BCom 1st Year Business Environment Economic Component Study Material Notes in Hindi

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BCom 1st Year Business Environment Economic Component Study Material Notes in Hindi

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BCom 1st Year Business Environment Economic Component Study Material Notes in Hindi: Meaning of Environment Meaning of Business Environment  External Environment Internal Environment  Macro Environment Components of Business Environment Noneconomic Environment Socio-Cultural Environment Economic Environment Concept of Business Environment process of Environmental Analysis

Component  Study Material Notes
Component Study Material Notes

BCom 1st Year Business Environment Meaning & Characteristics Study Material Notes in hindi

व्यावसायिक पर्यावरण (वातावरण)

(BUSINESS ENVIRONMENT]

पर्यावरण का तात्पर्य

(MEANING OF ENVIRONMENT)

पर्यावरण अर्थात् वातावरण से तात्पर्य उन सभी बाह्य शक्तियों से है जिनका प्रभाव व्यवसाय के परिचालन (functioning) पर पड़ता है। यह सामाजिक, आर्थिक, कानूनी तथा तकनीकी कारकों (factors) का मिश्रण है। पर्यावरण में वे सभी बाह्य तत्व शामिल हैं जो अवसरों का सृजन करते हैं और वे भी जो व्यवसाय के लिए खतरा हैं।

वातावरण पर उद्यमी का शायद ही नियन्त्रण होता है, लेकिन वातावरण उद्यमी पर अनेक नियन्त्रण लगा सकता है। व्यावसायिक क्रियाओं के क्षेत्र एवं दिशा को यह अत्यधिक प्रभावित कर सकता है। इसलिए उद्यमियों का बुनियादी कार्य यह है कि वे उस वातावरण के साथ तादाम्य स्थापित (identify) करें जिसमें उन्हें क्रिया करनी है। उन्हें अपनी नीतियों को वातावरण के अनुरूप ढालना है। प्रत्येक व्यावसायिक संगठन को अपने आन्तरिक एवं बाह्य वातावरण का सामना करना पड़ता है। आन्तरिक वातावरण व्यवसाय की ताकत एवं कमजोरी को प्रकट करता है, जबकि बाह्य वातावरण अवसरों तथा आशंकाओं का द्योतक है। वातावरण की प्रकृति ही निम्न को मुख्य रूप से निर्धारित करती है :

Business Environment Economic Component

  • व्यवसाय की भूमिका:
  • नियत कार्य (task) की प्रकृति;
  • शीर्ष प्रबन्धक तथा मुख्य प्रशासक एवं कार्यकारिणी की भूमिका; तथा
  • व्यावसायिक नीति की प्रकृति।

वातावरण की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं :

(1) वातावरण एक जटिल धारणा है। यह अनेक प्रकार के प्रभावों का मिश्रण है।

(2) वातावरण के निर्धारक कारकों की पहचान, वर्णन, व्याख्या तथा भविष्यवाणी एक जटिल समस्या है।

(3) वातावरण सम्बन्धी कारक स्थैतिक (static) या गतिशील (dynamic) होते हैं। गतिशील कारकों की अवधारणा या भविष्यवाणी तथा परिमाणात्मक माप कठिन कार्य है।

(4) वातावरण का वर्गीकरण विभिन्न कसौटियों के आधार पर किया जाता है। जैसे स्थान (space) के अनुसार स्थानीय, क्षेत्रीय, राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय वातावरण। समय (time) के अनुसार—अतीत, वर्तमान एवं भविष्य। तन्त्र (forces) के अनुसार बाजार तथा गैर-बाजार वातावरण। कारकों (factors) के अनुसार आर्थिक एवं गैर-आर्थिक। समर्थन (support) के अनुसार—आंकड़े-सम्बन्धी तथा व्यवस्था सम्बन्धी। स्पष्ट है कि वातावरण एक अत्यन्त जटिल अवधारणा है।

Business Environment Economic Component

व्यावसायिक वातावरण का अर्थ

(MEANING OF BUSINESS ENVIRONMENT)

वातावरण उन सभी बाह्य शक्तियों (external forces or factors) की ओर संकेत करता है, जो । व्यवसाय के संचालन को प्रभावित करती हैं। अतः व्यावसायिक वातावरण से तात्पर्य उन सभी शक्तियों या कारकों से है, जो व्यावसायिक फर्म के परिचालन को प्रभावित करते हैं। डेविस के अनसार व्यावसायिक वातावरण उन सभी परिस्थितियों, घटनाओं और कारकों का योग है, जो व्यवसाय पर असर डालते है।

अकेली व्यावसायिक फर्म अपनी वैयक्तिक क्रियाओं के द्वारा वातावरण को प्रभावित नहीं कर । सकती है. लेकिन विभिन्न फर्म अपने सामहिक आचरण के द्वारा वातावरण पर असर डाल सकती है। व्यावसायिक वातावरण के विश्लेषण में मान लिया जाता है कि यह फर्म के लिए बाह्य (external) है। फर्म अपने आन्तरिक वातावरण को बाह्य वातावरण के आलोक में समायोजित करने का प्रयास करता है।

Business Environment Economic Component

व्यावसायिक परिदृश्य को प्रभावित करने वाले कारक

तथा व्यावसायिक वातावरण के प्रकार

व्यावसायिक उद्यमों पर आन्तरिक तथा बाह्य दोनों प्रकार के कारकों का प्रभाव पड़ता है। आन्तरिक कारक वे हैं जिन पर उद्योग का नियन्त्रण रहता है। इन्हें नियन्त्रणीय चर (Controllable Variables) कहा जाता है। यह उद्योगों की क्षमता के भीतर है कि वे मानवशक्ति, भौतिक आबोहवा जैसे आन्तरिक कारको को संशोधित कर सकें तथा उनके विकल्प का उपयोग करें। बाह्य कारक किसी एक उद्यम के सीमा क्षेत्र से बाहर हैं। वे उद्यम के नियन्त्रण से परे हैं। इसलिए इन्हें अनियन्त्रणीय चर (Uncontrollable Variables) कहा जाता है। ऐसे चरों को निम्न वर्गों में बांटा जा सकता है :

(A) आर्थिक

(B) अनार्थिकः

(i) राजनीतिक व कानूनी;

(ii) सामाजिक-सांस्कृतिक

(iii) भौतिक, आदि-आदि।

मोटे तौर पर इस अनियन्त्रणीय वातावरण को आर्थिक एवं अनार्थिक दो विस्तृत वर्गों में विभाजित किया जा सकता है। इन्हें इस रूप में भी व्यक्त किया जा सकता है कि व्यावसायिक वातावरण दो प्रकार के होते है, यथा,

(i) आन्तरिक व्यावसायिक वातावरण, तथा

(ii) बाह्य व्यावसायिक वातावरण।

आन्तरिक पर्यावरण (Internal Environment)

व्यवसाय के आन्तरिक पर्यावरण अर्थात् नियन्त्रणीय वातावरण के महत्वपूर्ण अंग निम्नलिखित हैं : .

  • व्यावहारिक आचार संहिता तथा नैतिक मानदण्डः
  • कारखाने का वातावरण;
  • व्यावसायिक एवं प्रबन्धकीय नीतियां
  • श्रम-प्रबन्ध सम्बन्ध;
  • प्रबन्धकीय सूचना व्यवस्था
  • संगठन की संरचना तथा डिजाइन;
  • व्यवसाय के प्रमुख उद्देश्य संसाधनों की उपलब्धता;
  • व्यावसायिक विकास की सम्भावना।

उपर्युक्त सभी कारकों का सम्बन्ध व्यवसाय के आन्तरिक वातावरण से है अर्थात् ऐसा वातावरण जो फर्म के नियन्त्रण में है। इसलिए फर्म इन कारकों को अपने पक्ष में कर सकती है। [फर्म व्यवसाय की एक इकाई है जो उत्पादक साधनों (inputs) को उत्पत्ति (output) में बदल देता है। लेकिन व्यवसाय के विकास के लिए इतना ही पर्याप्त नहीं है कि फर्म का आन्तरिक वातावरण पर नियन्त्रण हो तथा ऐसे वातावरण-सम्बन्धी कारकों का प्रवन्धन इस ढंग से किया जाए जो फर्म के हित में हो।

बाह्य पर्यावरण (External Environment)

