BCom 1st Year Business Environment Price Study Material Notes in Hindi

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BCom 1st Year Business Environment Price Study Material Notes in Hindi

BCom 1st Year Business Environment Study Price Material Notes in Hindi: Meaning of Price Mechanism or Price System and Market Mechanism Price Theory Fixed Price and Flexible Price Behaviour in India Examination Question Long Answer Questions Short Answer Questions :

Price Study Material Notes
Price Study Material Notes

BCom 1st Year Business Environment Finance Study Material Notes in Hindi

कीमत [PRICE]

कीमत का अर्थ

(MEANING OF PRICE)

किसी वस्तु या साधन की कीमत से तात्पर्य यह है कि उस वस्तु या सेवा को प्राप्त करने के लिए क्या भुगतान करना होता है? सामान्यतः यह भुगतान मुद्रा के रूप में किया जाता है। अतः कीमत मुद्रा की वह मात्रा है जिसका भुगतान वस्तु या सेवा की एक इकाई के विनिमय के बदले में किया जाता है। यह निरपेक्ष कीमत है, लेकिन भुगतान मुद्रा के रूप में नहीं भी हो सकता है। सापेक्ष कीमत (relative price) को अन्य वस्तु की मात्रा के रूप में व्यक्त किया जाता है जिसे बदले में देना पड़ता है। यदि सभी कीमतों में एक ही दर पर वृद्धि हो तो निरपेक्ष कीमतें (absolute prices) बढ़ेंगी, किन्तु सापेक्ष कीमतें अपरिवर्तित रहेंगी।

कीमत तन्त्र या कीमत व्यवस्था तथा बाजार तन्त्र

(PRICE MECHANISM OR PRICE SYSTEM AND MARKET MECHANISM)

कीमत व्यवस्था से तात्पर्य साधनों के आबंटन की उस व्यवस्था से है जो कीमतों की स्वतन्त्र गतिविधि पर आधारित है। उस अर्थव्यवस्था में जहां बाजार को बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के क्रिया करने दिया जाता है, वहां लाखों-करोड़ों क्रेताओं तथा विक्रेताओं के निर्णय को समन्वित करना तथा उनमें आपसी तालमेल बनाने का काम कीमतों में परिवर्तन के द्वारा होता है। कीमत एक स्वचालित संकेत की तरह काम करते हुए करोड़ों व्यक्तिगत निर्णय लेने वाली इकाइयों को समन्वित (co-ordinate) करती है। इस भूमिका के माध्यम से कीमत व्यवस्था एक ऐसा उपकरण (mechanism) प्रदान करती है जो मांग तथा पूर्ति में परिवर्तन द्वारा साधनों की आबंटन-सम्बन्धी कार्यक्षमता को प्रभावित करती है। इसलिए इस व्यवस्था को कीमत तन्त्र भी कहा जाता है।

बाजार को एक तन्त्र के रूप में देखना चाहिए जिसके उपयोग से क्रेता एवं विक्रेता किसी वस्तु या सेवा की मात्रा तथा कीमतों को निर्धारित करते हैं तथा वस्तुओं एवं सेवाओं का विनिमय करते हैं। बाजार अर्थव्यवस्था (Market Economy) बाजारों तथा कीमतों के माध्यम से लोगों, क्रियाओं एवं व्यवसायों को समन्वित करने का एक विस्तृत एवं जटिल यन्त्र है। यह एक संचार साधन है जो करोड़ों-अरबों भिन्न-भिन्न व्यक्तियों की जानकारियों एवं क्रियाओं को इकट्ठा करता है। केन्द्रीय जानकारी या गणना के बिना ही बाजार उत्पादन एवं वितरण की समस्या, जिसका सम्बन्ध करोड़ों अनजान चरों (variables) तथा सम्बन्धों से होता है, का समाधान करता है। किसी ने बाजार की रूपरेखा तैयार नहीं की है, फिर भी यह सुचारु ढंग से कार्य करता है।

बाजार व्यवस्था में प्रत्येक वस्तु की कीमत होती है। कीमतें उन शर्तों का प्रतिनिधित्व करती हैं जिन पर लोग तथा फर्म स्वेच्छा से विभिन्न वस्तुओं का विनिमय करते हैं।

कीमतें उपभोक्ताओं तथा उत्पादनकर्ताओं के लिए संकेत (signal) का भी काम करती हैं। कीमतों में वृद्धि होने पर उपभोक्ता कम वस्तुएं खरीदते हैं तथा उत्पादकों को उत्पत्ति बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन मिलता है। कीमतों के घटने पर उपभोक्ताओं को अधिक खरीद करने के लिए प्रोत्साहन मिलता है तथा उत्पादनकर्ता। को उत्पत्ति की प्रेरणा। कीमतें बाजार तन्त्र का साम्य चक्र (Balance Wheel) है।

