BCom 1st Year Business Environment Liberalisation Study Material Notes in Hindi

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BCom 1st Year Business Environment Liberalisation Study Material Notes in Hindi

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Liberalisation Study Material Notes
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BCom 1st Year Business Environment Globalisation Study Material Notes in Hindi

उदारीकरण

[LIBERALISATION]

उदारीकरण का अर्थ

(MEANING OF LIBERALISATION)

उदारवाद (Liberalism), उदार मूल्यों (Liberal values) कादर्शन तथा राजनीतिक-आर्थिक अवधारणा है। इसका केन्द्रबिन्दु स्वतन्त्रता का सिद्धान्त है। इसीलिए प्रजातन्त्र, कानून का शासन (rule of law), बाजार अर्थव्यवस्था, उन्मुक्त व्यापार तथा अनेकत्व (pluralism) उदारवाद के अभिन्न अंग है।

उदारीकरण (Liberalisation) वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से उदार मूल्य, अवधारणा तथा नियम को परिचालन का रूप दिया जाता है। उन्नीसवीं सदी में उदारीकरण ‘अकेला छोड़ दो’ (Laissez faire) का अनिवार्य रूप (sine qra non) बन गया जहां सरकार की न्यूनतम भूमिका को स्वीकार किया गया। यह तर्क दिया गया कि व्यक्ति को अकेला छोड़ देने पर वह अपने कल्याण को अधिकतम करता है। चूंकि समाज सभी व्यक्तियों का जोड़ है, अतः सर्वोत्तम व्यक्तिगत कल्याण का अर्थ है समाज का सर्वोत्तम कल्याण। प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात् उदारवाद पर प्रहार शुरू हुआ तथा राज्यीय हस्तक्षेप का बोलबाला हो गया। उद्योग, व्यापार, टारिफ तथा उद्योगों पर अनेक प्रकार के नियन्त्रण एवं नियमन लागू किए गए। द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् स्वतन्त्र हुए विकासशील देशों ने अपनी अर्थव्यवस्था के तीव्र गति से विकास के लिए इसी नीति का अनुसरण शुरू किया। कुछ देशों में तो एक नए मॉडल का पदार्पण हुआ तथा राज्य ने उद्योगों को अपने स्वामित्व नियन्त्रण तथा प्रबन्ध में ले लिया। धीरे-धीरे सार्वजनिक क्षेत्र का नियन्त्रण अर्थव्यवस्था के एक बहुत बड़े भाग पर हो गया।

सरकारी नियन्त्रण की इस नीति की परिणति अत्यधिक केन्द्रीकरण तथा नौकरशाही में हुई इसे लाइसेन्स परमिट राज की संज्ञा दी गई। इसने अकुशलता तथा भ्रष्टाचार को जन्म दिया तथा वैयक्तिक साहस एवं उद्यम का गला घोट दिया। प्रतिस्पर्धा का स्थान संरक्षण ने ले लिया। फलतः इस व्यवस्था पर प्रहार शुरू हो गया। रूस में साम्यवादी व्यवस्था ढेर हो गई। सम्पूर्ण विश्व में विकेन्द्रीकरण नौकरशाही का खात्मा तथा सरकार की आर्थिक भूमिका में कमी करने की प्रवृत्ति का महत्व बढ़ गया।

उदारीकरण से तात्पर्य उन नियन्त्रणों में ढील देना या हटाना है जो आर्थिक विकास की गति को धीमा कर देते हैं या आर्थिक विकास का गला घोंट देते हैं। ऐसे नियन्त्रणों में आर्थिक नीतियों, नियमों, प्रतिबन्धों, आदि को शामिल किया जाता है। इनके कारण अर्थव्यवस्था में लोचहीनता आ जाती है तथा नौकरशाही जन्म लेती है। इनसे विलम्ब. भ्रष्टाचार, तथा अकुशलता पनपती है तथा आर्थिक विकास की प्रक्रिया धीमी पड जाती है।

भारत में उदारीकरण दो मोर्चों पर प्रारम्भ किया गया : घरेलू उदारीकरण (domestic liberalisation) तथा व्यापार उदारीकरण (trade liberalisation)| घरेलू उदारीकरण का प्रारम्भ सत्तर के दशक के मध्य में हुआ जब 1973 में MRTP तथा FERA अधिनियमों के अन्तर्गत आने वाले बड़े औद्योगिक घरानों के लिए। कुछ उद्योगों को खोल दिया गया, किन्तु पेट्रोलियम की कीमतों में आशातीत वृद्धि तथा श्रम अशान्ति के कारण अधिक प्रगति नहीं हो सकी। उदारीकरण की दिशा में वास्तविक शुरुआत 1975 से हुई जब लाइसेन्स । प्रक्रिया में कुछ परिवर्तन किए गए।

हम यहां उदारीकरण की व्याख्या (1) आयात-निर्यात, (2) विनिमय दर, (3) आर्थिक क्षेत्र,(4) सार्वजनिक । क्षेत्र, (5) कृषि क्षेत्र के सन्दर्भ में कर रहे हैं। सरकार ने पिछले वर्षों में इस सम्बन्ध में निम्न कार्य किए हैं।

