BCom 1st Year Business Regulatory Framework Conditions Warranties Study Material Notes in Hindi

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BCom 1st Year Business Regulatory Framework Conditions Warranties Study Material Notes in Hindi

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BCom 1st Year Business Regulatory Framework Conditions Warranties Study Material Notes in Hindi: Meaning of Conditions and Warranties Case where a breach of Conditions is Deemed as Breach of Warranty Conditions Treated as Warranty Distinction Between Condition and Warranty Implied Conditions and Warranties Rule of Caveat Emptor Examinations Questions Long Answer Questions Short Answer Questions:

Conditions Warranties Study Material
Conditions Warranties Study Material

BCom 1st Year Business Regulatory Framework Sale Goods Act 1930 An Introduction Study Material Notes in Hindi

शर्ते तथा आश्वासन

(Conditions And Warranties)

शर्ते तथा आश्वासन का आशय

(Meaning of Conditions and Warranties)

वस्तु-विक्रय का अनुबन्ध करने से पूर्व सामान्यत: विक्रेता वस्तु के सम्बन्ध में अनेक बातें क्रेता को बताता है तथा क्रेता के सामने वस्तु की थोड़ी बहत प्रशंसा भी अवश्य करता है। ऐसे विवरण विक्रेता के द्वारा अपनी वस्तु के सन्दर्भ में मत व्यक्त करने के उद्देश्य से अथवा कभी-कभी क्रेता को वस्तु । खरीदने के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से दिया जाता है। प्रश्न यह है कि क्या ऐसा विवरण केवल विक्रेता का मत (Opinion) मात्र है? या क्रेता को प्रेरित करने के लिए ‘प्रतिबन्धन’ (Stipulation) है? यदि विक्रेता वस्तु के सम्बन्ध में कोई ऐसा कथन दृढ़तापूर्वक कहता है जिसके बारे में क्रेता को कोई जानकारी नहीं है, तो ऐसा कथन अनुबन्ध का एक भाग या आधार बन जाता है अर्थात् अनुबन्ध के लिए प्रतिबन्धन माना जाता है। इसके विपरीत, यदि बिना किसी विशिष्ट ज्ञान के विक्रेता वस्तु के सम्बन्ध में अपनी राय प्रकट करता है या वस्तु की प्रशंसा करता है तो इसे अनबन्ध का भाग या आधार नहीं माना जाता। वस्तुत: प्रतिबन्धन अनुबन्ध का एक अंग होता है, क्योंकि क्रेता उस पर आधारित होकर वस्तु को क्रय करता है तथा अनुबन्ध के निष्पादन की माँग करने पर विक्रेता ऐसे प्रतिबन्ध से इन्कार नहीं कर सकता अर्थात् वस्तु-विक्रय अनुबन्ध के पक्षकार ऐसे बन्धनों से बंध जाते हैं और ‘क्रेता सावधानी का नियम’ क्रियाशील नहीं होता है। इन बन्धनों को दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है-1. शर्त (Condition),2. आश्वासन (Warrantyal

शर्त (Condition)-जब कोई कथन अनुबन्ध का आधार प्रतीत होता है और उसके पूरा न किए जाने पर अनुबन्ध का कोई अर्थ नहीं रहता तो ऐसे महत्त्वपूर्ण कथन को शर्त कहते हैं।

वस्तु विक्रय अधिनियम की धारा 12 (2) के अनुसार, “अनुबन्ध के ऐसे बन्धन या कथन को शर्त कहते हैं जो अनुबन्ध के मुख्य उद्देश्य की पूर्ति के लिए आवश्यक है तथा जिसके भंग होने पर दूसरे पक्ष को अनुबन्ध समाप्त करने का अधिकार मिल जाता है।”

