BCom 1st Year Business Planning Statistical Investigation Study Material notes in Hindi

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BCom 1st Year Business Planning Statistical Investigation Study Material Notes in Hindi

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Planning Statistical Investigation
Planning Statistical Investigation

BCom 1st Year Business Statistics Functions Importance Limitations study material Notes in Hindi

सांख्यिकीय अनुसंधान का आयोजन

(Planning of Statistical Investigation)

सांख्यिकीय अनुसंधान का आशय

(Meaning of Statistical Investigation)

मनुसघान शब्द से आशय ज्ञान की खोज से है। सांख्यिकीय अनुसंधान ज्ञान की वह खोज है जो सांख्यिकीय रीतियों द्वारा की जाये। इस प्रकार किसी क्षेत्र में संख्यात्मक विश्लेषण द्वारा समस्या का उचित निर्वचन करने के उद्देश्य से आवश्यक समंकों के वैज्ञानिक संकलन की क्रिया को सांख्यिकीय अनुसंधान कहत

यह स्पष्ट है कि सांख्यिकीय अनुसंधान केवल उन समस्याओं से सम्बन्धित होता है जिनका संख्यात्मक विवेचन किया जा सके; जैसे-किसी देश की जनसंख्या औद्योगिक मजदरों की आर्थिक स्थिति, विद्यार्थियों का मासिक व्यय, शिक्षित वर्गों की बेरोजगारी आदि के सम्बन्ध में तर्कपूर्ण निष्कर्ष निकालने के लिए आवश्यक सांख्यिकीय सामग्री के संकलन व विश्लेषण की क्रियायें सांख्यिकीय अनुसंधान हैं।

Business Planning Statistical Investigation

सांख्यिकीय अनुसंधान की प्रमुख अवस्थाएँ।

(Essential Stages of Statistical Investigation)

सांख्यिकीय अनुसंधान एक व्यापक क्रिया है । आयोजन से लेकर अन्तिम रिपोर्ट तैयार करने तक उसे अनेक स्थितियों से गुजरना पड़ता है । संक्षेप में सांख्यिकीय अनुसंधान की निम्न प्रमुख अवस्थायें हैं

1 अनुसंधान का आयोजन-सर्वप्रथम अनुसंधान के क्षेत्र व उद्देश्य, उसकी प्रकृति, सूचना के उद्गम, इकाइयों का निर्धारण तथा यथार्थता के स्तर को ध्यान में रखते हुए अनुसंधान की एक स्पष्ट योजना बना ली जाती है ।

2. समंकों का संकलन–अनुसंधान योजना बना लेने के बाद समस्या से सम्बन्धित समंकों को उपयुक्त रीति द्वारा एकत्रित किया जाता है

3. प्रश्नावली अनुसूची की रचना-सही सूचना उपलब्ध करने के लिए सूचकों से पूछे जाने वाले प्रश्नों की एक सूची तैयार कर ली जाती है।

4. संकलित समंकों का सम्पादन संकलन के उपरान्त विभिन्न अशुद्धियों को दूर करके, समंकों में यथोचित संशोधन किये जाते हैं।

5. समंक व्यवस्थासमंकों का सम्पादन करने के बाद उन्हें विभिन्न वर्गों व श्रेणियों में बाँटा जाता है और सारणियों में प्रस्तुत किया जाता है, जिससे उनका उचित प्रकार से विश्लेषण किया जा सके।

6. विश्लेषणआँकड़ों को प्रस्तुत करने के बाद विभिन्न गणितीय मापों द्वारा उनका विश्लेषण किया जाता है जिससे विवेचन का आधार प्राप्त किया जा सके । माध्य, अपकिरण, सह-सम्बन्ध इत्यादि विश्लेषण की प्रमुख विधियाँ हैं।

7. निर्वचन एवं अन्तिम प्रतिवेदन अनुसंधान क्रिया का अन्तिम चरण है-समंकों से उचित और निष्पक्ष निष्कर्ष निकालना तथा उसके आधार पर अन्तिम रिपोर्ट तैयार करना।

