BCom 1st Year Business Non Oral Communication Study Material Notes in Hindi

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BCom 1st Year Business Non Oral Communication Study Material Notes in Hindi

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Non Oral Communication
Non Oral Communication

BCom 3rd Year Financial Management Theories of Capital Structure Study Material Notes In Hindi

अशाब्दिक संचार

(Non-Verbal Communication)

ऐसा संचार जिसमें सचनाओं का आदान-प्रदान बिना शब्दों के होता है उसे अणालिक या भाष्येत्तर संचार कहते हैं। इसके अन्तर्गत विचारों, भावनाओं एवं आवश्यकताओं को व्यक्त करने के लिये शब्दों के स्थान पर संकेतों, इशारों तथा हाव-भावों का प्रयोग किया जाता है।

सूचनाओं का आदान-प्रदान आदिकाल से निरन्तर होता चला आ रहा है। आदिकाल में शब्दों का विकास नहीं हुआ था फिर भी आपस में उस समय के लोग अपने भावों को बिना शब्दों के ही व्यक्त कर लेते थे। आज जब इक्कीसवीं शताब्दी में मानवीय सभ्यता अत्यन्त विकसित हो गई है, सूचना संचार के विभिन्न साधन भी विकसित हो गये हैं इसके बावजूद आज भी अशाब्दिक संचार अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है।

अशाब्दिक संचार, शाब्दिक संचार की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली होता है। वह विचार जो हजारों शब्दों द्वारा भी संचारित होने में असमर्थ है वह मात्र एक संकेत, चिन्ह, हाव-भाव द्वारा कुछ पलों में ही संचारित हो जाता है। इस प्रकार संचार का एक शक्तिशाली, स्वाभाविक एवं प्राकृतिक माध्यम अशाब्दिक संचार है। इसको सांकेतिक संचार भी कहते हैं क्योंकि इसमें व्यक्ति अपनी बात दूसरे व्यक्ति या तक पहुँचाने के लिये संकेतों. इशारों तथा हाव-भावों का प्रयोग करता है। इसमें किसी व्यक्ति के भावों को देखकर यह पता चल जाता है कि वह क्या सोच रहा है तथा क्या कहना चाह रहा है। सांकेतिक संचार के अन्तर्गत खशी व्यक्त करने के लिये पीठ थपथपाना या मुस्कुराना आदि आते हैं जबकि क्रोध या नाराजगी व्यक्त करने के लिये मुँह बनाना, दाँत पीसना या माथे पर सलवटें डालना आदि आते हैं।

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रेमण्ड एवं जान के अनुसार, “संचार के वे सभी माध्यम अशाब्दिक संचार में शामिल होते हैं जो न तो लिखित और न ही मौखिक शब्दों में व्यक्त हैं।”

रैलिफ वालडो इमरसन के अनुसार, “जब आँखें एक बात कहती हैं एवं जुबान दूसरी, तो एक व्यवहारिक व्यक्ति आँखों की भाषा पर निर्भर करता है।”2

इस प्रकार स्पष्ट है कि मुँह से एक भी शब्द बोले बिना अपने शरीर के विभिन्न अंगों एवं अवयवों के द्वारा अपने भावों को व्यक्त करना अशाब्दिक या भाष्येत्तर सम्प्रेषण है।

अशाब्दिक संचार के प्रकार

(Types of Non-Verbal Communication)

अशाब्दिक संचार को प्रमुख रूप से चार भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है

(1) शारीरिक भाषा (Body Language),

(2) संकेत भाषा (Sign Language),

(3) पार्श्व भाषा/भाषा प्रतिरूप (Para Language),

(4) सामीप्य भाषा (Proxemies)

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शारीरिक (कायिक या दैहिक) भाषा का अर्थ

(Meaning of Body Language)

शारीरिक भाषा, सांकेतिक संचार का एक महत्त्वपूर्ण माध्यम है। जब किसी सूचना का संचार बिना शब्दों के माध्यम से शरीर के क्रियाकलापों द्वारा प्रेषित किया जाता है या व्यक्त किया जाता है तो ऐसे संचार को शारीरिक भाषा संचार या दैहिक भाषा संचार के नाम से जाना जाता है। शारीरिक भाषा में आन्तरिक भाव स्पष्ट दृष्टिगोचर होते हैं। इसके अन्तर्गत आंखों को घुमाना. चलाना. ताली बजाना, हाथा का। ऊपर-नीचे करना. उंगली दिखाना इत्यादि को शामिल किया जाता है। जैसे क्रिकेट के मैच में छ: रन के इशारे के लिए अम्पायर द्वारा दोनों हाथों को सिर के ऊपर उठाना, यातायात सिपाही द्वारा चौराहे पर रोकने के लिए हाथ को उठाना शारीरिक भाषा के ही उदाहरण हैं। इसे अंग विन्यास या दैहिक भाषा (KINESICS) भी कहा जाता है। इसमें व्यक्ति द्वारा अपने शरीर की क्रियाओं द्वारा अपना संदेश अन्य व्यक्तियों को या समूह को पहुँचाया जाता है।

जे० फास्ट (J. Fast) के अनसार, “अविश्वास के लिए अपनी भौहों को ऊपर चढ़ाना, घबराहट। व परेशानी की दशा में नाक को मलना. स्वयं को संरक्षित करने के लिए अपने हाथों को बांधना, स्वय। को अलग प्रकट करने के लिए कंधों को उचकाना, घनिष्ठता प्रदर्शित करने के लिए पलक झपकाना. घबराहट के लिए उंगलियों को थपथपाना, विस्मरण के लिए माथे पर हाथ मारना इत्यादि क्रियाएँ शारीरिक भाषा कहलाती हैं।”

शारीरिक भाषा मौखिक संचार की पूरक होती है क्योंकि मौखिक सन्देश के साथ जब शारीरिक भाषा का प्रयोग किया जाता है तो सन्देश का अर्थ स्पष्ट हो जाता है। अधिकांश विद्वानों का मत है कि, “किसी सम्प्रेषण क्रिया में शब्द उस सन्देश के 10 प्रतिशत अंश को प्रभावित करते हैं, जबकि 40 प्रतिशत अंश तक आवाज व लय प्रभावित करती है और लगभग 50 प्रतिशत अंश शारीरिक भाषा प्रभावित करती है।” अर्थात् किसी भी सम्प्रेषण प्रक्रिया में लगभग 50 प्रतिशत भाग शारीरिक भाषा के द्वारा प्रभावित होता है तथा शारीरिक भाषा के प्रभाव की अनुपस्थिति सम्पूर्ण सम्प्रेषण प्रक्रिया को अधूरा या अपूर्ण कर देती

शारीरिक भाषा की प्रकृति (Nature of Body Language)-शारीरिक भाषा एक स्वयं सीखी हुई प्रक्रिया है। यह पूर्ण रूप से अनियन्त्रित नहीं है बल्कि सामाजिक व्यवहार द्वारा नियन्त्रित होती है। इसके निम्नलिखित लक्षण हैं

(1) बिना किसी औपचारिक प्रशिक्षण के सीखना (Without any Formal Training)-व्यक्ति शारीरिक भाषा को औपचारिक शिक्षा के बिना ही प्राप्त कर लेता है। हम शारीरिक भाषा को बचपन से ही अनजाने में सीख जाते हैं। सम्भवत: आंशिक रूप से इसी कारण हमें शारीरिक भाषा का प्रयोग करते समय यह भी ध्यान नहीं रहता कि हम शारीरिक संकेतों का भी प्रयोग कर रहे हैं तथा दूसरे व्यक्ति के शारीरिक संकेतों से हम प्रभावित हो रहे हैं। यद्यपि शारीरिक भाषा के प्रति व्यक्ति जागरूक नहीं रहते परन्तु परस्पर वार्तालाप में शारीरिक भाषा का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। बच्चा अपने हावभाव से ही अपने माता-पिता को अपनी जरूरतों का अहसास करा देता है, यह शारीरिक भाषा ही है। अब कुछ बड़े शहरों में अपने व्यक्तित्व के विकास (Personality Development) की शिक्षा के अन्तर्गत शारीरिक भाषा के प्रयोग का भी प्रशिक्षण दिया जाने लगा है।

(2) सामाजिक व्यवहार से नियन्त्रित (Controlled by Social Norms)-यद्यपि शारीरिक भाषा अनियन्त्रित होती है परन्तु इसकी अभिव्यक्ति पर सामाजिक नियमों का प्रभाव पड़ता है जैसे किसी व्यक्ति की मृत्यु पर यदि हमें खुशी भी हो तो भी उसके अन्तिम संस्कार पर हम मुस्कराएँगें नहीं। हमारे देश में स्त्रियों से हाथ मिलाने की परम्परा नहीं है जबकि यूरोप के देशों में कोई प्रतिबन्ध नहीं है। कुछ व्यक्तियों में शारीरिक भाषा को समझने की अधिक दक्षता होती है, जबकि कुछ व्यक्ति उसे अच्छी तरह से नहीं समझ पाते हैं। कईं शोध इस बात का प्रमाण देते हैं कि महिलाएँ पुरूषों की अपेक्षा शारीरिक भाषा समझने व प्रेषित करने में अधिक दक्ष होती हैं।

