BCom 1st Year Business Regulatory Framework Free Consent Study Material Notes in Hindi

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BCom 1st Year Business Regulatory Framework Free Consent Study Material Notes in Hindi

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BCom 1st Year Business Regulatory Framework Free Consent Study Material Notes in Hindi: Definition of Free Consent Coercion Characteristic or Elements of Coercion  Undue Influence Difference Between Coercion and Undue Influence Fraud Elements or Characteristics of Fraud by Silence  Definition Mistake  Difference Between Fran and Misrepresentation  Types of  Mistake of Fact Mistake as to Subject Matter Examination Question long Answer Questions Short Answer Questions Object types Questions  :

Free Consent Study Material
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BCom 3rd Year Auditing Practices India Study Material Notes In hindi

स्वतन्त्र सहमति

(Free Consent)

एक वैध अनबन्ध के निर्माण के लिए यह भी आवश्यक है कि अनुबन्ध के पक्षकारों के बीच जो। भी व्यवहार हो उसमें उनकी सहमति स्वतन्त्र हो और अनुबन्ध के पक्षकारों के बीच स्वतन्त्र सहमति तब मानी जाती है जब वे एक बात पर एक ही भाव से अपनी सहमति स्वतन्त्रतापूर्वक दें। सहमति स्वतन्त्र रूप से दी गई है या नहीं यह जानने से पहले ‘सहमति’ शब्द का अर्थ स्पष्ट रूप से समझ लेना चाहिए।

सहमति का अर्थ एवं परिभाषा-भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 13 के अनुसार, “जब दो या दो से अधिक व्यक्ति एक ही बात पर एक ही अर्थ में सहमत हों तो उनके बीच सहमति हुई मानी जाती है।” स्पष्ट है कि दो या दो से अधिक पक्षों के बीच सहमति तभी मानी जाती है जब वे अनुबन्ध की विषय-वस्तु (Subject-matter) के बारे में एकमत हैं तथा उनके विचारों में एकरूपता है। यदि अनुबन्ध करते समय पक्षकारों की भावना (मंशा) (Intention) अलग-अलग है व उनमें मतैक्य (Consensus-ad-idem) नहीं है तो उन्हें सहमत हुआ नहीं माना जाएगा। कानून की दृष्टि से ऐसे अनुबन्ध व्यर्थ माने जाते हैं। सहमति को निम्नलिखित विवादों की सहायता से भली प्रकार समझा जा सकता है

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(i) रेफिल्स बनाम विचिलहौस (Raffiles Vs Wichelhanus 1964) के विवाद में एक पक्षकार ने 125 गाँठे रुई खरीदने का अनुबन्ध किया जिसे ‘पियरलेस’ (Peerless) नामक जहाज पर बम्बई से आना था। इस नाम के दो जहाज बम्बई से आने वाले थे। एक पक्षकार का आशय उस जहाज से था जो अक्टूबर में आने वाला था तथा दूसरे पक्षकार का आशय उस जहाज से था जो दिसम्बर में आने वाला था। न्यायालय ने निर्णय दिया कि चूंकि दोनों पक्षकार एक ही बात पर एक ही भाव से सहमत नहीं हैं, इसलिए उनमें कोई मान्य अनुबन्ध नहीं माना जाएगा।

(ii) शरतचंद्र बनाम कनईलाल (Sharat Chandra Vs Kanailal) के विवाद में एक पक्षकार ने झूठ बोलकर एक प्रलेख पर हस्ताक्षर करवा लिए। दूसरे पक्षकार का आशय सिर्फ गवाह के रूप में हस्ताक्षर करना था जबकि पहले पक्षकार ने उससे प्रलेख के पक्षकार के रूप में हस्ताक्षर करवा लिया। न्यायालय ने निर्णय दिया कि सहमति नहीं हुई, क्योंकि दोनों पक्षकार एक ही बात पर भिन्न-भिन्न भाव से सहमत हुए थे।

(iii) बाला देवी बनाम एस० मजूमदार (Bala Devi Vs, S. Mazumadr 1956) इस विवाद में एक अशिक्षित महिला ने अपने भतीजे के पक्ष में दान पत्र पर हस्ताक्षर यह सोचकर किए कि वह इस प्रलेख के द्वारा अपने भतीजे को अपनी भूमि का प्रबन्ध करने का अधिकार दे रही है। महिला का उद्देश्य दानपत्र लिखने का नहीं था और न ही दानपत्र उसे पढ़कर सुनाया गया। अतः इस विवाद में यह निर्णय दिया गया है कि यह दानपत्र व्यर्थ है क्योंकि इस पर सहमति नहीं दी गई है।

इस प्रकार स्पष्ट है कि सहमति लेने के लिए-(i) अनुबन्ध की विषय वस्तु, (ii) अनुबन्ध की प्रकृति तथा (ii) व्यक्ति की पहचान के सम्बन्ध में किसी प्रकार की कोई गलती नहीं होनी चाहिए।

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स्वतन्त्र सहमति की परिभाषा

(Definition of Free Consent)

एक वैध अनुबन्ध के लिए केवल सहमति होना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि यह भी आवश्यक है कि सहमति स्वतन्त्र रूप से प्रदान की गई हो। भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 14 के अनुसार

सहमति केवल तभी स्वतन्त्र मानी जाएगी जबकि वह निम्नलिखित बातों में से किसी से भी। प्रभावित न हुई हो

(i) उत्पीडन या बल प्रयोग (Coercion) (धारा 15)

(ii) अनुचित प्रभाव (Undue Influence) (धारा 16)

(iii) कपट या धोखा (Fraud) (धारा 17)

(iv) मिथ्यावर्णन अथवा असत्य कथन (Misrepresentation) (धारा 18)

(v) गलती (Mistake) (धारा 20-22)

वैधानिकता पर प्रभाव (Effect on Validity)-ठहराव में ‘सहमति’ न होने की दशा में वह व्यर्थ (Void) होता है, परन्तु यदि सहमति तो हो लेकिन ‘स्वतन्त्र सहमति’ (Free Consent) न हो तो जिस पक्ष की सहमति स्वतन्त्र नहीं है, उसकी इच्छा पर ठहराव व्यर्थनीय (Voidable) होता है।

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(i) उत्पीड़न या बलप्रयोग

(Coercion)

जब कोई व्यक्ति किसी अनुबन्ध के लिए अपनी सहमति स्वेच्छा से नहीं देता बल्कि किसी डर या दबाव के कारण देता है तो सहमति बल-प्रयोग द्वारा प्राप्त की गई मानी जाती है।

भारतीय अनुबन्ध अधिनियम, 1872 की धारा 15 के अनुसार, “भारतीय दण्ड विधान द्वारा वर्जित कोई कार्य करना या करने की धमकी देना अथवा किसी सम्पत्ति को किसी व्यक्ति के हितों के प्रतिकल रोकना या रोकने की धमकी देना जिससे कि दूसरा पक्ष अनुबन्ध करने के लिए बाध्य हो जाए, बल-प्रयोग (उत्पीड़न) कहलाता है।” यह आवश्यक नहीं है कि जहाँ ‘उत्पीड़न’ का प्रयोग किया गया है वहाँ भारतीय दण्ड विधान आवश्यक रूप से लागू होता ही हो अर्थात् वहाँ पर भारतीय दण्ड विधान लागू हो भी सकता है और नहीं भी। यह भी आवश्यक नहीं है कि बल-प्रयोग अनुबन्ध से सम्बन्धित पक्ष द्वारा स्वयं ही किया जाए, यह किसी अन्य व्यक्ति द्वारा भी किया जा सकता है। उदाहरणार्थ, ‘अ’ और ‘ब’ जापान से भारत आने वाले जहाज पर सवार होते हैं। मार्ग में ‘अ’, ‘ब’ को पिस्तौल दिखाकर अनुबन्ध में पक्षकार बना लेता है। यह अनुबन्ध ‘ब’ की इच्छा पर व्यर्थनीय होगा। ‘अ’ यह तर्क प्रस्तुत नहीं कर सकता कि जहाँ उसने उत्पीड़न का प्रयोग किया था, वह भारतीय दण्ड विधान का क्षेत्र नहीं था।

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उत्पीड़न के लक्षण या तत्व

(Characteristics or Elements of Coercion)

उत्पीड़न के आवश्यक लक्षण या तत्व निम्नलिखित हैं

1 भारतीय दण्ड विधान में वर्जित कार्य को करना (To commit Any Act Forbidden by Indian Penal Code)-जब अनुबन्ध करने के उद्देश्य से ठहराव का एक पक्षकार दूसरे पक्षकार की सहमति कोई ऐसा कार्य करके लेता है जो भारतीय दण्ड विधान द्वारा वर्जित है तो ऐसी सहमति उत्पीड़न से प्रभावित मानी जाएगी। किसी व्यक्ति को मारना, पीटना, व्यक्तिगत स्वतन्त्रता में बाधा पहुँचना आदि कार्य भारतीय दण्ड विधान द्वारा वर्जित कार्य हैं। उदाहरण-इस सम्बन्ध में रंगानाथ कम्मा बनाम अलुवर सेट्टी 1819 का मद्रास उच्च न्यायालय का विवाद महत्वपूर्ण है। इस विवाद में रंगानाथ कम्मा एक 13 वर्षीय विधवा है जिसके पति की मृत्यु के बाद उसके पति के रिश्तेदारों ने उसे यह धमकी दी कि उसके पति का शव तब तक दाह संस्कार के लिए नहीं ले जाया जाएगा जब तक कि वह एक विशेष लड़के को गोद नहीं ले लेती। उस समय उस विधवा ने लड़के को गोद लेना स्वीकार कर लिया, किंतु बाद में उसने न्यायालय में वाद प्रस्तुत किया। इस विवाद में न्यायालय ने निर्णय दिया कि यह ठह व्यर्थ है क्योंकि उस विधवा की सहमति उत्पीड़न के आधार पर ली गई है और भारतीय दण्ड विधान की धारा 297 के अनुसार किसी शव को अन्तिम संस्कार से रोकना अपराध है।

2. भारतीय दण्ड विधान द्वारा वर्जित कार्य को करने की धमकी देना (To Threaten for commiting an Act Forbidden by Indian Penal Code)-यदि कोई व्यक्ति भारतीय दण्ड विधान द्वारा वर्जित कार्य को करने की धमकी देकर अनुबन्ध के दूसरे पक्षकार की सहमति प्राप्त करता है तो भी अनुबन्ध उत्पीड़न से प्रभावित माना जाएगा। उदाहरण-अमीराजू बनाम सीशम्मा के विवाद में एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी तथा बच्चे को आत्महत्या की धमकी देकर उनकी सम्पत्ति के सम्बन्ध में मक्ति पत्र (Release-deed) लिखवा लिया। न्यायालय ने इस मुक्ति-पत्र को बल-प्रयोग के कारण अस्वीकार कर दिया क्योंकि आत्महत्या भारतीय दण्ड विधान (IPC) के द्वारा वर्जित है।