Business Planning Statistical Investigation

सांख्यिकीय अनुसंधान का आयोजन

(Planning of Statistical Investigation)

समंक सांख्यिकीय अनुसंधान का मूल आधार है । किसी क्षेत्र में सांख्यिकीय अनुसंधान द्वारा उचित निष्कर्ष निकालने के लिए यह अत्यावश्यक है कि समस्या से सम्बन्धित यथोचित, पर्याप्त और यथार्थ समंक उपलब्ध हों, अत: समंकों को उचित रीति द्वारा संकलित किया जाना चाहिए । परन्तु संकलन से पूर्व अनुसंधान की एक निश्चित योजना बना लेना अनिवार्य है । वास्तव में,सांख्यिकीय अनुसंधान में नियोजन आवश्यक है। यदि कछ प्रारम्भिक बातों को ध्यान में रखकर अनुसंधान का आयोजन नहीं किया जाता है तो समय श्रम व धन का अपव्यय होगा. अशुद्ध समंक प्राप्त होंगे और उनसे भ्रामक निष्कर्ष निकाले जायेंगे।

सकलन से पूर्व, अनुसंधान का आयोजन करते समय निम्न बातों पर स्पष्ट रूप से विचार कर लेना चाहिए

(1) अनुसंधान का उद्देश्य व क्षेत्र,

(2) सूचना के स्रोत,

(3) अनुसंधान का स्वरूप व प्रकार,

(4) सांख्यिकीय इकाइयों का निर्धारण,

(5) शुद्धता की माप

उद्देश्य और क्षेत्र

(Object and Scope)

सबसे पहले समस्या की स्पष्ट रूप से व्याख्या करके, अनुसंधान का क्षेत्र और उद्देश्य निश्चित कर लेना चाहिए। नीजवेंगर ने ठीक ही लिखा है कि उद्देश्य का स्पष्ट विवरण आधारभूत महत्व रखता है,क्योंकि उससे यह निश्चित किया जा सकता है कि कौन-से समंक एकत्र करने हैं.सम्बद्ध समंकों की क्या-क्या विशेषतायें हैं। किन सम्बन्धों की खोज करनी है, किन प्रविष्टियों द्वारा अनुसंधान करना है और अन्तिम रिपोर्ट की विषय-सामग्री व रूपरेखा क्या होगी। राबर्ट वेसेल एवं एडवर्ड विलेट के अनुसार, अनुसंधान परियोजना का उद्देश्य यथा-सम्भव परिशुद्ध रूप से स्पष्ट किया जाना चाहिए। इससे उचित सूचना का ही संग्रह सुनिश्चित हो जायेगा।’ यदि पहल से उद्देश्य और क्षेत्र निश्चित न किया जाये तो बाद में अनेक कठिनाइयाँ उपलब्ध हो जाती हैं,बहुत से अनावश्यक समंकों का संकलन हो जाता है तथा समय,धन व श्रम का अपव्यय होता है।

सांख्यिकीय अनुसंधान किसी सिद्धान्त की जाँच करने, स्थिति के बारे में जानकारी प्राप्त करने या किसी समस्या का अध्ययन व समाधान करने के उद्देश्य से किया जा सकता है। उसका उद्देश्य सामान्य या विशिष्ट हो सकता है। सामान्य उद्देश्य से किया जाने वाला अनुसंधान सर्वसाधारण के लाभ के लिए बड़े पैमाने पर किया जाता है; जैसे-जनगणना, उत्पादन संगणना, इत्यादि । विशिष्ट उद्देश्य वाला अनुसंधान किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए छोटे पैमाने पर तथा विशेष वर्ग के लाभार्थ किया जाता है; जैसे-पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चीनी मिल श्रमिकों की नकद मजदूरी का सर्वेक्षण ।

