BCom 2nd Year Business Management Form Organization Structure Study Material Notes in Hindi

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BCom 2nd Year Business Management Form Organization Structure Study Material Notes in Hindi

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BCom 2nd Year Business Management Form Organization Structure Study Material Notes in Hindi: Different Forms of Organisation Line and Staff Organisation Difference  Between line Organisation and line and Staff Organisation Conflict Between Line and Staff Difference Between Staff and Line Authorities Conflict Between Suggestions for the Improvement of line and staff relations Examination Questions Long Answer Questions Short Answer Questions Objectives Questions :

Management Form Organization Structure
Management Form Organization Structure

BCom 2nd Year Principles Business Management Departmentalization Study Material Notes in Hindi

संगठन संरचना के प्रारूप

[Forms of Organisation Structure]

प्रारम्भिक संगठन के प्रारूप से आशय उपक्रम के संगठनात्मक कलेवर से होता है जिसके द्वारा कार्यरत कर्मचारियों के कार्यों एवं सम्बन्धों का पता चलता है। संगठन के प्रारूप को अन्य कई नामों; जैसे-संगठन के स्वरूप (Patterns of Organisation), संगठन के प्रकार (Types of Organisation), संगठन ढाँचे के. अधिकार सम्बन्ध (Authority Relationships of Organisation Structures) आदि से भी जाना जाता है। उपक्रम के कशल संचालन में संगठन का विशिष्ट प्रारूप अपनाना नितान्त महत्वपूर्ण होता है। बिना उपयक्त संगठन प्रारूप के उपक्रम शव तुल्य होता है। जैसे-जैसे उपक्रम का आकार बढ़ता है, संगठन की समस्या जटिल होती जाती है। अत: अधीनस्थों के मध्य अधिकार, कर्त्तव्य एवं उत्तरदायित्व का विभाजन इस प्रकार से किया जाना चाहिए कि उपक्रम के क्रियाकलापों में सामंजस्य बना रहे और कुशलता व उत्पादकता में वृद्धि हो।

Business Management Form Organization

संगठन के विभिन्न प्रारूप

(DIFFERENT FORMS OF ORGANISATION)

व्यावसायिक उपक्रमों में संगठन के निम्नांकित प्रारूप पाए जाते हैं

(I) रेखा संगठन (Line Organisation),

(II) रेखा एवं कर्मचारी संगठन (Line and Staff Organisation),

(III) क्रियात्मक संगठन (Functional Organisation),

(IV) समिति संगठन (Committee Organisation),

(V) अन्तर-इकाई प्रशासन संगठन (Inter-Unit Administrative Organisation),

(VI) परियोजना संगठन (Project Organisation),

(VII) आव्यूह संगठन (Matrix Organisation)

(VIII) संगठन के इन विभिन्न स्वरूपों का विस्तृत परिचय आगे प्रस्तुत किया गया है।

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रेखा संगठन

(LINE ORGANISATION)

आशय एवं परिभाषायह संगठन का सबसे प्राचीन एवं सरलतम रूप है। इस संगठन को सैनिक संगठन (Military Organisation), लम्बवत् संगठन (Vertical Organisation), सोपनीय संगठन (Scalar Organisation), विभागीय संगठन (Departmental Organisation) आदि विभिन्न नामों से भी जाना जाता है। रेखा संगठन से आशय ऐसे संगठन से है जिसमें अधिकारों का प्रवाह ऊपर से नीचे और उत्तरदायित्व का प्रवाह नीचे से ऊपर की ओर रेखाबद्ध रूप से होता है। इसमें शीर्ष स्तर से नीचे तक एक रेखा बनती है जिसमें अधिकार और उत्तरदायित्व की कड़ियाँ परस्पर एक दूसरे से जुड़ी रहती हैं।

मैकफरलैण्ड के अनुसार “रखा संरचना से आशय प्रत्यक्ष एवं लम्बवत् सम्बन्धों से है जो कि प्रत्येक स्तर की स्थिति एवं कार्यों से ऊपर तथा नीचे के स्तर से सम्बन्ध स्थापित करते हैं। ऐलन के शब्दों में, “रेखा आदेश की वह श्रृंखला है जो संचालक-मण्डल के विविध प्रतिनिधायनों एवं पुनः प्रतिनिधायनों द्वारा अधिकारों एवं दायित्वों को उस बिन्दु तक पहुँचाती है जहाँ पर कि कम्पनी की प्राथमिक क्रियाओं को पूरा किया जाता है।”2 इस प्रकार रेखा संगठन में ऊपर से नीचे तक एक की रेखा में दायित्व तथा अधिकार का प्रवाह होता है। इसे ही निम्न रेखाचित्र में प्रदर्शित किया। गया है कि सर्वोच्च अधिकारी महाप्रबन्धक आदेश विभागीय प्रबन्धक को देता है. विभागीय प्रबन्धक अधीक्षक को आदेश देता है, अधीक्षक फोरमैन को और फोरमैन श्रमिकों को आदेश देता है।

विशेषताएँरेखा संगठन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

1 जिस प्रकार सेना में आदेश सेनापति से नीचे की ओर अन्य अधिकारियों द्वारा होता हुआ सामान्य सैनिक को प्राप्त होता है, उसी प्रकार रेखा संगठन में भी आदेश एवं निर्देश ऊपर से नीचे की ओर प्रवाहित होता है।

2. निवेदन, शिकायत एवं सुझाव आदेश के विपरीत दिशा अर्थात् नीचे से ऊपर की ओर प्रवाहित होते हैं।

3. अधिकार सत्ता एक सीधी रेखा के रूप में प्रवाहित होती है।

4. प्रत्येक कर्मचारी को अपने निकटतम अधिकारी (Immediate Superior) से आदेश मिलता है।

5. एक पदाधिकारी के नियन्त्रण में अधीनस्थों की संख्या सीमित होती है।

6. संगठन एक जंजीर की भाँति होता है जिसमें किसी भी कड़ी को छोड़ना सम्भव नहीं होता है।

उपयुक्तता का क्षेत्र संगठन की यह प्रणाली निम्न प्रकार के उपक्रमों और औद्योगिक इकाइयों में सरलता व सुगमता से अपनायी जा सकती है

1 औद्योगिक इकाई बहुत बड़ी न हो।

2. कर्मचारियों की संख्या बहुत अधिक न हो।

3. कार्य नैत्यक स्वभाव (Routine Nature) का हो।

4. विभिन्न इकाइयों व विभागों में सरलतापूर्वक विभाजन किया जा सकता हो।

5. कर्मचरियों एवं प्रबन्धकों के मधुर सम्बन्ध होने के कारण कर्मचारी अनुशासनप्रिय हों।

रेखा संगठन के प्रकार-रेखा संगठन के दो प्रकार हो सकते हैं-शुद्ध रेखा संगठन तथा विभागीय रेखा संगठन।

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() शुद्ध रेखा संगठन (Pure Line Organisation)-शुद्ध रेखा संगठन में एक स्तर पर कार्य करने वाले सभी कर्मचारियों की क्रियाएँ लगभग समान होती हैं और इन क्रियाओं को बहुधा नियन्त्रण में सुविधा व सरलता लाने के लिए वर्गीकृत किया जाता है। एक स्तर पर कार्य करने वाले कर्मचारी अलग-अलग कार्य न करके एक-सा कार्य करते हैं। व्यवहार में ऐसे उपक्रम मुश्किल से मिलते हैं जहाँ समस्त क्रियाएँ समान होती हों। अग्रांकित चित्र द्वारा शुद्ध रेखा संगठन को प्रदर्शित किया गया है

() विभागीय रेखा संगठन (Departmental Line Organisation)-इस प्रणाली में सम्पूर्ण उपक्रम को अनेक विभागों में बाँट दिया जाता है; जैसे-उत्पादन, विक्रय, क्रय, वित्त. सेविवर्गीय आदि। विभाग बनाते समय क्रियाओं की एकरूपता को पूरी तरह ध्यान में रखा जाता है। सभी विभाग अपने-अपने विभागीय प्रबन्धक के अधीन कार्य करते हैं। प्रत्येक विभाग का प्रबन्धक अपने विभाग के सफल संचालन के प्रति उत्तरदायी होता है। निम्न चित्र द्वारा विभागीय रेखा संगठन को प्रदर्शित किया गया है

विभागीय रेखा संगठन चार्ट का नमूना 

रेखा संगठन के प्रमुख लाभइसके प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं

1 यह संगठन का सबसे सरल एवं प्राचीन प्रारूप है जिसे छोटे से छोटा और अनपढ़ कर्मचारी भी बखूबी समझ सकता है।

2. फौज की भाँति इस प्रारूप में पर्याप्त और कड़ा अनुशासन रहता है, क्योंकि अपने अधीनस्थ कर्मचारियों पर नियन्त्रण करने का पूर्ण अधिकार एक व्यक्ति को होता है।

3. इस प्रारूप में अधिकारों का स्पष्ट विभाजन और व्याख्या होने के कारण पारस्परिक संघर्ष की सम्भावना घटती है।

4. इसे निश्चित उत्तरदायित्व का लाभ मिलता है, क्योंकि प्रत्येक कर्मचारी अपने अधिकारी के प्रति उत्तरदायी रहता है और वह दूसरों पर अपने उत्तरदायित्व को खिसका नहीं सकता है।

5. कर्मचारी-अधिकारी में सीधा सम्बन्ध होने से एकीकृत नियन्त्रण का लाभ मिलता है।

6. निर्णय लेने का अधिकार एक व्यक्ति के पास होने के कारण आसानी और शीघ्रता से। निर्णयन सम्भव होता है।

7. इस प्रणाली में आवश्यकतानुसार परिवर्तन सरल होता है अत: लोचशीलता का गुण होता है।

8. दोषी व्यक्ति का पता आसानी से लगा कर दण्ड दिया जा सकता है अत: कर्मचारी लगन से कार्य करते हैं।

9. सन्देशवाहन और समन्वय में भी यह प्रणाली सहायक होती है।

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रेखा संगठन के दोष-रेखा संगठन को सर्वथा दोषमुक्त नहीं माना जा सकता। इस प्रणाला के प्रमुख दोष निम्नलिखित हैं

1 इस प्रकार के संगठन प्रबन्ध की एकतन्त्रीय प्रणाली (Unitary System of Management) पर आधारित होते हैं जिसमें सारे निर्णय शीर्ष प्रबन्धक द्वारा लिए जाते हैं। अगर कहीं शीर्ष प्रबन्धक अकशल व अक्षम होता है तो संस्था की प्रगति अवरूद्ध हो जाती है।

2. इस प्रकार के संगठन में विशेषज्ञों की सेवा और विशिष्टीकरण का लाभ नहीं उठाया जा सकता है।