(1) आयातनिर्यात नवीन आर्थिक नीति लागू करने से आयात-निर्यात की वस्तुएं एवं उनकी मात्रा में कोई। विशेष परिवर्तन नहीं हुआ है, परन्त खाद्यान्न व अन्य कृषि वस्तुओं के निर्यात की अनुमति देने से इनकी कमी। देश में हो सकती है तथा साथ ही कृषि के उत्पादन का स्वरूप भी बदल सकता है, क्योंकि किसान उन्हीं वस्तुओं को पैदा करेगा जिनकी मांग निर्यात के लिए होने से उसे अपनी उपज का अच्छा मूल्य मिल सकता हो।

सरकार ने आयात शुल्कों में जो कमी की है उसका प्रभाव उद्योगों पर पड़ना प्रारम्भ हो गया है। फिक्की। (FICCI) के अनुसार, आयात शुल्कों में कमी के कारण रसायन उद्योग, इन्जीनियरिंग उद्योग, इस्पात उद्योग व इलेक्टोनिक्स उद्योग पर प्रभाव पड़ रहा है। पुरानी मशीनों के आयात से भारतीय मशीन निर्माता प्रभावित हए हैं। साथ ही आयात शुल्क में छूट देने से आयात बढ़ रहे हैं जिससे व्यापार सन्तुलन में अन्तर आ रहा है। निर्यात में कोई उल्लेखनीय उन्नति नहीं हो रही है।

(2) विनिमयदरउदारीकरण नीति के अन्तर्गत सरकार ने 20 अगस्त, 1994 से चालू खाते को पूर्ण परिवर्तनीय बना दिया है। इस नीति के कारण आयात में कमी होने की सम्भावना है, क्योंकि आयात का मूल्य चुकाने के लिए आयातकर्ता को विदेशी मुद्रा खुले बाजार से क्रय करनी पड़ती है जो सीमित मात्रा में है। इसका कारण हमारे निर्यात का आयात से कम होना है।

(3) आर्थिक क्षेत्र आर्थिक नीति का औद्योगिक क्षेत्र पर काफी प्रभाव पड़ा है। उद्योगों की स्थापना के लिए लाइसेन्स प्रणाली समाप्त करना, बिना सरकारी अनुमति के औद्योगिक क्षमता का विस्तार करना, लघु उद्योगों को अपनी पूंजी बृहत उद्योगों में लगाने की अनुमति देना, सार्वजनिक क्षेत्र के लिए सुरक्षित उद्योगों की संख्या कम कर देना तथा विदेशी कम्पनियों को भारत में उद्योग स्थापित करने की अनुमति देना जैसे कदमों से भारतीय उद्योगों में प्रतियोगी क्षमता पैदा होने की सम्भावनाएं हैं जिससे वस्तुओं और सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार होगा और वे निर्यात हेतु अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में भी टिक सकेंगी। इससे देशी व विदेशी दोनों प्रकार के उपभोक्ताओं को न्यायोचित सन्तुष्टि मिल सकेगी।

परन्तु सरकार का यह प्रयास आलोचनाओं का केन्द्र बना हुआ है। लोगों को आशंका है कि इससे बड़े उद्योगपतियों को लाभ होगा। छोटे उद्योग अपना विकास नहीं कर पाएंगे। विदेशी कम्पनियों के द्वारा भारत का आन्तरिक व्यापार भी अपने अधिकार में कर लिया जाएगा। इस सबसे पूंजीवाद बहुराष्ट्रीय निगमों का विस्तार होगा जो अन्त में आम भारतीय नागरिकों के लिए कष्टदायक होगा।

(4) सार्वजनिक क्षेत्र आर्थिक नीति का सार्वजनिक क्षेत्र पर भी प्रभाव पड़ा है। अब इनकी पूंजी में निजी संस्थाओं का भी हिस्सा है। घाटे वाले उपक्रमों को निजी क्षेत्र को बेचा जा रहा है या फिर इन्हें लाभ वाले उपक्रमों के साथ मिलाया जा रहा है। सार्वजनिक क्षेत्र के लिए निर्धारित वस्तुओं की संख्या भी कम कर दी गई है। यह सभी कदम प्रशंसनीय हैं। इससे जनसाधारण को परोक्ष रूप से लाभ होगा। करों से प्राप्त राशि का जनसाधारण के जीवन-स्तर को सुधारने में उपयोग हो सकेगा।

(5) कृषि क्षेत्र सरकार ने गैट नामक अन्तर्राष्ट्रीय संस्था का प्रस्ताव मान लिया है जिसका प्रभाव यह होगा कि अमीर देश बीजों को अपने नाम पैटेण्ट करवाकर हमें मजबूर कर देंगे कि हम अपनी खेती के लिए बीज उनसे ही लें। 1 अप्रैल, 2000 से सरकार ने 714 वस्तुओं के आयात से प्रतिबन्ध हटा लिया है। इसमें 80 वस्तुएं कृषि उत्पाद हैं। सरकार की इस नीति के कारण विदेशी कृषि उत्पाद भारत में सस्ते मूल्य पर आ सकेंगे जिसके फलस्वरूप भारतीय कृषि पहले तो प्रभावित होगी फिर विदेशी कम्पनियाँ भारत को अनाज देकर अपने इशारे पर चलाने का प्रयास करेंगी।

