BCom 1st Year Business International Communication Study Material Notes in Hindi

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BCom 1st Year Business International Communication Study Material Notes in Hindi

Table of Contents

BCom 1st Year Business International Communication Study Material Notes in Hindi: Culture  Sensitivities Learning About Culture Sensitiveness Culture Difference Inter Cu lure Communication Guidelines for Effective Inter Culture Communication Intercultural Factors in Interactions Writings and Presentation of Message at International Level Examination Questions Long Answer Questions Short Answer Questions :

International Communication Study Material
International Communication Study Material

BCom 1st Year Business Modern Form Communication Study Material Notes in Hindi

अन्तर्राष्ट्रीय सम्प्रेषण

(International Communication)

वर्तमान समय में उदारीकरण एवं भूमण्डलीकरण के कारण व्यावसायिक क्रियाएँ एवं संस्थान केवल क्षेत्रीय सीमा तक ही सीमित नहीं रह गए हैं बल्कि ये राष्ट्रीय सीमाओं को पार करके विश्व स्तर पर कार्य कर करे हैं। आधुनिक संचार साधनों के कारण विश्व छोटा होकर एक ‘सांसारिक गाँव’ बन। गया है जो भिन्न-भिन्न सम्प्रदायों और संस्कृतियों को एक ताने बाने में जोड़ता है। जब एक देश के व्यक्तियों/संस्थानों द्वारा किसी दसरे देश के व्यक्तियों/संस्थानों के साथ सम्पर्क किया जाता है, तो इसे ही अन्तर्राष्ट्रीय संचार कहते हैं।

अन्तर्राष्ट्रीय संचार में सांस्कृतिक भिन्नता एवं भाषा की भिन्नता के कारण अत्यधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। अन्तर्राष्ट्रीय संचार के लिये एक देश को दूसरे देश की संस्कृति एवं भाषा को जानना आवश्यक होता है तथा साथ ही उस संस्कृति और भाषा के अनुसार अपने को परिवर्तित करने की भी आवश्यकता होती है। आज व्यावसायिक संगठन का स्वरुप बहुत बड़ा हो गया है तथा एक संगठन में विभिन्न सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के व्यक्ति कार्यरत होते हैं जिनसे संचार करने के लिये हमें उनकी संस्कृति को समझना आवश्यक हो जाता है। अन्तर्राष्ट्रीय सम्प्रेषण क्रिया की सार्थकता के लिये आवश्यक है कि एक सन्देश प्राप्तकतो सन्देश को न केवल प्रेषण के अर्थों में समझे बल्कि प्रेषक को राष्ट्रीय व सांस्कृतिक पृष्ठभूमि को भी समझ सके। अत: आवश्यकता इस बात की है कि अन्तर्राष्ट्रीय सम्प्रेषण को भिन्न-भिन्न सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के व्यक्तियों की आशाओं व आवश्यकताओं के अनुरुप औचित्यपूर्ण व प्रभावी बनाया जा सके। अत: अन्तर्राष्ट्रीय संचार के लिये सर्वप्रथम संस्कृति को समझना आवश्यक है।

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संस्कृति

(Culture)

किसी भी राष्ट्र की सामूहिक कार्यशैली व चेतना को ही उस राष्ट्र की संस्कृति कहा जाता है। यह विश्वासों, मूल्यों, आदतों, रीतिरिवाजों, पहनावे आदि का सम्मिश्रण है। संस्कृति किसी देश की परम्परा पर आधारित होती है और लोग अपने पूर्वजों के मूल्यों एवं आदर्शों के आधार पर अपने को विकसित करते हैं। हमारी संस्कृति ही हमें दूसरों से अलग करती है।

जेम्स ड्रेवर के अनुसार, “संस्कृति सभ्यता के बौद्धिक पक्ष से सम्बन्धित है जो भौतिक उपलब्धियों के बौद्धिक पहलू पर जोर देती है। अधिक तकनीकी रुप में संस्कृति वह समुच्चय है, जिसमें व्यक्ति के शैक्षिक उद्देश्य, सामाजिक प्रथाएँ, विज्ञान और कला आदि सम्मिलित हैं।”

एच.सी. लिण्डग्रेन के अनुसार, “संस्कृति में एक समाज के व्यक्तियों में पायी जाने वाली वह व्यवस्थाएँ जिनका विकास उस समाज द्वारा किया जाता है, सम्मिलित हैं; जैसे-मूल्य, विश्वास, मानक, कौशल, संकेत आदि।”

थिल बोवी के अनुसार, “संस्कृति को संकेतों, विश्वासों, अभिवृत्तियों, मूल्यों, आशाओं व व्यावहारिक मान्यताओं के आदान-प्रदान की एक पद्धति के रुप में परिभाषित किया जा सकता है।”

विक्टर वार्नयू के अनुसार, “संस्कृति एक विशेष समूह अथवा राष्ट्र के लोगों की जीवन शैली, पद्धति, निश्चित संस्कार व मान्यताएँ हैं जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को प्रदान किये जाते हैं।”

अत: स्पष्ट है कि संस्कृति किसी देश की अपनी धरोहर होती है जो हमें अपने पूर्वजों से प्राप्त होती है। इसलिए सांस्कृतिक विविधता एक स्वाभाविक स्थिति है जो सामान्यत: प्रत्येक राष्ट्र की एक पृष्ठभूमि होती है। जब विभिन्न संस्कृतियाँ एक-दूसरे के निकट आती हैं तो स्वाभाविक रुप स। सो को प्रभावित करती हैं। वर्तमान में बढ़ते संचार माध्यमों और उदारीकरण के कारण एक दश। कति दसरे देश में फैल रही है, एक देश की मान्यताएँ, परम्पराएँ दूसरे देश पर हावी हो रही हैं।

