BCom 1st Year Business Environment Money Study Notes in Hindi

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BCom 1st Year Business Environment Money Study Notes in Hindi

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Money Study Notes
Money Study Notes

BCom 1st Year Business Environment Balance Payment Study Material Notes in Hindi

मुद्रा

[MONEY]

मुद्रा की परिभाषाएं एवं कार्य

(DEFINITIONS AND FUNCTIONS OF MONEY)

मुद्रा वह है जो वस्तुओं के विनिमय के बदले में या उधार के भुगतान में स्वीकार की जाती है। मुद्रा विनिमय का माध्यम है। यह मुद्रा का मूल कार्य है। इसके अतिरिक्त मुद्रा मूल्य संचय का भी कार्य करती है। आधुनिक मौद्रिक व्यवस्था में बैंक नोट तथा बैंक जमा भुगतान के प्रमुख साधन हैं।

मुद्रा केवल विनिमय का माध्यम ही नहीं है, यह वह स्नेहक (lubricant) है जो विनिमय को सरल एवं सुसाध्य बनाती है। जब सभी लोग इस पर विश्वास करते हैं तथा वस्तुओं और उधार के भुगतान में स्वीकार करते हैं, व्यापार सरल बन जाता है। वस्तु विनिमय (barter exchange) प्रणाली में मुद्रा का उपयोग नहीं होता है, इसलिए विनिमय के लिए आवश्यकता के दोहरे संयोग की जरूरत पड़ती है—दो व्यक्तियों की आवश्यकताओं का एक रूप होना अर्थात् उनमें मेल होना जरूरी है। बावर्ची के दांत में दर्द होने के साथ-साथ दन्त चिकित्सक को भूखा होना चाहिए, जुलाहे की मुलाकात नंगे किसान से होनी चाहिए, आदि। मुद्रा का उपयोग होने पर इन सब की आवश्यकता समाप्त हो जाती है।

वस्तु विनिमय प्रणाली में विनिमय C – C का रूप लेता है जहां C = वस्तु, अर्थात् वस्तु का विनिमय वस्तु से होता है। मौद्रिक विनिमय प्रणाली में विनिमय का रूप CM C होता है, जहां M = मुद्रा। जहां वस्तु विनिमय प्रणाली में खरीद-बिक्री की क्रिया एक साथ होती है, अर्थात् बिना बिक्री के खरीद नहीं हो सकती, वहां मौद्रिक विनिमय प्रणाली में बिक्री तथा खरीद की क्रिया पृथक् हो जाती है। किसान अनाज को बेचकर मुद्रा प्राप्त करता है तथा उस मुद्रा से वह अपनी जरूरत की अन्य वस्तुओं को आवश्यकता के अनुसार खरीदता है। इससे विनिमय सरल हो जाता है।

मुद्रा एक सुपरिचित वस्तु है, फिर भी यह एक पहेली है। यह हमारे दैनिक अखबार की तरह परिचित है। लेकिन यह पहेली बन जाती है क्योंकि इसका अत्यधिक प्रभाव आर्थिक क्रियाओं पर पड़ता है। मुद्रा की मात्रा में वृद्धि होने पर वस्तुओं की कीमतें बढ़ जाती हैं, तथा कमी होने पर इन कीमतों में ह्रास होता है।

इसलिए यह जानना जरूरी है कि मुद्रा क्या है? मुद्रा की परिभाषा क्या है ? इस अत्यन्त ही सरल प्रश्न का कोई सरल उत्तर नहीं है? जी. लकेट (G. Luckett) का कहना है कि “सोना या कागज की तरह मुद्रा कोई चीज नहीं है अर्थात् मुद्रा की परिभाषा किसी पदार्थ के रूप में नहीं की जा सकती है। क्या है’ (What it is) यह मुद्रा नहीं है, बल्कि यह क्या करती है। अतः मुद्रा की परिभाषा मुद्रा के कार्य के रूप में ही दी जा सकती है। इसलिए हिक्स (J. R. Hicks) का कहना है कि “मुद्रा की परिभाषा उसके कार्यों के द्वारा की जाती है : कोई भी वस्तु मुद्रा है जिसका उपयोग मुद्रा की तरह होता है, मुद्रा वह है जो मुद्रा का कार्य करती

