BCom 1st Year Business Regulatory Framework Presentment Study Material Notes in Hindi

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BCom 1st Year Business Regulatory Framework Presentment Study Material Notes in Hindi

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BCom 1st Year Business Regulatory Framework Presentment Study Material Notes in Hindi: Presentment for Acceptance Types of Acceptance for Honours Presentment for Promissory note for sight Presentment for payment When Presentment is Unnecessary Payment for Honour Examinations Questions Long Answer Questions Short Answer Question :

Presentment Study Material Notes
Presentment Study Material Notes

BCom 1st Year Business Regulatory Framework Negotiation Assignment Study Material Notes in Hindi

प्रस्तुतीकरण

(Presentment)

प्रस्तुतीकरण का शाब्दिक अर्थ होता है “विलेख या प्रपत्र को भुगतान या स्वीकृति के लिये उचित समय एवं स्थान पर प्रस्तुत करना।” दसरे शब्दों में, विनिमय साध्य विलेख के प्रस्तुतीकरण से तात्पर्य किसी विलेख के धारक अथवा उसके अधिकत प्रतिनिधि द्वारा उस विलेख के आदेशिती, स्वीकर्ता अथवा वचनदाता अथवा उसके सम्बन्ध में दायी पक्षकार के समक्ष उस पर स्वीकृति प्राप्त करने अथवा उसका प्रदर्शन करने अथवा उसका भुगतान प्राप्त करने हेतु प्रस्तुत करने से है। विनिमय साध्य विलेख अधिनियम के अन्तर्गत प्रस्तुतीकरण की कोई निश्चित परिभाषा नहीं दी गई है, लेकिन विनियम साध्य विलेख अधिनियम के अनुसार, प्रस्तुतीकरण के मुख्य रुप से तीन महत्त्वपूर्ण एवं आधारभूत उद्देश्य होते हैं

(1) विनिमय विलेख या विपत्र का स्वीकृति के लिये प्रस्तुतीकरण।

(II) प्रतिज्ञा पत्र का दर्शनार्थ प्रस्तुतीकरण।

(III) विनिमय साध्य विलेख या विपत्र का भुगतान के लिये प्रस्तुतीकरण।

Business Regulatory Framework Presentment

स्वीकृति हेतु प्रस्तुतीकरण

(Presentment for Acceptance)

केवल विनिमय-पत्र को ही स्वीकृति हेतु प्रस्तुत करना पड़ता है। प्रतिज्ञा-पत्र तथा चैक को स्वीकृति हेतु प्रस्तुत करने का कोई प्रावधान नहीं है। अतः स्वीकृति हेतु प्रस्तुतीकरण से तात्पर्य विनिमय-पत्र को स्वीकृति हेतु प्रस्तुत करने से है। विनिमय-पत्र के तीन प्रमुख पक्षकार होते हैं, आदेशक (Drawer), आदेशिती तथा स्वीकर्ता। जब कोई व्यक्ति (आदेशक) किसी व्यक्ति के नाम (आदेशिती) विनिमय-पत्र लिखकर उसे एक निश्चित धनराशि भुगतान करने का आदेश देता है तो वह आदेशिती उस विपत्र पर अपने हस्ताक्षर कर अपनी लिखित सहमति प्रकट करता है कि वह उसका भुगतान कर देगा। सहमति प्रकट करने हेतु ‘स्वीकृत’ शब्द का उपयोग करना स्वीकर्ता की इच्छा पर है। ऐसा करने के बाद वह विपत्र को उसके धारक या उसके द्वारा अधिकृत व्यक्ति को सुपुर्द कर देता है अथवा सूचित कर देता है। यह सब हो जाने के उपरान्त विनिमय-पत्र स्वीकृत हुआ माना जाता है।

संक्षेप में, जब किसी विपत्र का आदेशिती (Drawee) उसके मुखपृष्ठ पर स्वीकृति शब्द लिखे या बिना लिखे ही अपने हस्ताक्षर कर उस पर अपनी लिखित सहमति प्रकट कर देता है तथा उसे उसके धारक या उसकी ओर से किसी व्यक्ति को सुपुर्द कर देता है या उसकी स्वीकृति की सूचना भेज देता है तो वह विनिमय-पत्र स्वीकृत हुआ कहलाता है।

आदेशिती द्वारा जब उपर्युक्त प्रकार से विनिमय-पत्र स्वीकार कर लिया जाता है तब वह आदेशिती ‘स्वीकर्ता’ कहा जाता है।

वैध स्वीकृति के लिए उसमें निम्नांकित तत्वों का विद्यमान होना परमावश्यक है।

1 लिखित स्वीकृति लिखित होनी चाहिये। आदेशिती अपनी स्वीकृति प्रकट करने के लिए स्वीकृति शब्द का उपयोग कर भी सकता है अथवा नहीं भी। केवल हस्ताक्षर भी विपत्र की स्वीकृति को प्रकट कर सकते हैं। विनिमय-पत्र की मौखिक स्वीकृति नहीं हो सकती है। किन्त. हण्डी (जो कि विनिमय-पत्र की भाँति ही होती है) पर स्थानीय प्रथाओं के अनुसार मौखिक स्वीकृति दी जा सकती है।

2. हस्ताक्षरितवैध स्वी आदेशिती द्वारा उस विपत्र पर हस्ताक्षर किये जाने आवश्यक हैं। हस्ताक्षर स्वयं आदेशिती या उसके अधिकृत प्रतिनिधि द्वारा किये जा सकते हैं।