अचात् सस्कृति का आदान-प्रदान व फैलाव हो रहा है और वह दिन दर नहीं जब परे विश्व का सस्कात लामा एक जसा हा जायेगी। लेकिन स्थिति तब जटिल हो जाती है जब विभिन्न संस्कृतियों एक-दूसरे। का मान्यताआ/परम्पराओं/इच्छाओं को एक-दूसरे पर अतिव्यापन (थोपने) करने का प्रयास करती है।

सांस्कृतिक चेतना (Cultural Sensitiveness) उदारीकरण एवं वैश्वीकरण के इस युग में विभिन्न अन्तर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक विविधताओं के बावजूद भा व्यावसायिक कार्य-शैली. बाजार व्यवस्थाओं व आर्थिक नीतियों ने अनेकता में एकता अर्थात व्यावसायिक विभिन्नताओं में एकरुपता की एक नई सोच को जन्म दिया है। विश्व गाँव (Global Village) की अवधारणा ने विभिन्न संस्कृतियों के प्रति वैचारिक व व्यावहारिक जागरुकता के प्रति सचेत किया है। जब हम अपना माल बेचने के लिये दूसरे देश में जाते हैं अथवा दूसरे देश के लोग व्यापार के लिये हमारे देश में आते हैं तो इससे व्यापार के साथ-साथ दोनों देशों की संस्कृति का भी आदान-प्रदान होता है। इस आदान-प्रदान में जो मूल्य एवं परम्पराएँ अच्छी होती हैं, उन्हें प्रत्येक व्यक्ति व राष्ट्र अपना लेता है। आज विश्व के विभिन्न राष्टों के मध्य एक-दूसरे की संस्कृति की पहचान व उसके प्रति आदर-सम्मान की भावनाओं का प्रादुर्भाव हो रहा है, इसे ही सांस्कृतिक चेतना कहते हैं। सांस्कृतिक चेतना विभिन्न व्यक्तियों के मूल्यों, विश्वास व अभ्यास पर निर्भर करती है।

उदाहरण के लिए, यूनाइटेड स्टेट्स में अधिकांश व्यक्ति ‘व्यक्तिवादिता’ को महत्त्व देते हैं, जबकि अन्य देशों जैसे भारत में परिवार’ को अधिक महत्त्व दिया जाता है।

संयुक्त राज्य अमेरिका की संस्कृति के अनुसार ‘शान्ति’ होना इस बात का संकेत है कि व्यक्ति कार्य कर रहे हैं, जबकि जापानी बात करते हुए अपना कार्य सम्पन्न करते हैं। मूल्य और विश्वास, धर्म द्वारा प्रभावित होते हैं, जैसे- भारतीय संस्कृति के अनुसार साधारण जीवन-शैली को ईश्वर से समीपता का प्रतीक माना जाता है।

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सांस्कृतिक चेतना को सीखना

(Learning About Cultural Sensitiveness)

किसी भी राष्ट्र के व्यक्तियों के साथ व्यावसायिक सम्बन्ध स्थापित करने से पूर्व उनकी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि या संस्कृति का अग्रिम रुप से गहन अध्ययन करना लाभप्रद होता है, साथ ही साथ उसके अनुरुप स्वयं को ढ़ालना व्यावसायिक दृष्टि से भी उत्तम रहता है। इस सम्बन्ध में निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए

1 सर्वप्रथम सम्बन्धित राष्ट्र के व्यक्तियों की भाषा का अध्ययन उनकी संस्कृति को सीखने की दृष्टि से उपयुक्त रहता है। इससे हम उनके रीति-रिवाजों व परम्पराओं से परिचित होते हैं तथा सम्बन्धित व्यक्ति से हमारे मित्रतापूर्ण व प्रगाढ़ सम्बन्ध बन जाते हैं।

2. सम्बन्धित राष्ट्र के व्यक्तियों की संस्कृति से सम्बन्धित साहित्य का अध्ययन किया जाना चाहिए, ताकि हम उनके इतिहास, धर्म, जाति, राजनीति व रीति-रिवाजों से परिचित हो सकें। इसके अतिरिक्त उनके यहाँ के मौसम, स्वास्थ्य सम्बन्धी सेवाओं, मुद्रा, परिवहन सुविधाओं, सम्प्रेषण के साधनों के विषय में भी जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिये।

3. सम्बन्धित राष्ट्र की व्यावसायिक संस्कृति के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करना व्यावसायिक दृष्टि से अत्यन्त आवश्यक होता है। विशेष तौर पर उनकी उप-संस्कृति व व्यावसायिक उप-संस्कृति के सम्बन्ध में क्योंकि प्रत्येक राष्ट्र की अपनी व्यावसायिक नीतियाँ, नियम, संलेख (Protocol) होते हैं। कौन निर्णय लेता है ? क्या उपहार स्वीकार्य हैं? विनिमय का क्या तरीका है ? व्यावसायिक बैठक में हिस्सा लेने की विशेष-पोशाक क्या है ? इत्यादि की जानकारी अत्यन्त आवश्यक है।

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सांस्कृतिक भिन्नता

(Cultural Differences)

बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के आगमन के परिणामस्वरुप एक देश की संस्कृति के लोगों का दूसरे देश की संस्कृति के लोगों के साथ परस्पर सम्पर्क बढ़ा है। ऐसे में सांस्कतिक भिन्नता को ध्यान में रखते हये ही एक देश के लोगों को दूसरे देश के लोगों के साथ संचार करना चाहिये, तभी सम्प्रेषण प्रभावी हो। पाएगा। सांस्कृतिक भिन्नता को निम्नलिखित प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है

