BCom 1st Year Business Environment Parallel Economy Study Material Notes in hindi

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BCom 1st Year Business Environment Parallel Economy Study Material Notes in Hindi

Table of Contents

BCom 1st Year Business Environment Parallel Economy Study Material Notes in Hindi: Meaning of Parallel or Black Economy Sources of Creation of Parallel Economy  Reasons of Black Money and Parallel Economy  Impact of Black Income or Black Money or Parallel Economy on Country Economy Measures Undertaken To Unearth Black Money Examination Question Long Answer Questions Short Questions Answer:

Parallel Economy Study Material
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BCom 1st Year Business Environment Inflation Study Material Notes in Hindi

समानान्तर अर्थव्यवस्था

[PARALLEL ECONOMY]

समानान्तर या काली अर्थव्यवस्था का अर्थ

(MEANING OF PARALLEL OR BLACK ECONOMY)

नियामत (regular) तथा समानान्तर (parallel) अर्थव्यवस्थाएं दो समानान्तर रेखाओं (parallel lines) की तरह एक-दूसरे के विपरीत उद्देश्यों से प्रेरित होती हैं। जहां नियमित अर्थव्यवस्था सामाजिक कल्याण के उद्देश्य से प्रेरित होकर क्रिया करती है, समानान्तर अर्थव्यवस्था निजी स्वार्थ से प्रेरित होती है। नियमित अर्थव्यवस्था की क्रियाओं का लेखा-जोखा राष्ट्रीय आय की गणना में होता है। इसलिए यह स्वीकृत अर्थव्यवस्था (Sanctioned economy) है, इसका लेखा-जोखा राष्ट्रीय आय में होता है, इसलिए यह लेखा-जोखा सहित अर्थव्यवस्था (Accounted Economy) है।

समानान्तर अर्थव्यवस्था को ‘काली अर्थव्यवस्था’ (Black Economy), ‘लेखा-जोखा रहित अर्थव्यवस्था’ (Unaccounted Economy), ‘गैर-कानूनी अर्थव्यवस्था’ (Illegal Economy), ‘भूमिगत अर्थव्यवस्था’ (Subterranean or Underground Economy) या अस्वीकृत अर्थव्यवस्था’ (Unsanctioned Economy) भी कहा जाता है।

रंगनेकर का कहना है कि कुछ वर्ष पूर्व काला बाजार भूमिगत अर्थव्यवस्था कहलाता था। धीरे-धीरे जो अर्थव्यवस्था भूमिगत थी वह ऊपर आ गई तथा समानान्तर अर्थव्यवस्था बन गई। अब यही अर्थव्यवस्था सार्वभौम अर्थव्यवस्था (Sovereign economy) बन गई है। इसने बाजार तन्त्र को पूरी तरह अपने नियन्त्रण में ले लिया है तथा यथार्थ में औपचारिक लेन-देन (Official transactions) या नियमित आर्थिक क्रियाओं (regular economic activities) को डुबो दिया है।

पेंडसे (Pendse) का कहना है कि देश के सामने अनेक गम्भीर आर्थिक समस्याएं हैं, लेकिन काली मुद्रा (Black money) की समस्या की अलग प्रकृति है। जब हम निर्धनता या बेरोजगारी की समस्या की बात करते हैं, तब निर्धन या बेरोजगार लोगों पर विचार किया जाता है। जब कैंसर की समस्या की चर्चा होती है, कैंसर के रोगी ही इससे कष्ट पाते हैं। लेकिन काली मुद्रा के साथ बात ऐसी नहीं है। जिन व्यक्तियों के पास काली मुद्रा रहती है उन्हें स्वयं किसी विशेष समस्या का सामना नहीं करना पड़ता है। वे तो उनके लिए समस्या खड़ी करते हैं जिनके पास काली मुद्रा नहीं है अर्थात् ईमानदार व्यक्तियों तथा सरकार के लिए। काली मुद्रा पर आधारित अर्थव्यवस्था को अक्सर समानान्तर अर्थव्यवस्था कहा जाता है। यह इस मान्यता पर आधारित है कि सफेद मुद्रा पर आधारित अर्थव्यवस्था तथा काली मुद्रा पर आधारित अर्थव्यवस्थाएं एक-दूसरे के विपरीत हैं तथा समानान्तर रेखाओं की तरह कभी मिल नहीं सकती हैं। यथार्थ में दोनों अर्थव्यवस्थाएं एक-दूसरे के साथ जुड़ी हुई हैं तथा काली मुद्रा को सफेद मुद्रा में परिवर्तित करने की प्रक्रिया सदा चालू रहती है।

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समानान्तर अर्थव्यवस्था के सृजन के स्रोत

(SOURCES OF CREATION OF PARALLEL ECONOMY)

ऐसा विश्वास किया जाता है कि काली मुद्रा का परिमाण भारत में इतना अधिक है कि एक दूसरी अर्थव्यवस्था समानान्तर अर्थव्यवस्था—क्रिया करने लगी है तथा कानूनी या औपचारिक अर्थव्यवस्था से प्रतिस्पर्धा करने लगी है। चंकि समानान्तर अर्थव्यवस्था की जड़ काली मुद्रा है. इसलिए इसी पर ध्यान केन्द्रित किया जाए।

