BCom 1st Year Business Environment Globalisation Study Material Notes in Hindi

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BCom 1st Year Business Environment Globalisation Study Material Notes in Hindi

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Globalisation Study Material
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BCom 1st Year Business Environment Privatisation Study Material Notes in Hindi

भूमण्डलीकरण

[GLOBALISATION]

भूमण्डलीकरण से अर्थ

(MEANING OF GLOBALISATION)

परिवहन एवं संचार में जो क्रान्ति हुई है उसके कारण विश्व अर्थव्यवस्था तेजी से भूमण्डलीकरण की ओर बढ़ रही है। राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय सीमाओं का महत्व घटता जा रहा है। पिछले तीन दशकों से भूमण्डलीकरण तेजी से हो रहा है। यह बाजार अर्थव्यवस्था में होने वाले निरन्तर परिवर्तन का ही दूसरा पहलू है। भूमण्डलीकरण का आधार है परिवर्तन लागत में तेजी से कमी तथा सूचना प्रौद्योगिकी में क्रान्ति । वस्तुओं को विश्व में कहीं भी भेजने की लागत हाल के दशकों में अत्यन्त घट गई है। आंकड़ा भेजने तथा उसके विश्लेषण की हमारी क्षमता में नाटकीय वृद्धि हुई है तथा दूसरी ओर, ऐसा करने की लागत में नाटकीय कमी हुई है। आज एक ऐसे कम्प्यूटर को 50,000 ₹ में खरीदा जा सकता है जिसे एक सूटकेस में रखा जा सकता है। इसी शक्ति के कम्प्यूटर को 1970 में खरीदने पर 5 मिलियन पाउंड (= 35 करोड़ र, जब £1= ₹ 70) लगता था तथा इसे एक बड़े कमरे में रखना पड़ता था। (यह उदाहरण लिप्जे तथा क्रिस्टल का दिया हुआ है।)

अनेक बाजारों में भूमण्डलीकरण हो रहा है। एक उदाहरण ले। कुछ ऐसी रुचि (taste) है, जो युवकों में विश्वव्यापी है, जैसे—एक ही डिजाइन का जीन्स तथा लेदर जैकेट विश्व के सभी बड़े शहरों में। अनेक कम्पनियों का भूमण्डलीकरण हो रहा है जिन्हें बहुराष्ट्रीय कम्पनियां या ट्रांसनेशनल कहा जाता है। मैक्डोनल्ड रेस्तरां, कोका कोला, पेप्सी, केलॉग, आदि के निर्माता इसके उदाहरण हैं। अनेक श्रम बाजारों का भी भूमण्डलीकरण हो रहा है। संचार तथा परिवहन में क्रान्ति के कारण किसी वस्तु के विभिन्न पुर्जे विश्वभर में बनाए जाते हैं।

निवेश पक्ष को देखें तो स्पष्ट हो जाएगा कि भूमण्डलीकरण का सबसे अधिक महत्वपूर्ण परिणाम यह हुआ है कि बड़े फर्म अनेक बड़े देशों में अपनी भौतिक उपस्थिति दिखा रहे हैं। 1967 में बाहर जाने वाले कुल विदेशी निवेश का 50 प्रतिशत अमरीकी था। 1991 में अमरीकी हिस्सा घटकर 25 प्रतिशत रह गया तथा जापान, फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन, आदि का हिस्सा बढ़ गया।

उदारवाद को प्रोत्साहन मिलने के कारण निवेश पर से सरकारी नियमन समाप्त हो गया। इसने भूमण्डलीकरण प्रक्रिया को बढ़ावा दिया है।

Business Environment Globalisation

उपर्युक्त विवरण से यह बात स्पष्ट होती है कि भूमण्डलीकरण या विश्वीकरण का अर्थ है विश्व में चारों ओर अर्थव्यवस्थाओं का बढ़ता हुआ एकीकरण (increasing integration)। यह एकीकरण मुख्य रूप से व्यापार तथा वित्तीय प्रवाहों के मध्यम से होता है। व्यापार तथा वित्तीय प्रवाह अर्थात् निवेश के साथ-साथ श्रमिकों तथा टेक्नोलॉजी का भी आवागमन अन्तर्राष्ट्रीय सीमाओं के आर-पार होता है। भूमण्डलीकरण के सांस्कृतिक, राजनीतिक एक परिदृश्य सम्बन्धी आयाम भी हैं। किन्तु, यहां केवल आर्थिक पहलू पर ही केन्द्रित किया गया है।