मुद्रा के चार प्रमुख कार्य हैं। यथा,

(1) भुगतान का साधन या विनिमय का माध्यम (A Means of Payment or a Medium of Exchange)—वस्तु विनिमय प्रणाली (Barter System) में विनिमय के लिए दो व्यक्तियों की आवश्यकताओं का सम्पाती होना आवश्यक है। मुद्रा के प्रयोग से इसकी आवश्यकता नहीं रह जाती है। विक्रेता अपनी वस्तु। को मुद्रा के बदले में बेच देता है तथा इस मुद्रा से वह क्रेता के रूप में अपनी जरूरत की दूसरी वस्तु या वस्तुएं खरीद सकता है। इस प्रकार विनिमय के माध्यम के रूप में मुद्रा वस्तु विनिमय प्रणाली की इस असुविधा (आवश्यकता के दोहरे संयोग का होना) को समाप्त कर देती है। ।

(2) लेखा की इकाई या मूल्य का माप ( A Unit of Account or a Measure of Value) वस्तु विनिमय प्रणाली में कीमत (Price) नाम की कोई चीज नहीं है। इस प्रणाली में सभी वस्तुओं का मूल्य सभी अन्य वस्तुओं के रूप में व्यक्त किया जाता है। यदि हम पुस्तक की कीमत जानना चाहें तो इसकी कीमत गेहूं, चावल, आदि सभी वस्तुओं के रूप में बतानी होगी तथा इन सब की कीमत को पुस्तक के रूप में। यह कीमत बताने का बहुत ही बेढ़गा तरीका है। जहां हजारों उपभोक्ता होते हैं तथा हजारों की संख्या में वस्तुएं बिकती हैं, इस तरीके से कीमत को व्यक्त नहीं किया जा सकता है। यदि दो वस्तुएं हों, एक कीमत होगी. 50 वस्तुओं की दशा में 1,225 कीमतें तथा 500 वस्तुओं की स्थिति में 1,24,750 कीमतें। निम्न समीकरण से इसे जाना जा सकता है :

मुद्रा के प्रयोग से यह कठिनाई समाप्त हो जाती है क्योंकि सभी वस्तुओं की कीमतों को मुद्रा के रूप में व्यक्त किया जाता है। इस प्रकार मुद्रा मूल्य का माप या लेखा की इकाई हो जाती है। ।

(3) मूल्य का संचय (A Store of Value) वस्तु के रूप में संचय करना अत्यन्त कठिन कार्य है। किन्तु मद्रा के रूप में यह कार्य अत्यन्त सरल हो जाता है। यह भी सम्भव हो जाता है कि लोग अपनी चालू आय को भावी उपभोग में बदल सकें।

(4) भावी भुगतान का स्टैण्डर्ड (Standard of Deferred Payment) मुद्रा के द्वारा भावी भगतान करना भी सम्भव हो जाता है, जैसे—व्याज, लगान, वेतन, पेन्शन, बीमा प्रीमियम, आदि।

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मुद्रा का महत्व

(IMPORTANCE OF MONEY)

मानवों द्वारा किए गए सर्वाधिक मूलभूत आविष्कारों में मुद्रा एक है। विनिमय अर्थव्यवस्था में इसका वही महत्व है जो महत्व परिवहन के क्षेत्र में पहिया (Wheel) का है।