काली मुद्रा की कोई सुस्पष्ट परिभाषा नहीं है। इसका कारण यह है कि काली मुद्रा को सफेद मुद्रा से अलग नहीं किया जा सकता है, यथार्थ में सभी मुद्राओं (काली तथा सफेद) का एक ही रंग होता है। काली मुद्रा का रंग काला नहीं होता है, बल्कि इसका स्रोत वैधानिक नहीं है। काली मुद्रा के अनेक स्रोत हैं, इसलिए इसके कई नाम भी हैं, जैसे, दूषित मुद्रा (tainted money) अर्थात मद्रा जिसके साथ लांछन लगा है: रेकॉर्ड। रहित लाभ, लेखा रहित आय, अघोषित सम्पत्ति, दबा हुआ लेन-देन, आदि।

काली मुद्रा का सृजन द्वितीय विश्वयुद्ध से शुरू हुआ काला बाजार के स्वाभाविक परिणाम के रूप में। युद्ध की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए विशाल पैमाने पर भौतिक साधनों का स्थानान्तरण हथियार बनाने में हुआ। फलतः आम जनता की जरूरत की अनिवार्य वस्तुओं की कमी हो गई। इन वस्तुओं की कीमतें बढ़कर आम जनता की पहुंच के बाहर न हो जाएं, इसलिए मूल्य नियन्त्रण तथा राशनिंग की व्यवस्था लागू की गई। एक गुप्त (clandestine) बाजार—काला बाजार का विकास हुआ जहां नियन्त्रित वस्तुएं ऊंची कीमतों पर उपलब्ध होती थीं। सी. एन. वकील का कहना है कि “काली मुद्रा शब्दों का उपयोग उस मुद्रा के लिए किया जाने लगा जो काला बाजार में लेन-देन के भुगतान या प्राप्ति के लिए दी जाती है।”

द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात अनेक प्रकार के नियन्त्रण हटा लिए गए, काला बाजार का दायरा सिमट गया। किन्तु नियमित लेखा में अनेक प्रकार के लेन-देन को न लिखने की प्रथा जारी रही, क्योंकि इससे कर दायित्व को कम करने में मदद मिलती थी। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात्, विशेषकर योजनाकरण के युग के प्रारम्भ होने के बाद, हमारी अर्थव्यवस्था में काला बाजार का क्षेत्र (scope) बढ़ गया। यह मूल्य नियन्त्रण के उल्लंघन तथा नियन्त्रित वस्तुओं को नियन्त्रित मूल्य से ऊपर कीमत पर बेचने तक ही सीमित नहीं रहा। सरकार की लाइसेन्स नीति के अन्तर्गत विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन के लिए परमिट लेने की आवश्यकता होती थी। इसने काला बाजार के लिए एक नया विस्तत द्वार खोल दिया। जिन लोगों को कुछ सुविधाएं प्राप्त करनी थीं वे इसके लिए घूस (bribe) या अधिमूल्य (premium) देने को प्रस्तुत रहते थे।

विदेशी विनिमय पर नियन्त्रण काला बाजार का एक अन्य क्षेत्र था। सोना तथा विलास की कुछ अन्य विदेशी सामग्रियों की घरेलू बाजार में बहुत अधिक मांग है। इसलिए इनकी कीमतें काफी ऊंची हैं। लेकिन इनके आयात पर या तो प्रतिबन्ध लगे हैं या इन पर काफी ऊंचा आयात शुल्क लगा है। इसने तस्करी (smuggling) को अत्यन्त प्रोत्साहन दिया है। तस्कर तस्करी की वस्तुओं का भुगतान अवैधानिक रूप से उपार्जित विदेशी मुद्रा में करते हैं। कुछ दुर्लभ वस्तुओं की खरीद पर भुगतान आंशिक रूप से नकद मुद्रा में तथा आंशिक रूप से चेक द्वारा किया जाता है। ऐसे भुगतान में नकद हिस्से का कोई लेखा-जोखा नहीं रहता है। मध्यम एवं बड़े शहरों में फ्लैट (flats), मोटरगाड़ी, ट्रक, फ्रीज, कलर टी.वी., आदि की खरीद ऐसे ही लेन-देन के उदाहरण हैं। बिना रसीद लिए सामान खरीदना आम बात है। इससे बिक्री कर की चोरी होती है। आयकर की चोरी आम बात है। यह चोरी विशेषकर व्यवसायी, वकील, डॉक्टर, परामर्शदाता, आदि करते है।

आज काली मुद्रा में सभी प्रकार की वे आय, लेन-देन तथा सम्पत्ति शामिल हैं जिनका कोई लेखा-जोखा नहीं होता है। यह विस्तृत सन्दर्भ अब केवल भारत तक ही सीमित नहीं है। यह विश्वस्तर पर फैल चुकी है। अनेक विकसित एवं विकासशील देश इसकी चपेट में आ चुके हैं। हाल के वर्षों में अर्थशास्त्री एवं नीति-निर्धारक काली मुद्रा के परिणामों को लेकर पूरे विश्व में चिन्तित हैं।

