BCom 1st Year Business mis Communication Barriers and Improvement Study material Notes in Hindi

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BCom 1st Year Business mis Communication Barriers and Improvement Study Material Notes in Hindi

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BCom 1st Year Business mis Communication Barriers and Improvement Study Material Notes in Hindi: Mis Communication Circumstances of Communication Barriers of Communication Semitic barriers Physical or Mechanical Barriers Organizational Barriers Personal barriers Emotional Perceptinal Barriers Suggestions for Improvement of Communications Barriers Important Examinations Questions Long Answers Questions Short Answer Questions :

mis Communication Barriers
mis Communication Barriers

BCom 1st year Business Corporate Communication Study Material Notes In Hindi

भ्रमित संचारअवरोध एवं सुधार

(Mis-communication : Barriers and Improvements)

सचार पूर्ण एवं सफल तभी माना जाता है जब प्रेषक द्वारा प्रेषित विचार अथवा सूचना प्राप्तकर्ता तक उसा रूप म एवं उसी भावना से पहँच जाती है. जिस रूप में प्रेषक पहुंचाना चाहता है। परन्त । व्यवहार में अनेक कारणों एवं बाधाओं के कारण प्रेषक द्वारा प्रेषित सन्देश अपने मूल रूप एवं भावना के साथ प्राप्तकर्ता तक नहीं पहँच पाता है। संचार के मार्ग में आने वाली बाधाएँ जिनके कारण सन्देश अपना स्वरूप खा दता है. संचार अवरोध कहलाती हैं। इन बाधाओ के कारण सन्देश का रूप पूर्णतया बदल जाता है जिससे संचार का मूल उद्देश्य ही खत्म हो जाता है। कभी-कभी इसके परिणाम अत्यन्त अनथकारा एव भयंकर होते हैं जिसके कारण सम्प्रेषक तथा सन्देश प्राप्तकर्ता दोनों को ही समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ये रूकावटें संचार को अपूर्ण, अप्रभावी तथा कुछ सीमा तक अर्थहीन बना देती हैं।

Business mis Communication Barriers

भ्रमित संचार (Mis-Communication)

जब प्रेषक द्वारा प्रेषित सन्देश किन्हीं कारणों से अपने मूल स्वरूप एवं भावना के साथ सन्देश। प्राप्तकर्ता तक नहीं पहँच पाता है तथा प्रेषित सन्देश का रूप विकृत हो जाता है और वह अपना। वास्तविक अर्थ खो देता है तो इसे मिथ्या बोधित अथवा भ्रमित संचार कहते हैं। इसकी प्रमुख परिभाषाएँ। निम्नलिखित हैं

मित्तल एवं गर्ग के अनुसार, “अनेकानेक अवरोधों के कारण से जब प्रेषक द्वारा प्रेषित सन्देश अपने मूल रूप में प्राप्तकर्ता तक नहीं पहुंच पाता, तो इस प्रकार संचारित विकृत सन्देश ही भ्रमित संचार कहलाता है।”

निष्कर्षः संचार का एक विनाशित रूप भ्रमित संचार है। जिस सन्देश का संचार करना है वह संचारित नहीं हो पाता और सन्देश का एक बाधित रूप संचारित हो जाता है।

भमित संचार या अवरोध की परिस्थितियाँ

(Circumstances of Communication Barriers)

वे परिस्थितियाँ जो संचार अवरोध उत्पन्न करती हैं, निम्नलिखित प्रकार हैं

(1) सन्देश के विकसित होने सम्बन्धी कठिनाइयाँ (Problems in Developing the Message)-जब प्रेषित किये जाने वाले सन्देश को तैयार या विकसित किया जाता है उस दौरान कुछ समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। विशेष रुप से बाधा तब उत्पन्न होती है जब सम्प्रेषक में सन्देश की विषय-सामग्री के परिप्रेक्ष्य में निर्णय क्षमता का अभाव होता है एवं यह स्थिति तब और बिगड़ती जाती है। जब सम्प्रेषक का सम्प्रेषणग्राही के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध नहीं होता है। इनमें आपस में सन्देश के आदान-प्रदान के दौरान भावनात्मक संघर्ष हो, तो इस स्थिति में सम्प्रेषक अपने विचारों को व्यक्त करने में कठिनाई महसूस करता है। यदि इन समस्याओं का निराकरण नहीं किया जाता तो सन्देश का वास्तविक स्वरुप बदल जाता है।

(2) विचारों की अभिव्यक्ति सम्बन्धी कठिनाइयाँ (Difficulty in expressing ideas)-यदि सम्प्रेषक/सम्प्रेषणग्राही में लिखने-बोलने की क्षमता का अभाव होता है या उनमें बोलने/लिखने के पर्याप्त अनुभव की कमी होती है तो सम्प्रेषण प्रक्रिया के दौरान प्रभावपूर्ण सम्प्रेषण सम्भव नहीं होता है। अधिकांश व्यक्तियों में शब्दकोष का अभाव तथा व्याकरण के प्रयोग व शैली का अभाव होता है जिससे ये लिखने/विचार व्यक्त करने/समूह में भाषण या व्याख्यान देने से डरते हैं जिससे सम्प्रेषण प्रक्रिया में कठिनाई उत्पन्न होती है।

