BCom 1st year Business Corporate Communication Study Material Notes In Hindi

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BCom 1st year Business Corporate Communication Study Material Notes In Hindi

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BCom 1st year Business Corporate Communication Study Material Notes In Hindi: Meaning Corporate Communication Channels of Corporate Communications  Formal Communications Characteristics of Formal communications managing Director  Objectives  of Formal Communications Type of Formal  Communications Merits of Formal Communications Demerits of Formal Communications Informal Communications Characteristics of Informal Communications Advantages of informal communications ( Most Important Notes For BCom 1st Year Students )

Corporate Communication Study Material
Corporate Communication Study Material

BCom 1st Year Business Self Development Communications Study material Notes in Hindi

निगमीय संचार

(Corporate Communication)

निगमीय संचार/सम्प्रेषण से आशय

(Meaning of Corporate Communication)

व्यावसायिक एवं अन्य संस्थाओं का अपना संगठन होता है। संस्था के निर्धारित लक्ष्यों एवं उद्देश्यों। को प्राप्त करने के लिए संगठन में शामिल व्यक्तियों के समूह की क्रियाओं, निर्णयों एवं सम्बन्धों के विश्लेषण के आधार पर संगठन संरचना का निर्धारण किया जाता है। इस संरचना के द्वारा संगठन में विभिन्न स्तरों एवं विभागों के मध्य सम्प्रेषण का प्रवाह (Flow of Communication) होता है। संचार प्रक्रिया के द्वारा निगम या कम्पनी संगठन के विभिन्न सदस्यों के मध्य प्रतीकों या चिन्हों की सामान्य प्रणाली का प्रयोग करके सन्देशों का आदान-प्रदान करते हैं जिसका उद्देश्य सन्देश के अर्थ को आपस में समझना या बाँटना होता है। निगम संगठन में संचार के निम्नलिखित दो प्रमुख कार्य होते हैं

(1) संगठन में विभिन्न व्यक्तियों को संदेश या सूचना के आदान-प्रदान के योग्य बनाना।

(2) संगठन के व्यक्तियों को गैर-सदस्यों से अलग बने रहने में सहायता करना।

इस प्रकार व्यावसायिक संगठन अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिये संचार पर निर्भर रहते हैं। निगम संगठन में जहाँ हजारों कर्मचारी एक साथ कार्य करते हैं तथा वह जगह-जगह नियुक्त होते हैं, वहाँ सही व्यक्ति को सही समय पर सही सूचना या सन्देश देना वास्तव में एक बड़ी चुनौती होता है।

अत: कम्पनी संचार के अन्तर्गत यह निर्धारित किया जाता है कि एक कम्पनी को अपने सन्देशों को किस प्रकार अपने कर्मचारियों, प्रबन्धकों, विनियोक्ताओं तथा सरकार के पास पहुँचाना चाहिए। प्रत्येक व्यावसायिक संगठन दो प्रकार के सम्प्रेषण से सम्बद्ध होता है-प्रथम आन्तरिक सम्प्रेषण जिसमें संस्था में कार्यरत कर्मचारियों, अधिशासियों एवं आन्तरिक परिवेश के लिये सम्प्रेषण किया जाता है। द्वितीय, बाह्य सम्प्रेषण जिसमें पूर्तिकर्ता, अपने व्यावसायिक समूह, बैंकों, सरकारी कार्यालयों, प्रेस, उपभोक्ताओं, विनियोक्ताओं तथा सामान्य जनता के लिये सम्प्रेषण किया जाता है।

Business Corporate Communication

निगमीय संचार/सम्प्रेषण की विधियाँ

(Channels of Corporate Communication)

संस्थान में संचार की विधि के अन्तर्गत सूचना को कुछ माध्यमों द्वारा प्रवाहित किया जाता है। सूचनाओं के प्रवाह के लिये जो भी विधि या पद्धति अपनाई जाती है उसे हम नेटवर्क के नाम से पुकारते हैं। निगमित सम्प्रेषण में सूचनाओं के प्रवाह के लिये नेटवर्क नियमित आकार, पद्धति अथवा बनावट का होता है जो संगठन के व्यक्तियों का अन्य व्यक्तियों से सम्बन्ध को बनाए रखता है। निगमीय सम्प्रेषण की विभिन्न विधियों को निम्नांकित चार्ट द्वारा सरलतापूर्वक समझा जा सकता है

अतः स्पष्ट है कि संचार विधियाँ प्रमुख रूप से दो प्रकार की होती हैं-(1) औपचारिक संचार, (2) अनौपचारिक संचार।

औपचारिक संचार

(Formal Communication)

जब सन्देश देने वाले व्यक्ति तथा सन्देश प्राप्त करने वाले व्यक्ति में औपचारिक सम्बन्ध होता है। तथा इस सम्बन्ध के अनुसार ही सन्देश ऊपर से नीचे अर्थात अधिकारियों से कर्मचारियों की तरफ तथा नीचे से ऊपर की ओर अर्थात् कर्मचारियों से अधिकारियों की तरफ प्रेषित किये जाते हैं तो ऐसी संचार प्रणाली को औपचारिक संचार प्रणाली कहते हैं। इस व्यवस्था में सन्देश एक पूर्व निश्चित मार्ग या माध्यम द्वारा ही प्रेषित किए जाते हैं। वस्तुत: औपचारिक सम्प्रेषण एक प्रबन्धन द्वारा तैयार किया गया नेटवर्क होता है। जब हम किसी कार्य के लिए विधिवत् होने की बात करते हैं, इसका अभिप्राय किसी संगठन के प्रबन्धन ने जो नेटवर्क तैयार किया है उस प्रक्रिया से कार्य के होने की बात करते हैं। जैसे, एक क्लर्क जो किसी संगठन के किसी अन्य भाग में कार्यरत है, वह सीधे उस संगठन के प्रबन्ध निदेशक से संचार क्रिया नहीं कर सकता है। वह अपने पर्यवेक्षक से बात करेगा और उसके माध्यम से सन्देश को विभागीय प्रबन्धक के पास प्रेषित करेगा, तत्पश्चात् उसका सन्देश प्रबन्ध निदेशक तक पहुँचेगा।

अत: ऐसा संचार जो उपक्रम के संगठन द्वारा निर्धारित सम्बन्धों के कारण विभिन्न कर्मचारियों के मध्य होता है, औपचारिक संचार कहलाता है। यह संचार कर्मचारियों के मध्य उनके द्वारा दायित्व पूरा करते समय किया जाता है। इस संचार का मार्ग संगठन के ढाँचे में निर्धारित प्रक्रियाओं के अनुसार तय होता है। यह विशेष पद या स्थिति में रहकर किया गया संचार है। यह व्यक्तियों के बीच न होकर पदों के बीच होने वाला संचार है। अत: प्रत्येक व्यावसायिक संगठन में स्पष्ट रूप से परिभाषित अधिकार, कर्त्तव्य एवं उत्तरदायित्वों पर आधारित, औपचारिक संचार का एक मार्ग होता है जिसकी रचना कम्पनी के नियमों द्वारा की जाती है।

अधिकारी अपने अधीनस्थों को आदेश-निर्देश, सूचनाएँ, नीतियाँ, नियम, कार्यक्रम मूल्यांकन आदि के रूप में औपचारिक संदेश देते हैं। दूसरी और अधीनस्थ अपने अधिकारियों के पास रिपोर्ट, शिकायतें आदि औपचारिक रूप से प्रस्तुत करते हैं। औपचारिक सन्देश अधिकारों के अन्तर्गत नियमानुसार ही दिये जाते हैं। इस प्रकार जब संवाददाता और संवाद प्राप्तकर्ता के मध्य औपचारिक सम्बन्ध हो तब उनके मध्य संवादों व सूचनाओं का आदान-प्रदान औपचारिक संचार कहलाता है। औपचारिक संचार प्रायः लिखित में ही होते हैं। ये स्थायी आदेश, वार्षिक प्रतिवेदन तथा पत्रिकाओं के माध्यम से भेजे जाते हैं।

Business Corporate Communication

परिभाषाएँ (Definition)

थिल एवं बोवी के अनुसार, “औपचारिक संचार, सूचना का वह प्रवाह है जो अधिकारिक आदेश श्रृंखला का अनुसरण करता है।”||

“औपचारिक संचार, संचार का एक वह मार्ग है जो एक औपचारिक तथा निश्चित नेटवर्क में से गुजर कर जाता है।”’ औपचारिक संचार व्यवस्था को अगले पेज पर प्रदत्त चार्ट के माध्यम से समझा जा सकता है।

औपचारिक संचार की विशेषताएँ

(Characteristics of Formal Communication)

(1) लिखित तथा मौखिक (Written and Oral) औपचारिक संचार नेटवर्क लिखित तथा मौखिक दोनों प्रकार का हो सकता है। उच्चस्तरीय प्रबन्ध (Top Level Management) सामान्यतया मीमोस, रिपोर्ट, नोटिस आदि के लिखित रूप में संचार करता है, जबकि प्रबन्ध का निचला स्तर संचार के मौखिक रूप को अपनाता है।