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शारीरिक भाषा ( अंग विन्यास) के प्रकार

(Types of Body Language)

शारीरिक भाषा को निम्नलिखित रूपों में वर्गीकृत किया जा सकता है

(1) हावभाव (Postures)—बैठने, खड़े रहने व लेटने के विभिन्न तरीकों को हाव-भाव के अन्तर्गत शामिल किया जाता है। बेठने, खड़े होने व लेटने का ढंग कई प्रकार के अर्थों को व्यक्त करता । दाव-भाव व उनकी गतिशीलता व्यक्ति की आत्मनिर्भरता, स्थिति व रुचि को व्यक्त करती है। जैसे जा जोकि वक्ता के भाषण में रुचि ले रहा है, वह वक्ता के सम्मख आगे की ओर झुककर बैठता है जबकि वह श्रोता जो भाषण में रुचि नहीं ले रहा है, वह या तो झपकी लेता है या बार-बार घड़ी की तरफ देखता है।

अत: हमारे हाव-भाव/मुद्रा/आसन द्वारा ही आत्म-विश्वास, भय, आक्रामकता, अस्वीकृति, चिन्ता

आदि का संकेत मिलता है। उदाहरण के लिये

1.सीधे तन कर खड़े होना आत्म-विश्वास और जोश का प्रतीक है।

2. आगे की ओर झुका हुआ शरीर, दूसरे के प्रति घनिष्ठता, मित्रता और स्नेह दर्शाता है।

3. नीचे की ओर देखना, नाखून काटना, चिन्ता, घबराहट और हीन-भावना दर्शाता है।

4. टाँगें आगे फैलाकर और पसर कर बैठना विश्वास एवं शिथिलता दर्शाता है।

5. सिर सीधा और ऊँचा, ऊपर का शरीर सीधा रख कर दोनों पैरों पर खड़े रहना अथवा सीधे बना दर्शाता है कि व्यक्ति रस्मी मुलाकात और वार्तालाप के प्रति अवगत और जागरूक है।

6. हाथ कोट के कालर पर अथवा पीछे बंधे हुए आत्म-विश्वास अथवा गोपनीयता दर्शाते हैं।

7. कुर्सी पर पीछे झुक कर बैठना रुचि की कमी का संकेत देता है।

8. शरीर आगे झुकाकर बैठना सहयोगी एवं सहायक रवैया दर्शाता है।

9. झुके हुए कन्धे, शिथिल मुद्रा निराशा और पराजय का आभास होने का संकेत देते हैं।

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(2) भावभंगिमा (Gestures) शरीर के विभिन्न अंगों जैसे हाथों, पैरों, कुहनियों व सिर के हिलाने-दलाने की गतिविधियों को भाव-भंगिमा कहा जाता है। हाथ, पैर व सिर की गतिशीलता बिना शब्दों के कई महत्वपूर्ण सन्देश सम्प्रेषित करने में सहायक होती है, जैसे नाखूनों को कुतरना आन्तरिक तनावों को व्यक्त करता है तथा तर्जनी उंगली स्थान व दिशा बताने के लिये प्रयोग की जाती है। इसी प्रकार किसी बात पर जोर देने के लिये कसकर बँधी मट्टी को मेज पर मारा जाता है।

Roger E. Axtell ने सत्य ही कहा है “यह संसार विविध भाव भंगिमाओं का सिर चकरा देने वाला दृश्य है। इन भंगिमाओं के बिना संसार स्थिर और निस्तेज है-हम प्रतिदिन इन भंगिमाओं का प्रयोग प्रायः प्राकृतिक रूप से करते हैं जैसे होटल में बैरे को इशारे से बुलाना, व्यावसायिक प्रस्तुति में रुक कर संकेत देना, हवाई अड्डे के भूमि कर्मचारियों का विमान चालक को Jetway में आने के संकेत देना और एक पिता/माता का अपने बच्चे को समझाने के लिए संकेतों का प्रयोग करना आदि। यह भंगिमाएँ धमकाने वाली (जैसे खुली सड़क पर प्रतिकूल दिशा से आने वाले वाहन की), गर्मजोशी वाली (जैसे खुली बाजुओं से आमन्त्रण), शिक्षाप्रद (जैसे पुलिस वाले के सड़क पर निर्देश) अथवा विषयी (जैसे नर्तकी की नृत्य भंगिमाएँ) हो सकती हैं।”

समस्त शरीर की गतिविधियाँ, जैसे कन्धे उचकाना, आगे बढ़ना, पीछे खिसकना, एक तरफ या दूसरी तरफ मुड़ना आदि भिन्न-भिन्न चित्रवृत्तियाँ और भावनाएँ दर्शाती हैं। लोग अपने हाथों की गति से अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त कर सकते हैं। उदाहरण स्वरूप हाथ के हशारे से किसी को आदेश दे सकते हैं, कमरे से बाहर जाने को कह सकते हैं या हाथ के इशारे से कुछ चीजें मांग सकते हैं या हाथों से ही स्वीकृति एवं अस्वीकृति अभिव्यक्त कर सकते हैं।

हाथों की इन गतिविधियों के अतिरिक्त (i) संकेत देती सीधी तर्जनी (Index finger) प्रभुत्व दर्शाती है: () दोनों दिशाओं में ढीले छोड़े हुए बाजू चिन्ता रहित (Relaxed) वृति दर्शाते हैं; (ii) नितम्बों पर हाथ (आँखें पूरी खुली, होठ बंद) क्रोध या प्रतिरक्षात्मक वृत्ति दर्शाते हैं; (iv) झटकते कन्धे उदासीनता दर्शाते हैं; (v) कुर्सी की बाजू पर बैठना श्रोता की अभिरूचि दर्शाता है; (vi) बार-बार शारीरिक मुद्रा को बदलना घबराहट दर्शाता है; (vii) दुर्बलता से हाथ मिलाना, जोश की कमी दर्शाता है; (vii) हथेली नीचे की ओर करके जोर से हाथ मिलाना आक्रामकता दर्शाता है; (ix) पाँव थपथपाना, नाराजगी या प्रतिकूल वृत्ति दर्शाता है; (x) ऊँगलियाँ एक दूसरी में फंसाना या छटपटाना घबराहट और निराशा का संकेत है।

वास्तव में भंगिमा व्यक्ति तथा स्थान के अनुसार परिवर्तित होती रहती है। समय परिवर्तन अथवा व्यक्ति परिवर्तन के साथ भंगिमा के अर्थों में भी परिवर्तन हो जाता है। उदाहरण के लिये, फ्रांस के लोग खोए हुए अवसर का संकेत देने के लिए अपना हाथ नाक के नीचे ले जाते हैं, जिसका दसरे देशवासियों के लिए कोई अर्थ नहीं होता। इसी तरह से अंगूठा दिखाना भारतीय समाज में तिरस्कार का प्रतीक समझा जाता है जबकि पश्चिमी संस्कृति इसे विश्वास एवं स्वीकृति का प्रतीक समझती है।

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(3) चेहरे की अभिव्यक्ति (Facial Expression)-चेहरे की अभिव्यक्ति शारीरिक भाषा का एक महत्वपूर्ण अंग है। हम बिना कुछ कहे चेहरे के हाव-भाव के माध्यम से बहत कुछ कह जात हा किसी के चेहरे को देखकर यह समझा जा सकता है कि उसके अन्दर किस प्रकार की भावना चल रहा है। प्रसन्नता, आश्चर्य, क्रोध, भय, दु:ख आदि को प्रकट करने के लिये चेहरे की आभव्याक्तया अलग-अलग होती हैं। चेहरे को देखने से ही मनुष्य के मनोभावों का ज्ञान प्राप्त हो जाता है, इसीलिए यह कहा जाता है कि “चेहरा मनुष्य के दिल का आइना होता है” (The Face is the mirror of the heart)| चेहरे की प्रत्येक क्रिया सम्प्रेषण का एक यन्त्र है। चौडी या लम्बी मुस्कान अत्य दर्शाती है।

आरगायल (Argyle) का मत है कि चेहरे की अभिव्यक्तियाँ बोले हुए शब्दों से निकट सम्बन्ध रखती हुई चलती हैं-उनके अर्थ को सबल बनाती हैं, उसे परिवर्तित करती हैं और उसकी प्रतिपुष्टि करती हैं। वाइन (Vine) कहते हैं कि श्रोता भी कथनों को सनकर प्रतिक्रिया में भौहें तथा मुख चला कर अपनी प्रसन्नता, आश्चर्य, असहमति आदि व्यक्त करता है। इसी प्रकार वक्ता भी मुख अभिव्यक्तियों के माध्यम से अपने कथन के सन्दर्भ का अहसास करा देता है कि वह गम्भीर हो कर बात कर रहा है या मजाक में मितत्रतापूर्वक बात कर रहा है अथवा मित्रताहीन। चेहरे की अभिव्यक्ति और उनके अर्थ को निम्नांकित प्रकार व्यक्त किया जा सकता है