उदाहरणार्थ, ‘अतुल, ‘विपुल’ से एक गाय खरीदना चाहता है तथा ‘विपुल’ गाय के सम्बन्ध में यह तथ्य बताता है कि गाय 10 किलो दूध देती है। इस तथ्य के विषय में ‘अतुल’ को पहले से जानकारी नहीं थी। ‘विपुल’ का यह कथन प्रतिबन्धन है जिसका पूरा होना अनिवार्य है। अत: यह अनुबन्ध की एक शर्त है। शर्त के प्रमख तत्व ये हैं-1 शर्त एक बन्धन है। 2. यह बन्धन अनबन्ध के मख्य उद्देश्य के लिए आवश्यक है। 3. इस बन्धन के पूरा न होने पर अनुबन्धन को भंग हुआ माना जा सकता है।

आश्वासन [धारा 12 (3)1 (Warranty)-“आश्वासन उस बन्धन या कथन को कहते हैं जो अनुबन्ध के मुख्य उद्देश्य के लिए सहायक (समपाश्विक) (Collateral) है तथा जिसे पूरा न किए जाने पर दूसरा पक्ष केवल हर्जाने की माँग कर सकता है, परन्तु अनुबन्ध को समाप्त करने तथा माल को अस्वीकार करने का अधिकार नहीं होता।” आश्वासन के मुख्य तत्व इस प्रकार हैं-1. यह एक बन्धन है। 2. यह बन्धन अनुबन्ध के मुख्य उद्देश्य के लिए सभपाश्विक है, आवश्यक नहीं। 3. इस बन्धन के पूरा न होने पर क्रेता को केवल हर्जाना प्राप्त करने का अधिकार मिलता है, अनुबन्ध भंग का नहीं। उदाहरणार्थ, ‘अ’, ‘ब’ से एक अच्छा स्कूटर खरीदने की इच्छा प्रकट करता है और स्कूटर देते समय ‘ब’ यह कहता है कि स्कूटर एक लीटर पेट्रोल में 30 किलोमीटर चलता है। बाद में पता चलता है कि वह एक लीटर पेट्रोल में 25 किलोमीटर ही चलता है। ऐसी स्थिति में ‘ब’ का कथन समपाश्विक है और अनुबन्ध इस कथन पर आधारित नहीं है। अत: यह आश्वासन भंग माना जाएगा और ‘अ’ केवल क्षतिपूर्ति का मांग कर सकता है, अनुबन्ध को रद्द नहीं कर सकता।

Business Regulatory Framework Conditions

शर्त तथा आश्वासन की कसौटी धारा 12 (4)]

विक्रय-अनुबन्ध में कोई बन्धन (प्रतिबंध) शर्त है, अथवा आश्वासन, यह बात प्रत्येक दशा में। बन्ध को बनावट पर निर्भर करती है। कोई बन्धन शर्त भी हो सकता है, यद्यपि अनुबन्ध में उसे आश्वासन कहा गया है।” कहने का अर्थ यह है कि किसी भी विवाद के उत्पन्न होने पर न्यायालय को ह आधकार है कि वह अनबन्ध से सम्बन्धित सभी कथनों का विश्लेषण करे तथा पक्षकारों की भावना आधार पर निर्णय करे कि विक्रेता द्वारा कहा गया कोई कथन अनुबन्ध के लिए शर्त है अथवा मात्र आश्वासना

उदाहरणार्थ, ‘अमित’ अपनी कार ‘सुमित’ को बेचता है और कहता है कि कार एक लीटर पेटोल में लगभग 20 कि० मी० चलती है। ऐसी स्थिति में अमित के उक्त कथन को केवल आश्वासन कहा जाएगा, शर्त नहीं. क्योंकि पक्षकारों का आशय यह नहीं था कि कार का विक्रय एक लीटर पेट्रोल में 20 किमी० चलने पर निर्भर होगा। इसके विपरीत यदि ‘अमित’, ‘सुमित’ से यह कहता है कि “मैं अपनी कार इस गारण्टी के साथ बेचने को तैयार हूँ कि वह एक लीटर पेट्रोल में 20 किलोमीटर चलेगी।” ऐसी स्थिति में ‘अमित’ के उक्त कथन को ‘शर्त’ माना जाएगा।

शर्त भंग को आश्वासन भंग समझे जाने वाली दशाएँ

(Cases Where Breach of Condition is Deemed as Breach of Warranty)