अनुसंधान का क्षेत्र, राजनैतिक या प्रशासनिक संभाग जैसे-ग्राम, जिला, प्रदेश आदि; आर्थिक संभाग-जैसे उद्योग, कृषि, बैंकिंग आदि तथा प्राकृतिक संभाग जैसे–पर्वतीय क्षेत्र; जंगल आदि के आधार पर निर्धारित कर लेना चाहिए। जैसे—यदि बेकारी की समस्या का सांख्यिकीय अध्ययन करना है तो यह पहले ही निर्णय कर लेना चाहिए कि किस प्रकार की बेकारी का अनुसंधान करना है (शिक्षित वर्ग या औद्योगिक बेकारी का) और किस क्षेत्र में मिर्जापुर नगर में, मिर्जापुर जिले में या समस्त उत्तर प्रदेश में  क्षेत्र की स्पष्ट व्याख्या हो जाने पर आगे किसी प्रकार की कठिनाई नहीं आयेगी।

उद्देश्य व क्षेत्र के साथ ही अनुसंधान की अवधि पर भी विशेष ध्यान रखना चाहिए । यथासम्भव थोड़े समय में लगातार आँकड़े प्राप्त करके यदि अनुसंधान कार्य पूर्ण किया जाता है तो समंकों में सनातनीयता बनी रहती है। जहाँ तक हो सके,सामान्य अनुसंधान कार्य किसी असाधारण समय में नहीं करना चाहिए।

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सूचना के स्रोत

(Sources of Information)

सूचना प्राप्ति के साधनों या स्रोतों के बारे में भी उचित निर्णय लेना आवश्यक है। सूचना स्रोत प्राथमिक या द्वितीयक हो सकता है। प्राथमिक साधनों द्वारा अनुसंधान करने में अनुसंधानकर्ता योजना बनाकर नये सिर से | मौलिक समंकों का संग्रह करता है जबकि द्वितीयक साधनों के अन्तर्गत वह अन्य व्यक्ति संस्था द्वारा पहले से एकत्रित तथा पत्र-पत्रिकाओं एवं अन्य प्रकाशनों में उपलब्ध सामग्री का उपयोग मात्र करता है। उदाहरण के लिए, यदि कोई अनुसंधानकर्ता नये सिरे से हिन्डालको के औद्योगिक मजदूरों से उनके आय-व्यय के बारे में सूचना प्राप्त करता है तो यह प्राथमिक अनुसंधान कहलायेगा। इसके विपरीत, यदि उसी क्षेत्र में श्रम मंत्रालय द्वारा एकत्रित व प्रकाशित आय-व्यय समंकों का उपयोग किया जाता है तो वह द्वितीयक अनुसंधान होगा। स्रोत का। निर्णय अनुसंधान की प्रकृति,उद्देश्य एवं क्षेत्र के आधार पर ही किया जा सकता है।

अनुसंधान का स्वरूप प्रकार

(Types of Investigation)

सांख्यिकीय अनुसंधान अनेक प्रकार के होते हैं। अलग-अलग प्रकति के अनुसधान अल

या म उपयुक्त होते हैं। अत: अनुसंधान के उद्देश्य क्षेत्र व लागत आदि के आधार पर यह निश्चय कर लेना आवश्यक है कि वह किस प्रकार का होगा। विभिन्न आधारों पर अनुसंधान निम्न प्रकार के होते हैं

(i) संगनण अथवा प्रतिदर्श (Census or Sample) दि अनुसंधान संगणना पद्धित से यदि अनसंधान संगणना पद्धति से किया जाता है तो संगणना के अन्तर्गत सम्पूर्ण क्षेत्र या समय की प्रत्येक इकाई के सम्बन्ध में सूचना प्राप्त की जाती है,किसा भा इकाई को छोड़ा नहीं जाता। इसके विपरीत प्रतिदर्श या प्रतिचयन अनुसंधान में पूरे क्षेत्र में से कुछ इकाइयों को नमूने के रूप में छाँट कर उनके बारे में ऑकडे प्राप्त किये जाते हैं। ।