3. अवैध रूप से सम्पत्ति को रोकना या रोकने की धमकी देना (Unlawful Detention of any Property)-किसी व्यक्ति को हानि पहुँचाने के उद्देश्य से उसकी सम्पत्ति को अवैध रूप से रोकना या रोके रखने की धमकी देना भी उत्पीड़न कहलाता है। इस सम्बन्ध में मूथिया बनाम करुप्पन का विवाद महत्वपूर्ण है। इस विवाद में एक एजेन्ट ने जो एक निश्चित अवधि के लिए नियुक्त किया गया था, अवधि के अंत में कारोबार से सम्बन्धित हिसाब-किताब की पुस्तकें व अन्य प्रपत्र नए एजेन्ट को जो उसके स्थान पर नियुक्त किया गया था उस समय तक देने से मना कर दिया जब तक कि नियोक्ता उसे एजेन्सी के सम्बन्ध में सभी दायित्वों से मुक्त होने का प्रमाण-पत्र न दे दे। नियोक्ता ने दबाव में आकर मुक्ति का प्रमाण-पत्र दे दिया। इसमें न्यायालय ने निर्णय दिया कि नियोक्ता की सहमति उत्पीड़न द्वारा प्राप्त की गई है।

4. ऐसा कार्य करने या धमकी देने का उद्देश्य दूसरे पक्षकार के साथ ठहराव करना होना। चाहिए (Object of Coercion is to enter into Contract)-यदि कोई पक्षकार दूसरे पक्षकार के साथ विधान द्वारा वर्जित कोई ऐसा कार्य करता है अथवा करने की धमकी देता है जिसका उद्देश्य कोई ठहराव करना नहीं है तो उसे उत्पीड़न नहीं माना जाएगा। ऐसे कार्य अथवा धमकी को उत्पीड़न तभी माना। जाएगा जब कि उसका उद्देश्य दूसरे पक्षकार के साथ ठहराव करना हो। उदाहरण के लिए, राम श्याम को अपने अपमान का बदला लेने के लिए उसे पीटने की धमकी देता है यह उत्पीड़न नहीं है यद्यपि अपराध अवश्य है क्योंकि ऐसा करना भारतीय दण्ड विधान द्वारा वर्जित है। किंतु यह उत्पीड़न इसलिए नहीं है कि इसका उद्देश्य ठहराव करना नहीं है।

5. उत्पीड़न स्वयं पक्षकार द्वारा या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा किया जा सकता है (Use of Coercion by the Party itself or through someone else)-उत्पीड़न का प्रयोग अनुबन्ध का पक्षकार स्वयं या उसका एजेन्ट दूसरे पक्षकार के विरुद्ध कर सकता है।

6. उत्पीड़न का प्रयोग स्वयं पक्षकार के विरुद्ध या किसी अन्य निकट सम्बन्धी के विरुद्ध किया जा सकता है (Coercion may be used against the Party itself or his near relatives) उत्पीड़न का प्रयोग अनुबन्ध के पक्षकार के विरुद्ध अथवा किसी अन्य व्यक्ति के विरुद्ध किया जा सकता है। किंतु किसी अन्य व्यक्ति के विरुद्ध उत्पीड़न का प्रयोग किया गया तभी माना जाएगा जबकि उसका सम्बन्ध अनुबन्ध करने से रहा हो। उदाहरण के लिए X, Y के लड़के का अपहरण करके कहता है कि यदि वह उसे अपना मकान 1,00,000 ₹ में बेचने के लिए अनुबन्ध नहीं करेगा तो वह उसे मार डालेगा। यहाँ पर उत्पीड़न का प्रयोग किसी अन्य पक्षकार के विरुद्ध किया गया है लेकिन फिर भी मकान खरीदने का अनुबन्ध उत्पीड़न के आधार पर ही हुआ माना जाएगा।

7. उत्पीड़न का स्थान (Place of Coercion)-उत्पीड़न का प्रयोग अनुबन्ध करने के उद्देश्य से किसी भी स्थान पर क्यों न किया जाए, उत्पीड़न ही माना जाएगा। अधिनियम में इस सम्बन्ध में स्पष्ट रूप से लिखा गया है कि “यह महत्वहीन है कि जिस स्थान पर उत्पीड़न का प्रयोग किया गया है वहाँ पर भारतीय दण्ड विधान लागू होता है अथवा नहीं

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8. कुछ धमकियाँ उत्पीड़न नहीं होतीं-निम्नलिखित कुछ ऐसे उदाहरण हैं जिनमें कुछ धमकियाँ उत्पीड़न नहीं मानी जाती हैं

(i) यदि कोई व्यक्ति अपने वैधानिक अधिकारों के अन्तर्गत किसी दूसरे व्यक्ति पर वाद प्रस्तुत करने की धमकी देता है तो वह उत्पीड़न नहीं कहलाता है।

(ii) कर्मचारियों द्वारा अपनी मांगें मनवाने के लिए दी जाने वाली धमकियाँ भारतीय दण्ड विधान । द्वारा वर्जित नहीं हैं।

(iii) यदि किसी कानून के अनुसार किसी व्यक्ति को अनुबन्ध करने के लिए बाध्य किया जाता है। तो ऐसी बाध्यता वैध मानी जाती है।

(iv) यदि कोई बन्धकग्रहीता (Mortgager) उस सम्पत्ति के शोधन के सम्बन्ध में कछ शर्ते लगा। लाजिससे बन्धन कर्ता की सम्पत्ति को रोका जाता है तो इस प्रकार उन शर्तों के अन्तर्गत सम्पत्ति की। रोकना उत्पीड़न नहीं माना जाता है

उत्पीडन सिद्ध करने का दायित्व (Burden of Proof)-यह सिद्ध करने का भार कि सहमति।

उत्पीडन का प्रभाव (Effect of Coercion)-भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 10 के मा जब किसी पक्षकार की अनुबन्ध म सहमति उत्पीड़न के द्वारा प्राप्त की गई हो. तो अनावश उस अनुस

व्यावसायिक नियामक ढाँचा पक्षकार की इच्छा पर व्यर्थनीय होता है जिसकी सहमति इस प्रकार प्राप्त की गई है। दूसरे शब्दों में, जिस पक्ष की सहमति स्वतन्त्र नहीं होती वह पीड़ित पक्ष कहलाता है एवं उसे अनुबन्ध रद्द कराने का अधिकार दिया गया है। जब तक पीड़ित पक्ष अपने अधिकार का उपयोग करके अनुबन्ध को रद्द नहीं करता तब तक अनुबन्ध वैध रहता है अर्थात् स्वयं अनुबन्ध का पालन करके दूसरे पक्ष को भी अनुबन्ध का पालन करने के लिए बाध्य कर सकता है।

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(ii) अनुचित प्रभाव

(Undue Influence)

भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 16 (1) के अनुसार, “जब पक्षकारों के मध्य इस प्रकार के सम्बन्ध हैं कि एक पक्षकार दूसरे पक्षकार की इच्छा-शक्ति को प्रभावित करने की स्थिति में है तथा अनुचित लाभ प्राप्त करने के लिए वह इस स्थिति का प्रयोग करता है, तो अनुबन्ध अनुचित प्रभाव से प्रेरित माना जाता है।” इस परिभाषा का विश्लेषण करने से अनुचित प्रभाव के सम्बन्ध में निम्नलिखित तीन बातें स्पष्ट होती हैं

1 एक पक्षकार का दूसरे को प्रभावित करने की स्थिति में होना-पक्षकारों के मध्य ऐसे सम्बन्ध होने चाहिये कि एक पक्षकार दूसरे पक्षकार की इच्छा शक्ति को प्रभावित करने की स्थिति में हो। निम्नलिखित परिस्थितियों में एक पक्षकार दूसरे पक्षकार की इच्छा शक्ति को प्रभावित करने की स्थिति में माना जाता है

() अधिक सत्ता का होना-जहाँ पक्षकारों के बीच सम्बन्ध ऐसे हैं कि उनमें से एक पक्षकार दूसरे पक्ष पर अधिक सत्ता रखता है जिससे कि वह दूसरे पर अपना प्रभुत्व जमा सके जैसे—पिता और पुत्र, ऋणदाता तथा ऋणी, गुरु तथा शिष्य आदि।

() विश्वासाश्रित सम्बन्ध-जहाँ पक्षकारों के बीच विश्वासाश्रित सम्बन्ध हो जिससे एक पक्षकार दूसरे पक्षकार की इच्छा को प्रभावित करने की स्थिति में हो, जैसे-वकील तथा मुवक्किल।

() अस्वस्थ मानसिक दशाजहाँ एक व्यक्ति किसी ऐसे व्यक्ति से अनुबन्ध करता है जिसकी मानसिक दशा अधिक आयु, बीमारी अथवा मानसिक या शारीरिक कष्ट के कारण ठीक नहीं है; जैसे-डॉक्टर एवं मरीज।

2.सम्बन्धों का अनुचित लाभ प्राप्त करने में प्रयोग-अनुचित प्रभाव का दूसरा महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि जो पक्षकार दूसरे पक्षकार की इच्छा को प्रभावित करने की स्थिति में है उसके द्वारा उस स्थिति का अनुचित लाभ प्राप्त करने के लिए प्रयोग किया गया हो।

3. अनुचित लाभ उठाना-अनुचित लाभ से प्रेरित अनुबन्ध तभी माना जाएगा जबकि एक पक्षकार ने दूसरे पक्षकार से अनुचित लाभ प्राप्त कर लिया हो। यदि एक पक्षकार दूसरे पक्षकार पर अनुचित प्रभाव डालता है लेकिन वास्तव में उसे कोई लाभ प्राप्त नहीं हुआ है तो ऐसे अनुबन्ध को अनुचित प्रभाव से प्रेरित अनुबन्ध नहीं माना जाएगा

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केस लॉ (Case Law)

(i) मन्नसिंह बनाम उमादत्त पाण्डे के विवाद में एक वयस्क व्यक्ति (मन्नसिंह) ने अपनी समस्त सम्पत्ति अपने धर्म गुरु (उमादत्त पाण्डे) के नाम दानपत्र (Gift deed) द्वारा केवल इस विचार से कर दी कि उसकी (वयस्क व्यक्ति) आत्मा को दूसरे लोक में इस दान का लाभ प्राप्त होगा। इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा यह निर्णय दिया गया कि प्रस्तुत अनुबन्ध अनुचित प्रभाव द्वारा प्रेरित था।

(ii) दिलाराम बनाम शारदा के विवाद में एक डाक्टर ने एक बीमार एवं वृद्धावस्था वाले दुर्बल व्यक्ति पर अनुचित प्रभाव डालकर अपनी फीस आदि के लिए अनुचित राशि पाने का ठहराव किया। लाहौर उच्च न्यायालय द्वारा यह निर्णय दिया गया कि प्रस्तुत ठहराव अनुचित प्रभाव द्वारा प्रेरित था।

(iii) रानी अन्नपूर्णी बनाम स्वामी नाथन के विवाद में रानी अन्नपूर्णी ने अपने भरण-पोषण के लिये स्वामी नाथन से 1,500 ₹ 100 प्रतिशत की ब्याज दर से उधार लिए। मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा यह निर्णय दिया गया कि ब्याज की दर बहुत ऊँची है तथा इसमें अनुचित प्रभाव का उपयोग किया गया है। अतएव न्यायालय ने अपने आदेश से ब्याज की दर 100 प्रतिशत से घटाकर 24 प्रतिशत कर दी।

