BCom 1st Year Business Economics Rent Study Material Notes in Hindi

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BCom 1st Year Business Economics Rent Study Material Notes in Hindi

Table of Contents

BCom 1st Year Business Economics Rent Study Material Notes in Hindi: Meaning of Rent Types of Rent Difference Economic Rent and Contract Rent  Ricardian Theory of Rent  Assumptions of Ricardian theory Of Rent Criticisms Scarcity Rent Difference Between Scarcity Rent and Differential Rent Modern Theory of rent Difference Between Ricardian Theory and Modern Theory of Rent Theoretical Questions Long Answer Question Short Answer Question Very Short Answer Question ( This post is Most Important for BCom 1st Year Students )

 Rent Study Material Notes
Rent Study Material Notes

BCom 1st Year Business Economics Theories Distribution Study Material Notes in Hindi

लगान  (Rent)

लगान का आशय

(Meaning of Rent)

साधारण बोलचाल में लगान शब्द का प्रयोग किसी भौतिक सम्पत्ति के प्रयोग के प्रतिफल में सम्पत्ति के मालिक को चुकाये जाने वाले नियमित भुगतान से होता है। किन्तु अर्थशास्त्र में इस शब्द का प्रयोग उस पुरस्कार के लिये किया जाता है जो भूस्वामी को भूमि के उपयोग के लिये दिया जाता है।

लगान के अर्थ के सम्बन्ध में प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों और आधनिक अर्थशास्त्रियों में मतभेद है। रिकार्डो, मार्शल, टामस आदि प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों के अनुसार लगान केवल भूमि व अन्य प्रकृतिदत्त पदार्थों के प्रयोग के लिये दिया जाता है जबकि आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार लगान उत्पत्ति के प्रत्येक साधन को प्राप्त होता है। वे मानते हैं कि उत्पत्ति के प्रत्येक साधन में भूमि तत्व (Land element) विद्यमान होता है।

प्रसिद्ध प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री डेविड रिकार्डो के शब्दों में, “लगान भूमि की उपज का वह भाग है जो भूस्वामी को भूमि की मौलिक एवं अविनाशी शक्तियों के प्रयोग के लिये दिया जाता है।’ डा० मार्शल के शब्दों में, “भूमि तथा अन्य निःशुल्क प्रकृतिदत्त उपहारों के स्वामित्व से होने वाली आय को अर्थशास्त्र में साधारणतया लगान कहते हैं। इस प्रकार प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों ने लगान का सम्बन्ध केवल भूमि के साथ स्थापित किया।

प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों ने लगान शब्द को बहुत संकुचित अर्थ में प्रयोग किया। आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार लगान उत्पत्ति के सभी साधनों के प्राप्त हो सकता है तथा उन्होंने इसे सााधन को वर्तमान उपयोग में बनाये रखने के लिये उसके न्यूनतम पूर्ति मूल्य अथवा अवसर लागत पर एक आधिक्य माना है। श्रीमती जॉन रॉबिन्सन के शब्दों में, “लगान के विचार का सार वह बचत है जो कि एक साधन की इकाई उस न्यूनतम आय के ऊपर प्राप्त करती है जो कि साधन को अपने कार्य को करते रहने के लिये आवश्यक है।

Business Economics Rent

बोल्डिंग के शब्दों मेंआर्थिक लगान वह अतिरेक है जो साम्य की दशा में काम करने वाले किसी उद्योग में साधन की इकाई को वर्तमान व्यवसाय में बनाये रखने के लिये उसके न्यूनतम पूर्ति मूल्य अथवा अवसर लागत पर प्राप्त होता है।”

मेयर्स के शब्दों मेंअर्थशास्त्र में, जब कभी एक उत्पत्ति का साधन उस आय से अधिक आय प्राप्त करता है जो कि इस साधन को वर्तमान व्यवसाय में बनाये रखने के लिये आवश्यक है तो उस न्यूनतम पूर्ति मूल्य के ऊपर प्राप्त आधिक्य को आर्थिक लगान कहा जा सकता है।

इस प्रकार आधुनिक अर्थशास्त्रियों के मतानुसार लगान साधन की वास्तविक आय का न्यूनतम पूर्ति मूल्य अर्थात् अवसर लागत पर एक आधिक्य या बचत होता है तथा यह उत्पत्ति के किसी भी साधन को प्राप्त हो सकता है।

Business Economics Rent

लगान के प्रकार

(Types of Rent)

लगान तीन प्रकार का होता है :

(1) कुल लगान, (2) आर्थिक लगान, (3) ठेके का लगान।

(1) कुल लगान (Gross Rent) : साधारण बोलचाल में लगान शब्द का प्रयोग जिस प्रकार से किया जाता है, अर्थशास्त्र में उसे कुल लगान (Gross Rent) कहते हैं। यह वह भुगतान होता है जिसे किरायेदार भूस्वामी को उसकी सम्पत्ति के प्रयोग के प्रतिफलस्वरूप नियमित रूप से देता रहता है। इसमें निम्न तत्व सम्मिलित होते हैं :

(i) केवल भूमि के प्रयोग के लिये भुगतान अर्थात् आर्थिक लगान,

(ii) भूमि के सुधार में लगाई गई पूँजी का ब्याज,

(iii) भूमि के प्रबन्ध का पुरस्कार तथा

(iv) भूस्वामी द्वारा उठाई गई जोखिम का पुरस्कार।

(2) आर्थिक लगान (Economic Rent) : आर्थिक लगान कुल लगान का एक भाग होता है जो भूस्वामी को केवल भूमि के प्रयोग के प्रतिफल में दिया जाता है। रिकार्डो ने अधि-सीमान्त और सीमान्त भूमियों की उपजों (अथवा लागतों) के अन्तर को आर्थिक लगान कहा है किन्तु आधुनिक अर्थशास्त्री उत्पत्ति के किसी साधन की वास्तविक आय के उसकी अवसर लागत पर आधिक्य को आर्थिक लगान मानते हैं।

(3) ठेके का लगान (Contract Rent) : प्रसंविदा लगान या ठेका-लगान भूस्वामी और कृषक के बीच परस्पर समझौते या इकरार द्वारा तय किया जाता है। यह भूमि की माँग और पूर्ति की शक्तियों की परस्पर अन्र्तक्रिया द्वारा निश्चित किया जाता है। इसलिये यह आर्थिक लगान के बराबर, कम या अधिक हो सकता है, किन्तु बहुधा यह अधिक ही होता है। कृषकों में तीव्र प्रतियोगिता के कारण कभी-कभी यह कुल आर्थिक लगान से भी अधिक हो जाता है। इसे ‘अत्यधिक लगान’ (Rack Rent) कहते हैं।

Business Economics Rent

आर्थिक लगान और ठेके के लगान में अन्तर

(Difference between Economic Rent and Contract Rent)

आर्थिक लागन और प्रसंविदा लगान में निम्न अन्तर होते हैं :

(1) आर्थिक लगान का निर्धारण अधि-सीमान्त और सीमान्त भूमियों की लागतों के । आधार पर किया जाता है जबकि प्रसंविदा लगान का निर्धारण भूमि की माँग और पूर्ति की। सापेक्षिक शक्तियों द्वारा किया जाता है।

 (2) सीमान्त भूमि की लागत बढ़ जाने अथवा उपज घट जाने से आर्थिक लगान बढ़ जाता है तथा सीमान्त भूमि की लागत घट जाने या उपज बढ़ जाने से यह घट जाता है। इसके विपरीत प्रसंविदा लगान में ऐसे परिवर्तन नहीं होते ।।

(3) आर्थिक लगान पूर्वनिश्चित नहीं किया जा सकता क्योंकि यह तो विभिन्न भूमियों की उपज पर निर्भर करता है। इसके विपरीत प्रसंविदा लगान भूस्वामी और कृषक के बीच इकरार द्वारा पूर्व निश्चित होता है।

(4) आर्थिक लगान सामान्यतया न्यायोचित होता है क्योंकि यह भूमियों की उपजाऊ शक्ति पर निर्भर करता है। किन्तु प्रसंविदा लगान प्रायः आर्थिक लगान से अधिक होता है और इसलिये यह अन्यायपूर्ण होता है।

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रिकार्डो का लगान सिद्धान्त

(Ricardian Theory of Rent)

इस सिद्धान्त का प्रतिपादन सुविख्यात ब्रिटिश अर्थशास्त्री डेविड रिकार्डो ने किया था। यद्यपि रिकार्डो से पहले फ्रांस के प्रकृतिवादियों (Physiocrats) ने भी लगान के सम्बन्ध में

अपने विचार व्यक्त किये थे किन्त वास्तव में रिकार्डो ही प्रथम अर्थशास्त्री थे जिन्होंने लगान निर्धारण के सम्बन्ध में अपने निश्चित और व्यवस्थित विचार प्रस्तुत किये। रिकार्डो के सिद्धान्त को लगान का प्रतिष्ठित सिद्धान्त भी कहते हैं। इस सिद्धान्त की प्रमख बातें निम्नलिखित हैं :