यह उल्लेखनीय है कि विनिमय विपत्र की स्वीकृति (i) आदेशिती (Drawee) द्वारा, अथवा (ii) एक से अधिक आदेशिती की दशा में सभी आदेशितियों या उनके द्वारा अधिकृत एक या अधिक आदेशितियों द्वारा, अथवा (iii) आवश्यकता के समय आदेशिती द्वारा, अथवा (iv) आदरणार्थ स्वीकता । द्वारा दी जा सकती है।

3. विपत्र पर स्वीकृति-स्वीकृति केवल विपत्र के मुखपृष्ठ पर ही दी जा सकती है। किन्तु, बिल यदि सैट में लिखा गया है तो उसके किसी भी एक भाग/एक प्रति पर स्वीकृति दी जा सकती है। एक से अधिक प्रतियों पर स्वीकृति देने से स्वीकर्ता सभी प्रतियों के प्रति पृथक्-पृथक् विपत्रों के रुप में उत्तरदायी हो जायेगा।

4. मुद्रा में भुगतान की स्वीकृति-आदेशिती को विनिमय-विपत्र इस नीयत से स्वीकार करना चाहिये कि वह उसका मुद्रा में भुगतान करेगा। मुद्रा के अतिरिक्त किसी अन्य प्रकार से भुगतान की स्वीकृति वैध स्वीकृति नहीं होगी।

5.सुपुर्दगी या स्वीकृति की सूचना- स्वीकृति तभी पूरी होती है जबकि स्वीकर्ता विपत्र को स्वीकार करके उसे उसके धारक को या उसकी ओर से किसी व्यक्ति को सुपूर्द कर दे अथवा उस विपत्र की स्वीकृति की सूचना उसे भेज दे। यदि आदेशिती स्वीकृति हेतु हस्ताक्षर करने के बाद उन हस्ताक्षरों को काट देता है या उस विपत्र की सुपुर्दगी नहीं देता है तो वह विपत्र स्वीकृत हुआ नहीं माना जाता है।

6. उपर्युक्त आवश्यकताओं की पूर्ति के बाद स्वीकर्ता- जो आदेशिती उपर्युक्त सभी आवश्यकताओं की पूर्ति कर देता है वही स्वीकर्ता कहलाता है तथा वह विपत्र स्वीकृत हुआ माना जाता है। इनमें से एक भी आवश्यकता की कमी से विपत्र स्वीकृति के लिए अनादृत हुआ माना जायेगा।

स्वीकृति हेतु प्रस्तुतीकरण के सम्बन्ध में निम्नलिखित तथ्य अति महत्त्वपूर्ण हैं

Business Regulatory Framework Presentment

(1) स्वीकृति हेतु प्रस्तुतीकरण की आवश्यकताकेवल विनिमय-विपत्र ही स्वीकृति हेतु प्रस्तुत किये जाते हैं। किन्तु, सभी प्रकार के विनिमय पत्रों को स्वीकृति हेतु प्रस्तुत नहीं करना पड़ता है। निम्नांकित प्रकार के विनिमय-पत्रों को स्वीकृति हेतु तब तक प्रस्तुत नहीं करना पड़ता है जब तक कि उन विनिमय पत्रों में ही प्रस्तुतीकरण की शर्त न लगायी गयी हो :

1 माँग पर देय विनिमय-पत्र।

2.किसी निश्चित दिन या तिथि को देय विनिमय-पत्र।

3.किसी विनिमय-पत्र की तिथि से निश्चित दिनों के बाद देय विनिमय-पत्र।

किन्तु, निम्नांकित प्रकार के विनिमय विपत्रों को स्वीकृति हेतु प्रस्तुत करना आवश्यक है :

4. यदि विनिमय विपत्र ‘दर्शनोपरान्त’ या ‘प्रस्तुतीकरण के बाद’ देय बनाया गया हो। इन शब्दों का प्रयोग करने पर उस विनिमय-विपत्र का भुगतान स्वीकृति के बाद निर्धारित अवधि पूरी होने पर देय होता है।

5. यदि विनिमय-विपत्र में स्वीकृति को अनिवार्य कर दिया गया हो।

इस प्रकार इन दोनों ही परिस्थितियों में विनिमय-पत्र को स्वीकृति हेतु प्रस्तुत करना अनिवार्य होता है। किन्तु, स्वीकृति के निम्नांकित लाभों को प्राप्त करने के लिए प्रायः प्रत्येक विनिमय-विपत्र को स्वीकृति हेतु प्रस्तुत किया जाता है :

1.स्वीकृति मिलने पर विनिमय-विपत्र को एक और पक्षकार से सुरक्षा मिल जाती है।

2. आदेशिती से स्वीकृति नहीं मिलने की दशा में विनिमय-विपत्र का धारक अपने अधिकारों का उपयोग कर तत्काल पक्षकारों को उत्तरदायी ठहरा सकता है।

3. आदेशक तथा अन्य पक्षकार भी स्वीकृति नहीं मिलने की सूचना (अनादरण की सूचना) मिलते ही तत्काल आदेशिती के विरुद्ध कार्यवाही कर सकते हैं।

(2) प्रस्तुतीकरण किसके द्वारा तथा किसको? (Presentment by Whom and to Whom?)-विपत्र को स्वीकृति हेतु कोई भी ऐसा व्यक्ति प्रस्तुत कर सकता है जिसे उसकी स्वीकृति मांगने का हक है। धारक को स्वीकृति मांगने का हक होता है। अत: विपत्र का धारक या उसका कोई अधिकृत प्रतिनिधि विपत्र को स्वीकृति हेतु प्रस्तुत कर सकता है।

यह महत्त्वपूर्ण प्रश्न है कि प्रस्तुति किसको की जाये, ऐसी प्रस्तुति :