3. इस प्रणाली में प्रबन्ध अस्थिर एवं लोचशील होता है जिससे अधिशासियों में तानाशाही और मनमानी प्रवृत्तियाँ पनपती हैं। कार्य के शीघ्र सम्पन्न होने में लालफीताशाही रुकावट डालती है और अधीनस्थों के पहलपन को कुठाराघात पहुँचता है।

4. इस रेखा संगठन में प्रबन्धकों पर कार्य का भार बहुत अधिक बढ़ जाता है।

5. फोरमैन के कार्य अधिक रहने के कारण कार्यकुशलता में कमी आने की सम्भावना बनी रहती है।

6. रेखा संगठन में पक्षपात की सम्भावना होती है। अधिकारी अपनी आदत के अनुसार कार्य करते हैं और अधीनस्थों की कार्यकुशलता को अपने गज से नापते हैं। इससे कुछ के साथ पक्षपात हो सकता है। कर्मचारी अधिशासियों की कृपादृष्टि पाने के लिए काम करने के बजाय उनकी चापलूसी और जी हजूरी में लगे रहते हैं।

7. उपक्रम के विभिन्न विभागों में टीम भावना और समन्वय का अभाव पाया जाता है जो उपक्रम के सुचारू संचालन में काफी घातक सिद्ध होता है।

8. विभागों के विभागाध्यक्ष अपने कार्यों के विशेषज्ञ न होकर सामान्यज्ञ (Jack of all trades and master of none) बन जाते हैं।

9. यह संगठन प्रारूप बड़े आकार वाले औद्योगिक उपक्रमों के लिए जहाँ कर्मचारियों की संख्या अधिक हो, अनुपयुक्त सिद्ध होता है।

आधुनिक व्यवसाय के जटिल बन जाने के कारण रेखा संगठन अधिक उपयुक्त सिद्ध नहीं हो रहे हैं। यह छोटे आकार के उद्योगों, कम कर्मचारियों वाले उपक्रमों और दैनिक प्रकृति का उत्पादन करने वालों के लिए ही उपयुक्त है।

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रेखा एवं कर्मचारी संगठन

(LINE AND STAFF ORGANISATION)

रेखा संगठन के दोषों को दूर करने के लिए रेखा एवं कर्मचारी संगठन का प्रादुर्भाव हुआ।

यद्यपि इस प्रारूप में भी कार्य का विभाजन स्वतन्त्र विभागों में किया जाता है और उत्तरदायित्व का

विभाजन भी लम्ब रूप में ही होता है, किन्तु इस प्रारूप की खास विशेषता यह होती है कि विभागीय प्रमुखों के साथ तकनीकी एवं व्यापारिक विशेषज्ञ भी नियुक्त किए जाते हैं। उनका कार्य सलाहकारी होता है, प्रबन्धात्मक नहीं। विशेषज्ञ सोचने, परामर्श देने तथा शोध कार्य में लगे रहते हैं। इस प्रकार विशेषज्ञ स्टाफ अधिकारी सोचते हैं एवं रेखा अधिकारियों को परामर्श देते हैं, जबकि रेखा अधिकारी वास्तविक कार्य करते हैं। इन विशेषज्ञों को आदेश देने का अधिकार नहीं होता, यह कार्य तो विभागीय रेखीय अधिकारी ही करते हैं।

जेम्स डी० मने के अनुसार, “संगठन में कर्मचारी सेवा से आशय परामर्श से होता है जो अधिकार या निर्देशन से भिन्न होता है। रेखा से आशयं संस्था के उन पदों एवं तत्त्वों से है जो उपक्रम के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए उत्तरदायी होते हैं। कर्मचारी (स्टाफ) का आशय उन पदों तथा तत्त्वों से है जो रेखा अधिकारियों को अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए आवश्यक परामर्श एवं सहायता प्रदान करते हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि रेखा एवं कर्मचारी संगठन वास्तव में रेखा संगठन का ही परिमार्जित रुप है जिसमें कर्मचारी परामर्श सेवा के लिए नियुक्त होते हैं, परन्तु परामर्श को मानना या न मानना पूर्णतः रेखा अधिकारी की इच्छा पर निर्भर करता है। निम्नांकित रेखाचित्र में रेखा एवं कर्मचारी संगठन के कलेवर को प्रदर्शित किया गया है

संकेत1. रेखा अधिकारी Line Officer, 2. कर्मचारी अधिकारी Staff Officer रेखा एवं कर्मचारी संगठन की विशेषताएँ-इस संगठन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित

1 इस प्रारूप में रेखा अधिकारियों की परामर्श सहायता के लिए कर्मचारियों की नियुक्ति की जाती है।

2. कर्मचारी विशेषज्ञों के रूप में वैज्ञानिक तथ्यों, यथार्थता और व्यवहारिकता पर आधारित सुझाव देते हैं।

3. रेखा अधिकारी विशेषज्ञों के सुझाव को मानने के लिए बाध्य नहीं होते हैं,

4. विशेषज्ञ केवल परामर्श देते हैं वे किसी निर्णय के लिए रेखा अधिकारी को विवश नहीं कर सकते हैं। रेखा अधिकारी कार्य करने (Doing) और कर्मचारी सोचने (Thinking) के लिए होते हैं।

5 विशेषज्ञों के परामर्श से रेखा अधिकारी के कार्य का बोझ हल्का हो जाता है और निर्णय अपेक्षाकृत अधिक ठोस होते हैं।

6 इसमें अधिकार और उत्तरदायित्व ऊपर से नीचे की ओर सीधी रेखा में प्रवाहित होते है।

1. रेखा एवं कर्मचारी संगठन के गुण-संगठन के इस प्रारूप से निम्न लाभों की प्राप्ति होती है।

2. रेखा अधिकारी विशेषज्ञों की योग्यता का लाभ उठाते हैं। विशेषज्ञ रेखा अधिकारियों को आवश्यक परामर्श देकर उपक्रम की कार्यकुशलता में सुधार लाते हैं।

3. यह नियोजित विशिष्टीकरण पर बल दे करके ‘करना’ और ‘सोचना’ में स्पष्ट भद करता है।

4. विभिन्न विशेषज्ञों की नियुक्ति के कारण अनुसन्धान को प्रोत्साहन मिलता है।

5. रेखा अधिकारियों के निर्णय शीघ्र एवं उत्तम हो पाते हैं।

6. रेखा अधिकारियों का अप्रत्यक्ष रूप में प्रशिक्षण विशेषज्ञ कर्मचारी द्वारा किया जाता है।

7. व्यवसाय का आकार बढ़ने पर भी नियन्त्रण में कोई कठिनाई नहीं होती है।

8. यह रेखा अधिकारियों के कार्य-भार में कमी लाता है। ।

9. विभागों के विभागाध्यक्ष अपने कार्यों के विशेषज्ञ हो करके (Jackof all trades and master of none) सामान्यज्ञ बन जाते हैं। यह संगठन प्रारूप बड़े आकार वाली औद्योगिक उपक्रमों के लिए जहाँ कर्मचारियों की संख्या अधिक हो, अनुपयुक्त सिद्ध होता है।

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आधुनिक व्यवसाय के जटिल बन जाने के कारण रेखा संगठन अधिक उपयुक्त सिद्ध नहीं हो रहे हैं। यह छोटे आकार के उद्योगों, कम कर्मचारियों वाले उपक्रमों और देनिक प्रकृति का उत्पादन करने वालों के लिए उपयुक्त हैं।

रेखा एवं कर्मचारी संगठन के दोष-संगठन के इस प्रारूप के दोष निम्नलिखित हैं

1 विशेषज्ञों की नियुक्ति का कार्य खर्चीला होने के कारण छोटी औद्योगिक संस्थाओं के लिए अनुपयुक्त है।

2. विशेषज्ञ मात्र परामर्शदात्मक स्थिति में होते हैं अत: विभागीय अधिकारी कई बार उनकी उपेक्षा करते हैं।

3. गलत परामर्श देने पर भी विशेषज्ञों को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है। ।

4. विशेषज्ञों एवं विभागीय अध्यक्षों के अधिकारों एवं कर्त्तव्यों का स्पष्टीकरण न होने पर अनावश्यक टकराव की सम्भावना रहती है।

5. कार्यों के निष्पादन में अधिक समय लगता है।

6. विभिन्न क्रियाओं में समन्वय स्थापित करना कठिन हो जाता है।

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रेखा संगठनतथा रेखा एवं कर्मचारी संगठनमें अन्तर

(DIFFERENCE BETWEEN LINE ORGANISATION AND LINE AND STAFF ORGANISATION)

कर्मचारियों एवं रेखा अधिकारियों में अन्तर

(DIFFERENCE BETWEEN STAFF AND LINE AUTHORITIES)

रेखा और कर्मचारी अधिकारी एक दसरे के सहायक और पूरक होते हैं फिर भी इनमें निम्न अन्तर होता है-(1) कर्मचारी अधिकारी सोचते हैं, जबकि रेखा अधिकारी कार्य करते हैं। (2) कर्मचारी अधिकारी सलाह देते हैं व रेखा अधिकारी अमल करते हैं। (3) कर्मचारी अधिकारी रेखा अधिकारियों को बताते हैं कि क्या करना है. जबकि रेखा अधिकारी कर्मचारी अधिकारी को बताते हैं। कि कहाँ जाना है। (4) कर्मचारी अधिकारियों के पास सुझाव के अधिकार होते हैं, जबकि रेखा अधिकारियों के पास आदेश का अधिकार होता है। (5) कर्मचारी अधिकारियों की सुनिश्चित जिम्मेदारी नहीं होती है, जबकि रेखा अधिकारियों की सुनिश्चित जिम्मेदारी होती है। (6) कर्मचारी अधिकारियों को मात्र अनुशस्ति करने का अधिकार होता है, जबकि रेखा अधिकारी संस्था के वास्तविक कार्यान्वयन के उत्तरदायी होते हैं।

रेखा एवं कर्मचारी में संघर्ष

(CONFLICT BETWEEN LINE AND STAFF)