(3) सन्देश/सूचना के प्रसारण सम्बन्धी कठिनाइयाँ (Problems in Transmitting the Message) एक सम्प्रेषण प्रक्रिया में बाधा तब उत्पन्न होती है जब सम्प्रेषक व प्राप्तकर्ता के मध्य संचार के समय संचार माध्यम में कई भौतिक कमियाँ उत्पन्न हो जाती हैं जैसे टेलीफोन का काम न करना. माध्यम का सही न जुड़ना, कमजोर ध्वनि या लिखित सामग्री जिसे पढ़ने में कठिनाई हो इत्यादि। इसके अतिरिक्त शोर (Noise), सम्प्रेषण के संचारण में बाधा उत्पन्न करता है। इसके अतिरिक्त जब । सम्प्रेषण प्रक्रिया में दो प्रतिस्पर्धी सन्देश सम्प्रेषणग्राही के ध्यान को बॉट देते हैं या जब सन्देश का अर्थ अनुकूल नहीं होता तब सम्प्रेषण के प्रसारण में बाधा उत्पन्न होती है।

(4) सन्देश की प्राप्ति सम्बन्धी कठिनाइयाँ (Problems in Receiving सम्भषण आक्रया म सन्देश के प्रसारण के दौरान सन्देशग्राही का ध्यान प्रतियागा सन्दरा, अत्यधिक शार, सन्दशग्राही के स्वास्थ्य इत्यादि के कारण बॅट जाता है तो सन्दशा बाधाएँ उत्पन्न होती हैं। कभी-कभी सम्प्रेषक/सन्देशग्राही के दृष्टि दोष, श्रव्य दाष सन्देश की प्राप्ति में बाधाएँ उत्पन्न होती हैं।

(5) सन्दश की व्याख्या सम्बन्धी कठिनाइयाँ (Problems in Interpreting the Message)-यह कठिनाई तब उत्पन्न होती है जब सम्प्रेषण प्रक्रिया अपना पूर्ण रुप धारण करन का अवस्था म हाता हा यदि सन्देश प्राप्तकर्ता व सम्प्रेषक की पष्ठभमि, शब्द कोष व उसकी भावनात्मक स्थात में अन्तर हो तो सम्प्रेषण प्रक्रिया के दौरान सन्देश/सचना का अधिकांश हिस्सा कहा खा जाता है। या उसका क्षय हो जाता है। यह भी सम्भव है कि उसका मौलिक स्वरुप पूर्णत: बदल जाये।

(6) सम्प्रेषक सन्देश प्राप्तकर्ता के मध्य विभिन्नताओं सम्बन्धी कठिनाइयाँ (Differences between Sender and Receiver)-किसी भी सम्प्रेषण प्रक्रिया के अपूर्ण रहने का सबसे बड़ा कारण सम्प्रेषक व सन्देशग्राही के मध्य पायी जाने वाली विभिन्नताओं. जैसे एक दूसरे के प्रात अनामता, आयु/जाति/लिंग/संस्कृति/सम्प्रदाय सम्बन्धी विभिन्नताएँ उपस्थित होती हैं। उक्त अन्तर सन्देश के सचारण को कठिन बना देते हैं। उचित व सफल सम्प्रेषण के लिए हमें व्यक्तियों की आवश्यकताओं/प्रतिक्रियाओं को समझने के अतिरिक्त उनमें विश्वसनीयता की स्थापना करना आवश्यक होता है।

किसी सम्प्रेषण प्रक्रिया में अवरोध की उत्पत्ति की प्रक्रिया को समझने के उपरान्त सम्प्रेषक व सन्देशग्राही के बीच सन्देश के प्रसारण/संचारण में आने वाली रुकावटों के सन्दर्भ में चर्चा करेंगे क्योंकि ये अवरोध/रुकावटें एक संगठन/व्यवसाय में प्रबन्धकीय कठिनाइयों या जटिलाताओं को उत्पन्न करती हैं।

Business mis Communication Barriers

संचार सम्प्रेषण के अवरोध/बाधाएँ

(Barriers of Communication)

सम्प्रेषण के अवरोधों को उनकी प्रकृति के आधार पर निम्नांकित प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है

1 भाषा सम्बन्धी अवरोध (Sematic/Language Barriers)

2. भौतिक एवं यान्त्रिक अवरोध (Physical or Mechanical Barriers)

III. संगठनात्मक अवरोध (Organisational Barriers)

1 व्यक्तिगत अवरोध (Personal Barriers)

2. भावनात्मक अवरोध (Emotional Barriers) संचार सम्प्रेषण के अवरोध/बाधाओं का चार्ट अगले पेज पर देखें।

Business mis Communication Barriers

(1) भाषा सम्बन्धी बाधाएँ

(Sematic Barriers)

इस प्रकार की बाधाएँ एवं रूकावटें उन कारणों से उत्पन्न होती हैं जिनका सम्बन्ध भाषा से होता है। संचार में प्रयक्त शब्दों, चिन्हों तथा ऑकड़ों की प्राप्तकर्ता द्वारा अपने अनुभव के आधार पर व्याख्या की जाती है, जिससे शंका की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। विभिन्न शब्दों और चिन्हों के विभिन्न अर्थ निकालने, खराब शब्दावली एवं व्याकरण के अधूरे ज्ञान के कारण इस प्रकार की बाधाएँ उत्पन्न होती हैं। भाषा सम्बन्धी प्रमुख बाधाएँ निम्नलिखित हैं

अनेकार्थी शब्दों का प्रयोग (Use of different context words)-जब संचार में ऐसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है जिनके अनेक अर्थ हो सकते हैं तो यह हो सकता है कि प्रेषक ने जिस । अर्थ में शब्द का प्रयोग किया है, प्राप्तकत्ता उसको उसी रूप में न समझकर कोई अन्य अर्थ समझ ले। ऐसी स्थिति में संचार पूर्ण और सफल नहीं हो सकेगा। ‘मर्फी’ के अनुसार अंग्रेजी शब्द RUN के 110 अर्थ निकाले जा सकते हैं। अत: अनेकार्थी शब्दों के प्रयोग के कारण संचार के मार्ग में बाधा उत्पन्न हो जाती है।