(1) रिकार्डो के अनुसार अपनी विलक्षणताओं के कारण केवल भूमि ही लगान प्राप्त कर सकती है, उत्पादन के अन्य साधन नहीं। उनका यह भी मत था कि लगान प्रकृति की उदारता के कारण नहीं होता (जैसा कि फिजियोक्रेट्स मानते थे) वरन् यह उसकी कृपणता या सीमितता के कारण मिलता है। सभी भूमियाँ समान उपजाऊ नहीं होती हैं। कुछ अधिक उपजाऊ तथा कुछ कम उपजाऊ होती हैं। यदि अधिक उपजाऊ भूमि की मात्रा सीमित नहीं होती तो मनुष्य को कम उपजाऊ या निम्न कोटि की भूमि पर खेती करने के लिए विवश नहीं होना पड़ता तथा अच्छी भूमि पर किसी प्रकार का आधिक्य नहीं प्राप्त होता और लगान उत्पन्न नहीं होता।

(2) रिकार्डो को शब्दों में लागत की परिभाषा : लगान भूमि की उपज का वह भाग है जो भूमिपति को भूमि की मौलिक एवं अविनाशी शक्तियों के प्रयोग के लिये दिया जाता है।” मौलिक शक्तियों से रिकार्डो का आशय भूमि की उस उर्वराशक्ति से होता है जोकि प्रकृतिदत्त होती है। यद्यपि मानव द्वारा प्रयत्नों से भूमि की उर्वराशक्ति कुछ अंशों में अर्जित भी की जा सकती है किन्तु उन्होंने भूमि की प्रकृतिदत्त शक्तियों के कारण प्राप्त उपज को ही लगान का कारण माना है। रिकार्डो ने भूमि की शक्तियों को अविनाशी बतलाया है किन्तु अर्थशास्त्री उनके इस विचार से सहमत नहीं हैं।

(3) लगान एक भेदात्मक बचत है। रिकार्डो के अनुसार लगान का कारण विभिन्न भूमि के टुकड़ों की उर्वरता अथवा स्थिति या दोनों में अन्तर है। यदि सभी भूमि के टुकड़े सजातीय होते तो उनके मतानुसार लगान उत्पन्न ही नहीं होता। अतः उनके अनुसार लगान एक भेदात्मक बचत है जो बढ़िया या उच्च कोटि की भूमियों को घटिया या निम्न कोटि की भूमियों के ऊपर प्राप्त होती है। चूंकि यह लगान भूमियों में अन्तर के कारण उत्पन्न होता है, इसीलिये ही इसे भेदात्मक बचत (अथवा आधिक्य) कहा गया है। लगान के इस भेदात्मक स्वरूप का। अध्ययन निम्न तीन स्थितियों में किया जाता है :

() विस्तृत खेती के अर्न्तगत,

() गहन खेती के अन्तर्गत, और

() भूमि की स्थितियों में अन्तर।

() विस्तृत खेती के अन्तर्गत लगान (Rent under extensive cultivation) : रिकार्डो के शब्दों में, “लगान अधि-सीमान्त और सीमान्त भूमियों की उपज का अन्तर होता है।” किसी समय विशेष पर जोती जाने वाली भूमियों में से सबसे कम उपज वाली भूमियों को ‘सीमान्त भूमि’ तथा इससे श्रेष्ठ भूमियों को ‘अधि-सीमान्त भूमि’ कहते हैं। सीमान्त भूमि से प्राप्त उपज से आय इसकी उत्पादन लागत के बराबर होती है। इसलिये इस भूमि पर कोई लगान नहीं दिया जाता है। दूसरी ओर अधि-सीमान्त भूमियों पर उपज से प्राप्त आय उत्पादन लागत से अधिक होती है। इन पर इन भूमियों के स्वामियों को एक अतिरेक या बचत प्राप्त होती है। रिकार्डो ने इस बचत को ही आर्थिक लगान कहा है।

विस्तृत खेती के अन्तर्गत लगान के उद्भव को समझाने के लिये रिकार्डो ने भूमि पर खेती किये जाने का एक नये देश का उदाहरण प्रस्तुत किया। माना कि किसी देश में अ, ब, स और द चार श्रेणियों की भूमियाँ हैं जिनकी उत्पादकता क्रमशः 25 कुन्तल, 20 कुन्तल, 15 कुन्तल तथा 10 कुन्तल प्रति एकड़ है। यहाँ यह मान लिया गया है कि (1) सभी भूमि के टुकड़ों का क्षेत्रफल समान है तथा (2) भूमि के टुकड़ों पर श्रम और पूँजी की समान मात्राएँ लगाई जाती हैं। प्रारम्भ में जब देश की जनसंख्या कम होगी तो व्यक्ति प्रथम श्रेणी की भूमि ‘अ’ पर ही खेती करेंगे। चूँकि इस स्थिति में खेती की जाने वाले भूमि के सभी टुकड़े एक समान (‘अ’ श्रेणी के) हैं, अतः कोई लगान नहीं उत्पन्न होगा। किन्तु जनसंख्या में वृद्धि होते जाने से धीरे-धीरे देश में उपलब्ध ‘अ’ श्रेणी की सभी भूमि खेती में प्रयोग होने लगेगी। इसके बाद भी जनसंख्या में वृद्धि होने पर खाद्यान्न की बढ़ी हुई माँग को पूरा करने के लिए लोगों को दूसरी (‘ब’ श्रेणी) की भूमि पर भी खेती करनी पड़ेगी। चूँकि ‘ब’ श्रेणी की भूमि की उपज 20 कुन्तल प्रति एक है तथा ‘अ’ श्रेणी की भूमि की उपज 25 कुन्तल प्रति एकड़। इस स्थिति में ‘अ’ श्रेणी की भूमि पर एक आधिक्य (25-20 = 5 कुन्तल प्रति एकड़) दृष्टिगोचर होने लगा जो कि इस भूमि का लगान होगा। ध्यान रहे कि इस स्थिति में ‘ब’ श्रेणी की भूमि पर कोई लगान नहीं होगा क्योंकि वह निम्नतम श्रेणी की (या सीमांत) भूमि है। इसी प्रकार यदि खाद्यान्न की बढ़ती हुई माँग को पूरा करने के लिए ‘स’ श्रेणी की भूमि पर खेती की जाती है। तो ‘स’ श्रेणी की भूमि सीमान्त या लगान रहित भूमि होगी तथा ‘अ’ और ‘ब’ श्रेणी की भूमियाँ अधि-सीमांत होंगी जिन पर लगान क्रमशः 10 कुन्तल (25 – 15 = 10) तथा 5 कुन्तल (20 – 15 = 5) प्रति एकड़ होगा। इसी तरह ‘द’ श्रेणी की भूमि पर खेती किये जाने पर ‘अ’, ‘ब’ और ‘स’ श्रेणियों की भूमि का लगान क्रमशः 15 कुन्तल (25-10 = 15), 10 कुन्तल (20 – 10 = 10) तथा 5 कुन्तल (15 – 10 = 5) प्रति एकड़ हो जायेगा। अतः ज्यों-ज्यों उत्तरोत्तर घटिया श्रेणी की भूमि पर खेती की जायेगी, त्यों-त्यों बढ़िया श्रेणी की भूमियों का लगान बढ़ता जायेगा। इस उदाहरण को निम्न तालिका में दर्शाया गया है :

उपरोक्त तालिका के आधार पर लगान का प्रदर्शन रेखाचित्र 2.1 पर किया गया है। चित्र में अ. YAT लगान। ब, स और द चार श्रेणियों के भूमि के टुकड़े हैं। 25 सीमान्त या लगानइनमें ‘द’ भूमि सीमान्त भूमि है। इस पर कोई लगान दिया जायेगा क्योंकि इसकी उत्पादन लगात और उपज दोनों ही 10 कुन्तल हैं लेकिन इससे पहले की भूमियाँ अधि-सीमान्त भूमियाँ होंगी तथा इन पर लगान 10 दिया जायेगा। चित्र में अ, ब और स भूमियों के उत्पादन-लागत – आयतों के आच्छादित भाग इन भूमियों का लगान प्रदर्शित कर रहा है।

Business Economics Rent

() गहन खेती के अन्तर्गत लगान (Rent under Intensive Agriculture) : यदि गहरी खेती करके खाद्यान्न का उत्पादन बढ़ाया जाता है तो भी लगान का उद्भव होता है। यदि एक भूमि विशेष पर ही श्रम और पूँजी की इकाइयों में वृद्धि की जाती है तो उत्पत्ति ह्रास नियम की क्रियाशीलता के कारण प्रत्येक अगली इकाई से उपज में वृद्धि क्रमशः घटती हुई दर से होती है। कोई भी कृषक किसी भूमि के टुकड़े पर श्रम और पूँजी की इकाइयों में वृद्धि तब तक करता जायेगा जब तक कि इकाई पर किया गया व्यय उस इकाई से प्राप्त उपज के मूल्य के बराबर न आ जाये। इस इकाई को सीमान्त इकाई कहेंगे तथा इससे पूर्व की इकाइयों को