(iv) करतारी देवी बनाम केवल कृष्णा के विवाद में कष्णा ने अपनी माँ से जोकि बीमार, अनपढ़ एवं वृद्ध थी, एक विलेख उपहार के रुप में प्राप्त किया। इस उपहार को न्यायालय ने अनुचित प्रभाव से प्रेरित मानकर विलेख को रद्द कर दिया।

(v) जे० आर० भट्ट बनाम उत्तर प्रदेश सरकार के विवाद में वादी श्री जे० आर० भट्ट, उत्तर प्रदेश सरकार के न्यायालय में कार्यरत थे। उन्होंने न्यायालय के रजिस्ट्रार के समक्ष लम्बी छुट्टी लेने के लिए। आवेदन-पत्र दिया। रजिस्ट्रार ने इस आवेदन-पत्र को इस शर्त पर स्वीकार करने का प्रस्ताव किया कि आवेदक छटी समाप्त होने पर कभी भी नौकरी पर वापिस नहीं आयेगा और इस प्रकार सेवा निवृत्त माना। जाएगा। आवेदक ने यह लिखकर दे दिया और इस प्रकार उसकी छड़ी स्वीकार कर ली गई। किन्तु बाद में छुट्टी समाप्त होते ही आवेदक नौकरी पर लौट आया परन्त रजिस्ट्रार ने उसे नौकरी पर रखने से इन्कार कर दिया। उच्च न्यायालय द्वारा यह निर्णय दिया गया कि रजिस्ट्रार ने अनुचित प्रभाव का प्रयोग किया था अतएव वादी (जे० आर० भट्ट) को नौकरी पर ही माना जाय।

सिद्ध करने का भार (Burden of Proom-जब पक्षकारों के मध्य इस प्रकार के सम्बन्ध हैं। कि एक पक्षकार दूसरे पक्षकार को प्रभावित करने की स्थिति में है और व्यवहार भी अनुचित दिखाई देता है, तो यह सिद्ध करने का भार कि अनुबन्ध अनुचित प्रभाव से प्रेरित नहीं है, उस व्यक्ति पर होगा जो दूसरे की इच्छा को प्रभावित करने की स्थिति में होता है।

अनुचितप्रभाव से प्रेरित अनुबन्ध का प्रभाव (Effect of Undue Influence)-धारा 19 के अनुसार जब सहमति अनुचित प्रभाव द्वारा प्राप्त की जाती है तो ऐसा अनुबन्ध उस पक्षकार की इच्छा पर व्यर्थनीय होता है जिसकी सहमति इस प्रकार प्राप्त की गई है। ऐसा अनुबन्ध पूरी तरह से रद्द किया जा सकता है अथवा यदि पीड़ित पक्षकार कुछ लाभ प्राप्त कर चुका है तो उन शर्तों के साथ निरस्त किया जा सकता है जिन्हें न्यायालय उचित समझे। यदि पीड़ित पक्ष अनुबन्ध का निष्पादन अपने हित में समझे तो वह उसे रद्द न करके दूसरे पक्ष को उसका पालन करने के लिए बाध्य कर सकता है।

 

उत्पीड़न तथा अनुचित प्रभाव में अन्तर

(Difference Between Coercion and Undue Influence)

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(iii) कपट (Fraud)

एक पक्षकार द्वारा अनुबन्ध के लिये प्रेरित करने के उद्देश्य से दूसरे पक्षकार को धोखा देने के लिये किये गए सभी कार्य कपट के अन्तर्गत शामिल किये जाते हैं। लार्ड हरशेल ने कहा है, “कपट से आशय मिथ्यावर्णन करने से है जो जानबूझकर कहा जाए, या इसके सत्य में विश्वास के बिना या घोर असावधानी से कहा जाए कि यह सत्य है अथवा असत्या”

भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 17 के अनुसार, “यदि कोई पक्षकार अथवा उसका एजेन्ट दूसरे पक्षकार अथवा उसके एजेन्ट को धोखा देने के उद्देश्य से अथवा अनुबन्ध के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से निम्नलिखित कार्यों में से कोई कार्य करता है, तो कहेंगे कि उसने कपट किया है।”

  1. किसी असत्य बात को जान-बूझकर सत्य बताना,
  2. किसी ऐसी बात को छिपाना जिसका उसे निश्चित ज्ञान या विश्वास है,
  3. पूरा न करने की भावना से दिया गया कोई वचन,
  4. कोई भी अन्य कार्य जो कि धोखा देने के लिए है,
  5. कोई ऐसा कार्य अथवा भूल जिसको राजनियम विशेष रूप से कपटमय घोषित करता है।

उपर्युक्त के अतिरिक्त कभीकभी मौन रहना भी कपट माना जाता है। उदाहरणार्थ, ‘अ’ एक जूता ‘ब’ को बेचता है तथा कहता है कि वह कॉफ लेदर का है, जबकि वह स्वयं जानता है कि जूता कॉफ लैदर का न होकर साधारण चमड़े का है। अत: ‘अ’ द्वारा असत्य बात कहना कपट है तथा अनुबन्ध ‘ब’ की इच्छा पर व्यर्थनीय होगा। यहाँ पर यह उल्लेखनीय है कि किसी पक्षकार द्वारा केवल अपनी भावना प्रकट करना अथवा अपना विचार बताना कपट न होगा। उदाहरण के लिए अजय, विजय की गाय खरीदता है। विजय उससे कहता है कि गाय मेरे विचार से 10 किलो दूध देगी, परन्तु गाय 8 किलो दूध देती है। विजय के द्वारा विचार के रूप में कही गई यह बात कपट नहीं मानी जाएगी।

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कपट के आवश्यक तत्व या लक्षण

(Elements or Characteristics of Fraud)

धारा 17 में कपट की उपर्युक्त परिभाषा का विश्लेषण करने से कपट के निम्नलिखित आवश्यक तत्व अथवा लक्षण ज्ञात होते हैं

1 ‘कपटअनुबन्ध के एक पक्षकार अथवा उसके प्रतिनिधि द्वारा किया जा सकता है (Fraud by the Party of the Contract or his Representatives)-कपट का पहला लक्षण यह है कि कपट अनुबन्ध के किसी पक्षकार या उसके एजेन्ट के द्वारा किया जाना चाहिए। यदि कपट किसी अन्य व्यक्ति के द्वारा किया जाता है तो उसे कपट नहीं माना जा सकता है। उदाहरण के लिए यदि किसी कम्पनी के संचालक अपने प्रविवरण में मिथ्यावर्णन द्वारा किसी व्यक्ति को अंश खरीदने के लिए प्रेरित करते हैं तो यह माना जाएगा कि उस व्यक्ति के साथ कपट किया गया है क्योंकि संचालक कम्पनी के प्रतिनिधि होते हैं। लेकिन यदि किसी अपरिचित द्वारा प्रेरित किए जाने पर कोई व्यक्ति किसी कम्पनी के अंश क्रय करता है तो वह कम्पनी द्वारा अंशधारी के साथ कपट नहीं माना जाएगा।

2. कपट का उद्देश्य धोखा देना होना चाहिए और दूसरे पक्षकार को धोखा होना चाहिए (Fraud with the Intention to Deceive and another Party should be Deceived)-कपट का कार्य दूसरे पक्षकार को धोखा देने के अभिप्राय से किया जाना चाहिए और दूसरे पक्षकार को वास्तव में धोखा होना चाहिए। यदि उस व्यक्ति को जिस पर कपट किया गया था वास्तव में उसे कोई धोखा नहीं होता तो वह अनुबन्ध कपट से प्रभावित नहीं माना जाएगा। उदाहरणार्थ, एक व्यक्ति ने अपनी बीमार गाय के लिए पशु चिकित्सक से उसके पूर्ण स्वस्थ होने का झूठा प्रमाण-पत्र बनवाकर गौशाला के प्रवेश द्वार पर लगा दिया, राम बिना प्रमाण-पत्र को पढ़े ही गाय क्रय कर लेता है। यहाँ पर यह माना जाएगा कि राम कपट में नहीं आया है और अनुबन्ध कपट से प्रभावित नहीं होगा।

3. अनुबन्ध के लिये प्रेरित करना (To motivate for Making Contract)-कपट दूसरे। पक्षकार या उसके प्रतिनिधि को अनुबन्ध के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से किया जाना चाहिए!

4. कपट निम्नलिखित कार्यों में से किसी के द्वारा भी हो सकता है

(i) असत्य बात को जानबूझकर सत्य बताना या सत्य होने का सुझाव देना (Fraud by suggestion)-जब अनुबन्ध का एक पक्षकार दूसरे पक्षकार को अनुबन्ध में सम्मिलित करने हेतु किसी ऐसी बात को सत्य बताता है जिसको वह जानता है कि असत्य है तो यह कहा जाएगा कि यह अनुबन्ध कपट से प्रभावित है। उदाहर’ के लिए, ‘अ’ जो एक कपड़ा व्यापारी है ‘ब’ से कहता है कि यह शॉल 100% ऊनी है जब कि ‘अ’ जानता है कि शॉल 100% ऊनी नहीं है, ‘ब’ ‘अ’ के इस कथन पर विश्वास करके शॉल क्रय कर लेता है। यह अनुबन्ध ‘ब’ की इच्छा पर व्यर्थनीय होगा क्योंकि ‘ब’ के साथ कपट किया गया है।

(ii) सक्रिय छुपाव द्वारा कपट (Fraud by Active Concealment)-जब अनुबन्ध का कोई पक्षकार या उसका एजेन्ट अनुबन्ध के सम्बन्ध में किन्हीं ऐसे महत्त्वपूर्ण तथ्यों को जिनकी उसे जानकारी है दूसरे पक्षकार से उसे धोखा देने के उद्देश्य से जान-बूझकर सक्रिय रूप से छिपाता है तो कपट माना जाएगा और ऐसा कपट छुपाव द्वारा कपट कहलाता है। उदाहरणार्थ-‘अ’ “ब’ को अपनी सम्पत्ति यह कहकर खरीदने के लिए प्रेरित करता है कि ‘मेरी सम्पत्ति भार मुक्त है जबकि वास्तव में उसकी सम्पत्ति भायुक्त है। इस ठहराव को छुपाव द्वारा कपट से प्रभावित अनुबन्ध माना जाएगा जो पीड़ित पक्षकार की इच्छा पर व्यर्थनीय होगा।

यहाँ पर यह जानना आवश्यक है कि सभी परिस्थितियों में तथ्यों को छिपाना कपट नहीं माना जा सकता है जैसे वस्तु विक्रय अनुबन्ध में यह नियम है कि “क्रेता सावधान रहें” अत: विक्रेता तब तक बोलने के लिए उत्तरदायी नहीं होता जब तक कि उससे कुछ पूछा न जाए। उदाहरणार्थ ‘रोहन’ सोहन को अपना घोड़ा बेचता है। रोहन जानता है कि उसका घोड़ा अस्वस्थ हे लेकिन वह घोड़े की अस्वस्थता के बारे में सोहन को कुछ नहीं कहता तो यह कपट नहीं है क्योंकि सोहन के द्वारा घोड़े के स्वास्थ्य के बारे में कुछ नहीं पूछा गया है।

