BCom 1st Year Business Effective Communication Study Material Notes In Hindi

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BCom 1st Year Business Effective Communication Study Material Notes In Hindi

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Effective Communication Study Material
Effective Communication Study Material

Bcom 2nd Year Entrepreneur Meaning Concept Forms Study Material Notes in Hindi

प्रभावी संचार

(Effective Communication)

प्रभावी संचार/सम्प्रेषण का अर्थ एवं परिभाषा

(Meaning of Effective Communication)

व्यवसाय के अन्तर्गत संचार प्रणाली केवल तभी सफल हो सकती है जब वह प्रभावशाली हो। संचार एक द्विमार्गीय प्रक्रिया है तथा इसके प्रभावपूर्ण होने के लिए यह आवश्यक है कि पहले व्यक्ति के विचार, दूसरा व्यक्ति अच्छी प्रकार समझ सके और उसी के आधार पर कार्य कर सके। इसके विपरीत, यदि दूसरा व्यक्ति पहले व्यक्ति के विचार न तो समझ पाता है और न ही उसके आधार पर कार्य कर पाता है तो संचार का कोई महत्त्व नहीं रह जाता है। संचार तभी प्रभावी होगा जब प्रेषक उसे जिस भाव से प्रेषित करे, प्राप्तकर्ता उसे उसी भाव से समझे एवं उससे प्रभावित हो। यदि संचार का उद्देश्य प्राप्त हो जाता है तो यह माना जाता है कि संचार प्रभावी रहा है। इसके विपरीत यदि संचार का उद्देश्य प्राप्त नहीं होता है तो यह स्पष्ट करता है कि संचार प्रभावशाली नहीं है। अतः प्रभावी संचार से आशय उस संचार प्रक्रिया से है जो प्राप्तकर्ता को सन्देश के उद्देश्य के अनुरूप कार्य करने के लिये प्रेरित करती है। इस दृष्टि से यह आवश्यक होता है कि सन्देश स्पष्ट, संक्षिप्त तथा अर्थपूर्ण हो। प्रभावी संचार, सन्देश भेजने तथा सन्देश प्राप्त करने की कला पर निर्भर करता है। प्रभावी संचार को विद्वानों ने निम्नलिखित प्रकार परिभाषित किया

हैनेयागर हैंकर मैन के अनुसार, “प्रभावी संचार वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा सूचना भेजी तथा प्राप्त की जाती है। यह प्रबन्ध के लिए आधारभूत व्यवस्था है जिसके बिना संगठन का अस्तित्व नहीं रह सकता। इसका कारण बहुत स्पष्ट है कि यदि हम अपने कर्मचारियों के साथ संवाद नहीं कर सकेंगे तो हम किस प्रकार काम चाहते हैं, यह सूचित नहीं कर सकेंगे।”।

के० ओ० लोकर के अनुसार, “प्रभावी संचार वह प्रक्रिया है जिसमें व्यक्तियों, समूहों तथा संगठनों के बीच में सूचना को सूचित करने, निवेदन करने, प्रोत्साहित करने तथा ख्याति प्राप्त करने के उद्देश्य से प्रेषित किया जाता है। यह स्पष्ट, पूर्ण तथा सही होती है तथा पाठक का समय बचाती है और अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में सहायक होती है।

अतः स्पष्ट है कि प्रभावी संचार वही होता है जो सही, शुद्ध एवं पूर्ण हो तथा जिससे संचार के उद्देश्य की पूर्ति हो जाती है।

संचार (सम्प्रेषण) को प्रभावशाली बनाने के लिये सम्प्रेषक को कई बिन्दुओं पर विचार एवं निर्णय करना पड़ता है। इन बिन्दुओं को निम्नांकित प्रकार विश्लेषित किया जा सकता है

Business Effective Communication

1 सम्प्रेषण के दस ‘C’

2.सम्प्रेषण के पाँच ‘S’

3. सम्प्रेषण के सात ‘W’

संचार/सम्प्रेषण के दस ‘C’

(1) बुद्धिमानी (Cleverness)-सम्प्रेषक में बुद्धिमानी का होना अत्यन्त आवश्यक है। एक बुद्धिमान सम्प्रेषक अपने सन्देशों का पालन आसानी से करा लेता है।

