BCom 1st Year Business Environment Privatisation Study Material Notes in Hindi

//

BCom 1st Year Business Environment Privatisation Study Material Notes in Hindi

BCom 1st Year Business Environment Privatisation Study Material Notes in Hindi:  Meaning of Privatisation State Owned Enterprises and Privatisation in India Organisational Measures Causes of Privatisation Examination Questions Long Answer Questions Short Answer Questions :

 Privatisation Study Material Notes
Privatisation Study Material Notes

BCom 1st Year Environment Industrial Policy and Licensing System Study Material Notes in Hindi

निजीकरण

[PRIVATISATION]

निजीकरण से अर्थ

(MEANING OF PRIVATISATION)

निजीकरण से तात्पर्य उस नीति से है जिसके द्वारा किसी उद्यम के सरकारी स्वामित्व को निजी स्वामित्व में बदला जाता है या किसी लोक उद्योग के लोक प्रबन्धन (Public management) को निजी क्षेत्र के हाथ में सौंप दिया जाता है। इंग्लैण्ड में निजीकरण के द्वारा स्थानीय संस्थाओं के स्वामित्व वाले भवनों को उनमें रहने वाले किराएदारों को बेच दिया गया तथा सरकारी स्वामित्व वाली कम्पनियों के 50 प्रतिशत शेयरों को निजी कम्पनियों को बेच दिया गया। ऐसा करने के पीछे यह तर्क दिया गया कि इससे आर्थिक कार्यक्षमता में वृद्धि होगी।

पूर्वी यूरोप में राज्य द्वारा किए जाने वाले कार्यों (State activity) को निजी क्षेत्र को इस आशा से हस्तान्तरित कर दिया कि निजी स्वामित्व तथा नियन्त्रण में कार्यक्षमता में वृद्धि होगी।

Business Environment Privatisation

लोक उद्यम एवं निजीकरण

(STATE-OWNED ENTERPRISES AND PRIVATISATION)

अनेक कारणों से केवल आर्थिक नहीं बल्कि ऐतिहासिक, वैचारिक तथा सामाजिक-राजनीतिक—अल्पविकसित देशों की सरकारों ने अपने विकास सम्बन्धी उद्देश्यों को पूरा करने के लिए अक्सर लोक उद्योगों पर भरोसा किया। अनेक अल्पविकसित देशों में राज्य के स्वामित्व वाले उद्यमों का GDP में योगदान 10 से 40 प्रतिशत रहा है। इन उद्यमों की स्थापना के निम्न प्रमुख कारण रहे हैं :

  • बचत संग्रह
  • रोजगार सृजन;
  • लोक वस्तु उपलब्ध कराना;
  • बड़े पैमाने की पूंजी-प्रधान परियोजनाओं, जो प्राकृतिक एकाधिकार हैं, में निवेश करना:
  • बड़े पैमाने के लाभ प्राप्त करना;
  • जोखिमपूर्ण उद्योग जहां निजी निवेशक आगे नहीं आएंगे।

लेकिन पिछले कुछ वर्षों से लोक उद्यमों के निष्पादन (performance) को लेकर चिन्ता बढ़ी है। इसका एक प्रमुख कारण यह है कि इन उद्यमों की सरकार के बजट पर निर्भरता बढ़ी है तथा वित्त प्रबन्ध के लिए बाह्य ऋणों पर निर्भर करना पड़ा है। अनेक देशों में लोक उद्यमों का घाटा अत्यधिक साख सुजन का कारण माना गया है। इस घाटे से :

  • मुद्रा का विस्तार हुआ है;
  • कीमत स्फीति का सृजन हुआ है। और अन्ततः
  • भुगतान सन्तुलन पर दबाव बढ़ा है।

लोक उद्यमों का उपयोग अक्सर लोक सेवाओं, खाद्यान्नों तथा अन्य अनिवार्य वस्तुओं की कीमतों को नियन्त्रित करने में हुआ है। इस कारण कई बार ऐसा हुआ है कि ये उद्यम अपनी पूरी लागत भी वसूल नहीं कर पाते हैं। इसका गम्भीर मौद्रिक एवं राजकोषीय परिणाम हुआ है, जैसे बढ़ता हआ राजस्व एवं राजकोषीय घाटा, बढ़ता हुआ ऋण तथा उसका बोझ ऋण सेवा के रूप में, मुद्रा प्रसार, आदि। ये सारे परिणाम समष्टि। स्तर पर देखे जा सकते हैं।