लेकिन निम्नलिखित अनुबन्धों के सम्बन्ध में एक पक्षकार का दायित्व होता है कि वह दूसरे पक्षकार को अनुबन्ध के सम्बन्ध में सभी महत्त्वपूर्ण बातों को प्रकट कर दे

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() जहाँ महत्त्वपूर्ण तथ्यों को बताना वैधानिक उत्तरदायित्व हो (Statutory obligation to Disclose)-कुछ वैधानिक नियमों के अनुसार अनुबन्ध के पक्षकारों का यह कर्तव्य होता है कि वें अनुबन्ध से सम्बन्धित उन महत्त्वपूर्ण बातों को अनुबन्ध करते समय दूसरे पक्षकार को बता दे जिनका बताना किसी अधिनियम के अन्तर्गत आवश्यक है। जैसे ‘सम्पत्ति है नान्तरण अधिनियम’ (Transfer of Property Act) की धारा 55 के अनुसार विक्रेता का यह कर्त्तव्य है कि वह बेची जाने वाली सम्पत्ति के स्वामित्व (Title) के सम्बन्ध में प्रत्येक कमी को क्रेता को बताए।

() सद्भावना वाले अनुबन्ध के सम्बन्ध में दायित्व (Obligation to Contracts of Utmost Good Faith)-सद्भावना वाले अनुबन्ध ऐसे अनुबन्धों को कहते हैं जिनमें कि एक पक्षकार को अनुबन्ध के विषय में जानकारी प्राप्त करने के कुछ ऐसे साधन प्राप्त होते हैं जो दूसरे पक्षकार को नहीं होते, इसलिए उस पक्षकार का यह कर्तव्य है कि वह दूसरे पक्षकार को उन सब बातों के बारे में बता दे जिसकी उसे विशेष जानकारी है और जो दूसरे पक्षकार के अनुबन्ध करने के निर्णय को प्रभावित कर सकती है। निम्नलिखित प्रकार के सभी अनुबन्ध सदभावना वाले अनुबन्ध कहलाते हैं

(i) बीमे का अनुबन्ध (Contracts of Insurance)-सभी प्रकार के बीमे के अनबन्ध में बीमा कराने वाले का यह कर्तव्य है कि वह अनुबन्ध की विषय वस्तु के सम्बन्ध में समस्त वह आवश्यक बातें बीमा कम्पनी को प्रकट कर दें जो उसके अनुबन्ध करने के निर्णय पर अथवा प्रीमियम निर्धारित करने परयह माना जाता है कि उसको उनके सम्बन्ध में अधिक जानकारी है।

(ii) क्षीबाई बनाम भारतीय जीवन बीमा निगम (1982) के विवाद में श्रीमती रामीबाई ने 48 वर्ष बताई और अपनी उम्र के सबूत में जीवन बीमा निगम को जन्मपत्री अपनी उम्र 60 के स्थान पर 48 वर्ष बताई और अपनी उस जीवन बीमा निगम ने मृतक के आश्रित व्यक्तियों को इस आधार पर बीमित धनराशि दे दी। मृत्यु होने पर जीवन बीमा निगम ने मृतक के आश्रित व्यक्तियों को दस देने से इन्कार कर दिया कि आयु छुपाई गई थी। न्यायालय द्वारा निर्णय दिया गया कि निगम से प्राप्त सहमति कपट से प्रेरित थी।

(ii) पारिवारिक मामले (Family settlements)-पारिवारिक मामलों में परिवार के सभी सदस्यों का कर्तव्य है कि वे सभी महत्वपूर्ण बातों को एक दूसरे को प्रकट कर दें। उदाहरण के लिए, यदि चार भाइयों के बीच सम्पत्ति का बँटवारा हो रहा है और उनमें से एक भाई जानता है कि कुछ भूमि ज्यादा मल्यवान है तो उसका कर्तव्य है कि बँटवारे के समय ऐसी बात सबको बता दे, यदि वह ऐसा नहीं करता तो अनुबन्ध कपट के आधार पर रद्द किया जा सकता है।

(iii) साझेदारी के अनुबन्ध (Partnership contracts)-कभी-कभी एक साझेदार को उन सब महत्त्वपूर्ण बातों का पूरा ज्ञान होता है जो दूसरे साझेदारों के निर्णय को प्रभावित कर सकती हैं। ऐसी दशा में उक्त साझेदार का यह कर्तव्य है कि वह वे समस्त बातें अन्य साझेदारों को भी बता दे। ।

(iv) कम्पनी के अंश क्रय करने सम्बन्धी अनुबन्ध (Contract relating to purchase of shares of a company)-जब कोई कम्पनी अपने प्रविवरण द्वारा जनता को अंश क्रय करने के लिए आमन्त्रित करती है तो संचालकों का यह कर्तव्य है कि वे प्रविवरण में विनियोग सम्बन्धी ऐसी समस्त बातें बता दें जो अंश क्रेता के निर्णय को प्रभावित कर सकती हैं।

(v) गारण्टी के अनुबन्ध (Contracts of guarantee)-गारण्टी के अनुबन्ध में ऋणदाता का यह कर्तव्य है कि वह प्रतिभू (surety) को ऋणी के सम्बन्ध में उन सभी बातों की सही जानकारी दे दे जो उसके गारण्टी देने के निर्णय को प्रभावित कर सकती हैं।

(vi) विश्वासाश्रित (Fiduciary) सम्बन्ध रखने वाले लोगों के बीच अनुबन्ध-यदि अनुबन्ध करने वाले पक्षकारों के बीच विश्वासाश्रित सम्बन्ध है तो सम्बन्धित पक्षकारों द्वारा अनुबन्ध से सम्बन्धित उन सभी बातों व तथ्यों की जानकारी दे दी जानी चाहिए, जिससे अनुबन्ध प्रभावित हो सकता है। यदि पक्षकार महत्त्वपूर्ण तथ्यों की जानकारी नहीं देते तो अनुबन्ध कपट से प्रेरित माना जाएगा। विश्वासाश्रित सम्बन्धों में पिता-पुत्र, डॉक्टर-मरीज, वकील-मुवक्किल, गुरु-शिष्य आदि आते हैं।

5. परा करने के उद्देश्य से दिया गया वचन (Promise made without any Intention of Performing it)-जब अनुबन्ध का एक पक्षकार पूरा न करने के अभिप्राय से किंतु दूसरे पक्षकार को . अनुबन्ध करने के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से कोई वचन देता है तो वह भी कपट कहलाता है। जैसे ‘अ’ कुछ रुपया ‘ब’ को अपना चित्र बनवाने के लिए देता है, ‘ब’ ‘अ’ का चित्र बनाने का वचन देते हए पैसा ले लेता है जबकि ‘ब’ का चित्र बनाने का कोई इरादा नहीं है। यहाँ पर ‘ब’ द्वारा कपट किया गया माना जाएगा।

6. कोई भी अन्य कार्य जिसका उद्देश्य दूसरे पक्षकार को धोखा देना हो (To Perform any other act with the object to Deceive)-इसके अन्तर्गत उन समस्त कपटपूर्ण कार्यों को सम्मिलित किया जाता है जो उपर्युक्त में शामिल न हुए हों और जिनका उद्देश्य धोखा देना हो।

7. कोई भी ऐसा कार्य या त्रुटि जिसे राजनियम ने विशेष रूप से कपटमय घोषित किया हो (Any such Act or omission as the Law specially Declared to be Fraudulent)-राजनियम कुछ भूलों अथवा कार्यों को स्पष्ट रूप से कपटमय घोषित कर देते हैं। जैसे ऋणदालाओं को धोखा देने के उद्देश्य से किसी अचल सम्पत्ति का हस्तांतरण सम्पत्ति हस्तान्तरण अधिनियम के अन्तर्गत कपटमय घोषित है।

8. सम्बन्धित पक्षकार को वास्तव में हानि हुई हो (Actually Sustaining of Loss to the Concerned Party)-कपट द्वारा प्रेरित अनुबन्ध तभी माना जाएगा, जबकि कपट के कारण अनुबन्ध से सम्बन्धित दसरे पक्षकार को वास्तव में हानि हुई हो, क्योंकि हानि के बिना कपट के आधार पर वैधानिक कार्यवाही नहीं की जा सकती है।

9. कपट अनुबन्ध के महत्त्वपूर्ण तथ्य के सम्बन्ध में (Fraud Regarding Material Fact of Contract)-कपट के लिये यह भी आवश्यक है कि कपट किसी महत्त्वपूर्ण तथ्य के सम्बन्ध में किया जाना चाहिए। किसी सामान्य बात या मामूली तथ्य के सम्बन्ध में कोई बात बताना कपट की श्रेणी में नहीं आता।

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मौन द्वारा कपट

(Fraud by Silence)

मौन के सम्बन्ध में भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 17 में यह स्पष्टीकरण दिया गया है कि “तथ्य सम्बन्धी मौन जो अनुबन्ध करने वाले पक्षकार की इच्छा को प्रभावित कर सकता है तब तक कपट नहीं माना जाता है जब तक कि मामले की परिस्थितियों के अनुसार मौन रहने वाले व्यक्ति का बोलना कर्तव्य न हो अथवा मौन रहना स्वयं बोलने के बराबर न हो।”

क्या मौन रहना कपट है? (Does Silence Amount to Fraud)-सामान्यत: अनुबन्ध करते समय एक पक्ष, दूसरे पक्ष को विषय-वस्तु के सम्बन्ध में वह सब कुछ बताने के लिए बाध्य नहीं है। जिसका उसे स्वयं ज्ञान है। इसलिए मौन रहना कपट नहीं कहलाता। उदाहरणार्थ, एक नीलाम में ‘अ’, ‘ब’ को अपना एक घोड़ा बेचता है। ‘अ’ जानता है कि उसका घोड़ा अस्वस्थ है परन्तु वह इस बारे में ‘ब’ से कुछ नहीं कहता। ऐसी दशा में ‘ब’ की सहमति कपट से प्रभावित नहीं मानी जाएगी। लेकिन निम्नलिखित परिस्थितियों में मौन रहना कपट माना जाता है

1 यदि स्थिति ऐसी है कि मौन रहना बोलने के समान समझा जाएगा, तो मौन रहना कपट माना जाता है। जैसे, ‘अ’, ‘ब’ से कहता है कि “यदि तुम कुछ नहीं कहते तो मैं समझूगा कि घोड़ा स्वस्थ है।” ‘ब’ मौन रहता है। ऐसी दशा में ‘ब’ का मौन रहना बोलने के समान है तथा घोड़ा अस्वस्थ्य होने पर. ‘अ’ अनुबन्ध रद्द करा सकता है।