(2) शिष्टाचार (Courtesy)-सम्प्रेषक को सन्देश देते समय शिष्टाचार का ध्यान रखना चाहिये अर्थात् सन्देश बड़ों के लिये है तो सम्मान सूचक शब्दों का प्रयोग हो तथा छोटों को है तो भी आदर के साथ हो।

(3) विश्वसनीयता (Credibility) सम्प्रेषण को प्रभावशाली बनाने के लिये सम्प्रेषक को अपने अन्दर विश्वसनीयता पैदा करनी चाहिये।

(4) स्पष्टता (Clarity)-प्रभावी सम्प्रेषण के लिये सन्देश की भाषा एवं उच्चारण स्पष्ट होना। चाहिये।

(5) सन्तुष्टता (Content)-सम्प्रेषण क्रिया से सम्प्रेषक एवं सन्देश प्राप्तकर्ता दोनों पक्षों का सन्तुष्ट होना आवश्यक है, तभी सम्प्रेषण प्रभावशाली हो पायेगा।।

(6) अनुकूलता (Consistency)-सन्देश श्रोता के अनुकूल होना चाहिये तथा उसमें स्थिरता होनी चाहिये।

(7) माध्यम (Channels) सम्प्रेषण का माध्यम भी सम्प्रेषण क्रिया को प्रभावशाली बनाने में सहायक होता है। यदि उपयुक्त माध्यम के चुनाव में त्रुटि की जाती है तो सम्प्रेषण अप्रभावी रहेगा।

(8) सन्दर्भ (Context)-सन्देश देते समय उसके सन्दर्भ की चर्चा अवश्य की जानी चाहिये अर्थात् सन्देश का मुख्य बिन्दु क्या है, यह स्पष्ट होना चाहिए।

 (9) श्रोताओं की क्षमता (Capability of the Audience)-सन्देश देते समय सम्प्रेषक को श्रोताओं की क्षमता को ध्यान में अवश्य रखना चाहिये। श्रोताओं के ज्ञान का स्तर एवं उनके पास उपलब्ध समय आदि बातों को ध्यान में रखा जाए तो श्रोता में नीरसता नहीं आयेगी एवं सम्प्रेषण प्रभावी सिद्ध होगा।

(10) आचरण (Character)-सम्प्रेषक को सम्प्रेषण प्रभावी बनाने के लिये सर्वप्रथम स्वयं का आचरण सन्देश के अनुकूल रखना चाहिये।

संचार/सम्प्रेषण के पाँच ‘S’

1 सरलता (Simplicity)-सम्प्रेषण को प्रभावी बनाने के लिये सन्देश को सरलतम रूप में प्राप्तकर्ता तक पहुँचाया जाना चाहिये तभी प्राप्तकर्ता सूचना को ग्रहण करेगा और उसकी प्रतिपुष्टि प्राप्त होगी।

2. संक्षिप्तता (Shortness)-सम्प्रेषण में सन्देश के शब्द और वाक्य संक्षिप्त रखने का प्रयास किया जाना चाहिये जिससे सन्देश प्राप्तकर्ता कम समय में आसानी से सन्देश ग्रहण कर सके।

3. गोपनीयता (Secrecy)-सन्देशों में आवश्यकतानुरूप गोपनीयता बनाये रखने की नितान्त आवश्यकता होती है। इससे प्राप्तकर्ता का विश्वास सम्प्रेषक पर बढ़ता है जो कि प्रभावी सन्देशवाहन के लिये आवश्यक है।

4. निष्कपटता (Sincerity)-सम्प्रेषक को सन्देश में निष्कपटता रखनी चाहिये तथा कोई भी तथ्य छिपाने का प्रयास नहीं किया जाना चाहिये। उदाहरणस्वरूप “अश्वस्थामा मरो, नरो या कुंजरो” वाली भाषा प्रयोग नहीं की जानी चाहिये।

5. निपुणता (Skill)-सम्प्रेषक को अपने क्षेत्र में निपुणता हासिल होनी चाहिये तभी उसका सम्प्रेषण प्रभावशाली होगा।

संचार/सम्प्रेषण के सात ‘W’

1. क्या (What) सन्देश की विषय सामग्री, क्षेत्र एवं आवश्यकता क्या है।

2. कब (When) सन्देश को कब प्रेषित किया जाना चाहिये, इस बात का ज्ञान सम्प्रेषक को होना चाहिये। इस सन्दर्भ में एक कहावत है-‘गर्म लोहे पर ही हथौड़ा चलाना चाहिये।’ ।