अथवा

शर्त को आश्वासन माना जाना

(Condition Treated as Warranty)

कुछ परिस्थितियाँ ऐसी होती है जिनमें शर्त भंग को आश्वासन-भंग माना जाता है अर्थात् क्रेता अनुबन्ध समाप्त नहीं कर सकता केवल हर्जाना ही प्राप्त कर सकता है। सामान्यत: निम्नलिखित परिस्थितियों में शर्त भंग को आश्वासन भंग माना जाता है

1.क्रेता द्वारा शर्त का परित्याग किया जाना धारा 13 (1)]-जब विक्रय अनुबन्ध के अन्तर्गत विक्रेता को कोई शर्त पूरी करनी हो तो क्रेता उस शर्त का परित्याग (Waive) कर सकता है या शर्त-भंग को आश्वासन-भंग मान सकता है। क्रेता का यह निर्णय स्पष्ट हो सकता है अथवा उसके आचरण द्वारा गर्भित हो सकता है। परन्तु यह ध्यान रहे कि एक बार किसी शर्त का परित्याग करने के बाद क्रेता, विक्रेता को वह शर्त पूरा करने के लिए बाध्य नहीं कर सकता। उदाहरणार्थ, ‘दिनेश’ ने ‘मुकेश’ को 1 अक्टूबर, 2016 को 150 कुर्सियाँ देने का वचन दिया। इस अनुबन्ध का मूल तत्व समय था। किसी कारणवश ‘दिनेश’ ने 150 कुर्सियाँ 1 अक्टूबर 2016 की बजाय 15 अक्टूबर, 2016 को प्रस्तुत की। यहाँ पर ‘मुकेश’ चाहे तो समय रूपी आवश्यक शर्त का त्याग करते हुए कुर्सियाँ स्वीकार कर सकता है, अथवा शर्त भंग को आश्वासन-भंग मान कर क्षतिपूर्ति के लिए वाद प्रस्तुत कर सकता है।

2. क्रेता द्वारा माल की सुपुर्दगी ले लेने पर [धारा 13 (2)]-जब विक्रय अनुबन्ध को हिस्सों में नहीं बाँटा जा सकता और क्रेता ने पूरा माल या उसका कुछ भाग स्वीकार कर लिया हो, तो अनुबन्ध में कोई विपरीत शर्त न होने पर शर्त-भंग को आश्वासन-भंग माना जाता है। ऐसी स्थिति में शर्त-भंग को आश्वासन-भंग समझ लेना क्रेता की इच्छा पर निर्भर नहीं है बल्कि अनिवार्य रूप से शर्त-भंग को आश्वासन-भंग समझा जाता है। एक बार वस्तुओं को स्वीकार करने के बाद यदि क्रेता को यह पता चले कि कोई शर्त भंग हुई है तो वह वस्तुओं को नहीं लौटा सकता, केवल हर्जाने की माँग कर सकता है।

इसी प्रकार जब क्रेता किसी विशिष्ट माल का स्वामित्व प्राप्त करके माल को किसी तीसरे पक्षकार को बेच देता है, तब भी शर्त-भंग को आश्वासन-भंग माना जाता है। उदाहरणार्थ, ‘अरुण’, ‘वरुण’ द्वारा दिखाए गए नमूने के अनुसार, ‘वरुण’ से 5 आटे की बोरियाँ खरीदने को सहमत हो जाता है। माल की पगी प्राप्त करने पर अरुण मूल्य का भुगतान कर देता है। ‘अरुण’ माल की जाँच करने पर पाता है। नमूने के अनुसार नहा हा फिर भी वह दो बोरियाँ अपने काम में ले लेता है और एक बेच देता। पा’ अनबन्ध का परित्याग नहीं कर सकता, लेकिन शर्त के भंग होने के कारण ‘अरुण’ ‘वरुण से क्षतिपूर्ति अवश्य ले सकता है।

Business Regulatory Framework Conditions

गर्भित शर्ते तथा आश्वासन

(Implied Conditions and Warranties)