भूमण्डलीकरण शब्द 1980 के दशक से आम बोलचाल की भाषा में आया है। घरेलू बाजार में जो बाजार शक्तियां क्रिया करती हैं उन्हीं का राष्ट्रीय सीमाओं के बाहर विस्तार ही भूमण्डलीकरण है। इसलिए, जैसा शरू में कहा गया. भूमण्डलीकरण बाजार अर्थव्यवस्था में होने वाले निरन्तर परिवर्तन का ही एक पहलू है तथा प्रतिस्पर्दा तथा श्रम विभाजन के माध्यम से बाजार कार्यकशलता (efficiency) का प्रात्सातिराना है। विश्व बाजार इनके लिए और भी अधिक अवसर प्रदान करता है। विश्व बाजार का अर्थ ह आर आपका पूंजी, टेक्नोलॉजी, सस्ते आयात तथा अधिक निर्यात के लिए प्रवेश मार्ग।

Business Environment Globalisation

भूमण्डलीकरण एवं भारत

(GLOBALISATION AND INDIA)

भारत का बाजार एक बन्द बाजार (Closed Market) था जिसमें तकनीक विदेशों से आती थी, परन्तु प्रबन्ध नहीं आता था, लेकिन इस नीति के लागू होने से अनेक बहराष्ट्रीय निगम भारत आने की तैयारी में है। कई बहुराष्ट्रीय निगम जो पहले भारत की नीति के कारण यहां से चले गए थे जैसे, कोक कोला (Coca, Cola) व आई. बी. एम. (I.B.M.) वे भी भारत में आ गए हैं। यहां पहले से भी कई निगम हैं जो कार्यशाल हैं; जैसे-ए. बी. बी. (A.B.B.), प्रोक्टर एवं गेम्बल, लिप्टन, मदरा कोटस, आदि। अब यह पुराने बहुराष्ट्राय। निगम भी पूंजी का प्रतिशत बढ़ाकर प्रवन्ध नियन्त्रण अपने अधिकार में ले सकते हैं।

भारत में कुछ कम्पनियां ऐसी हैं जिनका प्रबन्ध नियन्त्रण उनके पास नहीं है; जैसे—कायनेटिक होन्डा (Kinetic Honda), एस. आर. एफ. (S.R.E.) व एल. एम. एल. (L.M.L.) । अब यह भी नवीनतम तकनीक देने के बहाने प्रबन्ध नियन्त्रण व पूंजी में हिस्सा ले सकते हैं।

भारत में 20 उद्योग ऐसे हैं जहां नवीन आर्थिक नीति के लागू होने के बाद बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का असर तेजी से बढ़ा है। उदाहरण के लिए, हिन्दुस्तान लीवर समूह ने प्रतिस्पर्धी टाटा आयल मिल्स सहित कई कम्पनियों को अपने समूह में ले लिया है। इसी प्रकार आइसक्रीम बाजार में भी लीवर समूह द्वारा क्वालिटी द्वारा बनाए गए बाजार के सहारे ‘वाल्स’ को जमाया जा रहा है, क्योंकि वाल्स ने भारतीय क्वालिटी आइसक्रीम को खरीद लिया है।

रेफ्रिजरेटर उद्योग में भारत की केल्विनेटर व गोदरेज कम्पनियों पर क्रमशः अमरीका की हर्लपूल व जी. ई. की पकड़ है। टेलीविजन में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की बहार आई हुई है। जैसे सोनी, अकाई, नेशनल पैनासोनिक। वैक्यूम क्लीनर का बाजार अब पूरे तौर पर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की पकड़ में है। सोफ्ट ड्रिंक्स उद्योग पर अब कोका कोला का आधिपत्य सा है जो अमरीकी है। कई भारतीय कम्पनियों ने अपने व्यवसाय उन्हें बेच दिए हैं। मोटर साइकिल, कार उद्योग में भी कई विदेशी कम्पनियां भारत में आ चुकी हैं। चाय उद्योग में बुक बाण्ड व लिप्टन कम्पनियों का विलय हो चुका है और उन्हें हिन्दुस्तान लीवर ने खरीद लिया है।