Business Environment Economic Component

व्यावसायिक पर्यावरण का एक ऐसा भी पक्ष है जो फर्म के नियन्त्रण में नहीं है। ऐसे परिदृश्य को बाह्य पर्यावरण (External Environment) कहा जाता है। इसे भी दो उपवर्गों में बांटा जाता है :

() व्यष्टिपर्यावरण (Micro-environment)

इसके अन्तर्गत व्यावसायिक उद्यम के निकटतम वातावरण के उन सभी कारकों को शामिल किया जाता है जो ग्राहकों की सेवा करने में इसकी योग्यता को प्रभावित कर सकते हैं। ऐसे प्रमुख कारक निम्नलिखित है ।।

(i) प्रतिस्पर्धी (Competitors)-किसी भी व्यवसाय में अनेक फर्म अर्थात् उत्पादन करने वाली इकाइयां होती हैं। ऐसी फर्मों के मध्य अनेक प्रकार की प्रतियोगिता होती है। बाजार की संरचना (market structure) के अनुसार एक उद्योग में अनेक फर्मे हो सकती हैं या कुछ या सिर्फ एक। इनके द्वारा उत्पादित वस्तु की सभी इकाइयां एकसमान (homogeneous) हो सकती है या इनमें विभेद (Product differentiation) हो सकता है। विभिन्न स्थितियों में प्रतिस्पर्धा का रूप (form) भिन्न-भिन्न होगा। यह प्रतिस्पर्धा प्रजातिगत (generic) हो सकती है या ब्रांड (brand) को लेकर। इस तरह अनेक प्रकार की प्रतियोगिताओं का सामना व्यावसायिक उद्यमों को करना पड़ता है जो किसी एक फर्म के नियन्त्रण में नहीं हैं। ।

(ii) ग्राहक (Customers) व्यावसायिक उद्यम का उद्देश्य लाभ उपार्जन करना होता है। इसके लिए उसे उत्पादित वस्तु (वस्तुओं) को बेचना होता है। अतः उद्यमी का एक प्रमुख कार्य ग्राहकों को आकृष्ट करना होता है। अल्पाधिकारी फर्मों के अनेक उद्देश्यों में से एक उद्देश्य विक्री को अधिकतम करना (Sales maximisation) हो सकता है। व्यावसायिक उद्यम के ग्राहक, अनेक तरह के होते हैं, जैसे—व्यक्ति,थोक विक्रेता, खुदरा विक्रेता, निवेशकर्ता, लोक संस्थाएं, विदेशी ग्राहक आदि। ग्राहक एक हो सकता है, जैसे—सरकार, या कुछ या अनेक। उद्यमी केवल ग्राहकों की संख्या बढ़ाने पर ध्यान नहीं देता है बल्कि इस बात की भी कोशिश करता है कि वे उद्यम के साथ स्थिर रूप से जुड़े रहें।

(iii) पूर्तिकर्ता (Suppliers) व्यावसायिक उद्यमियों का कार्य है इनपुट को उत्पत्ति में बदलना। इसलिए जरूरी है कि उन्हें सभी प्रकार के इनपुट्स (inputs) नियमित रूप से तथा उचित कीमतों पर प्राप्त होते रहें। इनपुट्स के पूर्तिकर्ता के लापरवाही भरा, अविचारित व्यवहार से बचने के लिए ऊर्ध्व एकीकरण (Vertical Integration) की नीति अपनाई जाती है।

(iv) पब्लिक (Public)—पब्लिक या जनता से तात्पर्य वैसे ग्रुप से है जिसे उद्यमी की सफलता में अपना हित दिखता है या जिसके कार्यों का प्रभाव उद्यम की कार्यवाही पर पड़ता है। ऐसे ग्रुप के अन्तर्गत साधारण जनता, ग्राहक संगठन, स्थानीय लोग, सरकार, वित्तीय संस्थाएं, उद्यम में कार्यरत कर्मचारी, मीडिया के लोग, आदि को शामिल किया जा सकता है।

(v) मार्केटिंग चैनल (Marketing Channels)—प्रत्येक फर्म को ऐसे मध्यस्थों (middlemen) की जरूरत होती है जो इसके द्वारा उत्पादित वस्तुओं को बेचने में मदद करें। ऐसे मध्यस्थ एजेण्ट या व्यापारी हो सकते हैं। ये लोग कम्पनी को अपने उत्पाद सही बाजार में बेचने में सहायता करते हैं। इसके लिए विज्ञापन, रेडियो, टी. वी., सलाहकार फर्मों की भी सहायता ली जा सकती है।

कुछ लेखक ऐसा मानते हैं कि व्यष्टि परिदृश्य को निर्धारित करने वाले कारक ऐसे हैं जिन पर उद्यमी का कमोवेश नियन्त्रण हो सकता है। इसलिए वे इन कारकों की चर्चा बाह्य परिदृश्य से अलग रूप में करते हैं तथा व्यावसायिक परिदृश्य को प्रभावित करने वाले कारकों को आन्तरिक तथा बाह्य में विभाजित न करके व्यष्टि तथा समष्टि में बांटते हैं।

Business Environment Economic Component

() समष्टिपर्यावरण (Macro-environment)

इस परिदृश्य में उन कारकों की विवेचना की जाती है जो किसी एक व्यवसाय के नियन्त्रण में नहीं हैं। ये कारक दो प्रकार के हैं :

(A) आर्थिक (Economic), तथा (B) अनार्थिक (Non-Economic)||

(A) आर्थिक कारकों में निम्नलिखित सम्मिलित हैं :

(i) जनसंख्या-सम्बन्धी परिदृश्य, (ii) आर्थिक परिदृश्य, (iii) तकनीकी एवं प्रौद्योगिक परिदृश्य, तथा (iv) अन्तर्राष्ट्रीय परिदृश्य।

(B) अनार्थिक कारक इस प्रकार हैं :

(i) सामाजिक-सांस्कृतिक परिदृश्य, (ii) राजनीतिक व कानूनी परिदृश्य, तथा (iii) भौतिक परिदृश्य।।

इन सभी कारकों का मिला-जला विश्लेषण नीचे किया गया है।

(1) जनसंख्यासम्बन्धी पर्यावरण (Demographic Environment) फर्म पर जनसंख्या का प्रभाव कई। तरह से पड़ता है। जिस देश की जनसंख्या जितनी अधिक होगी उस देश में वस्तु के लिए बाजार उतना ही। अधिक विशाल होगा। लेकिन जनसंख्या का आकार ही सब-कुछ नहीं है। आकार के साथ-साथ जनसंख्या का शिक्षा स्तर, प्रति व्यक्ति आय का स्तर, आय का वितरण, पुरुष-महिला प्रतिशत, उम्र के आधार पर जनसंख्या का वितरण, आदि का भी प्रभाव पड़ता है। इनके अतिारक्त जनसंख्या की वृद्धि दर, रोजगार का स्तर बेरोजगारों की संख्या, आदि भी किसी फर्म की मांग पर प्रभाव डालते हैं।

जनसंख्या की विस्फोटक वृद्धि ने सभी देशों को परेशानी में डाल दिया है, क्योंकि जनसंख्या की तुलना में प्राकृतिक संसाधनों की मात्रा कम पड़ने लगी है। इससे खाद्य आपूर्ति, खनिज भण्डार, जल आपूर्ति, आदि समस्याएं विकट होती जा रही हैं, नगरों में भीड़ बढ़ती जा रही है तथा परिवहन संकट उत्पन्न हो गया है। इन सब के कारण जीवन की गुणवत्ता (Quality of life) में हास हो रहा है। विकासशील देशों में जनसंख्या की तीव्र वृद्धि तथा निम्न स्तर की उत्पादकता के कारण यह समस्या और भी गम्भीर हो गई है। ।

