BCom 1st Year Business Environment Regional Economic Groups Study Material Notes in Hindi

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BCom 1st Year Business Environment Regional Economic Groups Study Material Notes in Hindi

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BCom 1st Year Business Environment Regional Economic Groups Study Material Notes in Hindi : European Common Market Brexit  Association of South East Asian Nations Aswan Santa Organization of the Petroleum Exporting Countries OPEC Bisect Developing Examination Questions Long Answer Questions Short Answer Questions Most Important Notes For BCom 1st Year Students :

Regional Economic Groups
Regional Economic Groups

BCom 1st Year World Trade Problems Developing Countries Study Material Notes in Hindi

क्षेत्रीय आर्थिक समूह

[REGIONAL ECONOMIC GROUPS]

1950 तथा 1960 के दशकों में क्षेत्रीय आर्थिक समूह या क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण (Regional Economic Grouping or Regional Economic Integration) का काफी तेजी से विकास हुआ। आर्थिक एकीकरण का अर्थ है व्यक्तिगत देशों को समूहों में संगठित करना। इसके पश्चात् समूह के देशों के वस्तुओं तथा सेवाओं के व्यापार पर से प्रतिबन्ध हटा लिया जाता है। ऐसे क्षेत्रीय एकीकरण की धारणा के पीछे निकटता महत्वपूर्ण कारण है। पड़ोसी देश निम्न कारणों से एकीकरण के लिए तैयार हो जाते हैं :

  • इन देशों के मध्य कम दूरियां तय करनी पड़ती हैं;
  • उपभोक्ताओं की रुचि में समानता पाई जा सकती है तथा पड़ोसियों के मध्य वितरण प्रणाली स्थापना अधिक आसान होती है।
  • पड़ोसी देशों का कॉमन इतिहास हो सकता है, कॉमन हित के प्रति जागरूकता हो सकती है तथा

ऐसे अन्य कारणों से अपनी नीतियों के समन्वित करने के लिए अधिक इच्छुक हो सकते हैं। क्षेत्रीय आर्थिक समूह चार प्रकार के हो सकते हैं :

1 उन्मुक्त व्यापार क्षेत्र (Free Trade Area-FTA) सदस्य देशों के मध्य टारिफ को समाप्त कर दिया जाता है, किन्तु गैर-सदस्य देशों के साथ व्यापार के बाह्य टारिफ बरकरार रहता है।

2. सीमाशुल्क संघ (Customs Union)—संघों के अन्दर सभी आन्तरिक टारिफ समाप्त कर दिए जाते हैं, जबकि संघ के सभी देश एक ही बाह्य टारिफ लगाते हैं।

3. साझा बाजार (Common Market)-सीमा शुल्क संघ की सभी विशेषताएं इसमें मौजूद रहती हैं। इसके अतिरिक्त श्रम तथा पूंजी की गतिशीलता पर कोई प्रतिबन्ध नहीं रहता है।

4. पूर्ण आर्थिक एकीकरण (Complete Economic Integration)—इस स्थिति में मौद्रिक एवं राजकोषीय नीतियों को एक करके और अधिक आर्थिक एकीकरण किया जाता है। इस स्तर के एकीकरण का अर्थ राजनीतिक एकीकरण भी है। यूरोपीय संघ पूर्ण आर्थिक एकीकरण की ओर निश्चित रूप में बढ़ रहा है।

क्षेत्रीय एकीकरण के सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक प्रभाव पड़ते हैं। सामाजिक प्रभाव का अर्थ है सामाजिक-सांस्कृतिक एकीकरण है। आर्थिक प्रभाव का अर्थ पर संसाधनों का अधिक उत्तम आबण्टन, स्पर्धा में वृद्धि के कारण कार्यकुशलता में वृद्धि, आदि। राजनीतिक प्रभाव है सम्प्रभुता की थोड़ी हानि।

पिछले एक दशक में क्षेत्रीय आर्थिक समझौतों में तेजी से वृद्धि हुई है। मई 2003 में 265 ऐसे समझौतों की सूचना WTO को दी गई। WTO ने अपने सदस्य देशों को GATT की धारा 1 के अन्तर्गत MFN क्लाज में भेदभावहीनता (non-discrimination) के मौलिक सिद्धान्त के अपवाद के रूप में सीमा शुल्क संघ तथा मुक्त व्यापार क्षेत्र की स्थापना की सहमति दी है। क्षेत्रीय व्यापार समूहों का लगभग 90 प्रतिशत उन्मुक्त व्यापार के समझौते हैं तथा केवल 10 प्रतिशत सीमा शुल्क संघ। यों तो 1990 के दशक से ही ऐसे समझौतों में तेजी से वृद्धि हुई है, तथापि पश्चिमी यूरोप एवं अमरीका की अगुआई में 1980 से इसमें वृद्धि होने लगी थी। हाल ही से जापान सहित एशियाई देशों ने MEN आधारित व्यापार पर पूर्ण निर्भर करना छोड़ दिया है। COMECON (Council of Mutual Economic Corporation) के ध्वस्त होने के बाद से 1990 से क्षेत्रीय समूहों की संख्या बढ़ी है।

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यूरोपीय साझा बाजार

(EUROPEAN COMMON MARKET)

छ: देशो-फ्रांस, जर्मनी, इटली. बेल्जियम, नीदरलैण्डस एवं लक्जेमबर्ग द्वारा रोम में मार्च 1957 में एक सन्धि पर हस्ताक्षर किये गये। इसी सन्धि के परिणामस्वरूप यरोपीय आर्थिक समुदाय (European Economics Community) या यूरोपियन साझा बाजार (European Common Market) का निर्माण हुआ। यूरोपाय आर्थिक समुदाय (EEC) का उद्देश्य एक साझा बाजार स्थापित करना था, ताकि सदस्य देशों में विकास और स्थिरता के साथ लोगों के जीवन स्तर में सधार हो सके। इन EEC देशों द्वारा स्थापित साझा बाजार व्यवस्था को ही यूरोपीय साझा बाजार (ECM) का नाम दिया गया जिसका प्रारम्भ 1 जनवरी, 1958 को हुआ। इस प्रकार EEC का दूसरा नाम ही यूरोपीय साझा बाजार (ECM) है। वर्ष 1973 में ECM में सदस्य देशों का संख्या 9 हो गई जिसमें ब्रिटेन, डेनमार्क, आयरलैण्ड ने प्रवेश किया। बाद में ग्रीस, स्पेन, पुर्तगाल ने भी ECM में सदस्यता प्राप्त की। 1 जनवरी, 1995 को तीन और देश आस्ट्रिया, फिनलैण्ड तथा स्वीडन भी ECM के सदस्य बन गये जिससे ECM की कुल सदस्य संख्या बढ़कर 15 हो गई।

पूर्वी यूरोप के 10 देश औपचारिक रूप से ECM में मई 1, 2004 में शामिल हुए। ये दस देश है-पोलैण्ड, हंगरी, चेक रिपब्लिक, स्लोवाकिया, स्लोवेनिया, लिथुआनिया, लाटविया, इस्टोनिया, साइप्रस तथा माल्टा। इन 10 देशों की जनसंख्या ECM की जनसंख्या का 15 प्रतिशत है, ECM के क्षेत्रफल का 19 प्रतिशत है तथा GDP में इनका योगदान 5 प्रतिशत है। ECM अब यरोपीय संघ (European Union-EU) के नाम से जाना जाता है। EU अब विश्व की सबसे बडी व्यापारिक इकाई (trading entity) है। इसकी कुल जनसंख्या 455 मिलियन है तथा विश्व GDP में इसका हिस्सा 18-25 प्रतिशत है। ।

वर्तमान में EU के कुल सदस्यों की संख्या 28 है। यह विश्व का सबसे बड़ा वाणिज्यिक समाज है। इसका मुख्यालय ब्रुसेल्स (बेल्जियम) में है।

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यूरोपीय एकीकरण तथा मस्ट्रिश्च सन्धि

मार्च 1957 में रोम सन्धि के अनुसार EEC की स्थापना हुई। इसका उद्देश्य यूरोप के गैर-साम्यवादी देशों के मध्य आर्थिक सहयोग को प्रोत्साहन देना था। जनवरी 1, 1958 से इसका परिचालन शुरू हुआ। EEC ने उस समय के 15 देशों की आर्थिक नीतियों को मिलाने का प्रयास किया। 1991 के दिसम्बर 9-10 को राजनीतिक, मौद्रिक तथा यूरोप के आर्थिक एकीकरण सम्बन्धी महत्वपूर्ण निर्णय सदस्य देशों के प्रमुखों ने लिया। इसे मास्ट्रिश्च सन्धि का नाम दिया गया। यूरोपीय एकीकरण की दिशा में यह सन्धि एक वृहत प्रयास था। नवम्बर 1993 से इस सन्धि का उपयोग राजनीतिक एवं आर्थिक एकीकरण को लागू करने के लिए किया गया। इसी सन्धि ने एक नए संगठन ‘यूरोपीय संघ’ (European Union) को जन्म दिया। इस सन्धि तथा यूरोपीय संघ के दस्तावेज पर फरवरी 1992 में हस्ताक्षर किए गए।

इस दस्तावेज के अनुसार यूरोपीय संघ के सभी देश समरूप आर्थिक तथा मौद्रिक नीति को लागू करने का प्रयास करेंगे। एक कॉमन मुद्रा को लागू किया गया 1 जनवरी, 1999 से जिसे यूरो (Euro) कहा गया।

यूरो : यूरोपीय संघ की नई मुद्रा

1 जनवरी, 1999 से यूरोपीय समुदाय की सांझी मुद्रा यूरो (Euro) अस्तित्व में आ गई थी। यूरोपीय आर्थिक समुदाय के तत्कालीन 12 राष्ट्रों ने 9-10 दिसम्बर, 1991 को मास्ट्रिश्च (नीदरलैण्ड) में आयोजित शिखर सम्मेलन में यूरो करैन्सी की शुरुआत करने की आधारशिला रखी। 1 नवम्बर, 1993 से लागू इस संधि के परिणाम के रूप में आज विश्व पटल पर यूरोप की सांझी मुद्रा यूरो का उदय हुआ है।

यूरो में भागीदारी की प्रमुख शर्ते

मास्टिश्च संधि के दस्तावेजों में यूरोप में मौद्रिक एवं आर्थिक एकीकरण एवं सांझी मुद्रा ‘यूरो’ के प्रचलन के लिए चार प्रमुख शर्तों का उल्लेख किया गया

  • मुद्रा स्फीति की दर पर नियन्त्रण (उत्तम निष्पादन करने वाले पहले तीन देशों में प्रचलित-मुद्रा स्फीति दर से मुद्रा स्फीति की दर का 5% से अधिक न होना)
  • निम्न ब्याज दर (उत्तम निष्पादन करने वाले प्रथम तीन देशों की व्याज दर की तुलना में 2% से अधिक न होना)
  • सरकारी ऋण का GDP के 60% से अधिक न होना।
  • वार्षिक बजट घाटा GDP के 3% से अधिक न होना।

मास्ट्रिश्च संधि में यूरोपीय आर्थिक समुदाय (EEC) के देशों से उपर्युक्त शर्तों को पूरा करने का अनुरोध किया गया ताकि वे यूरोप की सांझी मुद्रा ‘यूरो’ में अपनी भागीदारी दर्ज कर सकें, यूरोप के अब तक 19 राष्ट्र यूरो में भागीदारी हेतु सभी आवश्यक पूर्व शर्तों को पूरा कर चुके हैं इन देशों में हैं जर्मनी, फ्रांस, बेल्जियम, नीदरलैण्ड्स, लक्जेमबर्ग, आयरलैण्ड, इटली, फिनलैण्ड, स्पेन, पुर्तगाल, ग्रीस, आस्ट्रिया, स्लोवेनिया, माल्टा, साइप्रस, एस्टोनिया, लाटविया, लिथुआनिया तथा स्लोवाकिया।

यूरोपीय संघ के 8 देश जहां अभी ‘यूरो’ को देश की औपचारिक मद्रा के रूप में स्वीकार किया गया वे बुल्गारिया, चेक गणराज्य, डेनमार्क, हंगरी, पोलैण्ड, रोमानिया, स्वीडन तथा यूनाइटेड किंगडम हैं। इनमें डेनमार्क व यू.के. को यूरो को अपनाने या न अपनाने की छूट मिली हुई है। शेष देश धीरे-धीरे यूरो जोन में शामिल हो रहे हैं।

यूरोप के तीन देशों ब्रिटेन, स्वीडन तथा डेनमार्क ने अभी यूरो मुद्रा में अपनी भागीदारी दर्ज नहीं। की है।

यूरो प्रचलन के विभिन्न चरण

यूरोपीय देशों में 1 जनवरी, 1999 से अपनाई जाने वाली सांझी मुद्रा ‘यूरो’ के संचालन पर नियन्त्रण रखने हेतु यूरोपीयन सेण्ट्रल बैंक की औपचारिक स्थापना जून 1998 में जर्मनी में फ्रैंकफर्ट में कर दी गई थी और नीदरलैण्ड के बिनड्यूजनबर्ग को यूरोपीय सेण्ट्रल बैंक का प्रथम अध्यक्ष बनाया गया। ।