रेखा और कर्मचारी संगठन की अवधारणा इस आधार पर विकसित हुई कि दोनों ही प्रवृत्ति के अधिकारी परस्पर सहयोग और स्वस्थ वातावरण में कार्य करेंगे। रेखा और कर्मचारी के सम्बन्ध पूरक व अनुपूरक होने के उपरान्त भी उनके बीच संघर्ष पाया जाता है। आदर्श सोच यह थी कि कर्मचारी अधिकारी संस्था के विशेषज्ञ के रूप में लक्ष्य हासिल करने हेतु सहयोगात्मक परामर्श देंगे और रेखा अधिकारी का नैतिक दायित्व होगा कि समन्वित टीम के रूप में कर्मचारी अधिकारी के सुझाव को सहर्ष स्वीकार करेंगे परन्तु व्यवहार में बहुधा संघर्ष, टकराहट, मनमुटाव की स्थितियाँ देखने को आती हैं, यह संघर्ष कभी खुले रूप में तो कभी गुप्त रूप में चलता रहता है और मूलतया यह प्रास्थिति का संघर्ष (Conflict of Status) होता है। रेखा अधिकारी अपने को उपक्रम का प्रथम श्रेणी का अधिकारी मानकर कर्मचारी अधिकारी के सुझावों को रद्दी की टोकरी में डालना चाहते हैं। रेखीय प्रबन्धकों की शिकायत होती है कि कर्मचारी प्रबन्धक हवाई किले बनाने वाले विशेषज्ञ होते हैं, जिन्हें व्यावहारिक समस्याओं की समझ नहीं होती है। इसके विपरीत, कर्मचारी अधिकारी अपने को विशेषज्ञ कहते हुए रेखा अधिकारियों से बड़ा मानते हैं। यही संघर्ष की जड़ कभी-कभी अत्यन्त विषैला रूप धारण कर लेती है।

संघर्ष के कारण रेखा तथा कर्मचारी अधिकारियों के बीच टकराव के कारणों को निम्नांकित तीन वर्गों में बाँटकर अध्ययन किया जा सकता है

()रेखा अधिकारियों के आक्षेप एवं शिकायतें (Objections and Complaints of Line Authorities)-रेखा अधिकारी, कर्मचारी अधिकारियों के विरूद्ध निम्न प्रकार के आक्षेप एवं शिकायत करते हैं—(1) कर्मचारी अधिकारीगण की चिन्ता मात्र अपनी धाक जमाने की होती है। वे अपने अस्तित्व को तर्कसंगत और योगदान को स्वीकार्य बनाने के चक्कर में ही सदा पडे रहते हैं।

सफलता का श्रेय कर्मचारी अधिकारी स्वयं लेते हैं। इसके विपरीत, असफलता के लिए रेखा अधिकारियों को जिम्मेदार बताते हैं, भले ही रेखा अधिकारी ने कर्मचारी अधिकारियों के परामर्श से ही काम किया हो। (3) कर्मचारी अधिकारी अधिक सद्धान्तिक, कम व्यावहारिक तथा असन्तलित सद्याव देते हैं। वे ऐसे सुझाव देते हैं जिनको उन्होंने पहले आजमाया नहीं होता है। कर्मचारी। अधिकारी अपना स्थान और भूमिका भूलाकर ये कोशिश करते हैं कि उनका परामर्श रेखा अधिकारी पर अमल में लाए। वे रेखा अभिरियों के क्षेत्र में दखल और अतिक्रमण करत हा (5) कमा अधिकारियों का दृष्टिकोण संकुचित होता है और वे समस्या के सभी पहलओं को नहीं सोचता (6) माचारी अधिकारी रेखा अधिकारी को नीची नजर से देखते हैं और अपना प्रभुत्व जमाने का कााशश करते हैं। (7) कर्मचारी अधिकारी परामर्श के साथ सम्पूर्ण जानकारी नहीं देते। (8) कर्मचारा अधिकारियों के परामर्श के साथ जवाबदेही नहीं होती है। (9) कर्मचारी अधिकारी प्रायः आत महत्वाकांक्षी, वैयक्तिकमूलक व्यवहार (Individualistic Behaviour) और अधीर होते है।

() कर्मचारी अधिकारियों के आक्षेप एवं शिकायतें (Obiections and Complaints of Caff Authorities)-कर्मचारी अधिकारी भी रेखा अधिकारियों के विरूद्ध निम्न आक्षेप लगाते है और शिकायत करते हैं-(1) रेखा अधिकारी कर्मचारी अधिकारियों की योग्यता का लाभ नहीं लेते।

उनकी सलाह न के बराबर समझी जाती है। (2) रेखा अधिकारी सामान्यतः नये विचारों का विरोध करते हैं और ‘लकीर के फकीर’ बने रहना चाहते हैं। (3) रेखा अधिकारी तो कभी-कभी निहित स्वार्थों के कारण कर्मचारी परामर्श को ठकरा देते हैं। (4) सझावा कियान्वयन का अवसर कर्मचारी अधिकारियों को नहीं दिया जाता है। (5) रेखा अधिकारी परामर्श की मांग करते समय न तो समस्या को स्पष्ट करते हैं और न ही पूरी जानकारी देते हैं। ऐसे में समस्या का समाधान खोजना कर्मचारी अधिकारियों के लिए वाकई मुश्किल होता है। (6) रेखा अधिकारी अपने कठिन कृत्य को कर्मचारी अधिकारियों पर थोपने व ढकेलने का प्रयत्न करते हैं और कपरिणाम का सारा दोष उन्हीं के सिर पर मढ़ देते हैं। (7) रेखा अधिकारियों में कर्मचारी अधिकारियों के सुझावों को क्रियान्वित करने का उपयुक्त चातुर्य और कौशल नहीं होता है।

() अन्य कारण (Other Causes)-(1) रेखा और कर्मचारी अधिकारियों के कर्त्तव्य और अधिकार क्षेत्र का स्पष्ट विभाजन न होने से टकराहट बढ़ती है। (2) प्राय: रेखा कर्मचारी में संघर्ष इसलिए भी होता है कि ऐसे कर्मचारी अधिकारियों की दुलर्भता हैं जो तकनीकी विशेषज्ञता के साथ-साथ मानवीय सम्बन्ध की कुशलता भी रखते हों। (3) दोनों पक्षों का अहम सम्बन्धों में कटुता लाता है। बहुधा कर्मचारी अधिकारी युवा, गतिशील व चलायमान होते हैं तो रेखीय प्रबन्धक कम आयु के लोगों की सलाह लेना पसन्द नहीं करते हैं। इस भिन्नता के कारण अविश्वास का वातावरण निर्मित होता है और दोनों के बीच ईर्ष्या व द्वेष को बढ़ावा मिलता है।

रेखा और कर्मचारी सम्बन्ध को समुन्नत करने हेतु सुझाव

(SUGGESTIONS FOR THE IMPROVEMENT OF LINE AND STAFF RELATIONS)

स्वस्थ संगठन की दृष्टि से यह नितान्त आवश्यक है कि रेखा और कर्मचारी संघर्ष के स्थान पर एक समन्वित टीम के रूप में कार्य करें। इस हेतु निम्नलिखित सुझाव दिए जा सकते हैं

1 परस्पर निर्भरता को मान्यता (Recognition of Mutual Dependency)-रेखा कर्मचारी के मध्य संघर्ष एवं मनमुटाव की समाप्ति के लिए आवश्यक है कि दोनों के द्वारा यह माना जाए कि उनक बीच पारस्परिक निर्भरता है। प्रत्येक को एक-दूसरे की आवश्यकता एवं महत्व को समझते हुए पारस्परिक सहयोग करना चाहिए।

2. कर्मचारी भूमिका की सस्पष्ट समझ (Clear Understanding of Staff Role)-याद रखा और कर्मचारी अधिकारी दोनों कर्मचारी भूमिका को सुस्पष्ट तरीके से समझ लें, तो पारस्परिक न्यूनतम किया जा सकता है। कर्मचारी की. मुख्य भूमिका प्रबन्धकों को उद्देश्यों, योजनाओं व तिया के निर्धारण व निर्णयन में सहायता करना है। कर्मचारी को अपने इसी अधिकार क्षेत्र में रहना चाहिए। वह पुलिस शक्ति न हो करके रेखा अधिकारियों का सहयोगी और शुभचिन्तक होता है।

3. अधिकारसत्ता एवं सम्बन्धों की स्पष्ट व्याख्या (Clear Explanation of Authority  and Relations)-रेखा और कर्मचारी दोनों के अधिकारों, कर्तव्यों और दायित्वों की स्पष्ट की जानी चाहिए और दोनों को इसकी समझ होनी चाहिए। इससे पारस्परिक भ्रान्ति और टिलता है। कर्मचारी का दायित्व मात्र सुझाव देना होता है। अत: उसे पद स्थिति का अनावश्यक चाहिए। वह पारण व निर्णयन में ही कर्मचारी को मको सुस्पष्ट तरीकेभ्रम नहीं पालना चाहिए।

4. योग्य कर्मचारी वर्ग का चयन (Selection of Efficient Staff)-योग्य, अनुभवी, प्रशिक्षित विशेषज्ञों को ही कर्मचारी के रूप में चनना चाहिए जिससे कि वे उपयोगी परामर्श दे करके अपनी सार्थकता सिद्ध कर सकें। जब तक कर्मचारी वर्ग की नियुक्ति उनकी उचित योग्यता के आधार पर नहीं की जायेगी, तब तक उनकी सीख और रेखा अधिकारी से मधुर सम्बन्ध सम्भव न हो सकेगा।

5. कर्मचारी की रचनात्मक मनोवृत्ति (Constructive Attitude of Staff)-कर्मचारी वर्ग का रचनात्मक और सकारात्मक स्वभाव होना चाहिए। यदि वह देखता है कि उसकी सलाह की रेखा अधिकारी द्वारा लगातार उपेक्षा की जाती है तो उन्हें रेखीय उच्चाधिकारी से यथासम्भव शिकायत नहीं करनी चाहिए। उसे यह देखना चाहिए कि उसकी सलाह की लगातार उपेक्षा क्यों होती है। यदि यह सिर्फ रेखा में ग्रहणशीलता की कमी अथवा प्रतिरोध के कारण है तो धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करनी चाहिए। समस्याओं के उस सीमा तक बढ़ने का इन्तजार करना चाहिए जबकि कर्मचारी परामर्श आवश्यक हो जाए। यदि कर्मचारी प्रबन्ध को अपनी सलाह को स्वीकारने हेतु दबाव डालेंगे तो इससे प्रतिरोध बढ़ेगा और भावी प्रतिरोध का निर्माण भी होगा।

6. अन्य (Others)-() रेखीय प्रबन्धकों के साथ कार्य करते हुए कर्मचारी वर्ग को टोली सदस्य मानते हुए व्यक्तिगत मान्यता की इच्छा नहीं करनी चाहिए। (ब) रेखा अधिकारी को कर्मचारी वर्ग की सेवाओं का अधिकतम उपयोग करना चाहिए व रचनात्मक सुझावों का आदर करना चाहिए। (स) रेखा कर्मचारी अधिकारियों के मध्य प्रभावी सन्देशवाहन व्यवस्था विकसित की जानी चाहिए। (द) संघर्ष की समाप्ति एवं समाधान हेतु एक पृथक् इकाई की स्थापना की जा सकती है। (य) परिवर्तन का विरोध नहीं करना चाहिए, प्रति-सुझाव रखा जा सकता है।