(i) आहार्यो अथवा उसके एजेन्ट को, अथवा

(ii) यदि आहार्यों की मृत्यु हो जाती है तो उसके वैधानिक उत्तराधिकारी को, अथवा

(iii) यदि आहार्थी दिवालिया घोषित कर दिया गया है तो राजकीय प्रापक को की जानी चाहिया

Business Regulatory Framework Presentment

3. प्रस्तुति का समय (Time for Presentment)- यदि विनिमयपत्र में प्रस्तुति का अव तो वह उस समय के भीतर होनी चाहिये। यदि ऐसी कोई अवधि निश्चित नहा का। गइ ह तो प्रस्तुति उचित समय के भीतर अथवा अनचित देरी के बिना होनी चाहिये। यहा नही, असा कारोबार के दिन तथा कारोबार के कार्य समय या घण्टों में होनी चाहिये।

कारीबार के समय या घण्टों का अर्थ उस समय से है, जिस समय में स्थानीय रीति-रिवाज अनुसार कारोबार किया जाता है। कारोबार का दिन सार्वजनिक अवकाश तथा ऐसे किसा दिन का। छोड़कर, जिस दिन रीति-रिवाज के अनुसार कारोबार नहीं होता है. प्रत्येक दिन माना जाता है।

लेकिन स्वीकृति के लिये प्रस्तति करने में कोई देरी हो जाने के लिये क्षमा किया जा सकता है। बाद दरा किन्हा विशेष कारणों से हई है, जो कि धारक के अधिकार के बाहर ह तथा उसक स्वयक दोष, दुराचरण तथा उपेक्षा के कारण नहीं, परन्तु देरी के ऐसे कारण न रहने पर प्रस्तुति उाचत भीतर की जानी चाहिये।

4. प्रस्तुति का स्थान (Place of Presentment)- यदि प्रस्तुति का स्थान विनिमय पत्र में निर्दिष्ट कर दिया गया हो, तो प्रस्तुति उस निर्दिष्ट स्थान पर ही होनी चाहिये, अन्यथा यह कारोबार के स्थान पर या आहार्यो के निवास स्थान पर की जानी चाहिये। (धारा 61) यदि आहार्यों का कोई जाना-पहचाना हुआ कारोबार का स्थान अथवा निश्चित निवास स्थान नहीं है तथा विलेख में ऐसी प्रस्तुति के लिये कोई स्थान निर्दिष्ट नहीं है, तो ऐसी प्रस्तति उसे व्यक्तिगत रुप से, जहाँ कहीं भी वह पाया जाता है, की जा सकती

प्रस्तुति के सम्बन्ध में यह बात भी अति-महत्त्वपूर्ण है कि यदि आहारीं उचित तिथि पर अथवा उचित खोज के पश्चात् भी नहीं मिलता है, तो विनिमय पत्र अनादरित हो जाता है।

5. डाक द्वारा प्रस्तुति (Presentment by Post)-यदि ठहराव के द्वारा ऐसा अधिकार प्रदान किया गया हो अथवा रीति-रिवाज द्वारा ऐसा किया जा सकता हो तो स्वीकृति के लिये प्रस्तुति डाक द्वारा की जा सकती है, परन्तु वह एक पंजीकृत पत्र द्वारा की जानी चाहिये।

6.स्वीकृति के लिये समय (Time for Acceptance)- आहार्यों को यह अधिकार प्राप्त है कि वह 48 घण्टों के अन्दर विनिमय-पत्र की स्वीकृति के विषय में निश्चित कर सके। उस समय के व्यतीत या पूरा हो जाने के पश्चात् धारी विनिमय-पत्र को अस्वीकृत समझ सकता है।

Business Regulatory Framework Presentment

स्वीकृति के प्रकार

(Types of Acceptance)

विनिमय-पत्र पर स्वीकृति दो प्रकार से की जा सकती है

1 सामान्य या पूर्ण स्वीकृति (General or absolute acceptance)-जब किसी विनिमय-विपत्र की स्वीकृति स्पष्ट आशय या भावना के अनुसार बिना किसी शर्त के दी जाती है तो वह सामान्य या पूर्ण स्वीकृति कहलाती है। आदेशिती स्वीकृति देते समय उस विपत्र के भुगतान आदि के सम्बन्ध में कोई शर्त नहीं जोड़ता है।

2. मर्यादित या सशर्त स्वीकृति (Qualified Acceptance)-जब आहारीं विनिमय-विपत्र के आदेश का पूर्णतः अनुमोदन नहीं करता, बल्कि उसे कुछ शर्तों या मर्यादाओं के साथ स्वीकृत करता है तो उसे मर्यादित स्वीकृति कहते हैं। धारा 86 के अनुसार निम्नलिखित प्रकार से की गई स्वीकृति मर्यादित स्वीकृति होती है

(i) जब विपत्र का भुगतान किसी घटना के घटित होने पर देय किया जाता है।

जब स्वीकृति में विपत्र की राशि से कम राशि देने की बात लिखी जाती है।

(ii) जब स्वीकृति में विपत्र की राशि को किस्तों में देने की बात लिखी जाती है।

(iv) जब विपत्र में किसी स्थान पर भुगतान का उल्लेख न हो और स्वीकर्ता किसी विशिष्ट स्थान पर ही भुगतान करने तथा किसी अन्य स्थान पर भुगतान नहीं देने की बात स्वीकार करता है।

(v) जब विपत्र में भुगतान का स्थान लिखा हो किन्तु स्वीकर्ता उस स्थान के अतिरिक्त किसी अन्य स्थान पर ही भुगतान करने की शर्त जोड़ता है।

(vi) जब स्वीकर्ता विपत्र में उल्लिखित समय के अतिरिक्त किसी अन्य समय पर भुगतान देने की शर्त जोड़ता है।