3. कहाँ (Where)-सन्देश को किस स्थान और किस स्तर के कर्मचारी तक पहुँचाना है, औपचारिक सन्देश होगा या अनौपचारिक सन्देश होगा, इस बात का ज्ञान होना आवश्यक है।

4.क्यों (Why)-सन्देश का उद्देश्य स्पष्ट होना चाहिये। इसे ही क्यों शब्द के द्वारा इंगित किया गया है।

5. कौन (Who)-सम्प्रेषण का कार्य कौन करेगा अर्थात् उसकी शिक्षा, उम्र, व्यक्तित्व आदि का निर्धारण होना चाहिये।

6.किसको (Whom) सम्प्रेषण किसे किया जाना है अर्थात किस उम्र, ज्ञान और अनभव वाले व्यक्ति को किया जाना है।

7.साधन (Way)-प्रभावी संचार के लिये सही साधन का चुनाव किया जाना आवश्यक है।

Business Effective Communication

व्यावसायिक संचार प्रभावशाली संचार/सम्प्रेषण के आवश्यक तत्त्व अथवा सिद्धान्त

(Essentials of Effective Communication)

व्यावसायिक संचार व्यवस्था को प्रभावी बनाने के लिये जिन महत्त्वपूर्ण बातों तथा नियमों का ध्यान रखना आवश्यक है, उनको संचार के सिद्धान्त या प्रभावशाली संचार के आवश्यक तत्त्व कहा जाता है। व्यावसायिक संचार को प्रभावी बनाने के लिए विभिन्न विद्वानों ने अनेक सिद्धान्त प्रतिपादित किये हैं, जिनमें से प्रमुख सिद्धान्त निम्नलिखित है

(1) स्पष्टता का सिद्धान्त (Principle of Clarity)-सम्प्रेषण की प्रक्रिया मुख्य रूप से दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच होती है। अतः प्रभावी सम्प्रेषण में हमें यह स्पष्ट होना चाहिए कि हम क्या कहना चाहते हैं। सन्देश ऐसा होना चाहिए कि उसका प्रेषक और प्राप्तकर्ता दोनों समान अर्थ लगायें। सम्प्रेषण तभी सफल माना जा सकता है, जब प्रेषक और प्राप्तकर्ता दोनों सन्देश का समान अर्थ समझें। सन्देश देते समय शब्दों के चयन के समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि शब्द सामान्य रूप से प्रयोग किये जाने वाले हों, बहु-अर्थी शब्दों का प्रयोग न किया जाए।

(2) संक्षिप्तता का सिद्धान्त (Principle of Conciseness) प्रभावी सम्प्रेषण के लिये यह आवश्यक है कि सन्देश संक्षिप्त हो तथा उसमें अनावश्यक शब्दों का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए। सन्देश जितना अधिक छोटा होता है उसे भेजने और समझने में उतनी ही सुविधा रहती है, लेकिन सन्देश को संक्षिप्त बनाते समय यह ध्यान रखना जरूरी है कि वह स्पष्ट तथा अर्थपूर्ण बना रहे।

(3) ध्यान आकर्षण का सिद्धान्त (Principle of Attention)-संचार ऐसा होना चाहिए जो लोगों का ध्यान आकर्षित कर सके। सन्देश देते समय लोगों की रूचि एवं आवश्यकताओं को भी ध्यान में रखना चाहिए तथा सन्देश से सम्बन्धित प्रभावों को भी स्पष्ट कर देना चाहिए।

(4) पूर्णता का सिद्धान्त (Principle of Completeness)-प्रेषित किया गया सन्देश उद्देश्य प्राप्ति के लिए अपने आप में पूर्ण होना चाहिए। अपूर्ण सन्देश उद्देश्य को पूरा नहीं कर पाते हैं और भ्रम की स्थिति उत्पन्न करते हैं। सन्देश न अधिक छोटे होने चाहिए न अधिक बड़े।

(5) समयानुकूलता का सिद्धान्त (Principle of Timeliness)-संचार को प्रभावशाली बनाने के लिए यह आवश्यक है कि वह समयानुकूल हो। अलग-अलग सन्देशों का अलग-अलग समय पर महत्त्व होता है, अत: सन्देश समय को ध्यान में रखते हुए दिया जाना चाहिए। यथा समय सन्देश न भेजने से उसका प्रभाव स्वत: कम हो जाता है।

