BCom 1st Year Business Regulatory Framework Transfer Ownership Study Material Notes in Hindi

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BCom 1st Year Business Regulatory Framework Transfer Ownership Study Material Notes in Hindi

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BCom 1st Year Business Regulatory Framework Transfer Ownership Study Material Notes in Hindi: Case Law Classification and Rules as to Transfer of Ownership Passing of Ownership is Ascertained or Specific Goods Transfer of Ownership of Unascertained Goods Rules to Transfer to Title Examination Questions Long Answer Questions Short Answer Questions :

Transfer Ownership Study Material
Transfer Ownership Study Material

BCom 1st Year Business Regulatory Framework Sale Goods Act 1930 An Introduction Study Material Notes in Hindi

स्वामित्व का हस्तान्तरण

(Transfer of Ownership)

वस्तु विक्रय अनुबन्ध का मूल उद्देश्य वस्तुओं का स्वामित्व हस्तांतरित करना होता है। वस्तुओं का स्वामित्व हस्तांतरित करना तथा वस्तुओं की सपर्दगी देना. यह अलग-अलग कार्य हैं। जब वस्तुआ का स्वामित्व हस्तांतरित किया जाता है तो क्रेता माल का स्वामी मानी जाता है, चाहे वस्तुएं अभी विक्रेता क कब्जे में ही हों, जैसे अमर एक इलेक्टॉनिक विक्रेता से एक टेलीविजन खरीदता है परन्तु वह अगल दिन आकर टेलीविजन ले जाने के लिए कह कर टेलीविजन विक्रेता के ही पास छोड़ जाता है। इस स्थिति में टेलीविजन का स्वामित्व अमर को हस्तांतरित हो चका है यद्यपि कब्जा विक्रेता के ही पास है। इसी प्रकार। कई वस्तुओं का कब्जा दे दिया जाता है जबकि स्वामित्व हस्तांतरित नहीं हुआ, जैसे हरीश पसन्द करने के लिए एक मोबाइल अपने घर ले जाता है, इस स्थिति में यद्यपि मोबाइल हरीश के कब्जे में है परन्तु वह उसका स्वामी नहीं कहला सकता, क्योंकि अभी स्वामित्व क्रेता को हस्तांतरित नहीं हुआ है।

मूल प्रश्न यह है कि माल का स्वामित्व किस समय क्रेता को हस्तांतरित हुआ माना जाएगा? यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है, क्योंकि एक समय विशेष पर माल का स्वामी कौन था (विक्रेता या क्रेता) इस पर पक्षकारों के अनेक अधिकार व दायित्व निर्भर करते हैं। अतः सम्बद्ध नियमों का अध्ययन करने से पहले यह समझ लेना चाहिए कि किन कारणों से स्वामित्व के हस्तांतरण का समय जानना आवश्यक है। ये कारण निम्नलिखित हैं

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1.जोखिम, स्वामित्व के साथसाथ रहता है (Risk follows ownership)-यह एक सामान्य नियम है कि माल का स्वामी ही माल सम्बन्धी जोखिम उठाता है अर्थात् माल का स्वामी ही माल को होने वाली हानियों के लिए उत्तरदायी होता है। वस्त विक्रय अधिनियम की धारा 26 के अनुसार किसी विपरीत समझौते या व्यापारिक रीति के अभाव में विक्रेता का जोखिम उस समय तक रहता है जब तक क्रेता को स्वामित्व हस्तांतरित नहीं हो जाता। परन्तु जब स्वामित्व क्रेता को हस्तांतरित हो जाता है, तब जोखिम क्रेता का ही होता है चाहे वस्तुओं की सुपुर्दगी दे दी गई हो अथवा नहीं। उदाहरण के लिए, अजीत, विक्रम से कुछ पुस्तकें खरीदता है। पुस्तकें विक्रम की दुकान में ही थीं कि दुकान में आग लग गई और पुस्तकें जल गईं। यह हानि अजीत को सहन करनी होगी। यदि उसने मूल्य नहीं चुकाया है तो वह मूल्य चुकाने के लिए भी उत्तरदायी होगा। उपर्युक्त उदाहरण में यदि परिस्थितियाँ ऐसी रही हों कि पुस्तकों का स्वामित्व हस्तांतरित नहीं हुआ था, तब यह हानि विक्रम को सहनी होगी। अत: यह मालूम करने के लिए कि माल की हानि कौन सहन करेगा, यह जानना आवश्यक है कि माल का स्वामी कौन है?

2. तीसरे पक्षों के विरुद्ध कार्यवाही (Action against third parties)-जब माल को किसी तीसरे पक्ष द्वारा कुछ हानि पहुँचाई जाती है तब माल का स्वामी ही तीसरे पक्षों के विरुद्ध कार्यवाही कर सकता है। अत: यह जानना आवश्यक हो जाता है कि माल का स्वामी कौन है।

3. क्रेता या विक्रेता के दिवालिया होने पर (Insolvency of the buyer or seller)-किसी व्यक्ति के दिवालिया हो जाने पर उसकी समस्त सम्पत्ति सरकारी रिसीवर के अधिकार में चली जाती है। क्रेता या विक्रेता के दिवालिया घोषित हो जाने पर यह निर्णय करने के लिए कि माल सरकारी रिसीवर के अधिकार में जाएगा या नहीं, यह जानना आवश्यक है कि उस समय माल का स्वामी कौन है? मान लो, यदि माल का स्वामित्व क्रेता को हस्तांतरित हो चुका है और विक्रेता दिवालिया हो जाता है लेकिन माल अभी विक्रेता के ही कब्जे में है। ऐसी स्थिति में, क्रेता, विक्रेता के सरकारी रिसीवर से अपने माल की सुपुर्दगी ले सकता है। इसके विपरीत, यदि स्वामित्व अभी हस्तांतरित नहीं हुआ है परन्तु माल क्रेता के कब्जे में पहुंच चुका है, तब क्रेता को वह माल विक्रेता के सरकारी रिसीवर को सौंपना पड़ेगा।