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(4) आँखों का सम्पर्क (Eyes Contact)—यह अशाब्दिक संचार का एक महत्त्वपूर्ण माध्यम है। यह आमने-सामने सम्प्रेषण क्रिया का महत्त्वपूर्ण तत्व है। आँखें बिना शब्दों के ही दिल की बात कह देती हैं, जैसे कोई व्यक्ति कितनी देर तक एवं किस प्रकार घूरता है, इससे उसकी भावनाओं, विश्वसनीयता, ईमानदारी, आत्मविश्वास व कार्यक्षमता आदि का ज्ञान प्राप्त हो जाता है। इसीलिए जे० फास्ट ने कहा है, “आँखें अत्यधिक शक्तिशाली सम्प्रेषक हैं।”

आँखों को आत्मा की खिड़की माना जाता है। अत: यह सूचना कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि लोग अपना काफी समय परस्पर आँखों की ओर घूरकर देखने में लगाते हैं। परस्पर आँखों की ओर घरकर देखने का ही पुराना नाम नेत्र सम्पर्क है। सामान्यतया कहा जाता है, “जब किसी व्यक्ति से बातचीत करते हो तब उसकी आँखों से आँखें मिलाएँ।” सरल शब्दों में जब आप अन्य व्यक्तियों से विचारों का आदान-प्रदान करते हो तब उनकी आँख की पुतलियों में झाँकना चाहिए। ये पतलियाँ वास्तविक भावनाओं को प्रकट करती हैं। कुछ निश्चित स्थितियों में व्यक्ति की अभिवृत्ति (Attitude) तथा सिनि (Mode) के अनुसार, “पुतलियाँ सिकुड़ती तथा फैलती हैं। उदाहरण के लिये जब कोई व्यक्ति है तब उसकी पुतलियाँ साधारण आकार की तुलना में चार-गुणा अधिक फैल सकती हैं। उदासी या किसी अन्य नकारात्मक मिजाज (Negative Mood) की स्थिति में वे सिकुड़ संचार तब होता है जब आप किसी व्यक्ति के साथ आँख से आँख मिलाकर बातचीत जाती हैं। वास्तविक संचार करते हैं।”

आँखों का सम्पर्क ईमानदारी का प्रतीक है लेकिन कई देशों में झकी आँखों को व्यक्ति के प्रति उचित सम्मान का प्रतीक माना जाता है। मुस्लिम समुदाय में महिलाओं व पुरुषों का नेत्र सम्पर्क वर्जित है। आँखों के सम्पर्क में यह अन्तर संचार प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न करते हैं।

(5) शारीरिक स्पर्श (Bodily Contact) शारीरिक स्पर्श, संचार का सबसे प्राचीन स्वरूप है। इसके अन्दर धक्का देना, हाथ मिलाना, आलिंगन करना, थपथपाना, टक्कर देना आदि सम्मिलित होते हैं। शारीरिक स्पर्श कई प्रकार के सम्बन्धों व स्थितियों को स्पष्ट करता है। शरीर के विभिन्न हिस्सों में स्पर्श विभिन्न प्रकार के संदेशों को व्यक्त करते हैं। स्पर्श के प्रकार एवं कार्य के अनुसार स्पर्श के अर्थ भी। बदल जाते हैं। कौन किसको स्पर्श कर रहा है, इससे भी स्पर्श का अर्थ बदल जाता है जैसे स्पर्श करने वाला व्यक्ति डॉक्टर व रोगी हो, पति-पत्नी हो अथवा अनजान व्यक्ति हो।

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जान्स एवं यार्वग ने लगभग 1,500 प्रकार की शारीरिक स्पर्श प्रक्रियाओं के विश्लेषण के आधार पर निम्नलिखित पाँच श्रेणियाँ बताई हैं

(i) अनुकूल प्रभाव (Positive)-प्रशंसा, स्नेह, लगाव, आश्वास. या यौन रुचि के शारीरिक सम्पर्क।

(ii) सजीवता हेतु (For Playful)-प्रसन्नता, हँसी-मजाक हेतु।

(iii) नियन्त्रण (For Control)-आदेश पालन हेतु।

(iv) अनुष्ठानिक अथवा औपचारिकता हेतु (For Formal or Ritualistic)-संस्कार विधि, धार्मिक अनुष्ठानों हेतु।

(v) कार्य सम्बन्धी (Task Related) ये स्पर्श अपने कार्य या कर्तव्य को पूरा करने के लिए किए जाते हैं, जैसे डॉक्टर या वैद्य द्वारा मरीज की नब्ज देखना।

इसके अतिरिक्त प्रतिकूल प्रभाव वाले व आक्रमणशील स्पर्श भी होते हैं; जैसे क्रोधवश हाथ उठाना, धक्का देना, मुक्का मारना आदि।

(6) बाह्य आकृति (Appearance)-इसमें व्यक्ति का पहनावा, बालों की साज संवार, आभूषण, शृंगार इत्यादि शामिल होते हैं। यद्यपि इनका शारीरिक भाषा से प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं होता, लेकिन ये व्यक्ति के चेहरे व भाव-भंगिमा से अर्थपूर्ण रूप में सम्बन्धित होते हैं। इससे व्यक्ति की उम्र, सामाजिक स्तर, आर्थिक स्तर, पेशे, राष्ट्रीयता आदि के बारे में सूचनाएँ प्राप्त होती हैं।

(7) चुप्पी (Silence)-चुप्पी अर्थात् न बोलना तथा उत्तर न देना भी सम्प्रेषण का एक माध्यम है। जिस स्थान पर वार्तालाप हो रहा है उसके आसपास का वातावरण अर्थात् कमरे की बनावट दीवारें, फर्श की सजावट, खिड़कियाँ आदि भी संदेशवाहन पर प्रभाव डालती हैं।

चुप्पी संचार का स्वाभाविक एवं मूलभूत पहलू है, यद्यपि इसकी ओर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जाता। चुप्पी को संचार की अनुपस्थिति नहीं माना जाना चाहिए। व्यक्तियों के बीच में संचार चप्पी के द्वारा भी होता है और चुप्पी संचार का अभिन्न अंग है। वास्तव में लोगों के बीच प्रभावशाली संचार चुप्पियों के ऊपर बहुत अधिक निर्भर करता है क्योंकि वार्तालाप में बारी-बारी से बोलते हैं और सुनने के लिए चुप हो जाते हैं। चुप्पी संचार का बड़ा आश्चर्यजनक अंग है।

चुप्पियाँ कई प्रकार की होती हैं और उनमें से प्रत्येक का अपना अलग अर्थ होता है तथा संचार के लिए अलग-अलग परिणाम होते हैं। परिस्थिति के अनुसार चुप्पियाँ उपयुक्त एवं अनुपयुक्त भी हो सकती हैं। जब परिस्थिति की मांग हो कि हम बोलें और चुप न रहें उस समय चुप रहना अनुपयुक्त है। चुप्पी, सहमति व असहमति के रूप में भी व्यक्त होती है, जैसे यदि कोई व्यक्ति अन्य व्यक्ति की निन्दा करता है और दूसरा चुप है तो यह सहमति है। दूसरी तरफ यदि कोई भाषण की माँग करे और दूसरा चुप्पी साध ले तो यह असहमति है।

अत: स्पष्ट है कि शारीरिक भाषा (Body Language) शाब्दिक सम्प्रेषण की सहायक है। हम कह। सकते हैं कि “शारीरिक क्रियाएँ शब्दों से अधिक तीव्र गति व आवाज से बोल सकती हैं।”

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शारीरिक भाषा के कार्य

(Functions of Body Language)

पीटरसन के मतानुसार, शारीरिक भाषा अनेक उद्देश्यों की पर्ति करती है जो निम्नानुसार है

(i) शारीरिक भाषा से लोगों की भावनाओं एवं इरादों के विषय में सूचना मिल जाती है ।

उदाहरणार्थ, गैर-भाषायी संकेतों से इस बारे में सही जानकारी मिल जाती है कि वह व्यक्ति आपको पसन्द करता है अथवा नहीं।

(ii) वार्तालाप का नियमन करने में भी शारीरिक भाषा का प्रयोग हो सकता है। उदाहरणार्थ अशाब्दिक संकेतों से यह ज्ञात हो जाता है कि कथन का अंत होने वाला है, अथवा कोई अन्य व्यक्ति बोलना चाहता है।

(iii) शारीरिक भाषा से पारस्परिक घनिष्ठता भी प्रकट होती है। उदाहरणार्थ घनिष्ठता के कारण व्यक्ति परस्पर स्पर्श भी करते हैं और उनमें दृष्टि सम्पर्क भी होता है।