वस्तु-विक्रय अनुबन्धों में शर्ते तथा आश्वासन स्पष्ट अथवा गर्भित हो सकते हैं। स्पष्ट शर्त एवं आश्वासन वे बन्धन होते हैं जो अनुबन्ध करते समय निश्चित रूप से स्पष्ट कर दिए जाते हैं। गर्भित शर्त तथा आश्वासन वह बन्धन होते हैं जो अनुबन्ध करते समय स्पष्ट नहीं किए जाते अपितु अधिनियम अथवा व्यापार की प्रथा द्वारा पहले से ही उनकी उपस्थिति अनुबन्ध में मान ली जाती है।

गर्भित शर्ते (Implied Conditions)

वस्तु-विक्रय अनुबन्ध में निम्नलिखित शर्ते गर्भित शर्ते मानी जाती हैं

1 माल के स्वत्व सम्बन्धी शर्ते (As to Title)-प्रत्येक विक्रय-अनुबन्ध में यह एक गर्भित शर्त होती है कि विक्रय की दशा में विक्रेता को वस्तु बेचने का अधिकार प्राप्त है तथा विक्रय के ठहराव की दशा में उसे ऐसा अधिकार उस समय होगा जबकि स्वामित्व हस्तांतरण होने को है। यह आवश्यक नहीं। कि विक्रेता माल का स्वामी हो। वह माल के स्वामी का एजेन्ट भी हो सकता है जिसे माल बेचने का अधिकार प्राप्त हो। यदि विक्रेता का स्वामित्व दूषित निकलता है तो क्रेता माल अस्वीकार करने का अधिकारी है। रोवलेण्ड बनाम दिवल्ल 1923 (Rowland Vs Divall 1923) के प्रकरण में ‘अ’ ने एक मोटर चोरी से प्राप्त करके ‘ब’ को बेच दी। कुछ दिनों तक प्रयोग करने के उपरान्त ‘ब’ को मोटर उसके वास्तविक स्वामी को वापस करनी पड़ी। न्यायालय ने इसे माल बेचने के अधिकार सम्बन्धी शर्त का खण्डन घोषित करके ‘ब’ को ‘अ’ से मूल्य पाने का अधिकारी ठहराया।

2. वर्णन द्वारा विक्रय (Sale by Description)-जहाँ वर्णन के द्वारा माल के विक्रय का अनुबन्ध हुआ है वहाँ यह गर्भित शर्त रहती है कि माल वर्णन के अनुसार होगा। उदाहरण के लिए ‘अ’ ने ‘ब’ को एक सेकिण्ड-हैंड कम्प्यूटर यह कहकर बेचा कि कम्प्यूटर बिल्कुल नया है और बहुत अच्छा चलता है। ‘ब’ ने उसे कभी नहीं देखा था। यह वर्णन द्वारा विक्रय है और ऐसी दशा में यदि कम्प्यूटर पुराना निकलता है तो उसे शर्त-भंग कहेंगे और ‘ब’ उसे अस्वीकार कर सकता है।

नमूने तथा वर्णन द्वारा विक्रय की दशा में (Sale by Description and Sample)-यदि कोई माल नमूने तथा वर्णन दोनों के द्वारा बेचा गया है तो यह पर्याप्त नहीं है कि माल नमूने के अनुरूप हो वरन् उसे वर्णन के अनुसार भी होना चाहिए। उदाहरण के लिए, ‘अ’ ने ‘ब’ को सरसों का तेल नमने तथा वर्णन के द्वारा बेचने का अनबन्ध किया। जो तेल दिया गया वह नमूने के अनुसार तो है किन्तम मूगफली के तेल की मिलावट है। माल वर्णन के अनुसार न होने के कारण गभित शत-भंग मानी जा अत: क्रेता माल स्वीकार करने से इन्कार कर सकता है। ।