4. मूल्य के लिए दावा (Suit for price)-विक्रेता, क्रेता पर मूल्य के लिए दावा तब तक नहीं कर सकता, जब तक माल का स्वामित्व क्रेता को हस्तांतरित न हो गया हो।

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केस लॉ

(Case Law)

मुल्तानमल चम्पाला बनाम शाह एंड कम्पनी (1970) के विवाद में विक्रेता द्वारा बम्बई से बेलारी को सार्वजनिक वाहन द्वारा माल क्रेता को भेजा गया था। विक्रय की शर्तों के अनुसार जब तक माल के मूल्य का भुगतान नहीं हो जाता है तब तक स्वामित्व विक्रेता के पास रहेगा यद्यपि वाहक को माल सौंपते ही जोखिम क्रेता को हस्तांतरित होनी थी। माल भुगतान करने से पूर्व ही खो गया। न्यायालय द्वारा निर्णय दिया गया कि यह क्षति क्रेता वहन करेगा क्योंकि माल सार्वजनिक वाहन को सौंपते ही जोखिम उसके पास हस्तांतरित हो गई थी।

माल के स्वामित्व का हस्तांतरण करने के उद्देश्य से माल का वर्गीकरण तथा स्वामित्व के हस्तांतरण सम्बन्धी नियम

(Classification and Rules as to Transfer of ownership)

सामान्यत: विक्रेता तथा क्रेता दोनों आपस में मिलकर यह तय कर सकते हैं कि माल के स्वामित्व का हस्तांतरण कब और किस समय होगा। इस आशय के ठहराव अथवा अनुबन्ध के अभाव में इसका निर्णय भारतीय वस्तु-विक्रय अधिनियम की निम्नलिखित धाराओं के आधार पर होगा। स्वामित्व के हस्तांतरण के उद्देश्य से माल को निम्नलिखित दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है

(1) निश्चित अथवा विशिष्ट माल (Ascertained or Specific Goods)

(II) अनिश्चित अथवा साधारण माल (Unascertained Goods)

(1) निश्चित अथवा विशिष्ट माल की दशा में स्वामित्व का हस्तांतरण (Passing of Ownership in Ascertaind or Specific Goods) निश्चित अथवा विशिष्ट माल से हमारा अभिप्राय ऐसे माल से है जो विक्रय अनुबन्ध करते समय तय और पहचान (Agreed and Identified) लिया गया हो। जहाँ निश्चित अथवा विशिष्ट माल के विक्रय के लिए अनुबन्ध होता है, वहाँ माल के स्वामित्व का हस्तांतरण क्रेता को उस समय होता है जबकि अनुबन्ध के पक्षकारों ने हस्तांतरण का आशय अथवा अभिप्राय (Intention) प्रकट किया हो। पक्षकारों के अभिप्राय को जानने के लिए अनुबन्ध की शर्तों, पक्षकारों के आचरण तथा मामले की अन्य परिस्थितियों पर विचार करना होगा। जब तक कोई विपरीत अभिप्राय प्रकट न होता हो, क्रेता को माल का स्वामित्व हस्तांतरित होने के समय के विषय में, पक्षकारों के इरादे का निश्चय धारा 20 से धारा 24 तक में दिए गए नियमों के आधार पर किया जा सकता है।

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1 जब माल सपर्दगी योग्य स्थिति में है (When goods are in a deliverable state)-जब सुपुर्दगी योग्य विशिष्ट वस्तुओं का शर्त रहित विक्रय अनुबन्ध किया जाता है तब अनुबन्ध करते ही तुरन्त वस्तुओं का स्वामित्व क्रेता को हस्तांतरित हो जाता है। इस सम्बन्ध में यह महत्त्वहीन है कि मूल्य का भुगतान अभी नहीं हुआ है या वस्तुओं की सुपुर्दगी अभी नहीं दी गई है। मूल्य भुगतान तथा सुपुर्दगी भविष्य में भी हो सकती हैं, इससे स्वामित्व के हस्तांतरण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। उदाहरण, सतीश एक पुस्तक विक्रेता की दुकान से पाँच पुस्तकें छाँटकर खरीदता है। वह पस्तकें अगले दिन ले जाने और अगले सप्ताह मूल्य चुकाने का वचन देता है। दुकान में उसी रात आग लग जाने से वे पाँच पुस्तकें भी नष्ट हो गई। सतीश उन पुस्तकों का मूल्य चुकाने के लिए उत्तरदायी होगा क्योंकि माल का स्वामित्व क्रेता को अनुबन्ध करते ही हस्तांतरित हो चुका था। इस नियम के लिए निम्नलिखित तीन शर्ते पूरी की जानी चाहियें