1 सामाजिक रीतिरिवाज (Social Customs) प्रत्येक देश के रीति-रिवाज एक दूसर स अलग होते हैं, अभिवादन व मिलने के तरीके भी अलग-अलग होते हैं। किसी देश में तो व्यक्ति मिलन। पर एक दूसरे को गले मिलते हैं, कहीं हाथ मिलाते हैं, कहीं चमते हैं। अत: कहाँ किससे कैसे मिला जाए। इसकी जानकारी रखनी चाहिये।

उदाहरण के लिये स्पेन में 5 से 7 बार तक हाथ मिलाना प्रभावशील माना जाता है तथा जल्दी हाथ हटाना/खींचना नकारात्मक पहलू का परिचायक होता है। जबकि फ्रांस में धीरे व शीघ्रता से हाथ मिलाना प्रभावशील माना जाता है।

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2. पहनावा (Dress) प्रत्येक देश का अपना अलग पहनावा होता है, अत: प्रत्येक दशक पहनावे के बारे में जानकारी होना आवश्यक है। हमें प्रत्येक देश के पहनावे का सम्मान भी करना चाहिये।

3. महिला की भूमिका (Role of Women)-प्रत्येक देश में महिलाओं की भूमिका अलग-अलग होती है। पश्चिमी देशों में महिलाओं की प्रत्येक क्षेत्र में भागीदारी होती है जबकि एशिया के लगभग सभी क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी न के बराबर होती है। मुस्लिम देशों में महिलाओं के घर से बाहर निकलने पर प्रतिबन्ध होता है। अत: जिस देश के साथ संचार करना होता है वहाँ पर महिलाओं की स्थिति तथा कर्तव्य क्या हैं, उसी के अनुरुप संचार करना चाहिये।

4. धर्म और मूल्य (Religion and Values)-विभिन्न देशों में अलग-अलग धर्म व जीवन मूल्य हो सकते हैं। कहीं भौतिक सख-सविधापूर्ण जीवन ही अच्छे जीवन का संकेत समझा जाता है तो कहीं सादगीपूर्ण जीवन को अच्छा समझा जाता है। अतः जहाँ जैसी आवश्यकता हो उसी के अनुरुप व्यवहार किया जाना चाहिये।

(5) समय की संकल्पना (Time Perception)-भिन्न-भिन्न देशों में समय की पाबन्दी के विषय में अलग-अलग ज्ञान बोध होते हैं। उदाहरण के लिये, उत्तरी यूरोपियन की तरह अमेरिकन भी समय के विषय में सचेत होते हैं और अपनी कार्यसूची के अनुसार सख्ती से काम करना पसन्द करते हैं। दूसरी ओर अफ्रीका एवं भारत के लोग समय की पाबन्दी को कम ही महत्त्व देते हैं। प्राय: अमेरिकन जल्द निर्णय पर पहुँचने को प्राथमिकता देते हैं, जबकि जापानी जल्द ही किसी निर्णय पर नहीं पहुँचते।

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अन्तः सांस्कृतिक सम्प्रेषण

(Inter-cultural Communication)

जब एक देश के व्यक्ति दूसरे देश के व्यक्तियों के साथ संचार करते हैं तो उसे ही अन्त: सांस्कृतिक सम्प्रेषण कहा जाता है। चूंकि प्रत्येक देश की अपनी अलग संस्कृति होती है, इसलिये आपस में संचार करने में समस्याएँ आ सकती हैं। जिस देश के साथ हमें संचार करना है यदि हमें उस देश की भाषा और संस्कृति का ज्ञान होगा तभी हम संचार को प्रभावी बना सकते हैं। ।

अन्त: सांस्कृतिक संचार वह माध्यम है जिससे हमें दूसरे देश के व्यक्तियों की संस्कृति के विषय में पता चलता है, या दूसरे व्यक्तियों की संस्कृति का अध्ययन किया जाता है, जो कि हमारे व्यवसाय के संचालन में कुशलता प्रदान करता है। अन्य देश या व्यक्तियों की संस्कृति को जानना सरल होता है, परन्तु इन संस्कृतियों को व्यावहारिक तौर पर पूर्णतः समझना इतना सरल नहीं होता क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति के विचार तथा रीति-रिवाजों में भिन्नता होती है। अत: अन्त: सांस्कृतिक संचार करने के लिए दूसरी विभिन्न संस्कृतियों को समझना अति आवश्यक होता है क्योकि दूसरी संस्कृतियों के ज्ञान के बिना हम अन्त: सांस्कृतिक संचार नहीं कर सकते।

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प्रभावी अन्त:सांस्कृतिक संचार के मार्गदर्शक तत्व

(Guidelines for Effective Inter-cultural Communication)

अन्त: सांस्कृतिक संचार के लिये एक देश के लिये दूसरे देश की संस्कृति को समझना और उसका सम्मान करना अत्यन्त आवश्यक होता है। इस प्रकार के सम्प्रेषण को प्रभावी बनाने के लिये निम्नलिखित मार्गदर्शक तत्वों को ध्यान में रखना चाहिये

1.आदर प्रदर्शित करना (Show Respect)–यदि हम दूसरों की संस्कृति और भाषा का सम्मान होतो हमें भी सम्मान प्राप्त होगा और इससे संचार प्रभावी होगा। अत: दूसरे देशों की संस्कृति तथा भाषा के प्रति आदर प्रदर्शित करना चाहिये।

2. धैर्य patience)-दो भिन्न संस्कृति के लोग यदि विचारों का आदान-प्रदान कर रहे हों तो। उन्हें धैर्यपूर्वकसंचार करना चाहिये। अपनी संस्कृति से सम्बन्धित विचारधारा को व्यक्त करने में सी चाहिये। दसरे व्यक्ति के विचारों व दृष्टिकोण को सुनने के पश्चात् ही अपने विचार में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिये। दूसरे व्यक्ति के नि व दृष्टिकोण रखने चाहिये।