(2) औपचारिक सम्बन्ध (Formal Relations) औपचारिक संचार में सन्देश भेजने वाले व सदेश प्राप्त करने वाले के बीच अधिकारिक (Official) सम्बन्ध होता है।

Business Corporate Communication (3) निर्धारित मार्ग (Prescribed Path)-समस्त संचार एक निर्धारित मार्ग का अनुसरण करता है और इसमें मार्ग से किसी भी प्रकार के विचलन (Deviation) की अनुमति नहीं दी जाती। उदाहरण के लिए, यदि एक संगठन में काम करने वाला निम्नस्तरीय कर्मचारी, किसी बात के सम्बन्ध में जनरल मैनेजर (उत्पादन) से बात या संचार करना चाहता है, तो उसे निम्नलिखित तरीका या मार्ग अपनाना पड़ेगा

Worker → Supervisor → Manager →General Manager

(4) संगठनात्मक सन्देश (Organisational Message)-स नेटवर्क का सम्बन्ध केवल अधिकृत संगठनात्मक सन्देश से होता है, इसमें कोई भी व्यक्तिगत सन्देश नहीं दिया जा सकता।

(5) लम्बवत् सन्देश (Vertical Communication)-औपचारिक संचार मुख्यत: लम्बवत् । (Vertical) होता है। लम्बवत् संचार से अभिप्राय उस संचार से है जिसका प्रवाह उच्च अधिकारियों से अधीनस्थों की ओर अथवा अधीनस्थों से उच्च अधिकारियों की ओर होता है।

(6) निश्चित एवम् प्रत्यक्ष (Definite and Direct) औपचारिक सन्देश निश्चित तथा प्रत्यक्ष होता है। इसका प्रवाह निगम (कम्पनी) के नियमों के अनुसार निर्धारित चैनलों द्वारा ही किया जा सकता है।

Business Corporate Communication

औपचारिक संचार/सम्प्रेषण के उद्देश्य

(Objectives of formal Communication)

औपचारिक संचार के निम्नलिखित उद्देश्य होते हैं

(i) औपचारिक संचार के माध्यम से उच्चाधिकारियों द्वारा आवश्यक दिशा-निर्देश कर्मचारियों को दिया जाता है।

(ii) अधीनस्थ कर्मचारियों के अच्छे कार्यों की प्रशंसा की जाती है।

(iii) संगठन की नीतियों तथा प्रक्रियाओं की विधिवत् व्याख्या की जाती है।

(iv) औपचारिक संचार द्वारा उच्चाधिकारी अपने अधीनस्थों को कार्य सम्बन्धी आवश्यक प्रदान करता है कि किसको क्या करना है, कब करना है, किस प्रकार करना है?

(v) औपचारिक संचार का उद्देश्य संगठन में अनुशासन बनाए रखना भी होता है।

औपचारिक संचार/सम्प्रेषण के प्रकार

(Type of Formal Communication)

औपचारिक संचार निम्नलिखित तीन प्रकार का हो सकता है(1) उर्ध्वाकार संचार, (2) क्षैतिज या समतल संचार, (3) आरेखी संचार।

(1) उध्वोकार (लम्बवत्) संचार (Vertical Communication)-संगठन सरचना स्तरों के मध्य जब सम्प्रेषण का प्रवाह उच्च अधिकारियों से अधीनस्थों की ओर अथवा अधानस्था उच्च अधिकारियों की ओर होता है, तो उसको लम्बवत व्यावसायिक सम्प्रेषण कहते हैं। लम्बवत् सम्प्रषण निम्नलिखित दो प्रकार का हो सकता है

(1) अवरोही या नीचे की ओर संचार (Downward Communication)-जब सन्दश उच्च अधिकारियों द्वारा अधीनस्थ अधिकारियों एवं कर्मचारियों को दिया जाता है तो इसे अवरोही संचार कहत। हैं। यह संचार लिखित व मौखिक हो सकता है। इसमें प्रबन्धक वर्ग द्वारा अपने अधीनस्थों को कार्य का सम्बन्ध में आदेश एवं दिशा निर्देश दिये जाते हैं। आदेश, निर्देशपत्र, जॉब शीट, बुलेटिन आदि इसके प्रमुख उदाहरण हैं।

(i) आरोही या ऊपर की ओर संचार (Upward Communication)-जब संदेश का प्रवाह निम्न पदों से उच्च पदों की ओर होता है अर्थात् जब संदेश अधीनस्थ कर्मचारियों द्वारा उच्च अधिकारियों को भेजे जाते हैं तो इसे आरोही संचार कहा जाता है। इस संचार से कर्मचारियों की भावनाओं, समस्याओं व सुझावों का ज्ञान हो जाता है तथा उनके मनोबल एवं उत्पादकता में वृद्धि होती है।

(2) क्षैतिज या समतल संचार (Horizontal Communication)-जब संगठन में समान स्तर के कर्मचारियों, अधिकारियों अथवा विभागाध्यक्षों के मध्य सन्देशों का आदान-प्रदान होता है तो इसे क्षैतिज या समतल संचार कहते हैं। यह संचार सहकारिता व सामूहिक कार्य की भावना को जन्म देता है। उदाहरण के लिये, संगठन के विपणन प्रबन्धक व उत्पादन प्रबन्धक के मध्य सम्प्रेषण अथवा एक सेल्समेन का उसी संगठन में कार्य करने वाले दूसरे सेल्समेन के साथ सम्प्रेषण, क्षैतिज संचार कहलाता है। इस संचार का प्रमुख उद्देश्य संगठन के विभिन्न विभागों के कर्मचारियों के मध्य सूचना या सन्देश का आदान-प्रदान करना होता है।

(3) आरेखी संचार (Diagonal Communication)-संगठन के विभिन्न स्तर के व्यक्तियों के मध्य होने वाला संचार जिनमें कोई प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं होता, आरेखी संचार कहलाता है। इस प्रकार का संचार एक संगठन के उद्देश्यों व लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायक होता है तथा साथ ही सहकारिता की भावना को भी बढ़ावा देता है। इस संचार में अन्य संचार की तुलना में समय कम लगता है तथा अनुक्रम (Sequence) का बन्धन नहीं होता, इसीलिए यह अत्यधिक प्रभावी होता है।

Business Corporate Communication

औपचारिक संचार/सम्प्रेषण के लाभ

(Merits of Formal Communication)

औपचारिक संचार के प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं

(1) उत्तरदायित्व का बोध (Feeling of Responsibility)-औपचारिक संचार विभिन्न अधिकारियों व जिम्मेदार व्यक्तियों के माध्यम से होता है, अत: इसमें कर्मचारियों में उत्तरदायित्व की भावना उत्पन्न होती है।

(2) आदेश की एकता (Uniformity of Orders)-औपचारिक संचार में आदेश की एकता को बनाए रखा जा सकता है और भिन्न-भिन आदेशों व निर्देशों में तालमेल बैठाया जा सकता है। इसमें अपने विभाग के कर्मचारियों के कार्य के लिए विभागीय अधिकारी को ही जिम्मेदार ठहराया जाता है।।

(3) सन्देश की विश्वसनीयता (Reliability of Message)-औपचारिक संचार में दिये गए सन्देश की जिम्मेदारी प्रक्रिया में सम्मिलित व्यक्तियों की होती है जिससे सन्देश में प्रामाणिकता व विश्वसनीयता बनी रहती है।

(4) उचित प्रभावशाली संचार (Proper and Effective Communication) संचार की । इस पद्धति में आदेश की एकता को कायम रखा जा सकता है और भिन्न-भिन्न आदेशों व निर्देशों में तालमेल बैठाया जा सकता है। साथ ही इस पद्धति में आगे भेजे जाने वाले सन्देश की भाषा, व्यास चाराचा आधकारी की समझ तथा वक्त की जरूरत के अनुसार ढाला जा सकता है।

(5) नियन्त्रणीय संचार (Controllable Communication)-इस संचार की दिशा, प्रकृति। तथा गति पर संस्था के प्रबन्धकों का परा नियन्त्रण रहता है, साथ ही वे इस संचार म को गंभीरता से लेते हैं क्योंकि इन्हें नकारा नहीं जा सकता। इसीलिए इस प्रकार का नियन्त्रणीय होता है।

(6) सदेश के तोड़मरोड की संभावना कम होना (Less Possibility of Distortion of Message)-औपचारिक संचार में संचार की प्रक्रिया पूर्णरूप से स्पष्ट व निश्चित होती है जिससे संदेश। फ ताड़-मराड़ का सम्भावना कम हो जाती है। इससे संदेश मलरूप में सम्बन्धित व्यक्ति तक भेजा जा सकता है।