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काली मुद्रा तथा समानान्तर अर्थव्यवस्था के कारण

(REASONS OF BLACK MONEY AND PARALLEL ECONOMY)

काली मुद्रा के सृजन के अनेक कारण हैं, जैसे—अवैधानिक क्रियायें, भ्रष्टाचार, करों की ऊंची दरें, नियन्त्रण का दाषपूर्ण व्यवस्था लाइसेन्स एवं परमिट, मुद्रास्फीति की ऊंची दर, राजनीतिज्ञा तथा मजदूर नेताओं की क्रियाएं, नैतिकता का पतन, आदि। महत्वपूर्ण कारणों की विवेचना आगे की गई है:

(1) नियन्त्रण (Controls) काली मद्रा के सजन के लिए शायद सबसे अधिक महत्वपूर्ण कारक नियन्त्रण ही रहा है जिसके अन्तर्गत न केवल वैधानिक नियन्त्रण आता है अपितु नौकरशाही तथा प्रशासनिक नियन्त्रण और विलम्ब, प्रक्रिया सम्बन्धी वाद-विवाद आदि भी आते हैं। द्वितीय विश्वयुद्ध के पूर्व भारतीय अर्थव्यवस्था के समक्ष किसी महत्वपूर्ण वस्तु का अभाव नहीं था। युद्धकाल में स्थिति बदल गई तथा अनेक महत्वपूर्ण वस्तुएं दुर्लभ हो गई। इस स्थिति का सामना करने के लिए कीमत नियन्त्रण तथा राशनिंग व्यवस्था लागू की गई। इसने काला बाजार को जन्म दिया। युद्ध की समाप्ति पर युद्धरत यूरोपीय देशों ने सभी प्रकार के नियन्त्रण को समाप्त कर दिया। किन्तु, भारत ने ऐसा नहीं किया।

स्वतन्त्रता के पश्चात् योजनाकाल में उपभोक्ता वस्तुओं का अभाव फिर उपस्थित हो गया और कीमतें बटने लगी। कीमत नियन्त्रण तथा राशनिंग, जिन्हें स्वतन्त्रता के तुरन्त बाद महात्मा गांधी के आग्रह पर कछ समय के लिए हटा लिया गया था, फिर से लागू कर दिया गया। वांचू समिति का कहना है कि सावधानी बरतने के बावजूद नियन्त्रण एवं नियमन का उपयोग चरित्रहीन एवं बेईमान लोगों ने अवैध सम्पत्ति इकट्ठा करने के लिए किया।

मूल्य नियन्त्रण के अतिरिक्त नियन्त्रण का उपयोग अनेक अन्य प्रकार से भी किया गया, जैसे, निम्न प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में निवेश को रोकने के लिए, विदेशी विनिमय की कमी की समस्या के समाधान के लिए परमिट तथा लाइसेन्स प्रणाली के माध्यम से, आदि। मिन्हास (Minhas) का कहना है कि शासकों ने राष्ट्रीय अभाव का प्रबन्ध करोड़पतियों को लाभ पहुंचाने के लिए किया। इसका यह अर्थ है कि नियन्त्रण के साथ-साथ इसका कुटिल एवं धोखापूर्ण अनुपालन भी काली मुद्रा के सृजन के लिए जिम्मेवार है।

(2) करों की ऊंची दरें (High Rates of Taxes)-करों की चोरी तथा काली मुद्रा आपस में जुड़े हैं। करों की चोरी काली मुद्रा का सृजन करती है। यद्यपि कर की चोरी विश्वव्यापी तथ्य है, फिर भी भारत में यह जिस परिमाण में होती है वह अन्य देशों से अलग है। कर की चोरी के जो आंकड़े कॉल्डर, वांचू समिति तथा अन्य ने दिए हैं वे इसका संकेत देते हैं। इनका कहना है कि करों की अत्यधिक ऊंची दरें इसे बढ़ावा देती हैं। जब कर की सीमान्त दर 97.75 प्रतिशत जितनी ऊंची हो, आय को छिपाने का लाभ 4,300 प्रतिशत हो सकता है। वांचू समिति का यह भी कहना है कि 97.75 प्रतिशत आयकर का तात्पर्य यह है कि आय के एक खास स्तर पर 30 ₹ पर कर चोरी करना 1,000 ₹ की आय का उपार्जन करने से अधिक लाभदायक है। गुप्ता एवं गुप्ता का कहना है कि जब कर की औसत दर में 1 प्रतिशत की वृद्धि होती है, तो अस्वीकृत अर्थव्यवस्था के आकार में स्वीकृत अर्थव्यवस्था की तुलना में 3.16 प्रतिशत की वृद्धि होती है।

