BCom 1st Year Business Environment House Effect Global Warming Study Material Notes in Hindi

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पौधाघर (अथवा हरित गृह) प्रभाव तथा भूमण्डलीय तापन

(GREEN-HOUSE EFFECT AND GLOBAL WARMING]

मुख्य रूप से कार्बन डाइ-ऑक्साइड (carbon dioxide) तथा मिथेन (methane) गैसों के संग्रह से पृथ्वी के तापमान में वृद्धि को भूमण्डलीय तापन कहा जाता है। फॉसिल ईधन (fossil fuel) जैसे कोयला. पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस पर आधारित औद्योगिक विकास पर्यावरण में असन्तुलन का प्रमुख कारण है। इससे कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा प्रायः दूनी हो गई है। यह पृथ्वी के चारों ओर शीशे के भूमण्डल (globe of glass) की तरह क्रिया करता है तथा सूर्य की गर्मी विकिरणित (radiated) होकर पृथ्वी पर प्रतिबिम्बित हो जाती है। इससे पृथ्वी का ताप बढ़ जाता है। इसे पौधा-घर प्रभाव भी कहा जाता है। जलवायु परिवर्तन पर अन्तर्राष्ट्रीय पैनेल (International Panel on Climatic Change-IPCC) के अनुमान के अनुसार वर्तमान स्थिति के जारी रहने पर पृथ्वी का तापमान वर्तमान सदी के अन्त तक 3°C बढ़ने की। आशा है। अनिश्चितता की मात्रा भी है और ताप में वृद्धि 2°C से 5°C तक हो सकती है।

पौधा-घर गैस के कारण जो भूमण्डलीय तापन होता है उसके लिए विभिन्न गैसों का सापेक्षिक योगदान निम्न प्रकार से है :

मिथेन उत्पादन अभी विचार का प्रमुख विषय है, यद्यपि इसका योगदान अभी सिर्फ 18 प्रतिशत है। इसका कारण यह है कि यह तेज दर से जमा हो रहा है तथा सुरक्षात्मक ओजोन (ozone) पट्टी के क्षय के लिए दायी है।

भूमण्डलीय तापमान के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार उत्तरी अमरीका तथा पूर्वी यूरोप है। इनके बाद क्रमशः पश्चिमी यूरोप, एशिया तथा प्रशान्त का स्थान आता है।

भूमण्डलीय तापन के प्रभाव

(1) बर्फ टोपी (ice cap) का पिघलना तथा समुद्र तल का ऊपर उठना। भारत के 38 जिलों को यह खतरा है वे समुद्र तल के ऊपर उठने से डूब जाएंगे। मुम्बई तथा गोवा को यह खतरा सबसे अधिक है। हिम चट्टानों (glaciers) के पिघलने से बाढ़ की आशंका बढ़ गई है जिससे फसलों तथा मवेशियों को भारी नुकसान हो सकता है। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मियामी, न्यूयॉर्क तथा वेनिस जैसे शहरों को समुद्री कटाव की गम्भीर समस्या का सामना करना पड़ सकता है।

(2) मौसम में असामान्य परिवर्तन से सूखा तथा बाढ़ की अधिक सम्भावना। विश्व के अधिकांश भाग में सूखा प्रभावित क्षेत्रों के विस्तार की सम्भावना है। भारत तथा पाकिस्तान पर इसका गम्भीर प्रभाव पड़ सकता है। धान जैसे खरीफ फसल, बाजरा जैसे मोटे अनाज, सोयाबीन जैसे तिलहन, मक्का, दलहन, आदि के दो-तिहाई हिस्से पर कम या शून्य वर्षा के कारण प्रभाव पड़ने की सम्भावना है। अनाज के उत्पादन में 10 मिलियन टन की कमी की सम्भावना है जिससे 150 मिलियन आकस्मिक कृषि श्रमिकों को भूखमरी का सामना करना पड़ सकता है।