(6) संगतता का सिद्धान्त (Principle of Consistency)-यह सिद्धान्त इस बात पर बल देता है कि प्रेषित की जाने वाली सूचनायें एवं सन्देश संस्था की नीतियों एवं लक्ष्यों के समानान्तर होने चाहिये। दूसरे शब्दों में, संचार एवं संस्था के लक्ष्यों और नीतियों में परस्पर विरोध नहीं होना चाहिए।

(7) उपयुक्त प्रसारण का सिद्धान्त (Principle of Appropriate Broadcasting)-संचार का यह सिद्धान्त इस बात पर जोर देता है कि प्रेषित सूचना या सन्देश उपयुक्त व्यक्ति या विभाग के पास उपयुक्त साधन द्वारा उपयुक्त समय में पहुँचाया जाना चाहिए। दूसरे शब्दों में, संचारकर्ताओं अथवा प्रबन्ध को संचार के दौरान समय, साधन एवं परिस्थितियों पर पूर्ण विचार करके ही कोई निर्णय लेना चाहिए।

(8) सामान्य स्रोत का सिद्धान्त (Principle of Common Source)-संचार के दौरान सूचनाओं, सन्देशों एवं तथ्यों का प्रसारण एक सामान्य स्रोत (Common Source) से किया जाना आवश्यक है, अन्यथा अधीनस्थ कर्मचारी इधर-उधर से सूचनायें प्राप्त करने का प्रयास करेंगे। परिणामस्वरूप सन्देश अथवा सूचना के भ्रामक या विकृत होने की सम्भावनायें बढ़ जाती हैं और कर्मचारियों एवं प्रबन्धकों के मध्य गलतफहमी का वातावरण तैयार होने लगता है, जिसे किसी भी दृष्टि से उचित नहीं कहा जा सकता।

(9) ध्यानपूर्वक श्रवण का सिद्धान्त (Principle of Listening)-सम्प्रेषण उस समय तक प्रभावी नहीं हो सकता, जब तक प्राप्तकर्ता उसे ध्यानपूर्वक ग्रहण न करे। अत: प्रेषक व प्राप्तकर्ता दोनों का उत्तरदायित्व है कि वे प्रभावी सम्प्रेषण के लिए एक दूसरे की बात को ध्यान से सुनें। प्रबन्धक को अच्छा श्रोता भी होना चाहिए वरना एकतरफा संचार निश्चित रूप से प्रभावहीन हो जाएगा।

(10) प्रतिपुष्टि का सिद्धान्त (Principle of Feedback)-सम्प्रेषण को तभी सफल माना जाता है जब सन्देश प्राप्त करने वाला वांछित प्रतिक्रिया को व्यक्त करे और यह जानने के लिए सम्प्रेषण की प्रतिपुष्टि आवश्यक होती है। इसलिए संचार प्रणाली ऐसी होनी चाहिए जिससे लगातार प्रतिपुष्टि प्राप्त होती। रहे।

 (11) लोच का सिद्धान्त (Principle of Flexibility) संचार में पर्याप्त लोच का होना भी अत्यन्त आवश्यक होता है जिससे उसे परिस्थितियों एवं आवश्यकताओं के अनुसार मोड़ दिया जा सका या उसमें परिवर्तन तथा सुधार किया जा सके।

(12) प्रत्यक्ष संचार का सिद्धान्त (Principle of Direct Communication)-इस सिद्धान्त के अनुसार सन्देश सम्बन्धित व्यक्ति को प्रत्यक्ष रूप से प्रेषित किया जाना चाहिए क्योंकि सचार प्रक्रिया में अधिक मध्यस्थ होने से संचार की प्रभावशीलता तथा शद्धता कम हो जाती है।

(13) प्रशासन के विभिन्न अंगों में मधर सम्बन्ध (Cordial Relations)-सन्दशवाहन का मापसाला हान क लिये यह आवश्यक है कि प्रशासन के विभिन्न अंगों में मधुर सम्बन्ध हो तभी सन्दश क्रियाशील होकर अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकेगा। शोभाना खण्डेलवाल के अनुसार, “सन्देशवाहन के सम्बन्ध का स्थानापन्न नहीं होता, किन्तु प्रभावपूर्ण ढंग से कुशल सन्देशवाहन के लिए श्रेष्ठ सम्बन्ध आवश्यक होता है।”