3. माल की किस्म व उपयुक्तता (Quality and Fitness of Goods)-सामान्यतः विक्रय । अनुबन्ध के अन्तर्गत सपर्द किए जाने वाले माल की किस्म या गुण तथा उपयुक्तता के सम्बन्ध में कोई गभित शर्त नहीं होती, क्योंकि विक्रय अनबन्ध में क्रेता की सावधानी का नियम लागू होता है। परन्त जी क्रेता स्पष्ट अथवा गर्भित रूप से विक्रेता को वह विशेष उद्देश्य बता देता है जिसके लिए उसे उस वर की आवश्यकता है तो उसमें यह गर्भित शर्त है कि माल उस विशेष उद्देश्य के लिए उपयुक्त होगा। ‘माल का विशेष उद्देश्य के लिए यथोचित रूप से उपयुक्त होना’ निम्नांकित तीन परिस्थितियों में ही गर्भित शाह मानी जाएगी

(अ) विशेष उद्देश्य प्रकट करना-क्रेता को उस विशेष उद्देश्य को प्रकट कर देना चाहिए। जिसके लिये माल चाहिए। यह उद्देश्य स्पष्ट अथवा गर्भित रूप से प्रकट किया जा सकता है। यदि माल अनेक उद्देश्यों की पूर्ति करने वाला है तो क्रेता को चाहिए कि वह विक्रेता को बतलाए कि उसे माल किस विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए चाहिए।

(ब) विक्रेता की कुशलता तथा निर्णय पर विश्वास होना-क्रेता द्वारा विक्रेता की कुशलता तथा निर्णय पर विश्वास किया गया हो।

(स) साधारण व्यापार के अन्तर्गत माल बेचना-माल ऐसा होना आवश्यक है जिसे विक्रेता सामान्य रूप से बेचता हो। यह महत्त्वहीन है कि विक्रेता उस वस्तु का निर्माता अथवा उत्पादक है अथवा नहीं है।

4. वस्तु की व्यापार योग्यता (As to merchantibility of goods)-जहाँ माल वर्णन द्वारा ऐसे विक्रेता से खरीदा जाता है जो उस वर्णन के माल का व्यापार करता है (चाहे वह उसका निर्माता अथवा उत्पादक है अथवा नहीं) वहाँ यह एक गर्भित शर्त होगी कि माल व्यापार-योग्य गुण का होगा। किन्तु यदि क्रेता ने माल की भली-भाँति परीक्षा कर ली है तो ऐसे दोषों के सम्बन्ध में जो ऐसी जाँच से प्रकट हो सकते हों, कोई गर्भित शर्त नहीं रहेगी।

माल की व्यापार योग्यता तथा विक्रय योग्यता में अन्तर है। यदि क्रेता ने माल की भली भाँति जाँच कर ली है तो ऐसे दोषों के सम्बन्ध में, जो ऐसी जाँच से ज्ञात हो सकते थे, विक्रेता का कोई दायित्व नहीं होगा।

5. व्यापार की रीति के विषय में (As to usage of trade)-किसी विशेष उद्देश्य के लिए किस्म अथवा उपयुक्तता के सम्बन्ध में कोई भी गर्भित शर्त व्यापार की परम्परा द्वारा भी लगाई जा सकती है। ।

जैसे यदि किसी उत्पादक को माल का आदेश दिया जाता है तो यह गर्भित शर्त होगी कि विक्रय किए जाने वाला माल उसी उत्पादक द्वारा उत्पादित होगा।

6. नमूने द्वारा विक्रय (Sale by Sample)-‘नमूने द्वारा विक्रय-अनुबन्ध’ वह विक्रय अनुबन्ध है जिसमें इस आशय की स्पष्ट अथवा गर्भित शर्त रहती है। ‘नमूने द्वारा बेचे जाने वाले माल, के अनुबन्ध’ में यह गर्भित शर्त रहती है कि

(अ) सम्पूर्ण माल (Bulk) का गुण नमूने के अनुरूप होगा;

(ब) क्रेता को, सम्पूर्ण माल नमूने से मिलान करने का उचित अवसर प्राप्त होगा;

(स) माल में ऐसा कोई दोष नहीं होगा जो माल को व्यापार योग्य न रहने दे और जो नमूने की उचित परीक्षा से भी स्पष्ट हो।’