आधुनिक युग मुद्रा के बिना अस्तित्वहीन है। मुद्रा विशिष्ट अर्थव्यवस्था (Specialized Economy) की उपज है। इस अर्थव्यवस्था में कोई भी आत्मनिर्भर नहीं है जैसा वह प्राचीन समय में मुद्रा की अनुपस्थिति में था। विशिष्टीकरण की स्थिति में सभी की हालत अच्छी हो जाती है जब वे एक-दूसरे के साथ व्यापार करते हैं। मुद्रा के उपयोग से व्यापार एवं वाणिज्य में लगने वाले समय एवं प्रयत्न दोनों में कमी आती है। दूसरी ओर मुद्रा के उपयोग से विशिष्टीकरण को प्रोत्साहन मिलता है जिससे कार्यकुशलता में वृद्धि होती है।

बचत एवं निवेश को प्रोत्साहित करके मुद्रा आर्थिक विकास को सहायता पहुंचाती है। इतना ही नहीं, मुद्रा के उपयोग के कारण बचत की क्रिया निवेश की क्रिया से पृथक हो जाती है अर्थात् बचतकर्ता का ही निवेशक होना जरूरी नहीं रह जाता है। मुद्रा के उपयोग ने वित्तीय संस्थाओं जैसे, वाणिज्य बैंक, बचत बैंक, एवं अन्य गैर-बैकिंग वित्तीय संस्थाओं को जन्म दिया है। इन संस्थाओं द्वारा लाखों-करोड़ों बचतकर्ताओं की बचत को एकत्र किया जाता है तथा निवेशकों को उधार दिया जाता है। वित्त की इमारत मुद्रा की नीव पर। ही खड़ी है।

आधुनिक मुद्रा

(MODERN MONEY)

विनिमय के माध्यम के रूप में मुद्रा मानव इतिहास में पहले वस्तु मुद्रा (Commodity Money) के रूप में आयी। मवेशी, शराब, तांबा, लोहा, चांदी, सोना, हीरा और सिगरेट के रूप में अनेक वस्तुओं ने मुद्रा का कार्य किया है। किन्तु, उन्नीसवीं सदी की वस्तु मुद्रा केवल चांदी तथा सोना तक ही सीमित थी। ऐसी मुद्रा । का अन्तर्भूत अर्थात् आन्तरिक मूल्य (Intrinsic Value) होता है। इसका यह अर्थ है कि उनका अपने आप में उपयोग मूल्य (Use Value) होता है।

आधुनिक काल में वस्तु मुद्रा का स्थान पत्र मुद्रा ने ले लिया है। इस मद्रा ने मद्रा के सार को स्पष्ट कर दिया है। मुद्रा की मांग अपने लिए नहीं होती बल्कि उन वस्तुओं के लिए होती है जिन्हें मुद्रा खरीद सकती है। मुद्रा का प्रत्यक्ष उपभोग नहीं होता है बल्कि उपभोग उन वस्तुओं का होता है जिन्हें मुद्रा खरीदती है।

आज की अधिकांश मुद्रा, बैंक मुद्रा है अर्थात् बैंक या अन्य वित्तीय संस्थाओं के जमा (Deposits)| अनेक वस्तुओं तथा सेवाओं के लिए नकद भुगतान के स्थान पर चेक स्वीकार किए जाते हैं। अनेक लेन-देनों के लिए ट्रैवलर (यात्री) चेक स्वीकार किए जाते हैं। इन्हें मुद्रा की पूर्ति में शामिल किया जाता है। अनेक कम्पनियों ने स्मार्ट कार्ड्स (Smart Cards) की व्यवस्था चालू की है जिसका उपयोग छोटे-छोटे मदों के भुगतान के लिए होता है। बैंकों के द्वारा जारी किए गए क्रेडिट कार्ड (Credit Card) भी मुद्रा का कार्य करते हैं। आज विभिन्न प्रकार की मुद्रा के विकास में तेजी से नवप्रवर्तन (innovation) हो रहे हैं। उदाहरणार्थ, कुछ वित्तीय संस्थाएं चालू खाते को बचत खाते या शेयर पोर्टफोलियो से भी जोड़ देती हैं तथा अपने ग्राहकों को शेयर के मूल्य के मुताबिक चेक लिखने की अनुमति देती हैं। कम्पनियां उन तरीकों की खोजकर रही हैं। ताकि लोग इन्टरनेट (internet) का उपयोग कर अपने बिल का भुगतान इलेक्ट्रॉनिक के माध्यम से कर सकें।