(2) भौतिक पर्यावरण (Physical Environment) एक महत्वपूर्ण अवधारणा यह है कि भौतिक परिदृश्य किसी देश के आर्थिक विकास का प्रमुख निर्धारक तत्व है। भौतिक परिदृश्य में देश के प्राकतिक साधन, उनका वितरण, भूमि की उपजाऊ शक्ति, जल, वायु, जंगल, पहाड़, खनिज, आधारिक संरचना आदि शामिल हैं। ध्यान से देखने पर पता चलता है कि विकासशील देश या तो उष्ण कटिबन्ध में हैं या अति शीत जलवायू वाले क्षेत्र में। अतः प्रश्न उठता है कि क्या आर्थिक विकास का प्रमख निर्धारक भीतिक परिदश्य है? ऐसा कहना सही नहीं होगा कि भौतिक परिदृश्य ही व्यवसाय के विकास के लिए सब कुछ नहीं है। भौतिक वातावरण के साथ-साथ पूंजी की पूर्ति की स्थिति, कुशल श्रमिक,टेक्नोलॉजी, प्रबन्धकीय अनुभव, आदि भी कम महत्वपूर्ण नहीं हैं।

(3) आर्थिक पर्यावरण (Economic Environment) व्यावसायिक उद्यम मख्य रूप से एक आर्थिक संगठन है। इसलिए इसका विकास अन्ततः आर्थिक वातावरण पर निर्भर करता है। अनकल आर्थिक परिदृश्य मददगार सिद्ध होता है जबकि प्रतिकूल वातावरण उद्यमों के विकास को कुण्ठित कर देता है। आर्थिक परिदृश्य के प्रमुख अंग—कृषि नीति, औद्योगिक नीति, वित्तीय नीति, व्यापार नीति, मौद्रिक एवं राजकोषीय नीति, आर्थिक संरचना, बचत एवं निवेश नीति, सरकार की आर्थिक भूमिका, सार्वजनिक उद्योगों की कुशलता, सरकारी नियन्त्रण, प्रतिस्पर्धा की स्थिति, विदेशी पूंजी तथा निवेश सम्बन्धी नीति, आदि हैं। स्पष्ट है कि आर्थिक परिदृश्य अत्यन्त विस्तृत है, बहुआयामी है तथा व्यवसाय के प्रायः सभी पहलुओं से सम्बन्ध रखता है।

(4) सामाजिक वातावरण (Social Environment) सामाजिक वातावरण वस्तुतः निजी वातावरण का विपरीत (opposite) है। समाज एक मानवीय संस्था है जिसका सम्बन्ध उन सभी व्यक्तियों से होता है जो इसमें रहते हैं। सामाजिक शब्द का दायरा इतना बड़ा है कि इसमें परिवार, जाति, ग्रामीण, आधुनिक बुद्धिजीवी, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक, शैक्षणिक, सांस्कृतिक एवं कल्याण सभी का समावेश हो जाता है। सामाजिक वातावरण समाज की प्रवृत्तियों, इच्छाओं, आकांक्षाओं, शिक्षा एवं बौद्धिक स्तर, मूल्य, विश्वास, रीति-रिवाज, परम्पराओं, आदि घटकों से निर्मित होता है।

व्यवसाय एक सामाजिक संस्था है। इसलिए यह सामाजिक वातावरण से प्रभावित होता है तथा इसे प्रभावित करता भी है। सामाजिक वातावरण के निर्माण में निम्न तत्वों का प्रभाव पड़ता है :

  • जनसंख्या का आकार तथा संरचना;
  • परिवार की संरचना कार्य के प्रति धारणा
  • कार्य करने की इच्छा, श्रम के प्रति धारणा, आदि:
  • प्रबन्धकों के प्रति समाज का दृष्टिकोण : अनुकूल और स्वीकारात्मक या प्रतिकूल तथा दोषपूर्ण:
  • समाज का सोच : रूढ़िवादी अर्थात् अन्धविश्वासी या वैज्ञानिक एवं तर्कयुक्त। वैज्ञानिक सोच ही व्यवसाय के विकास में सहायक होती है;
  • अधिकारों, दायित्वों के प्रति समाज के निष्ठावान होने पर व्यवसाय के विकास पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है;
  • साहसी या उद्यमी यदि जोखिम उठाने के लिए तत्पर हों, तो व्यवसाय के विकास को बल मिलता है।।

किस प्रकार की वस्तुओं का उत्पादन किया जाएगा तथा बाजार में उतारा जाएगा, बाजार की रणनीति. व्यवसाय का संगठन, कीमतों तथा आदर्शों पर सामाजिक वातावरण का प्रभाव पड़ता है।

दूसरी ओर, सामाजिक व्यवस्था एवं वातावरण भी व्यावसायिक क्रियाओं से प्रभावित होते हैं। व्यवसाय का संगठन, व्यवसाय का परिचालन, नव प्रवर्तन, सूचना का प्रसार एवं प्रचार, नए विचार, आदि सभी सामाजिक वातावरण को प्रभावित करते हैं। अल्पकाल में सामाजिक वातावरण के अनेक तत्वों को परिवर्तिता करना सम्भव नहीं होता है। अतः व्यवसाय को मौजूदा सामाजिक वातावरण के अनुकूल ही समायोजन करना होता है।

Business Environment Economic Component

(5) सांस्कृतिक वातावरण (Cultural Environment)—किसी राष्ट्र की संस्कृति कला, साहित्य, रीति-रिवाज़, खान-पान, जीवन शैली, आदि से परिलक्षित होती है। संस्कृति से व्यक्ति का मानसिक दृष्टिकोण भी स्पष्ट होता है। नारी के प्रति दृष्टिकोण भी किसी समाज के सांस्कृतिक मूल्यों को दर्शाता है। सामाजिक वातावरण का दायरा इतना बड़ा एवं विशाल है कि सांस्कृतिक वातावरण वस्तुतः इसी में समा जाता है।

सामाजिक तथा सांस्कृतिक वातावरण आर्थिक विकास को प्रभावित करता है। व्यावसायिक उद्यम धार्मिक तथा सांस्कृतिक परम्पराओं से प्रभावित हुआ है। पाश्चात्य शिक्षा तथा सभ्यता में अन्धविश्वास का स्थान तर्क तथा सन्देहवाद ने ले लिया। इसलिए इस वातावरण में व्यवसाय को पनपने, फूलने और फलने का अच्छा अवसर मिला। नई-नई वस्तुओं का आविष्कार हुआ तथा श्रम की गरिमा को लोगों ने समझा। परिणामतः नए-नए उद्यमों की स्थापना हुई। इससे नवीन आवश्यकताएं बढ़ी, सामाजिक मूल्यों में परिवर्तन आए और उपभोक्तावाद का जन्म हुआ। इस बदले हुए परिदृश्य में व्यावसायिक उद्यमों को ढालना पड़ा।

(6) राजनीतिक कानूनी पर्यावरण (Political and Legal Environment)—व्यवसाय तथा राजनीतिक-सह-कानूनी परिदृश्य में घनिष्ठ सम्बन्ध है। राजनीतिक एवं कानूनी परिदृश्य समाज के आर्थिक एवं सामाजिक लक्ष्यों, विचारधाराओं तथा मूल्यों के आधार पर निर्मित होता है। एक कल्याणकारी राज्य में उपभोक्ताओं, बेरोजगार लोगों, निर्धनों, अवकाश प्राप्त कर्मचारियों तथा बूढ़े लोगों के हित की रक्षा के लिए कदम उठाया जाता है। इन कदमों का प्रभाव व्यावसायिक उद्यमों की संरचना तथा वृद्धि दर पर पड़ता है। उद्यमों को सरकार द्वारा पारित नियमों तथा अधिनियमों की सीमा के अन्दर क्रिया करनी पड़ती है। यदि ऐसे नियम एवं अधिनियम उद्यमों के विकास के हित में हैं तथा उन्हें प्रोत्साहित करते हैं, तो व्यवसाय पर इनका अनुकूल प्रभाव पड़ेगा। इसलिए आर्थर लेविस का कहना है कि “सरकार का व्यवहार आर्थिक क्रियाओं के प्रोत्साहन एवं हतोत्साहन में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।” राजनीति तथा कानून के अन्तर्गत ही सरकार तथा उसका व्यवहार आ जाता है। इसलिए सरकार को बुद्धिमत्ता से कार्य करना जरूरी है। लेविस को एक बार फिर उद्धृत करते हुए कहा जा सकता है कि “कोई भी राष्ट्र समझदार सरकार के सकारात्मक एवं रचनात्मक प्रेरणा के बिना आर्थिक विकास नहीं कर सका है।”