Business mis Communication Barriers

(ii) तकनीकी भाषा का प्रयोग (Use of Technical Language)-कुछ तकनीकी व विशिष्ट समूह वर्ग के व्यक्ति, जैसे-डाक्टर, इंजीनियर अपनी विशिष्ट भाषा शैली का प्रयोग करते हैं। इस विशिष्ट भाषा का संचार इस शैली से अपरिचित सम्प्रेषणग्राही के लिए कई प्रकार की समस्याएँ उत्पन्न करता है, क्योंकि इनका प्रसारण/संचारण व समझ प्रत्येक व्यक्ति के लिए आसान नहीं होता। अत: तकनीकी भाषा/विशिष्ट भाषा शैली, सम्प्रेषण में बाधा उत्पन्न करती है।

(iii) अस्पष्ट मान्यताएँ (Unclarified Assumptions)-प्रायः सम्प्रेषण इस मान्यता के आधार । पर किया जाता है कि सम्प्रेषणग्राही सम्प्रेषण की आधारभूत पृष्ठभूमि से पूर्णत: परिचित है, परन्तु । अधिकांश स्थितियों में यह मान्यता गलत सिद्ध हो जाती है। इसलिए सम्प्रेषणग्राही को सन्देश की। विषय-वस्त क्षेत्र के सम्बन्ध में जानकारी का पूर्वानुमान अत्यन्त आवश्यक है अर्थात सम्प्रेषण क्रिया में। सन्देश में निहित मान्यताओं की स्पष्टता सम्प्रेषणग्राही हेतु अत्यन्त अनिवार्य है।

(iv) अस्पष्ट पूर्व धारणाएँ (Uncleared Pre-concepts)-प्रत्येक सन्देश प्रायः अस्पष्ट पूर्व। धारणाओं से परिपूर्ण होता है जो कि सम्प्रेषण में बाधाएं उत्पन्न करता है, क्योंकि सम्प्रेषक सन्देश में समाहित समस्त बातों को विस्तृत जानकारी प्रेषकग्राही को नहीं देता बल्कि वह गट – सन्देशग्राही इन बातों को स्वयं समझ पाने में सक्षम है।

(v) त्रुटिपूर्ण शब्द में आभव्यक्त सन्देश (Wrongly Expressed Message)-अर्थहीन, निर्बल शब्दों में अभिव्यक्त सन्देश सदव सम्प्रेषण का अर्थ बदल देता है। अतः ऐसी दशा में सदैव सन्देशकी प्रबल सम्भावना रहती है। यह स्थिति तब और भी अधिक जटिल हो जाती है. जबकी गलत व्याख्या की प्रबल सम्भावना रहती है।

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 (II) भौतिक एवं यान्त्रिक अवरोध

(Physical or Mechanical Barriers)

दोषपूर्ण भोतिक एवं यान्त्रिक व्यवस्था के कारण भी संचार में अवरोध उत्पन्न होता है। प्रमुख भौतिक एवं यान्त्रिक अवरोध निम्नलिखित प्रकार हैं

(i) शार (Noise)-शोर की परिभाषा एक ऐसे पटती तत्व के रूप में की जा सकती है जो प्रेषक अथवा प्राप्तकत्ता की एकाग्रता भंग कर देता है तथा उन्हें सन्देश पर ध्यान केन्द्रित करने से रोकता है। शोर के कारण संचार का प्रवाह बाधित होता है जिससे सन्देश अपने पर्ण एवं सही अर्थ में प्राप्तकत्ता तक नहीं पहुंच पाता। मानवीय शोर, यातायात के कारण शोर, बिजली के पंखे, कूलर अथवा अन्य किसी यंत्र के कारण शोर, मशीनों का शोर, खराब टेलीफोन लाइन आदि शोर के प्रमुख कारण हैं। मानसिक परेशानी भी सन्देश को सुनने एवं समझने में बाधा उत्पन्न करती है।

(ii) माध्यम में खराबी (Defect in Medium)-जिस यंत्र को संचार के माध्यम के रूप म चुना गया है, यदि उसमें गड़बड़ी हो जाये तो इससे संचार बाधित होता है। टेलीफोन लाइन, टेलेक्स मशीन में खराबी अथवा ध्वनि प्रसारण यंत्र (माइक) का ठीक से काम न करना आदि माध्यम में खराबी के उदाहरण है।

(iii) समय एवं दूरी (Time and Distance)-कारखानों में प्राय: विभिन्न पालियों में कार्य होता है तथा प्रत्येक पाली में स्टाफ प्रायः बदल जाता है। इस समय अवरोध के कारण उचित प्रकार से संचार नहीं हो पाता। इसी प्रकार यदि सन्देश भेजने एवं प्राप्त करने वाले के बीच दूरी अधिक है तो यह भी संचार में रूकावट का कारण बन सकता है। यद्यपि आधुनिक युग में सम्प्रेषण के शीघ्रगामी साधनों जैसे टेलीफोन, टेलेक्स, इन्टरनेट आदि ने इस दूरी को कम कर दिया है, लेकिन जिन क्षेत्रों में इनका प्रयोग नहीं हुआ है, वहाँ पर यह समस्या अभी भी विद्यमान है।

(iv) अपर्याप्त अथवा जरूरत से अधिक सूचना (Inadequate or Overloaded Information)-जिस प्रकार अपर्याप्त सूचना सन्देश को पूरा करने में असफल होती है उसी प्रकार जरूरत से अधिक सूचना सन्देश के लक्ष्य को ही समाप्त कर देती है। अत्यधिक सन्देश लगातार प्राप्त होने पर प्रभावी श्रवण नहीं हो पाता तथा थकान, बेचैनी आदि पैदा हो सकती है जो कि प्रभावी संचार में बाधा उत्पन्न करती है।