(3) भ्रष्टाचार (Corruption) कानून का उल्लंघन करके जो क्रिया की जाती है वह अवैधानिक है। ऐसी क्रियाओं के लाभभोगी (beneficiary) अपनी आय को आयकर के रिटर्न में नहीं दिखाते हैं। ऐसी अवैधानिक, गैर-कानूनी क्रिया को भ्रष्टाचार कहा जाता है। घूसखोरी तथा तस्करी भ्रष्टाचार के दो प्रमुख रूप है।

ऐसा कहा जाता है भारत में भ्राष्टाचार सदा से उपस्थित रहा है इसका प्रसंग कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी मिलता है। मगल और ब्रिटिश शासनकाल में भी यह मौजूद था। आज भ्रष्टाचार समाज तथा सरकार के प्रत्येक वर्ग में विद्यमान है। इसके दुष्प्रभाव में आज प्रशासन, राजनीतिज्ञ, स्वैच्छिक संस्थाएं, विश्वविद्यालय, व्यवसायी, आदि सभी हैं। श्रम संघों के सम्बन्ध में नवल एच. टाटा ने कहा, “मैं भगवान से प्रार्थना करता हूं कि मुझे अगले जन्म श्रम संघ का नेता बनाना ताकि मुझे स्थिर एवं अच्छी आय प्राप्त होती रहेगी।” आज की परिस्थिति का सही आकलन करते हुए बी.के. नेहरू ने 1981 में कहा था कि हम भ्रष्टाचार के इतने अभ्यस्त हो गए हैं कि इसे नैतिकता तथा शालीनता का विनाशकारी समझने की अपेक्षा जीवन का एक स्वीकृत तथ्य मान लेते हैं। समाज के प्रत्येक क्षेत्र (निजी एवं सार्वजनिक) में यह व्याप्त है।

बी. के. नेहरू का आगे कहना है कि भ्रष्टाचार के लिए मुख्य अभियुक्त हमारी राजनीतिक व्यवस्था है जिसमें चुनाव की भूमिका सबसे अधिक घातक है। लोक सभा की 542 सीटें चुनाव से भरी जाती हैं। इसी प्रकार चुनाव से 3,553 विधानसभा सीटें भरी जाती हैं। प्रत्येक सीट के लिए प्रत्येक उम्मीदवार लाखों रुपए खर्च करता है और प्रत्येक सीट पर अनेक उम्मीदवार खड़े होते हैं। इस प्रकार कुल चुनाव खर्च अरबों-खरबों रुपए में जाता है और प्रायः कुल रकम की वित्त व्यवस्था काली मुद्रा द्वारा होती है।

 (4) मुद्रास्फीतिद्वितीय विश्वयुद्ध के समय से ही भारत तथा अन्य विकसित एवं विकासशील देशों। में कीमतें बढ़ रही हैं। भारत जैसे निर्धन देश के लिए लगातार उपस्थित मुद्रास्फीति के परिणाम अत्यन्त भयानक हुए हैं। ऐसी मुद्रास्फीति की दशा में लोग नकद मुद्रा संचय नहीं करते हैं जिसका मूल्य घटना है बल्कि भूमि, सोना, आदि में संचय करते हैं जिनकी कीमतें बढ़ती हैं। इससे, जैसा ब्रह्मानन्द का कहना है, समानान्तर बाजार का विकास होता है तथा कर की चोरी करने तथा आय छिपाने की प्रवृत्ति बढ़ती है।

उपरोक्त प्रमुख कारणों के अतिरिक्त कुछ अन्य कारणों की भी विवेचना की जाती है, यथा

(5) सामाजिक दृष्टिकोण में परिवर्तनपहले की तुलना में आज समाज काली मुद्रा उपार्जन करने वालों. काला बाजार करने वालों तथा कर की चोरी करने वालों की कम आलोचना करता है तथा उनको सहन करता है।

(6) पारम्परिक मूल्यों का पतनभारतीय मूल्यों तथा आदर्शों के पतन के कारण गलत क्रियाओं के प्रति समाज की सहनशीलता बढ़ गयी है तथा दण्ड देने की शक्ति घट गई है।

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काली मुद्रा की मात्रा (Quantum of Black Money)

काली मुद्रा की मात्रा के विषय में अनेक अनुमान लगाए गए हैं। डी. आर. रंगनेकर वांचू समिति का एक सदस्य था। उसने 1980-81 में काली मुद्रा का अनुमान लगाया तथा बताया कि उस वर्ष इसकी मात्रा 18,241 करोड़ र थी जो उस वर्ष के GDP का 16.3 प्रतिशत था। अनुपम गुप्ता तथा पूनम गुप्ता का अनुमान था कि यह मुद्रा GDP की लगभग एक-तिहाई थी। इसी अवधि के लिए जे.सी. सनदेसरा का अनुमान था कि काली मुद्रा GDP का कम-से-कम 10 प्रतिशत तथा ज्यादा से ज्यादा 15 प्रतिशत था।

