषय की गम्भीरता को समझने के लिये इन्हें बिना काट-छाँट के ही भूल शब्दों में व्यक्त किया जाना चाहिए।

(vii) संलग्नक (Enclosures)-पत्र से सम्बन्धित या उससे जुड़ने वाले महत्त्वपूर्ण प्रपत्रों व कागजातों को संलग्नक कहा जाता है। विषय को स्पष्ट करने के लिये प्रारूप के साथ इनका जुड़ना अत्यन्त आवश्यक होता है। ये संलग्नक आगे की कार्यवाही में महत्त्वपूर्ण उपकरण के रूप में प्रयोग किये जाते हैं। मूल पत्र के नीचे संलग्नकों की संख्या क्रमवार अंकित की जानी चाहिए।

(viii) प्रतिलिपियाँ (Copy)-यदि आवश्यक हो तो प्रारूप की प्रतिलिपियाँ जहाँ भेजी जाना अपेक्षित हो, वहाँ अवश्य भेजी जानी चाहिए। इसके लिये व्यक्ति विशेष के नाम के साथ-साथ उसके विभाग या उपविभाग का भी ठीक-ठीक उल्लेख होना चाहिए।

(ix) तकनीकी सावधानियाँ (Technical Precautions)-प्रारूप को तैयार करते समय तकनीकी बातों का ध्यान रखना भी आवश्यक होता है जैसे प्रारूप सदैव अन्य पुरुष में तैयार किया जाना चाहिए तथा यदि उत्तम पुरुष का प्रयोग आवश्यक हो तो वह व्यक्ति बोधक की बजाय पद-बोधक होना चाहिए। इसी प्रकार प्रारूप किसी भी प्रकार के पूर्वाग्रहों से प्रेरित नहीं होना चाहिए। प्रारूप निश्चित ढाँचे में, निश्चित प्रणाली व निर्धारित वाक्यावली में ही तैयार किया जाना चाहिए।

(x) “आपशब्द का प्रयोग (Use the “You” Attitude)-व्यावसायिक पत्रों में आप शब्द । का प्रयोग करना चाहिए। प्रथम प्रारूप में मैं और हम शब्दों के प्रयोग से बचना चाहिये। सन्देश को सही प्रकार से पहुँचाने के लिए मुझे, मेरे, हमारे के स्थान पर ‘आप’ और आपके शब्दों का प्रयोग करना । चाहिये। उदाहरण के लिये

आपके आदेश पर कार्यवाही तब ही की जायेगी जब हमें पुराने आदेश की दसरी कॉपी प्राप्त हो जाएगी। इस वाक्य के स्थान पर कृपया अपने आदेश की एक प्रति भेजें जिससे आदेश को शीघ्र भेजा जा सके, इस वाक्य का प्रयोग अधिक उचित है।

हो सकता है कुछ परिस्थितियों में आप शब्द का प्रयोग उचित न रहे तो कटुता को कम करने के। लिए अन्य प्रकार से भी बात कही जा सकती है। जैसे आपके कारण एक समस्या उत्पन्न हो गई के स्थान पर यह लिखा जा सकता है कि एक समस्या उत्पन्न हो गई है।

(xi) सकारासका अर्थ यह है कि पया नहीं करेंगे या आप

(xi) सकारात्मक पर बल (Emphasize the Positive) प्रथम डाफ्ट सकारात्मक दष्टिकोण स लिखा जाना चाहिए। इसका अर्थ यह है कि पढ़ने वाले को स्पष्ट हो जाना चाहिए कि आप उसके लिये

क्या कर सकते हैं और क्या करेंगे न कि आप क्या नहीं करेंगे या आपने क्या नहीं किया है। उदाहरण के लिये आपके आदेश की पूर्ति आज सम्भव नहीं है, इस वाक्य के स्थान पर हम आपके आदेश की पूर्ति अगले दो दिन में कर देंगे अधिक उपयुक्त है। इसी प्रकार आपने आदेश स्पष्ट रूप से नहीं दिया है। मात्रा रंग, डिजाइन का वर्णन न होने की वजह से आपके आदेश की पूर्ति नहीं की जा सकती है, इस वाक्य के स्थान पर कृपया अपने आदेश में माल की मात्रा, रंग तथा डिजाइन का स्पष्ट रूप से उल्लेख करें जिससे हम आपके आदेश की पूर्ति कर सकें; अधिक उपयुक्त है।।