यद्यपि खाते की मुद्रा में यूरो का प्रयोग 1 जनवरी, 1999 से आरम्भ हो चुका था, किन्तु सौदों में नकद यूरो का प्रयोग 1 जनवरी, 2002 से किया जा रहा है। तीन वर्ष का यह अन्तराल यूरो का संक्रमण काल (Transition Period of Euro) है क्योंकि विशाल आकार में यूरो के करेन्सी नोट तथा सिक्कों की छपाई एवं टंकण में तीन वर्ष का अन्तराल न केवल आवश्यक ही है, बल्कि व्यावहारिक भी है। यूरोपीयन सेण्ट्रल बैंक द्वारा निर्गत यूरो के नोट तथा सिक्के, यूरो की छतरी में सम्मिलित देशों की परिसीमाओं में निर्विघ्न 1 जनवरी, 2002 से नकद सौदों (Cash Transactions) में हस्तान्तरित किये जा रहे है।

यूरो मुद्रा के संक्रमण काल (1999-2002) के बीच सभी 12 देशों की मुद्राएं न केवल जीवित रखने का निर्णय किया गया था, बल्कि यूरो के साथ-साथ विनिमय का माध्यम, मूल्य का मापक तथा संचय का आधार बनाए रखने पर भी सहमति हुई थी, किन्तु यूरो मुद्रा की छपाई पूरी होने एवं चलन में आने के बाद 1 जनवरी, 2002 से ये सभी 12 मद्राएं निष्प्रभावी हो गई। स्लोवेनिया ने वर्ष 2006 में, माल्टा तथा साइप्रस ने जनवरी 2008 में स्लोवाकिया ने जनवरी 2009 में तथा एस्टोनिया ने जनवरी 2011 में ‘यूरो’ को अपनी मुद्रा स्वीकार कर लिया। लातविया ने जनवरी 2014 में तथा लिथुआनिया ने जनवरी 2015 में यूरो मुद्रा को स्वीकार किया। यूरो अपनाने वाले देशों की संख्या 19 हो गई है। ‘यरो’ अपनाने वाले सभी राष्ट्रों ने इन सिक्कों के पीछे अपनी विशिष्ट पहचान मुद्रित की है, किन्तु सभी सिक्के सदस्य राष्ट्रों में समान रूप से स्वीकार किए जाएंगे।

यरो मुद्रा के 7 करेन्सी नोट 5 से 500 यूरो तक के मूल्य वर्ग में छापे गये हैं तथा 8 सिक्के टंकित किए गये हैं, यूरो की छतरी तले आया प्रत्येक देश सिक्कों के एक तरफ अपने देश की कोई विशिष्ट कति छापने के लिए स्वतन्त्र है, किन्तु यूरो का कोई भी सिक्का प्रत्येक सदस्य देश द्वारा समान रूप में स्वीकार किया जाएगा। इस प्रकार 1 जनवरी, 2002 से यूरो ने खाते की मुद्रा के साथ-साथ चलन की मद्रा का रूप भी ले लिया है।

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ब्रेग्जिट (Brexit)

यनाइटेड किंगडम द्वारा 23 जून, 2016 को कराए गए जनमत संग्रह में यूरोपीय संघ से बाहर हो जाने के निर्णय को ब्रेग्जिट कहा जाता है, जो Brita.. के Br तथा exit के exit से मिलकर बना है। यू.के. में कराए गए जनमत संग्रह में 52% मतदाताआ ने यू.के. के यूरोपीय संघ के बाहर हो जाने का समर्थन जनमत मंगह में 71.8% (लगभग 30 मिलियन) लोगों ने भाग लिया। अधिकृत रूप से यरोपीय संघ से यू.के. के अलग होने की प्रक्रिया लिस्बन संधि के अनुच्छेद 50 के अन्तर्गत सदस्यता त्यागने वाले। तथा यूरोपीय संघ के बीच ‘सदस्यता त्यागने की शर्तों’ पर दो वर्ष के भीतर सहमति बन जाने पर प्रारम्भ होगी। यह प्रक्रिया मार्च 17 के अन्त तक प्रारम्भ हो सकती है। इसका अर्थ यह हुआ कि मार्च 2019 तक यू.के. औपचारिक रूप से यूरोपीय संघ से अलग हो जाएगा।

यूरो एवं भारत (Euro and India)

वर्तमान में भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक हिस्सेदार यूरोपीय संघ है। यूरोपीय संघ के साथ भारत के विदशा व्यापार में बड़ी मात्रा में आयात की वस्तओं के साथ-साथ निर्यात की वस्तुएं भी सम्मिलित हैं। युरोपीय संघ द्वारा साझी मुद्रा यूरो अपनाए जाने के बाद भारत को ‘इनवायसिंग’ के लिए एक नई वैकल्पिक सुदृढ़ मुद्रा मिल गई है। इसके अतिरिक्त 19 देशों द्वारा यूरो अपनाने पर भारत को अब 19 मुद्राओं के साथ परिवर्तनीयता की कठिनाइयों से छुटकारा मिल गया है और विनिमय दर की अनिश्चितता में कमी आने से भारत का विदेशी व्यापार और अधिक अनुकूल होगा। अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में यूरो एक सदृढ वैकल्पिक मुद्रा के रूप में उभर कर सामने आई है। आशा है कि विदेशी बाजार में भारत के व्यापार की अमरीकी डॉलर पर निर्भरता कम होगी और यूरोलैण्ड के साथ विनिमय स्थिरता के वातावरण में भारतीय निर्यात बढ़ेंगे। इसके अतिरिक्त यूरो के उदय से अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में भारतीय ऋणकर्ताओं को कम लागत पर ऋण उपलब्ध हो सकेंगे।

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दक्षिणपूर्वी एशियाई राष्ट्रों का संघ आसियान या आसियान

(ASSOCIATION OF SOUTH-EAST ASIAN NATIONS-ASEAN)

स्थापना विश्व के दक्षिण-पूर्वी एशियाई राष्ट्रों-इण्डोनेशिया, फिलीपीन्स, मलेशिया, सिंगापुर तथा थाईलैण्ड द्वारा आरम्भ में ‘आसियान’ (ASEAN) की स्थापना की गई, जिसका औपचारिक गठन 8 अगस्त, 1967 को बैंकॉक घोषणा द्वारा किया गया। वर्तमान में आसियान की सदस्य संख्या 10 है। वर्ष 1984 में ब्रूनेई, 1995 में वियतनाम, 1997 में म्यांमार एवं लाओस द्वारा आसियान में प्रवेश करने के बाद वर्ष 1999 में कम्बोडिया को भी आसियान की सदस्यता दे दी गई। 23 जुलाई, 1996 से भारत को आसियान में पूर्ण वार्ताकार का दर्जा प्राप्त है। भारत के अतिरिक्त पूर्ण वार्ताकार का दर्जा प्राप्त अन्य देश हैं—अमेरिका, चीन एवं रूस । इसका सचिवालय जकार्ता में है। उद्देश्य-आसियान के निर्माण का मुख्य

उद्देश्य हैदक्षिण-पूर्वी एशिया में आर्थिक प्रगति को तीव्र करना तथा उसके आर्थिक स्थायित्व को बनाए रखना। मोटे तौर पर इसके निर्माण का उद्देश्य सदस्य राष्ट्रों में राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, व्यापारिक, वैज्ञानिक, तकनीकी, प्रशासनिक इत्यादि क्षेत्रों में परस्पर सहायता का आदान-प्रदान करना तथा सामूहिक सहयोग से विभिन्न साझी समस्याओं का हल निकालना है जो इसके निर्माण के समय आसियान घोषणा में स्पष्ट रूप से लिखित है। इसका ध्येय इस क्षेत्र में एक साझा बाजार तैयार करना तथा सदस्य देशों के मध्य व्यापार को बढ़ावा देना है।

आसियान के अब तक 20 शिखर सम्मेलन हो चुके हैं। प्रथम सन् 1976 बाली (इण्डोनेशिया) में और दूसरा कुआलालम्पुर (मलेशिया) में सन् 1977 में सम्पन्न हुआ। तीसरी शिखर वार्ता दस वर्षों के पश्चात् 1987 में मनीला (फिलीपीन्स) में हुई, चौथी सिंगापुर (1992), पांचवीं बैंकॉक (थाईलैण्ड) में 1995 में और छठी 1998 में हनोई (वियतनाम) में सम्पन्न हुई। वर्ष 2001 से शिखर वार्ताएं लगभग प्रतिवर्ष सम्पन्न हो रही हैं, जिनका विवरण निम्न प्रकार है:

आसियान के पिछले कुछ शिखर सम्मेलनों का संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है:

आसियान का 13वां शिखर सम्मेलन 20-22 नवम्बर, 2007 को सिंगापुर में सम्पन्न हुआ। इसकी मुख्य उपलब्धि आसियान के ऐतिहासिक चार्टर को स्वीकार करने की रही। इसके अन्तर्गत आसियान को नियमों पर आधारित समुदाय बनाने के अतिरिक्त वर्ष 2015 तक ‘आसियान आर्थिक समुदाय’ बनाने का प्रस्ताव स्वीकार किया गया है।

इसी सम्मेलन में भारत-आसियान छठा शिखर सम्मेलन भी सम्पन्न हुआ, जिसमें इस समूह के साथ भारत का व्यापार वर्ष 2010 तक 50 अरब डॉलर करने का लक्ष्य रखा गया। इस सम्मेलन में प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा कि आसियान देशों के साथ व्यापार बढ़ाने के लिए बीजा नियमों को सरल बनाना होगा। साथ ही भारत और आसियान देशों के मध्य वैज्ञानिक एवं तकनीकी विकास सम्बन्धी शोध को बढ़ावा देने के लिए 10 लाख डॉलर की प्रारम्भिक राशि से भारत-आसियान विज्ञान एवं तकनीकी कोष की स्थापना की घोषणा की गई तथा ‘India-Asean Network on Climate Change’ की स्थापना का आह्वान करते हुए इसकी पायलट परियोजनाओं के लिए 50 लाख डॉलर की प्रारम्भिक राशि वाले एक इण्डिया-आसियान ग्रीन फण्ड की स्थापना की पेशकश की गई।

आसियान का 14वां शिखर सम्मेलन 26 फरवरी से 31 मार्च, 2009 के मध्य थाईलैण्ड में सम्पन्न हुआ। इस शिखर वार्ता में आसियान नेताओं ने आसियान समुदाय के लिए रोडमैप घोषणा पर हस्ताक्षर किए और अन्य कई प्रपत्रों को स्वीकार किया, जिनमें ASEAN Political Security Community Blueprint’ तथा ‘ASEAN Socio-cultural Community Blueprint’ शामिल हैं। इसमें आसियान-आस्ट्रेलियान्यूजीलैण्ड मुक्त व्यापार क्षेत्र की स्थापना भी की गई। इस शिखरवार्ता को 10 अप्रैल, 2009 को थाईलैण्ड में पटय्या में पूनः आयोजित किया गया, लेकिन सुरक्षा कारणों से इसे स्थगित करना पड़ा।

आसियान का 15वां शिखर सम्मेलन तथा भारत-आसियान की 7वीं शिखर बैठक थाईलैण्ड में चा-आम व हुआ हिन में अक्टूबर 2009 में सम्पन्न हुआ। भारत-आसियान शिखर बैठक में प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह सदोनों पक्षों के मध्य विनियोग एवं सेवाओं के स्वतन्त्र व्यापार के समझौते की दिशा में कार्यवाही तेज करने का आह्वान किया।

आसियान का 16वां शिखर सम्मेलन 8-9 अप्रैल, 2010 को वियतनाम की राजधानी हनोई में सम्पन्न हआ। इस शिखर सम्मेलन में आसियान देशों के मध्य सहयोग सहमति को अगले पांच वर्षों में प्रभावशाली हंग से लाग करने का संकल्प लिया गया। इसमें शिक्षा क्षत्र में प्राथमिकता के आधार पर सहयोग करने का निर्णय लिया गया। बाहरी सम्बन्धों की दृष्टि से चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, भारत और रूस के साथ विस्तता विचार विनिमय किया गया।

सियान का 17वां शिखर सम्मेलन 28-30 अक्टूबर, 2010 वियतनाम में हनोई में सम्पन्न हुआ। इसमें 8वीं आसियान भारत शिखर वार्ता भी हुई। इस शिखर वार्ता में भाविष्य के लिए एक दृष्टिकोण तथा राजनीतिक इच्छाशक्ति के आधार पर आसियान समुदाय की स्थापना की प्रक्रिया को गति प्रदान करने के लिए निर्णय लिया गया तथा क्षेत्रीय संरचना में इसकी केन्द्रीय भूमिका में वृद्धि पर विचार किया गया।

आसियान का 18वां शिखर सम्मेलन 7-8 मई, 2011 में जकार्ता (इण्डोनेशिया) में सम्पन्न हुआ। इसमें तीन संयुक्त घोषणाएं स्वीकार की गई:

“राष्ट्रो के वैश्विक समदाय में आसियान समदाय” “ASEAN Institute of Peace and Reconciliation” 219-1 at Enhancing cooperation against trafficking in persons in South-East Asia’यह स्वीकार किया गया कि आसियान समुदाय को स्थापित करने में अनेक चुनौतिया हैं, लेकिन 2015 तक इसे स्थापित करने के लिए सभी आवश्यक प्रयास किए जाएगा।

आसियान का 19वां शिखर सम्मेलन 14-19 नवम्बर, 2011 को इण्डोनेशिया में हुआ।

आसियान का 20वां शिखर सम्मेलन 3-4 अप्रैल, 2012 को कम्बोडिया की राजधानी नॉम पेन्ह में सम्पन्न हुआ। इस सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए कम्बोडियाई प्रधानमंत्री हन सेन ने ‘आसियान’ के विगत 45 वर्षा की उपलब्धियों तथा आने वाले वर्षों में समूह के समक्ष विद्यमान चुनौतियों का उल्लेख अपने अध्यक्षीय सम्बोधन में किया। वर्ष 2015 तक यूरोपीय कम्यूनिटी के अनुसार ‘आसियान कम्यूनिटी’ की स्थापना हेतु रोडमैप पर चर्चा विशेष रूप से इस सम्मेलन में की गई। इस सम्मेलन में आसियान इंटीग्रेशन वर्क प्लान (2009-15), आसियान इंस्टीट्यूट फॉर पीस एण्ड रिंकसीलिएशन की स्थापना तथा आसियान क्षेत्र में 2015 तक ड्रग-फ्री जोन की स्थापना व आसियान कॉमन वीजा आदि के मुद्दे इस सम्मेलन में चर्चा के मुख्य मुद्दों में शामिल थे। इस सम्मेलन में चार दस्तावेजों पर हस्ताक्षर सम्मेलन में किए गए। ये हैं-(1) नॉमपेन्ह एजेण्डा

ऑन ‘आसियान कम्यूनिटी’ बिल्डिंग, (2) नॉमपेन्ह डिक्लेयरेशन ऑन ‘आसियान : वन कम्यूनिटी, वन डेस्टिनी’, (3) आसियान लीडर्स डिक्लेरेशन ऑन ड्रग फ्री आसियान 2015, (4) ग्लोबल मूवमेंट्स ऑफ मॉडरेट्स शामिल हैं। आसियान का 21वां शिखर सम्मेलन 18 नवम्बर, 2012 को नॉमपेन्ह, कम्बोडिया में आयोजित किया गया। वर्तमान समय में आसियान के 10 सदस्य देश हैं। ये देश हैं—ब्रूनेई, कम्बोडिया, इण्डोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैण्ड एवं वियतनाम शामिल हैं। वर्ष 2012 में भारत तथा आसियान सम्बंधों के 20 वर्ष तथा सम्मेलन भागीदारी के 10 वर्ष पूरे होने के साथ भारत आसियान स्मरणीय शिखर सम्मेलन 20-21 दिसम्बर, 2012 को नई दिल्ली में आयोजित किया गया। इसमें आसियान के सभी देशों ने भाग लिया। समूह का 22वां और 23वां शिखर सम्मेलन 2013 में ब्रूनेई में सम्पन्न हआ उसके पश्चात 2014 में 24वां और 25वां शिखर सम्मेलन म्यामार में सम्पन्न हुआ। आसियान का 26वां शिखर सम्मेलन, 2015 में मलेशिया में आयोजित हुआ। आसियान के अब तक 31 शिखर सम्मेलन हो चुके हैं, 31वां शिखर सम्मेलन 14 नवम्बर, 2017 को मनीला (फिलीपीन्स) में आयोजित किया गया।

आसियान और भारत

आसियान और भारत के मध्य साझेदारी निरन्तर तेजी से विकसित होती रही है। भारत सन् 1992 में आसियान का क्षेत्रीय वार्ता साझेदार बना। आपसी हितों को ध्यान में रखते हुए आसियान ने सन् 1995 में बैंकॉक में अपनी पांचवीं शिखर वार्ता में भारत को पूर्ण वार्ताकार साझेदार के रूप में आमन्त्रित किया। भारत सन 1996 में आसियान रीजनल फोरम (ARF) का सदस्य भी बना। वर्ष 2002 से भारत और आसियान के मध्य वार्षिक आधार पर शिखर वार्ताओं का आयोजन किया जा रहा है।

अगस्त 2009 में भारत ने थाईलैण्ड में आसियान देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते के अनुसार भारत और आसियान देश वर्ष 2013 से 2016 के मध्य 80% से अधिक व्यापारिक उत्पादों पर आयात कर हटा देंगे। इस समझौते के फलस्वरूप दोनों पक्षों के मध्य वार्षिक व्यापार 40 अरब डॉलर से बढ़कर 60 अरब डॉलर हो जाने की आशा व्यक्त की गई है।

वर्तमान में भारत और आसियान सेवा और विनियोग में व्यापार समझौतों पर वातां कर रह हाय पाताए अनुरोध प्रस्ताव के आधार पर हो रही हैं. जहां दोनों पक्ष उन क्षेत्रों के लिए अनुरोध करते हैं जहां वे। २१ प्रारम्भ करना चाहते हैं। भारत ने अनेक क्षेत्रों जैसे—अध्यापन, नसिंग, आकीटेक्चर, चार्टर्ड एकाउण्टेण्टा तथा चिकित्सा क्षेत्र में इस तरह के समझौतों के लिए अनुरोध किया है, क्योंकि भारत में ऐसे क्षेत्रा में पर्याप्त व्यक्ति उपलब्ध है जो आसियान देशों में रोजगार अवसरों का लाभ उठा सकते हैं। भारत आसियान देशों में अपने दूरसंचार, सूचना तकनीक, पर्यटन तथा बैंकिंग नेटवर्क का भी विस्तार कर रहा है।

भारत और आसियान के मध्य बढ़ते हए सम्बन्धों को इस तथ्य से स्पष्ट किया जा सकता है कि भारत के निर्यातों में आसियान देशों का भाग लगभग 11.2% है। 2015-16 में इन देशों को निर्यात 1,64,748 करोड़ ₹थाजो 2016-17 में 2,07,620 करोड़र हो गया। जहां तक आयातों का प्रश्न है वर्ष 2015-16 में,2,60,744 करोड़ र हुआ था, जो 2016-17 में 2,72,397 करोड़र हो गया जो कुल आयातों का 9.2% था।

भारतआसियान विशेष शिखर सम्मेलन

भारत-आसियान संवाद के बीस वर्ष पूरे होने पर, नई दिल्ली में आयोजित दो दिवसीय शिखर सम्मेलन। में भारत और 10 सदस्यीय दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संगठन आसियान ने सेवा व निवेश क्षेत्र में मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) को 20 दिसम्बर को अंतिम रूप दे दिया। साथ ही दोनों पक्षों ने 2022 तक द्विपक्षीय व्यापार 200 अरब डॉलर पहुंचाने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है। भारत और आसियान ने एफटीए से सम्बन्धी वार्ता पूरी कर ली है। अगस्त 2013 में आसियान के आर्थिक मंत्रियों ओर भारत के वाणिज्य और उद्योग मंत्री की ब्रूनेई दारुसलेम में बैठक के दौरान समझौते पर हस्ताक्षर होंगे। इससे एकाउण्टेण्ट, इंजीनियर तथा डॉक्टर जैसे भारतीय पेशेवरों को 80 करोड़ जनसंख्या वाले दक्षिण एशियाई बाजारों में पहुंच हो सकेगी। पिछले वर्ष वस्तु क्षेत्र में एफटीए के लागू होने के बाद दोनों पक्षों ने समझौते को व्यापक बनाते हुए इसमें सेवा तथा निवेश क्षेत्र को शामिल करने के लिए बातचीत शुरू की थी। सेवा क्षेत्र में मजबूत स्थिति के कारण भारत की इसमें विशेष दिलचस्पी थी। भारत और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के इस संगठन ने अगले तीन वर्षों में 100 अरब डॉलर के द्विपक्षीय व्यापार लक्ष्य के साथ सेवा व निवेश में मुक्त व्यापार समझौते को अन्तिम रूप देने की भी घोषणा की है। इस सम्मेलन मे आसियान के दस सदस्य देशों में से नौ के शासन प्रमुख शामिल हुए। भारत ने आसियान के साथ अगले तीन वर्षों में सीधा सड़क संपर्क बनाने का लक्ष्य रखा है। भारत-आसियान की संपर्क विस्तार योजनाओं पर कहा कि संपर्क बढ़ाने के लिए 2016 तक भारत-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय मार्ग बनाया जाएगा। साथ ही इसे लाओस पीडीआर तक बढ़ाया जाएगा। भारत-म्यांमार-वियतनाम-कंबोडिया की बीच सीधा राजमार्ग भी बनाया जाएगा। उल्लेखनीय है कि भारत ने आसियान के साथ अपनी वार्ता पक्रिया के 20 वर्ष पूरे होने के मौके पर पूर्वी एशिया के दस देशों के शासन प्रमुखों को नई दिल्ली बुलाया था। वियतनाम, म्यांमार, कंबोडिया, थाईलैंड, इंडोनेशिया, सिंगापुर, लाओस, ब्रुनेई के शासन प्रमुख इस सम्मेलन के लिए भारत आए।

विजन दस्तावेज

समुद्री सुरक्षा, समुद्री मार्गों पर निर्बाध आवाजाही की स्वतंत्रता को मजबूत करेंगे। संयुक्त राष्ट्र की व्यवस्था और अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों को देंगे विशेष प्रोत्साहन । रक्षा संवाद और सैन्य अभ्यास सहित सहयोग बढ़ाने की होगी कोशिश। भारत-म्यांमार-थाईलैंड राजमार्ग को लाओस व कंबोडिया तक बढ़ाया जाएगा। अंकोरवाट मंदिर जैसे सांस्कृतिक प्रतीक सहेजने को बढ़ाएंगे सहयोग। भारत-आसियान सेंटर की जल्द-से-जल्द स्थापना की जाएगी। कृषि, लघु मझोले उद्योग, ऊर्जा सुरक्षा व संरक्षण पर बढ़ेगी साझेदारी।

दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ या दक्षेस (सार्क)

(THE SOUTH ASIAN ASSOCIATION FOR REGIONAL CO-OPERATION-SAARC)

‘सार्क’ (दक्षेस) का पूरा नाम है ‘साउथ एशियन ऐसोसिएशन फॉर रीजनल को-ऑपरेशन’ अर्थात ‘दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ’ 7 व 8 दिसम्बर, 1985 को ढाका में दक्षिण एशिया के 7 देशों के राष्ट्रध्यक्षों का सम्मेलन हुआ तथा ‘सार्क’ की स्थापना हुई। ये देश थे—भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, श्रीलंका और मालदीव। बाद में अफगानिस्तान भी इसमें जुड़ गया और इस प्रकार अब यह दक्षिण एशिया के आठ पड़ोसी देशों की विश्व राजनीति में क्षेत्रीय सहयोग की शुरुआत है।

मालदीव को छोड़कर संघ के शेष सदस्य (भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, अफगानिस्तान और श्रीलंका) भारतीय उपमहाद्वीप के हिस्से हैं। ये सभी देश इतिहास, भूगोल, धर्म और संस्कृति के द्वारा एक-दूसरे से जुड़े हैं। विभाजन के पहले भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश एक ही प्रशासन और अर्थव्यवस्था के अभिन्न अंग थे, लेकिन स्वतन्त्रता के बाद ये देश एक-दूसरे से दूर हो गए। सार्क का मुख्यालय (सचिवालय) काठमाण्डू (नेपाल) में है। सार्क सचिवालय की स्थापना दूसरे सार्क सम्मेलन (बेंगलुरू) के बाद 16 जनवरी, 1987 को की गई थी। सचिवालय का कार्यकाल 2 वर्ष रखा गया है।

सहयोग क्षेत्रों का निर्धारण सार्क के मूल आधार क्षेत्रीय सहयोग पर बल देना है। अगस्त 1983 में क्षेत्रीय सहयोग के ऐसे नौ क्षेत्र रेखांकित किए गए थे—कृषि, स्वास्थ्य सेवाएं, मौसम विज्ञान, डाक तार सेवाएं, ग्रामीण विकास, विज्ञान तथा तकनीकी, दूरसंचार तथा यातायात, खेलकूद तथा सांस्कृतिक सहयोग। दो वर्ष बाद ढाका में इस सूची में कुछ और विषय जोड़ दिए गए—आतंकवाद की समस्या, मादक-द्रव्यों की तस्करी तथा क्षेत्रीय विकास में महिलाओं की भूमिका । सार्क के 7वें शिखर सम्मेलन (ढाका, अप्रैल 1993) में ‘साप्टा (South Asian Preferential Trade Arrangement-SAPTA) पर हस्ताक्षर किए गए तथा इसे दिसम्बर 1995 से लागू किया गया। ‘साप्टा’ सदस्य देशों के बीच व्यापार एवं आर्थिक सहयोग बढाने के प्रयास करता है। ‘साष्टा’ के तत्वाधान में सदस्य देशों के बीच व्यापारिक आदान-प्रदान के लिए जो विचार-विमर्श हआ है, उसका मुख्य उद्देश्य वर्ष 2005 तक दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार क्षेत्र (South Asian Free Trade Area) (SAFTA-‘साफ्टा’) का निर्माण करना है।