समझदार सरकार तथा रचनात्मक प्रेरणा के साथ-साथ राजनीतिक स्थिरता भी जरूरी है ताकि व्यवसाय का निर्बाध विकास हो सके।

(7) तकनीकी पर्यावरण (Technological Environment) आर्थिक विकास की गति में वृद्धि लाने के लिए पूंजी संचय के साथ-साथ उन्नत तकनीक का उपयोग भी जरूरी है। वस्तुतः तकनीकी उन्नति (Progress) पर ही दीर्घकालीन विकास निर्भर करता है, क्योंकि यह श्रम, पूंजी तथा अन्य साधनों की उत्पादकता में वृद्धि लाती है। कजनेटस (Kuznets) ने तकनीकी उन्नति के पांच स्वरूपों की बात कही है, यथा—(a) वैज्ञानिक खोज, (b) नव प्रवर्तन, (c) आविष्कार, (d) सुधार तथा (e) नवप्रवर्तन का प्रसार। __जो व्यवसाय तकनीकी परिवर्तनों के साथ-साथ अपने को उसी अनुरूप ढाल नहीं सकता है वह पिछड़। जाता है। पिछले चार-पांच दशकों में तकनीकी प्रगति बहुत तेजी से हुई है, विशेषकर सचना के क्षेत्र में जो व्यवसाय इस प्रगति के साथ कदम-से-कदम मिलाकर नहीं चल सकेगा, वह दौड़ (race) में पिछड जाएगा।

(8) अन्तर्राष्ट्रीय वातावरण (International Environment) कुछ व्यवसाय ऐसे हैं जो किसी एक देश की सीमा के अन्तर्गत सीमित न होकर कई देशों में फैले होते हैं, जैसे—आयात-निर्यात, कच्ची सामग्री तथा मशीनी पूर्जी का आयात, तेल, आदि। ऐसे उद्योग अन्तर्राष्ट्रीय वातावरण से अधिक प्रभावित होते हैं। अन्तर्राष्ट्रीय वातावरण में आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, भौतिक,वैधानिक, आदि सभी वातावरण शामिल हैं अनेक देशों के परिप्रेक्ष्य में परिवहन तथा संचार के क्षेत्र में जो क्रान्ति हुई है उसके परिणामस्वरूप विश्व बहुत छोटा गया है, यह पृथ्वी एक विशाल गांव हो गई है।

वर्तमान खुली अर्थव्यवस्था के दौर में अन्तर्राष्ट्रीय वातावरण का प्रभाव न केवल घरेलू कम्पनियों पर पडता है, अपितु बहुराष्ट्रीय कम्पनियों पर भी। घरेलू कम्पनी को भी कच्ची सामग्री दूसरे देशों से मंगानी पड़ सकती है तथा अपने कुल उत्पादन का एक हिस्सा बड़ा या छोटा विदेशी बाजार में बेचने के लिए हो सकता है। अतः जिन देशों के बाजार में निर्यात करता है उनके व्यावसायिक वातावरण आर्थिक एवं अनार्थिक का प्रभाव इस निर्यात पर पड़ सकता है। तेल उत्पादक देशों की मूल्य नीति का प्रभाव तेल आयातक देशों की भी व्यावसायिक क्रियाओं पर पड़ता है।

1990 में मैककिन्से (McKinsey) ने जापान, जर्मनी तथा अमरीका (USA) के नौ उद्योगों की सापेक्ष उत्पादकता का अध्ययन किया। अध्ययन से यह जानकारी मिली कि जापान में विनिर्माण उद्योगों में उत्पादकता अमरीका की तुलना में 17 प्रतिशत कम थी तथा जर्मनी में यह उत्पादकता अमरीकी उत्पादकता की तुलना में 21 प्रतिशत कम थी। ऐसे अन्तर का कारण उत्पादन का पैमाना (Scale of Production), तकनीकी तथा श्रमिकों की कुशलता नहीं था।

मैककिन्से के अध्ययन की सबसे अधिक महत्वपूर्ण जानकारी थी भूमण्डलीकरण (Globalisation) का महत्व। इसका अर्थ है विशेष उद्योगों के शीर्ष नेताओं के साथ प्रतिस्पर्धा। अध्ययन से पता चला है कि

ओटोमोबाइल उद्योग में जापानी श्रमिकों की उत्पादकता अमरीकी श्रमिकों से अधिक थी। इसलिए जब जापान ने अमरीका में ओटोमोबाइल प्लाण्ट लगाने में सीधा निवेश करना शुरू किया तो इन कारखानों की उत्पादकता में नाटकीय सुधार हुआ। इस सुधार के दो कारण थे—उन्नत तकनीकी का उपयोग तथा प्रतिस्पर्धा में वृद्धि।

इस अध्ययन से यह निष्कर्ष निकलता है कि अन्तर्राष्ट्रीय परिदृश्य घरेलू व्यवसाय की उन्नति में पर्याप्त सहायक हो सकता है। इसके लिए जरूरी है कि व्यापार, पूंजी तथा विचारों को सर्वाधिक उन्नत देशों से प्राप्त करने के लिए बाजार को खुला छोड़ देना तथा सबसे अधिक उन्नत तकनीकी के अनुरूप अपने को ढालने वाली कम्पनियों के साथ प्रबल मुकाबला करने की अनुमति।

अन्तर्राष्ट्रीय परिदृश्य का सम्बन्ध विदेश नीति, प्रतिरक्षा नीति, विदेशी विनिमय नीति, अन्तर्राष्ट्रीय सन्धियों, अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार समझौतों, विदेशी आर्थिक मन्दी, संरक्षण नीति, आदि से है। अन्तर्राष्ट्रीय परिदृश्य स्थिर नहीं है; यह हमेशा बदलता रहता है। इस बदलाव के साथ व्यावसायिक उद्यमों को भी बदलते रहना तथा समायोजन करना होता है।

Business Environment Economic Component

व्यावसायिक पर्यावरण के घटक

(COMPONENTS OF BUSINESS ENVIRONMENT)

व्यावसायिक परिदृश्य कई घटकों (components) का योग है। इसकी दूसरी विशेषता यह है कि इसमें प्रतिपल परिवर्तन होता है।

व्यावसायिक परिवेश के निम्नलिखित प्रमुख घटक हैं:

(1) आर्थिक घटक (Economic Component) इसके अन्तर्गत उन आर्थिक घटनाओं तथा क्रियाओं की विवेचना की जाती है जिनका प्रभाव व्यावसायिक परिवेश पर पड़ता है। दूसरे शब्दों में, इन घटनाओं तथा क्रियाओं एवं इनमें होने वाले परिवर्तनों का प्रभाव व्यवसाय के परिचालन तथा कार्यकुशलता पर पड़ता है। प्रमुख आर्थिक घटक हैं—आर्थिक नीतियां, मांग और पूर्ति की स्थिति तथा इनमें होने वाले परिवर्तन, बचत एवं निवेश की स्थिति एवं इनमें होने वाले परिवर्तन, आयात-निर्यात की स्थिति एवं प्रवृत्ति, आदि।

(2) भौगोलिक घटक (Geographical Component)-इसके अन्तर्गत प्राकृतिक संसाधन; जैसेखनिज, पर्यावरण, जलवायु, भूमि की संरचना, जंगल, पहाड़, आदि की विवेचना की जाती है।

(3) सामाजिक एवं सांस्कृतिक घटक (Social and Cultural Component) सामाजिक घटकों के अन्तर्गत उन सामाजिक परम्पराओं. प्रवत्तियों, रीति-रिवाजों, आकांक्षाओं, शिक्षा का स्तर, सामाजिक मूल्यो। आदि की विवेचना की जाती है जिनका प्रभाव व्यावसायिक परिवेश पर पड़ता है। उदाहरणार्थ, पश्चिमी देशों का तीव्रतर आर्थिक विकास प्रोटेस्टेंट धर्म के प्रचार से घनिष्ट रूप से जुड़ा है।

समाज के सांस्कृतिक मूल्यों का प्रभाव देश के व्यावसायिक वातावरण पर पड़ता है। ऐसे मूल्यों का प्रभाव श्रमिकों के श्रम करने की इच्छा तथा क्षमता पर भी पड़ता है जिससे अन्ततः व्यावसायिक वातावरण प्रभावित होता है। संस्कृति का क्षेत्र काफी विशाल है। इसके अन्तर्गत कला, साहित्य, जीवन शैली, मानवीय आकांक्षा, ज्ञान, विश्वास, परम्परा, रीति-रिवाज, आदर्श, सामाजिक प्राथमिकताएं, आदि शामिल हैं।