जैसे किसी महाविद्यालय के सभी 1,000 विद्यार्थियों के मासिक व्यय के समंक प्राप्त किये जायें तो यह संगणना अनुसंधान कहलायेगा। इसके विपरीत यदि सभी 1.000 विद्यार्थियों में से किसी आधार पर 100 विद्यार्थी नमूने के रूप में छाँट लिये जायें और उन 100 के मासिक व्यय का संख्यात्मक विवरण प्राप्त किया जाये। तो वह प्रतिदर्श अनुसंधान होगा। आजकल प्रतिदर्श सर्वेक्षण अधिक लोकप्रिय है.क्योंकि इससे समय,श्रम व धन को बचत होती है तथा अशुद्धियों का न्यायोचित माप किया जा सकता है।

(ii) प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष (Direct or Indirect)-प्रत्यक्ष अनुसंधान उसे कहते हैं जिसमें तथ्यों का प्रत्यक्ष संख्याओं के रूप में माप सम्भव है; जैसे-व्यक्तियों की आय, ऊंचाई, भार, वस्त्र का उत्पादन, निर्यात इत्यादि । अप्रत्यक्ष अनुसंधान ऐसे तथ्यों से सम्बन्धित होते हैं जिनका प्रत्यक्ष संख्यात्मक माप नहीं किया जा सकता; जैसे-बौद्धिक स्तर, स्वास्थ्य स्थिति, आदि । ऐसी परिस्थिति में घटना को अप्रत्यक्ष रीति से संख्यात्मक

है; जैसे-विद्यार्थियों में बौद्धिक स्तर के माप के लिए उनकी परीक्षाओं के प्राप्ताकों को ही आधार मानना पड़ेगा।

(iii) गुप्त अथवा खुला अनुसंधान (Confidential or Open)-गोपनीय अनुसंधान सरकार द्वारा राजकीय प्रयोग के लिए या व्यापारिक संस्था द्वारा निजी उपयोग के लिए गुप्त रूप से कराये जाते हैं । इनसे प्राप्त समंकों का प्रकाशन नहीं किया जाता और ये सार्वजनिक उपयोग के लिए उपलब्ध नहीं होते । अगोपनीय या खुले अनुसंधान जनता के उपयोग के लिए कराये जाते हैं तथा इनके परिणामों को प्रकाशित कर दिया जाता है।

(iv) प्रारम्भिक या पुनरावृत्ति (Initial or Repetitive)-प्रारम्भिक अनुसंधान वह है कि जो किसी क्षेत्र में प्रथम बार किया जा रहा है। उसके लिए अनुसन्धान योजना नये ढंग से बनानी पडेगी। इसके विपरीत एक पुनरावृत्ति अनुसंधान पिछले अनुसंधान के सम्बन्ध में ही किया जाता है, अत: इसके लिए पिछली ही अनसंधान योजना का आवश्यक परिवर्तनों सहित प्रयोग किया जाता है ।

(v) नियमित या तदर्थ (Regular or Ad-hoc) नियमित अनुसंधान में नियमित अन्तराल पर स्थायी विभागों द्वारा आँकड़े एकत्रित किये जाते हैं; जैसे—सरकार द्वारा प्रति सप्ताह कुछ चुनी हुई वस्तुओं के मूल्य ज्ञात किये जाते हैं और उनके आधार पर थोक मूल्य-सूचकांक बनाये जाते हैं। इसके विपरीत, तदर्थ अनुसंधान कभी एक बार किसी विशेष समय पर किया जाता है; जैसे-भारत में ऋणग्रस्तता की जाँच तथा नियोजन काल में आयवितरण सम्बन्धी असमानताओं का सर्वेक्षण ।

(vi) डाक द्वारा या वैयक्तिक (Postal or Personal)-डाक द्वारा अनुसंधान में अनुसूचियाँ या प्रश्नावलियाँ सूचना देने वाले व्यक्तियों के पास डाक से भेज दी जाती हैं जो निश्चित तिथि से पूर्व भरकर उन्हें। वापस भेज देते हैं। इस प्रकार की जाँच सरल व कम खर्चीली होती है परन्तु यदि सूचना देने वालों का सहयोग प्राप्त न हो तो विश्वसनीय पर्याप्त आँकड़े प्राप्त नहीं होते हैं । व्यक्तिगत अनुसंधानकर्ताओं के द्वारा अनुसन्धान के अन्तर्गत योग्य व अनुभवी प्रगणक अनुसूचियाँ लेकर स्वयं सूचना देने वालों के पास जाते हैं और पछताछ द्वारा आकडे एकत्रित करते हैं। ऐसे अनुसन्धान का क्षेत्र विस्तृत होता है और अशिक्षित व्यक्ति भी सूचना प्रदान करने में सहयोग दे सकते हैं।