2. जहाँ परिस्थितियाँ ऐसी है कि मौन रखने वाले व्यक्ति का बोलना वैधानिक कर्तव्य है। सद्भावना वाले समस्त अनुबन्धों की महत्त्वपूर्ण बातों के सम्बन्ध में मौन रहना कपट माना जाता है, यदि मौन रहने का उद्देश्य धोखा देना है। जैसे बीमा कम्पनी को बीमा कराने वाले व्यक्ति के बारे में कुछ पता नहीं होता। जो कुछ वह स्वयं बता देता है उसी के आधार पर बीमा कम्पनी बीमा करती है, अत: बीमा कराने वाले व्यक्ति का कर्तव्य है कि विषय-वस्तु के सम्बन्ध में जो कुछ भी उसे पता है उसकी जानकारी बीमा कम्पनी को दे दे। यदि वह ऐसा नहीं करता तो वह कपट का दोषी होगा। श्रीमती रामीबाई बनाम भारतीय जीवन बीमा निगम (1982) के विवाद में श्रीमती रामीबाई ने अपनी उम्र 60 के स्थान पर 48 वर्ष बताई और अपनी उम्र के सबूत में जीवन बीमा निगम को जन्मपत्री दे दी। मृत्यु होने पर जीवन बीमा निगम ने मृतक के निर्भर व्यक्तियों को इस आधार पर बीमित धनराशि देने से इन्कार कर दिया कि आयु छुपाई गई थी। न्यायालय द्वारा निर्णय दिया गया कि निगम से प्राप्त सहमति कपट से प्रेरित थी। बीमे के अनुबन्ध, अचल सम्पत्ति की बिक्री के अनुबन्ध, साझेदारी के अनुबन्ध, गारण्टी के अनुबन्ध, पारिवारिक सम्पत्ति के बँटवारे के अनुबन्ध कुछ ऐसे उदाहरण हैं जो पूर्ण सद्विश्वास के अनुबन्ध कहे जाते हैं और इनके सम्बन्ध में तथ्यों को बताना अनिवार्य है।

कपट का प्रभाव (Effect of Fraud)-जिस पक्ष की सहमति कपट द्वारा प्राप्त की गई है, उसे निम्नलिखित अधिकार प्राप्त होते हैं

1 अनुबन्ध रद्द कराने का अधिकार-कपट की स्थिति में पीड़ित पक्ष की इच्छा पर अनुबन्ध रद्द किया जा सकता है, परन्तु अनुबन्ध रद्द करने का कार्य उचित समय में कर दिया जाना चाहिए। यहाँ पर यह उल्लेखनीय है कि यदि कपटपूर्ण मौन की स्थिति हो और साधारण प्रयत्न से सत्य का पता चल सकता था, तो पीड़ित पक्ष अनुबन्ध को रद्द नहीं करा सकता।

2. पुनः स्थापना की माँग का अधिकार-पीड़ित पक्षकार द्वारा अनुबन्ध रद्द किए जाने की दशा में यदि अनुबन्ध के अन्तर्गत उसने कोई धन या सम्पत्ति दूसरे पक्षकार को दे दी हो अथवा हस्तान्तरित की हो तो उसे वह वापस पाने का अधिकारी होगा।

3. अनुबन्ध को पूर्ण कराने का अधिकार-यदि कपट के बावजूद भी पीड़ित पक्षकार अनुबन्ध को पूरा कराना (निष्पादित करना) अपने हित में समझता है, तो वह दूसरे पक्षकार को अनुबन्ध की शर्तों को परा करने के लिए बाध्य कर सकता है, अर्थात् अनुबन्ध को प्रवर्तित करा सकता है।

4. क्षतिपूर्ति पाने का अधिकारयदि पीड़ित पक्षकार को कपटमय प्रदर्शन के कारण कोई क्षति हई हो, तो वह दोषी पक्षकार से क्षतिपूर्ति की मांग कर सकता है।

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(iv) मिथ्यावर्णन

(Mis-representation)

मिथ्यावर्णन शब्द का प्रयोग अग्नलिखित दो अर्थों में किया जाता है

1 कपटपूर्ण मिथ्यावर्णनजब मिथ्यावर्णन जान-बूझकर धोखा देने के उद्देश्य से किया जाता है तो इसे कपटमय मिथ्यावर्णन कहते हैं। अधिनिमय में इसके लिए कपट शब्द का प्रयोग किया गया है।

2. निर्दोष मिथ्यावर्णनजब मिथ्यावर्णन अज्ञानतावश किया गया हो तो उसे निर्दोष मिथ्यावर्णन कहते हैं। अधिनियम में इस निर्दोष मिथ्यावर्णन को ही मिथ्यावर्णन कहा गया है।

परिभाषाएँ

(Definitions)

भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 18 के अनुसार “मिथ्यावर्णन से आशय है-(i) ऐसी बात का निश्चयात्मक कथन जो सत्य नहीं है और कहने वाला उसके सत्य होने का विश्वास करता है। (ii) बिना कपट के अभिप्राय से किया गया ऐसा कर्तव्य भंग जिससे ऐसा करने वाले पक्षकार या उसके अधीन अधिकार रखने वाले व्यक्ति को लाभ होता है तथा दूसरे पक्षकार का अहित होता है। (iii) अज्ञानतावश ठहराव के एक पक्षकार द्वारा अनुबन्ध की महत्त्वपूर्ण विषय वस्तु के सम्बन्ध में कोई गलती करना है।”

आर. सी. ठक्कर बनाम बाम्बे हाऊसिंग बोर्ड के मामले में विद्वान न्यायाधीश द्वारा दी गई परिभाषा, “किसी अनुबन्ध के महत्त्वपूर्ण तथ्यों के मिथ्या प्रकटीकरण को मिथ्यावर्णन कहते हैं। मिथ्यावर्णन तभी असत्य हो सकता है, जबकि वह सार तथा तथ्य दोनों में ही मिथ्या हो।”

एन्सन (Anson)के अनुसार, “मिथ्यावर्णन एक असत्य कथन है, जिसे कि कहने वाला पक्षकार सद्विश्वास से सत्य मानता है अथवा जिसे वह असत्य नहीं समझता है।”

अत: मिथ्यावर्णन से आशय अनजाने में किए गए ऐसे कथन से है जो सत्य नहीं है लेकिन इसका उद्देश्य दूसरे व्यक्ति को जान-बूझकर धोखा देना नहीं था।

मिथ्यावर्णन के लक्षण (Essentials of Misrepresentation)

(i) मिथ्यावर्णन अज्ञानतावश किया जाता है।

(ii) मिथ्यावर्णन धोखा देने के उद्देश्य से नहीं किया जाता है।

(iii) मिथ्यावर्णन अनुबन्ध के किसी निश्चित तथ्य के सम्बन्ध में होना चाहिए कानून के सम्बन्ध में नहीं।

(iv) मिथ्यावर्णन के आधार पर दूसरा पक्षकार अनुबन्ध में शामिल हो गया हो।

(v) मिथ्यावर्णन से एक पक्षकार को लाभ तथा दूसरे पक्षकार को हानि हुई हो।

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मिथ्यावर्णन की विधियाँ

(Forms of Mis-representation)

1 निश्चयात्मक कथन द्वारा (By Positive Statement)-किसी ऐसी बात का निश्चयात्मक कथन जो सत्य नहीं है किन्तु कहने वाला उसके सत्य होने का विश्वास रखता है मिथ्यावर्णन कहलाता है। किन्तु इसे मिथ्यावर्णन तभी माना जाएगा जबकि वर्णन करने वाले के पास इस प्रकार का विश्वास करने का कोई ठोस आधार न हो। उदाहरण के लिए आशीष ने अपने हिसाब-किताब को देखे बिना आलोक से कहा कि उसकी मिल में प्रतिमाह 10,000 टन चीनी बनती है। आशीष को अपने अनुमान के ठीक होने का बहुत विश्वास था। आशीष के कथन पर आलोक मिल खरीद लेता है। लेकिन बाद में पता चला कि मिल का वास्तविक उत्पादन 8000 टन था। यहाँ आशीष को मिथ्यावर्णन के लिए दोषी माना जाएगा।

2. कर्त्तव्य भंग द्वारा मिथ्यावर्णन (By Breach of Duty)-जब किसी व्यक्ति द्वारा अपने कर्तव्यों का धोखा न देने के अभिप्राय से इस प्रकार खण्डन किया जाता है जिससे कि उसे कुछ लाभ होता है तथा दूसरे पक्ष को हानि होती है तो इसे मिथ्यावर्णन कहते हैं। उदाहरणार्थ, सुनीता ने बीमा एजेंट को बीमा पॉलिसी लेते समय अपनी आय 24 वर्ष बतलाई। सुनीता को अपनी इस आयु के ठीक होने का। विश्वास था परन्तु उसकी वास्तविक आयु 26 वर्ष पाई गई। बीमा निगम ने सुनीता के नाम में पॉलिसी निर्गमित कर दी, परन्तु वास्तविक आयु पर लगाई जाने वाली प्रीमियम की दर से कम दर लगाई। कर्तव्य भंग के कारण इसे सुनीता का मिथ्यावर्णन कहेंगे।

3. अज्ञानतावश मिथ्यावर्णन द्वारा त्रुटि करना (Causing Mistake by Innocent Mis-representation)-यदि किसी व्यक्ति के प्रदर्शन से यद्यपि वह अज्ञानतावश है अनबन्ध से सम्बन्धित दूसरा पक्षकार अनुबन्ध की विषय-वस्तु के सारतत्व के विषय में गलती कर बैठता है तो ऐसा प्रदर्शन मिथ्यावर्णन है। ऐसी परिस्थिति में पीड़ित पक्षकार की इच्छा पर अनुबन्ध व्यर्थनीय होता है।। उदाहरण के लिए, मकान का स्वामी रामदास उसके क्रेता श्यामलाल से कहता है कि “मेरा मकान दोषमक्त है।” जबकि स्वयं उसे यह ज्ञात नहीं था कि मकान की नींव इस प्रकार फटी हई है कि उसमें। रहना खतरनाक है। श्यामलाल मकान खरीद लेता है। रामदास को मिथ्यावर्णन के लिए दोषी माना जा रहा है ।

और श्यामलाल अनबन्ध को रद्द कर सकता है। परन्तु यदि मकान का केवल कोई रोशनदान टटा है तब इस आधार पर उन्हें अनुबन्ध को व्यर्थ समझने का अधिकार नहीं होगा।

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मिथ्यावर्णन का प्रभाव (Effect of Mis-representation)-भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 19 के अनुसार जब किसी ठहराव की सहमति मिथ्यावर्णन द्वारा प्राप्त की जाती है तो पीडित पक्षकार को निम्नलिखित अधिकार प्राप्त हो जाते हैं

1 अनबन्ध पीड़ित पक्षकार की इच्छा पर व्यर्थनीय (Voidable at the option of Aggrieved Party)-अनुबन्ध उस व्यक्ति की इच्छा पर, जिसकी सहमति मिथ्यावर्णन द्वारा प्राप्त की गई है, व्यर्थनीय होता हैं अर्थात् वह चाहे तो अनुबन्ध को निरस्त कर सकता है, किन्तु इस प्रकार से किया गया अनुबन्ध उसी दशा में निरस्त किया जा सकता है जबकि वह साधारण प्रयास से सत्य बात का पता नहीं लगा सकता हो।

2. अभिपुष्टि (Affirmation)-पीड़ित पक्षकार अनुबन्ध की अभिपुष्टि कर सकता है तथा अनुबन्ध की समस्त शर्तों को पूरा करने एवं अपने को उस स्थिति में रखे जाने के लिए दूसरे पक्षकार को बाध्य कर सकता है, जो कि मिथ्यावर्णन के सत्य होने पर होती किन्तु वह क्षतिपूर्ति की माँग नहीं सकता है।