(3) सन्देश के प्रथम प्रारूप में संशोधन करना/ पुनः निरीक्षण (Revising the First Draft)- प्रथम प्रारूप तैयार करने के बाद उसे दुबारा पढ़कर उसमें संशोधन किए जाते हैं अर्थात् अनावश्यक सूचना को काट दिया जाता है तथा जो तथ्य प्रथम प्रारूप में लिखने से रह गये हैं उन्हें यथास्थान जोड़ा जाता है। सन्देश के उद्देश्य, विषय-वस्तु तथा लेखन शब्दों की समीक्षा की जाती है। व्याकरण, विराम चिन्हों तथा वाक्यों की बनावट पर भी ध्यान दिया जाता है। संशोधन की यह प्रक्रिया पुनलेखन भी कहलाती है।

अत: प्रथम प्रारूप को लिखने के पश्चात् यह आवश्यक है कि उसकी समीक्षा की जाए तथा उसमें वांछित सुधार किया जाए। कुछ लेखकों के अनुसार प्रथम प्रारुप में संशोधन के लिए उसे तीन बार निम्नांकित प्रकार से पढ़ने की योजना बनानी चाहिए

प्रथम संशोधन (First Revision)-पहला संशोधन करते समय विषय-वस्त अर्थात पत्र लिखने के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए निम्नांकित बातों पर ध्यान देना चाहिए(i) क्या पत्र संस्था तथा प्राप्त करने वाले की सभी आवश्यकताओं को पूरा करता है? (ii) क्या पत्र में आवश्यक सभी जानकारी दी गई हैं तथा दी गई जानकारी सत्य हैं? (iii) क्या सन्देश की भाषा स्पष्ट है? (iv) क्या पत्र में दी गई सूचना के समर्थन में पर्याप्त आँकड़ें तथा तथ्य उपलब्ध हैं?

दूसरा संशोधन (Second Revision)-दूसरे संशोधन में यह देखना चाहिए कि पत्र का खाका (Layout) सही है तथा पत्र ठीक ढंग से व्यवस्थित है। अत: निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए

(i) क्या पत्र का खाका वांछित उद्देश्यों को पूरा करने के साथ पाठक की स्थिति के अनुरूप है?

(ii) पत्र में दिए गए विचारों में कोई बाधा तो नहीं है। विभिन्न पैराग्राफों के बीच भाषा का प्रवाह सही है?

(iii) पत्र का खाका पढ़ने वाले को दी जाने वाली सभी सूचनाओं को उपलब्ध करा रहा है?

(iv) पत्र के प्रारम्भिक एवं अन्तिम पैराग्राफ सही तथा प्रभावशाली हैं? ,

तीसरा संशोधन (Third Revision)-इस अन्तिम संशोधन में पत्र की शैली एवं अभिव्यक्ति की जाँच करनी चाहिए। अत: निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए

(i) क्या पत्र की भाषा एवं शैली स्पष्ट और आसान है?

(ii) क्या सन्देश मैत्रीपूर्ण है तथा पक्षपातपूर्ण भाषा से मुक्त है।

(iii) क्या पत्र, पढ़ने वाले को बताता है कि उसे क्या करना है?

(4) सम्पादन करना (Editing)-लेखन कुशलता के अन्तिम चरण सम्पादन में वाक्य संरचना, उच्चारण व व्याकरण आदि में सुधार किया जाता है। सम्पादन में यह देखा जाता है कि शब्दों का चुनाव ठीक किया गया है, प्रारूप की भाषा उच्च कोटि की है, कोई तकनीकी त्रुटि तो नहीं है, प्रारूप का फारमेट ठीक है या नहीं आदि। इस चरण में लेखन की सतही जाँच के द्वारा सम्पूर्ण सन्देश में मुख्य परिवर्तन किये जाते हैं तथा सन्देश को प्रभावशाली स्वरूप प्रदान किया जाता है। सम्पादन लेखन कुशलता का महत्त्वपूर्ण चरण है क्योंकि कभी-कभी लेखन में प्रूफ रीडिंग की छोटी-सी त्रुटि सन्देश के अर्थ को ही बदल देती है। सम्पादन करते समय निम्नलिखित तथ्यों को ध्यान में रखना चाहिये