संक्षेप में भारत में 20 हजार करोड़ ₹ की टिकाऊ वस्तुओं के उपभोक्ता बाजार में भी अशुभ संकेत मिलना प्रारम्भ हो चुका है। ऐसा कहा जाता है कि इस क्षेत्र की भारतीय कम्पनियों का हिस्सा घटकर 35 प्रतिशत रह गया है। विदेशी कम्पनियों ने रंगीन टेलीविजन, फ्रिज, वाशिंग मशीन और इसी प्रकार के अन्य उत्पादों में अपना हिस्सा 65 प्रतिशत तक बढ़ा लिया है।

“बजाज ऑटो के अध्यक्ष प्रबन्ध निदेशक राहुल बजाज और आर. पी. जी. इन्टरप्राइजेज के उपाध्यक्ष संजीव गोयनका ने बताया है कि विदेशी कम्पनियां अपेक्षाकृत कम कीमत अदाकर भारतीय बाजार पर कब्जा जमा रही हैं। इनका कहना है कि उदारीकरण का प्रमुख उद्देश्य पूरा नहीं हुआ है। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से नवीनतम प्रौद्योगिकी, प्रबन्ध कौशल, निर्यात वृद्धि आदि का जो आकलन किया गया था, वे खरे नहीं उतरे हैं बल्कि इससे कई क्षेत्रों में स्वदेशी उपकरण नष्ट हो गए हैं और उच्च प्रायोगिकी क्षेत्रों में विदेशी कम्पनियों ने बिना ज्यादा निवेश के ही बाजार पर सम्पूर्ण कब्जा कर लिया है।”

स्पष्ट है कि भारतीय उद्योग बहुराष्ट्रीय कम्पनियों से मुकाबला करने के स्थान पर उनके सामने हथियार डाल रहे हैं और अपने उद्योगों को उन्हें बेच रहे हैं। जैसे—हल्के पेय थम्स अप, माजा, गोल्ड स्पोट, लिम्का भारतीय उद्योगपतियों ने 120 करोड़ ₹ में कोका कोला का बेच दिया है और अब बिसलरी मिनरल वाटर को भी बेचा जा रहा है। यह प्रक्रिया देश के लिए हानिकारक हा एसा अनुमान है कि अब तक लगभग पांच लाख लघु इकाइयां बन्द हो चुकी हैं जिससे 25 लाख व्यक्ति बेरोजगार हो गए हैं।

यही नहीं. अधिकांश नवीन स्वीकृतियां जो विदेशियों को दी गई है उसका 51 प्रतिशत निवेश महाराष्ट. पश्चिम बंगाल व दिल्ली राज्यों में उद्योग स्थापित करने के लिए है। इससे क्षेत्रीय असन्तुलन को बढ़ावा मिल रहा है जो देशहित में नहीं है।

भारत में भूमण्डलीकरण होने से लोगों को भारी शंकाएं हैं : (1) भारतीय उद्योगों पर इसका बुरा प्रभाव पड़ेगा। वे विदेशी कम्पनियों द्वारा निर्मित वस्तओं की क्वालिटी में पीछे रह जाएंगे: (i) जिससे उद्योग बन्द हान की स्थिति में आ जाएंगे: (iii) उद्योगों को घाटा होगा: (iv) श्रमिकों में बेरोजगारी फैल जाएगी: (ल) आगे चलकर यह विदेशी कम्पनियां देश का शोषण करेंगी आदि; (vi) इन सबसे देश की आत्म-निर्भरता प्रभावित होगी।

आलोचकों का कहना है कि कोई भी राष्ट्र विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की सहायता से आगे नहीं बढ़ सकता है। उसे स्वयं अपने पैरों पर खड़ा होना होगा। विदेशी निवेश उन्हीं क्षेत्रों में होना चाहिए जहां भारतीय कम्पनियां निवेश करने में सक्षम नहीं हैं।