(iv) कम रोशनी (Poor Lighting)-खराब अथवा कम रोशनी के कारण भी प्रायः लिखित अथवा सांकेतिक संचार में बाधा उत्पन्न होती है।

(v) हैलो प्रभाव (Hallo Effect)-एक सम्प्रेषण प्रक्रिया में जब दो या दो से अधिक सन्देश प्राप्तकर्ता क्रियाशील होते हैं, तब एक सम्प्रेषक द्वारा प्रेषित सन्देश के आधार पर अपनी प्रतिक्रियाएँ व्यक्त की जाती हैं। सम्प्रेषण प्रक्रिया की इस दशा में वाद-विवाद की सम्भावना बढ़ जाती है. क्योंकि दोनों सन्देश को किस स्वरुप में प्रेषित/ग्रहित करते हैं यह उन दोनों के आपसी विश्वास पर निर्भर होता है। इसे ‘हैलो प्रभाव’ कहा जाता है।

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(III) संगठनात्मक अवरोध

(Organisational Barriers)

दोषपूर्ण संगठन ढाँचे तथा दोषपूर्ण नीतियों एवं नियमों के कारण, संचार के मार्ग में आने वाली बाधाओं को संगठनात्मक अवरोध कहा जाता है। प्रमुख संगठनात्मक अवरोध निम्नलिखित प्रकार हैं

(i) संस्थान के नियम और व्यवस्था (Organisational Regulatory Policies)-संस्था के कठोर नियम तथा नीतियाँ भी संचार के स्वतन्त्र प्रवाह में बाधा उत्पन्न करते हैं। यदि संस्थान में लिखित सन्देश की नीति लाग है तो इससे सन्देश भेजने में देरी हो जाती है और कुछ ऐसे सन्दश जन्ह तुरन्त प्रतिक्रिया की आवश्यकता होती है उनमें अनावश्यक विलम्ब हो जाता है। कभी-कभी ऐसा भी होता है। कि महत्त्वपूर्ण सन्देश छट जाता है अथवा उनमें हेर-फेर कर दी जाती है, इससे संचार के मार्ग में। अवरोध उत्पन्न हो जाता है।

(ii) गलत माध्यम का चनाव (Selection of Wrong Medium)-जहाँ उपयुक्त संचार माध्यम, सचार का प्रभावशीलता को बढ़ा देता है वहीं गलत माध्यम का चुनाव संचार में अवरोध का कार्य करता है। प्रत्येक माध्यम प्रत्येक अवस्था में उचित नहीं हो सकता। यदि बिक्री मैनेजर द्वारा आमन-सामने बातचीत की संचार व्यवस्था की जाती है तो वह टेलीफोन से अधिक उचित होगी। इसी प्रकार किसी कर्मचारी के श्रेष्ठ निष्पादन पर खुश होकर प्रबन्धक यदि शाबाशी देना चाहता है तो चपपरासी के हाथ पत्र भेजना ठीक नहीं होगा, बल्कि उसे स्वयं व्यक्तिगत रूप से कर्मचारी को बधाई। देनी चाहिए।

(iii) दीर्घ सोपान श्रृंखला (Long Managerial Levels)-किसी संगठन में जितने अधिक प्रबन्ध के स्तर होंगे, संचार का मार्ग उतना ही जटिल हो जायेगा। सोपान शृंखला का लम्बा होना प्रभावी संचार में एक बड़ा अवरोध है क्योंकि इससे प्रबन्धक एवं श्रमिकों के मध्य दूरी बढ़ जाती है।

(iv) स्थान सम्बन्धी खराब व्यवस्था (Poor Spatial Arrangements)-कार्यालय में कर्मचारियों के बैठने की व्यवस्था, आन्तरिक साज सज्जा, आवागमन का रास्ता आदि तत्त्वों पर भी संचार। प्रक्रिया निर्भर करती है। यदि आन्तरिक साज-सज्जा ठीक नहीं है तो प्रेषक एवं प्राप्तकर्ता के बीच सीधा सम्पर्क नहीं हो पाता जिससे संचार में अवरोध उत्पन्न होता है।

(v) संचार उपकरणों एवं सामग्री की कमी (Lack of Communication Objects)-यदि संगठन में संचार सामग्री एवं उपकरणों जैसे स्टेशनरी, कम्प्यूटर, इन्टरनेट, टेलीफोन आदि की कमी है तो इससे संचार के मार्ग में बाधा उत्पन्न होती है।

(IV) व्यक्तिगत अवरोध

(Personal Barriers)

सम्प्रेषण एक अन्तर्वैयक्तिक सम्बन्धों की प्रक्रिया है। एक सम्प्रेषण प्रक्रिया में सन्देश प्रेषक व सन्देश प्राप्तकर्ता के बीच विभिन्न मात्राओं व स्तरों में अन्तर्वैयक्तिक सम्बन्ध निहित होता है। उनका व्यवहार, शारीरिक हाव-भाव, रुचि आदि सन्देश के वास्तविक स्वरूप को बदलने की क्षमता रखते हैं। ऐसे अवरोध जिनका प्रत्यक्ष सम्बन्ध प्रेषक व प्राप्तकर्ता से होता है, उन्हें व्यक्तिगत अवरोध कहते हैं। संचार के मार्ग में प्रमुख व्यक्तिगत अवरोध निम्नलिखित प्रकार हैं