मुद्रा की पूर्ति

(SUPPLY OF MONEY)

समष्टि अर्थशास्त्र में मद्रा की पर्ति का महत्वपूर्ण प्रभाव उत्पत्ति, रोजगार तथा कीमतों पर पड़ता है। मुद्रा की पूर्ति पर केन्द्रीय बैंक का नियन्त्रण रहता है और इसी के माध्यम से वह अर्थव्यवस्था को स्फूर्ति प्रदान कर सकती है। जब आर्थिक विकास की गति धीमी पड़ जाती है या अर्थव्यवस्था पर अंकुश लगा सकता है, तब कीमतों में तेजी से वृद्धि होती है। जब मुद्रा का प्रबन्ध सही ढंग से होता है, तब स्थिर (stable) कीमतों के साथ उत्पत्ति में निर्विघ्न वृद्धि होती है। अतः मुद्रा की पूर्ति से क्या तात्पर्य है, इसकी सही जानकारी जरूरी है।

हम लोगों ने देखा कि मुद्रा की परिभाषा उसके कार्यों के रूप में दी जाती है। मुद्रा के चार प्रमुख कार्य हैं। मुद्रा के सम्बन्ध में एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि यह एक तरल परिसम्पत्ति (liquid asset) है। परिसम्पत्ति एक ऐसी चीज है जिसकी कीमत होती है और जिसे लोग खरीदते हैं। मकान, मोटरगाड़ी, बॉण्ड, स्टॉक, शेयर, आदि सभी परिसम्पत्तियां हैं। मुद्रा भी एक परिसम्पत्ति है। मुद्रा और अन्य परिसम्पत्तियों में अन्तर यह है कि मुद्रा का सीधा उपयोग विनिमय के माध्यम के रूप में होता है लेकिन अन्य परिसम्पत्तियों का ऐसा उपयोग नहीं हो सकता। इसके लिए परिसम्पत्तियों को प्रथम मुद्रा के रूप में बदलना पड़ता है। इसलिए कहा जाता है कि मुद्रा एक तरल वस्तु है तथा कोई भी अन्य परिसम्पत्ति मुद्रा की तरह तरल नहीं है।

मुद्रा की पूर्ति से तात्पर्य अर्थव्यवस्था में मुद्रा की कुल मात्रा से है। मुद्रा की पूर्ति का एक महत्वपूर्ण घटक (component) लेन-देन की मुद्रा (transaction money) है जिसे अक्सर M के रूप में व्यक्त किया जाता है। M, में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • सिक्के (coins) केवल वे सिक्के जो बैंकों के पास नहीं हैं।
  • पत्र मुद्रा (Paper Currency)—यह सर्वाधिक महत्वपूर्ण अंग है। बैंक से बाहर चलन में करेन्सी नोट ही इसमें आते हैं।
  • बैंक मुद्रा (Bank Money) बैंकों की वह जमा राशि जिस पर चेक लिखा जा सकता है, जैसे मांग जमा, बचत जमा, आदि। M, मुद्रा की पूर्ति की संकुचित अवधारणा (narrow concept) है। M, विस्तृत मुद्रा (Broad Money) की अवधारणा है। M, में M, के अतिरिक्त बचत जमा तथा वाणिज्य बैंकों के मियादी जमा सम्मिलित हैं।

भारत में संकुचित मुद्रा (narrow money) को M, कहा जाता है तथा विस्तृत मुद्रा (Broad Money) M, के नाम से जानी जाती है। M, सकल मौद्रिक साधन है जिसमें निम्न शामिल हैं :

() जनता के पास सिक्के (Currency with the public)

() बैंकों की मांग जमा (Demand Deposits with Banks)

() बैंकों की मियादी जमा (Time Deposits with Banks)

() रिजर्व बैंक के अन्य जमा (Other Deposits with RBI)