(vii) सरकारी, अर्धसरकारी या गैर सरकारी (Official, Semi-official or Unofficial)-सरकारी अनसंधान केन्द्रीय या राज्य सरकार द्वारा कराये जा सकते ह; जस-जनगणना। अर्ध-सरकारी अनसंधान ऐसी संस्था द्वारा कराये जाते हैं जिन्हें सरकारी संरक्षण प्राप्त हो जैसे-नगर निगम विश्वविद्यालय आदि  गैर सरकारी अनुसंधान गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा; जैसे व्यापार संघ. औद्योगिक संस्था द्वारा किये जाते हैं सरकारी व्यक्तियों को सूचना प्रदान करने के लिए कानन द्वारा बाध्य किया जा सकता है। अर्ध-सरकारी संस्थायें सूचना प्राप्त करने के लिए व्यक्तियों से केवल प्रार्थना ही कर सकती हैं जबकि गैर सरकारी संस्थाओं को सूचना के लिए व्यक्तियों से। याचना करनी पड़ती है।

उपर्युक्त प्रकार के अनुसंधान विभिन्न परिस्थितियों में विभिन्न समस्याओं के लिए प्रयोग किये जाते हैं; जैसे-भारतीय जनगणना सरकारी वैयक्तिक नियमित.सार्वजनिक,प्रत्यक्ष तथा संगणना प्रकृति का अनुसंधान है जबकि आकाशवाणी द्वारा आयोजित श्रोता-सम्मति सर्वेक्षण प्रतिचयन पर आधारित, अप्रत्यक्ष गुप्त,सामयिक तथा डाक द्वारा किये जाने वाला अनुसंधान है।

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सांख्यिकीय इकाई का निर्धारण

(Determination of Statistical Unit)

संख्यात्मक माप का एक सुनिश्चित आधार होना आवश्यक है। सांख्यिकीय इकाई माप का वह आधार है, जिसके अनुसार समंक एकत्र किये जाते हैं,उनका विश्लेषण तथा विवेचन होता है। प्रत्येक अनुसंधान में उपर्युक्त सांख्यिकीय इकाइयों का स्पष्ट निर्धारण बहुत आवश्यक है। इकाइयाँ निश्चित न होने पर संकलित समंकों में एक-रूपता और तुलनीयता नहीं होती, संकलन में अनेक कठिनाइयाँ उत्पन्न हो जाती हैं तथा बहुत से अनावश्यक आँकड़े एकत्र हो जाते हैं।

सांख्यिकीय इकाइयों का निर्धारण एक कठिन कार्य है जिसे पूरी सावधानी से करना चाहिए। आदर्श सांख्यिकीय इकाई में निम्न विशेषतायें होती हैं

(i) स्पष्ट परिभाषाइकाई की परिभाषा स्पष्ट,सुनिश्चित,सरल और संक्षिप्त होनी चाहिए। जिससे विभिन्न व्यक्ति उसका भिन्न-भिन्न अर्थ न लगा सकें । उदाहरणार्थ-मूल्य,मजदूरी,बेकारी, निरक्षरता, आय इत्यादि शब्दों की स्पष्ट और भ्रम रहित परिभाषा आरम्भ में ही निश्चित कर दी जाती है