अधि-सीमान्त इकाइयाँ कहेंगे। सीमान्त इकाई से प्राप्त उपज उसकी उत्पादन लागत के बराबर होती है किन्तु अधि-सीमान्त इकाइयों की उपज इनकी उत्पादन लागत से अधिक होती है। इसीलिये इन इकाइयों पर लगान उत्पन्न होगा। इन इकाइयों की उपज का उत्पादन लागत पर आधिक्य ही इन इकाइयों का लगान कहलायेगा। इस प्रकार गहरी खेती की दशा में लगान सीमान्त और अधि-सीमान्त इकाइयों की उपजों का अन्तर होता है।

नोट : तालिका द्वारा पहले कालम में प्रदर्शित भूमि की श्रेणियों की जगह ‘श्रम और पूँजी इकाइयाँ’ दिखलाई जायेगी। इसी तरह रेखाचित्र पर X-अक्ष पर श्रम और पूँजी इकाइयाँ दर्शायेंगे।

() भूमि की स्थिति और लगान (Situation of Land and Rent) : रिकार्डो के अर्थों में लगान भूमियों की स्थिति में अन्तर से भी उत्पन्न होता है। कुछ भूमि बाजार के समीप तथा कुछ दूर होती हैं। जो भूमि बाजार से दूर होगी, उसे अपनी उपज को बाजार तक लाने में अपेक्षाकृत अधिक यातायात व्यय करना होगा। ऐसी स्थिति में यदि सभी भूमि एक समान उपजाऊ हैं तो भी स्थिति की दृष्टि से बाजार के समीप की भूमि को अच्छा माना जायेगा तथा ऐसी भूमि पर एक ‘भेदात्मक बचत’ प्राप्त होगी। किसी एक निश्चित समय विशेष में जोती गयी समस्त भूमियों में से जो भूमि बाजार से सबसे अधिक दूरी पर होगी, उसे सीमान्त भूमि कहेंगे। तथा अन्य भूमियाँ अधि-सीमान्त भूमियाँ कहलायेंगी। सबसे दूर की भूमि लगान-रहित भूमि होगी। तथा इससे पहले की समस्त भूमियों पर लगान उत्पन्न होगा जोकि सीमान्त और अधि-सीमान्त । भूमियों के यातायात व्यय का अन्तर होता है। इसे ‘स्थिति’ लगान (situational rent) भा। कहते हैं।

4. लगान कीमत को प्रभावित नहीं करता : रिकार्डो के अनुसार, कृषि वस्तु सीमान्त भूमि की लागत के बराबर होता है। चूँकि सीमान्त भूमि एक लगान राहित भूमि है इसलिये लागत में नहीं सम्मिलित होता है और वह मूल्य को नहीं प्रभावित करता है। तक विपरीत लगान स्वयं कीमत से प्रभावित होता है। उनके शब्दों में, “अनाज का मल्य तालय ऊचा नहीं होता है क्योंकि लगान दिया जाता है बल्कि ऊंचे लगान इसलिये दिये जाने हैं क्योंकि अनाज का मल्य ऊँचा होता है।” इसका कारण यह है कि अनाज के मूल्य बढ जाने पर वर्तमान में सीमान्त भूमि से निम्न कोटि की भूमि की उपज का मूल्य उसकी लागत के बराबर हो जाता है तथा यह नई निम्न कोटि की भूमि सीमान्त भूमि हो जाती है। ऐसा हो जाने पर नई सीमान्त भूमि और अधि-सीमान्त भूमियों की उपज का अन्तर (अर्थात् लगान) बढ़ जायेगा। दूसरे शब्दों में, अनाज के मूल्य बढ़ जाने से लगान बढ़ता है।

5. लगान एक अनार्जित आय (Unearmed Income) है। रिकार्डो के अनुसार एक भूस्वामी को लगान उसके भूमि पर स्वामित्व के कारण प्राप्त होता है, न कि उसके किसी प्रयत्न या मेहनत के कारण। इसीलिये उन्होंने लगान को एक अनार्जित आय माना है।

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रिकार्डो के सिद्धान्त की मान्यताएँ (Assumptions of Recardian Theory of Rent)

(1) यह सिद्धान्त पूर्ण प्रतियोगिता की दशा में ही क्रियाशील होता है।

(2) यह सिद्धान्त दीर्घकाल में ही लागू होता है।

(3) भूमि की पूर्ति सीमित होती है।

(4) कृषि में उत्पत्ति हास नियम लागू होता है।

(5) लगान केवल भूमि या प्रकृति प्रदत्त निशुल्क उपहारों पर ही लागू होता है, उत्पत्ति के अन्य साधनों पर नहीं।

(6) कृषि ऐतिहासिक क्रम से की जानी चाहिये।

रिकार्डो के लगान सिद्धान्त की आलोचनायें (Criticisms)

रिकार्डो के सिद्धान्त की मुख्य आलोचनायें निम्नलिखित हैं :

(1) भूमि की कोई मूल और अविनाशी शक्तियाँ नहीं होतीं : यह विचार अवास्तविक और अस्पष्ट है। प्रथम, वस्तुतः श्रम और पूँजी के प्रयोग के द्वारा भूमि की उर्वरा शक्ति अर्जित की जा सकती है। इसके अतिरिक्त यह निर्धारण भी सम्भव नहीं है कि उपज में से कितना भाग भूमि की मौलिक शक्ति के कारण है तथा कितना अर्जित शक्ति के कारण। दूसरे, आज के अणु शक्ति के युग में भूमि की उर्वराशक्ति को अविनाशी कहना भी एक भूल है।

(2) रिकार्डो का भूमि के जोतने का क्रम सही नहीं है : वाकर, कैरे तथा रोशर के अनुसार भूमि के जोतने का ऐतिहासिक क्रम विभिन्न भूमियों की उर्वरता से नहीं निश्चित होता वरन लोग सबसे पहले उन भूमियों को जोतते हैं जो इनके लिये सबसे अधिक सुविधाजनक है अर्थात् जो शहर या मण्डियों या नदियों के समीप हैं।

(3) लगानरहित भूमि की कल्पना एक मिथ्या है : व्यावहारिक जीवन में किसी भी देश में लगान-रहित भूमि नहीं पायी जाती है।

(4) पूर्ण प्रतियोगिता और दीर्घकाल की मान्यतायें अवास्तविक हैं : कृषि के क्षेत्र में पूर्ण प्रतियोगिता नहीं पायी जाती तथा भूमिपतियों द्वारा वसूल किया गया लगान आर्थिक लगान से बहत अधिक होता है। इसके अतिरिक्त लगान अल्पकाल में भी उत्पन्न हो सकता है।

(5) भमि की दुर्लभता, कि उर्वरता लगान की उत्पत्ति का कारण है : आलोचकों का मत है कि अच्छी भूमि पर लगान इसलिये दिया जाता है क्योंकि वह अपनी माँग के सम्बन्ध में सीमित या दर्लभ होती है और जिसक कारण कम अच्छी भूमि का उपयोग करना पड़ता है।।

(6) लगान केवल भूमि की ही विशेषता नहीं है : आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार लगान केवल भूमि पर ही नहीं उत्पन्न होता जैसा कि रिकार्डो ने बतलाया वरन् यह उत्पत्ति के। अन्य साधनों पर भी उत्पन्न होता है जिनकी पूर्ति पूर्णतया लोचदार नहीं होती।

(7) रिकार्डो की यह धारणा कि लगान कीमत को प्रभावित नहीं करता, पूर्णतया सही नहीं है : आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार कुछ दशाओं में लगान लागत का अंग होता है और इसलिये वह कीमत को प्रभावित करता है।

(8) उत्पत्ति हास नियम की क्रियाशीलता को रोका जा सकता है : रिकार्डो इस बात का पूर्वानुमान नहीं लगा पाये।

(9) लगान के निर्धारण के लिये एक पृथक् सिद्धान्त की आवश्यकता नहीं है : आधुनिक अर्थशास्त्रियों का मत है कि उत्पत्ति के समस्त साधनों के पुरस्कार निर्धारित करने के लिये केवल एक ही सिद्धान्त होना चाहिये तथा भूमि में ऐसी कोई विशेषता नहीं होती है जिसके कारण इसके लिए एक पृथक् सिद्धान्त की आवश्यकता हो।

(10) रिकार्डो का सिद्धान्त लगान उत्पन्न होने के कारण पर उचित प्रकाश नहीं डालता : ब्रिग्स तथा जोरडन के अनुसार रिकार्डो केवल सामान्य सत्य को ही बताते हैं कि अच्छी वस्तु सदैव ऊँची कीमत पर ही प्राप्त होती है। यह सिद्धान्त केवल यही बताता है कि एक श्रेष्ठ भूमि का लगान निम्न कोटि की भूमि की तुलना में अधिक होगा। किन्तु यह सिद्धान्त यह नहीं बतलाता कि लगान क्यों उत्पन्न होता है।