(i) स्थिति बोध या पद स्थिति (Status Consciousness)-संगठन में व्यक्ति के पद की स्थिति प्रभावी संचार के मार्ग में बाधा उत्पन्न करती है। उच्च अधिकारी, अधीनस्थ अधिकारियों से इसलिए विचार-विमर्श नहीं करते क्योंकि उन्हें लगता है कि ऐसा करने से उनकी प्रतिष्ठा कम हो जाएगी तथा अधीनस्थ अधिकारी अपने उच्च अधिकारी से इसलिए विचार-विमर्श नहीं करते कि कहीं वे अप्रसन्न न हो जाएँ। यह स्थिति संचार में अवरोध उत्पन्न कर देती है।

(ii) भावनाएँ (Emotions)-सन्देश प्रेषक तथा प्राप्तकर्ता की नकारात्मक भावनाएँ जैसे घृणा, गुस्सा, बातचीत में टोकने का दृष्टिकोण इत्यादि भी संचार में बाधा उत्पन्न करते हैं। उत्तेजित, घबराए हुए, डरे हए एवं विचलित व्यक्ति उचित ढंग से नहीं सोच सकते तथा अपने सन्देश को उचित ढंग से प्रेषित नहीं कर सकते। इसी प्रकार सन्देश प्राप्तकर्ता के मूड पर भी सन्देश का प्रभावी संचार निर्भर करता है। असामान्य मूड होने पर वह सन्देश को प्रभावी ढंग से ग्रहण नहीं कर पाएगा।

(iii) व्यवहार एवं दृष्टिकोण (Behaviour and Attitudes)-सन्देश प्रेषक तथा प्राप्तकर्ता के व्यवहार एवं दृष्टिकोण भी प्रभावी संचार को प्रभावित करते हैं। यदि कोई सन्देश प्राप्तकर्ता के व्यवहार। एवं दष्टिकोण से मेल खाता है तो उस सन्देश पर उसकी प्रतिक्रिया सकारात्मक होगी तथा यदि सन्देश। उसके व्यवहार एवं दृष्टिकोण के विपरीत है तो उसकी प्रतिक्रिया नकारात्मक होगी। इस प्रकार सन्देश प्रेषक एवं सन्देश प्राप्तकर्ता का व्यवहार एवं दृष्टिकोण अलग-अलग होने पर संचार के मार्ग में बाधा उत्पन्न होती है।

(iv) उच्च अधिकारियों का व्यवहार (Attitude of Senior Officers)-जब व्यवसायम अधिकारी अपने अधीनस्थों पर अविश्वास करते हैं अथवा उनकी क्षमता पर संदेह करते हैं तो वे उनके साथ पूर्ण रूप से विचार विमर्श नहीं करते। इससे प्रभावी संचार में अवरोध की स्थिति उत्पन्न हा जाता

(v) परिपक्व मूल्यांकन करना (Unmature Evaluation)-कभी-कभी सूचनाओं के सम्प्रेषण में अतिशय शीघ्रता की जाती है तथा प्रेषक की सम्पूर्ण सूचनाओं को प्राप्त किये बिना ही प्रतिपुष्टि दे दी जाती है। यह मान लिया जाता है कि सम्प्रेषण पूर्ण है। ऐसा करना प्रेषक के मन में भ्रम उत्पन्न कर सकता है। प्राप्तकर्ता को वह एक लापरवाह और गैर-जिम्मेदार समझने लगता है। ऐसे जल्दबाज मूल्यांककों से सन्देश प्रेषक सम्प्रेषण करने में शंकाग्रस्त रहता है, क्योंकि वह सोचता है कि इसने ठीक से समझा भी या नहीं।

(V) भावनात्मक अवरोध

(Emotional/Perceptional Barriers)

भावनात्मक अवरोध से अभिप्राय एक व्यक्ति के दृष्टिकोण/बोधता/नजरिया इत्यादि में कमी के पाये जाने से है, क्योंकि सम्प्रेषण मूलतः दोनों पक्षों, जैसे, सम्प्रेषक व सन्देशग्राही की मानसिक दशा पर निर्भर करता है। यदि सम्प्रेषक या सन्देशग्राही किसी में भी घबराहट/चिन्ता/उत्तेजना/डर/अधीनता उपस्थित है तो न तो सम्प्रेषक सन्देश को अच्छी तरह से संचारित कर सकेगा और न ही सन्देशग्राही सन्देश के वास्तविक स्वरुप व अर्थ से भली-भाँति परिचित हो पायेगा। ऐसी स्थिति में सन्देश अपनी मौलिकता खो देगा तथा सन्देश सही ढंग से प्रेषित नहीं हो पायेगा व सम्प्रेषित सन्देश में सम्बन्धित व्यक्ति की स्थिति/दशा की झलक दिखाई देगी। सम्प्रेषण प्रक्रिया में भावनात्मक अवरोधक तत्व निम्नलिखित हैं

(i) अपरिपक्व मूल्यांकन (Unmature Evaluation)-अधिकतर सन्देशग्राही सन्देश ग्रहण करने से पूर्व ही बिना प्रतीक्षा किये अपनी सुविधानुसार सन्देश का अर्थ निकाल लेते हैं जिससे सन्देश में भ्रम उत्पन्न हो जाता है अर्थात् सन्देश के मूल्यांकन में जल्दबाजी एक सन्देश प्राप्तकर्ता के लिए हानिकारक तो है ही बल्कि इससे सम्प्रेषक भी हतोत्साहित हो जाता है।

(ii) भावनात्मक दृष्टिकोण (Emotional Attitude) अधिकांश व्यक्ति स्वभाव से भावनात्मक होने के कारण अपना मानसिक सन्तुलन खो देते हैं जिससे उनके वरिष्ठ या अधीनस्थ कर्मचारी क्रोधित हो सकते हैं, परिणामस्वरुप सम्प्रेषण भ्रमित हो जाता है। यदि भावनाओं का सम्प्रेषक/प्राप्तकर्ता पर आधिपत्य है तो सन्देश सदैव प्रतिकूल अर्थ ग्रहण करेगा।।