3. पुनःस्थापन (Restitution)-पीड़ित पक्षकार ने अनुबन्ध के अन्तर्गत यदि कोई धन अथवा सम्पत्ति दूसरे पक्षकार को दे दी है तो वह अनुबन्ध निरस्त कर देने की स्थिति में उसे वापिस प्राप्त करने का अधिकार रखता है।

सिद्ध करने का भार (Burden of Proof) मिथ्यावर्णन के आधार पर अनुबन्ध को निरस्त करने वाले पक्षकार पर यह सिद्ध करने का भार होता है कि उक्त अनुबन्ध में मिथ्यावर्णन द्वारा उसकी सहमति प्राप्त की गई थी। इसके अतिरिक्त उसे निम्नलिखित बातें भी सिद्ध करनी पड़ती हैं

1 मिथ्यावर्णन अनुबन्ध की विषय-वस्तु के सम्बन्ध में था।

2. मिथ्यावर्णन अनुबन्ध करते समय अथवा इससे पूर्व किया गया था।

3. किया गया मिथ्यावर्णन वास्तव में बिल्कुल मिथ्या अथवा असत्य था।

4. उसने मिथ्यावर्णन के आधार पर ही अनुबन्ध किया था।

कपट और मिथ्यावर्णन में अन्तर

(Difference Between Fraud and Misrepresentation)

गलती

(Mistake)

अनुबन्ध तभी वैध माना जाता है जबकि अनुबन्ध से सम्बन्धित पक्षकार एक ही बात पर एक ही भाव से सहमत होते हैं। यदि सहमति देते वक्त तथ्य सम्बन्धी उनके विचार भिन्न हैं तो वे तथ्यों के बारे में एकमत नहीं कहलायेगे। इसी को गलती का नाम दिया गया है। अत: किसी अनुबन्ध के तथ्यों के विषय में किया गया भ्रांतिमूलक अथवा आधारहीन विश्वास गलती कहलाता है। “जब किसी अनुबन्ध के दोनों पक्षकारों में किसी बात के सम्बन्ध में भ्रम होता है, वह अनुबन्ध गलती से प्रभावित समझा जाता है।”

भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 20 के अनुसार, “जब ठहराव के दोनों पक्षकार ठहराव के किसी आवश्यक तथ्य के विषय में गलती पर हो तो ठहराव व्यर्थ होता है।”

गलती दो प्रकार की हो सकती है

1 कानून सम्बन्धी गलती (Mistake of Law)

2. तथ्य सम्बन्धी गलती (Mistake of fact)

1 कानून सम्बन्धी गलती (Mistake of Law)-प्रत्येक व्यक्ति से यह आशा की जाती है कि वह अपने देश के समस्त राजनियमों से परिचित है, अत: यदि वह नियम के सम्बन्ध में कोई गलती करता है तो उसके लिए उसे क्षमा नहीं किया जा सकता। इसी कारण यह कहा गया है कि “अधिनियम की अनभिज्ञता क्षम्य नहीं है, किन्तु तथ्य की अनभिज्ञता क्षम्य हो सकती है।” (Ignorance of law is no excuse but ignorance of fact is excusable)’ उदाहरण के लिए अ, ब को मारने की धमकी देता है तथा बाद में न्यायालय के समक्ष यह कहता है कि मुझे यह पता नहीं था कि मारने की धमकी देना अपराध है। खैर, आगे से ऐसा नहीं होगा। इस कथन के आधार पर अ को क्षमा नहीं किया जा सकता। इस सम्बन्ध में धारा 21 में कहा गया है कि, “यदि गलती भारत में प्रचलित किसी राजनियम के सम्बन्ध में है, तो गलती करने वाला क्षमा नहीं किया जा सकता परन्तु यदि गलती किसी दूसरे देश के राजनियम के सम्बन्ध में है तो उसका प्रभाव तथ्य सम्बन्धी गलती की भाँति ही होगा।” इस प्रकार कानून सम्बन्धी गलती निम्नलिखित दो प्रकार की हो सकती है

(i) भारत में प्रचलित कानून के सम्बन्ध में गलतीयह एक सामान्य नियम है कि ‘कानन की अनभिज्ञता को क्षमा नहीं किया जा सकता है। इसलिए भारत में प्रचलित किसी राजनियम के सम्बन्ध में की गई त्रुटि के कारण कोई अनुबन्ध व्यर्थनीय नहीं होगा। उदाहरण के लिए ‘अ’ और ‘ब’ इस गलत विश्वास पर कि कोई विशेष ऋण भारतीय लिमिटेशन अधिनियम के अन्तर्गत अवधि वर्जित है, एक अनुबन्ध करते हैं तो ऐसा अनुबन्ध व्यर्थ होगा व्यर्थनीय नहीं।

(ii) विदेशी कानन के सम्बन्ध में गलतीविदेशी कानून के सम्बन्ध में की गई गलती को राजनियम सम्बन्धी गलती नहीं मानते, इसे तथ्य-सम्बन्धी गलती की भाँति मानते हैं और इसका वही प्रभाव होता है जो तथ्य सम्बन्धी गलती का होता है। अत: विदेशी राजनियम से सम्बन्धित गलती के। आधार पर किया गया अनुबन्ध पूर्णत: व्यर्थ होता है।

2. तथ्य सम्बन्धी गलती (Mistake of Fact)-तथ्य सम्बन्धी गलती से अभिप्राय ऐसी गलती से है, जो अनुबन्ध की विषय-वस्तु के सम्बन्ध में हो। तथ्य सम्बन्धी गलती दो प्रकार की हो सकती है द्विपक्षीय एवं एकपक्षीय। जब किसी अनुबन्ध के दोनों पक्षकार ही अनुबन्ध के आवश्यक तथ्य के सम्बन्ध में गलती पर हों तो ऐसी गलती को द्विपक्षीय गलती माना जाता है और ऐसी स्थिति में अनुबन्ध व्यर्थ होता है। लेकिन जब अनुबन्ध का केवल एक पक्षकार गलती पर होता है तो उसे एकपक्षीय गलती कहते हैं और ऐसा ठहराव व्यर्थ न होकर वैध होता है।

तथ्य सम्बन्धी गलती के लक्षण-द्विपक्षीय तथ्य सम्बन्धी गलती में निम्नलिखित लक्षण होने चाहियें

1 गलती दोनों पक्षकारों द्वारा होनी चाहिए-गलती अनुबन्ध के दोनों पक्षकारों द्वारा होनी चाहिए। यदि अनुबन्ध का केवल एक ही पक्षकार तथ्य सम्बन्धी गलती करता है तो अनुबन्ध व्यर्थ नहीं। होगा। उदाहरण के लिए, राम ने मोहन को अपना सूरत स्थित मकान 5 लाख ₹ में बेचने का ठहराव किया। मकान ठहराव से पूर्व ही बाढ़ के कारण नष्ट हो चुका था परन्तु इस तथ्य का ज्ञान राम व मोहन दोनों को नहीं था। यह ठहराव दोनों पक्षकारों की ठहराव के लिए आवश्यक तथ्य सम्बन्धी गलती पर आधारित है अत: व्यर्थ होगा।

2. गलती तथ्य सम्बन्धी होनी चाहिए-ठहराव के दोनों पक्षकार जो गलती कर रहे हैं वह आवश्यक तथ्य सम्बन्धी होनी चाहिए। यदि गलती आवश्यक तथ्य सम्बन्धी नहीं है तो अनुबन्ध व्यर्थ नहीं होगा।

3. आवश्यक तथ्य के सम्बन्ध में गलती-गलती जिस तथ्य के सम्बन्ध में है वह ठहराव का आवश्यक अंग होना चाहिए।

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तथ्य सम्बन्धी गलती के प्रकार

(Types of Mistake of Fact)

तथ्य सम्बन्धी गलती निम्नलिखित तीन प्रकार की हो सकती है

() विषय-वस्तु के सम्बन्ध में गलती।

() पक्षकार की पहचान के सम्बन्ध में गलती।

() निष्पादन की असम्भावना सम्बन्धी गलती।

() विषयवस्तु के सम्बन्ध में गलती

(Mistake as to Subject-matter)

जब ठहराव की विषय-वस्तु के सम्बन्ध में दोनों पक्षकार गलती पर होते हैं तो ठहराव व्यर्थ होता है। विषय-वस्त सम्बन्धी गलती निम्नलिखित प्रकार की हो सकती हैं

(i) विषयवस्तु के अस्तित्व के सम्बन्ध में गलती (Regarding Existence of Subject-matter)-जब अनुबन्ध करते समय अनुबन्ध की विषय वस्तु का अस्तित्व ही न हो तो अनुबन्ध व्यर्थ होगा। उदाहरण के लिए, सोहन अपना घोड़ा रोहन को बेचने का ठहराव करता है, लेकिन भी पक्षकार नहीं जानता था। यह ठहराव व्यर्थ है।

(ii) विषयवस्तु की पहचान के सम्बन्ध में (Regarding Identity of Saniect-matter)-जहाँ ठहराव के दोनों पक्षकार ठहराव की विषय-वस्त की पहचान के सम्बन्ध में एकमत नहीं हैं अर्थात् एक पक्षकार कोई एक वस्तु समझ रहा है और दूसरा पक्षकार कोई दसरी वस्तु । सपा रहा है. तो अनुबन्ध व्यर्थ होगा। उदाहरण के लिए, आलोक अपने गोदाम में रखे चावल में से 100 बोरी चावल अशोक को बेचने का ठहराव करता है। आलोक, बासमती चावल बेचना चाहता है। जबकि अशोक यह समझता है कि ठहराव देशी चावल का किया गया है। यहाँ ठहराव के दोनों पक्षकार। बहराव की आवश्यक विषय वस्तु की पहचान के सम्बन्ध में एकमत नहीं हैं, अत: ठहराव व्यर्थ होगा। ।

(iii) विषयवस्त के स्वत्व के सम्बन्ध में गलती (Regarding Title of the Subject-matter)-जब ठहराव के पक्षकारों को ऐसा विश्वास है कि विकेन स्वामित्व प्राप्त है जिसे वह बेचना चाहता है जबकि वास्तव में उसका उस वस्तु पर कोई स्वामित्व नहीं था। ऐसी अवस्था में भी अनुबन्ध व्यर्थ होता है। रानी कुँवर बनाम महबूब बक्स के विवाद में अ ने ब से एक भूमि क्रय की और उस पर मकान बनवा लिया। बाद में ज्ञात हुआ कि ‘ब’ उस भूमि का वास्तविक स्वामी नहीं था और न ही उसे वह जमीन बेचने का अधिकार था। उस जमीन पर स्वामित्व एक तीसरे व्यक्ति ‘स’ का था। यहाँ पर अ तथा ब ने अनुबन्ध पूर्ण सदभावना से किया था तथा दोनों ही गलती पर थे। यह अनुबन्ध व्यर्थ घोषित किया गया।