(vii) जब किसी विपत्र में एक से अधिक आदेशिती हो तथा वे साझेदार नहीं हों तथा वह विपत्र उन सभी आदेशितियों द्वारा स्वीकार नहीं किया गया है।

मर्यादित स्वीकृति का प्रभाव (Effect of Qualified Acceptance)- विनिमय पत्र का धारक मर्यादित स्वीकति को मानने से इन्कार कर सकता है अथवा उसे स्वीकार कर सकता है। यदि वह उसे मानने से इन्कार कर देता है, तो वह विनिमय पत्र को अस्वीकृति द्वारा अनादरित हुआ समझ सकता है। और उसके लिये आहार्यो पर वाद प्रस्तुत कर सकता है, परन्तु यदि वह मर्यादित स्वीकृति को स्वीकार कर लेता है तो उससे वह एवं स्वीकर्ता बाध्य हो जाते हैं लेकिन अन्य पक्षकार, जिन्होंने उसके लिये सहमति नहीं दी है, उससे बाध्य नहीं होते।

स्वीकृति के लिये प्रस्तुति कब क्षमा योग्य है (Presentment for Acceptance when execused ?) कुछ दशाओं में स्वीकृति के लिये प्रस्तुति क्षमा योग्य मानी जाती है और विनिमय-पत्र को बिना प्रस्तुति किये ही अस्वीकृत मान लिया जाता है

(i) जब आहार्यो एक कल्पित व्यक्ति होता है,

(ii) आहा- अनुबन्ध करने के योग्य न हो,

(iii) जब उचित खोजबीन के बाद भी आहार्यों का पता नहीं लग सका हो।

(iv) जब प्रस्तुतीकरण अनियमित हो, लेकिन किसी अन्य आधार पर स्वीकृति नहीं दी गई हो।

(v) जब आहार्टी की मृत्यु हो गई हो या दिवालिया घोषित कर दिया हो। ऐसी दशा में मृतक के वैधानिक उत्तराधिकारी एवं दिवालिया के राजकीय प्रापक के समक्ष विनिमय-पत्र स्वीकृति के लिये प्रस्तुत नहीं किया जाता।

Business Regulatory Framework Presentment

(3) प्रतिष्ठा के लिये स्वीकृति

(Acceptance for Honour)

प्रतिष्ठा के लिये स्वीकृति उन दशाओं में की जाती है, जबकि मूल देनदार के द्वारा विलेख को अस्वीकृत कर दिया जाता है अथवा नोटेरी पब्लिक अच्छी जमानत माँगता है, पर ऐसी जमानत देने से मना कर दिया जाता है। प्रतिष्ठा के लिये कोई भी अन्य पक्षकार या व्यक्ति, जिस पर विलेख से सम्बन्धित कोई दायित्व विद्यमान नहीं है, धारक की सहमति से विलेख के भुगतान के लिये उत्तरदायी किसी भी पक्षकार या व्यक्ति की प्रतिष्ठा को बचाने के लिये या उसकी रक्षा करने के लिये स्वीकृति दे सकता है। ऐसी स्वीकृति एक अजनबी व्यक्ति या पक्षकार भी दे सकता है। यद्यपि धारक प्रतिष्ठा के लिये स्वीकृति को मानने के लिये बाध्य नहीं है। इस सम्बन्ध में धारक को यह अधिकार प्राप्त है कि वह इस तरह से दी गई स्वीकृति पर अपनी अनुमति दे अथवा इन्कार कर दे।।

यदि धारक अपनी अनुमति दे देता है तो उसका उत्तरदायी पक्षकार के विरुद्ध तुरन्त कार्यवाही करने का अधिकार समाप्त हो जाता है। इस प्रकार की स्वीकृति देने वाले व्यक्ति या पक्षकार को “प्रतिष्ठा के लिये स्वीकर्ता” कहते हैं।

प्रतिष्ठा के लिये वैध स्वीकृति के लक्षण (Essentials of Valid Acceptance for Honour)

1 ऐसी स्वीकृति तभी दी जा सकती है, जब विलेख की निकराई या सिकराई (noting or protesting) की गई हो; तथा इससे पूर्व इस पर स्वीकृति न दी गई हो।

2. ऐसी स्वीकृति धारक की सहमति से दी जानी चाहिए।

3.ऐसी स्वीकृति विलेख के लिए उत्तरदायी व्यक्ति की प्रतिष्ठा हेतु ही दी जानी चाहिए।

4.ऐसी स्वीकृति केवल उसी व्यक्ति द्वारा दी जानी चाहिए, जिसका विलेख के सम्बन्ध में कोई उत्तरदायित्व नहीं है।

5.ऐसी स्वीकृति विलेख पर ही लिखित रुप में दी जानी चाहिए तथा दी गई स्वीकृति सम्पूर्ण राशि के सम्बन्ध में होनी चाहिए।

6. ऐसी स्वीकृति प्रतिष्ठा के लिए स्वीकर्ता’ के द्वारा हस्ताक्षरित (signed) होनी चाहिए। 7.ऐसी स्वीकृति विलेख का भुगतान करने की अवधि से पूर्व दी जानी चाहिए।

प्रतिष्ठा के लिए स्वीकर्ताके अधिकार एवं दायित्व (धारा 111 एवं 112) (Rights and Liabilities of an Acceptor for Honour) यदि विलेख से सम्बन्धित राशि का भुगतान नहीं किया जाता है, तो जिस पक्ष की प्रतिष्ठा के लिए स्वीकृति प्रदान की गई है. उसके बाद के आने वाले सभी पक्षों के प्रति (विलेख की राशि के लिए) “प्रतिष्ठा के लिए स्वीकर्ता” उत्तरदायी होता है। मान लीजिए, एक विनिमय-पत्र का पृष्ठांकन क द्वारा ख को, ख द्वारा ग को, ग द्वारा घ को तथा घ द्वारा अ को किया जाता ह तथा ब, ग की प्रतिष्ठा के लिए विनिमय-पत्र को स्वीकार कर लेता है. तो ग केवल घ तथा अ के प्रति । उत्तरदायी होगा, क तथा ख के प्रति नहीं।