(iii) सम्प्रेषण पर अविश्वास (Distrust on Communication) एक संगठन/व्यवसाय में कई वरिष्ठ या अधीनस्थ कर्मचारी बदसलूकी के लिये जाने जाते हैं, अतः सम्प्रेषण प्रक्रिया में इस प्रकार के व्यक्तियों द्वारा सम्प्रेषित सन्देश धीरे-धीरे सम्बन्धित व्यक्तियों को हतोत्साहित करता है और भविष्य में इनके द्वारा प्रेषित सन्देशों को गम्भीरता से नहीं लिया जाता है अर्थात सम्प्रेषणग्राही का सम्प्रेषण के प्रति अविश्वास सम्प्रेषण के प्रभाव को नष्ट कर देता है।

(iv) चयनात्मक दृष्टिकोण (Selective Attitude) एक संगठन/व्यवसाय में व्यक्ति का चयनात्मक नजरिया सम्प्रेषण में बाधा उत्पन्न करता है। यह सामान्य मान्यता है कि एक सफल सम्प्रेषण प्रक्रिया में सम्प्रेषक व प्राप्तकर्ता दोनों का खुला दिमाग (Onen Mind) होना अनिवार्य है। यदि व्यक्ति ‘अपने निजी स्वार्थों/उद्देश्य के प्रति अधिक सजग होंगे अर्थात संकीर्ण मानसिकता वाले होंगे तो सम्प्रेषण प्रभावशाली नहीं हो सकेगा अर्थात व्यक्ति का चयनात्मक नजरिया (दृष्टिकोण) सम्प्रेषण के अस्तित्व का। समाप्त कर देता है।

(v) अल्प धारणशीलता (Less Grasping Power)-अल्प या न्यून धारणशीलता से अभिप्राय सम्प्रषण प्रक्रिया में सन्देश/सूचना के प्रत्येक चरण में उसकी मौलिकता का निरन्तर ह्रास/क्षति से है। डाल्मर फिशर का यह अनुमान है कि एक संगठन या व्यवसाय में मौलिक सन्देश का 20 प्रतिशत हिस्सा ही विभिन्न अवरोधों की उपस्थिति के कारण प्राप्तकर्ता तक पहुँचता है। वे इस बात को भी स्पष्ट करते हैं। कि एक संगठन के प्रबन्धन में एक मौलिक सन्देश निदेशक मण्डल से उपाध्यक्ष तक पहुँचने में लगभग 37% का क्षय हो जाता है। सन्देश या सूचना में निरन्तर क्षय का होना सम्प्रेषण के अन्य अवरोधों की उपस्थिति के अतिरिक्त सन्देश की ग्राह्यता के प्रति हमारी निष्क्रियता व लापरवाही का होना है।

(vi) अनावश्यक मिश्रण विरुपण (Unuseful Mixing and Killing of Originality)-एक संगठन/व्यवसाय में प्रत्येक कर्मचारी अपने निहित दृष्टिकोण की समर्थता के अनुरुप सन्देश का अवलोकन व मूल्यांकन कर उसके अर्थ को ग्रहण करता है। कई बार जब सन्देश सम्प्रेषण प्रक्रिया के विभिन्न चरणों से होकर गुजरता है तो उसमें व्यक्ति अपने निजी स्वार्थों के कारण सन्देश में अनावश्यक मिलावट कर उसके मौलिक स्वरुप को विरुपित कर देता है जिससे सन्देश अपने मौलिक स्वरुप व विश्वसनीयता को खो देता है।

(v) बुद्धि की वास्तविक भिन्नताएँ (Different comprehension of reality)-सन्देश सम्प्रेषक और सन्देश प्राप्तकर्ता की बुद्धि में भिन्नताएँ हो सकती हैं जो स्वाभाविक भी हैं। इन भिन्नताओं को समाप्त करके ही सम्प्रेषण को प्रभावी बनाया जा सकता है। यदि बुद्धि की भिन्नता को ध्यान में नहीं रखा जायेगा तो सम्प्रेषण क्रिया बाधित होगी। उदाहरण के लिये एक अध्यापक और छात्र की बुद्धि में बहुत भिन्नता होती है। अध्यापक विषय का ज्ञाता होता है तो छात्र विषय से बिल्कुल अनभिज्ञ। ऐसे में यदि अध्यापक अपना अध्यापन यह मानकर करता है कि छोटी-छोटी बातों को तो छात्र जानते ही होंगे। इन्हें बताने की कोई आवश्यकता नहीं है तो ऐसा अध्यापक कभी भी छात्रों में लोकप्रिय नहीं हो सकता। अध्यापक को तो चाहिये कि वह स्वयं को अनभिज्ञ मानकर अपने ज्ञान को छात्रों के मध्य बाँटे तभी छात्र को विषय की पूरी जानकारी हो पायेगी और अध्यापक तथा छात्र के मध्य सही सम्प्रेषण होगा।

अन्य बाधाएँ-एक सम्प्रेषण प्रक्रिया में सन्देश के प्रवाह के लिए अनुचित माध्यमों का प्रयोग, दोषपूर्ण यांत्रिक साधन, सम्प्रेषक का दबाव व सम्प्रेषक/प्राप्तकर्ता की सामाजिक-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि की विभिन्नताएँ आदि सम्प्रेषण के प्रभाव को कम कर देती हैं।

संचार अवरोधों को दूर करने के लिए सुझाव

(Suggestions For Improvement of Communication Barriers)