(iv) शारीरिक भाषा का प्रयोग दूसरे पर काबू पाने अथवा उसे नियन्त्रित करने के लिये भी होता है। अशाब्दिक धमकियाँ इसका उदाहरण हैं।

(v) शारीरिक भाषा का प्रयोग किसी उद्देश्य व लक्ष्य को दर्शाने में भी सहायक होता है।

शारीरिक भाषा के लाभ

(Advantages of Body Language)

शारीरिक भाषा के प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं

(1) शाब्दिक संचार को प्रभावी बनाना (Make Verbal Communication Effective)-शारीरिक भाषा, सम्प्रेषण प्रक्रिया को अधिक प्रभावी बनाने में सहायक होती है। हाव-भाव, भाव-भंगिमा, आँखों का उचित व प्रभावी प्रयोग तथा सम्पर्क के बिना आमने-सामने का सम्प्रेषण अप्रभावी रहता है।

(2) भाषायी संचार का स्थानापन्न-शारीरिक भाषा ऐसे समय में भी महत्वपूर्ण होती है जहाँ भाषा के द्वारा संचार सम्भव नहीं है। जब भाषा, देश आदि की भिन्नता हो अथवा समूह इतना बड़ा हो कि मौखिक सन्देश सम्भव न हो तो ऐसी स्थिति में शारीरिक भाषा बहुत सहायक होती है। जैसे चौराहे पर खड़े यातायात सिपाही के लिए भाषायी संचार के द्वारा वाहनों को नियन्त्रित करना सम्भव नहीं है, ऐसी स्थिति में वह हाथ के इशारों के आधार पर यातायात को नियन्त्रित करता है।

(3) सत्यता को प्रकट करने में सहायक (Reveal Truth)-शारीरिक भाषा सत्य को प्रकट करने में भी सहायक होती है क्योंकि व्यक्ति की जुबान भले ही गलत बोले लेकिन उसका चेहरा व नेत्र सही बात प्रकट कर ही देते हैं। नैन्सी आस्टिन के अनुसार, “जब लोग यह नहीं समझ पाते कि जो कहा जा रहा है या दिखाई पड़ रहा है उस पर विश्वास करें या न करे तो वे कायिक भाषा को पढ़ने का प्रयास करते हैं और शारीरिक भाषा सच्चाई को प्रकाश में लाती है। शब्दों के माध्यम से तो आप झूठ भी बोल सकते हैं पर परन्तु कायिक चेष्टायें सच्चाई को ही प्रकाश में लाती हैं।”

(4) भाषायी संचार को चालू रखने में सहायक (Sustains Verbal Communication)-यदि एक बार वार्तालाप आरम्भ हो जाए तो शारीरिक भाषा उसे चाल बनाए रखने में सहायक होती है। इसके माध्यम से श्रोता की प्रतिक्रिया की भी जानकारी मिलती रहती है। जैसे वार्तालाप करते समय यदि दूसरा व्यक्ति स्वीकृति में अपना सिर हिला दे तो वार्ताकार पर इसका अच्छा प्रभाव पड़ेगा।

(5) सामाजिक स्तर को प्रकट करना (Reveals the Status)-शारीरिक भाषा से वार्तालाप करने वाले व्यक्तियों के सामाजिक स्तर का ज्ञान भी प्राप्त होता है। जैसे अच्छे सामाजिक स्तर वाले व्यक्ति तनावमुक्त स्थिति में होंगे तथा वे थोड़े पीछे की ओर झके होंगे जबकि निम्न सामाजिक स्तर वाले व्यक्ति तनावयुक्त, बंधे हुए तथा बिल्कुल सीधी कमर रख कर बैठे या खड़े होंगे।

(6) व्यावसायिक वातावरण को अनुकूल प्रभावी बनाना (Make Business Fironment Favourable and Effective)-शारीरिक भाषा का उचित प्रयोग करने वाले व्यक्ति वय्वसाय या संगठन में माहौल को प्रभावी व अनुकूल बनाने में सहायक होते हैं।

(7) संसार की सरल तथा मितव्ययी प्रणाली (Easy and Economic Method of) शारीरिक भाषा के प्रयोग से व्यक्ति अपनी बात सरलता से दूसरे व्यक्तियों तक जसमें सन्देश देने के लिये किसी प्रकार का व्यय भी नहीं करना पड़ता। पहुँचा सकता है। इसमें सन्देश देने के लिये किसी प्रकार  का हैं ।

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शारीरिक भाषा की सीमाएँ

(Limitations of Body Language)

शारीरिक भाषा की प्रमुख सीमाएँ निम्नलिखित हैं

(1) भ्रम की स्थिति (Create Confusion)-विभिन्न संस्कृति तथा रीति-रिवाजों वाले व्यक्तियों के शारीरिक संकेत भिन्न-भिन्न होते हैं, अत: कभी-कभी इससे भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो जाती है तथा इनका गलत अर्थ निकाल लिया जाता है। अत: संकेतों को प्रयोग करते समय व समझते समय अधिक सावधानी रखनी पड़ती है।

(2) सदैव विश्वास योग्य अर्थपूर्ण होना (Not Authentic and Reliable in All Situations)-शारीरिक भाषा में चेहरे के हाव-भाव, भाव-भंगिमा इत्यादि सदैव विश्वास योग्य व अर्थपूर्ण नहीं होते। लिखित व मौखिक सम्प्रेषण को शारीरिक भाषा की तुलना में अधिक गम्भीरतापूर्वक लिया जाता है।

(3) बड़े समुदाय पर अप्रभावी (Less Effective in Large Group)-सांकेतिक संचार आमने-सामने के वार्तालाप में ही प्रभावी हो सकता है लेकिन जहाँ समुदाय बड़ा हो, वहाँ शारीरिक भाषा अप्रभावी हो जाती है।

(4) सन्देश प्राप्तकर्ता की अरुचि (Receiver Take No Interest)-जब सन्देश प्राप्तकर्ता का ध्यान सम्प्रेषक की तरफ नहीं होता तो शारीरिक भाषा व्यर्थ रहती है।

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शारीरिक भाषा का प्रभावी प्रयोग

(Effective Use of Body Language)

शारीरिक भाषा को प्रभावी बनाने के लिये निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना आवश्यक है

1 हमें प्रतिदिन की सम्प्रेषण प्रक्रिया में बोलने के लहजे, भाव-भंगिमा इत्यादि गतिविधियों पर ध्यान रखना चाहिए। हम जब खड़े रहते हैं तो हमें अपने कंधों को सीधा, शरीर स्वतन्त्र तथा अपने शरीर के वजन को दोनों पैरों पर सन्तुलित करना चाहिये क्योंकि यह हमारे विचारों में दृढ़ता को दर्शाता है।

हम तनाव से ग्रसित व्यक्ति को आसानी से पहचान सकते हैं क्योंकि जब वह तनाव में रहता है तो वह अपने सिर के बालों में छल्ले बनाता है या अपने हाथ में पेन को लेकर हिलाता है।

एक व्यक्ति का कुर्सी पर सुव्यवस्थित बैठना तथा पैर जमीन के तल पर व कंधे सीधे हों तो यह व्यक्ति के विश्वास व सक्रियता की स्थिति को दर्शाता है।

2. आधुनिक व्यावसायिक जगत में हाथ मिलाना (Hand Shake) अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। यह मिलने वाले व्यक्ति की शक्ति-ऊर्जा व स्थिति को दर्शाता है। कलाई को मोड़कर केवल अंगुलियों को पकड़कर हाथ मिलाना एक गलत संकेत देता है।

3. किसी व्यक्ति पर व्यक्तिगत प्रभाव के लिए आँखें महत्त्वपूर्ण व शक्तिशाली तत्व है। यदि आप किसी व्यक्ति की बातों को गम्भीरतापूर्वक सुन रहे हों तो हमें सामने वाले व्यक्ति की आँखों से सीधा सम्पर्क स्थापित करना चाहिए।

4.शारीरिक भाषा में हमें इस बात को ध्यान में रखना चाहिए कि हम किस स्तर पर किस वर्ग के व्यक्ति से सम्प्रेषण कर रहे हैं। जैसे, हम किसी बच्चे से बात कर रहे होते हैं तो हम झुक जाते हैं। जिससे हम उसकी आँखों में देख सकें। जब हम किसी बुजुर्ग व्यक्ति से बात कर रहे होते हैं तो हम किसी दीवार या कोने के सहारे, वजन को एक पैर पर लाकर व हाथों को बाजू में लाकर खड़े होते हैं। अपने उच्च अधिकारी से सम्प्रेषण की स्थिति में सीधी मुद्रा में खड़े रहना आदर व सम्मान का प्रतीक है।

