BCom 1st Year Business Environment Allocation Resources Study Material Notes in hindi

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BCom 1st Year Business Environment Allocation Resources Study Material Notes in hindi

BCom 1st Year Business Environment Allocation Resources Study Material Notes in hindi : Meaning and Definition to Allocation Resources Examination Questions Long Answer Questions Short Answer Questions ( Most Important Notes for BCom 1st Year Students )

Allocation Resources Study Material
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BCom 1st Year Business Environment Collection Resources Indian Plans Study Material Notes in Hindi

संसाधनों का आबण्टन

[ALLOCATION OF RESOURCES]

किसी समाज के संसाधनों में प्रकृति की निःशुल्क देन, जैसे—भूमि, जंगल, खनिज, आदि के साथ-साथ सभी मानवीय संसाधन, मानसिक व शारीरिक तथा मनुष्यों द्वारा निर्मित साधन, जैसे—औजार, मशीनरी, भवन, आदि जिनका उपयोग और अधिक उत्पादन के लिए होता है, शामिल हैं। अर्थशास्त्री सभी प्रकार के प्राकृतिक साधनों (natural resources), जिनकी जानकारी उन्हें है, को भूमि (land) कहते हैं। सभी मानसिक एवं शारीरिक मानवीय संसाधनों को श्रम (labour) कहा जाता है। वे सभी मानव-निर्मित चीजें, जैसे—मशीनरी, यन्त्र, कारखाने, आदि जिनका उपयोग और अधिक वस्तुओं तथा सेवाओं के उत्पादन में होता है, को पूंजी कहा जाता है।

अक्सर एक चौथे संसाधन की विवेचना की जाती है जिसे उद्यमी या साहसी (entrepreneur) कहा जाता है जो नई वस्तु तथा पुरानी वस्तु का नए ढंग से उत्पादन कर जोखिम उठाता है। इन संसाधनों को उत्पादन के साधन (factors of production) या सिर्फ साधन (factors) भी कहा जाता है।

अर्थशास्त्रियों के दृष्टिकोण से सभी संसाधन दुर्लभ (scarce) हैं। दुर्लभता का यह अर्थ है कि मांग की तुलना में इनकी पूर्ति कम या सीमित है। अब यदि सभी संसाधन उनकी चाह की तुलना में दुर्लभ हैं और यदि लोगों की अनेक इच्छाएं असन्तुष्ट रह जाती हैं तथा इच्छा की पूर्ति के माध्यम उनमें से केवल कुछ को ही सन्तुष्ट कर सकते हैं, तो स्पष्ट है कि उन्हें चयन करना होगा। कुछ इच्छाओं को पूरा करने के लिए कुछ अन्य को छोड़ना होगा।

अर्थशास्त्र का मूल सिद्धान्त दुर्लभता तथा चयन (scarcity and choice) है। इसलिए किसी भी प्रकार की अर्थव्यवस्था की मूल समस्या यह है कि दुर्लभ संसाधनों का किस प्रकार आवण्टन किया जाए प्रतिस्पर्धी आवश्यकताओं के मध्य। संसाधन दुर्लभ हैं, इसलिए चयन आवश्यक हो जाता है। चूंकि कोई भी देश सभी वस्तुओं का उत्पादन नहीं कर सकता जो उसके नागरिक चाहते हैं, इसलिए ऐसे तन्त्र (machanism) की आवश्यकता है जो यह निर्णय ले सके कि किन वस्तुओं का उत्पादन किया जाए तथा किनका नहीं, प्रत्येक उत्पादित वस्तु का उत्पादन कितनी मात्रा में किया जाए तथा किनकी आवश्यकताओं को पूरा किया तथा किनकी नहीं। यही साधनों के आवण्टन का सिद्धान्त है। अधिकांश समाज में आबण्टन का यह कार्य विभिन्न प्रकार के लोगों तथा संगठनों, व्यक्तिगत उपभोक्ताओं से लेकर व्यावसायिक संगठनों तक, श्रम संघों तथा सरकारी अधिकारियों से प्रभावित होता है। जब किसी वस्तु का अधिक मात्रा में चयन किया जाता है तो दूसरी वस्तुओं को कम मात्रा में लेना पड़ेगा। यही समस्या सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के स्तर पर भी उठती है। यदि सरकार सड़क निर्माण पर अधिक खर्च करना चाहती है, तो स्कूल भवन, उदाहरणस्वरूप, पर कम खर्च करना पड़ेगा। इस दशा में नई सड़कों के निर्माण की लागत है वे स्कूल भवन जो बन नहीं पाए। ऐसी लागत को अर्थशास्त्री अवसर लागत (opportunity cost) या वैकल्पिक लागत (alternative cost) कहते हैं। अवसर लागत की सटीक माप के लिए अर्थशास्त्री सर्वोत्तम उपलब्ध विकल्प के त्याग को लेते हैं। ऊपर दिए गए। उदाहरण के सन्दर्भ में यह प्रश्न पूछा जा सकता है कि यदि सरकार ने सड़क नहीं बनाई होती तो सरकारी फण्ड का सर्वोत्तम वैकल्पिक उपयोग क्या होता? यह वह विकल्प है जिसे त्याग देने के फलस्वरूप सड़क का निर्माण हो सका।