() विक्रय विशिष्ट माल का हो, () माल सपर्दगी योग्य स्थिति में हो, तथा (ग) अनुबन्ध शर्त रहित हो। माल को सुपुर्दगी योग्य स्थिति में तब कहा जाता है जब वह ऐसी स्थिति में हो कि अनुबन्ध के अन्तर्गत क्रेता उसे स्वीकार करने के लिए बाध्य हो। उपरोक्त उदाहरण में यदि विक्रेता ने । अभी पुस्तकों पर जिल्द चढ़ानी है, तो पुस्तकों को सपर्दगी योग्य स्थिति में नहीं कहा जा सकता, अत:। स्वामित्व भी हस्तांतरित नहीं होता। जब अनुबन्ध में कोई शर्त जोड़ दी जाती है तो अनुबन्ध सशर्त माना जाता है। ऐसी स्थिति में यदि शर्त पूरी किए बगैर ही माल क्रेता को दे दिया जाए तो स्वामित्व हस्तांतरित नहीं होता। एक केस में ज्योति ने कालू से एक मशीन 5.000 ₹ में खरीदने का अनुबन्ध इस शर्त पर। किया कि काल मशीन को पहले मरम्मत कराएगा। काल ने मशीन ज्योति को भेज दी और कहा कि वह नयं मरम्मत करा ले और मरम्मत का व्यय 5,000 ₹ में से काट कर शेष राशि उसे भेज दे। मरम्मत करते समय मिस्त्री की गलती के बिना मशीन नष्ट हो गई। यह हानि काल को सहन करनी पड़ी क्योंकि अनबन्ध के शर्त सहित होने के कारण मशीन के स्वामित्व का हस्तांतरण अभी तक क्रेता को नहीं हुआ। था।

2. जब विशिष्ट माल का शते रहित विक्रय अनुबन्ध हुआ है परन्तु माल को सुपुर्दगी deliverable state)-जब विशिष्ट माल का शर्त रहित विक्रय योग्य स्थिति में लाने के लिए विक्रेता को कुछ कार्यवाही करनी है, तो क्रेता को माल का स्वामित्व उस समय हस्तांतरित होता है जब विक्रेता ने यह कार्य पूरा कर लिया हो और क्रेता को इसकी सूचना मिल गई हो। यदि विक्रेता ने अभी कार्य पूरा नहीं किया है तो स्वामित्व हस्तांतरित हुआ नहीं माना जाएगा। रग बनाम मिनेट के केस में विक्रेता ने अपनी टंकी के सारे तेल को बेच दिया। अनुबन्ध के अनुसार विक्रेता को तेल पीपों में भरना था। क्रेता की उपस्थिति में कुछ पीपे भर दिए गए परन्त उन्हें ले जाने से पहले आग लग गई और सारा तेल नष्ट हो गया। क्रेता को उन पीपों की हानि उठानी पड़ी जिनमें तेल भर दिया गया था क्योंकि विक्रेता ने माल को सुपुर्दगी योग्य स्थिति में कर दिया था।

एक अन्य केस में जमीन में लगी हुई मशीन बेचने का अनबन्ध किया गया। मशीन को जमीन से अलग करते समय उसका कुछ भाग नष्ट हो गया। इस स्थिति में यह हानि विक्रेता को उठानी पड़ेगी, क्योंकि जमीन में लगी हुई मशीन को सुपुर्दगी योग्य स्थिति में नहीं माना जा सकता।

इस नियम को लागू करने के लिए यह आवश्यक है कि विक्रेता को जो कुछ भी कार्यवाही करनी है उसका सम्बन्ध वस्तुओं को सुपुर्दगी योग्य स्थिति में लाने से होना चाहिए। परन्तु केवल वस्तुओं को सुपुर्दगी योग्य स्थिति में कर देना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि इसकी सूचना क्रेता को मिल जानी चाहिए तभी स्वामित्व हस्तांतरित होता है।

3. जब मूल्य निश्चित करने के लिए विक्रेता को कुछ करना हो (When the seller has to do something for ascertaining the price)-जब सुपुर्दगी योग्य विशिष्ट माल का विक्रय अनुबन्ध किया जाता है किन्तु मूल्य निश्चित करने के लिए विक्रेता को कोई कार्य करना है-जैसे तौलना, नापना या परीक्षण करना, तो ऐसे माल का स्वामित्व उस समय तक हस्तांतरित नहीं होता जब तक इस प्रकार के कार्य न कर दिए जाएँ तथा क्रेता को इसकी सूचना न मिल जाए। जागरी बनाम फरनेल के केस में विक्रेता ने बकरे की खाल की कुछ गाँठे बेची। मूल्य प्रति दर्जन खाल के हिसाब से निश्चित हुआ। विक्रेता को मूल्य निश्चित करने के लिए खालें गिननी थी। गिनने से पहले ही माल जल गया। निर्णय दिया गया कि यह हानि विक्रेता को सहन करनी पड़ेगी क्योंकि अभी स्वामित्व हस्तांतरित नहीं हुआ था।

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उपर्युक्त दोनों नियमों के अन्तर्गत यदि विक्रेता ने वह कर दिया है जो उसे करना था और इसकी सूचना क्रेता को मिल गई है, तो माल का स्वामित्व क्रेता को हस्तांतरित हो गया माना जाता है। यदि क्रेता ने अपनी तसल्ली के लिए माल को जाँचना या तौलना-नापना है तो इससे कोई अन्तर नहीं पड़ता।

4. जब माल विक्रय या वापसीपर भेजा जाए (When goods are sent on ‘sale or return’ basis)-जब क्रेता को कोई माल ‘विक्रय या वापसी’ अथवा पसन्द किए जाने (approval) के आधार पर भेजा जाता है, तो ऐसी स्थिति में हस्तांतरण के सम्बन्ध में निम्नलिखित नियम लागू होते हैं

() जब क्रेता अपनी पसन्द या स्वीकृति विक्रेता को स्पष्ट रूप से बता देता है या वह कोई ऐसा कार्य करता है जिससे यह प्रकट होता हो कि क्रेता ने माल स्वीकार कर लिया है, तो स्वामित्व उसी समय हस्तांतरित हो जाता है।