समाधान के उपाय

(i) ऐसे पौधों को उगाने पर बल जो कार्बन डाइ-ऑक्साइड को बायोमास (biomass) में निर्धारित करने में सबसे अधिक सक्षम हैं, जैसे, ईख, पेड़, आदि। (ii) औद्योगिक देशों में खाद्यान्न उत्पादन की ऊची लागत व्यवस्था को हतोत्साहित करना चाहिए। सब्सिडी को समाप्त करके तथा पर्यावरण पर लगाकर। (iii) उष्णकटिबन्ध में स्थित विकासशील देशों में खाद्य के उत्पादन पर बल देना चाहिए, क्योंकि यहां पर्याप्त मात्रा में मानवीय एवं पर्यावरण सम्बन्धी संसाधन उपलब्ध है और यहां उत्पादन व्यवस्था म पुरान जलावन पर कम निर्भरता है। (iv) उष्णकटिबन्धीय देशों में मानवीय उपभोग के लिए बरसाती धान की खता को कम करके सूखे मौसम के अनाज का अधिक उत्पादन करना चाहिए। जानवरों को खिलाने के लिए अनाज का उत्पादन कम करके ईख तथा चारा पेड़ों पर अधिक बल देना चाहिए। (v) जहां भी सम्भव हो, चारगाह व्यवस्था के स्थान पर परिरोध (confinement) व्यवस्था को लागू करना चाहिए तथा पाक, बहु-उद्देश्यीय पेड़ों, आदि पर बल देना चाहिए। (vi) पुआल, भूसे, आदि का उपयोग जानवरों के भोजन के रूप में करना चाहिए या निर्माण कार्यों में तथा जलाना नहीं चाहिए। (vii) जुगाली करने वाले भोजन का अधिक प्रबन्ध करना चाहिए ताकि जानवरों का अच्छा विकास हो तथा दूध अधिक हो। इससे मिथेन तथा कार्बन डाइऑक्साइड का उत्पादन कम होगा। (viii) जगाली नहीं करने वाले जानवर, जैसे, सूअर, मर्गी, खरगोश, आदि के विकास को मांस के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए तथा जुगाली करने वाले जानवरों को मांस के ख्याल से कम महत्व देना चाहिए। (ix) बायोगैस उत्पादन संयन्त्र को उन सभी जगहों में स्थापित करना चाहिए जहां जानवर केन्द्रित होते हैं। यह उन स्थानों के लिए अधिक महत्वपूर्ण है जहां जलावन की कमी के कारण जंगलों का विनाश किया जा रहा है। (x) मानव भोजन के जैविक अवशेष को जमीन में सड़ने नहीं देना चाहिए, क्योंकि इससे मिथेन या कार्बन डाइऑक्साइड का सृजन होता है। अतः इसकी रिसाइक्लिंग (Recycling) होनी चाहिए। (xi) शोध एवं विकास (Research and Development) को अधिकतम सहायता देने की आवश्यकता है। जीवाश्म (fossil) आधारित जलावन की जगह पर बायोमास से प्राप्त जलावन का अधिक उपयोग करना होगा। बायोमास को गैस में परिवर्तित करके हाइड्रोजन तथा कार्बन मोनोक्साइड के उत्पादन करने की तकनीक का विकास सबसे अधिक उपयुक्त होगा।

निष्कर्ष

IPCC की रिपोर्ट का कहना है कि मौजूदा उत्पादकता प्रवृत्ति के जारी रहने पर 1990 तथा 2030 के मध्य विकासशील देशों में उत्पत्ति की वार्षिक वृद्धि दर 4-5 प्रतिशत रह सकती है और कुल उत्पत्ति के 5 गुना होने की सम्भावना है। विकसित देशों की कुल उत्पत्ति इस अवधि में 31 गुना बढ़ सकती है। वर्ष 2030 में 1990 की कीमतों पर इसका मूल्य 69 ट्रिलियन डॉलर का होगा।

यदि पर्यावरण प्रदूषण आज की तरह चलता रहे, तो उत्पत्ति में उपर्युक्त वृद्धि के भयानक परिणाम होंगे। प्रतिवर्ष करोड़ों लोग बीमार पड़ेंगे या मरेंगे। जल की अत्यधिक कमी हो जाएगी तथा उष्ण कटिबन्धीय जंगल आज का एक छोटा भाग रह जाएगा, किन्तु उचित कदम उठाने से ऐसी स्थिति नहीं होगी। पौधा-घर तापन के परिणाम इस पर निर्भर करेंगे कि उत्सर्जन (emissions) को कम करने की नीतियों को अपनाया जाता है या नहीं तथा बढ़ते तापमान के अनुकूल अर्थव्यवस्थाएं अपने को कितने प्रभावी ढंग से अपने को ढाल सकती हैं।

प्रश्न

1 भूमण्डलीय तापन के कारणों तथा प्रभावों पर प्रकाश डालें।

2. अर्थ लिखें:

(क) पौधा-गृह प्रभाव, (ख) भूमण्डलीय तापन।

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