व्यष्टि धरातल पर निम्न परिणाम देखे जा सकते हैं।

  • उत्पादन में कार्यक्षमता (efficiency) में कमी
  • निवेश के सम्बन्ध में ऐसे निर्णय जिससे उद्यमों के लाभ में कमी;
  • कीमत निर्धारण में विकृति आदि।

    Business Environment Privatisation

लोक उद्यमों के दोषों को दूर करने के सम्बन्ध में अनेक सुझाव दिए गए हैं, जैसे—इनके कार्य निष्पादन का मूल्यांकन, मोनिटरिंग (Monitoring) की व्यवस्था, निजीकरण को प्रोत्साहित करना तथा लोक उद्यमों की बिक्री।

हाल के कुछ वर्षों में लोक उद्यमों के निजीकरण के अनेक उदाहरण सामने आए हैं। ऐसा स्वामित्व तथा प्रबन्ध के विषय में अधिक हुआ है। निजीकरण के दो प्रमुख उद्देश्य रहे हैं:

(i) कार्यक्षमता (efficiency) में सुधार और

(ii) सरकारी बजट पर वित्तीय भार की कमी।।

स्वामित्व में परिवर्तन का उद्यमों के कार्य निष्पादन तथा आचरण पर दूरगामी प्रभाव पड़ता है। इसका कारण यह है कि सम्पत्ति के अधिकार में परिवर्तन होने से निर्णय लेने में जिन प्रेरणाओं पर विचार किया जाता है। उनका ढांचा बदल जाता है।

लोक उद्यमों की स्थिति में निम्न पर विचार किया जाता है :

  • अधिकतम सामाजिक लाभ:
  • अधिकतम रोजगार;
  • अधिकतम उत्पादन
  • न लाभ, न हानि: आदि।

निजी उद्यमों के प्रबन्धक निम्न पर विचार करते हैं :

  • अधिकतम निजी लाभ: .
  • अधिकतम बिक्री तथा सन्तोषजनक निजी लाभ: .
  • अधिकतम बाजार पर अधिकार (maximum market power); आदि।

    Business Environment Privatisation

भारत में निजीकरण

(PRIVATISATION IN INDIA)

निजीकरण का अर्थ है निजी क्षेत्र को राज्य के स्वामित्व वाले उद्योगों में सम्मिलित करने की सामान्य प्रक्रिया। इसमें निम्न शामिल हैं:

  • किसी सरकारी कम्पनी को पूर्ण रूप से या आंशिक रूप से खरीद लेना:
  • कम्पनी को कॉन्ट्रेक्ट पर लेना;
  • प्रबन्ध का निजीकरण-प्रबन्ध सम्बन्धी कॉन्ट्रेक्ट देना, लीज पर देना या फ्रेन्चाइज व्यवस्था।

निजीकरण में तीन प्रकार के उपाय शामिल हैं:

(1) स्वामित्वसम्बन्धी उपाय

पूर्ण या आंशिक स्वामित्व निजी उद्यम के हाथ देना। ऐसा निम्न प्रकार से हो सकता है :

() पूर्ण विराष्ट्रीकरण (Total Denationalisation) इसका अर्थ है लोक उद्यमों के पूर्ण स्वामित्व को निजी हाथों में हस्तान्तरित करना।

() संयुक्त कम्पनी (Joint Venture) लोक उद्यम को आंशिक रूप से निजी स्वामित्व में हस्तान्तरित । करना। निजी स्वामित्व 25 से लेकर 50 प्रतिशत तक हो सकता है।

() परिसमापन (Liquidation) किसी व्यक्ति के हाथ सरकारी सम्पत्ति की बिक्री। जो व्यक्ति इस खरीदता है वह इसे पूर्व कार्य में लगा सकता है या किसी नई वस्तु के उत्पादन में।।