सार्क का चार्टर एवं ढाका घोषणा

सार्क के चार्टर में 10 धाराएं (अनुच्छेद) हैं। इनमें सार्क के उद्देश्यों, सिद्धान्तों, संस्थाओं तथा चिनीय व्यवस्थाओं को परिभाषित किया गया है, जो निम्न प्रकार हैं :

उद्देश्यचार्टर के अनुच्छेद 1 के अनुसार सार्क के मुख्य उद्देश्य हैं

  • दक्षिण एशिया क्षेत्र की जनता के कल्याण एवं उनके जीवन-स्तर में सुधार करना।
  • दक्षिण एशिया के देशों की सामूहिक आत्मनिर्भरता में वृद्धि करना;
  • क्षेत्र के आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक विकास में तेजी लाना:
  • आपसी विश्वास, सूझ-बूझ तथा एक-दूसरे की समस्याओं का मूल्यांकन करनाः
  • आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तकनीकी और वैज्ञानिक क्षेत्र में सक्रिय सहयोग एवं पारस्परिक सहायता में वृद्धि करना;
  • अन्य विकासशील देशों के साथ सहयोग में वृद्धि करना; तथा
  • सामान्य हित के मामलों पर अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर आपसी सहयोग मजबूत करना।

दक्षेस का 13वां शिखर सम्मेलन 12-13 नवम्बर, 2005 को बांग्लादेश में हुआ। सम्मेलन के समापन पर ‘ढाका घोषणा पत्र’ के नाम से एक घोषणा-पत्र जारी हुआ, जिसमें आतंकवाद तथा गरीबी जैसे महत्वपूर्ण समस्याओं के उन्मूलन पर सहमति व्यक्त की गयी।

दक्षेस का 14वां शिखर सम्मेलनअप्रैल 2007 को नई दिल्ली में सम्पन्न हुआ। इसमें अफगानिस्तान को आठवें सदस्य के रूप में इस समूह में शामिल किया गया। इस सम्मेलन में अमरीका, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, यूरोपीय संघ तथा ईरान के प्रतिनिधि उद्घाटन सत्र में पर्यवेक्षक के रूप में उपस्थित रहे। सम्मेलन में लिए गये निर्णयों में दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालय की स्थापना तथा ‘सार्क फूड बैंक’ की स्थापना के निर्णय महत्वपूर्ण थे।

दक्षेस का 15वां शिखर सम्मेलन2-3 अगस्त, 2008 को श्रीलंका की राजधानी कोलम्बो में आयोजित हुआ। इस सम्मेलन में सदस्य देशों द्वारा क्षेत्रीय व्यापार प्रतिबन्ध समाप्त करने, आतंकवाद से निपटने तथा ऊर्जा एवं खाद्यान्न संकट की चुनौतियों का एकजुटता से सामना करने की बात कही गयी। आतंकवाद तथा अपराधों से निपटने के लिये एक-दूसरे को कानूनी सहायता उपलब्ध कराने वाली एक सन्धि पर अलग से हस्ताक्षर किये गये। सम्मेलन में क्षेत्रीय मानक संगठन पर समझौता हुआ तथा दक्षेस विकास कोष (SDF) के लिये नियमावली सम्बन्ध चार्टर भी जारी किया गया।

दक्षेस का 16वां शिखर सम्मेलन28-29 अप्रैल, 2010 को भूटान की राजधानी थिम्पू में सम्पन्न हुआ। दो दिन के इस सम्मेलन में आतंकवाद का विषय ऐजेन्डे में शीर्ष पर रहा। आतंकवाद के दमन और आपराधिक विषयों में साझा सहायता पर दक्षस राष्ट्रों में समझौता के लिये भारत की पहल को व्यापक समर्थन मिला।

दक्षेस का 17वां शिखर सम्मेलन10-11 नवम्बर, 2011 को मालदीव के अड़ में सम्पन्न हुआ। इस सम्मेलन में क्षेत्रीय सहयोग कई करार तथा मुक्त व्यापार की राह में आ रही अड़चनों को दर करने पर सहमति व्यक्त की गई।

दक्षेस का 18वां शिखर सम्मेलन 26-27 नवम्बर, 2014 को काठमाण्डू (नेपाल) में सम्पन्न हुआ। इस बाम शांति और समद्धि के लिए गहन क्षेत्रीय एकीकरण’ रखी गई थी। इस सम्मेलन में सदस्य नक्षत्रीय सहयोग को सदढ करने आतंकवाद तथा हिंसक अतिवाद से मिलकर लड़ने, गैर शुल्क व बाधाओं को दूर करने, सेवाओं के व्यापार को परिचालन में लाने तथा दक्षेस विकास कोष के या खिड़की को परिचालन में लाने पर बल दिया। दक्षेस का 19वां शिखर सम्मेलन वर्ष 2016 अर्द्धशुल्कीय बाधाओं को दूर करने, सेवाओं में इस्लामाबाद (पाकिस्तान) में प्रस्तावित है।

दक्षेस का 19वां शिखर सम्मेलन नवम्बर 2016 में इस्लामाबाद (पाकिस्तान) में प्रस्तावित था, परन्त 1 द्वारा इस शिखर सम्मेलन में भाग लेने पर मना करने से यह सम्मेलन स्थगित हो गया।

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दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार समझौता

(SAFTA)

दक्षिण एशियाई वरीयता व्यापार समझौता (SAPTA) की स्थापना वाले समझौते पर 11 अप्रैल, 1993 का ढाका में हुए 7वें सार्क शिखर सम्मेलन में हस्ताक्षर किए गए थे। समझौते पर सभी सात सार्क देशों, नामतः भारत, पाकिस्तान, नेपाल, भटान, बांग्लादेश, श्रीलंका और मालदीव ने हस्ताक्षर किए थे। साष्टा के तहत सार्क देशों के बीच व्यापार और आर्थिक सहयोग के संवर्द्धन के प्रयोजन से टैरिफ रियायतों के आदान प्रदान के लिए ढांचा प्रदान किया गया है। साप्टा का क्षेत्र विस्तार टैरिफ के क्षेत्र में प्रबन्ध, पैरा-टेरिफ और नॉन-टैरिफ उपाय तथा सीधे व्यापार उपायों तक फैला है।

दिसम्बर 1995 में साप्टा करार के प्रभावी होने के बाद से सदस्य राष्ट्रों के बीच रियायतों के आदान-प्रदान के लिए दौर की वार्ताएं आयोजित की गयीं। तीसरे दौर की वार्ता 23 नवम्बर, 1998 को सम्पन्न हुई। तीसरे दौर तक, भारत ने कुल 2565 टैरिफ लाइनों पर रियायतें प्रदान की थीं। भारत द्वारा दूसरे सार्क सदस्यों को प्रदान की गई रियायतों को प्रभावी बनाने वाली सीमा शुल्क अधिसूचना 10 अगस्त, 1999 को जारी की गई और बाद में 8 सितम्बर, 1999 को शुद्धिपत्र जारी किया गया।

जुलाई 1998 में कोलम्बो में सार्क सम्मेलन के दौरान सभी सार्क सदस्य देशों को एक पेशकश की गई थी कि भारत उनके साथ द्विपक्षीय मुक्त व्यापार करार करना चाहेगा ताकि इस क्षेत्र में आर्थिक समेकन की गति को तेज किया जा सके। श्रीलंका से इस बारे में सकरात्मक उत्तर प्राप्त हुआ था। दो वार्ता-दौर सम्पन्न होने के पश्चात् मुक्त व्यापार करार पर 28 दिसम्बर, 1998 को नई दिल्ली में हमारे प्रधानमन्त्री और श्रीलंका के राष्ट्रपति ने हस्ताक्षर किए थे। इसके अतिरिक्त सम्मेलन के दौरान प्रधानमन्त्री ने यह भी घोषणा की थी कि भगतान सन्तुलन के प्रयोजन से भारत द्वारा 2307 मदों पर लगाए गए आयात प्रतिबन्धों को 1 अगस्त. 1998 से सार्क सदस्य देशों से आयातों में मामले में हटा लिया गया। इन उपायों से सार्क सदस्य देशों के बीच व्यापार तथा आर्थिक सहयोग में वृद्धि होने की आशा है।

साप्टा के अन्तर्गत वार्ताओं का अन्तिम उद्देश्य दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार क्षेत्र अथवा साप्टा का लक्ष्य प्राप्त करना है। जुलाई 1998 में कोलम्बो में दसवें सार्क सम्मेलन में यह निर्णय लिया गया कि सभी 7 सार्क देशों से एक विशेषज्ञ समिति (सीओई) की स्थापना की जाए ताकि दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार क्षेत्र के लिए करार अथवा सन्धि वार्ताएं शुरू की जा सकें। जुलाई 1999 में सार्क सचिवालय, काठमाण्डू में आयोजित अपनी पहली बैठक में विशेषज्ञ समिति ने साप्टा सन्धि का मसौदा तैयार करने के लिए विचारार्थ विषयों को अन्तिम रूप दिया।

21.22 अक्टबर 2001 को सार्क सचिवालय में आर्थिक सहयोग पर सार्क के मख्य बिन्दओं के बारे में आयोजित बैठक में यह नोट किया गया था कि वर्ष 2001 तक सन्धि के पाठ को अन्तिम रूप देना सम्भव नहीं होगा। तथापि, बैठक में साप्टा सन्धि को शीघ्र ही अन्तिम रूप दिए जाने के बारे में प्रबल प्रतिबद्धता को दोहराया गया था।

SAPTA  SAFTA

जनवरी, 2004 के दिन SAARC देशों के शिखर सम्मेलन में एक ऐतिहासिक समझौता के ढांचे पर हस्ताक्षर हए जिसके अनुसार उन्मुक्त व्यापार क्षेत्र, ‘दक्षिण एशियाई उन्मुक्त व्यापार समझौता’ (South Trade Agreement-SAFTA) की स्थापना होगी। SAFTA की स्थापना SAPTA की जगह पर होगी। इस समझौते से भारत पाकिस्तान व्यापार का स्वरूप भी बदल जाएगा जो अब तक अनौपचारिक था।

SAPTA 1 जनवरी, 2006 से प्रभावी हुआ है। उन्मुक्त व्यापार की सारी प्रक्रिया 10 वर्षों में पूरी। हो जाएगी। व्यापार उदारीकरण दो चरणों में होगा, यथा

  • दो वर्षों में भारत तथा पाकिस्तान टैरिफ की दरों में 20 प्रतिशत की कमी करेंगे, जबकि अन्य देश ऐसा 3 वर्षों में करेंगे। ऐसा प्रथम चरण में होगा।
  • दूसरे चरण में, अगले 5 वर्षों में भारत और पाकिस्तान आयात शुल्कों को घटाकर 5 प्रतिशत या

उससे कम कर देंगे। श्रीलंका ऐसा 6 वर्षों में तथा अन्य सदस्य देश 8 वर्षों में करेंगे। SAFTA की स्थापना WTO के पश्चात् हुई है। इसलिए इसका रूप तथा विषय WTO के प्रावधान के अनुकूल ही होगा। इसने WTO की संस्थाओं तथा व्यवहार को बड़े पैमाने पर अपनाया है। इन्हें विवाद को सुलझाने, सुरक्षा उपायों, भुगतान शेष के अपवादों तथा न्यूनतम विकसित देशों (भूटान, नेपाल, मालदीव तथा बांग्लादेश) के लिए विशेष एवं भेदात्मक प्रावधानों में देखा जा सकता है।

WTO की तरह किसी भी देश को यह अधिकार है वह 1 जनवरी, 2006 में SAFTA की स्थापना के बाद इससे अलग हो सकता है। इसके लिए 6 मास की पूर्व सूचना देनी पड़ेगी। WTO की तरह SAFTA में स्वदेश देशों के वाणिज्य या व्यापार मन्त्रियों की मन्त्रिस्तरीय परिषद् होगी। समझौते को लागू करने के लिए विशेषज्ञों की समिति होगी।

SAARC देशों के वाणिज्य एवं व्यापार समाज ने SAFTA का स्वागत किया है। सेवा क्षेत्र यथा—स्वास्थ्य, पर्यटन तथा मनोरंजन में द्विपक्षीय व्यापार असीमित विकास की सम्भावनाएं देखी जा रही हैं। इसके परिवहन लिंक की स्थापना करनी होगी, वीसा (VISA) जारी करने में ढील देनी होगी तथा थाने में अनिवार्य उपस्थिति की व्यवस्था को हटाना होगा।

SAFTA के अन्तर्गत चरणबद्ध व्यापार उदारीकरण कार्यक्रम के प्रथम चरण में भारत ने 1 जुलाई, 2006 से प्रशुल्क कटौती को लागू कर दिया है। इसके अन्तर्गत 380 उत्पादों के दक्षेस देशों से आयात पर प्रशुल्क दरें घटायी गयी हैं। दक्षेस के अल्प-विकसित देश (बांग्लादेश, भूटान, मालदीव और नेपाल) तथा गैर अल्प-विकसित देश (पाकिस्तान और श्रीलंका) के मामले में यह कटौतियां अलग-अलग होंगी। यह उल्लेखनीय है दक्षेस के 15वें शिखर सम्मेलन (2008) में अफगानिस्तान को भी साफ्टा में शामिल कर लिया गया है।