3. नजरिया/दृष्टिकोण (Perception)-जब दो संस्कृति के लोगों के मध्य संचार होता है तो दूसरे की संस्कृति व उनकी प्रथाओं को अपने नजरिये से देखना चाहिये।

4. आपचारिकता (Formality) अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर संचार करते समय सम्प्रेषक और सन्देश प्राप्तको दोनों को एक दसरे के साथ औपचारिक रुप से सम्बन्ध स्थापित करना चाहिये।

5. दूसरों की सांस्कृतिक कमियों पर ध्यान देना (Tolerate the cultural mistakes of others)-दो संस्कृतियों के मध्य प्रभावशाली सम्प्रेषण के लिये यह आवश्यक है कि एक दूसरे की संस्कृति में कमियाँ न खोजी जाएँ बल्कि उनकी अच्छाईयों को प्रदर्शित किया जाना चाहिये।

6. सम्प्रेषण दायित्व स्वीकार करना (Take Responsibility for Communication)-हमें। यह नहीं सोचना चाहिए कि हमारे साथ सम्प्रेषण करना किसी अन्य व्यक्ति की जिम्मेदारी है। सम्प्रेषण करने का दायित्व स्वयं ही स्वीकार करना चाहिए।

7. लचीलापन (Be Elastic) अन्तः सांस्कृतिक संचार के समय हमें अपने स्वभाव, रुचि, आदतों व नजरिये में परिवर्तन करने के लिये सदैव तैयार रहना चाहिए।

8. स्पष्ट सन्देश (Clear Message)-अन्तः सांस्कृतिक संचार करते समय हमें अपने लिखित/मौखिक सन्देश को स्पष्टता प्रदान करनी चाहिए।

9.बाह्य अवसरों के अतिरिक्त सोचना (Think about others Opportunity)-हमें अपनी विचार शृंखला को केवल वेशभूषा, पर्यावरणीय असुविधाओं तक सीमित नहीं रखना चाहिए बल्कि इससे आगे भी सोचना चाहिए।

10. दोहरापन छोड़ना (Ignore Repetition)-अन्तः सांस्कृतिक संचार करते समय विपरीत स्थितियों में भी अपनी कुण्ठाओं पर नियन्त्रण रखना चाहिये तथा संचार में दोहरापन रोकना चाहिए।

11. अन्य व्यक्तियों के दृष्टिकोणों विचारों को समझना (Understand others Views and Thoughts)-अन्तः सांस्कृतिक संचार के समय सन्देश को ध्यानपूर्वक सुनना चाहिये तथा सम्प्रेषक के भावों व दृष्टिकोणों को समझना चाहिए।

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परस्पर सम्बन्धों में अन्तः सांस्कृतिक घटक

(Intercultural Factors in Interactions)

संसार के भिन्न-भिन्न देशों की संस्कृति भिन्न-भिन्न होती है, परन्तु उनमें कुछ समानताएँ भी हो सकती हैं। दो देशों की संस्कृति में समानता एवं असमानता कई बातों पर निर्भर करती है। विभिन्न देशों की संस्कृति में पाई जाने वाली ये समानताएँ एवं असमानताएँ सांस्कृतिक तत्व/घटक (Cultural Factors) कहलाते हैं। दो संस्कृतियों के मध्य सांस्कृतिक घटकों में समानता का अंश कम अथवा अधिक हो सकता है। यह भी सम्भव है कि कुछ घटक पूर्ण रुप से एक-दूसरे के समान हों तथा दूसरे कुछ घटक पूर्ण रुप से विपरीत हों। सांस्कृतिक कारकों की समानता का अर्थ है कि संस्कृतियाँ समानता की सीमा तक एक-दूसरे में व्याप्त हैं। अत: दो या अधिक संस्कृतियों में समानता को सांस्कृतिक अतिव्यापन भी कहा जाता है। सांस्कृतिक अतिव्यापन (Cultural overlap) जितना अधिक होगा, परस्पर सम्बन्ध उतने ही प्रगाढ़ होंगे तथा सांस्कृतिक अतिव्यापन जितना कम होगा, परस्पर सम्बन्ध उतने ही कमजोर या शिथिल होंगे।

दो संस्कृतियों के मध्य परस्पर सम्बन्ध संचार को भी प्रभावित करते हैं। परस्पर सम्बन्ध (Interaction) जितने ही घनिष्ठ होंगे उतना ही संचार प्रभावी एवं सरल हो जाएगा तथा परस्पर सम्बन्ध जितने ही शिथिल होगे उतना ही संचार कठिन एवं प्रभावहीन हो जाएगा। शिथिल परस्पर सम्बन्धों के बीच प्रभावी संचार एक चुनौती है। प्रभावी संचार के लिए श्रोता की संस्कृति की विशेषताओं, मतों, विश्वासों, आदर्शों, रीति-रिवाजों तथा मान्यताओं को भी ध्यान में रखना होता है और यदि सम्भव हो तो उन्हें सीखना भी पड़ता है। अतः स्पष्ट है कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर संचार सांस्कृतिक तत्वों से प्रभावित होता है। सांस्कृतिक तत्वों को निम्नलिखित दो भागों में विभक्त करके अध्ययन किया जा सकता है

1.राष्ट्रीय सांस्कृतिक तत्व (National Cultural Factors)

2. व्यक्तिगत सांस्कृतिक तत्व (Individual Cultural Factors)