5. शालीन विश्वासपूर्ण मुद्रा हमारे व्यवसाय व संगठन के माहौल को बेहतर बनाती है।

6. अशाब्दिक सन्देश हमारे अभ्यन्तर अर्थात् हमारी चेतना व आत्म-बल से उठती है। यदि हमें अपनी शारीरिक भाषा को बेहतर एवं प्रभावी बनाना है तो हमें कार्य को अपने अभ्यन्तर से प्रारम्भ करना चाहिए।

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भारत में शारीरिक भाषा

(Body Language in India)

भारतीय परिप्रेक्ष्य में शारीरिक भाषा के स्वरूप के कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं

1 भारत में आदरसत्कार के लिए ‘नमस्ते’ शब्द का प्रचलन है। अपने दोनों हाथों की हालया। को आपस में सटाकर प्रार्थना की स्थिति में छाती के सामने धीमे रूप में लाना भारतीय परम्परा म आदर-सत्कार व ढेर सारी शभकामनाओं का प्रतीक है। इसका प्रयोग किसी व्यक्ति के जान वावदा कर के समय भी किया जाता है। यह भारतीय संस्कृति व संस्कार का परिचायक है।

2. रीतिरिवाजों के अनुसार किसी पुरुष का किसी स्त्री को स्पर्श करना औपचारिक व श्वासपूर्ण मत्थात में सीधी मर व हाथों को अनौपचारिक दोनों ही स्थितियों में वर्जित है।

3. भारतीय प्राय: बायें हाथ का प्रयोग किसी गिफ्ट या अन्य वस्तुओं को देने के लिए करते हैं, जबकि दायें हाथ का प्रयोग भोजन करने या किसी बात की अथवा वस्तु की ओर संकेत करने के लिये। करते हैं।

4. सार्वजनिक स्थानों पर सीटी बजाना अभद्रता व अशिष्टता का परिचायक है।

5. भारतीयों द्वारा शरीर के पृष्ठ भाग पर गर्मीले/जोशीले अन्दाज में चपत लगाना दोस्ती व सहयोग। का प्रतीक है।

6. किसी भारतीय का अपने सिर को झटककर मुस्कराना ‘हाँ’ का प्रतीक है।

7. भारतीय परिवेश में व्यक्ति के जूतों का स्पर्श उचित नहीं माना जाता है।

8. सिगरेट, सिगार इत्यादि के प्रयोग से पहले उपस्थित व्यक्ति की इजाजत भारतीय परम्परा का प्रतीक है।

(2) संकेत भाषा (Sign Language)-जब सम्प्रेषण प्रक्रिया में सन्देश का आदानप्रदान करने के लिये सम्प्रेषक प्राप्तकर्ता पारस्परिक रूप से कुछ संकेतों, चिन्हों व प्रतीकों का प्रयोग करते हैं तो उसे संकेत भाषा कहते हैं। प्राचीनकाल से ही मनुष्य अपनी अनुभूतियों तथा विचारों को व्यक्त करने के लिये संकेतों व प्रतीकों का प्रयोग करता आया है। आधुनिक समय में इसके रूप में सुधार करके यह प्रयोय में लाई जा रही है। संकेत भाषा मुख्यत: दो प्रकार की होती है

(i) दृश्य संकेत भाषा (Visual Sign Language),

(ii) ध्वनि संकेत भाषा (Audio Sign Language)

(i) दृश्य संकेत भाषा-दृश्य संकेत भाषा संचार की बहुत प्राचीन, सरल एवं बोधगम्य पद्धति है। इसमें ऐसे साधनों व संकेतों का प्रयोग किया जाता है, जिन्हें देखकर सूचना प्राप्त हो जाती है जैसे जलती हुई सिगरेट के ऊपर Cross का चिन्ह इस बात का संकेत है कि सिगरेट नहीं पीनी चाहिए। विद्युत प्रदाय संस्थानों पर लाल रंग से Danger लिखा होने का अर्थ है कि उसके पास नहीं जाना चाहिए। इसी प्रकार रेलवे स्टेशन, हवाई अड्डों, सड़क परिवहन केन्द्रों पर लाल, हरी या पीली रोशनी, शल्य कक्ष के ऊपर जलता हुआ लाल बल्ब, राजनेता की गाड़ी पर घूमती नीली या लाल बत्ती बिना कोई ध्वनि किए ही अपना सन्देश संचारित करती है।

(ii) ध्वनि संकेत भाषाइसमें ध्वनि संकेतों को संचार के साधन के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। प्राचीनकाल से ही खुशी, गम, विजय, युद्ध एवं भय के लिये ध्वनि संकेतों का प्रयोग किया जाता था जो परम्परागत ढंग से आज भी किया जा रहा है। प्राचीनकाल में गाँवों तथा कस्बों में सूचना देने के लिये मनादी, ढोलक का सहारा लिया जाता था। आधुनिक समय में भी किसी व्यावसायिक कार्यालय, कारखाने आदि की दैनिक क्रियाविधियों के संचालन के लिये ध्वनि संकेत भाषा अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। अधिकारी द्वारा अपने चपरासी को बुलाने के लिये घण्टी का प्रयोग तथा कारखानों में पारी शुरू होने, समाप्त होने तथा भोजनावकाश के लिये हूटर सायरन सीटी का प्रयोग होता है। इसकी सहायता से सन्देश का संचार पर्याप्त स्थान में बड़ी सुविधा के साथ हो जाता है। आकस्मिक अथवा आपातकाल में ध्वनि संकेत भाषा अत्यन्त प्रभावी होती है।

संकेत भाषा की सीमाएँ (Limitations of Sign Language) संकेत भाषा की निम्नलिखित सीमाएँ हैं

1 संकेत भाषा में दृश्य या ध्वनि संकेतों का प्रयोग किया जाता है। इसके द्वारा केवल सरल व प्रारम्भिक अनिवार्य सूचनाओं को सम्प्रेषित करना सम्भव होता है। यदि सन्देश या विचारों में कोई जटिलता है तो पोस्टर या चित्रों के माध्यम से इसका सम्प्रेषण अत्यन्त कठिन होता है।

2. सदैव प्रभावशाली चित्र या पोस्टर बनाना असान नहीं होता। यह कलाकार की कुशलता पर निर्भर करता है कि उसने सम्बन्धित धारणा या विचार को सही रूप से समझ लिया है या नहीं।

3. संकेत भाषा सन्देश प्राप्तकर्ता की समझ पर निर्भर करती है। अत: संकेत को सही रूप में न समझने पर वह भ्रमित हो सकता है।

4. संकेत भाषा को दुहराना तथा उसमें तुरन्त सुधार करना सम्भव नहीं होता, जबकि शाब्दिक सम्प्रेषण में तात्कालिक सुधार अत्यन्त ही आसान होता है।

(3) पाव भाषा/ भाषा प्रतिरूप (Para Language)-पार्श्व भाषा (Para Language) दा शब्दों से मिलकर बना है। पार्श्व (Para) शब्द का अर्थ ‘समान’ या प्रतिरूप तथा भाषा (Language) शब्द का अर्थ संचार के ढंग (Mode of Communication) से है। अत: पार्श्व भाषा से आशय है भाषा के समान। इसमें इस बात का अध्ययन करते हैं कि व्यक्ति कैसे बोलता है, उसका उच्चारण कैसा है, आवाज का उतार-चढ़ाव किस प्रकार का है, वाणी में आत्म-विश्वास है या कंपकपाहट, वाणी नीरस है या सजीव। इसमें वक्ता कैसा बोलता है, इस बात पर ध्यान केन्द्रित किया जता है, न कि इस बात पर कि वक्ता क्या बोलता है। उच्चारण वक्ता के सामाजिक स्तर और व्यक्तित्व के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण संकेत देता है। गहन कण्ठ (Deep Throaty) वाणी मानव की परिपक्वता के संकेत देती है। नीरस वाणी जीवन में अरुचि का संकेत देती है। काँपती हुई वाणी वक्ता की घबराहट दर्शाती है तथा टूटती वाणी, तैयारी की कमी को प्रदर्शित करती है। साफ तथा स्पष्ट वाणी आत्म-विश्वास को प्रकट करती है।

अतः मौखिक सम्प्रेषण के प्रस्तुतीकरण में वाणी के उतार चढ़ाव, विराम, धारा प्रवाह, धीमी या तेज अभिव्यक्ति के सम्मिश्रण को ही पार्श्व भाषा कहते हैं। सम्प्रेषक किस शब्द पर अधिक बल दे रहा है और किस पर कम दे रहा है, इससे वाक्य का पूरा भाव ही बदल जाता है।

प्रो० बारकर एवं गाउट के अनुसार, “पार्श्व भाषा, भाषा के साथ में एक भाषा है तथा इसमें आवाज की विशेषताएँ जैसे सुर, क्षेत्र, गति और गुणवत्ता एवं मुख से निकलने वाली विभिन्न आवाजें जैसे-घुरघुराना (Grunts), आहे भरना और गरगराहट आदि शामिल हैं।”