निष्कर्ष : रिकार्डो के सिद्धान्त की उपर्युक्त आलोचनाओं के बावजूद आज भी इस सिद्धान्त का महत्व है। रिकार्डो का यह निष्कर्ष आज भी पूर्ण सत्य है कि जनसंख्या के दबाव से मनुष्य घटिया भूमियों पर भी खेती के लिये विवश हो जायेगा। इस तरह विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी में क्रान्तिकारी परिवर्तनों के बावजूद कृषि में हास नियम की क्रियाशीलता आज भी एक सत्य है। समाजवादी इस सिद्धान्त को आदर्श की दृष्टि से देखते हैं और वे लगान को समस्त सामाजिक बुराइयों का कारण मानते हैं। अतः आज भी इस सिद्धान्त का पर्याप्त महत्व है। प्रो० रॉबर्टसन के शब्दों में, “रिकार्डो के लगान सिद्धान्त की शक्ति और शिक्षात्मकता किसी भी प्रकार नष्ट नहीं हुई है।”

Business Economics Rent

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दुर्लभता लगान (Scarcity Rent)

रिकार्डो ने लगान को एक ‘भेदात्मक बचत’ (Differential Surplus) माना किन्तु माल्थस तथा कुछ यूरोपीय अर्थशास्त्रियों ने इसे एक ‘दुर्लभता आय’ के रूप में देखा। दुर्लभता लगान वह लगान होता है जो कि भूमि की दुर्लभता के कारण उत्पन्न होता है। प्राचीन देशों में उत्पन्न होने वाला लगान अधिकांशतः दुर्लभता लगान होता है क्योंकि इन देशों में भूमि पर आबादी का दबाव अधिक होता है।

दुर्लभता लगान भूमि की बेलोच या सीमित पूर्ति के कारण उत्पन्न होता है। यदि भूमि असीमित मात्रा में उपलब्ध होती तो उस पर कोई लगान नहीं उत्पन्न होता। उत्पत्ति के अन्य साधनों की पूर्ति को कम से कम दीर्घकाल में तो बढ़ाया ही जा सकता है, अतः उनके सम्बन्ध। में दर्लभता लगान उत्पन्न नहीं होता। किन्तु भूमि की पूर्ति अल्पकाल तथा दीर्घकाल दोना स्थिर रहती है, अतः देश में सभी भूमियों के एक समान उपजाऊ होने पर भी लगान – होगा, यदि भूमि की कुल पूर्ति उसकी कुल माँग की अपेक्षा कम है। इसे दुर्लभता लगान का जाता है।

दुलेभता लगान को चित्र 2.2 द्वारा स्पष्ट किया गया है। चित्र में DD रेखा मॉग वक्र को तथा SS पूर्ति वक्र को दर्शाती है। पूर्ति वक्र y-अक्ष के समानान्तर है जो कि यह दर्शाता है कि भूमि की पूर्ति स्थिर होती है। DD माँग वक्र का SS पूर्ति R.P NE वक्र के साथ E बिन्दु पर सन्तुलन होता है। अतः । भूमि की दुर्लभता के कारण SE अथवा OR के बराबर लगान दिया जाता है।

यदि भूमि की माँग ER बढ़कर D,D, हो जाती है तो लगान बढ़कर SE] या OR, हो जायेगा। इस प्रकार लगान का कारण भूमि की दुर्लभता है। अतः स्पष्ट है कि दुर्लभता । लगान विचार के अनुसार सीमान्त भूमि से भी लगान ।

दुर्लभता लगानऔर भेदात्मक लगानमें अन्तर

(Difference between Scarcity Rent and Differential Rent)

भेदात्मक लगान श्रेष्ठ भूमि और घटिया या सीमांत भूमि की उपज में अन्तर के कारण उत्पन्न होता है जबकि दुर्लभता लगान भूमि की सीमितता के कारण उत्पन्न होता है किन्तु इन दोनों में अन्तर केवल दृष्टिकोण का ही है। जब हम भूमियों की तुलना उनकी उर्वरता के आधार पर करते हैं तो अन्तर भेदात्मक लगान कहलाता है और यदि हम यह तुलना भूमि की कुल माँग और कुल पूर्ति के आधार पर करते हैं तो यह दुर्लभता लगान कहलाता है। एक प्रकार से भेदात्मक लगान भी दुर्लभता लगान ही होता है क्योंकि यह श्रेष्ठ भूमियों की पूर्ति इनकी माँग की तुलना में सीमित होने के कारण उत्पन्न होता है। इसीलिये प्रो० मार्शल ने कहा है कि “एक अर्थ में सभी लगान दुर्लभता लगान हैं और सभी लगान भेदात्मक लगान हैं।”

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लगान का आधुनिक सिद्धान्त

(Modern Theory of Rent)

आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार लगान केवल भूमि पर ही उत्पन्न नहीं होता, जैसा कि रिकार्डो मानते थे, वरन् इसे उत्पत्ति का प्रत्येक साधन प्राप्त कर सकता है क्योंकि भूमि की भाँति उत्पत्ति के अन्य साधनों में भी सीमितता या स्थिरता का गुण अर्थात् भूमि तत्व पाया जाता है। अतः लगान को पृथक और केवल भूमि से सम्बन्धित ही नहीं समझना चाहिये। इसीलिये आधुनिक अर्थशास्त्रियों का मत है कि भूमि पर लगान निर्धारण के लिये किसी पृथक सिद्धान्त की आवश्यकता नहीं है तथा यह मूल्य के सामान्य सिद्धान्त द्वारा ही निर्धारित किया जा सकता है।

आधुनिक सिद्धान्त के अनुसार लगान साधन की आय का वह भाग होता है जो उसे उस उपयोग में बनाये रखने के लिये आवश्यक न्यूनतम आय के अतिरिक्त प्राप्त होता है। इस प्रकार एक साधन की वास्तविक आय को दो भागों में बाँटा जा सकता है। एक भाग तो वह जो उसे उस उद्योग में बनाये रखने के लिये आवश्यक है अर्थात् यदि साधन की आय इस स्तर से भी कम हो तो वह उस उपयोग को त्याग देगा। इसे साधन की हस्तान्तरण आय अथवा अवसर लागत कहते हैं। यह साधन के दूसरे श्रेष्ठ वैकल्पिक उपयोग से प्राप्त होने वाली आय होती है। आय का शेष भाग आर्थिक लगान होता है। दूसरे शब्दों में, साधन की वास्तविक आय का उसके न्यूनतम पूर्ति मूल्य अर्थात् अवसर लागत या हस्तान्तरण आय के ऊपर आधिक्य ही आर्थिक लगान होता है।

श्रीमती जॉन रोबिन्सन के शब्दों में, “लगान के विचार का सार वह बचत या आधिक्य है जो कि साधन को अपने कार्य को करते रहने के लिये आवश्यक है।” प्रो० बोल्डिंग के शब्दों में, “आर्थिक लगान उत्पत्ति के किसी साधन को किया गया वह भुगतान है जो कि इसके कल पर्ति मल्य से अधिक होता है, अर्थात यह उस न्यूनतम राशि से अधिक होता है जो वि साधन विशेष को इसके वर्तमान व्यवसाय में बनाये रखने के लिये आवश्यक है।” प्रो० रिचार्ड लिप्से के शब्दों में, “…… अतः आर्थिक लगान साधन की वास्तविक आय और हस्तान्तरण आय का अन्तर है।”

लगान के आधुनिक सिद्धान्त का आधार आस्ट्रियन अर्थशास्त्री प्रो० वीजर का वर्गीकरण है। उन्होंने उत्पादन के समस्त साधनों को दो भागों में बाँटा है : (1) विशिष्ट साधन और (2) अविशिष्ट साधन। विशिष्ट साधन वे होते हैं जिनका उपयोग केवल एक विशिष्ट कार्य के लिये ही किया जा सकता है और उनमें कोई गतिशीलता नहीं होती। अविशिष्ट साधन वे होते हैं जिनका उपयोग विभिन्न कार्यों के लिये किया जा सकता है और जिनमें पूर्णरूप से गतिशीलता पायी जाती है। इस प्रकार साधन की अविशिष्टता और उसकी अवसर लागत एक ही बात है। ध्यान रहे कि अविशिष्ट साधनों की पूर्ति पूर्णतया लोचदार होती है तथा विशिष्ट साधनों की पूर्णतया बेलोचदार।

आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार किसी साधन का लगान उस साधन की विशिष्टता का परिणाम होता है। यदि साधन पूर्णतया विशिष्ट है, अर्थात् उसका दूसरे उपयोगों में प्रयोग-मूल्य (दूसरे शब्दों में, हस्तान्तरण आय) शून्य है तो ऐसी स्थिति में साधन की पूरी वर्तमान आय लगान होगी। इसके विपरीत, यदि साधन पूर्णतया अविशिष्ट है अर्थात् साधन के वैकल्पिक प्रयोग से आय (अर्थात् हस्तान्तरण आय) इसकी वर्तमान आय के समान ही प्राप्त होती है तो इस स्थिति में साधन को उसकी हस्तान्तरण आय पर कोई बचत नहीं प्राप्त होगी तथा उसका लगान शून्य होगा। किन्तु वास्तविक संसार में कोई भी साधन न तो पूर्णतया विशिष्ट होता है और न पूर्णतया अविशिष्ट। प्रायः उत्पादन के साधन अंशतः विशिष्ट और