भारतीय रिजर्व बैंक 1970-71 से मुद्रा की चार अवधारणाओं के अन्तर्गत मुद्रा की पूर्ति के आंकड़े प्रकाशित करता है जो इस प्रकार हैं:

M, = जनता के पास मुद्रा + जनता की जमा राशि

जनता के पास मुद्रा के निम्न घटक हैं :

  • संचलन में नोट
  • संचलन में रुपए सिक्के तथा छोटे सिक्के
  • बैंकों के पास उपलब्ध नकद

जनता की जमा राशि के घटक इस प्रकार हैं :

  • बैंकों के पास मांग जमा राशि
  • रिजर्व बैंक के पास ‘अन्य’ जमा राशि

M=M + डाकघर बचत बैंक जमा राशि

My = M2 + बैंकों के पास मियादी जमा राशि

M = Mg + कुल डाकघर जमा राशि

रिजर्व बैंक द्वारा अपनाए गए मुद्रा स्टॉक के चारों मापों में से M सर्वाधिक तरल मुद्रा है। हम ज्यों-ज्यों M) से M, की ओर बढ़ते हैं मुद्रा की तरलता कम होती जाती है। अतः M. सबसे कम तरल मुद्रा है। तरलता में कमी का अर्थ यह है कि विनिमय के माध्यम से मूल्य के संचय भी बढ़ना । मुद्रा स्टॉक के ये चारों माप समान महत्व के नहीं हैं। मौद्रिक नीति की आवश्यकता के अनुसार ही उनके सापेक्ष महत्व की बात की जा सकती है।

इन चारों मापों में M. ही सर्वाधिक महत्व का है जिसे सामान्यतः विस्तृत मुद्रा (Broad Money) कहा जाता है।

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रेड्डी कार्यदल की सिफारिशें

दिसम्बर 1997 में वाई. वी. रेड्डी की अध्यक्षता में गठित कार्यदल ने मुद्रा की पूर्ति के सम्बन्ध में अपनी रपट जन 1998 में रिजर्व बैंक को पेश की। इस रपट में चार नए मौद्रिक माप (Mo. M. M, तथा M) तथा तीन तरलता माप (L, L, तथा L) की सिफारिश की। इसके अतिरिक्त रपट में प्रत्येक तीन माह के बाद Financial Sector Survey प्रकाशित करने की भी अनुशंसा की।

मौद्रिक समग्र तथा तरलता समग्र के घटक नीचे दिए गए हैं :

(1) मौद्रिक समग्र (Monetary Aggregates)

Mo = चलन में मुद्रा + रिजर्व बैंक के पास बैंकों की जमा राशि + रिजर्व बैंक के पासअन्य जमा राशि

M, = जनता के पास मुद्रा + बैंकों के पास मांग जमा राशि + रिजर्व बैंक के पास अन्य

जमा राशि जबकि, बैंकों के पास मांग जमा राशि = बैंकों की चालू जमा राशि + बैंकों की बचत जमा राशि का मांग दायित्व भाग

M, = जनता के पास मुद्रा + बैंकों की चालू जमा राशि + बैंकों की मियादी जमा राशि

+ रिजर्व बैंक के पास अन्य जमा राशि

My = M2 + acht T HIT HUT (Call borrowings)

(2) तरलता समग्र (Liquidity Aggregates)

L= Mg + राष्ट्रीय बचत पत्र को छोड़कर डाकघर की सभी बचत जमा राशि L,=L, + मियादी उधार संस्थाओं तथा पुनर्वित्त संस्थाओं की मियादी (Term) जमा राशि

+ वित्तीय संस्थाओं की मियादी ऋण + वित्तीय संस्थाओं द्वारा जारी किए गए जमा

पत्र (certificates of Deposits) ____L=L. + गैर-बैंक वित्तीय कम्पनियों में जनता की जमा राशि