प्रतिष्ठा के लिए स्वीकर्ता’ की स्थिति. ‘सामान्य स्वीकर्ता’ से कळ बेहतर होती है। उसका दायित्व शर्तयुक्त। हाता है। प्रतिष्ठा के लिए स्वीकर्ता को उत्तरदायी ठहराने के लिये अग्रलिखित शर्तों की पूर्ति आवश्यक ह

(1) विलेख के परिपक्व होने पर उसे भुगतान हेतु देनदार के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिये।

(2) यदि विलेख का अनादरण हो गया है तो गैर-अदायगी (non-payment) के लिय उसका। निकराई या सिकराई (noting or protesting) की जानी चाहिए।

 (3) परिपक्वता के दूसरे दिन (इसके बाद नहीं) विलेख को “प्रतिष्ठा के लिए स्वीकत्ता” के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिये।

यदि ‘प्रतिष्ठा के लिये स्वीकर्ता’ द्वारा विलेख का भगतान कर दिया जाता है तो वह प्रतिष्ठा के लिए स्वीकृति पाने वाले व्यक्ति के विरुद्ध तथा उसके पूर्व के सभी पक्षों के विरुद्ध, स्वीकृति के फलस्वरुप होने वाली समस्त हानियों एवं हर्जाने की वसूली के लिए वाद प्रस्तुत करने का अधिकारी होता है।

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प्रतिज्ञापत्र का दर्शनार्थ प्रस्तुतीकरण

(Presentment of Promissory Note for Sight)

प्रतिज्ञा-पत्र ऋणी द्वारा लिखा जाता है अतः इसमें स्वीकृति की आवश्यकता नहीं होती है। परन्तु कभी-कभी प्रतिज्ञा-पत्र ‘दिखाये जाने के पश्चात’ एक निश्चित अवधि के बाद देय होता है, तो भुगतान प्राप्त करने से पहले ऐसे प्रतिज्ञा-पत्र को उसके लेखक के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिए। ऐसे प्रतिज्ञा-पत्र की प्रस्तुति परिपक्वता तिथि निश्चित करने के लिए आवश्यक होती है। प्रतिज्ञा-पत्र लिखने की तिथि के उचित समय के भीतर किसी भी कार्यदिवस, कार्य के घन्टों में प्रतिज्ञा-पत्र प्रस्तुत कर देना चाहिए।

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भुगतान के लिए प्रस्तुतीकरण

(Presentment For Payment)

प्रतिज्ञा-पत्र, विनिमय-पत्र तथा चैक का भुगतान प्राप्त करने के लिए उन्हें क्रमश: लेखक, स्वीकर्ता तथा देनदार के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिये! प्रस्तुतीकरण का उद्देश्य सम्बन्धित पक्षकार को भुगतान का एक अवसर प्रदान करना है। भुगतान हेतु वैध प्रस्तुतीकरण का अर्थ है-(i) उचित दिन; (ii) उचित घंटों में या उचित समय पर; (iii) उचित व्यक्ति द्वारा; (iv) उचित स्थान पर; (v) उचित व्यक्ति को; तथा (vi) उचित तरीके से प्रस्तुतीकरण। इसमें से प्रस्तुतीकरण के सम्बन्ध में कोई भी त्रुटि होने पर विलेख से सम्बन्धित अन्य पक्षकार धारक के प्रति अपने दायित्वों से मुक्त हो जाते हैं। प्रस्तुतीकरण के बिना, धारक के पास अन्य पक्षकारों के विरुद्ध कार्यवाही करने का कोई आधार नहीं होगा। किन्तु यदि कोई प्रतिज्ञा-पत्र माँग पर देय है परन्तु भुगतान के लिए कोई स्थान निर्धारित नहीं किया गया है, तो प्रतिज्ञा-पत्र के लेखक को उत्तरदायी ठहराने के लिए प्रस्तुतीकरण आवश्यक नहीं है। भुगतान के लिए प्रस्तुतीकरण से सम्बन्धित प्रमुख नियम निम्नलिखित हैं

1 डाक द्वारा प्रस्तुतीकरण (Presentment by post)- स्वीकृति के लिए प्रस्तुति डाक द्वारा भी की जा सकती है बशर्ते ऐसा करने का अधिकार ठहराव द्वारा प्रदान किया गया हो अथवा रिवाज द्वारा ऐसा किया जा सकता हो, लेकिन ऐसी प्रस्तुति रजिस्टर्ड-डाक द्वारा ही की जानी चाहिए। (धारा 64)

2. प्रस्तुति के घण्टे (Hours of Presentment)- भुगतान के लिए प्रस्तुति उस दिन तथा व्यापार के घन्टों में की जानी चाहिए, जिस दिन कोई सार्वजनिक अवकाश न हो। बैंक की दशा में विलेख को बैंक के सामान्य कार्य-घण्टों के दौरान ही प्रस्तुत किया जाना चाहिये।