प्रत्येक संस्कृति में उपर्युक्त दोनों प्रकार के तत्व पाये जाते हैं। राष्ट्रीय सांस्कृतिक तत्व किसी देश के कानून, शैक्षिक स्तर, अर्थव्यवस्था आदि से सम्बन्धित होते हैं जबकि व्यक्तिगत सांस्कृतिक तत्व मान्यताएँ, विश्वास, सांकेतिक भाषा के संकेत तथा समय मल्यांकन आदि से सम्बन्धित होते हैं। राष्ट्रीय एवं व्यक्तिगत दोनों प्रकार के सांस्कृतिक सांस्कृतिक तत्वों का वर्णन निम्नलिखित प्रकार से किया जा सकता है

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1 राष्ट्रीय सांस्कृतिक तत्व (National Cultural Factors) अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर सचार प्रक्रिया में परस्पर सम्बन्धों को प्रभावित करने वाले राष्ट्रीय सांस्कतिक तत्व निम्नलिखित प्रकार है

(i) भाषा (Language)-जब तक दोनों देशों के व्यक्ति एक दूसरे की भाषा नहीं समझते तब तक सफल व्यावसायिक संचार नहीं हो सकता। प्रत्येक देश की एक राष्ट्रीय भाषा होती है तथा अन्य कुछ भाषाओं को भी मान्यता प्राप्त होती है। अंग्रेजी भाषा को प्राय: प्रत्येक देश में मान्यता प्राप्त होती है। अत: यदि उस देश की भाषा का ज्ञान नहीं हैं तो प्रायः अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाता है।

(ii) सामाजिक मूल्य (Social values)—प्रत्येक राष्ट्र के कुछ सामाजिक मूल्य होते हैं। किसी देश में परिवार का महत्त्व, समदाय का प्रभाव तथा किसी प्रस्तुतीकरण में श्रोताओं एवं वक्ताओं के। सामाजिक वरीयता क्रम को महत्त्व देना आदि बातें संचार को प्रभावित करती हैं। सामाजिक क्रम व्यवस्था के महत्त्व को कम नहीं किया जा सकता। उदाहरण के लिए हिन्दू अविभाजित परिवार द्वारा संचालित व्यवसाय में केवल पुरुष ही सदस्य हो सकते हैं तथा निर्णय लेने का अधिकार परिवार के मुखिया या कर्ता को होता है।

(iii) अर्थव्यवस्था (Economy)-प्रतिव्यक्ति आय, पूँजी निर्माण, धन की उपलब्धता, विनिमय दर, मुद्रा स्फीति की दर आदि बातें एक देश के संचार को प्रभावित करती हैं। उदाहरण के लिए स्वतन्त्र पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में उत्पादक अपने उत्पाद का मूल्य स्वयं निर्धारित करने के लिये स्वतन्त्र होते हैं जबकि समाजवादी अर्थव्यवस्था में वस्तुओं के मूल्यों पर सरकार का नियन्त्रण होता है।

(iv) राजनीति (Politics)-भिन्न-भिन्न देशों की शासन व्यवस्था भिन्न-भिन्न रुप में होती है। कहीं प्रजातन्त्र, कहीं तानाशाही, कहीं पूँजीवादी तथा कहीं अन्य किसी प्रकार की शासन व्यवस्था लागू होती हैं। विभिन्न शासन व्यवस्थाओं का प्रभाव अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों पर प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रुप से पड़ता है। इसके अतिरिक्त राजनीतिक अस्थिरता होने पर अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धो में भी अस्थिरता आती है। इन सभी तत्वों का सीधा प्रभाव अन्तर्राष्ट्रीय संचार पर पड़ता है।

(v) कानून एवं नियम (Laws and Regulations) सरकार द्वारा बनाए गए नियमों एवं कानूनों का सीधा प्रभाव व्यावसायिक क्रियाओं पर पड़ता है। उदाहरण के लिए अमेरिका में बच्चों के लिये विज्ञापन वर्जित है तथा फ्रांस और मैक्सिको में विज्ञापन में विदेशी भाषा के प्रयोग पर प्रतिबन्ध है। यूरोपीय देशों में विज्ञापन पर सीमित धनराशि ही खर्च की जा सकती है तथा ईरान में ऐसे विज्ञापन प्रतिबन्धित हैं जिसमें महिलाओं द्वारा अंग प्रदर्शन किया जा रहा हो।

(vi) शिक्षा (Education)–विभिन्न राष्ट्रों में शिक्षा का स्तर अलग-अलग होता है। जिन राष्ट्रों में शिक्षा का स्तर ऊँचा होता है, वहाँ संचार में सरलता रहती है लेकिन साथ ही संचार कुशलता की भी आवश्यकता होती है। जिन देशों में शैक्षिक पिछड़ापन होता है, वहाँ रुढ़िवादी परम्पराएँ अधिक होती हैं, अतः ऐसे देश के श्रोताओं के मध्य प्रस्तुतीकरण करने अथवा पत्रलेखन के लिए श्रोताओं/पाठकों की परम्पराओं का ज्ञान होना आवश्यक हो जाता है।

(vii) धर्म (Religion) प्रत्येक देश में धर्म की व्याख्याएँ एवं उसमें आस्था का स्तर अलग-अलग होता है। भारत जैसे देश में तो अनेकता में एकता पायी जाती है अर्थात् सभी धर्मों के लोग स्वतन्त्र रुप से अपने धर्म में आस्था रखते हुए राष्ट्रवाद को प्रमुखता देते हैं। संचार के लिए श्रोता की राष्टीय धार्मिक छवि को ध्यान में रखना पड़ता है। उदाहरण के लिए मुस्लिम देशों में किसी भी प्रस्तुतीकरण का समय नमाज के समय को छोड़कर निश्चित करना होता है।