परन्तु विक्रेता जब क्रेता को माल पसन्द करने के लिए देता है तो अपनी सुरक्षा के लिए वह यह शर्त लगा सकता है कि जब तक मूल्य का भुगतान न हो जाए स्वामित्व हस्तांतरित नहीं होगा। उदाहरण. विजय ने कछ माल सरेश को पसन्द करने के लिए भेजा और शर्त रखी कि या तो नकद विकय दोगा माल वापस कर दिया जाएगा, और जब तक मूल्य चुका न दिया जाए स्वामित्व हस्तांतरित नहीं होगा। मल्य चकाए बिना सरेश ने वह माल गिरीश के पास गिरवी रख दिया। इस स्थिति में योनि नहीं की गई, सुरेश को स्वामित्व हस्तांतरित हुआ नहीं माना जाएगा। अतः सरेश दाग का अनुबन्ध वैध नहीं है, विजय गिरीश से माल वापस ले सकता है।

() जब क्रेता अपनी स्वीकृति या अस्वीकृति के बारे में विजेता स्वीकति या अस्वीकृति के बारे में विक्रेता को बताए बिना माल अपने यदि माल वापस लेने का कोई समय निश्चित था, तब निश्चित समय के बीत गई कोई समय निश्चित नहीं किया गया था तब उचित समय के बीत जाने पर. साको स्वामित्व हस्तांतरित हो जाता है। उचित समय क्या है यह परिस्थितियों पर निर्भर करता है। उदाहरण, अशोक ने एक घोड़ा फिरोज को आठ दिन घोड़ा लौटाया जा सकता है। फिरोज के दोष के बिना को होगी, क्योंकि घोड़े का स्वामित्व अभी फिरोज को आठ दिन तक परखने के लिए दिया। पसन्द न आने सकता है। फिरोज के दोष के बिना घोड़ा तीन दिन बाद मर गया। यह हानि अशोक की स्वामित्व अभी फिरोज को हस्तांतरित नहीं हआ था। परन्तु, यदि फिरोज आठ दिन घोडा अपने पास रख रहता है तो निश्चित अवधि (आठ दिन) बीत जाने पर स्वामित्व हस्तांतरित हुआ माना जाएगा।

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 (II) अनिश्चित माल का स्वामित्व हस्तांतरण

(Transfer of Ownership of Unascertained Goods)

यदि विक्रय अनुबन्ध किसी अनिश्चित माल के सम्बन्ध में है, तो ऐसे माल का स्वामित्व क्रेता को तब तक हस्तांतरित नहीं होता जब तक कि माल निश्चित न कर लिया जाए। उदाहरण के लिए गोकुल अपनी दस गायों में से एक गाय बिहारी को बेचने का अनुबन्ध करता है। बिहारी गाय का स्वामी तब तक नहीं कहा जाएगा जब तक कि क्रय की जाने वाली गाय को पहचान न लिया गया हो।

जब कोई अनिश्चित अथवा भावी माल वर्णन के द्वारा (by description) बेचा जाता है तो वस्तु विक्रय अधिनियम की धारा 23 में दिए गए निम्नलिखित नियमों के अनुसार स्वामित्व हस्तांतरित होता है

() वर्णन द्वारा विक्रय (Sale by description)-जब वर्णन द्वारा किसी अनिश्चित या भावी माल का विक्रय अनुबन्ध होता है तो, उस समय ऐसा सुपुर्दगी योग्य माल बिना किसी शर्त के नियोजित (appropriate) कर लिया जाता है, स्वामित्व हस्तांतरित हो जाता है। माल के नियोजन का कार्य विक्रेता द्वारा क्रेता की सहमति से, या क्रेता द्वारा विक्रेता की सहमति से किया जाता है। इस प्रकार अनिश्चित माल की स्थिति में माल का स्वामित्व तभी हस्तांतरित हो सकता है जब माल को निश्चित कर लिया जाए और उसे अनुबन्ध के लिए नियोजित कर दिया जाए।

माल को नियोजित करने से यह अभिप्राय है कि विक्रय की जाने वाली वस्तुओं को अन्य वस्तुओं से अलग करना। वह नियोजन बिना किसी शर्त के होना चाहिए। जब विक्रेता माल को छाँट कर विक्रय के लिए अलग रख देता है तब स्वामित्व हस्तांतरित हो जाता है। उदाहरण, विक्रेता ने अपने गोदाम में रखे हुए 500 बोरी गेहूँ में से 20 बोरी बेचने का अनुबन्ध किया। जब विक्रेता 20 बोरी छाँटकर अलग कर देता है और क्रेता को सूचना मिल जाती है, तब स्वामित्व हस्तांतरित हो जाता है। इसी प्रकार जब माल को उचित प्रकार के पैकटों में भर दिया जाता है तब माल नियोजित हुआ माना जाता है, जैसे गोदाम में पड़े गेहूँ को जब बोरियों में भर कर क्रेता के लिए अलग कर दिया जाए तो माल नियोजित हो जाता है।

प्रायः माल विक्रेता के ही कब्जे में होता है, इसीलिए आमतौर से विक्रेता ही माल का नियोजन करता है। परन्तु माल के नियोजन के लिए क्रेता की सहमति आवश्यक है। यह स्वीकृति स्पष्ट या गर्भित हो सकती है तथा नियोजन से पहले या बाद में ली जा सकती है। यदि माल क्रेता के कब्जे में है, तो क्रेता विक्रेता की सहमति से माल को अलग कर सकता है।