Business Environment Price

कीमत सिद्धान्त

(PRICE THEORY)

कीमत सिद्धान्त अर्थशास्त्र का वह भाग है जिसका सम्बन्ध स्वतन्त्र बाजार व्यवस्था में कीमतों के विश्लेषण स है। बाजार ही कीमत सिद्धान्त की केन्द्रीय अवधारणा है। बाजार की मुख्य बात क्रेताओं और विक्रेताया के आचरण का विश्लेषण करना है। अतः बाजार का विश्लेषण निम्न तीन उप-सिद्धान्तों के अन्तर्गत किया। जाता है, यथा,

(i) क्रेताओं के आचरण का सिद्धान्त, अर्थात् मांग का सिद्धान्त;

(ii) विक्रेताओं के आचरण का सिद्धान्त अर्थात् पूर्ति का सिद्धान्त; तथा

(iii) बाजार आचरण का सिद्धान्त जहां विभिन्न बाजारों—पूर्ण प्रतियोगिता, एकाधिकारी प्रतिस्पर्दा ।

अल्पाधिकार एकाधिकार में क्रेताओं तथा विक्रेताओं की अन्तःक्रियाओं द्वारा कीमतों का निर्धारण होता है। इसे व्यक्तिगत कीमतों के निर्धारण का सिद्धान्त भी कहा जाता है। व्यक्तिगत कीमतों के निर्धारण के अतिरिक्त कीमत सिद्धान्त सामान्य कीमत स्तर (general price level or aggregate price level) में परिवर्तन तथा साधनों के आबंटन के सिद्धान्तों का भी विश्लेषण करता है।

स्थिर कीमत एवं परिवर्तनशील कीमत

(FIXED PRICE AND FLEXIBLE PRICE)

हिक्स (J. R. Hicks) की पुस्तक ‘Capital and Growth’ 1965 में प्रकाशित हुई। इस पुस्तक में उन्होंने स्थिर कीमत तथा परिवर्तनशील कीमत में अन्तर किया। जिस बाजार में पूर्ति तथा मांग में परिवर्तन के अनुसार कीमतों में परिवर्तन होता है उन्हें परिवर्तनशील कीमत कहा जाता है। जिस बाजार में पूर्ति तथा मांग में परिवर्तन के अनुसार कीमतों में परिवर्तन नहीं होता वह स्थिर कीमत है।

संचालित या प्रशासित कीमत

(ADMINISTERED PRICE)

संचालित कीमतें वे हैं जिनका निर्धारण सचेतन रूप में किसी एक निर्णय लेने वाली बॉडी जैसे—एकाधिकारी फर्म, कार्टेल, सरकारी एजेन्सी आदि द्वारा किया जाता है, न कि बाजार शक्तियों की स्वतन्त्र क्रियाओं के द्वारा। संचालित कीमत की सम्भावना वहां अधिक होती है जहां कोई वस्तु एकाधिकारी फर्म द्वारा बेची जाती है या सरकारी संस्था के द्वारा। पूर्ण प्रतियोगिता में फर्मों के लिए कीमत दी हुई होती है (Firms are price-takers) और इन्हीं कीमतों के अनुसार वे परिमाण का समायोजन करते हैं। बाजार की अन्य स्थितियों में फर्मा द्वारा उत्पादित वस्तुएं एक-दूसरे के पूर्ण स्थानापन्न (perfect substitutes) नहीं होती है। ऐसी अवस्था । में कीमत निर्धारित करने में प्रत्येक फर्म को कुछ स्वतन्त्र अधिकार हासिल होता है। ऐसी परिस्थितिया म, अर्थशास्त्रियों का कहना है कि, फर्मे कीमत संचालित (administer) करते हैं तथा वे कीमत-निधारका (Price-makers) होते हैं। अतः संचालित कीमत वह कीमत है जिसका निर्धारण व्यक्तिगत फर्म के सचेतन निर्णय द्वारा होता है, गैर-वैयक्तिक बाजार शक्तियों द्वारा नहीं।

भारत में कीमतों का आचरण

(PRICE BEHAVIOUR IN INDIA)

आर्थिक विकास की प्रक्रिया स्वाभाविक रूप से स्फीतिजनक होती है। प्रमुख कारण यह ह कि विकास की गति को तेज करने के लिए बड़े पैमाने पर निवेश किया जाता है जिससे समग्र मांग में वृद्धि होता है। किन्तु उपभोक्ता वस्तुओं की पूर्ति में मांग में वद्धि के अनुसार वद्धि नहीं होती है जबकि मांग में वाद्ध का अधिकाश भाग इन्हीं वस्तुओं पर खर्च किया जाता है। इस असन्तुलन का प्रभाव कीमतों पर पड़ता है ।