(2) व्यक्तिगत सांस्कृतिक तत्व (Individual Cultural Factors) अन्तर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय स्तर पर अपने-अपने देश के राष्ट्रीय तत्वों के बीच व्यक्ति अपनी एक विशिष्ट जीवन पद्धति अपना लेते हैं। इससे व्यक्तिगत स्तर पर अनेक सांस्कृतिक घटक विकसित हो जाते हैं। ये व्यक्तिगत सांस्कृतिक घटक अनेक प्रकार से राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय सांस्कृतिक घटकों तथा दूसरों के व्यक्तिगत साकतिक घटकों से समानता एवं असमानता रखते हैं। व्यक्तिगत सांस्कृतिक घटकों की ये असमानताएँ अनेक विषमताओं को जन्म देती हैं। व्यक्तिगत सांस्कृतिक घटक निम्नलिखित प्रकार के हो सकते हैं

(i) समय मल्य (Time Value)-प्रत्येक देश के व्यक्तियों के लिये समय का अलग-अलग महत्व होता है जर्मनी में अतिथि से मिलने के लिए प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती जबकि लैटिन अमेरिका महत्त्व होता है। से देशों में किसी से मिलने के लिए घण्टों प्रतीक्षा करनी पड़ सकती है। देर से पहँचना य स्वीकत रिवाज है। अत: अन्तराष्ट्रीय संचार के लिए यह जानना आवश्यक है कि उस देश तथा भारत प्राय: सामान्य स्वीकृत रिवाज है। अत: अन्तर्राष्ट्रीय के व्यक्तियों के लिए समय का क्या मूल्य है ?

 (ii) लन का दृष्टिकोण (Perception of Decision-Making) विश्व के विभिन्न देशों में निर्णय लेने के सम्बन्ध में अलग-अलग दष्टिकोण अपनाया जाता है। अमरिका म व्यवसाया तुरन्त निणय लेने में विश्वास रखते हैं। इसी प्रकार जर्मन. स्विस, डच इत्यादि भी बिना समय नष्ट किय मुख्य बिन्दु पर आ जाते हैं। इसके विपरीत, भारतीय, चाइनीज, इटैलियन, फ्रैंच तथा ब्रिटिश नागरिक मुख्य बिन्दु पर आने में समय लेते हैं। जापान में निर्णय लेने में समय लगता है क्योंकि निर्णय लेने का कार्य एक समूह के पास होता है। अमेरिका में इसके विपरीत एकल निर्णय लेने की प्रथा है अर्थात् वहाँ केवल एक व्यक्ति भी निर्णय ले सकता है।

(iii) आचरण का दृष्टिकोण (Perception of Manners)-प्रत्येक संस्कृति में आचरण भी भिन्न-भिन्न होता है। आचरण समझने के लिए छोटे बच्चों को देखना चाहिये क्योंकि उन्हीं से ज्ञात होता है कि वहाँ पर बड़े व्यक्ति किस प्रकार का आचरण करेंगे। जर्मनी में बच्चे बड़ों से हाथ मिलाते हैं, इटली में बड़ों से गले लगते हैं, जबकि भारत में बच्चे पैर छूते हैं। ।

यूरोपीय देशों में घरों पर जाते समय उपहार ले जाने की प्रथा है। एशियाई देशों में एक छोटी मेज के चारों ओर बैठकर 10-12 व्यक्ति खाना खा सकते हैं। सऊदी अरब में उम्र में छोटा व्यक्ति बड़े व्यक्ति के आने के बाद चुप हो जाता है। विभिन्न देशों में उठने, बैठने, बातचीत करने तथा भोजन करने के अलग-अलग तरीके हैं। उनके अनुसार आचरण करने से प्रभावी संचार में सहायता मिलती है।

(iv) परिधान (Dress)-प्रत्येक व्यक्ति अपनी रुचि के अनुसार परिधान (पोशाक) पहनता है। अमेरिकी व्यवसायी सूट पहनना पसन्द करता है, सिंगापुर का व्यवसायी लम्बी बाँह की कमीज तथा टाई पसन्द करता है तथा मध्य-पूर्व के देशों में प्रायः सूती कोट पसन्द किये जाते हैं। अन्तर्राष्ट्रीय संचार के लिए किस अवसर पर कौन सा परिधान (ड्रेस) पहनना उचित रहेगा यह जान लेना आवश्यक है वरना हँसी का पात्र बनने की सम्भावना हो सकती है।

(v) भोजन आदतें (Food Habbits)—प्रत्येक देश में खाने की विभिन्न किस्में, उन्हें खाने का विशेष तरीका तथा परोसने की भी एक अलग शैली होती है। मेजबान देश में जाने से पहले अपने देश में ही उस देश की संस्कृति वाले अल्पाहार गृहों (Restaurants) में जाकर वहाँ भोजन सम्बन्धी सभी बातों की जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिए। यूरोप में फ्रांसीसी मजदूर दोपहर के खाने के बाद प्राय: एक ग्लास शराब लेना पसन्द करते हैं। हाँगकाँग तथा चीन में चावल हमेशा पसन्द किया जाता है। कुछ देशों में शराब पीने पर प्रतिबन्ध है। बिना उचित जानकारी के विदेश यात्रा नहीं करनी चाहिए। यात्रा से पहले भोजन सम्बन्धी पूर्ण जानकारी जुटा लेनी चाहिए।