(14) भावनात्मक अपील का सिद्धान्त (Principle of Intrinsic Appeal)-इस सिद्धान्त को मान्यता है कि संचार की सफलता अथवा प्रभावशीलता उसकी भावनात्मक अपील पर निर्भर करती है। पाय: ऐसा ही देखा जाता है कि बौद्धिक या तार्किक संचार की अपेक्षा भावनात्मक संचार की अधिक प्रभावशीलता होती है। अतः पर्याप्त मात्रा में तर्क एवं भावुकता दोनों का सुन्दर सम्मिश्रण संचार के अन्तर्गत होना चाहिए, क्योंकि मनुष्य कई अवसरों पर भावना से प्रेरित होकर कार्य करने को तत्पर हो जाता है, भले ही विवेक, तर्क के आधार पर उसका कोई औचित्य नहीं हो।

(15) शिष्टता तथा नम्रता का सिद्धान्त (Principle of Politeness)-सन्देश सदैव शिष्ट, शालीन एवं नम्र भाषा में दिये जाने चाहिए तभी वह प्रभावशाली हो सकते हैं। शिष्ट भाषा सन्देश प्राप्तकर्ता पर अनुकूल प्रभाव डालती है। नम्र भाषा से दूसरों को सम्मान दिया जा सकता है। सन्देश में सदैव ऐसे शब्दों का प्रयोग करना चाहिए जिन पर किसी को आपत्ति न हो।

Business Effective Communication

प्रभावी संचार/सम्प्रेषण का महत्त्व

(Importance of Effective Communication)

सम्प्रेषण में दक्षता किसी भी व्यावसायिक क्रिया की पूर्व आवश्यकता होती है। यह उस स्थिति में अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हो जाती है जहाँ प्रतिक्षण प्रबन्धकों, व्यवसायी और उनके ग्राहकों के कार्यों के मध्य वाद-संवाद सम्पन्न होता है। संचार व्यवसाय के प्रारम्भकाल से ही उसके अस्तित्व की रक्षा का आधार होता है, यदि संचार प्रक्रिया रूक जाती है तो संगठन की सभी क्रियाएँ रूक जाएँगी। अतः वर्तमान सूचना एवं संचार के युग में व्यावसायिक सफलता का आधार प्रभावी संचार ही है। व्यवसाय में प्रभावी संचार के महत्त्व को निम्नलिखित प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है

(1) यह व्यवसाय का जीवन रक्त होता है (Life Blood of Business)-जिस प्रकार मानव शरीर के संचालन के लिये रक्त अनिवार्य होता है, ठीक उसी प्रकार सम्प्रेषण भी व्यवसाय के लिये आवश्यक होता है। प्रबन्धक अपने विभिन्न कार्यों जैसे योजना बनाना, नीति निर्धारित करना, संगठन की प्रभावी व्यवस्था आदि का सफल सम्पादन प्रभावी संचार के माध्यम से ही कर सकते हैं। व्यवसाय में प्रभावी संचार वह माध्यम है जिससे कर्मचारियों की कार्यक्षमता में वृद्धि, आपसी व्यवहार में समन्वय एवं कार्यों में एकरूपता लाई जा सकती है।

(2) नियोजन का आधार (Basis of Planning)-नियोजन प्रबन्ध का प्राथमिक कार्य है तथा इसकी सफलता प्रभावी संचार पर ही निर्भर करती है। संस्था के लक्ष्यों को प्राप्त करने तथा विभिन्न स्तरों पर सम्बन्धित व्यक्तियों की गतिविधियों को नियन्त्रित करने के लिये प्रभावी संचार अत्यन्त आवश्यक होता है। नियोजन कार्यक्रम के क्रियान्वयन हेतु भी कुशल संचार आवश्यक होता है।

(3) निर्णयन का आधार (Basis of Decision Making)-व्यावसायिक संगठन व प्रबन्ध में प्रबन्धकों को पग-पग पर निर्णय लेने पड़ते हैं तथा छोटी-बड़ी सभी प्रकार की समस्याओं को सुलझाना पड़ता है। प्रभावी संचार, प्रबन्धकों को सही तथा शीघ्र निर्णय लेने में सहायक होता है। प्रबन्ध द्वारा व्यवसाय में किसी भी निर्णय को लेने से पूर्व उसके बारे में पूरी जानकारी प्राप्त की जाती है और यह सूचना प्रभावी संचार, प्रक्रिया द्वारा ही प्राप्त हो सकती है। अतः प्रभावपूर्ण संचार के माध्यम से ही प्रबन्धकीय निर्णयों को कार्यरूप में परिणत किया जाता है।