अंशतः अविशिष्ट होते हैं। इसलिये एक साधन के पुरस्कार में उस सीमा तक लगान का अंश होता है जिस सीमा तक साधन विशिष्ट है। इस प्रकार लगान साधन की विशिष्टता के लिये भुगतान है। ध्यान रहे कि विशिष्टता एक गुण है। इस गुण को कोई भी साधन कभी भी प्राप्त कर सकता है। इसके अतिरिक्त जो साधन आज विशिष्ट है वह कल अविशिष्ट हो सकता है। जैसे खड़ी फसल पर भूमि का टुकड़ा विशिष्ट है तथा फसल कटने के बाद वह अविशिष्ट हो जाता है।

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रिकार्डो के लगान सिद्धान्त और आधुनिक सिद्धान्त में अन्तर

(Difference between Ricardian Theory and Modern Theory of Rent)

यद्यपि ये दोनों ही सिद्धान्त पूर्ण प्रतियोगिता की मान्यता पर आधारित हैं किन्तु इनमें मुख्य अन्तर निम्नलिखित हैं :

(1) लगान की प्राप्ति : रिकार्डों के अनुसार लगान केवल भमि को ही प्राप्त होता है। परन्तु आधुनिक सिद्धान्त के अनुसार उत्पत्ति का प्रत्येक साधन लगान प्राप्त कर सकता है।

(2) लगान का माप : रिकाडो के अनुसार लगान सीमान्त और अधिसीमान्त भूमिया का। उपज का अन्तर होता है किन्तु आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनसार यह किसी साधन वास्तविक आय का उसकी हस्तान्तरण आय या अवसर लागत पर एक आधिक्य होता है ।

(3) लगान का कारण : रिकार्डो के अनसार लगान भूमियों की उर्वरा-शक्तियों – स्थितियों में अन्तर के कारण उत्पन्न होता है जबकि आधुनिक सिद्धान्त के अनुसार यह साधना का सीमितता या दर्लभता के कारण उत्पन्न होता है। आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार लगान सा साधन की विशिष्टता के लिये भगतान होता है। यह उस साधन को प्राप्त होता है पूर्ति की लोच पूर्णतया लोचदार सकरात लगान को एक भेदात्मक बचत मानता है

(4) लगान की प्रकृति : रिकाडो का सिद्धान जबकि आधुनिक सिद्धान्त इसे दुर्लभता लगान कहता है।

(5) लगानरहित भूमि : रिकार्डो के अनुसार सीमान्त भूमि लगान-रहित भूमि होती है जबकि आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार एक व्यक्ति के लिये व्यवहार में कोई भी भूमि लगान-रहित नहीं होती।

(6) लगान तथा मूल्य : रिकार्डो के अनुसार लगान मूल्य को प्रभावित नहीं करता। उनका मत था कि वस्तु का मूल्य सीमान्त भूमि की लागत से निर्धारित होता है और चूँकि सीमान्त भूमि लगान-रहित भूमि होती है, अतः स्पष्ट है कि लगान लागत का अंग नहीं होता। फलतः यह मूल्य को नहीं प्रभावित करता वरन् स्वयं मूल्य से प्रभावित होता है। किन्तु आधुनिक अर्थशास्त्रियों का मत है कि कुछ दशाओं में लगान लागत का अंग होता है और वह मूल्य को प्रभावित करता है।

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लगान का कारण (Cause of Rent)

आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार लगान का मुख्य कारण साधन की विशिष्टता है। इस कारण ऐसे साधन का दूसरे कार्य के लिए प्रयोग मूल्य या अवसर लागत शून्य होती है। दूसरे शब्दों में, ऐसे साधन की पूर्ति बेलोचदार होती है। विभिन्न प्रकार की पूर्ति की दशाओं में लगान की स्थिति निम्न प्रकार होगी

(1) पूर्णतया लोचदार पूर्ति (Perfectly Elastic Supply) : साधन की पूर्णतया लोचदार पूर्ति का आशय यह है कि एक विशेष कीमत पर उस साधन की कितनी भी इकाइयाँ प्राप्त की जा सकती हैं तथा इससे नीची कीमत पर साधन की पूर्ति कुछ भी नहीं होगी और वह दूसरे प्रयोग में चला जायेगा। दूसरे शब्दों में, साधन पूर्णतया अविशिष्ट है, अतः इस साधन को कोई भी लगान नहीं प्राप्त होगा। चित्र 2.3 में अविशिष्ट साधन की पूर्ति रेखा SS एक पड़ी रेखा है ! जिस पर साधन की माँग रेखा DD का साम्य E बिन्दु । पर हो रहा है। अतः साधन की OQ साम्य मात्रा के लिये लगान कुल कीमत OQx os = OSEQ है तथा यही साधन OL | की हस्तान्तरण आय या अवसर लागत है। इस प्रकार इस स्थिति में साधन को कोई बचत नहीं हो रही है, अतः उसे साधन की इकाइयाँ कोई लगान नहीं प्राप्त होता है।

 (2) पूर्णतया बेलोचदार पूर्ति (Perfectly Inelastic Supply) : यदि साधन की पूर्ति पूर्णतया बेलोचदार अर्थात् स्थिर है तो इसका अर्थ यह हुआ कि साधन की कीमत में घट-बढ़ का उसकी पूर्ति पर कोई प्रभाव नहीं है। दूसरे शब्दों में, साधन पूर्णतया विशिष्ट है जिसे किसी एक ही कार्य के लिये प्रयोग किया जा सकता है। ऐसे साधन की अवसर लागत या हस्तान्तरण आय शून्य होती है। अतः ऐसे साधन की सम्पूर्ण कीमत लगान है।

चित्र 2.4 में SQ बेलोचदार पूर्ति रेखा X-अक्ष पर एक खड़ी रेखा है जिस पर DD माँग रेखा का साम्य E बिन्दु पर हो रहा है। साधन की प्रति इकाई कीमत EQ या OP है। साधन की अवसर लागत शून्य है क्योंकि OPEPR E -S कीमत से नीची कीमत पर भी उसकी पूर्ति अपरिवर्तित हा रहती है अर्थात् नीची कीमत पर भी साधन दूसरे प्रयोग में लगान नहीं जाता है। इस प्रकार साधन की अवसर लागत शून्याल होने के कारण उसकी कुल आय OQx OP = OPEQ लगान है।

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(3) बेलोचदार पूर्ति या पूर्णतया लोचदार से कम चित्र 2.4 पूर्ति (Inelastic Supply or Less than perfectly elastic supply) : यदि साधन आंशिक रूप से विशिष्ट तथा आंशिक रूप से अविशिष्ट हो तो ऐसे साधन की पूर्ति बेलोचदार पूर्ति कही जायेगी। अधिकांश साधन इसी वर्ग में आते हैं। ऐसे साधनों की पूर्ति रेखा बायें से दायें चढ़ते हुए होती है जैसा कि चित्र 2.5 में SS रेखा से दिखाया गया है। चित्र से स्पष्ट है कि DD माँग रेखा का SS पूर्ति रेखा के साथ साम्य E बिन्दु पर हो रहा है। अतः साधन की साम्य कीमत EQ या OP है तथा साम्य मात्रा OQ है। साधन की कुल लागत OQx OP. = OPEQ है। साधन की OS कीमत से कम पर उसकी कोई भी इकाई उपलब्ध नहीं होगी। इस पूर्ति रेखा के किसी भी बिन्दु पर साधन को काम में लगाये रखने के लिये साधन की न्यनतम कीमत ज्ञात की जा सकती है। उदाहरण के लिये साधन की OQ, मात्रा के लिये OP, कीमत देनी होगी।

अतः स्पष्ट है कि पूर्ति रेखा के नीचे का क्षेत्रफल 45P. अवसर लागत को बताता है। अतः साधन की OQ मात्रा की कुल कीमत OQ x OP = OPEQ है अवसर खागत तथा कुल अवसर लागत OSEQ है। अतः साधन । RAMAN की 0Q मात्रा का लगान  का क्षेत्रफल होगा। इसी तरह मात्रा का लगान SPE) का क्षेत्रफल होगा।

मजदूरी, ब्याज तथा लाभ में लगान तत्व

(Rent Element in Wages, Interest and Profit)

रिकार्डो के अनुसार लगान केवल भूमि को ही प्राप्त होता है किन्तु आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार यह उत्पत्ति के प्रत्येक साधन को प्राप्त हो सकता है तथा यह साधन की वास्तविक आय का उसके ‘न्यूनतम पूर्ति मूल्य’ (अथवा अवसर लागत अथवा हस्तान्तरण आय) पर एक आधिक्य होता है। यह साधन की बेलोच या कम लोचदार पूर्ति के कारण उत्पन्न होता है। इस प्रकार उत्पत्ति के प्रत्येक साधन की आय में लगान तत्व विद्यमान रहता है।