(4) राजनीतिक एवं प्रशासकीय घटक (Political and Administrative Component) व्यावसायिक वातावरण पर राजनीतिक विचारधारा तथा प्रशासकीय व्यवस्था का प्रभाव पड़ता है। इसलिए इन्हें एक घटक के रूप में देखा जाता है। प्रजातान्त्रिक व्यवस्था में शासनतन्त्र सार्वजनिक कल्याण के हित में कार्य करता है। इस परिवेश में लोग स्वेच्छा से आर्थिक विकास के कार्यों में भाग लेते हैं। इसके विपरीत साम्यवादी एवं तानाशाही देशों में लोगों पर दवाब डाला जाता है, उन्हें बाध्य किया जाता है। बाध्यता की स्थिति में श्रम करने के प्रति वह रुचि नहीं रहती है जो प्रजातान्त्रिक देशों में रहती है। जब लोगों को यह जानकारी रहती है कि प्रशासन उनके हित में ही काम करेगा, तब ऐसे प्रशासन को लोगों का स्वयं सहयोग मिलने लगता है। इन सबका व्यावसायिक वातावरण पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है। इसलिए यह एक महत्वपूर्ण घटक बन जाता है।

(5) वैधानिक घटक (Legal Component) न्याय व्यवस्था, सम्पत्ति पर अधिकार सम्बन्धी कानून, उत्तराधिकार नियम, श्रम कानून, श्रम-संघ सम्बन्धी अधिनियम, आदि इस वर्ग के घटक हैं। ऐसे घटकों का यदि व्यावसायिक वातावरण पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है, तो निश्चित रूप से यह वातावरण आर्थिक विकास के लिए सहायक होगा।

(6) विज्ञान एवं प्रौद्योगिक घटक (Scientific and Technological Component)-व्यवसाय के लिए हितकर वातावरण वह है, जो विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के विकास को प्रमुखता देता है।

Business Environment Economic Component

(7) अन्तर्राष्ट्रीय परिवेश (International Environment)-आज किसी भी देश की अर्थव्यवस्था बन्द अर्थव्यवस्था (Closed Economy) नहीं है, बल्कि खुली (Open) है। एक देश का दूसरे के साथ व्यापारिक, वाणिज्यिक, तकनीकी, आदि सम्बन्ध है। यदि अन्तर्राष्ट्रीय स्थिति अनुकूल रहती है, तो देश की घरेलू आर्थिक स्थिति के लिए व्यावसायिक वातावरण सहयोगपूर्ण होगा। इसलिए विदेशी परिवेश भी एक महत्वपूर्ण घटक बन गया है, खासकर भूमण्डलीकरण के नए युग में।

वातावरण के विभिन्न घटक जो व्यवसाय को प्रभावित करते हैं तथा इन घटकों की विशेषताओं को, संक्षेप में, निम्न प्रकार से रखा जा सकता है : व्यवसाय को प्रभावित करने वाले वातावरण सम्बन्धी कारक एवं उनकी विशेषताएं :

व्यवसाय को प्रभावित करने वाले वातावरण सम्बन्धी कारक

(i) आर्थिक वातावरण, (ii) सामाजिक-सांस्कृतिक वातावरण , (iii) राजनीतिक एवं कानूनी वातावरण, (iv) तकनीकी वातावरण, (v) भौगोलिक एवं पारिस्थितिकी वातावरण, (vi) जनसंख्या-सम्बन्धी, (vii) भूमण्डलीय। वातावरण सम्बन्धी कारकों की विशेषताएं

(1) आर्थिक वातावरण (Economic Environment)

  • विकास की रणनीति;
  • आर्थिक व्यवस्था:
  • उद्योग;
  • कृषि
  • आधारिक संरचना:
  • मुद्रा एवं पूंजी बाजार:
  • राष्ट्रीय एवं प्रति व्यक्ति आय;
  • जनसंख्या;
  • आर्थिक नीति।
  • व्यावसायिक पर्यावरण (वातावरण)

(ii) सामाजिकसांस्कृतिक वातावरण (Socio-cultural Environment)

  • व्यवसाय एवं श्रम के प्रति लोगों का दृष्टिकोण;
  • जाति प्रथा;
  • सहयोग के प्रति धारणा
  • शिक्षा:
  • परिवार एवं विवाह;
  • वैज्ञानिक दृष्टिकोण की स्थिति;
  • नैतिकता
  • सामाजिक दायित्व
  • सामाजिक अंकेक्षण।

(iii) राजनीति एवं कानूनी वातावरण (Politico-legal Environment)

  • विधानसभा की भूमिका;
  • कार्यकारिणी की भूमिका;
  • न्यायपालिका की भूमिका;
  • .देश का संविधान
  • राज्य की भूमिका
  • राज्य की आर्थिक नीति;
  • श्रम-सम्बन्धी कानून।

(iv) तकनीकी वातावरण (Technological Environment)

  • तकनीकी का स्तर:
  • वैज्ञानिक खोज;
  • नव-प्रवर्तन
  • आविष्कार;
  • सुधार;
  • नव-प्रवर्तन का प्रसार;
  • उत्पादकता की स्थिति।

(v) भौगोलिक एवं पारिस्थितिकी वातावरण (Geographical and Ecological Environment)

  • प्राकृतिक संसाधन
  • जलवायु: .
  • मौसम:
  • स्थल आकृति;
  • बन्दरगाह की सुविधा।

(vi) जनसंख्या सम्बन्धी (Demographic)

  • जनसंख्या का आकार;
  • जनसंख्या की वृद्धि दर;
  • उम्र के आधार पर जनसंख्या की रचना:
  • धर्म, जाति, आदि के आधार जनसंख्या की
  • रचना:
  • परिवार का आकार;
  • आय का स्तर
  • प्रति व्यक्ति आय।

(vii) भूमण्डलीय (Global)

  • व्यापार नीति
  • बहुराष्ट्रीय कम्पनियां;
  • पूंजी तथा तकनीकी हस्तान्तरण;
  • अन्तर्राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय मौद्रिक एवं व्यापारिक समझौते।

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अनार्थिक पर्यावरण (Non-economic Environment)

व्यावसायिक वातावरण के बाह्य पक्ष पर आर्थिक एवं अनार्थिक कारकों का प्रभाव पड़ता है। इसलिए आर्थिक एवं अनार्थिक वातावरण की विवेचना की जाती है। अनार्थिक वातावरण की विवेचना में निम्नलिखित शामिल हैं :

(i) भौतिक वातावरण (Physical Environment)—यह व्यवसाय के संचालन का प्रमुख आधार है। वस्तुतः व्यवसाय और प्रकृति के मध्य गहरा सम्बन्ध है। इसमें निम्नलिखित शामिल हैं :

  • प्राकृतिक साधन जैसे—भूमि, खनिज, जल, आदि।
  • जलवायु अर्थात् तापमान, वर्षा, टण्डक, नमी, आदि।।
  • प्राकृतिक संरचना जैसे—विद्युत्, सड़क मार्ग, रेल मार्ग, अन्य यातायात, आदि।

(ii) सामाजिक वातावरण (Social Environment)—चूंकि व्यवसाय एक सामाजिक संस्था है, अतः इस पर सामाजिक वातावरण, जैसे जनसंख्या, परिवार, जनता की दायित्व भावना, कार्य के प्रति धारणा. प्रबन्धकीय दृष्टिकोण, समाज की परम्परा के प्रति धारणा, सामाजिक मूल्यों, आदि का प्रभाव पड़ता है।।

(iii) राजनीतिक वातावरण (Political Environment) यहां सरकार की राजनीतिक धारणा । राजनीतिक स्थिरता, विदेश नीति, शासन व्यवस्था, आदि की विवेचना की जाती है।