मोदी बनाम ग्रेगसन के विवाद में विक्रेता द्वारा बेचे गए कपड़े में ऐसा दोष पाया गया जिसके कारण कपड़ा कोट बनाने योग्य नहीं रहा। नमूने की उचित जाँच करने पर भी कपड़े के दोष का पता नहीं लगाया जा सकता था। अत: न्यायालय ने विक्रेता को दोषी ठहराया।

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गर्भित आश्वासन

(Implied Warranties)

वस्तु विक्रय-अनुबन्धों में निम्नांकित गर्भित आश्वासन होते हैं

1 वस्तु पर शान्त अधिकार (Quiet Possession)-वस्तु विक्रय अधिनियम की धारा 14 (b) के पोक विक्रय-अनबन्ध में यह गर्भित आश्वासन होता है कि क्रेता का क्रय किये गये माल पर अधिकार होगा एवं वह शान्तिपूर्ण ढग स अपना इच्छानुसार उस माल का उपयोग कर सकेगा। इसके द्वारा माल का प्रयोग करने में कोई भी व्यक्ति कोई बाधा, दिक्कत या अड़चन उपस्थित नहीं करेगा। स्पष्ट है कि विक्रेता के माल पर दुषित अधिकारों के परिणामस्वरूप क्रेता का दूषित अधिकारों के परिणामस्वरूप क्रेता को कोई क्षति होती है तो यह आश्वासन भंग समझा जाएगा और विक्रेता, क्रेता की क्षति-पूर्ति करने के लिए बाध्य होगा।

वस्तु का भारमुक्त होना (Free from any charge)-‘प्रत्येक विक्रय अनुबन्ध म अनुबन्ध की परिस्थितियों से कोई विपरीत आशय प्रकट न हो वहाँ यह गर्भित आश्वासन है कि माल ततीय पक्षकार के ऐसे भार से मुक्त होगा जो अनुबन्ध करन क पूर्व अथवा अनुबन्ध करते समय घोषित नहीं किया गया है अथवा जिसका ज्ञान क्रेता को नहीं है।

2. माल का किस्म या उपयुक्तता (Ouality or fitness of goods)-‘किसा विशष उद्दश्य लिए किस्म अथवा उपयुक्तता के सम्बन्ध में गर्भित आश्वासन व्यापार की परम्परा के अनुसार हो सकता। है। ‘अच्छी हालत में कार’ की बिक्री में ‘कार का अच्छी हालत’ में होना गर्भित आश्वासन है। ।

3. माल का शुद्धता (Purety of goods)-उस माल के सम्बन्ध में जिस पर व्यापारिक चिन्ह (Trade-Mark) लगा हो, विक्रेता की ओर से यह गर्भित आश्वासन होगा कि चिन्ह अथवा वर्णन वास्तविक है।

4. विशेष सावधानी का आश्वासन (Warranty as to Snecial Care)-हानिप्रद अथवा खतरनाक माल के विक्रेता का यह कर्तव्य होता है कि वह क्रेता को इस सम्बन्ध में सचेत कर दे और यह भी स्पष्ट कर दे कि ऐसी वस्तुओं के सम्बन्ध में विशेष सावधानी आवश्यक है। इसीलिए विशिष्ट दवाओं पर लिखा रहता है कि ‘शीतल एवं अंधकारमय स्थान में रखिए’, यह विष है (It is Poison)’, ‘डॉक्टर की सलाह से उपयोग कीजिए’ आदि।

एक प्रकरण में क्रेता ने कीड़े मारने का पाउडर खरीदा। विक्रेता को जानकारी थी कि डिब्बे को सावधानी से न खोलने पर वह खतरनाक सिद्ध हो सकता है परन्तु उसने क्रेता को इसके लिए नहीं कहा। डिब्बा खोलते समय क्रेता की आँख में चोट लग गई। निर्णय हुआ कि क्रेता हर्जाना पाने का अधिकारी है।

यदि कोई विक्रेता अपने आपको गर्भित आश्वासनों से मुक्त रखने का प्रयास करता है तथा मुक्त रखने की घोषणा करता है, तो भी वह मुक्त नहीं हो सकता। ‘यहाँ किसी किसी प्रकार के कोई भी आश्वासन नहीं दिए जाते’ ऐसा सूचना विक्रेता दुकान पर लगा देता है तथा क्रेता की जानकारी में ला देता है तो भी वह गर्भित आश्वासनों से मुक्त नहीं हो सकेगा!