इसके अन्तर्गत बोलने वाले व्यक्ति की आवाज या स्वरों की लय, गति व मात्रा के द्वारा सन्देश के अर्थ को समझा जाता है। आवाज स्वर के माध्यम से स्नेह, लगाव, उदासीनता, घृणा, व्याकुलता राहत आदि को आसानी से प्रकट किया जा सकता है। जैसे उच्च स्वराघात, लय मात्रा वाली आवाज गुस्से व क्रोध का परिचायक है जबकि कोमल स्वराघात वाली आवाज स्नेह की परिचायक है। यदि संदेश देने वाले की योग्यता, शिक्षा संस्कृति इत्यादि का पता लगाना है तो यह कार्य भाषा प्रतिरूप की सहायता से ही सम्भव हो सकता है। भाषा प्रतिरूप के बिना कोई भी सन्देश पूर्ण नहीं हो सकता। निम्नलिखित उदाहरण की सहायता से भाषा प्रतिरूप को समझा जा सकता है

एक पत्नी अपने पति से कहती है-“तम वापस आ गये।”

इस वाक्य को कहने के ढंग, स्वर व लय आदि के द्वारा परम आनन्द की अनभति को भी व्यक्त किया जा सकता है और घृणा की भी। साथ ही स्वर व लय मात्रा के द्वारा उदासीनता, भावहानता, व्याकुलता, राहत आदि को भी प्रकट किया जा सकता है।

एक अन्य उदाहरण की सहायता से भी भाषा प्रतिरूप को समझा जा सकता है

(i) I am a good student.              मैं एक अच्छा विद्यार्थी हु।

(ii) I am a good student.              मैं एक अच्छा विद्यार्थी हूँ।

(iii) I am a good student.             मैं एक अच्छा विद्यार्थी हूँ।

(iv) I am a good student.             मैं एक अच्छा विद्यार्थी हूँ।

(v) I am a good student.              मैं एक अच्छा विद्यार्थी हूँ।

इस उदाहरण से स्पष्ट है कि प्रत्येक वाक्य में जिस शब्द पर दबाव (Stress) है, वह प्रत्येक उच्चारण में शब्द के अर्थ को बदल देता है। प्रथम वाक्य में I पर दबाव इस बात को स्पष्ट करता है कि अन्य कोई नहीं. मैं एक अच्छा विद्यार्थी हूँ और अन्तिम वाक्य में ध्यान दें तो Student पर दबाव इस बात को स्पष्ट करता है कि मैं एक अच्छा विद्यार्थी हूँ, कोई शिक्षक या वक्ता या सम्प्रेषक नहीं हैं। यहाँ पर प्रत्येक वाक्य का उच्चारण एक अलग स्वर, लय, गति व मात्रा तथा आयाम से सम्बद्ध है, इसलिए प्रत्येक वाक्य का उच्चारण करने पर अलग-अलग अर्थ सामने आते हैं।

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भाषा प्रतिरूप (पार्श्व भाषा) के मुख्य तत्व

(Main Factors of Para Language)

भाषा प्रतिरूप के मुख्य तत्व निम्नलिखित हैं

() आवाज/स्वर (Voice) हम स्वर/आवाज के द्वारा प्रथम संकेत प्राप्त करते हैं। स्वर/आवाज अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण तत्व है क्योंकि इसके माध्यम से वक्ता के लिंग, पृष्ठभूमि, शिक्षा, प्रशिक्षण व स्वभाव के बारे में पता चलता है। स्वर/आवाज कई प्रकार के होते हैं, जैसे साफ, सभ्य, लयबद्ध, कर्कश इत्यादि। स्वर या आवाज के साफ होने से सन्देश के अर्थ को प्रभावशाली ढंग से सम्प्रेषित किया जा सकता है। कुछ व्यवसाय ऐसे है जिनमें स्वर या आवाज अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होती है; जैसे, गायन, उद्घोषणा इत्यादि। एक सन्देश को प्रभावशाली तरीके से अन्य श्रोताओं तक पहुँचाने के लिए निम्नलिखित बातों का होना आवश्यक है

(i) पिच (Pitch)–पिच का अर्थ स्वर में उतार-चढ़ाव से होता है। प्रभावी सम्प्रेषण के लिए हमें स्वर के उतार-चढ़ाव को ध्यान में रखना चाहिए। श्रोताओं को आकर्षित करने के लिए इसका अत्यधिक ध्यान रखना चाहिए। जो वक्ता अपने स्वर में एकरसता/एकरूपता (Monotoneous) रखते हैं, वे श्रोताओं को नीरस लगते हैं।

यद्यपि धीमे स्वर स्नेह, अनुराग, चाहत को दर्शाते हैं, जबकि ऊँचे स्वर क्रोध व उत्तेजना को दर्शाते हैं, परन्तु श्रोताओं को प्रभावित करने व अपने सन्देश को प्रभावी तरीके से प्रेषित करने के लिए उपयुक्त पिच (Pitch) का होना आवश्यक होता है।

(ii) वक्तव्य की गति (Speaking Speed)- यहाँ पर यह बात स्पष्ट करना आवश्यक है कि भाषा में प्रवाह व वक्तव्य की गति दोनों अलग-अलग बातें हैं। विभिन्न अवसरों पर विभिन्न गति के वक्तव्यों से सन्देश के विभिन्न अंशों को श्रोता तक पहुँचाया जाता है जैसे, सरल सूचनाओं को धीमी गति से प्रेषित करने से क्रोध व चिड़चिड़ापन पैदा होता है और वे अमान्य कर दी जायेंगी। जटिल सूचनाओं को तीव्र गति से प्रेषित करने पर उन्हें समझना कठिन होता है। प्राय: यह देखा जाता है कि जल्दबाजी के समय तीव्र गति से व जब हम आराम या राहत महसूस करते हैं तो वक्तव्य की गति धीमी व आसान होती है। इसी प्रकार हम एक वक्तव्य का सरल हिस्सा तीव्र गति से तथा जटिल व कठिन हिस्सा धीमी गति से सम्प्रेषित करते हैं।

(iii) अन्तराल या विराम (Pause) किसी भी वक्तव्य या सन्देश को बिना अन्तराल व विराम के सम्प्रेषित नहीं किया जा सकता। यहाँ पर यह बात ध्यान रखनी होगी कि अन्तराल या विराम सही समय पर होना चाहिए। अन्तराल का गलत प्रयोग सन्देश के अर्थ को बदल देता है, जैसे

  • रोको, मत जाने दो।
  • रोको मत, जाने दो।

(iv) आवाज की मात्रा (Voice Volume) वक्ता अपने आस-पास के श्रोताओं को सन्देश सम्प्रेषित करने के लिए जोर से बोल सकता है, परन्त अत्यधिक जोर से बोलना उसके लिए उचित नहीं। होता। आवाज की मात्रा श्रोताओं की संख्या पर निर्भर करती है। यह आवाज या स्वर को अधिक प्रभावी । बनाने का मुख्य तत्व है।

() उचित या अनुरूप स्वराघात (Proper Stress)-स्वराघात किसी भी भाषा का मुख्य अग। होता है क्योंकि उचित स्वराघात के द्वारा ही हम सन्देश के सही अर्थ को सम्प्रेषित कर पाने में सफल होते हैं। यहाँ पर यह बात ध्यान रखने योग्य है कि स्वराघात सन्देश या शब्द के अर्थ को बदल देता है। स्वराघात वाक्य के किसी एक हिस्से को महत्त्व देने या ध्यान आकर्षण करने के लिए किया जाता है।

मिश्रित संकेत (Mixed Signals)-सन्देश में संकेतों का मिश्रण उसके अर्थ को बदल। मिन्टेश में विकति या विभ्रम आ जाता है। इस बात का सदेव ध्यान रखना चाहिये कि हम क्यों और कैसे अपने वक्तव्य या कथन में समरसता ला सकते हैं। सम्प्रेषणग्राही या श्रोता को इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि एक सन्देश कैसे प्रेषित किया गया है और सन्देश में प्रयुक्त शब्दों का अर्थ क्या है?

() माखिक सम्प्रेषण का सम्पूर्ण प्रभाव (Overall Impression of Oral Message)-एक। वक्ता के वक्तव्य या व्याख्यान उसके बारे में बहुत कुछ सूचनाएँ देते हैं। भाषा प्रतिरूप पर अध्ययनरत विद्वान यह बताते हैं कि सम्प्रेषक व प्राप्तकर्ता दोनों की कछ अपेक्षाएँ रहती हैं। यदि सन्देश प्रभावी रहता। है तो ये अपेक्षाएं पूर्ण हो जाती हैं। श्रोता तथा वक्ता के व्यवसाय, भौतिक बोधगम्यता, उम्र, व्यक्तित्व का। भी सम्पूर्ण सम्प्रेषण प्रक्रिया पर प्रभाव पड़ता है। प्रत्येक शिक्षित व्यक्ति को अपने स्वर की गुणवत्ता, स्वराघात, स्वर की उत्पत्ति का अपने वक्तव्य में ध्यान रखना चाहिए। साथ ही साथ इस बात का भी। ध्यान रखना चाहिए कि अन्तराल कहाँ किया जाये।

 

भाषा प्रतिरूप (पार्श्व भाषा) के लाभ

(Advantages of Para Language).