(iv) विषय वस्तु की कीमत के सम्बन्ध में गलती (Regarding Price of the Subject-matter)-कभी-कभी विषय वस्तु की कीमत के सम्बन्ध में गलती हो जाती है, ऐसी दशा में भी अनुबन्ध व्यर्थ होगा। उदाहरण के लिए बेबस्टर बनाम सेसिल के विवाद में विक्रेता सम्पत्ति की कीमत 2240 पौंड के बदले 1240 पौंड लिख गया और क्रेता ने गलती को जानते हुए भी प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। इस केस में न्यायालय ने अनुबन्ध को व्यर्थ घोषित किया।

(v) विषय वस्तु की मात्रा के सम्बन्ध में गलती (Regarding Quantity of the Subject-matter)-विषय वस्तु की मात्रा के सम्बन्ध में गलती होने पर भी अनुबन्ध व्यर्थ होगा। हौफेल बनाम पोप के विवाद में पोप ने बन्दूकों का मूल्य पूछते समय होफेल को 50 बन्दूकें तक क्रय करने का पत्र लिखा। पत्र का उत्तर प्राप्त होने पर पोप ने केवल 3 बंदूकें भेजने का आर्डर तार द्वारा भेजा। तार घर की त्रुटि के कारण हौफेल के पास जो तार पहुँचा उसमें ‘बन्दूके भेजो’ लिखा था हौफेल ने 50 बन्दूकें पोप को भेज दी जिनमें से पोप ने 3 बन्दूकें रखकर शेष हौफेल को लौटा दी। इस विवाद में न्यायालय ने तार-घर की गलती का आधार लेते हुए पोप को केवल तीन बन्दूकों का मूल्य चुकाने के लिए उत्तरदायी ठहराया।

(vi) विषय वस्तु के गुण के सम्बन्ध में गलती (Regarding Quality of Subject-matter)—विषय वस्तु के गुण के सम्बन्ध में दोनों पक्षकारों के गलती पर होने की स्थिति में भी ठहराव व्यर्थ होगा। उदाहरण के लिए राम का विचार पुराना चावल क्रय करने का था किन्तु मोहन का विचार नया चावल बेचने का था। अनुबन्ध की विषय वस्तु के गुण के सम्बन्ध में दोनों पक्षकारों के एकमत न होने के कारण अनुबन्ध व्यर्थ है। परन्तु यदि विक्रेता ने चावलों का नमूना दिखाया होता तथा उसकी किस्म के सम्बन्ध में कुछ नहीं कहा होता तो अनुबन्ध वैध होता।

() पक्षकार की पहचान के सम्बन्ध में गलती

(Mistake as to the Identity of Party)

वैधानिक दृष्टि से यदि कोई व्यक्ति ‘अ’ के साथ अनुबन्ध करने का अभिप्राय रखता है परन्तु पहचान सम्बन्धी गलती के कारण वह ‘स’ को ‘अ’ समझकर उससे अनुबन्ध कर लेता है तो ऐसा अनुबन्ध पक्षकार की पहचान सम्बन्धी गलती के कारण व्यर्थ होता है। जिस अनुबन्ध में अनुबन्ध करने वाले व्यक्ति का व्यक्तित्व महत्त्वपूर्ण होता है तो कोई अन्य व्यक्ति उस अनुबन्ध को प्रवर्तनीय नहीं करा सकता। ऐसी गलती दूसरे पक्षकार की असावधानी अथवा कपट के कारण होती है। उदाहरण के लिए, आभूषण बेचने वाले व्यक्ति की दुकान पर एक महिला आती है और अपने को मिथ्यावर्णन करके ‘अ’ की पत्नी बताती है। यदि विक्रेता उसे आभूषण बेचने का अनुबन्ध करता है तो वह अनुबन्ध व्यर्थ होगा क्योंकि विक्रेता का आशय ‘अ’ की पत्नी को आभूषण बेचना था उस महिला को नहीं।

() निष्पादन की असम्भवता सम्बन्धी गलती

(Mistakes as to the Impossibility of Performance)

जब अनुबन्ध करते समय दोनों पक्षकार यह समझते हैं कि अनुबन्ध को पूरा करना सम्भव है किन्तु बाद में परिस्थितियों अथवा कानून में परिवर्तन के परिणामस्वरूप अनुबन्ध को पूरा करना असम्भव हो जाए तो अनुबन्ध निष्पादन की असम्भवता सम्बन्धी गलती के आधार पर व्यर्थ हो जाता है।

यह गलती निम्नलिखित दो प्रकार की होती है

(i) भौतिक असम्भवताजब परिस्थितियों के बदलने के कारण अनुबन्ध को पूरा करना असम्भव वह वर्षा या किसी अन्य कारण से न हो पाए तो अनुबन्ध निष्पादन की असम्भवता के कारण व्यर्थ होगा।

(ii) राजनियम के कारण असम्भवता-यदि किसी अनबन्ध के होने के बाद परन्तु निष्पादन से पूर्व राजनियम में कोई ऐसा परिवर्तन हो जाए जिससे अनुबन्ध का निष्पादन असम्भव हो जाए तो अनुबन्ध व्यर्थ होगा। जैसे मेरठ के एक व्यापारी ‘अ’ ने दिल्ली के एक व्यापारी ‘ब’ को 100 कुन्तल गेहूँ एक निश्चित मूल्य पर बेचने का अनुबन्ध करता है परन्तु निष्पादन से पूर्व ही उत्तर-प्रदेश सरकार ने राज्य में गेहूँ बाहर जाने पर रोक लगा दी। यह अनुबन्ध राजनियम के द्वारा असम्भव होने के कारण व्यर्थ होगा।

गलती का प्रभाव

(Effects of Mistake)

1 भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 20 के अनुसार जब ठहराव के दोनों पक्षकार ठहरा के सम्बन्ध में किसी आवश्यक तथ्य-सम्बन्धी गलती पर हैं तो ठहराव व्यर्थ होता है।।

2. यदि किसी ठहराव के दोनों पक्षकार भारत में प्रचलित किसी राजनियम के सम्बन्ध में गली पर हैं तो अनुबन्ध व्यर्थनीय नहीं बल्कि वैध होगा।

3. तथ्य सम्बन्धी गलती पर आधारित अनुबन्धों के अन्तर्गत दिया गया धन वापस प्राप्त किया जा सकता है।

4. पीड़ित पक्षकार अपने विरुद्ध चलाए गए वाद से अपनी रक्षा कर सकता है।

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अनुबन्ध में स्वतन्त्र सहमति का महत्त्व

(Importance of Free Consent in a Contract)

या

स्वतन्त्र सहमति होने का प्रभाव

(Consequences without Free Consent)

उपर्यक्त विवेचन से स्पष्ट है कि वैध अनुबन्ध के निर्माण में स्वतन्त्र सहमति का अपना विशेष महत्त्व है। भारतीय अनुबन्ध अधिनियम के अनुसार किसी अनुबन्ध के पक्षकारों की सहमति स्वतन्त्र न। होने पर निम्नलिखित प्रभाव होते हैं

1 अनुबन्ध का व्यर्थनीय होना–यदि किसी अनुबन्ध में उत्पीड़न, अनुचित प्रभाव, कपट या मिथ्यावर्णन द्वारा सहमति प्राप्त की गई है तो पीड़ित पक्षकार (जिसकी सहमति इस प्रकार से ली गई हो) द्वारा अनुबन्ध को रद्द (समाप्त) किया जा सकता है। परन्तु यदि उसकी सहमति ऐसे कपट अथवा मिथ्यावर्णन के द्वारा ली गई है जिसका वह आसानी से पता चला सकता था तो वह अनुबन्ध व्यर्थनीय नहीं होगा।

2. अनुबन्ध की अभिपुष्टि-कपट अथवा मिथ्यावर्णन से पीड़ित पक्षकार दूसरे पक्ष को अनुबन्ध को पूरा करने के लिए बाध्य कर सकता है, यदि वह ऐसा करना अपने हित में समझता है।

3. क्षतिपूर्ति कराने का अधिकार केवल कपट द्वारा दी गई सहमति की दशा में पीड़ित पक्षकार को क्षतिपूर्ति कराने का अधिकार प्राप्त होता है, अन्य किसी दशा में नहीं।

4. अनुबन्ध का रद्द (निरस्त) किया जाना-अनुचित प्रभाव से प्रभावित पक्षकार अनुबन्ध को समाप्त कर सकता है, परन्तु यदि वह अनुबन्ध के अंतर्गत कुछ लाभ प्राप्त कर चुका है तो ऐसी दशा में अनुबन्ध उन शर्तों पर रद्द किया जा सकता है जो न्यायालय की दृष्टि में उचित हों।

5. अनुबन्ध का पूर्णतया व्यर्थ होना-अनुबन्ध के दोनों पक्षकारों द्वारा तथ्य सम्बन्धी गलती की दशा में अनुबन्ध पूर्णतः व्यर्थ तथा अप्रवर्तनीय होता है अर्थात् कोई भी पक्षकार ऐसे अनुबन्ध को लागू या पूरा नहीं करा सकता।

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परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(Expected Important Questions for Examination)

दीर्ध उत्तरीय प्रश्न

(Long Answer Questions)

1 स्वतन्त्र सहमति से क्या तात्पर्य है? सहमति कब स्वतन्त्र नहीं होती? उदाहरण सहित अनुबन्ध में सहमति के महत्त्व की व्याख्या कीजिए।

What do you mean by Free consent? When consent is not free? Explain the importance of consent in a contract.

2. दो या दो से अधिक व्यक्तियों की सहमति तब स्वतन्त्र कही जाती है जब वे एक ही बात पर। एक ही भाव से सहमत हों।” इस कथन की पुष्टि कीजिए।

“Two or more persons are said to consent when they agree upon the same thing in the same sense” Explain.

3. सहमति एक वैध अनुबन्ध का आवश्यक तत्व है” इस कथन की पुष्टि करते हुए उन अपवादों को स्पष्ट कीजिए जब सहमति प्रतीत तो हो लेकिन वास्तविक न हो।

“Consent is an essential element of a valid contract.” Justify the statement with. Exception where consent appears but may not be real.

4. बल प्रयोग’ तथा ‘अनुचित प्रभाव की परिभाषा दीजिए और उनका अन्तर बताइए। अनबन्ध की वैधानिकता पर इनका क्या प्रभाव पड़ता है?

Define and distinguish between coercion and undue influence. What is the effect of it on the validity of a contract.

5. सहमति की परिभाषा दीजिए। स्वतन्त्र सहमति कब कही जाती है? अनुबन्ध की वैधता पर इसके प्रभावों की विवेचना कीजिए।

Define consent. When is consent said to be free? Discuss its effect on the validity of a contract?

6. कपट क्या है? कपट एवं मिथ्यावर्णन में अन्तर स्पष्ट कीजिए। अनुबन्ध की वैधता पर कपट का क्या प्रभाव पड़ता है?

What is fraud? Distinguish between ‘fraud’ and ‘misrepresentation’? What is the effect of fraud on the validity of the contract?

7. कपट क्या है? सक्रिय छुपाव एवं मात्र मौन में क्या अन्तर है? दोनों का अनुबन्ध की वैधता पर क्या प्रभाव पड़ता है?

What is Fraud? What is the difference between active concealment and mere silence? What is the effect of both on the validity of a contract?