Mo को रिजर्व मुद्रा (Reserve Money) कहा जाता है जिसके तीन घटकों की चर्चा ऊपर की गई। है। M, को संकीर्ण मुद्रा (narrow money) तथा Mg को विस्तृत मुद्रा की संज्ञा दी जाती है।

घटक (component) से पृथक्, M, अर्थात् रिजर्व मुद्रा के निम्नलिखित स्रोत (Sources) हैं :

  • रिजर्व बैंक के पास निवल विदेशी विनिमय परिसम्पत्ति (net foreign exchange assets);
  • जनता के प्रति सरकार का नकद दायित्व तथा
  • रिजर्व बैंक का निवल गैर-मौद्रिक दायित्व।

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मौद्रिक नीति

(MONETARY POLICY)

मौद्रिक नीति आर्थिक नीति की वह शाखा है जो इसके प्रमुख उद्देश्यों रोजगार एवं कीमत में स्थायित्व (स्थिरता), आर्थिक विकास, बाह्य भुगतान में सन्तुलन को मुद्रा की पूर्ति या तरलता के स्तर, ब्याज दर तथा साख की उपलब्ध मात्रा में परिवर्तन के द्वारा प्राप्त करने का प्रयास करती है। मौद्रिक नीति राजकोषीय नीति (Fiscal Policy) से इस रूप में भिन्न है कि राजकोषीय नीति के अन्तर्गत सरकार लोक व्यय तथा कर की दरों में परिवर्तन के माध्यम से आर्थिक नीति को उपर्युक्त उद्देश्यों को प्राप्त करने का प्रयास करती है।

व्यापारिक मन्दी के समय समग्र व्यय को प्रोत्साहित करने के लिए मुद्रा की पूर्ति में वृद्धि की जाती है। दूसरी ओर, मुद्रा स्फीति के समय मुद्रा की पूर्ति को कम करके समग्र व्यय में कटौती का प्रयत्न किया जाता है। मुद्रा की मात्रा में परिवर्तन का प्रभाव समग्र व्यय पर किस प्रकार पड़ता है. इस सम्बन्ध में केन्सीय अर्थशास्त्रियों का विचार मुद्रा के परिमाण सिद्धान्त तथा मुद्रावादी के विचार से भिन्न है। जहां केन्सीय अर्थशास्त्रियों की यह धारणा है कि मुद्रा की पूर्ति में परिवर्तन का प्रभाव ब्याज दर में परिवर्तन तथा निवेश में परिवर्तन के माध्यम से समग्र व्यय पर पड़ता है, वहां मुद्रावादियों का कहना है कि यह प्रभाव सीधे-सीधे उत्पत्ति तथा व्यय पर पड़ता है। मिल्टन फ्रीडमैन (Milton Friedman) मुद्रावादी विचारधारा के सबसे बड़े प्रवर्तक है।

मौद्रिक नीति के सम्बन्ध में एक और विचारणीय बात यह है कि यह नीति अकेले कितनी प्रभावशाली होती है अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में? केन्स तथा केन्सीय अर्थशास्त्रियों का ऐसा मानना है कि मौद्रिक नीति के कारगर होने में दो बाधाएं हैं। प्रथम, तरलता फन्दा (Liquidity Trap) की स्थिति में मुद्रा के परिमाण में वृद्धि का प्रभाव ब्याज दर पर नहीं पड़ता है। इस स्थिति में मुद्रा केवल मूल्य संचय का कार्य ही करती है। द्वितीय, मान लें कि ब्याज दर में परिवर्तन होता है, लेकिन यदि निवेश की ब्याज लोच (Interest Elasticity) शून्य हो, तो ब्याज दर में परिवर्तन का कोई प्रभाव निवेश पर नहीं पड़ेगा। इसलिए इस विचारधारा के अनुसार मौद्रिक नीति की अपेक्षा राजकोषीय नीति अधिक कारगर होती है, लेकिन मुद्रावादी इससे असहमति प्रकट करते हैं। आज की विचारधारा यह है कि मौद्रिक एवं राजकोषीय दोनों ही नीतियों का मिश्रित प्रयोग होना चाहिए।