Business Environment Globalisation

आर्थिक नीति में भारतीय उद्योगों को आर्थिक प्रतियोगी बनने पर जोर दिया गया है जिसके लिए उद्योगों का आधुनिकीकरण करना होगा, अर्थात् आधुनिक तकनीक को अपनाना होगा नवीनतम् मशीनों को कारखानों में लाना होगा। लेकिन भारतीय उद्योगों के लिए आधुनिकीकरण करना आसान नहीं है। इसके प्रमुख कारण हैं

(1) पूँजी का अभाव यहां मालिकों के पास पूंजी का अभाव है और पूंजी को जुटा पाना उनके लिए। आसान नहीं है। देश में वैसे ही पूंजी की कमी है, क्योंकि बचतें सीमित ही हैं।

(2) श्रमिकों द्वारा विरोध-भारत में श्रमिक आधुनिकीकरण से बहुत ही डरते हैं। उनका मानना है कि आधुनिकतम स्वचालित मशीनों के आने से कम श्रमिकों की आवश्यकता होगी। अतः उनके कारखाने में छंटनी होगी जिससे वे प्रभावित होंगे।

(3) विदेशी मुद्रा का अभाव आधुनिकीकरण के लिए मशीनों के आयात हेतु विदेशी मुद्रा की आवश्यकता होगी। यहां पहले से ही विदेशी मुद्रा का अभाव है। आजकल तो उसे खुले बाजार से क्रय करना पड़ता है।

इसी प्रकार मुद्रास्फीति की दर अगस्त 1991 में 17 प्रतिशत तक पहुंच गई थी, वर्तमान में (2017-18) थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित (आधार वर्ष 2011-12) सामान्य मुद्रा स्फीति की दर 2.9 प्रतिशत के आस-पास बनी हुई है।

आर्थिक नीति को लागू हुए 27 वर्ष बीत चुके हैं। उसका प्रभाव अब स्पष्ट दिखाई देने लगा है। इस नीति ने पूंजीवाद को बढ़ावा दिया है। सरकारी नियन्त्रणों में ढील हुई है, भूमण्डलीकरण में वृद्धि हुई है, भारतीय अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई है और अनेक उद्योग बन्द हो गए हैं या बन्द होने के कगार पर पहुंच गए हैं। ।

उपर्युक्त विचार के विपरीत कौशिक बसु (Times of India, Patna, January 16, 2002) कीधारणा। है कि भूमण्डलीकरण बाधाओं की तुलना में अधिक अवसरों का सृजन करता है। वैश्वीकरण वाद-विवाद का ऐसा मुद्दा बन गया है कि जो इसके पक्ष हैं वे इसके लाभ की बात बिना किसी संयम के करते हैं और जो इसकी आलोचना करते हैं वे भी बिना किसी संयम के करते हैं। भूमण्डलीकरण में कुछ दोष हो सकते हैं, फिर भी कुल मिलाकर यह वांछनीय है। इसकी एक कमजोरी यह है कि यह प्रजातन्त्र को खा जाता है। प्रजातन्त्र इस बुनियादी सिद्धान्त पर आधारित है कि लोगों को अपने प्रतिनिधि चुनने का अधिकार है। जब तक प्रत्येक देश में लोग अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करते रहे, प्रजातंत्र का यह महत्वपूर्ण पक्ष संतुष्ट होता रहा। पुराने जमाने में दूसरे देश में हस्तक्षेप करने के लिए सेना भेजने की जरूरत होती थी। लेकिन, आज भूमण्डलीकरण के कारण दूसरे देश में हस्तक्षेप करने के लिए सेना भेजने की जरूरत नहीं है। इतना ही काफी है कि वित्तीय प्रवाह को रोक दिया जाय, व्यापार पर प्रतिबन्ध लगा दिया जाय, या अन्य कई प्रकार से दूसरे देश में जीविका उपार्जन को प्रभावित किया जा सकता है। जैसे-जैसे विश्व निकट आता जाएगा, दूसरे देश के मामले में दखल देने के अधिक उपाय खोजे जा सकते हैं और इन सभी का असर प्रजातंत्र को कम करने पर होगा।