आधुनिक व्यावसायिक जगत् में सम्प्रेषण अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। एक संगठन की उत्तरोत्तर उन्नति के लिए प्रत्येक स्तर पर सम्प्रेषण को प्रभावशील किया जाना चाहिए। इस हेतु आवश्यक है कि सम्प्रेषण क्रिया के मार्ग में आने वाले अवरोधों को दूर किया जाये। सम्प्रेषण प्रक्रिया को सुधार कर अधिक प्रभावशील बनाने हेतु सम्प्रेषण में आने वाली बाधाओं के निराकरण के लिये निम्नलिखित सुझाव हैं

(1) सन्देश की स्पष्टता एवं पूर्णता (Clarity and Completeness of Message)-सम्प्रेषित किया जाने वाला सन्देश उद्देश्य की दृष्टि से पूर्ण एवं स्पष्ट होना चाहिए। सन्देश में भ्रमपूर्ण, अनेकार्थी शब्दों, मुहावरों एवं तकनीकी शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। सन्देश जहाँ तक सम्भव हो लिखित तथा संक्षिप्त होना चाहिए।

(2) सरल स्पष्ट भाषा का प्रयोग (Use of Easy and Clear Language)-सम्प्रेषित सन्देश में प्रयक्त भाषा अत्यन्त सरल, समझने योग्य व प्राप्तकर्ता के दृष्टिकोण से समझने योग्य होनी चाहिए, ताकि प्राप्तकर्ता सन्देश को उसके मोलिक स्वरूप में ग्रहण कर उस सन्देश के वास्तविक अर्थ को समझ सके।

(3) शनिक संचार उपकरणों की उपलब्धता (Availability of Modern Communication Equipments)-सगठन में आधुनिक संचार उपकरणों जैसे कम्प्यटर टेलीफोन आदि को पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध कराया जाना चाहिए। इससे संचार अवरोधों को दर करना सम्भव हो सकेगा।

(4) चार तकनीक (Appropriate Communication Technique)-सन्देश के अर्थ नहीं यदि यह प्राप्तकर्ता तक न पहुँचे। प्रेषक को यह ध्यान रखना चाहिए कि सम्प्रेषण पर नियन्त्रण तथा व्यावसायिक संचार कब, क्या, कैसे, किससे और क्या कहना है। इन बिन्दुओं पर पूर्व योजना बनाके ही संचार सफल हो सकता है। यही समुचित सन्देश वाहन तकनीक है।

(5) भावनाओं पर सम्पूर्ण नियन्त्रण (Control over Emotions)-एक सफल  भावनाओं पर दोनों ही पक्षों सम्प्रेषक एवं प्राप्तकर्ता का नियन्त्रण होना आवश्यक हा भावनाओं पर नियन्त्रण न होने से सन्देश के प्रवाह में बाधा उत्पन्न होगी।

(6) प्रबन्धका तथा कर्मचारियों के बीच मधुर सम्बन्ध (Cordial Relations Between Management)-संचार के अवरोधों को दूर करने के लिये यह अत्यन्त आवश्य प्रबन्धको तथा कर्मचारियों के बीच मधर सम्बन्ध हों। औद्योगिक सम्बन्ध मधुर हान पर को काफी हद/सीमा तक दूर किया जा सकता है। मधुर सम्बन्ध हों। औद्योगिक सम्बन्ध मधुर होने पर संचार अवरोधों

(7) संचार के उचित माध्यम का चुनाव (Selection of Appropriate Medium Communication)-संचार अवरोध को दर करने के लिये संचार के उचित माध्यम का चुनाव किया जाना चाहिए। विचार-विमर्श के लिये और प्रोत्साहन के लिए आमने-सामने का संचार उत्तम है। अधिक सध्या म निरक्षर या अशिक्षित लोगों को सचना देने के लिए मौखिक या दष्टि सम्बन्धी संचार आघक उपयोगी सिद्ध होता है।

(8) स्वस्थ वातावरण (Synergistic Environment)-संचार आरम्भ करने से पूर्व सन्देश प्रेषक तथा प्राप्तकर्ता को स्वस्थ वातावरण पैदा करना चाहिए क्योंकि सहयोग से सहयोग पनपता है और विश्वास से विश्वास। उच्च प्रबन्ध का यह उत्तरदायित्व है कि वह स्वस्थ वातावरण बनाने के लिये पहल करे। स्वस्थ वातावरण में संचार प्रभावपर्ण ढंग से हो सकता है।

(9) दो तरफा संचार को बढ़ावा (Adopt two-way Communication)-एक तरफा संचार से गलतफहमियाँ उत्पन्न हो सकती हैं, इसलिए संचार दो तरफा तथा उचित प्रत्युत्तर के साथ होना चाहिए। दो तरफा संचार के द्वारा सन्देश को तोड़-मरोड़कर पहुँचने से रोका जा सकता है।

(10) प्रभावपूर्ण श्रवणता (Effective Listening)-एक प्रभावी सम्प्रेषण मूलत: प्रभावपूर्ण श्रवणता पर निर्भर करता है। प्रभावपूर्ण श्रवणता सम्प्रेषक/प्राप्तकर्ता दोनों के लिए आवश्यक है, ताकि सन्देश का वास्तविक स्वरूप व अर्थ प्राप्तकर्ता तक सरलता से प्रवाहित हो सके।

(11) शारीरिक भाषा का प्रभावी प्रयोग (Effective use of Body Language)-संचार करते समय शारीरिक भाषा का प्रभावी प्रयोग करना चाहिए। प्रत्येक सन्देश के साथ सहायक उचित हाव-भाव तथा उचित ध्वनि होनी चाहिए। इससे सन्देश प्राप्तकर्ता उसे ठीक अर्थ में समझ सकेगा।