(ii) स्थिर प्रमाणित होनाइकाई ऐसी होनी चाहिये जिसके मूल्य से शीघ्रता से परिवर्तन न होते हों, जो सर्वमान्य एवं प्रमाणित हों तथा अनुसन्धान में आरम्भ से अन्त तक जिसका एक ही अर्थ में प्रयोग किया जाये। भारत में मैट्रिक प्रणाली के समारंभ से पूर्व देश के विभिन्न भागों में नाप-तौल के विभिन्न आधारों का प्रयोग किया जाता था, इस विविधता के कारण अनुसन्धान में अनेक त्रुटियाँ और भ्रम उत्पन्न हो जाते थे; परन्तु अब नाप-तौल का प्रमापीकरण हो गया है।

(iii) उपयुक्तताअनुसंधान के उद्देश्य के अनुकूल ही इकाई का निर्धारण किया जाना चाहिये । यदि जाँच बड़े पैमाने पर की जा रही है तो इकाई बड़ी होनी चाहिये,जैसे-मैट्रिक टन, किलोमीटर आदि । यदि अनुसन्धान छोटे पैमाने पर हो रहा है तो इकाई छोटी होनी चाहिये; जैसे-ग्राम,मीटर, सेन्टीमीटर आदि। जाँच के उद्देश्य के अनुसार मूल्य का अर्थ ‘थोक मूल्य’, ‘फुटकर मूल्य’, ‘नियन्त्रित मूल्य’,“लागत मूल्य” आदि हो सकता है। सूती वस्त्र उद्योग में सर्वेक्षण करते समय ‘मजदूर’ का तात्पर्य उद्योग के सभी विभागों में मजदूरों से होगा जबकि बुनाई विभाग के सम्बन्ध में अनुसन्धान करते समय मजदूर’ शब्द का अर्थ विभाग में लगे मजदूर तक ही सीमित होगा।

(iv) सजातीयता एकरूपतायदि समंक सजातीय एकरूप नहीं हैं तथा उनमें विभिन्न विशेषताओं का समावेश है तो पहले उन्हें किसी पूर्व निश्चित आधार पर अलग-अलग सजातीय वर्गों व उपवर्गों में बाँट लेना चाहिए, फिर उन वर्गों व उपवर्गों को विभिन्न इकाइयों द्वारा प्रकट करना चाहिये । उदाहरणार्थ-किसी ऐसे कारखाने में मजदूरों की औसत मजदूरी के तथ्य प्राप्त करना है जिसमें प्रौढ तथा अल्प वयस्क, स्त्री व पुरुष आदि सभी प्रकार के मजदूर कार्य करते हों तो पहले मजदूर को कुछ सजातीय वर्गों में बाँटा जायगा; जैसे-प्रौढ पुरुष मजदूर, प्रौढ स्त्री मजदूर तथा अल्पवयस्क मजदूर। इसके बाद ही प्रत्येक वर्ग की मजदूरी की अलग-अलग जाँच की जायेगी। अतः यह स्पष्ट है कि अनुसन्धान की इकाइयों में सजातीयता होनी चाहिए ताकि तुलना में कोई । कठिनाई न हो।

इकाई के प्रकार

सांख्यिकीय इकाई निम्न प्रकार की होती हैं

सांख्यिकीय इकाई

(क) संकलन व आगणन की इकाई                                      (ख) विश्लेषण व निर्वचन इकाई

(i) सरल इकाई                                                                            (i) दर

(ii) संयुक्त या मिश्रित इकाई                                                         (ii) अनुपात

(iii) गुणांक

() संकलन आगणन इकाइयाँ (Units of Collection and Enumeration) –संकलन वआगणन की इकाइयाँ वे इकाइयाँ हैं जिनके आधार पर माप किये जाते हैं और समंकों को एकत्रित किया जाता है; जैसे-वस्त्र उत्पादन के माप के लिए मीटर,चीनी उत्पादन के लिए मैट्रिक टन,आदि ।

संकलन व आगणन इकाइयाँ भी दो प्रकार की होती हैं

(i) सरल (Simple)-ये इकाइयाँ सरल होती हैं और अधिकतर एक ही शब्द द्वारा व्यक्त की जाती है। जैसे-मीटर,घण्टे,टन इत्यादि । इनमें अशुद्धि की सम्भवना कुछ कम रहती है और क्षेत्र कुछ व्यापक होता है।