स्वदेशी उद्योगों और किसानों को विदेशी प्रतियोगिता से सुरक्षा प्रदान करने की दृष्टि से चुनिंदा उत्पादों की एक संवेदनशील सूची भी निर्धारित की गयी। अल्प-विकसित देशों के लिये 763 उत्पादों को और गैर-अल्पविकसित देशों के लिये 884 उत्पादों को इस संवेदनशील सूची में शामिल किया गया है। इस सूची में शामिल उत्पादों के मामले में व्यापार उदारीकरण कार्यक्रम लागू नहीं होगा।

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पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन ओपेक

(ORGANIZATION OF THE PETROLEUM EXPORTING COUNTRIES-OPEC)

तेल निर्यातक देशों के संगठन ‘ओपेक’ (Organization of Petroleum Exporting Countries) का जन्म 1960 में बगदाद (इराक) में हुआ।

तेल निर्यातक देशों में मुख्यतः तेल उत्पादन का कार्य बहु-उद्देश्यीय कम्पनियों द्वारा किया जाता है। आपेक की स्थापना से पूर्व तेल कम्पनियां पश्चिमी एशिया के देशों की तेल सम्पदा के बल पर अपने निजी देशों को समृद्ध बनाती रहीं। आपेक के नियमों के अनुसार किसी राष्ट्र को संगठन का सदस्य बनाने के लिए कुछ आवश्यक अर्हताओं को पूरा करना होगा—राष्ट्र को तेल का शुद्ध निर्यातक राष्ट्र होना चाहिए तथा राष्ट्र के तेल हित और अन्य सदस्यों के हितों में समानता होनी चाहिए। धीरे-धीरे इस तेल निर्यातक देशों के संगठन में 12 सदस्य हो गये, पांच संस्थापक सदस्य देशों ईरान, इराक कुवैत, सऊदी अरब तथा वेनेजुएला के अतिरिक्त 7 अन्य सदस्य हैं कतर, अल्जीरिया, नाइजीरिया, यूनाइटेड अरब अमीरात, इक्वेडोर, लीबिया तथा अंगोला।

इसका मुख्यालय वियना (ऑस्ट्रिया) में है

यह उल्लेखनीय है कि वर्तमान में ‘ओपेक’ के सदस्यों की संख्या 12 है। यद्यपि इण्डोनेशिया एवं ईरान स्थता छोड़ चुके हैं, लेकिन उनके स्थान पर अंगोला और इक्वेडोर को शामिल कर लिया गया है।

ओपेक की स्थापना के प्रमुख उद्देश्य निम्न हैं :

(1) खनिज तेल के उत्पादन एवं इसकी कीमत को नियन्त्रित करके के पेट्रोलियम निर्यातक देशों के हितों की रक्षा करना।

(ii) तेल की कीमतों में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर स्थिरता लाना।

(iii) तेल उत्पादन, कीमत एवं निर्यात सम्बन्धी नीति का निर्धारण करना ऐसा अनुमान है कि ओपेक राष्टों के पास विश्व का लगभग 75% पेट्रोल भण्डार है और विश्व का लगभग 55% पेट्रोल उत्पादन इन्हीं राष्ट्रों में होता है।

जी7

(GROUP-7)

जी-7 ऐसे राष्ट्रों का समूह है जिसका गठन बाजार अर्थव्यवस्था (Free market) वाले अमीर औद्योगिक दशा का सदस्यता से हुआ है। ये राष्ट्र नियमित रूप से शिखर सम्मेलनों के माध्यम से मिलते हैं और आर्थिक नीतियों एवं अन्य मुद्दों पर सामंजस्यपूर्ण दृष्टिकोण अपनाते हैं।

आरम्भ में G-7 के नाम से 1975 में गठित संगठन को G-8 के नाम से जाना जाता था। आरम्भ में सात विकसित देशों-अमेरिका, कनाडा, जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस, इटली एवं जापान ने विश्व की राजनीतिक समस्या एवं आर्थिक मुद्दों पर विचार करने के लिए G-7 नाम से एक संगठन तैयार किया। रूस में समाजवादी ढांचा समाप्त होने और बाजारोन्मुखी अर्थव्यवस्था आरम्भ होने के बाद 1997 में रूस को आठवें सदस्य के रूप में इसमें सम्मिलित कर लिया गया जिसे G-8 का नाम दिया गया। मार्च 2014 में यूक्रेन विवाद के कारण रूस को समूह-8 से बाहर कर दिया गया। अतः वर्तमान में यह पुनः जी-7 हो गया है।

विश्व के सर्वाधिक शक्तिशाली देशों के समूह जी 8 का 34वां शिखर सम्मेलन 7-9 जुलाई, 2008 को जापान के तोयाको में सम्पन्न हुआ। इस सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन एवं पर्यावरण, जिम्बाब्वे के हालात, अफ्रीका को मिलने वाली सहायता, खाद्य संकट तथा विश्व भर में तेल की बढ़ती कीमतों इत्यादि पर चर्चा हुई। यह उल्लेखनीय है कि इस सम्मेलन में विश्व की पांच उभरती अर्थव्यवस्थाओं का एक समूह ‘ओ-5″ बनाया गया है जिसमें भारत, चीन, ब्राजील, मैक्सिको तथा दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं, जिनके साथ जी-8 के समूह के देशों के विचार विमर्श में तालमेल हो सके। जी-8 का 37वां शिखर सम्मेलन 2011 में फ्रांस में. 38वां शिखर सम्मेलन 18-19 मई, 2012 को अमरीका में कैम्प डेविड में तथा 39वां शिखर सम्मेलन 17-18 जन, 2013 को यूनाइटेड किंग्डम के उत्तरी आयरलैण्ड में सम्पन्न हुआ। पुनः जी-7 का 40वां शिखर सम्मेलन 4-5 जून, 2014 को ब्रूसेल्श में तथा 41वां सम्मेलन 7-8 जून, 2015 को जर्मनी में सम्पन्न हुआ।

G-8 का 42वां सम्मेलन 27-28 मई, 2016 को जापान में तथा 43वां सम्मेलन 26-27 मई, 2017 को इटली में सम्पन्न हुआ। वर्ष 2018 में इसका सम्मेलन कनाडा में प्रस्तावित है।

जी15

(G-15)

जी-15 या समूह-15 (19 निर्गुट एवं विकासशील देशों का ग्रुप)-जो विकास और उससे सम्बद्ध मुद्दों के लिए एक अन्तर्राष्ट्रीय आन्दोलन का स्वरूप धारण करता जा रहा है—का गठन 1989 में बेलग्रेड में। गुटनिरपेक्ष शिखर सम्मेलन के बाद किया गया। इसके सदस्य विश्व के प्रमुख क्षेत्रों में फैले हुए हैं-अफ्रीका, उत्तर एवं दक्षिण अमरीका (कैरेबियन सहित), एशिया और यूरोप। वर्तमान में इस संगठन में 17 राष्ट हैं। जिनमें ब्राजील तथा मैक्सिको को छोड़कर शेष सभी निर्गुट देश है। इसके सदस्य हैं—अल्जीरिया, अर्जेण्टीना ब्राजील, मिस्र, जमैका, भारत, इण्डोनेशिया, मलेशिया, मेक्सिको, नाइजीरिया, सेनेगल, वेनेजएला. ईरान जिम्बाब्वे कीनिया, श्रीलंका, एवं चिली। इसका पहला शिखर सम्मेलन कुआलालम्पुर में हुआ।।

G-15 की भूमिका के सम्बन्ध में यह उल्लेखनीय है कि समूह में 17 देश मिलकर विश्व के कल। भौगोलिक क्षेत्र के 34% कल जनसंख्या के 30%, विकासशील जगत के सकल घरेलू उत्पाद के 43% तथा विकासशील देशों के कुल निर्यात व आयात के क्रमशः 25 और 22 प्रतिशत भाग का प्रतिनिधित्व करते हैं।

जी-15 का प्रथम शिखर सम्मेलन 1 से 3 जून, 1990 की अवधि में कुआलालम्पुर (मलेशिया) में हुआ। था। अब तक इसके 16 शिखर सम्मेलन हो चुके हैं। 14वां शिखर सम्मेलन 15-17 मई, 2010 को तेहराना (ईरान) में, 15वां शिखर सम्मेलन 2012 में कोलम्बो (श्रीलंका) में हुआ था। G-15 का 16वां सम्मेलन टोक्यो (जापान) में हुआ था।

जी-15 के 16वें शिखर सम्मेलन में स्वीकार किये गये घोषणा-पत्र में राजनीतिक और आर्थिक मामलों में दक्षिण-दक्षिण सहयोग को मजबूत करने पर जोर दिया गया। इस घोषणा-पत्र में वैश्वीकरण के फलस्वरूप विकासशील देशों के समक्ष उपस्थित चुनौतियों का सामना करने के लिये नये उपायों के प्रति प्रतिबद्धता व्यक्त की गयी, विकासशील देशों के लिये ऊर्जा सुरक्षा पर जोर देते हुए परम्परागत और गैर-परम्परागत स्रोतों के विकास के लिये, आपसी सहयोग की आवश्यकता पर बल दिया गया। साथ ही व्यापार संवर्द्धन. विनियोग तथा तकनीकी हस्तान्तरण के मामले में आपसी सहयोग को जारी रखने और इसे सुदृढ़ बनाने पर बल दिया गया।

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जी20

(G-20)

G-20 की स्थापना वर्ष 1997-98 के एशियाई संकट के बाद हुई थी। वर्ष 1999 में महत्वपूर्ण औद्योगीकृत और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को एकजुट करने और वैश्विक अर्थव्यवस्था में प्रमुख मुद्दों पर परिचर्चा करने हेतु बर्लिन में बीस (जी-20) वित्त मन्त्रियों और सेन्ट्रल बैंक के गवर्नरों के समूह का गठन किया गया। जी-20 सदस्य देश हैं—अर्जेण्टीना, आस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इण्डोनेशिया, इटली, जापान, मैक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया, तुर्की, यूनाइटेड किंग्डम, संयुक्त राज्य अमरीका और यूरोपीय संघ, जिसका प्रतिनिधित्व रोटेटिंग काउन्सिल प्रेसीडेंसी और यूरोपियन सेन्ट्रल बैंक द्वारा किया जाता है। वैश्विक आर्थिक मंच और संस्थान एक साथ कार्य करें, यह सुनिश्चित करने के लिए आईएमएफ के प्रबन्ध निदेशक और विश्व बैंक के अध्यक्ष और इन्टरनेशनल मॉनिटरी एण्ड फाइनेन्शियल कमिटी और आईएमएफ और विश्व बैंक की विकास समिति के अध्यक्ष जी-20 के पदेन सदस्य के रूप में नियुक्त किए गए हैं। जी-20 के सदस्य देश एक साथ वैश्विक एकल राष्ट्रीय उत्पाद का 90 प्रतिशत, विश्व व्यापार का 80 प्रतिशत और विश्व की जनसंख्या के दो-तिहाई भाग का प्रतिनिधित्व करते हैं। वर्ष 1999 से जी-20 ने अनेक क्षेत्रों में पर्याप्त प्रगति की है, जिसमें विकास सम्बन्धी नीतियों पर समझौते, वित्तीय प्रणाली के दुरुपयोग को कम करना, वित्तीय संकटों से निपटना तथा आतंकवादियों के निधि-पोषण के विरुद्ध संघर्ष करना शामिल है। जी-20 का उद्देश्य वैश्विक और वित्तीय प्रणाली के आगे और विकास सम्बन्धी मुद्दों पर सदस्यों में समान दृष्टिकोण विकसित करने का भी है।

अपने प्रारम्भ से ही, जी-20 वित्त मन्त्रियों और सेन्ट्रल बैंक के गवर्नरों की वार्षिक बैठकें आयोजित की गयीं और विश्व में वित्तीय स्थायित्व के उपायों को प्रोत्साहन देने तथा सतत आर्थिक वृद्धि और विकास प्राप्त करने हेतु विचार-विमर्श किया।

जी20 सम्मेलनों के मुख्य मुद्दे/परिणाम

वैश्विक आर्थिक संकट को सबसे अधिक संगठित प्रत्युत्तर जी-20 देशों के मंच से आया। जी-20 के नेताओं के शिखर सम्मेलनों ने संकट से उबरने के लिए अल्प और मध्यावधि दोनों कार्यवाइयों का आवर्ती एजेंडा निर्धारित किया गया है। जी-20 के अब तक 13 शिखर सम्मेलन हो चुके हैं।

जी20 का पहला शिखर सम्मेलन युद्ध पश्चात् युग में सबसे बड़े वित्तीय संकट की पृष्ठभूमि में नवम्बर 2008 में वॉशिंगटन डीसी में आयोजित हुआ। इसकी विशेष उपलब्धियों में, अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय नियमन को सधारने के लिए उच्च स्तरीय प्रतिबद्धताओं का निर्माण, वित्तीय स्थायित्व मंच और अन्य मुख्य मानक-निर्धारण निकायों का विस्तार, अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों में उभरते और विकाशील देशों के प्रतिनिधित्व को प्रबल। स्वर प्रदान करना था।