3. दर्शन के पश्चात्यातिथि के पश्चात्देय विलेख का प्रस्तुतीकरण (Presentment of instrument payable after date or sight)- ऐसे समस्त प्रतिज्ञा-पत्र अथवा विनिमय-पत्र जो ‘तिथि’ या ‘दर्शन’ के पश्चात् एक निश्चित अवधि के बाद देय हो, उन्हें परिपक्व होने पर भुगतान के लिए प्रस्तुत किया जाना चाहिए। प्रस्तुतीकरण परिपक्वता तिथि को किया जाना चाहिए। यदि इसमें एक दिन की भी देरी की जाती है तो विलेख से सम्बन्धित वे पक्षकार, जिनका प्राथमिक दायित्व नहीं है, जैसे-लेखक व पृष्ठांकक, धारक के प्रति अपने दायित्व से मुक्त हो जाएँगे।

4. किश्तों में देय प्रतिज्ञापत्र का प्रस्तुतीकरण (Presentment of Promissory-note payable by instalments)- यदि कोई प्रतिज्ञा-पत्र किश्तों में देय हो, तो उसे प्रत्येक किश्त के भुगतान की निर्धारित तिथि के पश्चात् तीसरे दिन भुगतान के लिये प्रस्तुत किया जाना चाहिए। यदि किश्तो में देय-प्रतिज्ञा पत्र को भुगतान हेतु इस प्रकार से प्रस्तुत नहीं किया जाता तो उत्तरदायी पक्षकार अपने दायित्व से मुक्त हो जायेगा।

5. चैक का प्रस्तुतीकरण (Presentment of cheque)- चैक के लेखक को उत्तरदायी ठहराने के लिए यह आवश्यक है कि चैक का धारक चैक को देनदार बैंक के समक्ष प्रस्तुत करे। यह कार्य लेखक (या आहर्ता) तथा देनदार बैंक के बीच के सम्बन्धों (लेखक के हितों के विरुद्ध) में परिवर्तन होने से पहले ही किया जाना चाहिए (धारा 72)। यदि धारक उचित समय के भीतर देनदार बैंक के समक्ष चैक को भुगतान प्राप्त करने के लिए प्रस्तुत नहीं करता, और इसी दौरान चैक के लेखक एवं देनदार-बैंक के मध्य स्थापित सम्बन्ध विकृत (altered) हो जाते हैं तथा देरी के कारण लेखक (या आहर्ता) को कोई हानि होती है तो लेखक का दायित्व देरी के फलस्वरुप हुई हानि की सीमा तक कम हो जाएगा।

लेखक के अलावा किसी अन्य पक्षकार को उत्तरदायी ठहराने के लिए यह आवश्यक है कि भुगतान के लिए चैक की प्रस्तुति चैक को प्राप्त करने के बाद उचित समय के अन्दर ही कर दी जाए।

6. प्रस्तुतीकरण का स्थान (Place of Presentment)- यदि कोई चैक, प्रतिज्ञापत्र, या विनिमय-पत्र किसी निश्चित स्थान पर देय होने के लिए लिखा, आहरित एवं स्वीकृत किया गया हो तो उसके किसी भी पक्षकार को उत्तरदायी ठहराने के लिए उसे उसी स्थान पर प्रस्तुत किया जाना चाहिये।

यदि कोई विनिमय-पत्र या प्रतिज्ञा-पत्र किसी निश्चित स्थान पर देय होने के लिए लिखा, आहरित या स्वीकृत किया गया हो तो उसके लेखक या आहर्ता को उत्तरदायी ठहराने के लिए उसे उसी स्थान पर भुगतान के लिए प्रस्तुत किया जाना चाहिए।

यदि किसी विनिमय-पत्र अथवा प्रतिज्ञा-पत्र के भुगतान के लिए कोई स्थान निश्चित न किया गया हो, तो भुगतान के लिए प्रस्तुति लेखक, देनदार अथवा स्वीकर्ता के निवास स्थान अथवा कार्य-स्थल पर की जानी चाहिए।

यदि किसी विनिमय-पत्र अथवा प्रतिज्ञा-पत्र के लेखक, देनदार अथवा स्वीकर्ता का कोई कार्य-स्थल अथवा निर्दिष्ट निवास-स्थान न हो तथा विलेख में भुगतान की प्रस्तुति के लिए कोई भी स्थान निश्चित न किया गया हो तो प्रस्तुति जहाँ कही भी वह मिले, व्यक्तिगत रुप में की जा सकती है।

7.”माँग पर देयविलेख का प्रस्तुतीकरण (Presentment of instrument payable on demand)- यदि कोई विलेख माँग पर देय हो, तो उसे धारक द्वारा प्राप्त करने के पश्चात् उचित समय के भीतर भुगतान के लिए प्रस्तुत करना चाहिए। इस प्रकार से बैंक-ड्राफ्ट को भुगतान के लिए उचित समय के भीतर बैंक के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिए।

8. एजेन्ट, वैधानिकप्रतिनिधि अथवा अभिहस्तांकिती को प्रस्तुतीकरण (Presentment to agent, legal representative or assignee)-विलेख का भुगतान हेतु प्रस्तुतीकरण लेखक, देनदार या स्वीकर्ता द्वारा अधिकृत (authorised) उसके एजेन्ट, वैधानिक प्रतिनिधि या अभिहस्तांकिती को किया जा सकता है। ऐसी प्रस्तुति उसकी मृत्यु हो जाने पर उसके एजेन्ट, वैधानिक प्रतिनिधि या अभिहस्तांकिती को की जा सकती है।

जब प्रस्तति में विलम्ब क्षम्य है 

(When delay in presentment is excused)

जब भुगतान के लिए प्रस्तुति में देरी या विलम्ब हो जाये तो उसके लिए दोषी पक्षकार को क्षमा प्रदान की जा सकती है बशर्ते विलम्ब किन्हीं ऐसे कारणों से हआ हो जो उसकी शक्ति के बाहर थे तथा वह विलम्ब उसकी स्वयं की गलती, दुराचार या लापरवाही के कारण न हुआ हो। किन्तु, यदि विलम्ब के लिए उपरोक्त कारण न हो तो भुगतान के लिए प्रस्तुति उचित समय के भीतर ही की जानी चाहिए।