निष्कर्ष के तौर पर कहा जा सकता है कि रेखा-कर्मचारी सम्बन्ध में भी पारस्परिक समझ, विश्वास और भरोसा होना चाहिए। स्वस्थ सम्बन्धों के निर्माण में समय लगता है अत: इसके लिए धैर्य रखना पड़ता है और निरन्तर प्रयास करने पड़ते हैं। यह भी स्मरणीय रहे कि सम्बन्धों को कमजोर बनाना या नष्ट करना अधिक आसान है बजाय इसे बनाने और मजबूत करने के।

क्रियात्मक संगठन

(FUNCTIONAL ORGANISATION)

क्रियात्मक संगठन का प्रारूप वैज्ञानिक प्रबन्ध के जन्मदाता श्री फ्रेडरिक विन्सलो टेलर की देन है। श्री टेलर का यह मत था कि एक व्यक्ति सभी कार्यों में विशेषज्ञ नहीं हो सकता अत: विशुद्ध विभागीय संगठन के एकाकी अधिकारी के स्थान पर आठ विशेषज्ञों की नियुक्ति की जानी चाहिए। उनके द्वारा निर्धारत चार विशेषज्ञ कार्यालय सम्बन्धी कार्यों से जुड़े रहते हैं तथा शेष चार विशेषज्ञ कारखाने से जुड़े रहते हैं। कार्यालय विशेषज्ञों का कार्य नियोजन करना होता है और कारखाना विशेषज्ञ उत्पादन कार्यों में संलग्न रहते हैं।

श्री टेलर के अनुसार क्रियात्मक संगठन में निम्न आठ अधिकारी होते हैं, जो पृथक्-पृथक् कार्य करते हैं

1 टोली नायक (Gang Boss)-सरदार अथवा टोली नायक श्रमिकों के कार्य करने की योजना बनाता है व आवश्यक सामग्री, सूचनाएँ एवं मागदर्शन प्रदान करता है। आवश्यकता पड़ने पर श्रमिकों की सुविधा के लिए कार्य करने की रीति का प्रदर्शन भी करता है।

2. गति नायक (Speed Boss)-यह गति को निश्चित करता है, जिससे काम होता है। यह उसका कर्त्तव्य है कि काम मानक समय में पूरा हो जाए और श्रमिकों के काम की गति को ठीक रखने के लिए रास्ता भी दिखाता है।

3. जीर्णोद्धार नायक (Repair Boss)-यह अधिकारी एक ओर तो इस तथ्य की जानकारी करता है कि श्रमिक अपनी मशीनों को ठीक ढंग से रखते हैं अथवा नहीं और दसरी ओर मशीनों की सफाई, तेल, मरम्मत आदि की व्यवस्था करता है।

4. निरीक्षक (Inspector)-यह अधिकारी मुख्यत: कारखाने में तैयार माल की गुणवत्ता को नियन्त्रित करने का प्रयत्न करता है।

5. कार्यक्रम लिपिक (Route Clerk)-यह अधिकारी दैनिक कार्यक्रम हेतु योजना बनाता है, क्रियाओं के क्रम का निर्धारण करता है और किस श्रमिक से क्या कार्य लिया जायेगा, उन्हें किस अधिकारी द्वारा मार्गदर्शन प्राप्त होगा, आदि के बारे में सूचनाएँ तैयार करता है।

6. संकेत कार्ड लिपिक (Instruction Card Clerk)-यह अधिकारी प्रत्येक कार्य के लिए संकेत कार्ड लिखित रूप में तैयार करता है। इस संकेत कार्ड में उल्लेख रहता है कि किस प्रकार से, किन यन्त्रों और उपकरणों के सहयोग से श्रमिक को कार्य करना है। इसी संकेत कार्ड के आधार पर टोली नायक कार्यक्रम सम्बन्धी आदेश देते हैं।

7. समय तथा लागत लिपिक (Time and Cost Clerk)-यह अधिकारी सम्पादित की जाने वाली क्रियाओं में लगने वाले समय और आने वाली लागत के सम्बन्ध में पूर्ण लेखा रखता है।

8. अनुशासक (Disciplinarian)-यह अधिकारी श्रमिकों के अनुशासन के लिए उत्तरदायी होता है। वह उनकी अनुपस्थिति, विलम्ब आदि के लिए अनुशासन की कार्यवाही करता है। अच्छा कार्य करने वालों के लिए पुरस्कार और खराब कार्य करने वालों के लिए दण्ड की व्यवस्था करता है।

क्रियात्मक संगठन के गुण-(1) विशिष्टीकरण पर आधारित होने के कारण संगठन की कायकुशलता में वृद्धि होती है। (2) आवश्यकतानुसार संशोधन एवं परिवर्तन किसी भी समय सम्पूर्ण ढाच को अस्त-व्यस्त किये बिना सरलतापूर्वक किया जा सकता है। अत: लोचशीलता इस प्रारूप का एक प्रमुख गुण है। (3) यह पद्धति प्रेरणात्मक है। (4) सहयोग की भावना को प्रोत्साहन मिलता है। (5) अधिक से अधिक श्रम-विभाजन सम्भव होता है। (6) नियन्त्रण और निगरानी सामूहिक होने से लोकतान्त्रिक दृष्टिकोण पनपता है और गणवत्ता में सुधार होता है। (7) बड़े पैमाने पर उत्पादन सम्भव होता है। (8) निर्णयन की प्रक्रिया सुगम और एकरूपता से भरी हुई होती है। (9) अधिशासी वर्ग पर नैत्यक और विशिष्ट निर्णयों का भार नहीं पड़ता है।

क्रियात्मक संगठन के दोष-(1) एक अधीनस्थ कई अधिकारियों के प्रति उत्तरदायी होता है। अत: अधीनस्थों में उलझन की स्थिति बनी रहती है। (2) कई विशेषज्ञों की नियुक्ति से समन्वय में कठिनाई का अनुभव होता है। (3) आदेश की एकता के अभाव में उत्तरदायित्व निर्धारण कठिन हो जाता है। एक काम को पूरा करने में इतने व्यक्ति लगे हुए होते हैं कि हर व्यक्ति काम की गति में कमी के लिए दूसरों को जिम्मेदार बताता है। (4) भिन्न-भिन्न विशेषज्ञों से परामर्श करके निर्णय लेने में अति विलम्ब हो जाता है। (5) विशेषज्ञों की अधिक संख्या संगठन का खर्चा बढ़ा देती है। (6) बराबर के पद वाले कई अधिकारी होने के कारण अधिकारियों में आपसी ईर्ष्या बढ़ती है और गुटों में प्रतिद्वन्द्विता चल पड़ती है। (7) संकेत कार्ड भरने और सभी आदेशों तथा विस्तृत तथ्यों को लिखने में लिापकीय कार्य बहुत बढ़ जाता है। (8) शक्ति का विभाजन अनुशासन की समस्या पैदा करता है।

रेखा और क्रियात्मक संगठन में अन्तर

(DIFFERENCE BETWEEN LINE AND FUNCTIONAL ORGANISATION)

समिति संगठन

COMMITTEE ORGANISATION)

आज का युग प्रजातन्त्र का युग है जिसमें सभी कार्यों में आपसी परामर्श और मतैक्य को महत्व दिया जाता है। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए व्यावसायिक प्रबन्ध के क्षेत्र में भी संगठन प्रारूप के रूप में समिति संगठन का प्रचलन हुआ। यद्यपि राजकीय, शैक्षणिक, धार्मिक तथा सामाजिक क्षेत्रों में समितियों का प्रयोग प्राचीन काल से होता रहा है। वर्तमान समय में सहभागिता और जनतान्त्रिक कार्य प्रणाली को अधिक महत्व दिए जाने के कारण इनका प्रयोग व्यावसायिक प्रबन्धन में निरन्तर बढ़ रहा है।

समिति का आशय एवं परिभाषा (Meaning and Definitions of Committee)-समिति को प्रबन्ध साहित्य में विविध नामों से जाना जाता है; जैसे-मण्डल (Board), कमीशन (Commission), परिषद (Council), कार्य बल (Task Force), टीम (Team) आदि। समिति व्यक्तियों का वह समूह होती है जिसे संगठन में कुछ निर्धारित कार्यों को सामूहिक रूप से निष्पादित करने का भार सौंपा जाता है। समिति में आम तौर पर तीन या इससे अधिक सदस्य होते हैं परन्त, कभी-कभी एक अनुभवी व योग्य व्यक्ति को ही समिति के रूप में नियुक्त कर दिया जाता है तो इसे एक-सदस्यीय समिति (One-man Committee) कहेंगे फिर भी, अधिक सदस्य होने पर निर्णय बहमत द्वारा किया जाता है और उनमें से कोई एक समिति का सभापति (Chairman होगा।

जी० आर० टेरी के अनुसार, “समिति व्यक्तियों का एक समह होता है जो चयनित अथवा नियुक्त किए जाते है तथा संगठित रूप से मिलकर उनके समक्ष प्रस्तुत विषयों पर विचार कर उन्ह निपटाते हैं।”

डब्ल्यू० एच० न्यूमैन के शब्दों में, “एक समिति कछ प्रशासनिक कार्य को करने हेतु विशिष्ट । रूप से नियुक्त की जाती है, जिसमें व्यक्तियों का एक समूह होता है।”

उर्विक के अनुसार, “समिति व्यक्तियों का एक समूह होता है, जिन्हें इस शर्त पर कुछ काय सौंपे जाते हैं कि वे उन कार्यों को मिल कर तथा सम्मिलित रूप से करेंगे।”

समितियों के प्रकार

(TYPES OF COMMITTEE)

समितियों का वर्गीकरण निम्न प्रकार से किया जा सकता है

1 स्थायी एवं अस्थायी समिति (Standing and Temporary Committee)-स्थायी समिति वह होती है जो स्थायी प्रकृति की होती है और उत्तरदायित्व का भार निरन्तर वहन करती है। इसके उदाहरण संचालक मण्डल, योजना आयोग, विश्वविद्यालय की कार्य परिषद आदि हैं। इसके विपरीत, अस्थायी समिति किसी तदर्थ एवं विशेष उद्देश्य को पूरा करने के लिए नियुक्त की जाती है और कार्य पूरा होते ही इसका अन्त हो जाता है। इसके उदाहरण वित्त आयोग, वेतन आयोग, कर आयोग, जाँच समितियाँ, प्रदेश समितियाँ आदि हैं।