भारत में आयोजित विकास 1951 से शुरू हुआ। 1950 तथा 1960 के दशकों में थोक कीमत सूचकांक की औसत वार्षिक वृद्धि दर 7 प्रतिशत से कम रही। 1970 के दशक के पूर्वार्द्ध में वार्षिक वृद्धि दर दो अंकों में चली गई (औसतन 12 प्रतिशत प्रति वर्ष)। किन्तु इस दशक के उत्तरार्द्ध में औसत वार्षिक वृद्धि में कमी आई और यह 8.5 प्रति वर्ष पर रही। 1980 के दशक में भी यह दर 10 प्रतिशत से कम रहीपथम5 वर्षों में 6.5 प्रतिशत तथा बाद के 5 वर्षों में 7.8 प्रतिशत। 1990 के दशक के प्रथम 5 वर्षों में कीमत मचकांक की औसत वार्षिक वृद्धि दर दो अंकों में चली गई-10.6 प्रतिशत और 1992-93 में सर्वाधिक 13.7 प्रतिशत। 1995-96 के पश्चात् मुद्रा स्फीति की वृद्धि दर लगातार घटी है। 1996-97 से 2000-01 तक यह वृद्धि दर मात्र 5.1 प्रतिशत रही। 2001-02 से 2003-04 के बीच सभी वस्तुओं की वार्षिक औसत मुद्रा स्फीति की दर 4.2 प्रतिशत रही।

यदि 1993-94 को आधार वर्ष मान लिया जाए, तो 1900 में थोक कीमत सूचकांक मात्र 1.5 को दिखाता है, 1930-31 में 2.2, 1950 में 6.7, 1960 में 7.8, 1970-71 में 14.4, 1980-81 में 37.1. 1090-91 में 73.7. 1992-93 में 100 तथा 1999-2000 में 146.2। इस प्रकार 1950 तथा 1999-2000 के बीच सूचकांक में 139.5 अंक अर्थात 2100 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई। बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में थोक कीमतों में 21 गुना से अधिक की वृद्धि हुई।

1985-86 तथा 1999-2000 के बीच जहां थोक कीमत सूचकांक में लगभग 237 अंक की वृद्धि हुई, वहां निर्मित वस्तुओं के थोक मूल्य सूचकांक में 213 अंक की तथा कृषि वस्तुओं के सूचकांक में 300 अंकों की वृद्धि दर्ज की गई। कृषि वस्तुओं की कीमतों में पिछले 15 वर्षों में निर्मित वस्तुओं की कीमतों की तुलना में अधिक वृद्धि हुई है। निर्मित वस्तु कीमत सूचकांक/कृषि वस्तु कीमत सूचकांक का अनुपात 1985-86 में 96.4 से घटकर 1999-2000 में 78.6 हो गया। इसका यह अर्थ है कि कृषि वस्तुओं की कीमतों की वृद्धि दर अधिक रही।

इस सदी के प्रथम दशक के 2000-01, 2004-05 तथा 2008-09 वर्ष सापेक्ष रूप से ऊंची औसत वार्षिक मुद्रास्फीति के वर्ष रहे, जबकि स्फीति की दर 5.5 प्रतिशत से अधिक रही। इन सभी वर्षों में तेल की कीमत ऊंची रही। 2004-05 के वर्ष में विनिर्मित वस्तुओं की कीमतों में भी काफी वृद्धि हुई। इसके निम्न कारण थे:

  • इस क्षेत्र के सकल घरेलू उत्पाद की ऊंची वृद्धि दर के कारण मांग में वृद्धि तथा
  • कच्ची सामग्री जैसे मूल मिश्र धातु तथा धातु उत्पाद, गैर-धातुत्विक खनिज पदार्थ तथा मशीनरी तथा मशीन पुर्जे की कीमतों में वृद्धि।

2008-09 का वर्ष इसके पूर्व के दो वर्षों की तुलना में भिन्न रहा, जबकि थोक मूल्य सूचकांकों के तीनों घटकों (प्राइमरी वस्तुओं, ईंधन, शक्ति, रोशनी तथा स्नेहक एवं विनिर्मित वस्तुओं) की कीमतों में वृद्धि मूल रूप से इसलिए हुई, क्योंकि खाद्य की कीमतों सहित तेल तथा वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि हुई। 2009-10 (अप्रैल-दिसम्बर) में सभी वस्तुओं का सूचकांक केवल 1.63 प्रतिशत बढ़ा। 2008-09 के 10.20 प्रतिशत की तुलना में। लेकिन ईधन, ऊर्जा, रोशनी तथा स्नेहक उपवर्ग में जहां – 6.35 प्रतिशत का ह्रास हुआ वहीं प्राइमरी वस्तुओं के उपवर्ग में 8.78 प्रतिशत तथा विनिर्मित पदार्थों के उपवर्ग में 1.77 प्रतिशत की वृद्धि देखी गयी।