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क्रेता की सावधानी का नियम

(Rule of Caveat Emptor)

सामान्यत: वस्तु-विक्रय अनुबन्धों के सम्बन्ध में ‘क्रेता की सावधानी’ का नियम क्रियाशील होता है, जब तक कि अनुबन्ध का इस सिद्धान्त के विपरीत आशय प्रकट न होता हो।

क्रेता सावधान‘ (Caveat Emptor or Buyer Beware) का अर्थ है, कि वस्तु को क्रय करते समय क्रेता को अपने हित का स्वयं ध्यान रखना चाहिए। विशिष्ट वस्तु के विक्रय अनुबन्ध में माल के गुण, दोष, उपयोगिता एवं अनुपयोगिता के सम्बन्ध में समस्त बातों की जाँच-पड़ताल स्वयं क्रेता को सावधानीपर्वक कर लेनी चाहिए। माल खरीदने के पश्चात् यदि उसमें किसी दोष का पता चलता है तो क्रेता इसके लिए विक्रेता को उत्तरदायी नहीं ठहरा सकता अर्थात् विक्रेता पर ऐसे किसी दोष के लिए वाद प्रस्तुत नहीं किया जा सकता। वस्तु क्रय करते समय क्रेता को सावधानीपूर्वक चुनाव करना चाहिए कि कौन-सी वस्तु उसकी आवश्यकता को पूरी करती है और कौन-सी नहीं? विक्रेता अपनी वस्तु के दोषों को प्रकट करने के लिए बाध्य नहीं है। उदाहरणार्थ, ‘अ’ किसी दुकान से ‘सरीन दंत मंजन’ खरीदता है जिससे उसके मसूढ़ों में खून आना बंद नहीं होता। वह इस आधार पर क्रय किए गए मंजन को वापिस नहीं कर सकता, क्योंकि उसने दुकानदार से ‘सरीन दंत मंजन’ ही मांगा था।

नियम के अपवाद (Exceptions of the Rule)-सामान्यत: ‘क्रेता सावधानी का नियम’ लागू होता है, परन्तु इस नियम के कुछ अपवाद भी हैं अर्थात् कुछ परिस्थितियाँ ऐसी भी हैं जहाँ विक्रेता वस्तु के गुण अथवा उपयोगिता के सम्बन्ध में अपने दायित्व से मुक्त नहीं हो सकता। संक्षेप में, उक्त नियम के मुख्य अपवाद इस प्रकार हैं

1 क्रेता द्वारा विक्रेता को क्रय का उद्देश्य प्रकट करने की दशा में यदि क्रेता ने विक्रेता को माल खरीदने का उद्देश्य स्पष्ट या गर्भित रूप से बता दिया हो और वह वस्तु के चयन के लिए विक्रेता के निर्णय पर निर्भर करता हो। ऐसी दशा में ‘क्रेता सावधानी का नियम’ लागू नहीं होगा। ऐसी स्थिति में विक्रेता का कर्त्तव्य है कि जो वस्तु बेची जाएँ वह उस उद्देश्य के लिए उपयुक्त होनी चाहिए।

2. कपट की दशा में जब विक्रेता कपट द्वारा वस्तुओं के दोषों को छिपाता है अथवा वस्त में ऐसे गुप्त दोष हैं जो साधारण जाँच से पता नहीं चल सकते थे, ‘क्रेता सावधानी का नियम लागू नहीं होता।

3. व्यापार की रीति अथवा परम्परा की दशा में कुछ अनुबन्धों में व्यापार की रीति-रिवाज तथा परम्परा के अनुसार माल की किस्म अथवा उपयुक्तता की शर्त हो सकती है। ऐसी स्थिति में क्रेता की सावधानी का नियम लागू नहीं होगा।