(1) मजदूरी में लगान तत्व (Rent Element in Wages) : यदि श्रम की मजदूरी बेलोचदार अथवा कम लोचदार है तो श्रमिकों की मजदूरी उस दर से ऊँची होगी जिस पर कार्य के लिये तत्पर होंगे। यह आधिक्य ही लगान होता है। प्रबन्ध सम्बन्धी श्रम, उच्य कुशल क्षमिकों सिनेमा कलाकारों आदि के वेतन में अधिकांशतः लगान तत्व होता नका पूर्ति बहुत सीमित होती है। उदाहरण के लिये यदि एक इन्जीनियर को किसी कम्पनी से 20,000 रु० प्रति माह वेतन प्राप्त होता है। यदि वह किसी दूसरे व्यवसाय में जाना चाहे तो उसे 15,000 रु० प्रति माह वेतन मिलेगा। अतः इस वर्तमान व्यवसाय में उसे अपनी अवसर लागत से 10.000 रु० अधिक प्राप्त हो रहे हैं। यह आधिक्य ही उसके वर्तमान वेतन का लगान तत्व है। सेम्युलसन के शब्दों में, “अत्यधिक कुशल व्यक्तियों की ऊँची आयों में से अधिकांश को शुद्ध आर्थिक लगान कहा जा सकता है।”

(2) ब्याज में लगान तत्व (Rent Element in Interest) : एक बचतकर्ता जिस दर पर अपनी बचतों को उधार देने के लिये तत्पर है तथा वास्तव में वह जिस दर पर उधार देता है, इसका अन्तर ही उसका आर्थिक लगान होगा। यहाँ पर लगान का कारण उधार की माँग की तुलना में बचतों का अपेक्षाकृत कम और बेलोचदार होना होता है।

(3) लाभ में लगान तत्व (Rent Element in Profit) : कुछ साहसी अन्य साहसियों की तुलना में अधिक दक्ष और योग्य होते हैं और वे सामान्य साहसियों की तुलना बहुत अधिक लाभ प्राप्त करते हैं, जिसकी प्रकति लगान के समान ही होती है। इसे ‘योग्यता का लगान’ (Rent of Ability) भी कहते हैं। यहाँ यह ध्यान रहे कि किसी साहसी के वास्तविक लाभ का सामान्य साहसियों के लाभ के ऊपर सम्पूर्ण आधिक्य लगान नहीं होता वरन इस आधिक्य का केवल वह भाग ही आर्थिक लगान कहलाता है जो उसे उस क्षेत्र में योग्य साहसियों की सीमितता या कमी के कारण प्राप्त होता है।

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लगान और मूल्य में सम्बन्ध (Relation of Rent and Price)

लगान और मूल्य का सम्बन्ध एक पुराना विवाद है। इस सम्बन्ध में दो मत है :

(1) रिकार्डो का मत : रिकार्डो ने लिखा है कि “अनाज का मूल्य इसलिये ऊँचा नहीं होता कि लगान दिया जाता है, वरन् लगान इसलिये दिया जाता है क्योंकि अनाज का मूल्य ऊँचा होता है।” रिकार्डो के इस कथन से दो बातें स्पष्ट होती हैं : (अ) लगान मूल्य को नहीं प्रभावित करता और (ब) मूल्य लगान को प्रभावित करता है।

लगान मूल्य को नहीं प्रभावित करता है : रिकार्डो के अनुसार वस्तु का मूल्य सीमान्त भूमि की लागत के बराबर होता है। चूँकि सीमान्त भूमि एक लगान-रहित भूमि होती है, इसलिये लगान लागत में नहीं सम्मिलित होता है और वह मूल्य को नहीं प्रभावित करता है।

मूल्य लगान को प्रभावित करता है : रिकार्डो के अनुसार लगान सीमान्त भूमि और अधि-सीमान्त भूमि की उपज का अन्तर होता है तथा सीमान्त भूमि की लागत इसकी उपज के बाजार मूल्य के ठीक बराबर होती है। जब अनाज का मूल्य बढ़ जाता है तो वर्तमान सीमान्त भूमि से भी निम्न कोटि की भूमि की उपज का मूल्य उसकी लागत के बराबर हो जाता है तथा यह नयी निम्न कोटि की भूमि सीमान्त भूमि बन जाती है तथा वर्तमान सीमान्त भूमि एक अधि-सीमान्त भूमि हो जाती है। ऐसा हो जाने पर नयी सीमान्त भूमि और अधि-सीमान्त भमियों की उपजों का अन्तर (अर्थात् लगान) बढ़ जायेगा। दूसरे शब्दों में, हम यह कह सकते है कि मूल्य के बढ़ने पर लगान बढ़ता है अर्थात् मूल्य लगान को प्रभावित करता है।

(2) आधुनिक अर्थशास्त्रियों का मत : लगान मूल्य को प्रभावित करता है अथवा नहीं, जानिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम लगान को किस भाग की दृष्टि से देखते हैं – सम्पूर्ण समाज की दृष्टि से, अथवा एक पादक की दृष्टि से अथवा एक उद्योग की दृष्टि से। इन तीनों स्थितियों का विवेचन इस प्रकार है :

सम्पूर्ण समाज की दृष्टि से : आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार सम्पूर्ण समाज की दृष्टि से रिकार्डो का मत सही है। समाज की दृष्टि से भूमि की पूर्ति स्थिर होती है। यह प्रकृति का निःशुल्क उपहार होती है। अतः इसका पूर्ति-मूल्य या स्थानान्तरण लागत शून्य होती है। अतः। सम्पूर्ण समाज की दृष्टि से भूमि की समस्त आय एक बचत (अर्थात् लगान) होती है और यह लागत में नहीं सम्मिलित होती तथा मूल्य को प्रभावित नहीं करती है। दूसरी ओर जब भूमि की माँग बढ़ती है तो इसकी पूर्ति स्थिर होने के कारण वस्तु का मूल्य बढ़ जाता है जिसके फलस्वरूप वास्तविक आय अर्थात बचत या लगान बढ़ जाता है। इस प्रकार लगान मूल्य से प्रभावित होता है।

व्यक्तिगत उत्पादक की दृष्टि से : एक व्यक्तिगत उत्पादक उत्पत्ति के अन्य साधनों की भाँति भूमि को भी मूल्य देकर प्राप्त करता है। अतः भूमि के लिये दिया गया लगान उसकी उत्पादन लागत का अंग होता है और वह इसे वस्तु के मूल्य से प्राप्त करता है। अतः लगान के घटने-बढ़ने का प्रभाव मूल्य पर अवश्य पड़ता है।

एक उद्योगों की दृष्टि से : एक उद्योग की दृष्टि से भूमि के उपयोग के लिये किये गये भुगतान को दो भागों में बाँटा जा सकता है : (1) भूमि को किसी विशेष उद्योग या उपयोग में बनाये रखने के लिये दिये जाने वाला न्यूनतम भुगतान। इसे साधन की हस्तान्तरण आय या अवसर लागत कहते हैं। यह लागत का अंग होगी। (2) वास्तविक भुगतान-राशि का अवसर लागत के ऊपर आधिक्य अर्थात् लगान। यह लागत का अंग नहीं होता। अतः एक उद्योग की दृष्टि से साधन के उपयोग के लिये किये गये कुल भुगतान का केवल वह भाग ही उत्पादन लागत का अंग होता है जो कि उस साधन को हस्तान्तरण आय या अवसर लागत के बराबर है तथा यह मूल्य को प्रभावित करता है, किन्तु वह भाग जो कि अवसर लागत के ऊपर आधिक्य है, (जिसे आधुनिक अर्थशास्त्री लगान कहते हैं) लागत का अंग नहीं होता और इसलिये वह वस्तु के मूल्य को प्रभावित नहीं करता, वरन् स्वयं मूल्य से प्रभावित होता है। निष्कर्ष रूप में एक उद्योग की दृष्टि से भूमि की आय (अर्थात् लगान), आंशिक रूप से ‘मूल्य-निर्धारक’ तथा आंशिक रूप से ‘मूल्य-द्वारा निर्धारित’ होती है।

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आभास लगान (Quasi-Rent)

अर्थशास्त्र में आभास-लगान की धारणा का प्रतिपादन सर्वप्रथम डॉ० मार्शल ने किया था। उन्होंने रिकार्डो के भूमि-लगान-सिद्धान्त को अल्पकाल में, अन्य स्थिर पूर्ति वाले साधनों पर भी लागू किया। रिकार्डो के अनुसार लगान भूमि पर ही प्राप्त होता है क्योंकि भूमि की पूर्ति स्थिर होती है। किन्तु साधन की पूर्ति की स्थिरता का यह गुण उत्पत्ति के अन्य साधनों में भी पाया जा सकता है और इसलिये इस लगान की उत्पत्ति वहाँ भी होगी। किन्तु भूमि व अन्य साधनों की पूर्ति में स्थिरता के सम्बन्ध में एक प्रमुख भेद है। भूमि की पूर्ति अल्पकाल और दीर्घकाल दोनों में ही स्थिर होती है जबकि अन्य साधनों की पूर्ति अल्पकाल में तो स्थिर रहती है किन्तु दीर्घकाल में उसमें परिवर्तन लाया जा सकता है। अतः अल्पकाल में भूमि की पूर्ति तथा अन्य साधनों की पूर्ति में समानता होती है और इसलिये इस काल में अन्य साधनों द्वारा अर्जित अतिरिक्त आय लगान के समान ही होती है जिसे डॉ० मार्शल ने लगान न कहकर । आभास-लगान कहा है क्योंकि यह अतिरिक्त आय दीर्घकाल में समाप्त हो जाती है। उनका कहना है कि उत्पत्ति के लगभग सभी साधनों को आभास लगान प्राप्त होता है।