भारतीय रिजर्व बैंक की वार्षिक रपट 2009-10 (जुलाई-जून) के अनुसार 2009-10 के प्रथम अर्द्ध में कीमतों में वृद्धि की दर धीमी रही, किन्तु द्वितीय अर्द्ध में वृद्धि दर में तेजी आयी तथा मार्च 2010 में 11 प्रतिशत हो गई। इसके कारण थे

  • कृषि उत्पादन में वृद्धि की धीमी गति;
  • अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में जिन्स (commodity), विशेषकर तेल की कीमतों में वृद्धि
  • प्राइमरी वस्तुओं (खाद्य पदार्थों, गैर-खाद्य पदार्थों तथा खनिज) की कीमतों में वृद्धि
  • भावी कीमतों में और वृद्धि की आशंका (expectation)
  • प्रशासनिक कीमतों (administrative prices) जैसे कोयला, उर्वरक, बिजली तथा पेट्रोलियम पदार्थों में वृद्धि किया जाना।

2009-10 में कीमत वृद्धि मुख्य रूप से पर्ति पक्ष से हुई है। 2009-10 की अन्तिम तिमाही से मांग पक्ष से भी दबाव पड़ना शुरू हुआ।

दिसम्बर 2009 से थोकमूल्य सूचकांक द्वारा मापित मुद्रा स्फीति 7 प्रतिशत से अधिक के स्तर पर रही है। समग्र थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्य. पी. आई.) मुद्रा स्फीति वर्ष 2010-11 में औसतन 9.56 प्रतिशत 2011-12 में 8.94 प्रतिशत, 2012-13 में 7.35 प्रतिशत तथा 2013-14 में कम होकर 5.2 प्रतिशत हो गयी। थोक मूल्य सूचकांक की नई श्रृंखला (2011-12) पर आधारित औसत मुद्रा स्फीति वर्ष 2014-15 में 1.2%, 2015-16 में – 3.7% तथा 2016-17 में 1.7 प्रतिशत के स्तर पर आ गई। वित्त वर्ष 2017-18 (अप्रैल-दिसम्बर) के लिए थोक कीमत सूचकांक आधारित मुद्रा स्फीति 2.9 प्रतिशत रही।

औसत उपभोक्ता कीमत सूचकांक (समिश्रित) मुद्रा स्फीति, जो वर्ष 2012-13 में 10.2% थी। वह क्रमशः घटते हुए वर्ष 2013-14 में 9.5%, 2014-15 में 5.9%, 2015-16 में 4.9% तथा 2016-17 में 4.5% हो गई। वित्त वर्ष 2017-18 (अप्रैल-दिसम्बर) में औसत मुद्रा स्फीति 3.3% थी, जो यह दर्शाता है कि कीमत स्तर में इस अवधि में पर्याप्त कमी आई है।

खाद्य मुद्रा स्फीतिसरकार द्वारा लगातार कीमतों पर नजर रखने के साथ-साथ अच्छे कृषि उत्पादन से मुद्रा स्फीति विशेषकर खाद्य मुद्रा स्फीति को नियन्त्रित करने में मदद मिली। उपभोक्ता खाद्य कीमत सूचकांक पर आधारित खाद्य मुद्रा स्फीति 2014-15 में 6.4% और 2015-16 में 4.9% से कम होकर 2016-17 में 4.2% हो गई थी। वित्त वर्ष 2017-18 (अप्रैल-दिसम्बर) में औसत खाद्य मुद्रा स्फीति कम होकर 1.2% पर आ गई। थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित खाद्य मुद्रा स्फीति में भी गिरावट आई। यह वित्त वर्ष 2016-17 में 5.8% के मुकाबले वर्ष 2017-18 (अप्रैल-दिसम्बर) में 2.3% पर आ गई।

Business Environment Price

प्रश्न

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1 पिछले पचास वर्षों में भारत में कीमत की प्रवृत्ति क्या रही है ? विवेचना करें।

2. वर्तमान सदी के प्रथम दशक में मूल्य वृद्धि की समीक्षा करें।

लघु उत्तरीय प्रश्न

1 कीमत के अर्थ को स्पष्ट करें।

2. कीमत यन्त्र से आप क्या समझते हैं?

3. संचालित कीमत के अर्थ को समझाइए।

4. कीमत सिद्धान्त से आप क्या समझते हैं ?

Business Environment Price

chetansati

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