4. पेटेन्ट अथवा टेडमार्क के अन्तर्गत विक्रय की दशा में-जब वस्तुएँ किसी पेटेन्ट या व्यापार चिन्ह (Trade Mark) के अन्तर्गत खरीदी जाती हैं तब किसी विशिष्ट उद्देश्य के लिए उपयुक्तता सम्बन्धी गर्भित शर्त लागू नहीं होती, परन्तु विक्रय योग्यता सम्बन्धी शर्त तब भी लागू होती है।

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परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(Expected Important Questions for Examination)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

(Long Answer Questions)

1 शर्त क्या है? भारतीय वस्तु-विक्रय अधिनियम के अनुसार गर्भित शर्तों का उपयुक्त उदाहरणों सहित वर्णन कीजिए।

What is a condition? Discuss the implied condition according to the Indian Sale of Goods Act with suitable examples.

2. शर्त तथा आश्वासन में अन्तर बताइए। एक वस्तु विक्रय अनुबन्ध में कौन-कौन सी गर्भित शर्ते होती

Distinguish between a condition and a warranty. What are the implied conditions in a contract of sales of goods?

3. ‘क्रेता की सावधानी’ से आप क्या समझते हैं? इस नियम के अपवादों को पूर्णरूप से स्पष्ट कीजिए।

What do you understand by ‘caveat emptor”? Explain fully the exceptions to this principle.

4. शर्त तथा ‘आश्वासन’ में अन्तर बताइए। एक वस्तु-विक्रय अनुबन्ध में गर्भित शर्तों एवं आश्वासनों का वर्णन कीजिए।

Distinguish between ‘condition’ and ‘warranty’. State the various conditions and warranties implied in a contract of Sale of goods.

5. ‘शर्त तथा ‘आश्वासन’ में भेद बताइए। किन परिस्थितियों में शर्त-भंग को आश्वासन-भंग समझा जाता है?

Distinguish between a ‘condition’ and a warranty. In what circumstances can a breach of condition be treated as a breach of warranty?

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लघु उत्तरीय प्रश्न

(Short Answer Questions)

1 शर्त से क्या आशय है? समझाइए।

What is meant by the condition? Explain.

2. शर्त को कब आश्वासन माना जाता है?

When Condition is treated as a Warranty?

3. गर्भित शर्तों को संक्षेप में समझाइए।

Explain briefly the Implied Conditions

4. गर्भित आश्वासनों को स्पष्ट कीजिए।

Clarify the Implied Warranties.

5. माल की किस्म अथवा उपयुक्तता के सम्बन्ध में गर्भित शर्त की व्याख्या कीजिए।

Explain the Implied Condition as to quality or fitness of goods.

6. क्रेता सावधानी के नियम की व्याख्या कीजिए।

Describe the rule of Caveat Emptor.

7. शर्त को आश्वासन कब माना जाता है?

When the Condition is to be treated as a Warranty?

8. समय से सम्बन्धित बन्धन से क्या आशय है?

What is meant by the Stipulation as to Time?

9. शर्त एवं आश्वासन में अन्तर बताइए।

Distinguish between a Condition and a Warranty.

10. वर्णन द्वारा विक्रय से सम्बन्धित नियम को समझाइए।

State the law relating to Sale by Description.

11. व्यापार योग्यता के सम्बन्ध में गर्भित शर्त क्या है?

What is Implied Condition as to Merchantability?

12. माल पर शांतिपूर्ण एवं उपयोग के गर्भित आश्वासन से क्या आशय है?

What is meant by Warranty as to quiet possession and enjoyment of goods?

13. माल के प्रभार मुक्त होने का गर्भित आश्वासन क्या है?

What.is Warranty as to freedom from. charges?

14. माल की किस्म या उपयुक्तता के सम्बन्ध में गर्भित आश्वासन का वर्णन कीजिए।

Explain the Warranty as to Quality or Fitness.

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chetansati

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