(i) भाषा, प्रतिरूप भाषा के साथ संलग्न है। अत: कोई भी मौखिक सन्देश इसके बिना पूर्ण नहीं होता।

(ii) भाषा प्रतिरूप के द्वारा किसी व्यक्ति का किसी व्यवसाय या संगठन में उसकी स्थिति का आसानी से अनुमान लगाया जा सकता है।

(iii) भाषा प्रतिरूप किसी वक्ता के शैक्षणिक परिवेश को भी स्पष्ट करती है।

(iv) भाषा प्रतिरूप किसी वक्ता की मानसिक दशा को स्पष्ट करने में सहायक होती है। उसका स्वर गुणवत्ता, बोलने की गति एक श्रोता के लिये सन्देश ग्रहण करने में सहायक होती है।

 (v) भाषा प्रतिरूप का उपयोगी शैक्षिक मूल्य है। एक सतर्क/सचेत श्रोता एक कुशल वक्ता से बहुत कुछ सीखता है।

भाषा प्रतिरूप (पार्श्व भाषा) की सीमाएँ (Limitations of Para Language)

(i) यद्यपि भाषा प्रतिरूप, भाषा के समान है, किन्तु स्वयं भाषा नहीं है। अत: यह अपूर्ण भाषा है।

(ii) इसकी उपयोगिता मौखिक संचार के समय ही होती है, उसके अभाव में इसका कोई उपयोग नहीं है।

(iii) व्यावसायिक क्रियाओं के सम्बन्ध में भाषा प्रतिरूप पर पूर्ण रूप से निर्भर नहीं रहा जा सकता है।

(iv) भाषा प्रतिरूप से संदेश देने में एकरूपता का भी अभाव पाया जाता है।

(v) भाषा प्रतिरूप कभी-कभी श्रोताओं को भ्रमित भी करता है। श्रोता सदैव इसका अर्थ ठीक ही निकालें ऐसा नहीं होता है।

(4) सामीप्य भाषा (Proxemies)—सामीप्य भाषा में हम इस बात का अध्ययन करते हैं कि एक व्यक्ति अपने आस-पास की विषय-वस्तु व स्थान अन्तर को किस प्रकार व्यवस्थित करके संचार क्रिया को सम्पन्न करता है। इसमें संचारक व प्राप्तकर्ता के बीच की दूरी, खड़े होने अथवा बैठने के ढंग, आस-पास के वातावरण, समय आदि का अध्ययन किया जाता है। सामीप्य भाषा में मुख्यत: स्थान अन्तर भाषा, समय भाषा तथा वातावरण या माहौल को सम्मिलित किया जाता है, जिनकी विवेचना निम्न प्रकार है

(i) स्थान अन्तर भाषा (Space Language)-एक व्यक्ति की दूसरे व्यक्ति से दूरी उनके मध्य सम्बन्ध व सम्प्रेषण की प्रकृति को स्पष्ट करती है। एडवर्ड टी० हॉल ने इस क्षेत्र में अत्यन्त ही रुचिकर व उपयोगी कार्य किया है।

अन्तर भाषा निम्नलिखित दो रूपों में सम्प्रेषित की जाती है

(i) समीप्यता (Proxemity),

(ii) उन्मुखीकरण (Orientation)|

समीप्यता में सम्प्रेषक व प्राप्तकर्ता के मध्य एक विश्रामगृह में लगभग 5.5 फीट की दरी होती है। जबकि उन्मुखीकरण व्यक्तियों के बैठने व खड़े रहने की स्थिति को दर्शाता है। व्यक्तियों का आमने-सामने बैठना, बाजू से बैठना यह स्थितियाँ व्यक्तियों के मध्य सम्बन्ध को स्पष्ट करती हैं जैसे, सहयोगी व्यक्ति सदैव टेबिल के सामने या बाजू से बैठता है।

व्यक्तियों को एक दूसरे से दूरी के आधार पर निम्नलिखित चार प्रकार की स्थान अन्तर भाषाओं का सृजन किया गया है

() घनिष्ठ अन्तर भाषा (Intimate Space Language)

() व्यक्तिगत अन्तर भाषा (Personal Space Language)

() सामाजिक अन्तर भाषा (Social Space Language)

() सार्वजनिक अन्तर भाषा (Public Space Language)

() घनिष्ठ अन्तर भाषा (Intimate Space Language) के अन्तर्गत संचार के दोनों पक्षकारों में 1- फुट की दूर होती है अर्थात् व्यक्ति की सारी शारीरिक गतिविधियाँ 1- फुट में ही सम्पन्न हो जाती हैं। भाषा का यह प्रकार शारीरिक स्पर्श की सम्भावना को दर्शाता है। इस घेरे में परिवार के सदस्य, नजदीका दोस्त और विशेष व्यक्ति ही आते हैं। इसके अन्तर्गत हाथ मिलाना, पीठ थपथपाना इत्यादि क्रियाएँ आती है।

() व्यक्तिगत अन्तर भाषा (Personal Space Language) के अन्तर्गत यह दूरी 1- फुट से 4 फुट के बीच की होती है। इसके अन्तर्गत स्वाभाविक, अनियोजित संचार तथा मित्रवत् वार्तालाप आते है। विभिन्न संस्कृतियों में समान उम्र व लिंग के व्यक्तियों में लिंगीय समूह की तुलना में व्यक्तिगत अन्तर कम होता है।

() सामाजिक अन्तर भाषा (Social Space Language) में यह दूरी 4 फुट से 12 फुट तक की होती है। इस भाषा का प्रयोग औपचारिक उद्देश्य के लिए होता है। यह भाषा राष्ट्रीय व्यवहार को स्पष्ट करती है तथा इसका व्यावसायिक वार्तालापों में प्रयोग होता है।

() सार्वजनिक अन्तर भाषा (Public Space Language) में यह दूरी 12 फुट से अधिक हो जाती है। यह दूरी संचार में औपचारिकता को प्रकट करती है। इसमें सन्देश प्राय: तेज आवाज में दिया जाता है।

इन चारों स्थान अन्तर भाषाओं को निम्नांकित प्रकार व्यक्त किया जा सकता है

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 (ii) समय भाषा (Time Language)-सामीप्य भाषा का एक अन्य रूप समय भाषा है। इसके अन्तर्गत संचार से जुड़े व्यक्ति अपने अपने तौर तरीकों से समय की सीमाओं को ध्यान में रखकर संचार क्रियाएँ पूर्ण करते हैं। इसमें सामान्यतः समय के लिए संकेत का प्रयोग करते हैं। इस सम्बन्ध में एफ० पी० डिगिन का विचार है कि प्रत्येक भाषा के विश्लेषण की कोई न कोई उचित इकाई होती है और इन इकाइयों के प्रस्तुतीकरण के कुछ क्रम निश्चित होते हैं। भारत के सन्दर्भ में किसी भी व्यावसायिक उपक्रम में समय के लिए घड़ी और कैलेण्डर का प्रयोग किया जाता है।

(iii) वातावरण या माहौल (Surroundings)—वातावरण से अभिप्राय आस-पास के भौतिक वातावरण से होता है। यह स्वयं अपनी भाषा संजोता है अर्थात् इसकी अपनी एक भाषा होती है। वातावरण के प्रमुख संघटक निम्नलिखित प्रकार हैं

(a) रंग (Colour)-विभिन्न प्रकार के रंग, व्यवहार की प्रवृत्ति एवं रूख को दर्शाते हैं जैसे सफेद रंग शान्ति का प्रतीक है। दु:ख के समय काला रंग, खुशी के समय गुलाबी रंग का प्रचलन है। यह रंगों की भाषा है। सफल व प्रभावशील संचार के लिए रंगों का चुनाव ध्यानपूर्वक करना चाहिए। ।

(b) रूपरेखा (Layout)-रूपरेखा भी संचार का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। किसी व्यावसायिक संस्था का स्थान, रंग-रोगन, फर्नीचर का डिजाइन इत्यादि संचार को प्रभावित करते हैं। वास्तव में किसी व्यावसायिक संस्थान की रूपरेखा उसके रूप का सही चित्रण करती है।

रूपांकन (Designing)-रूपांकन को भी व्यावसायिक संचार का प्रमुख हिस्सा माना गया ” वातावरण सभी संचार में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते हैं। संचार की रूपरेखा, का मार्गदर्शन करते हैं। प्रभावी संचार के लिए इन सभी का संचार में समायोजन आवश्यक है।

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अशाब्दिक संचार प्रक्रिया के लाभ