(ii) संयुक्त या मिश्रित (Composite) संयुक्त काई दो या दो से अधिक सरल इकाइयों के सम्मिश्रण से बनाई जाती है अर्थात् यह सरल इकाई से पहले विशेषण जोड़ देने से बनती है जिससे इसका क्षेत्र सीमित हो जाता है; जैसे-श्रम घण्टे,किलोवाट घण्टे इत्यादि संयुक्त या मिश्रित इकाइयाँ हैं।

() विश्लेषण निर्वचन की इकाइयाँ (Units of Analysis and Interpretation) विश्लेषण व निर्वचन की इकाइयाँ वे इकाइयाँ हैं जिनकी सहायता से समंकों की तुलना सुगमतापूर्वक की जाती है। इनके आधार पर आँकड़ों का विश्लेषण व निर्वचन किया जाता है। जैसे-यदि यह कहा जाये कि कॉलेज क में M.Com. में 50 में से 45 विद्यार्थी उत्तीर्ण हुये और कालेज ख में उसी परीक्षा में 60 में से 45 विद्यार्थी पास हुये तो इन तथ्यों की उचित तुलना नहीं हो पाती। इसके विपरीत,यदि इन्हीं समंकों को 90% तथा 75% सफलता के रूप में प्रकट किया जाये तो तुलना सरल हो जाती है।

विश्लेषण व निर्वचन की निम्न इकाइयाँ होती हैं।

(i) दर (Rate)-इस इकाई द्वारा किसी संख्या को प्रतिशत या प्रति सहस्र या प्रति लाख आदि के आधार पर व्यक्त किया जाता है; जैसे-प्रतिशत ब्याज दर,प्रतिशत लाभ की दर,प्रति हजार मृत्यु दर आदि । दरों में अंश वहर की संख्यायें भिन्न प्रकार की होती है; जैसे-मृत्यु संख्या व जनसंख्या।

(ii) अनुपात (Ratio)-दो सजातीय व समान संख्याओं में पारस्परिक सम्बन्ध को अनुपात द्वारा व्यक्त किया जाता है। अनुपात दो सजातीय समंकों को भाग देने से प्राप्त हो जाता है; जैसे-1 अप्रैल 1977 में भारत की कल जनसंख्या 54.7 करोड़ में से 28.3 करोड़ पुरुष थे और 26.4 करोड़ स्त्रियाँ, तो पुरुष-स्त्री अनुपात (Sex-Ratio) 1000 : 932 हुआ।

(iii) गुणांक (Coefficient)-सजातीय अंश और हर की पारस्परिक तुलना के लिये प्रयोग की जाने। वाली निर्वचन इकाई गुणांक कहलाती है । वस्तुतः यह प्रति इकाई दर होती है । यह एक ऐसी तुलनात्मक संख्या होती है जिसे कुल संख्या से गुणा करने पर आधारभूत संख्या ज्ञात हो जाती है । इसे निम्न सूत्र द्वारा व्यक्त करते

C=Q/N – जहाँ C, Coefficient या गुणांक है,Q, Quantity या वह मात्रा है जिसका गुणांक ज्ञात करना है और N, Number या कुल आधार संख्या है । यदि किसी स्थान पर जनसंख्या (N) 10,000 हो और एक वर्ष में उत्पन्न। बच्चों की संख्या (Q) 250 हो तो जन्म-गुणांक .025 होगा