(iv) वैधानिक वातावरण (Legal Environment)—व्यवसाय तभी सम्भव है जब व्यवसाय से प्राप्त लाभ-हानि की रक्षा के लिए समुचित वैधानिक व्यवस्था हो । व्यक्तियों को सम्पत्ति अर्जित करने तथा रखने का वैधानिक अधिकार होना चाहिए। उसी तरह श्रमिकों के अधिकार की रक्षा के लिए भी कानून होना चाहिए। निजी सम्पत्ति का कानूनी अधिकार जरूरी है। विवाद के निपटारे के लिए निष्पक्ष एवं स्वतन्त्र न्याय व्यवस्था। भी आवश्यक है।

(v) अन्य (Others) तकनीकी अथवा प्रौद्योगिक वातावरण ऐसा होना चाहिए जो तकनीकी विकास में सहायक हो। इसके लिए उचित शैक्षिक वातावरण तथा वैज्ञानिक मानसिकता के सृजन की जरूरत है। इनके लिए जरूरी है कि सामाजिक, सांस्कृतिक, नैतिक मूल्य व्यवसाय की प्रगति के अनुकूल हो।

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आर्थिक वातावरण

(ECONOMIC ENVIRONMENT)

व्यवसाय के लिए आर्थिक वातावरण के महत्व को देखते हुए इसकी नीचे विस्तार से विवेचना की गई है। इसे दो भागों में बांट कर घरेलू व्यवसाय तथा अन्तर्राष्ट्रीय व्यवसाय के लिए अलग-अलग व्याख्या की

(1) घरेलू (Domestic) व्यवसाय का आर्थिक वातावरण

आधुनिक अर्थव्यवस्था को पांच प्रमुख क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है, यथा व्यावसायिक क्षेत्र (Business sector), पारिवारिक क्षेत्र (Household sector), पूंजी बाजार (Capital market), सरकार (Government) तथा बाह्य क्षेत्र (External sector, that is, the foreign trade sector) व्यावसायिक क्षेत्र का अन्य चार क्षेत्रों के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध है और पांचों मिलकर अर्थव्यवस्था का ढांचा तैयार करते हैं। इसी आर्थिक ढांचे के अन्तर्गत व्यावसायिक फर्म अपनी क्रियाओं का संचालन करती है। एक फर्म अपनी व्यक्तिगत क्रिया से आर्थिक वातावरण को बदल नहीं सकती है, लेकिन सामूहिक रूप से क्रिया करते हुए ये फर्म आर्थिक वातावरण अपने अनुकूल परिवर्तित कर सकती हैं। इसलिए आर्थिक वातावरण के अध्ययन में समष्टि आर्थिक वातावरण (Macro-economic environment) पर ही प्रमुख रूप से ध्यान दिया जाता है।

किसी देश के आर्थिक वातावरण का निर्माण किन तत्वों (factors) से होता है उनकी सही-सही जानकारी प्राप्त करना आसान नहीं है, क्योंकि राजनीतिक, आर्थिक तथा तकनीकी वातावरण को अलग करना मुश्किल कार्य है। फिर भी आर्थिक वातावरण के निर्माण में निम्न कारकों का प्रभाव देखा जा सकता है।

(a) आर्थिक प्रणाली (Economic system);

(b) आर्थिक विकास (Economic Development);

(c) समष्टि आर्थिक नीतियां (Macro-economic policies), मौद्रिक नीति (Monetary policy), बजट नीति (Budget policy), वित्तीय नीति (Financial policy), व्यापार नीति (Trade policy), औद्योगिक नीति (Industrial policy);

(d) मुद्रास्फीति (Inflation) आदि।

(a) आर्थिक प्रणाली आर्थिक प्रणालियों को सामान्यतः तीन वर्गों में विभाजित किया जाता है—पूंजीवादी अर्थव्यवस्था (Capitalism), समाजवादी अर्थव्यवस्था (Socialism) तथा मिश्रित अर्थव्यवस्था (Mixed economy)|

पूंजीवादी अर्थव्यवस्था इस अर्थव्यवस्था को बाजार अर्थव्यवस्था (Market economy) भी कहा जाता है। इस अर्थव्यवस्था में दो आर्थिक इकाइयों व्यक्ति या परिवार तथा व्यवसाय या कम्पनी की प्रमुख भूमिका होती है। व्यक्ति आर्थिक साधनों के स्वामी होने के साथ-साथ वस्तुओं तथा सेवाओं के उपभोक्ता भी होते है।। कम्पनी आर्थिक साधनों का उपयोग कर वस्तुओं का निर्माण करती है। बाजार तन्त्र द्वारा साधनों और उत्पाद । के लिए कीमत, परिमाण, पूर्ति तथा मांग की अन्तक्रिया होती है जिसमें :

  • यदि पर्याप्त मजदूरी दी जाए तो श्रमिक अपना श्रम प्रदान करेगा:
  • यदि कीमत स्वीकृत सीमा के अन्दर हो तो वस्तुओं का उपयोग किया जाता है;

उपलब्ध श्रमिकों के परिमाप के आधार पर व्यावसायियों द्वारा मजदूरी का निर्धारण किया जाता है। व्यक्तियों तथा व्यावसायियों की लगातार अन्तक्रियाओं के परिणामस्वरूप साधनों का आवण्टन होता है। बाजार अर्थव्यवस्था दो सिद्धान्तों के आधार पर क्रिया करती है :

  • उपभोक्ता की सार्वभौमिकता (Consumer Sovereignty) अर्थात् कौन वस्तु खरीदी जाएगी इस सम्बन्ध में निर्णय लेने का अधिकार उपभोक्ता के पास होना; तथा
  • बाजार में क्रिया करने के लिए व्यवसायी को स्वतन्त्रता।

 

जब तक व्यक्ति एवं व्यवसाय दोनों को ही आर्थिक निर्णय लेने की स्वतन्त्रता रहती है, पूर्ति तथा मांग की अन्तक्रिया द्वारा साधनों का उचित आबण्टन होगा। इस अर्थव्यवस्था की प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं:

  • आर्थिक स्वतन्त्रता
  • बाजार का प्रभुत्व
  • अधिकांश आर्थिक साधनों पर निजी स्वामित्व (Private ownership);
  • लाभ की प्रेरणा (Profit motive); तथा
  • कुछ साधनों पर सरकार का स्वामित्व हो सकता है, लेकिन अल्प मात्रा में।

समाजवादी अर्थव्यवस्था यहां विभिन्न आर्थिक क्षेत्रों की क्रियाओं का समन्वय (co-ordination) सरकार द्वारा योजना के माध्यम से किया जाता है। अधिकांश आर्थिक साधनों पर सरकार का स्वामित्व होता है। सरकार ही सभी उद्यमों के लक्ष्यों को निर्धारित करती है। किन वस्तुओं का उत्पादन किया जाएगा, किनके द्वारा किया जाएगा तथा किनके लिए किया जाएगा इनका निर्धारण सरकार द्वारा किया जाता है। इस प्रकार समाजवादी अर्थव्यवस्था में बाजार तन्त्र का स्थान केन्द्रीय योजना द्वारा ग्रहण कर लिया जाता है। हाल ही में सोवियत रूस तथा पूर्वी यूरोप में जो परिवर्तन हुए हैं उनके बाद शायद ही किसी देश में केन्द्रीय योजना का उपयोग हो रहा है।

मिश्रित अर्थव्यवस्था वस्तुतः आज कोई भी अर्थव्यवस्था न तो पूर्ण रूप से बाजार पर निर्भर है और न ही पूर्णतः केन्द्रीय योजना पर। आज की अर्थव्यवस्था मिश्रित अर्थव्यवस्था है जिसमें बाजार तन्त्र के साथ-साथ सरकारी हस्तक्षेप भी पाया जाता है अर्थात् अर्थव्यवस्था का कुछ भाग उन्मुक्त (free) होता है तथा कुछ भाग उन्मुक्त नहीं (not free) होता है।

निजी व्यवसाय के पनपने के लिए सहायक आर्थिक वातावरण वह है जहां नागरिकों को सम्पत्ति का अधिकार प्राप्त है, जीविका उपार्जन की स्वतन्त्रता है, व्यवसाय के परिचालन की स्वतन्त्रता है, आय के निवेश पर अंकुश नहीं है, विदेशी व्यापार की स्वतन्त्रता है तथा सरकारी हस्तक्षेप न्यूनतम है। स्पष्ट है कि बाजार तन्त्र पर आधारित पूंजीवादी अर्थव्यवस्था इसके लिए अधिक उपयुक्त है, किन्तु आज का पूंजीवाद उन्नीसवीं सदी की बाजार अर्थव्यवस्था से काफी भिन्न है। राज्य की नियामक भूमिका (Regulatory role) में काफी वृद्धि हुई है। राज्य की यह भूमिका व्यवसाय के लिए मददगार वातावरण तैयार करती है।