8. बल प्रवर्तन एवं अनुचित प्रभाव तथा मिथ्यावर्णन एवं कपट में अन्तर स्पष्ट कीजिए।

Differentiate between ‘Coercion’ and ‘Undue Influence’ and ‘Misrepresentation’ and Fraud.’

9. तथ्य सम्बन्धी मौन जो अनुबन्ध के पक्षकारों को प्रभावित कर सकता है, तब तक कपट नहीं कहलाता जब तक कि परिस्थितियों को देखते हुए बोलना मौन रहने वाले व्यक्ति का कर्तव्य हो अथवा व्यक्ति का मौन रहना बोलने के समान हो।” इस कथन की विवेचना कीजिए। ”

Mere silence as to Facts likely to effect the willingness of a person to enter into a contract is not Fraud, unless the circumstances of the case are such that regard being had to them, it is the duty of the person keeping silence to speak or his silence is equivalent to speech.” Explain the Statement.

10. त्रुटि क्या है? अनुबन्ध पर त्रुटि के प्रभाव सम्बन्धी प्रावधानों को स्पष्ट कीजिए।

What is mistake. Explain the provisions relating to mistake on a contract?

11. तथ्य सम्बन्धी त्रुटि एवं विधि सम्बन्धी त्रुटि क्या है? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।

What is mistake as to fact and mistake as to law? Explain with the help of example.

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घु उत्तरीय प्रश्न

(Short Answer Questions)

1 स्वतन्त्र सहमति से क्या आशय है?

What is meant by Free Consent?

2. कपट एवं मिथ्यावर्णन में अन्तर बताइए।

Distinguish between Fraud and misrepresentation.

3. उत्पीड़न तथा अनुचित प्रभाव में अन्तर स्पष्ट कीजिए।

Distinguish between Coercion and Undue Influence.

4. उत्पीड़न किसे कहते हैं? उत्पीड़न का अनुबन्ध की वैधता पर क्या प्रभाव पड़ता है?

What is coercion? What are the consequences of coercion upon the validity of contract?

5. अनुचित प्रभाव का अनुबन्ध की वैधता पर क्या प्रभाव पड़ता है?

How does undue influenc effect the validity of a contract?

6. केवल मौन रहना कपट नहीं है।” समीक्षा कीजिए।

“Mere silence is not a fraud.” comment.

7. “राजनियम की अनभिज्ञता कन्य नहीं है।” स्पष्ट कीजिए।

“Ignorance of Law is no excuse.” Explain.

8 “राजनियम की गलती क्षम्य नहीं है किंतु तथ्य की गलती क्षम्य हो सकती है।” इस कथन की

उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।

“Mistake of law is not excuse but mistake of fact is excusable.” Explain and

illustrate this statement.

9. अनुबन्धों की वैधता पर त्रुटियों के क्या प्रभाव होते हैं?

What are the effects of mistakes on the validity of contracts?

10. छुपाव द्वारा कपट को स्पष्ट कीजिए।

Explain fraud by active concealment.

11. कपट का अर्थ उदाहरण द्वारा स्पष्ट कीजिए।

Explain the meaning of fraud by illustration.

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व्यावहारिक समस्याएँ

(Practical Problems)

PP1. अ अपनी पत्नी को धमकी देता है कि यदि उसने अपनी निजी सम्पत्ति अपने पति के नाम हस्तान्तरित नहीं की तो वह आत्महत्या कर लेगा। वह धमकी में आकर ऐसा कर लेती है। क्या यहाँ पर अनुचित प्रभाव का उपयोग किया गया है?

A threatens his wife that he would commit suicide if she does not transfer his personal assets to him. She does so under the threat. Is undue influence employed in this case?

उत्तर-प्रस्तुत समस्या में अ अपनी पत्नी को धमकी देता है कि यदि वह अपनी व्यक्तिगत सम्पत्ति को उसे हस्तान्तरित नहीं करेगी तो वह आत्महत्या कर लेगा। उसकी पत्नी धमकी में आकर ऐसा कर देती है। अतएव यहाँ पर उत्पीड़न का प्रयोग किया गया है, अनुचित प्रभाव का नहीं।

PP2. अ ने ब को भूमि बेची। विक्रय के समय दोनों पक्षकारों को यह सद्विश्वास था कि भूमि का क्षेत्रफल 100 एकड़ है। बाद में यह पता चला कि भूमि का क्षेत्रफल तो केवल 80 एकड़ ही है। विक्रय का अनुबन्ध कैसे प्रभावित है ? कारण दीजिए।

A sold some land to B. At the time of sale, both the parties believed in good faith that the area of land sold was 100 acre. It, however turns out that the area was 80 acres only. How is the contract of sale affected ? Give reasons…

उत्तरप्रस्तुत समस्या तथ्य सम्बन्धी गलती पर आधारित है। चूंकि गलती दोनों पक्षकारों के द्वारा हुई है, अतएव ठहराव व्यर्थ है।

PP3. , यह सोचते हुए एक बिजली का पंखा क्रय करता है कि वह उसके कमरे को ठण्डा करने के लिए पर्याप्त शक्तिशाली है परन्तु पंखा सम्पूर्ण कमरे के लिए छोटा रहा। अत: वह त्रुटि के आधार पर अनुबन्ध से पृथक होना और पंखा विक्रेता को वापस करना चाहता है। क्या वह सफल हो सकता है ?

A purchased an electric fan thinking that is was powerful enough to keep his room cool. The fan turned out to be inadequate for the entire room. So he wanted to return the fan to the seller and to get out of the contract on the ground of mistake. Can he succeed?

उत्तरतथ्य सम्बन्धी गलती के आधार पर ठहराव व्यर्थ होता है, बशर्ते यह गलती दोनों पक्षकारों के द्वारा हुई हो। यहाँ पर अ ने इस विचार से एक बिजली का पंखा खरीदा कि वह उसके कमरे को ठण्डा करने की क्षमता रखता है। बाद में यह लगता है कि पंखा इस कार्य के लिए अनुपयुक्त है, अतएव यहाँ पर गलती तो हुई है, किन्तु यह गलती अनुबन्ध के केवल एक पक्षकार अर्थात् अ द्वारा ही हुई है। पारणामस्वरुप, अ अनुबन्ध को समाप्त नहीं कर सकता।

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PP4. अ. कपटपूर्ण रुप से ब को सूचित करता है कि उसका मकान रहन से मुक्त है। इसके उपरान्त ब मकान क्रय कर लेता है। मकान रहन रखा हुआ है। ब को क्या अधिकार प्राप्त है ?

A fraudulently informs B that A’s house is free from encumbrance. B, thereupon buys the house. The house is subject to a mortgage. What are the rights of B?

उत्तरप्रस्तुत समस्या छपाव द्वारा कपट पर आधारित है। सम्पत्ति हस्तान्तरण अधिनियम में यह व्यवस्था है कि विक्रेता को चाहिए कि क्रेता को सम्पत्ति के स्वत्व की कमी के सम्बन्ध में, यदि कोई हो, स्वयं अपनी ओर से बतला दे। यहाँ अ कपटमय तरीके से ब को सूचित करता है कि उसका मकान भारमुक्त है, अतएव ब उसको क्रय कर लेता है। बाद में पता लगता है कि मकान भारयुक्त है, अत: व मकान को खरीदने के बाद भी अनुबन्ध को रद्द कर सकता है।

PP5. एक जवान विधवा को यह धमकी दी गई कि जब तक वह एक बालक को गोद नहीं ले लेती, उसके मृत पति के शव को दाह-संस्कार के लिए ले जाने नहीं दिया जाएगा। क्या गोद लेना वैध है?

A young window was forced to adopt a boy under the threat of preventing the body of her husband who had just died from being removed for cremation. Is the adoption valid?

उत्तरयह जवान विधवा की इच्छा पर निर्भर करता है कि वह बालक को गोद ले या नहीं। यहाँ पर उसकी सहमति उत्पीड़न के अन्तर्गत प्राप्त की गई है, अतः अनुबन्ध व्यर्थनीय है।

PP6. A गहरे समुद्र में एक इंग्लिश जल-यान पर भारतीय दण्ड संहिता द्वारा वर्जित आपराधिक कार्य करके B को एक अनुबन्ध में शामिल करने हेतु विवश करता है। बाद में A, कलकत्ता में B के ऊपर अनुबन्ध भंग का मुकद्दमा कर देता है। क्या A को सफलता मिलेगी?

A, on board of an English ship on the high seas causes B to enter into an agreement by an act amounting to criminal intimidation under the Indian Penal Code. Afterwards, A sues B for breach of contract at Calcutta. Will A succeed ?

उत्तरA ने B की सहमति प्राप्त करने के लिए उत्पीड़न या बल-प्रवर्तन का प्रयोग किया है। यद्यपि A का कार्य इंग्लिश कानून के अधीन अपराध नहीं है तथा जहाँ पर तथा जिस समय A ने यह कार्य किया, वहाँ पर भारतीय दण्ड संहिता लागू नहीं थी, फिर भी B की इच्छा पर अनुबन्ध व्यर्थनीय है।

PP7.X जो कि टी.बी. का रोगी है, अपने डॉक्टर Y, के प्रभाव में आकर उसकी सेवाओं का अनुचित मूल्य देने हेतु सहमत हो जाता है। क्या Y ठहराव को प्रवर्तित करा सकता है?

X, a patient of T.B. is induced by Y his medical attendant to agree to pay Y an unreasonable sum for his professional services. Can Y enforce the agreement ?

उत्तरयह अनुबन्ध, टी.बी. के रोगी X की इच्छा पर व्यर्थनीय है। Y को यह सिद्ध करना पड़ेगा कि अनुबन्ध, अनुचित प्रभाव से प्रेरित नहीं था।

PP8. A,जिसने अपने पुत्र B को अवयस्कता की अवधि में कुछ रकम उधार दी थी, उसके वयस्क होने पर अपने पैतृक प्रभाव का दुरुपयोग करके B से. उधार दी गई रकम से अधिक राशि का एक बन्ध-पत्र लिखवा लिया। क्या A ऋण को प्रवर्तित करा सकता है ?

A advanced money to his son B, during his minority. Upon B attaining majority, A obtains a bond from B for a greater amount than the sum due in respect of the advance. Can A enforce the loan ?

उत्तर-चूँकि पिता और पुत्र के सम्बन्ध इस प्रकृति के हैं, जिसमें यह धारणा बलवती होती है कि पिता ने अनुचित प्रभाव का प्रयोग किया है। यह पिता का दायित्व है कि वह सिद्ध करे कि उसने अपने पुत्र को जितना धन उधार दिया था, उससे अधिक राशि का बन्ध-पत्र उसने पुत्र से नहीं लिखवाया है।

PP9.A, यह जानते हुए कि घोड़ा अशान्त प्रकृति का है, उसका विक्रय B को कर देता है। A घोड़े के स्वभाव के बारें में B को कुछ नहीं बताता। क्या विक्रय वैध है ?

A sells a horse to B knowing fully well that the horse is vicious. A does not disclose the nature of the horse to B. Is the sale valid?

उत्तरहाँ, विक्रय वैध है क्योंकि यह A के कर्तव्य में नहीं आता कि वह B को घोड़े के स्वभाव के बारे में बतलाये। यहां पर क्रता सावधानी का सिद्धान्त’ लाग होता है।

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chetansati

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