(Advantages of Non-Verbal Communication)

अशाब्दिक संचार के प्रमुख लाभ अग्रलिखित हैं

(4) संचाल, जो सन्देश भेजने के किया जाता है जिससे सन्देश

(1) मौखिक संचार को प्रभावी बनाने में सहायक (Helpful in making Non-verbal Communication Effective)-अशाब्दिक संचार के द्वारा मौखिक संचार को परिपूर्ण एवं प्रभावी बनाया जा सकता है। शरीर के हाव-भावों व विभिन्न मद्राओं के अभाव में मौखिक सम्प्रेषण नीरस तथा अप्रभावी रहता है।

(2) भावनाओं को व्यक्त करने में सहायक (Reveals Feeling)-अशाब्दिक संचार विभिन्न। भावनाओं जैसे खुशी, गम, सहानुभूति, क्रोध आदि को आसानी से प्रदर्शित कर सकता है। दृष्टि, भंगिमा, मुखाभिव्याक्त आदि एक व्यक्ति की भावनाओं को पर्ण रूप से व्यक्त करने में सहायक होते है।

(3) सन्देश के प्रवाह को नियन्त्रित करना Control the Flow of Message)-सचार का प्रक्रिया के अन्तर्गत सन्देश भेजने वाले व्यक्ति द्वारा अपने शरीर के हावभावों व विभिन्न मुद्राओं तथा इशारों द्वारा सन्देश के प्रवाह को नियन्त्रित किया जाता है जिससे सन्देश प्राप्त करने वाला व्यक्ति सन्देश को उसी अर्थ में ले, जो सन्देश भेजने के समय प्रेषक का था।

(4) संचार की सरल तथा मितव्ययी प्रणाली (Easy and Economic Way of Communication)-सांकेतिक भाषा के द्वारा व्यक्ति अपनी बात विभिन्न हावभावों तथा इशारों द्वारा दूसरे व्यक्ति तक पहुंचा सकता है। इसमें सन्देश देने के लिये किसी प्रकार का व्यय भी नहीं करना पड़ता। अत: यह संचार की सरल एवं मितव्ययी विधि है।

(5) विश्वसनीय सूचनाएँ (Authentic Message)-अशाब्दिक संचार के द्वारा प्राप्त सूचनाएं विश्वसनीय होती हैं क्योंकि शब्दों को तो हम आसानी से नियन्त्रित कर सकते हैं लेकिन मन के भावों को नियन्त्रित करना बहुत ही कठिन होता है।

(6) सन्देश का शीघ्रतापूर्वक संचारण (Rapidly Communication of Message)सांकेतिक संचार के माध्यम से सन्देश को दूसरे व्यक्ति तक अतिशीघ्र पहुँचाया जा सकता है तथा सन्देश प्राप्तकर्ता की प्रतिक्रिया भी उसी समय उसकी शारीरिक मुद्रा से ज्ञात की जा सकती है।

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अशाब्दिक संचार की हानियाँ

(Disadvantages of Non-Verbal Communication)

अशाब्दिक या सांकेतिक संचार के प्रमुख दोष निम्नांकित प्रकार हैं

(1) भ्रमपूर्ण (Confusing)–विभिन्न संस्कृति तथा रीति-रिवाजों वाले व्यक्तियों के शारीरिक संकेत भिन्न-भिन्न हो सकते हैं, अत: कभी-कभी इनसे भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

(2) बड़े समुदाय पर अप्रभावी (Ineffective in large group)-सांकेतिक संचार आमने-सामने के वार्तालाप में ही प्रभावी होता है। कुछ दशाओं को छोड़कर शारीरिक भाषा का प्रयोग बड़े समुदाय में अप्रभावी हो जाता है।

(3) कम विश्वसनीय (Less Reliable)-जो व्यक्ति अपने चेहरे के भावों को छपा सकते हैं. उनसे वार्तालाप में अधिक सावधानी रखनी पड़ती है, क्योंकि उनकी शारीरिक भाषा कछ कहती है. जबकि वास्तव में वे कुछ कह रहे होते हैं, वे विश्वास योग्य नहीं होते हैं। ऐसी दशा में लिखित व मौखिक संचार ही उचित होता है।

(4) प्रमाण उपलब्ध होना (No Evidence)-सांकेतिक संचार अल्प अवधि की प्रतीकात्मक प्रक्रिया है जिसका सामान्य रूप से कोई प्रमाण नहीं होता।

(5) सन्देश प्राप्तकर्ता की अरुचि (When Receiver has no Interest)-चेहरे के हाव-भाव, नेत्रों की भाषा आदि का प्रयोग करने पर यदि देखने या सुनने वाला व्यक्ति अरुचि दिखाता है। तो यह प्रभावी नहीं रहता। इसी प्रकार अगर श्रोता का ध्यान सम्प्रेषक की तरफ नहीं है तो सारी भाव भंगिमा व्यर्थ होती है।

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परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(Expected Important Questions for Examination)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

(Long Answer Questions)

1 अशाब्दिक सम्प्रेषण से आप क्या समझते हैं? अशाब्दिक सम्प्रेषण के प्रमुख माध्यमों का वर्णन कीजिए।

What do you mean by non-verbal communication What are the different modes of non-verbal communication ?

2. अशाब्दिक सम्प्रेषण क्या है? इसके गुण-दोष समझाइए।

What is non-verbal communication ? Explain its merits and demerits.

3. अशाब्दिक सम्प्रेषण से आपका क्या अभिप्राय है? इसके विभिन्न प्रकारों की व्याख्या कीजिए।

What do you mean by non-verbal communication ? Discuss its various types.

4. दैहिक भाषा (शारारिक भाषा) से आपका क्या अर्थ है? इसके लाभ और हानियों को समझाइए।

What do you meant by body language ? Discuss its advantages and disadvantages.

5. दैहिक भाषा सम्प्रेषण से आपका क्या अर्थ है? इसके गुण और दोष समझाइए।

What do you mean by body language ? Explain its merits and demerits.

6. होठों की आवाज की तुलना में मुस्कुराहट अधिक प्रभावी है।” देहिक भाषा सम्प्रेषण के सन्दर्भ में इसे स्पष्ट कीजिए। ”

Sound of smile is more louder than voice of lips.” Explain it in reference to body language communication.

7. किसी सम्प्रेषण प्रक्रिया को शारीरिक भाषा 50 प्रतिशत तक प्रभावित करती है।” समझाइए।

Body language affects 50% to any communication process.” Explain.

8. शारीरिक भाषा का सम्प्रेषण में महत्त्वपूर्ण योगदान है।” समझाइये।

“Kinesics plays a very important role in communication.” Discuss the statement.

9. शारीरिक भाषा का क्या अर्थ है? शारीरिक भाषा के प्रकार एवं महत्त्व पर प्रकाश डालिए।

What is meant by body language? Discuss the types and significance of body language.

10. शारीरिक भाषा पर एक संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।

Briefly explain body language.

11. भाषा प्रतिरूप अभाषिक सम्प्रेषण के अत्यन्त निकट है।” स्पष्ट कीजिए।

Para Language is closest to non-verbal communication.” Explain it.

12. संकेत भाषा से आप क्या समझते हैं? इसके कम-से-कम दो उदाहरणों का प्रयोग बतलाइये।

What do you mean by sign language? Discuss the use of at least two examples.

13. पार्श्व भाषा के अर्थ, महत्त्व व सीमाओं को स्पष्ट कीजिए।

Explain meaning, importance and limitations of para language.

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लघु उत्तरीय प्रश्न

(Short Answer Questions)

1 शारीरिक भाषा पर एक टिप्पणी लिखिए।

Write a short note on body language.

2. भाषा प्रतिरूप की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।

Explain the concept of Para language.

3. “भाषा प्रतिरूप अभाषिक सम्प्रेषण के अत्यन्त निकट है।” स्पष्ट कीजिए।

“Para Language is closest to non-verbal communication.” Discuss this statement.

4. “शारीरिक भाषा का सम्प्रेषण में महत्त्वपूर्ण योगदान है।” समझाइए।

“Kinesics plays a very important role in communication.” Discuss this statement.

5. शारीरिक भाषा की सीमाएँ बताइए।

Discuss the limitations of body language.

6. संकेत भाषा को संक्षेप में समझाइए।

Briefly explain the ‘Sign Language’.

7. विन्यास किसे कहते हैं? अंग विन्यास के विभिन्न पहलुओं को बताइए।

What do you mean by Kinesics ? Discuss various aspects of Kinesics.

8. अंग विन्यास के सन्दर्भ में हाव-भा के सन्दर्भ में हाव-भाव (Postures) एवं भाव-भंगिमा (Gestures) को र पत्र कीजिए।

Explain Postures and Gestures of the Body Language .

9. सामीप्य भाषा को संक्षेप में समझाइए।

Briefly explain the ‘Polemics’.

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chetansati

Admin

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