() वाहक को सुपुर्दगी (Delivery to carrier)-जब अनुबन्ध के अनुसार, विक्रेता माल को क्रेता तक पहुँचाने के लिए उसे किसी वाहक या निक्षेपिती (चाहे क्रेता ने उसका नाम बताया है या नहीं) को देता है और माल पर अपना अधिकार सुरक्षित (reserve) नहीं रखता, तो माल की सुपुर्दगी देते ही स्वामित्व हस्तांतरित हो जाता है। परन्तु जब विक्रेता माल वाहक को सौंपने के बाद भी उस पर अपना अधिकार सुरक्षित रख लेता है ताकि स्वामित्व हस्तांतरित होने से पहले उसे माल का मूल्य मिल जाए, तो वाहक को माल देते समय स्वामित्व हस्तांतरित नहीं होता।

जब विक्रेता रेलवे रसीद या जहाजी बिल्टी अपने या अपने एजेन्ट के नाम में बनवाता है तो माल पर विक्रेता का ही अधिकार बना रहता है। इसी तरह, जब विक्रेता एक विनिमय-पत्र क्रेता के नाम बनाकर माल के अधिकार पत्रों के साथ अपने बैंक को इस आदेश के साथ भेज देता है कि जब तक केता मल्य का भुगतान न कर दे या विनिमय-पत्र स्वीकार न कर ले उसे माल के अधिकार पत्र documents of title) न दिए जाएं, तो माल का स्वामित्व तब तक क्रेता को हस्तांतरित नहीं होता जब तक कि वह मूल्य का भुगतान नहीं कर देता या विनिमय-पत्र स्वीकार नहीं कर लेता। यदि विक्रेता मूल्य लिए केता पर बिल लिखकर उसे जहाजी बिल्टी या रेलवे रसीद के साथ सीधे क्रेता के पास भेज देता है क्रेता बिल को स्वाकार नहीं करता, वह (क्रेता) जहाजी बिल्टी या रेलवे रसीद विक्रेता को लौटा देने के लिए बाध्य है। यदि क्रेता जहाजी बिली तब भी वह माल का स्वामी नहीं होगा क्योकि बाध्य है। यदि क्रेता जहाजी बिल्टी या रेलवे रसीद को अपने पार स्वामी नहीं होगा क्योकि विक्रेता का आशय ऐसा नहीं था।

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माल के स्वामित्व (स्वत्व) के हस्तांतरण सम्बन्धी नियम

(Rules to Transfer of Title)

वस्तु विक्रय अनुबन्ध में वस्तु में निहित स्वामित्व का हस्तांतरण आवश्यक तत्व है। विक्रेता वस्त की बिक्री द्वारा क्रेता को वस्तु का स्वामी बना देता है। इस प्रकार जो स्वामित्व पहले विक्रेता के पास था, हस्तांतरित होकर क्रेता के पास चला जाता है।

सामान्यतः माल का विक्रय वे ही व्यक्ति करते हैं जिनको विक्रय करने का अधिकार होता है। ऐसे व्यक्ति या तो स्वयं माल के स्वामी हो सकते हैं अथवा एजेन्ट। परन्तु प्रश्न यह है कि क्या ऐसा विक्रेता जो वस्तु का स्वामी नहीं है या जिसे वस्तु की बिक्री का अधिकार नहीं है, क्रेता को वस्तु का स्वामित्व दे सकता है? सीधी सी बात है कि जो कुछ हमारा नहीं है, वह हम दूसरे को नहीं दे सकते अर्थात् विक्रेता, क्रेता को स्वामित्व तभी दे सकता है जब स्वयं उसके पास स्वामित्व हो या स्वामित्व देने का अधिकार हो। यह नियम लेटिन भाषा के इस सामान्य नियम पर आधारित है किकोई भी व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को वह नहीं दे सकता जो उसके अधिकार में नहीं है।” (None can give or transfer what he does not himself possess)

वस्त-विक्रय अधिनियम की धारा 27 के अनुसार, “कोई भी क्रेता अपने माल के विक्रेता से श्रेष्ठ अधिकार प्राप्त नहीं कर सकता।” अर्थात् यदि विक्रेता का अधिकार श्रेष्ठ है तो क्रेता का अधिकार भी श्रेष्ठ होगा। इसके विपरीत यदि विक्रेता का अधिकार दूषित है तो क्रेता को उससे श्रेष्ठ अधिकार प्राप्त नहीं हो सकता अर्थात् विक्रेता के साथ-साथ क्रेता का अधिकार भी दूषित होगा (The buyer of goods acquires no better title than the seller had), भले ही उसने सद्विश्वास से कार्य किया हो तथा मूल्य चुकाया हो।

उदाहरणार्थ, ‘रोहित ने चोरी का कुछ माल ‘मोहित’ को बेच दिया। यद्यपि ‘मोहित’ ने यह माल उचित मूल्य देकर एवं सविश्वास से खरीदा है तब भी वह माल का स्वामी नहीं बन सकता, क्योंकि ‘रोहित’ को माल बेचने का कोई अधिकार नहीं था।