2 औपचारिक एवं अनौपचारिक समिति (Formal and Informal Committee)-औपचारिक समिति वह होती है जिसका संगठनात्मक संरचना में विशिष्ट स्थान होता है। इसके अधिकारों, कर्तव्यों और दायित्वों की नियमावली में स्पष्ट व्याख्या होती है। अनौपचारिक समिति किसी विशेष मामले में विचार-विमर्श के लिए बना दी जाती है। इनके अधिकार, कर्त्तव्य, दायित्व की व्याख्या संगठनात्मक संरचना में नहीं होती है।

3. केन्द्रीय और विभागीय समिति (Central and Departmental Committee) केन्द्रीय समिति सम्पूर्ण प्रतिष्ठान के लिए विचार-विमर्श करके सुझाव देती है। उदाहरण के लिए, वित्त समिति, श्रम कल्याण समिति, नीति-निर्धारण समिति केन्द्रीय समितियाँ हैं। इसके विपरीत, विभागीय समिति एक विशेष विभाग के निरीक्षण में गठित होती है और उसे ही सुझाव देती है। उदाहरण के लिए, एक वित्त प्रबन्धक बजट समिति अथवा उत्पादन प्रबन्धक गुण नियन्त्रण समिति का गठन कर सकता है।

4. रेखा एवं कर्मचारी समिति (Line and Staff Committee)-रेखा समिति को निर्णय लेकर उन्हें क्रियान्वित करने कराने का अधिकार भी होता है। कम्पनी में संचालक मण्डल और विश्वविद्यालय में कार्य परिषद इस रेखा समिति के उदाहरण हैं जिसमें बहुसंख्यक अधिशासी (Plural Executive) होते हैं। कर्मचारी समिति जाँच-पड़ताल एवं समस्याओं पर गहन चिन्तन करके विवरण सहित सुझाव देती है। कर्मचारी समिति निर्णय नहीं ले सकती है और न ही क्रियान्वित कर सकती है। यह कार्य रेखाधिकारी ही कर सकते हैं, कर्मचारी समिति मात्र विशिष्ट राय, सुझाव और मार्गदर्शन की सहायता दे सकती है।

समिति संगठन के सिद्धान्त (Principles of Committee Organisation)–समिति संगठन की सफलता निम्न आधारभूत सिद्धान्तों पर अवलम्बित होती है-(1) समिति के सदस्यों की संख्या न्यूनतम होने से प्रभावशीलता बढ़ती है। 3 से 5 सदस्यों का होना उत्तम माना जाता है, नहीं तो अधिक सदस्य होने पर समिति की सभा बुलाने में काफी समय लगता है, अनावश्यक लम्बे वाद-विवाद होते हैं और निर्णयन में अनावश्यक विलम्ब होता है। (2) समिति के अध्यक्ष को चाहिए कि समिति की सभा के पूर्व ही चर्चा किए जाने वाले मुद्दों पर सामग्री तैयार करके उसे सदस्यों में वितरित करा दे ताकि वे सोच विचार कर ही सभा में उपस्थित हों। (3) अध्यक्ष को सभा के दौरान सदस्यों के व्यवहार को नियन्त्रित करना चाहिए जिससे कि समय और विचारों का न्यूनतम अपव्यय हो। (4) 1 A committee consists of a group of people specifically designated to parform

सभा निर्धारित समय पर शुरू होकर निर्धारित समय पर खत्म की जानी चाहिए। (5) सभा निर्धारित कार्यसूची के अनुसार चलनी चाहिए, जिसमें विषयों को महत्वानुसार संजोया जा सकता है। अति महत्वपूर्ण मुद्दे पहले विचारित किए जाते हैं। (6) समिति सभा में भाग ले रहे सदस्यों को अनुभव करना चाहिए कि प्रत्येक सदस्य एक दूसरे के समय को बचाने की चेष्टा नहीं करेगा तो सभा में बहुत अधिक समय लग सकता है। (7) समिति सदस्यों को व्यक्तिगत हितों के स्थान पर सामूहिक हितों पर ध्यान केन्द्रित करते हुए सद्भावना से कार्य करना चाहिए।

समिति संगठन के गुण

(MERITS OF COMMITTEE ORGANISATION)

समिति संगठन के प्रमुख गुण निम्नलिखित हैं

1 सामूहिक ज्ञान और अनुभव (Collective Knowledge and Experience)-यह एक सामान्य कथन है कि दो मस्तिष्क एक से अच्छे होते हैं (Two heads are better than one)। इसका अभिप्राय यह है कि जिस कार्य के सम्बन्ध में दो या दो से अधिक व्यक्ति विचार-विमर्श करते हैं, वह एक व्यक्ति की तुलना में श्रेष्ठ होता है। समिति अनेक व्यक्तियों की बुद्धि, चतुराई, सूचना, अनुभव और सन्दर्भ का संगम होती है और इनका संगम विभिन्न दृष्टिकोणों, पक्षों, हितों और आयामों से समस्या पर विचार करता है। इससे निर्णय की प्रभावशीलता बढ़ती है। ।

2. समायोजन की सुविधा (Ease of Adjustment)-समिति में लगभग सभी विभागों और हितों का प्रतिनिधित्व होता है। सभी प्रस्तुत समस्या पर विचार करते समय एवं दूसरे को सुनने, आलोचना करने, समझने व सुझाव रखने को स्वतन्त्र होते हैं। निर्णयन से पूर्व सदस्यों का प्रत्यक्ष सम्पर्क और विचार-विमर्श समन्वय और समायोजन को सहज बनाता है। खास तौर से जिन सदस्यों ने निर्णय पर हस्ताक्षर किये हैं वे बाद में उसको नैतिक और वैधानिक रूप से मानने के लिए बाध्य होते हैं।

3.सुलभ सन्देशवाहन (Easy Communication)-समितियाँ सूचना प्रसार का अच्छा साधन होती है। समिति के निर्णय व उनके विचार विमर्श की पृष्ठभूमि सभी सम्बद्ध सदस्यों को भेजी जाती है। इससे सबको स्पष्ट रूप से सूचना समझ में आ जाती है।

4. सहभागिता के द्वारा अभिप्रेरणा (Motivation Through Participation)-समितियों के सामूहिक निर्णयन में सभी सदस्य मिलकर कार्य करते हैं अतः वे उस प्रक्रिया के सहभागी बन जाते हैं। इससे उनमें स्वयं को सामूहिक निर्णयों के क्रियान्वयन की स्वप्रेरणा जागृत होती है। सभी सदस्य विश्वास और सहयोग से कार्य करने को अभिप्रेरित होते हैं।

5. उत्तरदायित्व से बचने और विलम्ब करने की युक्ति (Escaping Responsibility and Delaying Tactics)-कभी-कभी अधिकारी यह महसूस करते हैं कि उसके निर्णय से कछ लोग अप्रसन्न होंगे जिससे संघर्ष और विरोध की स्थिति आयेगी तो वह एक समिति गठित कर देते हैं। इस प्रकार वे अपना उत्तरदायित्व समिति पर खिसका करके स्वयं बच निकलते हैं। इसी तरह जब कभी कोई अधिकारी दबाव या तनाव की वजह से शीघ्रता से निर्णय के जोखिम से बचना चाहता है तो एक समिति गठित कर देता है। समिति तथ्यों के एकत्रण, बैठक बुलाने और निष्कर्ष या सुझाव तक पहुंचने में काफी समय लगाती है। इस बीच अधिकतर तनाव या दबाव समाप्त हो चका होता है, लोगों का गस्सा शान्त हो जाता है, तब रेखाधिकारी समिति की संस्तुति के आलोक में निर्णय लेता है। यह समिति संगठन विरोध, दबाव या तनावपूर्ण स्थिति में निर्णयों को समिति के गठन द्वारा टालने की एक प्रभावी युक्ति है। –

6.प्रतिनिधित्व का माध्यम (Medium of Representation)-बड़े व जटिल संगठन संरचना में सभी सम्बद्ध वर्गों के हितों को प्रतिनिधित्व प्रदान करने का समिति एक अच्छा माध्यम समिति में सभी सम्बद्ध पक्षकारों को सदस्य नामित कर दिया जाता है जिससे कोई भी व्यक्ति सामहिक हितों की अवहेलना नहीं कर सकता है और न अपनी मनमानी ही कर सकता है।

7. अधिकार के केन्द्रीकरण और दुरुपयोग पर रोक (Prevention of Concentration and Misuse of Authority)-यदि किसी संगठन में सभी अधिकार किसी संगठन सरचनाक प्रारूप केन्द्रित हो जाते हैं तो दुरुपयोग का डर रहता है। सरकारी. शैक्षणिक, व्यावसायिक और अन्य संस्थानों में नीति निर्धारण और महत्वपूर्ण निर्णय समिति के माध्यम से लिए जाने के कारण अधिकारा का दुरुपयोग रोका जा सकता है।

8. अधिकारियों के लिए प्रशिक्षण मंच (Training Forum for Executives)-कनिष्ठ आर। वरिष्ठ सभी अधिकारी समिति की बैठक में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं जो उनके प्रशिक्षण का श्रेष्ठ तरीका सिद्ध होता है। एक अधिकारी दूसरों के विभागों और दृष्टिकोणों को जान पाता है। पारस्परिक वार्तालाप, विरोध, प्रतिरोध, प्रशंसा, आलोचना अधिकारियों की निर्णयन क्षमता में बढ़ोतरी करती है।

समिति संगठन के दोष

(DEFECTS OF COMMITTEE ORGANISATION)

समिति संगठन के अनेक लाभ होते हुए भी इसे दोषपूर्ण एवं अव्यावहारिक समझा जाता है। कण्ट्ज एवं ओ’डोनेल के अनुसार, “समिति अनावश्यक कार्य करने के लिए अनिच्छुकों के द्वारा उपयुक्त चुनाव के द्वारा निर्मित संस्था है। समिति संगठन के प्रमुख दोष निम्नांकित हैं

1 धन और समय का दुरुपयोग (Misuse of Money and Time)-सूचनाओं और कार्यक्रमों के प्रेषण, विचार विमर्श, निर्णय लेखन, विचार विनिमय में बहुत अधिक समय लगता है और लागत भी बहुत अधिक आती है। जब सदस्यों को बैठकों में भाग लेने के लिए दूर-दूर से आना पड़ता है तो समय और धन का अपव्यय होता है। निरर्थक और दीर्घ सत्र समिति के रूप बन कर रह जाते हैं।

2. अनिर्णयात्मक कार्यवाहियाँ (Indecisive Actions)-समिति के कार्य करने का ढंग बेहद सुस्त, धीमा और अनिर्णयात्मक होता है। प्रायः समिति बैठकों में सही प्रश्नों को दबा कर उल्टे-पुल्टे, बेकार और अनर्गल मुद्दों पर अनावश्यक व लम्बी बहस करायी जाती है। कई बार सामूहिक विचार विमर्श का अन्त न सुलझने वाली गुत्थियों, विभाजित मतों, विरोध लेखन (Note of Dessent) व विरोध प्रदर्शन से होता है। यह स्थितियाँ अनिर्णयन पर पहुँचती हैं या निर्णयन में इतना विलम्ब कर देती हैं कि उनका महत्व ही समाप्त हो जाता है।