(b) आर्थिक विकास—व्यावसायिक वातावरण के सन्दर्भ में आर्थिक विकास की भूमिका बहुआयामी है। विकास की ऊंची दर अनुकूल वातावरण प्रस्तुत करती है। विकास की रणनीति निजी निवेश के लिए सहायक हो सकती है या बाधा उपस्थित कर सकती है। विकास की हस्तक्षेपी रणनीति (Interventionist strategy) जिसमें राज्य तथा सार्वजनिक क्षेत्र को महत्वपूर्ण भूमिका प्रदान की जाती है, निजी निवेश के लिए उचित वातावरण का निर्माण नहीं करती है। प्रतिस्पर्धा के अभाव में सार्वजनिक उद्यमों में उत्पादन लागत बढ़ जाती है तथा घटिया क्वालिटी की वस्तुओं का उत्पादन होता है।

(c) समष्टि आर्थिक नीतिमौद्रिक नीति, बजट अर्थात् राजकोषीय नीति, वित्तीय नीति, व्यापार नीति, औद्योगिक नीति, आदि की भी भूमिका व्यवसाय के लिए आर्थिक वातावरण के निर्माण में काफी महत्वपूर्ण है। इनका प्रभाव मौद्रिक बाजार (अल्पकालीन ऋण के बाजार), पूंजी बाजार (दीर्घकालीन ऋण के बाजार), आयात-निर्यात, आदि पर पड़ता है। इन बाजारों के कठोर सरकारी नियन्त्रण से प्रतियोगिता का गला घट जाता है तथा व्यवसाय के लिए आर्थिक वातावरण अवरोधक बन सकता है।

(d) मद्रास्फीतिमुद्रास्फीति आर्थिक वातावरण का वह आयाम है जो व्याज दरों, विनिमय दरों । जीवन स्तर की लागत तथा देश की राजनीतिक एवं आर्थिक व्यवस्था पर विश्वास को प्रभावित करती हानी से बढ़ती कीमतों के कारण राजनीतिक अस्थिरता उत्पन्न हो सकती है। इसका प्रभाव ब्याज दरों तथा आयात। एवं निर्यात के द्वारा भुगतान शेष पर भी पड़ सकता है।।

(2) अन्तर्राष्ट्रीय व्यवसाय का आर्थिक वातावरण

यहां हम इस बात की विवेचना करेंगे कि जब कोई कम्पनी इस पर विचार करती है कि विश्व में कहां कारखाने खोले जाएं तथा वस्तुओं को बेचा जाए, तब उसे किन-किन विषयों पर ध्यान देना होगा। इसके। लिए उसे उन देशों की आर्थिक तथा राजनीतिक वातावरण की जानकारी प्राप्त करनी होगी। इन अनुच्छेदों में। हम केवल आर्थिक वातावरण का विवेचन प्रस्तुत करेंगे। इसके लिए :

  • देश की आर्थिक रणनीति की जांच करनी होगी।
  • सरकार का आचरण कैसा था, कैसा है तथा कैसा रहेगा, इस सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करना;
  • राष्ट्रीय लक्ष्यों, प्राथमिकताओं तथा नीतियों को समझना तथा
  • आर्थिक विकास, मुद्रास्फीति तथा बजट एवं व्यापार घाटों के द्वारा आर्थिक निष्पादन की जानकारी प्राप्त करना।

उस देश का आर्थिक वातावरण अन्तर्राष्ट्रीय व्यवसाय के ख्याल से अधिक उपयुक्त है जहां राजनीतिक स्थिरता. निम्न दर पर मद्रास्फीति तथा विकास की ऊंची वास्तविक दर (real rate) पाई जाती है। इन देशों की ओर अन्तर्राष्ट्रीय पूंजी अधिक आकृष्ट होगी।

उदारवादी अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक वातावरण अन्तर्राष्ट्रीय व्यवसाय के विस्तार एवं प्रसार के लिए अधिक उपयुक्त है।

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व्यावसायिक वातावरण की धारणाएं

(CONCEPTS OF BUSINESS ENVIRONMENT)

व्यावसायिक वातावरण पर्याप्त सूचनाएं प्रदान करता है, यद्यपि सभी स्पष्ट जानकारी प्रदान नहीं करता हैं। प्रश्न यह उठता है कि इन लाखों, करोड़ों सूचनाओं—जिनमें सभी स्पष्ट नहीं हैं का क्या किया जाए। किन्हें काम में लाया जाए तथा किन्हें त्याग दिया जाए? वातावरण सम्बन्धी तीन धारणाएं ऐसे प्रश्न के उत्तर के प्रयास हैं। ये हैं

क्रियाशील वातावरण (Enacted Environment), अधिकार-क्षेत्र सम्बन्धी वातावरण (Domain Environment) तथा नियत कार्य सम्बन्धी वातावरण (Task Environment)।

क्रियाशील वातावरण कुल बाह्य वातावरण में से चयन करके व्यवसायी अपने लिए उपयुक्त वातावरण के सृजन का प्रयास करता है। इस प्रकार के अपने लिए सृजित वातावरण को क्रियाशील वातावरण (Enacted Environment) कहा जाता है। इस वातावरण के सूजन का उद्देश्य यह है कि व्यवसायी अपने कार्य को ध्यान में रखते हुए बाह्य वातावरण की बारीक जांच तथा परिसीमन करके अपने कार्यक्षेत्र के अनुकूल वातावरण को बनाता है। ऐसे ही वातावरण में होने वाले परिवर्तनों के प्रति उसकी प्रतिक्रिया होती है, सम्पूर्ण बाह्य वातावरण में होने वाले सभी परिवर्तनों के प्रति नहीं।

अधिकार क्षेत्र सम्बन्धी वातावरणक्रियाशील वातावरण के उस भाग को अधिकार क्षेत्र वातावरण कहा जाता है जिसे व्यवसायी अपने लिए काट लेता है। इस परिसीमित क्षेत्र के अन्दर सभी प्रकार की उत्पादित वस्तुएं, जनसंख्या का वह भाग जिसकी आवश्यकता की पूर्ति की जाती है तथा सेवाएं जो प्रदान की जाती हैं, आती है।

नियत कार्य वातावरणग्राहकों को प्रदत्त उत्पत्तियों के प्रकार, उपयोग में लाए जाने वाली तकनीकी तथा उत्पादन की रणनीति, आदि इसके अन्दर आते हैं। ऐसे वातावरण पर लगातार नजर रखनी पड़ती है।

वातावरण का विश्लेषण (Environmental Analysis) वातावरण के विश्लेषण से हमें मौजूदा वातावरण तथा इसमें होने वाले हर सम्भव परिवर्तनों को समझने में सहायता मिलती है। वर्तमान वातावरण को जानने के साथ-साथ भावी स्थिति का अनुमान भी लगाना पड़ता है। इससे भावी रणनीति को तैयार करने में मदद मिलती है। संक्षेप में कहा जा सकता है कि वातावरण के अध्ययन के निम्न लाभ हैं :

(i) फर्म की रणनीति तय करने तथा दीर्घकालीन नीति निर्धारण में सहायता मिलनाः

(ii) तकनीकी प्रगति के कार्यक्रम को विकसित करने में मदद मिलना:।

(iii) फर्म के स्थायित्व पर राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय व सामाजिक आर्थिक प्रभावों का पूर्वानुमान लगाना।

(iv) प्रतिस्पर्धियों की रणनीति का विश्लेषण तथा प्रभावी जवाब की तैयारी करना तथा

(v) गतिशीलता बनाए रखना।

व्यावसायिक वातावरण के प्रति जागरूक नहीं रहने के भयानक एवं कष्टदायी परिणाम निकल सकते । सम्भव है कि कम्पनी अपने को अजेय मान ले तथा बाजार में क्या घटनाएं घट रही हैं उनकी ओर न तो ध्यान दे और न उनकी जांच करे। इस स्थिति में कम्पनी न तो वातावरण में परिवर्तन के अनसार अपनी रणनीति में समायोजन करेगी और न ही बदलते वातावरण के अनुसार प्रतिक्रिया करेगी। ऐसी कम्पनी को परेशानी में पड़ना स्वाभाविक है।