औपचारिक संचार/सम्प्रेषण के दोष

(Demerits of Formal Communication)

औपचारिक संचार के प्रमुख दोष निम्नलिखित प्रकार है

(1) सूचनाओं के प्रवाह में देरी (Delay in Communication)-औपचारिक संचार में सूचनाएँ एक पूर्व निश्चित मार्ग या माध्यम के द्वारा ही प्रेषित की जाती हैं। इसमें सूचनाओं को संगठन के विभिन्न । स्तरों से होकर गुजरना पड़ता है तथा सही व्यक्ति तक सूचना पहुंचने में बहुत देरी ही जाती है।। फलस्वरूप उस पर तुरन्त कार्यवाही नहीं हो पाती जिससे कभी-कभी संस्था को हानि भी उठानी पड जाती है।

(2) प्रबन्धकों के कार्यभार में वृद्धि (Increase Workload)-औपचारिक संचार प्रक्रिया में अधिकारियों के कार्य भार में अनावश्यक वृद्धि हो जाती है, क्योंकि सभी संचार उनके माध्यम से ही। प्रभावी होते हैं।

(3) सन्देश के मूल भाव में परिवर्तन (Distortion of Communication)-इसमें सूचनाएँ प्रबन्ध के विभिन्न स्तरों से होकर गुजरती हैं तथा हर स्तर पर मूल सूचना सन्देश प्रेषक के पूर्वाग्रह तथा। समझ से प्रभावित होती है। इसी कारण कभी-कभी सन्देश के मूल भाव में परिवर्तन हो जाता है तथा सन्देश की यथार्थता कम हो जाती है।

(4) लालफीताशाही (Red-tapism)-इस प्रकार की सम्प्रेषण प्रक्रिया से संगठन में लालफीताशाही को बढ़ावा मिलता है। इससे उच्च अधिकारी व निम्न कर्मचारियों के मध्य सम्प्रेषण अन्तर उत्पन्न हो जाता है तथा इसका उनके सम्बन्धों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

Business Corporate Communication

अनौपचारिक संचार/सम्प्रेषण

(Informal Communication)

जब सूचनाओं का आदान-प्रदान संगठन में निर्धारित सम्बन्धों के आधार पर नहीं बल्कि अनौपचारिक सम्बन्धों के आधार पर किया जाता है, तो इसे अनौपचारिक सम्प्रेषण कहते हैं। अनौपचारिक सम्बन्धों का निर्माण व्यक्तिगत एवं सामाजिक सम्बन्धों, भावनाओं, धर्म, मित्रता, रुचि आदि के आधार पर होता है तथा इन्हीं सम्बन्धों के आधार पर वे सन्देश का प्रवाह करते हैं।

सम्प्रेषण की इस प्रणाली में सूचनाएँ एक क्रम से ऊपर से नीचे या नीचे से ऊपर या समान स्तर पर दायें-बायें नहीं जातीं बल्कि एक अत्यन्त टेढ़े-मेढ़े रास्ते से जाती हैं जो संगठन के चार्ट में नज़र नहीं आता। इस विधि में सूचना बहुत शीघ्रता से फैलती है।

कछ संस्थाओं द्वारा इस पद्धति का उपयोग औपचारिक सम्प्रेषण के विकल्प के रूप में किया जाता है। इसमें प्राय: मौखिक रूप से ही सन्देश दिया जाता है, तथा यह अनौपचारिक सम्बन्धों के आधार पर। एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुंचता है।

इस प्रणाली में पद-स्थिति का कोई ध्यान नहीं रखा जाता है। यदि कोई सूचना तेजी से फैलानी हो। तो यह विधि सर्वोत्तम रहती है। परन्तु इस विधि का सबसे बड़ा दोष यह है कि सूचना में प्रत्येक व्यक्ति । अपनी ओर से कुछ जोड़-तोड़ कर देता है, इससे सही सूचना सम्बन्धित व्यक्तियों तक नहीं पहुँचती बल्कि गलत अफवाहें फैलती हैं जो कि कई बार बहुत हानिकारक सिद्ध होती हैं। यदि इस प्रणाली का उचित ढंग से उपयोग किया जाये तो औपचारिक संचार को स्पष्ट करने और उनका प्रचार करने में यह बहुत सहायक होती है।

अत: जब संवाददाता और संवाद प्राप्तकर्ता के मध्य अनौपचारिक सम्बन्ध होते हैं, तब उनक मध्य सपादा, सूचनाआ, भावनाओं, गप्पों अफवाहों. स्पष्टीकरण तथा भविष्यवाणी का जो आदान-प्रदान हाता। हता ह ता इसे ही अनौपचारिक संचार कहते हैं। अनौपचारिक संचार में शरीर के अनेक अंगों तथा हाव-भाव को भी काम में लिया जाता है जैसे-नेत्रों से किये जाने वाले इशारे, सिर हिलाना, मुस्कुराना। क्रोधित होना अथवा शान्त रहना इत्यादि।

बल एव बीवी के अनुसार, “अनौपचारिक संचार नेटवर्क संगठन की क्रिया एवं शक्ति का आशासकीय लाइनों के साथ सूचना को ले जाती है।”

. निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि अनौपचारिक संचार में सन्देश को पहुँचाने के लिये काई औपचारिक संगठनात्मक चार्ट नहीं होता. यह तो पर्णतया सन्देश भेजने वाले तथा सन्देश प्राप्त करने वाले के औपचारिक सम्बन्धों पर आधारित होता है।

अनौपचारिक संचार/सम्प्रेषण की विशेषताएँ

(Characteristics of Informal Communication)

अनौपचारिक संचार की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

(1) इसमें सन्देश प्रायः मौखिक रूप से दिये जाते हैं और इसका प्रसार कानों-कान आगे बढ़ता जाता है।

(2) इस संचार पद्धति में पद स्थिति का कोई ध्यान नहीं रखा जाता और यह संगठन के चार्ट में नजर नहीं आता।

(3) अनौपचारिक संचार में सूचनाएँ किसी क्रम से नहीं बल्कि टेढ़े-मेढ़े रास्ते से गुजरती हैं।

(4) अनौपचारिक संचार में सूचनाएँ बहुत तीव्रता से फैलती हैं।

(5) यह संचार अधिकांशत: अफवाह तथा गलतफहमियों से ओत-प्रोत होता है और अन्तिम व्यक्ति तक पहुंचते-पहुंचते अपने मूल स्वरूप को खो देता है।

अनौपचारिक संचार/सम्प्रेषण के लाभ

(Advantages of Informal Communication)

(1) संचार का तीव्र और लचीला माध्यम (Fast and Flexible Channel of Communication)-अनौपचारिक संचार संदेशों के आदान-प्रदान का बहुत लचीला माध्यम है क्योंकि इसमें पद स्थिति या आदेश श्रृंखला का कोई भी ध्यान नहीं रखा जाता। साथ ही, यह बहुत तेजी से सूचना प्रसारित करने का तरीका है क्योंकि यह कानों-कान फैल जाता है।

(2) साहयोग की भावना (Feeling of Co-operation)-इस संचार पद्धति के द्वारा उच्च प्रबन्ध तथा अधीनस्थों के मध्य मधुर मानवीय सम्बन्धों का सृजन होता है तथा उनमें आपसी सहयोग तथा सद्भाव का विकास होता है।

(3) कर्मचारियों की राय के बारे में जानकारी (Knowledge about Worker’s Feelings)-अनौपचारिक संचार प्रबन्धकों को संगठन में काम करने वाले विभिन्न लोगों की राय के बारे में लगभग सही तथा अच्छी जानकारी करा देता है। फलस्वरूप वे अपनी नीतियों की स्वयं जाँच कर सकते हैं।

(4) नीति निर्माण में सहायक (Helpful in Policy Making)-अनौपचारिक संचार के द्वारा उच्च अधिकारियों को संस्था की कार्य-प्रणाली के बारे में सही जानकारी प्राप्त होती रहती है। वे संस्था की नीतियों में क्या कमियाँ हैं इसके बारे में जानकारी प्राप्त करके उनमें सुधार कर सकते हैं। इससे प्रबन्धकों को नीति-निर्माण में सहायता मिलती है।

(5) बहुआयामी (Multi-Dimensional) अनौपचारिक संचार बहुआयामी होता है जिसके कारण यह किसी भी समय, किसी भी दिशा में बिना किसी रूकावट के फैल सकता है। अत: इसे बिना। किसी कठिनाई के बड़े से बड़े संगठन व समूह तक पहुंचाया जा सकता है।

(6) औपचारिक संचार माध्यम का पूरक (Supplimentary to Formal Communication)-अनौपचारिक संचार के द्वारा कई मामले व विषय जिनका संचार औपचारिक संचार माध्यमों द्वारा नहीं किया जा सकता है, उन्हें प्रभावपूर्ण ढंग से संचारित किया जा सकता है। ऐसे कई उदाहरण हैं जहाँ उच्च प्रबन्ध ने कर्मचारियों को अपने दृष्टिकोण को स्पष्ट करने के लिये अनौपचारिक चैनलों का प्रयोग किया है। ऐसा करने से कर्मचारियों की भ्रान्ति को दूर किया जा सकता है।