कॉल्डर ने काली आय का जो अनुमान किया वह पहला अनुमान था। उसने बताया कि यह 1953-54 में 600 करोड़ रथी, जो राष्ट्रीय आय का 6 प्रतिशत था। वांच समिति का अनुमान इस प्रकार था 1961-62 में 700 करोड़ र, 1965-66 में 1,000 करोड़ तथा 1968-69 में 1,400 करोड़ र। इन तीनों वर्षों में काला धन राष्ट्रीय आय का 4.0 प्रतिशत था।

चोपड़ा ने 1960-61 से 1976-77 की अवधि में 17 वर्षों के लिए काला धन का अनुमान प्रस्तुत किया। उनके अनुसार 1960-61 में यह राष्ट्रीय आय का 6.1 प्रतिशत था जो 1976-77 में बढ़कर 10.5 प्रतिशत हो गया।

उपर्युक्त अनुमानों से एक बात स्पष्ट है कि चाहे जो भी अनुमान सही हो, काली आय की मात्रा में निरपेक्ष एवं सापेक्ष दोनों प्रकार की वृद्धि हो रही है।

लेकिन पूनम गुप्ता व संजीव गुप्ता ने अपना नया तरीका अपनाया (जिसे Feige’s Method कहा जाता है जिसके अनुसार काली आय की मात्रा 1967-68 व 1978-79 के बीच 3,034 करोड़ ₹ से बढ़कर 46,867 करोड़ र हो गई (अर्थात् 15 गुने से अधिक वृद्धि हुई)।

राष्ट्रीय सार्वजनिक वित्त एवं नीति संस्थान (National Institute of Public Finance and Policy) के अनुसार 1983-84 में 31,584 करोड़ ₹ से लेकर 36,784 करोड़ तक काली आय थी, जो राष्ट्रीय आय की 18 से 21 प्रतिशत बैठती है।

परन्तु डॉ. सूरजभान गुप्ता के अनुसार 1992 में यह काली आय 51,000 करोड़ र की थी, लेकिन संसद की स्थायी समिति (Parliament Standing Committee) ने 1994-95 के लिए काली आय की मात्रा 3,00,000 करोड़ र आंकी थी (1980-81 की कीमतों के आधार पर)। इस प्रकार इस 14 वर्ष के काल में काली आय 488 प्रतिशत बढ़ी। इसी समिति के अनुसार काला धन (Black Money) उस समय 11,00,000 करोड़ ₹ का चलन में था जो राष्ट्रीय आय का 130 प्रतिशत बैठता था। इस प्रकार काला धन समानान्तर अर्थव्यवस्था के रूप में चल रहा है। भाजपा कार्यदल 2009 ने अपनी अन्तरिम सिफारिशों में काले धन का अनमान 500 अरब डॉलर से 1,400 अरब डॉलर के बीच लगाया था। ग्लोबल फाइनेशियल इंटेग्रिटी ने इस सम्बन्ध में नवीन अनुमान 462 अरब डॉलर का लगाया है।

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देश की अर्थव्यवस्था पर काली आय या काले धन

या समानान्तर अर्थव्यवस्था का प्रभाव

(IMPACT OF BLACK INCOME OR BLACK MONEY OR

PARALLEL ECONOMY ON COUNTRY’S ECONOMY)

काली आय या कालेधन या समानान्तर अर्थव्यवस्था का एक देश की अर्थव्यवस्था पर काफी प्रभाव पड़ता है। इस प्रभाव को निम्न मदों में रखकर अध्ययन कर सकते हैं:

(1) राज्य को आगम की हानि (Loss of Revenue) जब काली आय प्राप्त की जाती है तो इससे राज्य को आगम की हानि होती है अर्थात् राज्य को कर पूरी मात्रा में नहीं मिलते हैं। यदि कर परी मात्रा में मिल गये होते तो राज्य द्वारा अधिक धन सामाजिक विकास पर लगाया जा सकता था।

(2) आर्थिक असमानता सम्पत्ति का केन्द्रीकरण (Economic Inequality and Concentration of Wealth) काली कमाई से आर्थिक असमानता बढ़ती है तथा सम्पत्ति अमीरों के हाथों में केन्द्रित हो जाती है. जिससे आर्थिक नियोजन गड़बड़ा जाता है। प्राथमिक क्षेत्रों में विनियोग कम हो पाता है।

(3) संसाधनों का मकान सम्पत्ति की ओर विचलन (Diversion of Resources towards Home Property) कालेधन का अधिकांश उपयोग मकान सम्पत्ति की ओर किया जाता है। पंजीकरण के लिए मकान का मूल्य बाजार मूल्य से बहुत कम ही रखा जाता है तथा इससे काले धन को सफेद धन में बदल दिया जाता है। मध्यम वर्ग व निम्न वर्ग मकान क्रय से मरहूम रह जाते हैं। मकान व सम्पत्ति का मूल्य कम अंकित करने से सरकार को स्टाम्प शुल्क कम ही मिल पाता है।

(4) भारत के बाहर कोषों का स्थानान्तरण (Transfer of Funds in Foreign Countries) इसके लिए निर्यातों का मूल्य कम लिया जाता है (Under Invoicing of Exports) व आयातों का मूल्य अधिक दिया जाता है (Over Invoicing of Imports)|