मौद्रिक नीति के प्रभाव अल्पकालिक एवं दीर्घकालिक दोनों ही होते हैं। अल्पकालिक प्रभाव वित्तीय बाजार पर पड़ते हैं, जबकि दीर्घकालिक प्रभाव अर्थव्यवस्था के वास्तविक क्षेत्र (real sector) पर लम्बे एवं परिवर्तनशील विलम्ब के साथ पड़ता है।

मौद्रिक नीति के चार प्रसारण (Transmission) माध्यम हैं :

(1) परिमाण सम्बन्धी माध्यम (The Quantum Channel)—इसका सम्बन्ध मुद्रा की पूर्ति तथा साख से है। परिमाण में परिवर्तन का प्रभाव वास्तविक उत्पत्ति तथा मूल्य तल पर प्रत्यक्ष रूप से रिजर्व मुद्रा, मुद्रा के स्टॉक या सकल साख में परिवर्तन के द्वारा पड़ता है। यह मौद्रिक नीति के उत्पत्ति तथा कीमत पर प्रभाव का प्रत्यक्ष माध्यम (direct channel) है।

(2) ब्याज दर माध्यम (Interest Rate Channel)-मुद्रा की पूर्ति तथा साख में परिवर्तन के माध्यम से अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाले प्रत्यक्ष मार्ग से अलग ब्याज दर में परिवर्तन के द्वारा अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाला माध्यम परोक्ष रास्ता है। केन्स ने इसी परोक्ष मार्ग का विश्लेषण किया था।

(3) विनिमय दर माध्यम (Exchange Rate Channel)—यह भी परोक्ष माध्यम है। यहां विनिमय दर में परिवर्तन का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव की विवेचना की जाती है।

(4) परिसम्पत्ति की कीमतों में परिवर्तनों का माध्यम (Asset Prices Channel) दूसरे तथा तीसरे मार्ग की तरह यह भी मौद्रिक प्रसारण एक परोक्ष मार्ग है। मिल्टन फ्रीडमैन ने मौद्रिक नीति के प्रभाव के प्रसारण के इस मार्ग की विवेचना की है।

अर्थव्यवस्था को अनेक अनिश्चितताओं का सामना करना पड़ता है। इसलिए मौद्रिक नीति के प्रभाव का प्रसारण किस मार्ग से होता है, यह जानना अत्यन्त कठिन हो जाता है। इस कठिनाई का सम्बन्ध निम्न दो बातों से भी है :

  • मौद्रिक नीति के संकेतों के प्रति आर्थिक एजेण्टों की प्रतिक्रिया; तथा
  • अपेक्षित मौद्रिक नीति उपायों को लागू करने के लिए मौद्रिक अधिकारियों का उचित आकलन करने की कठिनाई।

विकासशील देशों में उपर्युक्त कठिनाइयां अधिक जटिल हो जाती हैं, क्योंकि अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण संरचनात्मक रूपान्तरण के कारण मौद्रिक नीति का प्रसारण चैनल लगातार विकास की प्रक्रिया में होता है। अर्थव्यवस्था के खुलेपन की डिग्री भी इसे प्रभावित करती है।

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प्रश्न

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1 मुद्रा की पूर्ति का क्या अर्थ है? भारत में मुद्रा की पूर्ति के आंकड़े किन-किन अवधारणाओं के अन्तर्गत एकत्रकिए जाते हैं?

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लघु उत्तरीय प्रश्न

1 मुद्रा के कार्यों का संक्षेप में विवरण दें

2. विस्तृत मुद्रा (M3) क्या है तथा भारत में इसके कौन-कौन घटक हैं?

3. मौद्रिक नीति से आप क्या समझते हैं?

4. मौद्रिक नीति के प्रसारण चैनल का संक्षिप्त विवरण दें

5. संकीर्ण मुद्रा (Mo) क्या है? इसके कौन-कौन घटक हैं?

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