वातावरण का विश्लेषण कम्पनी को इतना समय प्रदान करता है कि वह अवसरों की जानकारी पहले ही प्राप्त कर ले और उनके अनुसार रणनीति में परिवर्तन करे। यह रणनीति निर्धारकों को एक पूर्व चेतावनी व्यवस्था (early warning system) विकसित करने में मदद देता है ताकि खतरे से बचा सके एवं खतरे को अवसर में बदला जा सके।

प्रबन्ध पर समय का काफी दबाव रहता है। वातावरण के व्यवस्थित अध्ययन एवं विश्लेषण की अनपस्थिति में प्रबन्धक वातावरणीय परिवर्तनों पर पर्याप्त समय नहीं दे पाएंगे। फलतः ऐसे परिवर्तनों का सामना सही ढंग से नहीं हो पाएगा, लेकिन जहां व्यावसायिक पर्यावरण का विश्लेषण होता है वहां प्रबन्धकीय निर्णय अधिक सही होते है। इस स्थिति में प्रबन्धक अन्य महत्वपूर्ण कार्यों पर अधिक समय दे सकेंगे। इसी वजह से विलियम एफ. ग्लुएक तथा लारेंस आर. जॉच (William F. Glueck and Lawrence R. Jauch) ने कहा,

फर्म जो व्यवस्थित रूप से पर्यावरण का विश्लेषण तथा निदान करती हैं, ऐसा नहीं करने वालों की तुलना में अधिक प्रभावी होती हैं।

पर्यावरण से पूरा लाभ प्राप्त करने के लिए उत्पादन के स्तर पर तथा प्रक्रिया-सम्बन्धी विश्लेषण की आवश्यकता है।

(1) उत्पादन के स्तर पर पर्यावरण विश्लेषण को निम्न पर ध्यान देना है :

  • चालू समय में जो परिवर्तन हो रहे हैं उनका वर्णन:
  • भविष्य में होने वाले सम्भावित परिवर्तनों का अग्रदूत;
  • भावी परिवर्तनों की वैकल्पिक व्याख्या।

ऐसी जानकारी के विश्लेषण से बाह्य मुद्दों को समझने तथा तदनुसार समायोजन का समय मिल जाता है तथा खतरों को अवसरों में बदलने का मौका।

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पर्यावरण विश्लेषण की प्रक्रिया

(PROCESS OF ENVIRONMENTAL ANALYSIS)

पर्यावरण विश्लेषण की प्रक्रिया के स्तर पर यह मान लिया जाता है कि बाह्य शक्तियों से फर्म का संगठन प्रभावित होता है, किन्तु याद रहे कि यह विश्लेषण चुनौती भरा, लम्बा (काफी समय लेता है), तथा खर्चीला है। यह विश्लेषण निम्न चार चरणों में होता है :

(1) परीक्षण (Scanning) पर्यावरण विश्लेषण का यह प्रथम चरण है। इसमें पर्यावरण सम्बन्धी सभी-कारकों की सामान्य निगरानी की जाती है तथा इनकी अन्तक्रियाओं पर ध्यान दिया जाता है; ताकि

  • पर्यावरण सम्बन्धी सभी सम्भव परिवर्तनों की शुरू में ही पहचान की जा सके तथा
  • पर्यावरण सम्बन्धी वे परिवर्तन जो घटित हो चुके हैं, को खोज निकाला जा सके।

पर्यावरण विश्लेषण की प्रक्रिया का परीक्षण अच्छा ढांचा प्रस्तुत नहीं करता है तथा अस्पष्ट है। परीक्षण के लिए उपलब्ध आंकड़े न केवल अत्यधिक मात्रा में विद्यमान हैं बल्कि बिखरे हुए, अस्पष्ट तथा सटीक नहीं हैं। ऐसे अस्पष्ट, असम्बद्ध तथा बिखरे हुए आंकड़ों का परीक्षण एक चुनौती भरा कार्य है।

(2) निर्देशन (Monitoring) इसका कार्य वातावरणीय प्रवृत्ति, घटनाक्रम या क्रियाओं के प्रवाह पर। नजर रखना। यह वातावरण के परीक्षण से प्राप्त संकेतों को समझने का प्रयास करता है। निर्देशन का उद्देश्य। पर्याप्त आंकड़े इकट्ठे करना है ताकि यह समझा जा सके कि किसी प्रवृत्ति तथा पैटर्न का उदय हो रहा है। या नहीं। निर्देशन की प्रगति के साथ-साथ अस्पष्ट आंकड़े स्पष्ट एवं सुनिश्चित दिखने लगते हैं। निर्देशन के ये निम्न तीन परिणाम निकलते हैं:

  • वातावरण की प्रवृत्ति तथा पैटर्न, जिनकी भविष्यवाणी करनी है, का सुस्पष्ट विवरण:
  • और आगे निर्देशन के लिए प्रवृत्ति की पहचान; तथा
  • और आगे परीक्षण के लिए क्षेत्रों तथा स्थलों की पहचान।

(3) भविष्यवाणी (Forecasting)—परीक्षण तथा निर्देशन से वह तस्वीर निकलती है जो बन चुकी है तथा बनने जा रही है। रणनीति सम्बन्धी निर्णय भविष्य की ओर देखता है। अतः वातावरण के विश्लेषण में स्वाभाविक रूप से भविष्यवाणी करना आवश्यक अंग बन जाता है। भविष्यवाणी का सम्बन्ध वातावरण सम्बन्धी परिवर्तन की दिशा, क्षेत्र तथा गहनता के विषय में युक्तियुक्त परियोजना को विकसित करना है। प्रत्याशित परिवर्तनों के विकास पथ के निर्माण की कोशिश की जाती है। भविष्यवाणी का सम्बन्ध निम्न प्रश्नों से है :

  • नई तकनीकी को बाजार तक पहुंचने में कितना समय लगेगा?
  • क्या चालू स्टाइल जारी रहने वाला है?
  • परीक्षण तथा निर्देशन से भिन्न, भविष्यवाणी अधिक निगमनात्मक तथा जटिल क्रिया है।

(4) आकलन (Assessment) उपर्युक्त तीनों प्रक्रियाएं—परीक्षण, निर्देशन तथा भविष्यवाणी अपने आप में उद्देश्य नहीं हैं। इन प्रक्रियाओं से प्राप्त परिणामों का आकलन करके व्यवसाय की चालू तथा भावी रणनीतियों को तय करना होता है। आकलन से जिन प्रश्नों के उत्तर देने हैं, वे हैं :

  • वातावरण किन मुख्य मुद्दों को उपस्थित करता है?
  • इन मुद्दों का संगठन के लिए क्या महत्व है?

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प्रश्न

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1 परिदृश्य’ से आप क्या समझते हैं ? व्यावसायिक परिदृश्य क्या है ?

2. व्यावसायिक परिदृश्य का क्या अर्थ है ? इस पर किन कारकों का प्रभाव पड़ता है?

3. व्यावसायिक परिदृश्य पर व्यष्टि एवं समष्टि कारकों के प्रभाव क विवेचना करें।

4. व्यावसायिक परिदृश्य पर आर्थिक एवं अनार्थिक कारकों के प्रभाव की विवेचना करें।

5. आन्तरिक एवं बाह्य व्यावसायिक परिदृश्य में अन्तर करें। इनके निर्धारकों की विवेचना करें।

6. व्यावसायिक परिवेश के घटकों की विवेचना करें।

7. व्यावसायिक पर्यावरण के परीक्षण तथा निर्देशन सम्बन्धी तकनीकों का विवेचन कीजिए।

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लघु उत्तरीय प्रश्न

1 व्यावसायिक परिदृश्य के तात्पर्य को स्पष्ट करें।

2. आर्थिक वातावरण के महत्व की विवेचना करें।

3. अनार्थिक वातावरण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।

4. व्यावसायिक वातावरण के घटकों का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत करें।

5. परीक्षण तथा निर्देशन का परिचय दीजिए।

6. पर्यावरण विश्लेषण की प्रक्रिया को समझाइए।

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chetansati

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