(5) धन का अपव्ययी उपयोग (Wasteful use of Money) समानान्तर अर्थव्यवस्था में धन का अपव्ययी उपभोग होता है। इसका अर्थ है कि फिजूलखर्ची बढ़ती है तथा धन अनुत्पादक (Unproductive) कार्यों की ओर खिसक जाता है जिसे उत्पादक कार्यों में लगाकर देश का कल्याण किया जा सकता था। इस प्रकार देश का विकास धीमा हो जाता है।

(6) साख नियंत्रण संसाधन प्रभावहीन होना (Ineffective Credit Control Measures) जब देश में काली तरलता (Black Liquidity) अधिक होती है तो सरकार द्वारा आयोजित साख नियंत्रण संसाधन प्रभावहीन से हो जाते हैं और वे आशा के अनुरूप प्रभाव नहीं दिखा पाते हैं।

(7) मुद्रास्फीति को बढ़ावा (Push to Inflation)—काली आय मुद्रास्फीति का एक महत्वपूर्ण कारण है। यह कारण परोक्ष है। इससे मूल्य वृद्धि को बढ़ावा मिलता है जिससे आम जनता को कठिनाई होती है। इसीलिए बान्चू समिति ने लिखा है कि “काला धन एक प्रकार से देश की अर्थव्यवस्था में कैन्सर के विकास जैसा है, जिसे यदि समय पर न रोका गया तो निश्चय रूप से यह देश को बर्बादी की ओर ले जाता है।”

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कालाधन निकालने के लिए उठाये गये कदम

(MEASURES UNDERTAKEN TO UNEARTH BLACK MONEY)

भारत में कालाधन निकालने के लिए तीन कार्य किये गये हैं—(1) विमुद्रीकरण, (II) स्वतः प्रकटीकरण योजनाएं व (III) बाण्ड।

(1) विमुद्रीकरण (Demonetization) विमुद्रीकरण का अर्थ है सरकार द्वारा एक निश्चित मूल्य वाले। नोटा का चलन एकदम बन्द कर देना तथा ऐसे नोटों के धारकों को अन्य छोटे नोटों में बदलने की सुविधा दना। लेकिन नोट बदलते समय यह सबत देना होगा कि यह उनकी वैध कमाई है अन्यथा उन पर कर लगाया जायगा। सरकार ने बार किया—पहली बार 1946 में जब 1.000 ₹ के नोटों का चलन बन्द । किया व दूसरी बार 1978 में जब 1,000, 5,000 व 10,000 ₹ के नोटों का चलन बन्द किया। दोनों ही  बार सरकार को इसमें कोई सफलता नहीं मिली। पहली बार केवल 9 करोड़ के नोट बदलने के लिए प्रस्तता नहीं किये गये जबकि दूसरी बार 145 करोड़ र के।

भारत के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 8 नवम्बर, 2016 को राष्ट्र के नाम सम्बोधन में रात्रि 12 बजे के बाद 500 ₹ तथा 1,000 र के करेन्सी नोटों की विधिग्रह्यता को समाप्त किए जाने की घोषणा के साथ ही भारतीय रिजर्व बैंक ने इन नोटों का विमुद्रीकरण कर दिया। इसका उद्देश्य, देश में व्याप्त भ्रष्टाचार को समाप्त करना, कालेधन को अर्थव्यवस्था की मुख्य धारा में लाना, हवाला कारोबार पर रोक लगाना, आतंकवादियों को धन उपलब्ध कराने पर रोक लगाना तथा मुद्रा प्रसार को रोक कर बढ़ती कीमतों पर अंकुश लगाना है।।

(II) स्वतः प्रकटीकरण योजनाएं (Voluntary Disclosure Schemes) स्वतः प्रकटीकरण योजनाएं वे योजनाएं हैं जिनमें कालाधन घोषित करने वालों को अपने घोषित काले धन का एक निश्चित प्रतिशत सरकार को कर के रूप में देना पड़ता है और उसके विरुद्ध कोई कानूनी कार्यवाही नहीं की जाती है। इस प्रकार, घोषित काले धन का एक निश्चित प्रतिशत देने पर काली आय सफेद आय में बदल जाती है। स्वतंत्रता के पश्चात् अब तक पांच बार इस प्रकार का अवसर जनता को दिया गया है।

(III) बॉण्ड (Bond)-1981 में सरकार ने 10,000 ₹ के विशेष धारक बॉण्ड (Special Bearer Bond) जारी किये जिनकी विशेषता यह थी कि 10 वर्ष पश्चात सरकार बॉण्ड धारक को 10,000 ₹ के स्थान पर 12,000₹ वापस करेगी तथा बॉण्डधारक को पूर्ण छूट (Complete immunity) होगी और उससे इसकी आय का स्रोत नहीं पूछा जायेगा इस योजना के अन्तर्गत 964 करोड़ र के बाण्ड बिके।