इस प्रकार अल्पकाल में बेलोचदार या स्थिर तथा दीर्घकाल में लोचदार या परिवर्तनशील । पूर्ति वाले साधनों की मांग बढ़ जाने पर इन साधनों द्वारा अल्पकाल में जो अतिरिक्त आय अजित की जाती है, वह आभास-लगान कहलाती है। डॉ० मार्शल ने इस शब्द का प्रयोग विशेषकर उस आय के लिये किया था जो अल्पकाल में मशीनों एवं अन्य मनुष्यकृत यन्त्रों से प्राप्त होती है। उनके शब्दों में, “आभास-लगान उस अतिरिक्त आय को कहते हैं जो उत्पादन के निर्मित साधनों की पूर्ति के अल्पकाल में सीमित होने के कारण होती है।”

स्टोनियर और हेग के शब्दों में, “अल्पकाल में उत्पत्ति के किसी साधन की माँग की।

अपेक्षा पूर्ति की कमी होने पर जो आधिक्य मिलता है, उसे आभास लगान कहते हैं।”

प्रो० सिलवरमैन के शब्दों में, “उत्पत्ति साधनों की अतिरिक्त आय को जिनकी पूर्ति दीर्घकाल । में तो बढ़ायी जा सकती है परन्तु अल्पकाल में स्थिर रहती है, आभास-लगान कहते हैं।”

आभास लगान का निर्धारण

प्रो० मार्शल के अनुसार मशीन (अर्थात् पूँजीगत वस्तुओं) की अल्पकालीन आय में से उसको चलाने की अल्पकालीन लागत को घटाने से जो बचत प्राप्त होती है, उसे आभास लगान कहते हैं। यह एक अस्थायी आय होती है जो कि साधन की पूर्ति में अस्थायी कमी के कारण उत्पन्न होती है तथा दीर्घकाल में पूर्ति के बढ़ी हुई माँग से समायोजित हो जाने पर समाप्त हो जाती है।

 रेखाचित्रीय निरूपण : माना कि किसी समय देश में उपलब्ध मशीनों की संख्या OM है और आभास लगान उनकी माँग DD वक्र द्वारा प्रदर्शित की गयी है। इस स्थिति में प्रति मशीन आय PM है। यदि किसी। कारण से इन मशीनों की माँग बढ़ कर DD, हो जाती है तो मशीनों की पूर्ति अल्पकाल में स्थिर रहने के कारण प्रति मशीन आय बढकर SM हो जायेगी जिससे आभास लगान उत्पन्न होगा जो कि SM – PM = PS होगा। किन्तु दीर्घकाल में मशीनों की पूर्ति । बढ़कर OM, हो जायेगी जिसके फलस्वरूप प्रति 0 मशीन आय घटनर PM, हो जायेगी जो कि पूर्व मशीनों की संख्या आय PM के बराबर ही है। इस प्रकार दीर्घकाल में आभास लगान लुप्त हो जायेगा।

आधुनिक मत : यद्यपि आधुनिक अर्थशास्त्री इस सम्बन्ध में एकमत नहीं हैं किन्तु अधिकांश के मतानुसार, आभास-लगान कुल लागम तथा कुल परिवर्तनशील लागत के बीच अन्तर होता है जो कि अल्पकाल में रहता है तथा दीर्घकाल में समाप्त हो जाता है। इस प्रकार आधुनिक अर्थशास्त्री आभास-लगान को परिवर्तनशील लागत पर एक अल्पकालीन बचत मानते हैं।

आधुनिक अर्थशास्त्री मानते हैं कि आभास लगान निर्जीव पूँजीगत वस्तुओं की भाँति व्यक्तियों को भी प्राप्त होता है। अतः आधुनिक आर्थिक विश्लेषण में आभास लगान की व्याख्या हस्तान्तरण आय के रूप में भी की जाती है। हस्तान्तरण आय वह न्यूनतम राशि होती है, जो एक साधन अगले अधिकतम लाभदायक प्रयोग या रोजगार में स्वीकार करने को तैयार होता है। उदाहरण के लिये, एक अभिनेता 25 लाख रु० प्रति चलचित्र की दर से अभिनय को तैयार है लेकिन किसी चलचित्र में उसके अति सुन्दर व प्रभावी अभिनय के कारण निर्माता उसे 35

देता है तो उसकी 10 लाख रु० की अतिरिक्त प्राप्ति आभास लगान कहलायेगा तथा । यह तब तक रहेगी जब तक कि उसका सेवाओं की माँग ऊँची रहती है।

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लगान, आभास लगान और ब्याज में भेद

Difference between Rent, Quasi-Rent and Interest)

लगान भूमि जैसे प्राकृतिक उपहारों को प्राप्त होता है जिनकी पूर्ति अल्पकाल तथा दीर्घकाल दोनों में स्थिर रहती है। आभास लगान पूँजीगत वस्तुओं अथवा मनुष्यकृत यन्त्रों, श्रम एवं साहस को प्राप्त होता है जिनकी पूर्ति अल्पकाल में तो स्थिर रहती है किन्तु जिन्हें दीर्घकाल में घटाया-बढ़ाया जा सकता है। इस प्रकार लगान का अस्तित्व अल्पकाल और दीर्घकाल दोनों में रहता है जबकि आभास लगान केवल अल्पकाल में ही प्राप्त होता है तथा दीर्घकाल में यह समाप्त हो जाता है। लगान एक स्थायी प्रकृति का होता है जबकि आभास-लगान एक अस्थायी घटना है।

आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार किसी साधन का लगान उसकी अवसर लागत के ऊपर एक अतिरेक होता है जो कि अनिश्चित या लम्बे समय तक बना रहता है जबकि आभास-लगान कुल आय और कुल परिवर्तनशील लागत का अन्तर होता है जो कि केवल अल्पकाल में ही मिलता है।

जहाँ तक आभास-लगान और ब्याज का सम्बन्ध है, आभास लगान स्थिर (sunk) या विशिष्ट पूँजी का पुरस्कार होता है जबकि ब्याज स्वतन्त्र या चल पूँजी का पुरस्कार होता है। आभास-लगान अल्पकाल में प्राप्त होता है जबकि ब्याज अल्पकाल और दीर्घकाल दोनों में प्राप्त होता है। स्थिर पूँजी को केवल दीर्घकाल में ही बढ़ाया जा सकता है जबकि चल पूँजी अल्पकाल तथा दीर्घकाल दोनों में बढ़ायी जा सकती है। इसके अतिरिक्त आभास-लगान उत्पादन लागत का भाग नहीं होता, और यह कीमत-निर्धारित होता है। इसके विपरीत ब्याज उत्पादन लागत का अंग होता है और इसलिये यह कीमत-निर्धारक होता है।

मार्शल ने लगान, आभास लगान और ब्याज में अन्तर बताते हुये यह स्पष्ट किया कि । इनमें अन्तर केवल मात्रा (Degree) का है। तीनों ही सम्पत्ति से प्राप्त आय के विभिन्न रूप हैं। स्थायी रूप से स्थिर साधनों से प्राप्त आय लगान कहलाता है, अस्थायी रूप से स्थिर साधनों से प्राप्त आय आभास-लगान कहलाता है तथा पूर्णतया अस्थायी साधन से प्राप्त आय ब्याज कहलाता है। इसके अतिरिक्त. स्थिर या पँजीगत सम्पत्ति तथा चल अथवा स्वतन्त्र सम्पत्ति एक दूसरे में परिवर्तित किये जा सकते हैं। इसीलिये मार्शल ने लिखा है, “प्रत्येक वर्ग धीरे-धीरे एक दूसरे में मिल जाते हैं और यहाँ तक कि भूमि का लगान भी अपने आप में एक पृथक वस्तु नहीं है बल्कि यह बड़ी जाति की एक मुख्य उप-जाति है।”

आर्थिक उन्नति तथा लगान (Economic Progress and Rent)

लगान अधि-सीमान्त और सीमान्त भूमियों की उपज का अन्तर होता है। विभिन्न क्षेत्रों में आर्थिक उन्नति का लगान पर निम्न प्रभाव पड़ता है :

(1) कृषि में उन्नति : (i) यदि कृषि में उन्नति से सभी भूमियाँ समान रूप से प्रभावित होती हैं तो कुल उपज में पर्याप्त वृद्धि होगी। अतः यदि कृषि उपज की माँग पूर्ववत् रहती है तो मूल्य गिरेगा जिसके परिणामस्वरूप सीमान्त भूमि जोत से बाहर हो जायेगी (क्योंकि इस पर खेती करने से उत्पादन लागत भी नहीं वसूल हो सकेगी।) तथा इससे पूर्व की भूमि सीमान्त भूमि बन जायेगी। इससे श्रेष्ठ भूमियों तथा सीमान्त भूमि का अन्तर कम हो जायेगा और इसलिये लगान भी कम हो जायेगा।