अनौपचारिक संचार/सम्प्रेषण के दोष

(Disadvantages of Informal Communication)

(1) विश्वसनीयता की कमी (Lack of Reliablity)-अनौपचारिक संचार के द्वारा प्राप्त सूचनाएं पूर्ण रूप से विश्वसनीय नहीं होती। अधिकांश अनौपचारिक संचार जो कानों-कान फैलाया जाता है उसमें सच कम तथा अफवाह व लाग-लपेट अधिक होता है।

(2) अनियन्त्रित संचार (Uncontrollable Communication)-इस संचार पर प्रबन्धकों का कोई नियन्त्रण नहीं होता. अत: यह अनियन्त्रित होता है। इस संचार के प्रवाह व दिशा को नियन्त्रित करना। असम्भव होता है।

(3) संदेश के तोड़मरोड़ की सम्भावना अधिक होना (More Possibility of Distortion of Messaeg)-अनौपचारिक संचार में सूचनाएँ तीव्रता से फैलती हैं तथा इसमें पद-स्थिति को भी ध्यान में नहीं रखा जाता। इसमें सूचना में प्रत्येक व्यक्ति अपनी तरफ से कुछ जोड़-तोड़ कर देता है जिससे सही सूचना सही व्यक्तियों तक नहीं पहुँचती बल्कि गलत अफवाहें फैलती हैं।

(4) असंगठित संचार (Unorganised Communication)-अनौपचारिक संचार में | भिन्न-भिन्न आदेशों व निर्देशों में तालमेल बैठाना सम्भव नहीं हो पाता जिससे आदेशों में एकता का अभाव रहता है। साथ ही इस संचार में यह डर भी रहता है कि कार्यवाही से सम्बन्धित स्तर के प्रबन्धक को शायद अपने विभाग में चल रही कार्यवाही की कोई जानकारी ही न हो, क्योंकि कार्यवाही से सम्बन्धित आदेश उसने तो दिये नहीं, वे तो ऊपर से कर्मचारियों के द्वारा खुद निजी सम्बन्धों के कारण लाये गये हैं।

अनौपचारिक संचार/सम्प्रेषण को प्रभावी बनाने वाले तत्त्व

(Essentials of Effective Informal Communication)

1 उच्चाधिकारियों को चाहिये कि वे अनौपचारिक सम्प्रेषण में प्राप्त सन्देश तथा सूचना पर तत्काल विश्लेषणात्मक निर्णय लें।

2. उच्चाधिकारियों द्वारा सहायक कर्मचारियों के अच्छे सन्देशों तथा रचनात्मक कार्यों की तत्काल प्रशंसा करनी चाहिए।

3. अधीनस्थों के अन्दर ‘अधिकारी के प्रति भय’ की भावना को दूर किया जाना चाहिए।

4.संगठन संरचना के अन्तर्गत अनौपचारिक सम्प्रेषण के विभिन्न अवरोधों को समाप्त किया जाना चाहिए।

5. उच्चाधिकारियों को चाहिए कि वे उदारतापूर्वक अधीनस्थों को अनौपचारिक सम्प्रेषण के लिये प्रेरित करें।

औपचारिक तथा अनौपचारिक संचार/सम्प्रेषण में अन्तर

(Difference Between Formal and Informal Communication)

सन्देश के प्रवाह के आधार पर संचार/सम्प्रेषण के प्रकार

(Types of Communication on the Basis of Flow of Information)

 () उर्ध्वाकार संचार (Vertical Communication)-उर्ध्वाकार संचार, प्रबन्धन व उनके अधीनस्थ कर्मचारियों के मध्य होता है। इसकी दिशा प्रबन्धन से कर्मचारी अथवा कर्मचारी से प्रबन्धन की ओर होती है। जब संचार, प्रबन्धन से निचले स्तर के कर्मचारियों की ओर होता है तो इसे अवरोही संचार कहते हैं तथा जब संचार निचले स्तर के कर्मचारियों से प्रबन्धन की ओर होता है तो इसे आरोही संचार कहते हैं।

 (1) अवरोही या नीचे की ओर वाला संचार (Downward Communication)-जब सन्देश उच्च अधिकारियों से अधीनस्थ एवं कर्मचारियों को दिया जाता है, तो इसे नीचे की ओर संचार कहते हैं। उदाहरण के लिये, जब कोई मैनेजर सूचना का प्रसार अधीनस्थों को करता है, तब संचार का प्रवाह नीचे की ओर होता है। यह मौखिक या लिखित किसी भी प्रकार का हो सकता है। नीचे की ओर संचार में उच्चाधिकारी अपने सम्बन्धित विभागीय अधिकारियों को सन्देश प्रेषित करता है तथा विभागीय अधिकारी अपने अधीन कर्मचारियों को सन्देश सम्प्रेषित करते हैं। यह सन्देश यदि लिखित में दिया जाता है तो उसके लिये निर्देश पत्र, पम्फलेट्स, नीति निर्धारिक पत्रक, हैण्डबुक्स, इलैक्ट्रॉनिक न्यूज डिस्पले, आदि का प्रयोग किया जाता है। यदि मौखिक रूप में सन्देश भेजना है तो भाषण, निर्देश, बैठकें, दूरभाष, लाउडस्पीकर आदि का प्रयोग किया जाता है।

इस प्रकार के संचार में प्राय: अग्रलिखित सन्देश सम्मलित होते हैं

(i) कार्य के सम्बन्ध में आदेश, निर्देश एवं दायिल

(ii) कार्य निष्पादन के बारे में प्रतिपुष्टि;

(iii) अघोनस्थों से कार्य सम्बन्धी प्रश्न

(iv) नीतियों, नियमों, कार्य पद्धतियों, लक्ष्यों आदि के बारे में सूचना।

किसी संस्था के अवरोही संचार (Donward Communication) को निम्नलिखित चार्ट के द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है

इस संचार को प्रभावी बनाने के लिए प्रबन्धकों को योजना बनाने, अधीनस्थों का विश्वास जीतने. तथ्यों की जानकारी करने तथा सकारात्मक अभिवृत्ति निर्मित करने पर ध्यान देना चाहिए।

अवरोही अथवा नीचे की ओर संचार के उद्देश्य

(Objectives of Downward Communication)

अवरोही/नीचे की ओर संचार द्वारा निम्नांकित उद्देश्य पूर्ण किये जा सकते हैं

1 प्रवन्धकों द्वारा अधीनस्थों को इस सम्बन्ध में दिशा-निर्देश देना कि क्या करें और कैसे करें।

2. संगठन की नीतियों, कार्यक्रमों तथा प्रक्रिया को स्पष्ट करना।

3. व्यक्तियों को अपने कार्य को प्रभावकारी तरीके से सम्पन्न करने के लिये प्रेरित करना।

4. कर्मचारियों को कार्य सम्पादन में सुधार के लिए प्रेरित करना।

5. एक विशिष्ट कार्य के लिये अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को शिक्षित करना।

अवरोही संचार के लाभ

(Merits of Downward Communication)

अवरोही सम्प्रेषण से निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते है–

अधीनस्थों को नीतियों एवं कार्यविधि का स्पष्टीकरण (Explanation of Policies and Procedures to the Subordinates)-यह अचानस्थ कर्मचारियों को संगठन की योजनाओं नीतियों. कार्यक्रमों प्रक्रियाओं. कार्यावधि व अन्य आवश्यक सूचनाआ का उपलव्य कराकर कार्यमापन में सहायक होता है।

(1) नियन्त्रण (Control)-नीचे की ओर वाले संचार से अधीनस्थों की क्रियाओं को नियत्रित काम सहायता मिलती है। उच्च अधिकारी अपने अधीनस्थों को उनके निष्पादनों (Performance) क पार मनियामत समय अन्तराल के बाद बतलाते रहते हैं। यदि उनके निष्पादनों में कोई त्रुटि नजर आता है, तब उनसे अपनी कार्य प्रणाली में सुधार लाने के लिए कहा जाता है।

(iii) नियोजन (Planning)-अवरोही संचार अधीनस्थों को अपने कर्तव्यों को समझने में भी सहायता करता है। इसके अनुसार वे अपनी कार्यप्रणाली की योजना बना सकते हैं। अवरोही संचार में उच्च अधिकारियों की अनुचित (Unreasonable) माँग पर भी रोक लगाई जा सकती है।

अवरोही संचार/सम्प्रेषण की सीमाएँ

(Limitations of Downward Communication)