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(i) सही शब्दों का चुनाव (Selection of Proper Words) व्यावसायिक पत्रों में प्रचलित एवं प्रबल (Strong) शब्दों का प्रयोग करना चाहिए। सम्पादन करते समय यह ध्यान रखें कि लघु तथा प्रबल एवं प्रचलित शब्दों का जहाँ तक सम्भव हो प्रयोग करें। निम्नलिखित उदाहरण इसी सम्बन्ध में हैं

 (ii) उचित वाक्यों के लिए सम्पादन (Editing for proper Sentences)-प्रभावपूर्ण लेखन हेतु आवश्यक है कि वाक्यों के लिए सम्पादन किया जाये। अनावश्यक शब्दों को हटा देना चाहिए। अप्रचलित, शब्दाडम्बर तथा अधिक उत्साही भाषा का प्रयोग नहीं करना चाहिए। वाक्य, पाठक के लिए व्याकरणिक रूप से सही, पढ़ने योग्य, रोचक तथा उचित होना चाहिए। लम्बे वाक्यों का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए।

(iii) पैराग्राफ के लिए सम्पादन (Editing for Paragraphs)-अन्त में, पैराग्राफ का सम्पादन करना चाहिए। प्रत्येक पैराग्राफ पत्र का एक महत्त्वपूर्ण भाग होता है। प्रत्येक पैराग्राफ एक ही विचार पर केन्द्रित तथा आकार में छोटा होना चाहिए।

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परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(Expected Important Questions for Examination)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

(Long Answer Questions)

1 लेखन कुशलता (लेखन कला) से क्या आशय है? लेखन कुशलता के विभिन्न चरण कौन-से हैं? एक प्रभावशाली पत्र लेखन के लिये आवश्यक बातें कौन-सी हैं?

What is meant by writing skills ? Discuss the various steps of writing skills ? Give the guidelines of effective writing skills.

2. प्रारूपण से क्या अभिप्राय है? एक अच्छे प्रारूपण के लिये किन-किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए?

What do you mean by Drafting? Which general points keeps in mind while doing preparation of Ideal Drafting?

3. लिखने की दक्षता के महत्त्व का विवेचन कीजिए। इस दक्षता में सुधार कैसे लाया जा सकता है?

Discuss the importance of writing skills. How can this skill be improved?

4. एक व्यावसायिक पत्र के नियोजन पहलू की व्याख्या कीजिए।

Explain the planning phase of business letter.

5. प्रथम प्रारूप लेखन से क्या आशय है? प्रथम प्रारूप लेखन के विभिन्न चरणों की व्याख्या कीजिए।

What is meant by writing the first draft? Describe the stages of writing of first draft.

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लघु उत्तरीय प्रश्न

(Short Answer Questions)

1  व्यापार के लिये प्रभावी लेखनी पहली आवश्यकता क्यों है?

Why effective writing is prerequisite for business?

2. लेखन कुशलता के प्रमुख चरण कौन-से हैं?

What is the main steps of writing skill?

3. एक प्रभावशाली पत्र लेखन के लिये आवश्यक बातें कौन-सी हैं?

What are the guidelines for effective writing skills?

4. एक अच्छे प्रारूपण के लिये किन-किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए?

Which general points should keep in mind while drafting?

5. प्रारूप के सम्पादन से क्या आशय है? सम्पादन में कौन सी बातें ध्यान रखनी चाहिए?

What do you mean by editing the first draft? What are the points to be considered while editing?

6. प्रथम प्रारूप के संशोधन से क्या आशय है? इसके विभिन्न पहलूओं का वर्णन कीजिए।

What is meant by revising the first draft? Describe the stages of revising of the first draft.

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chetansati

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