भूमण्डलीकरण के अनेक लाभ हैं। पूंजी के प्रवाह को लें। मान लें कि भारत में निवेश का एक नया अवसर खुलता है। भूमण्डलीकरण के पूर्व केवल भारतीय ही इस पर निवेश कर सकते थे और ऐसा वे उसी। सीमा तक कर सकते थे जिस हद तक उनके पास निवेश के लिए मुद्रा थी। इसका यह अर्थ है कि इस परियोजना का पूरा लाभ पूंजी की कमी के कारण नहीं मिल पाएगा। लेकिन भूमण्डलीकरण की स्थिति में दूसरे देशों के लोग इस परियोजना पर खर्च कर सकते हैं। इससे उन्हें तो लाभ मिलेगा ही, भारतीयों को भी बड़े पैमाने पर। उत्पादन का लाभ मिलेगा।

इस प्रकार भूमण्डलीकरण से विश्व में कहीं भी निवेश के अवसरों के सृजन से लाभ मिलगा व्यापार के विषय में भी कही जा सकती है। लेकिन भूमण्डलीकरण से सम्पूर्ण जनसँख्या को लाभ भी नहीं मिल सकता है कुछ लागों का नुक्सान भी हो सकता है, जैसे, उन श्रमिकों को जिनकी छंटनी हो जाती है। इसलिए सरकारी हस्तक्षेप की जरूरत पड़ सकती है।

चूंकि पारमाणात्मक प्रतिबन्ध अतीत की बात हो गई है. सीमा शुल्क में तेजी से कमी हा रहा ह तथा विदेशी निवेश प्रत्यक्ष एवं पोर्टफोलियो को उदार बना दिया है, अतः भारतीय अर्थव्यवस्था का विर अर्थव्यवस्था के साथ एकीकरण में भी प्रगति हो रही है। इस एकीकरण की प्रक्रिया के निम्न लाभ मिलह

  • भारत निर्यात में बढ़ोतरी-1990-91 में 141 मिलियन अमरीकी डॉलर से बढ़कर 2016-17 में लगभग 2,75,852 मिलियन डॉलर।
  • चालू खाते में घाटा 2016-17 में 296 मिलियन अमरीकी डॉलर।
  • भुगतान शेष की मजबूत स्थिति, जहां 1990-91 में विदेशी विनिमय रिजर्व में 28 बिलियन डॉलर की कमी हुई थी वहां 2013-14 में 12.2 बिलियन डॉलर की बढ़ोत्तरी हुई। 31 जनवरी, 2003 को भारत का विदेशी विनिमय भण्डार 73.58 बिलियन डॉलर का था। 2 मार्च 2018 के अन्त में यह रिजर्व 420.758 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गया था।

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भूमण्डलीकरण : चुनौतियां एवं अवसर (Globalisation : Challenges and Opportunities)

विभिन्न देशों में भूमण्डलीकरण की प्रक्रिया की लागत तथा लाभ असमान रहे हैं। अलग-अलग देशों में। भूमण्डलीकरण के प्रभाव के विषय में आम धारणा भी अलग-अलग रही है और लाभ के सम्बन्ध में भी विभिन्न देशों के अनुभव भिन्न-भिन्न रहे हैं। जिन देशों ने ठोस (sound) समष्टि आर्थिक नीति को अपनाया तथा जिनकी वित्तीय व्यवस्था मजबूत तथा लचीली रही है. वे भमण्डलीकरण के लाभ को प्राप्त कर सकते है। भूमण्डलीकरण के वातावरण में खराब नीति के कारण काफी नुकसान हो सकता है। विकासशील देशों में भूमण्डलीकरण के दुष्प्रभाव को समाप्त करने के लिए उठाए गए सही नीति गत कदमों ने इसके कार्यान्वयन, गति क्रम तथा सुधार की विषयवस्तु को प्रभावित किया है।

2002 के अन्तर्राष्ट्रीय विवेचन में भूमण्डलीकरण के बुरे प्रभाव ही छाए रहे। 1980 से भूमण्डलीकरण की प्रक्रिया को लागू करने के बाद निर्धनता तथा असमानता के संकेतों की जांच करने पर निम्न 5 प्रवृत्तियां सामने आती हैं:

  • निर्धन देशों के आर्थिक विकास की गति में तीव्रता;
  • विश्व में निर्धनों की संख्या में कमी;
  • विश्व असमानता में मामूली कमी;
  • देशों के मध्य अधिक असमानता की कोई सामान्य प्रवृत्ति नहीं;
  • विश्व में अधिक असमान मजदूरी की दर।