(i) सूचना की हानि (Loss of Information) नीचे की ओर वाले (अवरोही) संचार में सूचना कई स्तरों से गुजर कर जाती है। प्रत्येक स्तर पर इसकी व्याख्या (Interpretation) एवं पुन: व्याख्या का जाता है। इस प्रक्रिया से निचले स्तर (Bottom Level) पर सन्देश पूरी तरह नहीं पहुँचता तथा उसकी हानि होती है।

(ii) देरी (Delay)-नीचे की ओर वाले संचार में संचार की लाइनें बहत लम्बी होती हैं। अतएव श्रेणीबद्ध स्तर के निचले (Bottom) भाग में कर्मचारियों तक सन्देश प्रसारित करने में काफी समय लग जाता है।

(iii) सहभागिता की कमी (Non-Participative) नीचे की ओर किये जाने वाले संचार में सहभागिता की कमी पाई जाती है। यह अधीनस्थों को इसमें अपने योगदान की अनुमति नहीं देता। उन्हें उन सभी आदेशों का पालन करना पड़ता है जो उनके उच्च अधिकारी देते हैं।

(iv) विरूपण (Distortion)-नीचे की ओर (अवरोही) संचार में संचार के चैनल अधिकतर लम्बे होते हैं। हर स्तर पर सन्देश पर पूर्ण विचार होता है। इसके फलस्वरूप सन्देश में विकृति उत्पन्न होती है तथा सन्देश प्राप्तकर्ता तक पहँचते-पहुँचते सन्देश काफी बदल जाता है।

(v) प्रतिपुष्टि की कमी (Lack of Feedback) नीचे की ओर (अवरोही) संचार में प्रतिपुष्टि का अभाव पाया जाता है। वरिष्ठ अधिकारियों को यह ज्ञात नहीं हो पाता कि सन्देश के विषय में अधीनस्थ कर्मचारियों की क्या प्रतिक्रिया है।

अवरोही संचार को प्रभावी बनाने के उपाय

(Essentials of Effective Downward Communication)-

अवरोही संचार को प्रभावी बनाने की निम्नलिखित शर्ते हैं

(i) संगठन के उच्च व निम्न सभी वर्ग के कर्मचारियों को संगठन के समस्त उद्देश्यों, उसकी गतिविधियों के बारे में सम्पूर्ण जानकारी होना अनिवार्य है जिससे कि ये सम्प्रेषित सन्देश के विभ्रम में किसी प्रकार के प्रश्न व जाँच का उत्तर दे सकें।

(ii) एक संगठन में अनुकूल सम्प्रेषण का पर्यावरण होना चाहिए। सन्देश सम्प्रेषित होने के पूर्व उससे उत्पन्न होने वाले विभ्रमों को दूर कर लेना चाहिए। एक प्रबन्धन को सदैव अनुकूल सम्प्रेषण के पर्यावरण के निर्माण के लिए सहयोग व निश्चितता का वातावरण निर्मित करना चाहिए।

 (iii) किसी अधिकारी को जारी आदेश या निर्देशों पर अतिकेन्द्रित व्यवहार को अनदेखा करना चाहिए, क्योंकि इस सम्प्रेषण प्रक्रिया में उसके अन्य कर्मचारी भी समाहित हैं।

(iv) एक संगठन में अवरोही संचार उचित माध्यमों से होना चाहिए। सम्प्रेषण के लिए किसी बाह्य पथ का प्रयोग संगठन में व्यावहारिक समस्याएँ उत्पन्न करता है।

(v) अवरोही संचार में सम्प्रेषक को सदैव साफ और सम्पूर्ण सन्देश सरल व सीधी भाषा में प्रेषित करना चाहिए।

(2) आरोही या ऊपर की ओर वाला संचार (Upward Communication)-जब संचार का प्रवाह निम्न पदों से उच्च पदों की तरफ होता है अर्थात् जब सन्देश अधीनस्थ कर्मचारियों द्वारा उच्च अधिकारियों को भेजे जाते हैं तो इसे आरोही संचार कहते हैं। संगठन के दृष्टिकोण से, ऊपर की ओर वाला संचार भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि नीचे की ओर वाला संचार। समस्याओं को हल करने के लिए तथा विवेकपूर्ण निर्णय लेने के लिए, प्रबन्ध के पास यह जानकारी अवश्य होनी चाहिए कि संगठन या कम्पनी में क्या हो रहा है। चूंकि कार्यपालक (Executives) या वरिष्ठ अधिकारी सब स्थानों पर उपस्थित नहीं हो सकते, इसलिए उन्हें निचले स्तर के कर्मचारियों पर सही व समय से रिपोर्ट प्राप्त पडता है।

सन्देश की प्रतिपुष्टि में उच्च अधिकारियों द्वारा समय-समय पर कर्मचारियों स उनक निष्पादन व दिये गये दिशा निर्देशों, आदेशों के अनुपालन के सम्बन्ध में जवाब माग ज परिप्रेक्ष्य में उनके अधीनस्थ कर्मचारियों द्वारा अपने कार्य की प्रकति. संवेदनाओं आदि का उच्च । आधकारियों तक पहुंचाया जाता है। स्वैच्छिक सम्प्रेषण में संगठन की नीतियों, नियमा क सम्बन्धमा अधीनस्थ अधिकारियों/कर्मचारियों के विचार, सझाव, शिकायतें आमन्त्रित की जाती है।

विधियों (Methods of Upward Communication) आरोही सम्प्रेषण की निम्नलिखित विधियाँ हैं

(1) सावधिक बैठकें (Periodic Meetings) इसमें एक निश्चित समयावधि में संगठन के आधिकारियों व कर्मचारियों की समूह बैठकें बलाकर उसमें अधीनस्थ कर्मचारियों के सुझावों, विचारों को आमन्त्रित किया जाता है। इन सुझावों, विचारों को उच्च अधिकारी वर्ग सुनता है व उस पर उचित कार्यवाही करता है।

(2) खुली द्वार नीति (Open Door Policy) इस नीति के तहत कर्मचारी को अपने उच्च अधिकारियों के ऑफिस में अपने प्रकरणों के सन्दर्भ में बिना झिझक मिलने व बात करने की छूट रहती है।

(3) सुझाव बॉक्स (Suggestion Box)-इस नीति में संगठन या दफ्तर के समक्ष एक सझाव पेटिका रखी जाती है। कर्मचारी इस पेटिका में अपने सुझावों, शिकायतों व विचारों को लिखकर छोड़ देता है। एक निश्चित समय-अन्तराल के उपरान्त इस पेटिका को खोलकर इनसे प्राप्त पत्रों में लिखित सझावों विचारों व कठिनाइयों पर विचार-विमर्श किया जाता है।

(4) अनौपचारिक सम्मेलन (Informal Conference)-इसमें अनौपचारिक सम्मेलन, जैसे. पिकनिक के आयोजन द्वारा अपने कर्मचारियों को उनके विचारों को उच्च अधिकारियों के साथ कहने व बाँटने का मौका दिया जाता है।

(5) काउन्सलिंग (Councelling)—यह एक नई तकनीक है। इस तकनीक का प्रयोग बहुत कम संगठन करते हैं। इसके अन्तर्गत कर्मचारियों को उनके उच्च अधिकारियों से अपनी व्यक्तिगत कठिनाइयों को दूर करने हेतु प्रेरित किया जाता है।

ऊपर की ओर संचार में प्राय: निम्नलिखित प्रकार के सन्देश हो सकते हैं

(i) कर्मचारियों के कार्य प्रतिवेदन।

(ii) कर्मचारियों की व्यक्तिगत समस्याएँ।

(iii) अधीनस्थों की प्रतिक्रियाएँ, संशय, प्रश्न आदि।

(iv) कार्य सम्बन्धी कठिनाईयाँ, शिकायतें आदि।

(v) कार्यों व नीतियों की आलोचनाएँ तथा सुझाव।

(vi) कर्मचारियों के मत व सुझाव।

(vii) भावनाएँ, अभिवृत्तियाँ, सहायता हेतु निवेदन आदि। किसी संस्था में आरोही संचार (Upward communication) की स्थिति निम्न प्रकार होती है

आरोही संचार के लाभ (Meritoof Unward Communication) आरोही सचार स एक संगठन को निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं

(a) प्रातपुष्टि प्राप्त होना (Feedback) ऊपर की ओर वाला संचार उच्च प्रबन्ध को आवश्यक क्रया उपलब्ध कराता है। उच्च प्रबन्ध यह समझने के योग्य हो जाता है कि निचले स्तर के आदेश उसने जारी किए हैं. क्या स्पष्ट रुप से उन्हें समझ लिया गया ह आर उनका पालन किया गया है। उच्च प्रबन्ध को यह फीडबैक भी मिल जाती है कि जो नीतियां व कार्यावधिया उसने अपनाई व जारी की हैं, उनके प्रति कर्मचारियों की सोच क्या है?