() प्रबन्धको द्वारा खरीद (Management Buyout) यह विराष्ट्रीकरण का विशेष रूप है। इसका अर्थ है कम्पनी की सम्पत्ति को कर्मचारियों के हाथ बेच देना। इस काम के लिए बैंक से ऋण की व्यवस्था भी। की जाती है। कर्मचारियों के स्वामी हो जाने के कारण उन्हें वेतन के साथ-साथ लाभांश में भी हिस्सा मिलता है।

(II) संगठनात्मक उपाय (Organisational Measures)

राज्य के नियन्त्रण को सीमा के अन्दर रखने के लिए निम्न संगठनात्मक उपाय किए जा सकते है।

() होल्डिंग कम्पनी निर्णय लेने का कार्य सरकार करती है, किन्तु दिन-प्रतिदिन का संचालन काय स्वतन्त्र रूप से होल्डिंग कम्पनी करती है।

() लीज पर देना (Leasing) स्वामित्व को बरकरार रखते हुए, लोक उद्यम किसी निजी पार्टी को एक विशेष अवधि के लिए उद्यम को लीज पर दे सकता है।

() पुनर्गठन (Restructuring) लोक उद्यम को बाजार के अनुशासन में लाने के लिए दो प्रकार के पुनर्गठन की जरूरत होती है, यथा,

वित्तीय पुनर्गठन के अन्तर्गत कुल हानि को रद्द कर दिया जाता है तथा ऋण ईक्विटी अनुपात को विवेकपूर्ण बनाया जाता है।

बुनियादी पुनर्गठन के द्वारा वाणिज्यिक क्रियाओं को फिर से परिभाषित किया जाता है जिन्हें लोक उद्यम को करना है। कुछ पुरानी क्रियाओं को त्याग दिया जाता है तथा नई क्रियाओं को लिया जाता है।

(III) संचालनसम्बन्धी उपाय (Operational Measures)

जब पूर्ण विराष्ट्रीयकरण की क्रियाएं अपनाई नहीं जाती हैं, संगठन की कार्यक्षमता में वृद्धि के लिए कार संचालन सम्बन्धी उपाय किए जाते हैं, जैसे—निर्णय लेने में स्वतन्त्रता, कार्यक्षमता या उत्पादकता में वृद्धि । करने के लिए सभी प्रकार के कर्मचारियों को कुछ प्रेरणाएं, बाजार से कच्ची सामग्री खरीदने की छूट, निवेश कसौटियों (investment criteria) का विकास, पूंजी बाजार से फण्ड की उगाही करने की अनुमति, आदि।

भारत में निजीकरण के लिए जिन तरीकों को अपनाया गया है, वे इस प्रकार हैं :

(1) प्रबन्धकीय नियन्त्रण को निम्न किसी तरीके से निजी कम्पनियों के हाथ हस्तान्तरण करना :

  • कुल इक्विटी के कुछ भाग (सामान्यतः 25 प्रतिशत या इससे अधिक) को बेच देना, या
  • लीज पर देना।

(2) निर्निवेश (Disinvestment)—सरकारी इक्विटी के एक भाग को खुदरा निवेशकों, म्यूचुअल फण्ड, वित्तीय संस्थाओं, उद्यम के कर्मचारियों, आदि को बेच देना। यहां प्रबन्ध का हस्तान्तरण नहीं होता है।

(3) अनुकूल बिक्री (Strategic Sale)—लोक उद्यमों की इक्विटी को बेचकर जो रकम प्राप्त की जाती है उसे सरकार बर्बाद नहीं करती है, क्रेता उस कम्पनी में और ज्यादा निवेश करता है, प्रबन्ध इन्हीं क्रेताओं के हाथ में चला जाता है। ये क्रेता विविधता तथा तकनीकी सुधार के लिए और निवेश करते हैं। इन सब कारणों से कम्पनी के संचालन में सुधार आता है।