Business Environment Allocation Resources

संसाधनों का आवण्टन

संसाधनों के आवण्टन से सम्बन्धित तीन समस्याएं हैं, यथा :

  • किन वस्तुओं का उत्पादन करना है तथा कितनी-कितनी मात्राओं में? इस प्रश्न का उत्तर ही वैकल्पिक उपयोगों के मध्य देश के दुर्लभ साधनों का आवण्टन निर्धारित करता है। इसे ही संसाधनों का आबण्टन कहा जाता है।
  • यह भी जरूरी है कि जिन वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है वे न्यूनतम लागत पर हों अर्थात कुशल ढंग (efficiently) से हो। ऐसी उत्पादन तकनीक का उपयोग किया जाय जो कशल हो अर्थात न्यूनतम लागत पर अधिकतम उत्पादन हो। इसे आदर्श आवण्टन (ideal allocation) कहा जाता है।
  • अर्थव्यवस्था का कोई भी स्वरूप हो, दुर्लभता के कारण साधनों के आवण्टन की समस्या सभी जगह उपस्थित हो जाती है, लेकिन आवण्टन किस प्रकार होता है तथा कौन करता है ? इनके उत्तर के लिए हमें देखना है कि अर्थव्यवस्था का संगठन किस प्रकार हुआ है—स्वतन्त्र बाजार व्यवस्था द्वारा, केन्द्रीय योजना पर आधारित या मिश्रित अर्थव्यवस्था के रूप में।

(i) बाजार अर्थव्यवस्था में साधनों के आबण्टन सम्बन्धी निर्णय उत्पादनकर्ता, उपभोक्ता, श्रमिक तथा उत्पादन के साधनों के स्वामियों के स्वैच्छिक विनिमय द्वारा कीमतों के आधार पर लिए जाते हैं। इस अर्थव्यवस्था में विकेन्द्रित निर्णय लिए जाते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि अर्थव्यवस्था में ग्रुप तथा व्यक्तियों द्वारा स्वतन्त्र रूप से निर्णय लिए जाते हैं, न कि केन्द्रीय नियोजकों के द्वारा। इस अर्थव्यवस्था में उत्पादन के साधनों का स्वामित्व सामान्यतः निजी हाथों में होता है। इस अर्थव्यवस्था में साधनों का आदर्श आवण्टन उस समय होता है जब निम्न शर्ते पूरी हों :

  • सभी बाजारों में पूर्ण प्रतियोगिता;
  • सभी उद्योगों में उत्पादन पर वृद्धिमान लागत का नियम काम करे;
  • सार्वजनिक वस्तुओं की अनुपस्थिति;
  • पूर्ण जानकारी; तथा
  • पूर्ण गतिशीलता।

पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत प्रत्येक बाजार में अनेक क्रेता तथा विक्रेता होते हैं। इसलिए किसी एक क्रेता या विक्रेता का वस्तुओं तथा सेवाओं की कीमत पर कोई नियन्त्रण नहीं होता है। सभी क्रेताओं तथा विक्रेताओं के लिए कीमतें दी हुई होती हैं। पूर्ति एवं मांग की अवैयक्तिक शक्तियों (impersonal forces) द्वारा बाजार में कीमत का निर्धारण होता है। विक्रेता या उत्पादनकर्ता का उद्देश्य होता है अधिकतम लाभ प्राप्त करना जो उस समय मिलता है जब कीमत (P) सीमान्त लागत (marginal cost) के बराबर होती है, यथा P = MCI क्रेता का उद्देश्य है अधिकतम उपयोगिता। यह उस समय मिलती है जब कीमत सीमान्त उपयोगिता के बराबर होती है (P = MV)।