(2) अनात्मक सुझाव (Constructive Suggestion) निचले स्तर के कर्मचारी संगठन की पसात व काम को दशाओं को अधिक निकटता से जानते हैं। अतएव इस मामले में वे उच्च प्रबन्ध का यरचनात्मक सुझाव दे सकते हैं कि उत्पादन प्रक्रिया में सधार कैसे लाया जाए, कच्चे माल व अन्य सामग्री को अपव्यय से कैसे बचाया जाए।

(3) आंधक मधुरसम्बन्ध तथा सामंजस्य (Greater Harmony and Cohesion)-ऊपर का आर वाला संचार अधीनस्थों में विश्वास जागत करता है और वे इस प्रकार अपने विचारा, कष्टा, शिकायतों, सुझावों, मतों आदि को उच्च प्रबन्ध को बतला सकते हैं। इससे संगठनात्मक वातावरण अधिक मैत्रीपूर्ण बन जाता है और प्रबन्ध तथा कर्मचारियों के बीच अधिक मधर-सम्बन्ध तथा सामंजस्य स्थापित हो जाता है।

(4) तनाव से मुक्ति (Release of Tension) उर्ध्वमुख संचार के द्वारा अधीनस्थ कर्मचारी अपनी शिकायतें वरिष्ठ अधिकारियों तक पहुँचाने में सफल हो सकते हैं। जब कम्पनी के मैनेजर उनका शिकायतों को सहानुभूतिपूर्वक सुनते हैं तथा उनके समाधान ढंढने के प्रयल करते हैं तो कर्मचारियों का तनाव कम होता है तथा उन्हें सन्तुष्टि प्राप्त होती है। इसके फलस्वरुप वे काम अधिक लगन तथा कुशलता से करते हैं।

(5) परिवर्तन (Change) जब कर्मचारी अपने वरिष्ठ अधिकारियों से स्वतन्त्रतापूर्वक संचार करते हैं तो वे नए विचारों का विरोध नहीं करते। उनका दृष्टिकोण सकारात्मक हो जाता है। वे नई योजनाएँ। केवल स्वीकार ही नहीं करते बल्कि उन्हें सफल बनाने के लिए प्रयत्न भी करते हैं।

आरोही संचार की सीमाएँ

(Limitations of Upward Communication)

(1) विरुपित सन्देश की सम्भावना (Possibility of Distorted Message)-ऊपर की ओर वाले संचार में वरिष्ठ अधिकारी, प्रबन्ध के निचले स्तर के कर्मचारियों से सूचना प्राप्त करते हैं। अपने हितों को ध्यान में रखते हुए हो सकता है कि प्रबन्ध का निचला स्तर, उच्च प्रबन्ध को, सूचना तोड़-मरोड़ कर दे।

(2) संचार के सही चैनल का अनुसरण नहीं किया जाता (Proper Channel of Communication is not Followed)-ऊपर की ओर संचार में प्रबन्धक निचले स्तर के कर्मचारियों से सूचना प्राप्त करते हैं। इस प्रक्रिया में प्रबन्धक एक या दो श्रेणीबद्ध स्तरों (Hierarchical Levels) को छोड़ सकते हैं और इस प्रकार संचार प्रणाली के उचित चैनल का अनुसरण नहीं करते।

(3) स्वतन्त्र अभिव्यक्ति की कमी (Lack of Free Expression)-अधीनस्थ कर्मचारी प्राय: अपने वरिष्ठ अधिकारियों से स्वतन्त्रतापूर्वक विचार विमर्श करने में हिचकिचाते हैं।

(4) कमजोर श्रवणता (Weak Listening) आरोही संचार प्रक्रिया में उच्च अधिकारी, कर्मचारियों के नवीन विचारों को ध्यानपूर्वक नहीं सुनते जिससे वे अपनी बात पूर्ण रुप से नहीं रख पाते। कमजोर श्रवणता कर्मचारियों को हतोत्साहित करती है।

आरोही (ऊपर की ओर ) संचार को प्रभावी बनाने के उपाय

(Essentials of Effective Upward Communication)

ऊपर की ओर संचार व्यवस्था को प्रभावी बनाने के लिये निम्नलिखित कदम उठाये जाने चाहिये

(1) अच्छे सझावों हेत पुरस्कार (Reward for constructive suggestions)-यदि कोई भी। कर्मचारी संस्था में कोई अच्छा सुझाव देता है तो संस्था की ओर से उसे पुरस्कृत किया जाना चाहिये। इससे अन्य कर्मचारियों में आगे आकर विचार प्रकट करने की भावना जागृत होगी।

(2) प्रभावी रुप से सुनना (Effective Listening)-प्रबन्धक व सम्बन्धित अधिकारियों को। । अपने अधीनस्थ कर्मचारियों के विचारों व सुझावों को सहानुभूतिपूर्वक सुनना चाहिये। इससे सहायकों के अन्दर यह भावना उत्पन्न होगी कि प्रबन्धक उनमें वास्तविक हित रखते हये उनकी समस्याओं एवं दु:खों के निवारण की इच्छा रखते हैं।

(3) स्वस्थ वातावरण (Healthy Atmosphere) ऊपर की ओर संचार व्यवस्था हेतु प्रबन्धक एवं अधीनस्थ के मध्य स्वस्थ वातावरण तैयार होना चाहिये क्योंकि इसके अभाव में कोई भी संचार प्रभावी नहीं हो सकता है।

(4) तथ्यों का स्पष्ट प्रस्तुतीकरण (Clear presentation of facts) किसी भी अधिकारी द्वारा कर्मचारी की बातों को छिपाने का प्रयास न किया जाय। जो भी समस्यायें, विचार या सुझाव अधीनस्थ कर्मचारियों द्वारा दिये जाएँ उन्हें यथावत् सम्बन्धित उच्च अधिकारियों तक पहुंचाया जाए।

(5) सम्प्रेषण की छोटी लाइन (Short line of Communication)-जहाँ तक हो सके संचार क्रिया में कम से कम लोग हो अर्थात् प्रक्रिया की लाइन छोटी हो ताकि सन्देश में देरी न हो तथा उसमें तोड़-मरोड़ की सम्भावना भी कम हो।

आरोही सम्प्रेषण एवं अवरोही संचार/सम्प्रेषण में अन्तर

Business Corporate Communication

(3) क्षैतिज या समतल संचार (Horizontal or Lateral Communication जब समान स्तर के कर्मचारियों, अधिकारियों अथवा विभागाध्यक्षों के बीच सन्दशों का आदान-प्रदान होता है तो इसे क्षैतिज या समतल संचार कहा जाता है। यह संचार समन्वयात्मक प्रकृति का होता है तथा कार्यों के विशिष्टीकरण के कारण इसकी आवश्यकता होती है। यह अनौपचारिक एवं औपचारिक दोनों प्रकार का हो सकता है। इसका उद्देश्य विभिन्न कार्यों, विभागों अथवा योजनाओं में सामंजस्य उत्पन्न करना होता है। इससे कार्यों एवं निर्णयों को शीघ्रता से पूरा किया जा सकता है। इस प्रकार का संचार सहकारिता व सामूहिक कार्य की भावना को जन्म देता है। यह संचार संगठन के समान वर्ग के अधिकारियों या कर्मचारियों के मध्य होता है। प्रभावी क्षैतिज सम्प्रेषण आपसी समझ की भावना को बढ़ाता है।

उदाहरण के लिए,संगठन के विपणन प्रबन्धक व उत्पादन प्रबन्धक के मध्य सम्प्रेषण अथवा एक सेल्समेन का अन्य दूसरे सेल्समेन के साथ सम्प्रेषण।

उद्देश्य (Objects)-(1) इसका उद्देश्य विभिन्न विभागों व व्यक्तियों के मध्य सहकारिता उत्पन्न करना है।

(2) इसका उद्देश्य विभिन्न विशेषज्ञों की सहायता से समस्याओं का निदान करना है।

(3) इसका उद्देश्य संगठन के विभिन्न विभागों के कर्मचारियों के मध्य सूचना या सन्देश का आदान-प्रदान करना है।

(4) इसका उद्देश्य संगठन के विभिन्न कर्मचारियों के मध्य सामाजिक सम्बन्धों को बढ़ावा देना है।

(5) इसका उद्देश्य विभिन्न कर्मचारियों के मध्य अन्तर्द्वन्द्व को समाप्त करना है।

क्षैतिज सम्प्रेषण (Horizontal Communication) में निम्नलिखित संचार माध्यमों का प्रयोग होता है

(1) टेलीफोन (दूरभाष) (Telephone),

(2) आमने-सामने वार्तालाप (Face to Face Discussion),

(3) बैठकें (Meetings),

(4) लिखित सन्देश, जैसे, पत्र इत्यादि (Written Messages)

क्षतिज संचार व्यवस्था को निम्नांकित प्रकार प्रदर्शित किया जा सकता है

Business Corporate Communication

एक संगठन के विभिन्न विभागों के मध्य क्षैतिज सम्प्रेषण

(Lateral Communication between Various Departments in an Organisation)