इस प्रकार, सरकार को 1985 तक की स्वतः प्रकटीकरण योजनाओं, एवं विमुद्रीकरण से केवल 776.7 करोड़ ₹ ही कर के रूप में मिले थे, लेकिन अकेले 1997 की स्वतः प्रकटीकरण योजना से ही 10,500 करोड़ ₹ मिले (जिसमें घोषित आय 33.000 करोड़ रथी) जो इस बात का प्रमाण है कि यह योजना कुछ सार्थक रही परन्तु यह तो कुल कालेधन का केवल 3 प्रतिशत ही बताया जाता है। इस प्रकार अभी भी 97 प्रतिशत कालाधन चलन में है।

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काली आय या कालाधन या समानान्तर अर्थव्यवस्था को रोकने के उपाय

(MEASURES TO CHECK BLACK INCOME OR BLACK MONEY OR PARALLEL ECONOMY)

काली आय या कालाधन या समानान्तर अर्थव्यवस्था को रोकने के लिए प्रमुख सुझाव निम्न प्रकार हैं :

(1) कर ढांचे को युक्तिसंगत बनानाभारत सरकार को कर ढांचा युक्तिसंगत बनाना चाहिए। करों की दरें कम करनी चाहिए जिससे कि लोग स्वतः ही पूरा कर देने के लिए उत्साहित हों। साथ ही कर वंचना (Tax Evasion) करने वाले पर भारी दण्ड एवं मुकद्दमा चलाया जाना चाहिए। संसद सदस्य, विधानसभा सदस्य एवं मंत्री जैसे राजनेताओं तथा सरकारी अधिकारियों व कर्मचारियों पर कठोर दण्ड की व्यवस्था होनी चाहिए जो दूसरों के लिए आदर्श हो सकें।

(2) अनावश्यक नियंत्रणों को हटाना (Removal of Unnecessary Controls)-अनावश्यक नियंत्रण, लाइसेन्स, कोटा जैसी पद्धतियों से छुटकारा मिलना चाहिए जिससे कि वे परिस्थितियां उत्पन्न ही न हों जिनके आधार पर काली कमाई की जा सकती है।

(3) वास्तविक भूसम्पत्ति की जांच (Real Estate Enquiry) काली आय या काला धन वास्तविक भू-सम्पत्ति में काफी मात्रा में लगाया जाता है और वास्तविक मूल्य से कम पर ही उसकी लिखापढ़ी होती है। इसको रोकने एवं जांच का कार्य किया जाना चाहिए जिससे कि वास्तविक मूल्य पर उसको दिखाया जा सके। यदि किसी प्रकार मूल्य का कम होना सिद्ध हो जाता है तो ऐसी सम्पत्ति सरकार को ले लेनी चाहिए तथा क्रेता पर भारी दण्ड एवं कारावास की व्यवस्था होनी चाहिए।

(4) चुनाव सुधार (Electoral Reforms) राजनीतिक पार्टियां चुनाव लड़ने के लिए चंदा लेती हैं। इसको रोका जाना चाहिए क्योंकि जो प्रभावशाली उद्योगपति ऐसा चंदा देते हैं वे उसके बदले में उस पार्टी से कुछ अवश्य चाहते हैं। बस यहीं राजनेता या मंत्री ईमानदारी से कार्य नहीं कर पाते हैं और वे उन्हें कहीं। न कहीं लाभ अवश्य पहुंचाते हैं। इससे काली आय होती है व कालाधन एकत्रित होता है जो समानान्तर । अर्थव्यवस्था का कार्य करता है।

उपर्युक्त सुझाव कारगर नहीं हो सकते जब तक कि प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार एवं नतिकता म वद्धि न हो। साथ ही पूंजीपति वर्ग एवं राजनीतिक वर्ग के सम्बन्धों में भी सधार की आवश्यकता है। इन सबसे काली आय कम तो हो सकती है परन्तु पूर्ण रूप से समाप्त शायद न हो सके।

काले धन पर अंकुश लगाने के लिए सरकार द्वारा 1 लाख से अधिक मूल्य के क्रय-विक्रय के मामले । में पैन (PAN) का उल्लेख करना अनिवार्य कर दिया है।

काले धन से निपटने के लिये सरकार की पांच सत्रीय रणनीति देश में काले धन की गम्भीर समस्या एवं विदेशों में जमा अवैध धन के खतरों से निपटने के लिये तत्कालीन केन्द्रीय वित्त मन्त्री प्रणब मुखर्जी ने 25 जनवरी, 2011 को नई दिल्ली में एक संवाददाता सम्मेलन में पांच सत्रीय रणनीति को स्पष्ट किया। इसके । अनुसार निम्न नीति अपनायी जायेगी :

1 काले धन के विरुद्ध विश्वव्यापी मुहिम से जुड़ाव,

2. उपयुक्त विधायी तन्त्र का निर्माण,

3. अवैध धन से निपटने के लिये संस्थानों का गठन,

4. क्रियान्वयन हेतु तन्त्र का विकास,

5. प्रभावी कार्यवाही हेतु प्रशिक्षित श्रम शक्ति की तैयारी।

केन्द्र की वर्तमान सरकार ने विदेशों में जमा अवैध धन निकालने के लिए एस. आई. टी. का गठन किया है तथा स्विट्जरलैण्ड सहित अन्य देशों में जमा भारत का काला धन ज्ञात करने हेतु प्रयासरत है।