प्रश्न यह है कि ऐसी दशा में किस पक्षकार को माल के मूल्य की हानि सहन करनी पड़ेगी। क्या वास्तविक स्वामी सदैव के लिए माल से वंचित हो जाएगा? अथवा क्या निर्दोष क्रेता हानि को सहन करेगा? क्या दोषी विक्रेता हर्जाना देगा? यदि विक्रेता दोषपूर्ण विक्रय के लिए माल का मूल्य निर्दोष क्रेता को वापिस करने में समर्थ है तो क्रेता अपनी हानि की पूर्ति विक्रेता से ही कराएगा। इसके विपरीत यदि विक्रेता इस स्थिति में नहीं है कि वह मूल्य का भुगतान कर सके तो ऐसी दशा में निर्दोष क्रेता ही हानि को सहन करता है। वस्तुत: प्रत्येक दशा में दोषपूर्ण ढंग से बेची गई वस्तु उसके वास्तविक स्वामी को ही वापिस मिलती है। इस प्रकार यह नियम वास्तविक स्वामी की रक्षा करता है तथा निर्दोष क्रेता को हानि पहुँचाता है, परन्तु सामाजिक हितों तथा सम्पत्ति की रक्षा करने के लिए यह नियम आवश्यक है।

नियम के अपवाद (Exceptions to the above Rule)-यद्यपि वस्तु विक्रय अधिनियम की धारा 27 के अनुसार क्रेता को विक्रेता से अच्छा अधिकार प्राप्त नहीं हो सकता, परन्तु निम्नलिखित परिस्थितियों में क्रेता का अधिकार विक्रेता के अधिकार से श्रेष्ठ होगा। संक्षेप में, उपर्युक्त नियम के अपवाद इस प्रकार हैं

1 गत्यावरोध द्वारा प्राप्त अधिकार (Right by Estoppel)-जब माल का वास्तविक स्वामी अपने शब्दों अथवा अपने व्यवहार द्वारा क्रेता को यह विश्वास दिलाता है कि विक्रेता उस माल का स्वामी है अथवा उसको माल के स्वामी से उस माल को बेचने का अधिकार प्राप्त है और खरीदने के लिए प्रेरित करता है, तो फिर बाद में वह यह नहीं कह सकता कि विक्रेता को माल बेचने का अधिकार नहीं था। ऐसी स्थिति में, यद्यपि वास्तव में विक्रेता को माल बेचने का अधिकार नहीं था, परन्तु इस अपवाद के अन्तर्गत वह अपने से श्रेष्ठ अधिकार क्रेता को दे सकेगा। उदाहरणार्थ, ‘अमित’ माल के स्वामी ‘कपिल’ की उपस्थिति में ‘अंशल’ को ‘कपिल’ का माल बेचता है और ‘कपिल’ मौन रहता है या ‘अमित’ को माल बेचने से नहीं रोकता। यह विक्रय वेध माना जाएगा तथा ‘अंशल’ को ‘अमित’ से श्रेष्ठ अधिकार प्राप्त होंगे।

2. व्यापारिक एजेन्ट द्वारा विक्रय (Sale by a Mercantile Agent)-जब किसा व्यापारिक एजेन्ट के अधिकार में स्वामी की सहमति से माल अथवा माल सम्बन्धी अधिकार प्रपत्र (Documents title to goods) हों तो व्यापार को साधारण प्रगति में उसके द्वारा किया गया विक्रय स्वामी पर लागू होगा । बशर्ते कि क्रेता ने सद्विश्वास से कार्य किया है तथा अनुबन्ध के समय उसे यह सूचना नहीं थी कि

3. स्वामी द्वारा विक्रय (Salehvaco-owner)-जब माल के सभी सह-स्वामियों की समाल किसी एक सह-स्वामी के कब्जे में है, तो ऐसे सह-स्वामी से माल खरीदने वाले क्रेता। का श्रष्ठ अधिकार मिलते हैं बशर्ते कि उसने सदविश्वास से क्रय किया हो और उसे यह पता न हो कि सह-स्वामी को माल बेचने का अधिकार नहीं है। उदाहरणार्थ, रजत और भरत एक विशिष्ट माल के सयुक्त स्वामी हैं। ‘रजत’ माल को भरत के अधिकार में देता है। भरत माल को गौरव के हाथ में बेच दता है, जो सदविश्वास के साथ इसे खरीदता है। ऐसी परिस्थिति में ‘गौरव’ को माल पर वेध अधिकार प्राप्त होगा।

4. व्यर्थनीय अनुबन्ध के अन्तर्गत माल पर अधिकार रखने वाले व्यक्ति द्वारा विक्रय (धारा 29) (Sale by a Person in Possession of Goods Under a Voidable Contract)-जब विक्रेता ने भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 19 या 19 (अ) में वर्णित व्यर्थनीय अनुबन्ध के अन्तर्गत माल पर अधिकार प्राप्त किया है और पीड़ित पक्षकार द्वारा अनुबन्ध रद्द किए जाने से पहले ही वह माल ऐसे क्रेता को बेच देता है जो सद्विश्वास से एवं विक्रेता के अधिकार में दोष जाने बिना उसे खरीद लेता है, तो क्रेता को विक्रेता से श्रेष्ठ अधिकार मिलता है।

भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 19 तथा 19(अ) के अन्तर्गत उत्पीड़न, अनुचित प्रभाव, कपट, मिथ्या वर्णन अथवा त्रुटि द्वारा अनुबन्ध व्यर्थनीय अनुबन्ध होते हैं।

उदाहरण‘अ’ एक घोड़ा भय दिखाकर (उत्पीड़न द्वारा) ‘ब’ से क्रय करता है तथा ‘ब’ द्वारा अनुबन्ध भंग करने से पूर्व ही ‘स’ को बेच देता है। ‘स’ घोड़ा सद्भाव तथा विक्रेता के दूषित स्वत्व के ज्ञान बिना क्रय करता है। इस स्थिति में ‘स’ को घोड़े पर अच्छा स्वत्व प्राप्त हो जाएगा।