Business Regulatory Framework Presentment

जब प्रस्ततीकरण अनावश्यक है

(When Presentment is unnecessary)

धारा 76 उन दशाओं पर प्रकाश डालती है, जब भुगतान के लिए विलेख का प्रस्तुतीकरण अनावश्यक होता है तथा विलेख देय-तिथि पर अनादृत समझा जाता है। ये दशाएँ इस प्रकार हैं

1 जब प्रस्तुतीकरण जानबूझकर रोका जाता है (When presentment is intentionally prevented)- यदि लेखक, देनदार अथवा स्वीकर्ता जानबझकर प्रस्ततीकरण को रोक देता है तो धारक का प्रस्तुतीकरण से माफ कर दिया जाता है। जैसे—यदि लेखक, देनदार या स्वीकर्ता, धारक के माग म जानबूझकर कोई ऐसी अडचन डाल देते हैं जिसके परिणामस्वरुप धारक के लिए विलेख को प्रस्तुत करना असम्भव हो जाता है तो भुगतान के लिए प्रस्तुतीकरण अनिवार्य नहीं होगा।

2. जब व्यापारस्थल बन्द रहता है (When business place is closed)-जबावानमय विलख का लेखक, देनदार या स्वीकर्ता के कार्यस्थल पर भुगतान हेतु प्रस्तुत किया जाना हा, स्थल का वह जानबूझकर कारोबार के दिन तथा कारोबार के सामान्य समय में बन्द रखता हो तो भुगतान के लिए प्रस्तुतीकरण आवश्यक नहीं है। इस स्थिति में यह मान्यता होती है कि लेखक, देनदार या स्वीकत्ता जानबूझकर भुगतान करने से बचना चाहता है।

3. यदि भुगतानस्थल पर कोई भी व्यक्ति उपस्थित नहीं है (No person present at the place of payment)- यदि विलेख का भगतान किसी निश्चित स्थान पर किया जाना है तथा लेखक, देनदार या स्वीकर्ता अथवा भुगतान करने के लिए कोई भी अधिकृत व्यक्ति सामान्य कार्य के समय के दौरान वहाँ उपस्थित नहीं है तो भुगतान के लिए प्रस्तुतीकरण आवश्यक नहीं है।

4. जब खोजबीन के बाद भुगतानकर्ता का पता नहीं लगाया जा सकता (When the payer cannot be found)- यदि विलेख किसी निश्चित स्थान पर देय नहीं है, तो धारक द्वारा पर्याप्त मेहनत से लेखक, देनदार या स्वीकर्ता को ढूंढने की कोशिश करनी चाहिए, ताकि विलेख का भुगतान हेतु प्रस्तुतीकरण किया जा सके। यदि उचित तलाश के बाद भी उनका पता नहीं चलता, तो विलेख के धारक द्वारा प्रस्तुतीकरण आवश्यक नहीं है।

5. जब प्रस्तुतीकरण की उपेक्षा करके भुगतान की प्रतिज्ञा की गई हो (Promise to pay notwithstanding non-presentment)- जब लेखक, देनदार या स्वीकर्ता द्वारा प्रस्तुतीकरण के बिना ही विलेख का भुगतान करने की प्रतिज्ञा की गई हो तो प्रस्तुतीकरण आवश्यक नहीं होता। ऐसी प्रतिज्ञा विलेख के परिपक्व होने से पहले की जानी चाहिए।

6. जब भुगतानकर्ता प्रस्तुतीकरण की स्पष्ट या गर्भित छूट दे (When the payee expressly or impliedly waives his right)- जब वह पक्ष जिसके समक्ष विलेख भुगतान के लिए प्रस्तुत किया जाना है, परिपक्वता तिथि से पहले या बाद में प्रस्तुतीकरण के लिए उत्तरदायी पक्ष को प्रस्तुतीकरण की स्पष्ट या गर्भित छूट दे देता है तो ऐसी दशा में विलेख का प्रस्तुतीकरण आवश्यक नहीं है।

यदि भुगतानकर्ता पक्ष विलेख की परिपक्वता तिथि के पश्चात्

(1) विलेख में लिखित राशि का आंशिक भुगतान करता है; अथवा

(ii) इस राशि के आंशिक अथवा पूर्ण भुगतान का वचन देता है; अथवा

(iii) प्रस्तुतीकरण में की गई चूक से लाभ उठाने का अपना अधिकार त्याग देता है; तो इससे गर्भित छूट का आभास होता है।

7. जब आदेशक या लेखक को कोई हानि नहीं होती (When drawer does not suffer damages)- यदि विलेख का प्रस्तुतीकरण न किये जाने पर आदेशक अथवा लेखक को कोई हानि नहीं होती, तो धारक के लिए भुगतान हेतु विलेख का प्रस्तुतीकरण आवश्यक नहीं है।

8. अस्वीकृति के कारण अनादरण (Dishonour by non-acceptance)- यदि विलेख का अनादरण, उसे अस्वीकार कर देने के कारण हुआ हो तो भुगतान के लिए पुन: उसका प्रस्तुतीकरण आवश्यक नहीं है।

प्रतिष्ठा के लिए भुगतान

(Payment for Honour)