(ii) यदि कृषि उन्नति से केवल निम्न कोटि की भूमियों की ही उपज बढ़ती है तो १० भूमियों और सीमान्त भूमियों की उपज के बीच अन्तर कम हो जायेगा तथा लगान कम हो।

(iii) यदि कृषि में उन्नति से केवल श्रेष्ठ भूमियों की ही उपज बढ़ती है तो श्रेष्ठ भूमियों। और सीमान्त भूमियों की उपज के बीच अन्तर अर्थात् लगान बढ़ जायेगा।

(2) यातायात में उन्नति : (i) इससे स्थिति अन्तर के कारण उत्पन्न लगान कम हो जायेगा। ___(ii) यदि इससे विदेशी उपज का आयात बढ़ जाता है तो उपज का मूल्य घटेगा जिसके परिणामस्वरूप खेती की सीमा पीछे खिसक जायेगी तथा आयातक देश में लगान कम हो जायेगा। इसके विपरीत निर्यातक देश में खेती की सीमा आगे खिसक जाने के कारण लगान बढ़ जायेगा।

(3) जीवनस्तर में वृद्धि : इससे उपज की माँग बढ़ेगी, मूल्य बढेंगे, जोत की सीमा आगे बढ़ेगी तथा लगान में वृद्धि होगी।

(4) जनसंख्या में वृद्धि : इससे कृषि उपज की माँग बढ़ेगी, मूल्य बढ़ेंगे, जोत की सीमा आगे बढ़ेगी तथा लगान में वृद्धि होगी। इसके अतिरिक्त जनसंख्या में वृद्धि के कारण अकृषि कार्यों के लिये भूमि का प्रयोग होने के कारण कृषि कार्य के लिये भूमि की कमी पड़ेगी जिसके फलस्वरूप भी भूमि के लगान बढ़ेंगे।

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सैद्धान्तिक प्रश्न

(Theoretical Questions)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

(Long Answer Questions)

1 लगान क्या है ? आर्थिक लगान और ठेके के लगान में अन्तर करो।

What is rent ? Differentiate between economic rent and contract rent.

2. रिकार्डो के लगान सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिये।

Examine critically the Ricardian Theory of Rent.

3. लगान का आधुनिक सिद्धान्त क्या है ? यह रिकार्डो के सिद्धान्त से किस प्रकार भिन्न है ? |

What is Modern Theory of Rent ? How does it differ from the Recardian Theory of Rent ?

4. “अनाज का मूल्य इसलिये ऊँचा नहीं होता है क्योंकि लगान दिया जाता है, बल्कि ऊँचे लगान इसलिये दिये जाते हैं क्योंकि अनाज का मूल्य ऊँचा होता है।” इस कथन की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिये।

Corn is not high because rent is paid, but high rent is paid because corn is high.” Critically examine this statement.

5. आभास-लगान क्या है ? यह आर्थिक लगान तथा ब्याज से किस प्रकार भिन्न है ?

What is Quasi Rent ? How does it differ from economic rent and interest?

6. एक अर्थ में सभी लगान दुर्लभता लगान हैं और सभी लगान भेदात्मक लगान हैं।” विवेचना कीजिए।

In a sense all rents are scarcity rents and all rents are differential rents.” Discuss.

7. लगान के आधुनिक सिद्धान्त की विवेचना कीजिये तथा बताइये कि क्या मजदूरी, ब्याज व लाभ में भी कोई लगान तत्व समाविष्ट है।

State the modern theory of rent and discuss whether there is any ‘rent element’ in wages, interest and profits.

8. आर्थिक उन्नति का लगान पर प्रभाव का विवेचन कीजिये।

Discuss the effect of economic progress on rent.

9. “लगान विशिष्टता का पारितोषण है।” इस कथन की विवेचना कीजिये।

“Rent is a reward for specificity.” Examine this statement.

10. “लगान तब उत्पन्न होता है जबकि किसी साधन की पूर्ति पूर्णतया लोचदार से कम होती है।” विवेचना कीजिये।

Rent arises when the supply of a factor of production is less than perfectly elastic.” Discuss.

11. लगान एक विशाल प्रजाति की प्रमुख उपजाति है।” समझाइये।

“Rent is the leading species of a large genus.” Explain.

12. मार्शल की आभास-लगान की धारणा रिकार्डो के लगान सिद्धान्त का, भूमि को छोड़कर अन्य साधनों के लिये विस्तार मात्र है।” व्याख्या कीजिये।

Marshall’s concept of quasi-rent is an extension of the Ricardian Theory of Rent to inputs other than land.” Explain.

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लघु उत्तरीय प्रश्न

(Short Answer Questions)

उत्तर 100 से 120 शब्दों के बीच होना चाहिये।

The answer should be between 100 to 120 words.

आर्थिक लगान’ क्या है ?

What is economic rent?

2. आर्थिक लगान’ और ‘ठेके के लगान’ में अन्तर बताइये।

Distinguish between economic rent’ and ‘contract rent’.

3. सीमान्त भूमि’ और ‘अधि-सीमान्त भूमि’ से आप क्या समझते हैं ? उपयुक्त उदाहरण देते हुए समझाइये।

What do you understand by ‘marginal land’ and ‘super marginal land’ ? Explain giving suitable illustration.

4. स्थिति लगान’ क्या है ?

What is situational rent’ ?

5. रिकार्डो के लगान सिद्धान्त की मान्यताएँ बतलाइये।

Give assumptions of Ricardian Theory of Rent.

6. ‘लगान मूल्य द्वारा निर्धारित होता है, न कि मूल्य निर्धारक होता है। समझाइये।

Rent is price determined and not price determining’. Discuss.

7. लगान साधनों में ‘भूमि तत्व’ के लिये भुगतान है।” समझाइये।

“Rent is the payment for the ‘land element’ in a factor”. Discuss.

8. दुर्लभता लगान’ और ‘भेदात्मक लगान’ में अन्तर कीजिये।

Distinguish between ‘scarcity rent’ and ‘differential rent’.

9. साधन की ‘विशिष्टता’ और ‘अविशिष्टता’ से आप क्या समझते हैं ?

What do you understand by ‘specificity’ and ‘non-specificity’ of a factor?

10. साधन की पूर्ति की लोच किस प्रकार लगान को प्रभावित करती है ?

How does the elasticity of supply of a factor affect the rent?

11 .‘योग्यता का लगान’ क्या है?

What is ‘rent of ability ?

12. ‘आभास लगान’ के विचार को स्पष्ट कीजिये।

Explain clearly the concept of quasi-rent’?

13. आभास लगान और ब्याज में अन्तर बताइये।

Distinguish between quasi-rent and interest.

14. कृषि में उन्नति का लगान पर क्या पड़ता है ?

What is the effect of agricultural progress on rent?

15. ‘कुल लगान’ शब्द से आप क्या समझते हैं ?

What do you understand by the term ‘gross rent’?

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III. अति लघु उत्तरीय प्रश्न

(Very Short Answer Questions)

(अ) एक शब्द या एक पंक्ति में उत्तर दीजिये।

Answer in one word or in one line.

1 रिकार्डों के अनुसार लगान की परिभाषा दीजिये।

Write definition of rent as given by Recardo.

2. प्रो० वीजर ने उत्पादन के साधनों को किन दो वर्गों में विभाजित किया है ?

In which two categories Prof. Von Wieser has classified the factors of production.

3. ‘भूमि तत्व’ शब्द को परिभाषित करो।

Define the term land element

4. ‘आभास-लगान’ विचार के प्रतिपादक कौन हैं ?

Who is the propounder of the concept of quasi-rent’?

5. साधन की पूर्णतया लोचदार पूर्ति की स्थिति में लगान कितना होगा ?

What will be the rent in case of a perfectly elastic factor supply?

6. साधन की पूर्णतया बेलोचदार पूर्ति की स्थिति में लगान कितना होगा ?

What will be the rent in case of a perfectly inelastic factor supply?

7. रिकार्डो के अनुसार कौन-सी भूमि लगान रहित भूमि होती है ?

Which is no rent land according to Recardo?

8. लगान के आधुनिक सिद्धान्त के अनुसार लगान किस प्रकार मापा जाता है ?

How rent is measured according to the modern theory of rent.

9. अनाज का मूल्य इसलिये ऊँचा नहीं होता है क्योंकि लगान दिया जाता है, बल्कि ऊँचे

“Corn is not high because rent is paid, but high rent is paid because corn is high.” Whose statement it is?

10. भेदात्मक बचत’ का विचार किस अर्थशास्त्री का है ?

Who has propounded the concept of differential surplus’?

11. एक अर्थ में सभी लगान दुर्लभता लगान हैं और सभी लगान भेदात्मक लगान हैं।” यह कथन किस अर्थशास्त्री का है ? ”

In a sense, all rents are scarcity rents and all rents are differential rents.” Whose statement it is.

12. रिकार्डो के अनुसार लगान कीमत का कारण है या परिणाम।

According to Ricardo whether rent is the cause of price or result of it.

13. पूर्णतया अविशिष्ट साधनों की पूर्ति की लोच कैसी होती है?

What is the elasticity of the supply of wholly non-specific factors?

Business Economics Rent

 

 

chetansati

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