(4) कॉरपोरेटाइजेशन (Corporatisation) इस व्यवस्था के अन्तर्गत, लोक उद्यमों का पुनर्गठन व्यावसायिक ढंग से होता है। उन्हें कर देना पड़ता है, बिना सरकारी समर्थन के बाजार से पूंजी उगाहनी होती है तथा वाणिज्यिक सिद्धान्तों के अनुसार उनका संचालन होता है। सरकारी कम्पनी (Corporation) का उद्देश्य अधिकतम लाभ कमाना तथा निवेश पर उचित प्रतिफल (return) प्राप्त करना होता है। ऐसी कम्पनियां सरकारी नियन्त्रण तथा बजट के नियमन से बाहर होती हैं।

भारत सरकार ने निर्निवेश की नीति को 1991-92 से अपनाया है। इसका प्रारम्भ अल्प मात्रा में शेयरों की बिक्री से शरू हआ। यह आज भी जारी है, लेकिन बल अनुकूल बिक्री (Strategic Sale) ईक्विटी के एक अंश (कम से कम 25%) के साथ ही निजी पार्टी को प्रबन्ध का हस्तान्तरण—पर है। इस नीति को लागू करने से करदाता, अर्थव्यवस्था, स्टॉक बाजार, कर्मचारियों, आदि सभी को लाभ पहुंचा है।

वर्ष 2000 के पूर्व सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियों के शेयरों को अल्प मात्रा में बेचा था। 10C, BPCL, HPCL, GAIL तथा VSNL जैसी लाभ कमाने वाली कम्पनियों के शेयरों की भी कीमत कम थी, किन्तु अनुकूल विक्री की व्यवस्था को अपनाने के बाद शेयरों की अच्छी कीमत मिल रही है।

निजीकरण की प्रक्रिया 1991-92 से प्रारम्भ हुई। 1991-92 से 2012-13 तक 1,13,129 करोड़ र सार्वजनिक उपक्रमों के विनिवेश से प्राप्त किए गए। वर्ष 2013-14, 2014-15, 2015-16 तथा 2016-17 म सरकारी क्षेत्र के उपक्रमों के विनिवेश से क्रमशः 18,296 करोड़ र, 26,353 करोड़ र, 12,700 करोड़। १ तथा 17,630 करोड़ र प्राप्त हुए।

निजीकरण के कारण

(CAUSES OF PRIVATISATION)

निजीकरण के प्रमख कारणों की विवेचना इस अध्याय के प्रारम्भ में की गई जहां बताया गया कि किस प्रकार लोक उद्यम की निर्भरता सरकारी बजट पर बढ़ी है तथा कार्यक्षमता में हास हुआ है।।

भारत में राजस्व व्यय में अत्यधिक बद्धि के कारण राजस्व बजट में भी घाटा 1981-82 से ही हो रहा है। इस कारण ऋण लेकर चालू व्यय के घाटा को पूरा किया जाने लगा। इससे आन्तरिक ऋण का कुल भार बढ़ता गया है। ऐसे ऋणों पर ब्याज की अदायगी केन्द्रीय सरकार के राजस्व बजट में राजस्व व्यय का सबसे बड़ा मद हो गया है। 2018-19 के केन्द्रीय बजट में इस मद पर 5,75,795 करोड़ रखर्च करने का अनुमान है जो कुल राजस्व व्यय का लगभग 27 प्रतिशत होता है।

1981-82 के पूर्व राजस्व बजट में अतिरेक (surplus) होता था जिसके द्वारा पूंजी व्यय के एक भाग की वित्त व्यवस्था की जाती थी। राजस्व बजट में घाटे का अर्थ है ऋण लेकर इस घाटे को पाटना। इस कारण सरकार सामाजिक तथा भौतिक संरचना पर खर्च कर सकने में असमर्थ हो गई। लोक उद्यमों में से अधिकांश घाटे में चल रहे थे। इन्हें जीवित रखने के लिए सरकार को बजट में प्रावधान करना पड़ता था। इन परिस्थितियों में लोक उद्योगों का परिचालन काफी कठिन हो गया। इसलिए इनका निजीकरण एक जरूरत बन गई ताकि इन उद्योगों में अवरुद्ध साधन मुक्त हो सकें तथा उनका उपयोग प्राथमिकता वाले क्षेत्र, जैसे—बुनियादी स्वास्थ्य, परिवार कल्याण, प्राइमरी शिक्षा तथा आवश्यक संरचना, आदि में हो सके। ।