क्षैतिज संचार के लाभ

(Advantages of Lateral Communication)

(i) समन्वय (Co-ordination)-कम्पनी के संगठन में समस्तरीय संचार व्यावसायिक क्रियाओं को समन्वित करने में सहायता देता है। एक ही स्तर के दो प्रबन्धक, व्यावसायिक क्रियाओं की सफलता को सुनिश्चित करने के लिए, एक दूसरे से संचार कर सकते हैं।

(ii) तीव्र संचार (Faster Communication)-उच्च व अधीनस्थ सम्बन्ध के अभाव के कारण समस्तरीय संचार नेटवर्क में संचार का प्रवाह तीव्र गति से होता है। समान स्तर के व्यक्तियों के कारण सम्पूर्ण संचार प्रक्रिया निर्विघ्न तथा तेज होती है। ।

क्षैतिज संचार की सीमाएँ

(Limitations of Lateral Communication)

(i) दृष्टिकोण में अन्तर (Differences in Approach)-प्रत्येक विभाग के प्रमुख के अपने-अपने विचार व दष्टिकोण होते हैं और उन पर अन्य की सहमति अनिवार्य नहीं। अतः अहं भी इस सम्प्रेषण में बाधा उत्पन्न करता है।

(ii) भौतिक रुकावटों का होना (Presence of Physical Barriers)—समस्तरीय संचार में । शोर जैसी भौतिक रुकावट सदा बनी रहती है। चूंकि संचार एक ही स्तर पर होता है, इसलिए इन रुकावटों को दूर करना बहुत कठिन है, ऐसी दशा में सन्देश विरुपित (Distorted) हो सकता है।

 (iii) भाषा सम्बन्धी कठिनाई (Language Problems)-अपने-अपने विषय के विभिन्न विशेषज्ञों की अपनी एक भाषा होती है जो सामान्य व्यक्तियों के समझने योग्य नहीं होती। अतः क्षातज सम्प्रेषण में भाषा सम्बन्धी कठिनाई उत्पन्न होती है।

(iv) प्रतियोगिता (Competition) कभी-कभी समान वर्ग के कर्मचारी आज के प्रतियोगी। वातावरण क भय स अपने आपको असुरक्षित पाते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि वे आपस में खुले दिल व दिमाग से सम्प्रेषण नहीं कर पाते।

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समतल सम्प्रेषण को प्रभावी बनाने के उपाय

(Essentials of effective Horizontal Communication)

समतल सम्प्रेषण को प्रभावी बनाने के लिये निम्नलिखित कदम उठाये जाने चाहियें

(1) कर्मचारियों में आपस में नकारात्मक प्रतिस्पर्द्धा को समाप्त करने का प्रयास किया जाना चाहिये।

(ii) कर्मचारियों को समय-समय पर प्रोत्साहित करने की व्यवस्था की जानी चाहिये।

(iii) समय-समय पर कर्मचारियों की बैठकें बलाई जानी चाहिये। ।

(iv) एक विभाग से दूसरे विभाग की दूरी को कम करने के लिये इण्टरकॉम से विभागों को जोड़ना चाहिये।

(4) विकर्ण संचार (Diagonal Communication)-इस प्रकार के संचार के अर्न्तगत संगठन के विभिन्न स्तर के व्यक्तियों के मध्य होने वाले संचार को सम्मिलित किया जाता है।

अतः जब किसी संगठन के विभिन्न स्तर के व्यक्तियों के बीच सम्प्रेषण की क्रिया होती है तब विकर्ण सम्प्रेषण या विकर्ण संचार होता है। उदाहरणस्वरुप यदि किसी विभाग का प्रबन्धक किसी दूसरे विभाग के कर्मचारी से बात-चीत करे या फिर किसी विभाग का कर्मचारी दूसरे विभाग के प्रबन्धक से सम्प्रेषण क्रिया करे तो वह विकर्ण संचार के अर्न्तगत आ जाता है। इसे समझने के लिए यह भी माना जा सकता है कि शब्द “Diagonal” जिसका अर्थ टेढ़ा होता है दो बराबर लोगों के मध्य सम्भव नहीं है। यह सदा एक विभाग के बड़े अफसर तथा दूसरे विभाग के छोटे अफसर या फिर एक विभाग के बड़े तथा दूसरे विभाग के मध्य स्तरीय कर्मचारियों के बीच पाया जाता है तभी यह विकर्ण “Diagonal” हो सकता है।

विकर्ण संचार के लाभ

(Advantages of Diagonal Communication)

(1) विकर्ण संचार से तालमेल को बढ़ावा मिलता है अर्थात् जब विभिन्न विभागों तथा व्यक्तियों में सम्प्रेषण होता है तो उससे तालमेल (Co-ordination) बढ़ता है।

(2) विकर्ण संचार से विश्वास एवं सहयोग (Trust and Co-ordination) को अधिक किया जा सकता है।

(3) विकर्ण संचार नए तथा प्रभावशाली सुझाव ढूँढने के लिए मददगार साबित होता है। जैसा कि जब दो लोग अपने स्तर के सर्वश्रेष्ठ परिणामों को देने की कोशिश करते हैं (Sharing of ideas) तो किए। गए कार्य की गुणवत्ता बढ़ जाती है।

(4) इस सम्प्रेषण प्रक्रिया में अन्य सम्प्रेषण की तुलना में समय कम लगता है इसलिए इससे कार्य, कुशलता व तीव्र गति से होता है।

(5) इस सम्प्रेषण में अनुक्रम (Sequence) का बन्धन नहीं होता, इसलिए यह अत्यधिक प्रभावी होता है।

(6) इस संचार से विभिन्न कर्मचारियों व अधिकारियों को आपस में वार्तालाप करके समस्याओं को हल करने का मौका मिलता है जिससे उनका मनोबल ऊँचा होता है।

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विकर्ण संचार की हानियाँ

(Disadvantages of Diagonal Communication)

(1) इस सम्प्रेषण प्रक्रिया से दो विभाग विभिन्न प्रकार के विवाद में फंस जाते हैं जिसका कारण बातों को इधर-उधर करना अथवा अफवाओं को फैलाना है।

(2) किसी कम्पनी का गुप्त प्लान अथवा वे बातें जो कम्पनी के सदस्यों के बीच गप्त रहनी ‘ चाहिए, खुलने का भय बना रहता है।

(3) यदि किसी विभाग का प्रबन्धक दूसरे विभाग के कर्मचारी से सीधा सम्प्रेषण करता है तो दूसरे विभाग के प्रबन्धक अथवा अन्य कर्मचारियों को अनदेखा किया जाता है।

अंगूरीलता (अपुष्ट या ग्रेपवाइन) संचार/सम्प्रेषण

(Grapevine Communication)

अपुष्ट या ग्रेपवाइन संचार से आशय संचार की उस प्रणाली से ह जा है तथा जिसमें किसी भी नियम का पालन नहीं किया जाता। इस प्रकार ‘सचार से आशय संचार की उस प्रणाली से है जो पूर्णतया अनौपचारिक होती होता है और न ही अन्त। इसमें सूचना प्रदान करने का तरीका कभी भी  नियम का पालन नहीं किया जाता। इस प्रकार के संचार का न तो कोई आरम्भ अन्ता इसम सूचना प्रदान करने का तरीका कभी भी एक सा नहीं रहता बल्कि समयअनुसार बदलता रहता है। इसमें सामान्यत: सुनी-सुनाई सूचनाओं, अनुमानों, तया, ताखा-चटपटी खबरों तथा मिथ्या प्रचारों आदि का प्रसार होता है इसलिए इसेकहते है। इस प्रकार के संचार की विश्वसनीयता सन्देहपूर्ण होती है तथा इसमें वास्तविक सत्य गुम हो जाता है। इस प्रकार के संचार की गति बहुत तीव्र होता हा लाकन यहहै कि यह सचार पूर्णतः असत्य ही हो, कई बार यह सत्यता के करीब भी होता है। ऐसे सपशा का प्रचार, सामाजिक समारोहों, दोपहर के भोजन के समय, सामूहिक कार्यक्रमों आदि के द्वारा होता है। इसे अंगूरीलता सम्प्रेषण भी कहा जाता है।

कोथ डेविस के अनुसार, “ग्रेपवाइन या अपर संचार आधारिक रूप से समस्तरीय संचार का एक 70 क्याकि यह श्रेणीबद्ध समान स्तर पर कार्य करने वाले केवल उन व्यक्तियों से सम्बन्धित हे जा पूरे आराम से एक दूसरे के साथ अनौपचारिक संचार कर सकते हैं।”

लुइस ए० ऐलन के अनुसार, “ग्रेपवाइन एक समस्तरीय संचार का माध्यम है जो एक ही स्तर पर कार्य करने वाले उन व्यक्तियों से सम्बन्ध रखता है जो अनौपचारिक प्रणाली को अपनाए हुए हैं