जी20 के नेताओं का तीसरा शिखर सम्मेलन 24-25 सितम्बर, 2009 का पिट्सबग अमराका – था। मुख्य निष्कर्ष निम्नलिखित से सम्बन्धित थे :

(i) विश्व बैंक और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष में अपनी आवाज उठाने और कोटा सुधार के लिए समय सीमा,

(ii) वित्तीय क्षेत्र में नियामक सुधार के लिए समय सीमा,

(iii) सशक्त, सतत और संतुलित वृद्धि फ्रेमवर्क की शुरुआत,

(iv) सर्वाधिक गरीबों के हितों की सरक्षा करते हुए अदक्ष जीवाश्म ईंधन सब्सिडियों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त और यौक्तिकीकरण का संकल्प लेना, तथा

(v) आर्थिक मुद्दों सम्बन्धी सहकारिता के लिए जी-20 प्रधान बहुपक्षीय मंच को नामित करना।

जी-20 नेताओं का चौथा शिखर सम्मेलन 26-27 जून, 2010 को टोरंटो, कनाडा में आयोजित हुआ था। वैश्विक आर्थिक संकट हल करने में जी-20 की उपलब्धियां बढ़ाते हुए, नेता अगले कदमों पर सहमत हुए कि जी-20 देशों को गुणवत्तापूर्ण रोजगार कार्यों के साथ वृद्धि की पूर्ण वापसी, वृद्धि अनुकूल राजकोषीय समेकन का पालन, वित्तीय प्रणालियों में सुधार और सशक्तिकरण और मजबूत सतत और सन्तुलित वैश्विक वृद्धि का सृजन सुनिश्चित करना चाहिए। उन्नत अर्थव्यवस्थाएं राजकोषीय योजनाओं के प्रतिबद्ध थीं जो 2013 तक घाटे को कम से कम आधा कर देंगी और 2016 तक सरकारी ऋण और सकल घरेलू उत्पाद अनुपात स्थिर अथवा कम कर देंगी। इसके अतिरिक्त, निम्नलिखित पर समझौते हुए :

(i) सामाजिक सुरक्षा तंत्रों का सशक्त बनाना, कम्पनी शासन सुधार में वृद्धि, वित्तीय बाजार विकास, अवसंरचना प्रसार कुछ उभरते बाजारों में बड़ी विनिमय दर लोचशीलता,

(ii) विकास परिदृश्य में वृद्धि और उसे बनाए रखने के लिए सम्पूर्ण जी-20 सदस्यता वाले देशों में ढांचागत सुधारों का अनुकरण और

(iii) वैश्विक मांग के पुनः संतुलन सम्बन्धी प्रगति करना नेता तीन वर्ष (2013 के अन्त तक) तक पुनर्नवीकरण के लिए भी सहमत हो गए जिसमें प्रतिबन्धों को हटाने से बचना अथवा माल और सेवा में व्यापार पर नए प्रतिबन्ध लगाना, नए निर्यात प्रतिबन्धों को लाग करना, अथवा निर्यात बढ़ाने के लिए विश्व व्यापार संगठन के असंतगत उपायों को कार्यान्वित करना शामिल है। इसके अतिरिक्त, नेता दोहा विकास राउंड के लिए यथासंभव संतुलित और महत्वपूर्ण निष्कर्षों के समर्थन पर भी सहमत हो गए।

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जी20 का पांचवां शिखर सम्मेलन 11 और 12 नवम्बर, 2010 को सिओल दक्षिण कोरिया में हआ। यह सम्मेलन उभरती अर्थव्यवस्था के आर्थिक और राजनीतिक प्रभाव बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण था और यह वैश्विक अर्थव्यवस्था के पुनः संतुलन का निर्देश भी हो सकता है। पहले के जी-20 के वित्त मन्त्रियों की बैठक ने बाजार निर्धारित विनियम दर प्रणालियों, जो आर्थिक मौलिक तत्वों को दर्शाता है और मद्राओं की प्रतिस्पर्धात्मक अवमूल्यन से बचाता है, की ओर रुख करने की प्रतिज्ञा लेकर संभावित मुद्रा विवाट की चिन्ता को हटाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।

जी20 का छठवां शिखर सम्मेलन नवम्बर 2011 में केन्स में तथा सातवां शिखर सम्मेलन लास काबोस में जन 2012 में सम्पन्न हआ। लास काबोस के शिखर सम्मेलन की बैठक में जी-20 के यूरो क्षेत्र के सामने के क्षेत्र की एकता और स्थिरता की सुरक्षा के लिए सभी आवश्यक कदम उठाने तथा वित्तीय बाजारों को। कामकाज सुधारने पर सहमत हुए।

जी20 का आठवां शिखर सम्मेलन सितम्बर 2013 में रूस में सेन्ट पीटर्स में, नौवां सम्मेलन 2014 में। आस्ट्रेलिया में और दसवां सम्मेलन 2015 में टर्की में सम्पन्न हुआ। जबकि ग्यारहवां सम्मेलन, 2016 में चीन में, बारहवां सम्मेलन 7-8 जुलाई, 2017 में हैम्बर्ग जर्मनी में सम्पन्न हुआ। जी-20 का तेरहवां सम्मेलन 2018 में भारत में प्रस्तावित है।

भारत और जी20

भारत जी-20 का सदस्य तब से बना जब इसकी स्थापना 1999 में वित्तमन्त्री मंच के रूप में हर्ड। दक्षिण एशिया से भारत एकमात्र जी-20 का सदस्य देश है और जी-20 में महत्वपूर्ण उभरते बाजार सदस्य देशों में से एक है।

जी-20 में भारत के आर्थिक संकट की कछ महत्वपूर्ण उपलब्धियां निम्नलिखित हैं:

(1) भारत 2002 में जी20 का अध्यक्ष था और उसने 2002 में जी-20 वित्तमन्त्रियों और सेन्ट्रल बैंक गवर्नरों की बैठक की मेजबानी भी की।

(2) भारत (भारतीय रिजर्व बैंक डिप्टी गवर्नर) ने वृद्धिशील ध्वनि विनियमन और सशक्त पारदर्शिता (नवम्बर 2008 वाशिंगटन सम्मेलन के बाद) सम्बन्धी जी-20 कार्यदल की सह-अध्यक्षता की।

(3) भारत वर्तमान में कनाडा के साथ सशक्त सतत और संतुलित वृद्धि के जी-20 फ्रेमवर्क सम्बन्धी कार्यदलका सह-अध्यक्ष है।

(4) भारत विभिन्न विषयक मुद्दों पर जी-20 में विकासशील देशों के दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करता है जो निम्नलिखित हैं :

(i) वित्तीय क्षेत्र नियामक सुधार,

(ii) जलवायु परिवर्तन,

(iii) अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थान सुधार,

(iv) वृद्धि और राजकोषीय समेकन.

(v) वित्तीय स्थायित्व बोर्ड (एफएसबी) और आईएएसबी जैसे मंचों में शेयरधारिता में वृद्धि,

(vi) असहकारी क्षेत्राधिकार (वैश्विक मंच, वित्तीय कार्यवाही टास्क फोर्स (एफएटीएफ) सम्बन्धी मुद्दे।

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बिम्स्टेक

(BIMSTEC)

दक्षेस का , Myanmar, Shri Lanka, Thailand Economic Co-operation)

इसकी स्थापना जून 1997 में बैंकॉक में ‘विस्टेक’ (BIS-TEC) के नाम से की गयी थी। इसमें बंगाल की खाड़ी से लगे चार देशों बांग्लादेश, भारत, श्रीलंका तथा थाईलैण्ड के मध्य आर्थिक सहयोग की दृष्टि से समूह बनाया गया, जिसका BIMST-EC नाम ‘Bangladesh, India, Shri Lanka, Thailand Economic Cooperation’ रखा गया।

दिसम्बर 1997 में इसमें म्यांमार तथा फरवरी 2004 में नेपाल और भूटान को भी शामिल कर लिया गया। इस तरह अब इस संगठन में कुल 7 देश सदस्य हो गये हैं।

दक्षेस का का पहला शिखर सम्मेलन थाईलैण्ड की राजधानी बैंकॉक में 30-31 जुलाई, 2004 को सम्पन्न हुआ। इस सम्मेलन में इसका नाम बदलकर ‘Bay of Bengal Initiative for Multi-sectoral Technical and Economic Co-operation’ (BIMSTEC) कर दिया गया। इस सम्मेलन की समाप्ति पर जारी साझा बयान में सदस्य देशों के नेताओं ने आपसी आर्थिक सहयोग बढ़ाने और स्वतन्त्र व्यापार समझौते को समय से लागू करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की। ।

दक्षेस का सम्मेलन 13 नवम्बर, 2008 को नई दिल्ली में सम्पन्न हुआ। सम्मेलन का उदघाटन करते हुए प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह ने कहा कि ‘बिम्स्टेक’ ‘आसियान’ और दक्षिण एशिया को मध्य एक महत्वपूर्ण कड़ी है और इस क्षेत्र को ‘मुक्त व्यापार क्षेत्र बनाने का आह्वान किया। प्रधानमन्त्री ने इन देशों को रेल, सड़क और जल-परिवहन से जोड़ने के प्रयास तेज करेन पर भी जोर दिया। आपसी विचार-विमर्श के दौरान ‘बिम्स्टेक’ नेताओं ने इस क्षेत्र को आतंकवाद से मुक्त करने, अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय संकट, ऊर्जा तथा खाद्य सुरक्षा और क्षेत्रीय आर्थिक समूह जा तथा खाद्य सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याओं का मुकाबला मिलकर करने का निश्चय किया। विमटेक का तीसरा शिखर सम्मेलन 1-4 मार्च, 2014 को म्यामार की राजधानी ने पिताऊ में किया गया। इस सम्मेलन में सदस्य देशों ने मौसम व जलवायु पूर्वानुमान हेतु बिम्स्टेक केन्द्र स्थापित तन्त्र व्यापार क्षेत्र समझौते के अन्तर्गत सीमा शुल्क मामले में सहयोग करने तथा बिम्स्टेक नेटवर्क ऑफ पॉलिसी थिंक टैक्स के गठन पर सहमति जताई।

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डी8

(DEVELOPING-8)

‘डवलपिंग-8’ अर्थात् ‘डी-8’ नाम से एक समूह का गठन जून 1997 में इस्तांबुल (टर्की) में ‘ऑर्गेनाइजेशन आफ इस्लामिक कांफ्रेंन्स’ (OIC) के आठ बड़ी जनसंख्या वाले देशों ने किया था। इसमें शामिल देशों में टका, इरान, इण्डोनेशिया, मलेशिया, नाइजीरिया, मिन, पाकिस्तान व बांग्लादेश शामिल हैं जिनकी कुल जनसंख्या लगभग 80 करोड़ ₹ तथा विश्व व्यापार में संयुक्त भागीदारी लगभग 4 प्रतिशत है।

विश्व के आठ मुस्लिम विकासशील राष्ट्रों के इस समूह का दूसरा शिखर सम्मेलन 1-2 मार्च, 1999 को बालादश (ढाका) में सम्पन्न हुआ। फरवरी 2001 में इसका तीसरा शिखर सम्मेलन काहिरा (मिन) में आयोजित किया गया। इस समूह का सातवां शिखर सम्मेलन नाइजीरिया की राजधानी आबूजा में 10 जुलाई, 2010 को सम्पन्न हुआ। डी-8 का आठवां शिखर सम्मेलन 21 नवम्बर, 2012 को इस्लामाबाद (पाकिस्तान) में हुआ।

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ग्रुप77 की बैठकें

(MEETINGS OF GROUP-77)

जिनेवा में विकासशील देशों के एक समूह द्वारा विकासशील देशों के मध्य पारस्पिरिक सहयोग हेतु ग्रुप-7 की स्थापना 1964 में की गई। वर्तमान में इनकी संख्या 131 हो गयी है, फिर भी इन्हें ‘ग्रप-77′ के नाम से ही सम्बोधित किया जाता है। ग्रुप-77’ के अधिकांश देश तीसरी दुनिया के हैं। संगठन का उद्देश्य सदस्य देशों के बीच आर्थिक सहयोग और विकास को बढ़ाना है। जी-77 के शिखर सम्मेलन (15 अप्रैल, 2000 हवाना) में आतंकवाद से निबटने के लिए संयुक्त आह्वान किया गया। सम्मेलन में पारित ‘हवाना घोषणा-पत्र’ में आतंकवाद से निबटने के लिए एक अन्तर्राष्ट्रीय सन्धि को प्रभावी रूप से लागू किये जाने की आवश्यकता जताई गई।

ग्रप-77 का एक अन्तरंग लघु समूह भी है जिसे आजकल जी-24 (G-24) के नाम से भी जाना जाता