3. समझौते का भय (Fear of Compromise)-कभी-कभी समिति में संयुक्त चिन्तन व सामूहिक फैसले के स्थान पर विरोधी गुटों में समझौता हो जाता है। एक सदस्य दूसरे सदस्य को इसलिए सहयोग प्रदान करता है कि प्रतिफल में किसी अन्य समय वह भी उससे मदद चाहता है। कभी-कभी तो समिति का अध्यक्ष अपने दृष्टिकोण की स्वीकृति हेतु अनेक समझौते कर लेता है। यह लाभ लो और दो (Give and take) तो संस्था को ही नुकसान पहुँचाती है।

4. अनुत्तरदायी चरित्र (Irresponsible Character)-एक लोकप्रिय कहावत है कि सबकी जिम्मेदारी किसी की जिम्मेदारी नहीं होती है। सामूहिक विचार-विमर्श के बाद संयुक्त रूप से किए गए निर्णयों हेतु कोई भी सदस्य व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी नहीं होता है। चूंकि व्यक्तिगत उत्तरदायित्व निश्चित नहीं होता इसलिए समिति के सदस्य उत्तरदायित्वहीन हो जाते हैं और समिति अकुशलता, लापरवाही और दायित्व से बच निकलने का मार्ग बन जाती है।

5. आक्रामक व्यक्तियों का प्रभुत्व (Dominance of Aggressive Persons)-समिति के अधिकांश सदस्य कार्यवाही में उदासीन व तटस्थ रहते हैं अत: मुंहफट (Outspoken), तेज बोलने वाले, शक्तिशाली, आक्रामक स्वभाव के कुछ सदस्य और अध्यक्ष अपनी धाक जमा लेते हैं और समिति के निर्णय को इच्छित दिशा में ले जाते हैं।

अन्य दोष (Other Defects)-(अ) गोपनीयता का अभाव, (ब) अल्पसंख्यकों पर अनाचार, (स) केवल बड़े संगठनों के लिए उपयोगी, (द) उपक्रम के कार्यों में शिथिलता आदि।

समिति संगठन को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए सुझाव

(SUGGESTION FOR MAKING COMMITTEE ORGANISATION MORE EFFECTIVE)

समिति संगठन को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए इसके स्वभावजन्य दोषों का निवारण करना होगा, जिसके लिए निम्नलिखित सुझाव दिए जा सकते हैं

1 समिति के अधिकार एवं कार्यक्षेत्र पूर्णतया स्पष्ट होने चाहिएँ ताकि आपसी मतभेद न हो सके।

2. समिति के सदस्यों की संख्या उपयक्त होनी चाहिए। वह न तो इतने कम होने चाहिएँ कि आवश्यक ज्ञान व अनुभव का संयोजन न हो सके और न ही इतने ज्यादा होने चाहिएं कि बैठक में विचार प्रकट करने का अवसर न मिले।

3. समिति संगठन में ऐसे योग्य सदस्यों का चुनाव करना चाहिए जो योग्य, अनुभवी और विविध विभागों के प्रतिनिधित्वकर्ता हों।

4. समिति की अध्यक्षता एक योग्य व्यक्ति को सौंपनी चाहिए जो प्रस्तावों को उचित रूप दे सके, वाद-विवादों को निश्चित दिशा दे सके और कार्यवाही का सुचारू रूप से संचालन कर सके।

5. समिति के विचार के लिए व्यापक और महत्वपूर्ण विषय निर्धारित किए जाने चाहिएँ, नैत्यक मामले नहीं।

6. समिति की बैठक के लिए निश्चित कार्यक्रम तैयार करके सभी सदस्यों को सूचित कर देना चाहिए।

7. समिति की बैठक के दौरान हुई कार्यवाही का सूक्ष्म लिख करके अगली बैठक में पुष्टि करानी चाहिए। आवश्यकतानुसार सुधार-संशोधन करके उस पर अन्तिम स्वीकृति उपरान्त अमल में लाना चाहिए और प्रगति तथा सुझावों से समिति को अवगत कराते रहना चाहिए।

अन्तरइकाई प्रशासन संगठन

(INTER-UNIT ADMINISTRATIVE ORGANISATION)

यदि एक ही औद्योगिक इकाई अनेक प्रकार के उत्पादों का निर्माण करती है तो अन्तर-इकाई प्रशासन संगठन की आवश्यकता पड़ती है। प्रत्येक प्रकार के उत्पाद के निर्माण के लिए पृथक्-पृथक् संगठन की स्थापना की जाती है तथा सम्बन्धित विभागाध्यक्षों को निर्णयन और कर्मचारियों को अभिप्रेरित व नियन्त्रित करने की अधिकतम स्वतन्त्रता होती है। इन विभिन्न विभागों पर समन्वय स्थापित करने हेतु एक अन्तर-इकाई प्रशासन संगठन की स्थापना की जाती है। उदाहरण के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका में जनरल मोटर कारपोरेशन (General Motor Corporation or GMC) चार प्रकार की कारें निर्मित करती है-(अ) शेवर लेट, (ब) ब्यूक, (स) पोण्टियाक, (द) ओल्ड्स मोबाइल। प्रत्येक प्रकार के कार के उत्पादन और वितरण का पृथक्-पृथक् संगठन है, परन्तु उक्त कारपोरेशन का केन्द्रीय बोर्ड उनमें समन्वयी नियन्त्रण स्थापित करता है जिससे आपस में चारों में समन्वय बना रहे।

परियोजना संगठन

(PROJECT ORGANISATION)

संगठन का यह प्रारूप आजकल काफी लोकप्रिय हो रहा है। परियोजना संगठन वास्तव में बड़ी-बडी परियोजनाओं के लिए प्रयुक्त होती है। प्रत्येक परियोजना अन्य पुरानी परियोजना से भिन्न होती है अतः उसे पूरा करने के लिए विशिष्ट योग्यता व निपुणता वाले कर्मचारियों की आवश्यकता होती है। परियोजना संगठन का केन्द्र-बिन्दु परियोजना प्रबन्धक होता है। वह निर्धारित समय लागत व गणवत्ता के मानदण्डों को ध्यान में रखते हुए परियोजना को पूरा कराने हेतु उत्तरदायी होता है। वह विशिष्ट लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु समतलीय सम्बन्धों, टोली निर्माण और सासंगठन का उपयोग एयर क्राफ्ट कम्पनिया सर्वाधिक करती है। एयर क्राफ्ट कम्पनियाँ किसी एक योजना को परा करने के लिए नवीन संगठन का विकास करती हैं और उस परियोजना के परा होने पर उस संगठन संरचना को समाप्त कर दिया जाता है।

विशेषताएँ-(1) यह संगठन प्रारूप विशिष्ट परियोजनाओं जिसे निष्पादन के मानदण्डों द्वारा परा करना हो, के लिए अपनाया जाता ह। (2) यह अस्थायी होता है और पूरा होने पर समाप्त कर दिया जाता है। (3) यह सगठन प्रारूप परियोजना प्रबन्धक की नियुक्ति करता है और उसकी सहायता के लिए स्टाफ दिया जाता है। (4) परियोजना प्रबन्धक आवश्यकता पड़ने पर बाह्य विशेषज्ञों से भी सलाह-मशविरा ले सकता है। (5) यह प्रारूप रखाय प्रकृति का होता है, परामर्शात्मक प्रकृति का नहीं. (6) इसमें कार्य आबंटन, श्रम विभाजन, अधिकार-उत्तरदायित्व सम्बन्ध, कार्यों के समूहीकरण तथा सन्देशवाहन प्रणाली में लोचशीलता बरता। जाती है।

लाभ-(1) इसमें विशिष्टीकरण के अनुकूलतम विकास द्वारा परियोजना के विशिष्ट लक्ष्यों की प्राप्ति पर पूर्ण ध्यान दिया जाता है। (2) इस प्रारूप में अत्यधिक लोचशीलता पायी जाती है और गत्यात्मक वातावरण के अनुकूल परिवर्तन किया जा सकता है। (3) विशेषज्ञों का अधिकतम सदुपयोग सम्भव होता है। (4) इसमें अभिप्रेरण में सुधार होता है, क्योंकि कर्मचारी तीव्र गति से परियोजना पूरा करने को तत्पर रहते हैं। (5) यह मितव्ययी प्रारूप है, क्योंकि परियोजना की जरूरत से ही कर्मचारी नियुक्त किये जाते हैं। (6) किसी समस्या का समाधान विशिष्ट चातुर्य और अधिकतम कुशलता से किया जाता है।

दोष-(1) परियोजना प्रबन्धक के लिए विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों से सहयोग प्राप्त करना मश्किल होता है। (2) क्रियात्मक समहों में उदासीनता एवं उपेक्षा की भावना जागृत होती है। (3) स्वस्थ समूह भावना का अभाव पाया जाता है। (4) शरू में यह खर्चीला सिद्ध होता है। (5) परियोजना प्रबन्धक और कर्मचारियों में सत्ता-संघर्ष की स्थिति आ जाती है।

आव्यूह संगठन

(MATRIX ORGANISATION)

वर्तमान समय में विकाशील राष्ट्रों में आव्यूह संगठन प्रारूप बहुत प्रचलन में है। यह आव्यूह संगठन वास्तव में विभागीय संगठन और परियोजना संगठन का सम्मिश्रण होता है और ग्रिड संगठन (Grid Organisation) के नाम से भी जाना जाता है। आव्यूह संगठन में कर्मचारी दो स्थानों पर कार्य करते हैं प्रथम, स्थायी विभाग में जहाँ पर वह स्थायी रूप से नियुक्त होता है। द्वितीय, अस्थायी परियोजना में जहाँ उसे अस्थायी रूप से रखा जाता है और जैसे ही परियोजना पूरी हो जाती है वह अपने स्थायी विभाग में लौट जाता है। इस प्रकार आव्यूह संगठन में कर्मचारियों के दो अधिकारी (Two Bosses) होते हैं-एक तो विभागीय अधिकारी और दूसरा परियोजना अधिकारी। आदेश की एक श्रृंखला विभागीय अर्थात लम्बवत होती है और परियोजना प्रबन्ध की समतलीय होती है। अधिकार सत्ता के इस द्विमार्गीय प्रवाह से अधिकार सत्ताओं के ग्रिड अथवा आव्यूह का निर्माण होता है, इसीलिए इस प्रारूप को ग्रिड अथवा आव्यूह संगठन कहते हैं।