(12) स्पष्ट उद्देश्य (Clear Objectives)-एक सम्प्रेषण प्रक्रिया में सम्प्रेषक को सर्वप्रथम अपने उद्देश्य को पूर्णतया परिभाषित करना चाहिए अर्थात् सम्प्रेषित सन्देश की विषय-वस्तु, सन्दर्भ व नियम इत्यादि से सम्प्रेषकग्राही को परिचित करा देना उचित होगा, ताकि सम्प्रेषक द्वारा प्रेषित सन्देश को वास्तविक स्वरूप व अर्थ में प्राप्तकर्ता द्वारा ग्रहण किया जाये।

(13) श्रोताओं की सामान्य जानकारी (General Idea about Audience)-एक सम्प्रेषण प्रक्रिया में सम्प्रेषक द्वारा अपने उद्देश्य को स्पष्ट करने के उपरान्त श्रोताओं की स्थिति की जानकारी लेना आवश्यक है अर्थात् श्रोताओं को आपके द्वारा सम्प्रेषित की जाने वाली सन्देश की विषय-सामग्री के बारे में सामान्य जानकारी है या नहीं। वे आपके विषय से कितने परिचित हैं। यदि श्रोताओं से आप पूर्व परिचित हैं, तो सम्प्रेषण में श्रोता सम्बन्धी किसी व्यवधान की उत्पत्ति की सम्भावना कम रहती है, परन्तु यदि आप श्रोताओं से अपरिचित हैं, तो उनके सम्बन्ध में सामान्य जानकारी अर्जित करना आवश्यक है, ताकि सम्प्रेषण प्रक्रिया में सम्प्रेषक व प्राप्तकर्ता परस्पर सहयोगी बनें।

(14) सतत् संचार (Continuous Communication)-विचारों के आदान-प्रदान का सही लाभ प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक है कि सम्बन्धित पक्षों के बीच सतत् अथवा निरन्तर संचार चालू रहना चाहिए जिससे संचार में कोई दरार या त्रुटि न आये।

(15) शोर को न्यूनतम करें (Minimize Noise)-जहाँ तक सम्भव हो सके संचार में उस शोर को कम करने का प्रयास करें जो आपके तथा श्रोताओं के बीच आता है। यदि सम्प्रेषण मौखिक है तो आस-पास के वातावरण से शोर को हटाना या कम करना अत्यन्त आवश्यक है। यदि एक अध्यापक कक्षा में पढ़ा रहा है और विद्यार्थी शोर कर रहे हैं तो उस शिक्षक के पढ़ाने का कोई अर्थ नहीं है। अत: मौखिक सम्प्रेषण को प्रभावी बनाने के लिये शोर को हटाया जाना आवश्यक है।

(16) प्रतिपुष्टि को सुविधाजनक बनाएँ (Facilitate Feedback)-सन्देश को प्रभावी बनाने के लिये सन्देश प्राप्तकर्ता की प्रतिपुष्टि लिये सन्देश प्राप्तकर्ता की प्रतिपुष्टि पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। प्रतिपुष्टि से ही यह जाना जा सकता है कि सन्देश सम्प्रेषण का क्या प्रभाव हो रहा है। श्रोताओं को यह अवसर अवश्य दिया जाना। चाहिए कि वह अपनी प्रतिपष्टि दे सकें। प्रतिपष्टि का उचित प्रयोग करते हए ही सम्प्रेषण क्रिया का आगे बढ़ाना चाहिए। प्रतिपष्टि की सहायता से ही जाना जा सकता है कि श्रोताओं ने सन्देश को समझ लिया है। और स्वीकार कर लिया है अथवा नहीं।

उपर्युक्त उपायों के द्वारा सम्प्रेषण प्रक्रिया को सम्पर्णता प्रदान करने में सहायता मिलती है तथा सन्देश के विकृत होने की सम्भावना कम हो जाती है।

Business mis Communication Barriers

परीक्षा हेत सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(Expected Important Questions for Examination)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
(Long Answer Questions)

1 संचार अवरोधों से आप क्या समझते हैं ? विभिन्न प्रकार के संचार अवरोधों की संक्षेप में व्याख्या कीजिए।

What do you mean by communication barriers ? Explain different types of barriers in brief.

2. संचार (सम्प्रेषण) की प्रमुख बाधाएँ बताइए तथा उन्हें दूर करने के लिये सुझाव दीजिए।

Discuss the main barriers of communication and also suggest measures to remove them.

3. संचार की बाधाओं से आपका क्या अभिप्राय है ? संचार की बाधाओं को दूर करने के उपाय बताइए।

What do you understand by communication barriers ? Explain measures to remove these barriers.

Business mis Communication Barriers

लघु उत्तरीय प्रश्न

(Short Answer Questions)

1 भ्रमित संचार से क्या आशय है ? भ्रमित संचार कैसे उत्पन्न होता है ?

What is meant by Mis-communication ? How does mis-communication arise ?

2. व्यावसायिक सम्प्रेषण के अवरोधों पर एक विस्तृत टिप्पणी लिखिए।

Write a detailed note on the barriers of Business Communication.

3. भाषा किस प्रकार से प्रभावशाली सम्प्रेषण में बाधक सिद्ध होती है ?

How language proves a barrier in effective communication? Explain.

4. सम्प्रेषण की व्यक्तिगत बाधाएँ बताइए।

Explain the personal barriers of communication.

5. सम्प्रेषण की बाधाओं को दूर करने के उपाय बताइए।

Suggest measures to remove barriers of communication.

6. भावनात्मक अवरोध को स्पष्ट कीजिए।

Explain the emotional barriers.

7. संचार के कोई चार अवरोधक तत्व बताइए।

Explain any four barriers of communication.

8. भौतिक अवरोध किन कारणों से उत्पन्न होता है ?

What are the causes of Physical Barriers?

Business misCommunication Barriers

chetansati

Admin

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