ग्रुप77 की बैठकें

ग्रुप-77 के विदेश मामलों के मन्त्रियों की वार्षिक बैठक न्यूयार्क में संयुक्त राष्ट्र की सामान्य सभा के नियमित सत्र के प्रारम्भ में आयोजित की जाती है। UNCTAD के सत्रों तथा UNIDO और UNESCO के सामान्य सम्मेलनों के समय विशिष्ट क्षेत्र के मन्त्रियों की बैठक बुलाई जाती है। ग्रुप की 25वीं, 30वीं एवं 40वीं वर्षगांठ पर मन्त्रिस्तरीय विशिष्ट बैठकों का आयोजन भी किया गया है। वर्ष 2006 तथा 2009 में विज्ञान एवं तकनीकी मन्त्रियों की बैठक का आयोजन किया गया। इसके अतिरिक्त विकासशील देशों में

आर्थिक सहयोग पर अन्तर्सरकारी अनुमान एवं समन्वय समिति (IFCC) की बैठक प्रति दूसरे वर्ष बुलायी जाती है।

गुप10

(GROUP OF TEN-G-10)

ग्रप-10 उन अनौपचारिक देशों का समूह है जो अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के ‘उधार के सामान्य व्यवस्थापन कोष’ [General Arrangements of Borrow (GAB) Fund] के लिए अनुदान (हिस्सा) देते हैं। इस समह की स्थापना 1962 में अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के मुख्य संसाधनों की वृद्धि के लिये की गई थी। उसके बाद से ही ग्रप-10 ने अन्तराष्ट्रीय मुद्रा कोष में महत्वपूर्ण परिवर्तन ला दिये हैं, जिनमें अन्तर्राष्ट्रीय मद्रा व्यवस्था,GAB को संशोधित एवं उसमें वृद्धि करना तथा गैर-सदस्य देशों को ऋणों की स्वीकृति शामिल है। समह के देशों के मन्त्रियों एवं केन्द्रीय बैंकों के गवर्नरों की बैठक वर्ष में दो बार होती है, जबकि उच्च सेवा अधिकारियों एवं केन्द्रीय बैंको के प्रतिनिधियों की नियमित रूप से बैठकें आयोजित की जाती हैं। अप-10 के संस्थापक सदस्यों में थे-बेल्जियम, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, नीदरलेण्ड्स, स्वीडन, संयुक्त राज्य अमरीका एवं ब्रिटेन। स्विट्जरलैण्ड अप्रैल 1984 में समूह का सदस्य बना। ग्रुप-10 का मुख्यालय पेरिस के IMF भवन में स्थित है।

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आर्थिक सहयोग और विकास संगठन

(ORGANIZATION FOR ECONOMIC CO-OPERATION AND DEVELOPMENT-OECD)

1961 में ‘यूरोपियन आर्थिक सहयोग संगठन’ के स्थान पर एक नयी संस्था अस्तित्व में आयी जिसे वर्तमान में इसके 34 सदस्य देश निम्नलिखित हैं

ऑस्ट्रिया, बेल्जियम, कनाडा, डेनमार्क, फ्रांस, जर्मनी,  ग्रीस, आइसलैण्ड, आयरिश गणराज्य, इटली, लक्जमबर्ग, नीदरलैण्ड्स, नॉर्वे, पुर्तगाल, स्पेन, स्वीडन, स्विट्जरलैण्ड, टर्की, ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमरीका, आस्ट्रेलिया, चैक  गणराज्य, फिनलैण्ड, हंगरी, जापान, कोरिया गणराज्य, मैक्सिको, न्यूजीलैण्ड, पोलैण्ड, चिली, इजरायल, एस्टोनिया, स्लोवाकिया तथा स्लोवेनिया। फिनलैण्ड,

सर्बिया, मोंटेनेग्रो तथा जापान इसके विशेष कर्यों में भाग लेते हैं। इस संगठन का मुख्यालय पेरिस (फ्रांस) में है इस संगठन के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं :

  • सदस्य देशों में उच्चतम आर्थिक विकास तथा रोजगार की व्यवस्था करना, जीवनयापन के स्तर को उन्नत करना।
  • आर्थिक स्थिरता को बनाए रखते हुए विश्व की अर्थव्यवस्था के विकास में सहायक होना।
  • सदस्य देशों में तथा अन्य देशों में स्वस्थ्य आर्थिक विकास और विस्तार में यहयोग देना।
  • विश्व व्यापार के ऐसे विस्तार में सहयोग देना, जो बहु-पक्षीय हो तथा अन्तर्राष्ट्रीय दायित्वों के अनुसार तथा कोई विशेष भेदभाव न करने वाला हो।

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एशिया प्रशान्त आर्थिक सहयोग (एपेक)

(ASIA-PACIFIC ECONOMIC CO-OPERATION-APEC)

ऐशिया प्रशान्त क्षेत्र में आर्थिक सहयोग को बढ़ाने के उद्देश्य से वर्ष 1989 में एपेक (APEC) की स्थापना की गई। वर्तमान में APEC की सदस्य संख्या 21 है। ये सदस्य हैं—आस्ट्रेलिया, अमेरिका, कनाडा, मैक्सिको, जापान, चीन, हांगकांग, ताइवान, दक्षिण कोरिया, इण्डोनेशिया, ब्रूनेई, फिलीपीन्स, सिंगापुर, मलेशिया, थाईलैण्ड, पपुआ न्यूगिनी, न्यूजीलैण्ड, चिली, पेरू, रूस एवं वियतनाम APEC के सदस्य देशों की विश्व व्यापार में 40% से अधिक की भागीदारी है।

इसका सचिवालय सिंगापुर में है।

EEC तथा NAFTA की भांति APEC को भी एक स्वतंत्र व्यापार क्षेत्र (Free Trade Zone) के रूप में विकसित करने हेतु सदस्य राष्ट्र प्रयत्नशील हैं।

भारत सहित 11 देशों ने इस समूह की सदस्यता के इच्छुक हैं किन्तु विगत कुछ वर्षों से नए सदस्यों की सदस्यता पर विचार नहीं किया जा रहा है।

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जी24

(G-24)

यह भारत सहित 24 विकाशसील देशों का समूह है जो विश्व बैंक, अन्तर्राष्ट्रीय मद्रा कोष तथा अंकटाड की बैठकों में विकासशील देशों के हित संवर्द्धन का प्रयास करता है। इसका गठन वर्ष 1971 में किया गया। था। वर्ष 1983-84 तथा वर्ष 2011-12 में भारत इस समूह का अध्यक्ष रहा।

जी3या इब्सा

(G-3 OR IBSA)

जून 2003 में भारत, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका ने विकासशील देशों के हितों के पक्षपोषण के लिए मक संगठन की नींव रखी। इसका आधिकारिक नाम ‘इब्सा’ है। यह शब्द संक्षेप में इण्डिया, ब्राजील कोण अफ्रीका से बना है। यह संगठन विकासशील देशों की सशक्त आवाज बनकर उभरेगा। ये तीनों जा-3 के विस्तार और इसे मजबूत बनाने के लिए अलग-अलग महादेशों का प्रतिनिधित्व भी कर रहे हैं

भारत एशियाई देशा है। तो ब्राजील दक्षिण अमेरिकी और दक्षिण अफ्रीका अफ्रीकी देश। इसका पहला शिखर सम्मेलन, 2006 में ब्राजील में, दूसरा शिखर सम्मेलन सितम्बर, 2007 में दक्षिण

काम, तीसरा सम्मेलन अक्टूबर 2008 में नई दिल्ली में चौथा शिखर सम्मेलन 2010 में ब्राजील में, पांचवां शिखर सम्मेलन 2011 में दक्षिण अफ्रीका में सम्पन्न हुआ। आगामी शिखर सम्मेलन 6 जून, 2015 को भारत में सम्पन्न हुआ।

8 फरवरी, 2010 को इब्सा देशों के उद्यमों के लिए पहले पूंजी कोष (Venture Capital Fund) का उद्घाटन हुआ तथा वर्ष 2011-12 के लिए इस कोष में 55 करोड़ र की राशि रखी गई। यह कोष इब्सा के सदस्य देशों की कम्पनियों के लिए उपलब्ध रहेगा और इसका प्रबन्धन पुणे में विज्ञान और टेक्नोलॉजी पार्क द्वारा किया जाएगा जहां इव्सा का सचिवालय है।

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भारतअरब निवेश परियोजना

(INDO-ARAB INVESTMENT PROJECT)

इस परियोजना का चौथा सम्मेलन नवम्बर 2014 में नई दिल्ली में आयोजित किया गया। इस सम्मेलन में केन्द्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मन्त्री निर्मला सीतारमण ने स्पष्ट किया कि इस परियोजना के अन्तर्गत द्विपक्षीय व्यापार में बढ़ोतरी हो रही है तथा भारत एवं 22 अरब देशों के साथ व्यापार वर्ष 2013-14 में 185.6 बिलियन डॉलर के स्तर पर आ गया है जो भारत का विश्व के साथ कल व्यापार का 24.3% है। वर्ष 2009-10 में द्विपक्षीय व्यापार 103.8 बिलियन डॉलर का रहा था जो विश्व के साथ कुल व्यापार का 22% था। इस दौरान अरब देशों के साथ निवेश सम्बन्धी कई परियोजना पर हस्ताक्षर किए गए। भारत और अरब देशों के मध्य अन्य महत्वपूर्ण विवरण निम्न प्रकार हैं :

  • भारत ने यमन, कतर और ओमान के तेल क्षेत्रों के सफल संविदा प्राप्त की है।
  • कच्चे तेल की भारत की कुल आवश्यकता का लगभग 75% इस क्षेत्र द्वारा पूरा किया जाता है।
  • भारत को खाड़ी सहयोग परिषद् (जी.सी.सी) देशों से वर्ष 2009 में लगभग 59 अरब डॉलर का विदेशी प्रत्यक्ष निवेश प्राप्त हुआ है।
  • खाड़ी सहयोग परिषद् में कार्यरत 45 लाख भारतीय प्रति वर्ष भारत में लगभग 30 अरब डॉलर की राशि अन्तरित करते हैं।

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मर्कोसुर

(MERCOSUR)

दक्षिण अमेरिका के चार देशों—ब्राजील, अर्जेण्टाइना, पराग्वे तथा उरुग्वे ने एक जनवरी 1955 से अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में वृद्धि के लिए एक साझा बाजार मर्कोसुर (मर्कोसुर स्पेनिश नाम का शब्द संक्षेप है। जिसका अर्थ है दक्षिणी शंकु का साझा बाजार) की स्थापना कर पारस्परिक व्यापारिक बन्धनों को समाप्त कर दिया है। मऊसर के चारों देशों ने अन्य देशों के लिए इस व्यापार समझौते में शामिल होने का द्वार खला रखा है।

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ब्रिक/ब्रिक्स सम्मेलन

(BRIC/BRICS) 16

16 जून 2009 को रूस के शहर येकाटेरिनबर्ग में चार उभरती अर्थव्यवस्थाओं ब्राजील, रूस भारत और चीन (Brazil, Russia, India and China) अर्थात् (BRIC) का पहला शिखर सम्मेलन आयोजित हआ। विक देश जहां एक ओर विश्व की 40% जनसख्या का प्रतिनिधित्व करते हैं, वहां विश्व के कल सोच त्याट में भी उनकी भागीदारी 40% है। सम्मेलन की समाप्ति पर 16 सूत्रीय साझा वक्तव्यजारी किया गया, जिसमें अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं में सुधारों के प्रति ब्रिक देशों की प्रतिबद्धता व्यक्त करते हुए अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष एवं विश्व बैंक में विकासशील देशों के बेहतर प्रतिनिधित्व का आह्वान किया गया। ‘ब्रिक’ का दूसरा शिखर सम्मेलन 16 अप्रैल, 2010 में ब्राजील की राजधानी ब्रासीलिया में सम्पन्न हुआ।

अप्रैल 2011 में साथा (चीन) में ब्रिक के तीसरे सम्मेलन में दक्षिण अफ्रीका के इस समूह में शामिल होने के कारण इसे ब्रिक्स (BRICS) कहा जाने लगा।

ब्रिक्स का चौथा सम्मेलन 29-30 मार्च, 2012 को नई दिल्ली में आयोजित हुआ, जिसका विषय था ‘वैश्विक स्थायित्व, सुरक्षा और समृद्धि के लिए ब्रिक्स साझेदारी’। इस सम्मेलन में ब्रिक्स के पांचों देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने भाग लिया। इनमें भारत के प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह, चीन के राष्ट्रपति हू जिन्ताओ, रूस के राष्ट्रपति दमित्री मेदवेदेव, ब्राजील की राष्ट्रपति डिल्मा राउसेफ तथा दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति जैकब जुमा ने भाग लिया।

ब्रिक्स सम्मेलन सम्पन्न होने पर ‘दिल्ली घोषणापत्र’ जारी किया गया, जिसके मुख्य पहलू निम्न प्रकार हैं:

(1) समूह देशों के मध्य व्यापार और विनियोग को प्रोत्साहन देने के लिए ब्रिक्स देश ‘Master Agreement’ तथा ‘Letter of Credit Confirmation Facility Agreement’ पर सहमत हुए। इसके फलस्वरूप अब इन देशों के व्यापारियों को एक-दूसरे देशों के साथ लेन-देन करने के लिए आपसी मुद्रा में ही व्यवहार कर सकेंगे अर्थात् इसके लिए उन्हें अपने देश की मुद्रा को डॉलर में परिवर्तित नहीं करना पड़ेगा। यह उल्लेखनीय है कि ब्रिक्स देशों के मध्य प्रति वर्ष 230 अरब डॉलर का व्यापार होता है।

(2) सतत विकास कार्यक्रमों तथा अवसंरचना के विकास में स्रोतों की गतिशीलता और विश्व की अन्य उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं एवं विकासशील देशों के वैश्विक विकास के लिए एक नवीन ‘विकास बैंक’ की स्थापना पर सहमति। इस सम्बन्ध में सम्भाव्यता और व्यावहारिकता पर अध्ययन करके रिपोर्ट अगले शिखर सम्मेलन में प्रस्तुत की जाएगी। यह ‘विकास बैंक’ विश्व बैंक या अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसी अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं की प्रतियोगी न होकर उन कार्यों के लिए धन उपलब्ध कराएगी, जिसके लिए उन संस्थाओं से धन प्राप्त नहीं होता।

(3) ‘दोहा राउण्डके सफल परिणामों हेतु सदस्य देशों द्वारा किए जाने वाले प्रयासों की प्रति व्यक्त की गई तथा विकासशील देशों के हितों को पूर्ण करने वाली महत्वपूर्ण संस्था ‘अंकटाड’ (UNCTAD) में निवेश बनाए रखने के लिए भी बचनबद्धता व्यक्त की गई।

(4) सतत विकास और गरीबी के निवारण जैसी मूल प्राथमिकताओं के सन्दर्भ में हरित अर्थव्यवस्थाओं (Green Economy) को एक वृहद् कार्ययोजना के अन्तर्गत समझा जाना चाहिए।

(5) घोषणापत्र में विश्व बैंक के अध्यक्ष पद के लिए विकासशील देशों की उम्मीदवारी का समर्थन किया गया और यह कहा गया कि “विश्व बैंक को एक ऐसे संस्थान के रूप में परिवर्तित होने की आवश्यकता है जो ‘उत्तर-दक्षिण सहयोग’ के लिए ऐसे मध्यस्थ की भूमिका का निर्वहन करे, जिससे विकास के मुद्दों के सन्दर्भ में सभी देशों के योगदान को प्रोत्साहन मिले।

(6) ‘जलवायु परिवर्तनके विरुद्ध वैश्विक प्रयासों में ब्रिक्स समूह के देशों ने अपने योगदान के प्रति वचनबद्धता व्यक्त की है।

(7) ब्रिक्स समूह के देश अक्षय ऊर्जा स्रोतों, ऊर्जा दक्षता तथा पर्यावरण अनुकूलन तकनीकों के क्षेत्र में अपनी बढती हई आवश्यकताओं के सन्दर्भ में ज्ञान और तकनीक का आदान प्रदान करने पर भी सहमत हए।

(8) घोषणापत्र में यह कहा गया कि धन के वैधानिक और प्रभावी क्रियान्वयन हेतु वर्ष 2012 में अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक की वार्षिक बैठक से पूर्व ‘कोष एवं शासन सुधार 2010’ को लागू करने। की आवश्यकता है।

(9) घोषणापत्र में वर्तमान वैश्विक आर्थिक स्थिति के प्रति भी चिन्ता व्यक्त की गई है और यह कहा गया है कि वर्तमान समय में ऐसे वित्तीय नियमन तथा सुधारों की आवश्यकता है, जिससे एक सदढ नीति निर्माण सम्भव हो और वैश्विक वित्तीय बाजारों एवं बैंकिंग प्रणाली का विकास हो सके।

(10) घोषणापत्र में सीरिया में चल रहे वर्तमान संकट तथा मानवाधिकारों के हनन के प्रति हो रही हिंसा पर चिन्ता व्यक्त की गई। इसके साथ ही आतंकवाद पर चिन्ता व्यक्त करते हए कहा गया कि समूह आतंकवाद की समाप्ति हेतु पूर्ण रूप से कटिबद्ध है।

ब्रिक्स का पांचवां शिखर सम्मेलन 26– दीर्घ आर्थिक स्थिरता करने और आधार विचार-विमर्श किया गया। इस सम्मेलन का महत्व के आर्थिक कोष की व्यवस्था किए जाने पर सहमति प्रदान का क्षेत्रीय आर्थिक समूह । पाचवां शिखर सम्मेलन 26-27 मार्च, 2013 को डरबन में अयोजित हुआ। इसमें वैश्विक स्थिरता करने और आधारभत संरचना तथा सतत विकास को बढ़ावा देने के लिए कदमों परगया। इस सम्मेलन की महत्वपूर्ण उपलब्धियों में विकास बैंक की स्थापना का निर्णय १० हा ब्रिक्स देशों ने आपातकालीन ऋण संकट के समय आपस में सहायता के लिए 1000 “यवस्था किए जाने पर सहमति प्रदान की है। इसके साथ ही ब्रिक्स के पांचों देशों (ब्राजील, आर दक्षिण अफ्रीका) के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों के मध्य नियमित अन्तराल पर बैठकें, करने का संकल्प भी किया गया। योगिता से इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास और ग्रीन एलर्जी जैसे ज्वलन्त विषयों पर एक साथ कार्य

ब्रिक्स का छठा शिखर सम्मेलन ब्राजील के फोर्टालेजा शहर में 14-15 जुलाई, 2014 को सम्पन्न हुआ। इस सम्मलन में पूर्व घोषित ब्रिक्स बैंक का मख्यालय शंघाई में तथा भारत को ब्रिक्स बैंक का पहला अध्यक्ष निणय लिया गया। 100 अरब डॉलर वाले इस बैंक में सदस्य देशों की बराबर की भागीदारी होगी। इस सम्मेलन में सदस्य देशों को विदेशी मद्रा संकट में सहायता हेत 100 अरब डॉलर के एक आयात आरक्षित विदेशी विनिमय कोष के गठन का समझौता किया गया।

ब्रिक्स देशों का सातवां शिखर सम्मेलन रूस के ऊफा शहर में 8-9 जुलाई, 2015 को सम्पन्न हुआ। इस सम्मेलन का विषय ब्रिक्स भागीदारीः वैश्विक विकास के लिए मजबूत कारक रखा गया था। इस सम्मेलन में सेवाओं की बेहतरी हेतु डिजिटल साझा तन्त्र का गठन करने, आपसी सांस्कृतिक व्यापार सम्बन्धों को बढ़ाने, शीर्ष ऑडिट संस्थानों के बीच सहयोग के लिए एक तन्त्र बनाने, बड़ी-परियोजनाओं और कृषि उत्पादों के लिए ब्रिक्स बीमा पूल बनाने तथा सूचना आदान-प्रदान के लिए साझा तन्त्र के गठन पर सहमति व्यक्त की गई।

आठवां ब्रिक्स शिखर सम्मेलन 15-16 अक्टूबर, 2016 को गोवा (भारत) में तथा 9वां शिखर सम्मेलन 3-5 सितम्बर, 2017 को सियामोन (चीन) में सम्पन्न हुआ।

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कोलम्बो योजना

(COLOMBO PLAN)

इस योजना की परिकल्पना जनवरी 1950 में की गई थी और इसका प्रारम्भ 1 जुलाई, 1951 से हुआ। योजना का सचिवालय श्रीलंका में कोलम्बो में है। प्रारम्भ में इस योजना में सात राष्ट्रमण्डल देश भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, न्यूजीलैण्ड, कनाडा, आस्ट्रेलिया और यू.के. शामिल थे, जिनकी संख्या अब बढ़कर 26 हो गई है। इस प्रकार यह अब एक अन्तर्राष्ट्रीय संगठन बन गया है, जिसमें गैर-राष्ट्रमण्डल देशों के अतिरिक्त आसियान और सार्क समूह के सदस्य भी शामिल हैं।

कोलम्बो योजना का उद्देश्य एशिया और प्रशान्त क्षेत्र के सदस्य देशों में स्व-सहायता और एक-दूसरे की आर्थिक सामाजिक सहायता को बढ़ावा देकर लोगों की समृद्धि को बढ़ाना है।

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एफ्रोएशियाई ग्रामीण विकास संगठन

(AFRO-ASIAN RURAL DEVELOPMENT ORGANISATION-AARDO)

यह संगठन ग्रामीण विकास की दिशा में दक्षिण-दक्षिण सहयोग के पुराने उदाहरणों में से एक है। इसकी 50वीं वर्षगांठ 5 मार्च, 2012 को दिल्ली में मनाई गई। यह एक स्वायत्तशासी अन्तर्सरकारी संगठन है। इस संगठन में 15 अफ्रीकी देश तथा 14 एशियाई देश शामिल हैं। दिल्ली में आयोजित बैठक में सदस्यों से ग्रामीण विकास के लिए धन तथा ग्रीन टेक्नोलॉजी तक पहुंच के लिए अनुकूल अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था के लिए मिलकर काम करने की अपील कही गई। इस संगठन के अन्तर्गत सदस्य देशों के यहां संस्थानों की स्थापना हेत 100 मिलियन डॉलर चिह्नित किया गया है। इन संस्थानों में भारत-अफ्रीका कषि व ग्रामीण संगठन मदा. जल और उत्तक परीक्षण प्रयोगशाला, कृाष बाज उत्पादन केन्द्र तथा अफ्रीका के विभिन्न में ग्रामीण तकनीकी पार्क शामिल हैं।

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दुबई वित्तीय संकट और भारतीय अर्थव्यवस्था

दबई वर्ल्ड, जो कि कुछ विशाल रीयल एस्टेट परियोजनाओं में सक्रिय भागीदारी के साथ नई जी है ने 25 नवम्बर, 2009 को ऋण पुनःसंरचना और अपनी ऋण अदायगी में, की फ्लैगशिप होल्डिंग कम्पनी है, ने 25 नवम्बर, 2009 को ऋण पुनःसंरच को 59 बिलियन अमरीकी डॉलर अनुमानित) हेतु अनुरोध किया है। छह माह के विराम (अगस्त 2009 को 59 बिलियन अमरीकी डॉलर अनुमानित लेत यद्यपि घरेलू विदेशी मुद्रा और भारतीय स्टॉक बाजारों में शुरुआती प्रतिक्रया हुई थी, लेकिन यह प्रभाव अमहत्वपूर्ण और अल्पावधिक था। प्राथमिक पूंजी बाजार अप्रभावित रहा और दुबई समाचार का धन और सरकारी प्रतिभूति बाजारों पर इसका कोई स्पष्ट प्रभाव नहीं दिखाई दिया। बाजारों में तुरन्त सुधार हुआ, 2009-10 की दूसरी तिमाही में 7.9 प्रतिशत के समाचार से इसे सहारा मिला।

सम्पदा क्षेत्र पर इसके प्रभाव के सम्बन्ध में तात्कालिक आकलन का संकेत है कि यह संयत हो सकता है। भारतीय अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में यूएई की महत्वपूर्ण हिस्सेदारी के मद्देनजर भारत के निर्यात और आयात पर कुछ प्रभाव हो सकता है। चूंकि दुबई में कुल कार्य बल में प्रवासी भारतीयों का प्रतिशत अच्छा है, अतः संकट के परिणामस्वरूप विप्रेषण और एनआरआई जमाराशियों के परिणामी प्रभावों साथ विनिर्माण क्षेत्र में भारतीय मजदूरों के लिए वेतन कटौती या कार्य कटौती हो सकती है। यूएई लेखा विप्रेषणों का 10 प्रतिशत और एनआरआई जमाराशियों का 11.3 प्रतिशत है।

बाद के घटनाक्रमों से यह संकेत मिलता है कि दुबई संकट का वैश्विक वित्तीय बाजारों पर प्रभाव बना हुआ है। यूएई सेन्ट्रल बैंक द्वारा की गई घोषणा के परिणामस्वरूप यह यूएई में प्रचलित यूएई बैंक और विदेशी बैंकों को सहयोग देगा। इसके अतिरिक्त आबूधाबी सरकार और यूएई सेन्ट्रल बैंक दुबई वर्ल्ड को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए सहमत हो गई हैं। आबूधाबी सरकार सुकुक (इस्लामिक बॉण्ड) 4.1 बिलियन अमरीकी डॉलर की बाध्यताओं की श्रृंखला की पूर्ति के लिए दुबई वित्तीय सहायता निधि को 10 बिलियन अमरीकी डॉलर स्वीकृति करने को सहमत हो गई है। व्यापार क्रेडिटर्स और ठेकेदारों को दिए गए इन आश्वासनों से वित्तीय बाजारों में विश्वास की बहाली हुई है।

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प्रश्न

1 यूरोपीय संघ की नई मुद्रा पर एक टिप्पणी लिखिए।

2. टिप्पणी लिखिए :

(i) यूरोपीय साझा बाजार,

(ii) आसियान,

(iii) सार्क,

(iv) जी-7,

(v) HIT (SAFTA),

(vi) 311965 (OPEC)

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chetansati

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