होटल, व्यापारिक कम्पनियों, कपड़ा कारखाना, रसायन एवं औषधि कम्पनियों, उपभोक्ता वस्तुओं के उत्पादन में लगी कई कम्पनियों, आदि जैसी कम महत्वपूर्ण एवं घाटे वाली कम्पनियों में दुर्लभ साधनों का उपयोग न हो। निजीकरण का यह भी एक कारण है।

लोक ऋण की मात्रा को कम करना भी एक कारण है ताकि यह सहने योग्य (सह्य) हो सके। निजीकरण के अन्य कारण इस प्रकार हैं:

आज यह आम सहमति बन गई है कि सरकार वाणिज्यिक उद्यमों का संचालन नहीं करना चाहती।

इसके निम्न कारण हैं :

(i) सार्वजनिक साधनों की दुर्लभता; तथा

(ii) मौजूद लोक उद्यमों का घाटे में चलना;

(iii) उद्यमों की कार्य सक्षमता तथा उत्पादकता में वृद्धि के लिए लोक उद्यमों में लगभग 22 लाख करोड़ ₹ की पूंजी लगी है। ऐसे उद्यमों की कार्य क्षमता में थोड़ी भी वृद्धि होने से GDP की वृद्धिपर पर्याप्त प्रभाव पड़ेगा।

निजीकरण एवं श्रमिक

निजीकरण के सन्दर्भ में अक्सर यह प्रश्न उठाया जाता है कि प्रबन्ध के निजी हाथों में जाने की स्थिति से कर्मचारियों के हित की रक्षा नहीं हो सकती है। सरकार की ओर से कहा जाता है कि विनिवेश करते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि निजीकरण के पश्चात् कम से कम एक वर्ष तक कर्मचारियों की छंटनी नहीं होती है। एक वर्ष के बाद छंटनी सिर्फ स्वैच्छिक अवकाश स्कीम (VRS) के अन्तर्गत ही हो। पिछले दस वर्ष के आंकड़े इस बात की पुष्टि नहीं करते कि निजीकरण के पश्चात् श्रमिकों की बड़े पैमाने पर छंटनी हुई है। फिर भी यह सच है कि निजीकरण का सर्वाधिक विरोध श्रमिकों की ओर से ही हआ है।

निष्कर्ष

इस विषय पर लोग प्रायः एकमत हैं कि सरकार को वाणिज्यिक उद्यमों का परिचालन नहीं करना चाहिए। इसके प्रमुख कारण है लोक संसाधनों की दुर्लभता तथा मौजूदा लोक उद्यमों का सक्षम (efficient) नहीं होना तथा घाटे में रहना। इसलिए उदारवादी प्रक्रिया के अन्तर्गत सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों में सुधार की प्रक्रिया शुरू की। इस प्रक्रिया के प्रमुख अंग निम्न प्रकार हैं :

  • सभी गैर-स्ट्राटेजिक (no-strategic) लोक उद्योगों की सरकारी इक्विटी को 26 प्रतिशत या उससे कम स्तर पर लाना;
  • जीवनक्षम लोक उद्योगों का पुनर्गठन करना तथा फिर से जीवित करने की कोशिश करना:
  • जिन्हें जीवित नहीं किया जा सकता उन लोक उद्यमों को बन्द कर देना; • श्रमिकों के हितों की पूरी रक्षा करना।

BALCO (Bharat Aluminium Company LTD) के मुकदमे में उच्चतम न्यायालय के निर्णय से विानवश का रास्ता साफ हो गया है। इस निर्णय से जो दिसम्बर 2001 को आया, विनिवेश की गति के तेज हान की उम्मीद है।

केन्द्रीय बजट 2001-02 में लोक उद्यमों के विनिवेश से 12,000 करोड़ की राशि को प्राप्त करने का अनुमान था। 2002-03 के बजट में भी इतनी ही राशि को प्राप्त करने का लक्ष्य रखा गया था। इस राशि का उपयोग निम्न प्रकार से करना था :