(4) प्रभावशाली नियन्त्रण में सहायक (Helpful in Controlling)-वर्तमान समय में व्यावसायिक संगठनों का आकार बहुत विशाल हो गया है जिनमें हजारों/लाखों लोग एक साथ कार्य करते हैं। इस स्थिति में प्रभावपूर्ण सम्प्रेषण का महत्त्व और भी अधिक बढ़ जाता है। प्रभावी सम्प्रेषण के द्वारा। ही प्रबन्धक अपने कर्मचारियों द्वारा किये गये कार्यों की सूचना प्राप्त करके उन पर नियन्त्रण रखता है।

(5) मानवीय सम्बन्धों का विकास (Development of Human Relations) उत्पादन किया के बदलते परिवेश में अब यह स्वीकार किया जाता है कि श्रमिक उत्पादन का सक्रिय एवं महत्वपर्ण अंग है और उसके साथ श्रेष्ठ मानवीय सम्बन्धों पर ही संस्था का भविष्य निर्भर करता है। कर्मचारियों से मानवीय और आत्मीयता पूर्ण सम्बन्धों के निर्माण में प्रभावी संचार प्रक्रिया बहुत सहायक है। संचार दृष्टिकोण बदलने में, कर्मचारियों की नैतिक शक्ति बढ़ाने में एवं समन्वय का वातावरण तैयार करने में बहुत मदद करता है। अत: संचार एक ऐसा मन्त्र है जिससे मानवीय सम्बन्धों को बनाने एवं उन्हें विकसित करने में बहुत मदद मिलती है। संक्षेप में, संचार की प्रभावी प्रणाली प्रबन्ध की अधीनस्थ कर्मचारियों के विचार बदलने में, उनकी नैतिक शक्ति बढ़ाने में तथा उन्हें सन्तुष्टि प्रदान करने में सहायक होती है।

(6) समन्वय क्षमता का विकास (Development of Co-ordination Capability)-संचार व्यक्तियों में सहयोग व समन्वय क्षमता का विकास करता है, आपस में सूचना व विचारों का

आदान-प्रदान करता है व उनकी एकता व क्रियाशीलता को बढ़ाता है क्योंकि एक उपक्रम में विभिन्न विभाग होते हैं जो अपनी-अपनी विशिष्ट क्रियाएँ अपने विभाग में संचालित करते हैं। प्रत्येक विभाग अपने सभी विभागीय कार्यों के लिए स्वतन्त्र होता है व उच्च प्रबन्ध के निर्देशन में समस्त विभागों के मध्य समन्वय स्थापित करता है। संचार के बिना एकता व क्रियाशीलता का होना असम्भव है।

(7) औद्योगिक शांति को बढ़ावा (Promotion of Industrial Peace)-अधिकतम उत्पादन के लिए कारखाने में शान्ति स्थापित रखना आवश्यक है। लम्बी हड़ताल तथा तालाबन्दी संस्था को दिवालिया बना देती है। इनको रोकने के लिए आवश्यक है कि कर्मचारियों को संस्था के सम्बन्ध में पर्याप्त जानकारी मिलती रहे। कर्मचारियों को सूचनाओं को पहुँचाना तथा उनके असंतोष की सूचना तुरन्त प्रबन्धकों को देना भी कुशल संचार प्रणाली पर ही निर्भर करता है।

(8) प्रभावी नेतृत्व की स्थापना का आधार (Establishment of Effective Leadership) किसी भी संगठन के प्रभावी नेतृत्व का आधार प्रभावपूर्ण सम्प्रेषण प्रक्रिया होती है। एक सफल नेतृत्व के लिए सम्बन्धित व्यवसाय के प्रबन्धक में सम्प्रेषण कला में दक्षता व योग्यता होना पूर्व अनिवार्य शर्त है। एक प्रबन्धक सफल नेतृत्व करने में तभी सफल होगा जब वह प्रभावी सम्प्रेषण प्रक्रिया के सम्बन्ध में जानकारी रखता हो।