(ii) नियोजित अर्थव्यवस्था में जहां केन्द्रीय योजना अपनायी जाती है, राज्य या केन्द्रीय आयोजक (Central Planners) साधनों के आवण्टन को निर्धारित करते हैं। यहां चयन की सारी प्रक्रिया का परिचालन राज्य द्वारा होता है। किन-किन वस्तुओं का उत्पादन होगा। यह निर्णय राज्य लेता है। किस मात्रा में किसी वस्तु का उत्पादन होगा, इसका निर्णय भी राज्य लेता है। कितना-कितना साधन किस-किस वस्तु में लगेगा इसका निर्णय भी राज्य ही लेता है।

(III) आज दुनिया के किसी भी देश में न तो पूर्ण रूप से स्वतन्त्र अर्थव्यवस्था है और न ही पूर्ण रूप आयोजित अर्थव्यवस्था। सभी जगह दोनों व्यवस्थाओं का मिश्रण पाया जाता है। इस मिश्रण में कहीं बाजार महत्व अधिक है तो कहीं भी राज्य का। इसलिए मिश्रित अर्थव्यवस्था में बाजार एवं कीमत तन्त्र के साथ-साथ राज्य की भी भूमिका रहती है।

निष्कर्ष

सौ वर्षों से भी अधिक समय तक यह विवाद चलता रहा कि किस अर्थव्यवस्था में साधनों का आबण्टन अधिक उत्तम ढंग से होता है। पीग ने अपनी पुस्तक Capitalism Vs. Socialism में ऐसे तर्क प्रस्तुत किए। कि समाजवादी अर्थव्यवस्था की तलना में पंजीवादी अर्थव्यवस्था अर्थात् बाजार आधारित अर्थव्यवस्था साधनों के आदर्श आवण्टन के लिए बेहतर है। 1989 में यह स्पष्ट हो गया कि साधनों के आवण्टन के लिए बाजार व्यवस्था केन्द्रीय योजना पर आधारित अर्थव्यवस्था से बेहतर है। इसके लिए केन्द्रीय आयोजन पर आधारित अर्थव्यवस्था के निम्न चार दोषों को कारण बताया गया :

  • समन्वय में विफलता (Failure of Coordination) आयोजित अर्थव्यवस्था में नियोजकों का समूह उत्पादन, निवेश, व्यापार तथा उपभोग संबंधी सभी आर्थिक निर्णयों के समन्वय का प्रयास करता है। यह कार्य असंभव है क्योंकि करोड़ों निर्णयों का समन्वय करना होता है ताकि किसी प्रकार के अवरोध खड़े न हों तथा निर्णय कुशल हों।
  • गुणवत्ता नियंत्रण में विफलता (Failure of Quality Control) सभी उत्पादन इकाइयों में जहां स्पर्धा नहीं होती है, उत्पादित वस्तुओं की गुणवत्ता को नियन्त्रित करना कठिन होता है। रूस में ऐसा ही हुआ।
  • गलत प्रेरणाएं (Misplaced Incentives) बाजार अर्थव्यवस्था में श्रमिकों को रोजगार खोने का डर रहता है यदि ठीक से काम न किया। आयोजित अर्थव्यवस्था में रोजगार सुरक्षित रहता है। इस कारण आयोजित अर्थव्यवस्था में मजदूर, कर्मचारी, आदि ठीक से काम नहीं करते हैं।
  • पर्यावरण को हानि (Environmental Degradation) आयोजित अर्थव्यवस्था में एक ही प्रेरणा रहती है— उत्पादन के लक्ष्य को पूरा करना। इसके लिए वातावरण सहित अन्य महत्वपूर्ण उद्देश्यों की उपेक्षा की जाती है। इसलिए पश्चिमी यूरोपीय देशों की तुलना में पूर्वी यूरोप के साम्यवादी देशों में पर्यावरण को अधिक नुकसान पहुंचा है। साम्यवादी देशों की तुलना में स्वतन्त्र बाजार कीमत व्यवस्था का निष्पादन अधिक अच्छा रहा है।

प्रश्न

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1 साधनों के आवण्टन से आप क्या समझते हैं?

2. विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं में साधनों का आवण्टन किस प्रकार होता है?

लघु उत्तरीय प्रश्न

1 संसाधन से आप क्या समझते हैं?

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chetansati

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