शुद्धता की मात्रा

नुसंधान योजना बनाते समय यह भी निर्णय कर लेना आवश्यक है कि प्रस्तावित जाँच में शुद्धता की कितनी  माना रहगी । सांख्यिकीय अनुसंधानों में पूर्ण शद्धता न तो आवश्यक है और न सम्भव हे,अतः यथोचित शुद्धता के लक्ष्य को ही प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिये । उचित शुद्धता का अनुसंधान का उद्देश्य व क्षेत्र तथा उपलब्ध साधनों पर निर्भर होती है। उसका निर्धारण अनुभव व परिस्थिति के आधार किया जा सकता है। जैसे-कच्चे लोहे के उत्पादन के आँकडे प्राप्त करने में माटिक टनों तक पथाथता होना चाहिये किलोग्राम इत्यादि की उपेक्षा की जा सकती है। परन्तु सोने का भार करते समय ग्राम तक को नहीं छोड़ा जा सकता। अतः अनुसंधानकर्ता को अनेक बातों का ध्यान रखते हुए यथोचित शुद्धता का स्तर निश्चित कर लेना चाहिये तथा अनुसंधान के प्रारम्भ से अन्त तक उस स्तर का पालन करना चाहिये।

इस प्रकार, समंकों को एकत्र करने से पूर्व अनसंधानकर्ता को उपर्युक्त सभी प्रारम्भिक बातों को ध्यान में रखकर सांख्यिकीय अनुसंधान की एक निश्चित योजना बना लेनी चाहिये तथा उस योजना अनुसार ही उसे संकलन कार्य करना चाहिये जिससे यथार्थ व पर्याप्त समंक उपलब्ध हो जायें और उनके आधार पर विश्वसनीय निष्कर्ष निकाले जा सकें।

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प्रश्न

1. सांख्यिकीय अनुसन्धान से क्या आशय है? एक सांख्यिकीय अनुसन्धान की योजना बनाते समय किन-किन बातों पर ध्यान देंगे?

What is Statistical Investigation ? Describe the preliminary steps you would take in planning a Statistical Investigation ?

2. अपने जिले में कटीर उद्योगों के कार्य की जाँच करने के उद्देश्य से औद्योगिक सर्वेक्षण की एक योजना तैयार कीजिए।

Outline a plan for carrying out an industrial survey of your district to examine the working of various cottage industries.

3. गोरखपुर में बेरोजगारी की जाँच के लिए किस प्रकार आप एक सांख्यिकीय योजना तैयार करेंगे? इस उद्देश्य हेतु आप किन समंकों का प्रयोग करेंगे?

How would you plan an inquiry about the unemployment in Gorakhpur ? What data would you utilise for this purpose ?

4. सांख्यिकीय इकाई से क्या आशय है? विभिन्न प्रकार की सांख्यिकीय इकाइयों को उदाहरण सहित बताइए।

What do you mean by statistical unit? What are the various types of statistical units? Explain with examples.

लघु उत्तरीय प्रश्न

(Short Answered Questions)

5. प्रत्येक प्रश्न का उत्तर 100 से 120 शब्दों में दीजिये

The answer should be between 100 to 20 words :

(i) सांख्यिकीय अनुसन्धान का अर्थ बताइये।

Clear the meaning of statistical investigation.

(ii) सांख्यिकीय अनुसन्धान की प्रमुख अवस्थायें अथवा चरण बताइये ।।

Explain the main stages of statistical investigation.

(iii) सांख्यिकीय अनुसन्धान के उद्देश्य एवं क्षेत्र बताइये।

Explain the objectives and limitations of statistical investigations.

(iv) सांख्यिकीय अनुसन्धान की योजना बनाते समय किन-किन बातों पर ध्यान देना चाहिए?

Describe the preliminary steps you would take in planning a statistical investigation?

एक आदर्श सांख्यिकीय इकाई की मुख्य विशेषताएँ बताइये।

Give the main characteristics of an ideal statistical unit.

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अति लघु उत्तरीय प्रश्न

(Very Short Answers Questions)

(अ) निम्न कथनों में से कौन-सा कथन सत्य या असत्य है

State whether the following statements are TRUE or FALSE:

(i) समंकों के वैज्ञानिक संकलन एवं विश्लेषण की क्रिया को सांख्यिकीय अनुसन्धान कहते हैं।

Scientific collection and analysis of data is known as statistical investigation.

दो सजातीय संख्याओं में पारस्परिक सम्बन्ध को व्यक्त करने की इकाई अनुपात कहलाती है।

The unit expressing the relationship between two homogeneous numbers is known as ratio.

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chetansati

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