इन निष्कर्षों पर लोगों ने ऐसा कहकर प्रश्न चिह्न लगाया है कि चालू आंकड़े इतने दोषपूर्ण हैं कि इनके आधार पर निर्धनता की प्रवृत्ति के सम्बन्ध में कोई ठोस अनुमान नहीं लगाए जा सकते हैं। वैकल्पिक विधियों के उपयोग से विपरीत परिणाम निकल सकते हैं, अर्थात् ऐसा निष्कर्ष निकल सकता है कि भूमण्डलीय असमानता बढ़ रही है।

आय की असमानता के समान ही वित्तीय खुलेपन के कारण जोखिम भी एक महत्वपूर्ण विषय है जिसके विषय में एक ही प्रकार के विचार नहीं है। वित्तीय उदारीकरण के परिणामस्वरूप पंजी के अन्तप्रवाह में वृद्धि के बावजूद विकास दर में वृद्धि नहीं हो सकती है। इसका कारण कुछ इस प्रकार हो सकता है। विभिन्न देशों के मध्य प्रति व्यक्ति आय में अन्तर का कारण पूंजी श्रम अनुपात में भिन्नता का होना आवश्यक नहीं है। यदि ऐसा होता तो वित्तीय उदारीकरण के कारण पूंजी के अन्तप्रवाह में वृद्धि से इस अन्तर को पाटा जा सकता था। ऐसा सम्भव है कि प्रतिव्यक्ति आय का अन्तर उत्पादन के साधनों की उत्पादकता में अन्तर के कारण हो उत्पादकता अन्तर सरकार की कार्यकुशलता, कानून के अनुपालन, सम्पत्ति के अधिकार, आदि में फर्क के कारण से हो सकता है। दहलीज प्रभाव (Threshold Effect) भी कारण हो सकता है 1 RBI Annual Report 2002-03, p. 100, Box VI-3 पर आधारित।

वित्तीय भूमण्डलीकरण के लाभ उन्हीं देशों को मिल सकते हैं जिनकी शोषण (absorptive) क्षमता एक खास स्तर से ऊंची होती है। वित्तीय उदारीकरण के प्रभाव का अध्ययन 14 देशों के सम्बन्ध में किया गया। इन अध्ययनों से पता चला कि 14 में से केवल 3 देशों में भूमण्डलीकरण (वित्तीय) का विकास पर धनात्मक प्रभाव पड़ा।

पूर्वी एशियाई संकट के बाद से वित्तीय खुलेपन के सम्बन्ध में अन्तर्राष्ट्रीय ज्ञानबोध में काफी परिवर्तन आया है, लेकिन खुलेपन की प्रक्रिया पर इसका प्रभाव नहीं पड़ा है। खुलेपन के लाभ को प्राप्त करने तथा जोखिम को कम करने पर ज्यादा बल दिया जा रहा है। भूमण्डलीकरण के अधिक अच्छे परिणाम उस समय मिलेंगे जब विकसित देश विकासशील देशों के लिए अपने बाजार को खोल देंगे तथा अपने अप्रवास (immigration) प्रक्रिया को अधिक उदार बना कर श्रमिकों की गतिशीलता को बढ़ावा देंगे। भूमण्डलीकरण का उद्देश्य वस्तुओं तथा सेवाओं के साथ-साथ श्रमिकों का उन्मुख प्रवाह भी है। यह भी स्वीकारा जाने लगा है। कि भूमण्डलीकरण से पूरा लाभ प्राप्त करने के लिए शोषण क्षमता में वृद्धि की आवश्यकता है। इस क्षमता में वृद्धि निम्न कारकों पर निर्भर करती है :

मानवीय पूंजी की प्रकृतिः  घरेलू वित्तीय बाजार की गहनता; समष्टि आर्थिक नीतियां तथा प्रशासन की क्वालिटी।

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प्रश्न

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1 भूमण्डलीकरण का क्या तात्पर्य है ? भारत ने इस दिशा में क्या-क्या कदम उठाए हैं?

लघु उत्तरीय प्रश्न

1 भूमण्डलीकरण से आप क्या समझते हैं?

2. भूमण्डलीकरण की चुनौतियों तथा अवसरों पर प्रकाश डालें।

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