(vi) सामीप्य का दृष्टिकोण (Perception of Space [Proxemics)-सामीप्य के दृष्टिकोण का अर्थ है कि श्रोता आपको अपने कितना समीप आने का अवसर देता है। अमेरिकन श्रोता अपने तथा वाचक के मध्य अधिक अन्तर चाहता है। अरब तथा लैटिन अमेरिका के नागरिक यह अन्तर कम रखना चाहते हैं। कुछ देशों की संस्कृति में अत्यधिक समीप खड़े मनुष्य को धृष्ट, असभ्य तथा अविनीत कहते हैं। इसके अतिरिक्त कार्यालय स्थान का दृष्टिकोण भी विभिन्न संस्कृतियों में भिन्न-भिन्न होता हैं। अल्पविकसित राष्टों में अनेक व्यक्ति एक ही कार्यालय एवं अनेक बार एक ही डेस्क पर कार्य करते हैं। जर्मनी में यदि किसी व्यक्ति के कक्ष के दरवाजे बन्द हैं तो आगन्तुक को दरवाजे को खटखटाना होगा। हम यह नहीं मान सकते कि कार्यालय स्थान की अवधारणा जो पश्चिमी देशों में प्रचलित है, प्रत्येक स्थान पर स्वीकार्य होगी।

(vii) मौखिक संचार का दृष्टिकोण (Perception of Verbal Communication)-भिन्न-भिन्न राष्ट्रों में मौखिक संचार का अर्थ भी अलग-अलग प्रकार से लिया जाता है। उदाहरण के लिये, इंगलिश भाषा के एक वाक्य का How, would you like it ? अनेक प्रकार से अर्थ लिया जा सकता है। यह एक आदेश भी हो सकता है तथा एक प्रार्थना भी। आस्ट्रेलिया में यह एक प्रार्थना के रुप में लिया जाता है जबकि अमेरिका में यह एक प्रश्न के रुप में लिया जाता है। “पुनः मिलेंगे” का अर्थ एशिया में उसी दिन पुनः मिलना है जबकि अमेरिका में यह अनिश्चितकाल के बाद मिलना हो सकता है। आवाज भी मौखिक संचार का एक महत्त्वपूर्ण भाग है। आप कितने जोर से बोलते हैं यह आपकी संस्कृति पर निर्भर करता है। इंग्लैण्ड में लोग धीरे बोलते हैं. जर्मनी में भी लोग धीरे बोलते हैं परन्तु भारत में बहुत तेज बोलते हैं।

(viii) अशाब्दिक संचार का दृष्टिकोण (Perception of Non-verbal Communication)-अशाब्दिक संचार का कार्य प्रत्येक संस्कृति में अलग-अलग होता है। पश्चिमी देशों में हाथ मिलाना प्राचीनतम अशाब्दिक संचार प्रक्रिया है। गाल पर तथा हाथ के पृष्ठ भाग पर चुम्बन भी अशाब्दिक संचार का ही एक रूप है। पश्चिमी देशों में चम्बन सामान्य बात है जबकि भारत तथा जापान में चुम्बन तथा किसी को छूना अधिक प्रचलित नहीं है।

सारांश रुप में, कहा जा सकता है कि एक संस्कति से दूसरी संस्कृति के बीच संचार को प्रभावी बनाने के लिए राष्ट्रीय सांस्कृतिक तथा व्यक्तिगत सांस्कृतिक घटकों का ज्ञान होना अत्यन्त आवश्यक होता। है। इन सभी बातों का अध्ययन करने के पश्चात् ही अन्तर्राष्ट्रीय संचार में अन्तः सांस्कृतिक सम्बन्धों की रुप-रेखा निश्चित की जा सकती है।

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अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यवसाय के अनुकूल बनने के लिए सुझाव

(Suggestions for Adopting to Global Business)

अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यवसाय के अनुकूल बनने के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिये

(1) राष्ट्रीय सांस्कृतिक घटकों का अध्ययन (Study of National Cultural factors)-अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यवसाय करने के योग्य बनने के लिए संस्कृति की अवधारणा को जानना अत्यन्त आवश्यक होता है। इसके लिए किसी भी राष्ट्र के सांस्कृतिक घटकों का अध्ययन आवश्यक होता है।

(2) व्यक्तिगत सांस्कृतिक घटकों का अध्ययन (Study of Individual Cultural Factors)-अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यवसाय के अनुकूल बनने के लिए व्यक्तिगत सांस्कृतिक घटकों का अध्ययन भी आवश्यक है।

(3) मौखिक संचार का उचित ज्ञान (Proper Knowledge of Oral Communication)–अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में मौखिक संचार का अपना एक विशेष महत्त्व होता है। यह महत्त्व तब और भी अधिक बढ़ जाता है जब मौखिक संचार दो संस्कृतियों के बीच सम्बन्धों को मजबूती प्रदान करने के लिए होता है। मौखिक संचार करते समय यह ध्यान रखना चाहिये कि भिन्न-भिन्न देशों में एक ही बात का अर्थ भिन्न-भिन्न हो सकता है।

(4) सांकेतिक संचार (Non-Verbal Communication)-मौखिक संचार की तुलना में सांकेतिक संचार में अधिक सतर्कता एवं चतुराई की आवश्यकता होती है। इसका कारण यह है कि अलग-अलग संस्कृतियों में सांकेतिक संचार के संकेतों का अर्थ अलग-अलग हो जाता है। शारीरिक हाव-भाव, अंग संकेत जैसे दृष्टि सम्पर्क तथा अन्य संकेतों का अर्थ विभिन्न संस्कृतियों के सन्दर्भ में जान लेना अत्यन्त आवश्यक होता है।