Business Environment Liberalisation

उदारीकरण नीति एवं निजीकरण

(LIBERALISATION POLICY AND PRIVATISATION)

स्वतन्त्रता-प्राप्ति के उपरान्त सरकार की यह धारणा थी कि उद्योगों के निजीकरण पर कछ प्रतिबन्ध अवश्य लगाए जाएं जिससे कि नियोजित मिश्रित अर्थव्यवस्था (Planned Mixed Economy) के अन्तर्गत वे अपना विकास कर सके और उनका उद्देश्य केवल लाभ कमाना ही न रहे।

केन्द्र सरकार ने 1951 में औद्योगिक विकास एवं नियमन अधिनियम, 1951 पास कर 8 मई, 1952 से उसे लाग किया। इस आधानयम क मुख्य उद्देश्य आद्यागिक विकास का नियमन करना एकाधिकार को केन्द्रीकरण को रोकना, आदि हैं। इस अधिनियम के अन्तर्गत उन सभी उद्योगों को जिनका नाम अधिनियम की सूची में दिया है, लाइसेन्स लेना अनिवार्य होता है या विस्तार के लिए भी अनुमति लेनी होती है, परन्तु औद्योगिक नीति, 1991 में “अब लाइसेन्स केवल 6 उद्योगों के लिए ही लिए जाएंगे शेष के लिए कोई लाइसेन्स लेना अनिवार्य नहीं है।” इस संख्या में और कमी लाइसेन्स की आवश्यकता को अब केवल आणविक ऊर्जा तथा सामरिक उद्योगों तक ही सीमित कर दिया गया है।

इसी प्रकार 1969 में एकाधिकारी एवं प्रतिबन्धात्मक व्यापारिक पद्धतियां अधिनियम, 1969 पारित कर 1 जून, 1970 से लागू किया गया। इस अधिनियम के अन्तर्गत वे उद्योग जिनकी सम्पत्ति 100 करोड़ ₹ है। या वे संस्थाएं जो अपने उद्योगों की इकाइयों की कल क्षमता के 1/4 से अधिक भाग को नियन्त्रित करती हैं उनको केन्द्रीय सरकार से अनुमति लेनी होगी यदि वे अपना विस्तार करना चाहती हैं। साथ ही 100 करोड़ ₹ से अधिक सम्पत्ति वाली संस्थाएं भी बिना केन्द्रीय सरकार की अनुमति के स्थापित नहीं हो सकती हैं। परन्तु औद्योगिक नीति, 1991 के अन्तर्गत अब बिना केन्द्रीय सरकार की अनुमति के भी 100 करोड़ से अधिक सम्पत्ति वाली संस्थाएं स्थापित हो सकती हैं। उन्हें विस्तार के लिए अनुमति आवश्यक नहीं होगी।

परन्तु अब सरकार की नीति में परिवर्तन आया है और सरकार ने उपर्युक्त प्रकार के प्रतिबन्धों को ढीला किया है जिससे कि निजी उद्योगों को अपने विकास का अवसर मिल सके। विद्वानों ने इस परिवर्तन को निजीकरण को बढ़ावा देने वाला बताया है

अब प्रश्न यह है कि सरकार इस प्रकार निजीकरण को बढ़ावा क्यों दे रही है? इसका उत्तर है, “भारतीय उद्योगों को अधिक उपयोगी, उत्पादक तथा लागत-क्षम्य बनाने के लिए।” वास्तव में भारत में सरकारी उद्योगों की तुलना में निजी उद्योगों की लागत कम आती है। वे अपनी क्षमता का पूरा-पूरा उपयोग करते हैं तथा उत्पादन बढ़ाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। निर्यातों में वृद्धि करते हैं। बढ़ती हुई जनसंख्या को वस्तुएं उपलब्ध कराने में समर्थ हैं। उदारीकरण की आवश्यकता निम्न कारणों से हो जाती है : सस्ती एवं क्वालिटी वस्तुओं की उपलब्धता, संसाधनों की बर्बादी पर रोक, तीव्रतर औद्योगिक विकास, प्रतिस्पर्धात्मक औद्योगिक वातावरण के सृजन, विदेशी निवेश को प्रोत्साहन, अर्थव्यवस्था के भूमण्डलीकरण तथा जीवन स्तर में सुधार।

प्रश्न

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1 उदारीकरण का क्या अर्थ? उदारीकरण तथा निजीकरण के सम्बन्ध में भारत ने क्या-क्या कदम उठाए हैं?

लघु उत्तरीय प्रश्न

1 उदारीकरण से आप क्या समझते हैं?

Business Environment Liberalisation

chetansati

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