5. विक्रय के बाद माल पर अधिकार रखने वाले विक्रेता द्वारा विक्रय [धारा 30 (1)] (Sale by Seller in Possession of Goods After Sale)-जब किसी विक्रेता द्वारा माल बेच देने के बाद भी माल अथवा माल के अधिकार सम्बन्धी प्रपत्र उसके अधिकार में हैं और वह अथवा उसका व्यापारिक एजेन्ट माल को किसी तीसरे व्यक्ति के हाथ बेच देता है जो कि माल की सुपुर्दगी सविश्वास के साथ तथा पूर्व विक्रय की जानकारी न रखते हुए ले लेता है तो क्रेता को विक्रेता से अच्छा अधिकार प्राप्त होता है। उदाहरणार्थ, ‘अ’ कुछ माल ‘ब’ को बेचता है। ‘ब’ माल को ‘अ’ के पास ही कुछ समय के लिए छोड़ देता है। ‘अ’ उस माल को ‘स’ के हाथ बेच देता है। ‘स’ सद्भावना के साथ तथा पूर्व-विक्रय का ज्ञान न होते हुए माल खरीदता है। ‘स’ को इस माल पर वैध अधिकार प्राप्त होगा। यह नियम केवल उन परिस्थितियों में लागू होता है जहाँ विक्रेता का माल पर कब्जा विक्रेता के रूप में है, निक्षेपग्रहीता अथवा गिरवीग्रहीता के रूप में नहीं है।

6. माल पर अधिकार रखने वाले नेता द्वारा विक्रय (Sale by a Buver in Possession of Goods)-जब किसी व्यक्ति ने माल खरीद लिया हो या खरीदने का ठहराव किया हो और माल या। माल के अधिकार सम्बन्धी पत्र विक्रेता की सहमति से क्रेता के पास ही हों तथा इसके बाद वह क्रेता उक्त माल को स्वयं या अपने एजेन्ट द्वारा तृतीय पक्ष के हाथ बेच देता है तो ऐसी दशा में माल के खरीदने वाले को माल के प्रति अच्छा अधिकार प्राप्त हो जाता है, यदि उसने सदभावना से और क्रेता के दूषित स्वत्व की जानकारी के बिना माल खरीदा है।

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उदाहरणरामचन्द्र ने आनन्द को एक घड़ी पसन्दगी तथा वापसी की शर्त पर सुपूर्द की। पसन्दगी की सूचना 10 दिन के अन्तर्गत हा विक्रेता को देने का प्रावधान समझौते में था। आनन्द ने 5 दिन बाद ही वह घड़ी वासुदेव को बेच दी। वासुदेव जिसने घड़ी का क्रय मूल्य चुकाकर तथा सदभाव के साथ घड़ी को क्रय किया है घड़ी पर अच्छा अधिकार प्राप्त करेगा।

7. अदत्त विक्रेता द्वारा विक्रय (Sale by an Unpaid Seller)-जब अदत्त विक्रेता माल पर ग्रहणाधिकार या मार्ग में माल रोकने के अपने अधिकार का उपयोग करके माल पर कब्जा पा लेता है । व्यावसायिक नियामक ढाँचा तथा ऐसे माल का पुनर्विक्रय करता है, तो नए क्रेता को श्रेष्ठ अधिकार प्राप्त होता है। ऐसी स्थिति में। पहला क्रेता दूसरे क्रेता से माल नहीं ले सकता। उदाहरणार्थ, ‘अमित’ ने कुछ माल ‘सुमित’ को बेचा, परन्तु जब ‘अमित’ को माल का मूल्य नहीं मिला तो ‘अमित’ ने माल पर ग्रहणाधिकार प्रयोग करके माल को अपने पास रोक लिया। ‘अमित’ ने वही माल ‘कपिल’ को बेच दिया। इस स्थिति में ‘कपिल’ को माल पर श्रेष्ठ अधिकार मिलेगा, चाहे ‘अमित’ ने पुनर्विक्रय की सूचना ‘सुमित’ को दी है या नहीं।

अन्य अधिनियमों में दिए गए अपवाद

1.खोया हुआ माल पाने वाले के द्वारा विक्रय (Sale by Finder of the Goods)-खोए हुए। माल को पाने वाला व्यक्ति, यदि वह पर्याप्त परिश्रम के बाद भी वास्तविक स्वामी को नहीं ढूँढ सका है। अथवा स्वामी ने उसके द्वारा किए गए वैधानिक व्ययों का भुगतान करने से मना कर दिया है तो उसे अधिकार है कि वह वस्तु की बिक्री कर सके तथा इस प्रकार की वस्तु क्रय करने वाला क्रेता वस्तु पर अच्छा अधिकार प्राप्त कर लेता है। परन्तु माल के पाने वाले को वस्तु को बेचने का अधिकार तभी मिलेगा जबकि यदि (i) वस्तु नष्ट होने वाली हो (ii) पाने वाले के द्वारा किया गया वैधानिक व्यय वस्तु के कुल मूल्य के 2/3 भाग से अधिक हो गया हो।

2. गिरवीग्राही द्वारा विक्रय (Sale by a Pawnee)-भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 176 के अन्तर्गत कुछ परिस्थितियों में गिरवीकर्ता को सूचना देकर गिरवीग्राही माल को बेच सकता है। गिरवीग्राही द्वारा वस्तु का स्वामी न होते हुए भी माल बेचने पर क्रेता को अच्छा अधिकार प्राप्त होता है।