आव्यूह संगठन चार्ट का नमूना

Business Management Form Organization

परियोजना प्रबन्धक को सौंप रखे हैं परियोजना प्रबन्धक इनके कार्य का निरीक्षण, पर्यवेक्षण और नियन्त्रण करते हैं। परियोजना के पूरा होने पर कार्य दल अपने क्रियाशील विभागों में लौट जाते।

लाभ-(1) इसके अन्तर्गत साधनों को किसी एकाकी परियोजना पर प्रभावी ढंग से केन्द्रित किया जा सकता है। (2) यह एक खुला एवं लोचशील संगठन प्रारूप है। (3) इसमें अभिप्रेरण में सुधार होता है। (4) प्रत्यक्ष सम्पर्क होने के कारण संदेशवाहन व्यवस्था सुधरती है। (5) इसके अन्तर्गत कर्मचारी अपनी पेशेवर योग्यता का विकास आसानी से कर सकते हैं। (6) यह मितव्ययी प्रारूप है। (7) इससे अन्तर्विभागीय सहयोग बढ़ता है।

दोष-(1) इसमें आदेश की एकता का उल्लंघन होता है। (2) इसमें शक्ति संघर्ष को प्रोत्साहन मिलता है। (3) इसमें कार्य की बजाय बहस की सम्भावनायें अधिक रहती हैं। (4) इसमें स्वस्थ समूह भावना का अभाव रहता है, क्योंकि कर्मचारी अस्थायी तौर पर परियोजना में कार्य करते हैं। (5) संगठनात्मक सम्बन्ध जटिल हो जाते हैं।

परियोजना और आव्यूह संगठन में अन्तर

(DIFFERENCE BETWEEN PROJECT AND MATRIX ORGANISATION)

परियोजना एवं आव्यूह संगठन में समानता के साथ ही साथ कुछ भिन्नता भी दृष्टिगोचर होती है। परियोजना संगठन में परियोजना को पूरा करने का भार मात्र परियोजना प्रबन्धक पर होता है, जबकि आव्यूह संगठन में परियोजना प्रबन्धक के साथ-साथ उत्तरदायित्व का निर्वाह उपक्रम के अन्य प्रबन्धक भी करते हैं। परियोजना संगठन में अधीनस्थ मात्र परियोजना प्रबन्धक के प्रति उत्तरदायी होते है, जबकि आव्यूह संगठन में कार्यरत कर्मचारी का दोहरा उत्तरदायित्व होता है, प्रथम परियोजना के सम्बन्ध में और द्वितीय मूल क्रियात्मक विभाग के प्रति। आव्यूह संगठन उस समय अधिक उपयुक्त रहता है, जबकि संस्था को छोटी और बड़ी कई परियोजनायें पूरी करनी हों।

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संगठन के प्रकारऔपचारिक तथा अनौपचारिक

(TYPES OF ORGANISATION-FORMAL AND INFORMAL)

संगठन को विविध आधारों पर वर्गीकृत किया जाता है

() उद्देश्य के आधार पर-संगठन को उद्देश्य के आधार पर व्यावसायिक, धार्मिक, सैनिक, सामाजिक, सुरक्षात्मक व शैक्षिक संगठनों में बाँटा जा सकता है।

() लाभ के आधार पर संगठन को आर्थिक व सेवा संगठन में बाँटा जा सकता है।

() व्यावसायिक स्वामित्व के आधार पर संगठन को सार्वजनिक, निजी (एकल व्यवसाय, साझेदारी व कम्पनी) तथा सहकारी उद्यम में बाँटते हैं।

() अधिकारों के आधार पर अधिकारों के आधार पर संगठन को औपचारिक तथा अनौपचारिक में विभाजित किया जाता है। यही वर्गीकरण सर्वाधिक स्वीकार्य और लोकप्रिय है। अतः । इनका विस्तृत वर्णन निम्नलिखित है

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औपचारिक संगठन

(FORMAL ORGANISATION)

आशय एवं परिभाषाएँऔपचारिक संगठन से आशय एक ऐसे संगठन से है जिसमें प्रबन्ध के प्रत्येक स्तर पर काम करने वाले व्यक्तियों के अधिकार, कर्त्तव्य, दायित्व, पारस्परिक सम्बन्ध, कार्यक्षेत्र आदि की स्पष्ट रूप से व्याख्या की जाती है। इस प्रकार के संगठन में सत्ता का प्रत्यायोजन ऊपर से नीचे की ओर किया जाता है। इसमें संगठन चार्टी का प्रयोग किया जाता है। ।

चेस्टर आई० बर्नार्ड के अनुसार, “जब किसी संगठन के दो या दो से अधिक व्यक्तियों की क्रियाओं को किसी निश्चित लक्ष्य की प्राप्ति के लिए चेतनापूर्वक समन्वित किया जाता है, तो ऐसा अनौपचारिक संगठन कहलाता है।” एच० ए० हरबर्ट साइमन के अनुसार, “औपचारिकसंगठन में अमूत एव बहुत कुछ स्थायी नियमों का समावेश होता है जो प्रत्येक सहभागी के व्यवहार को प्रभावित करत हा रोथेलिस बर्गर तथा डिक्सन के शब्दों में, “औपचारिक संगठन स तात्पय मानवीय अन्तसम्बन्धों के ढंग से है जिसकी व्याख्या प्रणालियों, नियमों, नीतियों तथा अर्थव्यवस्था क सम्बन्धों द्वारा की जाती है।”

विशेषतायेंऔपचारिक संगठन की प्रमुख विशेषतायें निम्न हैं- यह संगठन पूर्व नियोजित होता है। (2) यह पूर्णत: अव्यक्तिगत होता है। (3) यह सामान्य उद्देश्य की पूर्ति हेतु स्वैच्छिक जागरूकता के साथ स्थापित किये जाते हैं। (4) इसमें प्रबन्ध के प्रत्येक स. के अधिकारी, कर्तव्यों एवं उत्तरदायित्वों की स्पष्ट रूप से व्याख्या की जाती है। (5) इसमें अधिकारों का प्रत्यायोजन ऊपर से नीचे की ओर होता है। (6) इसमें संगठन चार्टो व पस्तिकाओं का प्रयोग किया जाता है। (7) इसमें श्रम विभाजन, विशिष्टीकरण और आदेश की एकता पायी जाती है। (8) ऐसे संगठन में निश्चित पालियों, आदेशों, नीतियों, नियमों, पद्धतियों और संचार व्यवस्था के अधीन कार्य होता है। (9) इसमें सत्ता की निश्चित क्रमबद्धता होती है जिसका पालन कठोरता से किया जाता है।

लाभऔपचारिक संगठन के प्रमुख लाभ निम्नांकित हैं

1 इसमें प्रत्येक अधिकारी के अधिकार, कर्त्तव्य और दायित्व स्पष्ट रूप से व्याख्यापित होने के कारण किसी कार्य के छूट जाने अथवा अतिच्छाद (Overlapping) की स्थिति उत्पन्न नहीं होती है।

2. औपचारिक संगठन संस्थागत उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक सिद्ध होते हैं, क्योंकि सभी बातें पूर्व नियोजित व स्पष्ट होती हैं।

3. औपचारिक संगठन में सभी कार्य नियमानुसार व निश्चित सिद्धान्तों के अनुसार किए जाते हैं अतः पक्षपात किये जाने की सम्भावनायें न्यूनतम रहती हैं।

4. इसमें उत्तरदायित्व का खिसकाना और टालमटोली सम्भव नहीं होता है। कोई भी व्यक्ति अपनी असफलता का दोषारोपण अन्य किसी व्यक्ति पर नहीं कर सकता है।

5. इसमें श्रम विभाजन और विशिष्टीकरण के लाभ प्राप्त होते हैं।

6. इसमें कर्मचारियों के कार्य और कार्यकुशलता का मूल्यांकन बहुत आसानी से किया जा सकता है और पदोन्नति के बारे में कोई विवाद नहीं रहता है।

7. अधिकार-दायित्व के स्पष्ट विभाजन से मतभेद के स्थान पर मधुर सम्बन्ध का वातावरण रहता है।

8. इसमें अन्तर्व्यक्तिगत टकराहट भी न्यूनतम रह जाता है।

9. यह तर्कसंगत, व्यवस्थित और आदेशात्मक होता है।

10. इसमें अपेक्षाकृत अधिक निश्चितता एवं स्थायित्व रहता है।

11. सभी साधनों का अनुकूलतम उपयोग सम्भव होता है।

दोष-औपचारिक संगठन में निम्न दोष विद्यमान होते हैं

1 इसमें यान्त्रिक रूप से कार्य किया जाता है अत: कर्मचारियों में पहलपन की भावना क्षीण होती है।

2. ऐसे संगठन में नौकरशाही एवं लालफीताशाही पनपती है जिससे कार्यरत कर्मचारियों में कुण्ठा एवं नैराश्यता बढ़ती है और अनावश्यक विलम्ब होता है।

3. ऐसे संगठन में मानवीय भावनाओं की अनदेखी की जाती है, जबकि व्यक्ति बिना सामाजिक सम्बन्धों के जीवित ही नहीं रह सकता है।

4. यह संगठन अनौपचारिक सम्बन्धों के विकास एवं सन्देशवाहन में बाधा उत्पन्न करता है।।

5. यह संगठन समन्वय एवं नियन्त्रण की समस्या को जन्म देता है, क्योंकि कोई भी तनिक भी झुकने को तैयार नहीं होता है।

6. इसमें अधिकार सत्ता के दुरुपयोग की सम्भावना रहती है।

7. ऐसे संगठन में कर्मचारी नियम, कानून और आदेश के गुलाम बन कर ही रह जाते हैं और सामाजिक संगठन की मान्यताओं व भावनाओं को विस्मृत कर देते हैं।

8. अधिकारी-अधीनस्थ सम्बन्ध तनावपूर्ण होने की सम्भावना रहती है।

9. ऐसे संगठन में कर्मचारियों का दृष्टिकोण संकीर्ण हो जाता है।

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अनौपचारिक संगठन

(INFORMAL ORGANISATION)

आशय एवं परिभाषाएँ-अनौपचारिक संगठनों की संरचना व्यक्तिगत सम्बन्धों, व्यक्तिगत संदेशवाहन तथा सामान्य ज्ञान के आधार पर होती है। ऐसे संगठन पूर्व नियोजित नहीं होते बल्कि अपने आप ही बन जाते हैं, संगठन के भीतर भी और बाहर भी। प्रत्येक संस्था में औपचारिक सम्बन्धों के आवरण के नीचे एक जटिल सामाजिक सम्बन्धों का जाल बिछा रहता है। इन्हीं सामाजिक सम्बन्धों को अनौपचारिक संगठन के नाम से जाना जाता है।