(5) कॉमर्स को अपनाना (Adopting E-Commerce)-सूचना प्रौद्योगिकी तथा दूरसंचार क्षेत्र में हुई तीव्र प्रगति का परिणाम ई-कॉमर्स (E-Commerce) के रुप में विश्व के सामने है। सूचना प्रौद्योगिकी ने व्यावसायिक गतिविधियों में प्रवेश करके अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार एवं संचार को नयी दिशा दी है। आज कम्प्यूटर के सामने बैठकर दुनिया के किसी भी कोने से क्रय-विक्रय, भुगतान प्राप्ति, बिलों का भुगतान एवं वसूली जैसी अनेक व्यावसायिक गतिविधियों का संचालन शीघ्रता से एवं सुगमतापूर्वक किया जा सकता है। अत: यह कहा जा सकता है कि व्यवसाय से जुड़े अन्य पक्षों के साथ अनेक व्यावसायिक गतिविधियों का संचालन एवं सूचनाओं का आदानप्रदान जब इण्टरनेट की सहायता से तथा इलैक्ट्रॉनिक माध्यम से सम्पन्न किया जाता है तो यह कॉमर्स कहलाता है।

आज ई-कॉमर्स के प्रयोग ने अन्तर्राष्ट्रीय संचार को व्यापक रुप से प्रभावित किया है तथा इसे अत्यन्त सुगम, सुलभ तथा शीघ्रगामी बना दिया है। अब अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर संचार के लिए की जाने वाली विदेश यात्राओं में बहुत कमी आई है। दूसरी संस्कृतियों का ज्ञान तो अभी भी आवश्यक है लेकिन E-Commerce के द्वारा सूचनाओं का आदान-प्रदान घर बैठे-बैठे किया जा सकता है।

6 अन्य ध्यान रखने योग्य बातें (Other Rememberable Points)-इसके अतिरिक्त अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के अनुकूल बनने के लिए निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना भी आवश्यक है का प्रत्येक संस्कृति में सामान्यतया किए जाने वाले व्यवहारों को नियम नहीं मान लेना चाहिए। अर्थात् खुले दिमाग से काम लेना चाहिए। (ii) श्रोता की प्रतिक्रिया जानने का प्रयास करना चाहिए।

श्रोता के दृष्टिकोण को समझने का प्रयास करना चाहिए। उदाहरणों के माध्यम से अपनी बात स्पष्ट करने का प्रयास करना चाहिये।

सारांश रुप में, कहा जा सकता है कि एक संस्कति से दूसरी संस्कृति के बीच संचार को प्रभावी बनाने के लिए राष्ट्रीय सांस्कृतिक तथा व्यक्तिगत सांस्कृतिक घटकों का ज्ञान होना अत्यन्त आवश्यक होता। है। इन सभी बातों का अध्ययन करने के पश्चात् ही अन्तर्राष्ट्रीय संचार में अन्तः सांस्कृतिक सम्बन्धों की रुप-रेखा निश्चित की जा सकती है।

Business International Communication

परीक्षा हेत सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(Expected Important Questions for Examination)

दीर्घ उत्तरिय प्रश्न

(Long Answer Questions)

1 राष्ट्रीय संचार से क्या आशय है ? वैश्विक बाजार के अनकल बनने के लिए आप क्या सझाव देगा

What do you mean by International communication? What suggestion would you provide for adopting Global Business?

2. सस्कृति क्या है? इसकी परिभाषा दीजिए तथा सांस्कृतिक चेतना को समझाइए।

What is culture ? Define it and explain the cultural sensitiveness.

3. सांस्कृतिक चेतना से क्या आशय है? इसका व्यावसायिक संचार पर क्या प्रभाव पड़ता है? –

What is meant by cultural sensitiveness ? How does it affect the Business Communication ?

4. परस्पर सम्बन्धों में अन्तः सांस्कृतिक घटकों की क्या भूमिका होती है ? अन्त: सांस्कृतिक घर को के प्रकार भी बताइए।

What is the role of Intercultural factors in Interactions ? Also explain the types of Intercultural Factors.

5. सांस्कृतिक अतिव्यापन क्या है ? सांस्कृतिक समानताओं तथा असमानताओं को समझाइए।

What is cultural overlap ?  Explain the cultural similarities and dissimilarities.

6. अन्तर्राष्ट्रीय दशाओं में लेखन तथा प्रस्तुतीकरण के लिए आप किन बातों का ध्यान रखेंगे ?

What factors would you consider for writing and presenting in International Situation?

7. अन्तर्राष्ट्रीय संचार हेतु आवश्यक अन्त:सांस्कृतिक तत्वों को स्पष्ट कीजिए।

Explain inter-cultural factors necessary for international communication.

8. अन्तर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक सम्प्रेषण किस प्रकार विकसित किया जा सकता है?

How can international cultural communication be developed?

9. ई-कामर्स क्या है ? वैश्विक व्यवसाय के अनुकूल कैसे बना जा सकता है ?

What is E-Commerce? How can one adopt Global Business?

10. संस्कृति को परिभाषित कीजिए। सांस्कृतिक चेतना किस प्रकार व्यावसायिक संचार को प्रभावित करती है?

Define culture. How does Cultural sensitiveness affect business communication?

Business International Communication

लघु उत्तरीय प्रश्न

(Short Answer Questions)

1 संस्कृति से क्या अभिप्राय है?

What is meant by culture?

2. सांस्कृतिक चेतना को समझाइए।

Explain cultural sensitiveness.

3. अन्तर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक सम्प्रेषण को समझाइए।

Describe international cultural communication.?

4. सांस्कृतिक चेतना व्यवसाय को कैसे प्रभावित करती है?

How does cultural sensitiveness affect business?

5.अन्त सांस्कृतिक सम्प्रेषण के लिये आवश्यक बातों को समझाइए?

Explain essentials of intercultural communication.

6. ईकामर्स क्या है?

What is E-Commerce?

7. सांस्कृतिक अतिव्यापन क्या है?

What is cultural overlap ?

अनकल कैसे बना जा सकता है?

8. वैश्विक व्यवसाय के अनुकूल कैसे बना जा ,

How can one adopt Global Business?

Business International Communication

chetansati

Admin

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