3. सरकारी अधिकारी या कम्पनी के समापक द्वारा विक्रय (Sale by Official Receiver or Liquidator)-किसी व्यक्ति के दिवालिया होने पर या कम्पनी के समापन पर उसकी सम्पत्ति सरकारी अधिकारी या निस्तारक द्वारा विक्रय की जाती है। ऐसी स्थिति में, यद्यपि सरकारी अधिकारी या निस्तारक माल का स्वामी नहीं है, फिर भी वह क्रेता को श्रेष्ठ अधिकार प्रदान करता है।

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परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(Expected Important Questions for Examination)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

(Long Answer Questions)

1 वस्तुओं का स्वामित्व विक्रेता से क्रेता को कब हस्तांतरित होता है, यह जानना क्यों महत्त्वपूर्ण है? विक्रेता से क्रेता को माल के स्वामित्व हस्तांतरण सम्बन्धी नियमों को संक्षेप में लिखिए।

Why it is important to know the time as to when the property in goods passes to buyer? State briefly the rules of transfer of property from seller to buyer.

2. विशिष्ट माल’ से क्या अभिप्राय है? वस्तु-विक्रय अनुबन्ध में विक्रेता से क्रेता को विशिष्ट माल एवं अनिश्चित माल का स्वामित्व कब हस्तांतरित होता है?

What is meant by ‘specific goods?’ In a contract for the sale of goods when does the property in goods pass from seller to buyer in case of specific and unascertained goods?

3. माल का कोई भी विक्रेता उस माल के सम्बन्ध में क्रेता को अपने से अच्छा अधिकार नहीं दे सकता।” इस कथन की जाँच कीजिए और बताइए कि क्या इस नियम के कुछ अपवाद भी हैं?

“No seller of goods can give the buyer of goods a better title to those goods than what he himself possesses.”Examine this statement and mention whether there are any exceptions to this rule.

4. ‘जोखिम स्वामित्व के साथ चलती है।’ स्पष्ट कीजिए तथा यह बताइए कि स्वामित्व का हस्तांतरण किन नियमों के अन्तर्गत होता है?

Risk goes with the ownership.’ Discuss and explain the rules regarding transfer of property.

5. “कोई भी वह नहीं दे सकता, जो उसके अधिकार में नहीं है।” टिप्प्णी कीजिए। क्या इस नियम में कोई अपवाद है? उदाहरण की सहायता से स्पष्ट कीजिए।

“Nemo dat quod Non Habet”i.e. None can give who possesses not. Comment. Is there any exception to this rule? Illustrate by giving an example.

6. वस्तु-विक्रय में स्वामित्व हस्तांतरण से सम्बन्धित नियमों का वर्णन कीजिए।

Describe the rules relating to passing of property in the sale of goods.

7. निश्चित तथा अनिश्चित माल से क्या आशय है? माल के विक्रय के अनबन्ध में विक्रेता से क्रेता के पास माल का स्वामित्व व जोखिम कब हस्तांतरित होते हैं?

What is the meaning of specific and unascertained goods? In contract of sale of goods when the ownership or the risks in the goods passes from the sellers to the buyer?

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लघु उत्तरीय प्रश्न

(Short Answer Questions)

1 जोखिम स्वामित्व के साथ-साथ रहता है।’ समझाइए।

“Risk follows ownership.” Explain. –

2. निश्चित माल की दशा में क्रेता को सम्पत्ति का हस्तांतरण कब होता है?

When does property in ascertained goods passes to buyer?

3. अनिश्चित माल की दशा में क्रेता को सम्पत्ति का हस्तांतरण कैसे होता है?

How does property in unascertained goods passes to the buyer?

4. कोई भी वह नहीं दे सकता जो उसके अधिकार में नहीं है।” व्याख्या कीजिए।

“Nemo data quod non habit.” Explain this maxim.

5. स्वत्व के हस्तांतरण से क्या आशय है?

What is meant by transfer of title?

6. “क्रेता का स्वत्वाधिकार विक्रेता के स्वत्वाधिकार से श्रेष्ठ नहीं होता।” समझाइए।

“The buyers title cannot be better than seller’s”. Explain.

7. सुपुर्दगी योग्य से क्या आशय है?

What is meant by the deliverable state?

8. अनुमोदन पर विक्रय की दशा में स्वामित्व का हस्तांतरण कैसे होगा?

How the property will transfer in case of sale on approval?

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सही उत्तर चुनिए

(Select the Correct Answer):

1 माल उस पक्षकार की जोखिम पर होता है जिसका

(The goods are at the risk of a party who has):

(अ) माल पर स्वामित्व हो (ownerships of goods)

(1) (ब) माल पर कब्जा हो (possession of goods)

(स) माल अभिरक्षा में हो (custody of goods)

(द) ‘ब’ और ‘स’ दोनों (‘b’ and ‘c’ both)

2. अनिश्चित माल के विक्रय की स्थिति में स्वामित्व का हस्तांतरण क्रेता को तब होता है जब

-(In case of sale of unascertained goods, the ownership is transferred from the seller to the buyer when the goods are):

(अ) सुनिश्चित हो (ascertained)

(ब) अनुबन्ध के लिए आबंटित हो (appropriated to the contract)

(स) माप ताल हुई हो (weighted and measured)

(द)’अ’ और ‘ब’ दोनों (Both ‘a’ and ‘b’) (1)

3. जब अनुमोदन द्वारा विक्रय पर माल क्रेता के यहाँ गया हो तो स्वामित्व का हस्तांतरण तब होगा।

(When the goods are sent for approval to the buyer then ownership is transferred when):

(अ) माल स्वीकृत किया जाए (goods are accepted)

(स) माल वापस न किया जाए (fails to return goods)

(7) उपरोक्त सभी (all of the above)(/):

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chetansati

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