काले धन पर अंकुश लगाने हेतु अघोषित विदेशी आय और सम्पत्ति

(कर अधिरोपण) विधेयक, 2015

लोकसभा ने 11 अप्रैल, 2015 को तथा राज्यसभा ने 13 मई, 2015 को विदेशों में जमा काले धन पर अंकुश लगाने के लिए अहम माने जा रहे अघोषित विदेशी आय और सम्पत्ति (कर अधिरोपण) विधेयक, 2015 को पारित कर दिया है। इसमें विदेशों में अवैध काला धन रखने वालों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही का प्रावधान करते हुए 10 वर्ष तक की सजा और जुर्माना तथा 120 प्रतिशत तक कर वसूलने का प्रावधान है।

इस विधेयक के प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित हैं :

1 यह कानून 1 अप्रैल, 2016 से लागू हुआ तथा विदेशी आय से सम्बन्धित आयकर अधिनियम, 1961 को इस सीमा तक पुनः स्थापित कर देगा।

2. विदेशी आय को छुपाने का दोषी पाए जाने पर या कर अपवंचन को आपराधिक कृत्य माना जाएगा।

3. कर-निर्धारण वर्ष एवं पूर्व के वर्ष में अघोषित विदेशी आय या सम्पत्ति पर 30% की एक सपाट दर से कर तथा 90% की दर से दण्ड लगेगा।

4. किसी प्रकार की छूट, कटौती या अगले लाभ से घाटा प्रतिपूर्ति अनुमन्य नहीं होगी।

5. एक सीमित समयावधि के लिए एक बार अनुपालन का अवसर मिलेगा। इस सुविधा का लाभ उठाने वाले लोग कर अधिकारियों को 30% की दर से दण्ड का भुगतान करके अन्य दण्डों से बच सकेंगे। उन्हें 30% की दर से कर का भुगतान भी करना होगा।

सरकार द्वारा अघोषित विदेशी आय एवं आस्तियां (कर अधिरोपण) अधिनियम, 2015 को संसद से पारित करा लिए जाने की सफलता के क्रम में 13 मई, 2015 को देश के भीतर बेनामी परसम्पत्तियों के द्वारा अघोषित आय तथा काला धन के बढ़ते आकार को रोकने के लिए “बेनामी लेन-देन (निषेध) संशोधन विधेयक, 2015” लोकसभा में पेश किया गया। यह विधेयक वित्त मन्त्रालय की स्थायी समिति को सन्दर्भित कर दिया गया। उत्तर, मध्य एवं पश्चिमी भारत में ‘बेनामी’ शब्द का प्रयोग ऐसी सम्पत्तियों के लिए किया जाता है, जो किसी अन्य के नाम, जो न तो वास्तविक क्रेता होता है और न भुगतान करता है, के नाम खरीदी और बेची जाती है।

Business Environment Parallel Economy

प्रश्न

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1 समानान्तर या काली अर्थव्यवस्था से आप क्या समझते हैं? भारत में काली अर्थव्यवस्था का क्या अनुमान है? इसकी उत्पत्ति के लिए उत्तरदायी कारणों की व्याख्या कीजिए।

2. कालाधन किसे कहते हैं? भारत में इसको निकालने के लिए क्या प्रयत्न किए गए हैं? कालाधन रोकने के उपाय बताइए।

3. काला धन क्या है? इससे देश की अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ता है ?

लघु उत्तरीय प्रश्न

1 काला धन से क्या अभिप्राय है?

2. काला धन के उत्पत्ति के क्या कारण हैं?

3. काला धन मुद्रा स्फीति को कैसे बढ़ाता है ?

4. विमुद्रीकरण क्या है?

5. भारत में 8 नवम्बर, 2016 को हुए विमुद्रीकरण के क्या कारण थे?

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बहुबिल्कपीय प्रश्न

1 भारत में 8 नवम्बर, 2016 को हुए विमुद्रीकरण के कारण थे :

(अ) काले धन को अर्थव्यवस्था की मुख्य धारा में लाना

(ब) देश में भ्रष्टाचार को समाप्त करना

(स) मुद्रा प्रसार पर अंकुश लगाना

(द) उपर्युक्त सभी

2. काले धन पर अंकुश के लिए निम्नलिखित में से किस राशि से अधिक मूल्य के किसी भी क्रय-विक्रय के मामले में ‘पैन’ (PAN) करना अनिवार्य है?

(अ)2,000 हजार ₹

(ब) 50 हजार २

(स) 1 लाख र

(द)2 लाख ₹

3. काले धन की उत्पत्ति का कारण है :

(अ) भ्रष्टाचार

(ब) नियन्त्रण एवं लाइसेन्स व्यवस्था

(स) समाज में नैतिकता की कमी

(द) इनमें से सभी

[उत्तर : 1. (द), 2. (स), 3. (द)।

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chetansati

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