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अपुष्ट या ग्रेपवाइन संचार/सम्प्रेषण की विशेषताएँ

(Characteristics of Grape-Vine Communication)

अपुष्ट या ग्रेपवाइन सम्प्रेषण की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित प्रकार हैं

(1) अपुष्ट संचार पूर्णतया अनौपचारिक होता है जिसमें सूचनाओं के प्रवाह के लिये किसी भी नियम का पालन नहीं किया जाता।

(2) इसमें सुनी-सुनाई सूचनाओं का प्रसारण किया जाता है, अतः यह सत्यता के निकट हो भी सकता है और नहीं भी।

(3) ग्रेपवाइन सम्प्रेषण, सम्प्रेषण की प्राचीनतम प्रणालियों में से एक है और आज के परिप्रेक्ष्य में इसका बहुत महत्त्व है।

(4) इसमें सूचना प्रदान करने का तरीका कभी भी एक जैसा नहीं रहता बल्कि समय व परिस्थितियों के अनुसार बदलता रहता है।

(5) इसमें सूचनाओं की विश्वसनीयता सन्देहपूर्ण होती है क्योंकि जितने व्यक्तियों के मध्य होकर यह सन्देश गुजरता है, उतना ही अधिक विकृत हो जाता है।

(6) यह एक ही स्तर पर कार्य करने वाले उन व्यक्तियों से सम्बन्ध रखता है जिनमें अनौपचारिक सम्बन्ध होता है।

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ग्रेपवाइन श्रृंखला के प्रकार

(Types of Grapevine Chains)

ग्रेपवाइन श्रृंखला प्रमुख रूप से निम्नलिखित चार प्रकार की हो सकती है

(1) एकल आधार श्रृंखला (Single Stand Chain)—इस प्रकार के संचार में सन्देश एक सीधी रेखा में प्रवाहित होता है। इस आधार में एक व्यक्ति एक क्रम के अनुसार दूसरे को सन्देश देता है तथा सन्देश प्राप्त करने वाला व्यक्ति आगे सन्देश देता रहता है। उदाहरण के लिये, राजीव किसी सन्देश को संजीव से कहता है, संजीव इसी सन्देश को आशीष से कहता है तथा आशीष इसी सन्देश को आयूष से कहता है और इसी प्रकार निरन्तर आगे क्रम चलता रहता है। इसमें प्रत्येक संचारक अपनी तरफ से भी सन्देश में कुछ मिलावट स्वाभाविक रूप से कर देता है। इसे निम्नलिखित चित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है

राजीव

संजीव

आशीष

आयुष

 (2) गपशप श्रृंखला (Gossip Chain) गपशप में सभी को एक साथ सन्देश दिया जाता है। गासिप शृ इसमें सम्प्रेषक की भूमिका केन्द्र बिन्दु अथवा धुरी इसमें A सम्प्रेषक की भूमिका में है और एक साथ कई व्यक्तियों को सन्देश प्रेषित कर रहा है।

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(3) गुच्छ या समूह श्रृंखला (Cluster Chain)—जिस प्रकार अंगूर के गुच्छे में अंगूर एक दूसरे से सम्बन्धित होते हुए एक समूह के रूप में दिखते हैं, ठीक उसी प्रकार इस संचार श्रृंखला में भी सम्प्रेषक अन्य व्यक्तियों को, जो उससे सम्बन्धित होते हैं अथवा उस पर विश्वास करते हैं, संचार करता है। उपरोक्त श्रोता उस सन्देश को आगे संचारित करते हैं। नैट-वर्किंग की भाँति गुच्छ या समूह श्रृंखला निरन्तर रूप में संचार को आगे फैलाती है। इसे निम्नांकित चित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है ।

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प्रस्तुत चित्र में A चार व्यक्तियों B.C. D तथा E को सूचना प्रदान करता है। B पुन: F.G, H तीन व्यक्तियों को जो उससे सम्बन्धित हैं, संचार करता है। इसी प्रकार C आगे I को सन्देश संचारित करता है तथा D तीन व्यक्तियों J.K. L को सूचना प्रदान करता है। इसी प्रकार यह शृंखला चलती रहती है।

(4) प्रायिकता श्रृंखला (Probability Chain)—प्रायिकता श्रृंखला में प्रायिकता के सिद्धान्त के आधार पर एक व्यक्ति द्वारा अन्य व्यक्तियों को अनियमित रूप से सन्देश दिया जाता है। इसमें अचानक किसी रोचक सन्देश को व्यक्त किया जाता है तथा उसका आगे भी अकस्मात् सम्प्रेषण फैलाव होता रहता है। इस सन्देश श्रंखला का आकार कभी भी एक जैसा नहीं होता। इसे अग्र चित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है

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परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(Expected Important Questions for Examination)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

(Long Answer Questions)

1 निगमीय सम्प्रेषण से आप क्या समझते हैं ? कारिट में औपचारिक तथा अनौपचारिक सम्प्रेषण की विभिन्न विधियों को समझाइए।

What do you understand by corporate communication ?  Describe the main methods of formal and informal communication.

2. औपचारिक संचार क्या है ? एक संगठन के लिये औपचारिक संचार की क्या उपयोगिता है ? इसके चैनलों की व्याख्या कीजिए।

What is meant by formal communication ? Discuss the utility of formal communication for an organisation. Explain its channels.

3. अनौपचारिक संचार क्या है ? इसके लाभ तथा सीमाएँ क्या हैं ?

What is Informal Communication? What are its advantages and limitations?

4. औपचारिक तथा अनौपचारिक संचार से आपका क्या अभिप्राय है? औपचारिक तथा अनौपचारिक संचार  में अन्तर स्पष्ट कीजिए।

What do you mean by formal and informal communication? Distinguish between formal and informal communication.

5. अवरोही संचार क्या है ? इसके उद्देश्य, लाभ व कठिनाईयाँ बताइये।

What is downward communication ? Explain its objectives, advantages and obstacles.

6. आरोही संचार/सम्प्रेषण से आप क्या समझते हैं ? स्पष्ट कीजिए कि इसे किस प्रकार प्रभावी बनाया जा सकता है ? इसके लाभ व सीमाओं की विवेचना कीजिए।

What do you mean by Upward Communication ? Explain how it can be made effective ? Discuss its advantages and limitations.

7. उर्ध्वाकार सम्प्रेषण क्या है ? संक्षिप्त रुप में समझाइए।

What is vertical communication ? Explain in brief.

8. क्षेतिज सम्प्रेषण क्या है ? इसके लाभ व सीमाएँ बताइए।

What is horizontal communication ? Explain its advantages and limitations.

9. अपुष्ट समाचार या ग्रेपवाइन से आप क्या समझते हैं ? एक संगठन में इसका क्या महत्व है ?

What do you understand by Grapevine? What is its importance in an organization?!

10. किसी एक को अपुष्ट समाचार/ग्रेपवाइन को फीड करना चाहिए, उसे पानी देना चाहिए तथा उसकी खेती करनी चाहिए न कि उसके विकास को दबाना चाहिए।” व्याख्या करें।

“One should feed, water and cultivate the grapevine rather than curb its growth.” Discuss.

11. अंगूरीलता संचार/सम्प्रेषण का आशय स्पष्ट कीजिए एवं इसकी विशेषताएँ एवं प्रकार बताए

Explain the meaning of Grapevine Communication and describe its and types.

12. टिप्पणी लिखिए (Write short notes Vertical and horizontal communication)

(ii) अनौपचारिक संचार (Informal communication)

(iii) अवरोही एवं आरोही संचार (Upward and downward communication)

Business Corporate Communication

लघु उत्तरीय प्रश्न

(Short Answer Questions)

1 औपचारिक सम्प्रेषण को समझाइए।

Explain the formal communication.

2. अनौपचारिक सम्प्रेषण को समझाइए।

Explain the informal communication.

3. अवरोही संचार से क्या आशय है ? |

What is meant by downward communication ?

4. नीचे की ओर संचार के लाभ बताइए।

Write the merits of downward communication.

5. आरोही संचार को समझाइए।

Explain Upward Communication ?

6. आरोही संचार की विधियाँ बताइए।

Describe the methods of upward communication.

7. क्षैतिज सम्प्रेषण से क्या आशय है ?

What is meant by horizontal communication?

8. विकर्ण संचार से क्या आशय है ?

What is meant by diagonal communication?

9. औपचारिक तथा अनौपचारिक संचार में अन्तर स्पष्ट कीजिए।

Distinguish between formal and informal communication.

10. आरोही तथा अवरोही संचार में अन्तर कीजिए।

Distinguish between upward and downward communication.

11. अंगूरीलता/अपुष्ट संचार को समझाइए।

Explain grapevine communication.

12. अंगूरीलता संचार को किस प्रकार प्रभावी बनाया जा सकता है ?

How grapevine communication can be made effective?

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chetansati

Admin

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