कीथ डेविस के अनुसार, “अनौपचारिक संगठन व्यक्तिगत एवं सामाजिक सम्बन्धों का ऐसा जाल है जिसे स्थापित करने के लिए किसी औपचारिक संगठन की स्थापना की आवश्यकता नहीं पड़ती है।” चेस्टर आई० बर्नार्ड के शब्दों में, “अनौपचारिक संगठन एक प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति निरन्तर एक-दूसरे के सम्पर्क में रहते हैं, किन्तु उनके सम्बन्धों का नियन्त्रण औपचारिक संगठन द्वारा नहीं किया जाता वरन् वे एक दूसरे से अन्तर-सम्पर्क करते हैं।” अर्ल पी० स्ट्रांग के अनुसार, “अनौपचारिक संगठन एक सामाजिक संरचना है जिसका निर्माण व्यक्तिगत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किया जाता है।”

व्यवहार में यह देखा जाता है कि एक ही विभाग में कार्य करने वाले अथवा समान कार्य करने वाले अथवा एक ही भाषा, जाति, धर्म अथवा एक ही स्थान पर रहने वाले व्यक्ति एक लम्बे समय तक आपस में मिलते-जुलते रहते हैं तो उनमें स्वाभाविक रूप से स्वत: अनौपचारिक सम्बन्ध हो जाते हैं जो बाद में अनौपचारिक संगठन का रूप ग्रहण कर लेते हैं। वास्तव में औपचारिक और अनौपचारिक दोनों संगठन पूरक है। किसी भी सामूहिक कार्य के करने के लिए दोनों का होना वैसे ही आवश्यक है जैसे कैंची के दोनों फलक।

विशेषतायेंअनौपचारिक संगठन की प्रमुख विशेषतायें निम्न हैं-(1) अनौपचारिक संगठनों का निर्माण स्वत: अर्थात् अपने-आप होता है। (2) ये प्राकृतिक व सामाजिक सम्बन्धों पर आधारित होते हैं। (3) ये औपचारिक संगठन के पूरक होते हैं और हर स्थान और हर स्तर पर पाए जाते हैं। (4) ऐसे संगठनों का संगठन चार्ट में कोई स्थान नहीं होता है। (5) इनके अपने नियम, परम्पराएँ, प्रणालियाँ और पद्धतियाँ होती हैं जिनका ये पालन करते हैं, परन्तु ये नियम, पद्धतियाँ व परम्पराएँ लिखित नहीं होती हैं। (6) अनौपचारिक संगठनों का निर्माण सामाजिक समूहों के रीति-रिवाजों, धर्मों, जातियों, भाषाओं, क्षेत्रों, स्वभावों, विचारों, पारस्परिक सम्बन्धों, आदतों व लम्बे समय तक मिलते-जुलते रहने के कारण होता है। (7) अनौपचारिक संगठन सम्पूर्ण संगठन का आन्तरिक भाग है। (8) ये पदों की क्रमबद्धता से मुक्त होते हैं। (9) इनकी स्थापना व्यक्तिगत आवश्यकताओं की पर्ति, सामाजिक सन्तुष्टि, सांस्कृतिक मूल्यों की स्थापना, पारिवारिक स्नेह आदि के लिए की जाती है। (10) अनौपचारिक संगठन हमेशा क्षतिकारी नहीं होता है फिर भी समय-समय पर प्रबन्धक के कार्य को कठिन बना देता है।

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लाभअनौपचारिक संगठनों के प्रमुख लाभ निम्न हैं

1 ये कर्मचारियों को सन्तुष्टि प्रदान करते हैं और कार्य समूहों में स्थायित्व लाते हैं।

2. ये संगठन कर्मचारियों को कार्य के प्रति प्रेरणा प्रदान करते हैं।

3. ऐसे संगठनों में पारस्परिक समझ, समन्वय व सहयोग की भावना अधिक होती है।

4. ये संगठन निर्बाध संदेशवाहन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।

5. इस प्रकार के संगठनों में कर्मचारियों में आपसी सम्बन्ध मधुर होते हैं।

6. इन संगठनों में कर्मचारियों की कार्यक्षमता का अधिकतम उपयोग सम्भव होता है।

7 .इनसे कर्मचारियों में मैत्री भावना, आत्म सम्मान, सुरक्षा मान्यता की भावनायें बढ़ती हैं।

8. ये कर्मचारियों को अधिक कार्य करने हेतु अभिप्रेरित करते हैं।

9. इनमें ऊँच-नीच, भेदभाव और प्रदर्शन का अभाव रहने से मनोबल ऊँचा होता है।

10. ये संगठन सांस्कृतिक मूल्यों की स्थापना और उन्हें चिरस्थायी बनाने में सहायक होते हैं ।

दोषअनौपचारिक संगठनों के दोष निम्न हैं

1 ये संगठन भीड़ प्रवृत्ति (Mob Psychology) के अनुसार कार्य करते हैं।

2. ये संगठन अफवाह और अनावश्यक भ्रम फैलाने में सहायक होते हैं।

3. ये संगठन परिवर्तन का विरोध करते हैं।

4.ये संगठन अस्थायी एवं अल्प आयु वाले होते हैं।

5. ये संगठन कर्मचारियों को समूह के द्वारा स्थापित प्रतिमानों को स्वीकार करने के लिए बाध्य करते हैं।

6. ये अकुशल श्रमिकों को अनावश्यक संरक्षण प्रदान करते हैं।

7. इनमें उत्तरदायित्व का निर्धारण करना कठिन होता है।

8. ये संगठन कभी-कभी विनाशकारी एवं नकारात्मक स्वभाव के होते हैं।

9. ये संगठन उत्पादन वृद्धि की योजनाओं को निष्क्रिय बना देते हैं।

औपचारिक अनौपचारिक संगठन में अन्तर

(DIFFERENCE BETWEEN FORMAL AND INFORMAL ORGANISATION)

परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(Expected Important Questions for Examination)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

(Long Answer Questions)

प्रश्न 1. संगठन के विभिन्न प्रारूपों का संक्षिप्त वर्णन करते हुए यह बताइये कि एक बड़ी। आधागिक संस्था के लिये संगठन का कौन सा प्रारूप उपयुक्त है और क्यों ?

Explaining various forms of organization. Discuss which form of organization is best and why for a big manufacturing organization.

प्रश्न 2. संगठन को समझाइये तथा औपचारिक व अनौपचारिक संगठन में अन्तर बताइये।

Explain organization and differentiate between formal and informal organization.

प्रश्न 3. क्रियात्मक संगठन रखीय एवं कर्मचारी संगठन से किस प्रकार भिन्न होता है? क्रियामक संगठन के कार्यों एवं सीमाओं की व्याख्या कीजिये।

How does functional organization differ from ‘Line and Staff organization ? Explain the functions and limitations of functional organization.

प्रश्न 4. “अपनी कमियों के बावजूद समितियाँ प्रशासन की महत्त्वपूर्ण युक्ति है।” इस कथन की सत्यता का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये। समिति संगठन को अधिक प्रभावी बनाने के लिये सुझाव दीजिये।

Despite their shortcomings, committees are an important device of administration “Critically examine the validity of this statement. Give necessary suggestions for making committee organization more effective.

प्रश्न 5. संगठन के रेखीय, रेखा एवं स्टाफ तथा कार्यात्मक प्रारूपों में अन्तर स्पष्ट कीजिये।

Distinguish line, line and staff and functional forms of organization.

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लघु उत्तरीय प्रश्न

( Short Answers Questions )

प्रश्न 1. रखा’ तथा ‘स्टाफ’ में द्वन्द्व स्वाभाविक एवं सामान्य है।

Line and Staff conflicts are natural and normal.

प्रश्न 2. क्रियात्मक संगठन को परिभाषित कीजिये। इसके गुण-दोषों को समझाइये।

Define functional organization. Explain its merits and demerits.

प्रश्न 3. आव्यूह संगठन पर टिप्पणी लिखिये।

Write a note on Matrix Organization.

प्रश्न 4. रेखा एवं कर्मचारी संगठन को समझाइये।

Explain the Line and Staff Organization.

प्रश्न 5. रेखीय संगठन क्या है ? इसकी सीमाएँ बताइये।

What is line organization ? What are its limitations ?

प्रश्न 6. संगठन में प्रयुक्त रखा’ एवं ‘स्टाफ’ शब्दों को समझाइये।

Explain the term ‘line’ and ‘staff used in organization

प्रश्न 7. रेखा संगठन क्या है ? इसके गुण-दोष संक्षेप में बताइये।

What is line organization ? Point out its merits and demerits in short.

प्रश्न 8. संगठन संरचना को प्रभावित करने वाले घटकों का वर्णन कीजिये।

Discuss factors affecting organization structure.

प्रश्न 9. रेखा एवं कर्मचारी संगठन क्या है ? इसके गुण-दोष संक्षेप में बताइये।

What is line and staff organization ?

Point out its merits and demerits in short?

प्रश्न 10. समिति संगठन से क्या आशय है ?

What is meant by Committee Organization ?

प्रश्न 11. रेखीय संगठन को मिलिट्री संगठन क्यों कहा जाता है ?

Why line organization is called militarry organization ?

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वस्तुनिष्ठ प्रश्न

(Objective Type Questions)

1 .बताइये कि निम्नलिखित वक्तव्य ‘सही हैं या ‘गलत’

State whether the following statements are ‘True’ or ‘False’

(i) रेखीय संगठन, संगठन का सबसे प्राचीन एवं सरलतम रूप है।

Line organization is the oldest and easiest form of organization.

(ii) क्रियात्मक संगठन में आदेश की एकता होती है।

There is unity of command in a functional organization.

(iii) समिति संगठन प्रजातान्त्रिक है।

Committee organization is democratic.

(iv) औपचारिक संगठन अव्यक्तिगत होता है।

Formal organization is impersonal.

उत्तर-(i) सही (ii) गलत (iii) सही (iv) सही

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2. सही उत्तर चुनिये (Select the correct answer)

(i) क्रियात्मक संगठन के जन्मदाता हैं

(The founder of functional organization is): (अ) टैरी (Terry)

(ब) फेयोल (Fayol)

(स) टेलर (Taylor) .

(द) एप्पले (Appley)

(ii) अनुशासन पाया जाता है (Discipline exist in) :

(अ) रेखा संगठन में (Line organization)

(ब) समिति संगठन में (Committee organization)

(स) रेखा एवं कर्मचारी संगठन में (Line and staff organization)

(द) क्रियात्मक संगठन में (Functional organization)

उत्तर-(i) (स) (ii) (अ)

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chetansati

Admin

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