(9) कर्मचारियों के मनोबल में वृद्धि (Increase Employees’ Morale)-प्रभावी संचार के द्वारा उपक्रम के कर्मचारियों में उपक्रम के उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु सरलता से गति प्रदान की जा सकती है। जब संचार के माध्यम से अधिकारियों एवं कर्मचारियों के मध्य विचारों तथा परामर्श का आदान-प्रदान, सुझावों को महत्त्व तथा शिकायतों का निवारण निरन्तर होता रहता है तो उनकी संस्था के प्रति अपनत्व की भावना जागृत होती है तथा उनके मनोबल में वृद्धि होती है। परिणामस्वरूप वे कार्य के क्रियान्वयन एवं सफल निष्पादन में जुट जाते हैं और उनकी कार्य के प्रति रूचि उत्पन्न हो जाती है।

(10) प्रबन्धकीय कार्यक्षमता में वृद्धि सम्भव (Increase Managerial Efficiency)-प्रबन्धकीय कार्यक्षमता इस बात पर निर्भर करती है कि प्रबन्धक अपने अधीनस्थ कर्मचारियों से कितनी कुशलतापूर्वक काम करा सकते हैं। इस कुशलता को प्राप्त करने के लिए प्रबन्धक कर्मचारियों को भिन्न-भिन्न प्रकार के आदेश एवं निर्देश देते हैं, उनकी कठिनाइयों को समझते हैं तथा उन्हें दूर करने के उपाय सुझाते हैं। इन सब विचारों और सन्देशों का आदान-प्रदान होता है और यदि यह आदान-प्रदान गलतफहमियों या नासमझी को उत्पन्न कर देता है तो इसका उद्देश्य ही बेकार हो जायेगा और यह कार्यक्षमता बढ़ाने के स्थान पर अव्यवस्था ही अधिक पैदा करेगा। इस प्रकार एक प्रबन्धक की कार्यक्षमता उसकी अन्य लोगों से संचार योग्यता पर निर्भर करती है।

हेराल्ड यॉस्किन के अनुसार, “संचार हमारे व्यापार के परिचालन में अधिकाधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है-हमें अधिक व्यक्तियों को सूचित करना होता है, अधिक व्यक्तियों की सुननी होती है तथा उनसे अपनी समस्याओं को सुलझाने में मदद लेनी होती है और अधिक चीजों के बारे में बातचीत करनी होती है।”

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि प्रभावी संचार आधुनिक व्यवसाय एवं प्रबन्ध की आधारशिला है। प्रबन्धकीय कार्यों का सफलतापूर्वक संचालन करने, श्रमिकों से मधुर सम्बन्ध बनाने तथा अधिकतम उत्पादन करने के लिये प्रभावी सम्प्रेषण प्रक्रिया का होना अत्यन्त आवश्यक है।

Business Effective Communication

परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(Expected Important Questions for Examination)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

(Long Answer Questions)

1 प्रभावी संचार से आप क्या समझते हैं? इसका क्या महत्त्व है?

What do you mean by effective communication? What is its importance?

2. प्रभावी संचार क्या है? प्रभावी संचार के सिद्धान्तों को समझाइये।

What is an effective communication? Describe the principles of effective communication?

3. “एक प्रभावपूर्ण संचार में संक्षिप्तता तथा पूर्णता जितनी महत्त्वपूर्ण है उतनी ही महत्त्वपूर्ण शिष्टता व स्पष्टता है।” व्याख्या करें।

“In a effective communication, conciseness and completeness are as important ascourtesy and clarity.” Discuss.

4. प्रभावी संचार से आप क्या समझते हैं? व्यवसाय में प्रभावी संचार के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।

What do you understand by effective communication? Explain the importance of effective communication in business.

Business Effective Communication

लघु उत्तरीय प्रश्न

(Short Answer Questions)

1 प्रभावपूर्ण सम्प्रेषण के सिद्धान्तों को समझाइये।

Describe the principles of effective communication.

2. प्रभावी संचार से आप क्या समझते हैं?

What do you mean by effective communication?

3. प्रभावपूर्ण सम्प्रेषण का महत्त्व बतलाइये।

Describe the importance of effective communication.

4. संचार व्यवसाय का जीवन रक्त है।” समझाइए।

“Communication is the life blood of business.” Explain.

5. प्रभावपूर्ण संचार के 10 ‘C’ कौन से हैं? _

What are Ten ‘C’ of effective communication?

6. प्रभावपूर्ण संचार के पाँच ‘S’ कौन से है?

What are the five ‘S’ of effective communication?

Business Effective Communication

chetansati

Admin

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