जब किसी स्वीकृत विनिमय-पत्र का, भुगतान न होने के कारण अनादरण हो जाता है तथा ऐसे अनादरण की निकराई तथा सिकराई (Noting & Protesting) करा ली जाती है तो कोई भी पक्षकार, किसी ऐसे पक्षकार की प्रतिष्ठा के लिए, जो भुगतान करने के लिए उत्तरदायी है, उसका भुगतान कर सकता है। लेकिन यह आवश्यक है कि ऐसे पक्षकार द्वारा लेखा-प्रमाणक (Notary-Public) के सामने इस बात की घोषणा कर दी जाय कि वह किसी पक्षकार की प्रतिष्ठा के लिए भुगतान कर रहा है तथा । ऐसी घोषणा को लेखा-प्रमाणक द्वारा अपनी पुस्तक में दर्ज कर लिया जाए। प्रतिष्ठा के लिए भुगतान हेतु। निम्नांकित शर्तों की पर्ति आवश्यक है

1 विलेख का अनादरण भुगतान न करने के कारण हुआ हो।

2. भुगतान न करने के कारण विलेख की निकराई तथा सिकराई की गई हो।

3. भुगतान करने वाले व्यक्ति द्वारा लेखा-प्रमाणक के समक्ष उस पक्ष के नाम की घोषणा कर दी गई हो जिसकी प्रतिष्ठा के लिए भुगतान किया जाना है।

4. लेखाप्रमाणक द्वारा इस घोषणा को दर्ज कर लिया गया हो।

5. भुगतान, विलेख के लिए उत्तरदायी पक्ष के प्रतिष्ठार्थ ही किया गया हो। ।

6. प्रतिष्ठा के लिए भुगतान किसी भी व्यक्ति द्वारा किया जा सकता है, भले ही वह व्यक्ति विलेख के लिए पहले से उत्तरदायी हो या न हो।

प्रतिष्ठा के लिए भुगतान करने वाले व्यक्ति को वे सभी अधिकार प्राप्त होते हैं, जो अधिकार भुगतान के समय विलेख के धारक को प्राप्त थे तथा वह उस पक्षकार से, जिसकी प्रतिष्ठा के लिए भुगतान किया गया है, भुगतान की गई राशि, उस पर ब्याज तथा भुगतान से सम्बन्धित किये गए उचित व्ययों को प्राप्त करने का अधिकारी है। इसी प्रकार से प्रतिष्ठार्थ स्वीकर्ता को वे सभी अयोग्यताएँ भी प्राप्त होती हैं जो विलेख के धारक की होती हैं जैसे-वह तब तक पूर्व-पक्षकारों पर वाद प्रस्तुत नहीं कर सकता जब तक उन्हें अनादरण की सूचना प्राप्त न हो गई हो।

Business Regulatory Framework Presentment

परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(Expected Important Questions for Examination)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

(Long Answer Questions)

1विनिमय-पत्र की स्वीकृति से क्या आशय है ? वैध स्वीकृति के आवश्यक लक्षणों का वर्णन कीजिए।

What is meant by ‘Acceptance of a bill of exchange’ ? Explain the essential characteristics of a valid acceptance.

2. सामान्य स्वीकृति और मर्यादित स्वीकृति में अन्तर स्पष्ट कीजिए। मर्यादित स्वीकृति कितने प्रकार की होती है?

Distinguish between general and qualified acceptance. What are the various types of qualified acceptance?

3. क्या सभी दशाओं में विनिमय साध्य विलेखों का स्वीकृति के लिये प्रस्तुतीकरण आवश्यक है ? स्वीकृति से सम्बन्धित नियमों का वर्णन कीजिए।

Is the presentment of a Negotiable Instrument for acceptance is necessary in all cases? Discuss the rules regarding acceptance.

4. विनिमय-साध्य विलेख की प्रस्तुति से आपका क्या आशय है ? भुगतान के लिये प्रस्तुति से सम्बन्धित नियमों का वर्णन कीजिए।

What do you mean by presentment of negotiable instrument ? Discuss the rules regarding presentment for payment.

5. प्रस्तुति क्या है ? विनिमय-साध्य लेख-पत्र की दशा में भुगतान के लिये प्रस्तुति कब अनावश्यक होती है?

What is presentment? When presentment is unnecessary in the case of a negotiable instrument?

6. भुगतान के लिये प्रस्तुतीकरण को शासित करने वाले नियमों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।

Briefly describe the rules governing presentment for payment.

Business Regulatory Framework Presentment

लघु उत्तरीय प्रश्न

(Short Answer Questions)

1 विनिमय-पत्र की स्वीकृति के लिये प्रस्तुतीकरण से क्या आशय है ?

What is meant by the presentment of a bill for acceptance?

2. स्वीकृति के विभिन्न प्रकार बताइए।

Explain the kinds of acceptance.

3. वैध स्वीकृति के लक्षण बताइए।

State the characteristics of valid acceptance.

4. क्या एक विनिमय-साध्य विलेख का प्रस्तुतीकरण सभी दशाओं में आवश्यक है ?

Is the presentment of a negotiable instrument necessary in all cases?

5. मर्यादित स्वीकृति कब मानी जाती है ?

When acceptance is termed as qualified acceptance?

6. प्रस्तुति कब अनावश्यक है ? समझाइए।

When presentment is unnecessary ? Explain.

7. प्रतिष्ठा के लिये स्वीकृति को समझाइए।

Explain the acceptance for honour.

8. स्वीकृति के लिये प्रस्तुतीकरण किसके द्वारा तथा किसको किया जाता है ?

Presentment for acceptance is done by whom and to whom?

9. विनिमय-पत्र की सशर्त स्वीकति से आप क्या समझते हैं ?

What do you understand by qualified acceptance of a bill of exchange?

10. दर्शन के लिये प्रस्तुतीकरण से आप क्या समझते हैं?

What do you understand by presentment for sight?

Business Regulatory Framework Presentment

chetansati

Admin

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