लोक उद्यमों के पुनर्गठन

श्रमिकों की सुरक्षा तथा

ऋण भार को कम करने पर …………. 7,000 करोड़ र

सामाजिक एवं आधारिक संरचना

क्षेत्र में योजना को सहायता …………5,000 करोड़ र

31 मार्च, 2002 तक 10 लोक उद्यमों में विनिवेश पूरा करना था। 18 और उद्योगों में इस प्रक्रिया को पूरा करना है। 2001-02 में विनिवेश से 5,632 करोड र प्राप्त हए अर्थात लक्ष्य से 50 प्रतिशत से भी कम। यह राशि 8 उद्योगों में 25 से 100 प्रतिशत की ईक्विटी के विनिवेश से प्राप्त हुई। India Tourism Development Corporation के अन्तर्गत जो 9 होटल थे उनमें 8 की शत प्रतिशत ईक्विटी बेच दी गई। तथा एक होटल को दीर्घकालीन लीज (Lease)-सह-प्रबन्ध कॉन्ट्रैक्ट पर दिया गया है। 2002-03 में 31 जनवरी, 2003 तक 7 उद्योगों में विनिवेश द्वारा 3,342 करोड़ र प्राप्त हुए, जबकि लक्ष्य 12,000 करोड़ र का था

निजीकरण की नीति की चालू दिशा के सम्बन्ध में 9 दिसम्बर, 2002 को संसद के दोनों सदनों सरकार की ओर से एक वक्तव्य आया। इसमें कहा गया कि विनिवेश का प्रमुख उद्देश्य राष्ट्रीय संसाधनों तथा सम्पत्ति तथा लोक उद्यमों की अन्तर्निहित उत्पादन क्षमता का सर्वोत्तम उपयोग करना है। इसके लिए इन उद्यमों का आधुनिकीकरण करना, नई परिसम्पत्तियों का सृजन करना, रोजगार सृजन तथा लोक ऋण की अदायगी पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। यह भी देखना है कि विनिवेश के निजी एकाधिकार का सृजन न हो। सरकार ने विनिवेश के सम्बन्ध में निम्न विशेष निर्णय लिए हैं :

  • भारत पेट्रोलियम निगम (BPCL) के शेयर को जनता के पास बेचकर विनिवेश करना:
  • स्ट्राटेजिक बिक्री (Strategic sale) के द्वारा हिन्दुस्तान पेट्रोलियम निगम लि. (HPCL) का विनिवेश करना; तथा
  • BPCL तथा HPCL के शेयर के एक विशेष प्रतिशत का आवण्टन रियायती दर पर इन दोनों

संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन (यू.पी..) सरकार ने साझा न्यूनतम कार्यक्रम के अन्तर्गत यह निर्णय लिया है कि प्रतिस्पर्दी माहौल में कार्य कर रही सफल और लाभ कमाने वाली कम्पनियों का निजीकरण नहीं किया जाएगा तथा मौजूदा ‘नवरत्न’ कम्पनियों को बनाए रखा जाएगा और ये कम्पनियां पूंजी बाजार से संसाधन जटाती रहेंगी। सरकारी क्षेत्र की रुग्ण कम्पनियों का आधुनिकीकरण करने और उन्हें पनर्जीवित करने का प्रयास किया जाएगा, परन्तु लम्बे समय से घाटा उठाने वाली कम्पनियों को उनके सभी कामगारों को वैध देय धनराशि का भुगतान करने के उपरान्त या तो बेच दिया जाएगा या फिर बन्द कर दिया जाएगा।

Business Environment Privatisation

प्रश्न

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1 निजीकरण का क्या तात्पर्य है? भारत में इस नीति को अपनाने के कारणों की व्याख्या करें।

2. भारत में निजीकरण की प्रगति की विवेचना प्रस्तुत करें। निजीकरण के लिए किन-किन विधियों का उपयोग किया गया है?

लघु उत्तरीय प्रश्न

1 निजीकरण का श्रमिकों पर क्या प्रभाव पड़ता है ?

Business Environment Privatisation

chetansati

Admin

https://gurujionlinestudy.com

Leave a Reply

Your email address will not be published.

Previous Story

BCom 1st Year Environment Industrial Policy and Licensing System Study Material Notes in Hindi

Next Story

BCom 1st Year Business Environment Globalisation Study Material Notes in Hindi

Latest from BCom 1st year Business Environment Notes